Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री - Page 5 - SexBaba
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Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री

" अब क्या कहते हो गुरु " वापसी मे विकास ने पूछा.
" कहने को बचा ही क्या है दिलजले " कहते वक़्त विजय के होंठो पर मुस्कान थी," साबित हो गया कि सरकार दंपति बेकसूर है, उन्हे फँसाया गया था मगर ये केस यहाँ ख़तम नही होता बल्कि असल पूछो तो यहाँ से शुरू होता है, अब हमारे लिए ये पता लगाना चुनौती से कम नही है कि ये सब किसने और कैसे किया "
" किसने तो सामने है, कैसे का पता लगाना है "
" मतलब "
" किसने का तो एक ही जवाब है, लाल दाढ़ी वाला "
" क्या तुम्हे लगता है कि वो दाढ़ी असली है "
" एक पर्सेंट भी नही, दाढ़ी ही नही, बाल भी नकली है, वो उनके पीछे खुद को छुपाने की कोशिश कर रहा है "
" तो सामने कहाँ हुआ, उसकी दाढ़ी और विग नोचना भी तो एक बड़ी चुनौती है "
" मुझे मालूम है आप उसमे भी कामयाब हो जाएँगे और.... "
" और "
" मुझे लगता है कि आप कामयाब हो भी चुके है "
" ऐसा कैसे लगता है प्यारे "
" आप एक बार कह चुके है कि जब हत्यारे का चेहरा सामने आएगा तो सब चौंक पड़ेंगे, ठाकुर नाना भी "
" वो तो ऐसे ही छोड़ दी थी यार "
" मुझे नही लगता कि आप ऐसे ही छोड़ने वाले है "
" उस तक पहुच गये होते तो जंबूरा ना पकड़ लेते उसका "
" मुझे लगता है कि आप उससे खेल रहे है और इस खेल के पीछे भी कोई गहरा मकसद है "
" खेल तो लाल दाढ़ी वाला खेल रहा है हम से, एक बार फिर गच्चा दे गया वो हमे "
विकास चौंका," गच्चा दे गया, मतलब "
" पहला गच्चा उसने चीकू का मर्डर करके दिया और दूसरा गच्चा उत्सव के घर पर धमा-चौकड़ी मचाकर "
" मैं समझा नही गुरु "
" जगदीश चंडोला के घर जो कुछ भी हुआ, उसकी नाप-तौल करने के बाद हम इस नतीजे पर पहुचे है कि लाल दाढ़ी वाले ने हमे भटकाया और सही समय पर चंडोला के घर नही पहुचने दिया "
" मैं अब भी नही समझा "
" कपाल के कपाट खोलकर रखा करो दिलजले, हम सरकार-ए-आली के दडबे से सीधे चंडोला के दडबे के लिए निकले थे, रास्ते मे उत्सव के दडबे पर मची धमा-चौकड़ी की सूचना मिली और हम ने यू-तुर्न ले लिया, अब एहसास हो रहा है कि उस क्षण हम लाल दाढ़ी वाले के गच्चे मे आ गये थे, उत्सव के घर उसने वो धमा-चौकड़ी मचाई ही इसलिए थी कि हम वहाँ अपना टाइम वेस्ट करे और उस टाइम मे वो जगदीश चंडोला से ना केवल अंगूठी और चैन निकलवा ले बल्कि ये बयान देने के लिए भी तैयार कर ले कि लाश पर उसकी नज़र स्वाभाविक रूप से पड़ी थी, ये बात अलग है कि वो अपने दोनो प्रयासो मे से किसी मे भी कामयाब नही हो सका, जब उसे लगा कि चंडोला हमारे सामने ठहर नही पाएगा, हम उससे हक़ीकत उगलवा लेंगे, तो उसने उसका ख़ात्मा करने का फ़ैसला किया मगर दुर्भाग्य से, अपनी पूरी कोशिश के बावजूद उसमे भी सफल नही हो सका "
" क्या आपका मतलब ये है कि उत्सव के घर उसने जो कुछ किया उसका मकसद इसके अलावा और कुछ नही था कि हमे सही टाइम पर चंडोला के घर पहुचने से रोके "
" तुम्हारे बच्चे जिए दिलजले "
" यानी कि वहाँ वो उस चीज़ की तलाश मे नही गया था जिसे उसने बिजलानी के ऑफीस मे ढूँढने की कोशिश की थी "
" वो सिर्फ़ नाटक था " विजय ने एक ठंडी साँस भरते हुए कहा था," अब बस एक बात समझो, ये कि अभी सरकार-ए-आली को ये नही बताना है कि हम उन्हे पूरी तरह से बेगुनाह मान चुके है "
" पर हम जा तो वही रहे है "
" केवल अंगूठी और चैन दिखाने जा रहे है, उससे ज़्यादा कुछ नही कहना है और वे उन्हे दिखानी ज़रूरी है "
" क्यो "
" ताकि पुष्टि हो सके कि वे कान्हा की है या नही "
" इसमे अब शक ही क्या रह गया है गुरु, जगदीश बता ही चुका है कि वे उसे मीना की लाश से मिली "
" तुम मे और हम मे बस यही फ़र्क है, हम कन्फर्म बात को भी कन्फर्म करते है जबकि तुम कन्फर्म को कन्फर्म मान लेते हो "
विकास विजय की बात का मर्म ना समझ सका.
थोड़े गॅप के बाद बोला," एक बात कहूँ गुरु "
" हज़ार कहो मेरे प्यारे "
" मुझे आपसे जबरदस्त शिकायत है "
" उगलो "
" दूसरो की बात तो छोड़ ही दीजिए, आप मुझसे भी बाते छुपाते है, काई पायंट्स ऐसे है जिनमे अभी तक मेरा दिमाग़ उलझा हुआ है जबकि जानता हूँ कि आप उन्हे सुलझा चुके है "
" अपनी बात तो छोड़ ही दो दिलजले " विजय ने ठीक उसी की-सी टोन मे कहा," बहुत सी बाते तो ऐसी होती है जिन्हे हम खुद से भी छुपा लेते है, वे हमारे दिमाग़ के एक कोने को पता होती है लेकिन उन्हे दिमाग़ के दूसरे कोने तक नही पहुचने देते "
विकास को कहने के लिए कुछ नही सूझा.
करीब एक घंटे बाद वे राजन सरकार के फ्लॅट पर थे और जब उन्होने चैन और अंगूठी सरकार दंपति के सामने रखी तो वे ना केवल अस्चर्य से उच्छल पड़े बल्कि आँखो मे आँसू भी आ गये.
इंदु सरकार कह उठी," य...ये तो मेरे कान्हा की है "
" यही पुष्टि करना चाहते थे आपसे "
राजन सरकार ने पूछा," कहाँ से मिली "
" अभी ये नही बता सकते "
" हमे बताने मे क्या बुराई है " इंदु ने कहा.
" कोई अच्छाई भी नही है "
" मोबाइल नही मिला "
" नही "
" तुमने एक साल से गायब इन चीज़ो को ढूँढ निकाला तो मुझे विश्वास हो गया है कि हत्यारे को भी ढूँढ निकालोगे और एक दिन हमारे बेटे का असली कातुहल दुनिया के सामने होगा "
" मुझे तो पहले ही विश्वास था कि तुम इस केस का दूध का दूध और पानी का पानी कर दोगे " राजन सरकार गदगद नज़र आ रहा था," मेरे अलावा किसी को विश्वास ना था, ना इंदु को, ना बिजलानी को और ना ही निर्भय को, सबने एक ही बात कही थी, यही कि अब इस केस मे कोई कुछ नही कर सकता मगर मैंने किसी की ना सुनी और अपनी फरियाद लेकर तुम्हारे दरवाजे पर पहुच गया "
" अभी ऐसा कुछ भी नही हुआ है जनाब जिसके बदले मे आप ये सब कहने लगे "
" हुआ क्यो नही है, साल भर से गुम इन दोनो चीज़ो को भला कौन ढूँढ सकता था, किसी ने कोशिश तक नही की थी "
 
44

रात का वक़्त.
करीब 12 बजे.
हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था.
ऐसे मे, विजय एक ड्यूप्लेक्स मकान की चारदीवारी पर चढ़ा.
पैरो मे करपसोल के जूते थे.
हाथो मे दस्ताने.
जब वो ड्यूप्लेक्स की चारदीवारी से साइड गॅलरी मे कूदा तो उतनी आवाज़ भी नही हुई थी जितनी बिल्ली के कूदने से होती है.
दबे पाँव चलता एक खिड़की के नज़दीक पहुचा.
खिड़की मे लगा एसी ऑन था.
उसने खिड़की के पार देखने की कोशिश की मगर कामयाब ना हो सका क्योंकि खिड़की के पीछे मोटे कपड़े का परदा पड़ा हुआ था.
फिर उसने अपना कान खिड़की के काँच से लगाकर कमरे के अंदर की आवाज़े सुनने की कोशिश की लेकिन उसमे भी सफल ना हो सका क्योंकि अंदर कोई आवाज़ ना थी.
ऑन एसी पर ध्यान दिया.
उससे निकलने वाली गरम हवा को महसूस किया और अपनी जेब से प्लास्टिक की एक बहुत छोटी-सी शीशी निकाली.
शीशी मे कोई तरल पदार्थ था.
उसके ढक्कन पर सुई जितनी मोटी और काफ़ी लंबी चौन्च-सी लगी हुई थी, चौन्च को उसने पीछे की तरफ से एसी के अंदर डाला और ढक्कन कयि बार दबाया.
एसी मे तरल पदार्थ का स्प्रे हुआ.
शीशी वापिस जेब मे रखी और रेडियम डाइयल रिस्ट्वाच पर नज़र डाली, करीब 10 मिनिट तक शांत रहा.
10 मिनिट बाद पॅंट की बेल्ट और पेट के बीच मे फँसा प्लास्टिक का करीब एक फुट लंबा, मजबूत डंडा निकाला.
उसे खोला तो वो 2 फुट का बन गया.
डंडे से उसने ऑन एसी को कमरे की तरफ धकेलना शुरू किया.
हालाँकि ये काम आसान नही था.
उसे काफ़ी ताक़त लगानी पड़ रही थी और एसी अपने बॉक्स से सूत-सूत करके खिसक रहा था लेकिन अंततः वो एसी को कमरे मे गिराने मे सफल हो गया.
उतनी आवाज़ नही हुई थी जितनी उसके फर्श पर गिरने पर होनी चाहिए थी, विजय जानता था कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कमरे मे मोटा कालीन बिच्छा हुआ है और एसी उसी पर गिरा है.
डंडे को पुनः एक फुट का बनाकर उसने बेल्ट और पेट के बीच ठूंस लिया और इसी बीच ये जाँचता रहा कि कमरे के अंदर कोई हुलचल हुई है या नही, कोई हलचल ना पाकर एसी के बॉक्स के नीचे बैठा और उसके खाली स्थान से होता हुआ खिड़की के उस पार यानी कि कमरे के अंदर पहुच गया.
उस कमरे मे, जिसमे बस एक 'गुड नाइट' की रोशनी थी.
उस गुड नाइट की रोशनी जिसे मच्छरो से बचने के लिए एक प्लग मे लगाया गया था.
अंधेरे की अभ्यस्त विजय की आँखो के लिए उतनी रोशनी काफ़ी थी, उसने देखा, कालीन पर गिरा पड़ा एसी अब भी ऑन था और डबल बेड पर राजन सरकार और इंदु सरकार सोए पड़े थे.
कमरे मे अजीब सी स्मेल थी.
कुछ देर तक वो अपने स्थान पर खड़ा ये जाँचता रहा कि इंदु और राजन सरकार के जिस्मो मे कोई हलचल होती है या नही.
फिर, उनके करीब पहुचा.
बकायदा उन्हे झींझोड़कर देखा.
वे बेसूध थे.
विजय ने निसचिंतता के अंदाज मे जेब से टॉर्च निकाली और कमरे की तलाशी लेनी शुरू की.
पता नही किस चीज़ की तलाश थी उसे.
शायद वो चीज़ बहुत छोटी भी हो सकती थी क्योंकि उसने बेड की छोटी-छोटी दराजे भी खंगाल डाली थी.
राजन और इंदु सरकार के सिर के नीचे लगे तकिये ही नही बेड पर बिच्छे गद्दे के नीचे पड़ी चीज़ो को भी जाँच-परख लिया था.
उस कमरे मे इच्छित चीज़ नही मिली तो अंदर की तरफ से बंद चिटकनी खोलकर लॉबी मे पहुचा.
वहाँ, जहाँ डाइनिंग टेबल पड़ी हुई थी.
और फिर वहाँ की ही क्यू, पूरे फ्लॅट की ही तलाशी ले डाली.
कान्हा और मीना के कमरो की ही नही, किचन और बाथरूम की भी, पर जो उसे चाहिए था, वो नही मिला.
थक-हारकर वापिस सरकार दंपति के बेडरूम मे आ गया.
दरवाजे की चिटकनी बंद की.
टॉर्च वापिस रखी और जेब से एक बहुत ही मजबूत तार का बंड्ल निकाला, उस तार को उसने अभी तक ऑन एसी की बॉडी पर लपेटना शुरू किया और जब अच्छी तरह से लपेट चुका तो उसके दो सिरो को पकड़कर खिड़की से बाहर निकल गया.
अब उसने ज़ोर लगाकर तार को खींचना शुरू किया.
एसी क्योंकि भारी था.
खींचना आसान ना था लेकिन विजय भला हार मानने वाला कब था, जैसे निस्चय करके आया था कि ये काम करना ही था, टाइम तो लगा लेकिन अंततः एसी को उसके बॉक्स मे उसी तरह फिक्स करने मे कामयाब हो गया जैसे हटाया जाने से पहले था. तार को वापिस खींचकर बंड्ल की शकल दी और जेब मे रख लिया, संतुष्ट होने के बाद वो ड्यूप्लेक्स से बाहर आ गया.
मगर ज़्यादा दूर नही गया.
अगले 5 मिनिट के बाद वो ए-76 की गॅलरी मे था.
वहाँ एक खिड़की के पास पहुचा.
जेब से काँच काटने वाला चाकू निकाला.
काँच का 4 बाइ 4 इंच का टुकड़ा काटा.
उसे छोटे से वाक्कुम क्लीनर से अपनी तरफ खींचा और आराम से खिड़की के टॉप पर रख दिया.
हाथ अंदर डाला और खिड़की की चिटकनी खोल दी.
फिर खिड़की के माध्यम से कमरे मे दाखिल हो गया.
कमरा खाली था.
जेब से टॉर्च निकालकर उसका निरीक्षण किया और निरीक्षण ही क्यो, उस कमरे की भी तलाशी लेनी शुरू कर दी.
ठीक उसी अंदाज मे ए-76 को भी खंगाल डाला जिसमे ए-74 को खंगला था, उस कमरे मे भी गया जिसमे चंदानी दंपति सोए हुए थे लेकिन वहाँ उतनी लापरवाही से काम नही लिया, जितनी लापरवाही से सरकार दंपति के बेडरूम मे लिया था.
शायद उनकी नींद मे खलल पड़ जाने का डर था.
इच्छित वस्तु वहाँ भी नही मिली.
करीब एक घंटे बाद ए-76 से बाहर निकल आया.
पर आज रात, जाने क्या था विजय के दिमाग़ मे कि तेज़ी से चलता हुआ पार्क वाले हिस्से से बाहर निकला.
वाहान एक पेड़ के नीचे एक बाइक खड़ी थी.
उसे स्टार्ट करके सड़क पर आया और विभिन्न रास्तो से गुज़रता हुआ करीब ढाई बजे एक नाले के पुल के नीचे पहुचा.
बाइक छुपाकर वहाँ खड़ी की और तेज़ी से पैदल चलता एक ऐसी कॉलोनी मे पहुच गया जहाँ थ्री स्टोरी बिल्डिंग्स बनी हुई थी.
बिल्डिंग्स पर पड़े नंबर्स को पढ़ता हुआ आगे बढ़ता रहा.
उस बिल्डिंग के सामने ठितका जिस पर पी-172 लिखा हुआ था.
गर्दन उठाकर उसके थर्ड फ्लोर की तरफ देखा, अंदाज ऐसा था जैसे वही उसकी मंज़िल हो.
तभी, किसी लाठी के ज़मीन से टकराने की आवाज़ आई.
विजय को समझते देर ना लगी कि वो चौकीदार की लाठी की आवाज़ है, अगले पल वो उसे नज़र भी आ गया क्योंकि बिल्डिंग के चारो तरफ की गॅलरी उन स्ट्रीट लाइट्स से रोशन थी जो करीब 10 फुट उँची चारदीवारी के शीर्ष पर जगह-जगह लगी हुई थी.
विजय निसचिंत था कि चौकीदार उसे नही देख सकता क्योंकि उसने पहले से ही खुद को अंधेरे मे छुपा रखा था.
कुछ देर सोचा और फिर चारदीवारी के बाहर की तरफ उसके साथ-साथ चलता हुआ बिल्डिंग के पीछे पहुच गया.
अब उसे किसी ऐसी जगह की तलाश थी जहाँ से 10 फुट उँची चारदीवारी के उस तरफ पहुच सके.
काफ़ी आगे चलने पर एक पेड़ मिला.
वो पेड़ हालाँकि चारदीवारी के इधर यानी बाहर की तरफ था लेकिन उपर जाकर उसकी शाखाए चारदीवारी के उपर से होती हुई अंदर चली गयी थी.
उसे पेड़ पर चढ़ने और फिर उस शाखा तक पहुचने मे कोई दिक्कत नही हुई जो चारदीवारी के अंदर लटक रही थी.
अब उसे सिर्फ़ नीचे कूदना था मगर इस काम मे कोई जल्दबाज़ी नही की, खुद को पत्तो मे छुपाए ये जाँचा कि इस वक़्त चौकीदार इस साइड मे तो नही है.
लाठी के ज़मीन से टकराने की आवाज़ बहुत दूर से आई, बल्कि एक मोड़ के पीछे से आई थी, ये समझ मे आते ही वो नीचे कूद पड़ा कि रास्ता क्लियर है.
इस बार आवाज़ तो हुई थी क्योंकि उँचाई से कूदा था लेकिन इतनी नही कि किसी का ध्यान खींच सके.
अगले पल वो बूलिडिंग की तरफ दौड़ पड़ा और वहाँ रुका जहा रैन वॉटर पाइप था बल्कि वहाँ भी रुका कहा, बंदर की तरह उस पाइप पर चढ़ता चला गया.
इस किस्म के कामो का अभ्यस्त होने के कारण तीसरी मंज़िल के फ्लॅट की खिड़की पर पहुचने के बावजूद उसकी साँस ज़रा भी नही फूली थी, खिड़की पर काँच लगा हुआ नही था.
केवल ग्रिल लगी थी, बेहद मजबूत.
अंदर अंधेरा था लेकिन साँस लेने की आवाज़े आ रही थी, विजय समझ गया कि उसमे कोई सोया हुआ है अर्थात जो करना था, सावधानी से करना था ताकि सोया हुआ शख्स जाग ना जाए.
कोई औजार निकालने के लिए जेब मे हाथ डाला ही था कि लाठी की आवाज़ आई.
विजय समझ गया कि बिल्डिंग के चारो तरफ चक्कर लगा रहा चौकीदार इधर ही आ रहा है.
वो तेज़ी से पाइप पर चार स्टेप चढ़ा तथा खिड़की की छज्जी पर ना केवल उतर गया बल्कि उकड़ू होकर उसपर लेट गया.
हालाँकि चौकीदार के उपर देखने की कोई वजह नही थी फिर भी, विजय ने खुद को इतना सुरक्षित कर लिया था कि वो उपर देखता तो भी उसे नही देख पाता.
ज़मीन पर लाठी से ठक-ठक करता वो नीचे से गुजर गया.
विजय ने अपने जिस्म को तब हरकत दी जब चौकीदार एक मोड़ पार करके दूसरी तरफ जा चुका था.
इस बार उसने छज्जी से खिड़की पर पहुचने से पहले ही जेब से एक पेच्कस निकाल लिया था.
दोनो पैर पाइप पर अच्छी तरह जमाए उसने इतनी दक्षता से पेंच खोलने शुरू कर दिए कि ज़रा भी आहट ना हुई.
ग्रिल उन्ही पेंचो की मेहरबानी से लकड़ी की चौखट पर लगी हुई थी, हर पेंच को खोलकर वो सावधानी से छज्जी पर रखता रहा, कुल 18 पेंच खोलने पड़े उसे तब, पूरी की

पूरी ग्रिल को बड़े आराम से अलग कर के छज्जी पर रखी.
अगले ही पल, वो दबे पाँव कमरे के अंदर था.
सांसो की आवाज़ अब काफ़ी स्पष्ट थी.
खिड़की से थोड़ा परे हटकर टॉर्च का रुख़ छत की तरफ करके ऑन की, प्रकाश दायरा सीधा छत पर पड़ा और उसकी रोशनी मे उसने देखा कि एक डबल बेड पर दो लड़किया सोई हुई थी.
दोनो लगभग हमउम्र लग रही थी.
एक 25 साल की होगी तो दूसरी 24 की.
विजय ने टॉर्च की रोशनी उनकी तरफ नही घुमाई क्योंकि वैसा होने पर उनकी नींद उचाट जाने का ख़तरा था.
टॉर्च का रुख़ छत की तरफ ही किए बेड के करीब पहुचा और फिर जेब से रुमाल निकालकर पहले बड़ी लड़की के नथुनो के करीब ले गया और फिर छोटी लड़की के नथुनो के करीब.
बारी-बारी से दोनो ने ऐसे आक्षन किए थे जैसे थोड़ी बेचैनी हुई हो लेकिन फिर पूर्व की तरह साँसे लेने लगी थी.
विजय जानता था कि अब उनकी नींद आराम से नही उचटेगी, इसलिए रुमाल जेब के हवाले करके ज़रा भी हिचके बगैर टॉर्च के प्रकाश दायरे को चारो तरफ घुमाया.
कमरे मे एक डबल बेड के अलावा दो सोफा चेर, एक छोटी-सी सेंटर टेबल और एक ट्रॉल्ली थी जिसमे टीवी रखा हुआ था.
ट्रॉल्ली के टॉप और बेड पर किताबे बिखरी हुई थी.
विजय समझ सकता था कि किताबे उन्ही लड़कियो की है.
केवल एक अलमारी थी.
उसके कुंडे मे छोटा-सा ताला लटक रहा था.
विजय उसी की तरफ बढ़ा.
जेब से मास्टर-की निकालकर ताला खोला.
अलमारी मे लड़कियो के कुछ कपड़े और किताबे भरी पड़ी हुई थी.
विजय ने हर चीज़ को इस तरह चेक किया कि बाद मे कोई देखकर ये ना ताड़ सके कि उनमे किसी ने हाथ भी लगाया है.
इच्छित वास्तु नही मिली.
विजय ने अलमारी बंद करके ताला लगा दिया.
बाकी कमरे की तलाशी ली.
निराशा.
दरवाजे की तरफ बढ़ा.
उसे आहिस्ता से खोलकर लॉबी मे पहुचा.
वहाँ दो कमरो के दरवाजे और थे.
एक अंदर से बंद था, दूसरा लॉबी की तरफ से.
जो अंदर से बंद था, उसके पीछे से किसी के ज़ोर-ज़ोर से खर्राटे लेने की आवाज़े आ रही थी.
विजय उस दरवाजे की तरफ बढ़ा जो लॉबी की तरफ से बंद था, बगैर ज़रा भी आहट उत्पन्न किए उसका डंडाला सरकाया और कमरे मे दाखिल हो गया.
विजय के कानो ने उसे संदेश दिया कि ये कमरा खाली है.
अंदर कदम रखते ही टॉर्च ऑन की और प्रकाश दायरे को चारो तरफ घूमाकर कमरे का निरीक्षण किया.
वो स्टडी रूम मालूम पड़ता था क्योंकि उसमे सिर्फ़ राइटिंग टेबल, उसके साथ की कुर्सी, एक दीवान और एक आराम चेर थी.
दीवारो के साथ गोदरेज की कयि अलमारिया लगी हुई थी.
उनके पल्लो के एक हिस्से पर क्योंकि पारदर्शी काँच लगा हुआ था इसलिए सॉफ नज़र आ रहा था कि उनमे किताबे और कुछ फाइल्स बिखरी पड़ी हुई है, राइटिंग टेबल पर टेबल लॅंप के चारो तरफ भी किताबे ही बिखरी हुई थी.
विजय ने वहाँ की तलाशी लेनी शुरू की.
अलमारियो को मास्टर-के से खोलना पड़ा था और विजय की खोज एक अलमारी के सबसे अन्द्रूनी लॉकर पर जाकर ख़तम हुई.
वहाँ से एक डाइयरी, स्टेट बॅंक की एक पासबूक और एक चाबी मिली थी, कुछ देर तक वो चाबी को उलट-पुलट कर देखता रहा, फिर पासबूक को खोलकर देखा लेकिन उसकी आँखो मे असली चमक तब नज़र आई जब डाइयरी को खोलकर देखा.
उसके बाद तो जैसे वही, फर्श पर चिपक कर रह गया.
डाइयरी मे लिखे एक-एक शब्द को बहुत ध्यान से पढ़ रहा था वो और जैसे-जैसे पढ़ता जा रहा था दिमाग़ की नसें खुलती जा रही थी.
पूरी डाइयरी पढ़ने के बाद जेब से अपना मोबाइल निकाला और हर पेज की फोटो लेना शुरू किया.
फोटो लेने के बाद डाइयरी, पासबूक और चाबी यथास्थान रखी और लॉकर को इस तरह बंद कर दिया जैसे कि कभी खोला ही नही था.
लेकिन अब भी, जाने उसे किस चीज़ की तलाश थी.
वो तलाश भी उसी समय उसी अलमारी मे ख़तम हो गयी जब एक कपड़े की पोटली से लाल बालों वाली विग और दाढ़ी मिली.
एक चश्मा और एक मस्सा भी था.
करीब एक मिनिट तक उन्हे लगातार देखता रहा वो, जैसे उन सारी चीज़ो से कह रहा हो," बहुत मेहनत के बाद मिली हो "
फिर उन्हे भी उसी कपड़े मे पोटली-सी बनाकर यथास्थान रख दिया और अलमारी के पीछे झाँका.
वहाँ दो हॉकी रखी नज़र आई.
उन्हे उठाया, ध्यान से देखा और वापिस रखने के बाद जिस रास्ते से आया था उसी रास्ते से निकल गया.
इस तरह, कि कोई ये नही जान सकता था कि रात के वक़्त वहाँ कोई आया और इतनी खुराफात कर गया.
खिड़की पर ग्रिल भी उसने ज्यो की त्यो फिक्स कर दी थी.

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सुबह 8 बजे, विजय हड़बड़ा कर उठा.
हड़बड़ाने का कारण था, लगातार बजती मोबाइल की बेल.
उसने स्क्रीन पर नज़र डाली, होंठो पर चित्ताकर्षक मुस्कान दौड़ गयी, कॉल रिसीव करता बड़े ही फ्रेश मूड मे बोला," कहिए सरकार-ए-आली, सुबह-सुबह कैसे यादि आई हमारी वाली "
" क...कमाल हो गया विजय " राजन सरकार की आवाज़ मे उत्तेजना थी," कल रात मेरे फ्लॅट मे फिर कोई आया और सारे सामान को उलट-पुउलट करके चला गया, ऐसा लगता है जैसे उसने कोई चीज़ तलाश करने की कोशिश की हो "
" क्या चीज़ "
" नही पता "
" क्या आपकी कोई चीज़ गायब है "
" प्रथमदृष्टि तो नही लगता "
" तो फिर काहे की चिंता कर रहे है, लंबी तानकर सो जाइए और हमें भी सोने दीजिए, बड़ी तगड़ी वाली नींद आ रही है "
" क...क्या बात कर रहे हो विजय, ऐसे कैसे सो जाएँ " आवाज़ बता रही थी कि विजय की प्रतिक्रिया पर उसे जबरदस्त अस्चर्य हुआ है," हैरत की बात ये है कि जब हम सोकर उठे तो फ्लॅट उसी तरह अंदर से बंद था जिस तरह एक साल पहले 5 जून को बंद पाया गया था लेकिन कान्हा का मर्डर हो चुका था, हमारा कमरा भी अंदर से बंद था जबकि पूरे फ्लॅट की तलाशी ली गयी है, कान्हा, मीना के कमरे और किचन, बाथरूम तक की भी "
" आपका फ्लॅट ना हो गया हुजूर, कंपनी गार्डेन हो गया जिसमे चाहे जब, चाहे जो घुस जाता है और मटरगश्ती करके चला जाता है, यहाँ तक कि मर्डर करके भी निकल जाता है और फिर चारो तरफ से बंद पाया जाता है, ये तो कमालपाशा का जादू हो गया "

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" हां, अब तो जादू जैसा ही लग रहा है और.... "
" अटक क्यों गये, बोलिए "
" कल ही रात, कोई चंदानी के फ्लॅट मे भी घुसा है, वहाँ की तलाशी भी उसी तरह ली गयी है जैसे हमारे फ्लॅट की "
" और वो भी चारो तरफ से बंद पाया गया "
" शुरू मे तो बंद ही लग रहा था लेकिन जब उसने गहराई से छानबीन की तो एक खिड़की के काँच को कटा पाया, शायद उसने काँच काटा, उसमे से हाथ डालकर खिड़की खोली,

अंदर आया, तलाशी ली, और उसी रास्त से वापिस चला गया "
" उनका कुछ गायब हुआ "
" अभी तो कहता है, कुछ नही "
" जब कोई नुकसान ही नही हुआ है तो क्यो हलकान हो रहे है आप दोनो, बेड टी का टाइम है, पियो और मौज मनाओ, वैसे उससे भी कुल्ला कर सकते है जो आप शाम को पीते है "
" ये कैसे बाते कर रहे हो विजय " हैरत की ज़्यादती के कारण जैसे राजन सरकार का बुरा हाल हुआ जा रहा था," इतनी बड़ी घटना हो गयी और तुम कह रहे हो की चिंता ना करे, क्या एक ही रात मे दोनो के घर एक जैसी वारदात होना... "
" आप भी चेक कीजिए " विजय ने उसकी बात काट कर कहा था," कही उसी तरह काँच-वांच तो कटा हुआ नही है क्योंकि बंद फ्लॅट मे किसी के आने की बात ना तब जमी थी और ना अब जम रही है "
" चेक कर चुके है, वैसा कुछ नही हुआ है "
" सुबह-सुबह दिमाग़ जाम मत करो जनाब "
" दिमाग़ तो खुद हमारा ही जाम हुआ पड़ा है विजय "
" दर्द भी हो रहा है सिर मे "
" द...दर्द " इस शब्द के साथ राजन सरकार ने जैसे खुद ही को अब्ज़र्व किया, कुछ देर बाद आवाज़ उभरी," हां, हो तो रहा है थोड़ा-थोड़ा, हल्का भारीपन भी है "
" सरकारनी से मालूम कीजिए, क्या उन्हे भी ऐसा ही लग रहा है "
दूसरी तरफ से डाइरेक्ट मोबाइल पर कुछ नही कहा गया मगर राजन सरकार की आवाज़ सुनाई दी, वो वही सवाल इंदु सरकार से कर रहा था जो विजय ने उससे किया था.
इंदु सरकार की आवाज़ भी विजय के कानो तक पहुचि लेकिन इतनी स्पष्ट नही कि वो समझ पाता कि उसने क्या कहा है.
कुछ देर बाद मोबाइल पर अस्चर्य मे डूबी राजन सरकार की स्पष्ट आवाज़ सुनाई दी," वो कह रही है कि उसके सिर मे भी हल्का-हल्का दर्द है और भारीपन महसूस हो रहा है "
" वो मारा पापड वाले को " विजय चाहक उठा था," हम ने आपका मर्ज़ पकड़ लिया सरकार-ए-आली "
" मर्ज़ पकड़ लिया, बात समझ मे नही आई "
" वो बात ही क्या हुई जो बगैर समझाए सम्धन मे आ जाए "
" त...तुम आ रहे हो ना "
" नही " विजय ने टका-सा जवाब दिया.
जाहिर है, राजन सरकार हकबका गया.
मुँह से निकला," क....क्या मतलब "
" हम वहाँ आकर क्या धार देंगे "
" मैं तो सोच रहा था कि तुम सुनते ही चले आओगे "
" हम ने शायद आपसे पहले भी कहा था हुजूर कि हम सबकुछ करते है लेकिन वो नही करते जो सामने वाले ने सोचा होता है "
" अ..अब हम क्या करे "
" आपको कुछ भी करने की ज़रूरत नही है, अपने लांगेड़ू को भेज रहे है, जो करना होगा वो कर लेगा "
" ल...लांगेड़ू कौन "
" अपने दिलजले को भूल गये " कहने के बाद उसने जवाब का इंतजार किए बगैर संबंध विच्छेद कर दिया और विकास का मोबाइल लगाकर कहा," क्या हो रहा है दिलजले "
" जिम से आया हूँ "
" जिमखाने चले जाओ "
" मतलब "
" जब पूरी बात बताएँगे तो तुम भी यही कहोगे कि सरकार-ए-आली का फ्लॅट, फ्लॅट ना होकर जिमखाना बन गया है जिसमे जो चाहे जब चाहे चौके-छक्के मारकर पेविलियन मे लौट जाता है और फ्लॅट बंद का बंद रहता है, वही जाने के लिए कह रहे है "
" अब क्या हुआ "
विजय ने बताया तो खोपड़ी घूम गयी विकास की.
मुँह से निकला," ये हो क्या रहा है गुरु "
" वहाँ पहूचकर पता लगाओ मेरे शरलॉक होम्ज़ "
" आप नही पहुच रहे "
" नही "
" क्यो "
" हमे उससे ज़्यादा ज़रूरी काम है " कहने के बाद विजय ने विकास को अन्य कोई भी सवाल करने का मौका दिए बगैर फोन काट दिया और मोबाइल एक तरफ डालकर बेड से खड़ा हो गया.
उस लॅंडलाइन फोन से देश के वित्त मंत्री का मोबाइल मिलाया जिसका नंबर ना किसी डाइरेक्टरी मे था, ना ही किसी मोबाइल स्क्रीन पर आता था, कॉल रिसीव की जाने पर विजय ने सीक्रेट सर्विस के चीफ वाली विशिष्ट आवाज़ मे कहा," हम बोल रहे है सर "
" ओह, बोलिए चीफ "
" हम एक ख़ास केस पर काम कर रहे है " विजय ने शालीनता पूर्वक कहा," उसके तहत सीक्रेट रूप से किसी आदमी का बॅंक लॉकर चेक करना है "
" कोई अन्य किसी दूसरे का लॉकर कैसे खोल सकता है "
" आमतौर पर ऐसा नही हो सकता, इसलिए तो फोन करने की ज़रूरत पड़ी " विजय ने कहा," आप अपने विसेशाधिकारो का प्रयोग करके ऐसा करा सकते है "
" क्या उसमे से कुछ निकालना है "
" नो सर, केवल चेक करना है कि उसमे क्या रखा है, बाद मे अगर लॉकर धारक लॉकर खोलेगा भी तो उसे पता नही लगेगा कि उसे किसी और ने भी खोला था "
एक सेकेंड के लिए खामोशी छा गयी, जैसे कुछ सोचा जा रहा हो, वित्त मंत्री जानते थे की सीक्रेट सर्विस को ऐसे बहुत-से विसेश अधिकार प्राप्त है जो देश की किसी अन्य एजेन्सी को नही है.
पूछा गया," लॉकर कौन-से बॅंक मे है "
" स्टेट बॅंक, राजनगर, सिविल लाइन ब्रांच "
" नंबर "
" पता नही "
" लॉकर धारक का नाम "
विजय ने बता दिया.
थोड़े गॅप के बाद कहा गया," हम चेर्मन से बात करते है, आपके पास फोन आ जाएगा "
" हम एक मोबाइल नंबर एसएमएस कर देते है सर " विजय ने कहा," जो भी बात करे, उसी नंबर पर करे, वो नंबर इस मिशन पर काम कर रहे एजेंट का है "
" ओके " दूसरी तरफ से कहा गया.
विजय ने रिसीवर क्रेडेल पर रखा.
वापिस बेड के करीब जाकर मोबाइल उठाया.
अपना नंबर वित्त मंत्री के पास एसएमएस किया और चादर तानकर सो गया.

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विजय के मोबाइल पर पही ही बेल आई थी कि उसने पट्ट से आँखे खोल दी, स्क्रीन पर नज़र डाली, नया नंबर था, कॉल रिसीव करने के साथ कहा," बूचड़खाने से बोल रहे है "
" बूचड़खाना " दूसरी तरफ से चिहुक कर कहा गया.
" आप कहाँ से "
" मैं तो स्टेट बॅंक की सिविल लाइन ब्रांच से मॅनेजर बोल रहा हू, शायद ग़लत नंबर लग गया है "
" इस नंबर पर फोन करने के लिए उपरवाले ने कहा होगा "
असमंजस मे फँसी आवाज़ आई," जी "
" लॉकर खुलने की तैयारी पूरी है ना "
" जी, चेर्मन साहब का ऑर्डर है तो... "
" हम पधार रहे है " उसीकि बात पूरी होने से पहले ही विजय ने कहा और कनेक्षन काटकर रिस्ट्वाच पर नज़र डाली.
साढ़े 10 बजे थे.
और...ठीक साढ़े 11 बजे वो मॅनेजर के कमरे मे उसके सामने बैठा था, मॅनेजर ने अपनी पर्सनल दराज खोलकर मास्टर-की और कस्टमर-की निकालते हुए कहा," मेरे 30 साल के करियर मे ऐसा मौका पहले कभी नही आया "
" कैसा मौका "
" कि किसी का लॉकर किसी और ने खुलवाया हो, साथ ही कहा गया है कि ये बात टॉप सीक्रेट रहेगी "
विजय खामोश रहा.
पर मॅनेजर बेचैनी-सी महसूस कर रहा था, लॉकर रूम मे कदम रखते वक़्त बोला," बुरा ना मानें तो एक बात पूच्छू सर "
" पूछो "
" क...कौन है आप, आपको ऐसी पर्मिशन कैसे मिल गयी "
विजय को सख़्त लहजे मे कहना पड़ा," क्या उपर वाले ने तुम्हे ये निर्देश नही दिया कि हम से कोई सवाल नही करना है "
" स..सॉरी सर " कहने के बाद वो ऐसा चुप हुआ जैसे की मुँह मे ज़ुबान ही ना हो, दोनो चाबिया लगाकर लॉकर खोला और वहाँ से जाने लगा तो विजय ने कहा," यहीं जमे रहो

प्यारे, चौकीदार की तरह देखते रहो कि हम इसमे से कुछ सरका तो नही रहे है "
मॅनेजर रुक गया लेकिन बोला कुछ नही.
विजय ने देखा, लॉकर हज़ार के नोटो की गद्दियो से ठसाठस भरा हुआ था, एक सीलबंद लिफ़ाफ़ा भी रखा हुआ था उसमे, विजय ने लिफाफे को उलट-पलटकर देखा, एक तरफ रखा और

गॅडी गिननी शुरू कर दी, पूरी 100 गॅडी थी, यानी कि 1 करोड़ रुपया.
उसने लिफाफे पर ध्यान दिया और उस वक़्त मॅनेजर विजय को आँखे फाड़-फाड़कर देख रहा था जब विजय एक आल्पिन से लिफाफे को इस तरह खोलने की कोशिश कर रहा था कि उसकी सील पर बाल बराबर भी खरॉच ना आए.
उस वक़्त तो उसे लगा कि उसकी बगल मे खड़ा वो शख्स कोई जादूगर है जब उसने लिफाफे को बगैर सील से छेड़-छाड़ हुए खुलते देखा मगर कुछ बोला नही.
लिफाफे मे एक कागज था.
विजय ने उसे पढ़ना शुरू किया.
अंत तक पढ़ते-पढ़ते विजय जैसे शख्स के चेहरे पर अस्चर्य और वेदना के भाव उभर आए थे.
उसने अपने मोबाइल मे लेटर का फोटो लिया.
लेटर को वापिस लिफाफे मे डाला और सील सहित उसे इस तरह बंद कर दिया कि मॅनेजर के अलावा कोई नही जान सकता था कि उसे कभी खोला भी गया है.
सारी गॅडी लॉकर मे वैसे ही भर दी गयी जैसे छेड़ी जाने से पहले भरी हुई थी, लिफ़ाफ़ा उसी स्थान पर, उसी पोज़िशन मे रख दिया जिसमे रखा मिला था और लॉकर बंद कर दिया.
मॅनेजर उसे सी-ऑफ करने बॅंक के बाहर तक आया था परंतु जब से विजय की फटकार पड़ी थी तब से एक लफ़्ज भी नही बोला था, विजय ने उससे हाथ मिलाते हुवे कहा," तुम तो यार हमारी एक ही फटकार मे जीभ कटवा बैठे, इसे रफू करवा लेना "
मॅनेजर का मुँह खुलने के बावजूद उससे आवाज़ ना निकल सकी जबकि विजय उससे दूर जा चुका था.

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ड्राइव करते हुवे विजय ने पहला फोन अंजलि को लगाया और अपना परिचय देने के बाद बोला," हम ने पता लगा लिया है कि आपके पतिदेव ने स्यूयिसाइड क्यो की "
दूसरी तरफ से तुरंत पूछा गया," क...क्यो की "
" राजन सरकार साहब का घर देखा है "
" देखा है "
" फ़ौरन से पहले वहाँ पहुचिए, वही बताएँगे "
" वहाँ क्यो "
" पहुचने पर ही पता लगेगा "
" यानी आपने मान लिया है कि उन्होने स्यूयिसाइड ही की थी "
" सो तो है "
" र...रिप्पी को भी लाना है "
" ज़रूर " कहने के बाद उसने संपर्क काटा और तुरंत अंकिता को फोन करके बोला," अंकिता, हम ने तुम्हे, उत्सव और दीपाली को एक अड्रेस एसएमएस किया है "
" हां सर, एसएमएस तो मिला है लेकिन मैं समझ नही पाई कि आपने ऐसा क्यो किया है, मैं आपको फोन करने ही वाली थी "
" तुम्हे इसी वक़्त उस अड्रेस पर पहुचना है "
" कारण जान सकती हू सर "
" वहाँ पहुचोगी तो पता लग जाएगा " कहने के बाद विजय ने उससे भी संपर्क काटा और उत्सव को फोन लगाकर कहा," अगर अपनी ठुकाइ करने वाले यानी लाल दाढ़ी वाले के दर्शन करना चाहते हो तो उस अड्रेस पर पहुचो जो हम ने तुम्हे भेजा है "
दीपाली को फोन करने के बाद उसने इनस्पेक्टर राघवन को फोन किया," राजन सरकार के घर पहुचो प्यारे "
" अब क्या हुआ सर " उसने चौंकते हुए पूछा.
" हुआ ये है कि रात फिर कोई उनके फ्लॅट मे टहल गया और फ्लॅट बंद का बंद रहा मगर फिलहाल हम तुम्हे वहाँ इसलिए नही बुला रहे है बल्कि आईना दिखाने के लिए बुला रहे है "
" आईना दिखाने के लिए "
" कान्हा और मीना मर्डर केस मे सरकार दंपति को दोषी सिद्ध करके तुमने अपने जीवन की सबसे बड़ी बेवकूफी की "
" क...क्या कहना चाहते है आप "
" सपष्ट सुनना चाहते हो तो सुनो, वे कातिल नही है "
" आ...ऐसा हो ही नही सकता "
" हम बताएँगे कि कैसे हुआ "
" आपके हिसाब से कातिल कौन है "
" वहाँ पहुचो प्यारे, तुम्हारे सामने ही जंबूरा पकड़ेंगे उसका और उन सब सवालो के जवाब भी देंगे जिनके जवाब तुम्हे नही मिले थे "
कहने के बाद विजय ने रघुनाथ को फोन मिलकर जब उससे राजन सरकार के घर पहुचने को कहा तो स्वाभाविक रूप से उसने भी कारण पूछा, विजय ने कहा," तुम्हे याद होगा तुलाराशि, हम ने कहा था कि जब हम कान्हा और मीना के कातिल के चेहरे से नकाब नोचेंगे तो हमारे बापूजान भी तिगनी का नाच नाच जाएँगे "
" तो "
" आज हम वो काम करने के मूड मे है "
" यानी कि कातिल सरकार दंपति नही है "
" नही "
" ये तो अनहोनी-सी बात कह रहे हो "
" इस अनहोनी को आज तुम वहाँ होती देखोगे, बापूजान को भी ले आओ तो मज़ा आ जाए "
" ठाकुर साहब को, तुम उन्हे वहाँ चाहते हो "
" शायद हम ने ऐसा पहली बार चाहा है कि अपने कुपुत्र की कुपुत्रयनि को वे भी अपनी आँखो से देखे " कहने के बाद विजय ने उसके जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर फोन काट दिया.
अगला फोन हेमंत चंदानी को लगाया.
जब उसे सपत्नी ए-74 पहुचने के लिए कहा तो उसने बताया कि वे दोनो वही है, विजय ने कहा," सरकार-ए-आली को फोन दो "
राजन सरकार की आवाज़ उभरी तो विजय ने कहा," चाय-नाश्ते की तैयारी कर लो सरकार-ए-आली, कुछ देर बाद आपके फ्लॅट पर हम सहित काफ़ी मेहमान जुटने वाले है "
" हम समझे नही "
" उनमे कान्हा और मीना का हत्यारा भी होगा, आपके द्वारा उसे चाय-नाश्ता तो करना बनता है ना "
चिहुक उठा राजन सरकार," कान्हा और मीना का हत्यारा "
" जी "
" य...ये क्या कह रहे हो तुम, क...क्या कह रहे हो विजय " ख़ुसी की ज़्याददाती के कारण उसकी आवाज़ काँप उठी थी," क्या तुमने वाकाई ये केस हल कर लिया है, पकड़ लिया है उसे "
" अभी सिर्फ़ केस हाल किया है, पकड़ेंगे सबके सामने "
" स...सच, क्या तुम सच कह रहे हो विजय "
" दिलजले से बात कराओ "
" वो तो यहाँ से चला गया है "
" कोई बात नही, हम उससे बात कर लेते है, आप तैयारी करिए, ड्रॉयिंगरूम मे एक्सट्रा कुर्सिया डलवा देना " राजन सरकार को कुछ भी कहने का मौका दिए बगैर उसने फोन काट दिया.
विकास से संपर्क स्थापित करके कहा," कहाँ हो दिलजले "
" आपकी कोठी पर "
" सरकार-ए-आली के यहाँ से क्यो चले आए "
" कुछ समझ मे नही आ रहा है गुरु, एक और हैरत की बात ये है कि चंदानी के फ्लॅट की भी तलाशी ली गयी है, वहाँ कम से कम ये तो पता लग रहा है कि कोई फ्लॅट मे कैसे आया और गया मगर राजन अंकल के फ्लॅट का तो रहस्य ही समझ मे नही आ रहा, मैंने तो कोई ऐसा चोर रास्ता भी ढूँढने की कोशिश की जैसा बिजलानी के ड्रॉयिंगरूम और ऑफीस के
बीच था लेकिन वहां ऐसा भी... "
" सारे रास्ते नज़र आ जाएँगे दिलजले, वापिस वहीं पहुचो, हम भी पहुच रहे है "
" आपकी टोन तो ऐसी है जैसे बहुत कुछ जान गये हो "
" बहुत कुछ नही मेरी जान, सबकुछ जान गये है, सरकार-ए-आली के फ्लॅट मे शिखर सम्मेलन बुलाया है, वहाँ सबके सामने लाल दाढ़ी वाले की दाढ़ी नोचने वाले है, तमाशा देखना चाहते हो तो फ़ौरन से पहले पहुचो " कहकर उसने फोन काट दिया.
 
46

" दो दोस्त थे, दोनो का एक-दूसरे के घर मे निर्विघ्न आना-जाना था, उनमे से एक दोस्त इस वक़्त इस ड्रॉयिंगरूम मे मौजूद है " विजय ने कहना शुरू किया," बात डेढ़ साल पुरानी है, होली का दिन था, जो यहाँ मौजूद है वो अपने दोस्त के घर पहुचा, दोस्त उस दिन शहर मे नही था, बाहर गया हुआ था, दोस्त की पत्नी बाथरूम मे नहा रही थी, उसे मालूम नही था कि उसके पति का दोस्त आया हुआ है, नहाने के बाद वो यू ही, टवल लपेटे बाथरूम से बाहर आ गयी और पति के दोस्त को देखकर चौंक पड़ी "
" प...प्लीज़ मिस्टर. विजय " अंजलि कांपति आवाज़ मे कह उठी, उसका चेहरा शरम और ग्लानि से सुर्ख हो उठा था, कहती चली गयी वो," इस कहानी को आगे मत बढ़ाओ "
" आप समझ ही गये होंगे कि दोस्त की पत्नी कौन थी " कहने के साथ विजय ने वहाँ मौजूद अन्य लोगो की तरफ देखा.
राजन सरकार का चेहरा फक्क था, वो खुद को ये कहने से ना रोक सका," त...तुम्हे ये सब कहाँ से पता लगा "
विजय बोला," दोस्त का नाम भी जान गये होंगे आप "
" आगे बोलो " ठाकुर साहब ने हुकुम-सा दिया.
" सरकार साहब बिजलानी से होली खेलने गये थे लेकिन सामने पड़ गयी अंजलि " विजय ने अब बाक़ायदा नाम लेकर कहना शुरू किया," वो भी अर्धनग्न अवस्था मे, पानी से भीगी हुई, उस अवस्था मे औरत कुछ ज़्यादा ही आकर्षक नज़र आती है, ऐसी कि किसी भी मर्द की नीयत डोल जाए, सरकार साहब तो उस वक़्त वैसे भी होली की पिनाक मे थे, विस्की तो पिए हुए थे ही, थोड़ी सी भांग भी चढ़ा ली थी, तरंग मे सरकार साहब मुट्ठी मे रंग भरे 'होली है' कहते अंजलि पर झपट पड़े, अंजलि बचने के लिए दौड़ी, उस हड़बड़ी मे टवल गिर गया मगर सरकार साहब भला रुकने वाले कहाँ थे, उन्होने रंग लगाने के बहाने अंजलि को दबोच लिया "
रिप्पी और इंदु सरकार के चेहरो पर हैरत के भाव थे, रिप्पी ने अपनी मम्मी की तरफ और इंदु ने राजन की तरफ देखा था.
दोनो के चेहरे झुके हुए थे.
" शॉर्ट मे बताओ " ठाकुर साहब बोले.
" जैसे भी हुआ, वो हो गया जो नही होना चाहिए था, और जब हो चुका तो सरकार साहब बहुत पछताए, ग्लानि से मरे जा रहे थे, माफी माँग रहे थे, इन्होने अंजलि से रिक्वेस्ट की कि बिजलानी को कुछ ना बताए, अंजलि कुछ नही कह पा रही थी, बस रोए जा रही थी "
" इसमे मेरी मम्मा का क्या कसूर है " रिप्पी बुरी तरह भड़क गयी थी," अगर कोई आदमी ज़बरदस्ती पर उतर आए तो.... "
" हम उनका कसूर बता भी नही रहे बेबी " विजय ने उसकी बात काटकर कहा," सारा दोष सरकार साहब का था "
ड्रॉयिंग रूम मे खामोशी छा गयी.
रिप्पी राजन को ऐसी नज़रो से घूर रही थी जैसे कि उसे कच्चा चबा जाना चाहती हो जबकि इंदु की आँखो मे आँसू उमड़ आए थे, उसने कहा," मैं सोच भी नही सकती कि आप इतना गिर सकते है "
राजन सरकार सिर झुकाए बैठा रहा.
विजय ने आगे कहा," भले ही घंटो लगे लेकिन सरकार साहब अंजलि को ये समझाने मे सफल हो गये कि जो हुआ, वो इन्होने जानकार नही किया बल्कि दुर्घटनावश हो गया लेकिन इस बारे मे बिजलानी को बताने से कोई लाभी नही होगा बल्कि हानि ही होगी, कटुता बढ़ेगी, हो सकता है कि बात दुश्मनी तक पहुच जाए, सरकार वहाँ से तभी लौटे जब अंजलि के मुँह से कहलवा लिया कि वो बिजलानी को कुछ नही कहेंगी, शुरू मे उसने कहा भी नही पर वो घटना उसके दिल मे शूल की मानिंद चुभ रही थी और.... एक रात बिजलानी से ज़िक्र कर ही बैठी "
अंजलि के आँसू आँखो के किनारे तोड़कर नीचे गिरने लगे.
" वही हुआ जो स्वाभाविक था " विजय चालू रहा," बिजलानी भड़क उठा, वो तो उसी वक़्त सरकार को गोली से उड़ाने के लिए निकलने वाला था परंतु अंजलि ने हालात संभाले, समझाया कि इससे सारे समाज के सामने रुसवाई के अलावा क्या होगा, रुसवाई वाली बात बिजलानी की समझ मे आ गयी इसलिए शांत हो गया, अंजलि को लगा कि उसके पति ने समझदारी से काम लिया है मगर ये अंजलि की बहुत बड़ी ग़लतफहमी थी, हक़ीकत ये थी कि वो मन ही मन सरकार की करतूत का ऐसा बदला लेने का निस्चय कर चुका था, जिसके बाद वो कहीं का ना रहे "
" ये बात ग़लत है " एकाएक अंजलि ने चेहरा उपर उठाकर पुरजोर विरोध किया," उनके दिल मे बदला लेने जैसी कोई भावना कभी नही आई थी "
" आप ऐसा कैसे कह सकती है "
" क्योंकि मैं तुमसे हज़ार बार कह चुकी हूँ कि वो मुझसे कुछ नही छुपाते थे, अगर उनके दिल मे बदले की भावना आई होती तो सबसे पहले मुझे बताते "
" पति-पत्नी एक-दूसरे से कितने भी कुछ क्यो ना छुपाते हो लेकिन ऐसी बाते शेयर नही की जाती और बिजलानी ने भी नही की क्योंकि जानता था कि जो वो करने वाला है, उसके बारे मे अगर आपको बता दिया तो आप उसे नही करने देंगी "
" क्या किया उन्होने "
" उसने सरकार पर कभी भी ये जाहिर नही होने दिया कि अंजलि ने उसे सबकुछ बता दिया है, सामान्य संबंध बनाए रखे, वैसे ही जैसे इस घटना से पहले थे, सरकार ने राहत की साँस ली लेकिन... "
रघुनाथ ने पूछा," लेकिन.... "
" बिजलानी वकील था, तेज दिमाग़ था उसके पास, दिल मे सरकार के प्रति जहर भर चुका था, वो सरकार से बदला लेने का निस्चय कर चुका था, बदला भी ऐसा जो उसे ही नही, पूरे परिवार को पूरी तरह तबाह और बर्बाद कर दे, वो ये भी समझ चुका था कि ऐसा वो सरकार का दोस्त बना रह कर ही कर सकता है "
राघवन ने पूछा," तो क्या कान्हा और मीना की हत्या उसी ने की है "
" सुनते रहो प्यारे, ज़्यादा बेचैन होने की ज़रूरत नही है " विजय कहता चला गया," बिजलानी ने एक प्लान बनाया, किसी को भी घनचक्कर बना देने वाला प्लान, बता ही चुका हूँ, उसके पास एक तेज दिमाग़ था, सबसे पहले उसने मीना को पटाया "
" मीना को " इंदु कह उठी," वो उसके प्लान का हिस्सा थी "
" आप जानते ही है, वो एक ग़रीब औरत थी, हालाँकि पैसा सभी की कमज़ोरी होता है लेकिन ग़रीब की तो मजबूरी बन जाता है, बिजलानी ने उसे नौकरानी बनाकर सरकार के घर मे फिट कर दिया, फिर एक दिन उससे कहा,' किसी भी तरह कान्हा को अपने सेक्स जाल मे फँसा लो' मीना तो ये सुनकर उच्छल ही पड़ी, कहने लगी,' कहा मैं, मेरी उम्र, कहाँ कान्हा, वो तो मेरे बेटे जैसा है' मगर जैसा कि कह चुका हू, पैसा ग़रीब की मजबूरी होता है, वही हुआ, बिजलानी ने उसे इस काम के 5 लाख देने का वादा किया, साथ ही ये सब्जबाग भी दिखाया कि जब उसकी और कान्हा की वीडियो फिल्म सरकार को दिखाई जाएगी तो उसे खरीदने के लिए वो 50 लाख रुपये देने को तैयार हो जाएगा, उसमे से तेरा भी बराबर का हिस्सा होगा, मीना तैयार ना होती तो क्या करती "
" माइ गॉड " ये शब्द राजन सरकार के मुँह से निकले.
" उम्र के जिस दौर से कान्हा गुजर रहा था, उस उम्र के बच्चे को ऐसे जाल मे फँसना ज़रा भी मुश्किल नही होता, मीना उसके साथ गंदे जोक्स और मज़ाक शेयर करने लगी थी, किसी ना किसी बहाने से अपने अंगो का स्पर्श उसे करा देती थी, नादान कान्हा खेली-खाई मीना के जाल मे फँस गया "
सब सन्नाए हुए से विजय को सुन रहे थे.
" मीना ने बिजलानी को अपनी सफलता की सूचना दी और तब बिजलानी ने सेट किया 4/5 जून की रात का मास्टर प्लान "
" कैसा मास्टर प्लान " ठाकुर साहब ने पूछा.
" उस मास्टर प्लान के बारे मे बताने से पहले एक और किरदार के बारे मे बताना ज़रूरी है " विजय ने कहा," उस किरदार के बारे मे जिसके बगैर बिजलानी का प्लान सफल नही हो सकता था "
रघुनाथ ने पूछा," कौन है वो "
" इसी ड्रॉयिंगरूम मे मौजूद... "
" खबरदार, खबरदार जो किसी ने हिलने की जुर्रत की " ये ख़तरनाक शब्द इनस्पेक्टर राघवन के हलक से निकले थे.
बुरी तरह चौंक कर सबने उसकी तरफ देखा.
उसकी तरफ, जो ना केवल सोफे से खड़ा हो चुका था बल्कि अपने होल्सटर से रेवोल्वर निकाल कर विजय की तरफ तान भी चुका था, उसके चेहरे पर इस वक़्त कहर बरपा हुआ था, गुर्राकर विजय से पूछा," ये सब बाते तुझे कहाँ से पता चली "

" तुम तो यार हमारी उम्मीदो से पहले ही भड़क उठे " विजय ने अपने सदाबहार स्टाइल मे कहा था," पूरी बात तो सुन लो "
" मुझे नही सुननी तेरी बकवास " कहने के साथ उन सबको कवर किए दरवाजे की तरफ बढ़ते राघवन ने कहा था," अगर किसी ने मुझे रोकने की कोशिश की तो उसका भेजा उड़ा दूँगा "
विकास हरकत मे आने वाला था कि विजय ने शांत रहने का इशारा करते हुवे राघवन से कहा," तुम बेवकूफी कर रहे हो बच्चे "
" ज़्यादा होशियार बनने की कोशिश मत कर " पीछे हट-ता वो दरवाजे के करीब पहुचता जा रहा था," ज़रा भी हिला तो सबसे पहले तेरी ही खोपड़ी उड़ेगी.... "
सेंटेन्स अधूरा रह गया उसका क्योंकि तभी...
'धाय'
एक गोली चली थी.
ऐसी, जो सीधे उसके रेवोल्वर मे आकर लगी थी, एक ही झटके मे रेवोल्वर उसके हाथ से छिटक कर दूर जा गिरा.
गोली उसके पीछे से चली थी, यानी दरवाजे से. सबने उस तरफ देखा.
राघवन ने भी और....यही क्षण था जब सबने धनुष्टानकार के जिस्म को हवा मे लहराते हुवे देखा, राघवन की आँखो के सामने बिजली-सी कौंधी क्योंकि धनुष्टानकार ने अपने हाथ मे दबे रेवोल्वर का भरपूर वार उसके सिर पर किया था.
हलक से चीख निकालता हुआ वो दूर जा गिरा.
वापस उठने की कोशिश की लेकिन उठ ना सका क्योंकि उससे पहले विकास उसे दबोच चुका था.
धनुष्टानकार उस वक़्त सोफे की एक पुष्ट पर बैठा अपने हाथ मे मौजूद अभी तक धुवा उगल रही रेवोल्वर की नाल मे फूँक मार रहा था, सभी उसे देखकर दन्ग रह गये थे.

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" आप लोग समझ ही गये होंगे, वो किरदार इनस्पेक्टर राघवन था " विजय ने तब कहना शुरू किया, जब राघवन के कस-बल ढीले पड़ गये और उसकी समझ मे ये आ गया कि अब उसकी किसी भी कोशिश से कुछ होने वाला नही है," बार-बार कहना पड़ रहा है, बिजलानी एक तेज दिमाग़ का मालिक था, वो पहले से ही जानता था कि जो कुछ वो करने वाला है, उसके बाद घटनास्थल पर पहुचने वाला सबसे पहला पुलिसिया राघवन ही होगा, उसने राघवन को खरीदा, बता चुका हूँ, पैसा ज़्यादातर लोगो की कमज़ोरी होती है, राघवन उसके प्लान पर काम करने को तैयार हो गया "
" प्लान क्या था " रघुनाथ ने पूछा.
" 4 जून की शाम को मीना से कहा गया कि आज रात वे उसकी और कान्हा की वो वीडियो फिल्म बनाएँगे जिसके ज़रिए सरकार को ब्लॅकमेल करके सारी जिंदगी पैसे ऐनठे जाते रहेंगे अतः जैसे ही सरकार दंपति सो जाए, वो एक एसएमएस कर दे और फिर फ्लॅट मे उनके आने का इंतजार करे "
विकास ने सवाल किया," मीना ने ये नही पूछा कि वे लोग फ्लॅट के अंदर आएँगे कैसे "
" उसने अंडरस्टुड समझा था कि बिजलानी और राघवन आकर मैंन गेट पर दस्तक देंगे, उसे दरवाजा खोलना है इसलिए किसी भी आवाज़ को सुनने के लिए अपने कमरे मे चौकस बैठी थी मगर कुछ देर बाद उसे हैरान रह जाना पड़ा "
" क्यो "
" क्योंकि उसके बगैर दरवाजा खोले बिजलानी और राघवन सामने आकर खड़े हो गये "
" कैसे "
" ये वो सवाल है जिसने हर-एक के दिमाग़ का फ्यूज़ उड़ा रखा है " विजय ने कहा," जब तक हम ने इस फ्लॅट का दौरा नही किया था तब तक हमारा दिमाग़ भी जड़ था लेकिन सरकार-ए-आली के बेडरूम का दौरा करने के बाद खोपड़ी की नसें खुल गयी क्योंकि हमारी गिद्ध दृष्टि ने उसमे लगे एसी के एक मुड़े हुए कोने को देख लिया था और हम उसी समय समझ गये थे कि एसी एक बार कालीन कर गिरने के बाद दोबारा से अपने बॉक्स मे फिट हुआ है "
" ओह " विकास कह उठा," तो ये था उस वक़्त आपके ताली बजा-बजाकर चहकने का राज "
" समझने के लिए शुक्रिया दिलजले "
" और सिरदर्द का राज "
" वो भी समझ मे आ जाएगा "
रघुनाथ बोला," एसी के एक बार कालीन पर गिरने और फिर बॉक्स मे फिट होने से क्या सिद्ध होता है "
अगर ठाकुर साहब ना होते तो पता नही विजय इस वक़्त क्या कहता लेकिन उनकी मौजूदगी के कारण बोला," अगर विंडो एसी को उसके स्थान से हटा दिया जाए तो वहाँ बने रास्ते से कोई भी अंदर-बाहर हो सकता है "
" क्या तुम ये कहना चाहते हो कि एसी को बाहर से धक्का देकर कमरे मे गिरा दिया गया था "
" आपकी खोपड़ी पर वारी-वारी जाउ रघु जी "
" ऐसा कैसे हो सकता है कि एसी जैसी भारी वस्तु कमरे मे गिरी और हम सोते रह गये " राजन कह उठा," मेरी और इंदु की नींद इतनी पक्की भी नही है, भले ही बेडरूम मे कालीन बिछा है परंतु उसपर एसी गिरेगा तो काफ़ी ज़ोर से आवाज़ होगी "
" आपको पहले ही अन्टागाफील किया जा चुका था "
" अन्टागफील क्या "
" ये " विजय ने जेब से वो छोटी-सी शीशी निकालकर सबको दिखाई जिसके ढक्कन पर इंजेक्षन की सुई जैसी चीज़ पॉइंट थी, उसके अंदर अब भी तरल पदार्थ भरा हुआ था, बोला," इसमे भरे हुए पदार्थ को 'सेक़लों' कहते है, इसे अगर कही के क्लाइमेट मे फैला दिया जाए तो उस क्लाइमेट मे जितने जीव होते है वे सब बेहोश हो जाते है, 5 घंटे से पहले होश नही आता उन्हे और यदि सोते हुए आदमी इसकी चपेट मे आ जाए तो जब उठते है तो ये भी नही जान पाते कि वे बेहोश हुए थे, बस सिर मे हल्का-हल्का दर्द और भारीपन महसूस होता है "
" तो ये था सिरदर्द का राज "
विजय ने विकास की तरफ सिर्फ़ देखा.
 
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" क्या तुम ये कहना चाहते हो कि राघवन और बिजलानी ने राजन के बेडरूम के क्लाइमेट मे सेक़लों की गंध फैलाकर उन्हे बेहोश कर दिया था " जिस वक़्त ठाकुर साहब ने ये सवाल किया उस वक़्त विजय ने उनकी आँखो मे अपने लिए प्रशन्शा के भाव देख लिए थे, ऐसे भाव, जैसे वे अपने बेटे पर गर्व कर रहे हो, इसलिए उसने ये कहकर जानबूझकर शरारत की," समझने के लिए शुक्रिया बापूजान, आपके बच्चे जिएं और सारी जिंदगी उसी तरह आपका खून पीते रहे जैसे हम पी रहे है "
ठाकुर साहब की भृकुटिया टन गयी.
उन्होने घूरकर देखा विजय को. उनकी आँखो मे उपजा बेटे के लिए गर्व का भाव पालक झपकते ही जाने कहा लोप हो गया था.
यही तो चाहता था विजय, बोला," सेक़लों इन्होने बाहर से एसी मे डाला था, एसी की हवा के साथ वो बेडरूम के क्लाइमेट मे फैला और सरकार दंपति 5 घंटे के लिए अन्टागफील हो गये, वे 5 घंटे इन लोगो को अपनी कार्यवाही पूरी करने के लिए काफ़ी थे "
ज़्यादातर चेहरो पर हैरत ने कब्जा कर लिया था.
" उसके बाद एसी को कालीन पर गिराकर इनके लिए बेडरूम मे आ जाना ज़रा भी मुश्किल नही था अर्थात जब मीना के सामने जाकर खड़े हुए तो वो चकित रह गयी, सबसे पहला सवाल यही किया कि वे लोग अंदर कैसे आ गये, बिजलानी ने उसके सवाल को दरकिनार करते हुए कहा,' बिल्कुल भी डरने की ज़रूरत नही है, राजन और इंदु इस वक़्त बेहोश है, कान्हा के कमरे मे जाकर उससे संबंध बनाओ, हम वीडियो तैयार करेंगे, मीना ने वैसा ही किया और जब वे पीक पर थे तो सरकार की हॉकी से वार करके दोनो की हत्या कर दी, आप लोग समझ सकते है कि अपनी हत्या के समय मीना कितनी हैरान रह गयी होगी लेकिन अंतिम समय मे बेचारी के पास इतना मौका भी ना था कि उनसे ये पूछ सकती कि उन्होने ऐसा क्यो किया, वो कान्हा के साथ वही ढेर हो गयी "

" तुम बकवास कर रहे हो विजय " अंजलि की आँखे रोने के कारण सुर्ख नज़र आ रही थी," पता नही तुम्हे होली वाले दिन का सच कहाँ से पता लग गया, उस एक सच के बेस पर तुमने एक पूरी झूठी कहानी गढ़ ली है, उन्होने ये सब नही किया हो सकता, इतने जालिम नही थे वो "
" मानते है अंजलि जी कि इस सबके बारे मे आपको कुछ नही पता, आप भी अपने पति की करतूत से उतनी ही नावाकिफ़ थी जितनी बाकी दुनिया "
रिप्पी बोल उठी," लेकिन बकौल आप ही के, बदला तो पापा को राजन से लेना था फिर कान्हा और मीना को क्यूँ मारा "
" तुम भूल गयी बेबी, हम ने कहा था, बिजलानी ने सरकार को समूल नष्ट करने का प्लान बनाया था, उन दोनो की हत्या के इल्ज़ाम मे सरकार दंपति को फाँसी करा देने का प्लान "
रघुनाथ ने पूछा," बाकी प्लान को कैसे अंजाम दिया उन्होने "
" बोलते-बोलते हमारा मुँह दुख गया है रघु डार्लिंग " विजय ने कहा," अब आगे कुछ भी बताने का मूड नही है "
" अरे " चंदानी कह उठा," अजीब आदमी हो तुम, ऐसे बात अधूरी कैसे छोड़ सकते हो "
" बस " विजय सोफे पर पसर गया," ऐसे ही आदमी है हम "
ठाकुर साहब ज़ोर से गुर्राए," विजय "
" ज..जी " विजय हड़बड़कर सीधा हो गया.
उन्होने हुकुम-सा दिया," आगे बोलो "
" ये बैठे तो है हुजूर, करता-धर्ता " उसने राघवन की तरफ इशारा किया," प्लीज़, आगे का किस्सा इन्ही से सुन लीजिए "
ठाकुर साहब सहित सबकी नज़रे राघवन पर केंद्रित हो गयी.
विकास को लगा, गुरु ने ग़लत नही कहा है, डपटने के-से अंदाज मे राघवन से कहा," बताओ, उन्हे मारने के बाद तुमने क्या किया "
राघवन की हालत हारे हुवे खिलाड़ी जैसी थी, बोला," सबसे पहले दोनो के प्राइवेट पार्ट्स सॉफ किए "
" क्यो "
" ताकि सबको ये लगे कि इस बात को छुपाने की कोशिश की गयी है कि मरने से पहले वे सेक्स कर रहे थे "
" इन्वेस्टिगेशन तो तुम खुद ही करने वाले थे "
" अधिकारियो को भी तो इन्वॉल्व होना था, उन्हे भी तो सबूत और अन्य तर्को से सहमत करना था मुझे "
" उसके बाद "
" मीना की लाश को पोलीथिन के एक बहुत बड़े थैले मे डाला, फर्श और दीवारो से उसके खून को इस तरह सॉफ किया कि देखने पर पता लग जाए कि वहाँ से कुछ सॉफ किया गया है, मतलब ये कि हम सारे काम इस तरह कर रहे थे जिससे स्पष्ट हो जाए कि सबूतो को नष्ट करने की कोशिश की गयी है, ताकि बाद मे ये सोचा जाए कि चारो तरफ से बंद फ्लॅट मे ये सब सरकार दंपति के अलावा किया ही किसने होगा, उसी लिए विस्की की बॉटल और दो गिलास डाइनिंग टेबल पर रखे, पोलिथीन के थैले को उठाकर गैराज मे खड़ी स्विफ्ट डज़ीरे मे ले गये, उससे लाश कूड़े के ढेर पर डालकर आए, गाड़ी को अच्छी तरह धोया, गैराज और फ्लॅट की सॉफ-सफाई की, सबकुछ इस तरह किया गया कि बाद मे सरकार दम्पत्ती का किया साबित हो "
" फ्लॅट से निकले कैसे "
" उसी रास्ते से, जिससे आए थे "
" बाहर निकलने के बाद एसी को बॉक्स मे फिट कैसे किया "
" हम बताते है " विजय ने इस तरह हाथ उठा दिया जैसे क्लास मे किसी बच्चे ने टीचर के सवाल का जवाब देने के लिए उठाया हो और फिर तार वाली टेक्नीक बताता चला गया.
ठाकुर साहब बोले," इस तरह तो एसी को बॉक्स मे फिट करना काफ़ी मुश्किल काम है "
" मुश्किल है, नामुमकिन नही, हम खुद कर चुके है "
" त..तुम "
" कल रात, पूछ लीजिए सरकार-ए-आली से, कोई इनके बंद फ्लॅट को फिर खंगाल गया "
" व...वो तुम थे " राजन सरकार हैरान रह गया.
विजय ने सारा जिस्म आकड़ा लिया," जी "
विकास भी हैरान.
" सुबह होने पर क्या हुआ " ठाकुर साहब ने पूछा.
" वही हुआ जो मजूर-ए-खुदा था " विजय ने टोन से टोन मिलाने के बाद कहा," यानी, वही हुआ जो सबको मालूम है, कान्हा की लाश मिलते ही राजन सरकार ने अपनी नज़र मे अपने सबसे बड़े हितैषी बिजलानी को फोन किया, ये ऐसा ही करे, इसका बीज बिजलानी कुछ दिन पहले इनके दिमाग़ मे ये कहकर डाल चुका था कि वकील होने के नाते वो ऐसी किसी भी मुसीबत मे ज़्यादा कारगर हो सकता है, उसने घटनास्थल पर पहुचते ही पोलीस को फोन करने को कहा लेकिन बापूजान को नही बुलाने दिया, राघवन पहुच गया, यानी वे दोनो सरकार-ए-आली के अगल-बगल खड़े हो गये जिनका मकसद ही इन्हे फसाना था "
" माइ गॉड " राजन सरकार कह उठा," कितने गहरे जाल मे फँसा हुआ था था मैं, उसे ही अपना सबसे बड़ा हितैषी समझ रहा था जो मुझे फँसा रहा था, उसे ही अपना वकील नियुक्त कर दिया, जिसके वकील का मकसद ही अपने क्लाइंट को फसाना हो उसे दुनिया की कौन-सी ताक़त बचा सकती है, कदम-कदम पर मैं हर काम उसी की सलाह से कर रहा था "

" जवाब दो प्यारेलाल " विजय ने राघवन से कहा," मीना की लाश को कूड़े के ढेर पर फेंक के आने के पीछे का क्या प्लान था "
" हम जानते थे, बल्कि प्लान ही ये बनाया गया था कि पहली नज़र मे सबको ये लगे कि मीना कान्हा का मर्डर करके फरार हो गयी है, इसके पीछे मकसद ये था कि घटनास्थल की सघन जाँच ना हो सके, वही हुआ, ये भी जानते थे कि लाश को कहीं भी डाला जाए वो छुपी ना रह सकेगी, किसी ना किसी को मिल ही जाएगी और लाश मिलते ही सरकार दंपति लपेटे मे आ जाएँगे "
" ख़ासतौर पर तब, जब सरकार-ए-आली उसे पहचानने से इनकार कर देंगे " विजय ने कहा," और वो बिजलानी ने करवाया "
" हम ने इस इंतजार मे एक दिन बिताया कि किसी को लाश मिले और सरकार दंपत्ति लपेटे मे आए लेकिन जब पूरा दिन बीतने के बावजूद कही से लाश मिलने की सूचना ना मिली तो घबराहट होने लगी क्योंकि वैसा ना होता तो सारा प्लान चौपट हो जाता, ये भी डर था कि ज़्यादा दिन गुज़रे तो गिद्ध लाश को खा जाएँगे और वो सचमुच शिनाख्त के काबिल नही रहेगी इसलिए...... "
" तुमने कूड़े पर कूड़ा डालने वालो मे से एक जगदीश चंडोला से संपर्क किया, उसे चैन और अंगूठी के लालच मे फँसाकर लाश की सूचना पोलीस को दिलवाई "
" मैं जानता हूँ कि तुम ये जान गये हो मगर.... "
" अटको मत "
" ये नही जानता कि ये कैसे जान गये हो कि वो मैं हूँ "
" जब हम ने जगदीश चंडोला से मिलने का फ़ैसला लिया बल्कि तुम्ही से उसका अड्रेस लिया और यहाँ से उसके घर के लिए निकले तो बीच मे उत्सव के घर हुए हंगामे की सूचना मिली, हमे तुरंत यू-टर्न लेकर वहाँ जाना पड़ा, उसके बाद जब जगदीश चाड़ोला के घर पहुचे और वहाँ जो हुआ था, उसके बारे मे पता लगा तो हमारे दिमाग़ मे तुरंत ये बात आ गयी कि लाल दाढ़ी वाले ने चंडोला का ख़ात्मा करने का टाइम लेने के लिए हमे उत्सव के घर की तरफ भटकाया था, अब...खोपड़ी मे एक ही बात आई, ये कि, हमारे चंडोला के घर जाने की बात केवल 3 लोगो को पता थी, चंदानी साहब, सरकार-ए-आली और तुम, इसलिए, पिच्छली रात तीनो के घर खंगाले, वो सामान तुम्हारे घर से मिला जो ये सिद्ध कर रहा था कि लाल दाढ़ी वाले भी तुम हो और कान्हा-मीना के कातिल भी तुम ही हो "
राघवन के मुँह से बस यही एक शब्द निकल सका," ओह "
" मिसटर विजय " अंजलि बोली," तुमने हमें ये कहकर यहाँ बुलाया था कि बिजलानी साहब की आत्महत्या का कारण बताओगे, उस संबंध मे अभी कोई बात नही की है "

" आ रहे है मोह्तर्मा, उस पर भी आ रहे है, बाज़ीगर अपना पिटारा धीरे-धीरे खोलता है, सारे औजार एकसाथ निकालकर सामने नही रख देता " विजय कहता चला गया," 5 जून की सुबह से सरकार-ए-आली बिजलानी की हर बात मानते चले आ रहे थे इसलिए कोर्ट से उन्हे सज़ा तक हो गयी, बस एक ही बात नही मानी इन्होने, सरकार-ए-आली जिद पकड़ गये कि अब इन्हे ये केस हमारे यानी कि विजय दा ग्रेट के हवाले करना है, बिजलानी को डर था कि अगर हम रियिन्वेस्टिगेशन पर निकल गये तो मिल्क का मिल्क और वॉटर का वॉटर कर देंगे, इसलिए उन्होने सरकार-ए-आली को ये कहकर रोकने की कोशिश की कि विजय भी इस केस मे कुछ नही कर सकेगा किंतु सरकार-ए-आली के दिमाग़ पर सनक सवार हो चुकी थी, ये बिजलानी की सारी सलाहो को ताक पर रखकर हमारे पास पहुच गये और हम पहुच गये बिजलानी के ऑफीस तक, याद रहे, स्यूयिसाइड से पहले उन्होने फोन पे उत्सव से संपर्क किया था कि सरकार-ए-आली के साथ और भी कोई है क्या, उत्सव ने धनुष्टानकार तक के बारे मे बताया, वो समझ गया कि हम उसके दरवाजे पर आ पहुचे है और साथ ही ये भी समझ गया कि सरकार-ए-आली ने हमे बता दिया होगा कि मीना की लाश को ना पहचानने की सलाह इन्हे उसने दी थी और अब हम उससे इस बारे मे सवाल करेंगे, सवाल ही नही करेंगे बल्कि ताड़ जाएँगे कि सरकार-ए-आली को फँसाने के पीछे उसी का हाथ है "
" क्या आप ये कहना चाहते है कि उन्होने आपके सवाल-जवाबो के डर से स्यूयिसाइड की "
" ये कारण भी शामिल था पर ये कंप्लीट कारण नही था," विजय बोला," दो कारण थे, पहला रिप्पी की लताड़, उस लताड़ के कारण उसे अपने आप से घृणा हो गयी थी, जिस बेटी से सबसे ज़्यादा प्यार करता था उससे नज़रे नही मिला पा रहा था, हमारे सक्रिय होने से कोढ़ मे खाज का काम किया, उसे इस डर ने भी घेर लिया कि हम उसे कान्हा और मीना का हत्यारा साबित कर देंगे, यहाँ भी, उसके दिमाग़ मे सबसे ज़्यादा ख़ौफ़ रिप्पी का ही था, उसे लगा, जिस रिप्पी से वो अंकिता पर ग़लत नज़र डालने के कारण नज़र नही मिला पा रहा है, उस रिप्पी को जब ये पता लगेगा कि मैंने दो-दो जघन्य हत्याए की है तो कैसे उसका सामना करूँगा, क्या रह जाएगा मेरी जिंदगी मे, जब रिप्पी ही घृणा करने लगेगी तो किस काम की ये जिंदगी, इससे तो मौत भली और आत्महत्या नकारात्मक सोचो से घिर जाने वाला शख्स ही करता है "
अंजलि चुप रह गयी.
जैसे पूछने के लिए कुछ ना रह गया हो.
विजय ने आगे कहा," सरकार-ए-आली को इस चक्रव्यूह मे फँसाने वाले 3 लोग थे, मीना, बिजलानी और राघवन, दो मर चुके थे, तीसरा, यानी कि राघवन जिंदा था, ये बिजलानी की तरह टूटा नही बल्कि कदम-कदम पर हमारी रियिन्वेस्टिगेशन को भटकाने और बाधित करने मे जुट गया, लाल दाढ़ी वाला बनकर चीकू के इस्तेमाल से सरकारनी को किडनॅप कराया, मकसद सरकार दंपति का ख़ात्मा करना था ताकि किस्सा ही ख़तम हो जाए अर्थात ना बाँसुरी रहे, ना बजे, हम ने ना केवल इसके इरादो को ध्वस्त कर दिया बल्कि चीकू को दबोच भी लिया, उसका कत्ल उसने ठीक उस वक़्त किया जब वो हमें इस तक पहुचा सकता था, वही कोशिश चंडोला पर भी की लेकिन बस्ती वालो की वजह से नाकाम हो गयी "
" अंतिम सवाल " ठाकुर साहब ने कहा," तुम्हे इतना सब पता कैसे लगा "
" बिजलानी की पर्सनल डाइयरी से "
" बिजलानी की डाइयरी "
" राघवन को मालूम था कि बिजलानी डाइयरी लिखता है, इसे ये डर सता रहा था कि डाइयरी मे उसने कहीं अपनी और इसकी करतूत ना लिख दी हो, इसलिए उसके ऑफीस मे घुसा और डाइयरी निकाल लाया, वो हमे हॉकी, लाल बालो वाली विग, मॅसा, चश्मा और दाढ़ी के साथ इसके घर से मिली, हम उसे पढ़ भी चुके है और उसका हर पेज हमारे मोबाइल मे क़ैद है, इसका शक दुरुस्त था, बिजलानी ने वो एक-एक बात अपने हाथ से लिख रखी है जिसका हम ने इस शिखर सम्मेलन मे ज़िक्र किया "
" त...त..थॅंकयू वेरी मच विजय " भावुक होकर राजन सरकार अचानक अपने स्थान से उठा और विजय को खुद से चिप्टा लिया तथा खुशी की ज़्यादती के कारण रोता, कहता चला गया," भले ही मेरा एक गंदा चेहरा सामने आया लेकिन उससे कयि-कई गुना खुशी की बात ये है कि आज मेरे बेटे को इंसाफ़ मिल गया, उसके एक कातिल ने आत्महत्या कर ली, दूसरा क़ानून की गिरफ़्त मे है, हमारे माथे पर लगा कलंक धुल गया, हमे विश्वास था...हमे शुरू से पूरा विश्वास था कि तुम इस काम को कर गुजरोगे और तुमने कर दिखाया, तुम महान हो, तुम नही समझ सकते, कोई भी नही समझ सकता कि आज हम कितने खुश है, माँगो विजय, जो चाहो माँग लो, आज अगर तुम हमारी मुकम्मल जायदाद, पाई-पाई... यहाँ तक कि जान भी मांगोगे तो सिर काटकर तुम्हारे कदमो मे रख देंगे, तुमने वो काम कर दिखाया जिसका हमारे अलावा किसी को यकीन नही था कि तुम कर दोगे, तुम्हारे फादर को भी नही "

" छोड़ो सरकार-ए-आली, छोड़ो " विजय उसके भावपेश से निकलने की कोशिश करता बोला," इतना आभार मत जताओ कि हम शरम से पानी-पानी होकर फर्श पे बहने लगे "

ख़ुसी की ज़्यादती के कारण ठाकुर साहब की भी आँखे भर आई थी, ज़ज्बात की आँधी मे घिरे वो भर्राये लहजे मे कहते चले गये थे," आज पहली बार इसने हमे खुशी दी है, पहली बार लगा है कि हम भी अपने बेटे पर गर्व कर सकते है "
" अजी घंटा " विजय ने तुरंत उनके जज्बातो को चोट पहुचाई थी," ये कहिए कि आज हम ने आपकी कलयि खोल दी, साबित कर दिया कि हमारे बापूजान पोलीस की नौकरी मे सिर्फ़ तबला बजा रहे है, ऐसा ना होता तो आप ही इस केस को ना खोल देते "
 
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एक महीने बाद.
व्क्स्की से भरे 4 कीमती गिलास आपस मे टकराए.
" चियर्स...चियर्स....चियर्स...चियर्स " एक साथ 4 आवाज़े संदीप बिजलानी के उस शानदार ड्रॉयिंगरूम मे गूँजी जिसमे विकास ने चीकू की ठुकाइ की थी.
" विजय.... साला विजय, हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा जासूस " ये आवाज़ राजन सरकार की थी," मैं तो कहता हूँ सबसे बड़ा मूर्ख, एक नंबर का गधा, वही साबित करता चला गया जो हम ने चाहा "
" इसके लिए तुम्हे मेरे दिमाग़ की तारीफ करनी चाहिए राजू " संदीप बिजलानी बोला," क्योंकि सारा प्लान मैंने बनाया था, तू और राघवन तो सिर्फ़ फील्ड मे काम करने वाले आर्टिस्ट थे "
" मैं क्या तारीफ करूँ तेरे दिमाग़ की " राजन ने बड़े ही जीवंत अंदाज मे ठहाका लगाकर कहा था," तेरे दिमाग़ की तारीफ तो बार-बार वो कर रहा था जिसके दिमाग़ की तारीफ सब करते है "
" स...स्ष...स्ष " संदीप बिजलानी ने अपने होंठो पर उंगली रखते हुवे कहा था," मेरी कहाँ, वो तो अशोक बिजलानी के दिमाग़ की तारीफ कर रहा था, मैं अशोक थोड़ी हूँ, मैं तो संदीप बिजलानी हूँ, अराबो-खरबो पति संदीप बिजलानी "
" साला लंपट " राजन सरकार कह उठा," तुझसे मिलने के बाद भी नही ताड़ सका कि तू संदीप नही अशोक है "
" कैसे ताड़ता, अपने बेड पर संदीप की लाश मैंने डाली ही ऐसे कोण से थी कि पूरा चेहरा नज़र ना आए और जितना नज़र आए वो भी खून से भीगा रहे "
" जब मैं, तुम्हारी पत्नी ही ना ताड़ सकी कि वो तुम नही, संदीप था तो वो क्या ताड़ता " अंजलि कहती चली गयी," पर तुमसे एक शिकायत है अशोक, तुमने उस वक़्त मुझे विश्वास मे नही लिया, नही बताया कि तुम क्या खेल खेल रहे हो, मैं खुद भी यही समझी कि मेरा सुहाग मुझे छोड़कर चला गया है "
" इसलिए नही बताया था डार्लिंग क्योंकि मुझे डर था कि तुम ठीक से आक्टिंग नही कर सकोगी, ऐसा ना हो कि वो ताड़ जाए, क्योंकि सुना तो यही था कि वो गिद्ध दृष्टि रखता है "
" ये तो आज भी मानना पड़ेगा आशु कि गिद्ध दृष्टि तो वो रखता है, तूने सारा प्लान उसकी इसी खूबी को जेहन मे रखकर तो बनाया था " राजन ने एक घूँट हलक से उतारने के बाद कहा," तभी तो हर कदम पर वही और सिर्फ़ वही करता चला गया जो तूने सोचा था, तूने सोचा था कि मेरे ये झूठ बोलते ही उसके कान खड़े हो जाएँगे कि मीना की लाश को
ना पहचानने की सलाह मेरे वकील ने दी थी और वो रियिन्वेस्टिगेशन पर निकल पड़ेगा, वही हुआ, तूने सोचा था कि तेरे स्यूयिसाइड करते ही वो इस केस मे इन्वॉल्व हो जाएगा, हुआ, तूने सोचा था कि एसी के मुड़े हुए किनारे को देखते ही वो ये समझेगा कि बंद फ्लॅट मे जो भी आया यहीं से आया, उसने यही समझा, तूने सोचा था कि उसे सेक़लों के बारे मे ज़रूर
पता होगा, उसे था, तूने सोचा था कि वो तुरंत इस नतीजे पर पहुच जाएगा कि सरकार दंपति को एसी के ज़रिए सेक़लों से ही बेहोश किया गया होगा, वो इसी नतीजे पर पहुचा,

तूने चीकू, चंदू, बंटी और बॉब्बी से खंडहर मे जो ड्रामा करवाया, वो इसलिए करवाया ताकि वो सोचे कि वे लोग मुझे और इंदु को जान से मारना चाहते थे, उसने वही सोचा, तूने ऐसे सट्रा छोड़े कि चीकू के ज़रिए वो तुझ तक... सॉरी, संदीप तक पहुच जाए, वो पहुचा, चीकू को तू राघवन के ज़रिए 10 लाख दिलवा चुका था और अपनी ही प्लॅनिंग के तहत उन्हे पकड़ भी चुका था, उसके चीकू के साथ आते ही तूने ये नाटक शुरू किया कि तू तो इंतजार ही चीकू के लौटने का कर रहा था, उस नाटक मे तो विजय ही नही, चीकू भी फँसा रहा, मरते दम तक भी बेचारा ये ना जान सका कि उसे 10 लाख देने वाले भी हम ही थे "

" मेरे ख़याल से तुम्हारे प्लान का वो सबसे संवेदनशील पॉइंट था " इंदु सरकार ने एक घूँट पीने के बाद कहा," मुझे लगता था कि जितना तेज वो है, तुम्हे देखते ही समझ जाएगा कि तुम संदीप नही, अशोक हो और अगर ऐसा हो गया तो सारा प्लान राइट के महल की तरह धाराशायी हो जाएगा "
" ऐसा सोचना तुम्हारी कामकली थी " अशोक बोला," मेरे अशोक होने का शक उसे तब तो हो सकता था जब संदीप का पहले से कोई अस्तित्व ना होता, अशोक के हमशक्ल के रूप मे

हम कोई नया किरदार खड़ा कर रहे होते, लेकिन संदीप था और पहले ही से उसका पूरा ये एंपाइयर था जिसका मालिक आज मैं हूँ इसलिए वो ये शक नही कर सकता था कि मैं अशोक हूँ "
अंजलि ने खीरे का एक पीस मुँह मे सरकाते हुए कहा," तुमने मुझे ये बात चंडोला की गिरफ्तारी के बाद बताई कि तुम संदीप बिजलानी के रूप मे जिंदा हो, मरने वाला असल मे संदीप था "
" मैंने हर काम तभी किया डार्लिंग जब करना चाहिए था, मुझे मालूम था कि मेरे बिछाए हुए जाल मे फंसकर अपनी नज़र मे अब वो सफलता के नज़दीक पहुच रहा है, बहुत जल्द राघवन के घर मे रखे उसके जूतो, हॉकी, लाल बालो की विग, दाढ़ी और उस डाइयरी को भी हासिल कर लेगा जिसका एक-एक अक्षर मैंने अपने हाथो से लिखा है, उसे पढ़कर उसकी
समझ मे वे बाते भी आ जाएँगी जो तब तक नही आई होंगी, वो डाइयरी उसके लिए पुख़्ता सबूत होगा क्योंकि बहरहाल, उसके ज़रिए हत्यारे ने खुद अपना जुर्म कबूल किया है, ये भी कबूल किया है कि अशोक बिजलानी ने वो जुर्म किसलिए किया, चंडोला की गिरफ्तारी के तुरंत बाद तुमसे मिलना और सबकुछ बताना इसलिए ज़रूरी हो गया था क्योंकि डाइयरी के आधार पर जब वो खुद को सूरमा दर्शाता हुआ ये कहे कि अशोक बिजलानी ने ये सब इसलिए किया क्योंकि होली के दिन राजन ने अंजलि से ज़्यादती कर दी थी तब, राजन के साथ-साथ तुम भी इस झूठी बात को सच्ची तरह कबूल करो, ऐसा होने पर उसे अपने द्वारा किए गये रहस्योद्‍घाटन पर कोई शक नही रह जाएगा "
" और मैंने वैसा ही किया लेकिन अशोक.... "
" रुक क्यो गयी, बोलो "
" इस स्टोरी के तहत तुमने हम दोनो को लांछित कर दिया "
" मैं तो जानता हूँ ना कि वो सब नितांत झूठ था " उसने हंसते हुए कहा था," मेरे द्वारा रचा गया झूठ "
" फिर भी, समाज.... "
" वो मत सोचो अंजलि जो समाज सोचेगा " अशोक बिजलानी ने उसकी बात काटकर कहा," ये सोचो कि उस एक ही स्टोरी से मैंने दो लक्ष्य हासिल किए, पहला, अपने यार को उसके बेटे और नौकरानी की हत्या के आरोप से मुक्त करा दिया, अब समाज मे राजन और इंदु का नाम इज़्ज़त से लिया जा रहा है, पूरे देश को इनसे सहानुभूति है, सब यही सोच रहे है कि बेगुनाह होते हुए भी बेचारो ने कितनी ज़िल्लत और कष्ट झेले, जो मिला, वो ज़्यादा है या जो गया वो ज़्यादा है, दूसरा, मैंने अपने बाप की वो जायदाद वापिस हासिल कर ली जिसे मेरे कमीने भाई ने साजिश करके इस कदर हथिया ली थी कि क़ानूनी रूप से मैं इसे कभी हासिल नही कर सकता था, भविश्य मे हम साथ रहेंगे, इस बात की भूमिका भी मैं उस सूरमा जासूस के सामने बना चुका हूँ, कह चुका हूँ कि अंजलि और रिप्पी से अपने साथ रहने की रिक्वेस्ट करूँगा "

" लेकिन मैं तो उससे ये कह चुकी हूँ की संदीप बिजलानी के इस ऑफर को किसी कीमत पर स्वीकार नही करूँगी, उस वक़्त मुझे ये मालूम जो नही था कि संदीप बिजलानी तुम हो "
" हो जाएगा अंजलि, धैर्य रखो, समय के साथ सबकुछ ठीक हो जाएगा, हमे कोई जल्दी नही है, उस सूरमा जासूस के साथ-साथ सारे समाज को ये समझा दिया जाएगा कि साल-दो साल मे गहरे से गहरे घाव भर जाते है और हम साथ रहने लगेंगे, दुनिया की नज़र मे मैं भले ही तुम्हारा जेठ रहूं लेकिन असल मे तो पति ही रहूँगा "

" पर हमारी बेटी, वो तो किसी हालत मे तुम्हारे साथ नही रहेगी और उसे हम ये बता भी नही सकते कि तुम उसके पापा हो "
" जब हम दोनो अपने-अपने तरीके से प्रयास करेंगे और सालो-साल करते रहेंगे तो वो भी तैयार हो जाएगी मगर हमे भूलकर भी उसे ये बताने की बेवकूफी नही करनी है कि मैं उसका पापा हूँ "
" ऐसा क्यो "
" उसके पापा ने उसकी फ्रेंड पर ग़लत नज़र जो डाली थी, उस कारण शायद वो अपने पापा से उतनी नफ़रत करती है जितनी अपने ताउ से भी नही करती "
" तुमने वैसा क्यो किया आशु "
" सच्चाई बताउ तो क्या तुम यकीन करोगी "
" क्या तुम्हारी किसी बात पर कभी शक किया है "
" अंकिता पर असल मे नीयत खराब नही हुई थी मेरी, वो आज भी मेरी बेटी है, वैसी ही, जैसे रिप्पी "
" फिर "
" वो भी मेरे प्लान का हिस्सा था ताकि मेरे मोबाइल की कॉल डीटेल देखकर सूरमा जासूस उस नतीजे पर पहुचे जिस पर पहुचा और उसे मेरी स्यूयिसाइड की एक और वजह मिल जाए "
" ओह " अंजलि प्रशन्शा कर उठी," तुमने वाकयि हर बात को बहुत ही बारीकी से सोचकर प्लान बनाया था "
" आख़िर पति है तुम्हारे " वो गर्व से मुस्कुराया.
" परंतु अभी तक तुमने मुझे ये नही बताया कि संदीप को अपने बेडरूम तक कैसे ले गये, कैसे उसे लाश बनाकर वहाँ डाल दिया "
" बहुत सिंपल था डार्लिंग, संदीप से मेल-मिलाप बढ़ाना तो मैंने उसी दिन शुरू कर दिया था जिस दिन दिमाग़ मे ये प्लान आया था, यहाँ आना-जाना भी शुरू कर दिया था, वो बेचारा तो पहले ही मेरे लिए सॉफ्ट कॉर्नर रखता था, इसका मुझे फ़ायदा मिला, मैंने उस रात उसकी विस्की मे नींद की गोलिया मिलाई जिस रात की सुबह राजन को विजय के पास जाना था

और उसे रियिन्वेस्टिगेशन के लिए निकालकर लाना था, करीब-करीब बेहोश संदीप को मैं ऑफीस वाले रास्ते से बेडरूम मे ले गया और बाथरूम मे छुपा दिया, वो जैसे ही होश मे आने को होता, मैं नशे का इंजेक्षन दे देता, वो तब भी नशे मे था जब मैं उसे गोली मारकर और रेवोल्वर उसके हाथ मे पकड़ाकर ऑफीस वाले रास्ते से फरार हुआ "
राजन सरकार बोला," लेकिन उस वक़्त तो मेरे भी पाँव उखड़ गये थे जब इंडिया के उस सबसे बड़े जासूस ने जगदीश चंडोला से मिलने की इच्छा जाहिर की और राघवन से उसका अड्रेस लिया, राघवन के पास अड्रेस ना देने का कोई बहाना ना था, उसे देना पड़ा, पाँव उखाड़ने का कारण ये था कि प्लान बनाते वक़्त तुम्हे भी ये ख्याल नही आया था कि उसे चंडोला से मिलना सूझ सकता है इसलिए उसे लेकर प्लान मे कोई तैयारी नही थी, उस वक़्त मैं ये सोचकर घबरा गया था कि यदि वो चंडोला के पास पहुच गया और चंडोला ने उसे सच बता दिया यानी कि ये कह दिया कि मीना की लाश पर उसकी नज़र इत्तेफ़ाक से ही पड़ी थी और उसने एक शरीफ शहरी होने के नाते उसकी सूचना पोलीस को दी थी तो सारा प्लान चौपट हो जाएगा, विजय समझ जाएगा कि सरकार दंपति को किसी ने नही फँसाया है बल्कि वे ही हत्यारे है इसलिए मैंने तुरंत तुम्हे फोन करके सारी सिचुयेशन से अवगत कराया "
" यहाँ भी तुम्हे मेरे दिमाग़ की तारीफ करनी चाहिए " अशोक ने गरवीले स्वर मे कहा," कितने शॉर्ट नोटीस पर कितना शानदार प्लान बनाया, राघवन से तुरंत उत्सव के घर जाकर वो करने को कहा जो उसने किया, ठीक वही हुआ जो सोचकर वो कराया गया था, इन्फर्मेशन दुनिया के सबसे बड़े जासूस को मिली और वो तुरंत यू-टर्न लेकर उत्सव के घर की
तरफ चल दिया, मैंने फ़ौरन राघवन से चंडोला के घर जाकर वो करने के लिए कहा, जो उसने किया "
" पर किया क्या " इंदु बोली," ये मैं अभी तक नही समझी "
" उसने चंडोला से कहा,' तेरे पास कुछ लोग आने वाले है , वे पूछेंगे कि पोलीस को मीना की लाश की सूचना तूने अपने से दी थी या किसी के कहने से दी थी, तुझे कहना है कि लाल बालो और लाल दाढ़ी वाले के कहने से दी थी' वो भौचक्का सा राघवन की तरफ देखता रह गया, बोला,' तुम तो अपने ही बारे मे बात कर रहे हो' राघवन ने कहा,' हाँ,

तुझे मेरा ही हुलिया बताना है' उसने पूछा,' क्यो, मैं ऐसा क्यो करूँगा' राघवन ने कहा,' क्योंकि तुझे इस काम के 5 लाख रुपये मिलेंगे'
उसकी आँखो मे तुरंत चमक भर आई.
उसके सेट होते ही राघवन ने उसे हज़ार के नोटो की 5 गॅडी थमाई और कहा कि तुझे उन्हे मेरा हुलिया पहली बार मे ही, सीधे तौर पर नही बताना है बल्कि ऐसा नाटक करना है जैसे तू हक़ीकत नही बताना चाहता लेकिन उन्होने तुझसे उगलवा ली है.
छोटा-सा दिमाग़ था बेचारे का.
ठीक से समझ ना सका, तब, राघवन ने उसे वो पूरा प्लान बताया जिसपर बाद मे उसने अमल किया, कान्हा की अंगूठी और चैन भी चंडोला को तभी दी थी, कहा था कि इन्हे अपनी अलमारी मे रख ले और चाबी गले मे लटका ले, ये चाबी उसका ध्यान अपनी तरफ ज़रूर खींच लेगी जो तेरे पास आने वाला है.
चंडोला ने कहा,' क्या ज़रूरी है'
राघवन बोला,' वो ब्रिलियेंट ही इतना है कि ऐसी चीज़ो पर उसका ध्यान तुरंत चला जाता है, वो खुद चैन और अंगूठी तक पहुच जाएगा, जब वो इन्हे बरामद करे तो ऐसी आक्टिंग करना जैसे की तेरी जान निकल गयी हो और अंत मे कबूल कर लेना कि तूने इन्ही के बदले मे लाश की सूचना पोलीस को दी थी, 5 लाख ऐसी जगह रख ले जहाँ से उन्हे किसी हालत मे ना मिल सके'
वो तुरंत बोला,' इन्हे तो मैं अपने बिस्तर मे छुपा लूँगा'
राघवन ने कहा,' हां, ये ठीक रहेगा, उनका ध्यान तो तेरी चाबी पर अटकेगा, याद राखियो, वो तुझे गिरफ्तार करके ले जाएँगे, पर घबराईयो मत, अगले दिन जमानत हो जाएगी,

लाश से चैन और अंगूठी निकाल लेना इतना बड़ा जुर्म नही है कि तुझे लंबी सज़ा हो सके, 5 लाख के लिए इतना तो सहना ही पड़ेगा'
वो बोला,' 5 लाख के लिए तो इससे भी ज़्यादा से लूँगा'
राघवन को यकीन हो गया कि वो पक्का है. कर गुजरेगा जो हम चाहते है.
तब, ऐसा नाटक किया गया जिससे सारी बस्ती इस बात की गवाह बन जाए कि लाल दाढ़ी वाले ने चंडोला को जान से मारने मे कोई कसर नही छोड़ी, जबकि राघवन ने उसे मारने के लिए तीनो मे से एक भी गोली नही चालाई थी, यहाँ भी इस देश का सबसे बड़ा जासूस उसी नतीजे पर पहुचा जिस पर मैं उसे पहुचाना चाहता था, यानी उसे लगा, उसने बड़ी
कामयाबी हासिल की है "
" तूने वाकाई इतना बड़ा कमाल करके दिखाया है आशु कि बार-बार तेरे उस माथे को चूमने का दिल चाह रहा है जिसके अंदर वो दिमाग़ है जिसने ऐसा प्लान बनाया " राजन सरकार पर अब नशा हावी होने लगा था, कहता चला गया वो," ऐसा प्लान जिसके तहत देश के सबसे बड़े जासूस को इतनी खूबसूरती के साथ ट्रॅप किया गया कि वो खुद ही वो साबित
करता चला गया जो हम चाहते थे, जो काम कोर्ट मे नही हो सकता था उसे तूने विजय के ज़रिए फील्ड मे कर दिखाया, कोर्ट मे सज़ा पाए मुजरिमो को मौत के मुँह से खींच लाया, आज तो पूरी दुनिया और मीडीया कह रही है कि सरकार दंपत्ति बेगुनाह थे, कल यही बात उससे बड़ी कोर्ट मे प्रूव होगी, बाइज़्ज़त बरी किया जाएगा हमे "

" होगा राजू, ये होकर रहेगा क्योंकि निचली कोर्ट के पास तो तुम्हारे खिलाफ कोई सबूत भी नही थे, सब तुमने ही सॉफ किए थे लेकिन फिर भी कोर्ट ने सिर्फ़ परिस्तिथिजन्य साक्ष्यो के आधार पर तुम्हे सज़ा सुना दी, जबकि अब....अब तो हमारे द्वारा परोसे गये कोर्ट मे इस बात के पूरे सबूत पेश किए जाएँगे कि कान्हा और मीना की हत्या अशोक बिजलानी और
राघवन ने करके उसमे सरकार दंपति को फँसा दिया था, सबसे बड़ा सबूत तो मेरी डाइयरी है, खुद हत्यारे द्वारा लिखी गयी अपनी पूरी करतूत का ब्योरा "
एकाएक अंजलि ने राजन सरकार से कहा," एक बात पूछू राजू, बुरा तो नही मानोगे "
" कैसी बात कर रही हो अंजलि, पूछो ना "
" सच बताओ, तुमने कान्हा और मीना को क्यो मारा "
" सच पूछो तो वो एक दुर्घटना थी " अचानक राजन सरकार के शब्द भीगने लगे थे," मैं कान्हा को अधेड़ नौकरानी के साथ ना देख सका, गुस्से से पागल हो गया, मैंने हॉकी चलाई लेकिन फिर भी, कम से कम कान्हा को तो नही मारना चाहता था, पर वो मर गया, उस वक़्त इंदु मेरे साथ नही थी, ये तो आवाज़े सुनकर तब उस कमरे मे आई जब दोनो मर चुके थे, कान्हा की लाश ने तो जैसे इसे पागल ही कर दिया, मैं बड़ी मुश्किल से इसे ये समझाने मे कामयाब हो सका कि जो हो गया है, वो तो अब वापिस आ नही सकता, दिमाग़ से काम नही लिया तो हम दोनो को भी फाँसी हो जाएगी, तब, सारे सबूतो की सॉफ-सफाई की "
" कान्हा ने तुम्हारे और कंचन चंदानी के संबंधो की पोल खोलने की धमकी नही दी थी "
" नही, बिल्कुल नही, इसलिए नही क्योंकि कंचन और मेरे बीच वैसी रात कभी आई ही नही थी "
" फिर कान्हा ने शुभम और संचित से क्यो कहा "
" सच वही है जो इंदु ने विजय को बताया, कान्हा को स्टोरीस बनाने की बीमारी थी, वही उसने किया "
अंजलि ने पुनः कहा," अब अंतिम और वो प्रश्न जो शुरू से मेरे दिमाग़ को मथ रहा है "
" पूछो "
" इनस्पेक्टर राघवन ने खुद को हत्यारा कबूल करके अपने लिए फाँसी का फंदा क्यो चुन लिया "
" इस सवाल का जवाब देने के लिए हम खुद हाजिर है " कमरे मे जब पाँचवी आवाज़ गूँजी तो चारो ने बुरी तरह चौंक कर आवाज़ की दिशा मे देखा और देखते ही चारो के जिस्म से जैसे आत्मा नाम का पंछी ऊडनछ्छू हो गया हो.
एक पर्दे के पीछे से विजय निकलकर उनके सामने आ खड़ा हुआ था, उस वक़्त वो उन्हे विजय नही, उसका जिन्न लगा था.
आवाक रह गये वे, जो जिस पोज़िशन मे था, उसी पोज़िशन मे जैसे मूर्ति बन गया, काटो, तो एक के जिस्म मे भी कतरा भर खून नही, पॅल्को तक ने झपकना छोड़ दिया था, फिर वहाँ काँच टूटने की आवाज़े गूँजी, एक...दो...तीन....चार, चारो गिलास फर्श पर टूटकर चकनाचूर हो गये थे, उनमे मौजूद विस्की फर्श पर बिखरकर बहने लगी थी, विजय की
आवाज़ उन्हे ऐसी लगी थी जैसे कही बहुत दूर से आ रही हो, उसने कहा था," किस्मत के मारे राघवन ने अपने लिए फाँसी का फंदा इसलिए चुना क्योंकि डॉक्टर्स के मुताबिक उसके पास 6 महीने से ज़्यादा नही है, उसके फेफड़ो मे कॅन्सर है, जब से उसे पता लगा, तभी से बेचारे को अपनी दो जवान बेटियों की चिंता ने घेर लिया, तुम्हे उसके कॅन्सर के बारे मे पता लग गया था, तुमने उसका फ़ायदा उठाया और एक करोड़ मे उसकी जिंदगी खरीद ली, वो इसलिए बेचने को तैयार हो गया क्योंकि मौत तो उसकी तय हो ही चुकी थी, क्यो ना बेटियो का भविश्य बनाकर मरे "
बिजलानी के मुँह से शब्द फिसले," त...तुम्हे कैसे पता "
" गुरु उसके बॅंक के लॉकर तक पहुच चुके है " दूसरे पर्दे के पीछे से विकास ने प्रकट होते हुए कहा," लॉकर की नॉमिनी उसकी पत्नी है यानी राघवन की मौत के बाद उसे वही खोल सकती है, विजय गुरु ने देखा, लॉकर मे एक करोड़ के साथ एक लेटर भी था, राघवन का लेटर अपनी पत्नी के नाम, उसने लिखा था,' शोभा, इस लेटर और पैसो के बारे मे कभी किसी को मत बताना, ये नीलू और मीनू की पढ़ाई के लिए है, उनके अच्छे भविश्य के लिए है और उनकी शादियो के लिए है, अच्छे दूलहो से शादी करना मेरी बच्चियो कि और यकीन रखना, मैंने चीकू नाम के क्रिमिनल को ज़रूर मारा है लेकिन कान्हा और मीना की हत्या नही की है, वो गुनाह इसलिए कबूल करना पड़ा क्योंकि मुझे उन रुपयो की ज़रूरत थी' "
राजन बड़बड़ाया," तुम झूठ बोल रहे हो, कोई और किसी और के लॉकर को कैसे खोल सकता है "

" ऐसे करिश्मे कर दिखाना हमारे लिए उतना ही आसान है प्यारो जितना तुम्हारे लिए चुटकिया बजाना " विजय कहता चला गया," काफ़ी लफ़फाजी सुनी तुम्हारी, उन सबके जवाब मे केवल इतना ही कहना काफ़ी होगा कि हम इशी हॉल मे, ठीक उसी वक़्त समझ गये थे कि हमे ट्रॅप किया गया है जिस वक़्त तुमने चीकू के दोनो गालो पर अपने दोनो हाथो से चान्टे
बरसाए थे, दोनो हाथो के चलने का अंदाज सॉफ बता रहा था कि ये आदमी वो है जो लेफ्ट हॅंडर भी है और राइट हॅंडर भी है, ऐसा तो अशोक बिजलानी ही था, माना कि संदीप बिजलानी उसका भाई है, ये भी माना कि भाई होने के नाते दोनो की शकल काफ़ी हद तक मिलती है लेकिन ऐसा हरगिज़ नही हो सकता कि दोनो भाई दोनो हाथो से काम कर सके "
" म...मतलब तुम उसी समय समझ गये थे कि मैं अशोक हूँ "
" चीकू को तुम्हारे हाथो से पिट-ता देखने के बाद समझने के लिए बचा ही क्या था, हमे उसी समय पता लग गया था कि मरने वाला संदीप था और ये भी शक हो गया था कि तुम्हारे बेडरूम मे ज़रूर कोई चोर दवाजा होना चाहिए, मोंटो प्यारे की ड्यूटी लगाई, उसने एक ही रात मे रास्ता ढूँढ निकाला "
" ऐसा था तो हमे उसी समय गिरफ्तार क्यो नही कर लिया "
" तुम जैसे छोकरों से खेलने की आदत है हमे, देखना चाहते थे कि किस-किस तरह और कहाँ-कहाँ तक हमे फुद्दु बनाने की कोशिश करने की क्षमता रखते हो, वही करते गये जो तुम चाहते थे कि हम करते जाए, अपनी तरफ से तुमने हमे काफ़ी चालाकी से राघवन के घर पहुँचाया, वहाँ से विग, दाढ़ी, हॉकी और डाइयरी बरामद कराई, ज़रा सोचो प्यारे लाल, क्या उस वक़्त हम ने ये नही सोचा होगा कि अगर राघवन ने अशोक बिजलानी की डाइयरी हासिल कर ही ली है तो अपनी मौत के इस सामान को इतना संभालकर क्यो रखा है,

जलाकर राख क्यों नही कर दिया इसे, जाहिर है, उसे वहाँ रखा ही इसलिए गया था कि हमारे हाथ लगे और हम ये मान बैठे की सच्चाई वही है जो उसमे लिखी है, हम ने भी उसे ही सच्चाई मान लेने का नाटक किया और जैसा कि तुम चाहते थे, सरकार-ए-आली के फ्लॅट पर शिखर सम्मेलन बुलाकर खुद को पूरा का पूरा फुद्दु साबित कर दिया, हमे मालूम था, इससे तुम खुश हो जाओगे, बाँछे खिल जाएँगी तुम्हारी, जशन मनाओगे, जय-जय कार करोगे अपनी, निस्चय किया, तभी जंबूरा पकड़ेंगे तुम्हारा लेकिन ये मीटिंग बुलाने मे काफ़ी टाइम लगा दिया तुमने, होशियार जो मानते हो खुद को, एक महीना खराब कर दिया हमारा "
वे समझ गये कि अब कुछ नही बचा है, खेल ख़तम हो चुका है उनका इसलिए ज़ुबानो पर ताले लटके रहे.
विजय ही बोला," रघु डार्लिंग "
" यहीं हूँ " एक अन्य पर्दे के पीछे से रघुनाथ निकला.
" अपने मेहमान बना लो इन्हे और याद रहे कि मीडीया को भनक भी ना लगने पाए कि ये हमारा कारनामा है, सबको यही पता लगना चाहिए कि असली सूरमा तुम ही हो, हम तो इतने बड़े गधे है कि इनके द्वारा फुद्दु बनकर सकरार-ए-आली के फ्लॅट मे केस को उसी ढंग से खोल दिया जिस ढंग से ये चाहते थे, तभी तो हमारे बापूजान की समझ मे ये आएगा की उनका चश्मो-चिराग इस दुनिया का सबसे बड़ा गधा, मूर्ख और निखट्टू है "
" विजय " रघुनाथ ने कहा," तुम ऐसा क्यो करते हो "
" समझो करो तुलाराशि, हम नही चाहते कि बापूजान ये सोचकर कि हमारा बेटा भी कुछ है, सारी दुनिया मे गर्व से छाती फैलाए घूमते रहे, एक-आध पसली-वसली टूटकर सड़क पर गिर पड़ी तो हम उसे चुगते फिरेंगे, हम बस ये चाहते है कि हमारा नाम आते ही उनकी गर्दन शरम से झुक जाए "
ये सोचकर विकास के होंठो पर मुस्कान दौड़ गयी कि उसके गुरु से महान इस मुकम्मल श्रीष्टि मे कोई नही हो सकता.


दा एंड
 
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