desiaks
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सुबह मेरी नींद खुली तो पाया की ऋतू मेरे लंड से ब्रुश कर रही है, यानी मेरा लंड चूस रही है.. उसके बाल पुरे चेहरे को ढके हुए थे और वो पूरी नंगी थी, उसके उठे हुए कुल्हे दिल के आकार में बड़े दिलकश लग रहे थे, मेरे उठने का पता उसे चल गया तो उसने मेरे लंड को अपने मुंह से बाहर निकाला और बोली "गुड मोर्निंग भाई..." और फिर से अपने काम में लग गयी... भगवान् ऐसी बहन सब को दे जो लंड चूस कर अपने भाई को उठाये.
उसने मेरे लंड के साथ-२ मेरे टट्टे भी चूसने शुरू कर दिए, उसके मुंह से निकलती हुई लार मेरे लंड वाले हिस्से को पहले ही भिगो चुकी थी..
उसने नीचे मुंह करके मेरी गांड के छेद पर अपनी जीभ लगायी, बड़ा ही ठंडा एहसास था उसकी जीभ का..मेरा पूरा शरीर अकड़ गया उसकी इस हरकत से , उसने पहले कभी मेरी गांड के छेद को छुआ भी नहीं था. मेरे मुंह से अनायास एक लम्बी कराह सी निकल गयी....
"आआआआअह्ह्ह्ह ऋतू.......ये ...ये ...क्या कर्र्र्रर रही है...तू....अह्ह्ह्हह्ह .."
पर वो कुछ न बोली और मुझे मजे देने में लगी रही..
अब मेरी कमर थोड़ी हवा में उठने लगी थी, मैंने अपने पैरो और कंधे के बल पर बीच का हिस्सा हवा में उठा लिया, जिससे ऋतू को गांड का छेद चाटने में थोड़ी और आसानी हो जाए...
उसने एक हाथ से मेरा लंड हिलाना जारी रखा और अपने मुंह से मेरी गोलियां और पीछे का छेद चाटती रही, मेरा बड़ा ही तगड़े वाला ओर्गास्म बन रहा था, उसने अपने होंठ छेद पर ऐसे चिपका दिए जैसे वहां से कुछ सोख रही हो....मेरे शरीर में ऐसी तरंगे उठने लगी जो पहले कभी महसूस नहीं हुई थी..
मैंने ऋतू को चीख कर कहा...."अह्ह्हह्ह्ह्ह ऋतू..... ....ऐसे.....ही करो....प्लीज्.....हाआआआअन्न्न्न ......अह्ह्ह्हह्ह उफ्फ्फ्फ़ मैं तो गया......."
और मेरे लंड से वीर्य की पिचकारी लगभग 1 फूट ऊपर उछली और वापिस मेरे पेट पर आकर गिरी...
और उसके बाद पिचकारियों की ऊँचाई कम होती गयी और अंत में मेरे पेट पर गाड़े सफ़ेद रंग की परत सी बिछ गयी...जिसे देखकर ऋतू के मुंह में पानी आ गया...उसने जीभ निकाल कर लंड के सिरे से ऊपर तक सफाई करनी शुरू कर दी,
आज का नाश्ता उसे इतना मिल गया था की शायद पूरा दिन भूख ही न लगे.. अपनी जीभ से सारा माल समेटते हुए वो ऊपर तक आई और अपना सांप जैसा शरीर मुझसे घिसती हुई मेरे मुंह को बड़ी अधीरता से चूसने लगी, हम दोनों के शरीर के बीच अभी भी काफी चिचिपापन था जिसकी वजह से काफी चिकनाई बनी हुई थी,
कमाल की बात ये थी की मेरा लंड अभी तक खड़ा हुआ था, उसने ना जाने क्या हवा भरी थी मेरी गांड में की लंड झड़ने के बाद भी खड़ा हुआ था, ये मेरे साथ पहली बार हो रहा था, शायद उसके गांड को चाटने का कमाल था, मेरा खड़ा हुआ लंड जैसे ही उसकी रस टपकाती चूत से टकराया, उसने अपनी चूत को मेरे लंड के चारों तरफ फंसा कर एक झटका दिया और मेरे लंड का सुपाडा उसकी चूत में फंस गया...और उसने अपनी आँखों से मुझे देखते हुए कहा "ऊऊऊऊऊओ भाई.......म्मम्मम्मम ...बड़ा मजा ले रहे हो....आज तो.....हूँ...." उसका मतलब मेरे झड़ने के बाद भी चूत मारने से था..
तभी दरवाजा खुला और पापा ने सर अन्दर करके कहा "बच्चो उठ जाओ....कॉलेज नहीं जाना क्या....."
पर हमें उन्होंने चुदाई करते देखा तो उनकी आँखे फटी की फटी रह गयी....वो शायद सोच रहे होंगे की ये आजकल के बच्चे भी...कितना स्टेमिना होता है इनमे...सुबह -२ शुरू हो गए..
पर उन्होंने जब देखा की उनके आने से हमारे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा है तो वो अन्दर आये, उन्होंने पायजामा और टी शर्ट पहनी हुई थी, ऋतू ने पापा को देखा और हँसते हुए बोली "गुड मोर्निंग पापा...कम ना प्लीस..ज्वाइन अस ..."
पापा ऐसा निमंत्रण कैसे ठुकरा देते, उन्होंने बिजली जैसी स्पीड से पायजामा उतरा और ऋतू के पीछे जाकर अपना लंड टिका दिया उसकी गांड के छेद पर और झुक कर उसके मुम्मे पकड़ लिए और थोडा दबाव डालकर उसकी गांड में प्रवेश कर गए.....
"आआआआह्ह्ह ....पापा ....... म्मम्मम्म " उसकी मलाई जैसे गांड में पापा का हथियार पूरा अन्दर तक दाखिल हो गया. उसकी चूत में भाई और गांड में बाप का लंड था..
ये ख़ुशी हर लड़की के नसीब में नहीं होती...
मैं तो बस नीचे लेटा हुआ उसके चुचे दबा रहा था, ऊपर तो ऋतू उछल कर और पीछे से पापा के धक्को की वजह से मेरा लंड अपने आप उसकी चूत में आ जा रहा था, पापा के लंड की वजह से उसकी चूत में थोडा टाईटपन आ गया था, और मुझे ऐसा लग रहा था की उसकी चूत के ऊपर की परत के दूसरी तरफ पापा का लंड मेरे लंड से घिसाई कर रहा है..
मेरा लंड अभी-२ झडा था इसलिए मुझे पता था की अगला झडाव थोड़ी देर में होगा..
मैंने ऋतू के दोनों मुम्मे पकडे और उन्हें नोचते हुए, चबाते हुए, चूसते हुए , अपने लंड से नीचे से धक्के मारने शुरू कर दिए उसकी चूत में...
अब तो पापा को भी जोश आ गया, उन्होंने भी उसकी फेली हुई गांड को पकड़ा और पीछे से दे धक्के पे धक्के मारने शुरू कर दिए...ऋतू को सुबह -२ तारे दिखाई देने लग गए, वो चीखती जा रही थी...
"आह्ह्ह्हह पापा......ओग्फ्फफ्फ्फ़ भैय्या.......अह्ह्हह्ह .....ओफ्फ्फ्फ़ ओफ्फ्फ ओफ्फ्फ मरर गयी रे....अ अह्ह्हह्ह ......पापा .....ओग्ग्ग्ग पापा .....हां......जोर से....पापा ....भाई और तेज...और तेज करो....ओ मै तो गयी....मै तो गयी......" और ये कहते हुए वो झड़ने लगी..
मेरे लंड के ऊपर उसने अभिषेक कर दिया अपने रस का...जिसकी वजह से उसकी चूत में और भी लसीलापन आ गया, मैं तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था... उसके मोटे चुचे मेरे मुंह पर थपेड़े मार रहे थे, पापा ने तो उसकी गांड को फाड़ने की कसम ही खा रखी थी आज... उनके हर झटके से उसके गुब्बारे मेरे मुंह पर जोर से पड़ते और फिर वो पीछे होती और फिर मेरे मुंह पर अपने मुम्मे मारती...
पापा के लंड से भी अब आग उगलनी शुरू हो गयी, उन्होंने ऋतू की गांड को जोर से पकड़ा...और चिल्लाये....
"आआआअह्ह्ह्ह ऋतू......मेरी बच्ची......अह्ह्ह्हह्ह मैं भी आया.....ले पापा का जूस ....अह्ह्ह्हह्ह .....ओये. इउईईईइ .........अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह " और उन्होंने अपने रस का सारा स्टॉक ऋतू की गांड में डीपोजिट करवा दिया...
ऋतू की हालत काफी खस्ता हो चुकी थी, उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी, उसने ऐसी चुदाई की कल्पना भी नहीं की थी, उसे क्या मालुम की लंड लेने का असली मजा सुबह में जो आता है, वो रात में कहाँ.
मैंने उसकी चूत में धक्के मारने जारी रख रखे थे, उसने मेरी तरफ देखकर कहा "भाई....जल्दी आओ ना...मेरी चूत में डाल दो अपना रस....और कितना तद्पाओगे...मुझे..... “
उसकी बात सुनकर मैंने अपने लंड को और तेजी से धकेलना शुरू कर दिया और जल्दी ही मेरे अन्दर एक नया ओर्गास्म बनने लगा, उसने भी उसे महसूस किया और मेरे होंठों से अपने होंठ मिलकर मुझे चूसने लगी...
मैंने उसके दोनों निप्पल पकड़कर दबाने शुरू कर दिए और मेरे लंड ने उसकी चूत में बरसना शुरू कर दिया...उसकी चूत में ठंडक सी पड़ गयी...पापा ने अपना लंड निकाल लिया था...और नीचे जाते हुए वो कह कर गए..."जल्दी करो...कॉलेज भी जाना है...."
ऋतू मेरे सीने पर नंगी पड़ी हुई हांफ रही थी...मेरा लंड उसकी चूत से फिसल कर बाहर आ गया और उसके पीछे -२ मेरा रस भी..
हम दोनों उठे और बाथरूम में जाकर नहाने लगे, एक दुसरे के शरीर पर साबुन लगाकर हमने काफी देर तक नहाया और फिर तैयार होकर नीचे आ गए.
मम्मी किचन में खड़ी हुई नाश्ता बना रही थी. सोनी और अन्नू अभी आई नहीं थी,
हमने नाश्ता किया और मैं ऋतू को अपनी बाईक पर लेकर चल दिया, उसे उसके कॉलेज छोड़ा और फिर मैं अपने कॉलेज आ गया.
उसने मेरे लंड के साथ-२ मेरे टट्टे भी चूसने शुरू कर दिए, उसके मुंह से निकलती हुई लार मेरे लंड वाले हिस्से को पहले ही भिगो चुकी थी..
उसने नीचे मुंह करके मेरी गांड के छेद पर अपनी जीभ लगायी, बड़ा ही ठंडा एहसास था उसकी जीभ का..मेरा पूरा शरीर अकड़ गया उसकी इस हरकत से , उसने पहले कभी मेरी गांड के छेद को छुआ भी नहीं था. मेरे मुंह से अनायास एक लम्बी कराह सी निकल गयी....
"आआआआअह्ह्ह्ह ऋतू.......ये ...ये ...क्या कर्र्र्रर रही है...तू....अह्ह्ह्हह्ह .."
पर वो कुछ न बोली और मुझे मजे देने में लगी रही..
अब मेरी कमर थोड़ी हवा में उठने लगी थी, मैंने अपने पैरो और कंधे के बल पर बीच का हिस्सा हवा में उठा लिया, जिससे ऋतू को गांड का छेद चाटने में थोड़ी और आसानी हो जाए...
उसने एक हाथ से मेरा लंड हिलाना जारी रखा और अपने मुंह से मेरी गोलियां और पीछे का छेद चाटती रही, मेरा बड़ा ही तगड़े वाला ओर्गास्म बन रहा था, उसने अपने होंठ छेद पर ऐसे चिपका दिए जैसे वहां से कुछ सोख रही हो....मेरे शरीर में ऐसी तरंगे उठने लगी जो पहले कभी महसूस नहीं हुई थी..
मैंने ऋतू को चीख कर कहा...."अह्ह्हह्ह्ह्ह ऋतू..... ....ऐसे.....ही करो....प्लीज्.....हाआआआअन्न्न्न ......अह्ह्ह्हह्ह उफ्फ्फ्फ़ मैं तो गया......."
और मेरे लंड से वीर्य की पिचकारी लगभग 1 फूट ऊपर उछली और वापिस मेरे पेट पर आकर गिरी...
और उसके बाद पिचकारियों की ऊँचाई कम होती गयी और अंत में मेरे पेट पर गाड़े सफ़ेद रंग की परत सी बिछ गयी...जिसे देखकर ऋतू के मुंह में पानी आ गया...उसने जीभ निकाल कर लंड के सिरे से ऊपर तक सफाई करनी शुरू कर दी,
आज का नाश्ता उसे इतना मिल गया था की शायद पूरा दिन भूख ही न लगे.. अपनी जीभ से सारा माल समेटते हुए वो ऊपर तक आई और अपना सांप जैसा शरीर मुझसे घिसती हुई मेरे मुंह को बड़ी अधीरता से चूसने लगी, हम दोनों के शरीर के बीच अभी भी काफी चिचिपापन था जिसकी वजह से काफी चिकनाई बनी हुई थी,
कमाल की बात ये थी की मेरा लंड अभी तक खड़ा हुआ था, उसने ना जाने क्या हवा भरी थी मेरी गांड में की लंड झड़ने के बाद भी खड़ा हुआ था, ये मेरे साथ पहली बार हो रहा था, शायद उसके गांड को चाटने का कमाल था, मेरा खड़ा हुआ लंड जैसे ही उसकी रस टपकाती चूत से टकराया, उसने अपनी चूत को मेरे लंड के चारों तरफ फंसा कर एक झटका दिया और मेरे लंड का सुपाडा उसकी चूत में फंस गया...और उसने अपनी आँखों से मुझे देखते हुए कहा "ऊऊऊऊऊओ भाई.......म्मम्मम्मम ...बड़ा मजा ले रहे हो....आज तो.....हूँ...." उसका मतलब मेरे झड़ने के बाद भी चूत मारने से था..
तभी दरवाजा खुला और पापा ने सर अन्दर करके कहा "बच्चो उठ जाओ....कॉलेज नहीं जाना क्या....."
पर हमें उन्होंने चुदाई करते देखा तो उनकी आँखे फटी की फटी रह गयी....वो शायद सोच रहे होंगे की ये आजकल के बच्चे भी...कितना स्टेमिना होता है इनमे...सुबह -२ शुरू हो गए..
पर उन्होंने जब देखा की उनके आने से हमारे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ा है तो वो अन्दर आये, उन्होंने पायजामा और टी शर्ट पहनी हुई थी, ऋतू ने पापा को देखा और हँसते हुए बोली "गुड मोर्निंग पापा...कम ना प्लीस..ज्वाइन अस ..."
पापा ऐसा निमंत्रण कैसे ठुकरा देते, उन्होंने बिजली जैसी स्पीड से पायजामा उतरा और ऋतू के पीछे जाकर अपना लंड टिका दिया उसकी गांड के छेद पर और झुक कर उसके मुम्मे पकड़ लिए और थोडा दबाव डालकर उसकी गांड में प्रवेश कर गए.....
"आआआआह्ह्ह ....पापा ....... म्मम्मम्म " उसकी मलाई जैसे गांड में पापा का हथियार पूरा अन्दर तक दाखिल हो गया. उसकी चूत में भाई और गांड में बाप का लंड था..
ये ख़ुशी हर लड़की के नसीब में नहीं होती...
मैं तो बस नीचे लेटा हुआ उसके चुचे दबा रहा था, ऊपर तो ऋतू उछल कर और पीछे से पापा के धक्को की वजह से मेरा लंड अपने आप उसकी चूत में आ जा रहा था, पापा के लंड की वजह से उसकी चूत में थोडा टाईटपन आ गया था, और मुझे ऐसा लग रहा था की उसकी चूत के ऊपर की परत के दूसरी तरफ पापा का लंड मेरे लंड से घिसाई कर रहा है..
मेरा लंड अभी-२ झडा था इसलिए मुझे पता था की अगला झडाव थोड़ी देर में होगा..
मैंने ऋतू के दोनों मुम्मे पकडे और उन्हें नोचते हुए, चबाते हुए, चूसते हुए , अपने लंड से नीचे से धक्के मारने शुरू कर दिए उसकी चूत में...
अब तो पापा को भी जोश आ गया, उन्होंने भी उसकी फेली हुई गांड को पकड़ा और पीछे से दे धक्के पे धक्के मारने शुरू कर दिए...ऋतू को सुबह -२ तारे दिखाई देने लग गए, वो चीखती जा रही थी...
"आह्ह्ह्हह पापा......ओग्फ्फफ्फ्फ़ भैय्या.......अह्ह्हह्ह .....ओफ्फ्फ्फ़ ओफ्फ्फ ओफ्फ्फ मरर गयी रे....अ अह्ह्हह्ह ......पापा .....ओग्ग्ग्ग पापा .....हां......जोर से....पापा ....भाई और तेज...और तेज करो....ओ मै तो गयी....मै तो गयी......" और ये कहते हुए वो झड़ने लगी..
मेरे लंड के ऊपर उसने अभिषेक कर दिया अपने रस का...जिसकी वजह से उसकी चूत में और भी लसीलापन आ गया, मैं तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था... उसके मोटे चुचे मेरे मुंह पर थपेड़े मार रहे थे, पापा ने तो उसकी गांड को फाड़ने की कसम ही खा रखी थी आज... उनके हर झटके से उसके गुब्बारे मेरे मुंह पर जोर से पड़ते और फिर वो पीछे होती और फिर मेरे मुंह पर अपने मुम्मे मारती...
पापा के लंड से भी अब आग उगलनी शुरू हो गयी, उन्होंने ऋतू की गांड को जोर से पकड़ा...और चिल्लाये....
"आआआअह्ह्ह्ह ऋतू......मेरी बच्ची......अह्ह्ह्हह्ह मैं भी आया.....ले पापा का जूस ....अह्ह्ह्हह्ह .....ओये. इउईईईइ .........अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह " और उन्होंने अपने रस का सारा स्टॉक ऋतू की गांड में डीपोजिट करवा दिया...
ऋतू की हालत काफी खस्ता हो चुकी थी, उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी, उसने ऐसी चुदाई की कल्पना भी नहीं की थी, उसे क्या मालुम की लंड लेने का असली मजा सुबह में जो आता है, वो रात में कहाँ.
मैंने उसकी चूत में धक्के मारने जारी रख रखे थे, उसने मेरी तरफ देखकर कहा "भाई....जल्दी आओ ना...मेरी चूत में डाल दो अपना रस....और कितना तद्पाओगे...मुझे..... “
उसकी बात सुनकर मैंने अपने लंड को और तेजी से धकेलना शुरू कर दिया और जल्दी ही मेरे अन्दर एक नया ओर्गास्म बनने लगा, उसने भी उसे महसूस किया और मेरे होंठों से अपने होंठ मिलकर मुझे चूसने लगी...
मैंने उसके दोनों निप्पल पकड़कर दबाने शुरू कर दिए और मेरे लंड ने उसकी चूत में बरसना शुरू कर दिया...उसकी चूत में ठंडक सी पड़ गयी...पापा ने अपना लंड निकाल लिया था...और नीचे जाते हुए वो कह कर गए..."जल्दी करो...कॉलेज भी जाना है...."
ऋतू मेरे सीने पर नंगी पड़ी हुई हांफ रही थी...मेरा लंड उसकी चूत से फिसल कर बाहर आ गया और उसके पीछे -२ मेरा रस भी..
हम दोनों उठे और बाथरूम में जाकर नहाने लगे, एक दुसरे के शरीर पर साबुन लगाकर हमने काफी देर तक नहाया और फिर तैयार होकर नीचे आ गए.
मम्मी किचन में खड़ी हुई नाश्ता बना रही थी. सोनी और अन्नू अभी आई नहीं थी,
हमने नाश्ता किया और मैं ऋतू को अपनी बाईक पर लेकर चल दिया, उसे उसके कॉलेज छोड़ा और फिर मैं अपने कॉलेज आ गया.