Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी - Page 6 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी

“इन पेपर्स को देखो..” एकदम से मेरी ओर उन कागजों को बढ़ाते हुए बोली |

पर तब तक मेरी नज़रें उसके उभारों को अच्छे से निहार चुकी थीं इसलिए उसके बोलने के काफ़ी पहले ही मेरा ध्यान भी उन पेपर्स पर ही था |
पेपर्स को हाथों में लिए बड़े गौर से देखने लगा | कुछ ख़ास समझ में नहीं आ रहा था | वे कागज़ दरअसल ज़ेरोक्स थे .. असली के...|

कुल बारह कागज़ थे और प्रत्येक पर किन्ही लोगों के फ़ोटो (वे भी ज़ेरोक्स) के साथ कुछ बातें लिखी हुई थीं | ज़ेरोक्स होने के कारण कुछ लिखावट समझ में आ रही थी और कुछ नहीं |

काफ़ी देर तक पन्नों को उलट पलट कर देखने के बाद भी जब कुछ ख़ास समझ में नहीं आया तो उस लड़की की तरफ़ सवालिया नज़रों से देखा | उसे शायद मेरी इसी प्रतिक्रिया की आशा थी |

क्योंकि उसकी ओर देखते ही वह हौले से मुस्करा दी और बोली,

“ये वही लोग हैं जिनकी तलाश तुम्हें है और इन्हें तुम्हारी तलाश है |”

“क्या??!!!”

सुनते ही जैसे मेरे ऊपर बिजली सी गिरी |

लगभग उछल कर कुर्सी पर सीधा तन गया और दोबारा उन पन्नों को बेसब्री से आगे पीछे पलटने लगा |

पर ‘झांट’ कुछ समझ में आ रहा था.......

मेरा उतावलापन देख कर वह अपना हाथ आगे बढाई और मेरे हाथों को थाम लिया..

उफ़..! कितने नर्म मुलायम थे उसके हाथ ..! कितना कोमल स्पर्श था !! पल भर को तो मैं जैसे सब भूल ही गया | मन में एक आवाज़ उठी कि, ‘बस... ऐसे ही हमेशा हाथ को पकड़े रहना.. |’

शांत लहजे में कहा,

“अभय... धैर्य से काम लो... उतावलापन हमेशा भारी पड़ता है |”

उसका मेरा नाम लेना मेरे कानों को मधु सा लगा | जी किया कि एक बार उससे अनुरोध करूँ की एकबार फ़िर वह मेरा नाम ले .....

आहा! कितना मधुर स्वर है इसका...

पर...

अरे, यह क्या..!!

इसे मेरा नाम .. कैसे पता...??

चौंक उठा मैं |

और तुरंत ही अचरज भरी निगाहों से उसे देखा...|

मन पढ़ने की उसने कोई डिग्री कर रखी होगी शायद ....

तभी तो मेरे कुछ कहने से पहले ही उसने मेरे आँखों और चेहरे पर उभर आये आश्चर्य की रेखाओं को देखते ही कहा,

“मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ ना सही पर बहुत कुछ जानती हूँ...”

ये कहते हुए उसने मेरे इंस्टिट्यूट, मेरी पढ़ाई लिखाई, परिवार और ऐसे ही कई सारी बातों का जिक्र किया
 
जैसे जैसे वह सब कहते जा रही थी वैसे वैसे मैं उसके चेहरे, आँखों, भौहों, होंठों .... सब में खोता जा रहा था |

एक अजीब सी कशिश, एक अजीब सा खींचाव था उसके हरेक अदा, हरेक बात में |

वह शायद मेरे इन मनोभावों को भी अच्छे से समझ रही थी ... तभी तो रह रह कर उसके गोरे चेहरे पर लाज की एक रेखा आती जाती रहती |

आँखों पे चढ़ा काला चश्मा कुछ देर पहले उतार चुकी थी .... हल्के नीले रंग की थी उसकी आँखें... और किनारों पर बहुत ही सलीके से काजल लगा हुआ था ... और ये उसकी आँखों की सुंदरता को भी कई गुना बढ़ा रही थी |

“हेल्लो..!!” उसने थोड़ा ज़ोर से कहा |

मेरी तन्द्रा टूटी... देखा, अपने दाएँ हाथ को मेरे आँखों के सामने हिला रही थी |

“कहाँ खो जाते हो...? अभी जो ज़रूरी बातें हैं... उनपे ध्यान दो... बाकी के बातों पर ध्यान देने के लिए और भी समय बाद में मिलेगा |”

थोड़ी झुंझलाहट थी उसकी आवाज़ में... पर साथ ही आँखों और चेहरे पर शर्म और ख़ुशी (शायद) के मिश्रित भाव थे |

“आं...हाँ... तो ...आं... हम्म.... हाँ... ठीक है.... अम्म.... आ... आप मेरे बारे में इतना कुछ जानती हैं... पर आपने मुझे अपना नाम नहीं बताया..?!” झेंपते हुए बोला मैं | एक चोरी पकड़ी गयी मेरी अभी अभी |

“वैसे नाम तो मेरा मोनिका है... पर दोस्तों-रिश्तेदारों में सब मुझे मोना नाम से जानते – पुकारते हैं |” थोड़ी इतराते हुए बोली |

“तो क्या मैं भी तुम्हे मोना कहूँ?” मैंने पूछा |

“कह सकते हो...|” उसने उत्तर दिया |

फ़िर, तुरंत ही कहा,
“अच्छा... अब इससे पहले की किसी तरह के और सवाल जवाब हों.. हमें काम की बातों पर लौट आना चाहिए .... ओके?”

इसबार उसके आवाज़ में दृढ़ता थी |

मैंने हाँ में सिर हिलाया |

“तो सुनो... पहली बात... तुम और तुम्हारा परिवार... ख़ास कर तुम.. पुलिस पर भरोसा भूल से भी भूल कर मत करो.. सबकी तो नहीं बता सकती पर इस बात का काफ़ी हद तक अंदेशा है कि उस विभाग में कोई मिले हुए है; तुम्हारे और देश के दुश्मनों से... ”

उसकी यह बात मेरे अन्दर कौंधती हुई सी लगी पर मैं शांत रहा | सिर्फ़ इतना कहा,

“तुम बोलती जाओ...|”

मेरे सकारात्मक रवैये को देख वो खुश होती हुई बोली,

“गुड, अब आगे सुनो.. जिस इंस्पेक्टर विनय को तुम ढूँढने गये थे स्टेशन ... वह फ़िलहाल मिलने वाले हैं नहीं... लम्बी छुट्टी पर गए हैं... और शायद जब तक वो लौटे... तुम और तुम्हारे परिवार का गेम बज चुका होगा... खास कर देश का भी |”

जिस विश्वसनीयता के साथ उसने कहा ये बात, मुझे वाकई बहुत ताज्जुब हुआ पर चुप रहा |

क्योंकि मुझे याद आया कि, किसी महापुरुष ने एक बार कहा थे की यदि श्रेष्ठ वक्ता बनना है तो पहले श्रेष्ठ श्रोता बनो |

“ये लोग इंटरनेशनल ड्रग डीलर्स और खतरनाक माफ़िया हैं .. इनसे पार पाना इज नॉट एट ऑल इजी | तुम्हारी चाची को इन्ही लोगों ने किसी तरह अपने जाल में फंसाया है | ये लोग अक्सर कम उम्र की लड़कियों और विवाहित महिलाओं को अपना शिकार बनाते हैं ताकि इनका धंधा किसी की पकड़ में न आए
 
इसी तरह वह एक के बाद एक कई खुलासे करते गई और हैरत से मेरी आँखें चौड़ी होते गई, साथ ही दिमाग में नई सोच पैदा हो गई कि इसे इतना कुछ कैसे पता??

अगले २० मिनट तक लगातार बोलने के बाद वह चुप हुई ... मुझे शांत देख कर पूछी,

“कुछ पूछना है तुम्हें?”

“हाँ... फिलहाल बस एक ही सवाल.. तुम्हें इतना सब कुछ कैसे पता.. कौन हो तुम.. क्या करती हो? सीबीआई हो? सीआईडी? एनआईए? या रॉ??”
“हाहा.. नहीं.. मैं इन सब में से कुछ भी नहीं हूँ.... और असल में क्या हूँ..ये तुम्हें धीरे धीरे पता लग ही जाएगा.. अभी जो सबसे ज़रूरी है वह यह कि क्या तुम ऐसे लोगों का पर्दाफाश करने में मेरी मदद करोगे?”

मैं थोड़ा सोचते हुए बोला,

“मम्म.. पर तुम तो वैसे ही बहुत एक्सपर्ट हो... तुम्हें मेरी सहायता क्यों चाहिए?”

“क्योंकि मैं जो भी करुँगी या कर पाऊँगी वो सब कुछ पीठ पीछे होगा... मुझे कोई ऐसा चाहिए जो डायरेक्ट इन सबमें इन्वोल्व हो सके.....”

“तुम्हारा मतलब जो इन लोगों के साथ उठना बैठना कर सके...?? इनके साथ रह सके..?? अरे यार.. तुम तो मुझे मरवाने पर तूली हो..”

“पहले पूरी बात सुनो अभय... मैंने क्या अभी तक ऐसा कुछ किया है जिससे तुम या तुम्हारे परिवार वालों को किसी भी तरह की कोई दिक्कत या किसी तरह का कोई खतरा दिखा या आया हो ??” बहुत स्पष्टता और दृढ़ता के साथ बोली मोना |

“नहीं...” छोटा सा उत्तर दिया मैंने भी |

“तो फिर पूरा भरोसा रखो मुझ पर ...” उसने अपना हाथ मेरे हाथ पर रखते हुए कहा |

मैं क्या करता... बैचलर बंदा .. तुरंत पिघल गया |

“ठीक है.. मैं तैयार हूँ | बताओ.. क्या करना होगा मुझे?” ऐसा कहते हुए एक लम्बी सांस ली मैंने |

“गुड.. तो सुनो.. मैं... और मेरे साथ जो और जितने भी हैं... वो सभी अगले कुछ दिनों तक तुम्हें कई चीज़ों में ट्रेनिंग देंगे... तुम्हे बस इतना करना है की बगैर किसी सवाल के, वो लोग जो और जैसा सीखाएँगे तुम्हें ... तुम बस वैसे ही सीखते रहना | नो वर्ड्स... ओके?” अपने होंठों पर ऊँगली रखते हुए बोली |

मुझे उसका यह अंदाज़ बड़ा पसंद आया | डांटते हुए कुछ समझाना..!

“तो फिर चलो, आज की हमारी यह भेंट यहीं समाप्त होती है .. ओके? दो दिन बाद से तुम्हारी ट्रेनिंग शुरू होगी | कब और कहाँ आना होगा तुम्हें,
ये हम तुम्हें अपने तरीके से बता देंगे... अब, जाने से पहले... एनी क्वेश्चन?”

“नहीं, कोई क्वेश्चन तो नहीं... पर एक छोटी सी शर्त है... |”

“कैसी शर्त?”

“मैं जब से ट्रेनिंग के लिए आऊँ... जहाँ भी आना पड़े.... आप वहाँ ज़रूर होंगी... दरअसल क्या है कि, कुछ अजनबियों के बीच एक जाना पहचाना चेहरे अगर मौजूद हो... तो काम का मज़ा दुगना आता है.. और..... ”

“और.....?”

“और मन भी लगा रहता है |” मैं झेंपते हुए बोला |

सुनकर वो कहकहा लगा कर हँस पड़ी | हँसते हुए बोली,

“मुझे कहीं न कहीं आपकी किसी ऐसी बात बोलने की उम्मीद थी.... खैर, कोई बात नहीं... मैं ज़रूर रहूँगी.. दरअसल क्या है है कि, जिस इंसान पर भरोसा कर रही हूँ... उस भरोसे की कसौटी पर वह कितना खरा उतरता है .. यह ज़रूर देखना चाहूँगी.. इससे मेरा समय भी कटेगा और....”

“और.......?”

“आपको सही सही गाइड करने का भी मौका मिलेगा |” नज़रें नीचे पेपर्स की ओर करते हुए एक शरारत सी कातिलाना मुस्कान लिए बोली |


दोनों उठे.. और बाहर निकले... अभी कुछ कदम आगे चले ही थे कि, सीढ़ियों के पास अचानक से वह फ़िसली.. नीचे गिरने ही वाली थी कि.. मैंने लपक कर उसका हाथ पकड़ लिया... और ज़ोर से अपनी तरफ़ खींचा.. वह लगभग मेरे बहुत करीब आ गई.. सट ही गयी होती अगर बीच में अपनी दायीं हथेली न लायी होती | हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे कुछ मिनटो के लिए... एक दूसरे के आँखों में.. शायद कुछ देर और देखते रहते... की तभी एक छोटा सा पत्थर नीचे सीढ़ियों पर लुड़का.. आवाज़ से हम दोनों की तन्द्रा टूटी.. होश में आये जैसे.. अलग होकर दोनों ने एक दूसरे को गुड बाय कहा |



उसने इशारे से मुझे दूसरे तरफ़ की सीढ़ियों से जाने को कहा ... | और खुद पलट कर दूसरी तरफ़ के एक दरवाज़े के पीछे हो गई | मैं नीचे उतर आया था | एक ऑटो वाला पहले से खड़ा था | साथ में एक आदमी भी | मुझे उसी से जाने को कहा | मैंने कुछ कहा या सोचा नहीं ... ऑटो में बैठ गया | मेरे बैठते ही ऑटो चल पड़ा |



********************************************

ट्रेनिंग शुरू हुई | काफ़ी सख्त ट्रेनिंग थी | रत्ती भर की भी गलती होने से काफ़ी डांटा जाता | पर मन मार कर सीखना तो था ही | इसके अलावा और तो कोई चारा भी नहीं था |


समय गुज़रता रहा | मोना हर दिन आती | मेरा हौसला बढ़ाती | ट्रेनिंग भी दिन ब दिन और टफ होता गया |

पर पूरे धैर्य और हौसले से मैं लगा रहा ट्रेनिंग पर |

चार महीने लगे ...

ट्रेनिंग खत्म होने में.... |

इन चार महीने में कई दफ़े ऐसे हुए जब मैं और मोना बहुत क्लोज आते आते रह गये | और हों भी क्यों न.. साथ में लंच, बातें, यहाँ तक की कई बार डिनर भी हमने साथ ही किया |


एक दूसरे के बारे में काफ़ी कुछ जाना भी हमने; जैसे की .... परिवार में कौन कौन हैं, पढ़ाई कहाँ तक हुई है, आगे की क्या योजना है... इत्यादि...| उसके बारे में जो पता चला, वह ये है कि उसके माँ बाप का उसके बचपन में ही देहांत हो गया था | वह अपने एक रिश्तेदार के यहाँ रह कर पली बढ़ी .. जब बढ़ी हुई तब उसे पता चला कि उसके माँ बाप की मृत्यु किसी दुर्घटना या बीमारी के वजह से नहीं बल्कि उनकी हत्या हुई थी | और उन्ही हत्यारों की खोज में वो इंडियन सीक्रेट सर्विसेस के कांटेक्ट में आई और बाद में अपनी खुद की टीम बना कर देश और समाज को गंदे लोगों के गिरफ़्त से छुड़ाने के काम में लग गई | और इसी क्रम में उसका मुझसे भेंट हुआ और अपने विश्वस्त सूत्रों से मेरे बारे में पता लगा ली |


हम दोनों इतने घुल मिल गये थे कि मैंने अपनी चाची से भी उसे मिलवा दिया था | चाची को शायद मेरा किसी हमउम्र लड़की से मेल मिलाप होना अच्छा नहीं लगा हो पर वह मेरे लिए खुश भी बहुत हुई | मोना भी बाद में चाची की तारीफ़ करने से खुद को रोक नहीं पाई और कहा था की चाची में अब भी आज की कमसीन लड़कियों को मात देने का पूरा दम है |


ट्रेनिंग ख़त्म होने के कुछ ही दिनों बाद मोना के माध्यम से खबर मिली कि शहर में पिछले काफ़ी दिनों से ड्रग्स और अवैध हथियारों की खरीद फ़रोख्त बहुत बढ़ गई है और ऐसे अवैध धंधे करने वाले अक्सर शहर के मशहूर ; पर साथ ही उतना ही बदनाम, “कैसियो बार” में जमा होते हैं ..

इस बार में बार के साथ साथ कैसिनो की भी सुविधा उपलब्ध है और शौक़ीन लोग कैसिनो में वक़्त बीताने ज़रूर आते हैं | कुछ सिर्फ़ ऐय्याशी और पैसे उड़ाने के लिए तो कुछ अपनी किस्मत आज़माकर अमीर होने के लिए |

“अभय, अब असल मैदान में उतरने का वक़्त आ गया है | ” मोना ने चिंतित पर दृढ़ स्वर में कहा |

“पता है मोना... अं..” चिंता में डूबा, सिगरेट के कश लेता हुआ दूर कहीं देखता हुआ मैं बोला |

“किस सोच में डूबे हो?” मेरी ओर देखते हुए पूछी मोना |

“आगे की योजना के बारे में ... हालाँकि तुम सब समझा चुकी हो... फिर भी....”

“फिर भी क्या अभय...??” इस बार मोना के होंठ के साथ स्वर भी कंपकंपाए |

“योजना के सफल होने के अधिकतम सम्भावना के बारे में सोच रहा था |”

“ऐसा क्यों... क्या तुम्हें मेरी योजना पर भरोसा नहीं?” सशंकित लहजे में मोना ने पूछा |

“ऐसी बात नहीं है मोना... दरअसल, मेरी यह आदत ही है की जब तक काम पूरा न हो जाए ... मैं उस काम के बारे में सोचना बंद नहीं करता... यों समझो की सोचना बंद नहीं कर पाता |”

“ह्म्म्म... सच कहूं तो मैं भी ऐसा ही कुछ मन ही मन कर रही थी |”

“वो क्या?”

“मेरी बस एक ही चिंता है अभय...” मोना का गला थोड़ा भर्राया |

“वह क्या?”

एक लम्बी सांस छोड़ कर दूर क्षितिज की ओर देखते हुए, मेरे कंधे पर सर टिकाते हुए बोली,

“मैं तुम्हे खोना नहीं चाहती अभय... ” हलकी रुलाई फूट ही पड़ी आखिर उसकी |

उसे चुप कराने की व्यर्थ कोशिश करता हुआ मैं बोला,

“हम दोनों को कुछ नहीं होगा मोना.. रिलेक्स... माना की हम जिस रास्ते पर आगे बढ़ रहे है वहां खतरा ही खतरा है पर उस रास्ते पर चलना तो आखिर है ही हमें... अब जब कदम आगे बढ़ा ही दिया तो फिर सोच कर क्या फ़ायदा?”

मोना कुछ नहीं बोली... बस मेरे कंधे से अपना सिर टिकाए रही... चुप...निस्तब्द... खुद को रोने से रोकने की कोशिश करते हुई...

उसे दिलासा तो मैंने दे दिया पर मैं खुद आशंकाओं से घिरा हुआ था ....

और सबसे बड़ी चिंता मुझे मोना को ले कर भी थी ...

पता नहीं आखिर मैं कुछ दिनों से उस पर भरोसा नहीं कर पा रहा हूँ... हालाँकि ऐसा होने की कोई पुख्ता वजह नहीं है पर ... फिर भी... मैं इस बात को कतई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता कि ये लड़की लोमड़ी से भी ज़्यादा तेज़ दिमाग वाली है ...

कुछ तो ऐसा है जो मुझे नज़र नहीं आ रहा.. समझ नहीं आ रहा ...

बट आई ऍम श्यौर .... एवरीथिंग इज नॉट राईट...




***e********************n*************************d***********
 
इसी तरह वह एक के बाद एक कई खुलासे करते गई और हैरत से मेरी आँखें चौड़ी होते गई, साथ ही दिमाग में नई सोच पैदा हो गई कि इसे इतना कुछ कैसे पता??

अगले २० मिनट तक लगातार बोलने के बाद वह चुप हुई ... मुझे शांत देख कर पूछी,

“कुछ पूछना है तुम्हें?”

“हाँ... फिलहाल बस एक ही सवाल.. तुम्हें इतना सब कुछ कैसे पता.. कौन हो तुम.. क्या करती हो? सीबीआई हो? सीआईडी? एनआईए? या रॉ??”
“हाहा.. नहीं.. मैं इन सब में से कुछ भी नहीं हूँ.... और असल में क्या हूँ..ये तुम्हें धीरे धीरे पता लग ही जाएगा.. अभी जो सबसे ज़रूरी है वह यह कि क्या तुम ऐसे लोगों का पर्दाफाश करने में मेरी मदद करोगे?”

मैं थोड़ा सोचते हुए बोला,

“मम्म.. पर तुम तो वैसे ही बहुत एक्सपर्ट हो... तुम्हें मेरी सहायता क्यों चाहिए?”

“क्योंकि मैं जो भी करुँगी या कर पाऊँगी वो सब कुछ पीठ पीछे होगा... मुझे कोई ऐसा चाहिए जो डायरेक्ट इन सबमें इन्वोल्व हो सके.....”

“तुम्हारा मतलब जो इन लोगों के साथ उठना बैठना कर सके...?? इनके साथ रह सके..?? अरे यार.. तुम तो मुझे मरवाने पर तूली हो..”

“पहले पूरी बात सुनो अभय... मैंने क्या अभी तक ऐसा कुछ किया है जिससे तुम या तुम्हारे परिवार वालों को किसी भी तरह की कोई दिक्कत या किसी तरह का कोई खतरा दिखा या आया हो ??” बहुत स्पष्टता और दृढ़ता के साथ बोली मोना |

“नहीं...” छोटा सा उत्तर दिया मैंने भी |

“तो फिर पूरा भरोसा रखो मुझ पर ...” उसने अपना हाथ मेरे हाथ पर रखते हुए कहा |

मैं क्या करता... बैचलर बंदा .. तुरंत पिघल गया |

“ठीक है.. मैं तैयार हूँ | बताओ.. क्या करना होगा मुझे?” ऐसा कहते हुए एक लम्बी सांस ली मैंने |

“गुड.. तो सुनो.. मैं... और मेरे साथ जो और जितने भी हैं... वो सभी अगले कुछ दिनों तक तुम्हें कई चीज़ों में ट्रेनिंग देंगे... तुम्हे बस इतना करना है की बगैर किसी सवाल के, वो लोग जो और जैसा सीखाएँगे तुम्हें ... तुम बस वैसे ही सीखते रहना | नो वर्ड्स... ओके?” अपने होंठों पर ऊँगली रखते हुए बोली |

मुझे उसका यह अंदाज़ बड़ा पसंद आया | डांटते हुए कुछ समझाना..!

“तो फिर चलो, आज की हमारी यह भेंट यहीं समाप्त होती है .. ओके? दो दिन बाद से तुम्हारी ट्रेनिंग शुरू होगी | कब और कहाँ आना होगा तुम्हें,
ये हम तुम्हें अपने तरीके से बता देंगे... अब, जाने से पहले... एनी क्वेश्चन?”

“नहीं, कोई क्वेश्चन तो नहीं... पर एक छोटी सी शर्त है... |”

“कैसी शर्त?”

“मैं जब से ट्रेनिंग के लिए आऊँ... जहाँ भी आना पड़े.... आप वहाँ ज़रूर होंगी... दरअसल क्या है कि, कुछ अजनबियों के बीच एक जाना पहचाना चेहरे अगर मौजूद हो... तो काम का मज़ा दुगना आता है.. और..... ”

“और.....?”

“और मन भी लगा रहता है |” मैं झेंपते हुए बोला |

सुनकर वो कहकहा लगा कर हँस पड़ी | हँसते हुए बोली,

“मुझे कहीं न कहीं आपकी किसी ऐसी बात बोलने की उम्मीद थी.... खैर, कोई बात नहीं... मैं ज़रूर रहूँगी.. दरअसल क्या है है कि, जिस इंसान पर भरोसा कर रही हूँ... उस भरोसे की कसौटी पर वह कितना खरा उतरता है .. यह ज़रूर देखना चाहूँगी.. इससे मेरा समय भी कटेगा और....”

“और.......?”

“आपको सही सही गाइड करने का भी मौका मिलेगा |” नज़रें नीचे पेपर्स की ओर करते हुए एक शरारत सी कातिलाना मुस्कान लिए बोली |


दोनों उठे.. और बाहर निकले... अभी कुछ कदम आगे चले ही थे कि, सीढ़ियों के पास अचानक से वह फ़िसली.. नीचे गिरने ही वाली थी कि.. मैंने लपक कर उसका हाथ पकड़ लिया... और ज़ोर से अपनी तरफ़ खींचा.. वह लगभग मेरे बहुत करीब आ गई.. सट ही गयी होती अगर बीच में अपनी दायीं हथेली न लायी होती | हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे कुछ मिनटो के लिए... एक दूसरे के आँखों में.. शायद कुछ देर और देखते रहते... की तभी एक छोटा सा पत्थर नीचे सीढ़ियों पर लुड़का.. आवाज़ से हम दोनों की तन्द्रा टूटी.. होश में आये जैसे.. अलग होकर दोनों ने एक दूसरे को गुड बाय कहा |



उसने इशारे से मुझे दूसरे तरफ़ की सीढ़ियों से जाने को कहा ... | और खुद पलट कर दूसरी तरफ़ के एक दरवाज़े के पीछे हो गई | मैं नीचे उतर आया था | एक ऑटो वाला पहले से खड़ा था | साथ में एक आदमी भी | मुझे उसी से जाने को कहा | मैंने कुछ कहा या सोचा नहीं ... ऑटो में बैठ गया | मेरे बैठते ही ऑटो चल पड़ा |



********************************************

ट्रेनिंग शुरू हुई | काफ़ी सख्त ट्रेनिंग थी | रत्ती भर की भी गलती होने से काफ़ी डांटा जाता | पर मन मार कर सीखना तो था ही | इसके अलावा और तो कोई चारा भी नहीं था |


समय गुज़रता रहा | मोना हर दिन आती | मेरा हौसला बढ़ाती | ट्रेनिंग भी दिन ब दिन और टफ होता गया |

पर पूरे धैर्य और हौसले से मैं लगा रहा ट्रेनिंग पर |

चार महीने लगे ...

ट्रेनिंग खत्म होने में.... |

इन चार महीने में कई दफ़े ऐसे हुए जब मैं और मोना बहुत क्लोज आते आते रह गये | और हों भी क्यों न.. साथ में लंच, बातें, यहाँ तक की कई बार डिनर भी हमने साथ ही किया |


एक दूसरे के बारे में काफ़ी कुछ जाना भी हमने; जैसे की .... परिवार में कौन कौन हैं, पढ़ाई कहाँ तक हुई है, आगे की क्या योजना है... इत्यादि...| उसके बारे में जो पता चला, वह ये है कि उसके माँ बाप का उसके बचपन में ही देहांत हो गया था | वह अपने एक रिश्तेदार के यहाँ रह कर पली बढ़ी .. जब बढ़ी हुई तब उसे पता चला कि उसके माँ बाप की मृत्यु किसी दुर्घटना या बीमारी के वजह से नहीं बल्कि उनकी हत्या हुई थी | और उन्ही हत्यारों की खोज में वो इंडियन सीक्रेट सर्विसेस के कांटेक्ट में आई और बाद में अपनी खुद की टीम बना कर देश और समाज को गंदे लोगों के गिरफ़्त से छुड़ाने के काम में लग गई | और इसी क्रम में उसका मुझसे भेंट हुआ और अपने विश्वस्त सूत्रों से मेरे बारे में पता लगा ली |


हम दोनों इतने घुल मिल गये थे कि मैंने अपनी चाची से भी उसे मिलवा दिया था | चाची को शायद मेरा किसी हमउम्र लड़की से मेल मिलाप होना अच्छा नहीं लगा हो पर वह मेरे लिए खुश भी बहुत हुई | मोना भी बाद में चाची की तारीफ़ करने से खुद को रोक नहीं पाई और कहा था की चाची में अब भी आज की कमसीन लड़कियों को मात देने का पूरा दम है |


ट्रेनिंग ख़त्म होने के कुछ ही दिनों बाद मोना के माध्यम से खबर मिली कि शहर में पिछले काफ़ी दिनों से ड्रग्स और अवैध हथियारों की खरीद फ़रोख्त बहुत बढ़ गई है और ऐसे अवैध धंधे करने वाले अक्सर शहर के मशहूर ; पर साथ ही उतना ही बदनाम, “कैसियो बार” में जमा होते हैं ..

इस बार में बार के साथ साथ कैसिनो की भी सुविधा उपलब्ध है और शौक़ीन लोग कैसिनो में वक़्त बीताने ज़रूर आते हैं | कुछ सिर्फ़ ऐय्याशी और पैसे उड़ाने के लिए तो कुछ अपनी किस्मत आज़माकर अमीर होने के लिए |

“अभय, अब असल मैदान में उतरने का वक़्त आ गया है | ” मोना ने चिंतित पर दृढ़ स्वर में कहा |

“पता है मोना... अं..” चिंता में डूबा, सिगरेट के कश लेता हुआ दूर कहीं देखता हुआ मैं बोला |

“किस सोच में डूबे हो?” मेरी ओर देखते हुए पूछी मोना |

“आगे की योजना के बारे में ... हालाँकि तुम सब समझा चुकी हो... फिर भी....”

“फिर भी क्या अभय...??” इस बार मोना के होंठ के साथ स्वर भी कंपकंपाए |

“योजना के सफल होने के अधिकतम सम्भावना के बारे में सोच रहा था |”

“ऐसा क्यों... क्या तुम्हें मेरी योजना पर भरोसा नहीं?” सशंकित लहजे में मोना ने पूछा |

“ऐसी बात नहीं है मोना... दरअसल, मेरी यह आदत ही है की जब तक काम पूरा न हो जाए ... मैं उस काम के बारे में सोचना बंद नहीं करता... यों समझो की सोचना बंद नहीं कर पाता |”

“ह्म्म्म... सच कहूं तो मैं भी ऐसा ही कुछ मन ही मन कर रही थी |”

“वो क्या?”

“मेरी बस एक ही चिंता है अभय...” मोना का गला थोड़ा भर्राया |

“वह क्या?”

एक लम्बी सांस छोड़ कर दूर क्षितिज की ओर देखते हुए, मेरे कंधे पर सर टिकाते हुए बोली,

“मैं तुम्हे खोना नहीं चाहती अभय... ” हलकी रुलाई फूट ही पड़ी आखिर उसकी |

उसे चुप कराने की व्यर्थ कोशिश करता हुआ मैं बोला,

“हम दोनों को कुछ नहीं होगा मोना.. रिलेक्स... माना की हम जिस रास्ते पर आगे बढ़ रहे है वहां खतरा ही खतरा है पर उस रास्ते पर चलना तो आखिर है ही हमें... अब जब कदम आगे बढ़ा ही दिया तो फिर सोच कर क्या फ़ायदा?”

मोना कुछ नहीं बोली... बस मेरे कंधे से अपना सिर टिकाए रही... चुप...निस्तब्द... खुद को रोने से रोकने की कोशिश करते हुई...

उसे दिलासा तो मैंने दे दिया पर मैं खुद आशंकाओं से घिरा हुआ था ....

और सबसे बड़ी चिंता मुझे मोना को ले कर भी थी ...

पता नहीं आखिर मैं कुछ दिनों से उस पर भरोसा नहीं कर पा रहा हूँ... हालाँकि ऐसा होने की कोई पुख्ता वजह नहीं है पर ... फिर भी... मैं इस बात को कतई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता कि ये लड़की लोमड़ी से भी ज़्यादा तेज़ दिमाग वाली है ...

कुछ तो ऐसा है जो मुझे नज़र नहीं आ रहा.. समझ नहीं आ रहा ...

बट आई ऍम श्यौर .... एवरीथिंग इज नॉट राईट...


 
Back
Top