hotaks444
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(Jaari)
इमरान खाने पीने के सामानों से लदा फदा जंगल मे प्रवेश किया. अगता ने उसे खाने पीने का इतना सामान दे दिया था जो कि कयि दिनों के लिए काफ़ी था. वो मिकेल के बारे मे सोच रहा था.....साथ ही वो दूसरे लोग भी उसके दिमाग़ मे थे जो अगता के कहने के अनुसार किसी
ना किसी बहाने जंगल मे मारे मारे फिरते थे. पादरी स्मिथ किस तरह का रोल प्ले कर रहा था. पोलीस उस के पिछे थी लेकिन?
परंतु आख़िर वो लोग वहाँ किस मकसद के लिए लाए गये थे....? क्या केवल इस लिए कि बोघा दूसरों के द्वारा अपने नकली नोट को ट्राइ करे. ये काम तो किसी लोकल आदमी से भी लिया जा सकता था. इस के लिए इतना झंझट करने की क्या ज़रूरत थी? नहीं...........मकसद केवल नोटों को आज़माना नहीं हो सकता था. तो फिर क्या बोघा केवल यही चाहता था की............
वो इस से आगे नहीं सोच सका......क्योंकि गुफा निकट आ चुका था. लेकिन जैसे ही उसने गुफा के दरवाज़े मे कदम रखा.........दो-तीन आदमी उस पर टूट पड़े.
“अर्रे........अर्रे.....” इमरान उछल कर पिछे हट’ता हुआ बोला. सारा समान उसके हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर गया.
हमलावर तीन थे. उन मे से एक के हाथ मे रिवॉल्वार था. उस ने इमरान को कवर कर लिया. संभालने का मौका नहीं मिल सका.
"हाइल कि मारे गये." रेव वाले ने एंगलिश मे कहा.
इमरान अपने साथियो के बारे मे सोचने लगा. पता नहीं उन पर क्या बीती हो. उस ने एक बार फिर उन तीनों को ध्यान से देखा. ये
लोग अच्छी हालत मे थे. अर्थात उनके हुलिए मे इस प्रकार का बेढँगपन दिखाई नहीं दिया था की उन्हें भी मिकेल जैसे लोगों मे समझा जाता.
"इसके हाथ पीठ पर बाँध दो." रेव वाले ने अपने साथियों से कहा.
इमरान के चेहरे पर मूर्खों जैसे भाव थे. आँखो से ना डर झाँक रहा था और ना हैरत. वो दोनो उसकी तरफ बढ़े. लेकिन उन से थोड़ा अनाड़ीपन हो गया. अगर वो सामने से आने के बजाए दाए बाएँ से आए होते तो इमरान किसी चूहे की तरह उनका हर अत्याचार सह लेता. शायद उस के हाथ भी पीठ पर बाँध दिए गये होते. लेकिन जैसे ही वो इमरान और रिवॉल्वार वाले के बीच मे आए......इमरान ने डुबकी लगाई और दोनों ही को समेट कर रिवॉल्वार वाले पर झोंक मारा.....और खुद भी साथ ही छलान्ग लगाई. उसका हाथ इतना ही जचा तुला पड़ा
था की पहली ही कोशिश मे उस ने रिवॉल्वार छीन लिया........और उनके उठने से पहले ही दूर हट कर खड़ा हो गया.
"हाथ उपर उठाओ दोस्तो." उस ने मुस्कुरा कर कहा. "ये एक फ्रेंड्ली सजेशन है. .......क्या तुम मेरे साथियों का पता बताओगे?"
"उन के हाथ उपर उठ गये लेकिन गुस्से के कारण उनके चेहरे बिगड़ रहे थे.
"वो जहन्नुम(नर्क) मे हैं." एक गुर्राया....."और तुम भी जल्दी ही वहाँ पहुँच जाओगे."
"मैं जल्दिबाज़ी को अच्छा नहीं मानता." इमरान ने एक आँख दबा कर कहा. "अच्छा ये ही होगा कि दिमाग़ ठंडा कर के मुझ से बातें करो."
"क्यों अपनी जान के दुश्मन बन रहे हो....रिवॉल्वार ज़मीन पर डाल दो और खुद को हमारे हवाले कर दो. हम तुम्हें जान से मारना नहीं चाहते.....अगर यही करना होता तो तुम अब तक ज़िंदा क्यों रहते?"
"मैं जानता हूँ कि तुम मेरी शादी करने के लिए यहाँ पकड़ लाए हो. मगर मैं अभी नाबालिग हूँ. समझे." इमरान ने गुसीले स्वर मे कहा. "तुम्हें शर्म आनी चाहिए इस ज़बरदस्ती पर. चलो बताओ.....कहाँ हैं मेरे साथी?"
"हम तुम्हें वहीं पहुँचा देना चाहते थे."
"आए.......तो इस तरह पहुँचाया जाता है? टॉप भी बाँध लाए होते साथ." इमरान ने चीर्चिड़ापन दिखाया.
अचानक पिछे से किसी ने उस पर हमला कर दिया......और रिवॉल्वार हाथ से निकल कर दूर जा गिरा. लेकिन साथ ही इमरान भी उसकी पकड़ से निकल गया. फिर एक आदमी रिवॉल्वार लेने के लिए झपटा था कि इमरान ने अपने रिवॉल्वार से उसके हाथ पर फाइयर कर दिया
. वो चीख मार कर दूर जा गिरा.
"ह्म....तो अब जिस मे हिम्मत है उठाए रिवॉल्वार...." इमरान उन्हें दुबारा कवर करते हुए बोला. उस पर हमला करने वाला बाली था.....जो उसे ख़ूँख़ार नज़रों से घूर रहा था.
"सुनो दोस्त....." इमरान ने उस से कहा. "मैं खुद को मजबूर समझने का आदि नहीं हूँ. बरसों तक इसी द्वीप मे जीवन गुज़ार सकता हूँ......चाहे मेरी जेब मे एक फूटी कौड़ी भी ना रहे. क्या तुम ये समझते थे कि मैं ही उन जाली नोटों को भुनाने दौड़ा जाउन्गा......या अपने ख़ास आदमियों मे से किसी को ऐसा करने दूँगा.
ज़ख़्मी आदमी अपना हाथ दबाए बैठा किसी ज़ख़्मी कुत्ते की तरह चीख रहा था.
"तुम फिर ग़लत समझे." बाली मुस्कुरआया. "यूँ ही अपने लिए मुसीबत ना पैदा करो...."
"मेरे साथी कहाँ हैं?"
"वो सुरक्षित हैं. क्या उन्हें यहाँ भूके मरने के लिए पड़ा रहने दिया जाता? तुम भी चलो. हलाकी इस समय तुम ने मेरे एक आदमी पर बहुत ज़ुल्म किया है. लेकिन बोघा यही चाहेगा की तुम्हें हर हाल मे माफ़ कर दिया जाए."
"रॉबेरटु को पोलीस ले गयी?"
"तुम्हें उसकी चिंता ना होनी चाहिए. क्या वो तुम्हारा कोई ख़ास आदमी था? अगर यही बात होती तो तुम उसे करेन्सी इस्तेमाल नहीं करने देते."
"समय बर्बाद मत करो." इमरान ने कहा. "अपने हाथ उठाए हुए दूसरी तरफ मूड जाओ. और उधर ही चलो जिधर मेरे आदमी हों..."
"तुम बेकार मे हालत को और भी बुरा बना रहे हो."
"ये मेरी बहुत पुरानी आदत है." इमरान मुस्कुराया. "चलो देर मत करो. वरना तुम केवल चार हो......और रिवॉल्वार मे पाँच गोलियाँ बाक़ी हैं. मेरा निशाना मुश्किल से ही मिस होता है."
"पछताओगे...."
"फिकर मत करो...."
"चलो अगर मारना ही चाहते हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं." बाली दूसरी तरफ मुड़ता हुआ बोला. उस ने अपने साथियों को भी अपने पिछे आने का इशारा किया.ज़ख़्मी भी कराहता हुआ उठा लेकिन उस की हालत खराब थी.
"मुझे ऐसी परदे बहुत अच्छी लगती है. शाबास चलते रहो." इमरान बोला...."लेकिन मूड कर देखने वालों की ज़िम्मेदारी मुझ पर ना होगी."
"तुम मेज़बान के साथ अच्छा सलूक नहीं कर रहे हो." बाली की आवाज़ मे ना गुस्सा था ना ही डर.
"जो लोग ज़बरदस्ती मेहमान बनाए गये हों उन से इस से काम की आशा मत रखो."
"बोघा को गुस्सा ना दिलाओ."
"क्या तुम बोघा हो?"
"बोघा के हर आदमी को तुम बोघा ही समझो."
"तब तुम मरने के लिए तैयार हो जाओ."
"मैं जानता हूँ तुम ऐसी मूर्खता नहीं करोगे." बाली चलता हुआ बोला. "तुम्हारे साथी हमारे पास हैं......वो एडियाँ रगड़ रगड़ कर मर जाएँगे."
***
(जारी)
इमरान खाने पीने के सामानों से लदा फदा जंगल मे प्रवेश किया. अगता ने उसे खाने पीने का इतना सामान दे दिया था जो कि कयि दिनों के लिए काफ़ी था. वो मिकेल के बारे मे सोच रहा था.....साथ ही वो दूसरे लोग भी उसके दिमाग़ मे थे जो अगता के कहने के अनुसार किसी
ना किसी बहाने जंगल मे मारे मारे फिरते थे. पादरी स्मिथ किस तरह का रोल प्ले कर रहा था. पोलीस उस के पिछे थी लेकिन?
परंतु आख़िर वो लोग वहाँ किस मकसद के लिए लाए गये थे....? क्या केवल इस लिए कि बोघा दूसरों के द्वारा अपने नकली नोट को ट्राइ करे. ये काम तो किसी लोकल आदमी से भी लिया जा सकता था. इस के लिए इतना झंझट करने की क्या ज़रूरत थी? नहीं...........मकसद केवल नोटों को आज़माना नहीं हो सकता था. तो फिर क्या बोघा केवल यही चाहता था की............
वो इस से आगे नहीं सोच सका......क्योंकि गुफा निकट आ चुका था. लेकिन जैसे ही उसने गुफा के दरवाज़े मे कदम रखा.........दो-तीन आदमी उस पर टूट पड़े.
“अर्रे........अर्रे.....” इमरान उछल कर पिछे हट’ता हुआ बोला. सारा समान उसके हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर गया.
हमलावर तीन थे. उन मे से एक के हाथ मे रिवॉल्वार था. उस ने इमरान को कवर कर लिया. संभालने का मौका नहीं मिल सका.
"हाइल कि मारे गये." रेव वाले ने एंगलिश मे कहा.
इमरान अपने साथियो के बारे मे सोचने लगा. पता नहीं उन पर क्या बीती हो. उस ने एक बार फिर उन तीनों को ध्यान से देखा. ये
लोग अच्छी हालत मे थे. अर्थात उनके हुलिए मे इस प्रकार का बेढँगपन दिखाई नहीं दिया था की उन्हें भी मिकेल जैसे लोगों मे समझा जाता.
"इसके हाथ पीठ पर बाँध दो." रेव वाले ने अपने साथियों से कहा.
इमरान के चेहरे पर मूर्खों जैसे भाव थे. आँखो से ना डर झाँक रहा था और ना हैरत. वो दोनो उसकी तरफ बढ़े. लेकिन उन से थोड़ा अनाड़ीपन हो गया. अगर वो सामने से आने के बजाए दाए बाएँ से आए होते तो इमरान किसी चूहे की तरह उनका हर अत्याचार सह लेता. शायद उस के हाथ भी पीठ पर बाँध दिए गये होते. लेकिन जैसे ही वो इमरान और रिवॉल्वार वाले के बीच मे आए......इमरान ने डुबकी लगाई और दोनों ही को समेट कर रिवॉल्वार वाले पर झोंक मारा.....और खुद भी साथ ही छलान्ग लगाई. उसका हाथ इतना ही जचा तुला पड़ा
था की पहली ही कोशिश मे उस ने रिवॉल्वार छीन लिया........और उनके उठने से पहले ही दूर हट कर खड़ा हो गया.
"हाथ उपर उठाओ दोस्तो." उस ने मुस्कुरा कर कहा. "ये एक फ्रेंड्ली सजेशन है. .......क्या तुम मेरे साथियों का पता बताओगे?"
"उन के हाथ उपर उठ गये लेकिन गुस्से के कारण उनके चेहरे बिगड़ रहे थे.
"वो जहन्नुम(नर्क) मे हैं." एक गुर्राया....."और तुम भी जल्दी ही वहाँ पहुँच जाओगे."
"मैं जल्दिबाज़ी को अच्छा नहीं मानता." इमरान ने एक आँख दबा कर कहा. "अच्छा ये ही होगा कि दिमाग़ ठंडा कर के मुझ से बातें करो."
"क्यों अपनी जान के दुश्मन बन रहे हो....रिवॉल्वार ज़मीन पर डाल दो और खुद को हमारे हवाले कर दो. हम तुम्हें जान से मारना नहीं चाहते.....अगर यही करना होता तो तुम अब तक ज़िंदा क्यों रहते?"
"मैं जानता हूँ कि तुम मेरी शादी करने के लिए यहाँ पकड़ लाए हो. मगर मैं अभी नाबालिग हूँ. समझे." इमरान ने गुसीले स्वर मे कहा. "तुम्हें शर्म आनी चाहिए इस ज़बरदस्ती पर. चलो बताओ.....कहाँ हैं मेरे साथी?"
"हम तुम्हें वहीं पहुँचा देना चाहते थे."
"आए.......तो इस तरह पहुँचाया जाता है? टॉप भी बाँध लाए होते साथ." इमरान ने चीर्चिड़ापन दिखाया.
अचानक पिछे से किसी ने उस पर हमला कर दिया......और रिवॉल्वार हाथ से निकल कर दूर जा गिरा. लेकिन साथ ही इमरान भी उसकी पकड़ से निकल गया. फिर एक आदमी रिवॉल्वार लेने के लिए झपटा था कि इमरान ने अपने रिवॉल्वार से उसके हाथ पर फाइयर कर दिया
. वो चीख मार कर दूर जा गिरा.
"ह्म....तो अब जिस मे हिम्मत है उठाए रिवॉल्वार...." इमरान उन्हें दुबारा कवर करते हुए बोला. उस पर हमला करने वाला बाली था.....जो उसे ख़ूँख़ार नज़रों से घूर रहा था.
"सुनो दोस्त....." इमरान ने उस से कहा. "मैं खुद को मजबूर समझने का आदि नहीं हूँ. बरसों तक इसी द्वीप मे जीवन गुज़ार सकता हूँ......चाहे मेरी जेब मे एक फूटी कौड़ी भी ना रहे. क्या तुम ये समझते थे कि मैं ही उन जाली नोटों को भुनाने दौड़ा जाउन्गा......या अपने ख़ास आदमियों मे से किसी को ऐसा करने दूँगा.
ज़ख़्मी आदमी अपना हाथ दबाए बैठा किसी ज़ख़्मी कुत्ते की तरह चीख रहा था.
"तुम फिर ग़लत समझे." बाली मुस्कुरआया. "यूँ ही अपने लिए मुसीबत ना पैदा करो...."
"मेरे साथी कहाँ हैं?"
"वो सुरक्षित हैं. क्या उन्हें यहाँ भूके मरने के लिए पड़ा रहने दिया जाता? तुम भी चलो. हलाकी इस समय तुम ने मेरे एक आदमी पर बहुत ज़ुल्म किया है. लेकिन बोघा यही चाहेगा की तुम्हें हर हाल मे माफ़ कर दिया जाए."
"रॉबेरटु को पोलीस ले गयी?"
"तुम्हें उसकी चिंता ना होनी चाहिए. क्या वो तुम्हारा कोई ख़ास आदमी था? अगर यही बात होती तो तुम उसे करेन्सी इस्तेमाल नहीं करने देते."
"समय बर्बाद मत करो." इमरान ने कहा. "अपने हाथ उठाए हुए दूसरी तरफ मूड जाओ. और उधर ही चलो जिधर मेरे आदमी हों..."
"तुम बेकार मे हालत को और भी बुरा बना रहे हो."
"ये मेरी बहुत पुरानी आदत है." इमरान मुस्कुराया. "चलो देर मत करो. वरना तुम केवल चार हो......और रिवॉल्वार मे पाँच गोलियाँ बाक़ी हैं. मेरा निशाना मुश्किल से ही मिस होता है."
"पछताओगे...."
"फिकर मत करो...."
"चलो अगर मारना ही चाहते हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं." बाली दूसरी तरफ मुड़ता हुआ बोला. उस ने अपने साथियों को भी अपने पिछे आने का इशारा किया.ज़ख़्मी भी कराहता हुआ उठा लेकिन उस की हालत खराब थी.
"मुझे ऐसी परदे बहुत अच्छी लगती है. शाबास चलते रहो." इमरान बोला...."लेकिन मूड कर देखने वालों की ज़िम्मेदारी मुझ पर ना होगी."
"तुम मेज़बान के साथ अच्छा सलूक नहीं कर रहे हो." बाली की आवाज़ मे ना गुस्सा था ना ही डर.
"जो लोग ज़बरदस्ती मेहमान बनाए गये हों उन से इस से काम की आशा मत रखो."
"बोघा को गुस्सा ना दिलाओ."
"क्या तुम बोघा हो?"
"बोघा के हर आदमी को तुम बोघा ही समझो."
"तब तुम मरने के लिए तैयार हो जाओ."
"मैं जानता हूँ तुम ऐसी मूर्खता नहीं करोगे." बाली चलता हुआ बोला. "तुम्हारे साथी हमारे पास हैं......वो एडियाँ रगड़ रगड़ कर मर जाएँगे."
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(जारी)