Hindi Porn Stories बदनसीब फुलवा; एक बेकसूर रण्डी - Page 3 - SexBaba
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Hindi Porn Stories बदनसीब फुलवा; एक बेकसूर रण्डी

20

फुलवा हाईवे के सुनसान इलाके में ढाबे से कुछ दूर एक बंद पड़े दुकान के बाहर लाल दिया लटकाकर उसके नीचे बैठ गई।



फुलवा की ललचाती जवानी को देख कर लगभग हर ट्रक उसे उठाने के लिए रुका। शेखर ने बताया था की ट्रक पीले रंग का है जिस पर नीली नक्काशी की गई है। फुलवा ने उस ट्रक के इंतजार में बाकी सब को भगाया।

रात को 11 बजे शेखर ने बताया हुआ ट्रक तेजी से ढाबे में से बाहर निकला और धूल उड़ाता फुलवा के सामने आकर रुका।

ड्राइवर एक दुबला पतला आदमी था जिसने वासना भरी नजरों से फुलवा को देखते हुए अपने क्लीनर को इशारा किया।

क्लीनर, "ऐ लड़की! तू यहां क्या कर रही है?"

फुलवा हंसकर, "मुन्ना अगर तुझे यही पूछना है तो आगे जा और दूध पी। ये बला तेरे लिए नहीं है!"

ड्राइवर ने क्लीनर को आंख मारी।

क्लीनर, "चल हमारे साथ। हम तुझे अगले गांव छोड़ देते हैं!"

फुलवा, "मुन्ना टाइम बरबाद मत कर! हजार रुपए देगा तो ही आउंगी वरना फूट यहां से!"

ड्राइवर ने अपना सर हिलाया।

क्लीनर, "हम यहां नए नहीं हैं! 500 में दोनों को बिठाने का भाव है!"

फुलवा ने जमीन पर थूंका, "आगे जा! अगले मोड़ पर तेरी मां बैठी है। वो तुझे 500 में लेगी। लेकिन इतनी ढीली है की कलकत्ते पहुंचने पर भी तू सिर्फ गांड़ हिला रहा होगा!"

क्लीनर, "700!"

फुलवा, "लैला रात में सिर्फ एक बार सवारी करती है। हर आटू झाटू की लैला नहीं! हजार के नीचे की बात की तो अगली बार 1200 होगा!"

ड्राइवर ने क्लीनर को हां कहा तो क्लीनर ने फुलवा को ऊपर चढ़ने के लिए हाथ दिया। फुलवा ने क्लीनर के हाथ को झटक कर अपना हाथ आगे बढाया।

फुलवा, "तेरी गाड़ी बिना तेल के आगे जाती है क्या? पहले रोकड़ा फिर मैं चढ़ेगी!"

ड्राइवर हंस पड़ा और क्लीनर ने अपनी कमर की बंदूक पर से हाथ उतारा। ड्राइवर ने बटवे में से 1000 निकाले और क्लीनर ने नीचे उतर कर वह फुलवा को दिए। फुलवा ने क्लीनर से छुपाकर वह रुपए एक गमले के नीचे छुपाए और शेखर ने दिए Maxxx Condom का पैकेट लेकर ट्रक में चढ़ने लगी। क्लीनर ने फुलवा को ट्रक में चढ़ाते हुए उसकी गांड़ को दबाया।

फुलवा ने ट्रक में देखा तो ड्राइवर और क्लीनर की सीट के पीछे एक छोटा बिस्तर बना हुआ था। फुलवा ने Maxxx Condom का पैकेट ड्राइवर को दिया।

फुलवा, "मैं सस्ता माल और सस्ते लोग नहीं लेती!"

ड्राइवर ने फुलवा को पीछे के बिस्तर पर जाने का इशारा किया और अपनी पैंट घुटनों तक उतार कर कंडोम पहना। फुलवा बिस्तर पर अपने घुटनों और हथेलियों से आगे बढ़ रही थी जब ड्राइवर ने उसे पीछे से पकड़ लिया।

ड्राइवर ने फुलवा का घागरा उठाया और कमर पर रखते हुए उसकी नीली पैंटी उतार कर उसके घुटनों पर रख दी। फुलवा को अपनी चूत पर कंडोम पहना सुपाड़ा महसूस हुआ और उसने एक गहरी सांस ली।


फुलवा की चीख निकल गई, "मां!!.
आ!!.
आ!!.
आह!!.
हरामी.
धीरे!!."

ड्राइवर ने फुलवा की सुखी चूत में पूरा लौड़ा एक झटके में पेल दिया था। कंडोम पर लगी चिकनाहट से फुलवा को कुछ मदद हुई। फुलवा ने अपने दाहिने हाथ को अपनी चूत पर लगाया। फुलवा की उंगलियों ने उसकी जवानी को सहलाते रहे उसकी चूत में यौन रस का बहाव होने में मदद की।

फुलवा, "मादर.
चोद.
अपनी मां
को भी
ऐसे ही
करता है क्या?
हराम के
पिल्ले
तेरी बीवी
इसी लिए
तुझे
भगा देती
होगी!
पहले औरत को
मज़ा देना
सीख लेता
तो आज
रात में
ट्रक न चलाता!"

फुलवा अपनी चूत के दाने को सहलाते हुए तपने लगी जब उसकी गालियों से ड्राइवर और चाव में उसे चोद रहा था। ड्राइवर के धक्के तेज होने लगे तो फुलवा ने अपनी चूत के दाने को दबाया।

फुलवा की जवानी ने आह भरते हुए झड़ना शुरू किया। ड्राइवर का लौड़ा निचोड़ा गया और वह आहें भरते हुए फुलवा के ऊपर गिर गया।

क्लीनर, "गुरु?"

ड्राइवर ने भरे हुए कंडोम को नीचे फेंकते हुए अपनी पैंट कमर में बांध ली और क्लीनर को इशारा किया। क्लीनर ट्रक में चढ़ गया और ट्रक तेजी से चल पड़ा।

ड्राइवर, "मस्त माल है! पूरा वसूल कर ले!"

क्लीनर ने फुलवा को पीठ के बल लिटा दिया और उसकी नीली पैंटी उतार फैंकी। क्लीनर फुलवा पर झपटा पर डर कर रुक गया।



फुलवा ने एक छोटा चाकू क्लीनर के लौड़े की जड़ पर लगाया था।

फुलवा, "मुन्ना! ज्यादा होशियारी ठीक नहीं! बिना कंडोम पहने जो कुछ भी अंदर जायेगा दुबारा वापस बाहर नहीं आयेगा!"

ड्राइवर ने गाड़ी चलाते हुए एक हाथ पीछे ला कर क्लीनर को थप्पड़ मारा।

ड्राइवर, "बीमारी से मरना चाहता है क्या? उस से बेहतर तो तू रस्ते पर लेट जा!"

जवान लड़का मुंह फुलाकर पीछे हो गया। क्लीनर ने अपनी पैंट उतार दी और अपने लौड़े पर फुलवा का लाया Maxxx कंडोम पहन लिया। वह फुलवा के ऊपर लेट गया तो फुलवा ने उसे अपनी बाहों में ले लिया। फुलवा से मिली साथ से क्लीनर खुश हो गया। क्लीनर ने अपने लौड़े को फुलवा की कसी हुई गीली जवानी पर लगाया और धीरे धीरे उसे चोदने लगा।

फुलवा को मजा आने लगा और उसने क्लीनर को अपनी टांगों से पकड़ लिया।

क्लीनर जोर जोर से हांफते हुए फुलवा को तेजी से चोद रहा था। फुलवा ने क्लीनर को उसकी चोली खोलते हुए पाया तो उसने खुद अपनी चोली खोल दी।

क्लीनर तकरीबन उसी की उम्र का था। क्लीनर ने खुशी से एक हाथ में फूलवा का बायां मम्मा दबोच लिया और दायां मम्मा पकड़ कर उस पर उभरी चूची चूसने लगा। फुलवा पिछली चुधाई से गरम क्लीनर का सर अपने मम्मे पर दबाते हुए चुधवाने लगी।

चाप!!.
थाप!!.
ऊंह!!.
आह!!.
उन्ह्ह!!.
उम्म!!.
आन्ह्हा!!.

चालू ट्रक आवाजों से भर गया और फुलवा ने लगातार झड़ना शुरू कर दिया। क्लीनर इस पिघलती जवानी को झेल नहीं पाया और खुद भी झड़ कर पस्त हो गया।

अचानक फुलवा को राज नर्तकी की बदबू आने लगी और वह डर गई। फुलवा ने क्लीनर को अपने ऊपर से गिरा दिया और अपनी पैंटी पहन कर ड्राइवर के बगल में बैठ गई।

फुलवा, "काम हो गया है। आगे खुली जगह पर रोक दो!"

ड्राइवर, "हमारे साथ दिल्ली चलो! घुमा भी देंगे और पांच हजार रुपए देंगे!"

फुलवा, "मैं किसी एक के साथ जाने वाली औरत नही हूं! चल अब गाड़ी रोक! उल्टे रास्ते जाती कोई दूसरी गाड़ी मुझे मिल जायेगी।"

फुलवा ने ट्रक में से उतरते हुए देखा की शेखर ने ड्राइवर को उसके दरवाजे में से दबोच लिया था। बंटी ने फुलवा को उनकी गाड़ी में बिठाया और तेजी से वहां से निकल गया।

फुलवा, "शेखर भैया?."

बंटी हंसकर, "तुम चिंता मत करो। शेखर भैया और बबलू उन दोनों को किसी सुनसान जगह पर खामोशी की दवा देंगे। फिर दोनों हमें अगले शहर में कल शाम को मिलेंगे!"

फुलवा, "खामोशी की दवा?"

बंटी, "उन दोनो को डराएंगे की वह ये भूल जाएं की उन्होंने किसी औरत को अपने साथ बिठाया था। नही तो अगला शिकार हाथ नही आयेगा!"

फुलवा ने अपना डर भुलाने की कोशिश करते हुए अपने पैरों को अपने सीने से चिपका दिया।
 
21

फुलवा के लिए वह रात बड़ी डरावनी रही। हर आहट हर आवाज उसे उठाती। फुलवा को समझ नहीं आ रहा था कि वह किससे डर रही थी।

पुलिस या राज नर्तकी!

सुबह बंटी ने फुलवा को पानी लाकर दिया और फुलवा सड़क किनारे झाड़ियों में नहाकर साफ कपड़े पहन कर गाड़ी में बैठ गई।

फुलवा ने बंटी को देखा। 21 वर्ष का आकर्षक मर्द जो बबलू की तरह उससे सिर्फ 3 साल बड़ा था। शेखर सबसे बड़ा 24 साल का जो उम्र के नौवें साल से उनका मां और बाप था।

सुबह पौ फटते हुए बबलू लौट आया था और उसने बताया कि शेखर भैया माल को ठिकाने लगाकर ट्रक को बेचेंगे। दोपहर के करीब शेखर आया और उसके हाथ में एक बड़ी बैग थी।

शेखर ने बताया कि उसने स्मगलिंग का माल जला दिया था ताकि कोई उन्हें ढूंढ ना पाए और ट्रक को पुर्जों में तोड़ कर बेच दिया जिस से उन्हें 1 लाख रुपए मिले थे!

फुलवा को याद आया की वह भी इतने में ही बिकी थी।

पैसों के चार हिस्से किए गए। बबलू और बंटी अपने हिस्से के पैसे उड़ाकर मौज करना चाहते थे लेकिन फुलवा अपने पैसे बचा कर रखना चाहती थी। इसी वजह से सब लोग शहर पहुंचे और शेखर ने फुलवा के लिए बैंक खाता खोला।

फुलवा और शेखर के साझे खाते में 25 हजार जमा हो गए। उस दिन सब ने जम कर खाया और तीनों भाइयों ने खूब शराब पी।

रात को फुलवा को अच्छे से चोदते हुए तीनों भाइयों ने एक साथ उसका हर छेद चोदा। सबेरे तक हर भाई ने फुलवा के हर छेद को दो बार भर दिया था और फुलवा गाड़ी के बीच झड़ कर अधमरी पड़ी थी। फुलवा के हर छेद में से बाहर बहता वीर्य कल रात की दास्तान बयान कर रहा था।

फुलवा सबेरे के करीब थक कर सोई और खाने की महक से जाग गई। किसी तरह अपनी कुटे हुए यौन अंगों को ढक कर फुलवा ने बाहर झांका तो शेखर को अखबार पढ़ता पाया।

फुलवा कपड़े पहन कर बाहर आई।

फुलवा, "भैया आप पढ़ना सीख गए?"

शेखर मुस्कुराकर, "यही हमारी सफलता का राज़ है। सबको लगता है की मैं अनपढ़ हूं और मुझे पता चल जाता है की माल कब और कैसे जा रहा है।"

फुलवा डरकर, "क्या हमारा जिक्र किया गया है?"

शेखर ने अजीब नजर से फुलवा को देखते हुए, "यही की एक ट्रक रास्ते से लापता है और पुलिस ट्रक को ढूंढने की कोशिश कर रही है। डरो मत! हमने कोई सबूत नहीं छोड़ा!"

फुलवा, "पर वहां इस्तमाल किए हुए कंडोम पड़े थे!"

शेखर, "इन लोगों के इस्तमाल किए कंडोम पड़े रहते हैं! कोई बड़ी बात नहीं!"

फुलवा, "भैय्या! आप सच कह रहे हो ना?"

शेखर, "अरे मेरी फुलू रानी मैं झूठ क्यों बोलूं?"

फुलवा, "तो इतना क्या पढ़ रहे थे?"

शेखर हंसते हुए, "मजेदार किस्सा आया है। लखनऊ का कौडीमल सेठ बच्चा ना होने की वजह से दिल्ली के डॉक्टर से मिला। डॉक्टर ने कहा कि वह कभी बाप नही बन सकता। जब वह यह बात बताने घर पहुंचा तो उसकी बीवी ने बताया की वह गर्भवती हो गई है। कौडीमल सेठ ने पूछताछ की तो उसे पता चला की उसकी बीवी के जनाना बीमारी वाले डॉक्टर ने उसकी बीवी को नींद का इंजेक्शन लगाकर अपना इंजेक्शन चलाया था। गुस्से से पागल कौडीमल ने शेरा पठान नाम के नामी गुंडे को डॉक्टर को मारने को कहा। डॉक्टर का कत्ल कर बाहर निकलता शेरा पठान डॉक्टर की दूसरी मरीज़ से टकराया जो की पुलिस कमिश्नर की बीवी थी।"

हैरानी से फुलवा सुन रही थी जब शेखर ने आगे पढ़ना जारी रखा।

शेखर, "कमिश्नर के अंगरक्षकों ने शेरा पठान को गिरफ्तार कर लिया और जल्द ही सारा खुलासा हो गया। कौडीमल ने डर कर खुदकुशी कर ली और अब डॉक्टर की होने वाली औलाद उसके पूरे जायदाद की वारिस है। शेरा पठान ने कई कत्ल किए हैं और जेल में उसके दुश्मनों के हाथों उसका मरना तय है।"

फुलवा को अचानक एहसास हुआ कि उसकी इज्जत लूटने के लिए जिम्मेदार लोगों में से उसका बापू और Peter uncle छोड़ सब लोग मर चुके हैं। क्या यह इंसाफ है या फुलवा की मनहुसी का असर?
 
22

फुलवा को यकीन नहीं हो रहा था पर उसे गुनाह करने की भी आदत हो गई। 3 महीनों में 6 बार डाका डाल कर अब उसके खाते में डेढ़ लाख रुपए जमा हो गए थे। फुलवा ने शेखर, बबलू और बंटी से कहा की उनका तय किया शिकार हो चुका है और उन्हें अब रुक जाना चाहिए। वैसे भी पिछले दो दिनों से उसकी तबियत ठीक नहीं थी और आज उसका जी घबरा रहा था।

शेखर ने फुलवा को समझाया की उसे पक्की खबर मिली है कि आज के ट्रक में सोने के बिस्कुट हैं। आज उसे चुधवाने की जरूरत नहीं है। जैसे ही वह ट्रक में चढ़ने लगे तब भाई हमला कर अंदर का माल दबोच लेंगे।

फुलवा अपनी हमेशा की जगह पर बैठ गई और गाड़ी का इंतजार करने लगी। नीले रंग का हरे पट्टे वाला ट्रक उसके सामने रुका और अंदर के दोनों तगड़े लोगों ने फुलवा से हमेशा वाली बहस की। आखिर में दोनों मान गए और उन्होंने फुलवा को कंडोम दिखाने को कहा। फुलवा उनके हाथ में Maxxx कंडोम का पैकेट देकर अंदर चढ़ी तो भाइयों ने हमला कर दिया।

लेकिन दोनों आदमी तयार थे और उन्होंने भाइयों से बंदूक छीन ली। इस से पहले कि कुछ पता चल पाता ट्रक के अंदर से कदमों की आवाज हुई और ट्रक को पुलिस ने घेर लिया।।

फुलवा डरकर, "भैया?"

शेखर की आंखों में मौत का सन्नाटा था।

सब को गिरफ्तार कर लखनऊ लाया गया जहां सब की तलाशी और डॉक्टरी जांच हुई। फुलवा की औरत डॉक्टर ने उस से पहले रूखा व्यवहार किया पर फिर उसके खून की जांच कराई।

कुछ देर बाद डॉक्टर साहेबा ने फुलवा के सामने बैठ कर उस से उसकी कहानी जानी।

पूरी कहानी सुन कर डॉक्टर साहेबा, "फुलवा, क्या तुम्हें कुछ भी नही पता?"

फुलवा, "मैंने आप को सब कुछ सच सच बता दिया है।"

डॉक्टर साहेबा, "मैं तुम्हें बस इतना बता सकती हूं की तुम 3 माह पेट से हो। तुम ने कहा कि तुम्हारे भाइयों के अलावा सब ने कंडोम इस्तमाल किए थे। इसका मतलब तुम्हारे पेट में तुम्हारे भाई का बच्चा है। तुम्हारे पास सोचने का वक्त है। अगर तुम बताओ की यह तुम्हारे भाइयों का बच्चा है तो इसे गिरा दिया जाएगा। या फिर तुम किसी को यह मत बताना की तुम्हारा तुम्हारे भाइयों से संबंध हुआ था और इसे कंडोम की नाकामी समझ कर तुम्हें रखने का मौका मिलेगा। सोचो! मैं तुम्हारी रिपोर्ट लिख कर तुम्हें पुलिस के हवाले करती हूं।"

फुलवा, "डॉक्टर साहेबा, बहुत बहुत शुक्रिया! मैं इस बच्चे को वो सब दूंगी जो मुझे नहीं मिला। सबसे पहले तो मैं इसे अपना मानूंगी!"

फुलवा की पूछताछ करने एक बड़ा अफसर बैठा और उसने कई तरह से फुलवा को सवाल पूछे। फुलवा ने पूरी सच्चाई बताई और आखिर में अफसर 4 घंटों की पूछताछ के बाद चला गया।

अगले दिन सुबह सबके चेहरे पर काली थैलियां रख कर उन्हें पहले पत्रकार सम्मेलन और फिर कोर्ट ले जाया गया। पत्रकार सम्मेलन में फुलवा को पता चला की उन्हें डाकू का दर्जा दिया गया था और उनके गिरोह को Maxxx डाकू कहते थे। वह इस लिए क्योंकि इस्तमाल किए Maxxx कंडोम हमेशा बरामत हुए थे।

कोर्ट पेशी में फुलवा को धक्का लगा जब उसे पता चला की उन सब पर कत्ल और डकैती का मुकदमा चलाया जा रहा था। जब फुलवा ने अपने भाइयों को देखा तो उनके पीटे हुए चेहरों से सच्चाई समझ आ गई।

जब एक भाई फुलवा को वहां से ले जाता बाकी दोनों भाई ड्राइवर और क्लीनर को मार कर ठिकाने लगाकर ट्रक को बेच देते। हालांकि पुलिस को ट्रक बेचकर मिले पैसे का हिसाब लगा था पर स्मगलिंग के माल का हिसाब नहीं था।

शेखर ने पूरा इल्जाम अपने ऊपर लेने की कोशिश की पर वह सिर्फ फुलवा को बचाने में कामयाब हुआ। फुलवा को डकैती के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई गई और भाइयों को फांसी की सजा सुनाई गई। शेखर ने आखिर तक यही कहा की वह स्मगलिंग का माल जला देता और ट्रक पुर्जों में बेच देता। फूलवा के खाते में जमा डेढ़ लाख रुपए जप्त किए गए।

जब सब को बड़ी जेल में भेजा गया तब तक फुलवा का पेट दिखने लगा था और बिना कुछ बोले भाई जानते थे कि उनकी निशानी उनकी बहन की कोख में करवट ले रही है। जेल का जेलर एक बड़ा IPS अधिकारी था जो अपनी ईमानदारी और निडर स्वभाव के कारण जेल में रखा गया था।

SP अधिकारी ने अपने नए भर्ती डकैतों को बताया की उन्हें कोई गुंडागर्दी करते पकड़े जाने पर सजा बढ़ा दी जाएगी। फुलवा का फूला पेट देख कर SP अधिकारी ने उसे कुछ खास सहूलियत देने का वादा किया को उसका हक बनता था।

फुलवा को जेल में पोषक आहार के साथ नियमित डॉक्टरी जांच मिलती थी। फुलवा और उसके भाइयों पर डकैत होने के कारण ज्यादा निगरानी होती थी पर जल्द ही सब समझ गए की यह भाई बहन बिलकुल शांत और सीधे रहने वाले लोग थे। भाइयों ने लालच में आकर बहन से धंधा करवा कर लूट की पर अपनी बहन को बचाने के लिए ही कत्ल भी किए।

हालांकि जेलर सक्त होने से सारे कैदी खुश थे पर फुलवा जानती थी कि कुछ सिपाही जेलर बदलने का इंतजार कर रहे थे। जेलर बदलने से सिपाही अपनी मनमानी कर सकते थे और एक की बुरी नजर अभी से फुलवा पर थी।

उस सिपाही का नाम था सिपाही कालू। वह अक्सर कहता कैसे वह फुलवा को दुबारा रण्डी बनते देखना चाहते है। कैसे पेट फूलने से भी फुलवा की सुंदरता बढ़ रही है।

फुलवा अपने भाइयों से मिल नही सकती थी और अकेले मां बनने में उसे डर लग रहा था। जेल की दूसरी रंडियां उसे धीरज देती और चुपके से अपने बच्चे को अमीर लोगों को बेचने की सलाह भी देती।

नौवें महीने के खत्म होते हुए फुलवा के पेट में दर्द होने लगा और उसे जेल के अस्पताल में ले जाया गया। फुलवा के पास जेलर ने आकर उसे एक बाप की तरह साथ दिया और फुलवा टूट गई।

फुलवा ने रोते हुए जेलर को सच्चाई बताई की उसके भाई उसके बच्चे के पिता हैं। जेलर ने फुलवा को बताया की उसके भाइयों को हाई कोर्ट ले जाया जाएगा ताकि उनकी फांसी की सज़ा पर दुबारा सुनवाई हो। उससे पहले वह मां बच्चे को भाइयों से एक बार मिलवाएगा।

फुलवा हफ्ते बाद अपने 19वे जन्मदिन पर अपने बच्चे को गोद में लेकर जेल में वापस आ गई। जेल की बाकी औरतों ने फुलवा को धीरज दिया पर फुलवा ने अपने बच्चे को बेचने से साफ मना कर दिया।

फुलवा ने अपने दिन रात अपने बेटे की परवरिश में लगा दिए। फुलवा ने अपने बेटे का नाम चिराग रखा। चिराग बड़ा ही प्यारा बच्चा था जिसे देख जेल की सबसे पत्थर दिल रण्डी भी मुस्कुरा पड़ती।

Peter uncle का कहना सच साबित हुआ था। चिराग को दूध पिलाते हुए फुलवा का बदन भर आया था और उसके मम्मे भरकर फूल गए थे। साथ ही फुलवा की कमर भी गोल हो कर उसके रूप की मादकता बढ़ा रही थी।

चिराग एक महीने का हो गया था जब एक शाम को अचानक जेलर SP अधिकारी ने फुलवा को चिराग के साथ बुलाया। फुलवा को एक कमरे में बिठाया गया और जेलर साहब कुछ कागजी कार्रवाई करने के बहाने चले गए। तभी दूसरी ओर से सिपाही कालू उसके भाइयों को अंदर छोड़ कर बाहर खड़ा हो गया।

तीनों भाइयों ने फुलवा को गले लगाया और उसे फंसाने के लिए माफी मांगी। फुलवा ने खुद आखरी चोरी में पकड़े जाने के लिए माफी मांगी।

शेकर, "फूलू रानी, वह तो चाल थी हमें फंसाने के लिए। अगर तुम्हारी बात मान कर हम रुक गए होते तो हम आज कुछ और होते!"

फुलवा, "कैसे भैय्या? आप सबने तो पैसे उड़ा दिए थे। हमें चोरी करनी ही पड़ती।"

तीनों भाइयों ने एक दूसरे को देख कर सर हिलाया।

शेखर, "फुलवा, अपने कलेजे पर पत्थर रख कर हमारी बात सुनो! जिन स्मगलर का माल हमने जलाया था वह जेल से बाहर जाते ही हमें मरवाने वाले हैं। सिपाही कालू उनका आदमी है और उसने हमें यह बताया है। हम पहले से जानते थे कि पकड़े जाने पर हमारा क्या होगा। लेकिन हमने तुम से भी कुछ बातें छुपाई हैं। उन ड्राइवर क्लीनर का कत्ल हमारा पहला कत्ल नही था। तुम्हें लाते हुए हमने Peter uncle को भी मार डाला है। रही बात बापू की तो बस इतना याद रखना की जहां बापू ने तुम्हें पहली बार धोखा दिया था वहां उसे मिलने जाना। स्मगलिंग का माल बेच कर कमाया हुआ पैसा मैने बापू के पास हिफाजत के लिए रखा है।"

फुलवा ने सिपाही कालू को अंदर आ कर उसके भाइयों को ले जाते हुए देखा। उसके भाइयों ने अपने बेटे को चूम कर अपने आशीर्वाद दिए और जेल की गाड़ी में बैठ गए। धीमी सी जानी पहचानी बदबू फिर से हवा में घूम रही थी। इस बार फुलवा ने उसे उसके सही नाम से पहचाना।

वह बदबू मौत थी!

राज नर्तकी बस महल में कैद मौत का रूप थी। पर मौत उसके भाइयों के साथ Peter uncle के लिए आई थी। उसके साथ 6 ड्राइवर और क्लीनर की जोड़ियों के लिए आई थी और आज सिपाही कालू के साथ उसके भाइयों के लिए आई है।

सुन्न पड़ कर फुलवा चुप चाप चिराग को गले लगाए वापस अपने जेल में चली गई।

रात को आग बबूला SP अधिकारी ने फुलवा को बुलाया और बताया की जेल की गाड़ी का ACCIDENT हो गया था जिसमें उसके तीनों भाई मारे गए थे। रोती हुई फुलवा SP अधिकारी से लिपट कर रोने लगी और उसे SP अधिकारी का राज़ पता चल गया।
 
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फुलवा जेल में भी अपनी जिंदगी जीने लगी। चिराग 1 साल का हो गया था और अब कुछ सुनाई देते शब्द बोलने लगा था। इसी बात से विचलित हो कर फुलवा ने जेलर SP अधिकारी से मुलाकात मांगी।

SP अधिकारी एक वरिष्ठ अधिकारी थे जो कुछ ही दिनों बाद रिटायर होने वाले थे। जेलर SP अधिकारी ने फुलवा के सामने बैठ कर उसे मिलने की वजह पूछी।

फुलवा, "आज मेरे बेटे ने एक नया शब्द बोला। माचोद!!. बेचारे को पता भी नहीं की उसकी जिंदगी अभी से बरबाद होने लगी है। क्या मैं उसे इस जेल में पूरी जिंदगी कैद हो कर सही तरह बढ़ा सकती हूं? इसी लिए मैंने ठान लिया है कि मैं चिराग को किसी अच्छे इंसान को गोद देना चाहती हूं।"

जेलर SP अधिकारी, "मैं जानता हूं कि चिराग के लिए कई खरीददार आए हैं। पर लगा नहीं था कि तुम उसे बेचोगी! खैर किसे दे रही हो?"

फुलवा, "आप को!"

जेलर SP अधिकारी चौंकर, "मुझे? मैने तो कभी शादी भी नही की! और अब 60 साल का होकर मैं 1 साल के बच्चे को कैसे संभालूं?"

फुलवा, "यही तो खास बात है आप में। आप भी पूरी जिंदगी झूठ के सहारे जीते रहे! आप मर्द नहीं हो! आप हिजड़े हो! आप झूठ बोल कर पुलिस अधिकारी बने। अपना राज़ छुपने के लिए कभी शादी नहीं की। मैने आप को गले लगाया तब सच्चाई महसूस की थी।"

जेलर SP अधिकारी, "तो तुम मुझे ब्लैकमेल कर रही हो!"

फुलवा हंसकर, "आप कल रिटायर हो रहे हैं। अब आप को ब्लैकमेल करने से क्या फायदा? लेकिन आप अच्छे इंसान हैं। इसी लिए मैं चाहती हूं कि आप मेरी आखरी निशानी को अपनी तरह ईमानदार बहादुर और शरीफ आदमी बनाएं। क्या मैंने कुछ ज्यादा मांग लिया?"

जेलर SP अधिकारी, "फुलवा, मैने कई बार सुना था कि मां बहुत बहादुर होती है। आज देख लिया। मुझे तुम्हारे बेटे की परवरिश करने में नाज़ होगा। मैं उसे तुम से नहीं छिपाऊंगा। अगर तुम रिहा हो गई तो मुझे मिलने आना या फिर बालिक होने पर मैं उसे तुमसे मिलने भेजूंगा।"

अगले दिन रोते बिलखते चिराग को जेलर SP अधिकारी की बाहों में रख कर फुलवा चली गई और उसे मुड़कर देखने की हिम्मत नहीं हुई।

नया जेलर SP प्रेमचंद था जो की सिपाहियों का चहेता था। सिपाही प्रेमचंद को पसंद क्यों करते हैं यह बात पहली रात को ही पता चल गई।

जेलर SP प्रेमचंद ने जेल की सारी रंडियों को बीच के आंगन में लाकर उनके कपड़े भिगाए और नचाया। उस रात कई सिपाही फुलवा पर टूट पड़े और उसका दूध पीते हुए सबने उसे कई बार चोदा।

फुलवा की बदनसीबी ने उसे दुबारा रण्डी बना दिया था।
 
24

जल्द ही जेल में सब को पता चल गया कि जेलर SP प्रेमचंद को यह ओहदा कैसे मिला था। प्रेमचंद का भाई विधायक था और इसी वजह से प्रेमचंद हर मुश्किल से बच निकलता। अफसोस की पिछले महीने जब एक औरत शिकायत दर्ज कराने प्रेमचंद के पास आई तब प्रेमचंद ने उसे लूटने से पहले यह जानने की जहमत नहीं उठाई की वह एक पत्रकार है। बुरी तरह पिटी और लूटी हालत में वह सीधे अपने दफ्तर गई और विधायक ने प्रेमचंद को यहां तबादला दिला कर मामला दबा दिया।



अब प्रेमचंद अपनी मन मर्जी से रंडियां मुफ्त में चोदते हुए उन्हें जी भर कर पिट सकता था। हर रात रंडियां प्रेमचंद को परोसी जाती जो पिटी हुई हालत में अगले दिन सुबह लौट आती। जेल में बाकी के गैरकानूनी धंधे भी शुरू हो गए थे। जेल में खाना खराब और कम हो गया था और लड़ाई झगडे आम हो गए थे।

प्रेमचंद के सबसे बड़े चमचे थे सिपाही कालू और सिपाही सोनी। सिपाही सोनी औरत होने के कारण औरतों के हिस्से को चलाती थी। जवान होने के बावजूद सोनी जानती थी कि SP प्रेमचंद को खुश रखने से उसे तेज़ी से तरक्की मिलेगी।



फुलवा को यह बात पता नहीं थी पर सोनी ने उसे SP प्रेमचंद को खास मौके पर परोसने के लिए रखा था। आखिर में वह घड़ी आ गई जब सोनी ने रात के खाने से पहले फुलवा को पकड़ा और नहाने के कमरे में ले गई।

सोनी ने फुलवा के कपड़े उतार दिए और उसे हाथ उठाकर पैर फैलाकर खड़े होने को कहा। पिछले 1 साल में फुलवा की चूत और बगलों से उगे हुए घुंघराले बालों को काट कर फिर उस्तरे से साफ किया गया।



साफ की गई फुलवा को किसी मांस के टुकड़े की तरह खींच कर जेलर के कमरे में नंगा ही लाया गया। सोनी ने फुलवा को दीवार में लगी 2 बेड़ियों से बांध दिया और कोने में खड़ी हो गई।

SP प्रेमचंद ने अंदर आकर फुलवा को बंधे हुए देखा और अपने मोटे होठों पर जीभ घुमाई। फुलवा के रोंगटे खड़े हो गए और उसने अपना मुंह फेरा।

फुलवा ने देखा कि जेलर का कमरा सलियों और बेड़ियों से सजा हुआ था। फुलवा नीचे झुक कर देख रही थी जब उसके बाएं मम्मे को चाबुक से मारा गया।



फुलवा चीख पड़ी, "मां!!."

फुलवा की चीख सुन कर SP प्रेमचंद ने ठहाका लगाया।

SP प्रेमचंद, "सोनी, इतने बेहतरीन माल को मुझसे क्यों छुपाया था? रण्डी की शक्ल देख बिलकुल किसी अच्छे घर की बहु बेटी लगती है!"

सोनी, "हुजूर, आप की खिदमत में इस से भी ज्यादा है!"

सोनी ने अपने कपड़े उतारे और अपने अंतर्वस्त्रों में ही फुलवा को देखते हुए उसके चक्कर लगाने लगी। फुलवा डर कर उसे रुकने की गुहार लगा रही थी।



फुलवा, "मेमसाहब, मुझ अबला को क्यों मार रही हो! मैने क्या किया है? मैं अभागन लूटी हुई हूं। आप जो चाहे कर लो! मैने मना थोड़ी ना किया है। मेमसा.!
आह!!.
मत मारो!!.
मां!!.
आ!!.
आ!!.
आ!!.
आ!!."



सिपाही सोनी फुलवा को बेरहमी से पिटती रही जब तक उसका पूरा बदन लाल नही हो गया। SP प्रेमचंद ने सोनी को रुकने को कहा तो सोनी ने चाबुक गिरा दिया।

SP प्रेमचंद, "इसे मेरे लिए तयार किया जाए!"

सोनी ने खुरतरी रस्सी से फुलवा को बांधा और उसे एक टांग पर खड़ा कर दिया। उठी हुई टांग से फुलवा की चूत खुल कर दिखने लगी।



सोनी ने अपनी लंबी उंगलियों से फुलवा की सफाचट चूत को सहलाते हुए उसे गरम करना शुरू किया। फुलवा की दर्द भरी आहें जल्द ही उत्तेजना की सिसकियां बन गई।

सोनी ने फुलवा के मम्मों पर रस्सी कस दी और अंदर दबा हुआ दूध फूट कर बहने लगा। दूध की इस फुहार को देख SP प्रेमचंद का मुंह ललचाया।



SP प्रेमचंद, "इसका बच्चा किधर है?"

सिपाही सोनी, "हुजूर उसे बूढ़ा जेलर ले गया।"

SP प्रेमचंद, "असली माल यहां छोड़ कर जाने वाला सच में चूतिया था!"

फुलवा की हर सांस के साथ और ज्यादा दूध बाहर बह रहा था। अपना दूध गिराती फुलवा अपने बच्चे को महफूज रखने के लिए SP अधिकारी को मन ही मन दुआएं दे रही थी।



SP प्रेमचंद, "बहुत हुआ! इसे लिटाओ!"

फुलवा के हाथ छोड़े गए और उसे एक सक्त बेड पर लिटाया गया।



फुलवा को दुबारा बांध कर उसके पैरों के बीच एक मशीन लगाया गया। मशीन शुरू कर उसके ऊपर लगाया हुआ रबर का लौड़ा धीरे से फुलवा की गीली चूत में धकेला गया।

फुलवा इस धीरे से होती चुधाई से गरमाकर तड़पने लगी। फुलवा के माथे पर पसीना और बदन में कपकपी होने लगी।



सोनी ने मशीन का बटन घुमाया और मशीन अचानक तेज हो गया।



तेजी से फुलवा चूधने लगी तो उसका बदन मानो कांपते हुए उसकी जवानी के साथ पिघलने लगा।

SP प्रेमचंद से रहा नही गया और उसने अपने लौड़े को फुलवा के मुंह में डाल कर फुलवा का गला चोदने लगा।



गुग!!.
गग!!.
गुग!!.
गुग!!.

फुलवा बड़ी मुश्किल से सांस ले रही थी और सांस दबने से वह और झड़ने लगी। फुलवा का गला अकड़ने लगा और SP प्रेमचंद ने अपने पूरे लौड़े को फुलवा के गले में पेल कर फुलवा का पेट अपने वीर्य से भर दिया।

SP प्रेमचंद का लौड़ा सिकुड़ने लगा और फुलवा के मुंह में से बाहर निकल आया। फुलवा को लगा कि अब वह रिहा की जाएगी। पर ऐसा नहीं हुआ!

SP प्रेमचंद, "मुझे ये रण्डी पसंद आई! इसे मेरे लिए गरम रखो! मैं वापस तयार हो जाऊंगा!"

सोनी ने अपनी पैंटी के ऊपर एक चमड़े का पट्टा पहना और उसके सामने बने खांचे में मशीन पर लगाया रबर का लौड़ा लगाया।

फुलवा समझ गई कि अब सोनी उसे चोदेगी। कोई औरत दूसरी औरत के साथ ऐसा कर सकती है यह उसने कभी सोचा नहीं था। लेकिन अब फुलवा एक औरत से लूटने वाली थी।

सोनी ने फुलवा की चूत को सहलाते हुए उस लंबे लौड़े पर चिपचिपा पदार्थ लगाया। सोनी ने अपने नकली लौड़े के सुपाड़े को फुलवा की बेहद रसभरी चूत पर रखा और एक झटके में पेल दिया।



फूलवा, "मां!!."

सोनी ने फुलवा को बड़ी बेरहमी से चोदते हुए उसे यौन उत्तेजना के शिखर पर रखा पर उस चमकीले आधार में लटकाकर रखते हुए झड़ने से रोक रखा।

फुलवा अपने सर को हिलती तड़पती हुई छुटकारा पाने के लिए भीख मांगने लगी पर सोनी का पत्थर दिल नही पसीजा।

तभी अपना दुबारा जाग उठा लौड़ा लेकर SP प्रेमचंद वहां आया। फुलवा SP प्रेमचंद का खड़ा लौड़ा देख कर खुश हो गई और अपनी कमर उठाकर उसे बुलाने लगी।



SP प्रेमचंद ने अपने लौड़े को फुलवा की यौन रसों से भीगी गांड़ पर लगाया और धीरे धीरे दबाने लगा। फुलवा दर्दनाक यौन उत्तेजना में झड़ती तड़पती रोती अपनी गांड़ में SP प्रेमचंद को लेने लगी।

SP प्रेमचंद ने फुलवा को तेजी से चोदना शुरू किया। अभी अभी झड़ने से SP प्रेमचंद रुकने को तयार था। उसने अपने पंजों में फुलवा के दूधिया मम्मे दबोच लिए। SP प्रेमचंद ने फुलवा के मम्मे दबाए और दूध की फुहारें उड़ने लगी।



SP प्रेमचंद ने बड़ी चाव से फुलवा के दूध से पहले अपने चेहरे को धोया और फिर फुलवा की गांड़ मारते हुए उसके मम्मों को चूसकर खाली करने लगा। फुलवा आहें भरती अपनी गांड़ मराते हुए अपना दूध SP प्रेमचंद को पिलाते हुए झड़ने की कोशिश कर रही थी।

SP प्रेमचंद आधे घंटे तक गांड़ मारने के बाद झड़ने वाला था जब उसने फुलवा की चूत पर एक झनझनाता गोला दबाया। फुलवा की चीख निकल गई।



फुलवा कांपते हुए झड़ने लगी और उसकी गांड़ अकडकर SP प्रेमचंद के लौड़े पर कस गई। SP प्रेमचंद ने कराहने हुए अपने लौड़े को फुलवा की गांड़ में से बाहर खींच लिया। SP प्रेमचंद का लौड़ा बाहर निकलते ही वीर्य की पिचकारी फुलवा के घायल बदन पर उड़ाते हुए पस्त हो गया।

SP प्रेमचंद ने बेसुध सी हो कर पड़ी फुलवा की गीली चूत पर थप्पड़ मारा जिस से फुलवा की आह निकल गई।

SP प्रेमचंद, "बोल कमिनी सोनी! क्या चाहिए?"
 
25

देर रात को फुलवा को कुछ खाना देकर उसे वापस नहाने के कमरे में लाया गया। वहां पानी की तेज धारा से फुलवा के हर अंग को धो कर सबूत मिटाए गए।

फुलवा की जवानी कई बार लूटी गई थी पर इतनी बेरहमी से पिटाई कभी नहीं हुई थी। बड़ी मुश्किल से फुलवा लड़खड़ाते हुए अपने कमरे में पहुंची।

फुलवा को दर्द से नींद आने में वक्त लगा। सुबह कराहती हुई फुलवा जब नाश्ता लेने गई तो बाकी कैदियों की आंखों में उसके लिए सहानुभूति थी।

फुलवा के जख्म भरने में हफ्ता लग गया। हफ्ते बाद शाम को सिपाही सोनी ने फुलवा को अपने साथ बुलाया तो वह डर गई। सिपाही सोनी फुलवा को एक अलग कमरे में ले गई।

सिपाही सोनी, "मैं जानती हूं कि तुम मुझ से डरती हो। मुझसे नफरत भी करती हो। बस इतना समझ लो को मुझे बस तरक्की चाहिए। इसी लिए मैं SP अधिकारी के साथ अच्छी थी और SP प्रेमचंद के साथ बुरी हूं।"

फुलवा को एक तरह से सोनी की बात समझ आ रही थी। फुलवा ने अपने सर को हिलाया और सोनी मुस्कुराई।

सोनी, "SP प्रेमचंद से मुझे तरक्की के लिए या तो तुझे परोसना होगा या खुद को। इसी लिए मैंने तुझे परोसा। अब मुझे तुझ से एक काम है। मेरे पति, सुंदर, को एक बड़ा सौदा करना है। सुंदर ने अपना पूरा जोर लगा दिया है। इसी दौरान वह सामनेवाली पार्टी को बोल गया की उसकी बीवी पुलिस है और वह कोई भी गुनाह कर सकता है।"

फुलवा की आंखों में देखते हुए सोनी, "पार्टी अब चाहती है कि एक औरत की इज्जत लूटी जाए जिसे मैं दबा दूं। मैं किसी औरत पर जुल्म कराना नही चाहती। अगर तुम मेरे साथ आओ और कोई गांव की औरत बनने का नाटक करो तो कोई अच्छी औरत बच सकती है।"

फुलवा सोचते हुए, "आप कैसे करना चाहती हो?"

सोनी ने फुलवा को बताया की उसे SP प्रेमचंद ने मंजूरी दे दी है। सुबह 5 बजे कैदियों की गिनती के बाद फुलवा को सोनी दरवाजे के बाहर सुंदर के हवाले करेगी। सुंदर फुलवा को एक कमरे में बंद करेगा। दोपहर को फुलवा के कमरे में सुंदर अपने 2 ग्राहकों के साथ आएगा। फुलवा को ऐसे बरताव करना होगा मानो उसे अगवा कर लिया गया है। ग्राहक फिर फुलवा को लूटेंगे। शाम को सुंदर फुलवा को वापस छोड़ जाएगा। इस काम के लिए सोनी फुलवा को कुछ सौ रुपए देने को तयार थी।

फुलवा, "मेमसहाब, आप के लोग इस बात पर भरोसा नहीं करेंगे की मैं रण्डी नहीं हूं। अगर आप अपने प्लान को थोड़ा बदलें तो सब का फायदा होगा।"

फूलवा ने सोनी को बताया की वह फुलवा को सुबह 5 बजे की गिनती के बाद 200 रुपए के साथ जाने दे। फुलवा अपनी मर्जी से सुबह जिएगी और बदले में दोपहर को तय किए सुनसान सड़क पर चलेगी। वहां से सुंदर अपने ग्राहकों के साथ उसका अपहरण कर उसकी इज्जत लूट ले। फिर शाम को सुंदर फुलवा को धमकाने के बहाने जेल में लौटा देगा।

सोनी, "अगर तुम भाग गई तो?"

फुलवा दुःख से हंसकर, "किसके पास जाऊंगी? बापू जिसने मुझे बेचा? वो लोग जिन्होंने मुझे रात के हिसाब से लूटा? या मेरे भाई जो मर चुके हैं? ज्यादा से ज्यादा मैं SP अधिकारी से मिलने जाऊं और वह मुझे यहां वापस लाएंगे। मेरा बाकी है ही कौन?"

फुलवा की बात सोनी मान गई। दो दिन बाद सुबह के लिए तयारी की गई। फुलवा को एक जोड़ी कपड़े दिलाए गए।

सुबह 5 बजे कैदियों की गिनती के बाद सोनी ने फुलवा को पकड़कर जेल की गेट पर लाया।

दरवाजा खोलते हुए सोनी, "फुलवा, अगर तुम भाग गई तो पकड़ी जरूर जाओगी पर तब तक कोई अच्छी औरत अपनी इज्जत गंवा चुकी होगी।"

फुलवा, "एक रण्डी से बेहतर इज्जत का मतलब किसे पता होगा? दोपहर ठीक 12 बजे तालाब के पीछे।"

फुलवा ने बाहर आकर गहरी सांस ली और सुंदर के साथ गाड़ी में बैठ गई। सुंदर ने फुलवा को कुछ फूल दिए। फुलवा ने फूलों को अपने बालों में लगाया और सुंदर को उसे लखनऊ के बाहर हवेली के पास छोड़ने को कहा। हवेली से कुछ दूरी पर उतरकर फुलवा ने सुंदर को जाने को कहा और अपनी मंज़िल की ओर बढ़ी।



सुबह की रोशनी में राज नर्तकी की हवेली और भी खूबसूरत और डरावनी लग रही थी। फुलवा ने धीरे से दरवाजे पर दस्तक दी और दरवाजा थोड़ा सा खुल गया।

फुलवा को लगा जैसे मौत उसे बेवक्त आने की वजह पूछ रही थी।

फुलवा ने अपने हाथ जोड़कर, "राज नर्तकी जी, मेरे भाई शेखर ने कहा था कि उसने मेरे लिए यहां कुछ छोड़ा है। क्या वह सामान मुझे मिल सकता है?"

हवेली का दरवाजा खुला और घुंघरू की आवाज सिंहासन के पास जा कर रुकी। मौत की बदबू पूरे महल में छाई हुई थी।



बापू ने फुलवा को सिंहासन पर धोखा दिया था इस लिए लाजमी था कि शेकर ने माल यहीं छुपाया हो। फुलवा ने सिंहासन को धक्का दिया। सिंहासन इतनी आसानी से पीछे हो गया मानो कोई उसे मदद कर रहा हो। सिंहासन के नीचे का दृश्य देख कर फुलवा का गला सूख गया।

सिंहासन के नीचे बापू की गला कटी लाश थी जिस पर शेखर भैया की नई बैग थी। लाश इतनी अच्छी हालत में थी मानो अभी जिंदा हो उठे।

फुलवा ने अपने बालों में से एक फूल बापू की लाश पर डाला।

फुलवा, "बापू, मैने तुझे माफ किया!"

महल सिसकियों से भर गया और राज नर्तकी दुख भरी धुन में नाचने लगी।

फुलवा ने बैग अपने कंधे पर लगाई और सिंहासन को उसकी सही जगह पर लाया। फुलवा ने दरबार के बीच में एक और फूल रखा।

फुलवा, "राज नर्तकी जी, यह आप के लिए है।"

परछाई का एक भूखा पंजा उस फूल पर झपट पड़ा। परछाई छूते ही फूल मिट्टी बन गया।

सिसकियों की जगह अब रोने ने ली थी।

फुलवा, "मुझे माफ कीजिए राज नर्तकी जी। मैं आप को दर्द नही देना चाहती थी।"

हवा में उड़ते कुछ बोल फुलवा के कानों में आए,

"शेखर ने कहा था कि तुम बहुत अच्छी हो। शायद तुम ही मेरी सखी हो! अगर मैं किसी दिन बुलाऊं तो आओगी?"

फुलवा मौत के बुलावे को सुनकर डर गई पर राज नर्तकी की विवशता को जान गई।

फुलवा, "मैं वादा करती हूं कि अगर मैं आ सकती हूं तो जरूर आऊंगी!"

खुशी में घुंघरू बजने लगे और फुलवा अपने खून की एक बूंद बहाए बिना राज नर्तकी की हवेली में से बाहर आ गई।

फुलवा ने बाहर से जाती बस पकड़ी और लखनऊ पहुंची। फुलवा ने पहले अच्छा नाश्ता किया और फिर बैग में क्या है वह देखा। फुलवा ने देखा की बैग में सोने के बिस्कुट थे।

फुलवा ने होटल में पूछा की लखनऊ में सोना खरीदने का काम कौन करता है?

होटल के मालिक ने गंदी मुस्कान से कहा कि मुसीबत में फंसे लोगों से धनदास सेठ सोना खरीदता है। फुलवा धनदास से मिलने लक्ष्मी एंपोरियम गई जब होटल में नौकर एक भोली भाली लड़की को धनदास के पास भेजने के लिए मालिक को गालियां देने लगे।
 
26

धनदास सेठ अपने दफ्तर में अपनी चोपडियों पर हाथ रख गुमसुम बैठा हुआ था।

फुलवा, "धनदास सेठ? मैं कुछ सोना बेचने आई हूं।"

धनदास की पैनी नजर फुलवा पर रुक गई। फुलवा ने अपनी बैग में से सोने के बिस्कुट निकाल कर मेज पर रखे। धनदास की आंखें चमक उठी।

धनदास, "सोना बेचने का भाव 10 हजार रुपए प्रति तोला है मतलब 1 लाख रुपए का एक बिस्कुट। तुम्हारे पास 150 बिस्कुट हैं। ये डेढ़ करोड़ रुपए बनते हैं। इतना पैसा मैं भी नहीं दे सकता!"

फुलवा, "कोई बात नहीं! अपने पास रख लो! जब मैं या कोई मेरे नाम से आए तो उसे दे दीजिए!"

धनदास, "क्यों खुद को लूटा रही हो? धनदास वो बला है जिसने अपने बेटे तक को बेचा है। क्या तुम ऐसे इंसान पर भरोसा करोगी?"

फुलवा, "जिसे अपनों ने लूटा हो उसे गैरों से क्यों शिकवा हो? मेरे बापू ने मेरी गांड़ मारी और मुझे कोठे पर बेचा। कोठे वाले ने मुझे बार बार कुंवारी बनाकर मेरी इज्जत लूटवाई। मेरे भाइयों ने मुझे बचाया और फिर रण्डी बना कर डकैती की। आप भी लूट लो! मैं कोई शिकायत नहीं करूंगी!"

धनदास की आंखों में आंसू भर आए। फुलवा को धीमी सी मौत की बदबू आने लगी।

धनदास, "आज धनदास वादा करता है कि वह जिंदगी में एक बार तो बिना धोखा दिए सौदा पूरा करेगा। तुम नहीं जानती बेटी की तुमने मुझे क्या दिया है।"

फुलवा, "वादा कीजिए की आप अपना खयाल रखेंगे। आप मेरे आखरी गवाह हैं।"

धनदास ने अपने माथे को पीटते हुए, "हाय रे ज़ालिम किस्मत, बदला भी कितनी मासूमियत से लेती हो! (गहरी सांस लेकर) फुलवा बेटी धनदास घुट घुट कर जिएगा पर तुम्हारे लिए अपनी आखरी सांस तक रुकेगा।"

अचानक बंद कमरे में हवा का झोंका आया और मौत की बदबू की जगह एक लुभावनी खुशबू ने ले ली।

फुलवा ने देखा की घड़ी में 11 बजे थे। फुलवा धनदास को हिसाब करते हुए छोड़ कर चली गई। फुलवा ने अपने आखरी रुपए खर्च कर तालाब के किनारे पहुंच कर एक मटका खरीदा।



फुलवा ने तालाब में से मटका भरा और पीछे के सुनसान रास्ते पर चलने लगी। फुलवा के कानों में गाड़ी के हॉर्न की आवाज आई। फुलवा ने सड़क के किनारे होते हुए गाड़ी के अंदर देखा। सोनी के पति सुंदर ने फुलवा को आंख मारी। पीछे बैठे दोनों ने फुलवा को एक नजर देखा और सुंदर को इसे उठाने को कहा।
 
27

सुंदर, "भाभीजी, इतनी धूप में थक जाओगी! आओ तुम्हें छोड़ देते हैं!"



फुलवा ने सुनसान रास्ते को देखते हुए, "नहीं बाबूजी, मैं चली जाऊंगी। आप को रुकने की जरूरत नहीं!"

मोटा ग्राहक, "ऐसे कैसे अकेली औरत को छोड़ दें? गाड़ी में जगह है। आ जाओ!"

फुलवा मटका लेकर दो कदम पीछे होते हुए, "किसी ने मुझे आप के साथ देख लिया तो बदनामी होगी! मैं आप सभी से हाथ जोड़ कर बिनती करती हूं कि आप चले जाइए!"

लंबा ग्राहक, "बदनामी होगी? क्या हम कोई गुंडे दिखते हैं?"

फुलवा, "बाबूजी, यहां गांव में हम शहरी लोगों से डरते हैं! मुझे जाने दीजिए! मैं चली जाऊंगी!"

फुलवा ने बात करते हुए देखा की तीनों ने बातों बातों में उसे घेर लिया था। फुलवा ने मटका फेंका और तालाब की ओर भागने लगी। मटका फूटा और जैसे कोई दौड़ शुरू हो गई। मोटा पीछे रह गया पर लंबे और सुंदर ने फुलवा को तालाब पहुंचने से पहले पकड़ लिया।

फुलवा चीख पड़ी। लंबे ने फुलवा के मुंह में रूमाल ठूंस कर उसे चुप करा दिया। सुंदर ने फुलवा के हाथ पकड़े तो फुलवा ने मोटे को लात मारी। मोटे ने गुस्से में फुलवा के पैरों को पकड़ कर उसे उठाया। सुंदर और मोटे के बीच में लटकी फुलवा अपने आप को छुड़ाने कि पूरी कोशिश कर रही थी।

लंबे ने गाड़ी में बैठ कर फुलवा के पैर पकड़ लिए और मोटे ने फुलवा के हाथों को अपने पंजे में पकड़ कर उसका मम्मा दबाना शुरू किया। सुंदर ने तेजी से गाड़ी एक सुनसान घर में लाई।

मोटे, "ये जगह ठीक है?"

सुंदर, "ये एक सरकारी दफ्तर था पर कई सालों से बंद पड़ा है। यहां कोई नहीं आता!"

फुलवा ने अपने मुंह से रूमाल थूंकते हुए, "बाबूजी, मुझे छोड़ दीजिए! मेरा छोटा बच्चा है! मैं घर नहीं लौटी तो वह भूखा रहेगा! अगर आप ने मुझे गंदा किया तो गांव वाले मुझे मार डालेंगे! मेरा बच्चा भी मर जायेगा! बाबूजी! मैं आप के पैर पकड़ कर भीख मांगती हूं!! मुझे छोड़ दीजिए!"

मोटे ने अपने दूध से गीले पंजे को चाटा और गुर्राया।

मोटा, "सुंदर, मुझे लगा था कि यह तेरी चाल है! पर ये तो असली गांव का घरैलू माल निकला!"

सुंदर, "अब तो मान गए ना की मेरा वादा हमेशा पूरा होता है?"

जवाब में लंबे और मोटे ने फुलवा पर धावा बोल दिया। फुलवा की चीखों से कमरा गूंज उठा। फुलवा की घागरा चोली फाड़ कर उतार दी गई। फुलवा की उत्तेजना से गीली पैंटी को उतार कर लंबे ने अपनी उंगली फुलवा की गरमी में डाल दी।

फुलवा, "नहीं!!."

मोटा फुलवा के दूध भरे मम्मे पर टूट पड़ा और जोर जोर से दबाकर चूसने लगा। लंबे को भी औरत का दूध पीना था। लंबे ने अपनी ऐड़ी से फुलवा की टांगे खोलते हुए फुलवा पर लेट लिया। लंबे का लौड़ा पैंट में से फुलवा की कमर रगड़ रहा था जब उसकी अब दो उंगलियां फुलवा की गीली भट्टी को भड़का रही थीं।

लंबे ने मोटे के बगल वाला मम्मा पकड़ कर अपने होठों से उसकी चूची चूसने लगा। फुलवा अपने पैरों को मारती अपना सर हिलाते हुए बचाने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

फुलवा, "बाबूजी नही!!.
मेरा बच्चा!!.
नहीं!!.
नहीं बाबूजी!!.
नहीं!!."

लंबे ने अपनी पैंट खोली और अपने लौड़े को फुलवा की चूत पर रखा।

सुंदर, "रुको!!.
कंडोम पहन लो!!.
हम तुम्हारा वीर्य अंदर छोड़कर सबूत नहीं बना सकते!!."

लंबे ने सुंदर की बात मान ली और अपने लौड़े पर कंडोम चढ़ा लिया।

फुलवा हाथ जोड़ कर, "बाबूजी नही!!.
मैं मर जाऊंगी!!.
मुझे छोड़ दो!!.
बाबूजी!!.
नहीं बाबूजी!!.
नही बाबू.
नहीं!!.
नही!!.
ना!!!.
आ!!.
आ!!.
आह!!.
नही!!.
नही!!.
नही!!!."

फुलवा फूट फूट कर रो रही थी जब लंबा तेजी से फुलवा को अपने लंबे लौड़े से चोद रहा था। लंबे और मोटे ने फुलवा के मम्मे चूस कर खाली कर दिए और अब लंबे की तेज चाप की आवाज के साथ बस फुलवा की सिसकियां और आहें सुनाई दे रही थी।

मोटे ने लंबे की हिलती कमर को देखा और उससे रहा नहीं गया। मोटे ने धक्का लगाया और लंबे को फुलवा के ऊपर से हटा दिया।

फुलवा ने मौका साध कर भागने की कोशिश की पर तुरंत पकड़ी गई। मोटे ने अपने मोटे लौड़े पर कंडोम पहना और फुलवा के पीछे से उसकी कमर पकड़ ली। फुलवा ने अपने घुटनों पर भागने की कोशिश की पर लंबा अपना लौड़ा लेकर फुलवा के सामने आ गया।



मोटे ने अपने मोटे लौड़े को फुलवा की गीली चूत में पेल दिया।

फुलवा चीख पड़ी, "मां!!."

मोटे ने फुलवा को अपने लौड़े पर खींच कर दबाया तो लंबा और आगे बढ़ा। मोटे ने फुलवा को धक्का दे कर अपने लौड़े पर से दूर किया तो लंबे का लंबा फुलवा के गले में उतर गया। फुलवा की सांस अटक गई और उसने सांस लेने के लिए पीछे होते हुए मोटे के मोटे लौड़े को अपनी चूत में घुसा लिया।



दोनों ने फुलवा को जोर जोर से पेलते हुए ऊपर नीचे से खोल दिया। फुलवा बेचारी ना चूत बचा पाई और ना ही सांस।

लंबा, "दोस्त, तुझे वो फिल्म याद है जो तूने पिछले हफ्ते लाई थी? चल इसे भी वह फिल्म दिखाते हैं!"

मोटे ने फुलवा को अपने लौड़े पर दबाया और उसे पकड़ कर बिस्तर पर लेट गया।



फुलवा ने अपने आप को मोटे के लौड़े पर बैठा पाया। मोटे के इशारे पर फुलवा ऊपर नीचे होते हुए उसके लौड़े से चुधवाने लगी।

लंबा फुलवा के बगल में खड़ा हो गया। लंबे के कहने पर फुलवा ने अपने पैरों को फैला कर चुधवाते हुए लंबे को चूसना शुरू किया। मोटे ने फुलवा की खुली पंखुड़ियों पर बने मोती को सहलाना शुरू किया और उत्तेजित फुलवा आहें भरने लगी।



फुलवा की आहें सुनकर लंबे ने उसका झड़ना शुरू होते ही अपने लौड़े को फुलवा के मुंह में से बाहर निकाल लिया।

फुलवा दिल खोल कर झड़ने का मज़ा चीखते हुए ले रही थी जब उसे अपनी चूत पर लंबे का लौड़ा महसूस हुआ।

फुलवा, "बाबूजी रुको!.
अभी नहीं!!.
अभी जगह न.
ही!!.
ई!!.
ई!!.
आ!!.
आ!!!.
आह!!.
नहीं!!."

लंबे ने अपने लौड़े को मोटे के लौड़े पर दबाते हुए उसे फुलवा की चूत में घुसाना शुरु कर दिया था। फुलवा एक बच्चा पैदा कर चुकी थी पर इस तरह चूधना उसने कभी सोचा भी नहीं था।



दो लौड़े एक साथ उसकी चूत को फैलाते हुए चोद रहे थे। फुलवा की आंखें घूम गईं और वह बेसुध हो कर झड़ने लगी।

लंबे और मोटे ने फुलवा की फिक्र किए बगैर उसके गुप्त अंग को फाड़कर चोदते हुए अपने लौड़े से मजे लिए। जब बुरी तरह चुधवा कर फुलवा लगातार झड़ती रही तब दोनों दोस्तों ने झड़ते हुए अपने कंडोम वीर्य से भर दिए।



लंबे और मोटे ने फुलवा को इस्तमाल किए तौलिए की तरह जमीन पर फेंका और अपने कपड़े पहने। फुलवा जमीन पर पड़ी सिसकियां ले रही थी।

लंबा, "सुंदर, इसका क्या किया जाए?"

फुलवा रोते हुए अपने हाथ जोड़कर, "बाबूजी, मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी! मुझे जाने दो! मेरा बच्चा भूखा है! मुझ पर नहीं तो मेरे बच्चे पर रहम करो!"

सुंदर ने फुलवा के बदन को एक चादर से ढकते हुए अपनी पैंट की पिछली जेब में से एक खुलने वाला चाकू निकाला।



सुंदर लंबे और मोटे से, "आप को जो चाहिए था वह हो गया है! अब मैं इस बेचारी को चुप करा देता हूं। आप दोनों को ये देखना जरूरी नहीं। सीधे बाहर जाओ। तालाब की ओर 10 मिनट बाद आप को बस मिलेगी। हम अपना सौदा अगले हफ्ते पूरा करेंगे।"

लंबा और मोटा आगे क्या होगा यह जान कर दुम दबाकर भागे।

सुंदर, "फुलवाजी, क्या मैं आप को वापस भेजने से पहले कुछ दे सकता हूं? आप ने मेरी बहुत बड़ी मदद की है!"

फुलवा मुस्कुराकर, "बाबूजी आप ने मुझे जी कहकर ही बहुत खुशी दी है। सुबह आप ने मुझे फूल क्यों दिए?"

फुलवा को नए कपड़े देते हुए सुंदर, "मुझे नहीं लगता कि कैद में आप को फूल मिलते हैं और कौन औरत फूल नहीं चाहती?"

फुलवा को अपने कपड़े पहनते हुए राज नर्तकी का शापित हाथ और 1 फूल के लिए उसकी चाहत याद आई। फुलवा ने सुंदर को देख कर मुस्कुराते हुए उसे धन्यवाद दिया।

फुलवा को जेल के दरवाजे पर छोड़ते हुए सुंदर, "अगर मैं कभी आप की मदद कर पाऊं तो मुझे खुशी होगी।"

फुलवा से रहा नहीं गया, "सुंदरजी, आप सोनी मेमसाहब को कैसे."

सुंदर हंसकर, "वो उतनी बुरी नहीं। उसे अभी चमक दमक के पीछे की सच्चाई पहचानने का अनुभव नहीं है।"



फुलवा ने जेल के दरवाजे पर दस्तक दी और सिपाही कालू ने फुलवा को अंदर लेते हुए दरवाजा बंद कर दिया।
 
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फुलवा को अंदर लेते हुए सिपाही कालू बहुत खुश लग रहा था। सिपाही सोनी ने फुलवा को उसके कमरे में ले जाने से पहले उसे जेल के कपड़े पहनने के लिए अलग कमरे में लाया।

फुलवा ने सिपाही सोनी को उदास देखा और फुलवा ने सोनी से वजह पूछी।

सिपाही सोनी, "आज मुझे पता चल गया की काल का पहिया किसे कहते हैं। जो ऊपर जाता है वह नीचे जरूर आता है।"

फुलवा, "आप कहना क्या चाहती हो, मेमसाहब?"

सोनी सिसकते हुए, "मुझे मेमसाहब मत बोलो। मैं उस लायक नहीं रही। एक रण्डी वही होती है ना जो कुछ पैसों या चीज के लिए अपने शरीर का सौदा करे? अगर ऐसा है तो हम दोनों में कोई फरक नहीं!"

फुलवा ने सोनी की जख्मी आत्मा की पुकार सुनी।

फुलवा, "मुझसे बात करना चाहती हो?"

सोनी फुलवा के गले लग कर फूट फूट कर रोने लगी।

सोनी, "मैं बहुत बुरी हूं फुलवा! मुझे माफ कर दो! मैंने बहुत गलत काम किया है! मैं इसी लायक हूं!!"

फुलवा ने सोनी को धीरज देते हुए, "बताओ, क्या हुआ है?"

सोनी, "तुम्हारे जाने के आधे घंटे बाद SP प्रेमचंद ने अचानक दुबारा कैदियों की गिनती की। एक कैदी कम है यह जान कर पूछताछ की, की कौन और कैसे गायब है?"

सोनी ने सिसकते हुए, "कालू ने बयान दिया कि मैं फुलवा को दरवाजे के बाहर छोड़ते हुए देखी गई थी। यह पूरी चाल थी मुझे कानूनन तरीके से फंसाने की।"

फुलवा, "क्या SP प्रेमचंद ने तुम्हारे साथ."

सोनी ने रोते हुए सर हिलाते हुए हां कहा।

सोनी, "मैं गंदी हो गई, फुलवा! अब मैं SP प्रेमचंद की रखैल बन गई हूं!"

फुलवा, "मुझे सब कुछ बताओ। कुछ भी मत छोड़ना!"
 
28B

फुलवा को लेकर सुंदर को गए आधा घंटा ही हुआ था जब SP प्रेमचंद ने surprise inspection के लिए सबको बुलाया। सोनी ने SP प्रेमचंद को रोकने की कोशिश की पर वह सबके सामने SP प्रेमचंद को बता नहीं सकती थी। फुलवा को लापता पाते ही सिपाही कालू ने कहा कि फुलवा को सोनी दरवाजे तक ले गई थी।

सोनी को SP प्रेमचंद ने अपने दफ्तर में बुलाया और सिपाही कालू से कहा कि आज वह व्यस्त रहेगा। सोनी ने दफ्तर में जाते ही कालू ने दरवाजा बाहर से बंद कर दिया।



सोनी झूठी हिम्मत से, "सर, इसका मतलब क्या है? मैंने आप के कहने पर फुलवा को बाहर भेजा है! मेरा पति काम होते ही फुलवा को वापस लाएगा। फिर ये surprise inspection क्यों?"

SP प्रेमचंद, "शादीशुदा हो कर भी कितनी मासूम हो! मेरे लिए रंडियों को परोसते हुए ऐसे मटकती हो पर तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हें कुछ नहीं करूंगा? यहां आते ही मैंने तय किया था कि तू मेरी अपनी रखैल बनेगी। तूने खुद मुझे जाल दिया और उसमें फंस भी गई। अब अगर इसी जेल में कैदी बनकर आना नही चाहती तो मेरी हर बात माननी पड़ेगी।"

सोनी ने डरते हुए अपना सर हिलाकर हां कहा।

प्रेमचंद, "अब अपनी वर्दी उतार और वहां कुर्सी पर रख!"

सोनी रोते हुए, "मैं रण्डी नहीं हूं! मैने हमेशा आप की मदद की है! आप के कहने पर जेल की औरतों का बलात्कार करने में भी आप का साथ दिया। आपके सबूत मिटाए, आप के भाईसाहब लिए यहां के गुंडों को जेल पर राज करने दिया! मैं हमेशा."

प्रेमचंद ने सोनी का गला दबा कर उसकी बात रोकी।

प्रेमचंद, "सुन बे दो टके की दल्ली! मैं इस जेल का राजा हूं और यहां के बाकी सब मेरे गुलाम! अगर मैं चाहूं तो तुझे अभी इस जेल में नंगा घुमाऊं! समझी?"

सोनी ने डर कर अपना सर हिलाते हुए हां कहा।

प्रेमचंद, "अब इस से पहले कि मैं तेरी वर्दी फाड़ कर तुझे आज शाम को नंगे बदन घर जाने को कहूं, अपनी वर्दी उतार!"

सोनी ने रोते हुए अपनी टोपी, फिर बेल्ट, फिर जूते और मोजे उतारे।

प्रेमचंद अपनी छड़ी हाथ में बजाकर, "तेरी सुहागरात नहीं है जो तू मेरे इशारे का इंतजार करे! चल नंगी हो जा!"

सोनी ने रोते हुए अपना शर्ट और पैंट उतार दी। नीली ब्रा और पैंटी में सोनी ने अपने बदन को छुपाते हुए खड़ा होना पसंद किया।



प्रेमचंद ने अपनी नजरों के सामने कांपती सोनी के ललचाते बदन को देख कर अपने मोटे होठों को गीला किया। प्रेमचंद ने सोनी के हाथ उठाए और टांगे फैलाई।

सोनी ने चौंक कर आह भरी जब उसकी पैंटी के ऊपर से एक झुनझुनाता छोटा पतला vibtrator चलने लगा। प्रेमचंद सोनी के बदन को चूमते हुए उसके यौन मोती को छोटे vibrator से उत्तेजित कर रहा था। सोनी ने अपने मुंह को मोड़ कर अपने होठों को दबाते हुए अपने बदन पर काबू पाने की नाकाम कोशिश की।



प्रेमचंद एक मंजा हुआ खिलाड़ी था जिसने नजाने कितनी औरतों का बलात्कार करते हुए औरत के मन और बदन में कश्मकश पैदा करना सीखा था। धीरे धीरे सोनी की सांसे तेज और बदन गरम होने लगा। सोनी अपने बदन के विद्रोह से रो पड़ी।



प्रेमचंद ने सोनी की पैंटी को पैरों के बीच में से खींचते हुए जगह बनाई और वह छोटा पतला vibrator सोनी की यौन पंखुड़ियां के ठीक बीच में रख कर पैंटी को उसकी जगह पर लाया। पैंटी vibrator को अपनी सही जगह पर रख कर सोनी को तड़पा रही थी जब प्रेमचंद ने सोनी को अपनी में पर लाया।

सोनी की ब्रा का हुक खोलते हुए प्रेमचंद ने सोनी के मम्मे को दबाकर उनकी सक्ति और बनावट को आजमाया। सोनी की आंखों में से आंसू और होठों से आहें निकल रही थी। प्रेमचंद ने सोनी को पीठ के बल मेज पर लिटाया। सोनी के जवान मम्मे चूचियों को सीधे आकाश की ओर किए अपनी जगह पर बने रहे।

प्रेमचंद ने फिर एक डॉक्टरी टेप से दो छोटे vibrator को सोनी की चुचियों पर चिपका दिया। झनझनाहट अब सोनी की चूत के साथ उसके मम्मों के जरिए भी होती उसके बदन को और भड़का रही थी।



प्रेमचंद ने सोनी का चेहरा एक ओर मोड़ा और सोनी से पूछताछ करने लगा।



प्रेमचंद, "सोनी, ये बता की तूने मेरे लिए क्या क्या किया है?"

सोनी रोते हुए, "मैने आप के कहने पर जेल में हर गैर कानूनी काम को बढ़ावा दिया है। विधायकजी के गुंडों को घर का खाना दिलाते हुए बाकी कैदियों को बस एक वक्त का खाना दिया है। आप की खिदमत में हर रात रंडियां पेश की हैं। उन रंडियों को पहले साफ करते हुए उनके बदन में बीमारी ना होने की जांच भी की। जब आप ने उन रंडियों को पीट कर छोड़ दिया तब उनके बदन से आप के वीर्य के निशान मिटाए और उनके मुंह बंद करने के लिए उन्हें धमकाया भी। हुजूर मैं पतिव्रता हूं मुझे कलंकित ना करें!"

प्रेमचंद ने सोनी की पैंटी को उतारते हुए वाइब्रेटर को उसकी सही जगह पर बनाए रखा।

प्रेमचंद, "बता, मैंने तुझे कैसे फंसाया?"

सोनी और जोरों से रोते हुए, "जब मैंने बताया की मेरे पति के ग्राहक किसी औरत की इज्जत लूटना चाहते हैं और मेरे पति उसके लिए अच्छी रण्डी ढूंढ रहे हैं। तब आप ने मुझे जेल में से एक रण्डी ले जाने का सुझाव दिया। हुजूर, आप ने मुझे मनाया की यही सबसे अच्छा और महफूज तरीका होगा! हुजूर, मुझे बक्श दो! मुजूर मैं आप की गुलामी करूंगी! मुझे जाने दो!!."

प्रेमचंद ने अपनी लंबी उंगली पर तेल लगाया और सोनी की चूत के गीले मुंह को सहलाने लगा। सोनी नहीं!!. नहीं!!. नही!!. चिल्ला रही थी पर उसकी चूत में से यौन रसों का बहाव तेज़ हो रहा था।



प्रेमचंद ने अपने उंगली को सोनी की तपती गर्मी में डाल दिया और उसकी चीख निकल गई। Vibrator की छेड़खानी से उत्तेजित जवानी बस गरम उंगली से यौन उत्तेजना के शिखर पर पहुंची। सोनी का बदन कांपने लगा और वह मेज पर उछलती अनजाने में अपनी कमर को हिलाकर प्रेमचंद की उंगली से चूधने लगी।

प्रेमचंद के सब्र का बांध टूटा और उसने अपनी पैंट उतार कर अपने सुपाड़े को सोनी की गीली जवानी से भिड़ा दिया।

सोनी चीख पड़ी, "कंडोम!."

प्रेमचंद ने मुस्कुराकर अपने लौड़े को एक तेज धक्के से सोनी की गरम भट्टी में पेल दिया। सोनी की चीख में दर्द नही पर डर और विवशता का में था। सोनी शादीशुदा महिला थी जिसका पति, सुंदर उसे हर रात संतुष्ट करता। लेकिन इस तरह पराए मर्द संग विवशता से चुधना अपने आप में एक अनोखा अनुभव था।

प्रेमचंद ने सोनी के घुटनों को अपने कंधों पर मोड़कर रखते हुए अपनी खुदगर्जी को साबित किया। प्रेमचंद तेज चाप लगाते हुए सोनी की शादीशुदा जवानी को लूटता उसे झड़ने को मजबूर कर रहा था।



सोनी ने अपने बदन की बगावत से हारते हुए आह भरी और अपनी उंगलियों से मेज के निचले हिस्से को कस कर पकड़ लिया। प्रेमचंद की तेज रफ्तार चुधाई से सोनी की जवानी ने पानी छोड़ दिया। सोनी की आह निकल गई और वह कांपते हुए झड़ने लगी।

प्रेमचंद ने अपने लौड़े पर सोनी की गर्मी में चूसने का अनुभव किया और वह जंगली भेड़िए की तरह कराहते हुए झड़ गया। प्रेमचंद की गर्मी से सोनी की कोख भर गई। सोनी की सुहागन जवानी कुलटा के दाग में पोत दी गई थी।



सोनी के ऊपर से प्रेमचंद उठ गया। प्रेमचंद ने चूचियों पर चिपके मेडिकल टेप के छोर पकड़े और उन्हें खींच निकाला।

सोनी की उत्तेजना से संवेदनशील हुई चूचियां दर्द से चीख पड़ी। सोनी की चीख प्रेमचंद के ऑफिस में गूंज उठी।

प्रेमचंद ने मुस्कुराते हुए सोनी को देखा। सोनी ने अपने बदन को प्रेमचंद से छुपाने के लिए उसकी मेज पर पेट के बल लेट लिया था।

प्रेमचंद ने हाल ही में सुना था कि लखनऊ का एक डॉक्टर अपने लौड़े पर इंजेक्शन लेकर अपनी पेशेंट को लगातार 8 घंटे चोदा करता था। प्रेमचंद ने उस मरे हुए डॉक्टर को याद करते हुए वह इंजेक्शन अपने लौड़े के जड़ में लगाया। प्रेमचंद का लौड़ा और गोटियां फूलने लगी जब सोनी के कपड़ों में रखा उसका फोन बजने लगा।

बदहाल सोनी कोई फोन उठाने की हालत में नहीं थी पर जब प्रेमचंद ने देखा की सुंदर का कॉल है तो उसने वह फोन सोनी को दिया।
 
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