desiaks
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"ऐसा लगता है वैशाली, वह दिल्ली से फ्लाइट द्वारा यहाँ पहुंच गया था ।" विजय ने वैशाली को बताया, "और यह केस मैं ही इन्वेस्टीगेट कर रहा हूँ । हालांकि इसमें इन्वस्टीगेट को कुछ रहा नहीं, बस रोमेश को गिरफ्तार करना भर रह गया है ।"
"क्या सचमुच उन्होंने… ?"
"हाँ, वैशाली ! उसने मुझ पर भी गोली चलाई थी ।"
वैशाली केवल गहरी साँस लेकर रह गई । वह जानती थी कि विजय भी एक आदर्श पुलिस ऑफिसर है । वह कभी किसी निर्दोष को नहीं पकड़ता और अपराधी को पकड़ने के लिए वह अपनी नौकरी भी दांव पर लगा सकता है ।
रोमेश भी उसका आदर्श था । आदर्श है । परन्तु अब यह अजीब-सा टकराव दो आदर्शों में हो रहा था । रोमेश अब हत्यारा था और कानून उसका गिरेबान कसने को तैयार था ।
वैशाली की स्थिति यह थी कि वह किसी के लिए साहस नहीं बटोर सकती थी ।
रोमेश की पत्नी के साथ होने वाले अत्याचारों का खुलासा भी अब समाचार पत्रों में हो चुका था । सबको जे.एन. से नफरत थी । परन्तु कानून जज्बात नहीं देखता, केवल अपराध और सबूत देखता है । जे.एन ने क्या किया, यह कानून जानने की कौशिश नहीं करेगा । रोमेश अपराधी था, कानून सिर्फ उसे ही जानता था ।
जे.एन. की मृत्यु के बाद मंत्रीमंडल तक खलबली मच गई थी । परन्तु न जाने क्यों मायादास अण्डरग्राउण्ड हो गया था । शायद उसे अंदेशा था कि रोमेश उस पर भी वार कर सकता है या वह अखबार वालों के डर से छिप गया था ।
बटाला भी फरार हो गया था ।
पुलिस को अब बटाला की भी तलाश थी ।
उस पर कई मामले थे । वह सारे केस उस पर विजय ने बनाये थे । किन्तु अभी मुम्बई पुलिस का केन्द्र बिन्दु रोमेश बना हुआ था । हर जगह रोमेश की तलाश हो रही थी ।
☐☐☐
विजय ने टेलीफोन रिसीव किया ।
वह इस समय अपनी ड्यूटी पर था ।
"मैं रोमेश बोल रहा हूँ ।" दूसरी तरफ से रोमेश की आवाज सुनाई दी । आवाज पहचानते ही विजय उछल पड़ा, "कहाँ से ?"
"रॉयल होटल से, तुम मुझे गिरफ्तार करने के लिए बहुत बेचैन हो ना । अब आ जाओ । मैं यहाँ तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ ।"
विजय ने एकदम टेलीफोन कट किया और रॉयल होटल की तरफ दौड़ पड़ा । बारह मिनट के भीतर वह रॉयल होटल में था । विजय दनदनाता हुआ होटल में दाखिल हुआ, सामने ही काउन्टर था और दूसरी तरफ डायनिंग हॉल ।
"यहाँ मिस्टर रोमेश कहाँ हैं ?" विजय ने काउंटर पर बैठे व्यक्ति से पूछा ।
''ठहरिये ।" काउन्टर पर बैठे व्यक्ति ने कहा, "आपका नाम इंस्पेक्टर विजय तो नहीं ? यह लिफाफा आपके नाम मिस्टर रोमेश छोड़ गये हैं, अभी दो मिनट पहले गये हैं ।"
"ओह माई गॉड !" विजय ने लिफाफा थाम लिया । वह रोमेश की हस्तलिपि से वाकिफ था । उस पर लिखा था, "मैं कोई हलवे की प्लेट नहीं हूँ, जिसे जो चाहे खा ले । जरा मेहनत करके खाना सीखो । मुझे पकड़कर तो दिखाओ, इसी शहर में हूँ । कातिल कैसे छिपता है ? पुलिस कैसे पकड़ती है ? जरा इसका भी तो आनन्द लो रोमेश !"
विजय झल्लाकर रह गया ।
रोमेश शहर से फरार नहीं हुआ था, वह पुलिस से आंख-मिचौली खेल रहा था । विजय ने गहरी सांस ली और होटल से चलता बना ।
☐☐☐
सात दिन गुजर चुके थे, रोमेश गिरफ्तार नहीं हो पा रहा था ।
आठवें दिन भी रोमेश का फोन चर्चगेट से आया । यहाँ भी वह धता बता गया । अब स्थिति यह थी कि रोमेश रोज ही विजय को दौड़ा रहा था, दूसरे शब्दों में पुलिस को छका रहा था ।
"कब तक दौड़ोगे तुम ?" विजय ने दसवें दिन फोन पर कहा, "एक दिन तो तुम्हें कानून के हाथ आना ही पड़ेगा । कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं रोमेश ! उनसे आज तक कोई बच नहीं पाया ।"
ग्यारहवें दिन पुलिस कमिश्नर ने विजय को तलब किया ।
"जे.एन. का हत्यारा अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ ?"
"सर, वह बहुत चालाक हत्यारा है । हम उसे हर तरफ तलाश कर रहे हैं ।"
"तुम पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह तुम्हारा मित्र है । इसलिये तुम उसे गिरफ्तार करने की बजाय बचाने की कौशिश कर रहे हो ।"
"ऐसा नहीं है सर ! ऐसा बिल्कुल गलत है, बेबुनियाद है ।"
"लेकिन अखबार भी छापने लगे हैं यह बात ।" कमिश्नर ने एक अखबार विजय के सामने रखा ।
विजय ने अखबार पढ़ा ।
"यह अखबार वाले भी कभी-कभी बड़ी ओछी हरकत करते हैं सर ! आप यकीन मानिए, इस अखबार का रिपोर्टर मेरे थाने में कुछ कमाई करने आता रहा है । मेरे आने पर इसकी कमाई बन्द हो गई ।"
"मैं यह सब नहीं सुनना चाहता । अगर तुम उसे अरेस्ट नहीं कर सकते, तो तुम यह केस छोड़ दो ।"
"केस छोड़ने से बेहतर तो मैं इस्तीफा देना समझता हूँ । यकीन मानिए, मुझे एक सप्ताह की मोहलत और दीजिये । अगर मैं उसे गिरफ्तार न कर पाया, तो मैं इस्तीफा दे दूँगा ।"
"ओ.के. ! तुम्हें एक सप्ताह का वक़्त और दिया जाता है ।"
विजय वापिस अपनी ड्यूटी पर लौट आया । यह बात वैशाली को भी मालूम हुई ।
''इतना गम्भीर होने की क्या जरूरत है ? ऐसे कहीं इस्तीफा दिया जाता है ?"
"मैं एक अपराधी को नहीं पकड़ पा रहा हूँ, तो फिर मेरा पुलिस में बने रहने का अधिकार ही क्या है ? अगर मैं यह केस छोड़ता हूँ, तब भी तो मेरा कैरियर चौपट होता है । यह मेरे लिए चैलेंजिंग मैटर है वैशाली ।"
वैशाली के पास कोई तर्क नहीं था ।
वह विजय के आदर्श जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती थी और अभी तो वह विजय की मंगेतर ही तो थी, पत्नी तो नहीं ! पत्नी भी होती, तब भी वह पति की भावनाओं का आदर ही करती ।
"नौकरी चली भी गई, तो क्या फर्क पड़ता है । मैं ग्रेजुएट हूँ । हट्टा-कट्टा हूँ । कोई भी काम कर सकता हूँ । तुम इस बात से निश्चिन्त रहो, मैं गृहस्थी चला लूँगा, पुलिस की नौकरी के बिना भी ।"
"मैं यह कब कह रही हूँ विजय ! मेरे लिए आपका हर फैसला उचित है ।"
"थैंक्यू वैशाली ! कम-से-कम तुम मेरी भावनाओं को तो समझ ही लेती हो ।"
"काश ऐसी समझ सीमा भाभी में भी होती, तो यह सब क्यों होता ?"
"छोड़ो, इस टॉपिक को । रोमेश अब सिर्फ एक मुजरिम है । इसके अलावा हमारा उससे कोई रिश्ता नहीं । मैं उसे अरेस्ट कर ही लूँगा और कोर्ट में सजा कराकर ही दम लूँगा ।"
विजय ने संभावित स्थानों पर ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू किए, परन्तु रोमेश हाथ नहीं आया । अब रोमेश के फोन आने भी बन्द हो गये थे । विजय ने टेलीफोन एक्सचेंज से मिलकर ऐसी व्यवस्था की हुई थी कि रोमेश अगर एक भी फोन करता, तो पुलिस वहाँ तुरन्त पहुँच जाती ।
इस मामले को लेकर पूरा कंट्रोल रूम और प्रत्येक थाना उसे अच्छी तरह सहयोग कर रहा था ।
शायद रोमेश को भी इस बात की भनक लग गई थी कि उसे पकड़ने के लिए जबरदस्त जाल बिछा दिया गया है । इसलिये वह खामोश हो गया था।
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"क्या सचमुच उन्होंने… ?"
"हाँ, वैशाली ! उसने मुझ पर भी गोली चलाई थी ।"
वैशाली केवल गहरी साँस लेकर रह गई । वह जानती थी कि विजय भी एक आदर्श पुलिस ऑफिसर है । वह कभी किसी निर्दोष को नहीं पकड़ता और अपराधी को पकड़ने के लिए वह अपनी नौकरी भी दांव पर लगा सकता है ।
रोमेश भी उसका आदर्श था । आदर्श है । परन्तु अब यह अजीब-सा टकराव दो आदर्शों में हो रहा था । रोमेश अब हत्यारा था और कानून उसका गिरेबान कसने को तैयार था ।
वैशाली की स्थिति यह थी कि वह किसी के लिए साहस नहीं बटोर सकती थी ।
रोमेश की पत्नी के साथ होने वाले अत्याचारों का खुलासा भी अब समाचार पत्रों में हो चुका था । सबको जे.एन. से नफरत थी । परन्तु कानून जज्बात नहीं देखता, केवल अपराध और सबूत देखता है । जे.एन ने क्या किया, यह कानून जानने की कौशिश नहीं करेगा । रोमेश अपराधी था, कानून सिर्फ उसे ही जानता था ।
जे.एन. की मृत्यु के बाद मंत्रीमंडल तक खलबली मच गई थी । परन्तु न जाने क्यों मायादास अण्डरग्राउण्ड हो गया था । शायद उसे अंदेशा था कि रोमेश उस पर भी वार कर सकता है या वह अखबार वालों के डर से छिप गया था ।
बटाला भी फरार हो गया था ।
पुलिस को अब बटाला की भी तलाश थी ।
उस पर कई मामले थे । वह सारे केस उस पर विजय ने बनाये थे । किन्तु अभी मुम्बई पुलिस का केन्द्र बिन्दु रोमेश बना हुआ था । हर जगह रोमेश की तलाश हो रही थी ।
☐☐☐
विजय ने टेलीफोन रिसीव किया ।
वह इस समय अपनी ड्यूटी पर था ।
"मैं रोमेश बोल रहा हूँ ।" दूसरी तरफ से रोमेश की आवाज सुनाई दी । आवाज पहचानते ही विजय उछल पड़ा, "कहाँ से ?"
"रॉयल होटल से, तुम मुझे गिरफ्तार करने के लिए बहुत बेचैन हो ना । अब आ जाओ । मैं यहाँ तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ ।"
विजय ने एकदम टेलीफोन कट किया और रॉयल होटल की तरफ दौड़ पड़ा । बारह मिनट के भीतर वह रॉयल होटल में था । विजय दनदनाता हुआ होटल में दाखिल हुआ, सामने ही काउन्टर था और दूसरी तरफ डायनिंग हॉल ।
"यहाँ मिस्टर रोमेश कहाँ हैं ?" विजय ने काउंटर पर बैठे व्यक्ति से पूछा ।
''ठहरिये ।" काउन्टर पर बैठे व्यक्ति ने कहा, "आपका नाम इंस्पेक्टर विजय तो नहीं ? यह लिफाफा आपके नाम मिस्टर रोमेश छोड़ गये हैं, अभी दो मिनट पहले गये हैं ।"
"ओह माई गॉड !" विजय ने लिफाफा थाम लिया । वह रोमेश की हस्तलिपि से वाकिफ था । उस पर लिखा था, "मैं कोई हलवे की प्लेट नहीं हूँ, जिसे जो चाहे खा ले । जरा मेहनत करके खाना सीखो । मुझे पकड़कर तो दिखाओ, इसी शहर में हूँ । कातिल कैसे छिपता है ? पुलिस कैसे पकड़ती है ? जरा इसका भी तो आनन्द लो रोमेश !"
विजय झल्लाकर रह गया ।
रोमेश शहर से फरार नहीं हुआ था, वह पुलिस से आंख-मिचौली खेल रहा था । विजय ने गहरी सांस ली और होटल से चलता बना ।
☐☐☐
सात दिन गुजर चुके थे, रोमेश गिरफ्तार नहीं हो पा रहा था ।
आठवें दिन भी रोमेश का फोन चर्चगेट से आया । यहाँ भी वह धता बता गया । अब स्थिति यह थी कि रोमेश रोज ही विजय को दौड़ा रहा था, दूसरे शब्दों में पुलिस को छका रहा था ।
"कब तक दौड़ोगे तुम ?" विजय ने दसवें दिन फोन पर कहा, "एक दिन तो तुम्हें कानून के हाथ आना ही पड़ेगा । कानून के हाथ बहुत लंबे होते हैं रोमेश ! उनसे आज तक कोई बच नहीं पाया ।"
ग्यारहवें दिन पुलिस कमिश्नर ने विजय को तलब किया ।
"जे.एन. का हत्यारा अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ ?"
"सर, वह बहुत चालाक हत्यारा है । हम उसे हर तरफ तलाश कर रहे हैं ।"
"तुम पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह तुम्हारा मित्र है । इसलिये तुम उसे गिरफ्तार करने की बजाय बचाने की कौशिश कर रहे हो ।"
"ऐसा नहीं है सर ! ऐसा बिल्कुल गलत है, बेबुनियाद है ।"
"लेकिन अखबार भी छापने लगे हैं यह बात ।" कमिश्नर ने एक अखबार विजय के सामने रखा ।
विजय ने अखबार पढ़ा ।
"यह अखबार वाले भी कभी-कभी बड़ी ओछी हरकत करते हैं सर ! आप यकीन मानिए, इस अखबार का रिपोर्टर मेरे थाने में कुछ कमाई करने आता रहा है । मेरे आने पर इसकी कमाई बन्द हो गई ।"
"मैं यह सब नहीं सुनना चाहता । अगर तुम उसे अरेस्ट नहीं कर सकते, तो तुम यह केस छोड़ दो ।"
"केस छोड़ने से बेहतर तो मैं इस्तीफा देना समझता हूँ । यकीन मानिए, मुझे एक सप्ताह की मोहलत और दीजिये । अगर मैं उसे गिरफ्तार न कर पाया, तो मैं इस्तीफा दे दूँगा ।"
"ओ.के. ! तुम्हें एक सप्ताह का वक़्त और दिया जाता है ।"
विजय वापिस अपनी ड्यूटी पर लौट आया । यह बात वैशाली को भी मालूम हुई ।
''इतना गम्भीर होने की क्या जरूरत है ? ऐसे कहीं इस्तीफा दिया जाता है ?"
"मैं एक अपराधी को नहीं पकड़ पा रहा हूँ, तो फिर मेरा पुलिस में बने रहने का अधिकार ही क्या है ? अगर मैं यह केस छोड़ता हूँ, तब भी तो मेरा कैरियर चौपट होता है । यह मेरे लिए चैलेंजिंग मैटर है वैशाली ।"
वैशाली के पास कोई तर्क नहीं था ।
वह विजय के आदर्श जीवन में कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती थी और अभी तो वह विजय की मंगेतर ही तो थी, पत्नी तो नहीं ! पत्नी भी होती, तब भी वह पति की भावनाओं का आदर ही करती ।
"नौकरी चली भी गई, तो क्या फर्क पड़ता है । मैं ग्रेजुएट हूँ । हट्टा-कट्टा हूँ । कोई भी काम कर सकता हूँ । तुम इस बात से निश्चिन्त रहो, मैं गृहस्थी चला लूँगा, पुलिस की नौकरी के बिना भी ।"
"मैं यह कब कह रही हूँ विजय ! मेरे लिए आपका हर फैसला उचित है ।"
"थैंक्यू वैशाली ! कम-से-कम तुम मेरी भावनाओं को तो समझ ही लेती हो ।"
"काश ऐसी समझ सीमा भाभी में भी होती, तो यह सब क्यों होता ?"
"छोड़ो, इस टॉपिक को । रोमेश अब सिर्फ एक मुजरिम है । इसके अलावा हमारा उससे कोई रिश्ता नहीं । मैं उसे अरेस्ट कर ही लूँगा और कोर्ट में सजा कराकर ही दम लूँगा ।"
विजय ने संभावित स्थानों पर ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू किए, परन्तु रोमेश हाथ नहीं आया । अब रोमेश के फोन आने भी बन्द हो गये थे । विजय ने टेलीफोन एक्सचेंज से मिलकर ऐसी व्यवस्था की हुई थी कि रोमेश अगर एक भी फोन करता, तो पुलिस वहाँ तुरन्त पहुँच जाती ।
इस मामले को लेकर पूरा कंट्रोल रूम और प्रत्येक थाना उसे अच्छी तरह सहयोग कर रहा था ।
शायद रोमेश को भी इस बात की भनक लग गई थी कि उसे पकड़ने के लिए जबरदस्त जाल बिछा दिया गया है । इसलिये वह खामोश हो गया था।
☐☐☐