desiaks
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बारह बजते ही पटाखे छूटने लगे । नया साल शुरू हो गया था, आतिशबाजी और पटाखों के साथ युवक-युवतियों के झुंड सड़कों पर आ गये थे, रोमेश ने जू बीच से मोटर साइकिल स्टार्ट की, वह अब भी उसी गेटअप में था । एक टेलीफोन बूथ के सामने उसने मोटर साइकिल रोकी ।
बूथ में घुस गया और जनार्दन नागारेड्डी का फोन नम्बर डायल किया । फोन बजते ही उसने कोड बोला । कुछ क्षण बाद ही जे.एन. फोन पर था ।
"हैलो, जे.एन. स्पीकिंग ! कौन बोल रहा है ?"
"नया साल मुबारक ।"
"तुमको भी मुबारक ।" जे.एन. ने उत्तर दिया, "आवाज पहचानने में नहीं आ रही है, कौन हो भई ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल । "
"क्या बोला ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल ।"
दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर जे.एन. बोला, "मजाक छोड़ो भाई, अभी बहुत से लोगों की बधाई आ रही है, उनका भी तो फोन सुनना है ।"
"मैं ज्यादा वक्त नहीं लूंगा एक्स चीफ मिनिस्टर ! मैं यकीनी तौर पर तुम्हारा होने वाला कातिल ही बोल रहा हूँ । जल्दी ही मैं तुम्हें तुम्हारी मौत की तारीख भी बता दूँगा । अभी मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए पोशाक खरीदी है, बस यही इत्तला देनी थी ।"
उसके बाद रोमेश ने फोन काट दिया ।
उसके बाद वह तेजी से अपने फ्लैट की तरफ रवाना हो गया ।
☐☐☐
नया साल शुरू हो गया था । रोमेश अब अपने फ्लैट पर तन्हा रहता था, वह अपने परिचितों में से किसी का फोन नहीं सुनता था । सुबह ही निकल जाता था और देर रात तक घर लौटता था । रोमेश ने फिर वही लिबास पहना और मोटर साइकिल लेकर सड़कों पर घूमने लगा । जहाँ वह रुकता, लोग हैरत से देखते, रास्ते में उससे परिचित भी टकरा जाते थे । मुम्बई में दिन तो गरम होता ही है, उस पर कोई ओवरकोट पहनकर निकले तो अजूबा ही होगा ।
रोमेश अजूबा ही बनता जा रहा था ।
दो जनवरी को वह विक्टोरिया टर्मिनल पर घूम रहा था । घूमते-घूमते वह फुटपाथ पर चाकू छुरी बेचने वाले की एक दुकान पर रुका ।
"ले लो भई, ले लो । रामपुरी से लेकर छप्पनछुरी तक सब माल मिलता है ।" चाकू छुरी बेचने वाला आवाज लगा रहा था ।
"ऐ !" रोमेश ने उसे आवाज़ दी ।
"आओ साहब, बोलो क्या मांगता ? किचन की छुरी या चाकू, छोटा बड़ा सब मिलेगा ।"
"रामपुरी बड़ा, तेरह इंच से ऊपर ।"
"समझा साहब ।" छुरी बेचने वाले ने पास खड़े एक लड़के को बुलाया, "करीम भाई के जाने का, बोलो राजा ने बढ़िया वाला रामपुरी मंगाया, भाग के जाना ।"
लड़का भागकर गया और पांच मिनट से पहले आ गया, उसने एक थैला छुरी बेचने वाले को थमा दिया ।
"बड़ा चाकू, असली रामपुरी ! यह देखो, पसन्द कर लो ।"
रोमेश ने एक रामपुरी पसन्द किया ।
"यह ठीक है, कितने का है ?"
"पच्चहत्तर का साहब ! सेवन्टी फाइव ओनली ! कम ज्यादा कुछ नहीं, एक दाम ।"
"ठीक है, एक बिल बनाओ । उस पर हमारा नाम पता लिखो, रोमेश सक्सेना ।"
"अरे साहब, हम फुटपाथ का धन्धा करने वाला आदमी । अपुन के पास बिल कहाँ साब, बिल तो बड़ी दुकान पर बनता है ।"
"देखो राजा, राजा है ना तुम्हारा नाम ।"
"बरोबर साहब ।"
"हम तुमको सौ रुपया देगा, चाहे सादा कागज पर डुप्लीकेट बनाओ, कार्बन लगा के । कार्बन कॉपी तुम अपने पास रखना, उस पर लिखो राजा फुटपाथ वाले ने सेवण्टी फाईव में चाकू रोमेश को आज की तारीख में बेचा । मैं पच्चीस रुपया फालतू दूंगा ।"
"ये बात है साहब, तो हम बना देगा । मगर कोई लफड़ा तो नहीं होगा साहब ।"
"नहीं ।"
अब राजा कागज और कार्बन ले आया । जो रोमेश सक्सेना बोलता रहा, वह लिखता रहा, फिर कार्बन कॉपी अपने पास रखकर बिल रोमेश को दे दिया ।
"एक बात समझ में नहीं आया साहब ।" सौ का नोट लेने के बाद राजा बोला ।
"क्या ?"
"कच्चा बिल लेने के लिए आपने पच्चीस रुपया खर्च किया, ऐसा तो आप खुद बना सकता था ।"
"हाँ, मगर उस सूरत में गवाही देने कौन आता ।"
"गवाही, कैसा गवाही ?"
"देखो राजा, तुम्हारा यह रामपुरी बहुत खुशनसीब है । क्योंकि इससे एक वी.आई.पी. का मर्डर होने वाला है ।"
"क्यों मजाक करता साहब, मेरे को डराता है क्या ? इधर गुण्डे-मवाली लोग भी चाकू खरीदते हैं, लेकिन इस तरह मर्डर की बात कोई नहीं बोलता ।"
"वह गुण्डे-मवाली होंगे, जो कत्ल की वारदात करके छुपाते हैं । लेकिन मैं उस तरह का गुण्डा नहीं हूँ, वैसे भी मुझे बस एक ही खून करना है और वह खून इस रामपुरी से होगा ।" रोमेश ने रामपुरी खोलते हुए कहा, "इसीलिये मैंने बिल लिखवाया है, रामपुरी बरामद करने के साथ पुलिस को यह बिल भी मिल जायेगा । तब उसे पता चलेगा कि रामपुरी तुम्हारे यहाँ से खरीदा गया ।"
राजा के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं ।
"अदालत में यह रामपुरी तुझे दिखाया जायेगा, उस वक्त मैं कटघरे में खड़ा रहूँगा । तुम कहोगे, हाँ योर ऑनर, मैं इसे जानता हूँ, यह मशहूर वकील रोमेश सक्सेना है ।"
आसपास कुछ लोग जमा हो गये थे ।
"अरे यह तो मशहूर वकील रोमेश है ।" जमा होते लोगों में से कोई बोला ।
राजा के तो छक्के छूट रहे थे ।
"मेरे को पसीना मत दिलाओ साहब, कभी किसी वकील ने किसी का कत्ल किया है क्या ? यह तो फिल्म की स्टोरी है ।"
"नहीं, मैं तुम्हें अपने जुर्म का गवाह बनाने आया हूँ । दुकान छोड़कर भागेगा, तब भी पुलिस तुझे तलाश कर लेगी ।"
"पर मैंने किया क्या है ? "
"तूने वह चाकू मुझे बेचा है, जिससे मैं खून करूंगा । लेकिन तुझे कोई पनिशमेन्ट नहीं मिलेगा, तू सिर्फ गवाह बनकर अदालत में आयेगा ।"
"मुझे रामपुरी वापिस दे दो माई बाप, सौ के डेढ़ सौ ले लो ।" राजा गिड़गिड़ाने लगा ।
"नहीं, इससे ही मुझे खून करना है ।" रोमेश ने जोर से कहा, "तुम सब लोग भी सुन लो, मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना इस रामपुरी से कत्ल करने जा रहा हूँ ।"
"पागल हो गया, रास्ता छोड़ो भाई ।" भीड़ में से कोई बोला ।
"ओ आजू बाजू हो जाओ, कहीं तुममें से ही यह किसी का खून न कर दे ।"
रोमेश ने चाकू बन्द करके जेब में रखा, मोटर साइकिल पर किक लगा दी और फर्राटे के साथ आगे बढ़ गया ।
शाम ढल रही थी और फिर मुम्बई रात की बाहों में झिलमिलाने लगी ।
रोमेश घूमता रहा ।
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बूथ में घुस गया और जनार्दन नागारेड्डी का फोन नम्बर डायल किया । फोन बजते ही उसने कोड बोला । कुछ क्षण बाद ही जे.एन. फोन पर था ।
"हैलो, जे.एन. स्पीकिंग ! कौन बोल रहा है ?"
"नया साल मुबारक ।"
"तुमको भी मुबारक ।" जे.एन. ने उत्तर दिया, "आवाज पहचानने में नहीं आ रही है, कौन हो भई ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल । "
"क्या बोला ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल ।"
दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर जे.एन. बोला, "मजाक छोड़ो भाई, अभी बहुत से लोगों की बधाई आ रही है, उनका भी तो फोन सुनना है ।"
"मैं ज्यादा वक्त नहीं लूंगा एक्स चीफ मिनिस्टर ! मैं यकीनी तौर पर तुम्हारा होने वाला कातिल ही बोल रहा हूँ । जल्दी ही मैं तुम्हें तुम्हारी मौत की तारीख भी बता दूँगा । अभी मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए पोशाक खरीदी है, बस यही इत्तला देनी थी ।"
उसके बाद रोमेश ने फोन काट दिया ।
उसके बाद वह तेजी से अपने फ्लैट की तरफ रवाना हो गया ।
☐☐☐
नया साल शुरू हो गया था । रोमेश अब अपने फ्लैट पर तन्हा रहता था, वह अपने परिचितों में से किसी का फोन नहीं सुनता था । सुबह ही निकल जाता था और देर रात तक घर लौटता था । रोमेश ने फिर वही लिबास पहना और मोटर साइकिल लेकर सड़कों पर घूमने लगा । जहाँ वह रुकता, लोग हैरत से देखते, रास्ते में उससे परिचित भी टकरा जाते थे । मुम्बई में दिन तो गरम होता ही है, उस पर कोई ओवरकोट पहनकर निकले तो अजूबा ही होगा ।
रोमेश अजूबा ही बनता जा रहा था ।
दो जनवरी को वह विक्टोरिया टर्मिनल पर घूम रहा था । घूमते-घूमते वह फुटपाथ पर चाकू छुरी बेचने वाले की एक दुकान पर रुका ।
"ले लो भई, ले लो । रामपुरी से लेकर छप्पनछुरी तक सब माल मिलता है ।" चाकू छुरी बेचने वाला आवाज लगा रहा था ।
"ऐ !" रोमेश ने उसे आवाज़ दी ।
"आओ साहब, बोलो क्या मांगता ? किचन की छुरी या चाकू, छोटा बड़ा सब मिलेगा ।"
"रामपुरी बड़ा, तेरह इंच से ऊपर ।"
"समझा साहब ।" छुरी बेचने वाले ने पास खड़े एक लड़के को बुलाया, "करीम भाई के जाने का, बोलो राजा ने बढ़िया वाला रामपुरी मंगाया, भाग के जाना ।"
लड़का भागकर गया और पांच मिनट से पहले आ गया, उसने एक थैला छुरी बेचने वाले को थमा दिया ।
"बड़ा चाकू, असली रामपुरी ! यह देखो, पसन्द कर लो ।"
रोमेश ने एक रामपुरी पसन्द किया ।
"यह ठीक है, कितने का है ?"
"पच्चहत्तर का साहब ! सेवन्टी फाइव ओनली ! कम ज्यादा कुछ नहीं, एक दाम ।"
"ठीक है, एक बिल बनाओ । उस पर हमारा नाम पता लिखो, रोमेश सक्सेना ।"
"अरे साहब, हम फुटपाथ का धन्धा करने वाला आदमी । अपुन के पास बिल कहाँ साब, बिल तो बड़ी दुकान पर बनता है ।"
"देखो राजा, राजा है ना तुम्हारा नाम ।"
"बरोबर साहब ।"
"हम तुमको सौ रुपया देगा, चाहे सादा कागज पर डुप्लीकेट बनाओ, कार्बन लगा के । कार्बन कॉपी तुम अपने पास रखना, उस पर लिखो राजा फुटपाथ वाले ने सेवण्टी फाईव में चाकू रोमेश को आज की तारीख में बेचा । मैं पच्चीस रुपया फालतू दूंगा ।"
"ये बात है साहब, तो हम बना देगा । मगर कोई लफड़ा तो नहीं होगा साहब ।"
"नहीं ।"
अब राजा कागज और कार्बन ले आया । जो रोमेश सक्सेना बोलता रहा, वह लिखता रहा, फिर कार्बन कॉपी अपने पास रखकर बिल रोमेश को दे दिया ।
"एक बात समझ में नहीं आया साहब ।" सौ का नोट लेने के बाद राजा बोला ।
"क्या ?"
"कच्चा बिल लेने के लिए आपने पच्चीस रुपया खर्च किया, ऐसा तो आप खुद बना सकता था ।"
"हाँ, मगर उस सूरत में गवाही देने कौन आता ।"
"गवाही, कैसा गवाही ?"
"देखो राजा, तुम्हारा यह रामपुरी बहुत खुशनसीब है । क्योंकि इससे एक वी.आई.पी. का मर्डर होने वाला है ।"
"क्यों मजाक करता साहब, मेरे को डराता है क्या ? इधर गुण्डे-मवाली लोग भी चाकू खरीदते हैं, लेकिन इस तरह मर्डर की बात कोई नहीं बोलता ।"
"वह गुण्डे-मवाली होंगे, जो कत्ल की वारदात करके छुपाते हैं । लेकिन मैं उस तरह का गुण्डा नहीं हूँ, वैसे भी मुझे बस एक ही खून करना है और वह खून इस रामपुरी से होगा ।" रोमेश ने रामपुरी खोलते हुए कहा, "इसीलिये मैंने बिल लिखवाया है, रामपुरी बरामद करने के साथ पुलिस को यह बिल भी मिल जायेगा । तब उसे पता चलेगा कि रामपुरी तुम्हारे यहाँ से खरीदा गया ।"
राजा के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं ।
"अदालत में यह रामपुरी तुझे दिखाया जायेगा, उस वक्त मैं कटघरे में खड़ा रहूँगा । तुम कहोगे, हाँ योर ऑनर, मैं इसे जानता हूँ, यह मशहूर वकील रोमेश सक्सेना है ।"
आसपास कुछ लोग जमा हो गये थे ।
"अरे यह तो मशहूर वकील रोमेश है ।" जमा होते लोगों में से कोई बोला ।
राजा के तो छक्के छूट रहे थे ।
"मेरे को पसीना मत दिलाओ साहब, कभी किसी वकील ने किसी का कत्ल किया है क्या ? यह तो फिल्म की स्टोरी है ।"
"नहीं, मैं तुम्हें अपने जुर्म का गवाह बनाने आया हूँ । दुकान छोड़कर भागेगा, तब भी पुलिस तुझे तलाश कर लेगी ।"
"पर मैंने किया क्या है ? "
"तूने वह चाकू मुझे बेचा है, जिससे मैं खून करूंगा । लेकिन तुझे कोई पनिशमेन्ट नहीं मिलेगा, तू सिर्फ गवाह बनकर अदालत में आयेगा ।"
"मुझे रामपुरी वापिस दे दो माई बाप, सौ के डेढ़ सौ ले लो ।" राजा गिड़गिड़ाने लगा ।
"नहीं, इससे ही मुझे खून करना है ।" रोमेश ने जोर से कहा, "तुम सब लोग भी सुन लो, मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना इस रामपुरी से कत्ल करने जा रहा हूँ ।"
"पागल हो गया, रास्ता छोड़ो भाई ।" भीड़ में से कोई बोला ।
"ओ आजू बाजू हो जाओ, कहीं तुममें से ही यह किसी का खून न कर दे ।"
रोमेश ने चाकू बन्द करके जेब में रखा, मोटर साइकिल पर किक लगा दी और फर्राटे के साथ आगे बढ़ गया ।
शाम ढल रही थी और फिर मुम्बई रात की बाहों में झिलमिलाने लगी ।
रोमेश घूमता रहा ।
☐☐☐