hotaks444
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वर्षा देवी चंपा की मदद से शंकर के लिए अत्यंत ही लज़ीज़ नाश्ता बनाकर लाई.., और उसे शंकर के सामने सर्व करने लगी…, फिर दोनो ने
मिलकर नाश्ता किया….!
नाश्ते के दौरान उन्होने खुलेदिल से शंकर को अपने रसीले यौबन का रस्पान कराया…, शंकर भी मामी के बहरे-पूरे यौबन का स्वाद लेते हुए
लज़ीज़ नाश्ते का आनंद लेता रहा…,
उसने और उसके बाबूराव दोनो ने वर्षा देवी के उस लावन्यमयी यौबन को मन ही मन खूब सराहा , उसका बाबूराव तो पॅंट के अंदर से ही लगाम तोड़कर मामी की मक्खमली घाटी में उतरने के लिए उच्छल कूद मचाने लगा…!
शंकाए अपनी माँ समेत उसने अबतक जितनी भी औरत या लड़कियों को चखा था उन सब में उसे मामी अब्बल नज़र आ रही थी, यही कारण था कि उसका बाबूराव भी टाइट कपड़ों के बाबजूद भी फड़फड़ाने लगा था…!
ख़ासकर उनके दूध जैसे, मक्खन से भी कोमल व शेप ब्लाउस से झलकते उनके.. उनके वो दो अमृत फल, जिन्हें देखकर वो पहले भी लार टपका चुका था…!
शंकर को ये पक्का विश्वास था कि मामी को हाथ लगाने भर की देर है.., वो किसी पके आम की तरह उसकी झोली में तपाक पड़ेंगी…,
लेकिन वो अपनी तरफ से कोई भी ऐसी पहल नही करना चाहता था जिससे उसके या लाला जी के नाम को ज़रा सा भी दाग लगे..!
नाश्ते के बाद कुच्छ देर वो दोनो आपस में इधर उधर की बातें करते रहे.., इस दौरान शंकर ने जमकर चक्षुचोदन का लुत्फ़ उठाया..,
रास्ते भर खुली जीप में सफ़र करने से पसीने और धूल मिट्टी से उसका पूरा शरीर चिप-चिपा रहा था सो उसने कुच्छ देर बाद नहाने की
इच्छा जताई…!
यौं तो वर्षा देवी के घर का हरेक कमरा किसी 5स्टार होटेल के सूयीट से कम नही था.., उनके अपने बेडरूम के ठीक बगल वाला ही रूम उन्होने शंकर के रहने के लिए तैयार कराया था..,
फिर भी काफ़ी दिनो से यूज़ ना होने की वजह से कमरे के बाथरूम के टॅप वग़ैरह शायद चोक हो गये थे.., किसी में पानी आता था किसी में नही.
उन्होने नौकर से कह कर प्लमबर को बुलवाया भी लेकिन वो बिज़ी होने की वजह से आज नही आ सका था, तो उन्होने ड्रॉयिंग रूम के बाजू
वाला कंबाइन बाथरूम शंकर के नहाने के लिए चंपा को नहाने का समान चेक करने का बोला…!
शंकर अपने बॅग से अपने ज़रूरत के कपड़े लेने अपने रूम में गया तबतक चंपा ने उस बाथरूम में सब समान चेक कर लिया, जो नही था वो रख कर वो बाथरूम में ही शंकर के आने का इंतेजार करने लगी…!
दिन छिपने लगा था सो मामी हॉल से उठकर शाम की दिया आरती करने किचन के बाजू में बने मंदिर में चली गयी…!
उधर जब शंकर अपने कपड़े लेकर बाथरूम में पहुँचा तो वहाँ उसे चंपा मिली जो बस यों ही उसे आता देख कर खटर-पटर करने लगी…!
शंकर को आया देखकर वो बोली – लाइए हमें अपने कपड़े उतारकर दे दीजिए मे मशीन में डाल देती हूँ धोने के लिए…!
चंपा इस समय अपनी चोली के उपर चुनरी भी नही डाले थी.., उसकी कसी हुई चोली में उसके बड़े बड़े मम्मे चोली को फाड़कर बाहर आने के लिए उताबले हो रहे थे…!
शंकर ने एक नज़र उसकी चुचियों के बीच की घाटी पर डाली जो दोनो तरफ के पर्वत शिखर चोली के दबाब से एक दूसरे के काफ़ी करीब
आ गये थे, इस कारण से उनके बीच की खाई काफ़ी संकरी हो गयी थी…,
उसका बाबूराव जो मामी के हुश्नो शबाब के दर्शन के बाद बुरी तरह आग बाबूला होने लगा था, वो अब थोड़ा बहुत लाइन पर आया ही था कि
अब चंपा की इस संकरी घाटी पर नज़र पड़ते ही वो फिरसे अपना सिर उठाने लगा…!
अब ऐसे में अगर वो अपना पॅंट इसके सामने उतारता है तो… बेचारी ज़रा सी फ्रेंची इसको कितनी देर झेल पाएगी…, सो उसने चंपा को वहाँ
से टरकाने की गरज से कहा – तुम जाओ मे अपने कपड़े यही रख दूँगा कल धोने के लिए ले लेना…!
चंपा – काहे…! अभी दीजिए ना, अभी धो देती हूँ, सुबह ज़्यादा कपड़े हो जाते हैं धोने को…!
चंपा की तर्कपूर्ण बातें सुनकर शंकर चुप रह गया…, अब वो उसके सामने कैसे अपने कपड़े उतारे.., साला उसका नाग अभी भी पूरी तरह शांत नही हुआ था..,
एक अंजान नौकरानी के सामने वो अपने छोटे से फ्रेंची में कैसे आ सकता था…, अब वो उसे क्या जबाब देकर यहाँ से टरकाए यही सोच रहा था.. की चंपा उसके कसरती बदन पर नज़र गढ़ाए हुए फिर बोली –
अरे इतना काहे सोच रहे हैं भैया.., हमार गाओं में तो कोई मरद इतना संकोच नाही करत.., ओउर आप हैं कि लौंडिया सरिखन शरमाई रहा..,
लाइए दीजिए हामका अपना कपड़ा…!
तभी उस कमरे जैसे विशाल बाथरूम के एक कोने में उसे मशीन जैसी दिखाई दी.., गाओं में तो सभी हाथ से ही कपड़े धोते थे.., सो उसे पता
ही नही था कि वॉशिंग मशीन कैसी होती है..,
मिलकर नाश्ता किया….!
नाश्ते के दौरान उन्होने खुलेदिल से शंकर को अपने रसीले यौबन का रस्पान कराया…, शंकर भी मामी के बहरे-पूरे यौबन का स्वाद लेते हुए
लज़ीज़ नाश्ते का आनंद लेता रहा…,
उसने और उसके बाबूराव दोनो ने वर्षा देवी के उस लावन्यमयी यौबन को मन ही मन खूब सराहा , उसका बाबूराव तो पॅंट के अंदर से ही लगाम तोड़कर मामी की मक्खमली घाटी में उतरने के लिए उच्छल कूद मचाने लगा…!
शंकाए अपनी माँ समेत उसने अबतक जितनी भी औरत या लड़कियों को चखा था उन सब में उसे मामी अब्बल नज़र आ रही थी, यही कारण था कि उसका बाबूराव भी टाइट कपड़ों के बाबजूद भी फड़फड़ाने लगा था…!
ख़ासकर उनके दूध जैसे, मक्खन से भी कोमल व शेप ब्लाउस से झलकते उनके.. उनके वो दो अमृत फल, जिन्हें देखकर वो पहले भी लार टपका चुका था…!
शंकर को ये पक्का विश्वास था कि मामी को हाथ लगाने भर की देर है.., वो किसी पके आम की तरह उसकी झोली में तपाक पड़ेंगी…,
लेकिन वो अपनी तरफ से कोई भी ऐसी पहल नही करना चाहता था जिससे उसके या लाला जी के नाम को ज़रा सा भी दाग लगे..!
नाश्ते के बाद कुच्छ देर वो दोनो आपस में इधर उधर की बातें करते रहे.., इस दौरान शंकर ने जमकर चक्षुचोदन का लुत्फ़ उठाया..,
रास्ते भर खुली जीप में सफ़र करने से पसीने और धूल मिट्टी से उसका पूरा शरीर चिप-चिपा रहा था सो उसने कुच्छ देर बाद नहाने की
इच्छा जताई…!
यौं तो वर्षा देवी के घर का हरेक कमरा किसी 5स्टार होटेल के सूयीट से कम नही था.., उनके अपने बेडरूम के ठीक बगल वाला ही रूम उन्होने शंकर के रहने के लिए तैयार कराया था..,
फिर भी काफ़ी दिनो से यूज़ ना होने की वजह से कमरे के बाथरूम के टॅप वग़ैरह शायद चोक हो गये थे.., किसी में पानी आता था किसी में नही.
उन्होने नौकर से कह कर प्लमबर को बुलवाया भी लेकिन वो बिज़ी होने की वजह से आज नही आ सका था, तो उन्होने ड्रॉयिंग रूम के बाजू
वाला कंबाइन बाथरूम शंकर के नहाने के लिए चंपा को नहाने का समान चेक करने का बोला…!
शंकर अपने बॅग से अपने ज़रूरत के कपड़े लेने अपने रूम में गया तबतक चंपा ने उस बाथरूम में सब समान चेक कर लिया, जो नही था वो रख कर वो बाथरूम में ही शंकर के आने का इंतेजार करने लगी…!
दिन छिपने लगा था सो मामी हॉल से उठकर शाम की दिया आरती करने किचन के बाजू में बने मंदिर में चली गयी…!
उधर जब शंकर अपने कपड़े लेकर बाथरूम में पहुँचा तो वहाँ उसे चंपा मिली जो बस यों ही उसे आता देख कर खटर-पटर करने लगी…!
शंकर को आया देखकर वो बोली – लाइए हमें अपने कपड़े उतारकर दे दीजिए मे मशीन में डाल देती हूँ धोने के लिए…!
चंपा इस समय अपनी चोली के उपर चुनरी भी नही डाले थी.., उसकी कसी हुई चोली में उसके बड़े बड़े मम्मे चोली को फाड़कर बाहर आने के लिए उताबले हो रहे थे…!
शंकर ने एक नज़र उसकी चुचियों के बीच की घाटी पर डाली जो दोनो तरफ के पर्वत शिखर चोली के दबाब से एक दूसरे के काफ़ी करीब
आ गये थे, इस कारण से उनके बीच की खाई काफ़ी संकरी हो गयी थी…,
उसका बाबूराव जो मामी के हुश्नो शबाब के दर्शन के बाद बुरी तरह आग बाबूला होने लगा था, वो अब थोड़ा बहुत लाइन पर आया ही था कि
अब चंपा की इस संकरी घाटी पर नज़र पड़ते ही वो फिरसे अपना सिर उठाने लगा…!
अब ऐसे में अगर वो अपना पॅंट इसके सामने उतारता है तो… बेचारी ज़रा सी फ्रेंची इसको कितनी देर झेल पाएगी…, सो उसने चंपा को वहाँ
से टरकाने की गरज से कहा – तुम जाओ मे अपने कपड़े यही रख दूँगा कल धोने के लिए ले लेना…!
चंपा – काहे…! अभी दीजिए ना, अभी धो देती हूँ, सुबह ज़्यादा कपड़े हो जाते हैं धोने को…!
चंपा की तर्कपूर्ण बातें सुनकर शंकर चुप रह गया…, अब वो उसके सामने कैसे अपने कपड़े उतारे.., साला उसका नाग अभी भी पूरी तरह शांत नही हुआ था..,
एक अंजान नौकरानी के सामने वो अपने छोटे से फ्रेंची में कैसे आ सकता था…, अब वो उसे क्या जबाब देकर यहाँ से टरकाए यही सोच रहा था.. की चंपा उसके कसरती बदन पर नज़र गढ़ाए हुए फिर बोली –
अरे इतना काहे सोच रहे हैं भैया.., हमार गाओं में तो कोई मरद इतना संकोच नाही करत.., ओउर आप हैं कि लौंडिया सरिखन शरमाई रहा..,
लाइए दीजिए हामका अपना कपड़ा…!
तभी उस कमरे जैसे विशाल बाथरूम के एक कोने में उसे मशीन जैसी दिखाई दी.., गाओं में तो सभी हाथ से ही कपड़े धोते थे.., सो उसे पता
ही नही था कि वॉशिंग मशीन कैसी होती है..,