Hindi Porn Kahani गीता चाची - Page 4 - SexBaba
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Hindi Porn Kahani गीता चाची

मेरे चेहरे पर के आनंद के भाव देखकर चाचाजी थोड़े आश्वस्त हुए. प्यार से मेरे बाल सहलाते हुए बोले. "अनिल बेटे, चूस ले अपने चाचा का लंड, इतना गाढ़ा वीर्य पिलाऊंगा कि रबड़ी भी उसके सामने फ़ीकी पड़ जाएगी." और वह अपना सुपाड़ा मेरे गालों और मुंह पर बड़े लाड से रगड़ने लगे.

मैंने पहले उसका चुंबन लिया और फ़िर दोनों मुठ्ठियों में उसका तना पकड़ लिया. इतना बड़ा था कि दोनों मुट्ठियों के ऊपर भी दो तीन इंच और निकला था. मैंने सुपाड़ा पर जीभ फ़िराई तो चाचाजी सिसकने लगे. मेरी जीभ के स्पर्श से लंड ऐसे उछला कि जैसे जिंदा जानवर हो. सुपाड़े की लाल चमड़ी बिलकुल रेशम जैसी मुलायम थी और बुरी तरह तनी हुई थी. सुपाड़े के बीच के छेद से बड़ी भीनी खुशबू आ रही थी और छेद पर एक मोती जैसी बूंद भी चमक रही थी. पास से उसकी घनी झांटें भी बहुत मादक लग रही थीं, एक एक घंघराला बाल साफ़ दिख रहा था. ।

मैं अब और न रुक सका और जीभ निकाल कर उस मस्त चीज़ को चाटने लगा. पहले तो मैने उस अमृत सी बूंद को जीभ से उठा लिया और फ़िर परे लंड को अपनी जीभ से ऐसे चाटने लगा जैसे कि आइसक्रीम की कैंडी हो. राजीव चाचा ने एक सुख की आह भरी और मेरे सिर को पकड़कर अपने पेट पर दबाना शुरू किया. "मजा आ गया मेरे बेटे, बड़ा मस्त चाटता है तू, अब मुंह में ले ले मेरे राजा, चूस ले."

मैं भी उस रसीले लंड की मलाई का स्वाद लेने को उत्सुक था इसलिये मैने अपने होंठ खोले और सुपाड़ा मुंह में लेने की कोशिश की. वह इतना बड़ा था कि पहली बार कोशिश करने पर मुंह में नहीं समा पाया और मेरे दांत उसकी नाजुक चमड़ी में लगने से चाचाजी सिसक उठे.

अधीर होकर राजीव चाचा ने बांये हाथ में अपना लौड़ा पकड़ा और दाहिने से मेरे गालों को दबाते हुए बोले. "लगता है मेरे बेटे ने कभी लंड नहीं चूसा, बिलकुल कुंवारा है इस खेल में. तुझसे चुसवाने में तो और मजा आयेगा, चल तुझे सिखाऊ, पहले तू अपने होंठों से अपने दांत ढक ले. शाब्बा ऽ स. अब मुंह खोल. इतना सा नहीं राजा! और खोल! समझ डेन्टिस्ट के यहां बैठा है."

उनका हाथ मेरे गालों को कस कर पिचका कर मेरा मुंह खोल रहा था और साथ ही मैं भी पूरी शक्ति से मेरा मुंह बा रहा था. ठीक मौके पर राजीव चाचा ने सुपाड़ा थोड़ा दबाया और मेरे मुंह में सरका दिया. पूरा सुपाड़ा ऐसे मेरे मुंह में भर गया जैसे बड़ा लड्डु हो. मुलायम चिकने उस सुपाड़े को मैं प्यार से चूसने लगा.

राजीव चाचा ने अब लंड पर से हाथ हटा लिया था और मेरे बालों में उंगलियां प्यार से चलाते हुए मुझे प्रोत्साहित करने लगे. अपनी जीभ मैने उनके सुपाड़े की सतह पर घुमाई तो चाचाजी हुमक उठे और दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़कर अपने पेट पर दबाते हुए बोले. "पूरा ले ले मुंह में अनिल बेटे, निगल ले, पूरा लेकर चूसने में और मजा आयेगा. जैसा मैने किया था" ।

मैने अपना गला ढीला छोड़ा और लंड और अंदर लेने की कोशिश की. बस तीन चार इंच ही ले पाया. मेरा मुंह पूरा भर गया था और सुपाड़ा भी गले में पहुंच कर अटक गया था. राजीव चाचा ने अब अधीर होकर मेरा सिर पकड़ा और अपने पेट पर भींच लिया. वह अपना पूरा लंड मेरे मुंह मे घुसेड़ने की कोशिश कर रहे थे. गले में सुपाड़ा फंसने से मैं गोंगियाने लगा. लंड मुंह में लेकर चूसने में मुझे बहुत मजा आ रहा था पर अब ऐसा लग रहा था जैसे मेरा दम घुट जायेगा.

"चल कोई बात नहीं मेरे लाल, अच्छे अच्छे जवान घबरा जाते हैं इससे, तू तो प्यारा सा बच्चा है और तेरी पहली बार है, अगली बार पूरा ले लेना. अब चल, लेट मेरे पास, मैं आराम से तुझे अपना लंड चुसवाता हूं" कहते हुए चाचाजी चटाई पर अपनी करवट पर लेट गये और मुझे अपने सामने लिटा लिया. उनका लंड अभी भी मैंने मुंह में लिया हुआ था और चूस रहा था.


"देख अब मैं तेरे मुंह में मुठ्ठ मारता हूं, तू चूसता रह, जल्दी नहीं करना मेरे राजा, आराम से चूस, तू भी मजा ले, मैं भी लेता हूं." कहकर उन्होंने मेरे मुंह के बाहर निकले लंड को अपनी मुट्ठी में पकड़ा और मेरे सिर को दूसरे हाथ से थाम के सहारा दिया. फ़िर वे अपना हाथ आगे पीछे करते हुए सटासट सड़का मारने लगे.

जैसे उनका हाथ आगे पीछे होता, सुपाड़ा मेरे मुंह में और फूलता और सिकुड़ता जैसे गुब्बारा हो जिसमें बार बार हवा भरी जा रही हो. बड़ा मादक समां था. मैं ऊपर देखता हुआ उनकी आंखों में आंखें डालकर मन लगाकर चूसने लगा. राजीव चाचा बीच बीच में झुककर मेरा गाल चूम लेते. उनकी आंखों में अजब कामुकता और प्यार की खुमारी थी. आधे घंटे तक यह काम चला. जब भी वह झड़ने को होते तो हाथ रोक लेते. बड़ा जबरदस्त कंट्रोल था अपनी वासना पर, मंजे हुए खिलाड़ी थे.
 
वे तो शायद घंटों चुसवाते पर अब चाची के लौटने का समय हो गया था और मैं ही बहुत अधीर हो गया था. मेरा लंड भी फ़िर से खड़ा हो गया था और उस रसीले लंड का वीर्य पीने को मैं आतुर था. आखिर जब फ़िर से वे झड़ने के करीब आये तो मैंने बड़ी याचना भरी नजरों से उनकी ओर देखा.

उन्होंने भी एक हल्की सिसकी के साथ कहा. "ठीक है, चल अब झड़ता हूं, तैयार रहना मेरे बेटे, एक बूंद भी नहीं छोड़ना, मस्त माल है, तू खुशकिस्मत है, सब को नहीं पिलाता मैं." कह कर चाचाजे जोर जोर से हस्तमैथुन करने लगे. अब उनके दूसरे हाथ का दबाव भी मेरे सिर पर बढ़ गया था और लंड मेरे मुंह में गहरा ढूंसते हुए वे सपासप मुट्ठ मार रहे थे.

अचानक उनके मुंह से एक सिसकी निकली और उनका शरीर ऐंठ सा गया. सुपाड़ा अचानक मेरे मुंह में एकदम फूला जैसे गुब्बारा फूलकर फ़टने वाला हो. फ़िर गरम गरम घी जैसी बूंदें मेरे मुंह में बरसने लगी. शुरू में तो ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने मलाई का नल खोल दिया हो इसलिये मैं उन्हें मुंह से न निकलने देने के चक्कर में सीधा निगलता गया, जबकि मेरी इच्छा यह हो रही थी कि उन्हें जीभ पर लू और चखें.

जब उछलते लंड का दबाव कुछ कम हुआ तब जाकर मैने अपनी जीभ उनके मूत्रछिद्र पर लगाई और बूंदों को इकट्ठा करने लगा. चम्मच भर माल जमा होने पर मैने उसे चखा. मानों अमृत था. गाढ़ा गाढ़ा पिघले मक्खन सा, खारा और कुछ कसैला. मैने उस चिपचिपे द्रव्य को अपनी जीभ पर खूब घुमाया और जब वह पानी हो गया तो निगल लिया. तब तक राजीव चाचा का लंड एक और चम्मच माल मेरी जीभ पर उगल चुका था.

पांच मिनट लगे मुझे मेरे चाचाजी के इस अमूल्य उपहार को निगलने में. चाचाजी का लंड अब ठंडा होकर सिकुड़ने लगा था पर मैं उसे तब तक मुंह में लेकर प्यार से चूसता रहा जब तक वह बिलकुल नहीं मुरझा गया. आखिर जब मैने उसे मुंह से निकाला तो उन्होंने मुझे खींच कर ऊपर सरका लिया और मेरा चुंबन लेते हुए बोले. "मेरे राजा, मेरी जान, तू तो लंड चूसने में एकदम हीरा है, मालूम है, साले नए नौसिखिये छोकरे शुरू में बहुत सा वीर्य मुंह से निकल जाने देते हैं पर तूने तो एक बूंद नहीं बेकार की." मैं कुछ शरमाया और उन्हें चूमने लगा.

अब हम आपस में लिपटकर अपने हाथों से एक दूसरे के शरीर को सहला रहे थे. चुंबन जारी थे. एक दूसरे के लंड चूसने की प्यास बुझने के बाद हम दोनों ही अब चूमा चाटी के मूड में थे. पहले तो हमने एक दूसरे के होंठों का गहरा चुंबन लिया.

फ़िर हमने अपना मुंह खोला और खुले मुंह वाले चुंबन लेने लगे. अब मजा और बढ़ गया. चाचाजी ने अपनी जीभ मेरे होंठों पर चलाई और फ़िर मेरे मुंह में डाल दी और मेरी जीभ से लड़ाने लगे. मैंने भी जीभ निकाली और कुछ देर हम हंसते हुए सिर्फ जीभ लड़ाते रहे. फ़िर एक दूसरे की जीभ मुंह में लेकर चूसने का सिलसिला शुरू हुआ.

कीमती सिगरेट के धुएं में मिश्रित राजीव चाचा के मुंह के रस का स्वाद पहली बार मुझे ठीक से मिला और मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं उनकी जीभ गोली जैसे चूसने लगा. उन्हें भी मेरा मुंह बहुत मीठा लगा होगा क्योंकि वह भी मेरी जीभ बार बार अपने होंठों में दबा कर चूस लेते.

राजीव चाचा ने सहसा प्यार से कहा "अनिल बेटे, मुंह खोल और खुला रख, जब तक मैं बंद करने को न कहूं, खुला रखना" और फ़िर मेरे खुले मुंह में उन्होंने अपनी लंबी जीभ डाली और मेरे दांत, मसूड़े, जीभ, तालू और आखिर में मेरा गला अंदर से चाटने लगे. उन्हें मैने मन भर कर अपने मुंह का स्वाद लेने दिया. फ़िर उन्होंने भी मुझे वही करने दिया.

अब हम दोनों के लंड फ़िर तन कर खड़े हो गये थे. एक दूसरे के लंडों को मुठ्ठी में पकड़कर हम मुठिया रहे थे. बड़ा मजा आ रहा था. तभी दरवाजा खुला और चाची अंदर आयीं.
 
चाचाजी थोड़े सकपका गये और उठने लगे. मैं वैसा ही उन्हें लिपटा पड़ा रहा. चाची मुस्कराकर अपने पतिदेव से बोलीं. "क्यों जी, कैसा लगा मेरा उपहार?" चाचाजी भाव विभोर हो गये. "मेरी जान, तुमने तो मुझे निहाल कर दिया. इतना खूबसूरत बच्चा, वह भी घर का माल, मेरा सगा भतीजा, मैने तो कल्पना भी नहीं की थी. कैसे तुम्हारा कर्ज़ चुकाऊ

चाची उनके सिर पर हाथ रखकर बोलीं. "तुमने भी तो मेरा इतना खयाल रखा, अनिल को मेरी चुदासी बुझाने को भेज दिया." चाचाजी अब भी मुझसे लिपटे हुए थे और अनजाने में मेरे नितंबों को सहलाते हुए मेरे गुदा पर एक उंगली धीरे धीरे दबा रहे थे. मेरा छेद ऐसा टाइट था कि वह अंदर नहीं जा रही थी.

चाची मजाक करते हुए बोलीं. "बड़ा सकरा है स्वर्ग का यह द्वार डार्लिंग . मैंने आजमा कर देखा है, एक उंगली भी मुश्किल से जाती है. मैंने अनिल से कहा कि चाचाजी के आने के पहले इसमें गाजर घुसेड़ कर थोड़ा ढीला कर ले तो माना ही नहीं. कहता था कि चाचाजी को अपनी कसी कुंवारी गांड दूंगा. जैसे सुहागरात को नववधू अनचुदी बुर पेश करती है अपने पति को"
चाचाजी झूम उठे. वे कल्पना कर रहे होंगे कि मेरी उस कुंवारी गांड को चोदने में क्या आनंद आयेगा. चाचीजी बोलीं. "मैं भी तुम्हारी सुहागरात करवा दूंगी इस मतवाले लड़के के साथ. एक बड़ा प्यारा खेल है मेरे मन में, अनिल को लड़कियों के कपड़े पहना कर बिलकुल दुल्हन जैसी तैयार करूंगी. है भी चिकना छोकरा, मेरे मेकप के बाद कोई कह नहीं सकेगा कि लड़का है. घर में ही उससे शादी रचाऊंगी तुम्हारी. अपनी सौत उसे बनाऊंगी, और फ़िर मेरी सौत को तुम चोदना मेरे ही सामने, सुहाग रात मनाना प्यार से."

सुन सुन कर चाचाजी गरमा रहे थे. अपनी पत्नी के इस प्लान को सुनकर उनका लंड उछलने लगा था. तभी चाची फ़िर बोलीं. "पर एक शर्त है जी. अपने भतीजे को भोगने के पहले मुझे भोगना होगा. अपने इस मतवाले लंड से मेरी प्यास बुझाना होगी. तीन चार दिन मुझे मन भर के चोदो तो फ़िर अगले हफ़्ते अनिल से तुम्हारी सुहागरात मनवा दूंगी. तब तक तुम उससे चूमाचाटी कर सकते हो, लंड भी चूस और चुसवा सकते हो पर उसकी गांड नहीं मार सकते. "

चाचाजी विवश होकर हाथ मलते हुए बोले."मैं तो तैयार हूं भागवान पर कैसे करू, तुम जानती हो औरतों को देखकर मेरा नहीं खड़ा होता."

मैं बोला. "चाचाजी, मैं आपको हेल्प करूगा. हम सब साथ ही सोएंगे रोज, देखिये कैसे चाची को आपसे चुदवाता हूं." चाचाजी तैयार हो गये. चाची सच कह रही थीं. मेरे किशोर शरीर की उन्हें इतनी चाह थी कि वे सब कुछ करने को तैयार थे.

हमारा प्रयोग अति सफ़ल रहा. पहली ही रात में गीता चाची ने राजीव चाचा का लंड अपने शरीर में घुसा ही लिया, भले ही पति पत्नी का पहला संभोग चाची की गांड में हुआ.

उस रात छत पर हम तीनों मच्छरदानी के नीचे साथ सोये. चाची चाचाजी का लौड़ा चूसना चाहती थीं. "अपने पतिदेव का प्रसाद तो पा लू एक भारतीय नारी की तरह." वे बोलीं.

शुरू में कठिनायी हुई. पक्के गे चाचाजी का लंड चाची के चूसने से खड़ा ही नहीं हुआ. आखिर मैं उनके काम आया. चाचाजी के मुंह में मैंने अपना लंड दिया. खुद कुछ देर उनका लंड चूसा. जब वे मस्त हो गये तो उन्हें कहा कि आंखें बंद कर लें और सोचें कि मैं या कोई सजीला जवान चूस रहा है. फ़िर धीरे से मेरी जगह चाची ने ले ली.

चाची लंड चूसने में माहिर थीं हीं. इतना बड़ा लंड भी वे पूरा निगल गयीं. ऐसे मस्त कर के चूसा कि आखिर चाचाजी भी मान गये और चाचीके सिर को पकड़कर उनके मुंह को चोदने लगे. जब झड़े तो उनका वीर्य पान करके चाची खुशी से रो दीं. चाची के कहने पर इनाम के बतौर चाचाजी को मैंने अपना लंड चुसवाया और उनके मुंह में अपना वीर्य झड़ाया जिसे उन्होंने खूब चटखारे ले लेकर खाया.

उसके बाद चूमा चाटी हुई. बारी बारी से मैंने और चाची ने राजीव चाचा को चुम्मा दिया. पहले तो चाचाजी मुझे बड़े आवेश से चूमते और चाची को बस धीरे से चुंबन दे देते. मैं लगातार उनके लंड से खेलता रहा. फ़िर उनके चूतड़ सहलाये. बड़े मांसल और मजबूत नितंब थे उनके आखिर जब मैंने एक उंगली उनके गुदा में डाली तब उन्हें मजा आना शुरू हुआ. कुछ ही देर में वे चाची से लिपट लिपट कर उन्हें चूमने लगे और मम्मे भी दबाने लगे. फ़िर मैं और चाची ओंधे पलंग पर लेट गये और चाचाजी से हमारी गांड पूजा करने को कहा.

राजीव चाचा को तो मानों खजाना मिल गया. वे कभी मेरे नितंब चूमते और दबाते और कभी चाची के. गांड तो चाची की भी बहुत खूबसूरत थी. इसलिये उन्हें कोई कठिनाई नहीं हुई. 

आखिर में जब वे हम दोनों के गुदा चूसने लगे तब मैं समझ गया कि लंड खड़ा हो गया है. अब मैं उठ कर चुपचाप नीचे हो लिया और राजीव चाचा का लौड़ा चूसने लगा. वासना से उफ़नते हुए वे जोर जोर से चाची की गांड चूसने लगे, उनके गुदा में जीभ डालने लगे. चाची भी वासना से कराहने लगीं.

तब मैंने उनसे पूछा."गीता चाची, गांड मरायेंगी चाचाजी से? यही मौका है. दर्द तो होगा पर मजा भी आयेगा." वे तैयार थीं. मैंने चाचाजी से कहा कि चढ़ जायें. लंड और गुदा दोनों गीले थे, फ़िर भी चाची के गुदा में मैंने थोड़ा तेल मल दिया कि बाद में तकलीफ़ न हो.
 
चाचाजी चाची के ऊपर झुक कर तैयार हुए. पहली बार किसी स्त्री से संभोग कर रहे थे चाहे गुदा संभोग ही क्यों न हो. उनका मस्त खड़ा लंड बैठ न जाये इसलिये मैंने झुककर चाचाजी का एक निपल मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया. वे मस्ती में चिहुक उठे. मैंने फ़िर अपने हाथ में उनका लौड़ा पकड़कर सुपाड़ा चाची के गुदा पर रखा. चाची के मुलायम छोटे छेद पर वह मोटा गेंद सा सुपाड़ा देखकर मैं समझ गया कि काम मुश्किल है. चाची रो देंगी.

चाचाजी एक्सपर्ट थे. चाची को प्यार से उन्होंने समझाया "रानी, गुदा ढीला करो जैसा टट्टी के समय करती हो" उधर चाची ने जोर लगाया और उधर चाचाजी ने लौड़ा पेल दिया. एक ही बार में वह अंदर हो गया. चाची की चीख निकल गयी और वे छटपटाने लगीं. कोई सुन न ले और बना बनाया काम न बिगड़ जाये इसलिये मैंने हाथ से चाची


का मुंह कस कर बंद किया और चाचाजी का निपल मुंह से निकाल कर कहा. "पेलिये चाचाजी, जड़ तक उतार दीजिये, यही मौका है." और उनके होंठों पर होंठ रख कर अपनी जीभ उनके मुंह में डाल दी.

उन्हें मजा आ गया. मुझे बेतहाशा चूमते हुए उन्होंने कस के दो चार धक्कों में ही अपना पूरा आठ नौ इंची शिश्न अपनी पत्नी के चूतड़ों के बीच गाड़ दिया. चाची अब ऐसे छटपटा रही थीं जैसे कोई उन्हें हलाल कर रहा हो. उनके मुंह पर कसे मेरे हाथ पर उनके आंसू बहने लगे. जब उनकी तकलीफ़ कुछ कम हुई तो मैंने हाथ उनके मुंह से हटाया. "हा ऽ य मर गई राजा बेटा, इन्होंने तो मेरी गांड फ़ाड़ दी रे." वे बिलबिलाते हुए बोलीं.

चाचाजी को अब काफ़ी मजा आ रहा था. वे चाची के शरीर पर लेट गये और धीरे धीरे दो तीन इंच लंड अंदर बाहर करते हुए अपनी पत्नी की गांड मारने लगे. मैं पास में लेटकर उन दोनों के गाल चूमने लगा. चाची के आंसू मैंने अपनी जीभ से टिप लिये और उनका मुंह चूमने लगा. फ़िर चाचाजी के होंठों का चुंबन लेने लगा. मेरी जीभ उनके मुंह में जाते ही उन्हें और तैश आया और वे घचाघच चाची के चूतड़ों के बीच अपना लौड़ा अंदर बाहर करने लगे.

मेरे साथ उनकी चूमा चाटी जारी थी. मैं समझ गया कि मुझसे चुंबनों का आदान प्रदान करते हुए और नीचे पड़े शरीर की गांड मारते हुए उन्हें ऐसा लग रह होगा कि जैसे वे अपने गे यार दोस्तों के साथ रति कर रहे हों. मैंने अपना एक हाथ चाची की जांघों के बीच डाला और उनका क्लिटोरिस मसलने लगा. दो उंगली अंदर भी डाल दीं. अब गीता चाची को भी कुछ मजा आने लगा. उनका रोना कम हुआ और दो मिनिट में एक दो हिचकियां और लेकर वे चुप हो गयीं. उनके तेल लगे गुदा में अब चाचाजी का लंड भी मस्त फ़िसल रहा था इसलिये दर्द काफ़ी कम हो गया था.

कुछ ही देर में वे मचल मचल कर मरवाने लगीं. "मारो जी मेरी, और मारो, फ़ट जाये तो फ़ट जाये आखिर मेरे मर्द हो, मुझे बहुत अच्छा लग रहा है." मैंने चाचाजी के मुंह से अपना मुंह हटा कर कहा कि असली मजा लेना हो तो अब चाची के स्तन दबाते हुए गांड मारें.

मम्मे दबाने में चाचाजी को वह आनंद आया कि वे अपना मुंह चाची की जुल्फ़ों में छुपाकर उनकी गर्दन चूमते हुए हचक हचक कर लंड पेलने लगे. पति पत्नी में अब घचाघच गुदा संभोग शुरू हो गया. दोनों को बहुत मजा आ रहा था. मेरा काम हो गया था इसलिये मैं अब हटकर अपना लंड मुठियाते हुए तमाशा देखने लगा.

चाचाजी ने मजा ले लेकर आधा घंटा चाची की मारी तव जाकर झड़े. चाची दर्द से कराहते हुए भी मरवाती रहीं, रुकने को नहीं बोलीं, क्योंकि एक तो अब उनकी चूत भी पसीज गयी थी और फ़िर वे आखिर अपने पति से गांड मरवा रही थीं इसका उन्हें संतोष था. जब चाचाजी झड़े तो उनके गरम गरम वीर्य के फुहारे से चाची की चुदी गांड को काफ़ी राहत मिली. अपनी ही बुर में उंगली करके चाची भी झड़ ली थीं.

आज की रात सफ़ल रही थी. मैंने पहले अपना पुरस्कार वसूल किया. चाचाजी का लंड चाची की गांड से निकाल कर चूसा. वीर्य से लिथड़े हुए उस लौड़े का बहुत मजेदार स्वाद था. फ़िर गीता चाची के गुदा से मुंह लगाकर जितना हो सकता था, उतना राजीव चाचा का वीर्य निगल लिया और जीभ अंदर डाल कर खुब चाटा. फ़िर चाची की चूत चूसी. आज उसमें गजब का रस था. उन्होंने भी बड़े प्यार से चुसवाई. "मेरे लाडले, मेरे लल्ला, तूने तो आज निहाल कर दिया अपनी चाची को." मैंने उनकी बुर चूसते हुए कहा. "अभी तो कुछ नहीं हुआ चाची, कल जब चाचाजी तुम्हें चोदेंगे, तब कहना."
 
आज की रात सफ़ल रही थी. मैंने पहले अपना पुरस्कार वसूल किया. चाचाजी का लंड चाची की गांड से निकाल कर चूसा. वीर्य से लिथड़े हुए उस लौड़े का बहुत मजेदार स्वाद था. फ़िर गीता चाची के गुदा से मुंह लगाकर जितना हो सकता था, उतना राजीव चाचा का वीर्य निगल लिया और जीभ अंदर डाल कर खुब चाटा. फ़िर चाची की चूत चूसी. आज उसमें गजब का रस था. उन्होंने भी बड़े प्यार से चुसवाई. "मेरे लाडले, मेरे लल्ला, तूने तो आज निहाल कर दिया अपनी चाची को." मैंने उनकी बुर चूसते हुए कहा. "अभी तो कुछ नहीं हुआ चाची, कल जब चाचाजी तुम्हें चोदेंगे, तब कहना."

फ़िर मैं चाची पर चढ़कर उन्हें चोदने लगा. चाचाजी बड़े इंटरेस्ट से मेरा यह कारनामा देख रहे थे; आखिर कल उन्हें भी करना था. वे बीच बीच में मेरी नितंबों को चूमते और गांड का छेद चूसने लगते जिससे मैं और हचक हचक कर उनकी पत्नी को चोदने लगता. बीच में चुदते चुदते चाची ने मेरे कान में हल्के से पूछा. "लल्ला, ये मेरी बुर कब चूसेंगे? मैं मरी जा रही हूं अपना पानी इन्हें पिलाने को." चाची के कान में फुसफुसा कर मैंने जवाब दिया."आज ही शुरुवात किये देता हूं चाची, तुम देखती जाओ, एक बार तुम्हारे माल का स्वाद लग जाए इनके मुंह में, कल से खुद ही गिड़गिड़ायेंगे तुम्हारे सामने.

झड़ने के बाद जब मैंने लंड चाची की चूत से बाहर निकाला तो उसमें मेरे वीर्य और चाची के शहद का मिश्रण लिपटा हुआ था. चाचाजी कुछ देर देखते रहे और आखिर उनसे न रहा गया. उन्होंने उसे मुंह में लेकर चूस डाला. शायद शुरू में इस लिये हिचकिचा रहे थे कि स्त्री की चूत का रस न जाने कैसा लगे. शायद वह उन्हें भा गया क्योंकि बड़ी देर तक मेरा लंड चूसते रहे.
मैंने उनके बाल प्यार से बिखेर कर कहा. "चाचाजी, और बहुत माल है, यहां देखिये" कह कर मैंने चाची की बुर की
ओर इशारा किया. उसमें से मेरा वीर्य और उनका रस बह रहा था. चाचाजी झट से अपनी पत्नी की टांगों के बीच घुस कर चाची की चूत से बहता मेरा वीर्य चाटने लगे.
चाची सुख से सिहर उठीं. अपने पतिका सिर पकड़कर अपनी जांघों में जकड़ लिया और मुंह बुर पर दबा लिया. "अब नहीं छोड़ेंगे प्राणनाथ, पूरा रस पिलाकर ही रहूंगी." और वे धक्के दे देकर चाचाजी का मुंह चोदने लगीं. मुझे डर लगा कि कहीं चाचाजी बुर के स्वाद से विचक न जाये पर बुर में मेरा वीर्य काफ़ी था. चाचाजी भी उसे चाटने में जो जुटे तो चाची की बुर में से जीभ डाल कर आखरी कतरा तक चूस डाला.

तब तक चाची तीन चार बार झड़ा चुकी थीं. वह सब रस भी उनके पतिदेव के मुंह में गया. लगता है नारी की योनि का रस पसंद आया क्योंकि चाचाजी के चेहरे पर कोई हिचक नहीं थी. आखिर में तो प्यार से वे काफ़ी देर अपनी पत्नी की चूत चाटते रहे.
 
चाचाजी और मैं फ़िर मूतने के लिये छत पर चले गये. 'तू भी मूत ले रानी, फ़िर आगे का काम शुरू करते हैं." चाचाजी प्यार से बोले. "मैं बाद में कर लूंगी. तुम लोग हो आओ." वे मुस्कराकर बोलीं.

चाचाजी ने मटके का ठंडा पानी पिया और चाची को भी दिया. जब मुझे दिया तो मैंने मना कर दिया. "तुझे प्यास नहीं लगी बेटे?" उन्होंने पूछा तो मैं चुप रहा. चाची ने बिस्तर से पुकार कर कहा. "अरे वह पानी नहीं सिर्फ शरबत पीता है. आ जा अनिल, तेरा शरबत तैयार है." चाचाजी ने उनसे पूचा. "कौन सा शरबत है जो प्यार से बिस्तर में पिलाती हो? जरा मैं भी तो देखू!" चाची खिलखिलाकर बोलीं. "जल्दी आ अनिल, नहीं तो छलक जायेगा. अब नहीं रहा जाता मुझसे."

चाची बिस्तर पर घुटने टेक कर तैयार थीं. मैं झट से उनकी टांगों के बीच घुस कर लेट गया. अपनी झांटें बाजू में करके चाची ने अपनी बुर मेरे मुंह पर जमायी और मूतने लगी. मैं चटखारे लेकर उनका मूत पीने लगा. चाचाजी के चेहरे पर आश्चर्य और कामवासना के भाव उमड़ आये. "अरे तू तो मूत रही है अनिल के मुंह में?"

चाची हंस कर बोलीं. "यही तो शरबत है मेरे लाड़ले का. दिन भर और रात को भी पिलाती हूं. इसने तो पानी पीना ही छोड़ दिया है. और तुम्हारी कसम, दो हफ्ते से मैंने बाथरूम में मूतना ही छोड़ दिया है. यही है अब मेरा प्यारा मस्त चलता फ़िरता जिंदा बाथरूम.'

चाची का मूतना खतम होते होते मेरा तन कर खड़ा हो गया. इस मतवाली क्रिया को देखकर दो मिनिट में चाचाजी का भी लौड़ा तन्ना गया. चाची ने मौका देखकर तुरंत उनका लंड मुंह में ले लिया और चूसने लगीं. पति की मलाई खाने का इससे अच्छा मौका नहीं था. उधर चाचाजी गरमा कर मेरे ऊपर झुक गये और मेरा लंड मुंह में लेकर चूसने लगे. मैं सुख से सिहर उठा. देखा तो चाची अपनी टांगें खोल कर अपनी बुर मे उंगली करते हुए मुझे इशारे कर रही थीं. मैं समझ गया और किसी तरह सरक कर उनकी टांगों में सिर डालकर उनकी बुर चूसने लगा.
यह मादक त्रिकोण सबकी प्यास बुझा कर ही टूटा. चाची तीन बार मेरे मुंह में झड़ीं. मैंने चाचाजी का सिर पकड़कर खूब धक्के लगाये और उनके मुंह में झड़ कर उन्हें अपनी मलाई खिलाई. चाचाजी आखिर में झड़े और उनके लंड ने ढेर सारा वीर्य अपनी पत्नी के गले में उगल दिया.

उस रात का संभोग यहीं खतम हुआ और हम सो गये. दूसरे दिन दोपहर में आगे कहानी शुरू हुई. मेरे मुंह में चाची के मूतने से कार्यक्रम शुरू हुआ. इससे हम तीनों मस्त गरम हो गये थे. पति पत्नी बातें करने लगे कि आज क्या किया जाए. जवाब सहज था, चाची की चूत चोदना बाकी था .

उसम्मे चाचाजी अब भी थोड़ा हिचक रहे थे. आखिर पक्के गांड मारू जो थे! हमने एक बार कोशिश की पर चाची की चूत में घुसते घुसते उनका बैठ गया. आखिर एक पक्के गे के लिये यह सबसे बड़ी चुनौती थी. चाचाजी भी परेशान थे क्योंकि वे सच में अपनी पत्नी को चोदना चाहते थे.

आखिर मैंने राह निकाली. मैंने कहा, "ऐसा कीजिये चाचाजी, आप ओंधा लेटिये, मैं आपकी गांड में लंड डालता हूं. फ़िर आप चाची पर चढ़ कर उसे चोदिये. मैं ऊपर से आपकी गांड मारूंगा. आप को दोहरा मजा आ जायेगा. उस मजे में आप चाची को मस्त चोद लेंगे."

वे खुश हो गये. मेरे लंड को देखते हुए बोले. "सच बेटे, तू मेरी मारेगा? मुझे तो मजा आ जायेगा मेरे राजा." मैं थोड़ा शरमा कर बोला. "हां चाचाजी, आपकी कसी मोटी ताजी गांड मुझे बहुत अच्छी लगती है. प्यार करने का मन होता है. सोचा मौका अच्छा है, चाची का काम भी हो जायेगा.

चाचाजी ने मुझे चूम लिया. "वाह मेरे शेर, आ जा" कहकर वे झट से ओंधे मुंह के वल बिस्तर पर लेट गये और अपने चूतड़ हिला कर मुझे रिझाते हुए बोले. "देख अब मेरी गांड तेरी है बेटे, जो करना है कर, तेरी गांड तो बहुत प्यारी है मेरे लाल, बिलकुल लौंडियों जैसी, मेरी जरा बड़ी है. देख अच्छी लगती है तुझे या नहीं."
 
चाचीजी भी अब अपने ही पति की गांड मारी जाने का यह तमाशा देखने को बहुत उत्सुक हो गयी थीं. मुझे बोलीं. "चढ़ जा बेटे, चोद ले इन्हें. मैंने सोचा था कि एक साथ हनीमून में तुम दोनों एक दूसरे की गांड मारोगे. अब अपने चाचाजी के साथ की तेरी सुहागरात के लिये तेरी कुंवारी गांड रहे, इतना बस है. इनकी तो बहुतों ने मारी होगी, तू भी मार ले."

में उनके पास जाकर बैठ गया और उनके चूतड़ सहलाने लगा. पहली बार किसी मर्द की गांड इतनी पास से साफ़ देख रहा था, और वह भी अपने हट्टे कट्टे हैंडसम चाचाजी की. उनके चूतड़ मस्त भारी भरकम थे. गठे हुए मांस पेशियों से भरे, चिकने और गोरे उन नितंबों को देख मेरे लंड ने ही अपनी राय पहले जाहिर की और कस कर और टन्ना कर खड़ा हो गया. दोनों चूतड़ों के बीच गहरी लकीर थी और गांड का छेद भूरे रंग के एक बंद मुंह सा लग रहा था.

उसमें उंगली करने का मेरा मन हुआ और मैंने उंगली चाची की चूत में गीली कर के धीरे से उसमें डाली. मुझे लगा कि मुश्किल से जाएगी पर उनकी गांड में बड़ी आसानी से वह उतर गई. अंदर से बड़ा कोमल था चाचाजी का गुदाद्वार. मेरे उंगली करते ही वे हुमक कर कहा, "हा ऽ य राजा मजा आ गया, और उंगली कर ना, इधर उधर चला." मैने उंगली घुमाई और फ़िर धीरे से दूसरी भी डाल दी. फ़िर उन्हें अंदर बाहर करने लगा. आराम से उस मुलायम छेद में मेरी उंगलियां घुस रही थीं जैसे गांड नहीं, किसी युवती की चूत हो.

चाची अब तक हस्तमैथुन करने में जुट गयी थीं. हांफ़ते हुए बोलीं. "मैं कहती थी ना, तेरे जैसी कुंवारी नहीं है इनकी गांड . पर है बड़ी गहरी. लगता है मजा आ रहा है तुझे अपने चाचा की गांड में उंगली करने में." मुझे तो उस गांड पर इतना प्यार आ रहा था कि उसे चूमने की बहुत इच्छा हो रही थी.

न रहकर मैने झुककर उनके नितंबों को चूम लिया. फ़िर चूमता हुआ और जीभ से चाटता हुआ उनके गुदा के छेद की ओर बढ़ा. मुंह छेद के पास लाकर मैने उंगलियां निकाल ली और उन्हें सुंघा. चाची की गांड मारने के पहले मैंने काफ़ी बार उसमें उंगली की थी और सुंघा था, चाचाजी की गांड की मादक गंध भी मुझे बड़ी मतवाली लगी. "चुम्मा दे दे बेटे उसे, जैसे मेरी गांड को देता है. बिचारी तेरी जीभ के लिये तड़प रही है." चाची ने घचाघच मुठ्ठ मारते हुए कहा. आखिर साहस करके मैने अपने होंठ उनके गुदा पर रख दिये और चूसने लगा.

उस सौंधे स्वाद से जो आनंद मिला वह क्या कहूं. चाचाजी ने भी अपने हाथों से अपने ही चूतड़ फैला कर अपना गुदा खोला. मैं देखकर हैरान रह गया. मुझे लग रहा था कि जैसा सबका होता है वैसा छोटा सकरा भूरा छेद होगा. पर उनका छेद तो मस्त मुंह जैसा खुल गया और उसकी गुलाबी कोमल झलक देख कर मैने उसमें जीभ डाल दी.

"शाब्बास मेरे राजा, मस्त चाटता है तू गांड, जरा जीभ और अंदर डाल." चाचाजी निहाल हो कर बोले. आखिर भरपूर अपनी गांड चुसवा कर वे गरम हो गये. "मार ले अब मेरी बेटे, अब नहीं रहा जाता. तेरी चाची पर भी चढने की इच्छा हो रही है."

चाची ने मुझे पास खींच कर जोर जोर से मेरा लंड चूस कर गीला किया और फ़िर बोलीं. "चढ़ जा अब इनपर, मार ले इनकी, अब नहीं रहा जाता, इनका लंड मैं अपनी चूत में लेना चाहती हूं. मस्त गीली है इनकी गांड तेरे चूसने से, आराम से घुस जाएगा तेरा लौड़ा"

मैं चाचजी के कूल्हों के दोनों ओर घुटने जमा कर बैठा और अपना सुपाड़ा उनके गुदा में दबा दिया. चाचाजी ने अपने चूतड़ पकड़ कर खींच रखे थे और इसलिये बड़े आराम से उनके खुले छेद में पाक की आवाज के साथ मेरा शिश्नाग्र अंदर हो गया. उस मुलायम छेद के सुखद स्पर्श से मैं और उत्तेजित हो उठा और एक धक्के में अपना लंड जड़ तक उनकी गांड में उतार दिया.
 
चाची बोलीं "अनिल, मेरी गांड में लंड डालने को तुझे दस मिनिट लगे थे. इनकी में दस सेकंड में काम हो गया. अपनी पत्नी से ज्यादा मुलायम है इनकी गांड ." अब चाचाजी ने चूतड़ छोड़े और अपना छल्ला सिकोड़ कर मेरा लंड गांड से पकड़ लिया.

चाची अब तक बिलकुल तैयार थीं. नीचे बिस्तर पर एक तकिये पर अपने नितंब टिका कर और पैर फैला कर चूत खोले बांहें फैलाये अपने पति का इंतजार कर रही थीं. मुझे पीठ पर लिये ही चाचाजी उठे और उनके पैरों के बीच झुक कर बैठ गये. उनका लंड अब पूरा जोर से खड़ा था. चाचीने खुद उनके सुपाड़े को अपनी बुर के द्वर पर रखा और चाचाजी उसे पेलने लगे.
इंच इंच करके वह सोंटे जैसा लंड चाचीकी चूत में घुसने लगा. चाची आनंद से सिहर उठीं. "हाय मेरे प्राणनाथ, आज तो देवी को प्रसाद चढ़ाऊंगी! मेरी बुर कब से आपका इंतजार कर रही थी. मर गई रे!." वे दर्द से चिल्लाईं जब जड़ तक नौ इंची शिश्न उनकी जांघों के बीच में धंस गया.

चाचाजी भी अब मजा ले रहे थे. "मेरी रानी, दुखा क्या? कितनी मखमली है तेरी चूत, और कितनी गीली! अरे मुझे पता होता कि चोदने में इतना मजा आता है तो क्यों इतना समय मैं गंवाता." उनके आनंद को बढ़ाने को मैंने अपना लंड उनकी गांड में मुठियाया तो वे सिसक कर चाची पर लेट गये और उन्हें चोदने लगे. चाची भी अब तक अपना दर्द भूल कर चुदाने को बेताब हो गयी थीं.


मैं चाचाजी के ऊपर लेट गया और बेतहाशा उनकी चिकनी पीठ और मांसल कंधे चूमने लगा. मेरे वजनको आसानी से सहते हुए वे अब पूरे जोर से चाची को चोदने लगे. चाची भी दो दो शरीरों का वजन आराम से सह रही थीं क्योंकि इतने मोटे लंड से चुदाने में उन्हें स्वर्ग का आनंद आ रहा था. "चोदो जी, और जोर से चोदो, अपनी बीवी की चूत फ़ाड़ डालो, तुम्हें हक है मेरे नाथ." ऐसा चिल्लाते हुए चाची चूतड़ उचका कर चुदवा रही थीं.

चाचाजी भी सुख के शिखर पर थे. उनकी गांड में एक जवान तनाया हुआ लंड घुसा हुआ था और खुद उनका शिश्न एक तपती गीली मखमली म्यान का मजा ले रहा था. "मेरे राजा, मेरे बेटे, बहुत प्यारा है तेरा लंड, बड़ा मस्त लग रहा है गांड में, है थोड़ा छोटा पर एकदम सख्त है, लोहे जैसा. मार बेटे, अब चुपचाप न पड़ रह, गांड मार मेरी"

मैं धीरे धीरे मजे लेकर उनकी गांड मारने लगा. मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि किसी मर्द की गांड मारना इतना सुखद अनुभव होगा. और ऊपर से मैं अपने सगे चाचा की गांड मार रहा था. उनकी गांड एकदम कोमल और गरम थी और मेरे लंड को प्यार से पकड़कर सेक रही थी. अपना गुदा का छल्ला सिकोड़ सिकोड़ कर एक एक्सपर्ट की तरह चाचाजी मस्त मरवा रहे थे. मैंने अपनी बांहें चाचाजी के और चाची के शरीर के बीच घुसा कर उनकी छाती को बांहों में भर लिया और ओर जोर से गांड मारने लगा. मेरे हाथों पर चाची के कोमल स्तनों का भी दबाव महसूस हो रहा था.
 
"शाबास मेरे राजा, मार और जोर से, और मेरे निपल दबा बेटे प्लीज़, समझ औरत के हैं." चाचाजी के निपल दबाता
और उंगलियों में लेकर मसलता हुआ मैं एक चित्त होकर उनकी गांड को भोगने लगा. उनके निपल औरत की तरह सख्त हो गये थे. बिलकुल झड़ने ही वाला था पर चाची समझ गईं, बोलीं "बेटे, झड़ना नहीं, तुझे मेरी कसम, इन्हें घंटे भर मुझे चोदने दे, जब ये झड़ें फ़िर ही तू झड़ना." मैंने किसी तरह अपने आप को रोका और हांफ़ता हुआ पड़ा
रहा.

मेरे इस संयम पर खुश होकर चाची ने चाचाजी के कंधे पर से गर्दन निकाल कर मुझे चूम लिया. उनके मीठे चुंबन से मेरा हौसला बढ़ा और मैं फ़िर चाचाजी की गांड मारने लगा. चाचाजी ने भी इनाम स्वरुप अपना सिर घुमाया और अपना हाथ पीछे करके मेरी गर्दन में डालकर मेरे सिर को पास खींच लिया. "चुम्मा दे राजा, चुंबन देते हुए गांड मार अपने चाचा की."
मैमे अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिये और पास से उनकी वासना भरी आंखों में एक प्रेमी की तरह झांकता हुआ उनका मुंह चूसने लगा. सिगरेट के धुएं से मिले उनके मुंह के रस का स्वाद किसी सुंदरी के मुंह से ज्यादा मीठा लग रहा था. जल्द ही खुले मुंह में घुस कर हमारी जीभें लड़ीं और एक दूसरे की जीभ चूसते हुए हमने फ़िर संभोग शुरू कर दिया. गांड में लंड के फ़िर गहरे घुसते ही चाचाजी चहक उठे. "मार जोर से, फुकला कर दे, मां कसम, मैं भी आज तेरी चाची को चोद चोद कर फुकला कर देता हूं, हमेशा याद रखेगी, बस तू मेरी मारता रह."
घंटे भर तो नहीं पर आधा घंटे हम तीनों की यह चुदाई चलती रही. अंत में चाची झड़ झड़ कर इतनी थक गयी थीं कि चाचाजी से उन्हें छोड़ देने की गुहार करने लगीं. चाचाजी तैश में थे, और जोर से चोदने लगे. आखिर जब चाची लस्त होकर बेहोश सी हो गयीं तब जाकर वे झड़े. उनके झड़ते ही मैंने भी कस के धक्के लगाये और उनकी जीभ चूसते हुए मैं भी झड़ गया. चाचाजी वाकई गांड मराने में माहिर थे, उनकी गांड ने मेरे लंड को मानों दुहते हुए पूरा वीर्य निचोड़ लिया.

आखिर झड़ा लंड निकाल कर मैं पलंग पर पड़ा सुस्ताने लगा. अब पति पत्नी पड़े पडे. प्यार से चूमा चाटी कर रहे थे. मुझे देख कर बड़ा अच्छा लगा. आखिर मेरी भी मेहनत थी. साथ साथ अब प्रीति को मन चाहे भोगने मिलेगा यह मस्त एहसास था. मैंने चाची से कहा कि जब उनके पतिदेव अपना लंड बाहर निकालें तो मुझे सूचित कर दें; आराम से सावधानी से निकालें. दोनों समझ गये और मेरे इस चाहत पर प्यार से मुस्करा दिये.

आखिर जब चाचाजी ने अपना लंड चाची की चूत से निकाला तो मैं तैयार था. चाची ने तुरंत अपनी टांगें हवा में उठा लीं ताकि चूत मे भरा वीर्य टपक न जाये. मैंने चट से चाचाजी का मुरझाया शिश्न मुंह में लेकर चूस डाला. चाची के रस और उनके वीर्य के मिले जुले पानी को चाट कर उनका लंड साफ़ किया और आखिर उस खजाने की ओर मुड़ा जो चाची की बुर में जमा था. चूत से मुंह लगा कर जीभ घुसेड़ कर मैं उस मिश्रण का पान करने लगा. मुझे मानों अमृत मिल गया था.

जब तक मैं चाची की बुर चूस रहा था, चाचाजी मेरी गांड से खेल रहे थे. उसे एक दो बार चूमा और फ़िर एक उंगली गीली करके अन्दर डालने लगे. उंगली गई तो पर जरा मुशिल से और मुझे थोड़ा दर्द होने से मैं विचक उठा. चाचाजी मेरे गुदा के कसे कौमार्य पर फ़िदा होकर अपनी पत्नी से याचना करने लगे. "मेरी रानी, अब तो तुम्हारा काम हो गया, मैं तुम्हारा गुलाम हो गया. अब मेरी सुहागरात करवा दो इस प्यारे बच्चे के साथ जैसा तुमने वादा किया
था."
 
चाची मेरे सिर को अपनी बुर पर कस कर दबा चूत चुसवाती हुई बोलीं. "बस नरसों करा दूंगी. अब दो दिन मेरी गुलामी करो, मुझे चोदो रात दिन, चाहो तो मेरी गांड भी मार लो, पर बुर चूसना भी पड़ेगी. इतने दिन मेरी बुर का पानी व्यर्थ बहा है, अब तुम्हे पिलाऊंगी. और लल्ला तुझे भी, तू फ़िकर न कर."

मैं उठ कर बैठ गया. चाची आगे बोलीं. "लल्ला को अब तीन दिन छुट्टी देते हैं ताकि यह पूरा ताजा तवाना हो जाये. तुम दो दिन मुझे खूब भोगो, मुझे खुश कर दो. परसों रात से तुम्हें भी एक दिन का आराम दूंगी ताकि तुम अपने पूरी शक्ति से तुम इस लड़के का कौमार्य भंग करने का आनंद उठा सको."

मैंने तीन दिन सेक्स से वंचित रखे जाने एक प्लान पर विरोध किया पर दोनों ने मेरी एक न सुनी. हां, मुझे एक चुदाई का आखरी उपहार देने के स्वरूप मेरी चुदैल चाची ने यह इच्छा जाहिर की कि आज की रात भर मैं और चाचाजी एक साथ उन्हें आगे पीछे से भोगें. जाहिर था कि चाची की कामोत्तेजना अब चरम सीमा पर थी. अपने दोनों छेदों में एक एक लंड एक साथ लेना चाहती थी.
दोपहर भर आराम करके हम फ़िर चुस्त हुए. रात को बिस्तर में एक दूसरे से चूमा चाटते करते हुए हमने यह फैसला किया कि पहले चाचाजी उसकी चूत चोदेंगे और मैं गांड मारूंगा. चाचाजी ने पहले तो चाची की चूत चूसी और उसे गरम किया. एक दो बार झड़ाकर रस पिया. फ़ि अपनी पत्नी की बुर में अपना लौड़ा घुसाकर वे उसे बांहों में भरकर पीठ के बल लेट गये जिससे चाची उनके ऊपर हो गयीं. चाची की गांड उन्होंने अपने हाथों से मेरे लिये फैलायी और मैंने अपना लंड चाची के कोमल गुदा में आसानी से उतार दिया.

चाची को अब हम दोनों एक साथ चोदने लगे. मैं ऊपर से उनकी गांड मारने लगा और नीचे से चाचाजी अपनी कमर उछाल उछाल कर चोदने लगे. कुछ ही समय में एक लय बंध गयी और चाची के दोनों छेदों में सटा सट लंड चलने लगे. वे तृप्त होकर सिसकारियां भरने लगीं. हर दस मिनिट में हम पलट लेते जिससे कभी चाचाजी ऊपर होते तो कभी मैं. कभी करवट पर लेट कर आगे पीछे से चोदते. चाची तो निहाल होकर किसी रंडी जैसी गंदी गालियां देती हुईं इस डबल चुदाई का आनंद ले रही थीं.

चाचाजी बेतहाशा चाची को चूमते हुए उसे चोद रहे थे. बीच में चाची सांस लेने को अपना मुंह हटा लेतीं तो मैं और चाचाजी एक दूसरे के चुंबन लेने लगते. चाची की चूत और गुदा के बीच की दीवार तन कर इतनी पतली हो गयी थी कि मेरे और चाचाजी के लंड आपस में रगड़ रहे थे मानों हम लंड लड़ा रहे हों. हमने ऐसी लय बांध ली कि जब मेरा लंड अंदर होता तो चाचाजी का बाहर और जब वे चूत में लंड पेलते तो मैं गांड में से बाहर खींच लेता. इससे हमारे लंड आपस में ऐसे मस्त सटक रहे थे कि जैसे बीच में कुछ न हो.
 
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