Hindi Porn Story चीखती रूहें - Page 2 - SexBaba
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Hindi Porn Story चीखती रूहें

(Jaari)

इमरान खाने पीने के सामानों से लदा फदा जंगल मे प्रवेश किया. अगता ने उसे खाने पीने का इतना सामान दे दिया था जो कि कयि दिनों के लिए काफ़ी था. वो मिकेल के बारे मे सोच रहा था.....साथ ही वो दूसरे लोग भी उसके दिमाग़ मे थे जो अगता के कहने के अनुसार किसी
ना किसी बहाने जंगल मे मारे मारे फिरते थे. पादरी स्मिथ किस तरह का रोल प्ले कर रहा था. पोलीस उस के पिछे थी लेकिन?

परंतु आख़िर वो लोग वहाँ किस मकसद के लिए लाए गये थे....? क्या केवल इस लिए कि बोघा दूसरों के द्वारा अपने नकली नोट को ट्राइ करे. ये काम तो किसी लोकल आदमी से भी लिया जा सकता था. इस के लिए इतना झंझट करने की क्या ज़रूरत थी? नहीं...........मकसद केवल नोटों को आज़माना नहीं हो सकता था. तो फिर क्या बोघा केवल यही चाहता था की............

वो इस से आगे नहीं सोच सका......क्योंकि गुफा निकट आ चुका था. लेकिन जैसे ही उसने गुफा के दरवाज़े मे कदम रखा.........दो-तीन आदमी उस पर टूट पड़े.

“अर्रे........अर्रे.....” इमरान उछल कर पिछे हट’ता हुआ बोला. सारा समान उसके हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर गया.

हमलावर तीन थे. उन मे से एक के हाथ मे रिवॉल्वार था. उस ने इमरान को कवर कर लिया. संभालने का मौका नहीं मिल सका.

"हाइल कि मारे गये." रेव वाले ने एंगलिश मे कहा.

इमरान अपने साथियो के बारे मे सोचने लगा. पता नहीं उन पर क्या बीती हो. उस ने एक बार फिर उन तीनों को ध्यान से देखा. ये
लोग अच्छी हालत मे थे. अर्थात उनके हुलिए मे इस प्रकार का बेढँगपन दिखाई नहीं दिया था की उन्हें भी मिकेल जैसे लोगों मे समझा जाता.

"इसके हाथ पीठ पर बाँध दो." रेव वाले ने अपने साथियों से कहा.

इमरान के चेहरे पर मूर्खों जैसे भाव थे. आँखो से ना डर झाँक रहा था और ना हैरत. वो दोनो उसकी तरफ बढ़े. लेकिन उन से थोड़ा अनाड़ीपन हो गया. अगर वो सामने से आने के बजाए दाए बाएँ से आए होते तो इमरान किसी चूहे की तरह उनका हर अत्याचार सह लेता. शायद उस के हाथ भी पीठ पर बाँध दिए गये होते. लेकिन जैसे ही वो इमरान और रिवॉल्वार वाले के बीच मे आए......इमरान ने डुबकी लगाई और दोनों ही को समेट कर रिवॉल्वार वाले पर झोंक मारा.....और खुद भी साथ ही छलान्ग लगाई. उसका हाथ इतना ही जचा तुला पड़ा
था की पहली ही कोशिश मे उस ने रिवॉल्वार छीन लिया........और उनके उठने से पहले ही दूर हट कर खड़ा हो गया.

"हाथ उपर उठाओ दोस्तो." उस ने मुस्कुरा कर कहा. "ये एक फ्रेंड्ली सजेशन है. .......क्या तुम मेरे साथियों का पता बताओगे?"

"उन के हाथ उपर उठ गये लेकिन गुस्से के कारण उनके चेहरे बिगड़ रहे थे.

"वो जहन्नुम(नर्क) मे हैं." एक गुर्राया....."और तुम भी जल्दी ही वहाँ पहुँच जाओगे."

"मैं जल्दिबाज़ी को अच्छा नहीं मानता." इमरान ने एक आँख दबा कर कहा. "अच्छा ये ही होगा कि दिमाग़ ठंडा कर के मुझ से बातें करो."

"क्यों अपनी जान के दुश्मन बन रहे हो....रिवॉल्वार ज़मीन पर डाल दो और खुद को हमारे हवाले कर दो. हम तुम्हें जान से मारना नहीं चाहते.....अगर यही करना होता तो तुम अब तक ज़िंदा क्यों रहते?"

"मैं जानता हूँ कि तुम मेरी शादी करने के लिए यहाँ पकड़ लाए हो. मगर मैं अभी नाबालिग हूँ. समझे." इमरान ने गुसीले स्वर मे कहा. "तुम्हें शर्म आनी चाहिए इस ज़बरदस्ती पर. चलो बताओ.....कहाँ हैं मेरे साथी?"

"हम तुम्हें वहीं पहुँचा देना चाहते थे."

"आए.......तो इस तरह पहुँचाया जाता है? टॉप भी बाँध लाए होते साथ." इमरान ने चीर्चिड़ापन दिखाया.

अचानक पिछे से किसी ने उस पर हमला कर दिया......और रिवॉल्वार हाथ से निकल कर दूर जा गिरा. लेकिन साथ ही इमरान भी उसकी पकड़ से निकल गया. फिर एक आदमी रिवॉल्वार लेने के लिए झपटा था कि इमरान ने अपने रिवॉल्वार से उसके हाथ पर फाइयर कर दिया
. वो चीख मार कर दूर जा गिरा.

"ह्म....तो अब जिस मे हिम्मत है उठाए रिवॉल्वार...." इमरान उन्हें दुबारा कवर करते हुए बोला. उस पर हमला करने वाला बाली था.....जो उसे ख़ूँख़ार नज़रों से घूर रहा था.

"सुनो दोस्त....." इमरान ने उस से कहा. "मैं खुद को मजबूर समझने का आदि नहीं हूँ. बरसों तक इसी द्वीप मे जीवन गुज़ार सकता हूँ......चाहे मेरी जेब मे एक फूटी कौड़ी भी ना रहे. क्या तुम ये समझते थे कि मैं ही उन जाली नोटों को भुनाने दौड़ा जाउन्गा......या अपने ख़ास आदमियों मे से किसी को ऐसा करने दूँगा.

ज़ख़्मी आदमी अपना हाथ दबाए बैठा किसी ज़ख़्मी कुत्ते की तरह चीख रहा था.

"तुम फिर ग़लत समझे." बाली मुस्कुरआया. "यूँ ही अपने लिए मुसीबत ना पैदा करो...."

"मेरे साथी कहाँ हैं?"

"वो सुरक्षित हैं. क्या उन्हें यहाँ भूके मरने के लिए पड़ा रहने दिया जाता? तुम भी चलो. हलाकी इस समय तुम ने मेरे एक आदमी पर बहुत ज़ुल्म किया है. लेकिन बोघा यही चाहेगा की तुम्हें हर हाल मे माफ़ कर दिया जाए."

"रॉबेरटु को पोलीस ले गयी?"

"तुम्हें उसकी चिंता ना होनी चाहिए. क्या वो तुम्हारा कोई ख़ास आदमी था? अगर यही बात होती तो तुम उसे करेन्सी इस्तेमाल नहीं करने देते."

"समय बर्बाद मत करो." इमरान ने कहा. "अपने हाथ उठाए हुए दूसरी तरफ मूड जाओ. और उधर ही चलो जिधर मेरे आदमी हों..."

"तुम बेकार मे हालत को और भी बुरा बना रहे हो."

"ये मेरी बहुत पुरानी आदत है." इमरान मुस्कुराया. "चलो देर मत करो. वरना तुम केवल चार हो......और रिवॉल्वार मे पाँच गोलियाँ बाक़ी हैं. मेरा निशाना मुश्किल से ही मिस होता है."

"पछताओगे...."

"फिकर मत करो...."

"चलो अगर मारना ही चाहते हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं." बाली दूसरी तरफ मुड़ता हुआ बोला. उस ने अपने साथियों को भी अपने पिछे आने का इशारा किया.ज़ख़्मी भी कराहता हुआ उठा लेकिन उस की हालत खराब थी.

"मुझे ऐसी परदे बहुत अच्छी लगती है. शाबास चलते रहो." इमरान बोला...."लेकिन मूड कर देखने वालों की ज़िम्मेदारी मुझ पर ना होगी."

"तुम मेज़बान के साथ अच्छा सलूक नहीं कर रहे हो." बाली की आवाज़ मे ना गुस्सा था ना ही डर.

"जो लोग ज़बरदस्ती मेहमान बनाए गये हों उन से इस से काम की आशा मत रखो."

"बोघा को गुस्सा ना दिलाओ."

"क्या तुम बोघा हो?"

"बोघा के हर आदमी को तुम बोघा ही समझो."

"तब तुम मरने के लिए तैयार हो जाओ."

"मैं जानता हूँ तुम ऐसी मूर्खता नहीं करोगे." बाली चलता हुआ बोला. "तुम्हारे साथी हमारे पास हैं......वो एडियाँ रगड़ रगड़ कर मर जाएँगे."



***

(जारी)
 
जूलीया ने सफदार के लाए हुए किसी तरह गले से नीचे उतारे थे और झरने का ठंडा पानी पी कर दिल ही दिल मे इमरान को कोसने लगी थी.

जोसेफ एक तरफ उकड़ू बैठा उंघ रहा था. सफदार ने कुच्छ फल उसकी तरफ भी बढ़ाए.

"नहीं मिसटर......." जोसेफ सर हिला कर बोला..."कों जाने ये फल मुझे ज़िंदा रखने के लिए पर्याप्त ही हो....."

उसके स्वर मे निराशा थी क्योंकि उसे पिच्छले दिन से शराब का एक घूँट भी नसीब नहीं हुआ था. उन्हें उसके लिए चिंता थी. सफदार के विचार से शराब ही उसे काम का आदमी बनाती थी......वरना वो तो बस एक तरह सामान बन कर रह जाता था जिसे सूट-केसो की तरह उठाते फ़िरो.

अचानक जोसेफ ने इमरान के बारे मे पुछा. और जब उसे बताया गया कि वो किसी के साथ अकेले गया है तो वो उच्छल कर खड़ा हो गया.

"मैं नहीं समझ सकता कि तुम ने उन्हें अकेले जाने क्यों दिया?" जोसेफ अपनी आँखें फाड़ने की कोशिश करता हुआ बोला......जो नींद
के दबाब से बोझल होती जा रही थीं.

"क्यों....?" सफदार ने उसे घूरते हुए पुछा.

"मैं इसे ठीक नहीं समझता कि जंगल मे उन्हें अकेला छोड़ा जाए. बताओ वो किधर गये हैं?"

"खुद तलाश कर लो जा कर...." सफदार ने लापरवाही से कहा.

"आए......तुम कैसी उल्टी सीधी बातें कर रहे हो?" जोसेफ ने झुरजुरी सी ली. अंदाज़ बिल्कुल किसी लड़ाके मुर्गे ही का सा था.

जूलीया झपट कर बीच मे आई.

"अरे.......क्या तुम लड़ने का इरादा किए हो? दिमाग़ तो नहीं खराब हो गया?" उस ने बारी बारी से दोनों को घूरते हुए कहा.

"मिसी.......तुम हट जाओ. ये जंगल ऐसा नहीं है कि किसी को अकेला छोड़ा जाए. मैं कहता हूँ अगर बॉस का बाल भी बाका हुआ तो मैं मिसटर सफदार से समझ लूँगा."

"क्या बकवास कर रहे हो?" सफदार आँखें निकाल कर दहाड़ा.

"देख ही लोगे..." जोसेफ ने कहा और मूड कर गुफा के मूह की तरफ देखने लगा.

फिर जोसेफ राइफ़ल उठाने के लिए झुका ही था कि जूलीया ने कहा....."क्यों....? क्या तुम जा रहे हो?"

"हां....मैं जाउन्गा...."

"नहीं.....ये तुम्हारे बॉस का आदेश है......यहीं ठहरो."

"जंगल मे बॉस का ये हुक्म नहीं मान सकता. तुम लोग क्या जानो कि जंगल किसे कहते हैं?"

"जाने दो...." सफदार बोला...."जहन्नुम मे जाए."

जोसेफ राइफ़ल संभालता हुआ गुफा के दरवाज़े से बाहर आया. उसका मस्तिष्क उसके काबू मे नहीं था. फिर भी वो कोशिश कर रहा था की उसके कदम ज़मीन पर मज़बूती से पड़ें.

लेकिन वो जैसे ही गुफा से बाहर आया......उसके सर पर किसी ने कोई भारी चीज़ पूरी ताक़त से मारी......और उस की आँखों मे तारे से नाच उठे. वो लड़खड़ाया लेकिन सम्भल गया और फिर उसे हमलावर दिखाई दिए जो काई थे. जोसेफ ने उन्हें देख कर आँखें फाडी और
अचानक गुस्से ने उस की खोपड़ी उलट दी. उधर वो उस पर झपते ही थे कि जोसेफ ने राइफ़ल की नाल इस ढंग से संभाली जैसे डंडा पकड़ते हैं और दूसरे ही पल राइफ़ल का कुण्डा एक हमलावर की कमर पर पड़ा.

इसके बात फिर तो जानवरों जैसी जंग शुरू हो गयी. सफदार और चौहान भी बाहर निकल आए. लेकिन वो कुच्छ ऐसे बद-हवास हो गये थे कि खुद भी राइफलें संभाल कर जोसेफ ही की तरह हमलावरों पर टूट पड़े. हलाकी होना ये चाहिए था कि वो फाइयर करने की धमकी देते और इस लड़ाई की समाप्ति हो जाती. इस तरह वो खुद भी इस बेतुकी कसरत से बच जाते.

हमलावरों मे से केवल एक के हाथ मे एक मोटा सा डंडा था. बाकी निहत्थे थे. लेकिन ये ज़रूरी नहीं था कि उन के पास रिवॉल्वार या चाकू ना रहे हों. ये और बात है की उन्हें उसके इस्तेमाल का मौका ही नहीं पाया होगा. आख़िर वो भाग निकले.

जोसेफ के सर से खून बह रहा था. लेकिन उस की हालत अब इतनी खराब नहीं लग रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे उस से अधिक फुर्तीला और चाक-चौबंद आदमी आज तक देखा नहीं गया हो.

"चलो यहाँ से." वो किसी ज़ख़्मी जानवर की तरह दाँत निकाल कर बोला. "उन्हें अब हमारे ठिकाने का पता चल चुका है."

उन्होने बड़ी जल्दी मे अपना सामान समेटा और एक तरफ झाड़ियों मे घुस पड़े. जूलीया ने जोसेफ को उसके ज़ख़्म की तरफ ध्यान दिलाया लेकिन उस ने कहा......"चिंता मत करो मिसी.....ये बहुत अच्छा हुआ. अब मैं नहीं मरूँगा. मुझे होश आ गया है. ये चोट जब तक दुखती रहेगी मुझे ज़िंदा रखेगी........चाहे शराब मिले ना मिले."

***

(जारी)
 
(Jaari)


इमरान ने महसूस कियकी बाली उसे बे-मतलब जंगल मे भटकाता फिर रहा है. आख़िर एक जगह उस ने उन्हें रुकने को कहा......और बोला...."अपने हाथ उपर उठाए रखो. जिस के हाथ भी नीचे आए उस के लिए अच्छा नहीं होगा. और हन बाली......तुम मेरी तरफ मुड़ो."

बाली मुस्कुरा रहा था और उस की मुस्कुराहट पूरी तरह गुस्सा दिलाने वाली थी.

"तुम मुझे मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहे हो." इमरान ने कहा.

"तुम खुद ही बन रहे हो. मैं ने तुम्हें नहीं कहा था."

इमरान को अगर अपने साथियों की चिंता ना होती तो शायद उन्हें वो वहीं ढेर कर दिया होता.

अचानक बाएँ साइड वाली ढलान से तेज़ सीटी की आवाज़ आई.....और जंगल के किसी सुदूर भाग से शायद उसका जवाब दिया गया.

"पोलीस....." बाली उच्छल पड़ा और इमरान से बोला. "ये क्या बेवकूफी कर रहे हो. तुम भी कहीं के नहीं रहोगे.....अगर उन्होने हमें यहाँ देख लिया." बाली ने ग़लत नहीं कहा था. पोलीस के लिए इमरान के पास कोई जवाब ना था. उस ने तेज़ी से दाईं तरफ की झाड़ियों मे
छलान्ग लगाई और बाली अपने साथियों समेत दौड़ता चला गया. झाड़ियाँ घनी थीं. इमरान के दोनों पैर एक दूसरे से उलझ गये.......और वो इस बुरी तरह गिरा......की जल्दी मे उठ कर भागना उसके लिए संभव नहीं रहा.

वो उठने की कोशिश कर ही रहा था कि अचानक किसी ने उसकी कलाइयाँ मज़बूती से पकड़ लीं. इमरान ने झटका दिया.

"अर्रे मैं हूँ....." किस ने फ्रेंच मे धीरे से कहा. "मैं हूँ......मैं अगता. उठो जल्दी करो...."

"इमरान बौखला कर उठ बैठा. उस की कलाइयाँ छोड़ दी गयीं. अगता निकट ही बैठी हाँफ रही थी. उस ने इमरान का हाथ पकड़ कर कहा "चलो उठो..."

इमरान उठ कर उसके साथ चलने लगा. वो उसे रास्ता बताती हुई ना जाने कहाँ ले जा रही थी. इमरान कुच्छ देर तक तो चलता रहा
फिर रुक गया. सीटियाँ अब भी सुनाई दे रही तीन. लेकिन आवाज़ दूर की लग रही थी.

"तुम मुझे कहाँ ले जा रही हो?" उस ने पुछा.

"अच्छा अगर मैं भी तुम्हारे पिछे ना चल पड़ी होती तो तुम कहाँ होते?" अगता मुस्कुराइ. वो फ्री होने की कोशिश कर रही थी. इमरान
किसी सोच मे पड़ गया.

"बोलो......जवाब दो...." वो इठलाई.

"मैं अपने आदमियों की तलाश मे था. इन लोगों ने उन्हें कहीं गायब कर दिया."

"ह्म......तो तुम सच मच मिस्र के जादूगर हो. मुझे मूर्ख बनाया था.....क्यों?" वो वैसे ही मुस्कुरा रही थी.

इमरान सोचने लगा कि इस बात का क्या उत्तर दे.

"सुनो...." इमरान ने गंभीरता से कहा...."हो सकता है कि तुम्हें किसी तरह की ग़लत-फ़हमी हुई हो. लेकिन मैं ने तुम से कॉन सी बुराई की है. चलो तुम ने जो कुच्छ भी मुझे दिया......उसे मेरी मज़दूरी ही समझ लो. मैं अपने साथियों को भूका मरते तो नहीं देख सकता था."

मैं उस गुफा से यहाँ तक तुम्हारा पिच्छा करती रही हूँ. तुम जिस तरह भी उन लोगों से पेश आए थे उस से ये तो पता चल गया कि वो तुम्हारे लिए अजनबी नहीं रहे होंगे."

"चलो ये भी ठीक है. देखो मेरी याददाश्त बहुत कमज़ोर है. मुझे याद नहीं कि मैं उन से किस तरह पेश आया था.......मगर क्या तुम ये समझती हो की मैने तुम से फ्रॉड किया था?"

"तुम वास्तव मे कों हो? मुझ से ना छुपाओ. मुझे तुम से सहानुभूति है. शायद मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूँ. ये मैं केवल इस लिए कह रही हूँ की वो लोग मेरे लिए अजनबी नहीं थे. मैं उन्हें अच्छी तरह जानती हूँ."

"ओह्ह.....वो कॉन थे?"

"बहुत बुरे लोग.......कम से कम मैं तो उनके खून की प्यासी हूँ."

"अच्छा...!!" इमरान मुस्कुराया. मैं समझता हूँ कि वो लोग बहुत चालाक हैं. उन्होने हमारे आस पास काई तरह के जाल बिच्छाए हैं. अगर एक से बच जाएँ तो दूसरे मे फँसें. क्यों है ना यही बात?"

"मैं समझी नहीं तुम कहना क्या चाहते हो?"

"मतलब ये कि वो मुझे ज़बरदस्ती नहीं ले जा सके तो अब तुम आई हो."

"फ़िज़ूल बात...." अगता ने बेज़ारी से कहा. "तुम नहीं जानते कि मैं बाली से कितनी नफ़रत करती हूँ. और मुझे उस समय उसकी पराजय
का दृश्य कितना दिलचस्प लगा है. तुम तो खुद भी मुझे कोई बुरी आत्मा लगते हो. बाली से यहाँ सब डरते हैं."

"लेकिन तुम क्यों उस से नफ़रत करती हो?"

"सारे मछुवारे उस से नफ़रत करते हैं. वो डाकू है. सारे घाट का मालिक बनना चाहता है. मच्छुआरो के समंदर पर उस का शासन है.
मेरे बाप के कारोबार को उसके कारण बहुत नुकसान पहुँचा है. मेरा वश चले तो उसकी हड्डियाँ अपने दाँतों से चबा डालूं."

"अगर ये बात है तो मेरी दोस्ती का हाथ क़ुबूल करो." इमरान ने हाथ बढ़ाते हुए कहा.....जो दोनों हाथों से थाम लिया गया. आदि तिर्छि आँखों की छाओ मे अगता की मुस्कुराहट बड़ी अर्थ-पूर्ण लग रही थी. लेकिन इमरान ने इस ढंग से पलकें झपकाइं जैसे अब कोई दिल्फ़रेब सा इश्क़ भरा शे'र सुनाएगा.

"मगर तुम कॉन हो मुझे बताओ."

"मैं बाली का दुश्मन हूँ क्योंकि उस ने पिच्छले साल टिग्रिश आइलॅंड मे मेरे मौसा(खलू) को पेड़ से उल्टा लटका कर गोली मार दी थी. मैं बदला लेने आया हूँ."

"लेकिन वो तुम्हें कहाँ ले जाना चाहता था?"

"वहीं.....जहाँ मेरे दोस्तों को क़ैद किए हुआ है. शायद इस तरह वो पता करना चाहता है कि मेरे साथ और कितने आदमी हैं."

"अर्रे तो चलते रहो....लगता है कि तुम भी पोलीस से भयभीत हो.....क्यों?"

"मुझे बदला लेना है.....इस लिए पोलीस से तो बचना ही पड़ेगा ना?"

वो कुच्छ ना बोली, इमरान थोड़ी देर तक खामोश चलता रहा फिर बोला...."क्या ये आदमी बाली....पादरी स्मिथ से भी संबंध रखता है?"

"पता नहीं.......क्यों?"

"यूँ ही. तुम ने कहा था की जंगल मे अधिकतर स्मिथ के आदमी ही देखे जाते हैं."

"मैं नहीं जानती कि उसका संबंध स्मिथ से रहा है या नहीं.....लेकिन इस समय सोचना पड़ रहा है कि वो पोलीस की सीटी पर डर क्यों गया था."

"क्या पोलीस जंगल मे गश्त करती रहती है?"

"अक्सर......लेकिन रात को यहाँ आने की हिम्मत कोई भी नहीं करता. ओह्ह.....क्या तुम मेरे पापा से मिलोगे?"

"अगर वो भयानक ना हुए तो. मुझे पापाओं से बहुत डर लगता है."

"क्यों.....?"

"पापा ही ठहरे......पता नहीं कब फाड़ खाएँ."

"नहीं मेरे पापा तो बहुत सीधे आदमी हैं. और जब उन्हें पता चलेगा कि तुम बाली जैसे लोगों पर भी हाथ उठा सकते हो.....तो वो शायद
तुम्हें सर पर ही बिठा लें."

"ओह्ह.......मगर मैं अपने साथियों के लिए क्या करूँ?"

"तलाश करेंगे उन्हें भी. जंगल विचित्र है. यहाँ आज भी बहुत सी ऐसी जगहें हैं जहाँ अब तक कोई आदमी नहीं पहुँच सका." अगता ने कहा. फिर चलते चलते रुक गयी. कुच्छ देर सोचती रही फिर बोली...."सुनो....एक सजेशन है मेरे दिमाग़ मे. पापा को नावों पर काम करने वालों की ज़रूरत है. मैं उन से कहूँगी की मैं ने तुम्हें नौकर रखा है. अभी उन से बाली के मामले मे कुच्छ नहीं बताया जाए. क्या विचार है तुम्हारा?"

"तुम इतनी जीनियस हो कि क्या बताउ." इमरान ने ठंडी साँस ली. "लेकिन वो मुझे पसंद नहीं करेंगे.......क्यों कि मैं एक मूर्ख आदमी हूँ."

"मूर्ख.........तुम....!!" वो हंस पड़ी.

"हां....मेरे साथ यही सब से बड़ी ट्रॅजिडी है कि लोग मुझे मूर्ख समझते हैं." इमरान ने दुख भारी गंभीरता से कहा. "यही कारण है कि आज तक मेरी शादी नहीं हो सकी."

और फिर वो इस तरह शरमाया कि कान की लौ तक सुर्ख हो गयीं......और उसका हुलिया बड़ा ही हास्यास्पद दिखाई देने लगा.

"अर्रे....वाहह....तुम अपनी शादी की चर्चा से शरमाते भी हो."

"हुन्न....मम्मी कहा करती थीं की शरम आनी चाहिए ऐसी बातों पर." इमरान ने सर झुका कर मुर्दा सी आवाज़ मे कहा.

अगता फिर हँसी. लेकिन जल्दी ही गंभीर दिखाई देने लगी. उस ने कहा...."शकल से तुम एक नंबर के डफर लगते हो......मगर मैं नहीं समझती की वास्तव मे भी यही हो."

"तुम भी डफर ही कह रही हो." इमरान भर्राई हुई आवाज़ मे बोला. और फिर अगता ने देखा कि उस की आँखों से टॅप टॅप आँसू गिर रहे हैं
. अब वो सच मूच घबरा गयी.

"अर्रे अर्रे......तुम रो रहे हो.......अर्रे भाई वाहह...." उस ने कहा और उस का बाज़ू पकड़ लिया. अब इमरान के कंठ से तरह तरह की आवाज़ें भी निकलने लगी थीं.....और अगता के मूह से तो "अर्रे वाह...." के अलावा और कुच्छ निकल ही नहीं रहा था. फिर जब वो इस से भी संतुष्ट ना हुई तब बौखलाहट मे उसका सर खीच कर सीने से लगा लिया.

"अब चुप भी रहो......ये क्या कर रहे हो........अर्रे मैं तो यूँ ही मज़ाक मे......तुम बहोत अच्छे हो.......मैं तुम्हें बहुत पसंद करती हूँ......" वो भर्राई हुई आवाज़ मे बोली......और उस की आँखों से भी आँसू टपकने लगे.



***


(जारी)
 
(Jaari)

अगता का पापा एक नाटे क़द का गोल मटोल सा आदमी था. उपरी होंठ घनी मूच्छों से ढका हुआ था. आँखें छोटी और धुन्दलि थीं. सर
के निचले हिस्सों मे थोड़े खिचड़ी बाल थे. बीच का हिस्सा सफाचट था.

शाम को उस ने इमरान को किचन मे अगता का हाथ बटाते देखा.....और जहाँ था वहीं रुक गया. इमरान ने उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दिया. लेकिन वो उसे घूर रहा था.

"ये कॉन है?" इमरान ने कुच्छ देर बाद गुर्राहट सी सुनी और उच्छल पड़ा. फ्राइयिंग पॅन उसके हाथ से छूट कर दूर जा गिरा. मूर्खता और बनावटी भय ने उस का हुलिया खराब कर रखा था.

"मैने आज ही इसे नौकर रखा है. ये फिशिंग भी कर सकता है पापा." अगता ने उत्तर दिया.

"क्या गॅरेंटी है कि ये चोर नहीं है?" बूढ़े ने झल्लाई हुई आवाज़ मे पुछा.

"मुझे विश्वास है कि ये बे-ईमान आदमी नहीं है. आज इस ने मेरी बहुत मदद की. मिकेल किसी तरह निकल गया था. अगर ये ना मिल
जाता तो आज मिकेल की वापसी मुश्किल थी."

"ठीक है लेकिन मुझ से राय लिए बिना नौकर रखने की क्या ज़रूरत थी?"

अगता ने बहुत बुरा सा मूह बनाया. ऐसा लगा जैसे वो अब रो ही देगी. फिर मिन्मिनाति हुई आवाज़ मे बोली....."मैं नहीं जानती थी पापा कि तुम इस आदमी के सामने मेरा अपमान करोगे जिसे मैं ने पनाह दी है. अच्छी बात है...अब मुझ पर भी अपने घर का दरवाज़ा बंद कर दो."

"क्या बेहूदा बकवास शुरू कर दी तुम ने?" बूढ़े ने सर हिलाते हुए कहा. "खुद भुगतगी....मुझे क्या करना है."

वो वहाँ से हट कर दूसरी तरफ चला गया. तभी इमरान भ्रराई हुई आवाज़ मे बोला....."मैं बहुत बाद-नसीब आदमी हूँ........हाँ. अच्छा.....मैं जेया रहा हूँ."

"ये......नामुमकिन है." अगता एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बोली. "तुम नहीं जा सकते..........सुना तुम ने....??"

"तुम ने मुझ पर भरोसा कर लिया है. हो सकता है कि मैं चोर ही साबित हूँ....."

"हो चुके हो साबित....."

"क्या मतलब?" इमरान उछल पड़ा.

"दिल के चोर...." अगता धीरे से बोली......और उस की वीरान आँखें मुस्कुरा पड़ीं.

"दिल..........म्म....मतलब कि दिल्ल्ल.....म्म....मैं समझा नहीं." इमरान बौखला कर चारों तरफ देखने लगा.

"तुम सा भोला आज तक मैने नहीं देखा." अगता ने हंस कर कहा.

वो कुच्छ देर मुस्कुराती निगाहों से उसकी तरफ देखती रही फिर बोली...."तुम वास्तव मे कहाँ के निवासी हो?"

"मैं मिस्री हूँ.....तुम्हें विश्वास क्यों नहीं होता?........और ये भी सही है कि मैं सितारों की चाल से परिचित हूँ."

"अच्छी बात है.........मुझे बताओ कि मैं कभी मिकेल से पिच्छा छुड़ा सकूँगी या नहीं? मेरे बाप ने मुझ पर बहुत ज़्यादती की थी. उसे एक मददगार की ज़रूरत थी. मिकेल का बाप उस का क़र्ज़-दार था. इसलिए तय हुआ कि अगर वो मिकेल को उसे दे दे तो वो क़र्ज़ माफ़
कर देगा. इस तरह हमारी शादी हुई. लेकिन मिकेल नकारा निकल गया. वो पड़े पड़े खाना चाहता है. पागल बन गया है. मैं जानती हूँ
वो पागल नहीं है. केवल इस लिए ये ढोंग रचाया है कि काम ना करना पड़े. किसी पागल के ज़िम्मे कॉन अपना काम छोड़ देगा."

इमरान मुस्कुराया और वो जल्दी से बोली....."कितनी प्यारी है तुम्हारी मुस्कुराहट."

"अर्रे बाप रे....." इमरान हिन्दी मे बड़बड़ाया....और दाँतों तले उंगली दबा कर शरमाते हुए फ्रेंच मे बोला....."ऐसी बातें ना करो.....मुझे शरम आती है."

"अर्रे वाहह...." वो हंस पड़ी. "इधर देखो मेरी तरफ............"

इमरान वैसे ही दाँतों मे उंगली दिए सर झुकाए रहा. अचानक बाहर से शोर की आवाज़ आई.....और अगता चौंक पड़ी.

"ये क्या....?"

फिर वो किचन से निकल कर मैन गेट की तरफ झपटी. लेकिन इमरान वहीं रहा. वो अपने साथियों को लेकर उलझन मे पड़ा हुआ था. पता नहीं वो कहाँ और किस हाल मे होंगे.

अगता जल्दी ही वापस आई. उस की आडी तिर्छि आँखें जोश से चमक रही थीं. उस ने कहा....."हमारे आदमियों ने एक चोर को पकड़ा
है और उस की मरम्मत कर रहे हैं. वो हमारी मछलियाँ चुरा रहा था.......काला आदमी."

"काला आदमी....?" इमरान चौंक पड़ा "कहाँ है?"

"जंगल के सिरे पर मछलियों को रखा गया था. हमारे आदमी शायद थक गये थे. वो कुच्छ देर के लिए आराम कर रहे थे. वो पता नहीं
किधर से आया और उन की नज़रों से बच कर मछलियाँ चुराने लगा."

"क्या वो उसे यहाँ पकड़ लाए हैं?"

"हां....बाहर कॉंपाउंड मे.....लेकिन वो बड़ा सख़्त जान लगता है."

"कहीं वो मेरा साथी ना हो. मुझे दिखाओ."

"ओके चलो..."

अगता उसे एक कमरे मे लाई जिस की खिड़कियाँ बाहर खुलती थीं.

"यहाँ से देखो. मैं इस समय नहीं चाहती कि तुम पापा के सामने जाओ."

इमरान ने जोसेफ को पहचान लिया......जो पाँच आदमियों को धमकियाँ दे रहा था. उसके हाथ मे लोहे की एक मोटी सी सलाख थी. ऐसा लग रहा था जैसे कुच्छ देर पहले वो उस से गुथे रहे हों......और वो किसी तरह उनकी गिरफ़्त से छूटने मे सफल हो गया हो. अब वो उन्हें ललकार रहा था.....लेकिन वो आगे नहीं बढ़ रहे थे. अगता का बाप चीख चीख कर उन से कह रहा था....."बढ़ो.....मार डालो.....सुव्वर को....मारो."

"ये मेरा साथी ही है." इमरान ने अगता की तरफ देख कर कहा. उसे बचाओ किसी तरह......वो चोर नहीं है. मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूँ कि हम लोग बिल्कुल खाली हाथ हैं. हमारे पास यहाँ की करेन्सी नहीं है. उस ने भूक से मजबूर हो कर मछलियाँ चुराई होंगी."

"ये तो बहुत बुरा हुआ. अभी पापा कह चुके हैं तुम्हारे बारे मे कि कहीं चोर ना हो. मैं अभी उन से ये भी नहीं बताना चाहती कि तुम बाली के दुश्मन हो. उस से बदला लेने आए हो. अगर इसकी चर्चा भी हुई तो वो यही समझेंगे कि बाली ने तुम्हें किसी मकसद से यहाँ भेजा है. बहुत बुरा हुआ ये....."

इमरान सोच रहा था कि कहीं बूढ़ा जोसेफ को पोलीस के हवाले ना कर दे.

"तो क्या खुद मुझे ही उस की मदद करनी पड़ेगी?" उस ने कहा.

"अर्रे नहीं....इंपॉसिबल...."

"ह्म.....तो क्या मैं उसे मर जाने दूं? अपने साथी को?"

अगता कुच्छ कहना ही चाहती थी कि कॉंपाउंड के गेट पर बाली दिखाई दिया. उस के साथ दो आदमी और थे. उस ने वहीं से चीख कर अगता के बाप से कहा...."सुतरां.....तुम मेरे आदमी पर ज़ुल्म करते हो......फिर उल्टा तुम्हें ही मुझ से शिकायत होती है."

"ये और बुरा हुआ...." इमरान बड़बड़ाया.

सुतरां घूँसा लहरा कर कह रहा था...."अगर तुम्हारे आदमी चोरी करेंगे तो उनका यही अंजाम होगा. तुम चले जाओ यहाँ से. मेरे कॉंपाउंड मे कदम भी मत रखना.....वरना मुझ से बुरा कोई ना होगा."

"इंपॉसिबल.....तुम मेरे रहते हुए मेरे आदमी पर ज़ुल्म करोगे?" बाली आगे बढ़ता हुआ बोला. इमरान ने महसूस किया कि सुतरां के आदमी उस से भयभीत हैं. जैसे ही वो आगे बढ़ा सुतरां ने अपने आदमियों को ललकारा लेकिन उन मे से कोई भी उसे रोकने के लिए आगे नहीं बढ़ सका.

"मैं जा रहा हूँ." इमरान ने कहा और अगता उस का बाज़ू पकड़ के घिघियाई "नो...नो.....तुम मत जाओ.......फॉर गॉड सेक....मेरी बात समझो..."
 
"वो तुम्हारे बाप का अपमान कर रहे हैं."

"अर्रे वो तो इसी तरह लड़ते झगड़ते रहते हैं."

"जानती हो.....वो अगर मेरे आदमी को यहाँ से ले गया तो उसका क्या हशर होगा? ठहरो और देखो कि मैं उस से किस तरह निबट'ता हूँ."

इमरान ने जेब से रुमाल निकाला और उसे चेहरे पर इस तरह बाँध लिया कि केवल आँखें खुली रहीं. वो अब आसानी से पहचाना नहीं
जा सकता था. वो नहीं चाहता था की बाली को उसके नये ठिकाने का पता चले. वैसे जोसेफ को तो उसके हाथों से बचाना ही था.

वो तेज़ी से दरवाज़े की तरफ झपटा. अगता देखती ही रह गयी.

बाहर सुतरां बहुत ही क्रोध मे अब अपने ही लोगों को बुरा भला कहने लगा था. क्यों कि बाली जोसेफ के निकट पहुँच चुका था.......और उस से इंग्लीश मे कुच्छ कह रहा था.

"आए..." इमरान हाथ उठा कर दहाड़ा. उस की आवाज़ बदली हुई थी. "तुम कॉन हो जो मोस्सीओ सुतरां के कॉंपाउंड मे बिना इजाज़त घुस आए हो?"

बाली उसकी तरफ मुड़ा और हैरत से पलकें झपकाई.

"चले जाओ यहाँ से." इमरान हाथ हिला कर बोला. सुतरां भी हैरत से मूह खोले खड़ा था. कभी वो इमरान की तरफ देखने लगता और
कभी मेन गेट की तरफ.

"ये क्या बक रहा है...? इसे देखो." बाली ने अपने दोनों साथियों से कहा.....और वो इमरान की तरफ झपटे. इमरान का दायां हाथ एक के जबड़े पर पड़ा और वहीं से उस ने दूसरे की गर्दन पकड़ कर झटका दिया तो वो उसकी कदमों मे चला आया.......और पहला दूसरी तरफ उलट गया. दूसरे के सर पर इमरान की ठोकर भी पड़ी. पहला आदमी उठ कर दुबारा झपटा. लेकिन इस बार उसकी दाईं कनपटी पर इमरान का हाथ पड़ा......और ये ऐसा ही जाचा तुला हाथ था की वो दुबारा ना उठ सका. दूसरा आदमी जिस के सर पर उस ने ठोकर मारी थी उठने की कोशिश कर रहा था मगर दूसरी ठोकर ने उसे भी ऐसा करने नहीं दिया.

बाली ने अपने दोनों साथियों का हाल देख कर इमरान को एक गंदी सी गाली दी और उस पर टूट पड़ा.

सुतरां और उस के आदमी जोशीले दर्शकों की तरह दाँत पर दाँत जमाए खड़े थे. उन्हें इस का भी होश नहीं था कि बाली का इमरान पर झपट'ते ही जोसेफ चुप-चाप वहाँ से खिसक गया है. उन्होने उसे बाहरी गेट पर देखा लेकिन उस के निकल जाने की थोड़ी सी भी चिंता ना करते हुए अपनी ही जगहों पर खड़े रहे क्योंकि सामने का तमाशा जोसेफ की मरम्मत करने से अधिक रोचक था.

उन्होने अपने एक बड़े और शक्तिशाली दुश्मन को एक अंजान आदमी के हाथों पिट'ते देखा जिसने अपना चेहरा सफेद कपड़े से छुपा रखा था. और शायद उन्हें इस पर सब से अधिक हैरत थी की वो उन के मालिक सुतरां ही के घर से निकला था.

बाली गुस्से से पागल हुआ जा रहा था. लेकिन अभी तक वो इमरान को पकड़ लेने मे सफल नहीं हो पाया था. वो केवल इसके लिए प्रयत्न-शील था की किसी तरह इमरान को पकड़ कर बेबस कर दे.

इमरान ने एक बार उसे इसका मौका दे कर इतनी फुर्ती से धोबी पाट मारा कि सुतरां और उस के आदमी एक साथ चीख पड़े.

बाली किसी बड़े शहतीर की तरह ढेर हो गया. वो चित्त पड़ा हैरत से आँखें फाडे आसमान को देख रहा था. फिर अचानक उठा और
बेतहाशा गेट की तरफ दौड़ता चला गया. पता नहीं वो भयभीत था या इस पराजय के बाद सुतरां का सामना नहीं करना चाहता था.

ओ सब बेतहाशा हंस पड़े......और इमरान तीर की तरह घर मे आया. वो अपने पीछे सुतरां की आवाज़ सुन रहा था......."नहीं तुम सब यहीं ठहरो. गेट बंद कर दो. आज कुच्छ ना कुच्छ हो कर रहेगा. वो बेशरम अधिक आदमी ले कर आएगा. शायद आज मुझे पोलीस की ही मदद लेनी पड़े."

इमरान सीधा किचन मे आया और चूल्‍हे पर फ्राइ-पॅन रख कर उस मे रिफाइन-आयिल डालने लगा.

"अर्रे....अर्रे...." अगता ने कहा....जो उसके पिछे पिछे ही दौड़ी हुई आई थी.

"क्यों.....क्या हुआ?" इमरान ने हैरत भरे स्वर मे पुछा.

"अरे.......तुम अभी लड़ रहे थे.......अभी खाना पकाने लगे....!!"

"हाएन्न......तो क्या खाने से भी हाथा-पाई करूँ?" इमरान ने आँखें फाड़ कर कहा.

"अजीब आदमी हो...." अगता हंस पड़ी.

"इधर आओ...." बाहर से आवाज़ आई. इमरान चौंक पड़ा......सुतरां उसे बुला रहा था.

वो किचन से निकल आया. सुतरां ने उसे उपर से नीचे तक देख कर कहा....."तुम कॉन हो?"

"पहले ये बताओ पापा.....कि काम का आदमी है या नहीं?" अगता बोल पड़ी.

"बहुत ज़्यादा....." बूढ़े ने उत्तर दिया "लेकिन ये है कॉन?"

"मैं खाना भी बहुत अच्छा पका सकता हूँ मोस्सीओ...." इमरान ने कहा.

"वो तो ठीक है मगर असल मे तुम कॉन हो?"

"एक मुसाफिर.........इसी आदमी 'बाली' की तलाश मे यहाँ आया था. साइप्रस मे मेरे मौसा को पेड़ से उल्टा लटका कर गोली मार दी थी.......मैं भी उसके साथ वही सलूक करना चाहता हूँ."

"क्या वो तुम्हें पहचानता है?"

"हां.......इसी लिए मैं ने अपना मूह छुपा लिया था.......वरना वो मुझ से छुटकारा पाने के लिए पोलीस की मदद लेने के लिए दौड़ा जाता और मेरा खेल ख़तम हो जाता."

"होशियार भी हो......"

"बड़े बड़े नुकसान उठा कर यहाँ तक पहुँचा हूँ. मेरे साथ चार आदमी और भी हैं.......जिन मे एक औरत है...."

"औरत....?" अगता उछल पड़ी.

"हां......मेरे दोस्त की वाइफ. जिस के मोटर लॉंच पर साइप्रस यहाँ तक आए थे."

"मोटर लॉंच पर.....?" सुतरां ने हैरत से कहा.

"हां.....बड़े बड़े ख़तरों का सामना करना पड़ा था हमें. हम जंगल की तरफ वाले साहिल पर उतरे थे. दूसरे दिन पोलीस ने हमारी लॉंच पर क़ब्ज़ा कर लिया. हम कौड़ी कौड़ी के मुहताज हो गये. जंगल मे कयि बार बाली और उस के साथियों से झड़प हो चुकी है. लेकिन वो बच कर निकल ही गया. अब जब तक वो हम मे से एक एक को नहीं मार डालेगा उसे चैन नहीं मिलेगा. इस समय बहुत अच्छा मौका था. मैं
उसे ख़तम ही कर देता. मगर फिर सोचा की आप कठिनाई मे पड़ जाएँगे अगर उसकी लाश आप के कॉंपाउंड से उठाई गयी."

"बहुत समझदार हो."

"वो काला आदमी मेरे साथियों मे से ही था."

"क्या??"

"हां मोस्सीओ......वो चोर नहीं है. भूक से परेशान हो कर उस ने मछलियाँ चुराने की कोशिश की होगी. मेरे सभी साथी भूके होंगे. उन के पास यहाँ की करेन्सी नहीं है. बाली उसे इस लिए यहाँ से ले जाना चाहता था की उस से हमारा पता पुच्छे."

फिर इमरान ने उसे बताया कि किस तरह वो आज अगता से मिला था......और मिकेल को लाने मे मदग की थी. फिर वापसी पर अपने साथियों को गुफा मे नहीं पाया था. इस के बाद अगता बोली.

"मुझे इस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ था. मैं यही समझती थी कि ये बाली का ही आदमी है.....और किसी ख़ास मकसद के लिए हमारा भरोसा पाना चाहता है. इस लिए मैं ने इस का पिच्छा किया था. लेकिन वहाँ इस को बाली और उसके साथियों से उलझते पाया."

उस ने पूरी घटना सुना दी.

सुतरां सुनता रहा. जब वो चुप हुई तो एक लंबी साँस ले कर बोला....."ठीक है मगर ये भी सोचना पड़ेगा कि इन लोगों का आइलॅंड मे प्रवेश क़ानूनी नहीं है."

"ये समस्या मेरी निगाह मे भी है. इसी लिए मैं चाहता हूँ कि किसी शरीफ आदमी के लिए बोझ ना बनूँ. यही बात मैं ने मेडम अगता को भी समझाने की कोशिश की थी."


(जारी)
 
"तो अब तुम्हारे साथी कहाँ हैं?" सुतरां ने पुछा.

"काश मुझे मालूम होता, संयोग से काला आदमी इस तरह हाथ आया था लेकिन बाली के कारण वो भी निकल गया. मुझे डर है कि वो कहीं भूके ना मार जाएँ."

"सुनो...." सुतरां कुच्छ सोचता हुआ बोला. "बाली एक प्रभाव-शालि व्यक्ति है. मैं जानता हूँ कि वो कितना कमीना आदमी है. लेकिन क़ानून उसी का साथ देगा. वो यहाँ से पिट कर गया है. मैं नहीं जानता कि अब वो क्या करेगा. अच्छा यही होगा कि तुम यहाँ से चले जाओ. वैसे
मैं तुम्हारी और तुम्हारे साथियों की मदद ज़रूर कर सकता हूँ. हां.....वो अगर तुम लोगों को पहचानता ना होता तो बात दूसरी थी."

"ये सच है वो हमें पहचानता है. लेकिन अगर हमें कहीं पैर जमाने की जगह मिल जाए......तो उस के फरिश्ते भी हमें नहीं पहचान सकेंगे."

"वो कैसे.....?"

"हम किसी ना किसी मज़बूती ही के कारण यहाँ अवैध रूप से आने की हिम्मत किए हैं. ये ना समझिए मोस्सीओ की हम बिल्कुल फटे-हाल ही आए हैं. हमारे पास यहाँ की काफ़ी करेन्सी थी. लेकिन हमारे एक साथी की ग़लती से वो हाथ से निकल गयी."

"मैं पुछ्ता हूँ वो तुम्हें पहचान क्यों ना सकेंगे?"

"हम अपनी शकलें आसानी से बदल सकते हैं."

"ओह्ह...."


****



रात को इमरान 2 मछुवारो को साथ ले कर अपने साथियों की तलाश मे निकला. उन्हों ने उसे वो जगह दिखाई जहाँ जोसेफ ने मछलियाँ चुराने की कोशिश की थी.

इमरान ने मछुवारो को वहीं से वापस कर दिया. वो जानता था कि जंगल मे बाली के आदमी निश्चित रूप से मौजूद होंगे. इसलिए सुतरां के आदमियों के साथ उस का देखा जाना मुनासिब ना होगा.

जहाँ जोसेफ ने मछलियाँ चुराने की कोशिश की थी वो जंगल ही का हिस्सा था. इमरान ढलान मे उतरता चला गया. सीमित रौशनी
वाली छोटी सी टॉर्च हर समय उसकी जेब मे पड़ी रहती थी. इस समय भी वो काम आ रही थी.

लेकिन इतने बड़े जंगल मे उन्हें ढूंड निकालना कोई आसान काम तो ना था. वो सोच रहा था कि उसे क्या करना चाहिए. अगर बाली और उसके साथियों का ख़याल ना होता तो शायद वो उन्हें पुकारता भी.

इस बार सही अर्थ मे उसके साथी उसके लिए हेडेक बन गये थे......और वो सोच रहा था कि अकेले काम करने मे कितना मज़ा है. लेकिन वो तो मजबूरी मे साथ आए थे. हालात ही ऐसे थे की उन्हें लाना पड़ा था.

लगभग एक घंटे तक वो इधर उधर भटकता फिरा......लेकिन साथियों का सुराग नहीं मिला. अंत मे वो थक हार कर एक जगह बैठ गया. रात अंधेरी थी. जंगल साएन्न साएन्न कर रहा था.

अचानक इमरान को ऐसा लगा जैसे वो वहाँ अकेला नहीं है. ये उसका सिक्स्त सेन्स थी जिस ने उसे बार बार बड़े बड़े ख़तरों से बचाया था.

वो बड़ी तेज़ी से ढलान मे रेंग गया. एक दरार थी जिस मे वो रेंगता हुआ नीचे जा रहा था. फिर वो रुक गया. सोचने लगा हो सकता है केवल शंका ही हो.

इन दिनों बिल्कुल जानवरों जैसी ज़िंदगी हो रही थी. मस्तिष्क ढंग से सोच भी नहीं सकता था. और फिर हालात कुच्छ ऐसे थे कि कुच्छ सोचना भी बेकार ही था. उस के दुश्मन उसे लाए थे. और फिर इस तरह छोड़ दिया था कि मौत को भी तलाश करने मे कठिनाई हो.......क्या बोघा पागल ही था?"

लेकिन वो जाली नोट जिस ने रॉबर्टू को पोलीस के चक्कर मे फँसा दिया था. तो फिर इतनी ही सी बात केलिए बोघा ने उसे और उस के साथियों को वहाँ से लाने का कष्ट उठाया था. और खुद अपने काई आदमियों को मुफ़्त मे फंस्वा दिया था. इमरान यही सब सोचता हुआ दरार मे चित्त लेट गया.

एक बार फिर उसे महसूस हुआ जैसे उस ने करीब ही किसी तरह की आवाज़ सुनी हो. जिस जगह वो लेटा हुआ था वहाँ दरार की गहराई 2 फीट से अधिक नहीं थी. अचानक उपर से उसे किसी की खोपड़ी दिखाई दी. कोई दरार मे झाँक रहा था. दूसरे ही पल इमरान के दोनों हाथ उठे और उस ने बड़ी मज़बूती से झाँकने वाली गर्दन पकड़ ली.

"फादर........जोशुवा....." शिकार के कंठ से मुश्किल से ये आवाज़ निकली.......और इमरान ने जोसेफ की आवाज़ पहचान ली.

"अबे......अंधेरे के बच्चे.....ये क्या करता फिर रहा है?" इमरान ने अपनी पकड़ ढीली करता हुआ धीरे से कहा.

"हाएन्न.....अर्रे बॉस.....माइ गॉड.....तुम हो....!!" जोसेफ की आवाज़ मे चह्कार थी.

इमरान ने उसकी गर्दन छोड़ दी और उठ कर बैठ गया. जोसेफ भी दरार मे कूद आया.

"मिल गयी बॉस......" उस ने कहा...."आख़िर मिल ही गयी."

"क्या मिल गयी....?"

"शपलली...."

"सत्यानाश हो तेरा जोसेफ के बच्चे...." इमरान उसकी गर्दन फिर से दबोचता हुआ बोला. "वो लोग कहाँ हैं?"

"वो उन्हें ले गये बॉस...." जोसेफ दुखी लहजे मे बोला. "अच्छा ही हुआ.....भूकों तो ना मरेंगे. मैं तो वो जगह भी भूल गया........कल जहाँ फल खाए थे. मगर वो जगह मुझ से ना छोड़ी जाएगी जहाँ मैं ने शपलली के ढेर ही ढेर देखे हैं. आहह....बॉस....भूक के मारे मेरा दम निकल रहा है."

"हुन्न.....रूको..." इमरान ने चमड़े के थैले मे हाथ डालता हुआ बोला. वो उनके लिए फ्राइ फिशस और रोटियाँ लाया था. जोसेफ किसी भूके कुत्ते की तरह उस पर टूट पड़ा.

"वो किस तरह पकड़े गये?" इमरान ने पुछा.

"ओह्ह बॉस.....पहली बार तो हम बच गये थे. केवल मेरा सर फटा था. ओह्ह....कितना तेज़ दर्द है. ये शपलली भी अजीब चीज़ है बॉस. बस 2-3 पत्तियाँ चबा लो......ऐसा लगेगा जैसे सारी दुनिया जाग पड़ी है."

"आब्बे.....मैं पुच्छ रहा हूँ वो लोग कैसे पकड़े गये?"

"जैसे चूहे पकड़े जाते हैं. चारो तरफ से घेर कर पकड़ लिया. पहली बार हम सब निकल गये. दूसरी बार मैं ही निकल सका."

फिर उस ने बताया कि किस तरह भूक से बेताब हो कर उस ने मछलियाँ चुराने की कोशिश की थी और पकड़ा गया था और बाली ने
उसे मछुवारो से छुड़ाने की कोशिश की थी.....फिर कैसे वो खुद ही निकल भागा.

"और उस समय बॉस...." उस ने ब्रेड हलक से नीचे उतारते हुए कहा...."तुम्हारे सितारे बहुत अच्छे थे कि मैने तुम पर हमला नहीं किया. बहुत देर से तुम्हारा पिच्छा करता रहा था. बस यही सोच रहा था की शायद किसी ऐसी जगह ले जाए जहाँ कुच्छ खाने पीने को मिल सके."

इमरान कुच्छ ना बोला. जोसेफ के मूह से निकलने वाली 'चपर चपर' सुनता रहा. वो जब खाने बैठता था तो उस के मूह से ऐसी ही
आवाज़ें निकलती थीं जैसे अकेला वही नहीं बल्कि उसका पूरा कबीला खाना खा रहा हो.

इमरान..........सफदार, चौहान और जूलीया के बारे मे सोच रहा था. अगर बोघा के साथ केवल अपने जाली नोट ही ट्राइ करना चाहते थे तो
वो तो हो चुका था. अब इस पकड़ धकड के क्या मतलब?

कुच्छ देर बाद उस ने जोसेफ से पुछा "खा चुके?"

"हां बॉस.....अब प्यास लगी है."

"उठो और मेरे साथ चलो." इमरान ने कहा.

सुतरां के घर के सिवा वो उसे कहाँ ले जाता.

***

(जारी)
 
जोसेफ मकान की बाउंड्री से बाहर नहीं निकल सकता था........और निकलने की ज़रूरत भी क्या थी.....जब की शपलली की भी ज़रूरत बाकी नहीं रही थी. क्यों कि सुतरां के पास भी मकाय की शराब का बड़ा सा भंडार था. अगता अपने बाप से छुप कर उसके लिए शराब निकालती रहती थी. लेकिन वो एक दूसरे से बात नहीं कर सकते थे. क्यों की अगता फ्रेंच ही बोल सकती थी और जोसेफ इंग्लीश, अरबिक या फिर अपनी मदर टंग आफ्रिकन ट्राइब्स वाली बोली.

हलाकी वो फ्रेंच नहीं समझता था लेकिन ये तो देखता ही था कि इमरान अगता जैसी आदी तिर्छि आँखें रखने वाली औरत पर क़ुरबान हुआ जा रहा है. उस का मूह हैरत से खुल जाता. वो जानता था कि इमरान को औरतों और लड़कियों की थोड़ी सी भी परवाह नहीं होती. जूलीया जैसी खूबसूरत लड़की का हाल देख ही चुका था. मगर ये औरत.....अगता, उस मे आँखों की सब से क्लियर खराबी के अलावा था ही क्या? लेकिन इमरान के अंदाज़ से ऐसा लगता था जैसे वो अब तक उसी के नाम पर कुँवारा बैठा रहा हो.

मिकेल के बारे मे उसे पता तब चला जब उसे दिन का खाना दिया जा रहा था......और वो अगता पर चिंघाड़ने लगा था. उस ने क्या कहा था ये तो उस की समझ मे नहीं आ सका......लेकिन लोहे की सलाखों के पिछे उस ने दो ऐसी आँखें ज़रूर देखी थीं जिन से खून टपक रहा था.
जो किसी क़ातिल ही की आँखें हो सकती थीं.

"ये कॉन है बॉस?" उस ने इमरान से पुछा.

"अगता का हज़्बेंड." इमरान ने उत्तर दिया.

"होली फादर.......!! जोसेफ की आँखें हैरत से फैल गयीं.

"क्यों.....? तुम्हारा दम क्यों निकल गया?"

"वो पति को कमरे मे बंद कर के तुम से चुहल करती है बॉस. माइ गॉड....!!"

"मुझ से इश्क़ हो गया है उसे. इस लिए सब ठीक है. तुम्हें शराब और चाहिए?"

"क्या तुम्हें उस से घिन नहीं आती?"

"अब्बे....मुझे भी उस से इश्क़ हो गया है.....क्या बकता है."

"हाएन्न.....तुम्हें भी...??" जोसेफ उछल पड़ा...."नहीं बॉस...."

"क्यों नहीं.....?" इमरान ने आँखें निकालीं.

"ऐसी औरत जिस की आँखें......यानी कि.....मैं क्या कहूँ बॉस. शायद मेरा ही दिमाग़ खराब हो गया है."

"ज़रूर यही बात होगी. वरना ऐसी आँखें तो निकलवा लेने के लायक होती हैं. अबे....एक आँख से मुझे देखती है......और दूसरी से पति को.....दफ़ा हो जाओ."

"ज़रूर कोई जादूगरनी है." जोसेफ धीरे से बड़बड़ाता हुआ अपने रूम की तरफ चला गया.

इमरान को बहुत कुच्छ करना था. ज़रूरी था कि शहर की तरफ जाता......और बाली के ठिकानों का पता लगाने की कोशिश करता. सीधी बात है कि रॉबर्टू वाली घटना के बाद से पादरी स्मिथ वाली इमारत तो पोलीस की निगाहों मे आ गयी थी. इस लिए वो बाली के लिए बेकार ही हो गयी होगी.

एनीवे.....इमरान अपने साथियों के लिए परेशान था. पता नहीं बाली उन से कैसा बिहेव करे. अगर वो भी पोलीस के हवाले कर दिए गये तो उसे बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा. उन की रिहाई ही असंभव हो जाएगी.

अगता ने मिकेल के कपड़ों का बॉक्स उसके सामने रख दिया. इमरान ने एक सूट चुन तो लिया लेकिन वो सोच रहा था कि ज़रूरी नहीं
कि कपड़े उसके शरीर पर आ ही जाएँगे. मिकेल का कद उस से अधिक था.

मेक-अप का कुच्छ सामान उसके पास पहले से ही था.......और रिवॉल्वार के साथ ही थोड़े कारतूस भी थे. पादरी स्मिथ की कोठी से भागते हुए वो बस इतनी ही चीज़ें साथ ला सका था......और उन्हें हर समय पास ही रखता था. ये बॅग उस समय भी उसके कंधे से लटका हुआ था जब पिच्छले दिन उसने झरने पर से फल तोड़े थे.


(जारी)
 
मिकेल का सूट गनीमत साबित हुआ. जब वो मेक-अप कर चुका तो अगता ने हैरत से आँखें फाड़ कर कहा....."तुम ज़रूर भूत हो. ऐसा आदमी आज तक मैं ने नहीं देखा. क्या मुझे साथ नहीं ले चलोगे?"

"तुम कहाँ जाओगी......खेल बिगड़ जाएगा."

"बातें ना बनाओ. मेरी आँखों के कारण तुम्हें शर्म आएगी." वो रुँधे हुए स्वर मे बोली.

"आँखें.....! अर्रे वाहह.....तुम्हारी आँखें तो बड़ी क्लॅसिकल हैं. मैं ने कहीं पढ़ा है क्लियपॉट्रा भी एक साथ ईस्ट और वेस्ट देख सकती थी."

"मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो...."

"अर्रे.....तुम आँखों की परवाह क्यों करती हो? तुम जैसी चाहती हो वैसी ही हो जाएँगी. इस काम से निपटने के बाद मैं तुम्हें स्पेन ले चलूँगा. अल-हमर-पॅलेस का नाम सुना है तुम ने?"

"सुना है....मगर उस से क्या?"

"ओह्ह.....वहाँ बहुत कुच्छ है. प्रिन्स अबू बुलबुल ने वहाँ काले गुलाब का एक पौधा लगाया था.....जो आज भी है.....और हर तरह की आँखों के लिए फ़ायदेमंद है."

"पता नहीं क्या बक रहे हो."

"हां...........सब ठीक हो जाएगा." उस ने उसका दाहिना गाल थपथपा कर कहा "ज़रा इस काले की औलाद का ख़याल रखना......
और हां......तुम ने अभी तक मुझे यहाँ की करेन्सी नहीं दी....."

***
***


वो सब से पहले उस होटल मे आया जहाँ रॉबेरटु गिरफ्तार हुआ था. घटना अभी ताज़ा ही थी इस लिए उस के बारे मे जानकारी लेने मे कठिनाई नहीं हुई. रॉबेरटु जैल मे ही था. उसके बताने पर ही वो तिजोरी बरामद कर ली गयी थी जिस मे इमरान ने जाली करेन्सी के भंडार देखे थे. लेकिन रॉबेरटु की असलियत को पोलीस नहीं जान पाई थी. होती भी कैसे. रॉबेरटु भला कैसे बता देता कि वो कॉन है. उस पर चालीस आदमियों की हत्या का आरोप था. फ्रॅन्स की सरकार उसे इटली भिजवा देती......और फिर वहाँ उस के लिए फाँसी के फंदे के सिवा और क्या होता.

बाली और उस के साथी कहीं भी दिखाई नहीं दिए. लेकिन इतना तो उस ने पता कर ही लिया था कि बाली यहाँ के प्रतिष्ठित लोगों मे से है और एक बहुत शानदार बिल्डिंग मे रहता है. फिर उसे जंगल की उन रहस्यमयी आवाज़ों का ख़याल आया जो पिच्छली दो रातों से नहीं
सुनी गयी थीं......और आइलॅंड के लोगों पर इस का अच्छा प्रभाव पड़ा था. इमरान ने जगह जगह इसकी चर्चा सुनी. लेकिन साथ ही ये
पता चला की पोलीस ने इसकी छान बीन के लिए अपनी गतिविधि तेज़ कर दी है.

एक जगह उस ने एक टूरिस्ट को इसके बारे मे बात करने के लिए तैयार कर ही लिया. ये कोई अँग्रेज़ ही था. उस ने बताया कि पिच्छले एक माह से आइलॅंड मे रह रहा है.

"ये आवाज़ें मैं ने बहुत सुनी हैं." उस ने कहा "लेकिन यहाँ के लोग उसके बारे मे मूर्खता की हद तक सीरीयस दिखाई देते हैं. क्या आप यहाँ आज ही आए हैं?"

"नहीं कल." इमरान ने कहा "मैं साइप्रस से आया हूँ."

"पिच्छली दो रातों से वो आवाज़ें नहीं सुनाई दी." टूरिस्ट बोला. "शूकर है की पोलीस भी आम लोगों की तरह मूर्ख नहीं है."

"मैं समझा नहीं...."

"पोलीस का विचार है कि जंगल को किसी गैर क़ानूनी गतिविधि के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. इस लिए अब जब भी वो आवाज़ें सुनाई देती हैं.....आम आदमी तो घरों मे दुबक जाते हैं लेकिन पोलीस हरकत मे आ जाती है. वैसे अभी तक तो उन आवाज़ों का रहस्य नहीं हल हो सका. आज कल तो दिन मे भी पोलीस वहाँ गश्त करती रहती है."

"मैं ने किसी को कहते सुना है कि किसी पादरी....."

"ओह्ह हां.....स्मिथ का नाम सुनने मे आता है." टूरिस्ट ने कहा. "लेकिन वो है कहाँ. कुच्छ दिन पहले तक वो जंगल के निकट एक कोठी मे रहता था. बहुत दिनों से किसी ने उसे नहीं देखा. लेकिन परसों उस बिल्डिंग से करोड़ों के जाली करेन्सी नोट बरामद हुई है........और जिसे उस करेन्सी चलाते हुए पकड़ा गया था उसका बयान अजीब है. वो कहता है कि अपनी वाइफ के साथ किसी शिप मे सफ़र कर रहा था. उसे ज़बरदस्ती इस आइलॅंड मे उतार दिया गया. कुच्छ लोग उसे उस इमारत मे ले गये.......और वहाँ छोड़ दिया. दूसरी खबर ये है कि वो किसी जहाज़ मे सोए थे. आँख खुली तो उस इमारत मे पाया. मगर ये सब अफवाहें(गॉसिप) लगती हैं. अफीशियली उसके बयान को अप्रूव नहीं किया गया. लेकिन ये तो क्लियर है की स्मिथ कोई क़ानून से खेलने वाला अपराधी ही है."

उस टूरिस्ट से हुई बात चीत ने इमरान को नयी उलझन मे डाल दिया. अगर स्मिथ पर गैर क़ानूनी हरकत करने का संदेह किया जा रहा
था तो जाली नोट का किस्सा निकाल कर संदेह को बल क्यों दिया गया?

वो सोचता हुआ बाली की कोठी की तरफ चल पड़ा. चूँकि वो फेमस आदमी था इस लिए वहाँ तक पहुँचने मे कोई परेशानी नहीं हुई.

मेन बिल्डिंग के चारो तरफ काफ़ी एरिया मे 4-5 फीट उँची बाउंड्री थी. कॉंपाउंड मे प्रवेश के लिए 3 गेट थे. बाली की आर्थिक स्थिति सुतरां से कहीं अधिक अच्छी लग रही थी.

अचानक सामने वाले गेट से एक औरत निकलती हुई दिखाई दी जिस ने बड़े बेढंगे-पन से मेक-अप कर रखा था.......और उमर भी 40 से कम नहीं लग रही थी.

लेकिन उसके नैन-नक्श बुरे नहीं थे. उभरे हुए होंठ लिपस्टिक अधिक लगा लेने से ताज़ा गोश्त का लॉथरा जैसे लग रहे थे. फाटक से निकल कर वो कुच्छ ही दूर गयी होगी कि इमरान तेज़ी से उसकी तरफ लपका और इस तरह उस के सामने आ गया जैसे उस का रास्ता रोकना चाहता हो. औरत ठिठक गयी और हैरत से उसे देखने लगी.

"अर्रे.....तौबा.....होंठ ही हैं....!!" इमरान मूर्खता-पूर्ण ढंग से बर्बदाया.....और उसके चेहरे पर शर्मिंदगी ही शर्मिंदगी थी.

"क्या बकवास है.....?" औरत ने उसे उपर से नीचे तक घूरते हुए कहा.

"ओह्ह....म्म...मेडम...स...सॉरी....." इमरान हकलाया "मुझे दूर से ऐसा लगा जैसे आप दाँतों मे सुर्ख गुलाब दबाए हुए हों. ओह्ह.....मैं
कितना गधा हूँ."

"ह्म..." औरत होंठ भींच कर मुस्कुराइ. उसकी आँखों मे शरारत की झलकियाँ थीं. "सचमुच गधे ही लगते हो...."

"हूँ ना...?" इमरान ने ठंडी साँस ली. "थॅंक्स गॉड कि आप ने स्वीकार कर लिया........वरना कोई भी इस भरी पूरी दुनिया मे मेरे गधेपन पर विश्वास करने को तैयार नहीं."

"कहाँ से आए हो?"

(जारी)
 
"जिबरल्तेर से.....डॉन धिमप नाम है." इमरान ने उत्तर दिया.

"ओह्ह.....स्पैनी हो....?"

"एस सेनूरा.....सुर्ख गुलाब मेरी कमज़ोरी है. आइ आम रियली सॉरी...." इमरान उसके सम्मान मे झुका.

"तुम ने अन्नेसेसरी मेरा टाइम वेस्ट किया." औरत फिर मुस्कुराइ.

"मैं एक बार फिर माफी चाहता हूँ सेनूरा."

"तुम झूठे हो....सॉफ सॉफ बताओ क्या चाहते हो?"

"अब तो मैं केवल ये चाहता हूँ कि आप मुझे गोली मार दें. मेरे लिए इसकी कल्पना भी कष्ट-दायक है कि मेरे कारण आपका समय नष्ट हुआ."

"बिल्कुल झूठे हो..." औरत उंगली उठा कर हँसी. "तुम बाली का अक्वेरियम देखने आए हो......जो लटोशे की एक बहुत फेमस चीज़ है."

"उम्म....ब्ब...." इमरान केवल हकला कर रह गया. फिर मूर्खों की तरह हँसने लगा.

"झूठ कह रही हूँ.....या अब भी दाँतों मे गुलाब दबा रखा है? गधे कहीं के.....तुम्हें झूठ बोलना भी नहीं आता. चलो तुम्हें
अक्वेरियम दिखाउ.......लेकिन एक शर्त है......तुम मुझे स्पेन की कहानियाँ सूनाओगे."

"ज़रूर....ज़रूर....सेनूरा. मुझे स्पेन की अनगिनत कहानियाँ याद हैं. स्पेन गीतों और कहानियों का देश है."

इमरान को आशा नहीं थी कि इतनी आसानी से वो बाली के कॉंपाउंड मे प्रवेश कर सकेगा. उस ने तो बस यूँ ही अंधेरे मे एक तीर फेंका था. और फिर वो एक ऐसे द्वीप की बात थी जहाँ फ्रेंच कल्चर की छाया थी. वरना अगर कहीं उस ने अपने देश की किसी औरत के दाँतों मे गुलाब देखने की कोशिश की होती तो खुद उसके दाँत शायद तोड़ दिए जाते.

औरत उसे कॉंपाउंड मे लाई.

"अक्वेरियम की देख भाल मैं ही करती हूँ." औरत कह रही थी. "बाली का शौक तो केवल चार दिन का होता है. मछलियाँ पाल लीं और
फिर उसे भूल गया. बहुत बड़ी राशि खर्च हुई है इन मछलियों पर. यहाँ दुनिया भर की मछलियों की प्रजाती मिल जाएँगी."

"तो मैं आप को मेडम बाली के नाम से संबोधित करूँ सेनूरा?"

"अर्रे नहीं........हुशटत.....वो मेरा सौतेला बेटा है."

"ओह्ह....आइ आम सॉरी मेडम."

वो उसे इमारत मे लाई और फिर वो उस बड़े कमरे मे पहुँचे जहाँ शीशे के बड़े बड़े बॉक्स मे रंगा-रंग मछलियाँ तैर रही थीं.

इमरान ने शुद्ध बचकाना अंदाज़ मे खुशी ज़ाहिर की. औरत शायद अंदाज़ लगाने की कोशिश कर रही थी कि वो सच मुच ऐसा है या बन रहा है. लेकिन उसे इमरान की आँखों मे सादगी, मासूमियत और बेवकूफी के अलावा और क्या मिलता.

"केवल टूरिज्म के मकसद से आए हो?"

"हां सेनूरा.....लटोशे....हाए.....जन्नत का टुकड़ा है. मुझे बहुत पसंद आया. अगली बार अपने बाप को भी लाउन्गा."

"बाप....?" औरत ने हैरत से कहा.

"हां.....मेरा एक बाप भी है."

"बस......एक ही?" औरत ने हैरत भरी गंभीरता से कहा.

"हां.....फिलहाल तो एक ही है." इमरान ने मूर्खों की तरह उत्तर दिया. फिर खिसियानी हँसी हंसता हुआ बोला...."मैं भी कितना गधा हूँ."

"मुझे हैरत है कि तुम जैसे आदमी को तुम्हारे बाप ने अकेला कैसे आने दिया."

"नहीं आने देता....मगर मैं ने भी शादी कर लेने की धमकी दे दी थी."

"क्या मतलब....? मैं समझी नहीं."

"वो जब भी गुस्सा होता है शादी कर लेने की धमकी देता है. इस बार मैं ने भी यही धमकी दी थी. इस लिए चुप हो गया. वरना कभी
मुझे अकेला सफ़र करने नहीं देता. वही तो सब से कहता फिरता है कि मैं बिल्कुल गधा हूँ."

वो अक्वेरियम देख चुका तो औरत ने एक नौकर को आदेश दिया कि लॉन पर चाइ के लिए मेज़ लगाई जाए. फिर इमरान से बोली, "अब तुम मुझे स्पेन की कहानियाँ सूनाओ."

"ज़रूर सुनाउन्गा सेनूरा...." इमरान ने कहा. वो सोच रहा था कि बाली ने अपने कैदियों को इस इमारत मे तो हरगिज़ नहीं रखा होगा. वो थोड़ी देर तक पोर्च मे खड़े रहे फिर लॉन की तरफ बढ़े. एक घने पेड़ के नीचे एक मेज़ और टीन चेर्स डाली गयी थीं.

"बैठो..." औरत ने मुस्कुरा कर कहा. "मुझे पता है कि स्पैनी गधे हरियाली को बहुत पसंद करते हैं. अगर उनका वश चले तो अपनी खोपड़ियों मे भी घास उगा लें."

"आइडिया...." इमरान मेज़ पर हाथ मार कर उछल पड़ा. कुच्छ देर मूह खोले और आँखें फाडे उसकी तरफ देखता रहा फिर बोला..."मैं ज़रूर कोशिश करूँगा. स्पेन मे अपने तरह का एक अलग ही काम होगा."

"क्या.....?"

"खोपड़ी पर हरियाली उगाना." इमरान सर पर हाथ फेरता हुआ बोला. थोड़ी सी मिट्टी जमाई.....और बीज डाल दिए. डेली थोड़ा थोड़ा सा पानी देते रहे. इस नये विचार के लिए मैं आप का आभारी हूँ मेडम."

"मगर इस का ख़याल रखना कि कहीं दूसरे गधे तुम्हारी खोपड़ी पर मूह ना मारने लगें." औरत ने हंस कर कहा.

"हां.....ये बात तो है...." इमरान ने चिंता भरी आवाज़ मे कहा और उदास दिखाई देने लगा.

कुच्छ देर तक खामोशी रही फिर खुद ही चौंक कर बोला. "अभी क्या बातें हो रही थीं?"

"तुम स्पेन की कोई कहानी सुनाने वाले थे."

"ओ...हां....जी हां....सदिया बीतीं....अल-हमरा के महल की दीवारें उस बुद्धिमान बकरे की आवाज़ों से गूंजते रहते थे..."

"इमरान ने किसी बकरे की तरह ही दो तीन बार आवाज़ें निकालीं और औरत झुंजला कर चारों तरफ देखती हुई बोली "ये क्या शुरू कर दिया तुम ने?"

"स्टाइल सेनूरा..." इमरान ने गंभीरता से कहा. "अल-हमरा के गाइड इस तरह कहानियाँ सुनाते हैं जिस तरह रेडियो पर साउंड एफेक्ट देने वाले झक्क मारने की आवाज़ देने से भी नहीं चूकते. इसी तरह अल-हमरा के गाइड कहानियाँ सुनाते समय कभी घोड़े बन जाते हैं कभी गधे और कभी बकरे."

"मगर तुम इस बात का ख़याल रखो कि तुम इस समय एक सिविलाइज़्ड आदमी के घर पर हो."

"ख़याल रखने की आवाज़ इस तरह पैदा करते हैं." इमरान ने कहा और अपने सर पर दोहत्थड मारने लगा.

"अरे....अरे....तुम्हारा दिमाग़ तो नहीं खराब हो गया?"

"और दिमाग़ खराब होने की आवाज़...." इमरान खड़ा हो गया "बताऊ दिमाग़ खराब होने की आवाज़....?"

"मैं नौकरों को पुकार लूँगी...." औरत उठ कर पिछे हटती हुई डरी हुई आवाज़ मे बोली......और इमरान हंसता हुआ बैठ गया......और इस तरह सुकून से बैठा की कोई बात ही नहीं हुई हो.

औरत आँखें फाडे हैरत से उसे देखती रही फिर बोली....."जाओ.....यहाँ से चले जाओ."

"चाय अभी तक नहीं आई." इमरान ने बड़े भोलेपन से कहा. "बैठ जाइए हां तो मैं ये कह रहा था कि उन दिनों गार्नाता पर प्रिन्स अबू-बुलबुल की हुकूमत थी. जो दिन रात तबला बजाता रहता था. उस के पास एक ऐसा बुद्धिमान बकरा था......बैठ जाइए ना.....आप तो खफा हो गयीं
. हम स्पैनी ऐसे ही गधे होते हैं. आइए...."

औरत कुच्छ बड़बड़ाती हुई फिर आ बैठी. उस की आँखों मे उलझन के भाव थे.

"हां....तो उस बुद्धिमान बकरे की ये विशेषता थी कि जब की किसी दिशा से कोई आक्रमण कारी गारनता पर चढ़ाई करता.....वो उसी दिशा मे मूह उठा कर चीखने लगता. लेकिन प्रिन्स के कान पर जूँ नहीं रेंगती. तब फिर वो बेचारा अपने शरीर से बड़ी मुश्किल से एक जूँ
तलाश कर के निकालता और प्रिन्स के कान पर छोड़ देता. फिर जैसे ही प्रिन्स के कान पर जून रेंगती .....वो तबला छोड़ कर सारंगी उठा लेता. और बकरा उस पर कृीताग्यता दिखाते हुए भूत काल अलापने लगता."

"बस करो...." औरत हाथ उठा कर बोली. "पता नहीं तुम किस प्रकार के आदमी हो."

"मेडम....मैं एक दुखी आदमी हूँ. अकेलापन और उदासी केवल मेरे लिए बनी हैं. मैं सुंदर औरतों से इसी तरह जान पहचान करने की कोशिश करता हूँ. कुच्छ देर बैठने से गम ग़लत होते हैं. थोड़ी देर के लिए मैं भूल जाता हूँ कि इस संसार मे मैं अकेला हूँ." उसकी आवाज़
थरथराने लगी और आँखों मे आँसू छलक आए. वो कहता रहा "अगर मैं ने आप का समय नष्ट किया....तो मैं माफी चाहता हूँ.......मैं जा रहा हूँ."

वो उठ गया.....साथ ही दो आँसू गालों पर धलक आए.

"अर्रे....नहीं मोस्सीओ पिंप...." औरत नर्वस हो गयी.

"पिंप नहीं धिमप...." इमरान ने हिचकी लेते हुए सही किया.

"बैठिए....बैठिए......मैं पहले ही समझ गयी थी कि आप इस तरह केवल परिचय हासिल करना चाहते हैं."

"आप कितनी अच्छी हैं....." इमरान भर्राई हुई आवाज़ मे कहा और बैठ गया.

"तुम अकेले क्यों हो?"

इमरान के अकेलेपन के किस्से के बीच चाइ आ गयी. चाइ पीते हुए इमरान इधर उधर की बाते करता हुआ बोला...."बड़ा सुंदर गार्डन है."

"अगर कोई स्पैनी तारीफ करे तो सच मूच सुंदर होगा." औरत मुस्कुराइ.

"बहुत सुंदर सेनूरा.....और वो भी केवल इस लिए कि आप इस गार्डन मे हो.....आप हट जाइए तो इसकी सुंदरता जाती रहे."

"बाते बनाना तो कोई स्पैनियों से सीखे." औरत झेन्पते हुए अंदाज़ मे हंस पड़ी.

इमरान ने उसे बातों मे उलझा कर टहलने पर राज़ी कर लिया. वो टहलते हुए बिल्डिंग से दूर वाले भाग मे आ गये.....जहाँ चारों तरफ
उँची उँची झाड़ियाँ थीं......और बाउंड्री वॉल भी एकदम निकट थी.

"अर्रे.....अर्रे....." अचानक औरत उछल पड़ी. लेकिन फिर उसके कंठ से कोई भी आवाज़ नहीं निकली. क्योंकि इमरान का एक हाथ उसके मूह पर था और दूसरे से वो उस की गर्दन दबा रहा था......लेकिन उस ने गर्दन पर इतना ही ज़ोर डाला की वो केवल बेहोश हो जाए.

उस ने उसे बहुत धीरे से ज़मीन पर डाल दिया और तेज़ी से उसका पर्स खोल डाला. कुच्छ ही देर बाद खाली पर्स बेहोश औरत के करीब पड़ा
हुआ था और इमरान बाउंड्री वॉल पर चढ़ कर दूसरी तरफ उतर रहा था.


(जारी)
 
इमरान अगता के घर पहुँचा तो पता चला; कि सुतरां सुबह से गायब है. उस के आदमियों मे से किसी को भी मालूम नहीं था कि वो कहाँ होगा.

"कल बाली का खामोश रह जाना मेरी समझ मे नहीं आ सका था." अगता ने कहा. "पापा निश्चित रूप से ख़तरे मे होंगे. मैं क्या करूँ?"

इमरान ने तुरंत उत्तर नहीं दिया. थोड़ी देर कुच्छ सोचता रहा फिर बोला "अगर मैं मोस्सीओ मिकेल की थोड़ी मरम्मत कर दूं तो तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा?"

"क्यों....? मिककेल क्यों...? मैं समझी नहीं."

"अभी मैं तुम्हें समझा भी नहीं सकता."

"तुम क्या करोगे?"

"अगर ज़रूरत पड़ी तो उस की पिटाई भी करूँगा."

"नहीं...." अगता ने हैरत भरे स्वर मे कहा. "लेकिन पापा की गुमशुदगी से उस का क्या संबंध?"

"चिंता मत करो.....मैं संबंध पैदा कर लेने का स्पेशलिस्ट हूँ. अभी केवल नौकरों को बाहर निकाल कर मेन गेट बंद कर दो."

"तुम उसे मारोगे?"

"ओह्हो.....बहस मत करो....अगर पापा को ज़िंदा देखना चाहती हो."

नौकर सब बाहर ही थे. अगता ने मेन गेट बंद कर दिया. इमरान ने जोसेफ को मेन गेट के निकट ही छोड़ा और वॉर्निंग दी कि कोई
अंदर आने ना पाए. हां अगर आने वाला सुतरां हो तो गेट खोल दिया जाए. फिर उस ने अगता से कहा "तुम किचन मे जाओ हनी...."

"क्यों?"

"क्या तुम उसे मार खाते देखना चाहती हो?"

"लेकिन क्यों मारोगे? बताओ......मुझे भी तो बताओ."

"ज़रूरी नहीं कि मारना ही पड़े. लेकिन अगर ज़रूरत पड़ी."

"मैं भी चलूंगी..."

"ह्म....लेकिन किसी बात मे दखल नही दोगि."

"मारना मत."

"इसी लिए कहता हूँ वहाँ मत आना. कुंजी निकालो,"

"नहीं नहीं......"

"ओके.....तो फिर पापा को मुर्दा समझो."

"ये भी नहीं हो सकता. आख़िर बताओ ना तुम क्या सोच रहे हो? क्या समझ रहे हो? मिकेल से क्या मतलब? वो तो कल से ही बंद है. थोड़ी भी देर के लिए बाहर नहीं निकल सका."

"क्या मैं ने अभी तक तुम्हारा कोई नुकसान पहुँचाया है?"

"नहीं मैं कब कहती हूँ?"

"तो फिर मुझ पर भरोसा करो. जो कुच्छ कर रहा हूँ करने दो. और हां.....ये लो अपनी वो रकम जो मैं ने तुम से उधार ली थी." इमरान ने जेब से नोटों की एक गॅडी निकाली और गिन कर कुच्छ नोट उस की तरफ बढ़ाता हुआ बोला. "मैं अपना वो बॉक्स तलाश करने मे सफल हो चुका हूँ......जिस मे करेन्सी थी."

"मैं क्या करूँगी.....रखो. मैं ने तो क़र्ज़ नहीं दिया था."

"लेकिन मैं ने तो क़र्ज़ ही लिया था.....चलो जल्दी करो. कुंजी निकालो."

"चलो मैं भी चलती हूँ......दखल नहीं दूँगी."

"और अगर दिया तो समझ लो मेरा गुस्सा बड़ा खराब है. पिच्छले साल मैं किसी बात पर गुस्सा हो कर चाइ के तीन चार सेट चबा गया था."

"हँसने को दिल नहीं चाहता लेकिन तुम हंसा देते हो." वो फीकी सी हँसी के साथ बोली.

कमरे की खिड़की के पास एक स्टूल पर एक केरोसिने लॅंप रखा हुआ था. जिस से कमरे मे भी रौशनी थी. लॅंप अंदर रखने के लिए कमरा खोलना पड़ता.

अगता को खिड़की के पास देख कर मिकेल चिल्लाने लगा. वो इमरान को भी गालियाँ दे रहा था.

इमरान ने जैसे ही गेट खोला.....मिकेल ने उस पर छलान्ग लगाई. लेकिन इमरान ने डोज दे कर खोपड़ी से उस के सीने पर इतना ज़ोर
से ठोकर मारी कि वो चिंघाड़ता हुआ दूसरी तरफ उलट गया.

अगता भी लॅंप उठाए कमरे मे घुस आई.

"मिकेल दीवार से लगा बैठा गालियाँ दे रहा था.

"इस समय मैं बहुत गुस्से मे हूँ मोस्सीओ मिकेल. इस लिए थोड़ा नर्म टाइप की गालियाँ इस्तेमाल करो." इमरान ने हाथ उठा कर कहा. "और मैं ये भी नहीं चाहता की मेडम अगता की मौजूदगी मे......."

"चले जाओ यहाँ से......वरना दोनों की जान ले लूँगा." मिकेल कंठ फाड़ कर दहाडा.

"लेकिन उस से पहले बताना पड़ेगा कि तुम्हें कोकीन कहाँ से मिलती है?"

"कोकीन....?" मिकेल और अगता के मूह से एक साथ निकला.

"हां....कोकीन. ये बात कम से कम मुझ से नहीं छुप सकती.......कि तुम कोकीन के आदि हो."

"मिकेल थोड़ी देर कुच्छ सोचता रहा फिर उसके कंठ से कुच्छ बे-मानी किस्म की आवाज़ निकलने लगी. शायद अत्यंत गुस्से के लिए उसके पास कोई शब्द नहीं बचे थे.

"कोकीन......ये तुम क्या कह रहे हो?" अगता ने कहा.

"ओ....कुतिया...." मिकेल गुर्राया "मैं सब समझता हूँ.....तू मुझे जैल भिजवा कर ऐश करना चाहती है."

"होश मे रहो मिकेल.....मैं कहे देती हूँ....."

"कहाँ है सुतरां......बुलाओ उस बेशरम को." मिकेल चिल्ला कर बोला.

"तुम लॅंप खिड़की पर रख दो और जोसेफ को यहाँ भेज कर खुद मेन गेट के निकट ठहरो." इमरान ने अगता से कहा.

"ओके.....जो जी चाहे करो....मैं दखल नहीं दूँगी. सुन रहे हो इस कमीने की बातें."

वो लॅंप रख कर चली गयी.


(जारी)
 
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