Desi Sex Story रिश्तो पर कालिख - Page 8 - SexBaba
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Desi Sex Story रिश्तो पर कालिख

घर में आज माहॉल काफ़ी चेंज लग रहा था आज इतने दिनो के बाद भाभी किचन में काम कर रही थी और मम्मी अपने कमरे में आराम कर रही थी....



हम लोगो को आया देख सब से पहले भाभी ने हम सबको पानी पिलाया और उसके बाद कॉफी का पुच्छ कर वापस चली गयी....


में भी भाभी के पास ही किचन में चला गया और उनसे बाते करने लग गया....



में--भाभी क्यो ना आप अपनी प्रॅक्टीस फिर से शुरू कर दें.....



भाभी--क्यो तुझे में किचन में काम करती हुई अच्छी नही लग रही क्या....में वो काम अब छोड़ चुकी हूँ इसलिए में दुबारा वो अब फिर से नही करना चाहती....


में--ओके भाभी जेसी आपकी मर्ज़ी....वैसे आज खाने में क्या बनाया है....


भाभी--बाजरे की रोटी लहसुन की चटनी रायता और अगर तुम्हे गेहू की रोटी खानी है तो वो भी बनाई हुई है मेने....लेकिन में जानती हूँ बाजरे की रोटी तुम्हे सब से ज़्यादा पसंद है....



में--वाह भाभी मज़ा आ गया में जल्दी से चेंज करके आता हूँ तब तक रूही और दीक्षा भी शॉपिंग कर के आचुकी होंगी....



भाभी--उन दोनो को टाइम लगेगा वो शॉपिंग करने गयी है...तुम चेंज कर लो में तुम सब के लिए अभी खाना रेडी कर देती हू....



उसके बाद में अपने रूम में चला गया....आज का पूरा दिन बस ऐसे ही नौरमल निकल गया वरना कुछ दिन से तो ऐसा लग रहा था जैसे हंगामे कभी ख़तम ही नही होंगे मेरी ज़िंदगी से....
 
रात हो चुकी थी हम सब अपने अपने रूम्स में सोने की कोशिश कर रहे थे...
देर रात किसी को अपने पास पा कर मेरी नींद खुल गयी....नीरा मेरे सीने पर अपना हाथ रख कर सो रही थी....इस वक़्त उसके चेहरे की मासूमियत मेरे दिल को सुकून दे रही थी....ऐसा लग रहा था जैसे में किसी गार्डन में बैठ कर रंग बिरंगे फूलों को निहार रहा हूँ....तभी उसकी एक जुल्फ उसके चेहरे पर आ गयी थी....इस तरह उसकी जुल्फ का चेहरे पर आना मुझे ऐसा लग रहा था जैसे पूर्णिमा के चाँद के सामने एक छोटा सा काला बादल आ गया हो...

मैने अपनी एक उंगली से उसकी जुल्फ को उसके कानो के पीछे दबा दिया....मेरे इस तरह से करने से नीरा की आँखे खुल गयी....उसकी आँखे किसी बड़ी झील की तरह शांत लग रही थी इस समय....


नीरा--ऐसे क्यो देख रहे हो मुझे....


में--क्या करूँ तुझे इस तरह प्यार से मेरे पास सोता हुआ पाकर में तुझे देखने से खुद को रोक नही पाया....


नीरा ने अब मुझे कस कर अपने आलिंगन में भर लिया था...उसके बदन की खस्बू मेरी सांसो में समाने लग रही थी....



में--तू यहाँ कब आई....


नीरा--मुझे नींद नही आ रही थी तो सोचा थोड़ी देर आपसे बाते करलूँ लेकिन यहाँ आपको सोते देख कर में भी आपके पास ही सो गयी....


में उसके माथे पर किस करते हुए....उसकी पीठ पर हाथ फिराने लग जाता हूँ...


नीरा--आप मुझ से कितना प्यार करते हो....


मैने उसकी इस बात का कोई जवाब नही दिया...और में उसके गले पर किस करने लग जाता हूँ....



नीरा--सुनो ना.....क्यो तंग कर रहे हो आप मुझे....पहले मुझे मेरे सवाल का जवाब दो उसके बाद में आपको कुछ भी करने से नही रोकूंगी.....


में--कुछ भी करने से???


नीरा--मेरी हर साँस पर आपका अधिकार है....मेरे जिस्म का रोम रोम आपके अंदर समा जाना चाहता है....क्या आप भी ऐसा महसूस करते हो.....बताओ ना कितना प्यार करते हो मुझसे....


में--तू जान है मेरी...में तुझे पाने के लिए किसी भी हद तक चला जाउन्गा....में कैसे बताऊ तुझे में कितना प्यार करता हूँ....मुझे खुद भी नही पता....तेरे इस सवाल का जवाब कैसे दूं में....इसके जवाब का ना मुझे कही अंत दिखता है और ना ही शुरुआत....


नीरा ने मेरी ये बात सुनकर मेरे होंठो को अपने होंठो से दबोच लिया.....आज पता नही क्यो में उसे रोक नही पा रहा था किसी भी बात के लिए....मैने भी उसके होंठो का मीठा मीठा रस चूसना शुरू कर दिया.....


काफ़ी देर तक हम एक दूसरे के होंठो को ही चूमते रहे...जब हम दोनो की साँसे उखड़ने लगी तब जाकर हम अलग हुए.....



नीरा--अपनी सांसो पर काबू पाते हुए....पहले मुझे ऐसा लगता था जैसे मैने आपको शादी करने की कसम दे कर ग़लत किया....लेकिन अब मेरे मन से वो सारी बाते चली गयी है....आप मुझे कभी छोड़ना मत वरना में मर जाउन्गि आपके बिना....आप से ही साँसे चलती है मेरी और आपसे ही दिल.....


में--तेरी कसम.....मेरी जान में तुझे कभी खुद से अलग नही करूँगा चाहे इसके लिए मुझे सब कुछ छोड़ना पड़े....

ये कह कर मेने नीरा को अपने अंदर समेट लिया और इसी तरह एक दूसरे की बाहो मे हम दोनो को सोया देख नींद भी अपनी बाहे फैला कर हम दोनो को अपनी बाहो में भर लेती है.....
 
सवेरे सवेरे....


रूही हम दोनो को इस तरह एक दूसरे की बाहो में सोया हुआ देख कर थोड़ा सा विचिलित हो गयी थी....लेकिन उसकी जलन उसके प्यार पर कभी भारी नही पड़ सकती थी....वो भी मेरी तरह नीरा से प्यार करती थी....वो नीरा के पास बैठकर उसके बालो में हाथ फिराने लग जाती है....

नीरा अपने बालो में किसी को हाथ फेरता महसूस करके अपनी आँखे खोल देती है....वो अभी भी मेरी बाहो में ही थी....जैसे ही वो पलट कर देखती है वहाँ बैठी हुई रूही उसे नज़र आजाती है....


नीरा--दीदी आप कब आई...??


रूही--में बस अभी थोड़ी देर पहले ही आई हूँ...तुम लोगो को इतने प्यार से सोता देख कर तुम दोनो को जगाने का मन नही हुआ....


नीरा--मेरा हाथ अपने उपेर से हटाते हुए...दीदी बाकी सब लोग उठ गये क्या...



रूही--हाँ भाभी किचन में हैं दीक्षा और कोमल जाने के लिए रेडी हो रही है मम्मी बाहर हॉल में बैठी है....और में तुम दोनो को यहाँ जगाने आई हूँ....


नीरा--अब तो में भी जाग गयी हूँ...बस आप इन्हे उठा दो तब तक में फ्रेश होने चली जाती हूँ....


रूही--ठीक है में इसे उठाती हूँ तू जाकर जल्दी रेडी हो जा स्कूल के लिए देर हो जाएगी नही तो...


उसके बाद नीरा वहाँ से उठ कर चली गयी...नीरा के जाते ही रूही ने पहले मेरे माथे को चूमा फिर मुझे उठाने लग गयी...

में--क्या हुआ दीदी आज क्यो उठा रही हो...



रूही--क्यो आज कॉलेज नही जाना है क्या....


में--नही आज मुझे काफ़ी सारे काम है...में आज नही जाउन्गा...आप लोग कार लेकर चले जाना...अक्तिवा पर परेशान हो जाओगे...


रूही--चल ठीक है तो फिर सोता रह....जब मन करे उठ जाना....


में--अब नींद कैसे आएगी...आपने उठा जो दिया है....आप एक काम करोगी...


रूही--बोल क्या काम है...


में--मुझे दीक्षा और कोमल के सिर का एक एक बाल चाहिए अलग अलग...बस आप ये भूलना मत कि किसका कौनसा बाल है....


रूही--में समझ गयी...में लेकर आती हूँ अभी...



रूही अब बाहर निकल गयी थी और में भी फ्रेश होने चला जाता हूँ...


रूही--दीक्षा इधर आना तो....


जैसे ही दीक्षा रूही के पास आती है रूही उसका एक बाल खेंच के तोड़ देती है...
 
दीक्षा--उूउउइइ....दीदी बाल क्यों तोड़ा....वैसे ही इतने बाल झड रहे है मेरे....


रूही--ये बाल तेरा भाई मॅंगा रहा है...उसे कुछ टेस्ट करवाने है....


दीक्षा--अपने सिर पर हाथ मसल्ते हुए....कौन्से टेस्ट करवाने है भैया को...


रूही--ये मुझे नही पता...कोमल तू भी इधर आ...


कोमल--दीदी भैया अगर बाल माँग रहे है तो में खुद ही तोड़ कर दे देती हूँ....ये लो.


कोमल ने भी अपने सिर का बाल तोड़ कर रूही के हाथ में रख दिया....रूही ने दोनो बालो को अपने दोनो हाथो में अलग अलग कर के रख लिया और मेरे रूम में आ गयी...

रूही--ये लो दोनो के बाल....ये वाला दीक्षा का है और ये वाला कोमल का....


में वो दोनो बाल अलग अलग लिफाफे में डालकर उनपर उन दोनो का नाम लिख देता हूँ....


रूही--अब में जा रही हूँ...कॉलेज के लिए लेट हो रहा है मुझे....



में--ठीक है आप जाओ....


उसके बाद में भी रूही के साथ बाहर निकल जाता हूँ हॉल में सभी लोग बैठे थे मुझे देखते ही नीरा मुझ से चिपक गयी...


नीरा--आज अकेले अकेले छुट्टी क्यो मार रहे हो...


में--अरे दिन में एक शादी में जाना है...और गिफ्ट भी खरीदने है....


नीरा--किस की शादी में जाना है आपको....में भी चलूंगी.....


में--तू चुप चाप तेरे स्कूल भाग जा....चाचा जी के कोई जानकार है उनके लड़के की शादी है...में भी वहाँ से गिफ्ट देकर निकल जाउन्गा कुछ ज़रूरी कामो के लिए....

नीरा--ठीक है लेकिन शाम को मुझे बाइक पर घुमाने ले जाना पड़ेगा....


में--ठीक है गुंडी ले जाउन्गा तुझे शाम को घुमाने....अब जा स्कूल तेरे चक्कर में इन सब को भी देरी हो रही है...


उसके बाद वो सब चले गये....में मम्मी से..

में--मम्मी भैया के जदुले के बाल कहाँ रखे है आपने....मुझे वो चाहिए...


मम्मी--चल मेरे रूम में है...ले ले..


उसके बाद मम्मी ने अपनी अलमारी में रखे बॉक्स में से वो बाल दे दिया....मैने उन से पापा के बाल भी ले लिए थे और अपने रूम में आकर उन्हे भी लिफाफो में डालकर उन पर नाम लिख लिया....मेरे पास अब सभी के डीयेने आ चुके थे सिवाए मेरे खुद के इसलिए मैने भी अपना एक बाल तोड़कर नये लिफाफे में डाल दिया और उन्हे फोल्ड करके अपनी जेब में रख लिया....


मम्मी को मैने बता दिया कि में बाहर जा रहा हूँ....और अपनी बाइक उठा कर बाज़ार में चला गया....लेकिन मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या लूँ....क्योकि बात शादी की नही थी बात पापा की रेस्पेक्ट की थी...इसलिए में एक ज्यूयलरी शॉप में घुस गया....


दुकानदार मुझे अंदर आते ही पहचान गया जबकि में पहली बार इस दुकान परचढ़ा था..दुकानदार का नाम धर्मदास था


धर्म--अरे जय बेटा आओ आओ....आज मुझ ग़रीब की दुकान पर कैसे आना हो गया...



में--क्या आप मुझे जानते हो....में तो पहली बार ही आपकी दुकान पर आया हूँ....


धर्म--बेटा तुम्हारे पापा के अंतीमसंस्कार मे शाहर का हर एक छोटा बड़ा आदमी आया था....में तुम्हे तब से जानता हूँ जब तुम एक बार अपने पापा के साथ यहाँ आए थे....उस वक़्त तुम काफ़ी छोटे थे लेकिन अब तो गबरू हो गये हो...
अब मुझे बताओ यहाँ कैसे आना हुआ...


में--मुझे एक शादी के लिए गिफ्ट लेना है...और ये मान लो गिफ्ट पापा की इज़्ज़त के हिसाब से होना चाहिए....


धर्म--तुम्हारे पापा को इस शहर में हर छोटा बड़ा व्यापारी जानता है....तुम्हारी इस बात ने मुझे भी सोच में डाल दिया...क्योकि अगर आज वो हमारे बीच में होते तो कोई भी उन पर उंगली नही उठा सकता था....लेकिन कोई बात नही....चलो में तुम्हे कही ले कर चलता हूँ...


उसके बाद वो मुझे एक बड़े से शोरुम में लेकर गये जहाँ ज्वेलरी का काम होता था...

वो सीधा वहाँ बने सेल्स काउंटर से आगे बढ़ते हुए एक कॅबिन में मुझे ले जाते है....
 
धर्म--जुगल किशोर जी.....कैसे है आप....



जुगल किशोर इस शोरुम का मालिक था और ऐसे ही कितने सारे शोरूम्स पूरी दुनिया में फैले हुए थे....



जुगल--अरे आओ आओ धर्मदास भाई कैसे आना हुआ...


धर्म--मुझे एक लाजवाब चीज़ दिखाओ...



जुगल--अरे लेकिन बताओ तो सही इतनी जल्दी में क्यो हो...


धरम--जुगल भाई मेरे साथ आए बच्चे को तुमने शायद पहचाना नही.....


अब जुगल किशोर मेरी तरफ़ देखने लगते....मुझ पर पहली नज़र डालते ही वो मुझे पहचान जाते है...वो तुरंत अपनी सीट से खड़े होते है और मुझे अपने गले से लगा लेते है....


जुगल--जय बेटा मुझे माफ़ करना इस धर्म के चक्कर मे में तुन्हे देख भी ना पाया....ऐसे धड़धड़ाते हुए ये मेरी कॅबिन में घुसता है जैसे ये कोई डाकू लुटेरा हो...अब बोलो कैसे आना हुआ...क्या चाहिए तुम्हे...


धर्म--बात इज़्ज़त की है यार....कुछ ऐसी चीज़ निकाल जो जय के पापा की इज़्ज़त बाज़ार में और भी बढ़ा दे...
वैसे जय बेटा तुमने बताया नही तुम किस की शादी में जा रहे हो....


में--में कोई नंदू भाई है सीड्स और खाद का काम करते है....यही पास में ही उनका बंगलो है....


जुगल--अब समझ में आया नंदू ने तुम्हे शादी में क्यो बुलाया...


में--मुझे भी बताइए ऐसी क्या बात है...


जुगल--तुम्हारे पापा यहाँ के व्यापार संगठन के बॉस थे....जबकि नंदू बॉस बनना चाहता था...शायद इसीलिए तुम्हारे पापा के जाने के बाद वो तुम्हे शादी में बुला कर बेइज्जत करना चाहता हो....

में--तब तो कुछ ऐसा गिफ्ट देना होगा जिस से नंदू के साथ साथ वहाँ आए हर इंसान की आँखे चोंधिया जाए....


जुगल--बेटा माना तुनहरे पापा जितना पैसे वाला यहाँ कोई भी नही है....लेकिन अगर तुम नंदू जैसे कुत्तो पर अपना पैसा पानी की तरह बहाओगे तो तुम्हारे पापा की आत्मा को तकलीफ़ ही होगी.....


में--आप सही कह रहे है अंकल....लेकिन ये पैसे में बहुत जल्दी नंदू से वसूल भी कर लूँगा अगर आप मुझे अपने व्यापार संघ का बॉस बना दो....


जुगल--बेटा तुम्हारे पापा इस संघ के राजा थे....और वो मरने के बाद भी आज राजा ही है...और राजा का बेटा ही असली वारिस होता है....तुम्हारे बिज़्नेस और प्रॉपर्टी के हिसाब से तुम्हे इस संघ का बॉस बनने से कोई नही रोक सकता...

धर्मदास और जुगल अंकल मुझे संघ का बॉस बनाने के लिए राज़ी हो गये थे....और एक मीटिंग फिक्स कर ली गयी थी जो हफ्ते भर बाद होने वाली थी....


जुगल--बेटा तुम एक काम करो मेरे पास जो सब से एक्सपेन्सिव आइटम्स है तुम उनमे से कुछ पसंद कर लो....


उसके बाद वो मुझे काफ़ी सारे आइटम्स दिखाते है उनमें से दो चीज़े मुझे बेहद पसंद आती है....एक सोने से बनी रोलेक्स घड़ी और एक नेकलेस जो शानदार कारिगिरी से बना हुआ था....


में--अंकल आप इन्हे पॅक करवा दो....


जुगल--लेकिन बेटा ये गिफ्ट नंदू की ओकात से कही ज़्यादा मह्न्गे है ये लगभग 5 करोड़ का माल है....इतने में तो नंदू अपने बेटे की शादी 50 बार कर सकता है....


में--अंकल आप चिंता मत करो....में बिज़्नेस की दुनिया से दूर रहना चाहता था लेकिन मुझे लग रहा है....में ऐसा कर नही पाउन्गा...

ये 5 करोड़ में अपने बिज़्नेस में हे इनवेस्ट कर रहा हूँ....और मीटिंग से पहले नंदू सड़क पर होगा अगर उसने अपनी ग़लती की माफी नही माँगी तो.....


जुगल--मुस्कुराते हुए....तुम बिल्कुल अपने पापा की तरह हो....वो भी बिल्कुल इसी तरह बाते करते थे....


धरम--लगता है हम लोगो को अपना बॉस फिर से मिल गया अब धन्दे में फिर से ट्रॅन्स्परेन्सी आज़एगी जिस से छोटा बड़ा सभी व्यापारी आराम से कमा सकेगा.....

में--अंकल ये में ले जा रहा हूँ....में अपने साथ चेक बुक नही लाया कल सुबह में चेक भिजवा दूँगा.....


जुगल--कोई बात नही बेटा कभी भी भिजवा देना....वैसे भी ये सब में तुम्हारे पापा की वजह से ही कर पाया हूँ....तुम्हारा जब मन करे तब इसके पैसे दे देना....


में--नही अंकल....मन करे तब नही, में कल सुबह ही आपको वो चेक पहुचा दूँगा....



जुगल--ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्ज़ी...मुझे कल फोन कर देना में किसी को घर ही भिजवा दूँगा.....


में--वैसे तो मुझे आपसे काफ़ी सारी बातें करनी है लेकिन अभी मुझे जाना होगा...


जुगल--एक काम करो कल शाम को मेरे फार्महाउस पर मिलते है....वही पर इतमीनान से सारी बाते कर लेंगे....


में उन्हे कल शाम को मिलने का बोलकर वहाँ से निकल जाता हूँ....
 
में उन्हे कल शाम को मिलने का बोलकर वहाँ से निकल जाता हूँ....कुछ देर पहले में सिर्फ़ एक साधारण लड़का था....लेकिन उस शोरुम से निकलते समय में एक बिज़्नेसमॅन बन चुका था....और जा रहा था अपनी पहली सीढ़ी की तरफ....जो मुझे रुतबे और दौलत के ढेर तक पहुचाएगी.....


में अब नंदू के बंगलो के बाहर पहुँच गया था....काफ़ी अच्छा सजाया गया था बंग्लॉ को अभी दिन के दो बज रहे थे....लेकिन मुझे ये समझ में नही आया ये दिन में कौनसी शादी हो रही है....क्योकि जो कार्ड मुझे दिया गया था उसमें 2 बजे आशीर्वाद समारोह का टाइम दिया हुआ था....लेकिन बंगलो के बाहर भी ज़्यादा चहल पहल दिखाई नही दे रही थी....कुछ 15 20 गाड़िया बंगलो के बाहर ज़रूर खड़ी थी....जो कि सभी बीएमडब्ल्यू और स्कोडा जेसी गाड़िया थी....यानी कोई फंक्षन तो चल ही रहा होगा अंदर,
लेकिन क्या.....

बंग्लॉ के मेन गेट से अंदर घुसते ही मुझे कुछ आवाज़े आने लग गयी थी जैसे कही घूंघुरू बज रहे हो तब्ब्ले पर थाप पड़ रही हो...

में जैसे ही दरवाजे तक पहुँचा 2 दरबानों ने वो दरवाजा खोल दिया.....जैसे ही में अंदर पहुँचा.. में बस एक टक लगातार बस एक ही जगह देखने लग गया जिसके होंठो से ये गीत छलक रहा था....

शब-ए-इंतजार आख़िर......,
शब-ए-इंतजार आख़िर.........!

कभी होगी मुख़्तसर भी.....,
कभी होगी मुख़्तसर भी......!!


शब-ए-इंतजार आख़िर....कभी होगी मुख्त्सर भी......

ये चिराग बुझ रहे है.....ये चिराग बुझ रहे है.....ये चिराग बुझ रहे है...

मेरे साथ जलते....जलते....मेरे साथ जलते जलते

ये चिराग बुझ रहे है....मेरे साथ जलते जलते....

यूँ ही कोई मिल गया था... सरे राह चलते चलते

वही थम के रह गयी है...................... मेरी रात ढलते ढलते............
चलते चलते यूँही कोई मिल गया था....सरे राह चलते चलते.... चलते चलते....सारे राह चलते चलते....!!


इसी के साथ वो हॉल तालियो की गड़गड़ाहट के साथ गूँज उठा इतनी मधुर आवाज़ की मालकिन को देखने के लिए में बेचैन हो उठा....मुझे बस उसके होंठ ही नज़र आरहे थे बाकी पूरा चेहरा उसने अपने घूँघट से ढक रखा था....लोग उस पर नोटो की बरसात कर रहे थे... वो बस अपनी जगह किसी मूरत की तरह बैठी रही....
 
इसी के साथ वो हॉल तालियो की गड़गड़ाहट के साथ गूँज उठा इतनी मधुर आवाज़ की मालकिन को देखने के लिए में बेचैन हो उठा....मुझे बस उसके होंठ ही नज़र आरहे थे बाकी पूरा चेहरा उसने अपने घूँघट से ढक रखा था....लोग उस पर नोटो की बरसात कर रहे थे... वो बस अपनी जगह किसी मूरत की तरह बैठी रही....

तभी मेरे कंधे पर मुझे किसी का हाथ महसूस हुआ....जय साहब बड़ी देर कर दी आते आते ......कहाँ खो गये थे चलते चलते.....


में--माफ़ कीजिएगा इस लड़की की आवाज़ बहुत अच्छी है जैसे माँ सरस्वती इसके गले में विराज रही हो....


नंदू--मुझे शायद आपने पहचाना नही....मेरा नाम नांदेश्वर है....और प्यार से लोग मुझे नंदू भाई कह कर बुलाते है...


में--में आपको पहचान कैसे पाता नंदू अंकल....हम आज से पहले कभी मिले ही नही है.....


नंदू--बेटा मिलना जुलना ऐसे ही चलता रहेगा अब में तुम्हे अपने बेटे और बहू से मिलवाता हूँ उसके बाद बाते करेंगे....


में--ठीक है अंकल जैसा आप चाहे....

उसके बाद वो मुझे अपने बेटे और बहू से मिलवाते है....में जैसे ही अपने साथ लाए बेग को खोलकर वो गिफ्ट्स निकालने की कोशिश करता हूँ नंदू मेरा हाथ पकड़ के मुझे वो निकालने से मना कर देता है....


नंदू--जय बेटा अभी वक़्त नही आया है कि तुम्हे कुछ भी देने के लिए अपना बॅग खोलना पड़े....दोनो बच्चो को आप अपने पास से 10-10 रूपाए नेग के दे दो इनके लिए यही तुम्हारे पापा के आशीर्वाद से कम नही होगा....


में समझ नही पा रहा था नंदू आख़िर कहना क्या चाहता था....


में--लेकिन में इन दोनो के लिए अलग से गिफ्ट्स लाया हूँ....उनका में क्या करूँ....


नंदू--आप बस इन्हे नेग के रूप में 10 10 रुपये दे दो और कुछ भी देने की ज़रूरत नही है........

में अपनी जेब में 2 हज़ार के नोटो की गॅडी निकालता हूँ और उसमे से आधे नोट में लड़की के हाथ में रखता हूँ और आधे लड़के के....


में--नंदू अंकल ये तो हुआ बस नेग....लेकिन दूल्हा दुल्हन के लिए जो में गिफ्ट्स लाया हूँ वो दिए बिना नही जाउन्गा....


नंदू--हम भी तो यही चाहते है आप कहीं ना जाए ये घर भी आपका ही है....आप जब तक चाहे यहाँ रहे....लेकिन पहले कुछ ज़रूरी बाते करले ताकि आपके दिमाग़ में उठ रहे सारे सवालो को शांति मिल सके....


उसके बाद हम एक रूम में आजाते है....नंदू अंकल मेरे लिए एक पेग बढ़िया स्कॉच का बनाते है और मुझे देकर खुद के लिए भी बनाने लग जाते है....


नंदू--तुमने कभी सोचा नही तुम्हारे पापा की डॅत हुए अभी हफ़्ता भर भी नही हुआ और तुम्हारे पास शादी का इन्विटेशन क्यो पहुँच गया....जबकि इस शहर का बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा व्यापारी तुम्हारे पापा की डॅत के बारे में जानता था....


में--ये इन्विटेशन मेरे चाचा जी अपने साथ ले कर आए थे....उनके बार बार कहने पर हे में जाने के लिए राज़ी हुआ था....
लेकिन मुझे आपकी बातो से लग रहा है आपको ज़रूर कोई ख़ास काम होगा....

नंदू--काम तो वाकाई मेरे लिए काफ़ी ख़ास है....मेरे पास तुम्हारे पापा की अमानत पड़ी है वो तुम्हे देने के लिए इस से अच्छा दिन मेरे पास कभी हो भी नही सकता था....


में--अंकल जो भी है वो सॉफ सॉफ कहिए ना....कौनसी अमानत की बात कर रहे हो आप....कौन्से सही समय की बात कर रहे हो आप जो भी है सॉफ सॉफ बोलिए....


नंदू-- तुम्हारे पापा की डॅत से 6 महीने पहले....में उनसे मिला था.....
 
वैसे तो में उनके लिए हमेशा से एक मुसीबत ही था लेकिन उस दिन मैने उन्हे अपना भगवान मान लिया....

मेरे बेटे को ब्लड कॅन्सर था....में पैसे पैसे के लिए मोहताज होचुका था अपने बेटे के इलाज की खातिर....लेकिन जब में तुम्हारे पापा के पास हाथ फैलाए पहुँचा....एक पल का भी समय नही लगाया उन्होने सोचने के लिए....

उसी वक़्त उन्होने अमेरिका के बड़े से बड़े डॉक्टर को फोन लगा दिया....और हमे वहाँ भिजवा भी दिया पूरे 3 करोड़ रुपये मेरे बेटे के इलाज में खर्च हो चुके थे अमेरिका में....लेकिन उन्होने कभी मुझ से हिसाब नही माँगा....में जब अमेरिका से वापस भारत आया तब में उनसे एक बार मिला था...तब उन्होने मुझे कहा....एक समय था जब में किशोर गुप्ता अपने धंधे की शुरूवात पर था....तब किसी ने मेरी मदद नही करी....मैने अपना सब कुछ खोकर ये मुकाम हासिल किया है....और जब तुम मेरे सामने अपने बेटे की जिंदगी के लिए कुछ रुपये माँगने आए तब....मेरे सामने वही पुराने दिन आ गये थे....जो मैने खोया वो अब दुबारा नही होगा,,तुम्हारे बेटे के इल्लज में जो भी खर्चा आएगा वो में भरुन्गा....और जिस दिन ये ठीक हो जाय उस दिन मुझे बुलाना मत भूल जाना.....

ये कहते कहते नंदू अंकल की आँखो में आँसू आगये और साथ ही साथ मेरे पापा की ये बात सुनकर गर्व से मेरी भी आँखे छल्छला गयी थी....


नंदू--एक बेग मेरी तरफ बढ़ाते हुए....बेटा ये 50 लाख रुपये है....बाकी पैसे भी में जल्दी ही चुका दूँगा....आज मेरा बेटा पूरी तरह से ठीक हो गया है काश तुम्हारे पिता यहाँ होते....इसीलये मैने तुम्हे यहाँ बुला लिया....शायद तुम्हारे पिता की मेरे से जताई गयी आख़िरी इक्षा भी यही थी.....

इसीके साथ वो फूट फूट के रोने लगते है....में उन्हे अपने गले से लगाकर उन्हे धाँढस बांधने की कोशिश करने लगता हूँ....थोड़ी देर बाद वो कुछ नौरमल होते है....उसके बाद में वो बेग उठाता हूँ और बाहर उनका हाथ पकड़ कर ले आता हूँ....


उनके बेटे और बहू के सामने में वो बेग रख देता हूँ और अपने साथ लाए हुए गिफ्ट भी उनके सामने रख देता हूँ....


में--नंदू अंकल से.....मेरे लिए आपके दिए हुए ये 50 लाख भी अनमोल है....और जो गिफ्ट में इन दोनो के लिए लाया हूँ ये भी...

आप अपने बेटे और बहू से इनमें से एक अपने पास रखने के लिए बोल दीजिए ये मान लेना ये पापा की तरफ से वर वधू को तोहफा है....

नंदू अपने बेटे बहू को वो 50 लाख वाला बेग उठाने के लिए बोल देता है....


नंदू--बेटा ये 50 लाख तो में वापस ले रहा हूँ लेकिन बाकी की रकम तुम मुझ से लेने के लिए कभी मना नही करोगे....में एक कर्ज़दार की तरह कभी मरना नही चाहूँगा...


में--अंकल में वो रकम तो आपसे ज़रूर लूँगा....क्योकि अब आपको भी अपना वादा जो पूरा करना है....


नंदू--बेटा तुम बिल्कुल अपने पापा की तरह हो....तुम्हारे बड़े भैया तुम्हारे पापा की परच्छाई थे....लेकिन तुम तुम्हारे पापा की आत्मा हो....


उसके बाद वो मुझे अपने गले से लगा लेते है और मेरे सिर पर अपना हाथ फेरने लग जाते है....

नंदू--बेटा तुम्हारे पापा की कुर्सी खाली पड़ी है उसे सम्भालो....उस कुर्सी पर किसी और का हक़ नही है वो अब से तुम्हारी ही रहेगी....

में--जैसा आप चाहे अंकल....अब में जाने की इजाज़त चाहूँगा....


नंदू--बेटा घर पर आए हो कुछ खा पी कर तो जाओ...

में--नही अंकल आज नही फिर किसी और दिन सही....


नंदू--जैसा तुम चाहो बेटा ये घर तुम्हारा ही है आते रहा करना....


उसके बाद में वहाँ से निकल कर जाने लगता हूँ....में हॉल के दरवाजे के बाहर ही निकला था और अपनी जेब में से चाबी निकालने की कोशिश में वो डीयेने वाले लिफाफे नीचे गिर जाते है.....लेकिन किसी की नज़र उन पड़ जाती है और जैसे ही वो दरवाजे को खोलने की कोशिश करती है उसकी एक उंगली दरवाजे के बीच में आजाति है....और उसकी उंगली से खून की धारा फूट पड़ती है.....वो मेरा लिफ़ाफ़ा उठाए मेरे पीछे पीछे बाहर सड़क पर आजाती है....


सुनिए......सुनिए......
 
में अपनी तरफ आती उस सुरीली आवाज़ की तरफ अपनी एडियों के बल घूम जाता हूँ मेरे सामने वही लड़की खड़ी थी घूँघट में....एक दम दूध से धुला हुआ रंग....होंठ पर जैसे गुलाब रख दिए हो किसीने....


में--जी आप मुझे आवाज़ लगा रही है क्या.....


लड़की--जी ये आपकी जेब में से कुछ गिर गया था वही देने आई हूँ...

में जैसे ही उसके हाथ की तरफ देखता हूँ मुझे वो डीयेने सॅंपल वाले लिफाफे नज़र आजाते है साथ ही साथ उसकी उंगली से निकलता हुआ खून भी जो उन लिफाफो को भिगोएे जा रहा था....

आज कुछ अजीब सा लग रहा था सीने में....उसके चेहरे को देखे बिना ही....वो शक्श मुझे अपना सा लगने लगा था....कुछ तो बात है उसमें....वरना किसी को जानने की बेचेनी मेरे दिल ने कभी महसूस नही करी थी....

में बाइक आगे दौड़ाए जा रहा था उसकी उंगली से अभी भी खून बह रहा था उसके खून से...मेरा बाँधा हुआ रुमाल पूरी तरह से सन चुका था.....उस से काफ़ी ज़िद करने के बाद में उसे डॉक्टर के पास चलने को मना पाया था....

उसके होंठो पर पानी की कुछ बूंदे आ गयी थी जो ऐसा लग रहा था जैसे गुलाबो पर किसीने मोती रख दिए हो...ये बूंदे उसके आँसू थे जो उसकी आँखो से बह रहे थे....


मैने जल्दी ही एक क्लिनिक के बाहर अपनी बाइक रोक दी और लगभग उसे खिचते हुए अपने साथ वहाँ बने एमर्जेन्सी रूम की तरफ बढ़ गया....


डॉक्टर ने उसके घाव पर स्टिचिंग कर के दवा लगाकर बॅंडेज बाँध दी...

उसके बाद वहाँ की फीस भरने के बाद हम लोग फिर से बाइक पर बैठ चुके थे....उसने अपना नाम मुझे शमा बताया था....,



में--शमा जी अब आप को दर्द तो नही हो रहा.....



शमा--नही दर्द नही होता मुझे....दर्द की आदत पड़ चुकी है....



में--ऐसा क्यो कह रही है आप....क्या मुझे आप अपने बारे में कुछ बता सकती है....



शमा--मेरे बारे में जानकार आप क्या करेंगे साहब....ना मेरा कोई जीवन है और ना ही कुछ ऐसा जिसे बताने में मुझे खुशी मिले....


में--अगर आप नही बताना चाहती तो ठीक है...लेकिन सुना है दिल का दर्द बाटने से दर्द कम हो जाता है...इसलिए में आपके दर्द को कम करने की कोशिश कर रहा हूँ....



शमा--पेशे से में एक तवायफ़ हूँ....गाना सुनाकर लोगो का मन बहलाती हूँ....अभी कुछ दिन पहले ही मैने अपना अट्ठरवा साल पूरा किया है....

अब कुछ दिनो बाद में गाने के साथ साथ अपना जिस्म लोगो को देकर उन सब का मन बहलाउन्गि....कुछ दिनो बाद मेरी नथ उतराई की रस्म होने वाली है....में चाह कर भी ये सब होने से नही रोक सकती....
 
उसकी ये बात सुनकर मैने झटके से अपनी बाइक ब्रेक लगा कर रोक दी....हमारे पास में से काफ़ी सारी गाड़िया तेज रफ़्तार में हॉरेन बजा बजा कर निकल रही थी....लेकिन ये बात सुनके हम लोगो के दरम्यान एक बहुत बड़ी खामोशी छा गयी थी....
उसकी ये बात सुनकर में ये कहने से खुद को रोक नही पाया....


में--अगर आप नही चाहती तो कोई आपको ज़बरदस्ती इस दलदल में कैसे फेक सकता है.....आप पोलीस में कंप्लेन क्यो नही कर देती.....


शमा अपने एक हाथ अपने घूँघट में डालकर अपने बह रहे आँसू पोछते हुए कहती है....

शमा--साहब यहाँ मेरी फरियाद सुनने वाला कोई नही है...और जिन लोगो के पास अपनी दरख़्वास्त ले जाने के लिए भेजना चाहते है....हम उन्ही लोगो की महफील रोशन करते है.....


में--अगर आप चाहो तो में आपकी मदद कर सकता हूँ आपको इस दलदल में से निकालने के लिए....


शमा--मेरी मदद तो मेरा भगवान भी नही करता साहब.....और आप क्यो एक तवायफ़ के पिछे अपना वक़्त ज़ाया करेंगे....


में--में तुम्हे वहाँ से निकालने के लिए अपना पूरा ज़ोर लगा दूँगा....तुम मुझे बोलो बस में तुम्हारे लिए क्या करसकता हूँ....


शमा--साहब आज से 10 दिन बाद मुझ पर बोली लगाई जाएगी....अगर कोई मेरी बोली लगाकर मुझे जीत जाता है तो मुझे सारी उमर उसकी गुलाम उसकी रखेल बन कर रहना होगा...लेकिन अगर कोई भी बोली नही लगाता है तो....मुझे एक रंडी का जीवन जीना होगा....मुझ पर खर्च हुए बचपन से अब तक का पैसा मुझे मेरा जिस्म बेच कर देना होगा....


में--अगर में तुम्हे अभी यहाँ से गायब कर दूं तो....वो लोग तुम्हे ढूँढ नही पाएँगे.....


शमा एक दर्दभरी मुस्कुराहट अपने होंठो पर ले आती है....



शमा--साहब छुप तो परछाई भी नही सकती....उसे भी छुप्ने के लिए अंधेरे में ही जाना पड़ता है...में कही भी भाग जाउ ये लोग मुझे ढूँढ ही लेंगे.....


में--अगर तुम चाहो तो में पोलीस की मदद लेकर तुम्हे वहाँ से निकलवा सकता हूँ....मेरे संबंध काफ़ी बड़े बड़े लोगो से है.....



शमा--हन साहब ऐसा हो सकता है....लेकिन फिर भी आपको मेरी कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी.....



में--अगर तुम उस दलदल से निकलना चाहती हो तो में तुम्हे वहाँ से निकालने के लिए कोई भी कीमत दे सकता हूँ.....



शमा--साहब आप मेरे लिए इतना सब क्यो कर रहे है....आप आज से पहले ना मुझे जानते थे ना ही अब तक आपने मेरा चेहरा देखा है....अगर मैने आपको धोका दे दिया तो....या सिर्फ़ आपसे पैसे लूटने के लिए आपका इस्तेमाल कर रही हूँ तो....आप मेरी मदद क्यो करना चाहते है....


में--तुम्हारी मदद में तुम्हे अपनी छोटी बहन समझ कर कर रहा हूँ...मेरी वो खोई हुई बहन जिसे में पता नही कैसे ढूँढ पाउन्गा....

मुझे किसी ने कहा था कि मेरी एक बहन और है जिसके बारे मे मैं नही जानता और वो तक़लीफ़ में अपना जीवन जी रही है..... इस लिए तक़लीफ़ से गुजरती हर लड़की मुझे अपनी बहन ही लगती है......


शमा--कितनी खुशनसीब होगी आपकी वो बहन जिस दिन आप उसे ढूँढ लेंगे....भगवान से में आज ही आपकी बहन के लिए प्रार्थना करूँगी....



में--शमा अगर आप बुरा ना मानो तो क्या में आपका चेहरा देख सकता हूँ......



शमा--इसमें बुरा मानने वाली क्या बात है आप ने मुझे अपनी बहन बोला है....बस बुरा एक ही बात का लग रहा है....आप मुझे बार बार मुझे आप कह कर मत बुलाए....


में--ठीक है शमा में तुम्हे आप नही कहूँगा....


इसके साथ शमा अपना चेहरे पर से अपना घूँघट हटा देती है.....
 
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