desiaks
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रिंकी को घिमिरे की मौत की खबर इन्स्पेक्टर अठवले से लगी थी ।
वो खबर सुनते ही जो पहला खयाल उसके जेहन में आया था, वो थाः
अब रिजॉर्ट कौन चलायेगा ?
और अब खुद उसकी नौकरी का क्या होगा ?
‘सत्कार’ रेस्टोरेंट कोकोनट ग्रेव का ही हिस्सा था और खुद उसकी मैनेजरी घिमिरे के सदके थी जिसने कि उसे वो पोस्ट दिलवाई थी । भविष्य में रिजॉर्ट की मिल्कियत, मैनेजमेंट, बदलने पर उसकी नौकरी पर आंच आ सकती थी ।
हत्प्राण देवसरे की वसीयत के प्रावधानों की उसे खबर थी लेकिन उसे अभी तक भी मुकम्मल यकीन नहीं आया था कि हत्प्राण अपने वकील को ही अपना वारिस बना गया था - जो यकीन आया था, उसे खुद मुकेश माथुर ही अपनी बातों से हिला गया था - अलबत्ता इस बात से उसने संतोष का अनुभव किया था कि घिमिरे उस रिजॉर्ट का मैनेजर ही नहीं, उसके एक चौथाई हिस्से का मालिक भी था; आखिर वो उसका स्पांसर था, हितचिन्तक था ।
इन्स्पेक्टर उससे मिलने घिमिरे के कत्ल की वजह से आया था - खासतौर से ये क्रॉस चैक करने आया था कि उस कत्ल के सम्भावित वक्त क आसपास कौन कहां था ! - लेकिन ज्यादा सवाल उसने एक्सीडेंट की बाबत किये थे और इस बात पर उसने काफी हद तक अविश्वास जताया था कि वो एक्सीडेंट की कोशिश करने वाले की कार का नम्बर तो न सही, रंग और मेक भी नहीं देख सकी थी । बार बार उसने पूछा था कि क्या वो कार सफेद एम्बैसेडर थी लेकिन वो उस बाद के ऐन कील ठोक कर तरदीक नहीं कर सकी थी ।
अपनी मौजूदा जिन्दगी से वो मोटे तौर पर सन्तुष्ट थी । जो एक कमी उसे उसमें लगती थी वो उसे तब पूरी होती जान पड़ी थी जबकि मुकेश माथुर नाम के युवक के उस परिसर में कदम पड़े थे । बहुत जल्द उनमें दोस्ती हुई थी लेकिन ये उसके लिये हैरानी का विषय था कि वो दोस्ती किसी मुकाम पर क्यों नहीं पहुंच रही थी; पहुंच नहीं रही थी तो कम से कम किसी निश्चित मुकाम का रुख क्यों नहीं कर रही थी ! उसकी इस उलझन का जवाब इस तथ्य में छुपा था कि मुकेश माथुर विवाहित था लेकिन ये बात न उसे मालूम थी और न, सिवाय मुकेश के बताये, मालूम होने को कोई साधन था ।
रात को दस बजे के बाद किसी समय समुद्र स्नान के लिये जाना उसकी स्थापित रूटीन थी । उसके बाद उसने बिस्तर के ही हवाले होना था और यूं वो बड़ी चैन की नींद सोती थी ।
बावजूद घिमिरे के कत्ल की खौफनाक खबर के उसने उस रोज भी अपनी उस रूटीन पर अमल करने का इरादा बनाया । लेकिन उस रोज बीच पर उसके साथ चलने वाला कोई नहीं था ।
क्या वो मुकेश से बोले ?
क्या हर्ज था ।
वो अपने कॉटेज से मिकली और मुकेश के कॉटेज की ओर बढी ।
परिसर की पार्किंग में पुलिस की एक जीप तब भी खड़ी थी जिससे साबित होता था कि पुलिस अभी तक वहां से गयी नहीं थी ।
वो डबल कॉटेज के करीब पहुंची तो दायें विंग में बैठा, करनानी के साथ बतियाता, मुकेश उसे बाहर से ही दिखाई दे गया । दोनों के हाथ में ताजे बनाये ड्रिंक्स के गिलास थे जिससे लगता नहीं था कि वो उसके साथ बीच पर चलने की पेशकश पर गौर करता ।
वो वापिस लौट आयी ।
अपने कॉटेज मे पहुंच कर उसने अपने कपड़े उतारे और उसकी जगह स्विमिंग कास्ट्यूम पहन लिया । फिर उसने बड़ा तौलिया और बीच बैग सम्भाला और कॉटेज से निकलकर बीच की ओर चल दी ।
बीच उस घड़ी सुनसान था और समुद्र शान्त था ।
उस माहौल ने उसे तनिक त्रस्त किया ।
जैसा हमला उस पर होकर हटा था उसकी रू में - और घिमिरे के हालिये कत्ल की रू में - क्या उसे घड़ी वहां मौजूद होना चाहिये था !
क्या वान्दा था - फिर उसने हौसले से सोचा - अभी तो पुलिस ही वहां से नहीं गयी थी, ऐसे में उसको कोई नुकसान पहुंचाने की किसकी मजाल हीं सकती थी !
उस बात ने उसे बहुत आश्वस्त किया ।
उसने अपना तौलिया रेत पर एक जगह फैलाया और फिर आगे बढ कर समुद्र में कदम डाला ।
पन्द्रह बीस मिनट उसने समुद्र स्नान का आनन्द लिया, उसके बाद वो बाहर निकलकर अपने बीच टावल पर सुस्ताने बैठ गयी ।
फिर उसका ध्यान माधव घिमिरे की तरफ भटक गया ।
कितना अच्छा आदमी था !
मेहनती ! संजीदा !
कितनी दक्षता से वो रिजॉर्ट का निजाम चलाता था !
क्या दुश्मनी थी किसी की उससे जो किसी ने उसका खून कर दिया !
अब फौरन रिजॉर्ट का निजाम कौन सम्भालने वाला था !
हैरानी थी कि इस बाबत अभी कोई बात ही नहीं उठी थी ।
ऑफिस में पांच छः मुलाजिम थे जिनमें से अशोक अत्रे नाम का एक लड़का उसका खास सहायक था लेकिन वो इतना काबिल और जिम्मेदार कहां था कि मैनेजर की जगह ले पाता !
तब उसे अहसास हुआ कि रिजॉर्ट का मैनेजमेंट उसे भी सौंपा जा सकता था ।
क्या वो सब काम सम्भाल सकती थी ? - उसने अपने आपसे सवाल किया ।
यकीनन ।
वो पूरे परिसर के मैनेजर के तौर पर अपनी कल्पना करने लगी ।
फिर उस कल्पना से वो खुद ही शर्मिन्दा हो गयी ।
घिमिरे के मरते ही उसे ऐसा नहीं सोचने लगना चाहिये था ।
क्या वो बेचारा इसलिये जान से गया था कि उसकी जगह खाली हो जाती और उस पर वो अपना दावा पेश कर पाती !
एकाएक कहीं हल्की सी आहट हुई ।
उसने हड़बड़ाकर सिर उठाकर सामने देखा और फिर आजू बाजू निगाह दौड़ाई ।
कहीं कोई नहीं था ।
एक बाजू में रेत के टीले से थे जो कि बीच पर आम पाये जाते थे । वो जानती थी कि कभीकभार कोई आवारा कुत्ता उधर आ भटकता था और खा के फेंकी गयी किसी हड्डी की तलाश में रेत खोदने लगता था ।
वो नाहक डर रही थी ।
वो फिर अपने खयालों में खो गयी ।
एक बार फिर पहले जैसी आहट हुई लेकिन इस बार उसने उसे नजरअन्दाज कर दिया ।
फिर एकाएक उसे अहसास हुआ कि उसे ठण्ड लग रही थी । वो उठ कर खड़ी हुई और तौलिया उठा कर अपना बदन पोंछने लगी ।
इस बार आहट ऐन उसके पीछे हुई और आहट के साथ उसे ऐसा भी लगा जैसे पीछे कहीं कुछ हिला था ।
उसने जल्दी से घूम कर पीछे देखा तो उसके प्राण कांप गये ।
कोई ऐन उसके पीछे खड़ा था ।
वो खबर सुनते ही जो पहला खयाल उसके जेहन में आया था, वो थाः
अब रिजॉर्ट कौन चलायेगा ?
और अब खुद उसकी नौकरी का क्या होगा ?
‘सत्कार’ रेस्टोरेंट कोकोनट ग्रेव का ही हिस्सा था और खुद उसकी मैनेजरी घिमिरे के सदके थी जिसने कि उसे वो पोस्ट दिलवाई थी । भविष्य में रिजॉर्ट की मिल्कियत, मैनेजमेंट, बदलने पर उसकी नौकरी पर आंच आ सकती थी ।
हत्प्राण देवसरे की वसीयत के प्रावधानों की उसे खबर थी लेकिन उसे अभी तक भी मुकम्मल यकीन नहीं आया था कि हत्प्राण अपने वकील को ही अपना वारिस बना गया था - जो यकीन आया था, उसे खुद मुकेश माथुर ही अपनी बातों से हिला गया था - अलबत्ता इस बात से उसने संतोष का अनुभव किया था कि घिमिरे उस रिजॉर्ट का मैनेजर ही नहीं, उसके एक चौथाई हिस्से का मालिक भी था; आखिर वो उसका स्पांसर था, हितचिन्तक था ।
इन्स्पेक्टर उससे मिलने घिमिरे के कत्ल की वजह से आया था - खासतौर से ये क्रॉस चैक करने आया था कि उस कत्ल के सम्भावित वक्त क आसपास कौन कहां था ! - लेकिन ज्यादा सवाल उसने एक्सीडेंट की बाबत किये थे और इस बात पर उसने काफी हद तक अविश्वास जताया था कि वो एक्सीडेंट की कोशिश करने वाले की कार का नम्बर तो न सही, रंग और मेक भी नहीं देख सकी थी । बार बार उसने पूछा था कि क्या वो कार सफेद एम्बैसेडर थी लेकिन वो उस बाद के ऐन कील ठोक कर तरदीक नहीं कर सकी थी ।
अपनी मौजूदा जिन्दगी से वो मोटे तौर पर सन्तुष्ट थी । जो एक कमी उसे उसमें लगती थी वो उसे तब पूरी होती जान पड़ी थी जबकि मुकेश माथुर नाम के युवक के उस परिसर में कदम पड़े थे । बहुत जल्द उनमें दोस्ती हुई थी लेकिन ये उसके लिये हैरानी का विषय था कि वो दोस्ती किसी मुकाम पर क्यों नहीं पहुंच रही थी; पहुंच नहीं रही थी तो कम से कम किसी निश्चित मुकाम का रुख क्यों नहीं कर रही थी ! उसकी इस उलझन का जवाब इस तथ्य में छुपा था कि मुकेश माथुर विवाहित था लेकिन ये बात न उसे मालूम थी और न, सिवाय मुकेश के बताये, मालूम होने को कोई साधन था ।
रात को दस बजे के बाद किसी समय समुद्र स्नान के लिये जाना उसकी स्थापित रूटीन थी । उसके बाद उसने बिस्तर के ही हवाले होना था और यूं वो बड़ी चैन की नींद सोती थी ।
बावजूद घिमिरे के कत्ल की खौफनाक खबर के उसने उस रोज भी अपनी उस रूटीन पर अमल करने का इरादा बनाया । लेकिन उस रोज बीच पर उसके साथ चलने वाला कोई नहीं था ।
क्या वो मुकेश से बोले ?
क्या हर्ज था ।
वो अपने कॉटेज से मिकली और मुकेश के कॉटेज की ओर बढी ।
परिसर की पार्किंग में पुलिस की एक जीप तब भी खड़ी थी जिससे साबित होता था कि पुलिस अभी तक वहां से गयी नहीं थी ।
वो डबल कॉटेज के करीब पहुंची तो दायें विंग में बैठा, करनानी के साथ बतियाता, मुकेश उसे बाहर से ही दिखाई दे गया । दोनों के हाथ में ताजे बनाये ड्रिंक्स के गिलास थे जिससे लगता नहीं था कि वो उसके साथ बीच पर चलने की पेशकश पर गौर करता ।
वो वापिस लौट आयी ।
अपने कॉटेज मे पहुंच कर उसने अपने कपड़े उतारे और उसकी जगह स्विमिंग कास्ट्यूम पहन लिया । फिर उसने बड़ा तौलिया और बीच बैग सम्भाला और कॉटेज से निकलकर बीच की ओर चल दी ।
बीच उस घड़ी सुनसान था और समुद्र शान्त था ।
उस माहौल ने उसे तनिक त्रस्त किया ।
जैसा हमला उस पर होकर हटा था उसकी रू में - और घिमिरे के हालिये कत्ल की रू में - क्या उसे घड़ी वहां मौजूद होना चाहिये था !
क्या वान्दा था - फिर उसने हौसले से सोचा - अभी तो पुलिस ही वहां से नहीं गयी थी, ऐसे में उसको कोई नुकसान पहुंचाने की किसकी मजाल हीं सकती थी !
उस बात ने उसे बहुत आश्वस्त किया ।
उसने अपना तौलिया रेत पर एक जगह फैलाया और फिर आगे बढ कर समुद्र में कदम डाला ।
पन्द्रह बीस मिनट उसने समुद्र स्नान का आनन्द लिया, उसके बाद वो बाहर निकलकर अपने बीच टावल पर सुस्ताने बैठ गयी ।
फिर उसका ध्यान माधव घिमिरे की तरफ भटक गया ।
कितना अच्छा आदमी था !
मेहनती ! संजीदा !
कितनी दक्षता से वो रिजॉर्ट का निजाम चलाता था !
क्या दुश्मनी थी किसी की उससे जो किसी ने उसका खून कर दिया !
अब फौरन रिजॉर्ट का निजाम कौन सम्भालने वाला था !
हैरानी थी कि इस बाबत अभी कोई बात ही नहीं उठी थी ।
ऑफिस में पांच छः मुलाजिम थे जिनमें से अशोक अत्रे नाम का एक लड़का उसका खास सहायक था लेकिन वो इतना काबिल और जिम्मेदार कहां था कि मैनेजर की जगह ले पाता !
तब उसे अहसास हुआ कि रिजॉर्ट का मैनेजमेंट उसे भी सौंपा जा सकता था ।
क्या वो सब काम सम्भाल सकती थी ? - उसने अपने आपसे सवाल किया ।
यकीनन ।
वो पूरे परिसर के मैनेजर के तौर पर अपनी कल्पना करने लगी ।
फिर उस कल्पना से वो खुद ही शर्मिन्दा हो गयी ।
घिमिरे के मरते ही उसे ऐसा नहीं सोचने लगना चाहिये था ।
क्या वो बेचारा इसलिये जान से गया था कि उसकी जगह खाली हो जाती और उस पर वो अपना दावा पेश कर पाती !
एकाएक कहीं हल्की सी आहट हुई ।
उसने हड़बड़ाकर सिर उठाकर सामने देखा और फिर आजू बाजू निगाह दौड़ाई ।
कहीं कोई नहीं था ।
एक बाजू में रेत के टीले से थे जो कि बीच पर आम पाये जाते थे । वो जानती थी कि कभीकभार कोई आवारा कुत्ता उधर आ भटकता था और खा के फेंकी गयी किसी हड्डी की तलाश में रेत खोदने लगता था ।
वो नाहक डर रही थी ।
वो फिर अपने खयालों में खो गयी ।
एक बार फिर पहले जैसी आहट हुई लेकिन इस बार उसने उसे नजरअन्दाज कर दिया ।
फिर एकाएक उसे अहसास हुआ कि उसे ठण्ड लग रही थी । वो उठ कर खड़ी हुई और तौलिया उठा कर अपना बदन पोंछने लगी ।
इस बार आहट ऐन उसके पीछे हुई और आहट के साथ उसे ऐसा भी लगा जैसे पीछे कहीं कुछ हिला था ।
उसने जल्दी से घूम कर पीछे देखा तो उसके प्राण कांप गये ।
कोई ऐन उसके पीछे खड़ा था ।