Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर) - Page 4 - SexBaba
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Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)

तब उन उड़ते कागजात में मुकेश को उस सेल डीड का ड्राफ्ट दिखाई दिया जो कि उसने देवसरे के कहने पर तैयार किया था और जो उसकी वाल सेफ में से गायब पाया गया था । उसने उसे फौरन इसलिये पहचाना क्योंकि वो उसने खुद तैयार किया था और उसमें सेल की तारीख और खरीदार के नाम की जगह खुद उसने खाली छोड़ी थी ।
मुकेश ने बड़ी तत्परता से उड़ कर नीचे कालीन पर गिरे कागजात उठाकर वापिस मेज पर रख दिये, केवल सेल डीड वाला कागज उसने कालीन पर ही पड़ा रहने दिया जिसकी तरफ कि पारेख की तवज्जो न गयी ।
“थैंक्यू ।” - पारेख बोला ।
“नो मैंशन । आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया, जनाब । मैंने पूछा था कि अगर महाडिक वाला कान्ट्रैक्ट खारिज हो जाये तो क्या आप प्रापर्टी के खरीदार होंगे ?”
“कैसा जवाब चाहते हो ?” - वो तनिक मुस्कराता हुआ बोला - “चलताऊ या पुख्ता ।”
“बेहतर तो पुख्ता जवाब ही होता है ।”
“दुरुस्त । अभी पेश होता है पुख्ता जवाब ।”
उसने मेज का एक दराज खोला, भीतर से नोटों की एक गड्डी बरामद की और उसे मेज पर मुकेश के सामने फेंका ।
मुकेश की निगाह गड्डी पर पड़ी तो उसे नया झटका लगा ।
वो हजार हजार के इस्तेमालशुदा नोटों की गड्डी थी जिस पर चढे रैपर पर आर.डी.एन. अंकित था ।
वो नोटों की वह गड्डी थी जो पिछले रोज देवसरे ने वाल सेफ से निकाल कर उसकी हथेली पर रखी थी ताकि वो हजार हजार के नोटों में लाख रुपया थामने का सुख पा पाता ।
उस गड्डी की और सेल डीड के ड्राफ्ट की वहां दिनेश पारेख के पास मौजूदगी अपनी कहानी खुद कह रही थी और कहानी को पुख्ता ये हकीकत कर रही थी कि कल रात कत्ल के वक्त के आसपास उसकी सलेटी रंग की फोर्ड आइकान उसने अपनी आंखों से रिजॉर्ट से रुख्सत होती देखी थी ।
“ये... ये क्या ?” - उसके मुंह से निकला ।
“बयाना । महाडिक का एतराज खारिज कर सको तो बाकी रकम भी ले जाना, न कर सको तो बयाना वापिस कर जाना । ठीक है ?”
“ठीक है ।”
“नोट गिन लो ।”
“क्या जरूरत है ? मुझे मालूम है ये पूरे सौ हैं ।”
“मालूम है !” - वो तीखे स्वर में बोला - “कैसे मालूम है ?”
“आप जैसा मकबूल आदमी किसी को कोई रकम देगा तो क्या उसमें कोई कमीबेशी होगी ?”
“ओह !”
“फिर इस पर किसी के इनीशियल्स हैं, किसी ने गिन कर चौकस किये ही होंगे तो गड्डी बना कर, उसे स्टिच करके, रैपर पर इनीशियल्स किये होंगे ।”
“दुरुस्त ।”
“आपके नोट शायद रामदेव गिनता है ।”
“कैसे जाना ?”
“इनीशियल्स से ही जाना । आर.डी. से रामदेव बनता है । एन. से सरनेम बनता होगा ।”
“नानवटे । उसका पूरा नाम रामदेव नानवटे है ।”
“आई सी । मुझे एक गिलास पानी मिल सकता है ?”
“पानी ! अरे भाई, मैं ड्रिंक पेश करता हूं । आखिर इतना बड़ा बार यहां किसलिये है !”
“जी नहीं, शुक्रिया । मेरा वापिसी का सफर बहुत लम्बा है इसलिये ड्रिंक न करना ही ठीक होगा । मैं ये इज्जत फिर कभी हासिल करूंगा ।”
“मर्जी तुम्हारी ।”
वो उठ कर बार पर पहुंचा । बार की ही एक कैबिनेट में एक छोटा सा रेफ्रीजरेटर फिक्स था जिसे उसने खोला । यूं उसकी पीठ फिरते ही मुकेश ने झुककर कालीन पर से सेल डीड वाला कागज उठा लिया और उसे जल्दी से मोड़ कर अपनी जेब में डाल लिया ।
पारेख वापिस लौटा । पानी से भरा एक बिलौरी गिलास उसने मुकेश के सामने रखा ।
“थैंक्यू ।” - मुकेश बोला, उसने पानी पीकर गिलास खाली किया और उठ खड़ा हुआ - “अब मैं इजाजत चाहूंगा ।”
पारेख भी सहमति में सिर हिलाता उठा ।
पहले वाले गलियारे में चलते हुए वे वापिस ड्राईंगरूम में पहुंचे जहां दो जोड़े हंस रहे थे, किलोल कर रहे थे, फाश हरकतें कर रहे थे, ड्रिक कर रहे थे और एक युवती, जो कि जरूर पारेख की संगिनी थी, भुनभुना रही थी और बार बार पहलू बदल रही थी ।
“अभी । अभी ।” - पारेख ने पुचकारते हुए उसे तसल्ली दी - “बस, एक मिनट और ।”
युवती ने मुंह बिसूरा ।
“पिकनिक के बारे में फिर सोच लो ।” - फिर पारेख मुकेश से बोला - “एक और लड़की.... चलो नौ मिनट में हाजिर हो जायेगी ।”
“थैंक्यू ।” - मुकेश खेदपूर्ण स्वर में बोला - “लेकिन फिर कभी ।”
“मर्जी तुम्हारी । बाहर का रास्ता खुद तलाश कर लोगे या रामदेव को बुलाऊं ?”
“तलाश कर लूंगा । गुड नाइट, सर ।”
लम्बे डग भरता वो इमारत से बाहर निकला और सीढियां उतरकर कार के करीब पहुंचा । वो कार में सवार हुआ और इंजन स्टार्ट करते हुए उसने एक सतर्क निगाह चारों तरफ दौड़ाई ।
कहीं कोई नहीं थी । किसी की निगाह उस पर नहीं थी ।
धड़कते दिल से उसने कार को गियर में डाला, उसे कम्पाउन्ड में यू टर्न दिया और फिर सहज से ज्यादा रफ्तार से ड्राइव-वे पर दौड़ाया ।
पीछे से कोई आवाज न हुई, किसी ने उसे रुकने के लिये न ललकारा ।
उसने आधा ड्राइवे पार कर लिया तो तब कहीं जाकर उसकी जान में जान आयी कि उसकी चोरी पकड़ी नहीं गयी थी ।
तभी कहीं कोई अजीब सी आवाज होने लगी ।
अजीब सी आवाज ?
जैसे कोई अलार्म बज रहा हो ।
कैसी आवाज थी वो ?
उस आवाज का रहस्य उसकी समझ में तब आया जब उसे सामने खुला फाटक दिखाई दिया जो कि एकाएक अपने आप बन्द होने लग गया था ।
हे भगवान !
वो अलार्म उसी की वजह से बज रहा था और वो फाटक बिजली से संचालित था और अब उसके मुंह पर बन्द हो रहा था ।
जरूर अलार्म और फाटक का कन्ट्रोल इमारत के भीतर कहीं था ।
उसने एक्सीलेटर के पैडल पर दबाव बढाया ।
कार ने एकदम असाधारण स्पीड पकड़ी और बन्द होते फाटक की ओर लपकी ।
लेकिन पार न गुजर सकी ।
फाटक पहले ही बन्द हो गया ।
कार को उससे जा टकराने से रोकने के लिये उसे ब्रेक के पैडल पर लगभग खड़ा हो जाना पड़ा । कार के पहियों के ड्राइव-वे पर रिपटने और ब्रेकों की चरचराहट की जोर की आवाज हुई ।
कार जब आखिरकार गति शून्य हुई तो उसका अगला बम्फर फाटक से केवल कुछ इंच दूर था ।
उसने अपना शरीर सीट पर ढीला छोड़ दिया और असहाय भाव से गर्दन हिलायी ।
चोरी ही नहीं, चोर भी पकड़ा गया था ।
“फाटक में करन्ट चालू कर दिया गया है । दो मिनट बाद कुत्ते छोड़ दिये जायेंगे ।”
आवाज पारेख की थी जो कि पेड़ों में कहीं छुपे स्पीकर में से आ रही थी ।
“वापिस आ जाओ, इसी में तुम्हारी भलाई है ।”
उसने कार को बैक करके यू टर्न दिया और ड्राइव-वे पर वापिस दौड़ा दिया । पूर्ववत् इमारत की सीढियों के सामने उसने कार रोकी ।
उसके स्वागत में रामदेव सीढियों के दहाने पर खड़ा था ।
लेकिन इस बार एक फर्क के साथ ।
इस बार उसकी पतलून की बैल्ट में एक रिवॉल्वर खुंसी हुई थी जिसकी मूठ को वो बार बार छू रहा था ।
 
मुकेश कार से निकला और सीढियां चढकर उसके करीब पहुंचा ।
“स्टडी में ।” - रामदेव सख्ती से बोला ।
“चलो ।”
“पहले तुम चलो ।”
मुकेश आगे बढा । रामदेव अपने और उसके बीच में दो कदम का फासला रख कर उसके पीछे चलने लगा ।
दोनों स्टडी में पहुंचे ।
पारेख अपनी एग्जीक्यूटिव चेयर पर बैठा हुआ था । उसके चेहरे पर वैसे हिंसक भाव नहीं थे जैसे दिखाई देने का मुकेश को अन्देशा था अलबत्ता नाखुश वो बराबर था । कुछ क्षण उसने अपलक मुकेश की तरफ देखा ।
“तलाशी लो ।” - फिर वो बोला ।
सहमति में सिर हिलाता रामदेव ऐन उसने पीछे पहुंचा ।
“दोनों हाथ मुंडी पर ।” - उसने हुक्म दिया - “घूमने का नहीं ।”
मुकेश ने खामोशी से हुक्म बजाया ।
रामदेव ने उसकी जेबों का सामान निकाल कर अपने बॉस के सामने मेज पर रख दिया तो मुकेश ने हाथ नीचे गिरा लिये ।
“बाहर जा के ठहरो ।” - परेख रामदेव से बोला ।
रामदेव चुपचाप स्टडी से बाहर निकल गया ।
पारेख कुर्सी पर से उठा और विशाल मेज के दूसरे पहलू में पहुंचा । उसने मेज पर से मुकेश का सारा निजी सामान उठा कर उसे वापिस सौंप दिया ।
“थैंक्यू ।” - मुकेश बोला ।
“क्या मतलब हुआ इस हरकत का ?” - पारेख बोला ।
“किस हरकत का ?”
“तुम्हें नहीं मालूम ?”
मुकेश खामोश रहा ।
“पढे लिखे आदमी हो - वकील बताते हो अपने आपको - एक पढे लिखे इज्जदार शख्स को शोभा देता है चोरी करना !”
“क्या चुराया मैंने ? एक कागज का टुकड़ा !”
“और एक लाख रुपया ।”
“वाट डू यू मीन ? रुपया तुमने खुद मुझे दिया था ।”
“कौन कहता है ?”
“मैं कहता हूं ।”
“तुम तो कहोगे ही । तुम्हारे अलावा कौन कहता है ?”
“तुम... तुम मुझे यूं नहीं फंसा सकते ?”
“नहीं फंसा सकता ! क्या कसर बाकी है तुम्हारे फंसने में ?”
“लेकिन....”
“तुम गणपतिपुले में नहीं हो, वहां से एक सौ चालीस किलोमीटर दूर उस इलाके में हो जहां दिनेश पारेख का सिक्का चलता है । यहां का पुलिस चीफ मुझे सुबह शाम दो टाइम सलाम ठोकने आता है । पढे लिखे आदमी हो, खुद फैसला करो कि अभी मैं उसे यहां बुलाऊंगा तो वो किसी बात पर ऐतबार लायेगा ? मैं कहूंगा तुम चोर हो तो वो कहेगा तुम चोर हो, मैं कहूंगा तुम्हारी रात जेल में कटनी चाहिये तो वो कहेगा तुम्हारी रात जेल में कटेगी । अब बोलो कोई शक ?”
“कोई शक नहीं । तुम ऐसा कर सकते हो । लेकिन करोगे नहीं ।”
“क्या नहीं करूंगा ?”
“तुम पुलिस को नहीं बुलाओगे ।”
“बड़े यकीन से कह रहे हो ?”
“हां । इतने यकीन से कह रहा हूं कि कोई छोटी मोटी शर्त लगाने को तैयार हूं ।”
“छोटी मोटी शर्त जीत कर मेरा क्या बनेगा ?”
“ये सवाल तुम्हारे लिये बेमानी है क्योंकि जीतना तो मैंने है । और मेरा छोटी मोटी शर्त जीत कर भी कुछ बनेगा इसलिये लगी पांच पांच सौ की ।”
“बस !”
“इस शर्त में अहम ये नहीं है कि कोई रकम कितनी हारता है, अहम ये है कि बात किसकी पिटती है ।”
“बात !”
“हां, बात । तुमने कहा तुम मुझे गिरफ्तार करा दोगे, मैंने कहा पुलिस को बुलाने की तुम्हारी मजाल नहीं हो सकती । ये बात ।”
वो कुछ क्षण उलझनपूर्ण भाव से उसे घूरता रहा और फिर बोला - “क्या कहना चाहते हो ?”
“मुझे चोर साबित करने के लिये तुम्हें बताना पड़ेगा कि मैंने क्या चुराया और फिर चोरी का माल यानी कि हजार के नोटों की ये गड्डी और ये सेल डीड पुलिस के पास जमा कराना पड़ेगा । माई डियर ब्रदर, जो माल इतनी मेहनत से कल मिस्टर देवसरे की वाल सेफ में से चुरा कर लाये हो, उसे आज तुम पुलिस को सौंपना अफोर्ड नहीं कर सकते ।”
पारेख मुंह बाये उसका मुंह देखने लगा ।
“काफी चालाक हो ।” - फिर वो बोला - “मुझे तुम्हारे में कुछ खटका तो तुम्हारे आते ही था लेकिन मैंने ये नहीं सोचा था कि तुम ऐसे पहुंचे हुए निकलोगे ।”
“थैंक्यू । अब शर्त की बाबत क्या कहते हो ?”
“शर्त । उसकी बाबत क्या कहना है ?”
“मैं जीता या हारा ?”
“मैंने कब लगायी शर्त ?”
“अच्छा ! नहीं लगाई ?”
“बैठो ।”
मुकेश एक विजिटर्स चेयर पर बैठ गया तो वो भी टेबल के पीछे जाकर वापिस अपनी एग्जीक्यूटिव चेयर पर जा बैठा । उसने फिर एक पेपरवेट थाम लिया और उसे लट्टू की तरह नचाने लगा ।
मुकेश खामोशी से बैठा रहा ।
“सच में कुछ जानते हो” - आखिरकार वो बोला - “या सिर्फ अन्धेरे में तीर चला रहे हो ?”
“सोचो ।”
“क्या जानते हो ? किस बिना पर कहते हो कि ये दोनो देवसरे की सेफ से चोरी गयी चीजें हैं ?”
“चीजों को चोरी की बता रहे हो ! बतौर चोर अपना नाम नहीं ले रहे हो !”
“जवाब दो ।”
“बाहर जो तुम्हारी सलेटी रंग की फोर्ड आइकान खड़ी है, उसे कल रात मैंने कोकोनेट ग्रोव में देखा था ।”
“मेरी फोर्ड आइकान ?”
“हां ।”
“सलेटी रंग की ?”
“हां ।”
“नम्बर बोलना ।”
“तब नम्बर की तरफ ध्यान मैंने नहीं दिया था । यहां बाहर गैराज में खड़ी कार के नम्बर की तरफ भी मैंने ध्यान नहीं दिया था । मुझे मालूम होता कि मेरे से ये सवाल पूछा जायेगा तो मैं अभी नम्बर याद कर लेता और कह देता कि वो नम्बर मुझे कल रात से याद था । बहरहाल लगता है कि ये बात उजागर हो जाने के बाद तुम ये दावा करोगे कि वो कोई और कार थी जो इत्तफाक से तुम्हारी कार से मिलती जुलती थी ।”
“काफी समझदार हो ।”
“ये सेल डीड मैंने तैयार किया था और मेरे सामने मिस्टर देवसरे ने इसे अपनी वाल सेफ में रखा था । तभी मैंने वाल सेफ में ये हजार के नोटों की गड्डी भी मौजूद देखी थी । तब के बाद से मैं हमेशा मिस्टर देवसरे के साथ था सिवाय कोई एक घन्टे के उस वक्फे के जबकि मैं ब्लैक पर्ल क्लब के एक बूथ में बेहोश या सोया पड़ा रहा था । उसी वक्फे में मिस्टर देवसरे का खून हुआ था और वाल सेफ खोल कर ये दोनो चीजें उसमें से निकाली गयी थीं । अब जवाब दो कि अगर कल रात तुम्हारी कार रिजॉर्ट के कम्पाउन्ड में नहीं थी तो क्योंकर ये दोनों चीजें तुम्हारे कब्जे में पहुंचीं ?”
जवाब में उसने एक जोर की हूंकार भरी ।
“जवाब देते नहीं बन रहा न, बिग ब्रदर !” - मुकेश व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
“बन रहा है ।”
“दैट्स गुड न्यूज । तो फिर क्या जवाब है तुम्हारा ?”
“अभी सामने आता है ।”
उसने मेज पर से सिग्रेट लाइटर उठा कर उसे ऑन किया और सेल डीड उठा कर उसकी लौ उसको छुआ दी । फिर वही हश्र उसने नोटों की गड्डी का किया ।
मुकेश हक्का बक्का सा उसका मुंह देखता रहा ।
दोनों चीजें राख हो गयीं तो उसने राख को मसल कर मेज पर पड़ी ऐश ट्रे में डाल दिया ।
“अब ?” - वो बोला ।
“लाख रुपया फूंक दिया !” - मुकेश हकबकाया सा बोला ।
“अब क्या बचा ?”
“अब क्या बचा !” - मुकेश ने मन्त्रमुग्ध भाव से दोहराया ।
“मैंने तुम्हें बहुत कम करके आंका ।”
“और मैंने तुम्हें ।”
“कैसी चालाकी से तुमने मुझे ये बात सरकाई थी कि महाडिक का कान्ट्रैक्ट खारिज हो सकता था और मैं फिर क्लब की खरीद में दिलचस्पी ले सकता था । वो सारी कथा ही तुमने इस मंशा से की थी कि मैं तुम्हें कोई एडवांस आफर करता जो कि मैंने किया । खूब चक्कर दिया मुझे । खूब उल्लू बनाया । शाबाश !”
माथुर खामोश रहा ।
“मैंने दोस्तों के साथ पिकनिक पर रवाना होना है, मैं पहले ही काफी लेट हो चुका हूं तुम्हारी एकाएक आमद की वजह से, इसलिये एक आखिरी सवाल मैं तुमसे पूछता हूं ? तुमने सारी कथा एडवांस हासिल करने के लिये की थी ?”
“मुझे सपना आना था कि तुम वही हजार के नोटों की गड्डी मुझे सौंप दोगे ?”
“नहीं । मेरे ही सिर में फोड़ा निकल आया था । या शायद मेरा भेजा विस्की में तैरने लगा था । तो महाडिक के कानट्रैक्ट की कथा करने का मकसद हजार के नोटों की गड्डी निकलवाना नहीं था ।”
“नहीं था । कैसे हो सकता था ? मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था कि वो गड्डी यहां तुम्हारे कब्जे में हो सकती थी ।”
“एक चीज दूसरी चीज सुझा देती है । तुमने अपना ड्राफ्ट किया सेल डीड हवा में उड़ता देखा तो सहज ही ये सोच लिया कि नोटों की वो गड्डी भी यहीं होगी ।”
“फिर भी वही गड्डी मुझे सौंपे जाने की उम्मीद मैं नहीं कर सकता था । और ये भी जरुरी नहीं था कि बयाने की रकम एक लाख ही होती ।”
“बातों को तोड़ मरोड़ बढ़िया लेते हो । आखिर वकील हो । चलो मान ली मैंने तुम्हारी बात । मैंने मान लिया कि तुम सेलडीड या नोटों की गड्डी की फिराक में यहां नहीं आये थे क्योंकि तुम्हें उन दोनों चीजों की यहां मौजूदगी का इलहाम हुआ नहीं हो सकता था । कार की वजह से भी नहीं आये हो सकते क्योंकि कार तुम खुद कहते हो कि तुमने यहां आकर देखी । तो फिर क्यों आये ? अपनी आमद की असल वजह बयान करो ।”
“जानकारी की फिराक में आया ।”
“कैसी जानकारी ?”
“जैसी भी हासिल हो जाती । मसलन महाडिक की बाबत जानकारी कि वो किस फिराक में था ! क्या कर चुका था और क्या अभी करना चाहता था ! महाडिक तुम्हें जानता था - मैंने तुम्हारा नाम सुना ही उसकी जुबानी था - तुम महाडिक को जानते थे, महाडिक ही तुम्हें मिस्टर देवसरे से मिलवाने लाया था, इस लिहाज से मुझे उम्मीद थी कि यहां महाडिक की बाबत मेरा कुछ न कुछ ज्ञानवर्धन जरुर होगा ।”
“हुआ ?”
“उसकी बाबत उतना न हुआ जितना तुम्हारी बाबत हुआ । तुम्हारी हौसलामन्दी की बाबत हुआ । मुझे अभी भी यकीन नहीं आ रहा कि तुमने चुटकियों में लाख रुपया फूंक के रख दिया ।”
 
Chapter 3
जयगढ़ में रिंकी की सहेली का नाम अलीशा था, वो जिस स्थानीय बैंक में काम करती थी, उसकी साप्ताहिक छुट्टी गुरुवार को होती थी जो कि उस रोज था । दोनों पुरानी परिचित थीं और ये उनके लिये सुखद संयोग था कि दोनों की नौकरियां आसपास के कसबों में थीं । उस जैसा प्रोग्राम महीने में एक बार उन दोनों का जरूर बनता अलबत्ता अगर अलीशा रिंकी के पास आती थी तो रिंकी को छुट्टी नहीं करनी पड़ती थी ।
दोनो ने इकट्ठे लंच किया और मैटिनी शो में ‘कम्पनी’ देखी । शो के बाद चायपान के लिये वो करीबी रेस्टोरेंट में जा बैठीं जहां कि रिंकी ने सहेली को तफसील से रिजॉर्ट में हुए कत्ल की दास्तान सुनाई जिसके बारे में अलीशा सरसरी तौर पर परले ही अखबार में पढ़ चुकी थी ।
“तेरा क्या खयाल है ?” - आखिर में रिंकी बोली - “कत्ल किसने किया होगा ?”
“पाटिल ने ।” - अलीशा निसंकोच बोली ।
“क्यों ?”
“क्योंकि तूने अभी खुद कहा कि सिर्फ उसे नहीं मालूम था कि देवसरे सुइसाइड करना चाहता था । उसे ये बात मालूम होती तो वो यकीनन ऐसी स्टेज रचता जिससे जान पड़ता कि मरने वाला सुइसाइड करके मरा था ।”
“दम तो है तेरी बात में ।”
“मुझे तो लगता है कि देवसरे की बेटी को भी उसी ने मारा था । खुद मार दिया और एक्सीडेंट की कहानी गढ़ ली ।”
“हूं ।”
“ऐसा कहीं होता है कि सेम एक्सीडेंट में एक जना तो ठौर मारा जाये और दूसरे को मामूली खरोंचे आयें, बस सुपरफिशल वून्ड्स लगें जो दो दिन में ठीक हो जायें ।”
“पुलिस ने भी तो तफ्तीश की होगी ! उन्होंने भी तो ऐसा कोई शक किया होगा !”
“किया होगा तो कुछ हाथ नहीं आया होगा । बाज लोग बहुत चालाक होते हैं, बाई बर्थ क्रिमिनल होते हैं, कोई क्लू नहीं छोड़ते । बड़े से बड़ा क्राइम करते हैं और साफ बच निकलते हैं । नो ?”
“यस ?”
“ऊपर से हिम्मत देखी ब्लडी बास्टर्ड की ? बेटी का खून करके उसके हिस्से का वारिस बना और हिस्सा वसूलने ससुरे के पास पहुंचा गया जो कि उसकी सूरत नहीं देखना चाहता था । ससुरा नक्की बोला तो उसकी भी सेम ट्रीटमेंट दिया जो पहले उसकी बेटी को दिया ।”
“शक्ल से तो वो कातिल नहीं लगता ।”
“जल्लाद भोली भाली सूरत वाले भी होते हैं । मेरा अपना एक ब्यायफ्रेंड ऐसा था । किस करने के लिये गले में हाथ डालता था तो मेरे को लगता था कि गला दबा देगा ।”
“अरे !”
“फौरन नक्की किया मैं उसको ।”
“अब वाला तो ठीक है न ?”
“हां । वो गले में हाथ नहीं डालता । कहीं और ही हाथ डालता है ।”
रिंकी हंसी ।
“तेरे को डर नहीं लगता ?” - एकाएक अलीशा बदले स्वर में बोली ।
“किस बात से ?”
“तूने कातिल को भले ही पहचाना नहीं था लेकिन कॉटेज से निकल कर उस वकील मुकेश माथुर के आगे आगे भागते देखा था । अब क्या कातिल को ये मालूम होगा कि तूने उसको पहचाना नहीं था ?”
“क्या कहना चाहती है ?”
“समझ ।”
“क्या ?”
“वो तेरा भी कत्ल कर सकता है ।”
“ओह माई गाड !”
“आई एम टैलिंग यू ।”
“नहीं, नहीं । ऐसा कैसे हो सकता है ! क्यों कोई खामखाह...”
“खामखाह नहीं, माई हनीपॉट, विटनेस का मुंह बन्द करने के लिये । जो शख्स पहले ही दो कत्ल कर चुका है वो क्या तीसरे से परहेज करेगा ?”
“दो ?”
“एक बाप का, दूसरा बेटी का ।”
“तेरे जेहन में बतौर कातिल अभी भी पाटिल का ही अक्स है ?”
“देख लेना, वो ही कातिल निकलेगा ।”
“तेरे कहने से क्या होता है !”
“होता है । मेरे को” - उसने बड़ी नजाकत से अपने उन्नत वक्ष को दिल के उपर छुआ - “इधर से सिग्नल ।”
रिंकी खामोश रही ।
“और तेरे को खबरदार रहने का है । जब तक कातिल पकड़ा नहीं जाता तो किधर भी अकेला नहीं जाने का है ।”
“तू तो मुझे डरा रही है ।”
“माई डियर, यू कैन नाट बी टू केयरफुल ।”
“फिर तो मैं चलती हूं ।”
“जरूर । डिनर के बाद…”
“नहीं, नहीं, अभी । सात तो अभी बजे पड़े हैं, डिनर तक तो दस बज जायेंगे, ग्यारह बज जायेंगा ।”
“नाइट इधर ही स्टे कर, फिर कितने भी बजें, क्या वान्दा है ?”
“नहीं, नहीं, जाना है । “
“बट, हनी….”
“अब छोड़ । रुकने को बोलना था तो डराना नहीं था !”
“मेरा हार्ट से निकला, मैं बोल दिया । कौन ब्लडी मर्डरर आई विटनेस को जिन्दा छोड़ना मांगता है !”
“अब चुप कर । मैं चलती हूं ।”
तत्काल अपनी कार पर सवार होकर वो वहां से रवाना हुई ।
 
अलीशा की किसी बात से वो आश्वस्त नहीं थी फिर भी उसके मन में एक अनजाना खौफ घर कर गया था । कातिल भले ही पाटिल नहीं था लेकिन जो कोई भी कातिल था उसे बतौर चश्मदीद गवाह उसकी गवाही का खौफ हो सकता था और फिर वो उसका मुंह हमेशा के लिये बन्द करने की कोशिश कर सकता था ।
सहेली की बातों से आश्वस्त न होने के बावजूद उसने उस घड़ी फैसला किया कि जब तक कातिल पकड़ा नहीं जायेगा तब तक सच में ही वो अकेली कहीं नहीं जायेगी ।
जयगढ से रिजॉर्ट को जाती सड़क कोई बहुत चलता रास्ता नहीं था, दिन में ही उस पर ज्यादा ट्रैफिक नहीं होता था, रात को तो वो रास्ता अक्सर सुनसान हो जाता था लेकिन गनीमत थी कि तब अभी रास्ता उतना सुनसान नहीं था । फिर भी उसका जी चाहने लगा कि वो जल्दी से जल्दी रिजॉर्ट वापिस पहुंच जाती लिहाजा उसने कार की रफ्तार बढा दी । अमूमन वो कार को पचास-साठ से ऊपर नहीं चलाती थी लेकिन तब रफ्तार अस्सी पर पहुंच गयी ।
उस रफ्तार पर भी कभी कभी कोई वाहन पीछे से आता था और उसे ओवरटेक कर जाता था । यूं कोई बस या ट्रक उसे ओवरटेक करता था तो वो बहुत नर्वस हो जाती थी लेकिन गनीमत थी कि तब ऐसा नहीं हुआ था, जिस वाहन ने भी उसे ओवरटेक किया था वो कोई कार ही थी ।
तभी आगे वो मोड़ आया जिसके बाद सड़क ऊंची उठने लगती थी और एक चट्टानयुक्त हिस्से को पार करके फिर ढलान पर उतरती थी और रास्ता आम सड़क जैसा बनता था । सड़क का चार मील का वो हिस्सा उसका देखा भाला था, वहां उसने कार की रफ्तार घटा कर पैंसठ कर ली ।
एक कार उसके पीछे प्रकट हुई ।
उसने अपनी कार को बाजू में कर लिया लेकिन पिछली कार ने उसे ओवरटेक करने की कोशिश न की । पिछली कार वाले ने हैडलाइट्स को हाई बीम पर लगाया हुआ था इसलिये उसे रियर व्यू मिरर में चकाचैंध के अलावा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था ।
फिर पिछली कार की रफ्तार यूं तेज हुई जैसे आखिरकार ड्राइवर ने उसे ओवरटेक करने का मन बना लिया हो ।
कार बिलकुल रिंकी के पीछे पहुंच गयी तो उसने अपनी कार को और बाजू में कर लिया ।
पिछली कार उसके बाजू में पहुंची । उसने सीधे गुजर जाने के जगह एकाएक जोर से बायीं ओर झोल खाया ।
रिंकी के प्राण कांप गये, उसने जोर से ब्रेक के पैडल पर पांव दबाया ।
पिछली कार उससे रगड़ खाती हुई आगे गुजर गयी । उसके उतना सा छूने से भी रिंकी की कार ऐसी डगमगाई कि उसे उसका उलट जाना निश्चित लगने लगा । तब पता नहीं कैसे वो स्टियरिंग को, ब्रेक को, एक्सीलेटर को कन्ट्रोल कर पायी और कार उलट कर गहरी अन्धेरी खड्ड में जा गिरने का खतरा बिलकुल ही खत्म नहीं हो गया था ।
पूरी शक्ति से वो कार के कन्ट्रोल से जूझती रही ।
आखिरकार बायीं ओर के पहिये वापिस सड़क पर चढे और कार का झूलना, उलटने की धमकी देना, बन्द हुआ ।
बड़ी मुश्किल से उसने कार को रोका ।
उसकी सांस धौंकनी की तरह चल रही थी और उसे यकीन नहीं आ रहा था कि वो एक्सीडेंट का शिकार होने से बच गयी थी ।
हे भगवान ! - बार बार उसने मुंह से निकल रहा था - हे भगवान !
उसके होशहवास काबू में आये तो पहला सवाल उसके जेहन में यही आयाः
क्या वो देवसरे के कातिल का शिकार बनने से बाल बाल बची थी ?
अगर ऐसा था तो अलीशा की बात कितनी सच निकली थी कि उसके कत्ल की कोशिश हो सकती थी ।
कोशिश हो भी चुकी थी ।
***
एक सौ चालीस किलोमीटर का वापसी का सफर मुकम्मल करने में मुकेश को नौ बज गये ।
तब रिजॉर्ट में वापिस लौटने की जगह उसने ब्लैक पर्ल क्लब का रुख किया ।
क्लब में वो सीधे बार पर पहुंचा जहां से उसने विस्की का एक लार्ज ड्रिंक हासिल किया । उसे आनन फानन हलक से उतार कर दूसरा ड्रिंक हासिल कर चुकने के बाद उसने हॉल में निगाह दौड़ाई तो उसे एक टेबल पर बैठी, कुछ लोगों के साथ बतियाती, मीनू सावन्त दिखाई दी ।
मीनू ने भी उसे देखा तो वो उठ कर उसके करीब पहुंची ।
उस घड़ी वो एक स्लीवलैस, लो नैक, स्किन फिट गाउन पहने थी जिसमें से उसका अंग अंग थिरकता जान पड़ता था ।
“बधाई ।” - वो व्यंग्पूर्ण स्वर में बोली ।
“किस बात की ?”
“थोबड़ा बन्द न रखने की ।”
“किस बाबत ?”
“तुम्हें नहीं मालूम किस बाबत ?”
“पहेलियां बुझाती हो ।”
“अच्छा !”
“और झगड़ती हो । खफा होती हो । बोलती हो, कहती कुछ नहीं हो ।”
“वो इन्स्पेक्टर, जिसके सामने कैप्सूल कथा करने से बाज नहीं आये, अभी यहां से गया है । गनीमत ही समझो कि मुझे भी साथ ही न ले गया ।”
“कैप्सूल्स की वजह से ?”
“हां ।”
“बरामद हुए ?”
“नहीं ।”
“फिर क्या प्राब्लम है ?”
“साफ इलजाम लगा रहा था कि तुम्हारे से बात होने के बाद मैंने उन्हें ठिकाने लगा दिया । बार बार पूछ रहा था कहां ठिकाने लगाये ।”
“तुमने क्या जवाब दिया ?”
“ये भी कोई पूछने की बात है !”
“क्या जवाब दिया ?”
“यही कि मुझे ऐसे किन्हीं कैप्सूलों की खबर नहीं । मैं नींद की दवा नहीं खाती । उसने तुम्हारा हवाला दिया तो मैंने बोल दिया कि तुम झूठ बोल रहे थे ।”
“बढिया ।”
तभी उसकी निगाह महाडिक पर पड़ी जो कि मेजों के बीच चलता उन्हीं की तरफ बढा चला आ रहा था । उसने जल्दी से अपना गिलास खाली किया, दो ड्रिंक्स का बिल अदा किया, मीनू का कन्धा थपथपा कर उसे ‘सी यू’ बोला और बिना महाडिक की तरफ निगाह डाले उससे विपरीत दिशा में चल दिया ।
अपनी कार पर सवार होकर वो रिजॉर्ट पहुंचा ।
इस बार रिंकी की मारुति-800 वहां पार्किंग में खड़ी थी ।
संयोगवश कार का वो ही पहलू उसकी तरफ था जिधर से वो एक्सीडेंट में पिचकी थी ।
तभी वो खुद भी उसे रेस्टोरेंट के दरवाजे पर दिखाई दी ।
हाथ के इशारे से उसने उसे करीब बुलाया ।
“क्या हुआ ?” - उसने सशंक भाव से पूछा ।
रिंकी ने बताया ।
“तौबा !” - सुनकर वो बोला - “किसी ने तुम्हें जबरन एक्सीडेंट में लपेटने की कोशिश की ?”
“तकदीर ने ही बचाया ।” - सहमति से सिर हिलाती वो बोली ।
“कौन होगा कमीना ?”
रिंकी ने अलीशा का शक उस पर जाहिर किया ।
“तुम्हारी सहेली जासूसी नावलों की रसिया जान पड़ती है” - मुकेश तनिक हंसा - “जो आननफानन ऐसे नतीजे निकाल लेती है ।”
“तो वो मेरे कत्ल की कोशिश नहीं थी ?”
 
“तुम्हारे पर अपनी सहेली का रोशन खयाल हावी था इसलिये वो हादसा हुआ तो तुम कूद कर उस नतीजे पर पहुंच गयीं । असल में हो सकता है कि दूसरी कार का ड्राइवर नशे में हो या कोई नाबालिग लड़का हो जो थ्रिल के लिये अन्धाधुन्ध कार चला रहा हो ।”
“ऐसा ?”
“हां ।”
“लेकिन वो भी तो हो सकता है जो मेरी फ्रेंड बोली !”
“होने को क्या नहीं हो सकता लेकिन... बाई दि वे, कार कौन सी थी ? रंग कैसा था ?”
“मैं नहीं देख सकी थी ।”
“अरे, कुछ तो देखा होगा ।” - मुकेश तनिक झुंझलाया - “जब ये देखा था कि वो कार थी, कोई वैन नहीं थी, टैम्पो नहीं था, मिनी बस नहीं था तो कुछ तो देखा होगा । रंग न सही, नम्बर न सही, मेक न सही कुछ तो देखा होगा । और कुछ नहीं तो शेप तो देखी होगी, ये तो देखा होगा कि वो तुम्हारी खुद की कार जैसी कोई छोटी कार थी या कालिस या वरसा जैसी कोई बड़ी गाड़ी थी ।”
“बड़ी गाड़ी थी ।”
“गुड ।”
“शायद... शायद एम्बैसेडर थी ।”
“पक्की बात ?”
“नहीं, पक्की बात नहीं । तुम जोर देकर पूछ रहे हो इसलिये मैं अपना सबसे करीबी अन्दाजा बता रही हूं ।”
“तो तुम्हारा क्लोजेस्ट गैस ये है कि वो कार एम्बैसेडर हो सकती थी ?”
“हां ।”
“अब रंग की बाबत दिमाग पर जोर दो । कुछ न सूझे तो यही खयाल करो कि रंग डार्क था या लाइट था !”
“लाइट था ।”
“मसलन सफेद !”
“हो सकता है ।”
“सफेद एम्बैसेडर !”
“घिमिरे के पास है ।” - वो धीरे से बोली ।
“हूं । अगर किसी ने जानबूझकर वो हरकत की थी तो जाहिर है कि उसे तुम्हारे आज के शिड्यूल की खबर थी । उसे मालूम था कि तुम सारा दिन जयगढ में गुजारने वाली थीं और फिर शाम को अन्धेरा होने के बाद वापिस लौटने वाली थीं । ये नहीं भी मालूम था तो तुम्हारी वापिसी पर निगाह वो बराबर रखे था । जमा ऐसी हरकत अपनी कार से करने की हिमाकत करने जितना अहमक कोई नहीं होता इसलिये कोई बड़ी बात नहीं कि वो कार चोरी की हो ।”
“चोरी की ?”
“या यूं समझो कि मालिक की जानकारी के बिना थोड़ी देर के लिये उधार ली हुई ।”
“कहां से ?”
“क्लब से बेहतर जगह और कौन सी हो सकती है ! वहां इतने लोग कारों पर आते हैं जो कि घन्टों बाहर पार्किंग में लावारिस सी खड़ी रहती हैं । अपने रेगुलर पैट्रंस के बारे में तो महाडिक को ये तक पता रहता होगा कि वहां कौन कितने घन्टे ठहरता था ।”
“महाडिक को ?”
“हां ।”
“उसने ये हरकत की होगी ?”
“खुद करने की क्या जरूरत है ! वहां इतना स्टाफ है जिनमें कितने ही जने उसके खास वफादार होंगे । वो किसी को भी ये काम करने को तैयार कर सकता था ।”
“लेकिन वो क्यों ऐसा करेगा ? या करायेगा ?”
“कल रात तुमने उसे यहां देखा था । सिर्फ तुमने उसे यहां देखा था ।”
“उसमें भेद है ।” - वो दबे स्वर में बोली ।
“क्या भेद है ?”
“मैंने महाडिक की कार को देखा था; महाडिक को, सच पूछो तो, मैंने नहीं देखा था ।”
“एक ही बात है । महाडिक से खास पूछा गया था कि क्या उसने कल रात किसी को अपनी कार किसी को इस्तेमाल के लिये दी थी ? उसका जवाब इनकार में था । उसने ये तक कहा था कि वो कभी किसी को अपनी कार उधार नहीं देता था । इसका क्या साफ मतलब ये न हुआ कि अपनी कार पर वो ही सवार था ?”
“साफ तो न हुआ ।”
“क्या ?”
“जो बात महाडिक पर लागू है, वो क्या घिमिरे पर लागू नहीं ?”
“क्या मतलब ?”
“मालिक की जानकारी के बिना अगर महाडिक की कार थोड़ी देर के लिये उधार ली जा सकती है तो क्या ऐसे घिमिरे की कार उधार नहीं ली जा सकती ?”
मुकेश हकबकाया सा उसका मुंह देखने लगा ।
“ली तो जा सकती है ।” - फिर उसने कुबूल किया ।
“सो देयर ।”
“लेकिन क्लब के सामने खड़ी इतनी कारों में से महाडिक की कार ही क्यों ?”
“रिजॉर्ट में खड़ी इतनी कारों में से घिमिरे की कार ही क्यों ?”
“क्या बात है ? वकील क्यों न हुई तुम ?”
वो खामोश रही ।
“और क्या देखा था तुमने ?” - मुकेश ने पूछा ।
“और क्या देखा था मैंने ?”
“क्या कार के अलावा और ऐसा कुछ देखा था जो महाडिक की तरफ इशारा करता हो ?”
“नहीं, मैंने और कुछ नहीं देखा था ।”
“सोच के जवाब दो ।”
“सोच के ही जवाब दिया है ।”
“कल रात जब तुम करनानी के साथ बीच के लिये रवाना हुई थीं तो क्या तुमने यहां कहीं कोई सलेटी रंग की फोर्ड आइकान देखी थी ?”
“नहीं ।”
“करनानी ने देखी हो ?”
“उसका उसे पता होगा ।”
“तुम दोनों साथ तो थे ?”
“तब नहीं थे जब मैं अपने कॉटेज में स्वीमिंग कास्ट्यूम पहनने गयी थी ।”
“हां, तब नहीं थे । कितनी देर तक तुम उससे अलग रही थीं ?”
“यही कोई पांच या छः मिनट । कपड़े उतारकर स्वीमिंग कास्ट्यूम पहनने में, बाल बान्धने में और एक बीच बैग सम्भालने में और कितना टाइम लग सकता है ?”
“जब तुम अपने कॉटेज से बाहर निकली थीं, तब वो भी बाहर निकल चुका था या तुम्हें उसका इन्तजार करना पड़ा था ।”
“इन्तजार करना पड़ा था । लेकिन ज्यादा नहीं । बड़ी हद एक या दो मिनट ।”
“इसका मतलब ये तो नहीं कि वो एक या दो मिनट ही बाहर से गैरहाजिर था ।” - मन ही मन इन्स्पेक्टर की सोच को हवा देता मुकेश बोला - “एक दो मिनट तो तुम्हें उसका इन्तजार करना पड़ा था, गैरहाजिर तो वो ज्यादा वक्फे से हो सकता था ।”
“वो तो है । करनानी की बाबत इतने सवाल किसलिये ?”
“कोई खास वजह नहीं । सिवाय इसके कि, जैसा कि सुनने में लगता था, वो हर घड़ी तुम्हारे साथ नहीं था, सात आठ मिनट का एक वक्फा ऐसा था जब तुम्हें नहीं मालूम कि वो कहां था !”
“इतने से वो कातिल हो गया ?”
“क्या पता लगता है ! ये पुलिस जाने और पुलिस का काम जाने । पुलिस पर एक बात याद आयी । तुमने अपने एक्सीडेंट की रिपोर्ट पुलिस को की ?”
“नहीं ।”
“करनी चाहिये थी ।”
“मैं इतनी घबराई हुई थी कि मुझे ऐसा करने का खयाल ही नहीं आया था । मैं अब अगर थाने फोन कर दूं तो चलेगा ?”
“चलेगा ।”
“उस इन्स्पेक्टर का नम्बर बताओ जो कि थाने का इंचार्ज है ।”
मुकेश ने बताया ।
***
 
अगली सुबह मुकेश ने ब्रेकफास्ट कॉटेज में न मंगाया, वो ‘सत्कार’ में पहुंचा ।
तब दस बजे का टाइम था और वहां कुछ नये चेहरे दिखाई दे रहे थे । उनमें से दो परिवार वाले थे जो कि लगता था कि एक रात के लिये ही वहां ठहरे थे । ब्रेकफास्ट के बाद वो अपनी अपनी कारों पर सवार हुए और वहां से रुख्सत हो गये । तब पीछे एक ही नया चेहरा रह गया, जो कि तीसेक साल की एक औरत थी जो ब्रेकफास्ट की उस घड़ी में भी खूब सजी धजी थी । उसके कटे बाल बड़े फैशनेबल ढंग से संवरे हुए थे, चेहरे पर फुल मेकअप था और वो वहां के माहौल में न खपने वाली काफी भारी साड़ी पहने थी ।
शायद आइन्दा सफर के लिये तैयार थी - मुकेश ने मन ही मन सोचा ।
वो एक कोने की टेबल पर बैठ गया तो रिंकी मुस्कराती हुई उसके करीब पहुंची ।
“गुड मार्निंग ।” - वो बोली ।
“गुड मार्निंग । कल इन्स्पेक्टर अठवले को फोन कर दिया था ?”
“हां ।”
“कुछ कहता था ?”
“उसे वो मेरे कत्ल की कोशिश नहीं लगी थी । कहता था इत्तफाकिया हुआ एक्सीडेंट था ।”
“झांकी कौन है ?”
“रिजॉर्ट की नयी मेहमान है । कल रात ही आयी । दो नम्बर कॉटेज में ।”
“आई सी । अब थोड़ा सा ब्रेकफास्ट मिल जाये ।”
“अभी हाजिर होता है ।”
दो मिनट में ब्रेकफास्ट हाजिर हुआ ।
ब्रेकफास्ट के आखिर में जब वो कॉफी का आनन्द ले रहा था तो करनानी वहां पहुंचा । पहले मुकेश को लगा कि वो उसकी ओर का रुख कर रहा था लेकिन ऐसा न हुआ, उसने मुकेश की तरफ केवल हाथ हिलाया और फिर दो नम्बर कॉटेज वाले नये मेहमान की टेबल पर पहुंचा ।
महिला ने सिर उठाकर उसकी तरफ देखा ।
करनानी मुस्कराया, फिर दायें हाथ से पेशानी छू कर उसने महिला का अभिवादन किया । महिला ने पूर्ववत मुस्कराते हुए अभिवादन का जवाब दिया और सामने पड़ी कुर्सी की ओर इशारा किया । करनानी बैठ गया, उसने चुटकी बजा कर वेटर का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया ।
वेटर दोनों को कॉफी सर्व कर गया ।
महिला पहले से कॉफी पी रही थी, उसने पहला कप छोड़ कर नया कप सम्भाल लिया ।
दस मिनट हौले हौले दोनों में वार्तालाप चला ।
फिर महिला एकाएक उठी और कूल्हे झुलाती वहां से रुख्सत हो गयी ।
करनानी कुछ क्षण अपलक उसे जाती देखता रहा और फिर उठकर मुकेश की टेबल पर आ गया ।
“कोई पुरानी वाकिफकार थी ?” - मुकेश बोला ।
“तुम देख रहे थे ?”
“मर्जी तो नहीं थी लेकिन पास ही तो बैठे हुए थे तुम लोग । जब सिर उठाता था, निगाह पड़ जाती थी ।”
“आई सी ।”
“कौन थी ?”
“सुलक्षणा । सुलक्षणा घटके । कल शाम को इत्तफाक से मिल गयी । अब कुछ दिन यहीं ठहरेगी ।”
“शादीशुदा, बालबच्चेदार औरत जान पड़ती थी !”
“बालबच्चेदार नहीं, शादीशुदा बराबर लेकिन भूतकाल में ।”
“क्या मतलब ?”
“विधवा है ।”
“ओह ! आई एम सो सॉरी ।”
“अब मेरी तरफ से रिंकी को तुम फारिग समझो ।”
“क्या मतलब ?”
“उस पर लाइन मारने की मंशा हो तो मुझे अड़ंगा न समझना ।”
“मजाक कर रहे हो ?”
वो हंसा ।
“तो आइन्दा दिनों में तुम्हारी तवज्जो का मरकज ये सुलक्षणा मैडम रहेंगी !”
“है तो ऐसा ही कुछ कुछ ।”
“बधाई ।”
“और क्या खबर है ?”
मुकेश का जी चाहा कि वो उसे रिंकी के पिछली रात के एक्सीडेंट की बाबत बताये लेकिन उसने चुप रहना ही मुनासिब समझा । वो रिंकी से खूब हिला मिला हुआ था, देर सबेर वो ही उसे बता देती ।
या शायद बता ही चुकी थी ।
“कोई खबर नहीं ।” - वो उठता हुआ बोला ।
“किधर का इरादा है ?”
“शहर जाऊंगा ।”
“सैर करने ?”
“कहां, भई ! थाने से बुलावा है ।”
“ओह !”
वो वापिस रिजॉर्ट के परिसर में पहुंचा ।
उसे मालूम था कि घिमिरे अपनी कार कॉटेज के पिछवाड़े में एक सायबान के नीचे खड़ी करता था ।
कार वहां नहीं थी ।
कार अहाते में जनरल पार्किंग में भी नहीं थी ।
***
 
दोपहर के करीब मुकेश थाने में इन्सपेक्टर अठवले से मिला ।
सबसे पहले उसने मकतूल की बाबत सवाल किया ।
“इधर पोस्टमार्टम का कोई इन्तजाम नहीं है ।” - इन्स्पेक्टर बोला - “इसलिये लाश कल पूना भिजवाई गयी थी । आज पोस्टमार्टम होगा, उसके बाद लाश सौंपी जायेगी ।”
“किसे ?”
“जो कोई भी क्लेमेंट होगा ।”
“कौन ?”
“फिलहाल तो पाटिल के अलावा कोई नहीं दिखाई देता । या फिर तुम, जो कि उसके विरसे में हिस्सेदार हो । या फिर वो चैरिटेबल ट्रस्ट, जो कि तुम्हारे साथ बराबर का हिस्सेदार है ।”
“अंतिम संस्कार हम करेंगे ।”
“हम में कौन कौन शामिल है ?”
“तीन आनन्द शामिल हैं और कई एसोसियेट्स शामिल हैं । मकतूल आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स का क्लायन्ट था, मौजूदा हालात में हमारा फर्ज बनता है कि हम अपने क्लायन्ट के आखिरी सफर को आर्गेनाइज करें ।”
“बशर्ते कि पाटिल कोई अड़ंगा न लगाये ।”
“उम्मीद नहीं कि लगायेगा । लगायेगा तो पछतायेगा ।”
“परसों तो बहुत उछल रहा था ! बड़े बड़े चैलेंज फेंक रहा था !”
“वक्ती जोशोजुनून की बात थी वो । वो शख्स चार पैसों का तमन्नाई यहां है । कोई रकम उसे अब मिल जाये तो वो अभी यहां से ऐसे गायब होगा जैसे कभी इधर आया ही नहीं था ।”
“कमाल है !”
“रिंकी के एक्सीडेंट के बारे में क्या कहते हो ?”
“एक्सीडेंट ही था ।”
“कत्ल की कोशिश नहीं ?”
“वो कौन करेगा ? महाडिक के अलावा कोई नाम लेना, क्योंकि उस नाम का जिक्र पहले आ चुका है ।”
“और कोई नाम तो मुझे नहीं सूझ रहा ।”
“फिर भी सोचना इस बाबत ।”
“अच्छी बात है । तो मीनू सावन्त कैप्सूलों की मिल्कियत से मुकर गयी ?”
“मैंने पहले ही बोला था मुकर जायेगी - तलाशी में भी कुछ हाथ न लगा - सब बखेड़ा तुम्हारी और सिर्फ तुम्हारी वजह से हुआ । पुलिस को खबर करने की जगह उठ के खुद चल दिये जासूसी झाड़ने ।”
“इन्स्पेक्टर साहब, जो खता बख्श चुके हो, उसी के नश्तर फिर क्यों चला रहे हो ?”
“खता ये जाने के बख्शी थी कि वो एक ही थी जो कि तुम अनजाने में कर बैठे थे । तुमने तो खताओं का पुलन्दा बान्ध के रखा जान पड़ता है ।”
“क्या मतलब ?”
“तुम्हें नहीं मालूम क्या मतलब ?”
“लो ! मालूम होता तो पूछता ।”
“मैं मिसेज वाडिया से मिला था । अब समझे क्या मतलब ?”
मुकेश चुप रहा ।
“परसों रात पौने ग्यारह बजे उस औरत ने घिमिरे को मकतूल के कॉटेज में जाते देखा था....”
“कॉटेज की तरफ जाते देखा था । उसने ऐसा कभी नहीं बोला था कि कॉटेज में जाते देखा था ।”
“लफ्फाजी मत झाड़ो । ये थाना है, अदालत नहीं । समझे !”
“सॉरी ।”
“इतनी रात गये जो कॉटेज की तरफ जाता है, वो कॉटेज में जाने की नीयत से ही जाता है ।”
“चलिये, ऐसा ही सही ।”
“एहसान मत करो ये कुबूल करके । ऐसा ही है ।”
“ऐसा ही है ।”
“एक तो खुद बात छुपा के रखी, ऊपर से उसको भी राय दे दी कि खामोश रहे ।”
“बिलकुल गलत । मैंने ऐसा बिल्कुल नहीं कहा था ।”
“ये तो कहा था कि वो कोई जल्दबाजी न करे; सोचे, विचारे और तब फैसला करे ?”
“हां, ये तो कहा था लेकिन....”
“सोचने, विचारने और फैसला करने में वो हफ्ता लगा देती तो ये जानकारी हमारे किस काम की होती ?”
“अब भी किस काम की है ?”
“क्या कहा ?”
“आपने इस बाबत घिमिरे से कोई बात नहीं की तो अब भी किस काम की है ?”
“क्यों भई ? हम क्या पागल बैठे हैं यहां ?”
“यानी कि बात की ?”
“हां, की । आज सुबह की । लम्बी बात की । हवा खुश्क कर दी भीड़ू की । बातचीत मुकम्मल हुई थी तो उसकी शक्ल यूं लग रही थी जैसे उसका फांसी पर झूलना बस वक्त की बात थी ।”
“अरे !”
“क्या अरे ? उसके पास अवसर था, उद्देश्य था । अवसर का पता अब मिसेज वाडिया के बयान से लगा और उद्देश्य मुझे पहले से मालूम था कि उसके पास था । तीन साल से भीड़ू दिलोजान से मकतूल के लिये इसलिये मेहनत कर रहा था कि कभी वो रिजॉर्ट में चौथाई हिस्से का मालिक होगा । परसों एकाएक विनोद पाटिल यहां पहुंच गया जिसने आकर उसका सारा सपना ही चकनाचूर कर दिया, ऐसे हालात पैदा कर दिये कि प्रापर्टी में हिस्सेदारी तो क्या काबू में आती, मुनाफे में जो हिस्सेदारी थी, वो भी हाथ से जाती दिखाई देने लगी । लिहाजा अपने को बर्बाद होने से बचाने के लिये उसने देवसरे का खून कर डाला ।”
“हथियार ! हथियार भी जरूरी होता है कत्ल के लिये ?”
“जो कि उसने कत्ल के बाद गायब कर दिया । क्या मुश्किल काम था !”
“हासिल कहां से किया खड़े पैर ?”
“नहीं बताता । इतना पूछा, इतना खौफजदा किया फिर भी नहीं बताता । लेकिन बतायेगा, क्यों नहीं बतायेगा, जरूर बतायेगा । और अपना गुनाह भी अपनी जुबानी कुबूल करेगा । अभी थोड़ी सी ढील दी है भीड़ू को, फिर खींच लेंगे ।”
“एकाउन्ट्स की बाबत क्या कहता है ?”
“कहता है, एकाउन्ट्स एकदम चौकस हैं । लेकिन वो ही तो कहता है । क्या पता चौकस हैं या नहीं ।”
“आप चैक करवाइये ।”
 
“वो तो मैं करवाऊंगा लेकिन अब कुछ हाथ नहीं आने वाला । जरूर वो पहले ही सब सैट कर चुका होगा । अब वो एकाउन्ट्स की बाबत कुछ भी दावा कर सकता है क्योंकि जो शख्स उसके दावे को झुठला सकता था, वो तो रहा नहीं इस दुनिया में । और” - एकाएक उसका स्वर कर्कश हो उठा - “इस पंगे के लिये भी तुम जिम्मेदार हो ।”
“मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं थी ।”
“उसको वक्त मिल गया लीपापोती करने का । तुमने मिसेज वाडिया को फौरन पुलिस से सम्पर्क करने की राय दी होती तो ये नौबत न आती ।”
“बोला न, मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं थी ।”
“सुना मैंने जो बोला ।”
“अगर आप शान्त हो जायें तो मैं एक सवाल और पूछूं ?”
“पूछो, क्या पूछना चाहते हो ?”
“आप घिमिरे को कातिल करार दे रहे हैं । अगर वो कातिल है तो इस लिहाज से मीनू सावन्त तो उसकी अकम्पलिस हुई ।”
“क्या मतलब ?”
“मतलब साफ है । मेरे को मिस्टर देवसरे से अलग किये बिना उसका कत्ल मुमकिन नहीं था । और ये अलहदगी उन कैप्सूलों की वजह से हुई जो कि मीनू सावन्त के अधिकार में थे जिसमें से दो की दवा को मेरे ड्रिंक में घोल कर मुझे बेहोश किया गया था और यूं रास्ते से हटाया गया था । अब सवाल से है कि क्या घिमिरे मीनू सावन्त को इतना काफी जानता था कि वो उसके लिये ये काम करने को तैयार हो जाती ?”
“नहीं” - तनिक हिचकिचाता हुआ इन्स्पेक्टर बोला - “इतना काफी नहीं जानता था । हमारी तफतीश से उनकी कोई घनिष्टता उजागर नहीं हुई है ।”
“तो क्या उसने रिश्वत देकर अपना काम निकलवाया ?”
“हो सकता है । तुम्हारे पर इस्तेमाल किये गये कैप्सूलों की कोई और कहानी भी हो सकती है जो कि इस वक्त हमारे कयास में नहीं है । लेकिन इस वक्त ये बात अहम नहीं है । इस वक्त अहम बात ये है कि घिमिरे ने देवसरे को रिजॉर्ट में अकेले... अकेले लौटते देखा और ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था । देवसरे को खत्म कर देने का उसे वो बड़ा सुनहरा मौका लगा और उस मौके को - जिसकी बाबत वो नहीं जानता था कि क्योंकर पैदा हो गया था - उसने कैश किया ।”
“आपने उसे बताया तो होगा कि मिसेज वाडिया उसके बारे में क्या कहती थी ।”
“बराबर बताया ! उसी बात ने तो उसकी हवा खुश्क की थी ।”
“क्या बोला जवाब में ?”
“वही जो उसकी जगह कोई और भी होता तो बोलता । साफ मुकर गया । बोला मिसेज वाडिया को मुगालता लगा था । इतना उसने जरूर माना कि उस घड़ी था वो रिजॉर्ट के कम्पाउन्ड में ही ।”
“क्या कर रहा था ?”
“टहल कर रहा था ?”
“मिस्टर देवसरे के कॉटेज की तरह क्यों गया ?”
“नहीं गया । सिर्फ कॉटेज की राहदरी के दहाने पर सिग्रेट सुलगाने के लिये थोड़ी देर को ठिठका था । बोला, कॉटेज में जाने का उसका कोई मतलब ही नहीं था ।”
“क्या पता यही बात हो !”
“मुझे यकीन नहीं । मैंने ऐसे किसी शख्स को कोई पहली बार क्रास कवेश्चन नहीं किया । उसकी तो शक्ल पर लिखा था कि वो झूठ बोल रहा था ।”
“ये बात आप इस बात को ध्यान में रख कर कह रहे हैं न कि मिसेज वाडिया एक आदी तांक झांक करने वाली औरत है और पक्की गपोड़शंख है ।”
“जब घिमिरे खुद कुबूल करता है कि वो कम्पान्ड में था तो ये सेफली कहा जा सकता है कि कम से कम इस बार उसने गप नहीं मारी है ।”
“यानी कि आपकी तरफ से तो मिस्टर देवसरे के कत्ल का केस हल हो चुका है ।”
“हां ।”
“तो फिर कातिल आजाद क्यों है ?”
“बताया तो । थोड़ी ढील दी है, उसे कोई गलती करने की छूट दी है ।”
“कैसी गलती ?”
“वो फरार होने की कोशिश कर सकता है । उसका ऐसी कोई कोशिश करना जुर्म का इकबाल करना होगा ।”
“काफी उस्ताद हैं आप ।”
इन्सपेक्टर बड़ी शान से मुस्काराया ।
“इन्सपेक्टर साहब, मौजूदा हालात में घिमिरे के बारे में मैं कुछ कहूंगा तो वो उसकी मुसीबतों को दोबाला करना होगा लेकिन क्योंकि पहले ही दो बार तफ्तीश में लोचा डालने का इल्जाम मुझ पर आयद हो चुका है इसलिये घिमिरे की बाबत मैं भी कुछ आपको बताता हूं ।”
“क्या ? क्या बताना चाहते हो ?”
“घिमिरे स्वतन्त्र रूप से रिजॉर्ट के बिजनेस में हाथ डालने के लिये, सोल प्रोप्राइटर बन कर बिजनेस में हाथ डालने के लिये कदम उठा भी चुका था ।”
“अच्छा !”
“जी हां । ये तसदीकशुदा खबर है ।”
“कब ? कैसे ?”
मुकेश ने सविस्तार मधुकर बहार से अपनी मुलाकात की रिपोर्ट पेश की ।
“क्या कह रहे हो !” - मुकेश खामोश हुआ तो इन्सपेक्टर हैरानी से बोला - “तुम ये कहना चाहते हो कि परसों रात घिमिरे ने मधुकर बहार को सोते से जगाया और पचास हजार के बयाने और तीन महीने के टाइम की एवज में उसके साथ बहार विला का डील क्लोज किया ?”
“हां ।”
“अगली सुबह कूरियर के जरिये बयाना पहुंचा भी दिया ?”
“हां । मधुकर बहार ने मुझे ऐन यही कुछ कहा था, खुद तसदीक कर लीजिये ।”
“वो तो मैं यकीनन करूंगा । हल्फिया बयान हासिल करूंगा मैं मधुकर बहार से । उसने परसों रात घिमिरे की टेलीफोन कॉल का कोई टाइम नहीं बताया था ?”
“नहीं बताया था । बस इतना कहा था कि उस कॉल ने उसे सोते से जागाया था ।”
“सोते से जगाया गया था तो देर रात का ही टाइम होगा न !”
“बाज लोग जल्दी भी सो जाते हैं ।”
“बहरहाल मुझे मालूम करना होगा कि वो कॉल कत्ल से पहले की गयी थी या कत्ल के बाद की गयी थी । मैं जरा मधुकर बहार का बयान हासिल कर लूं उसके बाद फिर खबर लेता हूं घिमिरे की । जितनी ढील मिलनी थी, मिल चुकी भीड़ू को । तुम्हारी बात की मधुकर बहार से तसदीक हुई तो अब तो उसे फरार होने का भी मौका नहीं मिलेगा ।”
“तसदीक जरूर होगी । न होने की कोई वजह ही नहीं ।”
“बढिया । बढिया ।”
***
एक एस.टी.डी. बूथ से मुकेश ने मुम्बई अपने ऑफिस में फोन किया और अपने सहकर्मी एडवोकेट सुबीर पसारी को लाइन पर लिया ।
“मुकेश बोल रहा हूं, ब्रदर ।” - वो बोला ।
“अभी वहीं हो ?” - पसारी ने पूछा ।
“हां ।”
“वजह ?”
“तुम्हें मालूम होनी चाहिये । यू आर नियरर टू गॉड ।”
“गॉड ।”
“आलसो नोन ऐज नकुल बिहारी आनन्द ।”
वो हंसा और फिर बोला - “कैसे फोन किया ?”
“एक जानकारी चाहिये । वार फुटिंग पर ।”
“किस बाबत ?”
“एक वसीयत की बाबत । और उसके जारी करने वाले की बाबत !”
“ये क्या मुश्किल काम है ? ऑफिस सुपरिन्टेन्डेन्ड को बोला होता !”
“केस हमारी फर्म का नहीं है ।”
“ओह !”
“वसीयत करने वाले का नाम आनन्द बोध पंडित है जो कि बहुत रुतबे और रसूख वाला आदमी बताया जाता है । तीन महीने पहले वो इस दुनिया से कूच कर गया था । अपनी मौत से पहले उसने अपनी इकलौती बेटी के नाम वसीयत की थी जो कि गुमशुदा है ।”
“गुमशुदा क्या मतलब ?”
“गायब है । ढूंढे नहीं मिल रही ।”
“ओह !”
“बेटी का नाम तनुप्रिया है । बाप का नाम भी ऐसा ही गैर मामूली है । ऊपर से बड़ा आदमी था इसलिये वसीयत किसी ऐरे गैरे वकील से तो बनवाई न होगी ।”
“आई अन्डरस्टैण्ड । डोंट ड्रा मी ए डायग्राम ।”
“सॉरी ।”
“मैं देखूंगा क्या किया जा सकता है ।”
“आन वार फुटिंग ।”
“ओके । कुछ मालूम पड़े तो कहा खबर करुं ?”
मुकेश ने उसे रिजॉर्ट के ऑफिस का और दिवंगत देवसरे के पर्सनल फोन का नम्बर बताया ।
“ओके ।”
“अब कॉल बिग बॉस को ट्रासफर कर दो ।”
कॉल ट्रासफर हुई । बाजरिया कम्बख्त बॉस की कम्बख्त सैक्रेट्री उसकी नकुल बिहारी आनन्द से बात हुई
“माथुर स्पीकिंग, सर ।” - वो अदब से बोला ।
“माथुर” - उसे अपने बॉस की सख्त आवाज सुनायी दी - “आई डोंट वांट टु स्पीक टु यू इफ देयर इज क्रॉस टाक आन दि लाइन ।”
“आज क्रॉस टाक नहीं है, सर, क्योंकि रूट की लाइनें सुधर गयी हैं ।”
“अब कॉल वाया शोलापुर नहीं हो रही ?”
“नो, सर ।”
“थैंक गॉड । अब बोलो क्या कहना चाहते हो ? कातिल पकड़ा गया ?”
“अभी नहीं, सर ।”
“मालूम पड़ गया कि कौन कातिल है ?”
“अभी नहीं, सर ।”
“फिर क्या फायदा हुआ ? फिर तो मैं यही कहूंगा कि तुम वहां फर्म का वक्त बर्बाद कर रहे हो । माथुर, यू हैव नो सैंस आफ रिस्पांसिबलिटी । विल यू ऐवर बी एबल टु अचीव एनीथिंग इन यूअर लाइफ ?”
अरे कम्बख्त बूढे खूंसट, कभी तो दो मीठे बोल बोल लिया कर ।
“सर, कातिल का पता लगता पुलिस का काम है ।”
“मुझे बता रहे हो ?”
“जब आपको नहीं मालूम तो बताना तो पड़ेगा न !”
“कौन बोला नहीं मालूम ?”
“आप ही बोले, सर ।”
“मैं कब बोला ?”
“अब मैं ट्रंककॉल पर आपसे बहस तो नहीं कर सकता, सर, लेकिन बोला तो आपने बराबर ।”
“माथुर, तुम मेरे में नुक्स निकाल रहे हो ?”
 
“नो, सर । आप में कौन नुक्स निकाल सकता है । आप तो आप हैं ।”
“दैन कम टु दि प्वायन्ट ।”
“प्वायन्ट मिस्टर देवसरे की लाश की सुपुर्दगी की बाबत है, सर । पुलिस का कहना है कि पूना में पोस्टमार्टम हो चुकने के बाद सुपुर्दगी शाम तक मुमकिन हो पायेगी । आपका हुक्म था कि अन्तिम संस्कार हम करेंगे । मैंने ये जानने के लिये फोन किया है कि कहां करेंगे ? पूना में, गणपतिपुले में या मुम्बई में ।”
“पोस्टमार्टम पूना में किस लिये ?”
“क्योंकि गणपतिपुले छोटी जगह है, यहां पोस्टमार्टम की सुविधा नहीं है ।”
“मुम्बई में तो है ।”
“यहां से पूना करीब है ।”
“आज की फास्ट ट्रांसपोर्टेशन के जमाने में हर जगह करीब है ।”
“पूना करीबतर है ।”
“क्या मतलब ?”
“सर, इस मामले में मर्जी पुलिस की चलती थी इसलिये इनवैस्टिगेटिंग ऑफिसर ने लाश पूना भिजवाई ।”
“क्या इनवैस्टिगेटिंग ऑफिसर को ये नहीं मालूम था कि मरने वाला आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स का क्लायन्ट था ?”
“सर, इधर कोई हमारी फार्म के नाम से भी वाकिफ नहीं ।”
“बट दैट इज नाट पासिबल । हम कोई छोटी मोटी फर्म हैं ! बंगलौर, कलकत्ता और दिल्ली में हमारी ब्रांचें हैं । फारेन से केस आते हैं हमारे पास । सारी दुनिया में हमारे बड़े रसूख वाले और स्टेडी क्लायन्ट हैं जो केस हो या न हो हमें एनुअल रिटेनर देते हैं । और तुम कहते हो कि उधर किसी ने हमारा नाम भी नहीं सुना...”
“शाहरुख खान का भी नहीं सुना, सर ।”
“क्या !”
“ऐसे कमअक्ल, नालायक, अंजान लोग बसते हैं इधर । इनकी नासमझी बयान करूं तो आप दंग रह जायें । कमबख्त रितिक को अलार्म घड़ी की कोई किस्म समझते हैं, आमिर को दशहरी आम समझते हैं, जैकी को मुम्बई का शेरिफ समझते हैं, अटल जी को कपड़े धोने का साबुन और अडवानी को गुरबानी का चौथा अध्याय समझते हैं । और तो और....”
“माथुर, माथुर, स्टाप टाकिंग लेफ्ट एण्ट राइट । फार गॉड सेक कम टु दि प्वायन्ट ।”
“यस, सर ।”
“तुम भूल रहे हो कि ट्रंककॉल पर बात कर रहे हो । ट्रंककॉल पर पैसा लगता है । और पैसा क्या पेड़ों पर उगता है ?”
“नो, सर । खदानों में से खोद कर निकाला जाता है, दरिया में जाल डाल कर पकड़ा जाता है, भट्टी में तपा कर हथौड़े से कूट कर बनाया जाता है लेकिन इतना मुझे पक्का मालूम है कि पेड़ों पर नहीं उगता ।”
“माथुर...”
“सर, जल्दी बात मुकम्मल कीजिये क्योंकि मुझे लगता है कि उस कम्बख्त क्रॉस टाक करने वाले कैजुअल लीव खत्म हो गयी है और वो फिर लाइन पर लौट आया है । देख लीजियेगा, अभी अनाप शनाप बकने लगेगा ।”
“मुझे तो लगता है कि बकने लग भी चुका है ।”
“हो सकता है । अब बताइये, सर मकतूल की लाश की बाबत मेरे लिये क्या हुक्म है ?”
“आई एम ए बिजी मैन । आई कैन नाट कम डाउन टु पूना आर गणपतिपुले । तुम लाश को मुम्बई भिजवाने का प्रबन्ध करो ।”
“ओके, सर ।”
“नाओ गैट आफ दि ट्रंक लाइन ।”
“यस, सर । राइट अवे, सर ।”
***
मुकेश रिजॉर्ट वापिस लौटा ।
उसने पार्किंग में कार खड़ी की और उसमें से बाहर निकला ।
रेस्टोरेंट के ग्लास डोर के बाहर रिंकी खड़ी थी, उसे देख कर अपने हाथ हिलाया ।
मुकेश ने भी हाथ हिलाया, वो रिंकी की तरफ बढने ही लगा था कि विपरीत दिशा से आवाज आयी - “मिस्टर माथुर !”
उसने घूम कर देखा ।
अपने कॉटेज के दरवाजे पर से मिसेज वाडिया उसे पुकार रही थी ।
“यस, मिसेज वाडिया ।” - वो उच्च स्वर में बोला ।
“फार वन मिनट इधर आना सकता ?”
“अगेन ?”
“ढीकरा, वाट डु यू मीन अगेन ?”
“नथिंग, मैडम । कमिंग राइट अवे ।”
“दैट्स लाइक ए गुड ब्वाय ।”
रिंकी की तरफ देख कर उसने असहाय भाव से कन्धे उचकाये और फिर मिसेज वाडिया की ओर बढा ।
“प्लीज कम इन ।” - वो करीब पहुंचा तो मिसेज वाडिया बोली ।
“मैडम, मैं जरा जल्दी में हूं इसलिये जो कहना है यहीं कहिये ।”
“ढीकरा, बात बहुत इम्पार्टेंट होना सकता । सो प्लीज कम इन ।”
मन ही मन तीव्र अनिच्छा के भाव लिये उसने भीतर कदम रखा ।
“प्लीज सिट डाउन ।” - वो बोली ।
“थैंक्यू, मैडम ।”
“कल मैं तुम्हारा एडवाइस को फालो किया, सैवरल टाइम्स सब सोचा, समझा, अपना कांशस को अपना गाइड बनाया और फिर उस पुलिस ऑफिसर को फोन लगाया ।”
 
“बहुत अच्छा किया आपने उस बाबत थोबड़ा बन्... चुप न रह कर ।”
“किया न !”
“यस, मैडम ।”
“तुम्हारा एडवाइस को फालो किया ।”
“अच्छा किया । अब बोलिये क्या बात है ?”
“ढीकरा, आई आलवेज माइन्ड माई ओन बिजनेस । मालूम ?”
“सारे रिजॉर्ट को मालूम, मैडम ।”
“रिजॉर्ट में बहुत लोग खुसर फुसर करता है कि मैं दूसरा लोगों के काम में टांग उड़ाता है...”
“अड़ाता है ।”
“अड़ाता है और इधर उधर टांग झांग करता है....”
“तांक झांक करता है ।”
“बट दैट इज नाट ट्रु । मैं ऐसा कभी नहीं करता है । काहे को करेगा । टाइम किधर मेरे पास ऐसा कामों का वास्ते ।”
“यू आर राइट, मैडम ।”
“पण मर्डर का केस में तो बोलना सकता न ! कैसा भी हो सके पुलिस का हैल्प करना सकता । तभी तो मर्डरर पकड़ में आना सकता । नो ?”
“यस ।”
“इसी वास्ते साइलेंट नहीं रहना सकता । ढीकरा, जैसे तुम्हारे को कल मिस्टर घिमिरे की बाबत बोला, वैसे आज फिर बोलना सकता ।”
“आज किसकी बाबत ?”
“जो आज मार्निंग में इधर आया । दैट् फ्लूजी, दैट बटरफ्लाई, दैट् सिंगर...”
“मैडम आप किसकी बात कर रही हैं ?”
“ढीकरा, दीज कॉटेज वाल्स... वैरी थिन । लाइक पापड़ । मालूम ?”
“हां लेकिन...”
“इधर दूसरा साइड में कोई जरा लाउडली बोलता तो इधर सुनाई देता । मैं नहीं सुनना मांगता दूसरा लोगों को टाक करता पण सुनाई देगा तो क्या करेगा ! विंडोज ओपन हो तो और भी अच्छा सुनाई देता ।”
“आपने बगल के कॉटेज में होती कोई बातचीत सुनी ?”
“यू गैस्ड इट, ढीकरा ।”
“कौन है बगल के कॉटेज में ?”
“पाटिल ।”
“पाटिल ! किससे बात कर रहा था ?”
“उस ढीकरी से जो उधर क्लब में वल्गर पॉप सांग्स गाता है ।”
“मीनू सावन्त से ?”
“आई थिंक दैट्स हर नेम ।”
“आपको कैसे मालूम ?”
“क्या कैसे मालूम ?”
“कि अपने बगल के, कॉटेज में पाटिल मीनू सावन्त से बात करता था ।”
“मैंने देखा न मार्निंग में उसको इधर आता ! ऐट अबाउट इलैवन ओ क्लाक ।”
“ग्यारह बजे के करीब मीनू सावन्त इधर पहुंची थी और पाटिल के कॉटेज में गयी थी ?”
“यस । तब मैं बाथरूम में था । बाथरूम का विंडो ओपन था । मैं बाथरूम से देखा उसको पाटिल का कॉटेज में ऐन्ट्री करते ।”
“और फिर उनकी बातचीत सुनी ?”
“टोटल नहीं पण काफी सुना । सुनना नहीं मांगता था पण सुना । कोई दूसरा बोलेगा तो सुनेगा । कान बन्द करना तो डिफीक्लट । नो ?”
“जितनी सुना उससे समझा कि बातचीत का मुद्दा क्या था ?”
“बट आफकोर्स ।”
“क्या ? क्या मुद्दा था ?”
“ब्लैकमेल ।”
“क्या ?”
“ब्लैकमेल ।”
“कौन करता था ?”
“पाटिल ।”
“क्या मांगता था ? रोकड़ा ?”
“यस ।”
ब्लैकमेल तो सनसनीखेज खबर थी ही, ये भी कम महत्तवपूर्ण खबर नहीं थी कि विनोद पाटिल और मीनू सावन्त एक दूसरे से पूर्वपरिचित थे ।
“पाटिल” - प्रत्यक्षतः वो बोला - “उस लड़की से रोकड़ा मांगता था ?”
“हां । बोला हैल्प मांगता था, फाइनांशल हैल्प मांगता था । टैम्पेररी फाइनांशल हैल्प मांगता था । रिजॉर्ट में अपना हिस्सा मिलने पर रिटर्न करने को बोलता था ।”
“आपने साफ सुना ये सब ?”
“हां । वो लोग फाइट करता था, इस वास्ते ऊंचा सुर में बोलता था । तब सब इधर क्लियर सुनाई दिया था ।”
“मीनू ने क्या कहा था ?”
“ढोकरी पहले साफ नक्की बोला । फिर ढीकरा बोला, ‘सोच लो । वापिस बड़ोदा जाना पड़ जायेगा’ । फिर बोला ‘मैंने जरा अपनी जुबान खोली तो पिछे बड़ा गलाटा हो जायेगा’ । बोला ‘इस वक्त पोजीशन ऐसा है कि तुम मेरे काम आयेगा तो मैं तुम्हारे काम आयेगा’ । फिर बोला ‘हैल्प नहीं तो लोन समझ कर पैसा दे दो’ ।”
अब एक नयी साम्भावना सामने आ रही थी ।
पाटिल अगर मीनू सावन्त से पुराना वाकिफ था तो उसने उसे मजबूर किया हो सकता था कि वो परसों रात क्लब में मुकेश के ड्रिंक में नींद की दवा मिला दे । मुकेश को मीनू सावन्त की घिमिरे से जुगलबंदी जरा नहीं जंची थी लेकिन उसके पाटिल से ताल्लुकात की बात, न जाने क्यों, उसे फौरन जंच गयी थी ।
लेकिन पूछे जाने पर मीनू ने तो कहा था कि वो पाटिल के बारे में कुछ नहीं जानती थी, वो क्लब में आया था तो जिन्दगी में पहली बार उसने पाटिल की सूरत देखी थी ।
जरूर उसने झूठ बोला था ।
जो शख्स उसके अतीत के इतने अन्धेरे पक्ष से वाकिफ था कि उस बिना पर वो उसे ब्लैकमेल कर सकता था, उसकी बाबत उसका झूठ बोलना स्वाभाविक था ।
“आखिर में क्या हुआ ?” - वो बोला - “मीनू ने पाटिल की मांग पूरी करना कुबूल किया ?”
“आई डोंट नो ।” - मिसेज वाडिया बोली - “ढीकरी को रोकड़ा के लिये यस बोलता मैं नहीं सुना ।”
“फिर ?”
“फिर क्या ! फिर वो सिंगर ढीकरी इधर से नक्की किया ।”
“ओह !”
“ढीकरा, अब मेरे को फिर एडवाइस मांगता है । ये नया बात जो मैं सुना, मैं पुलिस को बोलेगा कि नहीं बोलेगा ?”
“दैट इज नाट ए डिफीकल्ट डिसीजन, मैडम ।”
“क्या बोला ?”
“वही कीजिये जो पिछली बार किया ।”
“क्या किया ?”
“पहले मेरे को बोला और फिर इन्स्पेक्टर को बोल दिया । अब मेरे को बोला तो इन्स्पेक्टर को तो बोलना सकता । नो ?”
उसके माथे पर पड़े और चेहरे पर तनिक अप्रसन्नता के भाव आये ।
मुकेश उठ खड़ा हुआ ।
“आपको आपकी कांशस” - वो बोला - “डिलेड एक्शन में गाइड करती है । इस बार भी ऐसा ही अन्देशा है तो मेरे को बोलियेगा, आपकी बात मैं इन्स्पेक्टर अठवले तक पहुंचा दूंगा ।”
वो खामोश रही ।
“इट इज ऐज ईजी ऐज दैट । नो ?”
“मैं सोचेगा ।”
“जरूर सोचियेगा । छोटी सी बात है, बात के साइज से मैच करता आपका दिमाग है, जोर भी नहीं पड़ेगा ।”
“क्या ? क्या बोला ?”
“नमस्ते बोला, मैडम ।”
***
 
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