hotaks444
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दूसरे दिन लेट उठा, वो भी जब नीलिमा भाभी ने उठाया कि चल, आज जॉइन करना है तुझे. जल्दी जल्दी तैयार होकर भागा. चाची बोलीं "कल से ऐसे जल्दी नहीं करना पड़ेगी बेटे, वो एक और स्कूटर गैरेज में पड़ा है बहुत दिन से, कल ही मेकेनिक से सर्विस करके बुलवा लेती हूं, फ़िर आराम से जाया कर, दस मिनिट में पहुंच जाया करेगा.
जाने के पहले नीलिमा मुझे अकेले में ले गयी और फ़िर जोर से मेरा चुंबन लिया. बोली "विनय, तुझे मालूम नहीं है कल तूने कितना सुख दिया है मेरे को, मैं तो तरस गयी थी. ममी बहुत प्यार करती हैं मेरे को पर सिर्फ़ मीठा कोई कितने दिन खा सकता है, नमकीन और चटपटा भी तो चाहिये ही ना"
रात को फ़िर वही तीन देहों का मिलन. मुझसे ज्यादा उत्सुक नीलिमा थी और चाची भी पीछे नहीं थीं. और उनको तो ऐसा हो गया था कि जैसे कोई नया खिलौना, गुड्डा मिल गया हो खेलने, उनका मन ही नहीं भरता था.
अब कहानी को हम सीधे दो तीन हफ़्ते आगे ले जा सकते हैं पर उसके पहले संक्षिप्त में इन तीन हफ़्तों में क्या हुआ, वह बताना चाहूंगा.
एक हफ़्ते के अंदर हमारा एक टाइम टेबल फिक्स हो गया, सलाह चाची की ही थी. सोमवार से शुक्रवार तो मेरी ट्रेनिंग रहती थी, सो सिर्फ़ रात मिलती थी. उसमें भी शुक्रवार रात चाची ने पाबंदी लगा दी थी, स्ट्रिक्ट इन्स्ट्रक्शन दिये कि सब सिर्फ़ रेस्ट करेंगे, कम से कम एक दिन का पूरा रेस्ट जरूरी है. मेरा वीक एन्ड ऑफ़ था, उस दौरान दोपहर के खेल के लिये उन दोनों सास बहू ने समय आपस में बांट लिया था कि मेरे साथ हरेक को एकांत भी मिले, बिना हिचकिचाहट के जो मन चाहे करने के लिये. शनिवार को नीलिमा का ऑफ़िस हाफ़ डे लगता था और वह और दो घंटे लेट ही आती थी याने चाची को दोपहर भर अपना गुड्डा अकेले में खेलने को मिलता था. रविवार को चाची का महिला मंडल होता था या कोई न कोई फ़ंक्शन होता था, उसमें वे दोपहर को जाती थीं और तब नीलिमा मुझसे मस्त मेहनत करवा लेती थी. और शनिवार रविवार रात तो थे ही सामूहिक कुश्ती के लिये.
अकेले में नीलिमा को मुझसे बस दो काम रहते थे, मेरा लंड चूसना, और खूब चुदवाना, तरह तरह के पोज़ में चुदवाना, कभी नीचे लेट कर, कभी ऊपर से, कभी कुरसी में मेरी गोद में बैठकर और कभी दीवाल के सहारे खड़े खड़े. मैं समझ सकता था, आखिर बेचारी अपने पति से - अरुण से - इतनी दूर थी और इतने दिनों से दूर थी. नीलिमा बहुत एथेलेटिक थी, उसे उछल कूद, मेहनत और कुश्ती करते हुए चोदना भाता था.
इसके विपरीत चाची बस एक महारानी की तरह अपने मन की सेवा मुझसे करवा लेती थीं. आधा समय उनका कुरसी में बैठकर मेरे सिर को अपनी टांगों में दबाये जाता था, लगता था ये उनका फ़ेवरेट पोज़ था. शायद अपने भक्त को भरपेट अपनी चूत के अमरित का प्रसाद देना वे अपनी ड्यूटी समझती थीं. बाकी आधे वक्त वे पलंग पर लेट कर मुझसे घंटे घंटे चुदवाती थीं. इसके अलावा उनका मन लगता था अपने स्तनों की मालिश करवाने में, उन्हें दबवाने और मसलवाने में, अक्सर वे लेट जाती थीं और मैं उनके सामने बैठ कर उनके बड़े बड़े मैदे के गोलों को आटे की तरह गूंधता था. इनाम स्वरूप मुझे उन्हें चूसने का मौका मिलता था. और चाची चुसवाते चुसवाते अक्सर मेरे मुंह में निपल के साथ साथ अपने स्तन का भी काफ़ी भाग घुसेड़ देतीं थीं, कभी मूड में होतीं तो खेल खेल में जितना मम्मा मुंह में जा सकता था उतना ठूंस देतीं, एक बार तो मुझे लगता है उन्होंने आधा उरोज मेरे मुंह में डाल दिया था और फ़िर मुझे नीचे लिये मेरे चेहरे को छाती से ढक कर बहुत देर लेटी रहीं और मुझे चोदती रहीं. मैं बस उस नरम मांस को मुंह में लेकर पड़ा रहा. मुझे तो लगता है कि वे उस दिन जिस मूड में थीं, उनका बस चलता तो वे पूरी चूंची ही घुसेड़ देतीं पर वो फ़िज़िकली इम्पॉसिबल था.
चाची के पैरों की ओर मेरी आसक्ति इन दिनों में बढ़ती जा रही थी. वैसे इसके पहले मेरा ध्यान लड़कियों के पैर की ओर इतना नहीं गया, वैसे अच्छे सैंडल पहने हुए खूबसूरत पैर किसको अच्छे नहीं लगते, पर चाची के पैरों की ओर मैं जरा ज्यादा ही आकर्षित हो गया था. हो सकता है कि एक बार उनके प्रति मन में सेक्स फ़ीलिंग आने से ऐसा हुआ हो. यह आकर्षण अब इतना तीव्र हो गया था कि कई बार उनके सामने बैठकर उनकी बुर चूसने के पहले मैं उनके पैरों से खेल लिया करता था, उनके चुंबन लेता, उनकी प्रशंसा करता कि चाची आपके पैर कितने खूबसूरत हैं, आपको तो सैंडल्स की मॉडलिंग करनी चाहिये. चाची बस मुस्करा देती थीं. उन्हें भी पता था कि उनके पांव एकदम शेपली हैं. उन्हें शायद यह भी पता था कि उनके पैरों के प्रति यह आकर्षण कोई सादा आकर्षण नहीं है, बल्कि एक ऑब्सेशन बनता जा रहा है पर उन्होंने इस मामले में न तो मुझे रोका न कभी ज्यादा प्रोत्साहन दिया.
इसी चक्कर में धीरे धीरे मैं एक कदम आगे बढ़कर उनके स्लीपरों तक पहुंच गया. वैसे मुझे फ़ेतिश वगैरह नहीं है पर न जाने क्यों एक बार जब चाची के पैरों से इश्क हो गया तो निगाह उनकी घर में पहनने की स्लीपर पर भी जाने लगी. गुलाबी रंग की नाजुक सी स्लीपर थी, गहरे गुलाबी रंग के पतले स्ट्रैप और हल्के गुलाबी और क्रीम कलर के एकदम पतले पतले सोल. एकदम साफ़ सुथरी थी. स्लीपर अच्छी थी पर चाची ने पहनी थी इसलिये मुझे ज्यादा सेक्सी लगने लगी. एक बार जब मैं उनके सामने नीचे बैठकर उनकी बुर चूसने की तैयारी कर रहा था तब चाची मेरा इंतजार करते करते एक पर एक पैर रखकर हिला रही थीं और वो स्लीपर उनकी उंगलियों पर लटककर नाच रही थी. वह झूलती चप्पल एकदम से मेरे दिल में उतर गयी. जोश में आकर मैंने उनकी स्लीपर को भी चूम लिया. वे बस हल्के से मेरी ओर देखकर जरा सा मुस्करा दीं, ये नहीं बोलीं कि बेटा, मेरी चप्पल से क्यों मुंह लगा रहे हो, याने उनको ये मेरी भक्ति का ही एक भाग लगी होगी. अगली बार जब मैं उनकी चूत चूस रहा था तो उन्होंने मुझे रोक कर अपनी दोनों स्लीपरें उतारीं और मेरे तन्नाये लंड में फंसा दीं. बोलीं "इसे भी जरा स्वाद लेने दे, तेरे को अच्छी लगती हैं ना? इसे भी भायेंगी"
उस दिन बाद में उनको चोदते वक्त मैं बस पांच मिनिट में ही झड़ गया, मेरा कंट्रोल ही नहीं था, लंड जैसे पागल हो गया था. चाची ने मुझे झड़ने दिया और फ़िर कान पकड़कर बोलीं "इस बार माफ़ कर देती हूं पर फ़िर ऐसा किया तो इसी चप्पल से मारूंगी, मूरख कहीं का." उसके बाद मैंने फ़िर उनकी रबर की चप्पल के मामले में जरा अपने आप पर काबू रखा, वैसे एक बार मन में आया कि यार, शायद मार खाकर भी मजा आयेगा, अगर मार इस मुलायम खूबसूरत चप्पल से पड़े. हां पर हर शनिवार पांच दस मिनिट अपनी तरह से मैं चाची की चरण पूजा कर लेता था. ये मैं सिर्फ़ इसलिये बता रहा हूं कि पता चले कि धीरे धीरे चाची मुझसे अपनी गुलामी करवाने में कैसे एक एक कदम और रख रही थीं.
और सबसे अहम बात याने चाची अकेले में घंटे भर मुझे ट्रेनिंग देती थीं, न झड़ने की ट्रेनिंग. तरह तरह से मेरे लंड से खेलना, उसको पुचकारना, अपने मोटे मोटे स्तनों में दबाना, कभी अपने खूबसूरत पांव से रगड़ना पर ये सब सहन करते वक्त मुझे कड़क हिदायत होती कि स्खलित न होऊं. मैं कभी परेशान हो जाता तो कहतीं कि मेरी सेक्स लाइफ़ और अच्छी बनाने के लिये मुझे कंट्रोल करना सिखाना जरूरी है. मुझे कभी कभी लगता कि सच में चाची मेरी सेक्स लाइफ़ इम्प्रूव करना चाहती हैं या वो इन्टरनेट पर होते हैं वैसे सेक्स स्लेव या कुकोल्ड बनाने की तो नहीं सोच रही हैं, पर उनसे सेक्स करने में इतनी मादकता थी कि इस बात को मैं नजरंदाज कर देता था.
जाने के पहले नीलिमा मुझे अकेले में ले गयी और फ़िर जोर से मेरा चुंबन लिया. बोली "विनय, तुझे मालूम नहीं है कल तूने कितना सुख दिया है मेरे को, मैं तो तरस गयी थी. ममी बहुत प्यार करती हैं मेरे को पर सिर्फ़ मीठा कोई कितने दिन खा सकता है, नमकीन और चटपटा भी तो चाहिये ही ना"
रात को फ़िर वही तीन देहों का मिलन. मुझसे ज्यादा उत्सुक नीलिमा थी और चाची भी पीछे नहीं थीं. और उनको तो ऐसा हो गया था कि जैसे कोई नया खिलौना, गुड्डा मिल गया हो खेलने, उनका मन ही नहीं भरता था.
अब कहानी को हम सीधे दो तीन हफ़्ते आगे ले जा सकते हैं पर उसके पहले संक्षिप्त में इन तीन हफ़्तों में क्या हुआ, वह बताना चाहूंगा.
एक हफ़्ते के अंदर हमारा एक टाइम टेबल फिक्स हो गया, सलाह चाची की ही थी. सोमवार से शुक्रवार तो मेरी ट्रेनिंग रहती थी, सो सिर्फ़ रात मिलती थी. उसमें भी शुक्रवार रात चाची ने पाबंदी लगा दी थी, स्ट्रिक्ट इन्स्ट्रक्शन दिये कि सब सिर्फ़ रेस्ट करेंगे, कम से कम एक दिन का पूरा रेस्ट जरूरी है. मेरा वीक एन्ड ऑफ़ था, उस दौरान दोपहर के खेल के लिये उन दोनों सास बहू ने समय आपस में बांट लिया था कि मेरे साथ हरेक को एकांत भी मिले, बिना हिचकिचाहट के जो मन चाहे करने के लिये. शनिवार को नीलिमा का ऑफ़िस हाफ़ डे लगता था और वह और दो घंटे लेट ही आती थी याने चाची को दोपहर भर अपना गुड्डा अकेले में खेलने को मिलता था. रविवार को चाची का महिला मंडल होता था या कोई न कोई फ़ंक्शन होता था, उसमें वे दोपहर को जाती थीं और तब नीलिमा मुझसे मस्त मेहनत करवा लेती थी. और शनिवार रविवार रात तो थे ही सामूहिक कुश्ती के लिये.
अकेले में नीलिमा को मुझसे बस दो काम रहते थे, मेरा लंड चूसना, और खूब चुदवाना, तरह तरह के पोज़ में चुदवाना, कभी नीचे लेट कर, कभी ऊपर से, कभी कुरसी में मेरी गोद में बैठकर और कभी दीवाल के सहारे खड़े खड़े. मैं समझ सकता था, आखिर बेचारी अपने पति से - अरुण से - इतनी दूर थी और इतने दिनों से दूर थी. नीलिमा बहुत एथेलेटिक थी, उसे उछल कूद, मेहनत और कुश्ती करते हुए चोदना भाता था.
इसके विपरीत चाची बस एक महारानी की तरह अपने मन की सेवा मुझसे करवा लेती थीं. आधा समय उनका कुरसी में बैठकर मेरे सिर को अपनी टांगों में दबाये जाता था, लगता था ये उनका फ़ेवरेट पोज़ था. शायद अपने भक्त को भरपेट अपनी चूत के अमरित का प्रसाद देना वे अपनी ड्यूटी समझती थीं. बाकी आधे वक्त वे पलंग पर लेट कर मुझसे घंटे घंटे चुदवाती थीं. इसके अलावा उनका मन लगता था अपने स्तनों की मालिश करवाने में, उन्हें दबवाने और मसलवाने में, अक्सर वे लेट जाती थीं और मैं उनके सामने बैठ कर उनके बड़े बड़े मैदे के गोलों को आटे की तरह गूंधता था. इनाम स्वरूप मुझे उन्हें चूसने का मौका मिलता था. और चाची चुसवाते चुसवाते अक्सर मेरे मुंह में निपल के साथ साथ अपने स्तन का भी काफ़ी भाग घुसेड़ देतीं थीं, कभी मूड में होतीं तो खेल खेल में जितना मम्मा मुंह में जा सकता था उतना ठूंस देतीं, एक बार तो मुझे लगता है उन्होंने आधा उरोज मेरे मुंह में डाल दिया था और फ़िर मुझे नीचे लिये मेरे चेहरे को छाती से ढक कर बहुत देर लेटी रहीं और मुझे चोदती रहीं. मैं बस उस नरम मांस को मुंह में लेकर पड़ा रहा. मुझे तो लगता है कि वे उस दिन जिस मूड में थीं, उनका बस चलता तो वे पूरी चूंची ही घुसेड़ देतीं पर वो फ़िज़िकली इम्पॉसिबल था.
चाची के पैरों की ओर मेरी आसक्ति इन दिनों में बढ़ती जा रही थी. वैसे इसके पहले मेरा ध्यान लड़कियों के पैर की ओर इतना नहीं गया, वैसे अच्छे सैंडल पहने हुए खूबसूरत पैर किसको अच्छे नहीं लगते, पर चाची के पैरों की ओर मैं जरा ज्यादा ही आकर्षित हो गया था. हो सकता है कि एक बार उनके प्रति मन में सेक्स फ़ीलिंग आने से ऐसा हुआ हो. यह आकर्षण अब इतना तीव्र हो गया था कि कई बार उनके सामने बैठकर उनकी बुर चूसने के पहले मैं उनके पैरों से खेल लिया करता था, उनके चुंबन लेता, उनकी प्रशंसा करता कि चाची आपके पैर कितने खूबसूरत हैं, आपको तो सैंडल्स की मॉडलिंग करनी चाहिये. चाची बस मुस्करा देती थीं. उन्हें भी पता था कि उनके पांव एकदम शेपली हैं. उन्हें शायद यह भी पता था कि उनके पैरों के प्रति यह आकर्षण कोई सादा आकर्षण नहीं है, बल्कि एक ऑब्सेशन बनता जा रहा है पर उन्होंने इस मामले में न तो मुझे रोका न कभी ज्यादा प्रोत्साहन दिया.
इसी चक्कर में धीरे धीरे मैं एक कदम आगे बढ़कर उनके स्लीपरों तक पहुंच गया. वैसे मुझे फ़ेतिश वगैरह नहीं है पर न जाने क्यों एक बार जब चाची के पैरों से इश्क हो गया तो निगाह उनकी घर में पहनने की स्लीपर पर भी जाने लगी. गुलाबी रंग की नाजुक सी स्लीपर थी, गहरे गुलाबी रंग के पतले स्ट्रैप और हल्के गुलाबी और क्रीम कलर के एकदम पतले पतले सोल. एकदम साफ़ सुथरी थी. स्लीपर अच्छी थी पर चाची ने पहनी थी इसलिये मुझे ज्यादा सेक्सी लगने लगी. एक बार जब मैं उनके सामने नीचे बैठकर उनकी बुर चूसने की तैयारी कर रहा था तब चाची मेरा इंतजार करते करते एक पर एक पैर रखकर हिला रही थीं और वो स्लीपर उनकी उंगलियों पर लटककर नाच रही थी. वह झूलती चप्पल एकदम से मेरे दिल में उतर गयी. जोश में आकर मैंने उनकी स्लीपर को भी चूम लिया. वे बस हल्के से मेरी ओर देखकर जरा सा मुस्करा दीं, ये नहीं बोलीं कि बेटा, मेरी चप्पल से क्यों मुंह लगा रहे हो, याने उनको ये मेरी भक्ति का ही एक भाग लगी होगी. अगली बार जब मैं उनकी चूत चूस रहा था तो उन्होंने मुझे रोक कर अपनी दोनों स्लीपरें उतारीं और मेरे तन्नाये लंड में फंसा दीं. बोलीं "इसे भी जरा स्वाद लेने दे, तेरे को अच्छी लगती हैं ना? इसे भी भायेंगी"
उस दिन बाद में उनको चोदते वक्त मैं बस पांच मिनिट में ही झड़ गया, मेरा कंट्रोल ही नहीं था, लंड जैसे पागल हो गया था. चाची ने मुझे झड़ने दिया और फ़िर कान पकड़कर बोलीं "इस बार माफ़ कर देती हूं पर फ़िर ऐसा किया तो इसी चप्पल से मारूंगी, मूरख कहीं का." उसके बाद मैंने फ़िर उनकी रबर की चप्पल के मामले में जरा अपने आप पर काबू रखा, वैसे एक बार मन में आया कि यार, शायद मार खाकर भी मजा आयेगा, अगर मार इस मुलायम खूबसूरत चप्पल से पड़े. हां पर हर शनिवार पांच दस मिनिट अपनी तरह से मैं चाची की चरण पूजा कर लेता था. ये मैं सिर्फ़ इसलिये बता रहा हूं कि पता चले कि धीरे धीरे चाची मुझसे अपनी गुलामी करवाने में कैसे एक एक कदम और रख रही थीं.
और सबसे अहम बात याने चाची अकेले में घंटे भर मुझे ट्रेनिंग देती थीं, न झड़ने की ट्रेनिंग. तरह तरह से मेरे लंड से खेलना, उसको पुचकारना, अपने मोटे मोटे स्तनों में दबाना, कभी अपने खूबसूरत पांव से रगड़ना पर ये सब सहन करते वक्त मुझे कड़क हिदायत होती कि स्खलित न होऊं. मैं कभी परेशान हो जाता तो कहतीं कि मेरी सेक्स लाइफ़ और अच्छी बनाने के लिये मुझे कंट्रोल करना सिखाना जरूरी है. मुझे कभी कभी लगता कि सच में चाची मेरी सेक्स लाइफ़ इम्प्रूव करना चाहती हैं या वो इन्टरनेट पर होते हैं वैसे सेक्स स्लेव या कुकोल्ड बनाने की तो नहीं सोच रही हैं, पर उनसे सेक्स करने में इतनी मादकता थी कि इस बात को मैं नजरंदाज कर देता था.