desiaks
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उस वक्त उस ख़त को पढ़कर ऐमिलिया बेसाख्ता हंस दी थी कि उसके बूढ़े पति ने ये क्या बकवास लिख मारी थी।
क्रिसपिन....।
वो हमेशा से उसी पर निर्भर था और आगे भी उसने ऐसा ही रहना था।
पिछले बीस साल से वो उसे अपने कंट्रोल में रखे हुए थी। इस हद तक कि उसने उसे किसी स्कूल या यूनिवर्सिटी में भेजने की सोची भी नहीं कि कहीं उसका मासूम बेटा किसी अनैतिक, नृशंस और ड्रगिस्ट लड़कों के साथ न घुलने-मिलने लगे।
क्रिसपिन—जिसे शुरूआत से ही ऑयल पेन्टिंग में गहरी रुची थी—ने अब इसी फील्ड में आगे बढ़ने का फैसला किया था। एमिलिया ने उसके इस शौक के खातिर उसे अपनी उस इमारत में सबसे ऊँची फ्लोर पर बकायदा एक स्टूडियो बनवाकर दिया।
इसलिए कि उसे अपने इस शौक की खातिर कहीं बाहर न जाना पड़े।
और यूँ उसे, एमिलिया को, अपने इकलौते बेटे पर निगाह रखने में आसानी हो।
उस पर उसका कण्ट्रोल बना रहे।
क्रिसपिन ज़्यादातर वक्त अपने उसी स्टूडियो में अपनी उन अजीबोगरीब पेन्टिंग्स को बनाने में मशगूल रहता जिन्हें समझना—और ज़िन्हें समझकर उनकी तारीफ में कसीदे पढ़ना—एमिलिया के बस में नहीं था। वो कभी नहीं समझ पाती थी कि क्रिसपिन की उन अजीबोगरीब पेन्टिंग्स का क्या मतलब है।
ऐसी पेंटिंग्स जिसमें क्रिसपिन आकाश को काला रंगता था, चांद को गहरा लाल और समन्दर को संतरी।
एमिलिया ने इस बाबत एक स्पैशलिस्ट से भी राय ली थी जिसने अपनी मोटी फीस के बदले उसे ये तो बताया कि उसके बेटे में असाधारण प्रतिभा थी लेकिन ये नहीं बताया कि ऐसी तस्वीरें उसके विकृत मस्तिष्क की उपज थीं। क्रिसपिन सामान्य नहीं था।
और एमिलिया को कभी इस बात का अहसास तक नहीं हुआ। अपने पति के ख़त को पढ़कर वो हँसी थी। उसे यकीन था कि उसका बेटा एक महान कलाकार था—ऐसा विरला आर्टिस्ट जिसकी कला—जो अपने वक्त से कहीं आगे की थी—को समझना हर किसी के बस में न था।
खुद उसके भी नहीं।
उसके पति के भी नहीं।
और ऐसी गैरमामूली, ऐसी असाधारण काबिलियत वाला उसका बेटा भला सामान्य हो भी कैसे सकता था!
उसको अपने पति का यह दावा करना—कि दौलत हाथ आते ही क्रिसपिन उसकी पकड़ से निकल जाएगा—एक बेवकूफाना स्टेटमैन्ट लगा था लेकिन फिर भी उसे कचोटता रहा था।
आखिरकार उसने तय किया कि वो अपनी इस संशय की स्थिति को हमेशा के लिए खत्म कर देगी।
वो क्रिसपिन के स्टूडियो पहुँची।
क्रिसपिन वहाँ नहीं था अलबत्ता उसकी बनाई बेशुमार पेंटिंग्स वहाँ स्टैण्ड पर मौजूद थीं।
एक कैनवास पर बनी पेंटिंग ने उसका ध्यान खींचा।
पेंटिंग किसी औरत की थी और अभी अधूरी थी। उसने देखा कि वो औरत बड़े अनोखे और डरावने तरीके से कहीं संतरी रंग के रेत पर बड़े टेढ़े-मेढ़े ढंग से लेटी थी और उसके चारों ओर खून फैला हुआ है।
एमिलिया स्तब्ध रह गई।
वह आतंकित हो बड़ी देर तक उस पेंटिंग को देखती रही।
क्या था वो?
क्या वो माडर्न आर्ट का नमूना था?
शायद हाँ।
ऐसी मार्डन आर्ट जिसे वो कभी समझ ही नहीं सकती थी।
लेकिन फिर भी यह एक बेहूदा चीज़ थी।
अगर यह किसी आर्ट का कोई मार्डन नमूना था भी, तो भी क्रिसपिन को फौरन इसे बंद करना चाहिए था।
उसका चेहरा सख्त हो गया।
वो वहाँ से लौटी और हॉल में आई जहाँ उसने रेनाल्ड्स को उसके इंतज़ार में मौजूद पाया।
रेनाल्ड्स।
उनका नौकर।
पिछले पच्चीस सालों से वो उनकी सेवा में था लेकिन उसके पति, मरहूम पति, को वो कतई नापसंद था। लेकिन इसके बावजूद एमिलिया ने उसे उसकी नौकरी से बर्खास्त होने से बचाए रखा क्योंकि वो हमेशा से उसका वफादार था और क्रिसपिन के लिए सहानुभूति रखता था। एमिलिया की ज़िन्दगी में उसके उस बटलर—रेनाल्ड्स—की क्या अहमियत थी इसका पता इस बात से चलता था कि वो अक्सर अपने पति और अपने बेटे की बाबत उससे सलाह मशविरा करती थी।
रेनाल्ड्स अपनी सलाहियत और कैफियत के हिसाब से उसे सलाह देता था लेकिन जल्द ही एमिलिया को अहसास हो गया कि रेनाल्ड्स एक शराबी था।
इसके बावजूद एमिलिया को उसकी ज़रूरत थी और उसे—रेनाल्ड्स को—एमिलिया की।
“क्रिसपिन कहाँ है?”—एमिलिया ने हॉल में उसका इंतजार करते रेनाल्ड्स से पूछा।
“वो मिस्टर ग्रेग की स्टडी में है।”—रेनाल्ड्स ने जवाब दिया।
“स्टडी में....वो वहाँ क्या कर रहा है?”
लेकिन रेनाल्ड्स ने कोई जवाब न दिया।
ऐमिलिया ने उसे बोलता न पाकर अपने कदम स्टडी की ओर बढ़ा दिए।
लेकिन स्टडी का दरवाज़ा खोलते ही वह ठिठककर खड़ी हो गई। इस शानदार स्टडी में—जो उसके मरहूम पति ने अपने शौक के हिसाब से बनवाई थी—उसकी विशाल टेबल के पीछे बिछी आलीशान कुर्सी पर आज उसका बेटा बैठा हुआ था और उसके सामने उस विशाल टेबल पर उसके पति के तमाम कागज़ात, जिनमें स्टॉक कोटेशंस वगैरह भी थे, फैले पड़े थे।
“तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”—एमिलिया ने अधिकारपूर्वक कहा। क्रिसपिन ने कोई जवाब देने से पहले अपनी लम्बी उंगलियों में थामी हुई पेन्सिल से हवा में कुछ लिखा और क्षुब्ध भाव से अपनी माँ की ओर देखा।
उन आँखों में चेतावनी थी।
“मेरा पिता मर चुका है”—उसने गुर्राते हुए कहा—“और यह स्टडी, यह घर, और सारी जायदाद अब मेरी है।”
एमिलिया के जिस्म में एक सिरहन सी दौड़ गई।
“ठीक है”—उसने साहस बटोरकर कहा—“लेकिन तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”
“पढ़ रहा था।”—उसे अपने सामने उस विशाल टेबल पर फैले कागज़ातों की ओर इशारा करते हुए कहा—“देख रहा था कि अपने पिता की मौत के बाद मेरी माली हैसियत में कितना इज़ाफा हुआ है।”
“सुनो क्रिसपिन”—एमिलिया ने कहा—“तुम्हें इन सब की कोई समझ नहीं सो तुम ये सारे मामले मुझ पर छोड़ दो। हालांकि तुम्हारे पिता ने ये एस्टेट, ये सारी जायदाद तुम्हें, तुम्हारे नाम कर डालने की बेवकूफी कर ही दी है लेकिन फिर भी तुम इसे मेरी मदद के बगैर नहीं संभाल सकते। मेरा ख्याल है कि तुम अपनी कला को और इम्प्रूव करने की ओर ध्यान दो और ये एस्टेट और इस तरह के सारे काम तुम मुझ पर छोड़ दो।”
“नहीं,”—क्रिसपिन ने शान्त स्वर में कहा—“तुम पर मैं कुछ नहीं छोड़ने वाला। तुम्हारा वक्त अब बीत चुका है और अब मेरी बारी है। ये मेरा वक्त है जिसका मैं अर्से से इंतज़ार कर रहा था।”
“तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम मुझसे इस तेवर में बात करो।”—गुस्से से तमतमाते लाल चेहरे से एमिलिया बोली—“बहुत हुआ। अब फौरन अपने स्टूडियो जाओ और याद रखो कि मैं तुम्हारी माँ हूँ।”
क्रिसपिन ने जवाब नहीं दिया।
उसने पेन्सिल को मेज़ पर रखा और इस प्रक्रिया में आगे को झुककर अपनी आँखों में शैतानियत के भाव उभारे और एमिलिया को देखने लगा।
एमिलिया घबरा उठी।
उसे अपने पति की बात याद आई—
जब क्रिसपिन को इस बात का अहसास होगा कि वो तुम पर निर्भर नहीं है तब वो तुम्हें अपना असली रंग दिखाएगा, तब तुम्हें पता चलेगा कि हमारी औलाद कई मायनों में तुमसे भी बेहतर है। मक्कारी, जालसाज़ी और कमीनगी की जिन ऊँचाईयों पर वो बैठा है वहाँ से वो तुम्हें अपना चेहरा दिखाएगा—ऐसे कि जैसे कभी तुमने मुझे दिखाया था।
एमिलिया को उस एक पल में ही अहसास हो आया कि उसका पति बिल्कुल सही था।
उसने क्रिसपिन को बिल्कुल सही पहचाना था।
क्रिसपिन....।
वो हमेशा से उसी पर निर्भर था और आगे भी उसने ऐसा ही रहना था।
पिछले बीस साल से वो उसे अपने कंट्रोल में रखे हुए थी। इस हद तक कि उसने उसे किसी स्कूल या यूनिवर्सिटी में भेजने की सोची भी नहीं कि कहीं उसका मासूम बेटा किसी अनैतिक, नृशंस और ड्रगिस्ट लड़कों के साथ न घुलने-मिलने लगे।
क्रिसपिन—जिसे शुरूआत से ही ऑयल पेन्टिंग में गहरी रुची थी—ने अब इसी फील्ड में आगे बढ़ने का फैसला किया था। एमिलिया ने उसके इस शौक के खातिर उसे अपनी उस इमारत में सबसे ऊँची फ्लोर पर बकायदा एक स्टूडियो बनवाकर दिया।
इसलिए कि उसे अपने इस शौक की खातिर कहीं बाहर न जाना पड़े।
और यूँ उसे, एमिलिया को, अपने इकलौते बेटे पर निगाह रखने में आसानी हो।
उस पर उसका कण्ट्रोल बना रहे।
क्रिसपिन ज़्यादातर वक्त अपने उसी स्टूडियो में अपनी उन अजीबोगरीब पेन्टिंग्स को बनाने में मशगूल रहता जिन्हें समझना—और ज़िन्हें समझकर उनकी तारीफ में कसीदे पढ़ना—एमिलिया के बस में नहीं था। वो कभी नहीं समझ पाती थी कि क्रिसपिन की उन अजीबोगरीब पेन्टिंग्स का क्या मतलब है।
ऐसी पेंटिंग्स जिसमें क्रिसपिन आकाश को काला रंगता था, चांद को गहरा लाल और समन्दर को संतरी।
एमिलिया ने इस बाबत एक स्पैशलिस्ट से भी राय ली थी जिसने अपनी मोटी फीस के बदले उसे ये तो बताया कि उसके बेटे में असाधारण प्रतिभा थी लेकिन ये नहीं बताया कि ऐसी तस्वीरें उसके विकृत मस्तिष्क की उपज थीं। क्रिसपिन सामान्य नहीं था।
और एमिलिया को कभी इस बात का अहसास तक नहीं हुआ। अपने पति के ख़त को पढ़कर वो हँसी थी। उसे यकीन था कि उसका बेटा एक महान कलाकार था—ऐसा विरला आर्टिस्ट जिसकी कला—जो अपने वक्त से कहीं आगे की थी—को समझना हर किसी के बस में न था।
खुद उसके भी नहीं।
उसके पति के भी नहीं।
और ऐसी गैरमामूली, ऐसी असाधारण काबिलियत वाला उसका बेटा भला सामान्य हो भी कैसे सकता था!
उसको अपने पति का यह दावा करना—कि दौलत हाथ आते ही क्रिसपिन उसकी पकड़ से निकल जाएगा—एक बेवकूफाना स्टेटमैन्ट लगा था लेकिन फिर भी उसे कचोटता रहा था।
आखिरकार उसने तय किया कि वो अपनी इस संशय की स्थिति को हमेशा के लिए खत्म कर देगी।
वो क्रिसपिन के स्टूडियो पहुँची।
क्रिसपिन वहाँ नहीं था अलबत्ता उसकी बनाई बेशुमार पेंटिंग्स वहाँ स्टैण्ड पर मौजूद थीं।
एक कैनवास पर बनी पेंटिंग ने उसका ध्यान खींचा।
पेंटिंग किसी औरत की थी और अभी अधूरी थी। उसने देखा कि वो औरत बड़े अनोखे और डरावने तरीके से कहीं संतरी रंग के रेत पर बड़े टेढ़े-मेढ़े ढंग से लेटी थी और उसके चारों ओर खून फैला हुआ है।
एमिलिया स्तब्ध रह गई।
वह आतंकित हो बड़ी देर तक उस पेंटिंग को देखती रही।
क्या था वो?
क्या वो माडर्न आर्ट का नमूना था?
शायद हाँ।
ऐसी मार्डन आर्ट जिसे वो कभी समझ ही नहीं सकती थी।
लेकिन फिर भी यह एक बेहूदा चीज़ थी।
अगर यह किसी आर्ट का कोई मार्डन नमूना था भी, तो भी क्रिसपिन को फौरन इसे बंद करना चाहिए था।
उसका चेहरा सख्त हो गया।
वो वहाँ से लौटी और हॉल में आई जहाँ उसने रेनाल्ड्स को उसके इंतज़ार में मौजूद पाया।
रेनाल्ड्स।
उनका नौकर।
पिछले पच्चीस सालों से वो उनकी सेवा में था लेकिन उसके पति, मरहूम पति, को वो कतई नापसंद था। लेकिन इसके बावजूद एमिलिया ने उसे उसकी नौकरी से बर्खास्त होने से बचाए रखा क्योंकि वो हमेशा से उसका वफादार था और क्रिसपिन के लिए सहानुभूति रखता था। एमिलिया की ज़िन्दगी में उसके उस बटलर—रेनाल्ड्स—की क्या अहमियत थी इसका पता इस बात से चलता था कि वो अक्सर अपने पति और अपने बेटे की बाबत उससे सलाह मशविरा करती थी।
रेनाल्ड्स अपनी सलाहियत और कैफियत के हिसाब से उसे सलाह देता था लेकिन जल्द ही एमिलिया को अहसास हो गया कि रेनाल्ड्स एक शराबी था।
इसके बावजूद एमिलिया को उसकी ज़रूरत थी और उसे—रेनाल्ड्स को—एमिलिया की।
“क्रिसपिन कहाँ है?”—एमिलिया ने हॉल में उसका इंतजार करते रेनाल्ड्स से पूछा।
“वो मिस्टर ग्रेग की स्टडी में है।”—रेनाल्ड्स ने जवाब दिया।
“स्टडी में....वो वहाँ क्या कर रहा है?”
लेकिन रेनाल्ड्स ने कोई जवाब न दिया।
ऐमिलिया ने उसे बोलता न पाकर अपने कदम स्टडी की ओर बढ़ा दिए।
लेकिन स्टडी का दरवाज़ा खोलते ही वह ठिठककर खड़ी हो गई। इस शानदार स्टडी में—जो उसके मरहूम पति ने अपने शौक के हिसाब से बनवाई थी—उसकी विशाल टेबल के पीछे बिछी आलीशान कुर्सी पर आज उसका बेटा बैठा हुआ था और उसके सामने उस विशाल टेबल पर उसके पति के तमाम कागज़ात, जिनमें स्टॉक कोटेशंस वगैरह भी थे, फैले पड़े थे।
“तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”—एमिलिया ने अधिकारपूर्वक कहा। क्रिसपिन ने कोई जवाब देने से पहले अपनी लम्बी उंगलियों में थामी हुई पेन्सिल से हवा में कुछ लिखा और क्षुब्ध भाव से अपनी माँ की ओर देखा।
उन आँखों में चेतावनी थी।
“मेरा पिता मर चुका है”—उसने गुर्राते हुए कहा—“और यह स्टडी, यह घर, और सारी जायदाद अब मेरी है।”
एमिलिया के जिस्म में एक सिरहन सी दौड़ गई।
“ठीक है”—उसने साहस बटोरकर कहा—“लेकिन तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”
“पढ़ रहा था।”—उसे अपने सामने उस विशाल टेबल पर फैले कागज़ातों की ओर इशारा करते हुए कहा—“देख रहा था कि अपने पिता की मौत के बाद मेरी माली हैसियत में कितना इज़ाफा हुआ है।”
“सुनो क्रिसपिन”—एमिलिया ने कहा—“तुम्हें इन सब की कोई समझ नहीं सो तुम ये सारे मामले मुझ पर छोड़ दो। हालांकि तुम्हारे पिता ने ये एस्टेट, ये सारी जायदाद तुम्हें, तुम्हारे नाम कर डालने की बेवकूफी कर ही दी है लेकिन फिर भी तुम इसे मेरी मदद के बगैर नहीं संभाल सकते। मेरा ख्याल है कि तुम अपनी कला को और इम्प्रूव करने की ओर ध्यान दो और ये एस्टेट और इस तरह के सारे काम तुम मुझ पर छोड़ दो।”
“नहीं,”—क्रिसपिन ने शान्त स्वर में कहा—“तुम पर मैं कुछ नहीं छोड़ने वाला। तुम्हारा वक्त अब बीत चुका है और अब मेरी बारी है। ये मेरा वक्त है जिसका मैं अर्से से इंतज़ार कर रहा था।”
“तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम मुझसे इस तेवर में बात करो।”—गुस्से से तमतमाते लाल चेहरे से एमिलिया बोली—“बहुत हुआ। अब फौरन अपने स्टूडियो जाओ और याद रखो कि मैं तुम्हारी माँ हूँ।”
क्रिसपिन ने जवाब नहीं दिया।
उसने पेन्सिल को मेज़ पर रखा और इस प्रक्रिया में आगे को झुककर अपनी आँखों में शैतानियत के भाव उभारे और एमिलिया को देखने लगा।
एमिलिया घबरा उठी।
उसे अपने पति की बात याद आई—
जब क्रिसपिन को इस बात का अहसास होगा कि वो तुम पर निर्भर नहीं है तब वो तुम्हें अपना असली रंग दिखाएगा, तब तुम्हें पता चलेगा कि हमारी औलाद कई मायनों में तुमसे भी बेहतर है। मक्कारी, जालसाज़ी और कमीनगी की जिन ऊँचाईयों पर वो बैठा है वहाँ से वो तुम्हें अपना चेहरा दिखाएगा—ऐसे कि जैसे कभी तुमने मुझे दिखाया था।
एमिलिया को उस एक पल में ही अहसास हो आया कि उसका पति बिल्कुल सही था।
उसने क्रिसपिन को बिल्कुल सही पहचाना था।