Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची - Page 5 - SexBaba
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Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची

अब उन दो रातों में आंटी के साथ हुई मस्त चुदाई के बारे में क्या लिखूं. उस रात और अगली रात हमने ऐसी चुदाई की कि जैसे जनम जनम के प्यासे हों. आंटी की चूत के उस सोमरस का भी स्वाद आखिर मुझे मिला. उसका ज्यादा वर्णन करना भी रिपीटीशन हो जायेगा. उन्होंने अपनी चूत का स्वाद मुझे थोड़ा मिन्नत करने पर दिया, और वह भी इस तरह कि जैसे इतनी नायाब शराब पिला कर बड़ा एहसान कर रही हों. वैसे उनकी बात ठीक भी थी, उनकी वह सेक्सी बुर और वह गाढ़ा महकता शहद, मजा आ गया. एक बात समझ में आयी कि लता आंटी का दिमाग सेक्स के ऐसे आयामों की तरफ़ दौड़ता था जिसे हम जानते तो हैं पर असली जिंदगी में करते नहीं. इसलिये ज्यादा वर्णन के बजाय ऐसे ही दो तीन इन्स्टेंस नीचे बता रहा हूं, जिससे मुझे उनके स्वभाव और मन में उफ़नते वासना के तूफ़ानों का थोड़ा अंदाज लगने लगा था.

हम एक दूसरे से लिपटे पलंग पर पड़े थे और बस एक दूसरे के नग्न शरीर का आनंद ले रहे थे. मैं आंटी के पूरे बदन को चूम रहा था, ऊपर से लेकर नीचे तक मैंने एक हिस्सा नहीं छोड़ा, इसी चक्कर में उनके उन खूबसूरत पैरों के भी चुम्मे ले लिये जो अन्यथा करना अजीब सा लगता.

थोड़ी देर बाद आंटी ने मुझे नीचे पटका और यही मेरे साथ किया. मेरे बदन को वे पूरा जान लेना चाहती थीं. बहुत अजीब सुखद सा अनुभव था कि किसी नारी को मेरा शरीर इतना मोहक लग रहा था. फ़िर मुझे पट लेटने को कहा. मुझे जरा अजीब लगा क्योंकि उनके लायक जो भी चीज थी मेरे पास, वो तो बस सामने ही थी. मेरी पीठ उन्होंने चूमी और फ़िर पीठ को सहलाते सहलाते उनके हाथ मेरे नितंबों पर पहुंच गये. उसपर वे थम से गये. फ़िर वे उन्हें दबाने लगीं "क्यूट बटक्स हैं तुम्हारी विनय, बबल बट, तुम कॉलेज में थे तो कोई इनके पीछे नहीं लगा?"

मैंने कहा "नहीं आंटी". यह भी कहने वाला था कि इस तरफ़ मेरा जरा सा भी रुझान नहीं है. इतने में लता आंटी बोलीं "अगर मैं लड़का होती तो जरूर मरती तेरे इन चूतड़ों पर" फ़िर उन्होंने प्यार से उनको किस किया. क्षण भर उनके वे होंठ मेरे गुदा पर को छू कर गुजरे जैसे तितली बैठे और तुरंत उड़ जाये.

उसके बाद हमारे मैच के दो तीन गेम हो जाने के बाद वे मेरा लंड चूस रही थीं. उस वक्त बड़ा लुत्फ़ ले लेकर धीरे धीरे मेरे लंड का स्वाद लिया था. सुपाड़े को चूमना, जीभ से गुददुगुदाना, सब तरह के करम किये थे. चूसते वक्त भी कभी सिर्फ़ सुपाड़े की टिप चूसतीं, कभी पूरा सुपाड़ा और कभी पूरा लंड. बीच में बोलीं "पूरी कटोरी भर क्रीम चाहिये मुझे अब, कम से काम नहीं चलेगा" उस वक्त मैं झड़ने के शिखर पर लड़खड़ा रहा था. वरना कहने वाला था कि दो बार तो चुदा कर झड़ा दिया मुझे, अब जितना रस बनता है मेरी गोटी में उतना ही तो आपको मिलेगा आंटी, वैसे वे यह मुझे उकसाने को कह रही थीं यह तय था.

अब वे पूरा लंड जड़ तक मुंह में लेकर कस के अपने हाथों को मेरी कमर के इर्द गिर्द बांध कर नितंबों को दबा और मसल रही थीं. मेरे झड़ने के ऐन वक्त अचानक बिना बताये उन्होंने अपनी बीच की उंगली एकाएक मेरे गुदा में घुसेड़ दी. थोड़ी नहीं, जड़ तक अंदर, और जिस आसानी से वह पूरी अंदर गयी, उसमें जरूर उन्होंने पहले से कोल्ड क्रीम लगा रखी थी. मैं चिहुक पड़ा, एकदम दर्द हुआ और एक स्वीट सी भी फ़ीलिंग आयी. और वे सिर्फ़ उंगली डाल कर नहीं रुकीं, उसे अंदर बाहर, आगे पीछे, इधर उधर करती रहीं, सारांश यह कि मेरे झड़ते झड़ते उन्होंने कस के मेरी गांड में हर तरह से उंगली की. मैं झड़ा भी ऐसा कि जैसे सब शक्ति निकल गयी हो, कुछ न बचा हो.

बाद में बोलीं "टाइट है एकदम, और बहुत सॉफ़्ट ... मखमल जैसी ... विनय ... मुझे तो लव हो गया है तुम्हारी गांड से"

मैंने ध्यान नहीं दिया, मन में कहा कि आंटी, भले आप मेरी गांड पे मरती हैं, पर शुक्र है कि उसे भोगने के लिये जो चीज चाहिये वो तो आप के पास है नहीं. फ़िर सोचा कि ज्यादा मादक स्वभाव होने से बोल रही होंगी. उनकी उंगली ने मुझे काफ़ी तड़पाया था, उनके लंबे नाखून भी थे, अब भले ही उन्होंने केयरफ़ुली उंगली की हो, खरोंच भी न आने दी हो पर दर्द तो होता ही है!
 
दूसरे दिन ऑफ़िस से मैं वापस आया तो लता आंटी पहले ही आ गयी थीं. वहीं सोफ़े पर लैपटॉप लेकर बैठी थीं. मुस्कराकर बोलीं "आज मैं लंच के बाद ही आ गयी, ऑफ़िस में कह दिया मुझे सेल पर कॉन्टेक्ट करें. तुमको बुलाने वाली थी पर फ़िर सोचा कि यह ठीक नहीं, कहते हैं ना कि गन्ना अच्छा लगे तो ऐसे जड़ से उखाड़ कर नहीं खाते, दूसरी बार के लिये बचा कर रखते हैं. विमलाबाई अभी गयी हैं, अच्छा पुलाव बना कर रखा है"



मैं उनके पास गया तो उन्होंने बड़े प्यार से अपना चेहरा मेरी तरफ़ कर दिया, किस एक्सपेक्टेड था. मैंने एक गहरा लंबा चुंबन लिया उनके उन मोहक होंठों का. लगता है वे कभी कभी स्मोक करती थीं, उनके मुंह से महंगी सिगरेट की हल्की खुशबू आ रही थी, पर उनके होंठों से मुझे वह भी एक्साइटिंग लगी. आज उन्होंने कॉटन की एक सादी नाइटी पहनी थी. कल शायद स्पेशल रिझाने वाली लिंगरी पहनी थी, आज उसकी जरूर नहीं थी, एक ही रात में उन्होंने मुझे वश में कर किया था.

मैं भी वहीं सोफ़े पर उनके पास बैठ गया. यह भी मन में आया कि आज वे शाम से नाइटी पहनकर बैठी हैं याने आज भी उनका कहीं जाने का इरादा नहीं है, सीसीडी भी नहीं, याने शायद प्रेमालाप जल्दी ही शुरू करने का प्लान है मैडम का. मन में मादकता की एक लहर दौड़ गयी, कल पहली बार थी इसलिये हम दोनों ने जरा जल्दबाजी की चुदाई की थी जैसे कोई बहुत भूखा हो तो स्वादिष्ट व्यंजन भी बिना चबाये बकाबक निगल जाता है, बिना उनका पूरा स्वाद लिये. आज की रात वो स्वाद लेने का समय मिल जाये, ऐसा मैं मन ही मन मना रहा था.

वे सामने के टीपॉय पर पैर फैलाकर बैठी थीं आज उन्होंने एकदम व्हाइट बिलकुल पतले सोल की और नूडल जैसे पतले स्ट्रैप्स की फ़्लिप फ़्लॉप स्लीपर पहनी थी. मेरा ध्यान बार बार उसपर जाने लगा, मुझे लगा कि अब शायद जरूर मेरा दिमाग घूम गया है, जो सुन्दर पैरों में लटकी उनकी सुन्दर स्लीपरों में जाकर इस तरह से अटक गया है.

लता आंटी ने मेरी नजर देखी तो बोलीं "अच्छी हैं ना ये फ़्लिप फ़्लॉप? मैं पेरिस गयी थीं, तब काल्विन क्लीन के यहां से लाई थी, एकदम सेक्सी लगीं मुझे भी"

"हां आंटी, बहुत प्यारी है खास कर आपके इन गोरे नाजुक पैरों में बहुत जचती हैं"

वे मुस्करायीं और काम करती रहीं. बीच बीच में मेरी ओर देखती थीं. मेरा ध्यान बस बार बार उनके टीपॉय पर रखे पांवों पर ही जा रहा था. थोड़ी देर से वे सोफ़े में घूम कर उसके आर्मरेस्ट से टिक कर बैठ गयीं और लैपटॉप गोद में लेकर पैर उठाकर सोफ़े पर रख लिये. मैं उठने लगा कि से आराम से बैठ सकें, उनको पैर पूरे सीधे करने की जगह मिले तो उन्होंने मुझे इशारा किया कि बैठा रहूं. फ़िर अपने पैर सीधे करके मेरी जांघों पर रख दिये और फ़िर से लैपटॉप पर काम करने लगीं.

उनके पांव मेरी क्रॉच पर थे. कुछ देर तो वे वैसी ही शांत पैर रखे काम करती रहीं, फ़िर उनके पैरों ने धीरे धीरे मेरे लंड को पैंट के ऊपर से ही दबाना शुरू कर दिया. पहले मुझे समझ में नहीं आया, लगा अनजाने में हो गया होगा पर फ़िर जब लगातार उनका एक पैर ऊपर नीचे होने लगा तो समझ में आया कि मुझसे मस्ती वाला खिलवाड़ हो रहा है. चाची हाथ से करती थीं, आंटी पैर से कर रही हैं. मेरा लंड भी सिर उठाने लगा. जल्दी ही वह तन कर खड़ा हो गया.

"तेरे शौक वाले बहुत लोग हैं इन्टरनेट पर. क्या क्या करते हैं देख स्लीपरों और सैंडलों के साथ" कहकर उन्होंने अपना लैपटॉप मेरी ओर बढ़ा दिया. मैं लेने लगा तो बोलीं "ऐसे नहीं, ज़िप खोल, अपने यार को बाहर निकाल और फ़िर देख. तब मजा आयेगा"

मैंने चुपचाप उनका आदेश माना, अपने तन्नाये लंड को ज़िप से बाहर निकाला. आंटी ने उसे तुरंत अपने पैरों के बीच ले लिया और पैरों से सहलाने लगीं. मैं लैपटॉप लेकर देखने लगा. एक्सहैमस्टर पर एक वीडियो चल रहा था. देख कर मेरे कान गर्म हो गये, लगा कि यार मैं भी क्या ऐसा ही पागल दीवाना हो गया हूं. पर मेरे साले लंड को शायद वो वीडियो अच्छा लगा क्योंकि वह और उचकने लगा, शायद उसे भी वह वीडियो देखना था.

वीडियो में बस एक मर्द का लंड और हाथ दिख रहे थे. वह लंड से एक सुंदर सुनहरी लेडीज़ हाई हील सैंडल को चोद रहा था. सैंडल को पकड़कर पंजे की तरफ़ से सोल और पट्टों के बीच घुसा घुसा कर मुठ मार रहा था. दो मिनिट का वीडियो था, एक मिनिट में ही उसका वीर्य उस सैंडल के सोल पर बहने लगा था. दूसरे मिनट में उसके हाथ में एक रबर की स्लीपर थी और उसके सोल पर लंड को घिस रहा था. आखिर में वही, उस स्लीपर के पट्टे और सोल पर स्खलन!

अचानक मैंने महसूस किया कि आंटी के पैर ने मेरे लंड को तलवे और स्लीपर की सोल के बीच पकड़ लिया था और ऊपर नीचे पांव करके वे मेरे लंड को अपनी स्लीपर और तलवे के बीच पिलवा रही थीं. याने उस वीडियो से भी एक कदम आगे जाकर मेरे लंड को उनके पांव और स्लीपर को चोदने का मौका दे रही थीं. उधर वह वीडियो खतम होकर फ़िर चालू हो जाता था.

मैं इतना एक्साइट हुआ कि हद नहीं. यह लता आंटी भी क्या चीज थीं, मेरा ये नया नया शौक, जो मुझे भी ठीक से अब तक समझ में नहीं आया था, उन्होंने एक दिन में भांप लिया था. मेरी सांस जोर से चलने लगी तो हंसकर आंटी ने अपना पैर हटा लिया और लैपटॉप भी ले लिया "बाप रे, कितना आशिक है रे तू इनका, चल अब रहने दे नहीं तो तेरी पिस्टल की एक गोली अभी चल जायेगी, बिना किसी का कत्ल किये"

मैंने लंड को किसी तरह ज़िप में डाला और बैठ गया. लता आंटी की ओर देखा भी नहीं जा रहा था, शरम भी लग रही थी और दिल भी धड़क रहा था.

उन्होंने मेरा प्यार से चुंबन लिया, बोलीं "चल ऊपर चलते हैं, वह वाइन अभी बची है थोड़ी. ये ग्लास ले चल, मैं वाइन लेकर आती हूं"

मैं ऊपर गया. आंटी फ़्रिज से वाइन की बॉटल लेकर आयीं. दोनों ग्लासों में वाइन निकाली और बॉटल आइस बकेट में रखी. फ़िर ग्लास उठाकर चीयर्स बोलीं. वाइन सिप करते करते वे बोलीं. "शर्माने की जरूरत नहीं है विनय डार्लिंग. तेरा शौक कोई क्राइम थोड़े ही है! प्रेमिका की पैरों के प्रति आकर्षण तो मेजॉरिटी को होता है, वे बस उसे दबाये रखते हैं. वैसे मैं सोच रही थी तुम्हारे इस शौक के बारे में, बड़ा प्यारा फ़ेतिश है, लेडीज़ के स्लिपर्स और सैंडल्स का. रंगीन रसिक तबियत का यह प्रमाण है. तुमको मालूम है कि वाइन और इसका भी पुराना नाता है?"

"कैसा नाता आंटी?"

"पुराने जमाने में वेस्टर्न कंट्रीज़ में लोग अपनी प्रेमिका के शू में से वाइन या शेम्पेन पीते थे, उससे प्यार का इजहार करने" मेरी ओर देखते हुए आंटी बोलीं.

मैंने इमेजिन किया कि मैं आंटी के एक सैंडल में से वाइन पी रहा हूं. वैसे उबकाई वाला काम है पर आंटी के उन खूबसूरत पैरों के बारे में सोचा तो फ़ैंटसी काफ़ी एक्साइटिंग थी. मेरा लंड थोड़ा और तन गया. आंटी हंसने लगीं. "इसे देखो कितना अच्छा लगा आइडिया. पर मेरे पास बंद ड्रेस शूज़ नहीं हैं अभी, बस सैंडल हैं और स्लीपर हैं." अपना पैर आगे बढ़ाकर वे बोलीं

पास से मैंने उनकी नाजुक गोरी उंगलियों से लटकती सफ़ेद स्लीपर को देखा तो साला बदमाश लंड और तन्ना गया. मैंने आंटी की तरफ़ देखा तो वे हंस रही थीं. उनकी आंखों में भी चैलेंज था. उनकी आंखें मानों कह रही थीं कि तेरे मन को तू पिन्जरे से निकाल सकता है? उसकी हर बात मान सकता है? मैंने अचानक फैसला कर लिया कि इस गेम में उनसे मैं हार नहीं मानूंगा, अब जो मन मांगेगा वो बिना शर्म के करूंगा. आंटी की तरफ़ देख कर मैंने कहा "इनमें से उन पुराने विक्टोरियन लवर्स जैसा पी तो नहीं सकता आंटी पर चाट जरूर सकता हूं" उनके स्लीपर की ओर इशारा करते हुए मैंने कहा.

आंटी ने बिलकुल सीरियस होकर अपनी स्लीपर उतारी. उसपर अपनी ग्लास से थोड़ी सी वाइन उड़ेली और स्लीपर मेरे मुंह के पास ले आयीं. मैं चाटने लगा. बहुत अजीब सा लग रहा था पर जो भी लग रहा था वह बहुत मादक और चुदासी भरा था. अलग तरह का कोई हरामीपन कर रहा हूं यह एहसास और वो भी ऐसा कि जिससे आंटी का गुलाम बनते जाने की मेरी ख्वाहिश प्रूव होती हो.

आंटी मेरी आंखों में देखती हुई अपने हाथ में अपनी स्लीपर लेकर मुझसे वाइन चटवाती रहीं. खतम होने पर उन्होंने और थोड़ी से उसके पंजे पर डाली और फ़िर मेरे मुंह के पास ले आयीं. मैं फ़िर चाटने लगा. एक मिनिट के बाद उन्होंने वह स्लीपर मेरे ही हाथ में पकड़ा दी "अब तू ही पकड़ अपनी डिश, मुझे भी वाइन टेस्ट करने का एक आइडिया सूझा है. तुझे मालूम है - मुझे भी कभी कभी वाइन चाटने में मजा आता है? याने किसी डेलिकेसी पर जैसे फ़्रेन्च टोस्ट या मालपुआ, उसपर वाइन लेकर चाटने में काफ़ी मजा आता है. अब मैं भी अभी ऐसे ही वाइन टेस्ट करूंगी, तेरे इस ज्यूसी बनाना पर. चल आ, लेट इधर"

उन्होंने अपने ग्लास से थोड़ी सी वाइन मेरे लंड पर डाल दी, फ़िर उसे चाटने लगीं. कुछ वाइन नीचे पेट पर बह आयी थी, उसे भी उन्होंने चाट लिया.

एक दो बार इसे रिपीट करने के बाद उन्होंने मेरे हाथ से अपनी स्लीपर ले ली और कहा ’मुंह खोल" मुझे समझ में नहीं आया कि ये अब क्या करने वाली हैं, वाइन तो खतम हो गयी, मैंने चाट ली, पर उनके स्वर में वासना भरा एक आदेश था जिसे न मानना मेरे बस में नहीं था. मैंने मुंह खोला तो लता आंटी ने अपनी स्लीपर का पंजा मेरे मुंह में ठूंस दिया. कोई एक्स्प्लेनेशन नहीं, बस यह गुमान कि मैं जो करूं, उसे चुपचाप करवा ले. तब तक मेरा लंड एकदम टनटना गया था. बिना कुछ बोले वे मेरे ऊपर चढ़ीं और चोदने लगीं.

यह बड़ी डिलिशस क्विकी थी. उनकी उस स्लीपर को मुंह में लेकर मेरा लंड ऐसा तना था जैसे रोटी बेलने का बेलन. आंटी ने भी मन भर कर चोदा मुझे और जब तक खुद नहीं झड़ गयीं, वह स्लीपर मेरे मुंह में ही रहने दी. शायद अपने गुलाम का मुंह बंद करके उसे चोदने का यह एक तरीका था.

उसके बाद उस रात भी हमने बहुत कुछ किया जो डीटेल में बताने की जरूरत नहीं है, ये दो तीन घटनायें इसकी परिचायक हैं कि लता आंटी का दिमाग किस कदर सेक्सी और थोड़े हट कर - परवर्टेड - भी कह सकते हैं, मार्गों पर चलता था. तब तक मैं इनको बड़ी लाइटली ले रहा था, मजेदार हरामीपन भरे हुए करम ही थे तो ये, और कुछ नहीं. मुझे यह अंदाजा नहीं था कि ये सब मतवाले खेल बस खेल खेल में कभी करने के लिये हैं या आगे ये बढ़ते जायेंगे? दूसरे दिन नीलिमा का फोन आने के बाद और एक दो चीजें देखने के बाद इस बारे में मेरे मन में सैकड़ों प्रश्न खड़े हो गये.
 
नीलिमा का फोन दो दिन बाद शाम को आया जब मैं घर आ गया था. लता आंटी का फोन आया था कि आज उनके यहां सीनियर मैनेजमेंट की अचानक एक इंपॉर्टेंट मीटिंग फ़िक्स हो गयी है इसलिये जरा देरी से नौ बजे आयेंगी "एन्ड बी ए गुड बॉय इन माई एब्सेंस" आखिर में हंस कर वे बोलीं.

नीलिमा का फोन आया, तब नीलिमा और चाची एयरपोर्ट के लिये निकल रही थीं. पहले चाची से बात की, उनको फ़िर से बाइ कहा, उन्होंने लता आंटी के साथ क्या हुआ, यह पूछा भी नहीं, या तो उन्हें कॉन्फ़िडेंस था या फ़िर लता आंटी से सीधी हॉट लाइन थी. फ़िर नीलिमा से बातें की. नीलिमा ने बस ’कैसा हे रे तू, सब ठीक है ना, अकेला बोर तो नहीं होता ...’ वाले टाइम पास तरीके में बातें करना शुरू कर दीं. मैं समझ गया, चाची सुन रही होंगी इसलिये वह साफ़ नहीं बोलना चाहती थी. बातें करते करते अचानक उसका सुर बदल गया. एक्साइटेड स्वर में उसने धीरे से कहा "चाची बाथरूम गयी हैं इसलिये जरा जल्दी में एक चीज पूछती हूं. लड़का देखने का प्रोग्राम कैसा हुआ?"

मैंने चकरा कर कहा "लड़का देखने का प्रोग्राम? कौन सा? और किसका?"

"तेरा मूरख नाथ! तू लड़का है और लड़की की गार्जियन ने तुझे अब तक ठीक से ठोक बजाकर जांच पड़ताल लिया होगा. दो रातें मिली हैं अब तक उन्हें इसके लिये. अभी भी नहीं समझे क्या उल्लू कहीं के!"

मैं समझ गया "भाभी, रातें तो बहुत नशीली थीं, चाची का कैसे शुक्रिया अदा करूं ये समझ में नहीं आता, पर ये लड़के वाली बात ..."

"अरे अब तेरी शादी की बातें कर रही हैं दोनों मिलकर आपस में; लता आंटी और ममी. लड़का तो लता आंटी ने देख लिया. लड़की देखने का प्रोग्राम भी हो गया है"

मैंने कहा "समझ गया, चाची आज कल में मुंबई में दीपिका से मिलने वाली थीं. शायद आज मिल ली होंगीं"

"अरे यार भोलेनाथ... तुझे क्या कहूं अब ... ऐसा सूखा सूखा प्रोग्राम नहीं. कल ममी - तेरी चाची दीपिका के साथ थीं रात भर. उसे यहीं होटल पर बुला लिया था. मेरी यहां की एक मौसी है, उसने बहुत आग्रह किया तो कल रात मैं उसके यहां चली गयी थी. चाची और दीपिका अकेली थीं रात भर हमारे होटल रूम में. खूब मन लगाकर लड़की देखने का प्रोग्राम हुआ होगा. सुबह दीपिका एकदम खुश थी, ममी भी खुश थीं पर बहुत थकी हुई लग रही थीं, बेचारी ममी को बड़ी मेहनत करनी पड़ी होगी लड़की ठीक से देखने के लिये. या दीपिका ने अपनी होने वाली सास की जरा ज्यादा ही सेवा कर दी होगी! मैं रात को रुकती तो शायद मैं भी लड़की देख लेती ठीक से, पर क्या करूं, ये रिश्ते भी तो निभाना पड़ते हैं, मौसी के यहां नहीं जाती तो वो बुरा मान जाती."

मैं कुछ बोला नहीं, बस नीलिमा ने जो बताया, वो डाइजेस्ट कर रहा था. नीलिमा आगे बोली "अब क्या, तेरे वारे न्यारे हैं. गोआ में तेरी मन पसंद चाची, चाची के अलावा एक अदद सेक्सी बीवी और उससे भी ज्यादा सेक्सी एक अदद सास ....दोनों आंटियां बहू बेटे से ... बेटी जमाई से खुश और मियां बीवी अपनी सासों से खुश और दोनों सासें भी आपस में पक्की सहेलियां, बस आनन्द ही आनन्द . .... अब बंद करती हूं ये बात, ममी आ गयीं ... हां तो विनय, रात को दो बजे है फ़्लाइट, अब बातें करेंगे सीधे पहुंचने के बाद "

फोन बंद किया तो मेरा दिमाग सुन्न सा हो गया था. क्या क्या चल रहा था मेरी पीठ पीछे. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मेरे लिये ये खुशी की बात है या नहीं. अब दीपिका सुन्दर और सेक्सी होगी पर क्या मैं उसे बिना मिले बिना समझे उससे शादी करना चाहता था? क्या बाकी मामलों में वह वैसी थी जैसा मैं अपनी पत्नी को चाहता था? और उसको भी जैसा पति चाहिये था, वैसा क्या मैं था? अभी तो यह हो रहा था कि स्नेहल चाची और लता आंटी मिलकर गुड्डे गुड़िया का एडल्ट खेल खेल रहे थे. याने यह सब मजा मस्ती जो चल रही थी, बहुत मादक थी पर क्या इसे सारे जीवन तक सहा जा सकता था.

सोचते हुए चलते चलते कैसे मेरे कदम आंटी के कमरे की ओर मुड़ गये, पता ही नहीं चला. दरवाजे पर एक मिनिट रुका और फ़िर अंदर चला गया. फ़िर वैसे ही उनकी अलमारी की ओर चल दिया, अलमारी खोली, ऐसा करना नहीं चाहिये था पर आज मौका भी था और जरा दिमाग भी चकराया हुआ था. कुछ करूंगा तो कम से कम ज्यादा सोचने से बच जाऊंगा, यह सोच कर मैं लता आंटी की चीजें देखने लगा. पहले से उनके बारे में कुतूहल तो था ही, आज मौका भी था. कपड़े और खूबसूरत ड्रेसेस देखे, ड्रावर खोला तो उसमें उनकी सब ब्रा और पैंटी थीं, एक से एक लेस वाली, अंडरवायर, स्ट्रैपलेस - सब तरह की. दिल तो हुआ कि सबको हाथ में ले लेकर देखूं पर फ़िर सोचा आंटी को पता चल जायेगा कि कोई इनको डिस्टर्ब करके गया है. और मुझे जरूरत भी क्या थी यह सब करने की, आंटी खुद ही वे सब पहन पहन कर मुझे दिखायेंगी ये पक्का था. और सच बात यह भी थी कि अभी बहुत मूड नहीं था. दिमाग थोड़ा घूमा हुआ था. खास कर इस तरह लड़का लड़की देखने की क्रिया से मुझे जरा धक्का ही पहुंचा था.

मेरे सुप्त मन में यह भी था कि सेक्स की भी और कुछ चीजें, टॉयज़ वगैरह होंगे आंटी के पास. यह मेरे मन में कब से चल रहा था कि जब नीलिमा के पास बटरफ़्लाइ हो सकती थी और चाची ने खुद बताया था कि उनके पास एक वाइब्रेटर था तो फ़िर लता आंटी के पास भी कुछ न कुछ तो होगा.

पर कुछ मिला नहीं, मुझे थोड़ी निराशा हुई. पर फ़िर अपने आप मेरे कदम उस खाली पड़े बेडरूम की ओर मुड़ गये. उसे सब केवल एक स्टोर रूम की तरह इस्तेमाल करते थे. क्या यहां बाइ चांस कुछ हो सकता है!

वहां जाकर कमरे में तो कुछ नहीं दिखा. मैंने अलमारी खोली. नीचे के दराज में वही बड़ा कार्डबोर्ड का बॉक्स रखा था जो कुछ दिन पहले लता आंटी लाई थीं चाची के लिये. मैंने बॉक्स धीरे धीरे खोलना शुरू किया, बिना टेप फाड़े उनको धीरे धीरे निकाला कि बाद में फ़िर से वैसे ही टेप लगा कर रख दूं. अंदर दो हाइ हील सैंडल और दो स्लीपर थीं, एकदम खूबसूरत और नाजुक, एकदम सेक्सी, इम्पोर्टेड लग रही थीं. नाप देखा तो सिक्स नंबर था. याने चाची के नाप के थे, शायद उन्हीं के लिये लाई थीं लता आंटी. मुझे अजीब सी गुदगुदी हुई कि अब मेरी चाची भी इनको पहनेगी. बाहर पहनने का तो सवाल ही नहीं था, शायद यहीं घर के लिये थीं स्पेशल अकेज़न के लिये. और क्या चाची ने इन्हें इस लिये बुलवाया था कि उनको मेरे शौक का अंदाजा हो गया था!

मैंने बॉक्स में और इधर उधर देखा. नीचे टटोला तो दो किताबें सी हाथ को लगीं. एक वही वाली मेगेज़ीन थी, तीन औरत और एक लड़के वाली. दूसरी मेगेज़ीन खोली तो सेक्स टॉयज़ का केटेलॉग था. मैं पलटने लगा. क्या क्या चीजें थीं, कंडोम, लुब्रिकेंट, ऐनल रिंग, पेनिस रिंग, डिल्डो, व्हाइब्रेटर, रबर की आदम साइज़ गुड़ियां, बेड़ियां, कोड़े और न जाने क्या क्या.

जल्दी जल्दी पूरी मेगेज़ीन देखी तो एक जगह टिक लगी थी, डिल्डो पर. फ़िर से सब पन्ने पलटे तो कई जगह टिक लगी थी जैसे किसी ने सेलेक्ट किये हों.

दो वाइब्रेटर वाले डिल्डो थे, एक बड़ा और एक छोटा. दो स्ट्रैप ऑन डिल्डो थे, एक बड़ा और एक छोटा. साथ में रबड़ और प्लास्टिक की बेड़ियां - हाथ पैर बांधने के लिये, मुंह में फंसाने वाला एक गैग, याने लाल कलर की बॉल सी होती है और उसमें पट्टा होता है कि किसी को चीखने चिल्लाने से रोकना हो तो. एक रबड़ का कोड़ा था, और दो पैडल थे, जिनका यू स्पैन्किंग के लिये किया जाता है. क्या ये सब खरीदने वाला था कोई? और कौन?

मैंने चुपचाप वे सब मेगेज़ीन और सैंडल वापस रखीं और बॉक्स ठीक से बंद किया. उसे अपनी जगह रख कर कमरे से वापस आया. छह बजे थे. अभी आंटी को आने में तीन घंटे थे. फ़्रिज में एक बीयर की बॉटल पड़ी थी बहुत दिन से, उसे खोला और हाथ में जाम लेकर बैठ गया. दिमाग काम नहीं कर रहा था. नीलिमा का फोन, लड़का लड़की देखने वाली बातें, और वे तरह तरह की चीजें जो उस अलमारी में मुझे मिली थीं. एक एक करके मेरे दिमाग में वे घूमने लगे, जैसे किसी पज़ल के टुकड़े हों.

मेरा और चाची का वह समाज की दृष्टि से अवैध और वर्ज्य संबंध .... चाची और अरुण का भी वैसा ही बल्कि और अधिक वर्ज्य संबंध ... फ़िर भी अरुण का परदेश में नौकरी पकड़ना - मां के साथ इतने मादक यौन संबंध को छोड़कर जाना बड़ी बात थी .... चाची और लता आंटी का वह अनोखा संबंध .... लता आंटी और दीपिका का वह टाबू संबंध ... लता आंटी की अपनी भांजी के लिये लड़का देखने की प्रक्रिया - दो रात जांच पड़ताल कर ... मेरे लिये लड़की देखने के चाची के प्रयास ... रात भर दीपिका के साथ सेक्स करके? वे औजार और उपकरण, बीडीएस एम सेक्स वाले टॉयज़ का वह केटेलॉग ... और वह मेगेज़ीन, उसमें की तीन औरतें और उनका वह जवान गुलाम लड़का.

फ़िर कुछ घटनायें याद में आने लगीं. आधी सुनी अस्पष्ट बातें दिमाग में फ़िर घूमने लगीं जैसे कोई उनकी टेप बजा रहा हो. चाची और लता आंटी की बातें ... जब वे बाहर कार के पास खड़ी होकर बोल रही थीं

बिना मुझसे सीरियसली बोले और बिना मेरी परमिशन के मेरी शादी दीपिका से फिक्स कर देने की यह कोशिश, आखिर क्यों? चार लोगों का परिवार बनाने के लिये? तीन औरतें और एक लड़का! शायद बेचारी दीपिका को भी इस बारे में ज्यादा कुछ न पता हो? या हो सकता है पता हो और उसे ऐसा ही गुलाम बनाकर रखने के लिये पति चाहिये हो - ककोल्ड!

बहुत देर मैं सोचता रहा और अब भी सोच रहा हूं पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा हूं. क्या ये टुकड़े मिलकर कोई पज़ल बनता है? या सब सिर्फ़ आपस में न जुड़ी हुई रैंडम घटनायें हैं! और क्या मैं ज्यादा सोच रहा हूं, बिन बात का बतंगड़ बना रहा हूं, एक और एक को दो के बजाय ग्यारह गिन रहा हूं?

क्या यही है मेरे भविष्य में? या ये सब केवल कोइन्सिडेन्स हैं, असल में ऐसा कुछ नहीं होगा! अगर हुआ तो क्या इससे बचने का कोई तरीका है? और सबसे बड़ी समस्या कि मैं क्या सच में बचना चाहता हूं या अपने आप को बलि का बकरा बना कर हमेशा के लिये इस मादक स्नेहजाल जो शायद आगे वासनाजाल बन जाये, उसमें फंस जाना चाहता हूं?

अभी भी सोच रहा हूं पर उत्तर नहीं मिला है. और तब तक यह मायाजाल मेरे इर्द गिर्द कसता जा रहा है, मुझे नहीं लगता कि मुझमें इतनी शक्ति है कि लता आंटी जैसी खूबसूरत जादूगरनी की इस मधुर गिरफ़्त से मैं अपने आप को छुड़ा पाऊंगा.

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