hotaks444
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काफी दिन बीत चुके थे हमे युद्ध की तैयारियां करते हुए अभी तक कपाला की तरफ से कोई और आक्रमण नहीं हुआ था। मेरे अलावा सभी को लगता था कि कपाला अब आक्रमण नहीं करेगा। पर न जाने क्यों मेरी छठी इंद्री मुझे हमेशा कहती थी की आक्रमण होगा और जरूर होगा बस शत्रु हमारे ढीला पड़ने की फ़िराक़ में है। खैर विशाला के अनुसार क़ाबिले के बहार छुपे हुए गड्ढो का निर्माण हो गया था जिसे क़बीले के भीतर गुप्त स्थान तक सुरंग से जोड़ दिया गया था जिसका पता सिर्फ मुझे और विशाला को ही था। साथ ही क़बीले के चारों ओर दिवार से लगे गड्ढे खोद के उनमें नुकीले भाले जैसी लकड़ियों से भर दिया गया था और उन्हें घांस फूंस से भी ढक दिया गया था। गुलेल का भी निर्माण पूर्ण हो गया था । मैंने कुछ काबिल सिपाहियों को गुलेल के इस्तेमाल का तरीका भी सीख दिया था। अब बस हमें इंतज़ार था कपाला के हमले का।
आखिरकार वो दिन भी आ गया। एक सुबह मेरी आँख क़बीले में जाफी शोर शराबे से खुली मैंने उठके देखा तो त्रिशाला कुटिया में कहीं नहीं दिखायी दी । मैं चमड़े का वस्त्र कमर पे लपेट बाहर निकला तो देखा की विशाला मेरी तरफ दौड़ती हुयी आ रही थी मेरे पास पहुँच के उसने बताया " महाराज अभी अभी गुप्तचर ने सुचना दी है कि कपाला हमारे क़बीले पे आक्रमण के लिए आ रहा है।
मैंने पूछा " अभी उसकी सेना कहाँ पहुची है और कितने सैनिक होंगे उसकी सेना में? "
विशाला " महाराज उसकी सेना हमारे क़ाबिले से 200 गज की दुरी पे है और उसमें हमसे लगभग दुगने 500 सैनिक होंगे "
मैंने विशाला से कहा कि " उन्हें गुलेल की सीमा में आने दो ।फिर 150 सैनिको की तीन टुकड़ियां बनायो और गुप्त रास्ते से निकलके उनके पीछे पहुँचो फिर उनपर अगल बगल और पीछे से एकसाथ हमला करो जिससे उनकी सेना एक छोटे से केंद्र में सीमित हो जाए और हमे उनपे गुलेल से निशाना लगाने में आसानी हो। जब वो हमारी गुलेल की सीमा में आ जायेंगे तो तुम लोग पीछे हट जाना।बाकी सैनिको में से कुछ को क़बीले के दरवाजों पे लगा दो जिससे कोई अंदर बाहर न जा सके। 50 सैनिको मेरे साथ छोड़ दो जिनके साथ मैं हमला करूँगा। "
विशाला ने मेरी बात समझने के बाद कहा" ठीक है महाराज मुझे आज्ञा दीजिये ।"
मैंने विशाला से कहा " विजयी भवः "
हमारी योजनानुसार विशाला ने अपने सैनिकों की तीनों टुकड़ियों के साथ कपाला की सेना पर हमला कर दिया । तलवार और भालों से लैस विशाला के सैनिको ने शत्रु ऐना में हड़कंप मचा दिया । किनारे और पीछे से हुए हमले के कारण बचने के लिए वो केंद्र में इकठ्ठा होने लगे चूँकि उनके सामने कोई और रास्ते नहीं था इसलिए वो इसी तरह क़बीले की तरफ बढ़ने लगे।
जब वो मेरी गुलेलो की सीमा में पहुचे तो मैंने विशाला को मशाल से पीछे हटने का इशारा किया। जब हमारे सैनिक पीछे हुये तो मैंने गुलेलों पे बंधे बड़े बड़े पत्थरो को कपाला की सेना पर फेंकने का आदेश दिया। बड़े बड़े पत्थर जब उड़कर पूरे वेग के साथ शत्रु सेना पे गिरे तो एक साथ सैंकड़ो सैनिक कुचलते चले गए। धीरे धीरे शत्रु सेना में सैनिक घटने लगे और उनमे भगदड़ मच गयी ।
जो सैनिक पीछे की तरफ भागे उनका काम विशाला और उसकी टुकड़ी ने ख़त्म कर दिया । कपाला ने बाकी बचे सैनिको के साथ आगे बढ़के क़बीले की दीवार पे चढ़ने को कहा। दीवार पे मैंने पहले ही कुछ तीरंदाजों को लगा रखा था । मैंने तीरंदाजों को इशारा किया तो उन्होंने आगे बढ़ते सैनिको पर बाणों की बारिश कर दी। कई सैनिक मारे गए। कपाला की एक आँख भी बाणों की भेंट चढ़ गयी। फिर भी वो बचे खुचे सैनिकों को लेके आगे बढ़ा। कुछ सैनिक जैसे ही जैसे ही दीवार के समीप आये वो घांस से ढके हुए गड्ढों में गिरे जहाँ वो नुकीली लकड़ियों से बींध गए। मैंने देखा की अब शत्रु सेना कुछ 50 60 सैनिको की बची है और वो भी डरे सहमे हुए हैं। तो मैं भी अपने सैनिकों के साथ उनपे टूट पड़ा।
कुछ ही देर में बाकी बचे सैनिक भी या तो काल की गोद में समा गए या भाग गए। कपाला भी चकमा देकर निकल भगा।
हम युद्ध जीत गए थे क़बीले में ख़ुशी का माहौल था। मैं और विशाला भी ख़ुशी में एक दूसरे के गले मिले और विजय की एक दूसरे को बधाई दी।
तभी चरक महाराज हमारे पास आये और बोले " महाराज रानी विशाखा और रानी त्रिशाला कहीं दिखाई नहीं दे रही हैं।"
मैंने कहा " क्या कह रहे हैं चरक महाराज ?"
चरक ने कहा " हाँ महाराज जब युद्ध शुरू हुआ तो मैं दोनों रानियों को सुरक्षित स्थान पे ले जाने के लिए खोजने लगा पर वो कहीं मिली नहीं।"
फिर हम सब ने मिलके क़बीले में रानियों की खोज की पर वो कहीं नहीं मिली। मैंने सैनिको को आसपास के क़बीलों में भी भेजा पर उनका कोई अता पता ही नहीं था।
दो दिन तक की खोजबीन के बाद भी दोनों रानियों का कोई पता नहीं चल पाया था। किसी अनहोनी की आशंका से मेरा गला बैठा जा रहा था। मैं अपनी कुटिया में बैठा यही सब सोच विचार कर रहा था कि तभी विशाला ने आके बताया कि गुप्तचर कुछ खबर लेके आया है। मैंने विशाला से उसे अंदर लाने को कहा।
अन्दर आने पे मैंने उससे पूछा " बताओ कोई खबरमिली रानी विशाखा और रानी त्रिशाला की ?"
उसने कहा " जी महाराज मुझे खबर मिली है कि रानी विशाखा और रानी त्रिशाला कपाला के कब्जे में हैं ।"
मुझे पहले विश्वास नहीं हुआ मैने कहा " ये कैसे हो सकता है युद्ध के दौरान तो क़बीले के बाहर जाने के सारे रास्ते बंद थे । न कोई अंदर आ सकता था न किसी को बाहर ले जा सकता था। फिर ये कैसे हो सकता है ?"
विशाला ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया " महाराज हो सकता है उन दोनों का अपहरण युद्ध के पहले ही हो गया हो।"
मैंने उसकी बात पे गहराई से सोचते हुए बोला " ये हो सकता है पर इसके लिए भी किसी अंदर के आदमी का इसमें कोई न कोई हाथ जरूर है।"
विशाला " महाराज ऐसा कौन कर सकता है?"
मैंने विशाला से कहा " मुझे ये नहीं पता और अभी हमारी पहली प्राथमिकता दोनों रानियों को कपाला की कैद से छुड़ाने की होनी चाहिए । "
विशाला " महाराज दोनों रानियों को छुड़ाना आसान नहीं होगा क्योंकि कपाला का कबीला चारो तरफ से पहाड़ों से घिरा है और उसपर हमला करने के लिए हमारे पास पर्याप्त सैनिक भी नहीं है।"
मैंने विशाला से पूछा " फिर सेनापति हमे क्या करना चाहिए ?"
विशाला " महाराज हमे कूटनीतिक तौर पे कोई समाधान निकालने की सोचनी चाहिए।"
मैंने विशाला से कहा " सेनापति विशाला कोई भी कूटनीति तभी सफल होती है जब बराबरी पे बात हो अभी उसके पास हमारी रानियां हैं वो हमारी कोई बात क्यों मानेगा।"
विशाला " तो फिर महाराज हमे क्या करना चाहिए ?"
मैंने कहा " सेनापति हमे बराबरी पे आना होगा ।"
विशाला " महाराज आप करना क्या चाहते हैं ?"
मैंने विशाला से कहा " विशाला आप अपने सबसे विश्वस्त सैनिको की एक टुकड़ी तैयार करिये । कल सुबह हम कपाला के क़बीले की तरफ कूच करेंगे। बस क़बीले में किसी को पता न चले हम कहाँ जा रहे हैं। सबको ये बताना की हम आसपास के कबीलों में दोनो रानियों की खोज करने जा रहे हैं।"
विशाला " जो आज्ञा महाराज "
विशाला और गुप्तचर कुटिया से बाहर चले जाते हैं। मैं भी अपनी आगे की रणनीति पे विचार करने लगता हूँ।
हमें आज कपाला के क़बीले की निगरानी करते हुए दो दिन हो गए थे। सेनापति विशाला और करीब 15 सैनिक मेरे साथ मौजूद थे। पिछले दो दिन में हमने कपाला के क़बीले के अंदर की सारी गतिविधियों हमने छुप के देखा पर दोनों रानियों का कोई पता नहीं चला। पता नहीं कपाला ने दोनों को कहाँ छुपा रखा था।
मैंने विशाला को इशारे से अपने पास बुलाया और उसे अपनी आगे की रणनीति के बारे में समझाने लगा " सेनापति विशाला हमें दो दिन ही गये हैं यहाँ पे निगरानी करते हुए पर कपाला ने दोनों रानियों को कहाँ छुपाया है ये पता नहीं चल पाया है। अब हमें अपनी दूसरी रणनीति अपनानी होगी अब हमें कपाला को उसके बिल से बाहर निकलना होगा । "
विशाला " महाराज आप क्या करना चाहते हैं ?"
मैंने कहा " चूँकि कपाला का कबीला चारो तरफ से ऊँची पहाड़ियों से घिरा हुआ है हमें इसका फायदा उठाना चाहिए। 5 आदमियों को भेज के बड़ी बड़ी चट्टानें इकठ्ठा करो और उनको ढलान पे लाके लुढ़का दो। जब क़बीले में अफरा तफरी होनी लगे तो उनके अनाज के गोदाम में 5 आदमियों को भेज के आग लगा दो। और बाकी 5 को भेज के इनका पीने के पानी को दूषित करवा दो। ये सब करने के बाद हम वापस अपने क़बीले लौट जाएंगे। "
आखिरकार वो दिन भी आ गया। एक सुबह मेरी आँख क़बीले में जाफी शोर शराबे से खुली मैंने उठके देखा तो त्रिशाला कुटिया में कहीं नहीं दिखायी दी । मैं चमड़े का वस्त्र कमर पे लपेट बाहर निकला तो देखा की विशाला मेरी तरफ दौड़ती हुयी आ रही थी मेरे पास पहुँच के उसने बताया " महाराज अभी अभी गुप्तचर ने सुचना दी है कि कपाला हमारे क़बीले पे आक्रमण के लिए आ रहा है।
मैंने पूछा " अभी उसकी सेना कहाँ पहुची है और कितने सैनिक होंगे उसकी सेना में? "
विशाला " महाराज उसकी सेना हमारे क़ाबिले से 200 गज की दुरी पे है और उसमें हमसे लगभग दुगने 500 सैनिक होंगे "
मैंने विशाला से कहा कि " उन्हें गुलेल की सीमा में आने दो ।फिर 150 सैनिको की तीन टुकड़ियां बनायो और गुप्त रास्ते से निकलके उनके पीछे पहुँचो फिर उनपर अगल बगल और पीछे से एकसाथ हमला करो जिससे उनकी सेना एक छोटे से केंद्र में सीमित हो जाए और हमे उनपे गुलेल से निशाना लगाने में आसानी हो। जब वो हमारी गुलेल की सीमा में आ जायेंगे तो तुम लोग पीछे हट जाना।बाकी सैनिको में से कुछ को क़बीले के दरवाजों पे लगा दो जिससे कोई अंदर बाहर न जा सके। 50 सैनिको मेरे साथ छोड़ दो जिनके साथ मैं हमला करूँगा। "
विशाला ने मेरी बात समझने के बाद कहा" ठीक है महाराज मुझे आज्ञा दीजिये ।"
मैंने विशाला से कहा " विजयी भवः "
हमारी योजनानुसार विशाला ने अपने सैनिकों की तीनों टुकड़ियों के साथ कपाला की सेना पर हमला कर दिया । तलवार और भालों से लैस विशाला के सैनिको ने शत्रु ऐना में हड़कंप मचा दिया । किनारे और पीछे से हुए हमले के कारण बचने के लिए वो केंद्र में इकठ्ठा होने लगे चूँकि उनके सामने कोई और रास्ते नहीं था इसलिए वो इसी तरह क़बीले की तरफ बढ़ने लगे।
जब वो मेरी गुलेलो की सीमा में पहुचे तो मैंने विशाला को मशाल से पीछे हटने का इशारा किया। जब हमारे सैनिक पीछे हुये तो मैंने गुलेलों पे बंधे बड़े बड़े पत्थरो को कपाला की सेना पर फेंकने का आदेश दिया। बड़े बड़े पत्थर जब उड़कर पूरे वेग के साथ शत्रु सेना पे गिरे तो एक साथ सैंकड़ो सैनिक कुचलते चले गए। धीरे धीरे शत्रु सेना में सैनिक घटने लगे और उनमे भगदड़ मच गयी ।
जो सैनिक पीछे की तरफ भागे उनका काम विशाला और उसकी टुकड़ी ने ख़त्म कर दिया । कपाला ने बाकी बचे सैनिको के साथ आगे बढ़के क़बीले की दीवार पे चढ़ने को कहा। दीवार पे मैंने पहले ही कुछ तीरंदाजों को लगा रखा था । मैंने तीरंदाजों को इशारा किया तो उन्होंने आगे बढ़ते सैनिको पर बाणों की बारिश कर दी। कई सैनिक मारे गए। कपाला की एक आँख भी बाणों की भेंट चढ़ गयी। फिर भी वो बचे खुचे सैनिकों को लेके आगे बढ़ा। कुछ सैनिक जैसे ही जैसे ही दीवार के समीप आये वो घांस से ढके हुए गड्ढों में गिरे जहाँ वो नुकीली लकड़ियों से बींध गए। मैंने देखा की अब शत्रु सेना कुछ 50 60 सैनिको की बची है और वो भी डरे सहमे हुए हैं। तो मैं भी अपने सैनिकों के साथ उनपे टूट पड़ा।
कुछ ही देर में बाकी बचे सैनिक भी या तो काल की गोद में समा गए या भाग गए। कपाला भी चकमा देकर निकल भगा।
हम युद्ध जीत गए थे क़बीले में ख़ुशी का माहौल था। मैं और विशाला भी ख़ुशी में एक दूसरे के गले मिले और विजय की एक दूसरे को बधाई दी।
तभी चरक महाराज हमारे पास आये और बोले " महाराज रानी विशाखा और रानी त्रिशाला कहीं दिखाई नहीं दे रही हैं।"
मैंने कहा " क्या कह रहे हैं चरक महाराज ?"
चरक ने कहा " हाँ महाराज जब युद्ध शुरू हुआ तो मैं दोनों रानियों को सुरक्षित स्थान पे ले जाने के लिए खोजने लगा पर वो कहीं मिली नहीं।"
फिर हम सब ने मिलके क़बीले में रानियों की खोज की पर वो कहीं नहीं मिली। मैंने सैनिको को आसपास के क़बीलों में भी भेजा पर उनका कोई अता पता ही नहीं था।
दो दिन तक की खोजबीन के बाद भी दोनों रानियों का कोई पता नहीं चल पाया था। किसी अनहोनी की आशंका से मेरा गला बैठा जा रहा था। मैं अपनी कुटिया में बैठा यही सब सोच विचार कर रहा था कि तभी विशाला ने आके बताया कि गुप्तचर कुछ खबर लेके आया है। मैंने विशाला से उसे अंदर लाने को कहा।
अन्दर आने पे मैंने उससे पूछा " बताओ कोई खबरमिली रानी विशाखा और रानी त्रिशाला की ?"
उसने कहा " जी महाराज मुझे खबर मिली है कि रानी विशाखा और रानी त्रिशाला कपाला के कब्जे में हैं ।"
मुझे पहले विश्वास नहीं हुआ मैने कहा " ये कैसे हो सकता है युद्ध के दौरान तो क़बीले के बाहर जाने के सारे रास्ते बंद थे । न कोई अंदर आ सकता था न किसी को बाहर ले जा सकता था। फिर ये कैसे हो सकता है ?"
विशाला ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया " महाराज हो सकता है उन दोनों का अपहरण युद्ध के पहले ही हो गया हो।"
मैंने उसकी बात पे गहराई से सोचते हुए बोला " ये हो सकता है पर इसके लिए भी किसी अंदर के आदमी का इसमें कोई न कोई हाथ जरूर है।"
विशाला " महाराज ऐसा कौन कर सकता है?"
मैंने विशाला से कहा " मुझे ये नहीं पता और अभी हमारी पहली प्राथमिकता दोनों रानियों को कपाला की कैद से छुड़ाने की होनी चाहिए । "
विशाला " महाराज दोनों रानियों को छुड़ाना आसान नहीं होगा क्योंकि कपाला का कबीला चारो तरफ से पहाड़ों से घिरा है और उसपर हमला करने के लिए हमारे पास पर्याप्त सैनिक भी नहीं है।"
मैंने विशाला से पूछा " फिर सेनापति हमे क्या करना चाहिए ?"
विशाला " महाराज हमे कूटनीतिक तौर पे कोई समाधान निकालने की सोचनी चाहिए।"
मैंने विशाला से कहा " सेनापति विशाला कोई भी कूटनीति तभी सफल होती है जब बराबरी पे बात हो अभी उसके पास हमारी रानियां हैं वो हमारी कोई बात क्यों मानेगा।"
विशाला " तो फिर महाराज हमे क्या करना चाहिए ?"
मैंने कहा " सेनापति हमे बराबरी पे आना होगा ।"
विशाला " महाराज आप करना क्या चाहते हैं ?"
मैंने विशाला से कहा " विशाला आप अपने सबसे विश्वस्त सैनिको की एक टुकड़ी तैयार करिये । कल सुबह हम कपाला के क़बीले की तरफ कूच करेंगे। बस क़बीले में किसी को पता न चले हम कहाँ जा रहे हैं। सबको ये बताना की हम आसपास के कबीलों में दोनो रानियों की खोज करने जा रहे हैं।"
विशाला " जो आज्ञा महाराज "
विशाला और गुप्तचर कुटिया से बाहर चले जाते हैं। मैं भी अपनी आगे की रणनीति पे विचार करने लगता हूँ।
हमें आज कपाला के क़बीले की निगरानी करते हुए दो दिन हो गए थे। सेनापति विशाला और करीब 15 सैनिक मेरे साथ मौजूद थे। पिछले दो दिन में हमने कपाला के क़बीले के अंदर की सारी गतिविधियों हमने छुप के देखा पर दोनों रानियों का कोई पता नहीं चला। पता नहीं कपाला ने दोनों को कहाँ छुपा रखा था।
मैंने विशाला को इशारे से अपने पास बुलाया और उसे अपनी आगे की रणनीति के बारे में समझाने लगा " सेनापति विशाला हमें दो दिन ही गये हैं यहाँ पे निगरानी करते हुए पर कपाला ने दोनों रानियों को कहाँ छुपाया है ये पता नहीं चल पाया है। अब हमें अपनी दूसरी रणनीति अपनानी होगी अब हमें कपाला को उसके बिल से बाहर निकलना होगा । "
विशाला " महाराज आप क्या करना चाहते हैं ?"
मैंने कहा " चूँकि कपाला का कबीला चारो तरफ से ऊँची पहाड़ियों से घिरा हुआ है हमें इसका फायदा उठाना चाहिए। 5 आदमियों को भेज के बड़ी बड़ी चट्टानें इकठ्ठा करो और उनको ढलान पे लाके लुढ़का दो। जब क़बीले में अफरा तफरी होनी लगे तो उनके अनाज के गोदाम में 5 आदमियों को भेज के आग लगा दो। और बाकी 5 को भेज के इनका पीने के पानी को दूषित करवा दो। ये सब करने के बाद हम वापस अपने क़बीले लौट जाएंगे। "