desiaks
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“ठीक है लेकिन वह तो जवानी के साथ ज्यादा से ज्यादा देर तक चिपकी रहना चाहती है । एक बार उसने हीरोइन से कम कोई रोल किया तो वह फौरन बी ग्रेड ऐक्ट्रेस हो जायेगी ।”
“अर्चना माथुर से बात करते समय मुझे छोटी सी बात का इतना लम्बा चौड़ा फैलाव नहीं सूझा था ।”
“लेकिन वह तो तुम्हारी बात सुनकर अंगारों पर लोट गई है । एक मर्द के सामने तुमने उसे ऐसी बात कह दी थी जिस से यह जाहिर होता था कि वह पक्की औरत है ।”
“मेरा ऐसा इरादा नहीं था ।” - आशा खेदपूर्ण स्वर से बोली ।
“तुमने कौन सा दुबारा मिलना है उससे ।”
आशा चुप रही ।
सिन्हा भी कुछ नहीं बोला ।
आशा उठ खड़ी हुई ।
“फिर तुम्हारा सिनेमा स्टार बनने का कतई इरादा नहीं है, आशा ।”
“मैंने आपको कल ही अपना उत्तर दे दिया था ।”
“मैंने सोचा शायद बात को गम्भीरता से सोचने के बाद तुम्हारा इरादा बदल गया हो ।”
“मेरा इरादा नहीं बदला है ।” - आशा निश्चय पूर्ण स्वर से बोली ।
“आल राइट ।” - सिन्हा गहरी सांस लेता हुआ बोला ।
आशा केबिन से बाहर निकल आई ।
वह अपनी सीट पर आ बैठी ।
टाइपराइटर की बगल में कोई एक नई फाइल रख गया था ।
आशा ने बड़े आशा पूर्ण ढंग से फाइल का कवर उठाया । भीतर दफ्तर के लैटर हैड के कागज में लिपटा हुआ चाकलेट का पैकेट मौजूद था । उसने चाकलेट का पैकेट निकाल कर अपने पर्स में डाल लिया और फिर कागज खोलकर देखा ।
कागज खाली था । पिछले दिन की तरह उस पर कुछ लिखा हुआ नहीं था ।
आशा ने एक गहरी सांस छोड़ी और कागज का गोला सा बना कर रद्दी की टोकरी में डाल दिया ।
उसी क्षण टैलीफोन की घन्टी घनघना उठी ।
आशा ने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और दूसरे हाथ से एक्सचेंज का बटन दबाती हुई बोली -” हल्लो ।”
“आशा जी ।” - दूसरी ओर से उसे एक उत्तेजित स्वर सुनाई दिया ।
“यह प्लीज ।” - आशा बोली ।
“आशा जी, मुझे पहचाना आपने ?”
“आप...”
“भूल गई न ? मैं अशोक बोल रहा हूं । कल चार बजे सिन्हा साहब के दफ्तर में आया था ।”
“ओह, अच्छा, अब पहचान लिया ।” - आशा बोली । अशोक को वह सचमुच ही भूल चुकी थी ।
“मैंने कहा था न कि अगर मेरा काम बन गया तो कल आपको फोन करूंगा ?”
“हां । बन गया काम ?”
“पूरे पचास हजार रुपये का बीमा किया है । मेरा बहम ठीक निकला न । काने की सूरत देखकर गये तो धेले का बिजनेस नहीं मिला और दूसरी जगह आपकी सूरत देखकर गये तो पूरे पचास हजार रुपये का हाथ मार दिया ।”
“फिर तो तगड़ी कमीशन मिलेगी ?”
“बिल्कुल । मजा आ जायेगा । आशा जी, अब आप मेरी एक प्रार्थना स्वीकार कर लें तो मैं अपने आप को संसार का सब से अधिक भाग्यवान व्यक्ति समझूंगा ।”
“क्या ?” - आशा सन्दिग्ध स्वर से बोली - “मैं भी बीमा करा लूं ?”
“अजी बीमे को गोली मारिये । एक ही दिन में महीने भर का धन्धा हो गया है ।”
“तो फिर ?”
“आज आप मेरे साथ कहीं चाय पीने चालिये ।”
“मिस्टर अशोक, मैं...”
“देखिये इनकार मत कीजियेगा ।” - अशोक का याचनापूर्ण स्वर सुनाई दिया - “यह भावना का सवाल है । मेरा मन कहता है कि अगर मैं आप की सूरत देखकर न गया होता तो मुझे इतना तगड़ा केस कभी नहीं मिलता ।”
“भई पहले अपनी कमीशन हासिल तो कर लो । जब पैसा जेब में आ जाये तब चाय पिलाना मुझे ।”
“कमीशन की चिन्ता मत कीजिये आप । मैं सारी कागजी कार्यवाही पूरी कर चुका हूं । बड़ी पक्की पार्टी है । पालिसी कैन्सिल नहीं होगी । कमीशन तो मुझे मिलेगी ही । आप हां कीजिये । आशा जी, प्लीज ।”
“भई, आज तो मैं कहीं नहीं जा सकूंगी ।” - आशा अनिश्चित स्वर से बोली ।
“तो फिर कल...”
“शायद कल भी न जा सकूं ।”
“तो फिर उससे अगले कल, अगले हफ्ते, अगले महीने, अगले साल, अगले...”
“बस, बस, बस” - आशा हंसती हुई बोली - “अपनी आज की सफलता की सैलिब्रेशन की उमंग इतने लम्बे अरसे तक बरकरार रहेगी तुम्हारे मन में ।”
“बिल्कुल रहेगी ।” - अशोक उत्साहपूर्ण स्वर से बोला ।
“शायद न रह पाये ।”
“अर्चना माथुर से बात करते समय मुझे छोटी सी बात का इतना लम्बा चौड़ा फैलाव नहीं सूझा था ।”
“लेकिन वह तो तुम्हारी बात सुनकर अंगारों पर लोट गई है । एक मर्द के सामने तुमने उसे ऐसी बात कह दी थी जिस से यह जाहिर होता था कि वह पक्की औरत है ।”
“मेरा ऐसा इरादा नहीं था ।” - आशा खेदपूर्ण स्वर से बोली ।
“तुमने कौन सा दुबारा मिलना है उससे ।”
आशा चुप रही ।
सिन्हा भी कुछ नहीं बोला ।
आशा उठ खड़ी हुई ।
“फिर तुम्हारा सिनेमा स्टार बनने का कतई इरादा नहीं है, आशा ।”
“मैंने आपको कल ही अपना उत्तर दे दिया था ।”
“मैंने सोचा शायद बात को गम्भीरता से सोचने के बाद तुम्हारा इरादा बदल गया हो ।”
“मेरा इरादा नहीं बदला है ।” - आशा निश्चय पूर्ण स्वर से बोली ।
“आल राइट ।” - सिन्हा गहरी सांस लेता हुआ बोला ।
आशा केबिन से बाहर निकल आई ।
वह अपनी सीट पर आ बैठी ।
टाइपराइटर की बगल में कोई एक नई फाइल रख गया था ।
आशा ने बड़े आशा पूर्ण ढंग से फाइल का कवर उठाया । भीतर दफ्तर के लैटर हैड के कागज में लिपटा हुआ चाकलेट का पैकेट मौजूद था । उसने चाकलेट का पैकेट निकाल कर अपने पर्स में डाल लिया और फिर कागज खोलकर देखा ।
कागज खाली था । पिछले दिन की तरह उस पर कुछ लिखा हुआ नहीं था ।
आशा ने एक गहरी सांस छोड़ी और कागज का गोला सा बना कर रद्दी की टोकरी में डाल दिया ।
उसी क्षण टैलीफोन की घन्टी घनघना उठी ।
आशा ने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और दूसरे हाथ से एक्सचेंज का बटन दबाती हुई बोली -” हल्लो ।”
“आशा जी ।” - दूसरी ओर से उसे एक उत्तेजित स्वर सुनाई दिया ।
“यह प्लीज ।” - आशा बोली ।
“आशा जी, मुझे पहचाना आपने ?”
“आप...”
“भूल गई न ? मैं अशोक बोल रहा हूं । कल चार बजे सिन्हा साहब के दफ्तर में आया था ।”
“ओह, अच्छा, अब पहचान लिया ।” - आशा बोली । अशोक को वह सचमुच ही भूल चुकी थी ।
“मैंने कहा था न कि अगर मेरा काम बन गया तो कल आपको फोन करूंगा ?”
“हां । बन गया काम ?”
“पूरे पचास हजार रुपये का बीमा किया है । मेरा बहम ठीक निकला न । काने की सूरत देखकर गये तो धेले का बिजनेस नहीं मिला और दूसरी जगह आपकी सूरत देखकर गये तो पूरे पचास हजार रुपये का हाथ मार दिया ।”
“फिर तो तगड़ी कमीशन मिलेगी ?”
“बिल्कुल । मजा आ जायेगा । आशा जी, अब आप मेरी एक प्रार्थना स्वीकार कर लें तो मैं अपने आप को संसार का सब से अधिक भाग्यवान व्यक्ति समझूंगा ।”
“क्या ?” - आशा सन्दिग्ध स्वर से बोली - “मैं भी बीमा करा लूं ?”
“अजी बीमे को गोली मारिये । एक ही दिन में महीने भर का धन्धा हो गया है ।”
“तो फिर ?”
“आज आप मेरे साथ कहीं चाय पीने चालिये ।”
“मिस्टर अशोक, मैं...”
“देखिये इनकार मत कीजियेगा ।” - अशोक का याचनापूर्ण स्वर सुनाई दिया - “यह भावना का सवाल है । मेरा मन कहता है कि अगर मैं आप की सूरत देखकर न गया होता तो मुझे इतना तगड़ा केस कभी नहीं मिलता ।”
“भई पहले अपनी कमीशन हासिल तो कर लो । जब पैसा जेब में आ जाये तब चाय पिलाना मुझे ।”
“कमीशन की चिन्ता मत कीजिये आप । मैं सारी कागजी कार्यवाही पूरी कर चुका हूं । बड़ी पक्की पार्टी है । पालिसी कैन्सिल नहीं होगी । कमीशन तो मुझे मिलेगी ही । आप हां कीजिये । आशा जी, प्लीज ।”
“भई, आज तो मैं कहीं नहीं जा सकूंगी ।” - आशा अनिश्चित स्वर से बोली ।
“तो फिर कल...”
“शायद कल भी न जा सकूं ।”
“तो फिर उससे अगले कल, अगले हफ्ते, अगले महीने, अगले साल, अगले...”
“बस, बस, बस” - आशा हंसती हुई बोली - “अपनी आज की सफलता की सैलिब्रेशन की उमंग इतने लम्बे अरसे तक बरकरार रहेगी तुम्हारे मन में ।”
“बिल्कुल रहेगी ।” - अशोक उत्साहपूर्ण स्वर से बोला ।
“शायद न रह पाये ।”