Hindi Chudai Kahani हमारा छोटा सा परिवार - Page 8 - SexBaba
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Hindi Chudai Kahani हमारा छोटा सा परिवार

ऋतु मौसी की साँसें वासना के अतिरेक से क्लांत और घर्षणी हो गयीं थीं। उनका पसीने से भीगा चेहरा और शरीर उनकी मादक सुंदरता को चार नहीं दस चाँद लगा रहा था। 

छः 'पुरुषों' की छोटी सी सलाहमंडली के बाद ऋतु मौसी के लतमर्दन का आखिरी अध्याय शुरू हो गया। 

राज मौसा ने थकी पर फिर भी वासना से जलती अतोषणीय अतृप्य ऋतु मौसी को पीठ पर लेते अपने पिता के उन्नत उद्दंड विशाल लंड के ऊपर स्थिर कर उनकी चूत को तब तक उनके लंड के ऊपर दबाया जब तक उनके भीतर नाना का पूरा लंड उनकी चूत में नहीं समा गया। 

राज मौसा ने अपनी बहन के फूले-फूले गोल नीतिम्बों को उठा कर अपना लंड भी अपने पिता के लंड के साथ लगा कर अपनी बहन की चूत में ठूसने के लिए तैयार हो गए। 

"नहीं, भैया नहीं। डैडी और आप दोनों इकट्ठे मेरी चूत में नहीं समा पायेंगें।/आप दोनों के मोटे लंड मेरी चूत फाड़ देंगें। " 

ऋतू मौसी अपने भाई और पिता का उद्देश्य समझ कर बिलबिला उठीं। पर उनके पिता ने अपनी विशाल बलहाली बाँहों में अपनी बेटी को जकड कर उनको उनके भाई के लंड के लिए स्थिर कर दिया। 

राज मौसा ने निर्मम झटके से अपने सेब जैसे मोटे सुपाड़े को अपनी बहन की पहले से ही मोटे लंड से भरी चूत में किसी न किसी तरह से घुसेड़ दिया। 

"नहीं ई ई ई ई ई! हाय रे मैं तो मर गयी, भैया।" ऋतु मौसी दर्द से बिखल उठीं। 

"चाहे चीखो और चिल्लाओ पर रंडी की तरह हर तरह से लंड तो तुम्हें लेना ही पड़ेगा," राज मौसा ने दांत कास कर और भी ज़ोर लगाया। उनका विशाल लंड इंच - इंच कर उनकी बहन की चूत में प्रवेश होने लगा। उनकी बहन की चूत पहले ही उनके पिता के विकराल लंड की मूसल जैसी मोटाई के ऊपर अश्लील तरीके से फ़ैली हुई थी। 

ऋतु मौसी की सिस्कारियां और चीखें उनके भाई को और भी उत्साहित कर रहीं थीं। जैसे हही राज मौसा ने अपने अमानवियरूप से मोटे लम्बे लंड आखिरी तीन मोटी इंचे एक झटके से अपनी बहन की चूत में दाल दीं वैसे ही ऋतू मौसी पीड़ादायी आनंद और आनंददायी पीड़ा से बिलबिलाती हुई अनर्गल बोलने लगीं ,"डैडी! भैया फाड़ डालो मेरी चूत। मेरे दर्द के कोई परवाह मत करो। मेरे चूत में मेरे भाई और डैडी के लंड इकट्ठे लेने का तो सपना भी नहीं देखा था मैंने। मेरे तो खुल गए। अब चोद डालिये मेरी फटी चूत को। उउउउन्न्न्न आआन्नन्नन्न हहहआआ माँ मेरी ई ई ई ई। "

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ऋतु मौसी अपनी चूत के दोहरे-भेदन के दर्द भरे आनन्द के अतिरेक से कसमसा उठीं। धीरे-धीरे नाना और राज मौसा के लंड एक साथ ऋतु मौसी की चूत में अंदर-बाहर होने लगे। 

हमारी तो आँखे फट पड़ीं , इस आश्चर्यजनक दृश्य को देख कर। जब हमने दो वृहत लंडों को उनकी चूत को पूरे लम्बाई से चोदते हुए देखा तो हमारा अविश्विश्नीय आश्चर्य भौचक्केपन में बदल गया। स्त्री का लचीलापन,वात्सल्य 
, प्रेम और सम्भोग-इच्छा अथाह है। ऋतु मौसी स्त्री की इस शक्ति को सजीवता से चरितार्थ कर रहीं थीं। 

बड़े मामा ने अपना लंड सुबकती सिसकती ऋतु मौसी के खुले मुँह में ठूंस दिया। गंगा बाबा और बड़े मामा उनके विशाल थिरकते उरोज़ों को मसलने और मडोड़ने लगे। 


संजू ने मौका देख कर निम्बलता दिखाते हुए राज मौसा के सामने ऋतु मौसी के ऊपर घुड़सवार की तरह चढ़ कर अपने गोरे चिकने पर मोटे लम्बे लंड को नीचे मड़ोड़ कर अपने सुपाड़े को ऋतु मौसी की गांड के ऊपर लगा दिया। 

यदि बड़े मामा का लंड ऋतु मौसी के मुंह में नहीं ठूंसा होता तो वो ज़रूर चीख कर बिलबिलातीं। संजू ने ज़ोर लगा कर तीन चार धक्कों से अपना लंड अपनी प्यारी मौसी की गांड में धकेल दिया। 

अब ऋतु मौसी तिहरे-भेदन के आनंद-दर्द से मचल गयीं। 

तीन लंड उनकी चूत और गांड का मंथन तीव्र शक्तिशाली धक्कों से कर रहे थे। बड़े मामा और गंगा बाबा उनके मुंह को मिल जुल कर अपने लंड से भोग रहे थे। 

ऋतू मौसी के चुदाई की चोटी और भी उन्नत हो चली। 

ऋतु मौसी चरमानन्द की कोई सीमा नहीं थी। उनकी रति-निष्पति अविरत हो रही थी। 

पहले की तरह इस बार भी ऋतु मौसी के शरीर का भोग तुक-बंदी [टैग] के अनुरूप ही हो रहा था। 

संजू ने अपना मोहक अविकसित अपनी मौसी के मलाशय के रस से लिप्त लंड को उनके मुंह में ठूंस दिया। बड़े मामा और सुरेश चाचा ने ऋतु मौसी की चूत अपने लंडों से भर दी। गंगा बाबा ने अपना विकराल लंड उनकी गांड में ठूंस दिया। 

एक बार फिर रस-रंग की महक और संगीत के लहर हाल के वातावरण में समा गयी। 

ऋतू मौसी के तिहरे-भेदन की चुदाई के लय बन गयी। जो भी लंड को उनकी मादक मोहक महक से भरी गांड को चोदने का सौभाग्य पता था उसे उनके गरम लार से भरे मुंह का सौभाग्य भी प्राप्त होता। ऋतु मौसी सिसक सुबक रहीं थीं पर वो अपने गांड से निकले गांड के रस से चमकते लंड को नादिदेपन से चूस चाट कर अपने थूक से नहला देतीं। 

इधर मीनू आखिर में जमुना दीदी के मर्द को भी शर्माने वाले सम्भोग से थक कर अनेकों बार झाड़ कर लगभग बेहोश हो गयी। जमुना दीदी ने चार पांच अस्थि-पंजर धक्कों से अपने को एक बार फिर झाड़ लिया और मीनू को मुक्त कर दिया। वो परमानन्द से अभिभूत अश्चेत हो गयी। 

मैं भी अब बेसुधी के कगार पर थी। नम्रता चाची का नकली लंड मेरी गांड को बुरी तरह से मथने के बाद भी मेरी गांड मार रहा था। नम्रता चाची एक बार फिर से झाड़ गयीं और मैं भी सुबक कर नए ताज़े चरमानन्द के के मादक पर बेसुध करने में शक्षम प्रभाव से निसंकोच सिसकते हुए फ्रेश पर ढलक कर बेहोशी के आगोश में समा गयी। मुझे पता भी नहीं चला कि कब नम्रता चाची ने मेरी गांड में से अपना नकली रबड़ का मोटा लंड निकाल कर उसे प्यार से चाट कर साफ़ करले लगीं। 

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ऋतू मौसी अब थकी-मांदी फर्श पर अपने नीतिम्बों पर बैठीं थीं। छः मर्द अब अपने आनंद के लिए झड़ने को उत्सुक थे। 

संजू ने अपने गरम वीर्य से अपने मौसी के खुले मुंह को नहला दिया। उसकी कमसिन वीर्य की धार ने ऋतु मौसी के मुंह को तो भर ही दिया पर उनके दोनों नथुनों में भी उसका गरम वीर्य भर गया। संजू के वीरू की फौवार उनके माथे पर और आँखों में भी चली गयी। 

गंगा बाबा ने ऋतु मौसी का सर पकड़ कर स्थिर कर लिया। उनके बड़े मूत्र-छिद्र से लपक कर निकली वीर्य की बौछार ने ऋतू मौसी के मुंह को जननक्षम मीठे-नमकीन वीर्य से भरने के बाद उनके नथुनो में और भी वीर्य दाल दिया। गंगा बाबा ने ऋतु मौसी की दोनों आँखों को खोल कर उनमे अपना वीर्य का मरहम लगा दिया। 

बड़े मामा भी पीछे नहीं रहे। हर बार ऋतु मौसी को मुंह भर गरम वीर्य पीने को मिलता और उनका सुंदर मुंह अब पूरा वीर्य के गाड़े रस से ढका हुआ था। 

बड़े मामा की तरह नाना और राज मौसा ने ऋतु मौसी का मुंह, आँखे और नथुने अपने वीर्य से भर दिए। 

सुरेश चाचा का गाड़ा वीर्य ने ऋतु मौसी को और भी निहाल कर दिया। उनके फड़कते उरोज़ भी वीर्य से ढक चले थे। 

ऋतु मौसी वीर्य के स्नान के आनंद से एक बार फिर झाड़ गयीं। 

उन्होंने उंगली से सारा वीर्य इकठ्ठा कर अपने मुंह में भर लिया। ऋतु मौसी ने बड़ी सावधानी से वीर्य की एक बूँद भी बर्बाद नहीं होने दी। 

उनके दोनों नथुने वीर्य से भरे हुए थे और उनकी गहरी सांसों से उनके दोनों नथुनों में बुलबुले उठ जाते थे। 

ऋतु मौसी अब छः पुरुषों के आखिरी उपहार के लिए मचल रहीं थीं । 

सब मर्दों ने अपने मूत्र की बारिश एक साथ शुरू कर दी। ऋतु मौसी सब तरफ घूम घूम कर गरम नमकीन मूत से अपना मुंह भर लेतीं और जल्दी से उसे सटक कर दुबारा तैयार हो जातीं। 

ऋतु मौसी छः पुरुषों के पेशाब के स्नान से सराबोर हो गयीं। उन्होंने अनेकों बार अपना मुंह गरम पेशाब से भर कर उसे लालचीपन से निगल लिया। 

ऋतु मौसी इतनी मादक हो गयीं थीं कि गरम मूत्र के स्नान मात्र से ही उनका रति-विसर्जन हो गया। 

ऋतु मौसी एक हल्की चीख मर कर निश्चेत बेसुध अवस्था में फर्श पर लुड़क गयीं। 

जैसी ही छः गर्व से भरे संतुष्ट पुरुष मदिरा पैन के लिए अगर्सर हुए वैसे ही नम्रता चाची और जमुना दीदी ने लपक कर ऋतु मौसी के शरीर को चाटना शुरू कर दिया। 

दोनों बचे-कुचे वीर्य और उनके गरम मूत्र के लिए बेताब थीं। 
 
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धीरे धीरे नहा धो कर खाने और लिए इकट्ठे हो गए हो गए। ऋतु मौसी का चेहरा उन्मत्त मतवाली चुदाई और भी निखार आया था। कोइ भी स्त्री ऐसे दीवाने सम्भोग दमक उठेगी। ऋतु मौसी तो वैसे ही इंद्रप्रस्थ सुंदरता से समृद्ध थीं। रात का भोजन बहुत देर तक चला। उदर के नीचे की क्षुधा शांत हो तो उदर की क्षुदा उभर आती है। रात को नम्रता चाची ने संजू और बड़े मामा के साथ हमबिस्तर होने का दिया। जमुना दीदी को मनोहर नानाजी ने अपने लिए जब्त कर लिया। राज मौसा ने मेरे हमबिस्तर होने के लिए मेरा लिया। चाचा ने पहले से ही अपनी बेटी को रात के लिए हथिया लिया था। ऋतु मौसी चाहते हुए भी जानती थी कि उन्हें आराम की आवशयक्ता थी। रात को देर तक चलचित्र देख कर होले होले सब रवाना हो गए। रात की रानी की सुगंध आधे मुस्कराते चद्रमा की चांदनी से मिल कर अदबुध वातावरण बना रही थी। उसमे मिली हल्की धीमी कामक्षुधा की सिस्कारियां रात्रि की माया को परिपूर्ण कर रहीं थी। प्यार और वासना का इतना मोहक और निश्छल मिश्रण बिना किसी ईर्ष्या डाह और संदेह के शायद सिर्फ पारिवारिक प्रेम में ही सम्भव हो सकता है। मैंने इस विचार को थाम कर राज मौसा से कास कर लिपट गयी। उनका उन्नत अतृप्य वृहत लिंग मुझे भोगने के लिए तैयार था। ****************************************************************** देर सुबह के बाद सब लोग अपने-अपने गंतव्य स्थान के लिए रवाना होने के लिए तैयार हो गए। "जमुना जब मैं तुमसे अगली बार मिलूं तो तुम्हारा पेट बाहर निलका होना चाहिए। गंगा बाबा आप सुन रहे हैं ना ?" ऋतु मौसी ने नम्रता चाची के बाद फिर से जमुना दीदी और गंगा बाबा को परिवार बढ़ाने के लिए उकसाया। "ऋतु मौसी आप को भी तो ऐसा ही निर्णय लेने की हिचक है। क्या मैं गलत हूँ ?" मैंने उनके सीमा-विहीन अपने भाई के प्यार को व्यस्त होते देख कर कहा। " अरे नेहा बेटी हम सब तो कह कह कर थक गए। आज के ज़माने में शादी शुदा होना कोई ज़रूरी थोड़े ही है। मुझे तो और नाती-पोते चाहियें। ऋतु और राज मान जाएँ तो मुझे दोनों मिल जायेंगें। " मनोहर नाना ने भी टांग लगा दी। सब लोग चारों को घेर कर उन्हें समझाने लगे। आखिरकार जमुना डीड एयर गंगा बाबा ने अपने अगम्यागमनात्मक प्रेम को और भी परवान चढाने के लिए राज़ी हो गए। ऋतु मौसी को राज मौसा ने प्यार से चूम कर उनके निर्णय की घोषणा कर दी। बड़े मामा और मैं भी सबको विदा कर घर के लिए रवाना हो गए। ***************************************************************** रास्ते में बड़े मामा ने मुझे बीते दिनों की याद दिला कर चिड़ाया। उन्होंने मेरे कौमार्यभंग [दोनों बार यानी, चूत और गांड ] समय मेरे रोने चीखने के नक़ल उतार कर मेरे सिसकने और 'ज़ोर से चोदिये ' की पुकार की नाटकीय नक़ल कर मुझे शर्म से लाल कर दिया। बड़े मामा ने मेरे शर्म से लाल मुँह को देख कर प्यार से कहा, "शरमाते हुए तो नेहा बेटी आप और भी सुंदर लगते हो। मन करता है यहीं गाड़ी रोक कर आपको को रोंद कर चोद दूं। " मैं तो यही चाह रही थी, "बड़े मामा आप किस चीज़ का इंतज़ार कर रहें हैं? घर पहुँच कर हमें बहुत अवसर तो नहीं मिलेंगे। " मेरे दिल की बात मुंह से निकल ही गयी। बड़े मामा ने अवसर देख कर गाड़ी एक बड़े घने पेड़ों से घिरे घेत में मोड़ दी। हम दोनों बैटन से ही वासना के ज्वर से ग्रस्त हो चले थे।
 
बड़े मामा ने मुझे गाड़ी के ऊपर झुकस कर कर मेरी सलवार के नाड़े को खोल दिया। बड़े मामा ने ममेरे सफ़ेद मुलायम सूती झाँगिये को नीचे खींच कर मेरे गदराये चूतड़ों को नंगा कर के मेरी गीली चूत में दो उँगलियाँ घुसा दीं। मेरे मुंह से वासना भरी सिसकारी निकल उठी।
बड़े मामा ने बेसब्री से अपना वृहत लोहे के खम्बे जैसे सख्त लंड को मेरी चूत के द्वार के भीतर धकेल दिया। 

मैं दर्द और आनंद के मिश्रण से बिलबिला उठी। बड़े मामा ने मेरी कमर को कास कर जकड लिया और तीन जानलेवा धक्कों से अपमा दानवीय लंड मेरी कमसिन चूत में जड़ तक ढूंस दिया। 

"हाय बड़े मामा थोड़ा धीरे से चोदिये," पर मैं तब तक समझ चुकी थी कि पुरुष के बेसबरी से चोदने के दर्द में भी बहुत आनंद मिला हुआ था। 

बड़े मामा खूंखार धक्कों से मेरी चूत का मरदन एक बार फिर से करने लगे। मेरी दर्द की सिस्कारियां वासना से लिप्त रति-निष्पति की घोषणा करते हुए कराहटों में बदल गयीं। 

बड़े मामा का भीमकाय लंड पच-पच की आवाज़ें करता हुआ मेरी रति रस से भरी चूत इंजन के पिस्टन की तरह अंदर-बाहर आ जा रहा था। 

मैं कुछ ही क्षणों में फिर से झड़ गयी। अगले घंटे तक न जाने कितनी बार मेरी चूत बड़े मामा के मूसल लंड से चुदते हुए झड़ी। जब बड़े मामा के लंड ने मेरी बिलबिलाती चूत में अपना गाढ़ा जननक्षम से भर दिया। 

हम दोनों कुछ देर तक एक दुसरे से लिपटे रहे। मैंने बड़े मामा के लंड को छोस कर उनके वीर्य और अपने योनि के सत्व का रसास्वादन बड़े प्रेम से किया। 

बड़े मामा ने मुझे आराम से गाड़ी में बिठा कर फिर से घर की ओर चल दिए। 

दो घंटे बाद अगला पड़ाव उसी ढाबे पर था जिस पर हम पहली बार रुके थे। 

मैंने फिर से अपना प्रिय खाना मांगा। ढाबे के मालिक ने मुझे पहचान कर खुद उठ कर हमें कहना परोसा , " बिटिया थोड़ी थकी सी लग रही है। यदि आप चाहें तो पीछे के कमरे में आराम कर सकते हैं। हम उन कमरों को थके दूर तक सफ़र करते लोगों के लिए ही इस्तेमाल करते हैं। "


बड़े मामा ने मुस्कराते हुआ कहा , 'बहुत धन्यवाद। आप सही कह रहें हैं। बिटिया को थोड़ा आराम चाहिए। "

ढाबे के मालिक के जाने के बाद बड़े मामा ने मुझे घूरते हुए कहा , "और हमें मालुम हैं कि बिटिया को कैसे आराम दिया जाता है। "

मैं शर्म से लाला हो फाई और फुसफुसा कर बोली , "आप बाहर शरारती हैं बड़े मामा। क्या पता उन कमरों में कितना एकांत और गोपनीयता होगी। "

"यदि ऐसा नहीं होगा तो आपको बिना चीखे चुदना पड़ेगा," बड़े मामा ने मुझे चिड़ाया। 

कमरा ढाबे से कुछ दूर था और दालान से घिरा हुआ था। बड़े मामा को पूरे गोपनीयता मिल गयी और मेरी चूत और गांड की खैर नहीं थी. बड़े मामा ने दो घंटों तक मेरी छूट और गांड का बेदर्दी से मरदन किया। मेरी वासनऩयी घुटी चीखें और सिस्कारियों ने उस कमरे को सराबोर कर दिया। 

बिचारे ढाबे के मालक को क्या पता कि बड़े मामा ने 'बिचारी बिटिया' को आराम करने के बजाय और भी थका दिया था। पर मुझे बड़े मामा के लंड के सिवाय कुछ और खय्याल भी दिमाग में नहीं आता था। 

हम दोनों घर देर शाम से पहुंचे। 

रात के खाने पे मेरी बहुत खींचाई हुई। कई बार मेरे दोषी ह्रदय को ऐसा लगा कि सब घर वाले मेरे और बड़े मामा के अगम्यागमन रति-विलास के बारे में जानते थे। 

"तो बताइये रवि भैया," बुआ ने मुस्कराते हुए पूछा , "तो आपने मछली फाँस ली या नहीं?"
 
बड़े मामा ने अपनी अपनी बहु के ओर देखा ,"सुशी, क्या सोचतीं है आप। क्या आपको लगता है हमें अब मझली फांसने की निपुणता नहीं रही ?"

"हमें क्या पता। आप ने ने हमें तो बहुत दिनों से मझली फ़साने की दक्षता नहीं दिखाई। " सुशी बुआ ने हँसते हुए बड़े मामा को चिड़ाया। 

मम्मी भी अपनी भाभी से मिल गयीं , "भाभी आपको तो क्या रवि भीआय ने अपनी छोटी बहिन को भी भुला दिया है। "

मैं एक चेहरे से दुसरे चेहरे को देख रही थी। 

सुशी बुआ ने मुझे भी नहीं बख्शा , "अब नेहा के छोटे मामा की बारी है शिकार पर जाने की ? नहीं नेहा ? नहीं विक्कू ?"

छोटे मामा हंस दिए , "भाई हम तो तैयार हैं जब नेहा बेटी का मन हो हम शिक्कर की तैयारी कर देंगें। "

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं इस वार्तालाप में स्पर्श रूप से व्यवहार करूं या फिर सब लोगों को बड़े मामा और मेरे रति-विलास के बारे में पता चल गया था। यदि ऐसा भी था तो कम से कम कोई भी नाराज़ नहीं लग रहा था। मैंने निश्चय किया कि जितना कम बोलो उतना ही अच्छा है। 

खाने के बाद मुझे बहुत नींद आ रही थी। आखिर के कुछ दिनों और उस दिन के सम्भोग की थकान अब मुझ पर भारी हो चली थी। 

नानाजी ने मुझे प्यार से अपनी गोद में बिठा लिया। 

ना जाने कब मुझे मेरे परिवार की नोक-झोंक सुनते हुए नींद आ गयी। 

जब मैं उठी तो देर रात हो गयी थी और मैं अपने कमरे में थी। मेरे शरीर पर सलवार कुर्ते की जगह मेरा रेशम का की नाइटी थी। मैं सवतः शर्मा गयी। नाना जी ने मेरे वस्त्र भी बदल दिए थे। 

मुझे बहुत ज़ोर से प्यास लगी थी। मेरे कमरे के फ्रिज में ठंडा पानी नहीं था। मुझे अखि रसोई के फ्रिज से पानी की बोतल लेने जाना पड़ा। 

मैं बोतल लेके मुड़ने वाली ही थी कि पास के परिवार-भवन , जहाँ हम सब खाने के पहले और बाद बैठते थे। 

मैं धीरे से दरवाज़े तक गयी। दरवाज़ा पूरा बंद नहीं था और इसी लिए मुझे अंदर की अव्वाजें सुनाई दे रहीं थीं। अंदर बड़े परदे पर अश्लील चलचित्र चल रहा था। दो बहुत जवान लड़कियों को दस पुरुष चोद रहे थे। मेरी आँखे अँधेरे में देखने के लायक हुईं 

तो मेरे आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी। सुशी बुआ पूर्णतया नग्न थीं और बड़े मामा और छोटे मामा के वृहत लंडों को मसल रही थीं। 
 
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सुशी बुआ ने बड़े पूछा ," बेटी के चूत आराम से मारी न आपने ? मैं तो बेचारी के बारे में सोच सोच कर घबरा थी। "

बड़े मामा ने सुशी बुआ के हिलते विशाल दाहिने उरोज़ को मसल कर बोले, "सुशी, यदि कुंवारी लड़की की चूत सही तरीके से नहीं मारी जाय तो उसकी अपनी पहली चुदाई की खुशी अधूरी रह जाती है। नेहा की कस कर चुदाई हुई और उसने आगे बढ़ कर सबके लंड लिए। "

सुशी बुआ ने गहरी सांस भरी और छोटे चाचा ने पूछा ,"भैया नेहा की गांड की सील भी तोड़ दी है ना आपने ? मैं कई सालों से उसकी फैलती मटकती गांड देख उसे चोदने के सपने देख रहा हूँ। "

"विक्कू, भांजी का पीछे का द्वार पूरा खुल चूका है अब तुम जब चाहे उसे चोद लो," छोटे मामा ने सुशी बुआ की चूची मसल कर उनकी सिसकारी निकाल दी। 

"विक्कू, नेहा को चोदते समय मुझे सुन्नी की याद आ रही थी। सुन्नी तो नेहा बेटी से तीन साल छोटी थी, याद है ?" बड़े मामा ने मीथीं यादों में गोते लगाते प्यार से कहा। 

सुशी बुआ ने भी भावुक अवायज़ में कहा ,"आप दोनों की बातों ने तो मेरी यादें ताज़ा कर दीं। इस समय ऐसा लग रहा है जैसे बीस साल नहीं कल की बात हो जब मैंने अक्कू के लंड की पहली बार मुठ मारी थी। "

मैं मुश्किल से भौचक्केपन की सिसकारी दबा पायी। अक्कू माने मेरे डैडी अक्षय जो बुआ से छोटे हैं। 

सुशी बुआ की बात सुन कर छोटा मामा बोले, "सुशी पूरे कहानी बताओ ना भई। तक बस संक्षिप्त विवरण ही दिया है। " 

बड़े मामा ने भी हामीं भरी ,"सुशी देखो पूरी कहानी सम्पूर्ण विस्तृत प्रकार तो सुनाओगी तो विक्कू और हम तुम्हारे दोनों छेदों को तब तक चोदेगें तब तक तुम्हारी चूत या गांड ना फट जाए। "

"अच्छा जी भैया यह तो बहुत ही आकर्षक प्रलोभन है। " सुशी बुआ खिलखिला के हंस दीं। 


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सुशी बुआ के संस्मरण 

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अक्कू और मैं हमेशा से बहुत करीब थे। मम्मे ने उसकी देखबाल मेरे ऊपर छोड़ दी थी। जबसे अक्कू पैदा हुआ मैं तब दो साल की थी पर मुझे नन्हा सा छोटे-छोटे हाथ-पाँव फैंकता हुआ गुड्डा बिलकुल भा गया। अक्कू तभी से मेरे दिल में हमेशा के के बस गया। मैंने उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ा। मम्मी ने भी मुझे प्रोत्साहित करने के लिए अक्कू की देखबाल मेरे ऊपर छोड़ दी ।

मम्मी मज़ाक में सबसे कहतीं थीं कि अक्कू भले ही मेरी कोख़ से जन्मा हो पर सुशी उसकी माँ है। मैं इस बात को मज़ाक नहीं वास्तविकता समझती थी , इतना प्यार था मुझे अपने छुटके भाई से। 

अक्कू और मैं स्कूल भी इकट्ठे जाते। मैं तब गोल मटोल थी [ "मैं आज भी सूखा कांटा नहीं हूँ," ] और अक्कू बिजली की तेज़ी से बढ़ रहा था। 

वो स्कूल में सबसे लम्बा और बड़ा था और स्कूल के सब लड़के उससे डरते थे। 

मेरी ज़िद पर मम्मी ने मुझे अक्कू को नहलाना सिखाया। अक्कू जब बड़ा हुआ तो उसे मुझसे शर्म आने लगी और उसने खुद नहाना शुरू कर दिया। 

मुझे ना जाने क्यों ऐसा लगा कि मुझसे कुछ छिन गया है। 

मैं भी और लड़कियों के मुकाबले जल्दी विकसित हो गयी। मुझे में किशोरावस्था के पहली ही शारीरिक इच्छाएं जागने लगीं जो मुझे समझ नहीं आतीं थी। 

एक दिन मैं अक्कू के स्कूल के काम में मदद करने के लिए उसके कमरे गयी। 

अक्कू के स्कूल के कपड़े बिस्तर पे बिखरे पड़े थे। कमरे से लगे हुए स्नानगृह से शॉवर की आवाज़ से मैं समझ गयी कि अक्कू नहा रहा था। मुझ से रुका नहीं गया। मैंने अपने सारे कपडे उतार दिए। तब तक मेरे उरोज़ों की जगह सिर्फ दो भारी चर्बी के उभार थे। मैं हल्के हलके पांवों से स्नानगृह में प्रविष्ट हो गयी। 

खुले शॉवर के नीचे अक्कू नंग्न था। उसका कद मुझसे बहुत लम्बा हो चूका था। पर मेरी आँखे उसके गोरे लंड पर जा कर टिक गयीं। अक्कू का लंड मुझे बहुत बड़ा लगा। मैंने तब तक कोई लंड नहीं देखा था फिर भी। 

मैं अक्कू से जा कर चिपक गयी ,"अक्कू, तुम मेरे साथ क्यों नहीं नहते हो। मुझे तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता है। "

अक्कू ने मुझे भी बाँहों में भर लिया ,"दीदी , सॉरी। मुझे एक परेशानी होने लगी थी और उस वजह से आपसे मैं शर्माने लगा। "

"अक्कू, मेरे से शर्म आने का मतलब है कि तुम मुझसे प्यार नहीं करते ?" मैं कुछ रुआंसी हो गयी। 

"नहीं दीदी, मैं तो आपके बिना रह नहीं सकता। जब आप मेरे साथ नहाते हो तो मेरा यह अजीब सा हो जाता है ," अक्कू ने अपनी निगाहें से अपने लंड की ओर मेरा ध्यान इंगित किया। 

"अक्कू, मुझे पता नहीं कि इसको कैसे ठीक करें पर मैं पता लगाऊंगीं। पर तुम मुझे ऐसे नहीं तरसाया करो। " मैंने बिना सोचे समझे अपने दोनों हाथों से अक्कू के लंड को प्यार से सहलाना शुरू कर दिया। 

अक्कू की सिसकारी निकल गयी, "दीदी ऊं दीदी। " वैसी ही जैसे कि जब मैं उसकी खरोंचों पर डेटोल लगती थी । 

मैं घबरा गयी कि मैंने अक्कू को दर्द कर दिया ," सॉरी अक्कू। बहुत दर्द हुआ क्या। मैं तो इसे …… यह मुझे इतना प्यारा लग रहा है मैंने सोचा ……… ओह! अक्कू सॉरी यदि मैंने दर्द ……। "

अक्कू ने घबरा कर मेरे मुंह को चूम लिया और जल्दी से मुझे प्यार से पकड़ते हुआ कहा, "नहीं दीदी मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा था। प्लीज़ और करो न। "

अब मेरी हिम्मत खुल गयी मैंने झुक कर दोनों हाथों से अक्कू के लंड को सहलाना शुरू कर दिया। उस समय भी अक्कू का लंड मेरे दोनों नन्हें हाथों में मुश्किल से समा पा रहा था। 

अब मैं अक्कू की सिस्कारियों से घबराने की जगह प्रोत्साहित हो रही थी ।
 
अक्कू ने अपने गोरे चिकने पर भारी और मज़बूत चूतड़ों से मेरे हाथों में अपने लंड को धकेलने लगा। मैं अब उसका लंड और भी तेज़ी से सहलाने लगी। उसका गुलाबी मोटा सा सुपाड़ा [ तब मुझे इस सबका नाम नहीं पता था ] बहुत प्यारा लगा और मैंने उसे दो तीन बार चूम लिया। अक्कू ने ज़ोर से सिसकारी मारी। अब तक मैं समझ गयी थी ऊंची सिसकारी का मतलब था कि अक्कू को और भी अच्छा लग रहा था। 

मैंने दोनों हाथो से सहलाते हुए अक्कू के सुपाड़े को लगातार चूमती रही। 

अक्कू के मुंह से वैसी की आवाज़ें निकल रहीं थी जैसी एक बार मम्मी के कमरे से मैंने सूनी थीं। जब मैंने मम्मी से डर कर पूछा कि, "डैडी आपको दर्द कर रहे थे," मम्मी ने मुझे प्यार से चूम कर कहा ," नहीं पगली वो तो मुझे प्यार कर रहे थे। "


फिर मम्मी ने मुझे समझाया, "सुशी बेटा जब बड़े लोग, यानी मम्मी डैडी जैसे दो बड़े लोग, प्यार करते हैं तो उन्हें जब बहुत अच्छा लगता है तो उनके मुंह से कई तरह की आवाज़ें निकलती हैं। इसी तरह के प्यार से तो डैडी ने तुम्हें और अक्कू को मेरे पेट में बनाया था। "

यह बात अचानक मुझे समझ आ गयी। मैंने अक्कू के सुपाड़े को औए भी ज़ोर से चूमना शुरू कर दिया। मेरे हाथ और मुंह थोड़ा थकना शुरू हो गये थे पर मैं अपने छोटे भईया के लिए कुछ भी कर सकती थी। 

लम्बी देर के बाद अक्कू ने ज़ोर से कहा , "दीदी अब तो और भी अच्छा लग रहा है। दीदी प्लीज़ अब मत रुकियेगा। " मैं तो रुकने की सोच भी नहीं रही थी। 

अचानक अक्कू के लंड ने हिचकी जैसे ठड़कने मारी और तीन चार ऐसे ठड़कने के बाद अचानक उसके सुपाड़े से एक सफ़ेद पानी की धार निकल कर मेरे मुंह पैर फ़ैल गयी। मैं चौंक कर थोडा पीछे हो गयी। मुझे लगा कि शायद अक्कू का पेशाब निकल पड़ा। पर मैंने अक्कू को कितनी बार पेशाब कराया था और मुझे उसके लंड से निकलते सफ़ेद धार बिलकुल पेशाब की तरह नहीं लगी। मुझे अक्कू के पेशाब की सुगंध तो बहुत अच्छे से याद थी पर इस धार की सुगंध तो बिलकुल अलग थी। 
अक्कू ने लंड से ना जाने कितनी ऐसी धार उछल कर मेरे मुंह, हाथों और छाती पर फ़ैल गयीं। 

अक्कू का चेहरा लाल हो गया था और मुहे और भी सुंदर लगने लगा। उसके चेहरे पर इतनी खुशी थी कि मैंने निश्चय कर लिया कि मैं उसे रोज़ नहलाऊंगीं और उसके लंड को इसी तरह सहला कर अक्कू के लंड से दूसरी तरह का पेशाब निकालूंगीं। 

"दीदी, आपने कितना अच्छा लगवाया। थैंक यू दीदी ," अक्कू ने प्यार से मुझे चूम लिया। 

"अक्कू अब कभी भी दीदी से कुछ नहीं छुपाना। तुम्हारे बिना मुझे बुरा लगता है ," मैंने अक्कू को प्यार से चूमा। 

"प्रॉमिस दीदी," अक्कू ने मुझे कस कर भींच लिया। फिर मैंने एक बार फिर, अनेकों बार जैसे, अपने छोटे भाई को ध्यान से नहलाया। 

जब मैं अक्कू को सुखा रही थी तो मैंने कहा ," अक्कू मम्मी ने मुझे आखिरी साल बताया था कि जब वो और डैडी एक दुसरे से प्यार करतें हैं तो उनकी भी तुम्हारी तरह आवाज़ निकलती है। आज रात को हम दोनों मम्मी डैडी को प्यार करते हुए देखेंगें। ठीक है ? फिर मैं तुम्हें और भी "अच्छा" लगा सकतीं हूँ। " अक्कू ने हमेशा की तरह दीदी का नेतृत्व स्वीकार कर लिया। 

रात के खाने के बाद खाली थे। हम दोनों ने स्कूल का काम पहले ही ख़त्म कर लिया था। 

हम दोनों डैडी-मम्मी के शयन-कक्ष से लगे डैडी के अध्यन-कक्ष [स्टडी] में छुप गए। डैडी के अध्यन-कक्ष की खिड़की से उनका पलंग पूरा साफ दिखता था। 

जब हमारी हिम्मत बंधी तो हमने सर उठा कर अंदर झांका।

डैडी और मम्मी पूरे नंगे थे। मम्मी बिस्तर पर खड़ीं थी और डैडी कालीन पर। 

डैडी बहुत लम्बे और चौड़े तो हैं हीं पर मम्मी के सामने खड़े हुए और भी विशाल लग रहे थे। डैडी का सीना, पेट , चूतड़, विशाल टांगें और बाज़ू घने बालों से ढकीं थी। मुझे पहली बार डैडी को देख कर मेरे नन्हे नाबालिग शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गयी। मम्मी बिलकुल नंगी हो कर मुझे और भी सुंदर लग रहीं थीं। 

उनके मोटी भारी चूचियाँ इतनी विशाल और भारी थीं कि अपने भार से वो उनके पेट की और ढलक रहीं थीं। पर उस ढलकान से मम्मी की चूचियों ने अक्कू की आँखों को मानों कैद कर लिया। 
डैडी अपना मुंह मम्मी के खुले मुंह से लगा कर अपनी जीभ उनके मुंह में धकेल रहे थे। मम्मी के मुंह से हल्की हल्की सिस्कारियां निकल रहीं थीं। मम्मी भी डैडी से लिपट कर उनके मुंह में अपनी जीभ देने लगीं। डैडी ने अपने बड़े हाथों में मम्मी के दोनों चूचियों को भर कर ज़ोर से उन्हें दबाने, मसलने लगे। अक्कू और मुझे लगा कि डैडी, मम्मी को दर्द कर रहें हैं। 

पर मम्मी की सिस्कारियां और भी ऊंची हो गयी ,"अंकित, और ज़ोर से दबाओ। मसल डालो इन निगोड़ी चूचियों को." डैडी ने मम्मी के दोनों निप्पल पकड़ कर बेदर्दी से मड़ोड़ दिए और फिर उन्हें खींचने लगे। 

" हाय अंकित कितना अच्छा दर्द है। " मम्मी को बहुत अच्छा लग रहा था। 
 
डैडी ने कुछ देर बाद मम्मी का एक निप्पल अपने मुंह में लेकर ज़ोर से चूसने लगे और दुसरे को मसलने और मडोड़ने लगे। 

मम्मी ने ज़ोर से चीख कर डैडी का सर अपनी चूचियों पर दबा लिया, "अंकु, और ज़ोर से काटो मेरी चूचियों को , आः ….., माँ …….. कितना दर्द कर रहे हो …….. और दर्द करो आँह … आँह …. आँह …….. अंकु। "

मम्मी डैडी को अंकु सिर्फ प्यार से और घर में ही पुकारतीं थी। 

डैडी ने बड़ी देर तक मम्मी के दोनों चूचियों को बारी बारी चूसा, चूमा और कभी सहलाया कभी बेदर्दी से मसला। पर मम्मी को जो भी उन्होंने किया वो बहुत अच्छा लगा। 

अक्कू और मैं मंत्रमुग्ध हो कर डैडी मम्मी के प्यार के खेल को एकटक देख रहे थे। मुझे पता था कि मेरा मेधावी छोटा भैया भी हर बात को गौर से देख कर सीख रहा था। 

मम्मी ने डैडी को प्यार से चूम कर अपने घुटनों पर पलंग पर बैठ गयीं। मम्मी ने डैडी का बहुत ही भयंकर डरावने रूप वाला लम्बा मोटा लंड अपने दोनों हाथो में सम्हाला। जैसे मैं अक्कू का मोटा लंड नहीं सभाल पाई थी, मेरी तरह मम्मी भी मुश्किल से डैडी के लंड को अपने दोनों हाथों से घेर पा रहीं थीं। 

मम्मी ने प्रेम से अपनी जीभ बाहर निकाल कर डैडी के पूरे लंड को चाटने लगीं। डैडी के चेहरे पर हल्की से मुस्कान फ़ैल गयी। उनके चेहरे पर वैसे ही 'अच्छा लगने' लगने वाली अभिव्यक्ति थे जैसे अक्कू के चेहरे पर मैंने देखी थी। 

मम्मी ने अपनी उँगलियों से डैडी के लंड की जड़ पर उगे घने घुंघराले बालों सहलाया और उन्हें हलके से खींचा। डैडी ने भी हल्की सी सिसकारी मारी। 

"निर्मु मेरे लंड को चूसो अब ," डैडी ने, मुझे लगा कि सख्त आवाज़ में हुक्म दिया। पर मम्मी ने मुसकरा कर अपने मुंह को पूरा खोल लिया। मम्मी ने बड़ी मुश्किल से डैडी का सुपाड़ा अपने मुंह के भीतर छुपा लिया। डैडी की आँखें थोड़ी देर के लिए बंद हो गयीं। उन्हें वास्तव में बहुत अच्छा लग रहा था। 

मम्मी ने और भी ज़ोर लगा कर डैडी का थोडा सा और लंड भी अपने मुंह में ले लिया। मम्मी के मुंह से उबकाई की आवाज़ निकल पड़ी। पर अपना मुंह दूर खींचने की जगह मम्मी ने अपने मुंह को डैडी के लंड के ऊपर दबाना शुरू कर दिया। 

मम्मी के मुंह से कई बार गोंगों की उल्टी करने जैसी आवाज़ें निकल रहीं थीं। डैडी ने अपने बड़े हाथ से मम्मी के सर को पकड़ कर अपने लंड पे उनका मुंह दबाने लगे। डैडी ने अपने चूतड़ों को हिला कर अपने लंड को मम्मी के मुंह के और भी अंदर डालने की कोशिश करने लगे। 


मम्मी का मुंह लाल हो गया था। उनकी आँखों में आंसूं भर गये , शायद उल्टी करने की आवाज़ों की वजह से। 

मुझे जब एक बार उल्टी हुई थी तो मेरे भी आंसू निकल पड़े थे। 
 
26

मम्मी ने अपने नाज़ुक हाथों डैडी के विशाल चूतड़ों पर रख उनके लंड को अपने गिगियाते मुंह के अंदर खींचने लगीं। 

लगभग आधे घंटे बाद डैडी ने अपना, मम्मी के थूक और आंसुओं से चमकता, लंड मम्मी के मुंह से लिया। मम्मी गहरी गहरी साँसे लेने लगीं। उनके सुंदर नाक के नथुने उनके हांफने के कारण फड़क रहे थे। जैसे मेरे और अक्कू के हो जाते थे दौड़ने के बाद। 

डैडी ने मम्मी को बिस्तर पर घुटनों और हाथों के ऊपर लिटा दिया। उन्होंने मम्मी की मोटी मुलायम झाँगेँ फैला दी थीं। 

मम्मी के पेशाब करने वाली जगह पर घने घुंघराले बाल थे। डैडी ने मम्मे के चूतड़ों को अपने हाथों से फैला कर अपने मुंह से उनकी पेशाब करने की जगह को चूमने लगे। अब मम्मी की बारी थी ज़ोर से सिसकारने की। 

डैडी ने अपनी अपने जीभ निकल कर मम्मी के पेशाब करने वाली दरार में उसे घुसा दिया। मम्मी तड़प कर चीख उठीं। 

इस बार उनकी चीख बहुत ऊंची थी। मैंने कस कर अक्कू का हाथ दबा दिया। मुझे लगा कि डैडी ने मम्मी के पेशाब की जगह को काट लिया था। 

"अंकु मेरी चूत ज़ोर से चूसो। आँ….. ओह! ……. अंकु बहुत….. आँ …….काट लो मेरी चूत को अंकु….. ज़ोर से, और ज़ोर से……. ," मम्मी की चीखें वास्तव में आनंद की थीं। उनके पेशाब करने वाली दरार का नाम भी हमें पता चल गया था। 

डैडी ने अपनी लम्बी जीभ से ना केवल मम्मी की चूत चाटी पर उनकी टट्टी करने
वाले छेद को भी चाट रहे थे। डैडी को मम्मी का टट्टी करने वाला छेद बिलकुल बुरा नहीं लग रहा था। 

"अंकु, ….ओह …. माँ ……। क्या कर रहे आँ………। मैं झड़ने वाली हूँ। मेरी गांड चाटो और चाटो……, प्लीज़…," मम्मी ने चीख कर डैडी से कहा। 

डैडी ने अपनी जीभ की नोक मम्मी की गांड के छेद के अंदर दाल दी और उनकी उंगलिया मम्मी की चूत को रगड़ रहीं थी। 

डैडी ने तड़पती कांपती मम्मी को कस कर दबोच लिया और उनकी गांड चाटना नहीं रोका , "अंकु…. अब रुक जाओ। मैं झड़ चुकी हूँ। "

पर डैडी नहीं रुके और हम दोनों को बहुत आश्चर्य हुआ जब कुछ ही क्षणों में मम्मी ने 'रुक जाओ' की रट के जगह 'और चाटो' की रट लगा दी। मम्मी ने चार बार चीख कर अपने झड़ने की गुहार लगाई। अब तक मैं और अक्कू समझ गए 

जो अक्कू को स्नानगृह में हुआ था , उसे झड़ना कहते हैं। 
 
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