Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची - Page 3 - SexBaba
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Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची

दूसरे दिन लेट उठा, वो भी जब नीलिमा भाभी ने उठाया कि चल, आज जॉइन करना है तुझे. जल्दी जल्दी तैयार होकर भागा. चाची बोलीं "कल से ऐसे जल्दी नहीं करना पड़ेगी बेटे, वो एक और स्कूटर गैरेज में पड़ा है बहुत दिन से, कल ही मेकेनिक से सर्विस करके बुलवा लेती हूं, फ़िर आराम से जाया कर, दस मिनिट में पहुंच जाया करेगा.

जाने के पहले नीलिमा मुझे अकेले में ले गयी और फ़िर जोर से मेरा चुंबन लिया. बोली "विनय, तुझे मालूम नहीं है कल तूने कितना सुख दिया है मेरे को, मैं तो तरस गयी थी. ममी बहुत प्यार करती हैं मेरे को पर सिर्फ़ मीठा कोई कितने दिन खा सकता है, नमकीन और चटपटा भी तो चाहिये ही ना"

रात को फ़िर वही तीन देहों का मिलन. मुझसे ज्यादा उत्सुक नीलिमा थी और चाची भी पीछे नहीं थीं. और उनको तो ऐसा हो गया था कि जैसे कोई नया खिलौना, गुड्डा मिल गया हो खेलने, उनका मन ही नहीं भरता था.

अब कहानी को हम सीधे दो तीन हफ़्ते आगे ले जा सकते हैं पर उसके पहले संक्षिप्त में इन तीन हफ़्तों में क्या हुआ, वह बताना चाहूंगा.

एक हफ़्ते के अंदर हमारा एक टाइम टेबल फिक्स हो गया, सलाह चाची की ही थी. सोमवार से शुक्रवार तो मेरी ट्रेनिंग रहती थी, सो सिर्फ़ रात मिलती थी. उसमें भी शुक्रवार रात चाची ने पाबंदी लगा दी थी, स्ट्रिक्ट इन्स्ट्रक्शन दिये कि सब सिर्फ़ रेस्ट करेंगे, कम से कम एक दिन का पूरा रेस्ट जरूरी है. मेरा वीक एन्ड ऑफ़ था, उस दौरान दोपहर के खेल के लिये उन दोनों सास बहू ने समय आपस में बांट लिया था कि मेरे साथ हरेक को एकांत भी मिले, बिना हिचकिचाहट के जो मन चाहे करने के लिये. शनिवार को नीलिमा का ऑफ़िस हाफ़ डे लगता था और वह और दो घंटे लेट ही आती थी याने चाची को दोपहर भर अपना गुड्डा अकेले में खेलने को मिलता था. रविवार को चाची का महिला मंडल होता था या कोई न कोई फ़ंक्शन होता था, उसमें वे दोपहर को जाती थीं और तब नीलिमा मुझसे मस्त मेहनत करवा लेती थी. और शनिवार रविवार रात तो थे ही सामूहिक कुश्ती के लिये.

अकेले में नीलिमा को मुझसे बस दो काम रहते थे, मेरा लंड चूसना, और खूब चुदवाना, तरह तरह के पोज़ में चुदवाना, कभी नीचे लेट कर, कभी ऊपर से, कभी कुरसी में मेरी गोद में बैठकर और कभी दीवाल के सहारे खड़े खड़े. मैं समझ सकता था, आखिर बेचारी अपने पति से - अरुण से - इतनी दूर थी और इतने दिनों से दूर थी. नीलिमा बहुत एथेलेटिक थी, उसे उछल कूद, मेहनत और कुश्ती करते हुए चोदना भाता था.

इसके विपरीत चाची बस एक महारानी की तरह अपने मन की सेवा मुझसे करवा लेती थीं. आधा समय उनका कुरसी में बैठकर मेरे सिर को अपनी टांगों में दबाये जाता था, लगता था ये उनका फ़ेवरेट पोज़ था. शायद अपने भक्त को भरपेट अपनी चूत के अमरित का प्रसाद देना वे अपनी ड्यूटी समझती थीं. बाकी आधे वक्त वे पलंग पर लेट कर मुझसे घंटे घंटे चुदवाती थीं. इसके अलावा उनका मन लगता था अपने स्तनों की मालिश करवाने में, उन्हें दबवाने और मसलवाने में, अक्सर वे लेट जाती थीं और मैं उनके सामने बैठ कर उनके बड़े बड़े मैदे के गोलों को आटे की तरह गूंधता था. इनाम स्वरूप मुझे उन्हें चूसने का मौका मिलता था. और चाची चुसवाते चुसवाते अक्सर मेरे मुंह में निपल के साथ साथ अपने स्तन का भी काफ़ी भाग घुसेड़ देतीं थीं, कभी मूड में होतीं तो खेल खेल में जितना मम्मा मुंह में जा सकता था उतना ठूंस देतीं, एक बार तो मुझे लगता है उन्होंने आधा उरोज मेरे मुंह में डाल दिया था और फ़िर मुझे नीचे लिये मेरे चेहरे को छाती से ढक कर बहुत देर लेटी रहीं और मुझे चोदती रहीं. मैं बस उस नरम मांस को मुंह में लेकर पड़ा रहा. मुझे तो लगता है कि वे उस दिन जिस मूड में थीं, उनका बस चलता तो वे पूरी चूंची ही घुसेड़ देतीं पर वो फ़िज़िकली इम्पॉसिबल था.

चाची के पैरों की ओर मेरी आसक्ति इन दिनों में बढ़ती जा रही थी. वैसे इसके पहले मेरा ध्यान लड़कियों के पैर की ओर इतना नहीं गया, वैसे अच्छे सैंडल पहने हुए खूबसूरत पैर किसको अच्छे नहीं लगते, पर चाची के पैरों की ओर मैं जरा ज्यादा ही आकर्षित हो गया था. हो सकता है कि एक बार उनके प्रति मन में सेक्स फ़ीलिंग आने से ऐसा हुआ हो. यह आकर्षण अब इतना तीव्र हो गया था कि कई बार उनके सामने बैठकर उनकी बुर चूसने के पहले मैं उनके पैरों से खेल लिया करता था, उनके चुंबन लेता, उनकी प्रशंसा करता कि चाची आपके पैर कितने खूबसूरत हैं, आपको तो सैंडल्स की मॉडलिंग करनी चाहिये. चाची बस मुस्करा देती थीं. उन्हें भी पता था कि उनके पांव एकदम शेपली हैं. उन्हें शायद यह भी पता था कि उनके पैरों के प्रति यह आकर्षण कोई सादा आकर्षण नहीं है, बल्कि एक ऑब्सेशन बनता जा रहा है पर उन्होंने इस मामले में न तो मुझे रोका न कभी ज्यादा प्रोत्साहन दिया.

इसी चक्कर में धीरे धीरे मैं एक कदम आगे बढ़कर उनके स्लीपरों तक पहुंच गया. वैसे मुझे फ़ेतिश वगैरह नहीं है पर न जाने क्यों एक बार जब चाची के पैरों से इश्क हो गया तो निगाह उनकी घर में पहनने की स्लीपर पर भी जाने लगी. गुलाबी रंग की नाजुक सी स्लीपर थी, गहरे गुलाबी रंग के पतले स्ट्रैप और हल्के गुलाबी और क्रीम कलर के एकदम पतले पतले सोल. एकदम साफ़ सुथरी थी. स्लीपर अच्छी थी पर चाची ने पहनी थी इसलिये मुझे ज्यादा सेक्सी लगने लगी. एक बार जब मैं उनके सामने नीचे बैठकर उनकी बुर चूसने की तैयारी कर रहा था तब चाची मेरा इंतजार करते करते एक पर एक पैर रखकर हिला रही थीं और वो स्लीपर उनकी उंगलियों पर लटककर नाच रही थी. वह झूलती चप्पल एकदम से मेरे दिल में उतर गयी. जोश में आकर मैंने उनकी स्लीपर को भी चूम लिया. वे बस हल्के से मेरी ओर देखकर जरा सा मुस्करा दीं, ये नहीं बोलीं कि बेटा, मेरी चप्पल से क्यों मुंह लगा रहे हो, याने उनको ये मेरी भक्ति का ही एक भाग लगी होगी. अगली बार जब मैं उनकी चूत चूस रहा था तो उन्होंने मुझे रोक कर अपनी दोनों स्लीपरें उतारीं और मेरे तन्नाये लंड में फंसा दीं. बोलीं "इसे भी जरा स्वाद लेने दे, तेरे को अच्छी लगती हैं ना? इसे भी भायेंगी"

उस दिन बाद में उनको चोदते वक्त मैं बस पांच मिनिट में ही झड़ गया, मेरा कंट्रोल ही नहीं था, लंड जैसे पागल हो गया था. चाची ने मुझे झड़ने दिया और फ़िर कान पकड़कर बोलीं "इस बार माफ़ कर देती हूं पर फ़िर ऐसा किया तो इसी चप्पल से मारूंगी, मूरख कहीं का." उसके बाद मैंने फ़िर उनकी रबर की चप्पल के मामले में जरा अपने आप पर काबू रखा, वैसे एक बार मन में आया कि यार, शायद मार खाकर भी मजा आयेगा, अगर मार इस मुलायम खूबसूरत चप्पल से पड़े. हां पर हर शनिवार पांच दस मिनिट अपनी तरह से मैं चाची की चरण पूजा कर लेता था. ये मैं सिर्फ़ इसलिये बता रहा हूं कि पता चले कि धीरे धीरे चाची मुझसे अपनी गुलामी करवाने में कैसे एक एक कदम और रख रही थीं.

और सबसे अहम बात याने चाची अकेले में घंटे भर मुझे ट्रेनिंग देती थीं, न झड़ने की ट्रेनिंग. तरह तरह से मेरे लंड से खेलना, उसको पुचकारना, अपने मोटे मोटे स्तनों में दबाना, कभी अपने खूबसूरत पांव से रगड़ना पर ये सब सहन करते वक्त मुझे कड़क हिदायत होती कि स्खलित न होऊं. मैं कभी परेशान हो जाता तो कहतीं कि मेरी सेक्स लाइफ़ और अच्छी बनाने के लिये मुझे कंट्रोल करना सिखाना जरूरी है. मुझे कभी कभी लगता कि सच में चाची मेरी सेक्स लाइफ़ इम्प्रूव करना चाहती हैं या वो इन्टरनेट पर होते हैं वैसे सेक्स स्लेव या कुकोल्ड बनाने की तो नहीं सोच रही हैं, पर उनसे सेक्स करने में इतनी मादकता थी कि इस बात को मैं नजरंदाज कर देता था.
 
अब कहानी पर वापस आते हैं दो हफ़्ते बाद की बात है. रविवार की दोपहर थी. मैं नीलिमा भाभी पर पड़े पड़े उनको हौले हौले चोद रहा था. वैसे दो बार मैं उन्हें झड़ा चुका था, पर अब सिर्फ़ अगली चुदाई के पहले उनको गरम करने को उनकी गीली झड़ी हुई बुर में लंड डालकर बस जरा सा आगे पीछे कर रहा था, और उनका एक स्तनाग्र मुंह में लिये था.

बहुत दिनों से एक प्रश्न मेरे को सता रहा था. ये सास बहू का लफ़ड़ा शुरू कैसे हुआ होगा? ऐसा कहानियों में भले पढ़ें, होता बहुत कम है, ससुर बहू का भले हो जाये, पर सास बहू का? वो भी हमारे जैसे संभ्रांत मध्यम या उच्च मध्यम वर्ग में! हमारे प्रतिष्ठित परिवार में कहीं भी ऐसा कुछ हो सकता है, ये किसी के सपने में भी नहीं आता. चाची को पूछने का दम तो मुझमें था नहीं, सोचा नीलिमा को ही पूछा जाये, और अब अच्छा मौका था जब वो दो बार चुद कर एकदम तृप्त हो गयी थी.

मेरा काम नीलिमा ने आसान कर दिया, बड़े लाड़ के मूड में थी, मेरे बाल बिखरा कर बोली "बहुत प्यारा है तू विनय, अब तो मुझे यह समझ में ही नहीं आता कि तू नहीं था तब मैं कैसे ये अकेलापन सहन करती थी"

"क्यों भाभी? आप सास बहू के लाड़ प्यार तो मस्ती में चलते थे ना?" मैंने मौका देखकर पूछ ही डाला.

"अरे वो ठीक है, बहुत सुख मिलता था उससे, पर ऐसा सोंटा ..." मेरे लंड को चूत से पकड़कर वो बोली " ... नहीं था ना, तुझे नहीं समझेगा, इस लंड की जगह कोई वाइब्रेटर या डिल्डो नहीं ले सकता"

"आप के पास है भाभी? तो दिखाओ ना मेरे को. अब तक चाची के साथ की चुदाई में तो आप लोगों ने कभी इस्तेमाल नहीं किया!" मैंने इंटरेस्ट से पूछा.

"अब क्या करेगा देख कर? बहुत दिन हो गये, कहीं अंदर रखा है, अब तो जरूरत भी नहीं है. और ममीजी को भी वो ज्यादा पसंद नहीं है, उनको तो बस ऐसे मुंह लगाकर चूसने और चुसवाने में ही मजा आता है. हां पहले मुझे कभी कभी वे वाइब्रेटर से चोद देती थीं, मेरा मन रखने को"

"स्नेहल चाची वैसे आप को बहुत प्यार करती हैं भाभी, उनकी आंखों में ही दिखता है" मैंने कहा.

"हां मुझे मालूम है. मेरी सास ने मुझे जो सुख दिया है वो मैं कभी भूल नहीं सकती. याने ममता वाला प्यार भी है और वासना - लस्ट वाला भी प्यार है"

"भाभी एक बात पूछूं, नाराज तो नहीं होंगी?"

"अरे पूछ ना, तुझपर मैं और नाराज?"

"आप दोनों में ये ... याने ऐसे संबंध की शुरुआत कैसे हुई? मुझे आपकी प्राइवेट लाइफ़ में दखल नहीं देना पर बार बार यही सोचता हूं .... याने सास बहू में झगड़ा तो हर जगह दिखता है पर प्रेम और वो भी ऐसा प्रेम ... दो एक्स्ट्रीम हों जैसे सास बहू के बीच में ... बड़ा अनयूज़ुअल है"

"अरे अपनी चाची से पूछ ना" शोखी से हंस कर नीलिमा बोली.

"हिम्मत नहीं होती भाभी, वो अपनी चप्पल से ही मारेंगी मेरे को. वैसे उनकी उस नाजुक सी चप्पल से भी मैं मार खा लूंगा चुपचाप पर .... बताओ ना भाभी प्लीज़" मैंने आग्रह किया.

"अब कैसे बताऊं .. कहां से शुरू करूं ... एक बात हो तो बताऊं ...वैसे तेरी स्नेहल चाची बड़ी ग्रेट पर्सनालिटी हैं विनय. तुझे तो उनके बारे में टेन परसेंट भी पता नहीं है .... हां ... हां ... ऐसे ही चोद ना हौले हौले .... बहुत अच्छा लग रहा है"

मैंने धीरे धीरे फ़िर से स्ट्रोक लगाने शुरू कर दिये "बताओ ना भाभी प्लीज़"

"ठीक है बाबा, बताती हूं ... बताने जैसा बहुत कुछ है पर ... बताना नहीं चाहिये तेरे को ... आखिर उनकी पर्सनल लाइफ़ है पर चलो ठीक है ... पहले यह समझ ले कि एक बात में मेरा और चाची ... ममी का स्वभाव करीब करीब एक सा है ... याने सेक्स के बारे में ... हम दोनों जरा ज्यादा ही गरम तबियत की हैं. दूसरे यह कि हम दोनों ए.सी. डी.सी. हैं ... समझ रहा है ना? याने सेक्स के मामले में पार्टनर मर्द हो या औरत इसका फरक नहीं पड़ता, इसका मतलब यह नहीं कि कभी भी किसी के साथ जानवरों जैसा कर लिया ... जो सच में अच्छे लगते हैं, मन को भाते हैं ...उनके साथ सेक्स करने में बहुत मजा आता है ... जैसा तू .. एकदम स्वीट जवान लड़का और वो भी अपने पास का .... अगर मान लो तू विनय के बजाय एक जवान लड़की विनीता होता और चाची को विनीता पसंद आती और अगर बाकी सर्कमस्टेंसेस फ़ेवरेबल होतीं तो तब भी यही होता जो आज तेरे साथ हुआ है ... समझा?"

"हां भाभी, थैंक यू"

"अरे थैंक यू क्या बोलता है, सच में तू चिकना है, हमें इतना सुख देता है. अब अरुण ... मेरी शादी के एक महने के बाद ही मेरे हसबैंड के परदेश जाने से हम दोनों मां बेटी जरा अकेली पड़ गयीं गोआ में. दिन रात बस एक दूसरे का साथ ही था, और दोनों का ऐसा गरम नेचर! फ़िर आगे क्या होना है यह तो पक्का ही है. छोटी सी शुरूआत हुई, एक बार शुरुआत हुई तो तेज बहाव में बहते गये हम दोनों. वैसे तेरी चाची याने सच में ... माल ... हैं. और उनको भी अपनी यह बहू भा गयी. तब तक हम दोनों अलग बेडरूम में थे. फ़िर ममी ही बोलीं कि अकेले में कौन देखता है, तू आ जा मेरे ही बेडरूम में" कुछ देर नीलिमा चुप रही, शायद पुरानी यादों में खो गयी थी.

"पर एग्ज़ैक्ट शुरुआत कैसे हुई, बताइये ना भाभी, याने पहली बार क्या हुआ, पहला कदम किसने उठाया?" मैंने उनको कस के चूम कर फ़िर आग्रह किया. मेरे धक्कों का जोर अब बढ़ गया था. नीलिमा भी नीचे से धीरे धीरे चूतड़ उछाल कर साथ दे रही थी.

"तुझे क्या लगता है?" नीलिमा भाभी ने शैतानी भरी आवाज में पूछा.

"चाची ने किया होगा, जैसा मेरे साथ किया बस में. सॉलिड एग्रेसिव पर्सनालिटी है उनकी"

"पर उनको प्रोत्साहन तूने ही दिया ना? परिवार में और किसीके साथ ऐसा किया है क्या उन्होंने? उनकी ओर घूरकर, ऐसे चोरी छिपे देख देख कर तुझे वे अच्छी लगती हैं यह संकेत तूने ही दिया ना उन्हें! बस ऐसा ही मेरे बारे में हुआ. अरुण नहीं था, और ये सौतन चूत मेरी ... बहुत तंग करती थी. उस मूड में ममी की ओर आकर्षण बढ़ने लगा मेरा. और दो औरतों के बीच कपड़े बदलते वक्त वगैरह इतनी प्राइवेसी भी नहीं होती, खास कर जब वे एक ही घर की हों. मेरी निगाहें ऐसे वक्त उनपर टिक जाती थीं. उनको वह समझ में आ गया होगा, किसी की भी नजर पहचानने में वे एकदम उस्ताद हैं ... तुझे तो खुद अनुभव है इसका. फ़िर एक दिन हमें दाबोलिम एक शादी में जाना था तो मुझे उन्होंने बुलाया, बोलीं कि ब्लाउज़ टाइट है, जरा बटन लगा दे"

मेरे चेहरे के भाव देख कर नीलिमा हंसने लगी "अरे ऐसा क्यों देख रहा है? तुझे भी उनके इस रामबाण ने ही वश में किया ना? उनको मालूम है कि उनकी छातियां याने क्या चीज हैं. उस दिन उन्होंने एकदम पुरानी ब्रा पहनी थी ... शायद जान बूझकर. फ़िर मेरे मुंह से निकल गया कि ममी, ये ब्रा अच्छी नहीं है. फ़िर क्या था, वे बोलीं कि तू ही बता कौन सी पहनूं. फ़िर मैंने उनकी सब ब्रा देखीं. एक से एक स्टॉक है उनके पास. देखते देखते ही मेरी गीली होने लगी थी. उनकी डार्क ब्राउन साड़ी थी इसलिये मैंने वो काली वाली चुनी, तो उन्होंने मेरे सामने ही बदली, याने पूरा नहीं दिखाया, दांत में आंचल पकड़कर उसके पीछे पुरानी ब्रा निकाली और नयी पहनी पर इतनी झीनी थी वो साड़ी, उसमें से सब दिखता था. फ़िर बोलीं कि उस ब्रा के हुक का लूप टाइट है, उसे जरा फैला दे."

नीलिमा एक मिनिट रुकी, शायद उस पहले मिलन के क्षण को याद कर रही थी. फ़िर आगे बोली "अब मौके पर कुछ था भी नहीं वो वायर का लूप खोलने के लिये तो मैंने दांत से ही कर दिया, तब मेरा चेहरा उनकी पीठ के इतना पास पहुंच गया मैंने कि ... अब क्या बताऊं तुझे ... अच्छा वो ब्रा कम से कम दो इंच टाइट थी, मुझे खींचना पड़ी, किसी तरह मैंने फ़िर ब्रा को खींचकर उसके हुक लगाये. पता है विनय, मेरे हाथ इतने थरथरा रहे थे कि हुक स्लिप हो गया दो तीन बार, मुझसे लग ही नहीं रहे थे. मन में आ रहा था कि वैसे ही उनको पकड़कर उनके उन ठस कर भरे हुए स्तनों के खूब चुंबन लूं ... उनकी उस सपाट चिकनी गोरी पीठ को चूमूं. पर किसी तरह अपने आप को रोका. उस दिन शादी के हॉल में हम चार पांच घंटे थे और सारे समय उनसे ठीक से बात करने का भी साहस नहीं हो रहा था मुझे, बार बार यही लगता कि उन्होंने मेरी नजर में छुपी वासना पहचान ली होगी तो सोच रही होंगी कि कैसी बिगड़ी लड़की है. वो तो बाद में पता चला मुझे कि ये सब तो उन्होंने जान बूझकर किया था."

नीलिमा चुप हो गयी, पर उसकी नीचे से चोदने की स्पीड बढ़ गयी थी. मैं भी अब अच्छे लंबे स्ट्रोक लगाकर उसे चोद रहा था.

नीलिमा आगे बोली "रात को शादी के डिनर के बाद जब हम वापस आये तो उन्होंने फ़िर मुझे बुलाया "नीलिमा बेटी, ब्रा के हुक निकाल दे. और उसके बाद ब्रा निकाल कर मुड़ कर मेरे सामने खड़ी हो गयीं, मैं तो देखती ही रह गयी उनके उस लावण्य को ... याने क्या कहते हैं वो ... हां जोबन को ... और सबसे बड़ी बात तो यह है विनय कि उनमें कोई झिझक नहीं थी, बड़ा बॉडी कॉन्फ़िडेंस था कि मैं तो सुंदर और सेक्सी हूं और मेरी बहू को भी सेक्सी ही लगूंगी ... फ़िर खुद मुझे बाहों में लेकर मेरा चुंबन ले लिया और ... मैं उनसे लिपट गयी. उसके बाद तो ऐसी जल्दी हुई मुझे कि ठीक से कपड़े निकालने का भी धीरज नहीं था मुझमें ... क्या क्या नहीं किया उस रात हमने !!! वो रात मुझे उतनी ही याद रहेगी जितनी मेरी हनीमून की रात याद है. उसके बाद तो हम जैसे नवविवाहित पति पत्नी ही हो गये. एक दूसरे से जरा भी दूर नहीं रह सकते थे. और ममी भी मेरे जितनी ही प्यासी थीं. वैसे मुझे लगता है कि उनकी प्यास इतनी जबरदस्त है कि कोई उसे शांत नहीं कर सकता."

दो मिनिट बाद नीलिमा बोली "हो गया तेरा समाधान? वैसे इतनी बातें हैं गरमागरम उनके बारे में पर तुझे नहीं बताऊंगी, तुझे खुद ही पता चल जायेगा, आज के लिये बहुत हो गया. अब जरा स्पीड बढ़ा और जल्दी चोद मेरे को"

ये सब सुनकर मैं भी ऐसा गरम हो गया था कि मैंने नीलिमा को घचाघच चोद डाला, बिना उसके स्खलन की परवा किये, वो बात अलग है कि वो भी ऐसी उत्तेजित थी कि चार पांच धक्कों में ढेर हो गयी.

सांस धीमी होने के बाद मैंने और पूछने की कोशिश की पर नीलिमा टाल गयी, बोली और डीटेल्स चाहिये तो अपनी चाची से ही लो. उस शाम को जब चाची महिला मंडल से वापस आयीं और हम चाय पी रहे थे तो नीलिमा भाभी शैतानी पर उतर आयी. मुझे बार बार आंखों से इशारा कर रही थी कि पूछ ना चाची से. आखिर जब चाची किचन में गयीं तो मैंने कान को हाथ लगाकर इशारे से भाभी से मिन्नत की कि क्यों मुझे मार पड़वाने पर तुली हो तब उसने उझे सताना बंद किया.
 
इन दोनों कामिनियों के संग मेरी जिंदगी एकदम मजे में कट रही थी. कभी कभी लगता कि जरूर पिछले जनम में कुछ अच्छा किया होगा इसलिये इतना कामसुख मुझे मिल रहा है. दोनों की स्टाइल बहुत अलग थी. जहां नीलिमा भाभी से मैं अब बिलकुल घुलमिल गया था, उनसे कुछ भी कह सकता था, वैसा चाची के साथ नहीं था. नीलिमा को मैं अगर कहता कि भाभी, आज डॉगी स्टाइल करेंगे तो तुरंत तैयार हो जाती. या कहता कि आज तो भाभी, बस लंड चुसवाऊंगा तुमसे, तो वो मना नहीं करती थी.

चाची से यह सब कहने की हिम्मत नहीं होती थी. चाची मेरे सुख का खयाल जरूर रखती थीं पर अपनी तरह से. करवाती मुझसे वो वैसा ही थीं जैसा उनके मन में था. बिना कहे अगर कुरसी में बैठतीं तो साफ़ था कि अब मुझे उनकी बुर चूसना है. या मेरी ओर पीठ करके लेट जाती थीं और खुद मेरे हाथ अपने स्तनों पर रख कर दबा लेतीं तो मैं समझ जाता था कि आज उनको ठीक से गूंधना है. मजाल थी मेरी जो उनसे कहूं कि चाची, मेरा लंड चूसिये.

और अब एक सबसे ज्यादा खटकने वाली बात पर आता हूं. एक महना होने को आया था पर अब तक मुझे उनमें से किसी से गुदा संभोग का मौका नहीं मिला था. अब टीन एज में और नये नये हॉर्मोन उबाल पर आने के बाद किशोर लड़कों के मन में ’गांड मारना’ इस क्रिया के बारे में बहुत उत्सुकता होती है. इन्टरनेट पर भी ’ऐनल सेक्स’ सबसे ज्यादा पॉपुलर है. अब उन दोनों रूपवती नारियों के वे भरे भरे नितंब देखकर बार बार लगता था कि ये मेरे नसीब में हैं या नहीं! और मेरे सामने तो दो तरह के खूबसूरत नितंब थे. जहां चाची के गोले गोरे गोरे, मांसल भरे हुए और मुलायम थे, भले थोड़े से लटक गये हों, वहीं नीलिमा के बड़े भी थे और एकदम कसे हुए गोल मटोल थे. सॉलिड !! संभोग के समय उनको हाथ लगाने का, कभी कभी चूमने का मौका तो मिलता था पर लंड तो क्या, उंगली भी डालने का साहस मैं नहीं जुटा पाया था.

आखिर एक शनिवार को मैंने ठान ली कि आज चाची की गांड में उंगली तो जरूर करूंगा. उनकी बुर चूसने के बाद जब वे बिस्तर पर लेटीं और मुझे अपने पीछे लिटा लिया तो सीधे उनके स्तन दबाने के बजाय मैं ने उनके नितंबों पर हाथ फ़ेरा. वे कुछ बोली नहीं, अपने स्खलन का आनंद लेती आंखें बंद करके पड़े रहीं. फ़िर मैंने धीरे से उन गोलों को चूमा, दो तीन चुंबन ही हुए थे कि उन्होंने पलट कर मुझे पास खींच लिया. मैं समझ गया कि उनकी इच्छा नहीं है कि मैं ऐसे उनके चूतड़ों से खेलूं.

बाद में जब मैं उनके पीछे लेटा उनका स्तनमर्दन करते करते उनके कंधे चूम रहा था, जैसा उन्हें अच्छा लगता था, तो मैंने अपना खड़ा लंड उनके नितंबों के बीच की गहरी लकीर में आड़ा फंसाया और घिसने लगा. अंदर भले ना डालने मिले पर कम से कम उनके गुदा पर लंड तो रगड़ने को मिलेगा ये सोच रहा था. एक दो बार ही किया था कि वे मुझे बोलीं "ये क्या इधर उधर हिलडुल रहा है बेटे, जरा ठीक से कर ना" तो मैं चुपचाप उनके स्तन दबाने लगा, पर लंड तो अब भी उनके उन गुदाज नितंबों पर ही दबा था. उनको वैसे ही मैंने रगड़ने की कोशिश की तो चाची ने पलट कर कहा "चल लेट नीचे" लेटने के बाद वे मुझपर चढ़ गयीं और चोदने लगीं. ऐसा वे बहुत कम करती थीं पर उस दिन उन्होंने मुझे आधा घंटा चोदा. और झड़ने नहीं दिया, अंत तक तड़पाया, आखिर में जब उस मीठी आग से मैं रोने को आ गया तब उन्होंने मुझे ऊपर चढ़ कर चोदने दिया, मुझे शायद अपने अंदाज में पनिश कर रही थीं. उसके बाद मैंने कसम खा ली कि अब ट्राइ भी नहीं करूंगा. वैसे फ़्रस्ट्रेट हो गया था, सोच रहा था कि कैसे चाची की गांड मारी जाये, उनसे यह सीधे कहने की हिम्मत नहीं थी मेरी कि चाची, पट लेटिये, गांड मारनी है आपकी.

मैंने पूरी हार नहीं मानी. उसी दिन रात को जब हम तीनों लगे हुए थे और एक चुदाई के बाद चाची बाथरूम में गयी थीं, तब मैंने नीलिमा के साथ चांस लिया. नीलिमा पट सोयी हुई थी. मैं तुरंत उसके पास बैठ गया और उसके नितंबों पर हाथ फेरने लगा "भाभी ... कितना गुदाज चिकना बदन है आपका!"

नीलिमा मुस्कराकर आंखें बंद किये किये ही बोली "आज बड़ा लाड़ आ रहा है. कोई खास बात?"

"भाभी, रहा नहीं जा रहा, इनके चुंबन लेने की इच्छा होती है"

"तो मैंने कब मना किया तेरे को! हमेशा तो करता है वहां चूमाचाटी"

उसकी मंजूरी है यह समझ कर मैं उसके चूतड़ों पर टूट पड़ा. उनको दबाया, मसला, साथ ही पटापट उनके चुम्मे लिये, थोड़ा दांत से हल्के से काटा और फ़िर उसके नितंब का मांस जितना हो सकता था मुंह में भरके चूसने लगा. नीलिमा ने बस ’हं .. हं .." किया जैसे उसे अच्छा लग रहा हो. मैंने अब आगे का स्टेप लिया, उसकी गांड की लकीर में नाक डाली और फ़िर जीभ से गुदगुदाने लगा. "अरे गुदगुदी होती है ना ..." कहकर नीलिमा हंसने लगी. उसने मुझे रोकने की जरा भी कोशिश नहीं की. तभी फ़्लश की आवाज आयी और मैं बिचक कर अलग हो गया.

"अरे क्या हो गया? और कर ना! चाची कुछ नहीं कहेंगीं" उसने मुझे धीरे से कहा भी पर मेरी हिम्मत नहीं हुई. हां उसी रात मैंने नीलिमा की गांड में उंगली की और उसने बिना रोक टोक करने दी. ये मुझे चाची से छुपाकर करना पड़ा. वे दोनों आपस में लिपटी हुई चूमा चाटी कर रही थीं, ओपन माउथ किसिंग और जीभ चूसना जारी था. मैं नीलिमा के पीछे लेटा था. मैंने उसके गुदा पर उंगली रखी और घुमाने लगा. जब वो कुछ नहीं बोली तो धीरे से मैंने उसकी बुर के पानी से उंगली गीली की और फ़िर गुदा पर रखकर दबाने लगा. फ़िर कमाल हो गया, नीलिमा ने अपनी गांड ढीली की और ’पच’ से मेरी उंगली आराम से अंदर चली गयी. नीलिमा ने क्षण भर को अपना छल्ला सिकोड़ा और मेरी उंगली कस के पकड़ ली. फ़िर ढीली छोड़ी तो मैं उंगली अंदर बाहर करने लगा.

ये बहुत देर तक चलता रहा. लगता था कि नीलिमा भाभी को उंगली करवाने में मजा आ रहा था. मैंने खूब मजा लिया. नीलिमा को ये गांड मस्ती अच्छी लगी यह देखकर मुझे फ़िर से जोश आ गया था. दूसरे दिन रविवार था, मेरा और नीलिमा का दिन. मैंने ठान ली कि कल जितना हो सकता है, गांड पूजा के इस सफ़र पर आगे जाऊंगा.
 
मैं लेट उठा. ग्यारा बज गये थे. सीधा नहा धो कर ही नीचे आया. चाची अपने महिला मंडल को जा चुकी थीं. भाभी ने चाय बना दी. मैंने चाय ली, अखबार पढ़ा और फ़िर किचन में जाकर बैठ गया. रविवार को हम ब्रन्च करते थे. नीलिमा भाभी पराठे बना रही थी. आज उसने साड़ी पहनी थी जबकि घर में वह गाउन में ही रहती थी.

"ये क्या भाभी, आज अपना रोमांस का दिन है और आप बाहर जा रही हैं" मैंने शिकायत की.

"नहीं मेरे राजा, जरा अर्जेंटली जाना पड़ा, वो बाजू के बंगले की दादी आयी थीं, बोली कि नीलिमा, आज मंदिर जाना है, और कोई नहीं है, तू ले चल तो क्या करती. मुझे मालूम है आज अपना स्पेशल अपॉइन्टमेंट रहता है. अब आप बताइये आप के क्या हाल हैं मिस्टर विनय? कल रात तो जरा ज्यादा ही मूड में थे आप, कहां कहां हाथ लगा रहे थे, उंगली डाल रहे थे" भाभी आज खिलवाड़ के मूड में थीं.

"कहां कहां नहीं भाभी, खास जगह. मुझे तो कब से हाथ लगाना था, हाथ क्या और कुछ भी लगाना था, मौका ही नहीं मिल रहा था. मुझे ये भी पता नहीं कि ऐसे आप के पिछवाड़े खेलना आप को अच्छा लगता है या नहीं"

"याने जनाब को भी शौक है इसका, वही मैं सोच रही थी कि जो सब मर्द करने को मरे जाते हैं, वह आप ने अभी कैसे नहीं किया" भाभी मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं. मेरी तरफ़ पीठ करके वो पराठे बेल रही थी, उसने साड़ी जरा कस के बांधी थी इसलिये उसके उन विशाल चूतड़ों का आकार साड़ी में से भी दिख रहा था.

मेरा माथा भनक गया. मैं सीधा जाकर नीलिमा के पीछे जमीन पर घुटने टेक कर बैठ गया. उसके चौड़े कूल्हों को बाहों में भरके मैंने उसके नितंबों पर अपना सिर दबा दिया. ऐसा लग रहा था जैसे दो मुलायम बड़े डनलोपिलो के तकियों के बीच मैंने चेहरा छुपा दिया है. बदन से भी भीनी भीनी खुशबू आ रही थी. मैंने अपना चेहरा उसके पार्श्वभाग पर रगड़ा और फ़िर मुंह खोल कर साड़ी के ऊपर से ही उसके नितंब को हल्के से काट लिया. नीलिमा ने ठिठोली के स्वर में कहा "मेरी साड़ी इतनी अच्छी लगी कि उसको खा जाने का इरादा है?"

"भाभी, आप की साड़ी ही क्या, आप की हर चीज मुझे अच्छी लगती है. वैसे एक बात बताऊं, बचपन में जब कोई मुझे चॉकलेट देता था तो मैं उसके रैपर से ही खेलने लगता था. उस मीठे खजाने को खाने के पहले उसपर लिपटे उस रैपर से खेलना मुझे बहुत अच्छा लगता था, आज भी ऐसा ही कुछ हो रहा है मुझे" कहकर मैंने फ़िर से एक बड़ा भाग मुंह में लिया और इस बार कस के दांतों के बीच चबाया.

"उई मां ऽ ऽ ... कितने जोर से काट खाया रे? साड़ी नहीं होती तो तूने तो एक टुकड़ा ही तोड़ लिया था मेरे चूतड़ का" दर्द से बिलबिला कर नीलिमा भाभी चिल्लाई.

मैंने सॉरी कहा. "क्या करूं भाभी, इन बड़े बड़े तरबूजों को देख कर यही मन होता है कि चबा चबा कर खा जाऊं"

नीलिमा बोली "चल उठ ... जा अब ... मुझे अपना काम करने दे, अभी टाइम है अपनी कुश्ती में" पर उसने अपने आप को मेरी बाहों की गिरफ़्त से छुड़ाने का कोई प्रयत्न नहीं किया. उलटे खेल खेल में अपनी कमर हिला कर मेरे सिर को अपने नितंबों से एक धक्का दिया. मैंने एक हाथ उसकी साड़ी के नीचे से डाला और उसके नितंबों को सहलाने लगा. मेरा हाथ सीधे उसकी चिकनी त्वचा पर ही पड़ा, उसने पैंटी ही नहीं पहनी थी. अब उसने पहले ही नहीं पहनी थी और वैसे ही बाहर भी हो आयी थी, या बाहर से आने के बाद निकाल दी थी इसका कोई जवाब मेरे पास नहीं था. हो सकता है कि मैं लेट उठा इसलिये गरमी चढ़ने पर पैंटी निकाल कर एकाध बार उसने हस्तमैथुन कर लिया हो, ऐसी गरम मिजाज की नारी कब क्या करेगी, यह कहना मुश्किल है.

मैंने फ़िर से उसके नितंबों को हथेली में लेकर दबाया और उनके बीच की लकीर में उंगली ऊपर से नीचे तक घुमाने लगा. नीलिमा कुछ नहीं बोली, पराठे बनाती रही. मेरे इस कृत्य को उसकी मूक सम्मति थी, यह मैंने समझ लिया. याने कल का खेल आगे शुरू करने में कोई हर्ज नहीं था.

थोड़ा भटक कर मेरे हाथ उसकी जांघों पर उतर आये. रोज उसकी मदमत्त जांघों के विशाल विस्तार पर मैं इतना खेलता था फ़िर भी मन नहीं भरा था, अपने आप को रोक नहीं पाया. एक बार मन में आया कि इस पोज़ में उसकी बुर चूस लूं क्योंकि अब पास से चूत रस की खुशबू आ रही थी, मेरे लिये भाभी की चासनी तैयार थी. लगता है उसकी भट्टी अब पूरी गरम हो गयी थी. पर जब हाथ बढ़ाकर मैंने उसकी चूत को पकड़ना चाहा तब उसने कस के अपनी टांगें भींच कर मुझे रोक दिया. ये मुझे वार्निंग थी कि इसके आगे न जाऊं. याने उसके नितंबों से खेलने की मंजूरी थी मुझे पर और कहीं हाथ लगाना वर्ज्य था. उसकी चूत तक कैसे पहुंचा जाये यह सोचता मैं उसकी जांघों के बीच हाथ फंसाये दो मिनिट बैठा रहा.

"अब उठो भी ना! ऐसे क्या बैठे हो?" नीलिमा बोली. उसके स्वर में रूखापन तो नहीं पर हां प्यार की कमी थी. लगता है किसी बात पर वह थोड़ा अपसेट हो गयी थी. पर हाथ आया यह मौका छोड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं था. मैंने चुपचाप अपना हाथ उसकी जांघों के बीच से निकाला और उसकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर कर दिये. उसका मोटा गोरा गोरा पार्श्वभाग अब मेरे सामने था. इतनी बार मैंने देखा था पर फ़िर भी किचन में दिन के उजाले में दिखती वो भारी भरकम गांड याने जैसे मेरे लिये छप्पन भोग के समान थे. दो बड़े बड़े मैदे के सफ़ेद गोले, नरम और चिकने और एकदम कसे हुए और उनके बीच की गहरी दरार ! सिर्फ़ चुंबन से काम नहीं चलने वाला था, ये तो खा जाने वाला माल था

मैंने उनको प्यार से सहलाया, फ़िर चुंबन लिया. एक दो चुंबनों के बाद मैं जगह जगह उनको चूमने लगा, फ़िर जीभ निकाल कर चाटना शुरू कर दिया कि कुछ टेस्ट भी आये उन खोये के परवतों का.

"जिस तरह से तू स्वाद ले रहा है, तेरी पसंद की मिठाई लगती है विनय" नीलिमा ने कहा.

"हां भाभी. कल ज्यादा टेस्ट नहीं कर पाया, और आज ये जो स्वाद लग रहा है, उससे भूख और बढ़ गयी है, प्योर खोये के ये पहाड़ देखकर इनको खा जाने का खयाल किसके दिल में नहीं आयेगा!"

"तो खा डाल ना, तेरे को किसने रोका है" अपने चूतड़ों को थोड़ा हिला कर नीलिमा बोली. उसकी आवाज में अब फ़िर मिठास आ गयी थी. याने मैडम को ऐसा उनके नितंबों की पूजा करना बहुत अच्छा लग रहा था, तभी दो मिनिट पहले जब मैंने गांड छोड़ कर चूत को टटोलना शुरू कर दिया था, वो फ़्रस्ट्रेट होकर चिढ़ गयी थी. याने अच्छा मुहूरत था, नीलिमा को भी आज गांड पूजा करवाने का ही मूड था.
 
अब ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद क्या पहले करूं समझ में नहीं आ रहा था. एक मन हो रहा था कि खड़ा होकर तुरंत लंड गाड़ दूं, पर अब पास से वे नितंब इतने सेक्सी लग रहे थे कि छोड़ने की इच्छा नहीं हो रही थी. इस माल का और गहरा स्वाद लेने की इच्छा जागृत हो गयी थी. मैंने नीलिमा भाभी के चूतड़ हाथों से पकड़कर फ़ैलाये. उनके बीच का हल्का भूरा छेद थोड़ा खुल गया और अंदर की गुलाबी नली दिखने लगी. मैंने क्षण भर देखा और फ़िर उनपर होंठ जमा दिये. चुंबन लिया, फ़िर जीभ से चाटने लगा. सपनों में मैंने ये किया था अनजान काल्पनिक कामिनियों के साथ, आखिर आज सचमुच करने का मौका मिला था.

"हं ... ओह ऽ .. अरे ये क्या कर रहा है! होश में तो है ना?" नीलिमा सिहरकर बोली.

मैं कुछ न बोला, बस उसकी गांड चूसता और चाटता रहा. जरा और मन लगाकर चखने लगा.

"अरे ये क्या कर रहा है, होश में तो है कि कहां मुंह लगाया है? ..." नीलिमा बोली पर उसके स्वरों में जो चासनी घुली थी, उस चासनी के मिठास ही ऐसी थी कि रुकने का सवाल ही नहीं था.

"भाभी, जरा रुको ना, अभी कहां स्वाद आया, जरा ठीक से चखने तो दो" कहकर मैंने जोर लगाकर उसके चूतड़ और चौड़े किये और उसके गुदा का जितना भाग मुंह में आ रहा था, लेकर चूसने लगा. एकदम अलग स्वाद था, एकदम अलग अनुभव था, एक मादक चीज़ी स्मेल थी उस चीज में, मैं ने जीभ की नोक से उसे गुदगुदाया और जीभ अंदर डालने का प्रयत्न करने लगा. चूत का स्वाद इस तरह से मैंने बहुत लिया था, दोनों का, भाभी का और चाची का, वो सरल भी था, चूत तो आराम से खुल जाती है, यहां जरा कठिनाई हो रही थी. पर उसकी वजह से मेरा निश्चय और पक्का हो गया कि अब तो टेस्ट लेकर ही रहूंगा.

ये सब मैं कर रहा था, तब तक नीलिमा ने पराठे बनाना बंद नहीं किया था. पर अब उसके हाथ रुक गये. वो वैसी ही खड़ी रही, कुछ बोली नहीं पर उसके मुंह से एक सिस्कारी सी निकली. बहुत एक्साइट हो गयी थी. मेरे मन में पटाखे फूटने लगे, आज मेरी ये इच्छा पूरी होगी, ये मैंने जान लिया.

नीलिमा ने खुद अपना गुदा और ढीला छोड़ा और मेरी जीभ एक इंच अंदर घुस गयी. मैं जीभ अंदर बाहर करके जीभ से ही उस छेद को चोदने लगा. मेरा लंड अब ऐसा तन गया था कि तकलीफ़ होने लगी थी, रिलीफ़ के लिये मैं उसे नीलिमा की पिंडलियों पर घिसने लगा.

"हं ऽ ... हं ऽ ... आह ऽ ... बहुत अच्छा लग रहा है विनय ... हां ऽ ... तू तो सच्चा रसिक निकला ... हं ऽ ... बहुत अच्छा कर रहा है रे ... ओह ऽ ... ओह ऽ ... थोड़ा रुक ना .... " नीलिमा सिसक कर बोली. उसके स्वरों में अब वासना का पुट आ गया था. मैंने उसके चूतड़ों के बीच के उस मुलायम मांस को खा जाने की अपनी मेहनत दूनी कर दी.

नीलिमा ने बेलन नीचे रखा और गैस बंद किया. फ़िर बिना कुछ बोले मुझे हाथ से पकड़कर खींचती हुई ऊपर ले गयी. बेडरूमे में जाते जाते उसे इतना भी धैर्य नहीं बचा था कि कपड़े निकाले. उसने साड़ी ऊपर करके कमर पर बांधी और पलंग का सिरहाना पकड़कर झुक कर खड़ी हो गयी. "चल वो क्रीम ले आ ड्रेसिंग टेबल से और डाल जल्दी"

नीलिमा भाभी खुद मुझे गांड मारने का आमंत्रण दे रही थी यह देख कर दिल बाग बाग हो गया. मैं झट से ड्रेसिंग टेबल पर गया, वहां एक कोल्ड क्रीम की बॉटल थी. मैंने उंगली पर ढेर सारा लेकर भाभी के गुदा में चुपड़ा, अंदर भी डाला एक उंगली से, थोड़ा सा अपने सुपाड़े पर चुपड़ लिया और हाथ पोछकर नीलिमा के पीछे आकर खड़ा हो गया. नीलिमा ने अपने हाथ अपने नितंबों पर रखे और खुद ही उनको फ़ैलाया, उसका गुदा जो अब क्रीम से चमक रहा था, खुल गया और अंदर का मुलायम भाग मुझे दिखने लगा.

"डाल जल्दी" मुझसे ज्यादा उसी को ज्यादा जल्दी थी. मैंने सुपाड़े की नोक टिकाई और पेल दिया. एक ही धक्के में ’पुक’ की आवाज के साथ वह अंदर हो गया. मुझे लगा था कि शायद वह दर्द से थोड़ा कराहेगी पर उसने चूं तक नहीं की. "हां ... हां ... अब डाल दे पूरा राजा" उसके स्वर में बेहद मादकता थी.

मैंने जोर लगाया तो एक स्मूथ मोशन में पूरा लंड जड़ तक अंदर घुस गया और मेरी झांटें उसके नितंबों से आ भिड़ीं. मुझे रोमांच सा हो आया. ’कितनी गरम और मुलायम होती है गांड’ मेरे मन में आया. किसी तपती मखमली म्यान जैसी थी. नीलिमा भाभी ने मेरे हाथ पकड़कर अपने कूल्हों पर रखे और खुद फ़िर से पलंग के सिरहाने को पकड़कर झुक कर जम गयी "चल मार अब फटाफट"

किसी की गांड मार रहा हूं, यह कल्पना ही मेरे लिये बहुत उत्तेजक थी. मैं आगे पीछे होकर लंड पेलने लगा. गांड चूत जैसी ही मुलायम था, लंड आसानी से अंदर बाहर हो रहा था. बीच में नीलिमा अपना गुदा सिकोड़ कर मेरे लंड को कस कर पकड़ती और फ़िर छोड़ देती. उसकी सांस तेज चल रही थी. वह बार बार दायीं ओर देख रही थी. मैंने देखा तो वहां ड्रेसिंग टेबल के ऊपर जो बड़ा आइना लगा था, उसमें हम दोनों साफ़ दिख रहे थे. मेरे लंड का साइड व्यू था जो उसके गोरे गोरे चूतड़ों के बीच अंदर बाहर हो रहा था, जैसे ब्ल्यू फ़िल्म चल रही हो. उसको देखते देखते नीलिमा ने एक हाथ पलंग से हटाया और अपनी जांघों के बीच डालकर हिलाने लगी. भाभी हस्तमैथुन कर रही थी, अच्छी खासी गरमा गयी थी. जोर से अपनी बुर को घिसते हुए बोली "अरे जोर से मार ना ... ये क्या पुकुर पुकुर कर रहा है ... और देख ... जल्दी झड़ा साले तो ... कोड़े से मारूंगी पकड़कर"

उसकी आवाज में जो अथाह कामुकता भरी थी, उसने जैसे मेरे ऊपर मदिरा का काम किया. मेरे मुंह से अनजाने में निकल गया "भाभी ... आज तो तुम्हारी गांड फाड़ कर रहूंगा ..."

"है हिम्मत? ... हरामी कहीं का ... जरा दिखा फाड़ कर ... तेरे जैसे कल के छोकरे को तो मैं पूरा गांड में ले लूं ... तू क्या फाड़ेगा मेरी साले ..."

पहली बार नीलिमा भाभी ने ऐसी भाषा का प्रयोग किया था, उसकी वासना कितनी चरम सीमा पर पहुंच गयी थी इसका यह प्रमाण था. मेरा भी माथा घूम गया "भाभी ... आज तेरी गांड का भोसड़ा बना दूंगा ... चौड़ी गुफा कर दूंगी इसकी ... आज के बाद कोई हाथ डालेगा तो वो भी चला जायेगा कंधे तक ... गांड मारना क्या होता है आज तू समझेगी ..." और नीलिमा के कूल्हे पकड़कर मैं सपासप अपना लंड पेलने लगा.

भाभी अब पूरी ताकत से मुठ्ठ मार रही थी. एक हाथ से अपना वजन संभालना उसे कठिन हो रहा था पर बुर पर से हाथ नहीं हट रहा था. उसकी सांसें भी अब बहुत तेज हो गयी थीं. मैंने एक हाथ से उसका कूल्हा पकड़े रखा और दूसरा हाथ लंबा कर उसके लटकते मम्मे पकड़ कर मसलने लगा.

"उई ऽ ऽ मां ऽ ऽ" की जोरदार चीख लगाकर नीलिमा झड़ गयी. पिछले तीन चार हफ़्ते में चाची ने मुझे इतना ट्रेन किया था पर फ़िर भी आज मैं कंट्रोल नहीं कर पाया और दो चार कस के धक्के लगाकर नीलिमा के पीछे पीछे स्खलित हो गया. हांफ़ते हांफ़ते हम दो मिनिट वैसे ही खड़े रहे और फ़िर नीलिमा सरककर पलंग पर सो गयी. साथ में मुझे भी नीचे खींच लिया, और मुझे बेतहाशा चूमने लगी.
 
"विनय ... जो मैं बोली उससे शॉक लगा क्या तेरे को? याने ऐसी गंदी लैंग्वेज मेरे मुंह से तूने एक्सपेक्ट नहीं की होगी?"

"हां भाभी लगा तो पर मजा भी बहुत आया" मैंने कहा. वैसे इसके पहले कभी दिमाग में नहीं आया था कि नीलिमा ऐसे बोलेगी.

"अरे सेक्स करते वक्त ऐसा उलटा सीधा बोलना मेरे को भाता है, अरुण को भी, वो तो कैसी कैसी गालियां देता है, उसीने मुझे सिखाया, बोला मजा करना चाहिये, मन पर लगाम नहीं देना चाहिये पर अब ममीजी के साथ ऐसा कैसे बोलूं. वैसे उनके भी दिमाग में क्या क्या आता है इसका अंदाजा है मुझे, तू नहीं जानता यह अच्छा है, उनकी इमेज है तेरे मन में वो वैसी ही रख, और वे बोलती भी नहीं हैं ऐसा कुछ अनाप शनाप. ममी के सामने इसलिये मैं कंट्रोल रखती हूं. पर आज तूने मेरी मारी तो रहा नहीं गया, कितने दिनों के बाद गांड मरवायी है ... बहुत सुकून मिला!"

"भाभी ... आप को तो गुस्सा नहीं आया ना? शुरुआत मैंने ही की थी ’आज गांड फाड़ दूंगा आपकी’ कहकर"

नीलिमा मुझे लिपटकर बोली "अरे मजा आ गया. पर सच बता, तुझे ये मेरा भारी भरकम पिछवाड़ा सच में अच्छा लगा? मुझे तो कभी कभी शरम आती है कि कैसे बेकार बेडौल मोटी दिखती होऊंगी मैं इसके कारण"

"भाभी, बहुत सेक्सी दिखती हैं आप इन बड़े बड़े कूल्हों की वजह से. क्या गुदाज नितंब हैं आप के. वो आपने पुरानी पिक्चरें देखी हैं? उनमें कुछ हीरोइनें इस मामले में एकदम ए-वन थीं. उनके भी कूल्हे कितने चौड़े थे पर एकदम सेक्सी लगते थे"

"अरुण को भी बहुत पसंद हैं मेरे ये तरबूज ... पर ये बता मूरखनाथ ... तेरे को एक महना लगा ये सब मुझे बताने में? टाइम वेस्ट किया ना! अरुण तो हनीमून में ही शुरू हो गया था इनपर. एकदम पगला गया था. मुझे लगता है उस एक हफ़्ते के हनीमून में उसने मुझे इस पीछे के छेद में ही ज्यादा चोदा होगा. खैर जाने दे, मुझे लगता है तू शरमा रहा होगा मुझसे ये बात करने में, मैं भी आखिर कैसे भूल जाती हूं कि तू अभी छोटा है, अभी अभी तो शुरू किया है तूने ये सब."

मैंने फ़िर चाची के साथ के अपने एक्सपीरियेंस को बताया " भाभी, चाची से एक दो बार कहने की कोशिश की, शुरू भी किया था पर मुझे लगता है वे नाराज हो जाती थीं इसलिये रोक देती थीं. फ़िर मेरी हिम्मत नहीं हुई. आप के साथ चांस इस लिये नहीं लिया कि मुझे किसी को नाराज नहीं करना था, अब आप में से कोई भी मुझसे नाराज हो जाये तो मेरा तो कबाड़ा ही हो जायेगा ना!"

हम दोनों कुछ देर पड़े रहे. फ़िर मैंने हाथ बढ़ाकर नीलिमा के नितंबों को दबाना शुरू कर दिया. उसके गुदा का छेद अब एकदम नरम और चिपचिपा गीला था, खुला हुआ भी लगता था. मैंने अपनी बीच की उंगली डाल दी और अंदर बाहर करने लगा.

नीलिमा मस्ती से गुनगुना उठी "हां ... और कर ना ... अच्छा लगता है ... कितनी अच्छी उंगली करता है तू"

मैं अब उनकी गांड में उंगली इधर उधर घुमा कर खोद रहा था "भाभी आप को अच्छा लगा ये तो मस्त बात है, ऐसे किसी खुबसूरत औरत की गांड में उंगली करने में जो मजा है वह आप नहीं जानतीं. पर भाभी, मैंने पढ़ा है कि अधिकतर औरतों को ये अच्छा नहीं लगता?"

"उनकी मैं नहीं जानती, पर मुझे बहुत मजा आता है. अरुण ने जब पहली बार मारी मेरी तब इतना दुखा फ़िर भी मैंने उसे नहीं रोका क्योंकि तभी मेरे को दर्द के साथ बड़ी मीठी फ़ीलिंग हुई थी. उसके बाद तो आदत लग गयी, अरुण से चुदाने के साथ साथ मैं रोज मराती भी थी. एक भी दिन अगर उसने नहीं मारी तो मुझे अतृप्त जैसा लगने लगता था. अब वो नहीं है तो इस मामले में मेरी कैसी हालत हो रही है वह तू ही समझ सकता है. वैसे ममी के साथ चूत का सुख खूब मिलता है मुझे पर ये पीछेवाली चूत पागल कर देती है ... एक दो बार तो मैंने कैंडल डाल कर भी देखा ... मजा नहीं आया. अब तू आ गया है ना, अब हर रविवार को तेरी यही ड्यूटी है समझ ले"

मैं उसकी गांड में उंगली करता रहा. नीलिमा ने अचानक मुझे प्यार से चूम लिया "मुझे बहुत याद आती है अरुण की. उसके साथ सेक्स याने ... वो ऐसी नयी नयी चीजें करता है ... क्या दिमाग चलता है उसका ... पर ममी ने भी मुझे खूब सुख दिया है और अब तू मुझे करीब करीब अरुण जैसा ही भोग रहा है इसलिये सोच रही हूं कि अगर वीसा मिल जाये तो ... जरा खट्टा मीठा किस्सा हो जायेगा. मन तो बहुत है कि तुरंत अरुण के पास चली जाऊं पर तुमको और ममी को छोड़कर जाने का भी मन नहीं करेगा"

फ़िर उसने उठ कर कपड़े ठीक किये और बोली "ब्रन्च क्या अब लन्च का टाइम हो गया. चल मुझे भूख लगी है. फ़िर दोपहर को तुझसे जरा मेहनत कराती हूं. एक मस्त खास चीज भी दिखाऊंगी तेरे को"

खाना खाकर हम आधा घंटे के बाद ऊपर आये. मैंने नीलिमा से कहा कि ’भाभी, आप ऊपर जाइये, आज खाने के बाद की साफ़ सफ़ायी मैं करूंगा. उसे मेरा ये जेश्चर बड़ा अच्छा लगा, मुझे प्यार से किस किया और ऊपर चली गयी.

जब मैं ऊपर आया तो नीलिमा अलमारी में कुछ ढूंढ रही थी. मैंने कपड़े निकाले और तैयार होकर नंगा बिस्तर पर लेट गया. जब पांछ मिनिट हो गये तो रहा नहीं गया. "भाभी अब आओ ना, कितनी देर लगा रही हो, अब देखो, क्या सुताई करता हूं तुम्हारी गांड की!"
 
"आई मेरे राजा, एक चीज ढूंढ रही हूं, मेरी खास पसंद की, मिल जाये तो सोने में सुहागा हो जायेगा, बहुत दिन से यूज़ नहीं की है इसलिये जरा याद नहीं आ रहा कि कहां रख दी थी" फ़िर उसने अलमारी के नीचे वाले कोने से अरुण का पुराना ब्रीफ़केस निकाला. आखिर जो वह ढूंढ रही थी, उसे मिल ही गया. लेकर मेरे पास आयी."ये बटरफ़्लाइ लगा लेती हूं, उसके बाद तू मेरी मारना, जितनी चाहे मारना"

उसके हाथ में एक प्लास्टिक और रबर का खिलौना सा था, तितली के शेप का. दो रबर के बड़े फ़्लैप्स थे, और नीचे एक तरफ़ एक छोटा डिल्डो जैसा निकला हुआ था. उसके बाजू में एक नरम रबर का पीस था जिसपर छोटे छोटे मुलायम दाने से उभरे हुए थे. दोनों तरफ़ बांधने के लिये स्ट्रैप्स थे.

"कभी देखा नहीं भाभी इसको" मैं उत्सुकता से बोला. "एक दो बार एक साइट पर फोटो देखा था पर कुछ समझ में नहीं आया. सादे वाइब्रेटर से अलग सा लगता है"

"अरे वो वाइब्रेटर अंदर डालना पड़ता है, एक हाथ हमेशा बिज़ी हो जाता है, कभी कभी दोनों हाथ भी लगते हैं. हैन्ड्स फ़्री मजा लेनी हो तो ये बटरफ़्लाइ बेस्ट है, रिमोट भी है, एक बार बांध लो, बस मजा ही मजा, ठहर तुझे दिखाती हूं" उसने उस बटरफ़्लाइ के पीछे जो छोटा सा डिल्डो सा था, अपनी चूत में घुसेड़ लिया, फ़िर क्लिप से अपने भगोष्ठों पर उसके विंग फ़िट कर लिये. इसके बाद उसने दोनों स्ट्रैप अपनी कमर में लपेटे और बकल लगा लिया.

"देख, फ़िट हो गया, अब मजा देख" उसने रिमोट दबाया तो धीमी धीमी ’भन्न’ ऐसी आवाज होने लगी. वो पूरा उपकरण अब कांप रहा था. "आह ... आह ... मजा आ रहा है विनय ... वो दाने दाने थे ना ? ... वो ठीक मेरे क्लिट पर फ़िट होते हैं ... ये वाइब्रेट होता है तो लगता है कोई कस के मुठ्ठ मार रहा हो ... हाय ... आ जा ना अब जल्दी .." नीलिमा रिमोट ऑफ़ करके करवट पर सो गयी. अब भी उसके गुदा में क्रीम लगी थी इसलिये मैं फ़िर से क्रीम लगाने के चक्कर में नहीं पड़ा. उसके पीछे लेटकर मैंने अपना लंड उसके चूतड़ों के बीच घुसेड़ दिया. आराम से अंदर चला गया. अब मुझे समझ में आया कि कैसे नीलिमा भाभी इतनी आसानी से लंड गांड में ले लेती है, आखिर अरुण से इतना मरवाती थी, उसका असर तो हुआ ही होगा.

मैंने भी अपनी करवट पर लेटे लेटे धक्के लगाना शुरू कर दिये. नीलिमा ने मेरे हाथ अपने बदन के इर्द गिर्द लेकर मेरी हथेलियां अपने स्तनों पर रख दीं. मैं उनको दबाने लगा. जल्दी ही लय मिल गयी और मैं फचाफच फचाफच उसकी गांड में लंड पेलने लगा. जब नीलिमा ने देखा कि अब अच्छे से उसकी गांड चुद रही है तो उसने रिमोट ऑन कर दिया. ’भन्न ऽ ऽ’ की आवाज के साथ वह तितली उसकी चूत को सुख देने लगी.

"अब मम्मे दबा और गांड मार मेरे राजा ... बहुत अच्छा लग रहा है .... मेरी कसम विनय ... बहुत देर मारना प्लीज़ ... बहुत दिन के बाद यह सुख मिला है मुझे" नीलिमा सिसकती हुई बोली.

नीलिमा भाभी को उस दिन मैंने भरपूर सुख दिया. दोपहर भर उसकी गांड मारी, दो बार झड़ा जरूर पर बीच में एक ब्रेक छोड़ कर उसकी गांड में लंड डाले दो घंटे गुजार दिये. जब जब झड़ा तब भी वैसे ही मुरझाया लंड अंदर दिये पड़ा रहा. उस वक्त नीलिमा ने भी अपना गुदा सिकोड़ कर मेरे लंड को पकड़ कर रखा था कि निकल ना जाये.

झड़ने से बचने के लिये बीच में काफ़ी देर बस लंड को गांड में दिये पड़ा रहता था, धक्के नहीं मारता था. नीलिमा ने अलग अलग आसनों में मुझसे गांड मरवायी, कुछ देर पलंग पर करवट पर लेट कर, फ़िर झुक कर खड़े होकर, उसके बाद फ़िर से पलंग पर पट लेट कर, फ़िर दीवार की ओर मुंह करके उससे सट कर खड़े होते हुए और अंत में मेरी गोद में बैठकर. जब वह मेरी गोद में बैठकर ऊपर नीचे होकर मेरे लंड को अपने चूतड़ों के बीच अंदर बाहर करते हुए मरवा रही थी, तब सामने आइना था. उस आइने में उसका नग्न शरीर देखते हुए, उसकी मोटी गोरी गांड में अपने लंड का डंडा अंदर बाहर होता देखते हुए, उसकी गोरी गोरी जांघों के बीच चूत से चिपकी तितली के पंख फड़फड़ाते हुए देख कर (... बिलकुल ऐसा लगता था जैसे तितली किसी फूल का रस पी रही हो, और क्या रस था इस गुलाबी फ़ूल का, टेस्ट मैं जानता था, उस नकली तितली से भी मुझे जलन होने लगी थी ...) और मेरे हाथों में पिसते उसके नरम नरम मम्मे देखते हुए उसकी गांड मारना एक बहुत ही उन्मादक अनुभव था. इस बार नीलिमा ने ज्यादा गाली गलौज नहीं की क्योंकि अब उसको बिना ब्रेक के तीव्र सुख मिल रहा था. सिर्फ़ एक बार जब मैंने उसके मम्मे दबाना एक मिनिट को बंद किया - जरा हाथ दुखने लगे थे - तो वो चिल्लाई "अरे भड़ुए ... दबा ना ... साले रुक क्यों गया ... दम नहीं है क्या .." और मैंने तुरंत उसके स्तन मसलना शुरू कर दिया, ये भी ठान ली कि अब हाथ कितने भी दुखें, नीलिमा की चूंचियां पिचकाकर ही रहूंगा. मसलवा कुचलवा कर जब नीलिमा की चूंचियां नहीं दुखीं तो मेरे हाथ थक जायें ये बड़ा इन्सल्टिंग था.

उस दोपहर की मेरी मेहनत का बड़ा मीठा फल मुझे मिला. जब नीलिमा ने वो बटरफ़्लाइ अपनी बुर से निकाली तो उसका निचला रबर का भाग और वो छोटा डिल्डो उसकी चूत के रस से सराबोर था. नीलिमा ने उस गीली बटरफ़्लाइ को हाथ में लेकर जिस शोखी से मेरी ओर देखा था, उससे साफ़ था कि वह मुझसे क्या उम्मीद कर रही थी. इसलिये जब उसके बिना कुछ कहे मैंने उसके हाथ से बटरफ़्लाइ लेकर उसे जीभ से चाटा तो उसकी मुस्कान देखते बनती थी. उस सेक्स खिलौने को चाट कर साफ़ करने में इतना स्वाद आया कि कह नहीं सकता. बाद में नीलिमा ने बताया कि वह बटरफ़्लाइ उसे अरुण ने लाकर दी थी. "अरे उसे मालूम है मेरी गरम तबियत, पिछली बार आया था तो साथ लेकर आया था कि अकेले में चुपचाप मजे ले सकूं"

चाची देर दोपहर वापस आयीं तब तक मैं अपने कमरे में जाकर सो गया था और नीलिमा अपने कमरे में.

उसके बाद रविवार की दोपहर की वह रति याने गांड मारने का कार्यक्रम एकदम फ़िक्स हो गया था. फरक सिर्फ़ इतना हुआ कि नीलिमा भाभी किचन से मख्खन का एक छोटा डिब्बा साथ ले आती थी. वह इसलिये कि वह नहीं चाहती थी कि कोल्ड क्रीम के कड़वे स्वाद के कारण उसका गुदा चूसने की मेरी क्रिया में कोई खलल ना पड़े. "विनय राजा, उस दिन जल्दी में कोल्ड क्रीम यूज़ कर ली नहीं तो अरुण तो हमेशा मख्खन यूज़ करता है. कोल्ड क्रीम का स्वाद नहा धोकर भी कई दिन नहीं जाता. और जब तू इतने प्यार से वहां मेरे किस लेता है, जीभ से गुदगुदाता है तो मैं नहीं चाहती कि तुझे ऐसा कड़वा स्वाद आये". और अब मैंन भी खुद नीलिमा की नरम नरम गांड के स्वाद का दीवाना हो गया था. गांड मारने के पहले उसके गोरे चूतड़ फैलाकर उनके बीच के नरम कोमल छेद को मुंह लगाने में जो जायका आता था, उसकी आदत सी पड़ गयी थी. और ऊपर से मख्खन लगी गांड को चाटने और चूसने में अलग ही स्वाद आता था, जैसे मख्खन लगी मोटी बनपाव वाली डबल रोटी खा रहा होऊं.

उन कुछ दिनों में मुझे नीलिमा भाभी की इतनी गांड मारने मिली थी कि फ़िर मैंने बीच के दिनों में चाची की गांड की मेरी आस को करीब करीब छोड़ ही दिया, सोचा बाद में देखूंगा. वैसे नीलिमा मुझे बोली "ऐसा निराश ना हो, मुझे नहीं लगता चाची को गांड मराने से परहेज है, सेक्स में तो उनका दिमाग मुझसे दूना चलता है, जरूर और कोई बात है, वैसे मेरा मन कहता है कि तुझे उनकी गांड मिलेगी जरूर. हां हो सकता है कि इतनी बेशकीमती चीज तुझे देने के पहले तुझसे कुछ रिटर्न में चाहती हों"
 
दो महने ऐसे ही कब गये पता भी नहीं चला. फ़िर एक दिन अरुण का फोन आया. वैसे वह हफ़्ते में दो तीन बार फ़ोन करता था, मेरी भी फ़ॉर्मल बात ’हाय हेलो’ होती थी. पर मैं फ़िर खिसक लेता था कि नीलिमा और चाची को खुल कर बात करने का मौका मिले.

इस बार फोन वीसा के बारे में था. नीलिमा ने स्पीकर ऑन किया था. अरुण ने कहा कि उसका ग्रीन कार्ड हो गया है और नीलिमा को भी वीसा मिल गया है. चाची का अभी प्रोसेस में है.

चाची ने अरुण को कहा कि वह नीलिमा को तुरंत बुला ले, वे बाद में आ जायेंगी. नीलिमा को ऐसे अकेले जाना अटपटा लग रहा था. वह चाची को भी साथ ले जाना चाहती थी.

चाची बोलीं "अरे बेटा, मेरी चिन्ता मत करो, मैं यहां अकेली थोड़े रहूंगी, विनय भी है. बाद में आ जाऊंगी. और मुझे नहीं लगता कि मैं वहां अमेरिका में हमेशा रह पाऊंगी, बस आ जाकर रहूंगी तो मन बहला रहेगा"

अरुण बोला कि मां तुम टूरिस्ट वीसा पर छह महने रह सकती हो. तब तक यह भी हो जायेगा.

चाची ने मेरी ओर देखा. मुझे जरा उदास सा लगने लगे था. दो माह स्वर्ग में बिताने के बाद अचानक अकेला रहना पड़ेगा यह विचार ही सहन नहीं हो रहा था. दूसरी ओर चाची के बारे में सोचता तो एक मां को भी तो आखिर बेटे के पास जाने का हक था और ऊपर से बोनस में यह सेक्सी बहू भी थी, दिन भर खेलने को. मैं धीरे से वहां से निकल लिया कि उन्हें आराम से अकेले में सोच विचार करने का मौका मिले.

बाहर से आया तब हमेशा हर रविवार की तरह चाची अपने महिला मंडल निकल गयी थीं. नीलिमा ने खाना तैयार रखा था. खाना खाकर हर रविवार की तरह हम दोनों उसके कमरे में पहुंचे. कपड़े निकाले. आज नीलिमा एकदम मूड में थी. बटरफ़्लाइ लगाकर खुद मेरी गोद में बैठ गयी, मेरा लंड अपनी गांड में लेकर, गांड मराने की यही स्टाइल उसे सबसे ज्यादा पसंद थी. मैंने उसका स्तनमर्दन करते हुए नीचे से धीरे धीरे गांड मारना शुरू कर दिया. नीलिमा ने एक सुख की लंबी सांस ली और फ़िर मुड़कर मेरी ओर देखा. कस के मेरा चुंबन लिया, आज उसके चेहरे पर अलग ही चमक थी.

"क्या बात है भाभी, आज बड़े मूड में हो. सैंया के यहां जाने की लाइन क्लीयर हो गयी इसलिये आज एकदम खुशी में लग रही हैं आप"

"हां विनय ... मैं बहुत मिस करती हूं अरुण को ... अब बस दस बीस दिन और और फ़िर मैं प्लेन में"

"भाभी .... अरुण भैया को अपने बारे में ... कोई शक तो नहीं हुआ होगा ना? इस लिये पूछ रहा हूं कि उसे मालूम है तुम्हारा गरमागरम जोबन, ये चुदासी तड़प चैन नहीं लेने देती आप को, आखिर उसने खुद ही आप को ये बटरफ़्लाइ लाकर दी है, फ़िर अब शक हुआ तो कि साथ में जवान लड़का रह रहा है तो ..."

"अरे नहीं, वो कभी शक वक नहीं करेगा. और अगर उसे मन में लगा भी कि ऐसा कुछ चल रहा है तो माइन्ड नहीं करेगा वो, उलटा खुश ही होगा. हमारा इतना प्रेम है एक दूसरे पर, एक दूसरे की सब जरूरतों को हम समझते हैं. अब तुझसे क्या छुपाऊं, पिछली बार आया था तो खुद मुझसे बोला कि यार, ऐसी प्यासी प्यासी ना रहो, कोई अच्छा यार दोस्त ढूंढ लो. मैंने बात टाली तो कहने लगा कि ऐसे टालो मत, बाद की खुशहाल जिंदगी के लिये अभी ये दूर रहना अवॉइड नहीं हो सकता, तो फ़िर ये एक दो साल प्यासे तड़पते निकाले जायें, इसमें क्या तुक है? इसपर मैंने उसकी जरा खींची याने बोली कि महाशय, आपने शायद पहले ही अपने अकेलेपन के लिये कोई ढूंढ ली है तो कुछ बोला नहीं, बस आंख मार कर हंस दिया. एक और बात बताती हूं विनय, पर किसी से कहना नहीं, ममी से भी नहीं ..." मेरे कान को हौले से दांत से काट कर नीलिमा बोली, अब एकदम खेलने खिलाने के मूड में थी.

"बोलो ना भाभी, मुझे क्या पड़ी है किसी को बताने की!" पति पत्नी के बीच की ये गुप्त बातें सुनकर मुझे भी मस्ती चढ़ रही थी, ऊपर से यह समाधान था कि नीलिमा को मैं अब इतने करीब का लगने लगा था कि वो ये सब बातें मुझसे एक क्लोज़ फ़्रेन्ड जैसे शेयर करने लगी थी.

"उसने मुझे ये हिंट भी दी कि अमेरिका आने के बाद एक दो हसबैंड वाइफ़ कपल्स के साथ कुछ खास दोस्ती करेंगे. उसके दो दोस्त वहां यू एस में हैं पहले से और एक यहां उसके साथ ही नाइजीरिया में है, उसको पहले ही वीसा मिल चुका है. पिछले महने जब वो काम से यू एस गया था तो सब मिले थे, लगता है पार्टी की होगी सब ने मिलके, तो सब ने यही ठहरा लिया है कि अब सब वहां पहुंचने के बाद खास ग्रूप बनेगा. और ये अरुण बोल रहा था कि सब मेरे बारे में पूछ रहे थे कि नीलिमा कब आने वाली है, बाकी दो की वाइफ़ तो वहीं है और एक पहुंचने वाली है. और विनय, ऊपर से मेरे इस बदमाश नालायक पति ने उनको मेरे फोटो भी दिखाये. बोला कि देख कर अब बहुत एक्साइट हुए. और ऐसी सादगी से ये बोल रहे थे महाशय कि कुछ हुआ ही ना हो. मैंने जब डांट कर ऊंची आवाज में पूछा कि कौन से फोटो दिखाये, ऐसे एक्साइट करने वाला क्या था उसमें तो बदमाश बोला कि वो जिसमें तू बांसुरी बजा रही है, वो फोटो दिखाया. और वो जिसमें तू मेरे लिये सन्तरे का रस निकाल रही है"

"तो भाभी? मैं समझा नहीं"

"अरे ऐसा कोई फोटो नहीं है मेरा. हां कुछ फोटो उसने मेरे खास निकाले थे, याने सिर्फ़ उसके देखने के लिये, उसमें से एक था ... उसके सुपाड़े को चूसते हुए ... मुझे लगता है उसने वही दिखा दिया होगा" नीलिमा ने मेरे कान मे कहा. वह अच्छी खासी उत्तेजित हो गयी थी. मुझे लगता है कि अभी से वह तीन दोस्तों और उनकी तीन पत्नियों के बीच प्लान की जाने वाली मौज मस्ती के ख्वाब देखने लगी थी.

मेरा लंड मस्ती में टनटना गया "अच्छा! पर भाभी वो सन्तरे के रस वाली फोटो में ऐसा क्या है"

"अरे कहां का सन्तरे का रस! वो तो मेरी बुर चाट रहा था, टाइमर लगाकर उसने फोटो लिया था उसका. हमेशा कहता है कि रानी तेरी चूत के होंठ याने रसीले नागपुरी सन्तरे की फांकें. बदमाश आगे कह रहा था कि वे सब बोले कि यार, भाभी को जरा हमारे लिये भी सन्तरे का रस निकालने को बोलो प्लीज़. फ़िर मैंने पूछा कि उनको बोलो कि पहले अपनी घरवालियों को कहो कि तुमको खाने पर बुलायें."

फ़िर नीलिमा मुझसे लिपट कर बोली "मैंने फ़िर पूछा कि तुम अब तक उनके यहां गये या नहीं तो बोला नहीं, तुम्हारा इंतजार है, पर फोटो पर से लगता है कि तीनों के घर का खाना स्वादिष्ट ही होगा. और बोला कि रानी, तुम भी बाहर खाने पीने की शौकीन हो मुझे मालूम है"

"भाभी, आप को अच्छा लगेगा वो वाइफ़ स्वैपिंग वगैरह, अरुण शायद उसी के बारे में हिंट कर रहा था"

"बहुत मजा आयेगा विनय, तीन तीन जवान मर्द और साथ में उनकी बीवियां. अरे सिर्फ़ सोच कर मेरा रस टपकने लगता है, अब जरा जोर से दबा ना और" नीलिमा ने रिमोट से बटरफ़्लाइ और तेज की और फ़िर खुद ही मेरी गोद में नीचे ऊपर होकर मेरा लंड गहरा अपनी गांड में लेने लगी.
 
थोड़ी देर से बोली "विनय ... मेरी एक और फ़ेंटसी है. जरा विचित्र किस्म की है पर जब सोचती हूं तो बहुत मजा आता है ... अब तेरे को बताने में हर्ज नहीं है क्योंकि वैसे भी मैं दस पंद्रह दिनों में जाने वाली हूं ... मैं इमेजिन करती हूं कि मैं ऐसे ही, याने जैसे तुम्हारी गोद में बैठी हूं, वैसी ही अरुण की गोद में बैठी हूं, उसका वो शाही लंड गांड में लेकर ..."

"अब यह क्या फ़ेंटसी हुई भाभी, ऐसा तो तुम सच में ही करती होगी अपने पति के साथ!"

"अरे आगे सुन तो ... तो मैं अरुण की गोद में बैठ कर गांड मरा रही हूं, बटरफ़्लाइ नहीं लगायी है, बटरफ़्लाइ के बजाय ... ममी मेरे सामने बैठी हैं और मेरी बुर चूस रही हैं ..."

"अरे बाप रे ... एक साथ पति और सास के साथ सेक्स! बहुत तगड़ी कल्पना शक्ति है आप की भाभी, पति और सास मिल कर प्यारी बहू के लाड़ प्यार कर रहे हैं, उसे सुख और आनंद दे रहे हैं ... वाह ... मजा आ गया भाभी" मैंने मस्ती में कस के नीलिमा की गांड में अंदर तक लंड पेला और उसके मम्मे जोर से हथेली में भर लिये.

"... और फ़िर हम जगह बदल लेते हैं, याने ममी अरुण की गोद में और मैं उनके सामने नीचे जमीन पर बैठ कर उनकी चूत का स्वाद ले रही हूं. मेरी आंखों के बिलकुल सामने तीन इंच दूरी पर उनकी गोरी मोटी गांड है और उसमें उनके ही बेटे का लंड घुसा हुआ है" मेरे हाथ अपनी चूंचियों पर दबाते हुए नीलिमा बोली, उसकी गांड का छल्ला अब मेरे लंड को कस के पकड़ा हुआ था "सुखी परिवार हमारा ... मजे की बात है या नहीं?"

मेरे लंड ने नीलिमा की गांड में ही तन कर उसकी इस कल्पना शक्ति को सलाम किया, मैंने नीचे से दो चार कस के धक्के भी मारे. नीलिमा ने रिमोट का बटन और सरकाया और उसकी चूत से चिपकी वह बटरफ़्लाइ जोर जोर से भनभनाने लगी "हां ... ऐसे ही मार ना विनय राजा ... मुझे अरुण और ममी को इस तरह से लिपटे हुए देखना है ... वे आपस में खुल कर संभोग कर रहे हैं और मैं उनके साथ लेटी हुई उस रतिरत मां बेटे की जोड़ी के बारी बारी से चुंबन ले रही हूं और उन्हें संभोग और तेज करने को कह रही हूं, और कस के चोदने को ... उकसा रही हूं ...आह ... ओह ऽ ... हां ... आह ऽ ऽ ..." और नीलिमा अचानक लस्त पड़ गयी.

उसकी यह अनूठी फ़ेंटसी को सुन कर मैं भी बेभान सा हो गया था, नीलिमा के झड़ते ही मैंने उसे वहीं सोफ़े पर पटका और उस पर चढ़ कर घचाघच उसकी गांड मार ली. "अरे ये क्या कर रहा है ... जरा आराम से ..." वह कहती रह गयी पर मैंने नहीं सुनी. मुझे नीलिमा पर जरा सा गुस्सा भी आ गया था, जब झड़ी नहीं थी तो तैश में आकर जोर जोर से मरा रही थी, अब खुद की बुर शांत हो गयी तो मुझे सबर करने को कहने लगी.

थोड़ी देर बाद नीलिमा उठ कर तृप्त भाव से टांगें फैलाकर सोफ़े में टिक कर बैठ गयी. "आज तूने डिसिप्लिन तोड़ दिया राजा, ऐसे चोद मारा मेरी गांड को. पर जाने दो, माफ़ किया, आज मैंने बातें भी जरा ज्यादा ही हरामीपन वाली की हैं" मैं सामने नीचे बैठकर अपना काम करने लगा, याने नीलिमा की बुर से बटरफ़्लाइ निकालना और फ़िर प्यार से सब बह आया रस चाट लेना. पिछले दो तीन रविवार नीलिमा ने यही क्रम बना दिया था.

"विनय ... तेरे को भी मेरी फ़ेंटसी अच्छी लगी, है ना? झूठ मत बोल, कैसे एकदम से चढ़ गया था मेरे ऊपर!" मेरा सिर पकड़कर नीलिमा बोली.

मैंने अपना काम पूरा किया और उठ बैठा. "भाभी, आप तो पॉन्डी लेखक बन जाओ. मस्त बदमाशी से भरी हुई पॉन्डी लिखोगी तुम. पर भाभी, ये फ़ेंटसी फ़ेंटसी ही रहने वाली है या इसको सच करने को कुछ करने वाली हो? अब तो जल्दी ही आप तीनों वहां अमेरिका में होगे"

"हां देखती हूं, अभी सब प्लान जरा अधर में ही हैं, ममी ने भी कुछ कहा नहीं कि वे कब आने वाली हैं, मेरे साथ या बाद में"

एक दो दिन और ऐसे ही गये. फ़िर इस विषय पर चर्चा नहीं हुई क्योंकि ऐसा एकांत नहीं मिला. नीलिमा और चाची ने अमेरिका जाने की तैयारी शुरू कर दी थी. अभी मुझे कुछ ठीक से पता नहीं था कि चाची कितने दिन को जाने वाली हैं. वैसे हमारा रोज रात का तीन तरफ़ा संभोग जोर शोर से चल रहा था. अब कुछ दिनों के बाद वे दोनों यहां नहीं होंगीं, यह सोच कर मेरा जोश जरा बढ़ गया था कि रहे सहे समय में जितना हो सकता है उतना इन दोनों अप्सारों को भोग लूं. नीलिमा तो गरम थी ही, रविवार को अब वह गांड मराने के साथ साथ चुदाने भी लगी थी, हो सकता है कि उसे एहसास हो गया हो कि अब अरुण के पास जाने के बाद उसकी गांड की सिकाई वैसे ही ज्यादा होगी, तो चूत रानी की प्यास का इंतजाम अभी से कर लिया जाये.

उस रविवार को हमें पूरी दोपहर और शाम भी मिली क्योंकि चाची अपनी एक पुरानी सहेली से मिलने चली गयी थीं और देर रात वापस आयीं. उनका नाम लता सरनाइक था. चाची जब सुबह बता रही थीं कि लता का फोन आया है, वह अभी अभी गोआ वापस आयी है, दो साल से अमेरिका में थी, और मैं उससे मिलने जा रही हूं, रात को ही वापस आऊंगी तो नीलिमा के चेहरे पर एक हल्की मुसकान थी. मैं समझा कि अब मैं और वह अकेले रहेंगे इसलिये भाभी खुश हैं कि बिना रोक टोक जो भी मन में है, करने मिलेगा.

उस रविवार को हमने अपना पूरा दम लगा दिया, कितना भी चोदो, नीलिमा भाभी का मन नहीं भर रहा था. उस दिन रात को जब हम सोये तो मैं थक कर चूर हो गया था, लंड और गोटियां भी बुरी तरह दुख रही थीं पर मुझे गम नहीं था, एक खुशी ही थी कि जाते जाते आखिर के दिनों में भाभी मुझे इस तरह से भोग रही है जैसे जनम भर की कसर पूरी कर लेना चाहती हो. वैसे वह कहती थी कि विनय तू भी वहां अमेरिका आना, कुछ चक्कर चला ट्रेनिंग का अपनी कंपनी में, या कहती कि मैं हर साल एक बार तो जरूर आऊंगी. पर हम दोनों को मालूम था कि भले ही मुलाकात हो, पर इतने फ़ुरसत के दिन आपस में कभी नहीं मिलेंगे.
 
स्नेहल चाची भी अब जरा फ़ॉर्म में आने लगी थीं. आज कल मुझे काफ़ी रगड़ती थीं, याने चुदाती तो थीं पर अब मेरे साथ अकेले में धीरे धीरे कुछ अलग तरह की हरकतें ज्यादा करने लगी थीं. नीलिमा जब साथ होती थी तब वे बस हमेशा की तरह अपनी बहू के साथ मिलकर मुझसे संभोग करती थीं. पर शनिवार के अकेले संभोग में उन्होंने धीरे धीरे मुझे और रंगीन जलवे दिखाना शुरू कर दिया था.

अरुण का फोन आने के बाद वाले शनिवार को मैंने हमेशा की तरह उनकी बुर पूजा से संभोग का आरंभ किया. कुछ देर के बाद जब उनकी बुर देवी मुझे रस का प्रसाद दे रही थीं और मैं उसे ग्रहण कर रहा था तब चाची ने कुरसी में बैठे बैठे मेरे बालों में हाथ चलाते हुए कहा "बहुत अच्छा शांत और स्वीट लड़का है तू विनय. पर लगता है कि अब भी मुझसे शरमाता है. या घबराता है?"

"नहीं चाची ... बस आपको .. बहुत रिस्पेक्ट करता हूं ... चाहता भी हूं ... आप की ही वजह से तो मुझे इतना सुख मिल रहा है वरना सबका ऐसा नसीब कहां होता है" मैंने उनकी बुर पर जीभ चलाना एक मिनिट को रोक कर कहा.

"मुझे भी तू बहुत प्यारा लगता है, लगता है जैसे तू मेरा गुड्डा है, सिर्फ़ मेरा अपना है, और किसी का नहीं है और फ़िर सोचने लगती हूं कि इस गुड्डे को कैसे और प्यार करूं, कैसे इसके साथ खेलूं" पहली बार चाची ऐसे खुल कर प्यार से मेरे साथ बोल रही थीं. मैं भी थोड़ा रिलैक्स हो गया, उनके पास खिसककर उनकी पिंडली पर अपना तन्नाया लंड रगड़ते हुए बोला "स्नेहल चाची ... आप कुछ भी कहिये ...कुछ भी कीजिये मेरे साथ ... आप जो भी करेंगीं बहुत अच्छा लगेगा मुझे"

"हां बेटे वो तो मैं करूंगी पर अभी ये बता कि आज तुझे मेरे साथ क्या करने का मन है? आज थोड़ा तेरे मन जैसा हो जाने दे. रोज तो मैं अपने ही मन की चलाती हूं" उन्होंने एक पर एक पैर रखकर मेरे लंड को अपनी पिंडलियों में दबाते हुए कहा.

मेरे मन में आया कि तुरंत उनकी गांड मांग लूं जिसके लिये मैं मरा जा रहा था. नीलिमा की गांड मारते वक्त जब चाची की और भरी हुई, और भारी भरकम, और गुदाज गांड की याद आती थी तो बड़ी तकलीफ़ होती थी. फ़िर जरा सुबुद्धि से काम लिया, चाची भली भांति जानती थीं कि मेरे मन में क्या है, उन्हें जब ठीक लगेगा, खुद ही अपनी गांड मुझे दे देंगीं. उनको मालूम तो जरूर होगा कि मेरे मन में क्या है, फ़िर कोई वजह होगी जिससे वे मुझे तरसा रही हैं. फ़िर और क्या मांगूं!!

पर मेरे मन में एक दो बातें थीं, उनकी खूबसूरत मुलायम रबर की चप्पलों वाला खेल; वो कभी कभी चलता ही था पर उतना नहीं जितने की आस मुझे होने लगी थी. इसे भी मैंने अभी के लिये टाल दिया, जरा अजीब लगता था कहना कि चाची, मन भरके मुझे आपकी चप्पलों से खेलना है. फ़िर दूसरी एक बात जो मेरे मन में थी, मैंने आखिर हिम्मत करके बोल ही दी. "चाची ... वो जब आप अकेली थीं तब क्या करती थीं?"

"अकेली थी याने? याने जब नीलिमा नहीं थी और मैं अकेली रहती थी?"

"हां चाची"

"अब तेरे को क्या बताऊं ... वैसे तेरा इशारा सेक्स की तरफ़ है ना कि अपनी कामना मैं कैसे शांत करती थी?"

"हां चाची"

"अब अकेले रहने पर वासना शांति के लिये क्या किया जाता है, तुझे मालूम है विनय, उसमें क्या बड़ी बात है?"

"पर आपके बारे में वैसा सोच कर बहुत ... एक्साइटिंग लगता है चाची, देखना चाहता हूं एक बार" मैंने हिम्मत करके कह ही डाला. "... आप को ... हस्तमैथुन ... याने खुद ही अपने हाथ से ... करते देखना चाहता हूं." मैंने उनकी ओर देखा, जरा टेंशन हो गया था, कहीं उन्हें गुस्सा ना आ गया हो. पर वे मुस्करा रही थीं. "बड़ा शरारती है, मेरे जितनी उमर की औरत की, बूढ़ी ही कह लो, आत्मरति देखना चाहता है!"

"नहीं चाची ... याने ... चाची आप उमर में बड़ी जरूर हैं पर बूढ़ी ना कहिये, आप तो इतनी सेक्सी हैं कि जवान लड़कियां भी बिरली ही होती हैं इतनी सेक्सी, आप को देखते ही जो मन करता है आप के साथ करने का ... याने वो कहा नहीं जाता चाची" मैंने एक बार में अपने मन की कह डाली, एकदम खरी खरी.

चाची कुछ देर मेरी ओर देखती रहीं, फ़िर मुस्करा दीं "ठीक है, आज तुझे वही दिखाती हूं, एक नहीं दो चीजें करके दिखाती हूं पर एक शर्त है, तू एकदम शांत रहेगा, हाथ अपनी छाती पर बांध कर देखेगा, अपने इस मूसल को जरा भी नहीं टच करेगा, है मंजूर? मैं नहीं चाहती कि मुझे देखते देखते तू भी शुरू हो जाये, तेरे इस प्यारे मूसल की जगह सिर्फ़ यहां है" अपनी चूत पर हाथ रखती हुई चाची बोलीं. मैंने तुरंत प्रॉमिस कर दिया.

चाची ने मेरी ओर देखा और फ़िर हल्का मुस्कराकर कुरसी में टिक कर बैठ गयीं. मैं जरा पीछे खिसककर आराम से वहीं दूसरी कुरसी में बैठ गया. चाची ने अपनी टांगें आपस में मिला लीं और स्थिर सी हो गयीं. मैं सोच रहा था कि यह क्या कर रही हैं चाची, ऐसी शांत बैठी हैं! फ़िर गौर से देखा तो उनका बदन जरा सा हिल रहा था. नीचे की ओर देखा तो उनकी पैर अब थोड़े हिल रहे थे, उनके पांव की वे खूबसूरत रबर की चप्पलें जरा हिल डुल रही थीं. फिर समझ में आया कि वे अपनी जांघें आपस में रगड़ रही थीं. फ़िर उनकी ओर देखा तो वे बोलीं "एक मिनिट को चकरा गया था ना? यह मुझे अच्छा लगता है, और इस की खासियत ये है कि यह कभी भी कहीं भी किया जा सकता है, किसी को पता भी नहीं चलता, बस देर लगती है थोड़ी"

फ़िर अपने दोनों हाथों में उन्होंने अपने स्तन ले लिये और उनसे खेलने लगीं. उनके स्तनों का मर्दन उन्हें कितना प्रिय था, यह मैं पहले से जानता था. अब देख रहा था कि अकेले में भी वे उनसे वैसे ही खेलती थीं जैसा मुझसे करवाती थीं. खुद का स्तनमर्दन करते करते उनकी जांघें वैसे ही आपस में दबी हुई हौले हौले चल रही थीं.

करीब पांच मिनिट ऐसा करने के बाद उन्होंने टांगें फैलायीं और फ़िर धीरे धीरे अपनी बुर के भगोष्ठों को सहलाना शुरू कर दिया. शायद ज्यादा गरम हो गयी थीं और उन्हें भी अब यह मस्ती सहन नहीं हो रही थी. उनका दूसरा हाथ लगातार अपने स्तनों को सहला और दबा रहा था. मैं टक लगाकर देख रहा था. बीच बीच में वे अपनी चूत को जरा खोलतीं और थोड़ा अंदर वाले लिप्स को भी रगड़तीं. कुछ देर बाद उनकी सांस थोड़ी जोर से चलने लगी. उन्होंने मेरे खड़े लंड पर नजर जमायी और फ़िर दो उंगलियों में अपनी बुर का ऊपरी भाग कैंची जैसा लकर रगड़ने लगीं. उनका क्लिट भी अब तन कर एक अनार के दाने जैसा दिखने लगा था.

मैं मंत्रमुग्ध सा होकर उनकी इस स्वकामलीला को देखता रहा. चाची काफ़ी मजे ले लेकर अपने मम्मों को दबाते हुए, बीच में अपने निपलों को उंगलियों में लेकर रोल करते हुए हस्तमैथुन कर रही थीं. पिछले कुछ दिनों में मैंने उनसे खूब चुदाई की थी, उनके शरीर का उपभोग लिया था, नीलिमा के साथ उनकी समलिंगी रति में भी सहभागी हुआ था और हस्तमैथुन उस हिसाब से जरा सादा सा ही खेल था पर न जाने क्यों उनके इस करम को देखकर मैं बहुत उत्तेजित हो गया. कारण वही था, एक पचास साल की सीदी सादी हाउसवाइफ़ - हमारे घर की बड़ी संभ्रांत महिला - मेरे सामने मुठ्ठ मार रही थी.

शायद वे भी बहुत गरम हो गयी थीं क्योंकि अब उनके मुंह से बीच बीच में ’हं’ ’आह’ निकलने लगा था. अकेले में हस्तमैथुन करना अलग बात है और फ़िर किसी को दिखाने के लिये, वो भी उनके करीब करीब पोते की उमर की नौजवान को दिखाने के लिये अलग बात है! उन्होंने अचानक कहा "विनय बेटे ... इस जगह आकर मैं अक्सर एक डिल्डो या वाइब्रेटर ले लेती हूं ... अब वो कहीं पड़ा होगा मेरी अलमारी में ... आज एक नया तरीका आजमाना चाहती ... हूं ... पर तुझे ऐसे ही ... कंट्रोल रखना पड़ेगा ...रखेगा? ... जरा मुश्किल काम है ... हं ... आह ऽ ... करेगा ? ..."

"हां चाची, आप जो कहें" वैसे मेरा लंड अब बहुत तकलीफ़ दे रहा था पर सामने जो ए-वन लाइव ब्ल्यू फ़िल्म चल रही थी उसके लिये मैं कुछ भी प्रॉमिस कर सकता था.

"फ़िर चल बिस्तर पर" वे उठ कर पलंग पर आयीं और सिरहाने से टिक कर बैठ गयीं. मुझे उन्होंने इशारा किया कि उनके सामने अपनी करवट पर आड़ा लेट जाऊं . इस पोज़ में मेरा लंड उनकी बुर के ठीक सामने था और उनकी टांगें मेरे बदन के ऊपर थीं. जब मेरे शरीर की पोज़िशन उनके मन मुताबिक हो गयी, तो उन्होंने मेरे लंड को पकड़ा और सुपाड़े से अपनी बुर को रगड़ने लगीं.

अगले दस मिनिट मेरे लिये बड़े कठिन थे, याने इतना सुख मिल रहा था पर उस सुख का चरम आनन्द मैं नहीं ले सकता था, उनको प्रॉमिस किया था कि मैं झड़ूंगा नहीं. वैसे वे भी बीच बीच में रुक जातीं, अगर उनको लगता कि मैं कगार पर आ गया हूं. अपने तने हुए सूजे सुपाड़े पर उनकी मुलायम गीली बुर का एहसास और सुपाड़े की नाजुक चमड़ी में बार बार उनके अनार के दाने का चुभना ऐसी मीठी सजा थी कि बड़ी मुश्किल से मैं उसे सह रहा था.

चाची को भी शायद मेरे लंड के सुपाड़े से मुठ्ठ मारने में बहुत आनन्द आया होगा क्योंकि कुछ ही देर में वे हल्के से ’अं .. अं ..’ करके स्खलित हो गयीं, मेरे सुपाड़े को उन्होंने जोर से अपनी बुर पर दबा लिया और उसे वैसे ही दबाये रख कर एकदम स्थिर हो गयीं, उनका बदन तन सा गया, और वे बस सांस लेती हुई आंखें बंद करके बैठी रहीं.
 
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