Hindi Porn Kahani वो कौन थी ??? - SexBaba
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Hindi Porn Kahani वो कौन थी ???

hotaks444

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वो कौन थी ??? 

लेखक - दाग्रेटवॉरियर

19 जुलाइ 2007 ट्रेन मे

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यह उस समय की बात है जब मैं इंटर फर्स्ट एअर का एग्ज़ॅम दे चुका था और अभी सेकेंड एअर के लिए कॉलेजस नही खुले थे. मेरे डॅड जो एक लीगल प्रॅक्टिशनर ( वकील ) हैं उन्हों ने हमारे घर के ऊपेर के हिस्से मे एक पोल्ट्री फार्म बनाने का निर्णय लिया. पहले मैं आपको अपने घर के बारे मे

बता दू. हमारा घर बोहोत ही बड़ा है. 2 माले की पुरानी हवेली टाइप जिसके कमरे भी बोहोत बड़े बड़े हैं और बोहोत सारे हैं. घर का आँगन भी बोहोत बड़ा है जहाँ गर्मिओ के मौसम मे शाम को पानी का छिड़काव करके बैठ ते हैं. आँगन मे नीम के पेड़ भी हैं जिनसे ठंडी हवा भी आती रहती है. घर बड़ा है तो घर की छतें ( रूफ ) भी बोहोत ही ऊँची ऊँची हैं. वही एक पोर्षन मे पोल्ट्री फार्म का सोचा मेरे डॅडी ने छत पर एक टेंपोररी शेड डलवा दिया चारों तरफ से जाली लगा दी गई और उसके फ्लोर पे धान की लियरिंग भी करवा दी गई. पोल्ट्री का एक छोटा सा फार्म तो रेडी हो गया अब लाना था तो बॅस चिकन को. यह पोल्ट्री फार्म बिज़्नेस के लिए नही खोला गया था बस घर के लिए और आस पड़ोस के लोगो को फ्री मे एग्स देने के लिए बनाया गया था.

डॅडी को उनके किसी दोस्त ने किसी गाँव का पता बताया के वाहा अछी चिकन मिल जयगी. वो गाँव मेरे शहेर से बोहोत ज़ियादा दूर तो नही था पर हा ट्रेन से सफ़र कर ने के लिए पहले कुछ डिफरेंट डाइरेक्षन मे जाना पड़ता था फिर वाहा से दूसरी ट्रेन पकड़ के उस गाँव के करीब वाले रेलवे स्टेशन तक जाना पड़ता था उसके बाद शाएद 30 से 45 मिनिट का रास्ता बैल गाड़ी ( बुलक कार्ट ) मे तय करना पड़ता था. उस गाओं मे मेरे डॅडी का एक क्लाइंट भी रहता था जो गाँव का मुखिया भी था तो उस ने मेरे डॅडी से कहा के आप किसी को भेज दीजिए मैं सारा इंतज़ाम कर दूँगा और पोल्ट्री को भी डाइरेक्ट आपके शहेर के लिए लॉरी मे बुक कर दूँगा.

मैं ने सिर्फ़ गाँव का नाम ही सुना था और कभी ट्रेन या बस से सफ़र करते हुए विलेजस को दूर से ही देखा था पर सही मानो मैं विलेज लाइफ से वाकिफ़ नही था और ऐसे मौके को हाथ से जाने भी नही देना चाहता था. सोचा के एक साथ ट्रेन और बैल गाड़ी का सफ़र !!! मज़ा आ जाएगा मैं बोहोत एग्ज़ाइटेड हो गया था.

डॅडी से बोला तो उन्हो ने भी सोचा के चलो कॉलेज की भी छुट्टियाँ है तुम ही चले जाओ. मेरी समझ मे चिकन की सेलेक्षन क्या आनी थी वो तो बॅस नॉमिनल ही जाना था और अंदाज़े से कुछ पेमेंट करना था बाकी पेमेंट तो चिकेन्स के आने के बाद ही करनी थी. 300 चिकेंस का ऑर्डर करना था. यह कोई बिज़्नेस के लिए नही था बॅस ऐसे ही शौकिया तौर पे रखना था ता के घर के लोग और खानदान के लोग इस्तेमाल कर सके और पास पड़ोस मे बाँट सके.

सुबह सुबह सफ़र शुरू हो गया. ट्रेन से पहले तो गुंटकाल जंक्षन तक चला गया वाहा से ट्रेन दूसरी चेंज कर के उस गाँव के पास वेल स्टेशन का टिकेट ले लिया ( अब तो उस गाँव का नाम भी याद नही ). गुंटकाल से मीटर गेज ट्रेन मे जाना था. मीटर गेज ट्रेन छोटी ट्रेन होती है. उसके डिब्बे भी छोटे होते हैं. और डिब्बे के बीच मे रास्ता भी छोटा सा ही होता है. यूँ समझ ले के आज कल जैसे ट्रेन्स हैं वो ब्रॉड गेज ट्रेन्स हैं. मीटर गेज उसकी तकरीब 3/4थ होती थी. ( अब तो खैर मीटर गेज ट्रेन्स बंद हो चुकी हैं पर तब चला करती थी लैकिन सिर्फ़ रिमोट टाइप के इंटीरियर विलेजस को करीब के शहेर तक कनेक्ट करने के लिए ही चला करती थी ). खैर मीटर गेज ट्रेन मे सफ़र करने का और देखने का पहला मौका था. ट्रेन चल पड़ी तो एक अजीब सा एहसास हुआ थोडा मज़ा भी आया एक नये सफ़र का. वो ट्रेन बोहोत हिल रही थी जैसे कोई झूला झूला रहा हो. दिन का समय होने के बावजूद ट्रेन के झूला झुलाने से नींद आ रही थी.

दिन के तकरीबन 11 बजे के करीब उस गाओं के करीब वाले स्टेशन पे ट्रेन पहुँची तो मेरे डॅडी के उस क्लाइंट का बेटा जिसका नाम लक्ष्मण था वो बैल गाड़ी लिए स्टेशन पे मेरा इंतेज़ार कर रहा था. लक्ष्मण के साथ उसके गाँव तक एक घंटे मे पहुँच गये. खेतों मे से बैल गाड़ी गुज़र रही थी तो बोहोत अछा लग रहा था. खेतों मे उगी हुई फसल ( पता नही कौनसी थी ) उसकी एक अनोखी सी खुसबू मंन को बोहोत भा रही थी. बैल गाड़ी मे सफ़र करने का अपना ही मज़ा है. एक तरफ बैठो तो एक ही झटके मे दूसरे तरफ हो जाते हैं. हिलते झूलते गाओं को पोहोन्च गये.

लक्ष्मण के घर मे खाना खाया. यह टिपिकल सफ़र की वजह से जो घर से खा के निकला था वो सब हजम हो गया था और पेट पूरा खाली हो गया था. बोहोत ज़ोर की भूक लगी थी. लक्ष्मण की मा ने बोहोत अछा और मज़े दार खाना बनाया था बोहोत जम्म के खाया. खाने के बाद एक बड़ा सा ग्लास लस्सी का पिलाया गया तो तबीयत मस्त हो गई. अब तो मंन कर रहा था के थोड़ा रेस्ट होना चाहिए बॅस यह सोच ही रहा था के लक्ष्मण के पिताजी जिनका नाम विजय आनंद था. .

वो गाओं के मुखिया भी थे. गाओं वाले सब उनको इज़्ज़त से लालजी कह कर बुलाते थे. लाला जी ने मुझ से कहा बेटा थोड़ा सा आराम कर लो थोड़ी ही देर

मे चलते है तुम चिकेन्स देख लेना. मैं तो लेट ते ही सो गया तो शाएद 2 घंटे के बाद आँख खुली.

शाम के ऑलमोस्ट 3 बजे हम राजू के फार्म पे पहुचे. राजू के पास ही चिकेन्स का ऑर्डर देना था. राजू का फार्म लालजी के घर से ज़ियादा दूर नही था. हम चलते चलते ही पोहोन्च गये. देखा तो वाहा पे छोटी छोटी मुर्गियाँ ( चिकेन्स ) थी. मेरी समझ मे नही आया. मैं तो समझ रहा था के बड़ी बड़ी पर्चेस करना है लैकिन यहा तो छोटी छोटी मुर्घियाँ थी.
 
राजू ने बतया के इतनी छोटी ही पर्चेस की जाती है और फिर उनको खिला पीला के बड़ा किया जाता है और फिर वो अंडे ( एग्स ) देने लगती है और जब अंडे देना बंद कर देती हैं तो उनको बेच दिया जाता है या काट के खा लिया जाता है और फिर से छोटे छोटे बचे पाले जाते हैं.... खैर थोड़ी ही देर मे यह काम भी हो गया. राजू ने कहा के वो उसको बम्बू के टुकड़ों के एस्पेशली बने हुए केज मे पॅक कर के ट्रांसपोर्ट मे डाल देगा.

वापस लालजी के साथ उनके घर चले गये. शाम हो गई थी बाहर ही बैठ के चाइ पी.

वहाँ बाहर खुली हवा मे बैठना बोहोत अछा लग रहा था और अब ठंडी ठंडी हवा चलना शुरू हो गई थी जो अपने साथ खेतों की मस्तानी सी सुगंध ला रही थी. हमेशा सुनते आए थे के गाओं मे जल्दी शाम और जल्दी रात हो जाती है जो सच मे वाहा देखने को मिला. शाम के 5 या 5:30 हो रहे होंगे लैकिन ऐसे लग रहा था जैसे पता नही कितनी रात हो गई. ट्रेन का टाइम 7 बजे का था और फिर एक घंटे का रास्ता स्टेशन तक का था तो लालजी ने बैल गाड़ी का इंतेज़ाम कर के मुझे स्टेशन भेज दिया.

मैं स्टेशन पहुचा तो मेरे सिवा और कोई नही था. स्टेशन की कोई बिल्डिंग जैसी नही थी. बॅस एक छोटा सा रूम था जितने हमारे घरों मे बातरूम्स होते हैं ऑलमोस्ट उसी साइज़ का था. देखने गया के वो क्या है तो पता चला के वो टिकेट काउंटर है जिस्मै कोई भी नही है एक आदमी के बैठने की जगह है और एक चेर पड़ी हुई है. बैल गाड़ी मुझे स्टेशन पे छोड़ के चली गई कियों के उसको वापस गाओं जाना था. मैं स्टेशन पे अकेला रह गया. प्लॅटफॉर्म बोहोत बड़ा तो नही था लैकिन बोहोत छोटा भी नही था लंबा ही लंबा था बॅस.

मुझे थोड़ा डर भी लग रहा था के इतने बड़े अंधेरे प्लॅटफॉर्म पे मैं अकेला हू. किस्मत से ट्रेन भी आने का नाम नही ले रही थी. थोड़ी ही देर मे अंधेरा छाने लगा और स्टेशन पे कोई लाइट का इंतेज़ाम भी नही था और किस्मेत से रात भी अंधेरी थी शाएद अमावस की रात थी चाँद बिल्कुल भी नही था. बॅस दूर से

ही किसी झोपडे से दिए की रोशनी आ जाती तो आ जाती और अब तो मुझे यह भी समझ मे नही आ रहा था के ट्रेन किस तरफ से आएगी. थोड़ी ही देर मे मुझे एक और आदमी नज़र आया तो मैं उस के पास गया तो पता चला के वो टिकेट काउंटर क्लर्क है. मैं ने टिकेट पर्चेस किया और उस से पूछा के गुंटकाल जंक्षन जाने वाली ट्रेन किस तरफ से आएगी तो उस ने एक डाइरेक्षन बता दी के इधर से आएगी. अब मैं उस डाइरेक्षन से ट्रेन के आने का इंतेज़ार करने लगा.

ट्रेन 7 बजे नही बलके ऑलमोस्ट 8 बजे के करीब आई. देखा तो बॅस एंजिन मे ही लाइट थी बाकी सारे डिब्बे अंधेरे मे डूबे हुए थे. किसी भी डिब्बे मे लाइट नही थी. लगता था अंधेरी ट्रेन है. नॉर्मली जैसे ट्रेन स्टेशन पे रुकती है तो चाइ पानी वालो की आवाज़ें या पॅसेंजर का उतरना चढ़ना लगा रहता है वैसा कुछ नही था. सामने डिब्बा आया मैं उस मे ही चढ़ के अंदर घुस्स गया. . अंधेरा डिब्बा खेत मे काम करने वाले मज़दूरों से खचा खच भरा हुआ था. बड़ी मुश्किल से उस का दरवाज़ा खोला और मैं अंदर घुस गया. अंधेरे डिब्बे मे जब आँखें अड्जस्ट हुई तो और डिब्बे के अंदर देखा तो पता चला के डिब्बे के सारे फ्लोर पे खेतों मे काम करने वाले मज़दूर सो रहे हैं. कोई बैठे बैठे ही सो रहा है कोई छोटी सी जगह मे पैर मोड़ के लेट के सो गया है. बड़ी मुश्किल से खड़े रहने की जगह मिली वो भी दरवाज़ा बंद करने के बाद वही की जो जगह होती है वोही मिली बस. हर तरफ लोग बैठे सो रहे थे और इतनी जगह भी नही थी के मैं दोनो पैर एक साथ रख के खड़ा रहूं तो मुझे ऐसी जगह मिली जहा कोई ऑलरेडी बैठा हुआ था तो मैं ऐसे खड़ा हुआ के मेरा एक पैर उसके एक तरफ और दूसरा पैर उसके दूसरे तरफ था मानो के जैसे वो मेरी टाँगों के बीच बैठा सो रहा हो मेरा मूह दरवाज़े की तरफ था और मैं बाहर की तरफ देख रहा था बाहर भी अंधेरा छाया हुआ था और एक अजीब सा साइलेन्स था स्टेशन पे और डिब्बे मे से मज़दूरों के सोने की गहरी गहरी साँसें सुनाई दे रही थी.

ट्रेन 2 – 4 मिनिट मे ही धीमी रफ़्तार से चल पड़ी. बाहर ठंडी हवा चल रही थी और ट्रेन के चलने से कुछ ज़ियादा ही महसूस हो रही थी और ट्रेन के हिलने झूलने से और सारा दिन काम करने से थक कर लोग और मस्त हो के गहरी नींद सो रहे थे जैसे उनको ट्रेन मे ही सोते रहना है सुबह तक. ट्रेन के अंधेरे मे यह भी पता नही चल रहा था के बैठे लोगो मे कौन मर्द है और कौन औरत है.

बाहर की ठंडी हवा मुझे बोहोत अछी लग रही थी बदन मे एक मस्ती की सरसराहट हो रही थी. मैं दोपेहेर मे सो गया था इसी लिए मुझे नींद नही आ रही थी और इस पोज़िशन मे सोना भी मुश्किल था. मैं खिड़की से बाहर देख रहा था. मेरे टाँगों के बीच जो भी बैठा था उसका हेड का पोर्षन मेरे जाँघो के करीब लग रहा था और जब ट्रेन झटका खाती तो उसका हेड भी मेरी जाँघो से टकराता तो लंड मे भी एक मस्ती आ रही थी और मेरा लंड धीरे धीरे उठने लगा था.
 
थोड़ी ही देर मे मुझे महसूस हुआ के मेरे लंड पे किसी का हाथ लगा. पहले तो मैं यह समझा के जो भी नीचे बैठा है उसने अपने सर को खुज़ाया होगा और इसी लिए उसका हाथ बाइ मिस्टेक मेरे लंड पे लगा होगा. पर अब कुछ नही हो सकता था इस बात का लंड को तो पता नही होता ना लंड तो बस इतना जानता है के किसी ने उसको नींद से जगाया है और फिर मेरा लंड एक ही सेकेंड मे बल खा के सीधा खड़ा हो गया. पॅंट के अंदर अंडरवेर भी नही पहना था इसी लिए अंदर ही मेरे पॅंट की ज़िप से रगड़ रा था और बाहर निकलने को मचल रहा था. 2 मिनिट के अंदर ही वो हाथ फिर से ऊपेर आया और मेरे लंड पे रुक गया. मैं ने सोचा के देखते है यह हाथ क्या करवाई करता है मैं अंजान ही बना रहा. वो हाथ अब मेरे लंड को धीरे से पॅंट के ऊपेर से ही सहला रहा रहा था मसाज जैसे कर रहा था. मेरा और मेरे लंड का मस्ती के मारे बुरा हाल था. हाथ छोटा ही था तो ऐसा गेस हुआ के किसी लड़की का हाथ है और लड़की भी ज़ियादा बड़ी नही है.

अब वो हाथ मेरे लंड को अछी तरह से दबा रहा था मैं अंजान ही बना रहा. उस हाथ ने मेरे जीन्स की चैन खोली और पिंजरे मे बंद शेर को आज़ाद कर दिया. ठंडी हवा का झोका तने हुए लंड से लगते ही वो और जोश मे आ गया और हिलने लगा. उस ने लंड को आगे पीछे करना शुरू कर दिया. मेरे लंड मे से प्री कम निकल रहा था. मेरा बॅस नही चल रहा था के वो जो भी हो उसको नीचे लिटा के चोद डालूं. थोड़ी देर तक दबाने के बाद वो अपनी जगह पे खड़ी हो गयी और मेरे हाथ पकड़ के अपने सीने पे रखा तो पता चला कि वो कोई लड़की थी और उसने नीचे बैठे ही बैठे अपने ब्लाउस के सामने के पूरे बटन्स खोल दिए हैं. खेतों के मज़दूर लोग तो अंदर ब्रस्सिएर वाघहैरा नही पेहेन्ते इसी लिए मेरा हाथ डाइरेक्ट उसके नंगी चूचियो पे लगा और मैं उसको पकड़ के दबाने लगा.

आअह क्या मस्त और वंडरफुल छातियाँ थी उस लड़की की कि क्या बताऊं. छोटी छोटी चुचियाँ पूरे हाथ मे समा गयी थी शाएद 28 या 30 का साइज़ होगा.

सख़्त चुचिओ को मैं दबा रहा था. उसके पास से पसीने की स्मेल भी आ रही थी पर अब वो स्मेल मुझे क्रिस्चियन डियार के महनगे पर्फ्यूम से भी ज़ियादा अछी लग रही थी.

उसकी हाइट मुझे से कम थी. मेरे चेस्ट तक की हाइट होगी उसकी. उसका हाथ मेरे लंड से कंटिन्यू खेल रहा था मुझे बोहोत ही मज़ा आ रहा था. ट्रेन के धक्को से कभी मैं सामने को खिसक जाता तो मेरा तना हुआ लंड उसके खुले ब्लाउस से उसके बदन से लग जाता तो और ज़ियादा मज़ा आता. मुझे उसका फेस बिल्कुल भी नज़र नही आ रहा था. ट्रेन मे तो अंधेरा था ही बाहर भी अंधेरा ही था. और ट्रेन भी धीमी गति से चल रही थी.

मैं अब थोड़ा और बोल्ड हो गया और उसकी जाँघो को तलाश करते करते उसकी चूत पे हाथ रख दिया और उसकी चूत को मसल ने लगा. उसने मीडियम साइज़ की स्कर्ट पहनी हुई थी जो उसके घुटने तक आती थी. थोड़ा सा झुक के उसके स्कर्ट के ऊपेर से ही उसकी चूत का मसाज करने लगा. मेरा हाथ उसकी चूत पे लगते ही पहले तो उसने अपनी टाँगो को खोल दिया और फिर उसने अपने चूतड़ उठा के मेरे हाथ पे अपनी चूत घिसना शुरू किया. अब मैं हाथ से आहिस्ता आहिस्ता उसके स्कर्ट को उठा के उसकी चूत पे डाइरेक्ट हाथ रख दिया. अफ मुझे लगा जैसे कोई गरम भट्टी मे मेरा हाथ लगा हो उतनी गरम चूत थी उसकी जैसे चूत मैं आग लगी हो. पॅंटी तो शाएद खेतों मे काम करने वाले पेहेन्ते ही नही. उसकी चूत पे हल्की हल्की और सिल्की सॉफ्ट जैसी झांतें भी उगी हुई थी ऐसा लगता था के अभी नई नई झातें आना शुरू हुई हैं. चूत के लिप्स के बीचे मे उंगली डाला तो पता चला के वो तो बे इंतेहा गीली हो चुकी है पता नही कब से मुझे देख रही थी और अंदर ही अंदर गरम हो रही थी.
 
एक हाथ से उसकी चूत को मसल रहा था दूसरे हाथ से एक ब्रेस्ट को दबा रहा था और दूसरे ब्रेस्ट को चूस रहा था और उसका हाथ मेरे लोहे जैसे सख़्त लंड को पकड़े हुए था. लंड पकड़ के किसी एक्सपर्ट की तरह आगे पीछे कर रही थी और साथ मे दबा भी रही थी. उसकी बिल्ट बोहोत बड़ी नही थी उसके फिगर को देखते हुए लगता था के शाएद 14 या 15 साल की लड़की होगी. बूब्स भी बोहोत ज़ियादा बड़े नही थे पर थे बड़े सख़्त. मीडियम साइज़ के सेब जितना साइज़ होगा. दबाने मे और चूसने मे बोहोत मज़ा आ रहा था. अब और ज़ियादा सबर करना मुश्किल हो रहा था तो मैं ने उसकी गंद को दोनो हाथो से पकड़ के मसलना शुरू किया और उसकी गंद पकड़ के उसको उठा लिया. मेरे उठा ते ही उसने इमीडीयेट्ली अपनी टाँगें मेरे कमर पे लपेट ली. उसकी गंद को मैं ने डोर की खुली खिड़की से टीका दिया. मेरा लंड अकड़ के मेरे पेट से टीका के ऑलमोस्ट 45 डिग्रीस का आंगल बना रहा था ऊपेर को उठ गया था जोश मे और हिल रहा था.

मैं एक स्टेप और आगे हो गया और उसकी खुली स्कर्ट मे से उसकी चूत पे लंड को टीका दिया. चूत तो बोहोत ही गीली हो गई थी मेरे लंड मे से निकलता हुआ प्री कम उसकी गीली चूत को और ज़ियादा गीला और स्लिपरी बना रहा था. मैं अपनी गंद को धक्का देके लंड उसकी चूत मे घुसेड़ना शुरू किया तो वो चूत के लिप्स के बीच मे से स्लिप हो के उसकी क्लाइटॉरिस से टकराया तो उसके मूह से एक सिसकारी निकल गई. ऐसे ही एक बार फिर से ट्राइ किया, लंड तो ऊपेर को उठा हुआ था इसी लिए एक बार फिर स्लिप हो गया तो उसने अपने हाथ मे मेरा लंड पकड़ के अपने चूत के खुले लिप्स के अंदर से चूत के होल से सटा दिया और चूत मे मेरे लंड को घिसने लगी आअहह बोहोत मज़ा आ रहा था. मैं उसके बूब्स को चूस रहा था और वो मेरा लंड पकड़े अपनी गीली गीली गरम चूत मे घिस्स रही थी.

क्रमशः.......................
 
गतान्क से आगे...................

गीली चूत मे लंड का सूपड़ा सटा हुआ था और एक धक्का लगाया तो लंड का सूपड़ा थोड़ा सा अंदर घुस गया. चूत बोहोत ही टाइट लग रही थी. वो मुझ से ज़ोर से लिपटी हुई थी और टाँगें मेरी कमर से लपेटी हुई थी जिस से उसकी चूत खुल गई थी. बाहर से आती हुई ठंडी हवा के झोके से सारा दिन काम कर के थके हुए पॅसेंजर्स और ज़ियादा गहरी नींद सो रहे थे सिर्फ़ एक लंड और एक चूत जाग रहे थे. ट्रेन की खिड़की जिसपे उसकी गंद टिकी हुई थी ऐसे फर्स्ट क्लास हाइट पे थी और ऐसी मस्त पोज़िशन पे थी के लंड और चूत दोनो एक ही लेवेल पे थे. लंड के सूपदे को चूत के सुराख मे रखे रखे मैं उसके खुले ब्लाउस से उसकी चुचियाँ चूसने लगा जो मेरे मूह के सामने थी.

उसने एक हाथ से मेरा सर पकड़ के अपनी चुचिओ मे घुसाया हुआ था और दूसरे हाथ से मेरे लंड को पकड़ के गीली और गरम चूत के छोटे से सुराख मे घिस रही थी. दोनो मज़े से पागल हो रहे थे. ट्रेन के कंटिन्यू हिलने से लंड ऑटोमॅटिकली उसकी गीली चूत मे आगे पीछे हो रहा था मगर मैं ने फिर भी थोड़ा सा सूपड़ा बाहर निकाल के अंदर घुसा दिया तो पूरे का पूरा सूपड़ा ट्रेन के धक्के से चूत के सुराख मे घुस गया और वो मुझ से लिपट गई. ऐसे ही धीरे धीरे हल्के हल्के धक्को से लंड को ऑलमोस्ट आधा उसकी चूत के अंदर घुसेड दिया. उसकी चूत बोहोत ही टाइट लग रही थी ऐसे लगता था जैसे किसीने मेरे लंड को ज़ोर से कस के टाइट पकड़ लिया हो. लंड जैसे जैसे अंदर घुस रहा था उसकी ग्रिप टाइट हो रही थी.

लंड को अब एक मिनिट के लिए उसकी चूत के अंदर ही छोड़ के उसके चुचिओ को मसल्ने और चूसने लगा आअहह क्या मज़ा आ रहा था वंडरफुल चुचियाँ थी उसकी छोटी छोटी जो के मेरे मूह मे पूरी समा गई थी. चुचिओ को चूसना शुरू किया तो वो और मस्ती मे आ गई और चूस्ते चूस्ते लंड को धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगा. लगता था के उसका जूस निकल गया इसी लिए उसकी चूत मे मेरा आधा लंड ईज़िली अंदर बाहर हो रहा था. चूत का जूस लंड पे लगने से लंड चिकना और स्लिपरी हो गया था तो मैं ने अपना लंड पूरे का पूरा बाहर निकाल के एक ज़ोर का झटका मारा तो उसके मूह से एक ज़ोर दार चीख निकल गैइ आआआआआआआआआआईयईईईईईईईईईईईईईईईईईई

ईईईईईई ऊऊऊऊऊऊफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ आआआआआआआहह

सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स आआआआआआआअहह और मुझ से बोहोत ही ज़ोर से लिपट गई. उसकी चीख ट्रेन की सीटी की आवाज़ मे डब गई और किसी ने कुछ नही सुना और कोई नींद से उठा भी नही कियॉंके एंजिन के सीटी की आवाज़ से वो सब वाकिफ़ थे और नींद मे सिटी सुनने के आदि हो चुके थे.

लंड को चूत की गहराईओं तक घुसेड के मे थोड़ी देर के लिए रुक गया ता के उसकी चूत मेरे मोटे लोहे जैसे लंड के साइज़ को अड्जस्ट कर ले. उसने मुझे ज़ोर से पकड़ा हुआ था ज़ोर ज़ोर से साँस ले रही थी और उउउउउह्ह्ह्ह्ह ईईएहह और आआआहह जैसी आवाज़े निकाल रही थी. फिर तकरीबन 2 – 3 मिनिट मे उसकी साँसें ठीक हुई तो मैने धक्के मार मार के उसको चोदना शुरू कर दिया. पहले धीरे धीरे आधा लंड गीली और टाइट चूत से निकाल निकाल के चोदने लगा वो मुझ से लिपटी रही आअहह बोहोत मज़ा था मज़दूर की टाइट चूत मे.

अब मैं अपनी गंद पीछे कर के लंड को पूरा हेड तक बाहर निकाल निकाल के चूत मे घुसेड के चोद रहा था. लंड उसकी चूत मे बोहोत अंदर तक घुस रहा था. मुझे महसूस हो रहा था के मेरे जीन्स की चैन उसकी चूत को टच कर रही है तो उसको और ज़ियादा मज़ा आ रहा था और उसके मूह से आआआहह ऊऊऊऊहह ईईएईईईईईई और ऊऊओह जैसे सिसकारियाँ निकल रही थी जो सिर्फ़ मेरे कानो मे सुनाई दे रही थी.

उसकी दबी दबी सिसकारियों से मुझे और मज़ा आ रहा था और मैं ज़ोर ज़ोर से लंड को पूरा सूपदे तक निकाल निकाल के चोद रहा था क्क्हाकच्छाककक कक्खहाआककचाककक कि फुक्सिंग म्यूज़िक सिर्फ़ हम दोनो ही सुन रहे थे. मेरा लंड तो ऐसी टाइट चूत मे घुस के पागल ही हो गया था और मैं फुल फोर्स से चोद रहा था लंड को पूरा बाहर तक निकाल निकाल के चुदाई कर रहा था उसकी

टाइट चूत की लगता था कि मेरा मोटा लोहे जैसा तगड़ा लंड उसकी चूत को फाड़ ही डालेगा.
 
ट्रेन के हिलने झूलने से और मेरे झटको से और उसके बूब्स डॅन्स कर रहे थे. मैं फिर से उनको पकड़ के मसल्ने लगा और चूसने लगा. चुदाई फुल स्पीड और फुल पवर से चल रही थी उसकी चूत के अंदर जब लंड की मार लगती तो वो मेरे बदन से लिपट जाती थी लंड जॅक हॅमर की तरह से अंदर बाहर हो रहा था और अब मेरे बॉल्स मे भी हल चल मची हुई थी मेरे झटके और तेज़ हो गये. वो तो मुझ से लिपटी हुई थी मैं ने हाथ बढ़ा के डोर की खिड़की से आइरन रोड को पकड़ा हुआ था और उसकी ग्रिप से चूत फाड़ झटके मार रहा था जिस से वो बोहोत मज़े ले रही थी. मुझे लगा के मेरे बॉल्स मैं मेरी क्रीम उबलने लगी है और देखते देखते लंड की गरम गरम मलाई बॉल्स मे से ट्रॅवेल करती हुई लंड के सुराख मे से उसकी गीली चूत मे पिचकी मारने लगी और निकलती ही चली गई और कोई 7 – 8 पिचकारियाँ निकली और उसकी चूत फुल हो गई और ओवरफ्लो होने लगी. मेरी पिचकारी निकलते ही वो मुझ से ज़ोर से लिपट गई उसका बदन काँप रहा था और इसी के साथ ही उसकी चूत भी झड़ने लगी.

दोनो पूरी तरह से झाड़ जाने के बाद भी वो मुझ से लिपटी ही रही और फिर थोड़ी ही देर मे उसकी ग्रिप लूस होने लगी और उसकी गंद डोर की खिड़की से नीचे स्लिप हो के वो फिर से फ्लोर पे बैठ गई. मैं गहरी गहरी साँसे लेता हुआ लोहे के रोड को पकड़ के खड़ा अपनी तेज़ी से चलती साँसों को काबू कर रहा था. 10 मिनिट मे ही ट्रेन एक और छोटे से स्टेशन पे एक या दो मिनिट के लिए रुकी और फिर से चल पड़ी. यह स्टेशन भी पहले वाले स्टेशन की तरह से अंधेरा ही था.

जैसे ही ट्रेन फिर से चल पड़ी वो जो नीचे बैठ चुकी थी उसके अंदर कुछ मूव्मेंट्स हुई और वो अपने पैर मोड़ के ऐसे बैठी के मेरा जीन्स मे से लटकता हुआ लंड उसके मूह के सामने था और उसने लपक के मेरे लटकते हुए लंड को अपने मूह मे ले लिया और चूसने लगी. आहह क्या गरम गरम मूह था उसका बिकुल चूत के जैसा गरम और गीला. दोनो की मिक्स मलाई मेरे लंड पे ठंडी हवा लगने से ड्राइ हो गई थी जो उसके मूह मे लेने से फिर से वेट होने लगी और उसने दोनो के मिक्स मलाई का मज़ा लेना शुरू कर दिया और मेरा लंड एक बार फिर उसके मूह मे ही अकड़ने लगा. देखते देखते ही वो फिर से लंबा, मोटा और लोहे जैसा सख़्त हो गया और अब मैं उसके चूत जैसे गरम मूह की चुदाई कर रहा था वो मस्ती से मेरे मोटे लंड को लॉली पोप की तरह चूस

रही थी. अपना मूह आगे पीछे कर कर के चूस रही थी तो मैं भी गंद आगे पीछे कर के उसके मूह की चुदाई कर रहा था. मेरा लंड उसके थ्रोट तक घुस रहा था. मेरे लिए यह एक अनोखा मज़ा था मुझे बोहोत ही मज़ा आ रहा था. मुझे समझ मे नही आ रहा था के मैं उसके मूह को चोद रहा हू या वो मेरे लंड को चूस रही है एक वंडरफुल फीलिंग महसूस हो रही थी. वो ट्रेन के दीवार से टेका लगा के बैठी थी जिस से उसके मूह को चोदने का मज़ा कुछ और ही आ रहा था. और फिर सडन्ली मुझे अपने बॉल्स मे हलचल होने लगी और मुझे लगा के अब मेरी मलाई फिर से निकल ने को रेडी है तो एक ज़ोर का धक्का मारा और मेरे लंड का सूपड़ा उसके थ्रोट मे घुस गया और उसके मूह से आअगग्घह आागगघह ऊवगग्गघह की आवाज़ें निकल ने लगी इस से पहले के वो मेरा लंड अपने मूह से बाहर निकलती मेरी मलाई की पिचकारी निकल के उसके थ्रोट मे डाइरेक्ट गिरने लगी. उफ्फ इतनी मलाई निकली कि आइ आम शुवर के उसका पेट भर गया होगा मेरी मलाई से और उसको घर जा के खाने की ज़रूरत नही पड़ी होगी. मैं हैरान था के आख़िर यह है कौन और यह मेरे साथ इसने क्या कर डाला. ऐसे ही चुदाई का मज़ा ले लिया और लंड को चूस के खल्लास कर दिया.

उसको शाएद पता था के अब उसका स्टेशन आने वाला है वो मेरे सामने से उठ कर दूसरी तरफ चली गई अंधेरे मे मुझे पता भी नही चला के वो किधर गई और कब स्टेशन आया और वो दूसरे मज़दूरों के साथ बाहर निकल के चली गई.

तकरीबन 20 या 25 मिनिट के बाद ही ट्रेन गुंटकाल जंक्षन पोहोच गई और मैं उतर के दूसरी ट्रेन मे बैठ के अपने शहेर की ओर चला गया. आज भी सोचता हू तो वो उसकी मस्त चुचियाँ का टेस्ट अपने मूह मे महसूस करता हू और उसकी टाइट चूत की ग्रिप मेरे लंड पे महसूस होती है और उसके मूह की गर्मी मैं अभी भी लंड पे महसूस करता हू और हमेशा यह सोचता रहता हू के आख़िर वो कौन थी ????
 
दोस्तो मेरे साथ फिर दूसरा हादसा हुआ उसकी कहानी कुछ इस तरह है उसे भी आप सुनो

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बस मैं


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साइन्स ग्रॅजुयेशन कर ने के बाद मैं ने एक लॅडीस का फॅन्सी स्टोर्स खोल लिया था जिसका समान लाने के लिए मुझे कभी हैदराबाद तो कभी बॉम्बे तो कभी मद्रास जाना पड़ता था. लॅडीस का फॅन्सी स्टोर होने की वजह से मेरे दुकान पे आछे शरीफ घर की लड़कियो से ले के प्रॉस्टिट्यूट्स तक सब आते थे. जिन से बात करते करते मुझे लॅडीस के सोचने के ढंग का पता चल गया था. मैं उनसे बात करके उनकी तबीयत के बारे मे समझ जाता था और मुझे अछी तरह से पता चल जाता था के लॅडीस के दिल मे क्या होता है और वो क्या चाहती हैं. कौनसी लड़की प्राउडी है तो कौनसी लड़की अपनी तारीफ सुन के खुश होती है और किस लड़की को अपने चुचियाँ दिखाने का शौक होता है वाघहैरा वाघहैरा यही साइकॉलजी मेरे काम आई.

उन्न दिनो मैं हैदराबाद से मेरे शहेर को जाने वाली बस रात 10:30 बजे को निकलती थी जो अर्ली मॉर्निंग मेरे शहेर को पहुँचती थी. मैं परचेसिंग ख़तम हो जानेके बाद यूष्यूयली इसी बस से निकलता था ता के सुबह सुबह वापस आ जाऊं और अपनी दुकान को अटेंड कर सकूँ.

यह घटना एक ऐसे ही सफ़र की है. मैं अपना काम ख़तम कर के रात 10:30 बजे वाली बस मे बैठ गया लैकिन वो तकरीबन एक घंटा लेट निकली 11:30 को बस स्टॅंड से निकली और शहेर क्रॉस करने करने तक ऑलमोस्ट रात के 12 बज गये थे. मोस्ट्ली पॅसेंजर्स तो बस स्टॅंड पे ही टिकेट खरीद चुके थे तो कंडक्टर सिर्फ़ रुटीन चेक कर के अपनी सीट पे बैठ गया और शहेर से बाहर बस निकलते ही बस की लाइट्स बंद कर दी गई. बाहर तो बोहोत ही अंधेरा था. शाएद चंद्रमा आज आसमान से नाराज़ थे इसी लिए नही पधारे थे. बाहर का मौसम बोहोत अछा था हल्की सी ठंडी हवा चल रही थी. बस के ऑलमोस्ट सारे ग्लास विंडोस बंद थे. किसी किसी पॅसेंजर ने थोड़ी थोड़ी विंडो खोली हुई थी तो उससी से ठंडी हवा आ रही थी.

लग्षुरी और एक्सप्रेस बस मे जनरली एक रो मे 2 और 2 सीट्स एक एक तरफ से होती है टोटल 4 सीट्स होती हैं और मैं जनरली बस मे विंडो सीट को प्रिफर नही करता आइल ( विंडो वाली नही बलके पॅसेज वाली सीट ) वाली सीट को प्रिफर करता हू ता के पैर लंबे कर के आराम से सफ़र कर सकु. मुझे ऐसे ही सीट बस के तकरीबन पीछे वाले हिस्से मे मिल गई थी और मैं सारा दिन काम कर के थक चुक्का था और जल्दी ही सो गया.

पता नही रात का क्या टाइम हुआ था मेरी आँख खुली तो देखा के बस किसी स्टॉप पे रुकी है और पॅसेंजर्स बस मे चढ़ रहे हैं खिड़की से बाहर देखा तो

पता चला पॅसेंजर्स और उनके लगेज को देखा तो ऐसे लगा जैसे शाएद कोई मॅरेज पार्टी वाले इस बस मे चढ़ रहे हैं और फिर एक ही मिनिट मे फिर से सो गया.

बस फिर से चलने लगी तो जो पॅसेंजर्स उस स्टॉप से चढ़े थे वो अपनी अपनी जगह बना रहे थे और अपना अपना लगेज बस के अंदर ही अड्जस्ट कर रहे थे. यूँ तो वो बस नाम की ही एक्सप्रेस थी कंडक्टर और ड्राइवर्स एक्सट्रा पैसे बना ने के चक्कर मे बस को जहा कोई पॅसेंजर किसी भी छोटे से स्टॉप पे खड़ा दिखाई देता उसको पिक कर लेते और बस ओवरफ्लो होने तक भरते ही रहते.

बस खचा खच भर चुकी थी. मेरे बाज़ू वाली सीट पे कोई मोटा पॅसेंजर ऑलरेडी बैठा हुआ था जिस से मेरी सीट मुझे छोटी पड़ रही थी. उस बस स्टॅंड पे कौन उतरा और कौन चढ़ा मुझे नही मालूम. देखा तो पता चला के मेरी सीट और दूसरी वाली डबल सीट के बीच मे एक लोहे का ट्रंक रखा हुआ है. मैं अपना पैर उस ट्रंक के ऊपेर रख दिया और अपनी सीट से थोड़ा और ट्रंक के तरफ हट गया ता के जो मेरी सीट मेरे मोटे को-पॅसेंजर ने ले ली है थोड़ा सा हॅट के ठीक से बैठ जाउ. ट्रंक बड़ा था और ऑलमोस्ट सीट की ही हाइट का था तो पैर रखने मे आराम मिल रहा था. उस ट्रंक पे कोई दूसरी तरफ मूह कर के बैठा था. अब पोज़िशन ऐसे थी के मैं आराम से ऑलमोस्ट हाफ ट्रंक पे और हाफ अपने छोटी सी सीट पे था. ऐसे बैठने से पॅसेज के दूसरी तरफ का बैठा हुआ पॅसेंजर मेरे करीब हो गया था जैसे ऑलमोस्ट साथ साथ ही बैठा हो. मैं बोहोत देर से सो रहा था और इसी अड्जस्टमेंट मे मेरी नींद चली गई और मैं जाग गया. देखा तो अंदाज़ा हुआ के दूसरी तरफ बैठी हुई कोई फीमेल है अब पता नही के औरत है या लड़की खैर कोई फीमेल बाज़ू मे बैठी हो और राजशर्मा खामोशी से देखता रहे और उसका लंड ना अकड़ जाए ऐसे तो मुमकिन नही है ना तो बस लंड मे मीठी मीठी सरसराहट महसूस होने लगी.
 
मुझे अपनी दुकान के लॅडीस के साथ के साइकोलॉजिकल एक्सपीरियेन्सस याद आने लगे और मैं सोचने लगा के अब क्या करना चाहिए. टाइम देखा तो पता चला के रात का डेढ़ बज चुक्का है और पता नही वो लोग कितनी देर बस के इंतेज़ार मे स्टॉप पे ठंड मे खड़े रहे होंगे और कितना थक चुके होंगे इसी लिए वो सब लोग अपना समान बस मे अड्जस्ट कर के गहरी नींद सो रहे थे. उनके खर्रातो की गूँज बस मे सुनाई दे रही थिया गग्ग्घहर्र्ररर ग्ग्गहररर. मैं मन ही मन मुस्कुराने लगा के चलो अंधेरे का और नींद का लाभ प्राप्त करना ही चाहिए. पहले तो मुझे यह देखना था के उस फीमेल का क्या मूड है और अगर मैं कुछ करू तो उसका क्या रिक्षन होगा सोचते सोचते मुझे एक आइडिया स्ट्राइक कर गया.

मैं अपनी दाहने ओर थोड़ा और खिसक के उस महिला के करीब हो गया और अपना हाथ उसकी सीट के पीछे लगे हुए लोहे के रोड पे रख दिया. उस के बाज़ू मे कोई दूसरी औरत जो कुछ मोटी भी थी सो रही थी इसी लिए मेरे बाज़ू वाली फीमेल मेरे कुछ और करीब आ गई थी. उसकी सीट के पीछे वाले आइरन पाइप पे ऐसे हाथ रखा के मेरे फिंगर्स के टिप्स उसके नेक से टच हो रहे थे. उसने कोई विरोध नही किया. हिम्मत जुटाई और अपनी फिंगर्स थोड़ी और नीचे स्लिप की ऐसे के मेरी उंगलियाँ उसके नेक को अछी तरह से टच कर रही थी उसने कोई विरोध नही किया तो थोड़ी देर तक ऐसे ही रखने के बाद कुछ और नीचे स्लिप कर के फिंगर्स को उसके ब्लाउस के करीब बूब्स के उपर पोर्षन तक ले गया फिर भी उसने कोई विरोध नही किया. अभी तक मैं कोई निर्णय नही ले सका था के वो सच मे सो रही है और उसको मेरे फिंगर्स का टच महसूस ही नही हो रहा है या वो जाग रही है और वेट कर रही है के मैं कुछ और करूँगा और मेरे फिंगर्स को अपने बदन पे लगा हुआ महसूस कर के एंजाय कर रही है.

कुछ देर तक हाथ को ऐसे ही बस की सीट के लोहे के पीपे से गिराते हुए उसके बूब्स के पास तक फिंगर्स ले गया और थोड़ी देर वेट किया .. उसने कोई विरोध नही किया अब थोड़ा सा और नीचे कर के उसके बूब्स पे टच करने लगा और धीरे धीरे उसके निपल को एक फिंगर से आगे पीछे करने लगा .. उसने फिर भी कोई विरोध नही किया .. वाउ अब तो मैं समझ गया के उसको मज़ा आ रहा है और मैं कुछ और भी कर सकता हू.

अब अपने हाथ को थोड़ा सा वापस ऊपेर खेच के उसके ब्लाउस के ऊपेर से अपना हाथ ब्लाउस के अंदर स्लिप किया और वेट किया के क्या रिक्षन होता है. उसने फिर भी कोई विरोध नही किया. हाथ को और अंदर ले गया तो वाहा ब्रस्सिएर थी पहले ब्लाउस के अंदर ओर ब्रस्सिएर के ऊपेर से ही उसके बूब्स को पकड़ लिया तो भी उसने कोई विरोध नही किया ऐसे ही दबा ता रहा और फिर एक मिनिट के अंदर ही अंदर उसके ब्रस्सिएर के अंदर मेरा एक हाथ चला गया और मैं उसके नंगी चुचिओ को अपने हाथ से दबाने लगा और मसल्ने लगा. वाउ क्या मस्त चुचियाँ थी उसकी सख़्त. चूचियो को पकड़ के पता चला के वो कोई बड़ी औरत नही बल्कि कोई लड़की है. टेन्निस बॉल्स के साइज़ के मस्त कड़क चुचियाँ हाथ मे मस्त दिख रही थी मसल ने मे मज़ा आ रहा था लगता था कोई रब्बर की मज़बूत गेंद को दबा रहा हू.

हाथ को दोनो चुचिओ के बीच मे कर के दोनो चूचियों को एक साथ मसल रहा था. चुचिओ को हाथ लगा ते ही लंड का बुरा हाल हो गया और बोहोत ज़ोर

से अकड़ गया अपने दूसरे हाथ से पॅंट की ज़िप खोल के लंड को बाहर निकाल दिया तो बाहर की ठंडी हवा लगते ही वो ऐसे हिल रहा था जैसे शराबी फुल नशे मे हिलने लगता है. एक मिनिट के लिए अपना हाथ उसके ब्लाउस से निकाल के उसकी थाइस पे रख दिया और उसके थाइस का मसाज करने लगा. बस के अंदर और बाहर अंधेरा था किसी को कुछ नज़र नही आ रहा था. मुझे महसूस हुआ कि उसकी साँसें तेज़ी से चल रही है और उसकी टाँगें थोड़ा और खुल गई है मुझे हिंट मिल गया और डाइरेक्ट उसकी चूत पे हाथ रख दिया. उसके बाज़ू मे बैठी बुढ़िया गहरी नींद सो चुकी थी. उसने अपना पैर सामने वाली सीट के कॉर्नर आप ऐसे रखा था के थोड़ा सा पोर्षन ट्रंक पे भी आ रहा था और इस पोज़िशन मे उसके लेग्स अच्छे ख़ासे खुल गये थे.

क्रमशः.......................
 
गतान्क से आगे...................

धीरे धीरे मैं ने अपना हाथ उसके सारी के अंदर घुसाना शुरू किया और उसकी चिकनी चूत पे लगा दिया. हाथ उसकी चूत पे लगते ही वो अपने सीट से थोड़ा सामने की तरफ खिसक गई ता के मेरे हाथ को उसकी चूत का ईज़ी आक्सेस मिल जाए. उसके चूत बोहोत ही गीली हो चुकी थी. मैं अब अपनी फिंगर्स उसकी चूत के लिप्स के अंदर डाल के कभी चूत के सुराख मे अपनी उंगली डाल के अंदर बाहर करता तो कभी उसकी क्लाइटॉरिस को मसाज करता तो कभी पूरी चूत का मसाज करता.

उस ने मस्ती मे अपना एक हाथ मेरे हाथ पे रख दिया और अपनी चूत मे मेरे हाथ को दबा ने लगी तो मैं ने उसके हाथ को पकड़ के अपने लोहे जैसे आकड़े हुए लंड पे रख दिया और अपनी शॉल को जो मैं अपनी सीट पे ही रखे हुए था अपने लंड पे ऐसे डाल लिया के किसी को पता नही चल सकता था के क्या हो रहा है.

जैसे जैसे मैं उसकी चूत का मसाज कर रहा था और अपनी उंगली उसकी चूत मे घुसेड रहा था वो मस्ती मे मेरे लोहे जैसे सख़्त लंड को ज़ोर ज़ोर से दबा रही थी. चूत का मसाज ज़ोर ज़ोर से करने लगा उसके मूव्मेंट्स देख के मुझे लगा के अब वो झड़ने वाली है और फिर उसका बदन टाइट होने लगा अपने दोनो थाइस से मेरे हाथ को दबाने लगी और एक ही मिनिट मे उसका बदन काँपने लगा और वो झड़ने लगी थोड़ी देर तक झड़ती रही फिर उसका बदनढीला पड़ गया और उसकी चूत का जूस निकलने लगा और जो उसने मेरे लंड को उसके ऑर्गॅज़म के टाइम पे ज़ोर से पकड़ा हुआ था अब उसकी ग्रिप मेरे लंड पे ढीली हो गई थी और लंड को धीरे धीरे मसाज कर रही थी.

मैने अब उसके सर को पकड़ के अपनी ओर खेच के झुकाया तो वो झुक के ऐसे पोज़िशन मे आधा लेट गई अगर कोई भी देखे तो यही समझे के शाएद ऐसे ही लेटे लेटे सो रही होगी. ऐसे पोज़िशन मे उसका सर मूह मेरे लंड के पास आ गया था. मैं ने अपनी शॉल उसके बदन पे ऐसे डाल दी के किसी को कुछ पता ना चले के शॉल के अंदर क्या हो रहा है. अपने लंड को अड्जस्ट कर के उसके मूह से लगा दिया और उसका मूह ऑटोमॅटिकली खुल गया और मेरे आकड़े हुए लंड को पहले तो किस किया और फिर लंड के डंडे को पकड़ के सूपदे को अपने मूह मे ले के ऐसे चूसने लगी जैसे कोई लॉली पोप चूस रही हो. अब ऐसे पोज़िशन मे मैं ने उसके ब्लाउस के सामने के बटन्स को खोल दिया और अपना हाथ उसके ब्रस्सिएर के नीचे से अंदर घुसा के मसल ने लगा आहह क्या मस्त चुचियाँ थी उसकी बोहोत मज़ा आ रहा था उसके बूब्स दबा ने मे और मसल ने मे. लगता था के कभी उन चुचिओ को किसी ने ना टच किया होगा और दबाया भी नही होगा इतनी कसी हुई और सख़्त चुचियाँ थी उसकी.

मेरे लंड को वो मस्ती से चूस रही थी और मैं उसकी चुचिओ को दबा रहा था मुझे बोहोत मज़ा आ रहा था उसके गरम मूह का स्पर्श मेरे लंड के चिकने सूपदे को और मस्त कर रहा था. मैं भी अपनी सीट से थोडा और आगे की ओर खिसक गया और अपने लंड पे उसके चूसने के मज़े लेने लगा. लंड को अपने थ्रोट के अंदर तक ले के मस्ती से चूस रही थी और फिर मुझे लगा के अब मेरा वीर्य मेरे बॉल्स मे रेडी हो रहा है निकलने के लिए. मैने अपने हाथ से उसके सर को पकड़ लिया और अपनी गंद उठा उठा के उसके मूह को चोदने लगा आआहह क्या मज़ा था उसके मूह मे और वो मस्त चूस रही थी ऐसा लग रहा था जैसे किसी छोटे बच्चे को बोहोत दीनो के बाद इतने मज़े दार टॉफी चूसने को मिली हो मेरे मूह से आआहह और उउउउउउह्ह्ह्ह जैसे सिसकारियाँ निकल रही थी. मेरी साँस तेज़ी से चलने लगी और अपनी गंद को ज़ोर से ऊपेर उठा दिया जिस से मेरा तना हुआ लोहे जसा सख़्त मोटा लंड उसके मूह के अंदर थ्रोट तक चला गया और उसके मूह से आआग्ग्ग्घ्ह्ह्ह की आवाज़ निकलने लगी और ऐसे ही उसके सर को मज़बूती से पकड़े पकड़े लंड को उसके थ्रोट तक घुसाए हुए मेरे लंड मे से मेरे वीर्य की पिचकारियाँ निकलनी शुरू हो गई और निकलती ही चली गई जो डाइरेक्ट उसके थ्रोट से उसके पेट मे चली गई. जब गरम गरम और गाढ़ी गाढ़ी क्रीम निकल ना बंद हो गई तब मेरा बदन ढीला पड़ गया था थोड़ी ही देर मे उस ने अपना मूह शॉल मे से बाहर निकाल लिया और अपनी सीट पे पहले जैसे बैठ गई जैसे कुछ हुआ ही ना हो.
 
तकरीबन और 15 या 20 मिनिट के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा स्टॉप आने मे शाएद आधा घंटा रह गया है मैं चाहता था के उसको मेरी यात्रा ख़तम हो ने से पहले किस करू इसी लिए मैने उसके सर को पकड़ के अपनी तरफ मोड़ा और एक किस किया ज़ोर से तो वो चौंक गई मेरा मूह उसके मूह से लगे. मैं समझ नही सका के वो ऐसा कियों कर रही है. देखा जाए तो मेरे लंड को चूसने के बाद उसको मुझे किस करने मे कोई प्राब्लम नही होना चाहिए था. ळैकिन पता नही क्या हो गया था उसको. अब मैं ने उसके बूब्स को पकड़ा तो उस ने मेरे हाथ को ज़ोर से झटका दे दिया मुझे बड़ा अस्चर्य हुआ के यह क्या और कियों कर रही है. खैर मैं कुछ देर चुप ही रहा और थोड़ी ही देर मे मेरा स्टॉप आने से पहले बस की लाइट्स खुल गई. मैं ने पहले तो बस मे बैठे अपने आस पास बैठे पॅसेंजर्स का सर्वे किया तो देखा के वो एक मॅरेज पार्टी है और मेरी पीठ से कोई पीठ लगाए बैठा है उसकी ड्रेसिंग से पता चल रहा था के शाएद उसकी ही शादी हुई है. मेरी नज़र उस लड़की पे पड़ी जिसके मूह को चोदा था, देखा तो पता चला के उसके हाथों मे मेहन्दी लगी है और कपड़े भी नये हैं और गोल्ड की ज्यूयलरी भी पहेन रखी है. मैं समझ गया के वो दुल्हन है और उसका दूल्हा मेरी पीठ से पीठ लगाए दूसरी तरफ मूह कर के बैठा है.

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मुझे एक ही मिनिट मे समझ आगया के शाएद वो समझ रही थी के उसकी चुचिओ को मसल्ने वाला और उसकी चूत मे उंगली से मसाज करने वाला कोई और नही उसका नया नवेला पति होगा इसी लिए वो अपना आत्म समर्पण किए हुए थी और जब उसको मैं ने किस किया तो उसको पता चल गया के यह मूछो वाला उसका पति नही हो सकता कियॉंके उसके पति के मूछ नही थी. मैं ने भी कुछ और करना सही नही समझा और खामोश बैठा रहा जब बस मेरे शहेर के स्टॉप पे रुकी तो तकरीबन सुबह के 4:30 हो रहे थे. मैं बस से उतरने लगा और उतरते उतरते बस के दरवाज़े से बाहर निकल ने से पहले पलट के उसकी तरफ देखा और अपनी एक आँख बंद कर के उसको आँख मारी तो उसके मूह पे एक मुस्कुराहट आ गई और उसने भी अपनी एक आँख बंद कर के मुझे आँख मार दी. मुझे इस बात का तो यकीन हो गया के वो दुल्हन ही थी और अब तक वो मुझे अपना दूल्हा ही समझ रही थी.

मैं यह सोचता हुआ बस से नीचे उतर गया के पता नही वो कहा से आई है और कहा जा रही है और जिसने मुझे यह सब करने दिया और लंड को चूस चूस के मेरी मेरी मलाई खा गई आख़िर वो कौन थी ????
 
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