hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
मेरा नाम रज़िया सईद है। मेरी उम्र अठाईस साल है और मैं दिल्ली में एक स्कूल में टीचर हूँ। मेरे शौहर का एक्स्पोर्ट का कारोबार है और हमारी अभी कोई औलाद नहीं है। मेरा फिगर ३६/२७/३८ है और कद पाँच फुट चार इंच है। मेरा रंग गोरा है, हालाँकि दूध जैसा सफ़ेद तो नहीं लेकिन काफी गोरी हूँ मैं। मुझे अपने जिस्म की नुमाईश करने की बेहद शौक है। दूसरों को अपने जिस्म के जलवे दिखाने का मैं कोई मौका नहीं छोड़ती क्योंकि मुझे अपने फिगर पर बेहद फख्र है। जिस्म की नुमाईश करते वक्त मैं सामने वाले की उम्र का लिहाज़ नहीं करती क्योंकि मेरा ये मानना है कि मर्द तो मर्द ही होता है फिर उसकी उम्र कितनी भी हो। कोई भी मर्द किसी हसीन औरत के जिस्म की झलक पाने का मौका नहीं छोड़ता फिर चाहे वो उसकी रिश्तेदार ही क्यों ना हो। चौदह से साठ साल तक की उम्र वालों को मैंने अपने जिस्म को गंदी नज़रों से ताकते हुए देखा है।
मैंने देखा है कि सभी मर्द खासतौर से मेरी गाँड को सबसे ज्यादा घूरते हैं। मेरे शौहर और दूसरे कुछ लोगों ने भी मुझे कईं दफा बताया है कि मेरी गाँड मेरे जिस्म का सबसे हसीन हिस्सा है। मैं भी ये बात मानती हूँ क्योंकि मैं जब भी चूड़ीदार सलवार-कमीज़ या टाईट जींस के साथ हाई हील वाले सैंडल पहन कर मार्किट या भीड़ से भरी बस या ट्रेन में जाती हूँ तो लोगों की नज़रें मेरी गाँड पर ही चिपक जाती हैं। कईं लोग तो मेरे चूतड़ों पर चिकोटी काटने या कईं बार मेरी गाँड पे हाथ फेर कर सहलाने से भी बाज़ नहीं आते। लोग सिर्फ मेरी गाँड को ही तवज्जो नहीं देते बल्कि मेरे मम्मों को भी छूने की कोशिश करते हैं। कईं दफा, खासतौर से जब मैं भीड़ वाली बस में मौजूद होती हूँ तो मेरे आसपास खड़े मर्द अपनी कुहनियों या कंधों से मेरे मम्मों को दबाने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा जिस स्कूल में मैं पढ़ाती हूँ वहाँ भी अपने जिस्म के जलवे दिखाने की अपनी इस आदत से बाज़ नहीं आती और जब स्कूल के लड़के भी गंदी नज़रों से कसमसते हुए मुझे देखते हैं तो मुझे बेहद मज़ा आता है।
मामूली छेड़छाड़ का मैं कभी कोई एतराज़ नहीं करती लेकिन अगर मेरी मरज़ी के बगैर कभी कोई जबरदस्ती हद पार करने की कोशिश करे तो उसकी अकल ठिकाने लगा देती हूँ। ये सब पब्लिक में होने की वजह से ये बिल्कुल मुश्किल नहीं होता। पहले तो मैं गुस्से से घूरती हूँ और अगर कोई शख्स फिर भी बाज़ ना आये तो शोर मचा देती हूँ और आसपास के लोग फिर उसकी खबर ले लेते हैं। इसका ये मतलब नहीं है कि मैं कभी भी हद पार नहीं करती क्योंकि कभी-कभार मेरा दिल हो तो बात चुदाई तक भी पहूँच जाती है। अब तक मैंने कईं अजनबियों के लण्ड अपनी चूत में लिये हैं। महीने में एक-दो बार तो ऐसा हो ही जाता है। अजनबियों से चुदवाने का ये सिलसिला दो साल पहले ही शुरू हुआ था। उस कहानी की लेखिका रज़िया सईद हैं।
अब मैं वो किस्सा बयान करने जा रही हूँ जब मैंने पहली बार बहक कर अपने जिस्म की नुमाईश करने और थोड़ी-बहुत छेड़छाड़ की खुद की बनायी हद पार की और अजनबियों के साथ चुदाई में शामिल हो गयी। मेरा यकीन मानिये, मुझे इस चुदाई में बेहद मज़ा आया जबकि ये वाकया एक गरीब टाँगेवाले के साथ हुआ था। उस वाकये के बाद ही मेरी हिम्मत खुल गयी और मैं कभी-कभार हद पार करते हुए अजनबियों से चुदवाने लगी।
हुआ ये कि एक बार मुझे दूर की रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के लिये हमारे गाँव जाना पड़ा। मैं वहाँ अपने अपनी सास और चचेरे देवर के साथ जा रही थी। मेरे शौहर काम के सिलसिले में टूर पे गये हुए थे और वहीं से सीधे शदी में पहुँचने वाले थे। मेरा चचेरा देवर जो हमारे साथ जा रहा था वो सोलह साल का बच्चा था। अब आप सोचेंगे कि सोलह साल का लड़का तो बच्चा नहीं होता लेकिन अकल से आठ-नौ साल के बच्चे जैसा ही था। गाँव में पला बड़ा हुआ था और जिस्मानी रिश्तों से बिल्कुल अंजान था। मैं ये बात यकीन से इसलिये कह सकती हूँ कि मैं कईं बार अपने हुस्न और जिस्म की नुमाईश से उसे फुसलाने की नाकाम कोशिश कर चुकी थी। आखिर में मैं इस नतीजे पर पहुँची कि इस बेवकूफ गधे को फुसलाने में वक्त ज़ाया करने का कोई फायदा नहीं। मेरी सास की उम्र साठ साल है और उनकी नज़र कमज़ोर है। उन्हें रात के वक्त दिखायी नहीं देता। हम ट्रेन से अपने गाँव जा रहे थे और ट्रेन स्टेशन पर रात को तीन घंटे देर से सवा नौ बजे पहुँची जबकि पहुँचने का सही वक्त शाम के साढ़े छः का था।
मैंने देखा है कि सभी मर्द खासतौर से मेरी गाँड को सबसे ज्यादा घूरते हैं। मेरे शौहर और दूसरे कुछ लोगों ने भी मुझे कईं दफा बताया है कि मेरी गाँड मेरे जिस्म का सबसे हसीन हिस्सा है। मैं भी ये बात मानती हूँ क्योंकि मैं जब भी चूड़ीदार सलवार-कमीज़ या टाईट जींस के साथ हाई हील वाले सैंडल पहन कर मार्किट या भीड़ से भरी बस या ट्रेन में जाती हूँ तो लोगों की नज़रें मेरी गाँड पर ही चिपक जाती हैं। कईं लोग तो मेरे चूतड़ों पर चिकोटी काटने या कईं बार मेरी गाँड पे हाथ फेर कर सहलाने से भी बाज़ नहीं आते। लोग सिर्फ मेरी गाँड को ही तवज्जो नहीं देते बल्कि मेरे मम्मों को भी छूने की कोशिश करते हैं। कईं दफा, खासतौर से जब मैं भीड़ वाली बस में मौजूद होती हूँ तो मेरे आसपास खड़े मर्द अपनी कुहनियों या कंधों से मेरे मम्मों को दबाने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा जिस स्कूल में मैं पढ़ाती हूँ वहाँ भी अपने जिस्म के जलवे दिखाने की अपनी इस आदत से बाज़ नहीं आती और जब स्कूल के लड़के भी गंदी नज़रों से कसमसते हुए मुझे देखते हैं तो मुझे बेहद मज़ा आता है।
मामूली छेड़छाड़ का मैं कभी कोई एतराज़ नहीं करती लेकिन अगर मेरी मरज़ी के बगैर कभी कोई जबरदस्ती हद पार करने की कोशिश करे तो उसकी अकल ठिकाने लगा देती हूँ। ये सब पब्लिक में होने की वजह से ये बिल्कुल मुश्किल नहीं होता। पहले तो मैं गुस्से से घूरती हूँ और अगर कोई शख्स फिर भी बाज़ ना आये तो शोर मचा देती हूँ और आसपास के लोग फिर उसकी खबर ले लेते हैं। इसका ये मतलब नहीं है कि मैं कभी भी हद पार नहीं करती क्योंकि कभी-कभार मेरा दिल हो तो बात चुदाई तक भी पहूँच जाती है। अब तक मैंने कईं अजनबियों के लण्ड अपनी चूत में लिये हैं। महीने में एक-दो बार तो ऐसा हो ही जाता है। अजनबियों से चुदवाने का ये सिलसिला दो साल पहले ही शुरू हुआ था। उस कहानी की लेखिका रज़िया सईद हैं।
अब मैं वो किस्सा बयान करने जा रही हूँ जब मैंने पहली बार बहक कर अपने जिस्म की नुमाईश करने और थोड़ी-बहुत छेड़छाड़ की खुद की बनायी हद पार की और अजनबियों के साथ चुदाई में शामिल हो गयी। मेरा यकीन मानिये, मुझे इस चुदाई में बेहद मज़ा आया जबकि ये वाकया एक गरीब टाँगेवाले के साथ हुआ था। उस वाकये के बाद ही मेरी हिम्मत खुल गयी और मैं कभी-कभार हद पार करते हुए अजनबियों से चुदवाने लगी।
हुआ ये कि एक बार मुझे दूर की रिश्तेदार की शादी में शामिल होने के लिये हमारे गाँव जाना पड़ा। मैं वहाँ अपने अपनी सास और चचेरे देवर के साथ जा रही थी। मेरे शौहर काम के सिलसिले में टूर पे गये हुए थे और वहीं से सीधे शदी में पहुँचने वाले थे। मेरा चचेरा देवर जो हमारे साथ जा रहा था वो सोलह साल का बच्चा था। अब आप सोचेंगे कि सोलह साल का लड़का तो बच्चा नहीं होता लेकिन अकल से आठ-नौ साल के बच्चे जैसा ही था। गाँव में पला बड़ा हुआ था और जिस्मानी रिश्तों से बिल्कुल अंजान था। मैं ये बात यकीन से इसलिये कह सकती हूँ कि मैं कईं बार अपने हुस्न और जिस्म की नुमाईश से उसे फुसलाने की नाकाम कोशिश कर चुकी थी। आखिर में मैं इस नतीजे पर पहुँची कि इस बेवकूफ गधे को फुसलाने में वक्त ज़ाया करने का कोई फायदा नहीं। मेरी सास की उम्र साठ साल है और उनकी नज़र कमज़ोर है। उन्हें रात के वक्त दिखायी नहीं देता। हम ट्रेन से अपने गाँव जा रहे थे और ट्रेन स्टेशन पर रात को तीन घंटे देर से सवा नौ बजे पहुँची जबकि पहुँचने का सही वक्त शाम के साढ़े छः का था।