hotaks444
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संघर्ष--21
दुकान पर पहुचने के बाद सावित्री काफ़ी राहत महसूस की. मन मे उन आवारों को गलियाँ भी दी. और फिर दुकान मे बैठ कर रोज़ की तरह कुच्छ बेच्वाली भी की. फिर दोपहर हो गया और दुकान को पंडित जी बंद कर के पीछे वाले कमरे मे आ गये और सावित्री भी अपनी चटाई ले कर दुकान वाले हिस्से मे चली गयी. दोपहर होते ही सावित्री के बुर मे खुजली होने लगी. चटाई मे लेटे लेटे अपनी सलवार के उपर से ही बुर को सहलाया और खुजलाया. मन मस्ती से भर गया. रात मे ज़्यादे ना सो पाने के वजह से उसे भी नीद लग गयी. पंडित जी करीब एक घंटे आराम करने के बाद उठे और पेशाब करने के बाद सावित्री को हल्की आवाज़ दी लेकिन सावित्री को नीद मे होने के वजह से सोई रह गयी. दुबारा पंडित जी ने तेज आवाज़ लगाई तब सावित्री की नीद खुली और हड़बड़ा कर उठी और अपने दुपट्टे को अपनी चुचिओ पर ठीक करते हुए दुकान के अंदर वाले हिस्से मे आई तो देखी की पंडित जी चौकी पर बैठे उसे घूर रहे थे. पंडित जी ने कहा "रात मे सोई नही थी क्या...जा मूत कर आ " सावित्री कुच्छ पल वैसे ही खड़ी रही फिर पेशाब करने चली गयी. सवत्री की बुर मे भी खुजली अब तेज हो गयी थी. लंड का स्वाद मिल जाने की वजह से अब उसे चुड़ाने की इच्छा काफ़ी ज़्यादा हो गयी थी.
पेशाब करने के बाद सावित्री चटाई को पिच्छले दिन की तरह चौकी के बगल मे बिच्छा दी और खड़ी हो कर नज़रें झुका ली. पंडित जी ने उसकी ओर देखते हुए मुस्कुराया और बोले "आज मैं तुमको चटाई पर नही बल्कि अपनी चौकी पर चोदुन्गा....अब तेरे साथ मैं कोई उँछ नीच या बड़े छ्होटे का भेदभाव नही करूँगा...." फिर आगे बोले "अरे मैं क्या बड़े बड़े महात्मा तुम्हारी जवानी के सामने घुटने टेक देंगे....सच सावित्री तुम बहुत गरम हो" इतना कह कर सावित्री को अपने चौकी पर लगे बिस्तर पर आने का इशारा किया. सावित्री के कान मे ऐसी बात पड़ते ही उसे विश्वास नही हो रहा था. उसकी बुर मे खुजली अब धीरे धीरे तेज हो रही थी लेकिन पंडित जी से इतना सम्मान पा कर उसका मन झूम उठा. उसे फिर याद आया की उसकी बुर की कितनी कीमत है. पंडित जी सावित्री का बाँह पकड़ कर चौकी पर खेंच लिए और सावित्री भी चौकी पर चढ़ कर बैठ गयी अगले पल पंडित जी सावित्री को लेटा कर उसके उपर चढ़ गये और अपने नीचे दबा दिया. धोती के उपर से ही लंड का दबाव सावित्री के सलवार पर पड़ने लगा और पंडित जी समीज़ के उपर से ही सावित्री की बड़ी बड़ी चुचिओ से खेलने लगे.
थोड़ी देर मे दोनो एकदम नंगे हो गये और पंडित जी रोज़ की तरह सावित्री की झांतों से भरी बुर को जम कर चटा और सावित्री भी उनके लंड को मन लगाकर चूसी. सावित्री चुदने के लिए काफ़ी बेताब थी. वह बार बार पंडित जी के लंड को बुर मे लेने के लिए इशारा कर रही थी. पंडित जी भी सही मौका देख कर लंड को बुर के मुँह पर लगाकर चॅंप दिया और लंड करीब आधा अंदर घूसा ही था की दुकान के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. पंडित जी के कान मे दोपहर के समय दुकान पर किसी के दस्तक की आवाज़ सुनते ही चौंक से गये और लंड को सावित्री के बुर मे डाले वैसे ही पड़े रहे. तभी दुबारा दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई.
पंडित जी को बहुत गुस्सा आया और लंड को सावित्री के बुर से खींच कर बाहर निकाले तो सावित्री को भी अच्छा नही लगा. अचानक दोपहर मे किसी के आ जाने से सावित्री भी डर सी गयी और चौकी पर से उतर कर अपने कपड़े पहनने के लिए लपकी तो पंडित जी ने सावित्री से काफ़ी धीरे से कहा "कपड़े मत पहन ऐसे ही रह मैं उसको दुकान के बाहर से ही वापस कर दूँगा लगता है कोई परिचित ग्राहक है. उसके जाते ही मज़ा लिया जाएगा" पंडित जी एक तौलिया लपेट कर दुकान वाले हिस्से मे आ गये और बीच के पर्दे को ठीक कर दिया ताकि दुकान का दरवाज़ा खुलने पर दुकान के अंदर वाले हिस्से मे दिखाई ना दे जिसमे चौकी पर सावित्री एकदम नंगी ही बैठ कर पंडित जी को दुकान के दवाज़े के ओर जाते हुए देख कर समझने की कोशिस कर रही थी कि आख़िर दोपहर मे कौन आ गया है. और इतना करने मे पंडित जी का खड़ा लंड अब सिकुड़ने लगा था और तौलिया के उपर से अब मालूम नही दे रहा था.
पंडित जी यही सोच कर एक तौलिया लपेटे हुए दुकान के दरवाजे को धीरे से खोलकर देखना चाहा कि बाहर कौन दस्तक दे रहा है. लेकिन उनकी नज़र उस इंसान पर पड़ते ही पंडित जी को मानो लकवा मार दिया. वो और कोई नही बल्कि पंडित जी की धर्मपत्नी थी जो बड़ी बड़ी आँखे निकाल कर पंडित जी को खा जाने की नियत से घूर रही थी. पंडित जी के गले से एक भी शब्द निकल नही पाया और पंडिताइन ने पंडित जी को लगभग धकेलते हुए काफ़ी तेज़ी से दुकान के अंदर आई और अगले पल दुकान के अंदर वाले कमरे जिसमे सावित्री एकदम ही नंगी बैठ कर पर्दे की ओर ही देख रही थी कि आख़िर कौन आया है. पंडिताइन ने पर्दे को हटाते ही सावित्री को एकदम नंगे देख उनका गुस्सा आसमान पर चढ़ गया. इधेर एक दम से अवाक हो चुके पंडित जी ने दुकान का दरवाज़ा बंद कर के तुरंत पंडिताइन के पीछे पीछे अंदर वाले हिस्से मे आ गये पंडिताइन को देखते ही सावित्री को साँप सूंघ गया. पंडिताइन करीब 43 साल की एक गोरे रंग की करीब छोटे कद की औरत थी. और उन्हे मालूम था कि उनका पति भोला पंडित मौका देख कर बाहरी औरतों से बहुत मज़ा लूटते हैं. और नई लड़की के दुकान पर आने की खबर उन्हे लग चुकी थी और इसी चक्कर मे वह ठीक दोपहर के समय दुकान पर आ धमकी थी.
सावित्री पंडिताइन को देखते ही चौकी पर से कूद कर चटाई पर पड़े अपने कपड़ों की ओर लपकी लेकिन पंडिताईएन उन कपड़ों पर ही पैर रख कर खड़ी थी और कपड़े ना मिल पाने के वजह से सावित्री ने एक हाथ से अपनी दोनो चुचियाँ और दूसरे हाथ से अपनी झांतों से भरी बुर को धक लिया और आँखें झुका कर खड़ी हो गयी. कमरे मे एकदम सन्नाटा था पंडित जी भी कुच्छ नही बोल रहे थे. पंडिताइन गुस्से के वजह से आँखें निकाल कर कभी सावित्री के नंगे शरीर को देखती तो कभी पंडित जी की ओर देखती और हाँफ भी रही थी. अगले पल पंडिताइन चिल्ला पड़ी "तू कभी नही सुधरेगा.....रे....कुत्ता...मेरी को पूरी जिंदगी बर्बाद कर दू हरामी कहीं का.......हे भगवान मेरी तकदीर मे यही सब देखने को लिखा है....इस कुत्ते से कब नीज़ात मिलेगा भगवान..." इतना कह कर पंडिताइन रो पड़ी और और अपने दोनो हाथों से अपने चेहरे को ढक ली. कमरे मे पंडित जी और सावित्री दोनो एक दम शांत अपनी अपनी जगह पर खड़े थे.
दुकान पर पहुचने के बाद सावित्री काफ़ी राहत महसूस की. मन मे उन आवारों को गलियाँ भी दी. और फिर दुकान मे बैठ कर रोज़ की तरह कुच्छ बेच्वाली भी की. फिर दोपहर हो गया और दुकान को पंडित जी बंद कर के पीछे वाले कमरे मे आ गये और सावित्री भी अपनी चटाई ले कर दुकान वाले हिस्से मे चली गयी. दोपहर होते ही सावित्री के बुर मे खुजली होने लगी. चटाई मे लेटे लेटे अपनी सलवार के उपर से ही बुर को सहलाया और खुजलाया. मन मस्ती से भर गया. रात मे ज़्यादे ना सो पाने के वजह से उसे भी नीद लग गयी. पंडित जी करीब एक घंटे आराम करने के बाद उठे और पेशाब करने के बाद सावित्री को हल्की आवाज़ दी लेकिन सावित्री को नीद मे होने के वजह से सोई रह गयी. दुबारा पंडित जी ने तेज आवाज़ लगाई तब सावित्री की नीद खुली और हड़बड़ा कर उठी और अपने दुपट्टे को अपनी चुचिओ पर ठीक करते हुए दुकान के अंदर वाले हिस्से मे आई तो देखी की पंडित जी चौकी पर बैठे उसे घूर रहे थे. पंडित जी ने कहा "रात मे सोई नही थी क्या...जा मूत कर आ " सावित्री कुच्छ पल वैसे ही खड़ी रही फिर पेशाब करने चली गयी. सवत्री की बुर मे भी खुजली अब तेज हो गयी थी. लंड का स्वाद मिल जाने की वजह से अब उसे चुड़ाने की इच्छा काफ़ी ज़्यादा हो गयी थी.
पेशाब करने के बाद सावित्री चटाई को पिच्छले दिन की तरह चौकी के बगल मे बिच्छा दी और खड़ी हो कर नज़रें झुका ली. पंडित जी ने उसकी ओर देखते हुए मुस्कुराया और बोले "आज मैं तुमको चटाई पर नही बल्कि अपनी चौकी पर चोदुन्गा....अब तेरे साथ मैं कोई उँछ नीच या बड़े छ्होटे का भेदभाव नही करूँगा...." फिर आगे बोले "अरे मैं क्या बड़े बड़े महात्मा तुम्हारी जवानी के सामने घुटने टेक देंगे....सच सावित्री तुम बहुत गरम हो" इतना कह कर सावित्री को अपने चौकी पर लगे बिस्तर पर आने का इशारा किया. सावित्री के कान मे ऐसी बात पड़ते ही उसे विश्वास नही हो रहा था. उसकी बुर मे खुजली अब धीरे धीरे तेज हो रही थी लेकिन पंडित जी से इतना सम्मान पा कर उसका मन झूम उठा. उसे फिर याद आया की उसकी बुर की कितनी कीमत है. पंडित जी सावित्री का बाँह पकड़ कर चौकी पर खेंच लिए और सावित्री भी चौकी पर चढ़ कर बैठ गयी अगले पल पंडित जी सावित्री को लेटा कर उसके उपर चढ़ गये और अपने नीचे दबा दिया. धोती के उपर से ही लंड का दबाव सावित्री के सलवार पर पड़ने लगा और पंडित जी समीज़ के उपर से ही सावित्री की बड़ी बड़ी चुचिओ से खेलने लगे.
थोड़ी देर मे दोनो एकदम नंगे हो गये और पंडित जी रोज़ की तरह सावित्री की झांतों से भरी बुर को जम कर चटा और सावित्री भी उनके लंड को मन लगाकर चूसी. सावित्री चुदने के लिए काफ़ी बेताब थी. वह बार बार पंडित जी के लंड को बुर मे लेने के लिए इशारा कर रही थी. पंडित जी भी सही मौका देख कर लंड को बुर के मुँह पर लगाकर चॅंप दिया और लंड करीब आधा अंदर घूसा ही था की दुकान के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. पंडित जी के कान मे दोपहर के समय दुकान पर किसी के दस्तक की आवाज़ सुनते ही चौंक से गये और लंड को सावित्री के बुर मे डाले वैसे ही पड़े रहे. तभी दुबारा दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई.
पंडित जी को बहुत गुस्सा आया और लंड को सावित्री के बुर से खींच कर बाहर निकाले तो सावित्री को भी अच्छा नही लगा. अचानक दोपहर मे किसी के आ जाने से सावित्री भी डर सी गयी और चौकी पर से उतर कर अपने कपड़े पहनने के लिए लपकी तो पंडित जी ने सावित्री से काफ़ी धीरे से कहा "कपड़े मत पहन ऐसे ही रह मैं उसको दुकान के बाहर से ही वापस कर दूँगा लगता है कोई परिचित ग्राहक है. उसके जाते ही मज़ा लिया जाएगा" पंडित जी एक तौलिया लपेट कर दुकान वाले हिस्से मे आ गये और बीच के पर्दे को ठीक कर दिया ताकि दुकान का दरवाज़ा खुलने पर दुकान के अंदर वाले हिस्से मे दिखाई ना दे जिसमे चौकी पर सावित्री एकदम नंगी ही बैठ कर पंडित जी को दुकान के दवाज़े के ओर जाते हुए देख कर समझने की कोशिस कर रही थी कि आख़िर दोपहर मे कौन आ गया है. और इतना करने मे पंडित जी का खड़ा लंड अब सिकुड़ने लगा था और तौलिया के उपर से अब मालूम नही दे रहा था.
पंडित जी यही सोच कर एक तौलिया लपेटे हुए दुकान के दरवाजे को धीरे से खोलकर देखना चाहा कि बाहर कौन दस्तक दे रहा है. लेकिन उनकी नज़र उस इंसान पर पड़ते ही पंडित जी को मानो लकवा मार दिया. वो और कोई नही बल्कि पंडित जी की धर्मपत्नी थी जो बड़ी बड़ी आँखे निकाल कर पंडित जी को खा जाने की नियत से घूर रही थी. पंडित जी के गले से एक भी शब्द निकल नही पाया और पंडिताइन ने पंडित जी को लगभग धकेलते हुए काफ़ी तेज़ी से दुकान के अंदर आई और अगले पल दुकान के अंदर वाले कमरे जिसमे सावित्री एकदम ही नंगी बैठ कर पर्दे की ओर ही देख रही थी कि आख़िर कौन आया है. पंडिताइन ने पर्दे को हटाते ही सावित्री को एकदम नंगे देख उनका गुस्सा आसमान पर चढ़ गया. इधेर एक दम से अवाक हो चुके पंडित जी ने दुकान का दरवाज़ा बंद कर के तुरंत पंडिताइन के पीछे पीछे अंदर वाले हिस्से मे आ गये पंडिताइन को देखते ही सावित्री को साँप सूंघ गया. पंडिताइन करीब 43 साल की एक गोरे रंग की करीब छोटे कद की औरत थी. और उन्हे मालूम था कि उनका पति भोला पंडित मौका देख कर बाहरी औरतों से बहुत मज़ा लूटते हैं. और नई लड़की के दुकान पर आने की खबर उन्हे लग चुकी थी और इसी चक्कर मे वह ठीक दोपहर के समय दुकान पर आ धमकी थी.
सावित्री पंडिताइन को देखते ही चौकी पर से कूद कर चटाई पर पड़े अपने कपड़ों की ओर लपकी लेकिन पंडिताईएन उन कपड़ों पर ही पैर रख कर खड़ी थी और कपड़े ना मिल पाने के वजह से सावित्री ने एक हाथ से अपनी दोनो चुचियाँ और दूसरे हाथ से अपनी झांतों से भरी बुर को धक लिया और आँखें झुका कर खड़ी हो गयी. कमरे मे एकदम सन्नाटा था पंडित जी भी कुच्छ नही बोल रहे थे. पंडिताइन गुस्से के वजह से आँखें निकाल कर कभी सावित्री के नंगे शरीर को देखती तो कभी पंडित जी की ओर देखती और हाँफ भी रही थी. अगले पल पंडिताइन चिल्ला पड़ी "तू कभी नही सुधरेगा.....रे....कुत्ता...मेरी को पूरी जिंदगी बर्बाद कर दू हरामी कहीं का.......हे भगवान मेरी तकदीर मे यही सब देखने को लिखा है....इस कुत्ते से कब नीज़ात मिलेगा भगवान..." इतना कह कर पंडिताइन रो पड़ी और और अपने दोनो हाथों से अपने चेहरे को ढक ली. कमरे मे पंडित जी और सावित्री दोनो एक दम शांत अपनी अपनी जगह पर खड़े थे.