Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 21 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

हास्पिटल से निकलकर मैंने दीदी के घर जाने के लिए रिक्शा किया क्योंकि मुझे रात को ही राजकोट के लिए निकल जाना था। दीदी के घर पर ताला देखकर मैंने उन्हें मोबाइल लगाया, तीन-चार बार कोशिश करने के बाद दीदी ने मोबाइल उठाया।

दीदी- “हाँ निशा, बहुत दिन बाद याद किया..."

मैंने पूछा- “दीदी, आप कहां हो?”

दीदी- “मैं तेरे जीजू के फ्रेंड की मैरेज़ में हूँ..”

मैं- “मैं आपके घर के बाहर खड़ी हूँ..”

दीदी- “मैं कल सुबह आने वाली हूँ, तुम सुबह से ही आ जाना...”

मैं- “मैं तो रात को निकल जाने वाली हैं दीदी...”

दीदी- “आई हो तो एक, दो दिन बाद जाना...”

मैं- “नहीं दीदी...”

दीदी- “क्या नहीं नहीं कर रही है? मेरी कसम है तुझे, मुझसे मिले बिना मत जाना...”

मैं- “ओके दीदी, मैं फोन रख रही हूँ..” कहकर मैंने फोन काट दिया।

मैं रिक्शा करके घर गई, रात को खाना खाकर मैं, मम्मी और पापा टीवी देख रहे थे। मैंने पापा को कहा- 'आजतक' लगाओ ना पापा, देखो ना कोई खबर आ रही है विजय भैया के केस के बारे में?

पापा ने आज-तक, स्टार-न्यूज, जी-न्यूज, धीरे-धीरे करके सारी न्यूज चैनल देख ली, पर किसी में कुछ नहीं आ रहा था। फिर ई-टीवी गुजराती भी देख ली उसमें भी कुछ नहीं आ रहा था।

पापा- “ये न्यूज चैनल वाले एक बच्चा कुवें में गिरता है तो भी सारे देश को सिर पे उठा लेते हैं, और एक पोलिस इंस्पेक्टर की हत्या और उसकी बहन के बलात्कार को कोई महत्व नहीं दे रहे...” पापा ने किसी भी चैनल में विजय भैया की कोई न्यूज नहीं देखी तो हताशा से बोले।

मैं- “पापा, कल के बाद आज अखबार में भी कुछ नहीं आया था...” मैंने कहा।

मेरी बात सुनकर पापा कुछ बोलने जा रहे थे, उसी वक़्त किसी ने बेल बजाई और पापा दरवाजा खोलने उठे। वो अब्दुल था, वो अंदर आया, मुझे देखकर मुश्कुराया, मैं भी उसके सामने हँसी लेकिन मेरी हँसी बनावटी थी जो अब्दुल को मालूम पड़ गया।

अब्दुल- “क्यों क्या हुवा? चेहरे पे नूर नहीं है, सब खैरियत तो है ना?”

मैं कोई जवाब दें उसके पहले पापा बोले- “परसों एक पोलिस वाले की हत्या हुई और उसकी बहन का बलात्कार हुवा, वो लड़की निशा की फ्रेंड है...”

अब्दुल- “वो तो हास्पिटल में है ना... बेहोश है ना?” अब्दुल ने मेरी तरफ देखकर कहा।

मैं- “हाँ..”

अब्दुल- “उसे वहीं मार डालेंगे...”

मैं- “क्या? क्यों? अब उसको कोई क्यों मारेगा?” रीता की हर बात आज मुझे झटके दे रही थी।

अब्दुल- “उसी ने तो देखा है उसके भाई के हत्यारों को और उसकी इज्ज़त लूटने वालों को, वो होश में आएगी तो पहचान लेगी उन सबको...” अब्दुल की बात में वजूद तो था लेकिन मेरा दिल रीता की मौत के बारे में सोचने को तैयार नहीं था।

मैं- “लेकिन वहां बाहर दो पोलिस वाले बैठे हैं रीता की सुरक्षा के लिए...”

अब्दुल- “वो भी हट जाएंगे पैसे मिलते ही...”

पापा ने कहा- “जिसके हाथ में ये केस है वो ईमानदार है और अमित पोलिस डिपार्टमेंट का आदमी था इसलिए मेरे खयाल से गुनहगार पकड़े जाएंगे...”

अब्दुल- “जावेद मेरा दोस्त है, बहुत ही नेकदिल और ईमानदार इंसान। पर उसके नीचे वाले पैसे खाकर काम करेंगे तो वो भी क्या करेगा?” अब्दुल ने कहा।

मैं- “आप तो बहुत कुछ जानते हैं?” मैंने कहा।

अब्दुल- “हाँ... ये भी सुना है की अदावत इंस्पेक्टर की नहीं थी, उसकी बहन की थी। कोई था उसका पुराना आशिक...”

मैं- “उसका पुराना आशिक...” मैंने कहा। मेरी आँखों के सामने विजय तैर रहा था, जो उसके पीछे नहीं मेरे पीछे पड़ा था।

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विजय ने रीता के जरिए मुझे कालेज के पीछे बुलाया था और उस वक़्त वो भी मेरे साथ फंस गई थी, और रीता ने अमित भैया को बुलाकर विजय को पिटवाया भी था। लेकिन ऐसा तो होता रहता है कालेज में, इतनी सी बात को कोई इतना वक़्त याद नहीं रखता और ना ही इतनी सी बात के लिए कोई किसी का कतल करता है ना बलात्कार। मैं मन ही मन बोली- “नहीं, विजय नहीं हो सकता...”

अब्दुल- “क्या सोच रही हो?” अब्दुल ने पूछा।

मैं- “नहीं, कुछ नहीं..."

अब्दुल- “ये भी सुना है की कोई बड़ी हस्ती है तुम्हारी फ्रेंड को बर्बाद करने वाली...”

मैं- “आप उसका नाम पता कर सकते हैं..."

अब्दुल- “वो तो मेरे बायें हाथ का खेल है, कल के दिन में ही पता करके तुझे बताता हूँ...”

उसके बाद पापा और अब्दुल दूसरी बातें करने लगे। पर मेरा बिल्कुल भी ध्यान नहीं था उनकी बातों में, मैं रीता के बारे में ही सोच रही थी।

अब्दुल ने कहा- “मैं चलता हूँ, शर्माजी...”

अब्दुल की जाने की बात से मैं मेरी सोच में से बाहर आई।

अब्दुल- “निशा तुम्हारी फ्रेंड के रिश्तेदारों को उसका ध्यान रखने को कह देना, और मैं तुम्हें पता लगाकर कल फोन करूंगा..."

दूसरे दिन सुबह मैंने दीदी को फोन करके दोपहर को हास्पिटल बुला लिया। अब्दुल की बात सुनने के बाद मैंने आज रीता के पास ही रहने को सोच लिया था। कल और आज में रीता की हालत में कोई फर्क नहीं था। दीदी आई तब तक मैंने भाभी के साथ रीता के पास बिताए थे। वो बीते दिनों की बात करती रही।

दीदी ने आते ही मुझे बाहों में जकड़ लिया, दीदी बहुत खुश थी। हम ऐसी जगह पर मिले थे जहां खुशी दिखाना लाजमी नहीं था, पर दीदी की खुशी उनके ना चाहते हुये भी दिख रही थी।

छे बजे अब्दुल का मुझे मोबाइल आया- “मैंने पता लगा लिया है, तुम जल्दी से मेरे घर आ जाओ...”

मैंने भाभी को रीता का खयाल रखने को कहा और दीदी के साथ बाहर निकली। मैंने दीदी से जीजू के बारे में पूछा तो वो शर्मा गई।

दीदी- “थॅंक्स निशा, तेरी वजह से मेरी जिंदगी बदल गई...”

मैंने दीदी को बाइ कहकर घर जाने के लिए रिक्शा किया और नीरव को मोबाइल लगाया।

नीरव- “बोल निशु.."

मैं- “मैं तीन-चार दिन बाद आऊँ तो चलेगा?” मैंने पूछा।।

नीरव- “चलेगा तो नहीं मेडम लेकिन चलाएंगे। पर आप वहां रुकना क्यों चाहती हैं, हमसे कोई गलती हो गई है। क्या?" नीरव ने बड़े नाटकीय अंदाज से पूछा।

मैं- “तुम तो जानते हो की रीता के मम्मी-पापा, रीता जब छोटी थी तभी गुजर गये थे और अमित भैया ने भी । अनाथ लड़की से शादी की थी, जिसकी वजह से उन लोगों का कोई रिश्तेदार नहीं है। तो भाभी ने मुझे कुछ दिन रुकने को कहा है...” मैंने आधा सच और आधा झूठ कहा।

नीरव- “ओके मेडम..."

मैं- “तुम हर महीने बिजनेस के लिए मुंबई जाते हो तो जा आओ.”

नीरव- “इस बारे में आज ही बात हुई पापा से, उन्होंने कहा इस बार भैया जाएंगे...”

मैं- “ओके, मैं तीन चार दिन बाद आऊँगी। बाइ...”

नीरव- “आई मिस यू...”

मैं- “सेम टु यू.”

नीरव- “आई लव यू..”

मैं- “आई लव यू टू..” मैंने कहा। शादी के दो साल तक नीरव जितने प्यार से बात करता था उतने प्यार से आज फिर उसने बात की थी, आजकल उसे बहुत प्यार आ रहा है मुझ पर।

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रात के दो बजे थे, मुझे नींद नहीं आ रही थी क्योंकि मेरे दिमाग में से विजय निकल नहीं रहा था। वो कालेज में था तब भी अच्छा लड़का नहीं था। वो हमेशा लड़कियों से छेड़खानी करता रहता था, मवालियों की तरह सबको परेशान करता रहता था।

लेकिन फिर भी ये बात दिमाग में बैठ नहीं रही थी की इतनी सी बात के लिए कोई ऐसा कर सकता है? मैं। अब्दुल से गुनहगार का नाम जानकार पोलिस से रिपोर्ट करने के बारे में सोच रही थी। पर अब्दुल से पूरी बात जानने के बाद पोलिस में रिपोर्ट करने की मूर्खता तो मैं हरगिज नहीं करना चाहती थी। लेकिन एक बात ये भी तय थी की विजय ना पकड़ाए तब तक रीता की जान को खतरा था। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था तो मैंने अब्दुल से इस बारे में बात करने का सोचा और फिर सो गई।

दूसरे दिन खाना खाकर मैं हास्पिटल जाने के लिए कांप्लेक्स से बाहर निकली, तभी पीछे से गाड़ी का हार्न बजा। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो अब्दुल था, उसने मुझे इशारे से पूछा- “कहां जा रही हो?"

तब मैंने “हास्पिटल” कहा। अब्दुल भी उसी तरफ जा रहा था तो मुझे गाड़ी में बैठने को कहा। रास्ते में मैंने उसे हास्पिटल आने को कहा। मैंने उसे पोलिस वालों से चौंकन्ना रहने को कहने के लिए ऊपर आने को कहा।

अब्दुल ने ऊपर आकर नयना भाभी को रीता का अच्छी तरह से खयाल रखने को कहा और पूछा- “पहले दिन से जो पोलिस वाले थे वोही हैं या बदल गये?”

नयना भाभी ने कहा की- “हाँ, बदल गये हैं.”

अब्दुल- “अब तो मेरा शक यकीन में बदल गया है कि ये लोग रीता का कतल कर ही देंगे...”

अब्दुल के मुँह से इस तरह की बात सुनकर भाभी रोने लगी।

मैं भी सिहर उठी थी। मैंने अब्दुल से पूछा- “हम पोलिस कमिशनर को रिपोर्ट करें तो?"

मेरी बात सुनकर अब्दुल ठहाका लगाते हुये हँसने लगा- “जावेद की बदली किसने करवाई होगी? सबको पैसे बंट गये होंगे उसमें सबसे ज्यादा पोलिस कमिशनर को मिले होंगे...”

मैं- “तो क्या करें हम? रीता को वो मारने आएंगे तब चुपचाप देखें हम...” मैंने गुस्से से कहा।

अब्दुल- “नहीं..”

मैं- “तो?”

अब्दुल- “उसका उपाय है...”

मैं- “क्या?”

अब्दुल- “जो लोग रीता को मारना चाहते हैं उसे पहले मार दो तो रीता बच सकती है...”

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भाभी- “भाई साहब, ये कैसी बातें कर रहे हैं? आप हमारी मदद करने आए हैं या मजाक करने आए हैं?” भाभी अब्दुल की हाजिरी में अभी तक कुछ खास नहीं बोली थी, जो अब्दुल के मुँह से कतल की बात सुनकर अचानक बोल पड़ी।

अब्दुल- “क्यों, ऐसा क्या कह दिया मैंने?”

भाभी- “खून करने का कहा आपने, शायद आपके लिए इंसान को मारना मतलब मच्छर मारना बराबर होगा। लेकिन हमारे लिए ये बहुत बड़ी बात है." वो दोनों आपस में बहस कर रहे थे और मैं चुपचाप सुन रही थी।

अब्दुल- “एक पोलिस इंस्पेक्टर की बीवी के मुँह से इस तरह की बात सुनकर मुझे भी हैरानी हो रही है। मैंने आपको ये मशवरा इसलिए दिया ताकि आप अपनी ननद की जान बचा सकें, बाकी आपकी मर्जी?” अब्दुल ने नाराजगी से कहते हुये बाहर की तरफ कदम बढ़ते हुये कहा- “मैं चलता हूँ, खुदा हाफिज...”

मैं- “एक मिनट ठहरो अब्दुल...” मेरे दिमाग में अब्दुल की बात बैठ रही थी इसलिए मैंने उसे रोका।

पर अब्दुल रुका नहीं।

मैं- “भाभी आपको इसे नाराज नहीं करना चाहिए था...” इतना कहकर मैं भी अब्दुल के पीछे बाहर निकली।

भाभी विस्मय भरी आँखों से मुझे देख रही थी, शायद मैं अब्दुल को 'तुम' कहकर बुला रही थी इसलिए वो मुझे अचरज से देख रही थी।

मैंने अब्दुल को थोड़ा आगे हास्पिटल की लाबी में पकड़ लिया- “मैं रीता को बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ, तुम मेरे लिए तुम्हारे आदमियों से ये काम करवा सकते हो?”

अब्दुल- “अरे मेरी बुलबुल, अगर मैं ये काम करवा सकता ना तो मैंने कब का कर लिया होता...”

मैं- “तुम तो उस दिन कहते थे ना की मेरे आदमी कोई भी काम कर सकते हैं..."

अब्दुल- “विजय के साथ हमेशा दो बाडीगार्ड रहते हैं, इसलिए उसे मारने के लिए प्रोफेसनल किल्लर की जरूरत पड़ेगी, मेरे आदमी वहां काम नहीं आएंगे...”

मैं- “प्रोफेसनल किल्लर...”

अब्दुल- “हाँ... प्रोफेसनल किल्लर जिसे हम सुपारी देना कहते हैं, और कम से कम दस लाख तो लेंगे ही वो लोग विजय का कतल करने के लिए...”

मैं- “लेकिन इतना पैसा कहां से आएगा?” मैंने चिंतित स्वर से पूछा।

अब्दुल- “हाँ... सबसे बड़ी मुश्किल बात यही है। अमित तो ईमानदार था, वो अपने पीछे इतने पैसे छोड़कर नहीं गया होगा की उसी के पैसे से उसके खून करने वाले की तुम सुपारी दे सको...”

मैं- “तो फिर हम क्या करें? इतने पैसे का इंतेजाम करना तो मुश्किल है..” मैंने निराशा से कहा।

अब्दुल- “सोचना पड़ेगा, कोई ना कोई रास्ता तो जरूर हम निकाल ही लेंगे..."

तभी अब्दुल के मोबाइल की रिंग बजी, उसने मोबाइल में देखा और कहा- “जावेद ने मुझे फोन क्यों किया होगा?”
 
मैं- “कौन जावेद?”

अब्दुल- “वो इंस्पेक्टर जो रीता के केस की तहकीकात कर रहा था...” इतना कहकर अब्दुल ने मोबाइल उठाया

और लाउडस्पीकर ओन किया- “खुदा हाफिज जावेद भाई...”

सामने से एक गहरी आवाज गूंजी- “खुदा हाफिज..."

अब्दुल- “कहिए, क्यों याद किया?”

जावेद- “आपने मुझसे एक वादा किया था, याद है?”

अब्दुल- “जावेद साहब, जो बात आप कर रहे हैं उसे पूरा करने में मुझे भी इंटरेस्ट है। लेकिन जोखिम भरा काम है ये...” अब्दुल ने कहा।

जावेद- “पहले आप अपने मोबाइल का स्पीकर आफ कीजिए जनाब, फिर बात करते हैं उस बारे में..." जावेद ने कहा और अब्दुल स्पीकर आफ करके मोबाइल पे बात करते हुये साइड में चला गया।

मैं वहीं पर खड़ी ध्यान से अब्दुल को देखने लगी और उसके बारे में सोचने लगी। मुझे शक तो पहले से ही था अब्दुल पर की वो किसी भी तरह मुझे उसके नीचे लेटने पर मजबूर कर ही देगा। उसकी हमेशा से आदत रही है। औरतों की मजबूरी का फायदा उठाने की।

कल भी उसने विजय का नाम देते वक़्त मुझसे मनमानी करवाई थी और उसने सुपारी देने की बात कही और उसके लिए दस लाख रूपये की जरूरत पड़ेगी ये कहा, जो सुनकर मेरा शक पूरा यकीन में बदल गया। वो अब मुझे दस लाख के बदले उसके साथ सोने को कहेगा और साथ में शायद दस लाख के बदले नयना भाभी के सोने की भी बात करेगा। लेकिन मेरा नाम भी निशा है, मैं उसकी मुराद पूरी होने नहीं देंगी। हो सकता है कि मुझे अब्दुल के साथ सोना पड़े, लेकिन मैं अब्दुल के हाथ भाभी पर पड़ने नहीं देंगी।

अब्दुल- “क्या सोच रही हो बुलबुल?” अब्दुल की मोबाइल पे बात कब खतम हुई और कब वो मेरा पास आ गया। उसका मुझे ध्यान नहीं था।

मैं- “नहीं, कुछ भी तो नहीं...”

अब्दुल- “रास्ता मिल गया है, विजय को खतम करने का, जावेद ने बताया है अभी-अभी..” उसने एकदम नजदीक आकर मेरे कान में फुसफुसाते हुये कहा।

मैं- “कौन सा रास्ता?” मैंने बेकरारी से पूछा।

अब्दुल- “उसके लिए तुम्हें कालगर्ल बनना पड़ेगा...” अब्दुल ने मेरे मुँह के नजदीक उसका मुँह लाकर कहा, उसकी गंदी बात के साथ-साथ उसकी गंदी सांस मेरे नथुने से टकराई।।
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विकास- “तुम्हारे चेहरे पे साड़ी बाँध लो...” विकास को लगा की उसने मुझे जो भी समझाया है वो मैं ठीक तरह से समझ गई हूँ तो उसने अंत में मुझे ये हिदायत दी।

मैंने तुरंत बुरके की तरह साड़ी को मुँह पे बाँध लिया। मैं उसकी हर बात मान रही थी। वो भी रीता की इस हालत के लिए उतना ही जिम्मेदार था, जितना विजय था। फिर भी मैं उसने जो कहा वो पोलिस स्टेशन में कहने के लिए तैयार हो गई थी। वैसे उसने जो भी मुझे कहने को कहा था वो मेरे लिए अच्छा ही था। फिर भी उसी ने हमें फँसाया था। वो भी मैं कैसे भूल सकती थी, शायद उसकी बात मानने की और एक वजह भी मेरे पास थी की थोड़ी देर पहले उसी ने ही मेरी जान बचाई थी।

कुछ देर बाद पोलिस की गाड़ी की सायरन बजी और विकास ने मुझसे कहा- “जो भी कहा है वोही कहना, ज्यादा एक... ...”

उसकी बात पूरी होने से पहले चार पोलिस कान्स्टेबल सीढ़ियों से ऊपर आते दिखाई दिए, उसमें एक लेडी कान्स्टेबल भी थी। विकास ने आगे बढ़कर लेडी कान्स्टेबल को मेरी तरफ इशारा करके कहा- “इसे लेजाकर जीप में बिठाओ...”

लेडी कान्स्टेबल ने मुझे साथ आने को कहा।

विकास- “जल्दी से कमरे को सील कर दो और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दो..”

नीचे की तरफ उतरते मैंने विकास की आवाज सुनी तो मैंने लेडी कान्स्टेबल से पूछा की- ये कौन है?”

उसने कहा- “ये हमारी ब्रांच के मुख्य इंस्पेक्टर हैं...”

जो सुनकर मेरा दिमाग चकरा गया की विकास और इंस्पेक्टर?

जीप को एक कान्स्टेबल चला रहा था और विकास उसके बाजू में बैठा था। पीछे मैं और लेडी कान्स्टेबल बैठे हुये थे। जीप के साथ-साथ मेरे दिमाग के घोड़े भी दौड़ रहे थे। मैं चाहे कितना भी समझने की कोशिश कर रही थी। पर मेरे दिमाग में कोई बी बात बैठ नहीं रही थी।

विकास ने विजय को मेरे लिए क्यों मार दिया, ये बात मेरी समझ के बाहर थी। रह-रहकर एक ही खयाल आ रहा था मुझे की कहीं ये उन दोनों की चाल तो नहीं होगी ना मुझे जाल में फँसाने की? कहीं विकास ने विजय पर नकली गोली तो नहीं चलाई होगी ना? और विजय जिंदा होगा तो? लेकिन ये सब कैसे हो सकता है? उन दोनों को पहले से मालूम हो तो ही हो सकता था, उनको कौन बताएगा?

मैं, अब्दुल और जावेद के सिवा हमारे प्लान के बारे में कोई जानता नहीं था। अब्दुल के किसी आदमी को पूरी बात पता नहीं थी फिर कौन बताएगा? जावेद... हाँ जावेद बता सकता है। उसने विजय को बताया होगा हमारे प्लान के बारे में। लेकिन एक बात और भी थी। विजय चाहता तो मुझे होटेल ले जाने की बजाय कहीं और उसी वक़्त ले जा सकता था। उसे इतना बड़ा नाटक करने की कोई जरूरत नहीं थी।
 
मेडम नीचे उतरिये..." लेडी कान्स्टेबल की आवाज से मैं मेरे खयालों से बाहर आई।

मैंने बाहर देखा तो जीप पोलिस स्टेशन के बाहर खड़ी थी। जीप से उतरते-उतरते मेरे दिमाग में एक और खयाल आया की ये पोलिस स्टेशन तो नकली नहीं हो सकता। क्योंकि भीड़-भाड़ वाले इलाके में पोलिस स्टेशन नकली बनाना जोखिम का काम है, इसीलिए तो अब्दुल ने हाइवे पर सुनसान रास्ते पर नकली पोलिस स्टेशन बनाया था।

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विकास ने पोलिस स्टेशन में दाखिल होते ही वहां बैठे एक कान्स्टेबल को रुवाब से कहा- “चौहान कहां है?”

कान्स्टेबल- “अरे सर, आप यहां... चौहान सर तो छुट्टी पर हैं.”

विकास- “इसीलिए मोबाइल स्विच आफ करके बैठा है, यहां का फोन क्यों बंद है?”

कान्स्टे बल- “मालूम नहीं सर, एक घंटे से बंद है..."

विकास- “इसका बयान ले लो...” मेरी तरफ हाथ करके विकास ने कहा।

कान्स्टेबल- “क्यों क्या हुवा सर?” कान्स्टेबल ने मेरी तरफ देखकर पूछा।

विकास- “चूतिए, मेरे को क्या पूछता है? उसका बयान लेते वक़्त तुझे मालूम पड़ जाएगा। तुम लोगों का काम हम लोग कर रहे हैं। उसके साथ जो हुवा वो तुम लोगों के एरिया में हुवा है, ऐन वक़्त पे मैं नहीं पहुँचता तो उसका रेप हो गया होता...” विकास ने गुस्से से कहा।

उसका गुस्सा देखकर कान्स्टेबल सकपका गया। उसने जल्दी से कागज और पेन निकाले और मुझे कुर्सी पर । बैठने को कहा। मैंने विकास की तरफ नजर की तो उसने मुझे इशारे से बैठने को कहा और वो दूसरे टेबल के पास जाकर बैठ गया।

कान्स्टेबल- “बोलिए, मेडम आपका नाम?”

मैं- “निशा...” मैंने धीमी आवाज में अपना नाम बताया।

कान्स्टेबल- “पूरा नाम बताइए..."

मैं- “निशा नीरव मेहता...”

कान्स्टेबल- “ओके। अब आपके साथ क्या हुवा वो ठीक से बताइए..” उसने मेरा नाम लिखते हुये कहा।

मैं- “शाम को सात बजे मैं घर से सिविल हास्पिटल जाने के लिए निकली। तब अचानक ही मेरे सामने एक गाड़ी आकर रुकी, उसमें से दो आदमी बाहर आए और मुझे जबरदस्ती गाड़ी में बिठा दिया...”

कान्स्टेबल- “एक मिनट मेडम, किसी ने देखा था उस वक़्त...”

मैं- “नहीं, कोई नहीं था वहां। गाड़ी के अंदर जो आदमी बैठा था वो कालेज में मेरे साथ था, उसने मुझ पर रेप करने की कोशिश की..” मैं बोलते हुये रोने लगी।

मेरे चुप होने के बाद कान्स्टेबल ने पूछा- “गाड़ी में रेप करने की कोशिश की क्या?”

मैं- “नहीं, होटेल ले गया था गन दिखाकर...”

कान्स्टेबल- “वो दो आदमी साथ नहीं थे?”

मैं- “नहीं, उसको उसने होटेल से बाहर ही कहीं जाने को कह दिया...”

कान्स्टेबल- “उसका नाम?”

मैं- “विजय...”

कान्स्टेबल- “होटेल के कमरे में क्या हुवा?”
 
मेरे चुप होने के बाद कान्स्टेबल ने पूछा- “गाड़ी में रेप करने की कोशिश की क्या?”

मैं- “नहीं, होटेल ले गया था गन दिखाकर...”

कान्स्टेबल- “वो दो आदमी साथ नहीं थे?”

मैं- “नहीं, उसको उसने होटेल से बाहर ही कहीं जाने को कह दिया...”

कान्स्टेबल- “उसका नाम?”

मैं- “विजय...”

कान्स्टेबल- “होटेल के कमरे में क्या हुवा?”

मैं- “विजय मुझसे जबरदस्ती कर रहा था तब मैंने उसके पेट पर लात मारी और कमरे का दरवाजा खोल दिया तो बाहर वो साहब खड़े थे...” मैंने विकास की तरफ इशारा करके कहा।

कान्स्टेबल- “फिर...”

मैं- “विजय के हाथों में बंदूक थी, वो मुझे मारना चाहता था। लेकिन वो मुझे मारे उसके पहले साहब ने उसे गली मार दी..."

कान्स्टेबल- “मार डाला...” कान्स्टेबल को झटका लगा था मेरी बात सुनकर।

मैं- “हाँ..."

कान्स्टेबल- “ओके मेडम, आप यहां दस्तखत कर दीजिए...” उसने मेरे हाथ में पेन देते हुये कहा।

मैंने उसने जहां कहा, वहां पर दस्तखत कर दिए।

लेडी कान्स्टेबल- “मेडम आपके घर वालों का मोबाइल नंबर दीजिए, जावेद सर ने कहा है..” तभी लेडी कान्स्टेबल ने आकर मुझसे कहा।

मैं- “जावेद सर... कौन?” मैंने पीछे मुड़कर उससे पूछा।

लेडी कान्स्टेबल- “वही, जिसने आपको बचाया...” कहकर उसने विकास की तरफ हाथ किया।

मैंने बयान में नजर डाली वहां भी जावेद लिखा था। मैं असमंजस में बैठी विकास की तरफ देख रही थी। सभी उसको जावेद कह रहे हैं तो उसका नाम वोही होगा, लेकिन कैसे हो सकता है? ये मैं समझने की कोशिश कर रही थी।

लेडी कान्स्टेबल- “मेडम आपके घर का नंबर दीजिए.” लेडी कान्स्टेबल ने फिर से अपनी बात दोहराई।

मैं- “मैं... मैं...” मैं इतनी गहरी सोच में थी की कुछ बोल नहीं पा रही थी।

लेडी कान्स्टेबल- “क्या हुवा? आप इतना हिचकिचा क्यों रही हैं?” उसने पूछा।

कान्स्टेबल- “लगता है मेडम, अपने घर वालों को बताना पड़ेगा, ये सोचकर परेशान हैं...” बयान लिख रहे। कान्स्टेबल ने कहा। उसकी बात बिल्कुल सही थी लेकिन ये बात तो मेरे दिमाग में अभी तक आई ही नहीं थी।

मैं- “हाँ... सही है...” मैंने कहा।

कान्स्टेबल- “लेकिन मेडम किसी को तो बुलाना ही पड़ेगा...” कान्स्टेबल ने कहा।

मैं- “मैं राजकोट रहती हूँ, मैं यहां मेरे पापा के घर आई हूँ...” मैंने रोती सूरत से कहा। कान्स्टेबल की बात सुनकर मेरे दिमाग में ये बातें आई थी की कल अखबार में ये सब आएगा तो फिर क्या होगा? ये सोचकर मैं परेशान हो गई थी।

कान्स्टेबल- “इसमें आपकी क्या गलती है और आपके साथ कुछ हुवा भी तो नहीं है.”

मैं- “लेकिन कोई समझता नहीं और अखबार में खबर पढ़ के तो.....” मैंने मेरी बात को अधूरा छोड़ दिया।

जावेद- “देखिए, हमारे सविधान में ऐसा कानून बनाया गया है की आपकी मर्जी के बिना आपका सही नाम अखबार में नहीं आएगा..." जावेद अचानक बीच में बोला।

मैंने उसकी तरफ देखा- “सच में..."

जावेद- “हाँ... आपने कभी अखबार में बलात्कार की खबर ध्यान से पढ़ी होती तो ये सवाल नहीं करती...”

मैं- “मतलब?” मैंने और एक सवाल किया।

जावेद- “अखबार में आपके नाम की जगह दूसरा नाम लिखा होगा और पास में (नाम बदला हुवा है) ऐसा लिखा होगा...”
 
मैं- “ठीक है.” मैंने कहा।

जावेद- “अब आप अपने पापा का नंबर दीजिए, मैं उनको बुला लेता हूँ।
मेरे खयाल से उनको बुलाने में कोई
परशाना नहीं होगी आपकक्याकि वो अपना बटा का बात उसIएग..." जावेद ने कहा।

मैंने उसे पापा का नंबर दिया।

जावेद- “तुम्हारे अब्बू मुंबई जाने वाले थे क्या?” जावेद ने बाहर से आकर पूछा।

मैं अब तक समझ चुकी थी की कैसे बात करना है- “हाँ... मैं आपको बताना भूल गई थी...”

जावेद- “वो तो शायद इस वक़्त ट्रेन में होगे, मोबाइल आपकी अम्मीजी ने उठाया, पहले तो बहुत डर गई लेकिन मैंने उनको समझाया और यहां आने को कहा है...” जावेद ने कहा।

मैं- “मेरी मम्मी अकेली... इस वक़्त यहां कैसे आएंगी?” मैंने चिंतित स्वर में कहा।

जावेद- “टेन्शन मत लीजिए। मैंने उनको कहा है आप पहचानते हों, ऐसे किसी को भी भेज देंगी तो चलेगा...”

जावेद जो बात कर रहा था उसका मतलब मैं पूरा तो समझ नहीं पा रही थी लेकिन वो मेरे अच्छे के लिए होगी ये बात अब मैं समझ चुकी थी।

कान्स्टेबल- “सर आप एन मोके पर कैसे पहुँच गये ये तो बताइए?”

जावेद के कुर्सी पर बैठते ही कान्स्टेबल ने सवाल किया।

शायद जावेद इसी सवाल का कब से इंतेजार कर रहा था, उसने कहा- “तुम मेरा भी बयान लिख लो..”

उसकी बात सुनकर कान्स्टेबल ने लिखना शुरू किया।

जावेद- “शाम को साढ़े सात बजे मैं जीप लेकर सायन रोड पर से निकल रहा था तो मैंने बीच सड़क पर दो आदमियों को नशे में धुत्त देखा। मैंने जीप रोककर उन्हें पूछा तो मालूम पड़ा की वो दोनों अमृतपुरम के एम.एल.ए. परबत सिंह के बेटे विजय के बाडी गाई हैं। मैंने उनसे पूछा की तुम्हारे मालिक कहां हैं? वो लोग
कोई जवाब दें उसके पहले उन लोगों में से एक के पाकेट में से मोबाइल बजा, उसने मोबाइल निकालकर सामने वाले के सवाल का जवाब इस तरह से दिया की सभी अभी अंदर हैं, थोड़ी देर बाद फोन कीजिए..”

जावेद इतना कहकर कुछ पल के लिए रुका और फिर कहने लगा- “उसकी बात सुनकर मुझे शक हुवा की इनके साथ उनका मलिक कहां है? फिर ये लोग ऐसा क्यों बोले? कहीं ये लोग कोई गलत काम करके भाग तो नहीं रहे। ना? परबत सिंह के यहां से चोरी करके तो भाग नहीं रहे ना? मैंने दोनों को जीप में बिठाया और थोड़ी डांट-डपट की और परबत सिंह को मोबाइल लगाने गया तो उन लोगों ने जो बताया वो सुनकर मेरा दिमाग घूम गया..”
 
जावेद इतना कहकर कुछ पल के लिए रुका और फिर कहने लगा- “उसकी बात सुनकर मुझे शक हुवा की इनके साथ उनका मलिक कहां है? फिर ये लोग ऐसा क्यों बोले? कहीं ये लोग कोई गलत काम करके भाग तो नहीं रहे। ना? परबत सिंह के यहां से चोरी करके तो भाग नहीं रहे ना? मैंने दोनों को जीप में बिठाया और थोड़ी डांट-डपट की और परबत सिंह को मोबाइल लगाने गया तो उन लोगों ने जो बताया वो सुनकर मेरा दिमाग घूम गया..”

कान्स्टेबल- “क्या बताया सर?” कान्स्टेबल ने उत्सुकता से पूछा।

जावेद- “यही की विजय कहां है, किसके साथ है और क्या करने वाला है?” जावेद ने कहा।

कान्स्टेबल- “कहां था सर?”

जावेद- “साले तुझे हवलदार किसने बनाया? विजय उस वक़्त इस पर जबरदस्ती कर रहा था और मैं वहां पहुँच गया, मैं थोड़ा सा लेट पहुँचता तो वो इनको मार डालता...”

कान्स्टेबल- “मतलब की सर वो दोनों आपको इनको होटेल में छोड़ने के बाद मिले...” कान्स्टेबल ने मेरी तरफ इशारा करके पूछा।

जावेद- “ठीक समझे, अब तुम्हें मैं हवलदार कह सकता हूँ..”

कान्स्टेबल- “लेकिन सर परबत सिंह... ...” कान्स्टेबल की बात जावेद ने पूरी नहीं होने दी।

जावेद- “मैंने कोई गलत काम नहीं किया, वो एक लड़की का रेप कर रहा था और जिस वक़्त मैंने उसे गोली मारी तब तो वो इसे मारने वाला था...”

कान्स्टेबल- “लेकिन मुझे लगता है सर कि आपको इन मेडम को एक बार कमिश्नर से मिलवाना पड़ेगा...”

जावेद- “देख लेंगे..." जावेद ने कहा।

लेडी कान्स्टेबल- “अभी तक आपके घर से कोई नहीं आया मेडम?” उन लोगों की बात खतम हो गई ऐसा लगते ही लेडी कान्स्टेबल ने मुझसे पूछा।

उसकी बात सुनकर मैंने रास्ते पर नजर की, वहां मैंने गाड़ी से उतरते अब्दुल को देखा।

अब्दुल ने अंदर आते ही मेरी तरफ देखकर सवाल किया- “क्या हुवा बिटिया?”

मैं कोई जवाब दें उसके पहले जावेद बीच में बोला- “आप कौन हैं?”

अब्दुल- “मैं इनके सामने के फ्लैट में रहता हूँ, हम पड़ोसी हैं..” अब्दुल ने जावेद को कहा, दोनों ऐसे बात कर रहे थे जैसे पहली बार मिल रहे हों।

लेडी कान्स्टेबल- “इनकी अम्मी आने वाली थी, वो नहीं आईं?”

अब्दुल- “वह आना चाहती थी लेकिन मैंने ही ना बोला, उनकी तबीयत ठीक नहीं थी...”

जावेद- “तुम पहचानती हो इन्हें?" जावेद ने मुझसे पूछा।

मैंने 'हाँ' में सिर हिलाया।

अब्दुल- “इसे यहां क्यों लाया गया है?” अब्दुल ने इस बार जावेद को मेरे बारे में पूछा।

जावेद- “आप परबत सिंह को तो जानते ही होंगे..." जावेद ने सामने सवाल किया।

अब्दुल- “जी हाँ। उन्हें कौन नहीं जानता?”

जावेद- “उनके बेटे ने इन पर जबरदस्ती करने की कोशिश की...”

अब्दुल- “जबरदस्ती... हरामजादा, कहां है? पकड़ा गया क्या?” अब्दुल ने गुस्से से कहा।

जावेद- “मर गया वो तो...”
 
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