hotaks444
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मैंने वसुन्धरा के कान से अपनी जीभ छुवाई और कान के साथ साथ अपने होंठ और जीभ नीचे की ओर खिसकाता चला गया. ऊपरी गर्दन की त्वचा से धीरे-धीरे अपनी जीभ नीचे … और नीचे उतारता चला गया. जैसे ही मैं वसुन्धरा के बाएं कंधे की ढलान तक पहुंचा, मैंने वसुन्धरा के बाएं हाथ की उंगलियां अपने दाएं हाथ की उँगलियों में कस ली और अपने बाएं हाथ से वसुन्धरा को अपने आग़ोश में ज़ोर से कसा और अपने दोनों होंठ वसुन्धरा की ऊपरी पीठ पर जहां सिर के बाल ख़त्म होतें हैं, वहां जमा कर धीरे-धीरे अपने दोनों होंठों के बीच आयी वसुन्धरा की त्वचा को चुमलाने लगा.
वसुन्धरा बेचैन होकर फ़ौरन जोर-ज़ोर से कसमसाने लगी लेकिन मेरी पुख़्ता पकड़ से छूट पाना संभव नहीं था. हार कर वसुन्धरा ने ख़ुद को मेरे रहमो-करम पर छोड़ दिया और लम्बी-लम्बी सीत्कारें लेने लगी- आह … ह … ह! हाय … ऐ … ऐ …! सी … इ..इ..ई … ई … ई!” वसुन्धरा के दांतों से दांत बेसाख़्ता टकरा रहे थे.
इधर मेरा बायां हाथ ब्लाऊज़ के ऊपर से ही वसुन्धरा की पीठ पर ऊपर से नीचे गर्दिश कर रहा था. दोनों कन्धों के बीच … ज़रा नीचे, ब्रा के स्ट्रैप में मेरी उंगलियां उलझ-उलझ जाती थी लेकिन फिर नीचे नितम्बों की ओर गतिमान हो जातीं थी.
वसुन्धरा की नंगी कमर सहलाते-सहलाते साड़ी के नीचे बंधे पेटीकोट के नाड़े के रूप में उँगलियों के अविरल प्रवाह में एक छोटा सा अवरोध आ तो जाता था लेकिन मेरी उंगलियां चंचल मृग के जैसे उस अवरोध को फलांग कर साड़ी के ऊपर से ही नितम्बों की घाटी में उतर ही जाती थी और नितम्बों की दोनों गोलाइयों की दरार के साथ-साथ नितम्बों की गहराई की अंतिम सीमा छूकर पैंटी-लाइन के साथ-साथ, कभी दायें नितम्ब की अर्ध-गोलाई जांचते-जांचते, कभी बायें नितम्ब की अर्ध-गोलाई जांचते-जांचते वापिस ऊपर का सफ़र शुरू कर देतीं थी.
वसुन्धरा का दायां हाथ उत्तेजना-वश मेरी पीठ पर रह-रह कर कस-कस जाता था और उसके मुंह से सीत्कारों का प्रवाह सतत जारी था. मैंने अपना बायां हाथ वसुन्धरा के सर के नीचे लगाया और झुक कर अपना दायां हाथ वसुन्धरा के दोनों घुटनों के पीछे से घुमा कर उसको अपनी गोद में उठा लिया.
वसुन्धरा ने तत्काल अपना दायां हाथ मेरी गर्दन के गिर्द लपेट लिया और अपने बाएं हाथ की उँगलियों को दाएं हाथ की उँगलियों में लॉक कर लिया.
मैंने अपने सर को ज़रा सा झुकाया और अपने बाएं बाज़ू को हल्की सी ऊपर को जुम्बिश दे कर वसुन्धरा के होठों को अपने और करीब कर लिया और अपने जलते-तपते होंठ वसुन्धरा के गुलाब की बंद कलियों जैसे नम और रसभरे होंठों पर रख दिए.
वसुन्धरा इस दोहरे हमले को झेल नहीं पायी. उसकी आँखें बंद हो गयी और होंठ ज़रा से खुल गए. तत्काल मेरी जीभ वसुन्धरा के दांत गिनने लगी. जबाब में वसुन्धरा की बाज़ुओ की पकड़ मेरी गर्दन पर और अधिक संकीर्ण हो गयी.
मैं ऐसे ही वसुन्धरा को उठाये-उठाये बैडरूम में ले आया और बैडरूम में बैड के करीब कालीन पर आहिस्ता से उसे अपने पैरों पर खड़े कर दिया.
अभी तक इस सारी प्रतिक्रिया के दौरान वसुन्धरा ने अपनी दोनों आँखें बंद कर रखी थी.
“वसुन्धरा!”
“हूँ…!”
“आँखें खोलो”
“उँहूँ…!”
“अरे खोलो तो…!”
“डर लगता है.”
“डर …? किस बात का?”
“सपना टूट जाएगा.”
“ये सपना नहीं है. आंखें खोलो और देखो! तुम्हारा सपना सच हुआ जा रहा है.”
वसुन्धरा ने आँखें तो नहीं खोली पर अपना बायां हाथ मेरे हाथ से छुड़ा कर वो अपने दोनों हाथों की उँगलियों से मेरा चेहरा टटोलने लगी. जैसे ही उसकी नाज़ुक और पतली दो उँगलियाँ मेरे होंठों पर आयीं, मैंने तत्काल दोनों उँगलियाँ अपने मुंह में डाल लीं और अपनी जीभ से चुमलाने, चूसने लगा.
“सी..ई … ई..ई … ई … ई … ई … ई!!!!” वसुन्धरा के मुंह से एक तीखी सिसकारी निकल गयी और अपनी उंगलियां मेरे मुंह से निकालने की कोशिश करने लगी.
“रा..!..! …!..ज़! आह … ह … ह!! सी … ई … ई … ई! … बस बस..उफ़..फ़..फ़! प्लीज़ … मर जाऊंगी..सी..सी..सी आह … ह … ह … ह!”
“आह … ह … ह …!!”
मैंने कुछ देर बाद उसकी उँगलियों को अपने मुंह से खुद ही जाने दिया और वसुन्धरा की आँखों में झाँका! प्यार, डर, समर्पण,शर्म, ख़ुशी … जाने कितने ही भाव थे उन आँखों में. मैंने कोमलता से वसुन्धरा को बेड पर ले जा कर बिठा दिया और खुद नीचे क़ालीन पर घुटनों के बल बैठ गया.
“अरे.. अरे! क्या कर रहे हैं आप? नीचे क्यों? ऊपर बैठिये.” वसुन्धरा चौंकी.
“श..श..श..श..श! ” मैंने वसुन्धरा के होंठों पर उंगली रखते हुए इशारा किया. वसुन्धरा कुछ समझी या नहीं समझी … पता नहीं लेकिन उसने इस बात का विरोध बंद कर दिया.
तभी जोर से बिजली कड़की. एक क्षण को तो पूरा आलम एक अत्यंत चमकदार रोशनी में नहा गया लेकिन इस के साथ ही लाइट चली गयी घड़ … घड़..घड़..घड़..धड़ाम … धड़ाम!!!! इतनी ज़ोर की आवाज़ आयी कि जैसे बिजली सामने सड़क पर ही गिरी हो. साथ ही बाहर जोरों की बारिश शुरू हो गयी.
मैंने ड्रेसिंग-टेबल पर पड़ा शमादान जलाया.
कहानी जारी रहेगी.
वसुन्धरा बेचैन होकर फ़ौरन जोर-ज़ोर से कसमसाने लगी लेकिन मेरी पुख़्ता पकड़ से छूट पाना संभव नहीं था. हार कर वसुन्धरा ने ख़ुद को मेरे रहमो-करम पर छोड़ दिया और लम्बी-लम्बी सीत्कारें लेने लगी- आह … ह … ह! हाय … ऐ … ऐ …! सी … इ..इ..ई … ई … ई!” वसुन्धरा के दांतों से दांत बेसाख़्ता टकरा रहे थे.
इधर मेरा बायां हाथ ब्लाऊज़ के ऊपर से ही वसुन्धरा की पीठ पर ऊपर से नीचे गर्दिश कर रहा था. दोनों कन्धों के बीच … ज़रा नीचे, ब्रा के स्ट्रैप में मेरी उंगलियां उलझ-उलझ जाती थी लेकिन फिर नीचे नितम्बों की ओर गतिमान हो जातीं थी.
वसुन्धरा की नंगी कमर सहलाते-सहलाते साड़ी के नीचे बंधे पेटीकोट के नाड़े के रूप में उँगलियों के अविरल प्रवाह में एक छोटा सा अवरोध आ तो जाता था लेकिन मेरी उंगलियां चंचल मृग के जैसे उस अवरोध को फलांग कर साड़ी के ऊपर से ही नितम्बों की घाटी में उतर ही जाती थी और नितम्बों की दोनों गोलाइयों की दरार के साथ-साथ नितम्बों की गहराई की अंतिम सीमा छूकर पैंटी-लाइन के साथ-साथ, कभी दायें नितम्ब की अर्ध-गोलाई जांचते-जांचते, कभी बायें नितम्ब की अर्ध-गोलाई जांचते-जांचते वापिस ऊपर का सफ़र शुरू कर देतीं थी.
वसुन्धरा का दायां हाथ उत्तेजना-वश मेरी पीठ पर रह-रह कर कस-कस जाता था और उसके मुंह से सीत्कारों का प्रवाह सतत जारी था. मैंने अपना बायां हाथ वसुन्धरा के सर के नीचे लगाया और झुक कर अपना दायां हाथ वसुन्धरा के दोनों घुटनों के पीछे से घुमा कर उसको अपनी गोद में उठा लिया.
वसुन्धरा ने तत्काल अपना दायां हाथ मेरी गर्दन के गिर्द लपेट लिया और अपने बाएं हाथ की उँगलियों को दाएं हाथ की उँगलियों में लॉक कर लिया.
मैंने अपने सर को ज़रा सा झुकाया और अपने बाएं बाज़ू को हल्की सी ऊपर को जुम्बिश दे कर वसुन्धरा के होठों को अपने और करीब कर लिया और अपने जलते-तपते होंठ वसुन्धरा के गुलाब की बंद कलियों जैसे नम और रसभरे होंठों पर रख दिए.
वसुन्धरा इस दोहरे हमले को झेल नहीं पायी. उसकी आँखें बंद हो गयी और होंठ ज़रा से खुल गए. तत्काल मेरी जीभ वसुन्धरा के दांत गिनने लगी. जबाब में वसुन्धरा की बाज़ुओ की पकड़ मेरी गर्दन पर और अधिक संकीर्ण हो गयी.
मैं ऐसे ही वसुन्धरा को उठाये-उठाये बैडरूम में ले आया और बैडरूम में बैड के करीब कालीन पर आहिस्ता से उसे अपने पैरों पर खड़े कर दिया.
अभी तक इस सारी प्रतिक्रिया के दौरान वसुन्धरा ने अपनी दोनों आँखें बंद कर रखी थी.
“वसुन्धरा!”
“हूँ…!”
“आँखें खोलो”
“उँहूँ…!”
“अरे खोलो तो…!”
“डर लगता है.”
“डर …? किस बात का?”
“सपना टूट जाएगा.”
“ये सपना नहीं है. आंखें खोलो और देखो! तुम्हारा सपना सच हुआ जा रहा है.”
वसुन्धरा ने आँखें तो नहीं खोली पर अपना बायां हाथ मेरे हाथ से छुड़ा कर वो अपने दोनों हाथों की उँगलियों से मेरा चेहरा टटोलने लगी. जैसे ही उसकी नाज़ुक और पतली दो उँगलियाँ मेरे होंठों पर आयीं, मैंने तत्काल दोनों उँगलियाँ अपने मुंह में डाल लीं और अपनी जीभ से चुमलाने, चूसने लगा.
“सी..ई … ई..ई … ई … ई … ई … ई!!!!” वसुन्धरा के मुंह से एक तीखी सिसकारी निकल गयी और अपनी उंगलियां मेरे मुंह से निकालने की कोशिश करने लगी.
“रा..!..! …!..ज़! आह … ह … ह!! सी … ई … ई … ई! … बस बस..उफ़..फ़..फ़! प्लीज़ … मर जाऊंगी..सी..सी..सी आह … ह … ह … ह!”
“आह … ह … ह …!!”
मैंने कुछ देर बाद उसकी उँगलियों को अपने मुंह से खुद ही जाने दिया और वसुन्धरा की आँखों में झाँका! प्यार, डर, समर्पण,शर्म, ख़ुशी … जाने कितने ही भाव थे उन आँखों में. मैंने कोमलता से वसुन्धरा को बेड पर ले जा कर बिठा दिया और खुद नीचे क़ालीन पर घुटनों के बल बैठ गया.
“अरे.. अरे! क्या कर रहे हैं आप? नीचे क्यों? ऊपर बैठिये.” वसुन्धरा चौंकी.
“श..श..श..श..श! ” मैंने वसुन्धरा के होंठों पर उंगली रखते हुए इशारा किया. वसुन्धरा कुछ समझी या नहीं समझी … पता नहीं लेकिन उसने इस बात का विरोध बंद कर दिया.
तभी जोर से बिजली कड़की. एक क्षण को तो पूरा आलम एक अत्यंत चमकदार रोशनी में नहा गया लेकिन इस के साथ ही लाइट चली गयी घड़ … घड़..घड़..घड़..धड़ाम … धड़ाम!!!! इतनी ज़ोर की आवाज़ आयी कि जैसे बिजली सामने सड़क पर ही गिरी हो. साथ ही बाहर जोरों की बारिश शुरू हो गयी.
मैंने ड्रेसिंग-टेबल पर पड़ा शमादान जलाया.
कहानी जारी रहेगी.