Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 15 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

शाम को मम्मी को लेकर मैं डाक्टर के पास गई, मम्मी ना ना कह रही थी की ज्यादा बुखार नहीं है। लेकिन मैं जिद करके मम्मी को डाक्टर के पास ले गई। वापस आकर हम लिफ्ट के अंदर घुसे और जाली बंद करके मैं।

तीसरे माले का बटन दबा ही रही थी की तभी आवाज आई- “लिफ्ट लिफ्ट...”

मैंने फिर से जाली खोल दी। मैंने उस तरफ देखा जहां से आवाज आई थी, मुझे मेरी आँखों पर विस्वास नहीं हो रहा था, सामने से पप्पू आ रहा था। उसने लिफ्ट के पास आकर मुझे देखा, तो मैंने नफरत से उस पर से नजर हटा दी।

मम्मी- “अंदर आ जाओ बेटे...” मम्मी शायद उसे पहचानती थी।

पप्पू- “मुझे काम है आंटी, मैं बाद में आता हूँ.” कहकर पप्पू वापस मुड़ गया।

मैंने जाली बंद करके बटन दबाया, पूछा- “ये यहां रहता है?”

मम्मी- “हाँ, यहीं रहता है...” मम्मी ने कहा।

मैं- “कौन से माले पे?” मैंने पूछा।

मम्मी- “सातवें माले पे। अरे याद आया तुम्हें कल मिला तो था ये, तुम भूल गई?” मम्मी ने कहा।

मैं- “मुझे कब मिला?”

मम्मी- “ये प्रेम था, तुम कल पूछ तो रही थी इसके बारे में..." मम्मी ने याद दिलाया।

मम्मी की बात सुनकर मैं सन्न हो गई की ये प्रेम था और मेरे हिसाब से ये पप्पू था। मुझे अब जल्दी से खुशबू को मिलना था और उसे बताना था की उसका प्रेम क्या है? मैं रसोई कर रही थी लेकिन मेरा ध्यान पप्पू पे था, मुझे लग रहा था की पप्पू उस दिन मुझसे झूठ बोलकर निकल गया था, या फिर वो खुशबू से प्यार का नाटक । कर रहा है। दोनों में से एक बात ही सच्ची हो सकती है, वो भी फाइनल था। कुछ बता सकती थी तो खुशबू बता सकती थी। लेकिन वो मुझे देखकर भड़कती थी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

तभी मेरा मोबाइल बजा, देखा तो रीता का फोन था।

हेलो..” मैंने कहा।

रीता- “क्यों मुझे याद किया था निगोड़ी...” रीता की आवाज आई।

मैं- “मैं यहां आई हूँ, तुम कहां थी दो दिन?” मैंने कहा।

रीता- “तुम यहां हो और मैं तेरे घर से करीब हूँ, दो मिनट में आई...” कहकर रीता ने काल काट दी। दस मिनट में ही रीता घर पे आ गई।

हम दोनों ने एक दूसरे को बाहों में भर लिया और फिर अकेले में अंदर जाकर बैठे।

रीता- “बता निगोड़ी, तेरे मिट्ठू मियां कैसे हैं?” रीता ने पलंग पर बैठते हुये पूछा।

मैं- "नीरव मुंबई में है...” मैंने बाजू में बैठते हुये कहा।

रीता- “मुझे मालूम है कि तू ही आएगी, जीजू को तू ऐसे तो छोड़ती ही नहीं...”

मैं- “मैंने तुम्हें फोन किया था, बंद आ रहा था..” मैंने उसे फोन किया था वो जताने के लिए कहा।

रीता- “मुझे मालूम है, मिस काल के मेसेज आते हैं मेरे मोबाइल में, मैं भी मुंबई गई थी, मोबाइल भूल गई थी। यहां..." रीता ने कहा।
 
मैं- “तू कब हूँढ़ रही है मिट्ठू मियां?”

रीता- “वोही देखने मुंबई गई थी यार..”

मैं- “देखा, पसंद आया?”

रीता- “निगोड़ी, वो लड़के ने मेरा दिल चुरा लिया है, पहली ही नजर में मैं उसके प्यार में पड़ गई..” रीता के चेहरे पे प्यार का खुमार था।

मैं- “तो फिर कर लो शादी...”

रीता- “उसने अभी हाँ नहीं कहा...” रीता ने निराशा से कहा।

मैं- “ना भी तो नहीं कहा ना... वो हाँ ही कहेगा मेरी इस कुँवारी चुलबुली दोस्त को...” मैंने मुश्कुराते हुये कहा।

रीता- “कुँवारी तो तू है..” रीता ने कहा।

मैं- “मैं... वो कैसे?”

रीता- “इस तरफ देखो..” रीता ने मिरर की तरफ हाथ करके कहा- “आज भी तुम कोई प्यारी सी गुड़िया जैसी दिखती हो, मैं लड़का होती ना तो तुझे भगा ले जाती...”

मैं- “मैं नहीं आती तो?”

रीता- “तो मैं तुझे उठा ले जाती...” कहकर रीता जोर-जोर से हँसने लगी।

मैं- “कैसे हैं अमित भैया और भाभी?”

रीता- “अच्छे हैं, मैं चलती हूँ, कब घर आ रही हो?"

मैं- “खाना खाए बगैर जाने नहीं देंगी...” मैंने कहा।

रीता- “नहीं यार मुझे देरी हो रही है."

मैं- “चल, फटाफट बना देती हूँ, खाना खाकर ही जाना...”

रीता- “ओके बाबा, मिलकर बनाते हैं, जल्दी बन जाएगा...”

उसके बाद मैंने और रीता ने जल्दी से खाना बनाया और फिर खाया। खाना खाते हुये मैंने उससे विजय के बारे में पूछा- “विजय तुम्हें परेशान तो नहीं करता ना?”

रीता- “वो तो फिर से कहीं भाग गया है, दिखता नहीं आजकल...”

मैं- “फिर भी ध्यान रखना...” मैंने उसे चेतावनी देते हुये कहा।

रीता- “आए तो सही, फिर मालूम पड़े कि मुझे नहीं उसे ध्यान रखना पड़ेगा..” रीता ने अपनी धुन में कहा। खाना खतम होते ही रीता निकल गई। उसे देरी हो रही थी।
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रात के दस बजे थे, मम्मी-पापा अंदर थे। मैं बाहर बैठी टीवी देख रही थी, तभी मैंने पप्पू को नीचे उतरते देखा, वो मोबाइल में देखता हुवा नीचे उतर रहा था। मुझे लगा की शायद वो खुशबू को मिस काल मार रहा होगा, नीचे बुलाने के लिए। मैंने मेरे घर का दरवाजा थोड़ा सा खुल्ला रखकर बंद कर दिया। मेरा अंदाजा सही निकला। दो मिनट के बाद खुशबू बाहर निकली, उसने चारों तरफ देखकर मुड़कर दरवाजे को बंद किया, और फिर मुड़ी तो मैंने मेरे घर का दरवाजा खोल दिया। मुझे देखकर खुशबू का चेहरा फीका पड़ गया और घूमकर उसने दरवाजा खोला और वो वापस अपने घर के अंदर चली गई।

मैं- “मैं आई मम्मी...” कहकर मैंने मेरे घर का दरवाजा भिड़ाया और सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी।

सीढ़ी उतरते हुये मैंने मेरा चेहरा न दिखे उतना दुपट्टा सिर पे ओढ़ लिया। मैं जल्दी-जल्दी सीढ़ियां उतर रही थी, मुझे डर था की कहीं खुशबू पप्पू को मोबाइल करके कह न दे की मैं नहीं आ रही। पहला माला आया, उसके बाद मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। मैं एक-एक सीढ़ी गिन-गिन के उतरने लगी।

ग्राउंड फ्लोर पहुँचने में पाँच सीढ़ी बाकी थी तभी पप्पू ने मुझे खींचा, मैंने उसे देखा तो नहीं था पर मेरा अंदाजा था, और कहा- “कितनी देर लगा दी?”

मुझे जहां पप्पू ने अंदर खींच लिया था वो सीढ़ी के नीचे का खाली हिस्सा था, जिस पर दरवाजे भी लगाए हुये थे। पप्पू ने दरवाजा बंद करके लाइट चालू की और मैंने मेरे चहरे पर से दुपट्टा हटाया। दुपट्टा हटते ही मुझे देखकर पप्पू अपने आपको ठगा सा महसूस करने लगा, और फटी-फटी आँखों से मुझे देखता ही रहा।

मैं- “क्यों पप्पू, यहां क्या कर रहे हो?” मैंने मेरी आँखें नचाते हुये कहा।

पप्पू- “आंटी, आप मुझे परेशान क्यों कर रही हो?" पप्पू ने डरते हुये कहा।

मैं- “मैं तुम्हें परेशान कर रही हैं, या तुम मुझे कर रहे हो?”

पप्पू- “मैं आपको परेशान कर रहा हूँ? कैसे?”

मैं- “तुम मुझसे झूठ क्यों बोले की तुम ‘गे' हो...” मैंने गुस्से से कहा।

पप्पू- “मैं आपसे झूठ क्यों बोलूंगा? कोई मर्द झूठ क्यों बोले की वो 'गे' है? मैं सच में 'गे' हूँ..." कुछ हद तक पप्पू की बात ठीक भी थी।

मैं- “तुम झूठ बोल रहे हो...”

पप्पू- “मैं सच बोल रहा हूँ आंटी...”

मैं- “तुम्हें लड़कियां नहीं पसंद?”

पप्पू- “हाँ, मुझे लड़कियां नहीं पसंद...”

मैं- “तो फिर खुशबू के साथ प्यार का नाटक क्यों करते हो?”

मेरी बात सुनकर पप्पू ऐसे भड़का जैसे मैंने उसके पैरों के पास बाम्ब फोड़ा हो।

पप्पू- “कौन खुशबू? मैं नहीं जानता किसी खुशबू को.” पप्पू ने थोड़ी देर बाद संभाल के कहा।

मैं- “वोही खुशबू जो समझकर तूने मुझे अंदर खींचा, तीसरे माले पे रहती है वो खुशबू...” मैंने कहा।

पप्पू- “सच में आंटी, मैं नहीं जानता किसी खुशबू को, मुझे लड़कियों में कोई इंटरेस्ट नहीं..." पप्पू ऐसे बात कर रहा था की उस पर विस्वास करने का दिल हो रहा था।

मैं- “मैं अभी ही खुशबू को बुलाकर लाती हूँ, उसके सामने तुम ये कहना...” मैंने दरवाजा खोलने की चेष्टा करते हुये कहा।

पप्पू- “नहीं प्लीज़... आंटी, उसे बुलाकर आप मेरी इज्ज़त का फालूदा कर देंगी...” पप्पू ने दरवाजा पकड़ते हुये कहा।

मैं- “वो जो भी हो, तुम उसे फैसा रहे हो, तुम्हें उसकी माफी तो मांगनी ही पड़ेगी, मैं बुला लाती हूँ..” मैंने कहा।
 
पप्पू- “प्लीज़.. आंटी..”

मैं- “ये प्लीज़.. प्लीज़... क्या लगा रखा है? हटो तुम...”

पप्पू- “समझने की कोशिश करो आंटी...” पप्पू गदगद हो गया।

मैं- “मैं किसी लड़की की जिंदगी बर्बाद नहीं होने देंगी..” मैंने जोर से कहा।

पप्पू- “उसकी जिंदगी बर्बाद नहीं हो रही, मैं उसे प्यार करता हूँ..” पप्पू बोला।

मैं- “पर तू तो 'गे' है रे..” मैंने नाटकिय अंदाज में कहा।

पप्पू- "मैं 'गे' नहीं हूँ..”

मैं- “तुम 'गे' ही हो...”

पप्पू- “मैं नहीं हूँ...”

मैं- “मैंने देखा था उस दिन तुम्हारा खड़ा भी नहीं हो रहा था, और तुम भी तो कहते हो...” मैंने कहा।

पप्पू- “मैं झूठ बोल रहा था...” ।

मैं- “क्यों? क्यों झूठ बोल रहे थे?”

पप्पू- “आपके करण...” तीखी आवाज में पप्पू बोला।

मैं- “मेरे करण क्यों?”

पप्पू- “आप मुझसे सेक्स करना चाहती थी इसलिए...”

मैं- “उसमें ऐसा झूठ बोलने की क्या जरूरत थी? मैं अच्छी नहीं लगती हूँ क्या?”

पप्पू- “आप तो परियों की रानी जैसी लगती हो, लेकिन मैं खुशबू को धोखा देना नहीं चाहता था.." पप्पू ने कहा।

मैं- “पर तुम्हारा खड़ा क्यों नहीं हुवा था?”

पप्पू- “डर के मारे, मैं डर गया था...”

मैं- “मैं कैसे मान हूँ की तुम अभी जो कह रहे हो वो सच है?” मैंने विस्फारित नयनों से कहा।

पप्पू- “मैं कसम खाता हूँ खुशबू की.” पप्पू ने दयनीय आवाज में कहा।

मैं- “मैं नहीं मानती, मैं जा रही हूँ खुशबू के पास...” कहते हुये मैं दरवाजा खोलकर बाहर निकलने लगी।

तब पप्पू ने मुझे अंदर खींचा तो मैं थोड़ी वापस अंदर आई, पप्पू ने दरवाजा बंद कर दिया और मुझे धक्का मारकर दीवार पे सटा दिया और मेरे चेहरे से नजदीक मुँह करके बोला- “मैंने कहा ना मैं ‘गे' नहीं हूँ, मैं खुशबू के बिना जी नहीं सकता...” उसकी आँखें आग उगल रही थी।
 
पप्पू- “मैं कसम खाता हूँ खुशबू की.” पप्पू ने दयनीय आवाज में कहा।

मैं- “मैं नहीं मानती, मैं जा रही हूँ खुशबू के पास...” कहते हुये मैं दरवाजा खोलकर बाहर निकलने लगी।

तब पप्पू ने मुझे अंदर खींचा तो मैं थोड़ी वापस अंदर आई, पप्पू ने दरवाजा बंद कर दिया और मुझे धक्का मारकर दीवार पे सटा दिया और मेरे चेहरे से नजदीक मुँह करके बोला- “मैंने कहा ना मैं ‘गे' नहीं हूँ, मैं खुशबू के बिना जी नहीं सकता...” उसकी आँखें आग उगल रही थी।

मैंने कुछ बोले बिना उसके चेहरे को मेरे दो हाथों के बीच ले लिया और उसके होंठ पर मेरे होंठ रख दिया, उसके होंठों का रसपान करने लगी। पप्पू ने ना तो विरोध किया, ना रिस्पोन्स दिया।

मैंने मेरा हाथ नीचे किया और उसके पैंट का बक्कल और चैन खोल दिए फिर हाथ अंदर डालकर पप्पू के लण्ड को सहलाने लगी। कुछ ही सेकंडों में पप्पू गरम होने लगा, उसका लण्ड बड़ा होने लगा और वो मेरे होंठों को चूसने लगा। ज्यादा समय और जगह नहीं थी हमारे पास, तो मैंने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार नीचे गिर गई।

फिर मैंने पप्पू का लण्ड पकड़ा और मेरी चूत पे उसे घिसने लगी। फिर उसे चूत के होंठ पर रखा

और पप्पू को धक्का मारने को कहा। दो-तीन धक्कों में ही पप्पू का लण्ड पूरा अंदर घुस गया।

मैं- “पहली बार है?” मैंने पप्पू से पूछा।

पप्पू ने सिर हिलाकर 'हाँ' कहा।

मैं- “बस ऐसे धक्के लगाते रहो...” कहकर उसके चूतड़ों को पकड़ लिया और उसके धक्कों के साथ खींचने लगी।

मैंने मेरी जबान निकाली और पप्पू को उसे चूसने को कहा। पप्पू मेरी जबान चूसते हुये मेरे मम्मों को कपड़ों के साथ दबाते हुये मुझे चोदने लगा। मैं उसके चूतड़ों को पीछे से पकड़ रखी थी, क्योंकि जल्दी-जल्दी करने की लय में उसका लण्ड बाहर निकल जाता था। पहली बार था उसका, उसे अभी कैसे करना है, वो आता नहीं था साथ में वो बहुत उत्तेजित हो गया था। हम दोनों नौ-दस मिनट में ही हमारी चरमसीमा पर पहुँच गये, क्योंकी उसके लिए पहली बार था और मैं भी उसका पहली बार है यही सोचकर हर रोज से कम समय में झड़ गई।

दूसरे दिन चाय बनाते हुये मुझे चुदाई खतम होने के बाद पप्पू जिस तरह से रोया था, वो याद करके मुझे हँसी आ रही थी। झड़ने के थोड़ी देर बाद मैंने पायजामा ऊपर किया और फिर नाड़ा बँधा, तब तक पप्पू ने भी पैंट पहन लिया था। मैं पप्पू की तरफ देखते हुये मुश्कुराई तो उसकी आँखें डबडबा गईं।

मैं- “क्या हुवा?” मैंने पूछा।

पप्पू- “मैंने खुशबू को धोखा दिया...” कहते हुये पप्पू फफक-फफक करके रोने लगा।
 
उसका वर्ताव देखकर मुझे हँसी आ रही थी, साथ में उसपर दया भी आ रही थी। थोड़ी देर रोने के बाद वो शांत हुवा तो मैंने उससे पूछा- “बहुत प्यार करते हो खुशबू से?”

पप्पू- “हाँ..” कहकर वो नीचे जमीन पर बैठ गया।

मैं भी उसके बाजू में बैठ गई और फिर पूछा- “तुम्हारे घरवालों को मालूम है?”

पप्पू- “नहीं...”

मैं- “तुम्हें मुस्लिम लड़की से शादी करने देंगे तुम्हारे घर वाले?"

पप्पू- “हाँ नहीं कहेंगे."

मैं- “खुशबू के घरवाले मान जाएंगे?”

पप्पू- “वो भी नहीं मानेंगे...”

मैं- “तो तुम लोग क्या करोगे?”

पप्पू- “भाग जाएंगे...”

मैं- “डर नहीं लगेगा?"

पप्पू- “खुशबू डर रही है, मैं तो किसी से नहीं डरता...”

मैं- “खुशबू के बाप से भी नहीं?”

पप्पू- “नहीं अब्दुल चाचू से भी नहीं...”

मैं- “वो तो गुंडा है."

पप्पू- “मैं प्यार करता हूँ खुशबू से, किसी से नहीं डरता...”

मैं- “खुशबू के पापा क्या करते हैं?”

पप्पू- “वसूली करते हैं."

मैं- “वसूली... वो क्या?”

पप्पू- “कोई पैसा न देता हो तो वो दिला देता है, अब्दुल चाचू के साथ पाँच-छे आदमी काम करते हैं, पोलिस वाले भी उनसे डरते हैं...”

मैं- “तेरी लाइफ में तो पंगे ही पंगे है, पप्पू...” मैंने इतना कहा और फिर रुक के फिर से कहा- “ओके, आज से हम फ्रेंड..” और मैंने मेरा हाथ आगे किया।

पप्पू कुछ देर तक ऐसे ही खामोश बैठा रहा।

मैं- “सच्चे दोस्त..” मैंने फिर से कहा।

पप्पू- “दिल से दोस्ती...” कहते हुये उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।

मैं- “कल खुशबू को मेरे पास भेजना, मैं उसे मिलना चाहती हूँ...” मैंने कहा।

पप्पू- “कह दूंगा...” इतना बोलकर पप्पू खड़ा हुवा, पहले थोड़ा सा दरवाजा खोला और बाहर देखकर पूरा खोलकर बाहर निकला।
 
मैं भी पीछे-पीछे खड़ी हुई फिर हम दोनों ग्राउंड फ्लोर पे आए और लिफ्ट में बैठे- “तुम अभी छोटे हो इसलिए । तुम्हारी जिंदगी में सेक्स से ज्यादा प्यार की अहमियत है। मेरी उमर के होगे ना तब प्यार से ज्यादा सेक्स की जरूरत महसूस करोगे..” मैंने इतना कहा तब तक तीसरा माला आ गया था, तो मैं जाली खोलकर बाहर निकल गई।
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मम्मी रूम में थी तब मैंने दीदी को फोन लगाया- “हेलो...”

दीदी- “हाय निशु..” दीदी की आवाज में गजब की मस्ती थी।

मैं- “कैसी गई रात?” दीदी की आवाज सुनकर मुझमें भी वो मस्ती आ गई।

दीदी- “मस्त, तीन राउंड लिए.."

मैं- “तीन बार चोदा तुझे जीजू ने...” दीदी की बात सुनकर मैं इतना खुश हो गई की मैं खुल्लम खुल्ला बोल गई।

दीदी- “हाँ, बहुत मजा आया..”

मैं- “और क्या-क्या किया?”

दीदी- “69 किया..."

मैं- “वो क्या दीदी?” मैं दीदी के मुँह से खुल्ला सुनना चाहती थी।

दीदी- “हम दोनों ने एक दूसरे के अंग को चूसा...”

मैं- “मैं समझी नहीं दीदी...”

दीदी- “मैंने अनिल का लण्ड चूसा और उसने मेरी चूत चाटी...” दीदी ने कहा।

मैं हँसने लगीं।

दीदी- “शैतान...” दीदी ने प्यार से कहा।

मैं- “मुझे शैतान क्यों बोला? मैं आपसे नहीं बोलूंगी..” मैंने बच्चों की तरह कहा।।

दीदी- “भूल हो गई माफ कर दो...” दीदी मजाक में इतना बोली, पर आगे उनकी आवाज गंभीर हो गई- “निशा तुम मुझसे छोटी हो, लेकिन तूने बड़ी बहन के फर्ज निभाए हैं..”

मैं- “छोड़ो दीदी ऐसी बातें। मुझे तो बस आप लोगों की जिंदगी में खुशियां चाहिए..”
 
दीदी- “मैंने तुम्हारे साथ जो किया था वो याद आता है तब मुझे अपनी मूर्खता पे गुस्सा आता है। अनिल को देरी हो रही है, बाद में फोन करती हूँ बाइ...” इतना कहकर दीदी ने काल काट दी।

सच में मुझे अब दीदी से ईर्ष्या हो रही थी। जीजू के पास पैसे भले न हों, पर वो दीदी को भरपूर प्यार देते हैं।

थोड़ी देर बाद खुशबू आई, उसे जल्दी थी खाना पकाने की इसलिए वो जल्दी-जल्दी बात करके निकल गई। दो साल पहले उसकी अम्मी का इंतेकल हो गया था, तब से घर के काम की जिम्मेदारी उस पर थी। उसके अब्बू कुछ ज्यादा ही सख़्त किस्म के इंसान हैं, जो मैं भी जानती थी।

पप्पू के बारे में भी हमने बातें की। तीन महीनों से ही उन दोनों को प्यार हुवा था। दोनों यहां नये-नये ही रहने के लिए आए थे और पप्पू तो पहली नजर में खुशबू के प्यार में पड़ गया था। लेकिन खुशबू ने 'हाँ' कहने में थोड़ा समय लिया था। उसे मालूम नहीं था की प्रेम का पेट नाम पप्पू है। मैंने जब उसे बताया तो वो खूब हँसी।

मैंने खुशबू से हमारी चुदाई की बातें छुपाकर कल रात मिला था और पतंगबाजी की सारी बातें बताई। उसके साथ बात करके मुझे लगा की खुशबू बहुत ही प्यारी लड़की है, थोड़ी देर में हम दोनों पक्की सहेलियां बन गईं।

शाम को मैं आटो में रीता के घर गई। मुझे देखकर रीता के साथ-साथ उसकी भाभी भी खुश हो गई। उन्होंने खाना खाकर ही जाना है, ये हिदायत दे दी। खाना बना तब तक मैंने और रीता ने बातें की और फिर मैं खाना खाकर घर जाने को निकली।

आटो पकड़कर मैं घर वापस आ रही थी, तब सड़क के साइड में खुशबू को देखा, शायद उसे भी आटो का इंतेजार होगा ये सोचकर मैंने आटो वाले को रोकने को कहा और मैं आटो से उतरी, तब तक वो वहां से गायब हो चुकी
थी। मैंने इर्द-गिर्द नजर घुमाई तो खुशबू को एक होटेल के अंदर जाते देखा।

मुझे लग रहा था पप्पू को मिलने आई होगी लेकिन किसी पार्क और गार्डन को छोड़कर होटेल में ये ज्यादा लग । रहा था। मैंने आटो वाले को पैसे देकर जाने को कहा और जल्दी-जल्दी होटेल के अंदर गई। अंदर जाकर देखा तो खुशबू नहीं थी। होटेल देखने से सस्ता और गंदा मालूम हो रहा था।

मैं- “दोनों को यही जगह मिली थी मिलने के लिए?" मैं धीरे से बड़बड़ाई।
मैं वापस मुड़ी तभी रिसेप्शन काउंटर पर बैठे आदमी की आवाज आई- “बोलिए मेडम, क्या काम है?”
 
मैं कुछ बोले बगैर बाहर निकल गई। फिर न जाने क्या सोचकर वापस अंदर गई और पूछा- “वो लड़की आई थी अभी, कहां गई?”

वो आदमी कुछ देर मेरी तरफ देखता रहा, वो कोई 40-45 साल का होगा। मुझे उसके गंदे दांत दिखाने के लिए पहले तो वो हँसा और फिर बोला- “वो लड़की अभी ही कमरे में गई है, दो-तीन दिन होता है और आती है उसके यार से मिलने के लिए..” उस आदमी ने मुझे घूरते हुये ये सब बताया।

मैं- “वो लड़की मेरी फ्रेंड है...” मैंने कहा।

तो...” उसने कंधों को उचकाते हुये कहा।

मैं- “मैं... मैं किसी भी तरह देख सकती हूँ की वो क्या कर रही है? उसे मालूम नहीं पड़ना चाहिए...”

मेरी बात वो ध्यान से सुनकर ऐसे हाव-भाव कर रहा था की मुझे उसका डर लग रहा था। शायद मैं इतनी हसीन नहीं होती तो उसने मुझे कब का निकाल दिया होता। वो बहुत जल्दी से 'आप' से 'तुम' पर आ गया- “तुम्हें क्या लगता है की वो क्या कर रही होगी?”

मुझे अब लगा की यहां से खिसक जाना ही बेहतर रहेगा मेरे लिए, मैं फिर से वापस निकलने के लिए मुड़ी तो वो आदमी रिसेप्शन से निकलकर मेरे सामने आ गया- “तुम्हें देखना है तो मैं दिखा सकता हूँ...”

मैं- “मुझे नहीं देखना...” कहकर मैं साइड में होकर आगे निकलने लगी।

उसने चाबी मेरी तरफ करते हुये कहा- “उसके बाजू का रूम खाली है मेडम, रूम के अंदर रोशनदन है, पर्दा होगा उठकर देख लेना। बोलो तो चाबी दे दें, आप अकेली जाना...”

मैं- “मुझे नहीं देखना, जाने दो मुझे..” कहकर मैंने उसे सामने से खिसकना चाहा।

उसकी बात करने की स्टाइल फिर से बदल गई थी, वो अच्छी तरह से बात करने लगा- “देख आओ मेडम, हो। सकता है आपके करण आपकी फ्रेंड गलत रास्ते पे जा रही हो तो आप उसके लिए कुछ कर सकती हैं..."

मैंने उसके हाथ से चाबी ली- “कौन से नंबर का रूम है?"

फर्स्ट फ्लोर पे पाँच नंबर में आप जाओ, चार नंबर में है आपकी फ्रेंड..”

मैंने उसके हाथ में से चाबी ली और फटाफट सीढ़ियां चढ़ गई। पाँच नंबर के रूम के दाहिने तरफ चार नंबर का रूम था। मैं रूम खोलकर अंदर गई और दाहिनी दीवार पे नजर डाली, वहां ऊपर रोशनदन था। मैंने चारों तरफ नजर दौड़ाई तो कहीं टेबल या स्टूल जैसा कुछ नहीं था की जिस पर मैं चढ़कर रोशनदन से देख सकें। मैं रूम से बाहर आई तो थोड़ा दूर एक टेबल पड़ा था। मैंने वो उठाया और रूम के अंदर रोशनदन के नीचे रखकर रूम बंद किया और मैं टेबल के ऊपर चढ़ी और पर्दा हटाकर रूम के दूसरी तरफ नजर की। अंदर जो दिख रहा था उसका मुझे कुछ अंदाजा था ही।
 
खुशबू ब्रा, पैंटी में बेड पर सोई हुई थी। ब्लैक कलर की ब्रा-पैंटी में कैद खुशबू का बदन कयामत लग रहा था, मैंने पर्स में से मोबाइल निकाला और वीडियो किया, साथ में लेन्स को जूम भी कर दिया जिससे दृश्य साफ-साफ आए, और उसे रोशनदान में ऐसी जगह पे रख दिया जहां से अंदर के दृश्य अच्छे आएं। तभी दरवाजा खुलने की। आवाज आई। पप्पू ने आने में इतनी देर क्यों लगाई होगी? उस दिन खुशबू के उरोजों को पप्पू ने छुवा ही था। तो वो मारने, काटने की बात कर रही थी, और इस वक़्त अधनंगी होकर पप्पू की राह देख रही थी, कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

इतने भी कपड़े क्यों पहन रखे हैं, चल निकाल इसे भी...” अंदर से आवाज आई।

तब मैं मेरी सोच से बाहर निकली। अब तो मैं पप्पू की आवाज अच्छी तरह से पहचानने लगी थी, मुझे ये आवाज उसकी नहीं लगी। मैंने फिर अंदर की तरफ ध्यान दिया। कोई आदमी तौलिया में खड़ा था। उसका चेहरा नहीं दिख रहा था क्योंकि उसकी पीठ मेरी तरफ थी और उसके तकले सिर से साफ जाहिर हो रहा था की वो पप्पू नहीं कोई और था। और दरवाजा रूम का नहीं बाथरूम का खुला होगा।

पप्पू नहीं है कोई और है, ये जानकार मेरे सारे शरीर में कुछ पल के लिए कंपकंपी छूट गई। आजकल सेक्स के प्रति मेरी विचारधारा बदल चुकी थी। मैं किसी भी बात को गलत नहीं समझती थी। फिर भी मुझे खुशबू पे । गुस्सा आ रहा था, और पप्पू से हमदर्दी हो रही थी। वो लड़का था फिर भी उसने मुझे एक बार ठुकराया था और करने के बाद भी रोया था और ये लड़की बिंदास होकर होटेल में आ गई थी।

मैं अब अंदर का नजारा देखने लगी। खुशबू ने अपने सारे कपड़े निकाल दिये थे, उसके छोटे-छोटे नींबू जितने । स्तन और पतली कमर गजब लग रही थी। उस आदमी ने तौलिया निकाल दिया और खुशबू को लण्ड चूसने को कहा। ये लड़की ये भी करने लगी है, ये सोचकर मुझे उससे नफरत होने लगी।

खुशबू बेड से उठकर जमीन पे बैठ गई। फिर तो सिर्फ उस आदमी की पीठ दिखाई दे रही थी और उसकी सिसकारियां सुनाई दे रही थीं। थोड़ी देर बाद खुशबू फिर से खड़ी हो गई और बेड के किनारे पे उसकी टाँगें चौड़ी
करके बैठ गई।

अब वो आदमी जमीन पे बैठ गया और उसकी चूत चाटने लगा। खुशबू आँखें बंद करके सिसकियां भरने लगी, उसके चेहरे पे उत्तेजना के भाव साफ दिख रहे थे। वो उस आदमी की पीठ को, और कभी सिर को सहला रही ।

थी। तभी मुझे लगा की किसी ने मेरे पैरों को पकड़ा हुवा है। मैंने नीचे नजर की तो वो आदमी जो रिसेप्शन पर बैठा था और मुझे चाबी दी थी, वो मेरे पैर को पकड़कर खड़ा था।

मैं- “तुम अंदर कैसे आए?” मैंने उससे पूछा।

हमारे पास दूसरी चाभी रहती ही है मेडम...” इतना कहकर उसने उसका हाथ ऊपर किया और मेरी चूत को बाहर से सहलाया। मैंने जीन्स और टाप पहना था इसलिए वो नीचे खड़े रहकर ज्यादा तो कुछ कर नहीं सकता था।

मैं- “ये क्या कर रहे हो? जाओ यहां से...” मैंने कहा।

वाह री मेडम, रेंट तो वसूल करने दो...” उसने दूसरे हाथ को पीछे किया और मेरी गाण्ड को सहलाया।

मैं- “छोड़, नहीं तो मैं चिल्लाऊँगी..” मैंने धमकी दी।
 
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