desiaks
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विजय ने पूछा," किसने किया "
" मुझे नही मालूम "
" नही " एक अन्य आदमी बोला," मेरे ख़याल से उसने इन भाई साहब पर हमला नही किया, उसने किसी पर भी हमला नही किया, अजीब पागल आदमी था साला, उसने तीनो गोलिया उपर की तरफ चलाई थी, पता नही तीसरी कैसे इन भाई साहब की गाड़ी के शीशे मे लग गयी "
" कहाँ गया "
" उधर गया है " एक अन्य व्यक्ति ने विजय की कोठी के दाई तरफ वाली उस गली की तरफ इशारा किया जो एक कीलोमेटेर बाद दूसरे हाइवे से मिल जाती थी.
" पैदल था क्या "
" अजी नही, बाइक पर था "
" किसी ने रोका नही उसे "
" अजी कौन रोकता साहब, उसके हाथ मे रेवोल्वेर था "
एक अन्या बोला," और दनादन गोली चला रहा था "
" किसी ने देखा उसे "
एक साथ काई हाथ उठे," मैंने देखा था "
" लंबे लाल बाल थे उसके, लाल ही दाढ़ी.... "
" हम गच्चा खा गये दिलजले " अधूरी बात सुनकर ही विजय चिल्लाया और साथ ही कोठी की तरफ दौड़ लगा दी.
आनन-फानन मे वे उस कमरे के पास पहुचे परंतु दरवाजे पर ही ठिठक कर रह गये, विकास ने अंदर घुसने की कोशिश की थी किंतु विजय ने पीछे से कॉलर पकड़कर वापिस खींचते हुवे कहा," कोई फ़ायदा नही दिलजले, किस्सा ख़तम हो चुका है "
सॉफ नज़र आ रहा था कि कुंडो मे अब चीकू नही, उसकी लाश लटकी हुई थी.
किसी तेज धारदार हथियार से उसकी गर्दन पर वार किया गया था जिसके कारण आधी गर्दन कट गयी थी.
खून से लथपथ सिर और चेहरा गर्दन की आधी खाल पर झूल रहा था, विकास की नज़र अभी लाश पर ही थी जबकि विजय जूतो के उन निशानो को देख रहा था जो फर्श पर पड़े खून पर बने थे.
फिर पलटकर अपने पीछे यानी कि कमरे से बाहर देखा, वहाँ भी उन्ही जूतो के निशान थे.
वे हत्यारे के वापसी के निशान थे.
विजय ने तेज़ी से उनका पीछा करना शुरू कर दिया.
अब विकास भी उसके साथ था.
निशान हल्के पड़ते जा रहे थे और कोठी की चारदीवारी तक पहुचते-पहुचते काफ़ी हल्के पड़ गये थे, खून का एक धब्बा 6 फुट उँची बाउंड्री वॉल के शीर्ष पर भी था.
उस धब्बे से बचता हुआ विजय एक ही जंप मे बाउंड्री वॉल पर चढ़ा और उसके पीछे देखा, वो सर्विस लेन थी.
बस एक जगह और धब्बा नज़र आया.
उससे आगे कोई निशान नही था, विजय ने बड़बड़ाकर जैसे खुद से ही कहा," यहाँ से वो अपनी बाइक पर सवार हो गया "
विकास सदमे की-सी अवस्था मे था, मुँह से एक ही सेंटेन्स निकला," बड़ा जबरदस्त धोखा खाया है गुरु "
विजय ने उसकी बात पर ध्यान नही दिया.
वो खुद भी भन्नाया हुआ नज़र आ रहा था, जेब से मोबाइल निकाला और विकास से दूर, लॉन के दूसरे कोने की तरफ जाते हुए वो नंबर लगाया जो धनुष्टानकार के पास रहता था.
कॉल रिसीव की गयी.
बोल तो सकता नही था मोंटो.
'ची-ची' की आवाज़ सुनाई दी.
विजय ने बहुत ही राज़दाना लहजे मे कहा," हमारी बात ध्यान से सुनो मोंटो प्यारे, हम तुम्हे बहुत ही इंपॉर्टेंट काम सौंप रहे है, वो काम आज रात ही करना है, कल सुबह हमे रिपोर्ट चाहिए "
धनुष्टानकार की 'ची-ची' सुनाई दी, जिसका इस वक़्त मतलब था," काम बताइए, मैं तैयार हू "
विजय ने बहुत धीरे-धीरे कुछ कहना शुरू किया.
पूरी बात कहने के बाद पूछा," समझ गये "
पुनः 'ची-ची' की आवाज़ सुनाई दी, जिसका इस बार मतलब था," समझ गया "
" ओके, सुबह मिलते है " विजय ने फोन काट दिया.
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अशोक बिजलानी की मौत के बाद आज चौथे दिन भी अंकिता खुद को नॉर्मल नही कर पाई थी.
रात के 11 बजे थे.
वो गुम्सुम सी अपने फ्लॅट के ड्रॉयिंग रूम मे सोफे पर पसरी हुई थी, माँ किचन मे थी की अचानक बेल बजी.
उसकी तंद्रा टूटी.
माँ ने किचन मे से ही कहा," देखो तो बेटी कौन है "
पर बेल बजाने वाला तो जैसे स्विच पर अंगूठा रखकर ही भूल गया था, वो लगातार बजे जा रही थी.
" अरे कौन है, पागल हो गया है क्या "
इधर, लगातार बजे चले जा रही बेल ने तो जैसे अंकिता पर भी झुनझूलाहट सवार कर दी.
लघ्भग दौड़ती हुई दरवाजे पर पहुचि और उसे खोलती हुई चिल्लाई," पागल हो क्या "
" म...मुझे बचा लो, मुझे बचा लो बेहन " ख़ौफ़ मे डूबे इन शब्दो के साथ बुरी तरह आतंकित एक लड़की अंकिता को लघ्भग धक्का सा देती अंदर आई और अंकिता अभी कुछ समझ भी नही पाई थी कि आगंतुक लड़की ने दरवाजा अंदर से बंद करके ना केवल चिटकनी चढ़ा दी बल्कि कीहोल से बाहर झाँकने लगी.
वो रो रही थी.
जिस्म काँप रहा था.
बाल बिखरे हुवे थे.
कपड़ो पर जगह-जगह मिट्टी लगी हुई थी, इतना ही नही, टॉप और जीन्स जगह-जगह से फटे हुवे थे.
कयि जगह छोटे लगी हुई थी उसे.
जख़्मो से खून बह रहा था.
एक चोट मस्तक पर भी थी.
" क्या हुआ " अंकिता चिल्लाई," कौन हो तुम "
" स..श...शी " उसने अपने होंठो पर उंगली रखकर करुणा भरे अंदाज मे अंकिता से चुप रहने के लिए कहा और पलटकर फिर कीहोल के पार झाँकने लगी.
वो अब भी काँप रही थी.
अंकिता ने फिर कहना चाहा," अरे, बात क्या.... "
" प...प्लीज़ बेहन " वो उसकी तरफ पलट-ती हुई धीमे स्वर मे बोली," धीरे बोलो, उसने सुन लिया तो यही आ जाएगा "
" कौन "
" मैं सब बता दूँगी पर प्लीज़, अभी चुप रहो "
तब तक अंकिता की माँ भी वहाँ पहुच चुकी थी.
उसने चौंकते हुए कहा था," कौन हो तुम, क्या हुआ "
" प्लीज़...प्लीज़ आंटी " कहने के साथ उनका तो उसने मुँह ही दबा दिया था, रोती हुई बोली," वो मेरे पीछे पड़ा है, मुझे नही पता था कि वो इतना गंदा है, मैं तो उसकी बहुत इज़्ज़त करती थी "
अंकिता ने पूछा," किसकी बात कर रही हो "
" अच्छा यहाँ आइए " वो छोटी-सी गॅलरी पार करके ड्रॉयिंग रूम मे दाखिल होती हुई बोली," वहाँ, दरवाजे के पास नही, वो बाहर हुआ तो मेरी आवाज़ सुन लेगा "
अंकिता और उसकी माँ कुछ समझ नही पा रही थी.
बौखलाई सी उसके पीछे लपकी.
ड्रॉयिंग रूम मे पहुचने तक भी वो लड़की बुरी तरह काँप रही थी, इतना ही कह सकी," व..वो मेरा बॉस है "
" कौन " अंकिता ने पूछा.
" पिता समान समझती थी लेकिन उसने.... "
तभी, लड़की की जीन्स की जेब मे पड़ा मोबाइल बजा.
उसने काँपते हाथ से ही नही बल्कि काँपते जिस्म के साथ जेब से मोबाइल निकाला और स्क्रीन पर नज़र डालते ही एक बार फिर चेहरे पर वही दहशत काबिज हो गयी जो पिच्छले कुछ क्षण मे कम हुई थी, 3 ही शब्द निकले मुँह से," व...वही है "
अंकिता और उसकी माँ की समझ मे जब कुछ आ ही नही रहा था तो कहती क्या.
लड़की इस तरह घबराई हुई थी जैसे हिरनी अपने आसपास शेर की मौजूदगी महसूस करके घबराती है.
उसने उसी हालत मे पूछा," क...क्या करू, क्या करू "
" मुझे क्या पता " अंकिता बोली.
बेल लगातार बजे जा रही थी.
उसने फोन काट दिया.
फिर स्विच ऑफ ही कर दिया.
" मुझे तो ये किसी ख़तरे मे लगती है " अंकिता की माँ की समझ मे हालात जैसे कुछ-कुछ आ रहे थे," इसे बिता अंकिता, मैं पानी लेकर आती हू "
कहकर वो किचन मे चली गयी.
अंकिता को लड़की की प्राब्लम का थोड़ा-थोडा एहसास होने लगा था, उसने उसके दोनो कंधे पकड़कर सोफे पर बिठाते हुवे कहा," डरो मत, आराम से बैठो "
वो बैठ तो गयी लेकिन अब भी काँप रही थी, बार-बार गॅलरी की तरफ इस तरह झाँक रही थी जैसे किसी के आने का अंदेशा हो.
" दरवाजा बंद है " अंकिता ने कहा," कोई नही आ सकता "
लड़की ने अंकिता की तरफ ऐसी नज़रो से देखा जैसे पूछ रही हो कि क्या वो उस बात पर यकीन कर सकती है.
तभी, अंकिता की माँ पानी से भरा गिलास ले आई, बोली," ले बेटा, पानी पी ले "
" नही आंटी "
" पी ले बेटा, घबराहट दूर होगी "
लड़की ने गिलास लिया, मुश्किल से दो घूँट पीने के बाद वापिस सेंटर टेबल पर रख दिया, अंकिता से बोली," क्या तुम मेरा एक काम कर सकती हो बेहन "
" क्या "
" ज़रा बाहर देख लो, वो बिल्डिंग के आस-पास तो नही है "
" कौन "
" 50 साल का है, लंबा, हॅटा-कट्टा, धारियो वाली शर्ट, डेनिम की जीन्स और सिर पर कॅप पहने हुए है, हाथ मे रेवोल्वेर भी हो सकता है "
" र..रेवोल्वेर " माँ-बेटी के होश उड़ गये.
" ह..हां, उसी से तो धमकाया था उसने मुझे, कहने लगा कि अगर उसकी बात नही मानी तो जान से मार देगा "
" क्या बात मनवानी चाहता था वो तुमसे "
" पहले देखकर तो आओ, वो आसपास तो नही है...... प्लीज़ "
" ओके, आराम से बैठो, डरो मत " कहने के साथ अंकिता गॅलरी की तरफ बढ़ी ही थी कि लड़की बोली," इस तरह देखना कि उसे एहसास ही ना हो कि तुम उसे ही देख रही हो, ये एहसास होते ही वो समझ जाएगा कि मैं तुम्हारे फ्लॅट मे हू "
" चिंता मत करो " कहने के बाद अंकिता बाहर निकल गयी.
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जिस बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर पर अंकिता का फ्लॅट था, उसके गेट पर पहुचि ही थी कि ठीक सामने, सड़क पर खड़े आदमी पर नज़र पड़ते ही समूचे जिस्म मे झुरजुरी-सी दौड़ गयी.
उसने ठीक वैसे ही कपड़े पहन रखे थे जैसे लड़की ने बताए थे.
धारियो वाली शर्ट, डेनिम की जींस और कॅप.
मगर उसके हाथ मे रेवोल्वेर नही था, बल्कि सिगरेट थी.
इधर-उधर देखता बार-बार कश लगा रहा था.
बिल्डिंग के गेट की तरफ भी देखा.
अंकिता ने घबराकर खुद को तुरंत अधखुले चॅनेल के पीछे छुपा लिया, हालाँकि ऐसा ना भी करती तो वो उसे देख नही सकता था क्योंकि जहाँ वो थी, वहाँ अंधेरा था जबकि खुद वो एक स्ट्रीट लाइट के नीचे खड़ा था.
वो इस तरह उस शख्स को देखती रही जैसे चुहिया बिल से मुँह निकलकर कमरे मे घूम रही बिल्ली को देख रही हो और साथ ही महसूस करती रही, अपने जिस्म मे अजीब-सी सनसनी.
आसपास कोई और नही था.
उस वक़्त तो अंकिता के होश ही उड़ गये जब उसे बिल्डिंग के मैंनगटे की तरफ आते देखा.
रोंगटे खड़े हो गये थे उसके.
जी चाहा - चीख पड़े.
ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर लोगो को इकहट्टा कर ले मगर जेहन ने कहा," ये बेवकूफी होगी, पता नही कोई आएगा भी या नही मगर उसे ज़रूर पता लग जाएगा कि मैं यहाँ हू "
साँस रोके वो चॅनेल की आड़ मे खड़ी रही.
बल्कि ये कहा जाए तो ज़्यादा मुनासिब होगा कि साँस तो उसकी खुद ही रुक गयी थी क्योंकि अब वो उससे सिर्फ़ 3 कदम की दूरी पर था.
अधखुले चॅनेल के उस तरफ.
चॅनेल के इस तरफ आ जाता तो उसे देख लेता और कम्बख़्त देखने की कोशिश भी तो चॅनेल के अंदर ही कर रहा था.
जैसे किसी को ढूँढ रहा हो.
अंकिता का ज़ोर-ज़ोर से धड़कता दिल आवाज़ पैदा करने लगा था और वो डर रही थी की कही वो इस आवाज़ को सुन ना ले.
समझ सकती थी कि वो उसी लड़की को ढूँढ रहा है.
फिर, उसने सिगरेट का अंतिम सिरा ज़मीन पर डाला और उसे जूते से कुचल दिया.
कुछ देर वही खड़ा रहा, जैसे सोच रहा हो कि बिल्डिंग के अंदर दाखिल होना चाहिए या नही.
अंकिता की साँस मे साँस तब आई जब वो वापिस सड़क की तरफ चल दिया.
आँखे उसी पर टिकी थी.
सड़क पर पहूचकर उसने इधर-उधर देखा.
एक ऑटो की आवाज़ आई.
उसने हाथ दिया.
ऑटो रुका.
वो उसमे बैठा और ऑटो आगे बढ़ गया.
अंकिता ऐसे अंदाज मे पलटी जैसे की बहुत बड़े ख़तरे से बच गयी हो.
दौड़ती हुई फ्लॅट मे पहुचि.
मैन गेट बंद किया.
जिस वक़्त ड्रॉयिंग रूम मे पहुचि, उस वक़्त खुद उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थी, उसकी हालत देखकर माँ और लकड़ी ने एक साथ पूछा," क्या हुआ "
" वो था " अंकिता धम्म से सोफे पर बैठ गयी.
" माइ गॉड " लड़की और ज़्यादा डर गयी," वो मेरा पीछा नही छोड़ेगा, ऐसा नही समझती थी मैं उसे "
" डरो मत, वो ऑटो मे बैठकर जा चुका है "
" ऑटो मे बैठकर, उसके पास तो अपनी गाड़ी है "[/color]
विजय ने पूछा," किसने किया "
" मुझे नही मालूम "
" नही " एक अन्य आदमी बोला," मेरे ख़याल से उसने इन भाई साहब पर हमला नही किया, उसने किसी पर भी हमला नही किया, अजीब पागल आदमी था साला, उसने तीनो गोलिया उपर की तरफ चलाई थी, पता नही तीसरी कैसे इन भाई साहब की गाड़ी के शीशे मे लग गयी "
" कहाँ गया "
" उधर गया है " एक अन्य व्यक्ति ने विजय की कोठी के दाई तरफ वाली उस गली की तरफ इशारा किया जो एक कीलोमेटेर बाद दूसरे हाइवे से मिल जाती थी.
" पैदल था क्या "
" अजी नही, बाइक पर था "
" किसी ने रोका नही उसे "
" अजी कौन रोकता साहब, उसके हाथ मे रेवोल्वेर था "
एक अन्या बोला," और दनादन गोली चला रहा था "
" किसी ने देखा उसे "
एक साथ काई हाथ उठे," मैंने देखा था "
" लंबे लाल बाल थे उसके, लाल ही दाढ़ी.... "
" हम गच्चा खा गये दिलजले " अधूरी बात सुनकर ही विजय चिल्लाया और साथ ही कोठी की तरफ दौड़ लगा दी.
आनन-फानन मे वे उस कमरे के पास पहुचे परंतु दरवाजे पर ही ठिठक कर रह गये, विकास ने अंदर घुसने की कोशिश की थी किंतु विजय ने पीछे से कॉलर पकड़कर वापिस खींचते हुवे कहा," कोई फ़ायदा नही दिलजले, किस्सा ख़तम हो चुका है "
सॉफ नज़र आ रहा था कि कुंडो मे अब चीकू नही, उसकी लाश लटकी हुई थी.
किसी तेज धारदार हथियार से उसकी गर्दन पर वार किया गया था जिसके कारण आधी गर्दन कट गयी थी.
खून से लथपथ सिर और चेहरा गर्दन की आधी खाल पर झूल रहा था, विकास की नज़र अभी लाश पर ही थी जबकि विजय जूतो के उन निशानो को देख रहा था जो फर्श पर पड़े खून पर बने थे.
फिर पलटकर अपने पीछे यानी कि कमरे से बाहर देखा, वहाँ भी उन्ही जूतो के निशान थे.
वे हत्यारे के वापसी के निशान थे.
विजय ने तेज़ी से उनका पीछा करना शुरू कर दिया.
अब विकास भी उसके साथ था.
निशान हल्के पड़ते जा रहे थे और कोठी की चारदीवारी तक पहुचते-पहुचते काफ़ी हल्के पड़ गये थे, खून का एक धब्बा 6 फुट उँची बाउंड्री वॉल के शीर्ष पर भी था.
उस धब्बे से बचता हुआ विजय एक ही जंप मे बाउंड्री वॉल पर चढ़ा और उसके पीछे देखा, वो सर्विस लेन थी.
बस एक जगह और धब्बा नज़र आया.
उससे आगे कोई निशान नही था, विजय ने बड़बड़ाकर जैसे खुद से ही कहा," यहाँ से वो अपनी बाइक पर सवार हो गया "
विकास सदमे की-सी अवस्था मे था, मुँह से एक ही सेंटेन्स निकला," बड़ा जबरदस्त धोखा खाया है गुरु "
विजय ने उसकी बात पर ध्यान नही दिया.
वो खुद भी भन्नाया हुआ नज़र आ रहा था, जेब से मोबाइल निकाला और विकास से दूर, लॉन के दूसरे कोने की तरफ जाते हुए वो नंबर लगाया जो धनुष्टानकार के पास रहता था.
कॉल रिसीव की गयी.
बोल तो सकता नही था मोंटो.
'ची-ची' की आवाज़ सुनाई दी.
विजय ने बहुत ही राज़दाना लहजे मे कहा," हमारी बात ध्यान से सुनो मोंटो प्यारे, हम तुम्हे बहुत ही इंपॉर्टेंट काम सौंप रहे है, वो काम आज रात ही करना है, कल सुबह हमे रिपोर्ट चाहिए "
धनुष्टानकार की 'ची-ची' सुनाई दी, जिसका इस वक़्त मतलब था," काम बताइए, मैं तैयार हू "
विजय ने बहुत धीरे-धीरे कुछ कहना शुरू किया.
पूरी बात कहने के बाद पूछा," समझ गये "
पुनः 'ची-ची' की आवाज़ सुनाई दी, जिसका इस बार मतलब था," समझ गया "
" ओके, सुबह मिलते है " विजय ने फोन काट दिया.
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अशोक बिजलानी की मौत के बाद आज चौथे दिन भी अंकिता खुद को नॉर्मल नही कर पाई थी.
रात के 11 बजे थे.
वो गुम्सुम सी अपने फ्लॅट के ड्रॉयिंग रूम मे सोफे पर पसरी हुई थी, माँ किचन मे थी की अचानक बेल बजी.
उसकी तंद्रा टूटी.
माँ ने किचन मे से ही कहा," देखो तो बेटी कौन है "
पर बेल बजाने वाला तो जैसे स्विच पर अंगूठा रखकर ही भूल गया था, वो लगातार बजे जा रही थी.
" अरे कौन है, पागल हो गया है क्या "
इधर, लगातार बजे चले जा रही बेल ने तो जैसे अंकिता पर भी झुनझूलाहट सवार कर दी.
लघ्भग दौड़ती हुई दरवाजे पर पहुचि और उसे खोलती हुई चिल्लाई," पागल हो क्या "
" म...मुझे बचा लो, मुझे बचा लो बेहन " ख़ौफ़ मे डूबे इन शब्दो के साथ बुरी तरह आतंकित एक लड़की अंकिता को लघ्भग धक्का सा देती अंदर आई और अंकिता अभी कुछ समझ भी नही पाई थी कि आगंतुक लड़की ने दरवाजा अंदर से बंद करके ना केवल चिटकनी चढ़ा दी बल्कि कीहोल से बाहर झाँकने लगी.
वो रो रही थी.
जिस्म काँप रहा था.
बाल बिखरे हुवे थे.
कपड़ो पर जगह-जगह मिट्टी लगी हुई थी, इतना ही नही, टॉप और जीन्स जगह-जगह से फटे हुवे थे.
कयि जगह छोटे लगी हुई थी उसे.
जख़्मो से खून बह रहा था.
एक चोट मस्तक पर भी थी.
" क्या हुआ " अंकिता चिल्लाई," कौन हो तुम "
" स..श...शी " उसने अपने होंठो पर उंगली रखकर करुणा भरे अंदाज मे अंकिता से चुप रहने के लिए कहा और पलटकर फिर कीहोल के पार झाँकने लगी.
वो अब भी काँप रही थी.
अंकिता ने फिर कहना चाहा," अरे, बात क्या.... "
" प...प्लीज़ बेहन " वो उसकी तरफ पलट-ती हुई धीमे स्वर मे बोली," धीरे बोलो, उसने सुन लिया तो यही आ जाएगा "
" कौन "
" मैं सब बता दूँगी पर प्लीज़, अभी चुप रहो "
तब तक अंकिता की माँ भी वहाँ पहुच चुकी थी.
उसने चौंकते हुए कहा था," कौन हो तुम, क्या हुआ "
" प्लीज़...प्लीज़ आंटी " कहने के साथ उनका तो उसने मुँह ही दबा दिया था, रोती हुई बोली," वो मेरे पीछे पड़ा है, मुझे नही पता था कि वो इतना गंदा है, मैं तो उसकी बहुत इज़्ज़त करती थी "
अंकिता ने पूछा," किसकी बात कर रही हो "
" अच्छा यहाँ आइए " वो छोटी-सी गॅलरी पार करके ड्रॉयिंग रूम मे दाखिल होती हुई बोली," वहाँ, दरवाजे के पास नही, वो बाहर हुआ तो मेरी आवाज़ सुन लेगा "
अंकिता और उसकी माँ कुछ समझ नही पा रही थी.
बौखलाई सी उसके पीछे लपकी.
ड्रॉयिंग रूम मे पहुचने तक भी वो लड़की बुरी तरह काँप रही थी, इतना ही कह सकी," व..वो मेरा बॉस है "
" कौन " अंकिता ने पूछा.
" पिता समान समझती थी लेकिन उसने.... "
तभी, लड़की की जीन्स की जेब मे पड़ा मोबाइल बजा.
उसने काँपते हाथ से ही नही बल्कि काँपते जिस्म के साथ जेब से मोबाइल निकाला और स्क्रीन पर नज़र डालते ही एक बार फिर चेहरे पर वही दहशत काबिज हो गयी जो पिच्छले कुछ क्षण मे कम हुई थी, 3 ही शब्द निकले मुँह से," व...वही है "
अंकिता और उसकी माँ की समझ मे जब कुछ आ ही नही रहा था तो कहती क्या.
लड़की इस तरह घबराई हुई थी जैसे हिरनी अपने आसपास शेर की मौजूदगी महसूस करके घबराती है.
उसने उसी हालत मे पूछा," क...क्या करू, क्या करू "
" मुझे क्या पता " अंकिता बोली.
बेल लगातार बजे जा रही थी.
उसने फोन काट दिया.
फिर स्विच ऑफ ही कर दिया.
" मुझे तो ये किसी ख़तरे मे लगती है " अंकिता की माँ की समझ मे हालात जैसे कुछ-कुछ आ रहे थे," इसे बिता अंकिता, मैं पानी लेकर आती हू "
कहकर वो किचन मे चली गयी.
अंकिता को लड़की की प्राब्लम का थोड़ा-थोडा एहसास होने लगा था, उसने उसके दोनो कंधे पकड़कर सोफे पर बिठाते हुवे कहा," डरो मत, आराम से बैठो "
वो बैठ तो गयी लेकिन अब भी काँप रही थी, बार-बार गॅलरी की तरफ इस तरह झाँक रही थी जैसे किसी के आने का अंदेशा हो.
" दरवाजा बंद है " अंकिता ने कहा," कोई नही आ सकता "
लड़की ने अंकिता की तरफ ऐसी नज़रो से देखा जैसे पूछ रही हो कि क्या वो उस बात पर यकीन कर सकती है.
तभी, अंकिता की माँ पानी से भरा गिलास ले आई, बोली," ले बेटा, पानी पी ले "
" नही आंटी "
" पी ले बेटा, घबराहट दूर होगी "
लड़की ने गिलास लिया, मुश्किल से दो घूँट पीने के बाद वापिस सेंटर टेबल पर रख दिया, अंकिता से बोली," क्या तुम मेरा एक काम कर सकती हो बेहन "
" क्या "
" ज़रा बाहर देख लो, वो बिल्डिंग के आस-पास तो नही है "
" कौन "
" 50 साल का है, लंबा, हॅटा-कट्टा, धारियो वाली शर्ट, डेनिम की जीन्स और सिर पर कॅप पहने हुए है, हाथ मे रेवोल्वेर भी हो सकता है "
" र..रेवोल्वेर " माँ-बेटी के होश उड़ गये.
" ह..हां, उसी से तो धमकाया था उसने मुझे, कहने लगा कि अगर उसकी बात नही मानी तो जान से मार देगा "
" क्या बात मनवानी चाहता था वो तुमसे "
" पहले देखकर तो आओ, वो आसपास तो नही है...... प्लीज़ "
" ओके, आराम से बैठो, डरो मत " कहने के साथ अंकिता गॅलरी की तरफ बढ़ी ही थी कि लड़की बोली," इस तरह देखना कि उसे एहसास ही ना हो कि तुम उसे ही देख रही हो, ये एहसास होते ही वो समझ जाएगा कि मैं तुम्हारे फ्लॅट मे हू "
" चिंता मत करो " कहने के बाद अंकिता बाहर निकल गयी.
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जिस बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर पर अंकिता का फ्लॅट था, उसके गेट पर पहुचि ही थी कि ठीक सामने, सड़क पर खड़े आदमी पर नज़र पड़ते ही समूचे जिस्म मे झुरजुरी-सी दौड़ गयी.
उसने ठीक वैसे ही कपड़े पहन रखे थे जैसे लड़की ने बताए थे.
धारियो वाली शर्ट, डेनिम की जींस और कॅप.
मगर उसके हाथ मे रेवोल्वेर नही था, बल्कि सिगरेट थी.
इधर-उधर देखता बार-बार कश लगा रहा था.
बिल्डिंग के गेट की तरफ भी देखा.
अंकिता ने घबराकर खुद को तुरंत अधखुले चॅनेल के पीछे छुपा लिया, हालाँकि ऐसा ना भी करती तो वो उसे देख नही सकता था क्योंकि जहाँ वो थी, वहाँ अंधेरा था जबकि खुद वो एक स्ट्रीट लाइट के नीचे खड़ा था.
वो इस तरह उस शख्स को देखती रही जैसे चुहिया बिल से मुँह निकलकर कमरे मे घूम रही बिल्ली को देख रही हो और साथ ही महसूस करती रही, अपने जिस्म मे अजीब-सी सनसनी.
आसपास कोई और नही था.
उस वक़्त तो अंकिता के होश ही उड़ गये जब उसे बिल्डिंग के मैंनगटे की तरफ आते देखा.
रोंगटे खड़े हो गये थे उसके.
जी चाहा - चीख पड़े.
ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर लोगो को इकहट्टा कर ले मगर जेहन ने कहा," ये बेवकूफी होगी, पता नही कोई आएगा भी या नही मगर उसे ज़रूर पता लग जाएगा कि मैं यहाँ हू "
साँस रोके वो चॅनेल की आड़ मे खड़ी रही.
बल्कि ये कहा जाए तो ज़्यादा मुनासिब होगा कि साँस तो उसकी खुद ही रुक गयी थी क्योंकि अब वो उससे सिर्फ़ 3 कदम की दूरी पर था.
अधखुले चॅनेल के उस तरफ.
चॅनेल के इस तरफ आ जाता तो उसे देख लेता और कम्बख़्त देखने की कोशिश भी तो चॅनेल के अंदर ही कर रहा था.
जैसे किसी को ढूँढ रहा हो.
अंकिता का ज़ोर-ज़ोर से धड़कता दिल आवाज़ पैदा करने लगा था और वो डर रही थी की कही वो इस आवाज़ को सुन ना ले.
समझ सकती थी कि वो उसी लड़की को ढूँढ रहा है.
फिर, उसने सिगरेट का अंतिम सिरा ज़मीन पर डाला और उसे जूते से कुचल दिया.
कुछ देर वही खड़ा रहा, जैसे सोच रहा हो कि बिल्डिंग के अंदर दाखिल होना चाहिए या नही.
अंकिता की साँस मे साँस तब आई जब वो वापिस सड़क की तरफ चल दिया.
आँखे उसी पर टिकी थी.
सड़क पर पहूचकर उसने इधर-उधर देखा.
एक ऑटो की आवाज़ आई.
उसने हाथ दिया.
ऑटो रुका.
वो उसमे बैठा और ऑटो आगे बढ़ गया.
अंकिता ऐसे अंदाज मे पलटी जैसे की बहुत बड़े ख़तरे से बच गयी हो.
दौड़ती हुई फ्लॅट मे पहुचि.
मैन गेट बंद किया.
जिस वक़्त ड्रॉयिंग रूम मे पहुचि, उस वक़्त खुद उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थी, उसकी हालत देखकर माँ और लकड़ी ने एक साथ पूछा," क्या हुआ "
" वो था " अंकिता धम्म से सोफे पर बैठ गयी.
" माइ गॉड " लड़की और ज़्यादा डर गयी," वो मेरा पीछा नही छोड़ेगा, ऐसा नही समझती थी मैं उसे "
" डरो मत, वो ऑटो मे बैठकर जा चुका है "
" ऑटो मे बैठकर, उसके पास तो अपनी गाड़ी है "[/color]