Hindi Porn Story चीखती रूहें - SexBaba
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Hindi Porn Story चीखती रूहें

hotaks444

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चीखती रूहें

जुलीना फिट्ज़वॉटर ने एक लंबी अंगड़ाई ली और उठ कर उस कमरे की तरफ चल पड़ी जहाँ लीज़ी और रॉबर्टू थे.


वो एक थका देने वाला दिन था जो जंगलों के पिछे सन-सेट के साथ दम तोड़ रहा था. जूलीया सोच रही थी कि रात शायद इस से भी
अधिक थका देने वाली होगी. जब कोई काम ना हो तो शंकाएँ और बेचैनी ही इस तरह थका देती हैं जैसे किसी पहाड़ की छोटी पर चढ़ना पड़ा हो.

अकेले जूलीया ही नहीं सभी चिंताग्रस्त थे. वो नहीं जानते थे कि रात किस तरह बीतेगी. दिन तो इस तरह बीता था कि वो हर पल इमरान की वापसी का इंतेज़ार करते रहे या किसी बड़ी घटना के.

बाली और उसके साथियों के गायब हो जाने के बाद भी उन लोगों का उसी बिल्डिंग मे रुके रहना हर एक के लिए बहुत बड़ी उलझन बन गया था.

इमरान चाहता क्या है?

"मैं पूछती हूँ आख़िर बोघा चाहता क्या है?" जूलीया ने रॉबर्टू से पुच्छा,


"वो अपने दुश्मनों को इसी तरह पागल बना देता है." रॉबर्टू ने कहा. "अब यही देखो कि हमें किस तरह अपने जाल मे फांसा और वहाँ
से निकाल लाया. अब वो चाहता है कि हम पागल हो कर कुत्तों की तरह भोंकने लगें."

"यानी.....बस इतना ही मकसद है?"

"निश्चित...."

"मैं इसे नहीं मान सकती. जो लोग हमारी क़ैद से निकल सकते हैं......वो पिच्छली रात हमें क़त्ल भी कर सकते थे. बाली और उसके साथियों ने आज़ाद होने के बाद हम पर हमला क्यों नहीं किया?"

"बोघा को समझना आसान नहीं है.....मैं फिर यही कहूँगा."

"हमारा वो सारा सामान भी मौजूद है जो साहिल पर रह गया था. वही लोग उसे यहाँ तक लाए होंगे."

"हां हां.....पहले भी तो इमरान और सफदार बोघा के क़ैदी रह चुके हैं. क्या उस ने उन्हें मार डाला था? अर्रे वो तो केवल काम लेना जानता है. उस ने उन लोगों से साधारण मज़दूरों की तरह पत्थर ढूलवाए थे. तुम्हें ये सुन कर हैरत होगी कि उस के मज़दूरों मे कयि बहुत ज़्यादा पढ़े लिखे लोग भी थे. यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर, टॉप जर्नलिस्ट और साइंटिस्ट्स."

"एनीवे......उस ने उन्हें ज़िंदा रख कर किसी प्रकार का लाभ उठाया था." जूलीया ने कहा.

"लीव इट..." रॉबर्टू ने अपने ग्लास मे रूम डालते हुए कहा. "जो कुच्छ भी है सामने आ जाएगा."

जूलीया की उलझन और बढ़ गयी. इमरान सुबह ही से गायब था. लेकिन उस ने उन्हें चेतावनी दी थी कि वो इमारत की अंदर तक ही सीमित रहें. उस के इस सजेशन का भी पालन किया गया था कि वो बोघा के उन आदमियों के मेक अप में आ जाएँ......जो उन्हें इस इमारत तक लाए थे.
 
इमरान एक शिप मज़दूर के वेश मे बाहर गया था.

"वो ज़रूर ठोकर खाएगा." रॉबर्टू 2-3 घूँट लेने के बाद कहा.

"क्या तुम इमरान के बारे मे कह रहे हो?" जूलीया ने उसे तीखी निगाहों से देखते हुए पुछा.

"हां....मैं उसी के लिए कह रहा हूँ."

"आज तक किसी ने भी उसे ठोकर खाते नहीं देखा. जबकि मेरा विचार है कि वो केवल ठोकर लगाने के लिए पैदा हुआ है.....क्या समझे?"

जूलीया ने उस की आँखों मे घृणा भरा व्यंग देखा और उस की झुंजलाहट पहले से भी अधिक बढ़ गयी. लेकिन वो उस नमकूल आदमी से बहस करना नहीं चाहती थी.

"ये आइलॅंड...." रॉबर्टू शराब का ग्लास मेज़ पर रखता हुआ बोला..."वैसा नहीं है जैसा हमारा था. यहाँ बोघा के आदमियों को छुप कर
काम करना पड़ता होगा. अगर ये बात ना होती तो वो लोग अपनी राइफलें लॉंच मे ही क्यों छुपा आते?"

"इमरान पहले ही इस बात पर गौर कर चुका है." जूलीया ने बेज़ारी से कहा.

"इस लिए वो कोई बड़ा तीर मार कर वापस आएगा."

"उसी बात का वेट करो...." जूलीया ने गुस्से से कहा और कमरे से बाहर आ गयी.




एक कमरे मे जोसेफ, सफदार और चौहान उंघ रहे थे. जोसेफ सुबह से ही पीता रहा था. इस ढंग से जैसे वो उस की ज़िंदगी का अंतिम दिन हो.

जूलीया की आहट पर वो चौंक पड़े.

"कोई खबर...?" सफदार ने पुछा.

"इमरान अभी तक वापस नहीं आया..." जूलीया ने कहा. उस की आवाज़ सुन कर जोसेफ भी जाग गया.

"उस ने चेतावनी दी थी कि कोई उसके आब्सेन्स मे बाहर नहीं निकले.....वरना मैं देखता." सफदार बोला.

"मेरी समझ मे नहीं आता कि बोघा चाहता क्या है."

"जब तक वो तीनो बॅरल भरे हैं मिसी...." जोसेफ पलकें झपका कर बोला. "वो हमारा कुच्छ नहीं बिगाड़ सकता.....तुम जा कर आराम करो..."

"ष्ह्ह्ह....खामोश रहो..." सफदार बोला. फिर जूलीया की तरफ देख कर बोला..."अगर वो एक घंटा और ना आया तो मैं निश्चित रूप से बाहर निकलूंगा..."

"रॉबर्टू क्या कहता है?" चौहान ने पुछा.

"उसे जहन्नुम मे झोंको...." जूलीया बुरा सा मुहह बना कर बोली. "वो नहीं समझता कि ये बालाएँ उसी के कारण आई हैं..."

"इमरान तो खुद ही इन बालाओं की खोज मे था."

"लेकिन रॉबर्टू के बिना हालात का रुख़ कुच्छ और होता."

"मतलब ये कि खुद उनका सफ़र करना उस सूरत मे ज़रूरी नहीं होता..." सफदार चौहान को आँख मार कर मुस्कुराया.

"फ़िज़ूल मत बको, मैं अपने लिए नहीं कह रही...." जूलीया झल्ला गयी.....और उसे वहाँ से भी चले आना पड़ा.

लेकिन जैसे ही अपने कमरे मे पहुँची गुस्सा ठंडा पड़ गया......क्योंकि इमरान एक ईज़ी चेयर मे बैठा कुच्छ सोच रहा था.

"तुम कब वापस आए?" जूलीया ने उसे घूरते हुए पुछा.

"अभी...." इमरान ने भर्रायि हुई आवाज़ मे कहा. उसके चेहरे से कुच्छ उदासी सी प्रकट हो रही थी.

"क्यों....क्या बात है?" जूलीया ने हैरत से कहा...."तुम इतने बुझे बुझे से क्यों हो?"

जवाब मे इमरान ने बॅस एक ठंडी से साँस ली और मूह चलाने लगा. उस के शरीर पर अब भी वही जहाज़ी मज़दूर वाला ड्रेस था.



(जारी)
 
(Jaari)




जूलीया उसे घूरती रही. कुच्छ देर बाद इमरान ने उस से पुचछा...."तुम्हारी फ्रेंच कैसी है?"

"क्यों...? मैं बिना किसी हिचकिचाहट के बोल सकती हूँ..."

"ये बहुत ही रौनक वाला आइलॅंड है. नाम है लटोशे.....एक छोटी सी एंटरटेनमेंट प्लेस समझ लो. आस पास के टूरिस्ट्स यहाँ काफ़ी संख्या मे आते हैं. लेकिन जिस इमारत मे हम बैठे हुए हैं.....ये यहाँ अच्छी निगाहों से नहीं देखी जाती. हालाँकि ये एक पादरी का ठिकाना है....
जो फादर स्मिथ के नाम से फेमस है. हॉल मे जो बड़ी सी तस्वीर है मेरा विचार है कि उसी फादर स्मिथ की हो सकती है......लेकिन समझ
मे नहीं आता की होली फादर आसमान पर उठा लिए गये या छुट्टी पर हैं."

"कोई सर पैर है इन बातों का?"

इमरान फिर किसी सोच मे पड़ गया.

"मेरी समझ से अब तुम्हें कोई राह दिखाई नहीं दे रही." जूलीया ने कुछ देर बाद कहा.

"सुनो..." इमरान ने उंगली उठा कर इस तरह कहा जैसे उस ने जूलीया की बात सुनी ही ना हो. "इस आइलॅंड मे रहना इतना कठिन नहीं है जितना यहाँ से निकल जाना. बंदरगाह से निकल आने के बाद फिर कोई नहीं पुछ्ता....चाहे तुम सारी उमर यहीं गुज़ार दो. हां....लेकिन बंदरगाह पर कड़ी चेकिंग होती है."

"तुम कहना क्या चाहते हो?"

"यही कि हम सबों का इसी इमारत मे पड़े रहना भी ज़रूरी नहीं है. हम मे से कुच्छ लोग होटेल्स मे भी रह सकते हैं."

"हम शायद वहाँ मुफ़्त रह सकेंगे." जूलीया के स्वर मे व्यंग था.

"आहा.....तुम्हें लोकल करेन्सी की चिंता है." इमरान मुस्कुराया. "क्या तुम ने वो तिजोरी नहीं देखी जिस मे फ्रेंच करेन्सी के ढेर हैं."

"नहीं.....मैं तो नहीं देखी." जूलीया ने हैरत से कहा.

"है एक कमरे मे.....जो शायद बेडरूम ही है."

"लेकिन वो करेन्सी नहीं ले गये."

"अगर वो ले जाते तो मैं उन्हें बहुत बड़ा गधा समझता."

"क्यों...?"

"अर्रे.....फिर हमारा काम कैसे चलता?"

"ईश्वर के लिए मुझे एक बात बता दो..."

"ह्म..." इमरान ने सवालिया निगाहों से उस की तरफ देखा.

"बोघा क्या चाहता है...?"

"अभी तो हमारी मौत के सिवा सब कुच्छ चाहता है."

"तुम किसी ख़ास नतीजे पर नहीं पहुँचे?"

"बिल्कुल नहीं...." इमरान हाथ उठा कर बोला. "दिमाग़ को उलझाने की ज़रूरत नहीं. बस ये समझ लो कि हम क्लाइमेट चेंज करने केलिए यहाँ आए हैं. हलाकी हर तरह की जलवायु खुद हमारे देश मे पाई जाती है.....लेकिन ये जो तब्दीली बिना किसी खर्च के मिल जाए वो भी क़ुबूल है."

"तुम दीवाने हो..."

"और तुम्हारे लिए मशविरा है कि तुम यहाँ की गली कूचों मे गाती फ़िरो....'कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को...'."

जूलीया दाँत पीस कर चुप हो गयी.

इमरान उठ कर चला गया. जूलीया चुप चाप बैठी रही. उस की उलझन दूर हो चुकी थी. और अब उसे महसूस हुआ कि उसकी उलझन का कारण केवल इमरान की अनुपस्थिति ही थी. फिर ना जाने क्यों वो इस अहसास के साथ दुबारा झल्लाहट मे डूब गयी. वो वहीं चेर मे बैठी बोर होती रही.

थोड़ी देर बाद इमरान फिर वापस आया.

"रॉबर्टू लीज़ी और चौहान यहीं रहेंगे." उस ने कहा.

जूलीया कुच्छ ना बोली. वो प्रकट कर रही थी जैसे उस ने सुना ही ना हो. इतने मे सफदार भी कमरे मे आ गया.

"रॉबर्टू यहाँ नहीं रहना चाहता." उस ने कहा.

"तो उस से कह दो नर्क मे जाए." इमरान ने लापरवाही से कहा. फिर पुछा..."तिजोरी की कुंजी तुम्हारे ही पास है ना?"

"हां....मेरे ही पास है. उस ने आपके इरादे जान कर कुंजी की माँग की थी."

"कुंजी उसे मत देना..." इमरान ने कहा और जूलीया की तरफ देख कर बोला "वो इस पर तैयार नहीं है कि पादरी स्मिथ की हैसियत से यहाँ ठहरे."

"नॅचुरल बात है..." जूलीया ने रूखे स्वर मे कहा. "मकसद जाने बिना कोई भी किसी काम पर तैयार नहीं हो सकता."

"मकसद के लिए अब मुझे शायद कुत्तों की तरह भोंकना पड़ेगा..." इमरान ने क्रोध भरे स्वर मे कहा...."अभी इसका यही मकसद है कि ये बोघा चाहता है.....और हमारे लिए भी इसके अलावा और कोई चारा नहीं है."

"वो ये चाहता है कि हम उसके आदमियों के वेश मे इस इमारत मे रहें...?"

"एग्ज़ॅक्ट....यही चाहता है...क्यों चाहता है? मैं नहीं जानता.....लेकिन ये भी ज़रूरी नहीं है कि देर तक अंधेरे मे रहूं. जल्दी ही किसी नतीजे पर पहुचूँगा. लेकिन ये उसी रूप मे संभव है जब वही किया जाए जो बोघा चाहता है."

"क्या उसे ये भी यकीन है कि जो वो चाहता है, तुम वही करोगे?"

"ना करने की स्थिति मे हमारे पास दूसरी राह कॉन सी होगी? मिस बुद्धिमान....?" इमरान ने शुष्क स्वर मे पुछा. लेकिन जूलीया जल्दी मे कोई उत्तर ना दे पाई.

"क्या तुम ये कहती फ़िरोगी कि तुम कॉन हो? या रॉबर्टू खुद को रॉबर्टू प्रकट करने की हिम्मत कर सकेगा? ये ना भूलो कि आज भी युरोप की पोलीस उसे पा कर बहुत बड़ी उपलब्धि समझेगी. ना हम अपनी असलियत ज़ाहिर करने की मूर्खता कर सकते हैं और ना ही रॉबर्टू ही
फाँसी का फँदा चुनेगा. अभी वो केवल बोखलाया हुआ है. और उसे अगर मारना ही है तो हम किस तरह रोक सकेंगे?"

"तुम कितनी बेदर्दी से उसके बारे मे कह रहे हो?"

"येस.....अब उस से मेरा इंटेरेस्ट समाप्त हो चुका है. ज़ाहिर है मैने उसे केवल इस नीयत से रोका था कि बोघा की तलाश मे वो एक
अच्छा सहायक साबित होगा. लेकिन बोघा ने खुद ही मुझे अपनी राह पर लगा लिया है. फिर अब मैं किसी चीर्चिड़े मुर्गे का बोझ क्यों
ढोता फिरू?"

"ये तो खुली हुई खुद-गर्जि हुई."

"आए........क्या तुम मेरी बीवी हो?" इमरान आँखें निकाल कर बोला.

"क्या बकवास है?"
 
"नहीं तुम ऐसी ही बातें कर रही हो जैसे हम यहाँ हनी-मून मनाने आए हों." इमरान बोला..."स्वार्थ और निस्वार्थ की कहानी निकाल बैठी हो. क्या तुम्हें सदाचार का प्रचार करने की सॅलरी मिलती है?"

जूलीया चिढ़ गयी और उठ कर कमरे से बाहर चली गयी.

इमरान सफदार को आँख मार कर मुस्कुराया फिर बोला..."औरत कभी सीधे रास्ता पर नहीं आएगी चाहे उसकी मूच्छें ही क्यों ना उग आएँ..."

"इस समस्या पर तो मुझे भी विचार करना पड़ेगा कि रॉबर्टू को बेसहारा क्यों छोड़ दिया जाए?" सफदार ने कहा.

"होंठो पर लिपस्टिक और गालों पर सुर्खी लगा कर सोचना. अगर सोचते समय नाक पर उंगली भी रहे तो डाइजेशन सही रहेगा."
सफदार हंस पड़ा......और इमरान ने गंभीरता से कहा.


"तुम ने महसूस नहीं किया कि अब वो हर बात पर मेरा विरोध करने लगा है. इसी बात का लाभ उठाने के लिए मैं ने ये राय बनाई थी कि वो यहीं तारे और हम लोग किसी होटेल मे तारें."

"ओह्ह....तो आप खुद ही उसे बाहर भेजना चाहते हैं.....अलग करना चाहते हैं."

"एग्ज़ॅक्ट....तुम लोग ज़रा देर से समझते हो."

"लेकिन क्यों?"

"बस देखते जाओ.....वो खुशी से बाहर जाएगा. ये ना समझो कि वो हमारा वफ़ादार ही रहेगा. इसलिए क्यों ना इसी स्टेज पर उसका टेस्ट भी हो जाए."

"तो ये बात आप केवल मुझे बता रहे हैं?"


"एस्स.....और किसी तीसरे को भनक भी नहीं लगे."

सफदार कुच्छ कहने ही वाला था कि कॉरिडोर से कदमों की आवाज़ आई और अगले ही पल मे रॉबर्टू कमरे मे प्रवेश किया. उसका चेरा
लाल हो रहा था और नथुने फूल रहे थे.

"तुम मुझे कुर्बानी का बकरा बनाना चाहते हो?" वो हाथ उठा कर दहाड़ा.

"नहीं.....भेड़....बकरे मुझे पसंद नहीं हैं."

"मैं यहाँ नहीं रहूँगा.....तुम मुझे मजबूर नहीं कर सकते."

"क्यों शामत आई है रॉबर्टू? क्या तुम मुझ पर भरोसा नहीं करते?"

"मैं तुम लोगों से अलग रह कर तुम पर भरोसा कर सकता हूँ."

"फिर तुम क्या चाहते हो?"

"मुझे उस तिजोरी से कुच्छ रक़म चाहिए."

"सफदार ये जो कुच्छ माँगे....इसे दे दो..." इमरान ने सफदार की तरफ देखे बिना कहा,

"रॉबर्टू कुच्छ देर तक इमरान को घूरता रहा फिर सफदार के साथ कमरे से बाहर चला गया.


****

(जारी)
 


दूसरी सुबह जूलीया को इस बात पर ताओ आ रहा था कि स्कीम के खिलाफ रॉबर्टू और लीज़ी तो बाहर चले गये थे......और वो लोग अभी तक वहीं रुके हुए थे. कुच्छ देर बाद उसे पता चला कि चौहान भी गायब है......और एक बार फिर इमरान पर बरस पड़ी.

कहने की बात भी थी. यूँ भी क्या....खुद ही स्कीम बनाई और अब वो इस तरह ख़तम हो गयी थी जैसे प्रेज़ेंट सिचुयेशन असली स्कीम का ही परिणाम हो. इमरान खामोशी से उस का बक बक सुनता रहा. फिर बड़ी गंभीरता से बोला.

"तुम बहुत हसीन हो. मैं पिच्छली रात पौने तीन घंटे तक केवल तुम्हारे बारे मे सोचता रहा था...."

"मत बकवास करो." जूलीया दहाडी.

"ओके.....तुम बहुत ही बद-सूरत हो. मैं तुम्हारे बारे मे पौने तीन मिनट भी नहीं सोच सकता.

"मेरी बात का जवाब दो. मैं क़ैदियों जैसी ज़िंदगी नहीं गुज़ार सकती. मैं बाहर जाउन्गि."

"और साथ ही फ्रेंच करेन्सी का भी डिमॅंड करोगी......क्यों?"

"ज़ाहिर है...." जूलीया आँखें निकाल कर बोली.

"तिजोरी की कुंजी मेरी जेब मे है.....निकाल सकती हो तो निकाल लो...."

इस बार जूलीया के कंठ से आवाज़ ना निकल सकी. बस वो दाँत ही पीसती रही.

"मुझे देखो....." इमरान ने कुच्छ देर बाद ठंडी साँस ली....."चुन्गम तक नहीं खरीद सकता."

"अच्छा.....जाओ यहाँ से निकलो. मैं तन्हाई चाहती हूँ." जूलीया ने हाथ हिला कर कहा.

इमरान कुच्छ देर खड़ा शरारत भरी निगाहों से देख कर मुस्कुराता रहा फिर उस के कमरे से निकल आया.

सफदार अपने कमरे मे उंघ रहा था. और जोसेफ किचन मे मसूर की दाल उबाल रहा था. क्योंकि उन्हें यहाँ मसूर की डाल और चावल के सिवा कुच्छ नहीं मिला था. और ये इतनी बड़ी मात्रा मे थे की वो आसानी से एक महीना काट सकते थे.

जोसेफ का विचार था की पॅक्ड डिब्बों मे फिशस आंड ड्राइ चिकन भी शायद कहीं मिल ही जाएँ. इस लिए उस ने बिल्डिंग का कोना
कोना छान मारा था लेकिन सफलता नहीं मिली थी.

उस ने इमरान से कहा....."बॉस ये मसूर की दाल भी गनीमत है. वरना मैं तो रूम का शोरबा लगा कर पत्थर तक चबा सकता हूँ."

उसे ना इसकी परवाह थी कि वो इस समय किस हाल मे हैं और ना इस की चिंता थी कि कल क्या होगा. बॅस एक गम उसे खाए जा
रहा था.....वो ये कि कहीं ये तीनों बॅरल भी ख़तम ना हो जाएँ. लेकिन इसका ये मतलब नही कि वो किफायत से काम ले रहा था.

आज तो वो बेतहाशा पी रहा था. इस समय किचन की मेज़ पर भी एक बड़े जुग मे रूम मौजूद थी. इमरान इतने धीरे से किचन मे आया कि उसे पता ही नहीं चल पाया.....और ना ये जान पाया कि रूम की जगह पानी से भरे हुए दूसरे जुग ने ले ली है. फिर इमरान वापस भी चला गया......लेकिन जोसेफ तो उबलने वाली दाल की "खड्ड....बद्ड..." मे खोया हुआ था......और शायद उसे अपना वतन याद आ रहा था.
ब्रिटिश ईस्टर्न आफ्रिका के एक गाओं की वो क्राल याद आ रही थी जहाँ उकड़ूं बैठ कर वो चावल और गोश्त उबाला करता था. थोड़ी देर बाद वो भाड़ सा मूह फाड़ कर एक लंबी अंगड़ाई ली और जग की तरफ हाथ बढ़ा दिया. लेकिन उसकी निगाहें उबलटी हुई दाल पर ही थीं.
जग को मूह से लगाते समय उस ने ये देखने का भी कष्ट नहीं किया की उस मे क्या है? वो तभी उस के हाथ से छूट पड़ा जब उस ने घूँट लिया.

पैरों के पास गिरे हुए जग को उस ने आँखें फाड़ फाड़ कर देखा.....लेकिन पानी का घूँट अभी तक मूह मे ही था......और दोनों गाल फूले
हुए थे. फिर वो हर्डबडा कर चारों तरफ देखने लगा. मेज़ पर और कोई दूसरा जग भी नहीं था.

अचानक उसके मूह से एक चीख निकली...."भानन्न..." और मूह से पानी उछल कर दूर तक गया था.

"भ....भूतततत...." वो फँसी फँसी आवाज़ मे चीखता हुआ किचन से निकल भागा.

इमरान जो इस बार की प्रतीक्षा ही कर रहा था अपने कमरे से निकल कर उसकी तरफ बढ़ता हुआ बोला...."आब्बे....क्या हुआ......क्यों चीख रहा है?"

जोसेफ खड़ा हांफता रहा. चढ़ती हुई साँसों का कारण उस का भय था.

"बोल क्या बात है?" इमरान ने फिर उसे झंझोड़ा.

"तबाही......बर्बादी.....बॉस.....मैं अब यहाँ नहीं रहूँगा. तुम कहो तो पागल हाथियों के झुंड मे घुस जाउ. लेकिन ये....ये.....मेरे वश से बाहर
है कि मैं ऐसी शक्तियों के हाथों मारना पसंद नहीं करता जो मुझे दिखाई ना दें..."

"ह्म....तो तुम हवा खा के मरना पसंद नहीं करते?" इमरान ने आँखें निकालीं.

"हवा?" जोसेफ मूह फैला कर रह गया.

"और क्या.....वही ऐसी शक्ति है जो दिखाई नहीं देती."

"मैं प्रेत आत्माओं की बात कर रहा हूँ बॉस....."

"अब्बे....फिर वही प्रेत......अब क्या हो गया?"

"रूम पानी हो गयी."

"अर्रे....वो तो पहले ही पानी ही थी. तुझे नशा कब होता है?"

"पानी....मतलब बिल्कुल पानी....यानी कि सच मूच पानी....सादा पानी.....मैं तुम्हें किस तरह सम्झाउ बॉस?"

"क्या तीनो बॅरल?" इमरान ने हैरत प्रकट की.

"नहीं....मैने जग मे डाल कर किचन मे रखी थी. पीता भी जा रहा था. अब अंतिम बात जब जग उठाया .....घूँट लिया.....तो पानी."

"ज़रूर तुझे नशा हो गया है."

इस पर जोसेफ बहुत जोश मे कस्में खाने लगा. जोसेफ की चीख सुन कर सफदार और जूलीया भी वहाँ आ गये. फिर जूलीया किचन
की तरफ चली गयी......और फर्श पर पड़ा हुआ जग उठा लाई.....जिस मे अब भी थोड़ा सा पानी था.

इमरान ने जग का निरीक्षण करते हुए अर्थ-पूर्ण ढंग से गर्दन हिलाई.

"समझ मे नहीं आता कि वो लोग चाहते क्या हैं." जूलीया ने सफदार की तरफ देख कर कहा.

इमरान जोसेफ से कह रहा था...."अगर तुम यहाँ नहीं रहना चाहते तो हम भी नहीं रहना चाहते.....लेकिन फिर कहाँ जाएँ? सुनो जोसेफ....क्या तुम जंगल मे कोई ऐसी जगह नहीं खोज सकते जहाँ हम शांति से कुच्छ दिन गुज़ार सकें? और हां अच्छा तो यही होगा कि तुम अपने
लिए शप्ललि भी तलाश करो. वरना अगर शराब किसी दिन तुम्हारे पेट मे पहुच कर पानी हो गयी तो तुम जल-परी ही कहलाओगे......समझे."

"ओह्ह.....तो क्या उसे यहीं छोड़ जाएँगे?" जोसेफ होंठो पर ज़ुबान फेर कर बोला.

"अब्बे.....वो जादू की शराब है.....नाक के अंधे. देख तो लिया इस जडी की शराब पी पी कर कैसा बूटा सा कद और फूल सा चेहरा निकल आया है."

"नहीं....." जोसेफ डर कर अपने चेहरे पर हाथ फेरने लगा.....फिर जूलीया की तरफ देख कर कहा....."क्यों मिसी?"

"मत बकवास करो....." जूलीया झल्ला गयी और सफदार हंस पड़ा.

इमरान ने सफदार से कहा...."ज़रा देखो इस का कद साढ़े चार फीट रह गया है लेकिन ये बेचारा अपने नुकसान से अंजान है."

"अर्रे नहीं बॉस...." जोसेफ मूर्खों की तरह हंसा.

"गधे हो तुम.......अगर तुम्हें भी इसका अहसास होने लगे तो वो जादू की शराब क्यों कहलाएगी? बस अब ये समझ लो कि तुम से कोई नहीं डरेगा. तुम केवल साढ़े चार फीट के रह गये हो......यकीन करो."

जोसेफ के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं......और कुच्छ ही देर मे ऐसा लगने लगा जैसे उसके शरीर से एक एक बूँद खून निचोड़ लिया गया हो.

सफदार आश्चर्य से इमरान की तरफ देख रहा था. इमरान ने उसे आँख मार दी.

"फिर....? फिर मैं क्या करूँ बॉस? जोसेफ ने रुआंसी आवाज़ मे पुछा.

"वही जो मैं कह रहा हूँ. जंगल मे कोई ऐसी जगह तलाश करो जहाँ फल हों.....और हम सुरक्षित रह सकें........जाओ वरना ये मसूर की दाल भी कोई गुल खिला देगी."

"अभी जाउ?"

"हां.....पिछ्ला गेट खोल कर नाले मे उतरो और चुप चाप लेफ्ट साइड चल पडो. नाला तुम्हें जंगल मे ही ले जाएगा. मैं चाहता हूँ कि तुम ये काम रात होने से पहले ही कर डालो."

जोसेफ थोड़ी देर तक खड़ा कुच्छ सोचता रहा.......फिर आगे बढ़ गया. सफदार इमरान को सवालिया निगाहों से देख रहा था.

"मैं नहीं समझ सका." उस ने कहा.

"आन्यूयल एग्ज़ॅम स्टार्ट होने से एक हफ़्ता पहले समझ लेना. अभी समझ गये तो भुला दोगे." इमरान ने लापरवाही से कहा......और अपने कमरे की तरफ चला गया.


(जारी)
 
(Jaari)

हालात ही ऐसे थे कि इमरान के सिवा सभी मानसिक तौर पर अपंग हो कर रह गये थे. वैसे जूलीया ने कोशिश की थी कि इमरान की इस हरकत का मतलब समझ सके. इस का पता तो उसे भी नहीं था कि शराब कैसे पानी हो गयी थी. लेकिन सवाल तो ये था कि इमरान ने जोसेफ को जंगल मे ठिकाना तलाश करने पर क्यों उकसाया था?

दोपहर को चौहान वापस आया. उस से जूलीया को पता चला कि वो मेक-अप मे लीज़ी और रॉबेरटु की निगरानी करता रहा था. वो दोनो
एक होटेल मे ठहरे थे. और चौहान बेचारा केवल इस लिए वापस आया था कि मसूर की दाल और चावल से अपने पेट के जहन्नुम को भर सके.

"ओह्ह......उस ने तुम्हें भी कुच्छ नहीं दिया?" जूलीया ने पुछा.

"नहीं......अब तो दिल चाहता है कि उस की टाँगें पकडू और समंदर मे डूबा आउ. पता नहीं कितनी रकम तिजोरी मे भरी पड़ी है......और हम मसूर की दाल और चावल से अपने पेट को तबाह कर रहे हैं."

"उस ने कुंजी सफदार से ले ली है." जूलीया ने कहा.

खाना खा कर फिर चौहान वापस चला गया......और वो अपने कमरों मे उंघते रहे. लेकिन जूलीया ने महसूस किया कि इमरान उपर से तो निश्चिंत दिखाई दे रहा है लेकिन वास्तव मे ऐसा नहीं है. मगर वो उस से अब कुच्छ नहीं पुच्छना चाहती थी.

फिर उंघते उंघते वो सो भी गयी और ये मुक़द्दर की खराबी ही कहा जाए कि आँख खुलते ही दिमाग़ अपना संतुलन खो बैठे. इमरान बिल्कुल पागलों की तरह खड़ा उसे झंझोड़ रहा था.

"क्या है....?" जूलीया भी पागलों की ही तरह दहाडी.

"पेपर समय से पहले ही लीक हो गया. अब आन्यूयल एग्ज़ॅम नहीं हो सकेगा."

"चले जाओ........यहाँ से..."

सभी तैयार बैठे हैं." इमरान बोला. "लेकिन तुम्हें यहाँ अकेली कैसे छोड़ जाएँ. आइलॅंड की पोलीस इधर आ रही है. चौहान यही खबर लाया है."

"क्या बक रहे हो?" जूलीया आँखें फाड़ कर बोली.

"रॉबेरटु नकली नोट चलाता हुआ पकड़ा गया है......और उस ने बता दिया है कि उसे वो नोट उसी इमारत की एक तिजोरी से मिले थे."

"माइ गॉड....!!" जूलीया बौखला कर खड़ी हो गयी.

चौहान और सफदार थोड़ा सा सामान जिस मे दो राइफलें भी थीं......संभाले हुए पिच्छले दरवाज़े के निकट खड़े हुए थे.

अंधेरा फैल चुका था और वो सब बड़ी तेज़ी से नाले मे उतर गये. कुच्छ दूर चलने के बाद उन्हें जोसेफ मिला. जिस के हाथ मे एक छोटी सी टॉर्च थी.

जूलीया ने एक गहरी साँस ली.

वो गिरते पड़ते आगे चले जा रहे थे. जोसेफ उन्हें रौशनी दिखा रहा था. सूखे हुए नाले की गहराई 10-11 फीट से कम नहीं थी. जैसे जैसे वो आगे बढ़ रहे थे गहराई अधिक होती जा रही थी. ज़मीन की सतह जहाँ वो चल रहे थे ऊबड़-खाबड़ थी. इस लिए जूलीया बहुत जल्दी थकान महसूस करने लगी थी.

"मुझ से तो नहीं चला जाता." वो मिन्मीनाई.

"पोलीस की गाड़ी मन्गवाऊ?" इमरान ने पुछा.

"मुझे खा-मखाह धमकाने की कोशिश मत करो. नहीं चला जाता. मैं दम लेने के लिए बैठूँगी.

"जोसेफ की पीठ पर बैठोगी? रुकना संभव नहीं है."

"लगाम तुम्हारे मूह मे हो तो अच्छा है." जूलीया ने कहा.

वो रुक गये थे. जोसेफ ने जूलीया और इमरान की बात सुनी थी.......और दाँत निकाल दिए थे.

"हां मिसी....." वो अचानक ज़मीन पर दोनों हाथ टेक कर बैठता हुआ बोला.

"हुशहत्तत्त...." जूलीया भन्ना गयी.

"अर्रे तो सफेद घोड़ा कहाँ से पैदा करूँ." इमरान माथे पर हाथ मारता हुआ बोला.....और फिर उस ने जोसेफ की गर्दन पकड़ कर सीधा खड़ा कर दिया.

"चलती रहो." जूलीया के कंधे पकड़ कर उसे आगे बढ़ाते हुए बोला.

लगभग एक घंटे बाद वो जोसेफ की तलाश की हुई जगह तक पहुँच सके. ये एक काफ़ी बड़ी गुफा थी.....जिस के मूह मे आस पास बड़ी
बड़ी झाड़ियाँ थीं.

"माइ गॉड...." जूलीया बड़बड़ाई...."अगर ये किसी दरिंदे का ठिकाना हुआ तब क्या करेंगे?"

"रूमी या 'कट थ्रोट खेलेंगे. मैं ताश के पत्ते लाया हूँ." इमरान ने उत्तर दिया.

"तुम्हारी आवाज़ मुझे ज़हर लगती है." जूलीया बोली.

"जब स्यूयिसाइड करने का दिल चाहे तब मुझ से एक गीत की फरमाइश करना."

"मत बकवास करो." इस बार हमें शायद मरना ही पड़े."

इमरान कुच्छ ना बोला. वो चुप चाप इधर उधर बैठ गये. कभी कभी जोसेफ टॉर्च जलाता......और फिर घुप्प अंधेरा छा जाता.

"हां.....अब तुम पूरी बात बताओ चौहान." इमरान ने कहा.

"मैं ये सोच भी नहीं सकता था कि वो नोट नकली होंगे." चौहान ने कहा.

"लेकिन इस पर सोचने की ज़रूरत भी नहीं समझा किसी ने कि उस तिजोरी मे नोट भरे हुए थे और कुंजी भी उस के उपर ही पड़ी हुई मिल गयी थी. बोघा लाख शरीफ......और दिलवाला सही.....लेकिन इस तरह भी दौलत लुटाई जा सकती है? इस पर किसी ने गौर नहीं किया.......क्यों?"

"आप हमें दोषी नहीं ठहरा सकते मिस्टर इमरान."

"क्यों?"

"आप के कहने पर ही हम ने खुद को हालात के धार पर छोड़ दिया था."

"लेकिन मैं ने ऐसा कब होने दिया. क्या मैं ने तुम मे से किसी को तिजोरी वाली दौलत मे हिसादार बनने दिया था?"

"तुम सच मच दरिंदे हो." अचानक जूलीया बोल पड़ी.

"ये किस खुशी मे मिस जुलीना फिट्ज़वॉटर?"

"तुम ने बेचारे रॉबेरटु को फंस्वा दिया."

"चालीस आदमियों का हत्यारा 'बेचारा' नहीं हो सकता मिस फिट्ज़वॉटर.....और फिर आप ने ये भी तो फ़रमाया था कि आप भी उसी के साथ बाहर तशरीफ़ ले जाएँगी."

"क्या तुम नहीं चाहते थे कि वो बाहर जाए?"

"ये मैं ने कब कहा है?" इमरान बोला. "नोटों पर मुझे संदेह था. इस लिए किसी ना किसी तरह तजुर्बा तो करना ही था. खैर ख़तम करो. मैं
ने सही कदम उठाया या ग़लत इस की ज़िम्मेदारी केवल मुझ पर ही आएगी. हां मिस्टर चौहान....."

"उस ने पोलीस को जो स्टेट्मेंट दिया है उस मे हमारा ज़िक्र कहीं नहीं आने पाया." चौहान बोला.

"गुड......तो फिर क्या बयान दिया?"

"उस ने बताया कि वो रोम जा रहा था. तभी एक जगह शिप रुका......और कॅप्टन ने उन्हें एक बोट पर उतरने पर मजबूर कर दिया. उन दोनों के साथ एक आदमी और भी उतरा था जो उन्हें रिवॉल्वार के ज़ोर पर इस आइलॅंड तक लाया......और एक खाली मकान मे छोड़ कर खुद गायब हो गया. फिर रॉबेरटु ने उन्हें उस तिजोरी की कहानी सुनाई थी."


(जारी)
 
(Jaari)


"बहुत मुनासिब रिपोर्ट है." इमरान बड़बड़ाता. "ये रॉबेरटु 100% अकल का अँधा नहीं है."

"और दूसरी बात........इमारत का पता सुन कर पोलीस ऑफीसर उछल पड़ा था. और उस ने बड़े जोश-ख़रोश के साथ अपने साथियों से फ्रेंच भाषा मे कुच्छ कहा था.......जिसे मैं नहीं समझ सका."

"वेल......तो वो बिल्डिंग भी पोलीस की दिलचस्पी का केन्द्र है." इमरान बोला.

"अब देखना ये है कि उन दोनों का क्या हशर होता है." जूलीया लंबी साँस ले कर बोली.

"लेकिन क्या..........हम इसी मकसद के लिए लाए गये हैं कि बोघा हमारे द्वारा नकली नोटों का तजुर्बा करे." सफदार ने कहा.

"ये सवाल काम का है." इमरान बोला.

"बॉस....मेरी मौत निकट है." जोसेफ बोला जिसकी आवाज़ रुन्धि हुई सी लग रही थी. "अब मैं क्या करूँ........शपलली भी नहीं मिली."

"तुम अपनी बकवास बंद करो."

जोसेफ खामोश हो गया. फिर वो सब ही खामोश हो गये. गुफा का अंधेरा कष्ट देने वाला था. वो एक दूसरे की साँसें गिनते रहे.

दूसरी सुबह वो भूक से निढाल उठे. जोसेफ से तो उठा ही नहीं जा रहा था. उस ने बड़ी कठिनाई से उस जगह का पता बताया जहाँ उस ने जंगली फल देखे थे. सफदार और इमरान बताए हुए रास्ते पर चल पड़े. इस के लिए बार बार उन्हें झाड़ियों मे घुसना पड़ता था. उन्हें कहानी भी इंसानी कदमों के बनाए रास्ते नहीं दिखाई दिए. एक जगह उँचाई से पानी गिरने की मद्धिम आवाज़ कानो मे आई और वो उसी तरफ चल पड़े.

ये एक छोटा सा झरना था......जो एक मोटे से पेड़ की जड़ के पास से फूटा था. नरकूलों की झाड़ियों ने उस के आस पास दीवार बना रखी थी. कुच्छ दूर फैलने के बाद वो एक पतले से नाले के रूप मे झाड़ियों से भी गुज़र कर शायद दस फीट की उँचाई से एक चट्टान पर गिरता था. और उसी की आवाज़ ने यहाँ तक उन्हें रास्ता दिखाया था.

"सेब...." सफदार ने पेड़ों पर निगाह डालते हुए कहा.

उन्होने कुच्छ फल तोड़े. वो सेब तो नहीं हो सकते थे जबकि शकल सेबों जैसी ही थी. छिल्का इतना कड़ा और चिंडा था कि उस से दाँतों का गुज़ारना आसान नहीं था. इमरान ने चाकू आज़माया लेकिन छिल्का इस तरह कट रहा था जैसे वो चमड़े पर भोथी छुरि चला रहा हो.
उसका गूदा सेब से भी अधिक नर्म साबित हुआ. फल मीठे थे लेकिन सेबों की सी खुश्बू हरगिज़ नहीं थी.

"गनीमत है...." इमरान सर हिला कर बोला.

सफदार जो दूसरा फल काट रहा था अचानक उछल पड़ा. फल और चाकू दोनों ही उसके हाथ से गिर गये. झरने के दूसरी तरफ एक आदमी उन की तरफ रिवॉल्वार ताने खड़ा था. वो नरकूलों की झाड़ी से इस तरह निकला था कि हल्की सी आवाज़ भी नहीं हुई थी. दोनों के हाथ उपर उठ गये.

ये एक मरियल सा आदमी था. सर के बाल उलझे हुए थे......और शेव भी काफ़ी दिनों से नहीं किया लगता था. कपड़े गंदे और फटे हुए थे. आँखों से दीवानगी झाँक रही थी.

"तुम्हारी जेबों मे जो कुच्छ भी हो ज़मीन पर डाल दो." उस ने फ्रेंच भाषा मे कहा.

"हमारी जेबों मे भी रिवॉल्वार हैं." इमरान ने मुस्कुरा कर कहा. "क्या उन्हें हाथ लगाने की अनुमति दोगे?"

अजनबी ने ठहाका लगाया लेकिन वो केवल आवाज़ थी. उसे हँसी किसी तरह भी नहीं कही जा सकती थी. खोखली आवाज़.

उस ने कहा....."मुझे धमकाने की कोशिश कर रहे हो? मैं इतना गधा नहीं हूँ. अगर जेबों मे रिवॉल्वार होते तो तुम कभी उनके बारे मे नहीं बताते."

इमरान ने इस तरह मूह बनाया जैसे सच मुच उस की स्कीम फैल हो गयी हो.

"चलो...." अजनबी गुर्राया.

उन के बीच 6 फीट से अधिक दूरी नहीं थी. लेकिन पानी की गहराई का अनुमान इमरान को नहीं था. फिर भी सफदार को लग रहा था कि वो कोई उपाए की सोच मे है.

और...........इमरान सोच रहा था कि अजनबी को किसी तरह इसी किनारे पर आ जाना चाहिए. वो खुद उसकी तरफ छलान्ग लगाना
नहीं चाहता था. क्योंकि उधर नरकुल की झाड़ियाँ उस के हमले को नाकाम भी बना सकती थीं.

"इस की क्या गारंटी है कि हमारी जेबें खाली करा लेने के बाद हमें मार ना डालोगे?" इमरान ने कहा.

"अजनबी उसे ख़ूँख़ार नज़रों से देखते हुए कहा "मैं अपने दो कारतूस बचा सकूँगा तो मुझे खुशी ही होगी."

"तुम फ्रांसीसी तो नहीं लगते. तुम्हारा बोलने का लहज़ा......." इमरान ने कहा.

"तुम भी फ्रांसीसी नहीं लगते......लेकिन जल्दी करो...."

अचानक उसके पिछे झाड़ियों मे हलचल हुई और दूसरे ही पल एक वेल ड्रेस्ड लेडी उसके पिछे खड़ी थी.


(जारी)
 
"नहीं मोस्सीओ....." उस ने हाथ उठा कर कहा "डरने की ज़रूरत नहीं. ये रिवॉल्वार नकली है."

"ओह्ह....सत्यानाश हो....." पागल सा अजनबी दाँत पीस कर बोला. "सारा रोमांच चौपट कर के रख दी."

"मैं सच कहती हूँ कि अब तुम्हें पागल-खाने ही पहुँचा कर दम लूँगी." औरत ने हाथ हिला कर गुस्से से कहा.

"मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो." अजनबी हलक फाड़ कर चीखा.

इतनी देर मे इमरान भी छलान्ग लगा कर दूसरे किनारे पर पहुँच चुका था. सफदार जहाँ था वहीं खड़ा रहा.

"कुच्छ भी हो ये पोलीस केस है मेडम." इमरान ने कहा.

"ओह्ह....आइ आम सॉरी मोस्सीओ...आप को तकलीफ़ हुई. लेकिन ये केवल मज़ाक से अधिक नहीं था. विश्वास कीजिए."

"मैं नहीं समझा."

"इस पर हीरो बनने का पागलपन सवार है. कहता है मैं बिल्कुल टेक्सस के जंगालियों की तरह लूट-मार कर सकता हूँ."

"मैं कहता हूँ चली जाओ यहाँ से." अजनबी फिर चीखा.

"तुम चुप चाप मेरे साथ चलोगे." औरत ने गुस्से से कहा.

"क्या मैं आप की कोई मदद कर सकता हूँ मेडम?"

"थॅंक यू मोस्सीओ...मैं इसे घर ले जाना चाहती हूँ. डर है कि कहीं इसे पोलीस ना पकड़ ले."

अजनबी ने बिल्कुल फिल्मी स्टाइल मे ठहाका लगाया और कहा...."हह....पोलीस. पोलीस के सामने मिकेल द लटोशे का नाम ले लो और
देखो कैसे उन के हाथों के तोते उड़ते हैं. पोलीस साधारण चीटियों से की तरह रेंगने वाले कीड़े......हहह...."

"चुप चाप घर चलो दोस्त.....वरना मैं तुम्हें पीठ पर लाद कर ले जाउन्गा." इमरान ने कहा,

"चलो मिकेल..." औरत बोली.

"अर्रे....दफ़ा हो जाओ. मैं बिगड़ा हुआ घोड़ा नहीं हूँ कि सुधर जाउन्गा. आदमी हूँ और आदमी को समझाना बहुत कठिन होता है. मैं जो कुच्छ भी करता हूँ उस के पिछे एक बहुत बड़ी फिलॉसोफी है. तुम एक मछुवारे की बेटी हो. जाओ यहाँ से. तुम्हारे शरीर से मछलियो की गंध आती है."

"तुम अपना हुलिया देखो. खबीस कहीं के." औरत झल्लाई.

"मेहनत-कश लोग ऐसे ही होते हैं जैसे मैं हूँ.....यानी मिकेल द लटोशे."

अचानक इमरान ने उसके हाथ से रिवॉल्वार झपट लिया......और वो लड़खड़ाता हुआ दो चार कदम पीछे हट गया.

"अपने हाथ उपर उठाओ." इमरान ने गरज कर कहा......और अजनबी के हाथ सच मूच उपर उठ गये.

"तू ने मुझे तबाह कर दिया." अजनबी औरत की तरफ देख कर बड़बड़ाया.

"हां......आप आगे चलिए मेडम." इमरान ने कहा और फिर अजनबी से बोला."तुम पिछे चलो. मूड कर देखा......और मैं ने ट्रिगर दबाया.....समझे."

औरत मुस्कुराइ और झाड़ियों मे मूड गयी. अजनबी दोनों हाथ उपर उठाए उस के पिछे था. इमरान ने सफदार से हिन्दी मे कहा "तुम फल
ले जाओ.....मैं कुच्छ देर बाद आउन्गा. मगर तुम मे से कोई अपनी जगह से ना हिले."

अजनबी चुप चाप हाथ उठाए चलता रहा. औरत आगे थी. इमरान ने रिवॉल्वार को सच मूच नकली ही पाया.....जिस मे धमाका पैदा करने वाले हार्मलेस कारतूस लगे हुए थे.

ज़रूरी नहीं था कि इमरान इस मामले मे इतनी दिलचस्पी लेता. लेकिन उसे अपने और अपने साथियों के पेट भी तो पालना था. इस के लिए कुच्छ ना कुच्छ तो करना ही पड़ता.

वो थोड़ी देर खामोशी से चलता रहा और फिर औरत से पुछा...."ये आप के कॉन हैं मेडम?"

"ये ना पुछिये मोस्सीओ....मुझे दुख होता है जब कोई मिकेल के बारे मे बात करता है. ये मेरा पति है."

"ओववव......" इमरान ने सीटी बजाने के ढंग से होन्ट सिकोडे और अचानक अजनबी बोल पड़ा......"शादी कर के मैं ने अपने पैरो पर
खुद कुल्हाड़ी मारी थी. इस से अधिक रोमॅन्सलेस चीज़ दुनिया मे कोई हैं ही नहीं. लानत है मुझ पर."

औरत चलते चलते रुक कर मूडी......और इमरान ने उसे गोर से देखा. उमर 25 से अधिक नहीं रही होगी. रंगत भी निखरी हुई थी. लेकिन आँखें.......अगर आँखें भी ऑर्डर मे होतीं तो उसे हर हाल मे सुंदर कहा जा सकता था. आँखें कुच्छ इस ढंग से भेंगी थीं कि वो एक साथ
दो अलग अलग दिशाओं मे देखती हुई लगती थी. उस के रुकते ही मिकेल भी रुक गया. फिर इमरान क्यों ना रुकता.

"क्या कहा तुम ने?" औरत आँखें निकाल कर बोली......और उस के चेहरे की वीरानी कुच्छ और बढ़ गयी थी.

"मैं ने ठीक कहा. ये शादी एक मजबूरी थी. अगर मेरा बाप तुम्हारे बाप का कर्ज़दार ना होता."

"बकवास बंद करो...." औरत दहाडी.

"मेडम.....मेरा ख़याल है कि आप चलती ही रहिए......वरना ये घर कभी नहीं पहुँच सकेगा." इमरान बोला.

औरत कुच्छ पल अजनबी को घूरती रही फिर आगे बढ़ गयी.

इमरान ने अजनबी से भी चलने को कहा.

लगभग आधे घंटे के बाद वो साहिल की एक ऐसी बस्ती मे पहुँचे जो छोटे छोटे झोंपड़ो से बनी थी. जिस के बीच मे एक बड़ा सा मकान था. हलाकी उस मकान की छत भी फूस की ही थी.....लेकिन दीवारें पत्थर के टुकड़ों को जोड़ कर बनाई गयी थीं. मकान के चारों तरफ हरी
भरी क्यारियाँ थीं जिन का फैलाओ दूर तक था और मकान के साथ एक्सट्रा ज़मीन की घेरा बंदी लकड़ी के लटठों से की गयी थी. कॉंपाउंड
मे प्रवेश होते ही इमरान ने रिवॉल्वार को जेब मे डाल लिया था.

मेन गेट के पास पहुँच कर औरत रुक गयी. उस ने इमरान से कहा...."अब प्लीज़ मेरी मदद करें ताकि मैं इसे कमरे मे बंद कर सकूँ. इस समय यहाँ कोई नहीं. सब नावों पर होंगे.

"मैं इस ज़ुल्म के खिलाफ प्रोटेस्ट करता हूँ." मिकेल ने हाथ उठा कर कहा.....और फिर वो ज़मीन पर बैठ गया.

"उठो मिकेल....मैं जो कुच्छ कर रही हूँ उसी मे तेरी भलाई है. पिच्छली बार पापा ने तुम्हें किस बुरी तरह पीटा था. तुम्हें याद है ना?"

"आज उस से कहो कि मुझे मार ही डाले. मैं तो नहीं उठुन्गा."

"मोस्सीओ प्लीज़....." औरत इमरान से संबोधित हुई......और इमरान मिकेल से बोला "मोस्सीओ मिकेल.....मैं आप से निवेदन करता हूँ
कि कृपया उठ जाइए. मुझे इस बात पर विवश मत कीजिए की मैं आप को उठाने का प्रयास करूँ और असफल हो जाउ."

औरत उसकी अनोखी याचना और धमकी पर मुस्कुरा दी लेकिन तुरंत ही सम्भल कर माथे पर लकीरें डाल ली.


(जारी)
 
"मैं तो कदापि नहीं उठुन्गा...." अजनबी ने किसी हिंसक पशु की तरह दाँत निकाले.....और इमरान बेबसी से औरत की तरफ देखने लगा.

"उठ जाओ मिकेल मैं कहती हूँ."

"नहीं उठुन्गा."

"आप मुझे अपना नाम बताइए मेडम.....फिर मैं कोशिश करूँगा." इमरान ने कहा.

"नाम से क्या होगा?" औरत ने हैरत से पुछा.

आप के सितारे बहुत अच्छे हैं. ये आप के चमकती पेशानी पर लिखा है. आप का नाम मेरी जीत का कारण बनेगा."

"अजीब बात है."

"आप तजुर्बा कर लें......"

"इस के सितारे खूनी हैं."

"मेरा नाम अगता है." शायद उस ने मिकेल की बात पर जल कर अपना नाम बता दिया था.

इमरान ने "अगता" का नारा लगाया और झुक कर मिकेल को उठा कर इस तरह कमर पर लाद लिया जैसे वो कोई अनाज की बोरी हो. औरत की आँखें हैरत से फैल गयीं.

"चलिए...." इमरान ने बड़े आराम से कहा. मिकेल उसकी पकड़ से छूट जाने के लिए हाथ पैर मार रहा था लेकिन इमरान के चेहरे से ना तो थकान ही प्रकट हो रही थी और ना ही ये लग रहा था की वो उसे कुच्छ देर तक उठाए ना रह सकेगा.

औरत उसे अपने पिछे आने का इशारा करती हुई मुख्य दरवाज़े से गुज़र गयी.

कुच्छ देर बाद मिकेल एक कमरे मे बंद कर दिया गया था......और वो दोनों दरवाज़े के पास खड़े उस की गालियाँ सुन रहे थे.

"मिकेल....प्लीज़ आदमी बनो..." अगता ने कहा.

"जाओ यहाँ दफ़ा हो जाओ. मेरी हड्डियाँ बदला लेने के लिए सुलग रही हैं."

"अगर आप चाहें तो चाई की केटली उस की हड्डियों पर रख सकती हैं." इमरान ने मुस्कुरा कर कहा.

वो भी मुस्कुराइ और वहाँ से हट आने का इशारा किया.

"आप ने मेरे सितारों के बारे मे कुच्छ कहा था मोस्सीओ...." वो एक जगह रुकती हुई बोली.

"जी हाँ आप के सितारे आप की पेशानी पर चमक रहे हैं. मेरी निगाहों से नहीं छुप सकते.......मैं....जो आत्माओं का शिकारी हूँ."

"आत्माओं का शिकारी.....!!!"

"हां.....आत्माओं(रूहों) का शिकारी. सारी दुनिया मेरी मुट्ठी मे है.....इसके बाद भी मुझे धक्के खाने मे खुशी महसूस होती है. मुझ पर 'शनि' सवार है......और मैं हमेशा हाफ डे के सपने देखता रहता हूँ. दुनिया का आधा दिन जो छे रातों से भी बड़ा होगा. वैसे तो जूपिटर और मर्क्युरी भी सितारे ही हैं.....लेकिन तुम्हारे सितारे......वंडरफुल....थोड़ी चाइ होगी मेडम?"

"आप की बातें मैं नहीं समझ सकती." अगता ने पलकें झपकाइं "हन मैं आप को छाई ज़रूर पिलावँगी. आप ने मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है. अगर आप मदद ना करते तो आज मिककेल निकल ही गया होता......आइए."

इमरान उस के साथ चलता रहा. वो उसे किचन मे ले आई. यहाँ एक भद्दी सी मेज़ पड़ी हुई थी.....जिस के पास चार कुर्सियाँ थीं.

"बैठिए...." अगता ने कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कहा.

इमरान बैठता हुआ बोला...."मैं ने मोस्सीओ मिकेल के आस पास बहुत सी रूहों का नाच देखा है."

"क्या.....?" औरत का स्वर डरा हुआ सा था.

"हां मेडम....ना वो किसी पागलपन मे घिरा है और ना ही पागल हैं. बस काली रूहे. आप उन्हें उस रूहों के बसेरा वाले जंगल मे क्यों जाने देती हैं?"

"ओह्ह.....मगर आप वहाँ क्या कर रहे थे?"

"बताया ना कि हम रूहों का शिकारी हैं. हज़ारों किलोमेटेर का सफ़र कर के यहाँ आए हैं ताकि उन रूहों का शिकार कर सकें......जो
जंगल मे साँपों की तरह फुफ्कार्ति हैं. मगर अफ़सोस......" इमरान ठंडी साँस ले कर चुप हो गया. उस के चेहरे पर गहरा दुख प्रकट हो रहा था.

"क्यों.....क्या बात है?" अगता ने चूल्‍हे पर चाइ की केटली रखते हुए पुछा. फिर उस की तरफ देख कर बोली "आप इतने दुखी क्यों दिखाई देने लगे?"

"कुच्छ नहीं.....मेरे एक साथी की गफलत के कारण पूरी पार्टी लूट गयी. हम पिच्छली रात भी भूके सोए थे. इस समय जंगली फलों पर गुज़ारा करने का इरादा था."

"क्यों....? क्या हुआ था?"

"उस ने सारी पूंजी गँवा दी. बंदरगाह पर उतरते ही किसी ने संदूक गायब कर दिया......जिसमे हमारे रुपये पैसे थे."

"ये तो बहुत बुरा हुआ."

"बुरे से भी कुच्छ अधिक. विश्वास कीजिए. हम इस आइलॅंड को उन बुरी आत्माओं से छुटकारा दिलाने आए थे जिन की चीखें और फुफ्कारें सुन कर लोगों के आधे प्राण निकल जाते हैं."

"ओो....क्या आप सच कह रहे हैं?"

"हां मेडम.....क्या आप को हमारी रहस्यमयी शक्तियों पर शंका है?"

"नहीं....बिल्कुल नहीं. आप ने मिककेल जैसे ग्रांदील आदमी को इस तरह उठा लिया था."

"अर्रे....नहीं.....वो तो आप के नाम की शक्ति थी."

"आप मज़ाक कर रहे हैं." अगता खिसिया कर हँसी.

"ये कह कर आप मुझे दुख पहुँचा रही हैं मेडम." इमरान का स्वर गमगीन था.

"भला मेरे नाम की शक्ति क्यों?"

"आप के नाम के सितारे इन दिनों ऐसे ही हैं. आप देखेंगे कि आप कितने विचित्र चीज़ों से दो-चार हैं. लेकिन डरो नहीं. सब कुच्छ आप ही के लाभ के लिए होगा. आप को कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा. आप की उमर क्या है?"

"पचीस साल...."

"नहीं....." इमरान हैरत प्रकट करते हुए कहा.

"जी हां.....मगर आप को हैरत क्यों हुआ?" औरत ने खुद भी हैरत से पुछा.


(जारी)
 
"अर्रे....मेरा अनुमान तो ये था कि आप अधिक से अधिक 18 साल से ज़्यादा की हो ही नहीं सकतीं." इमरान ने आँखें फाडे फाडे कहा.....फिर जल्दी से बोला...."मगर नहीं. मुझे हैरत क्यों हो रही है इस पर. क्या मैं ने आप की पेशानी पर चमकने वाले तारों को नहीं देखा था. खैर हां तो आप की उमर 25 साल है तो........."

इमरान खामोश हो कर कुच्छ सोचने लगा. उस के होंठ धीरे धीरे हिल रहे थे......जैसे बे-आवाज़ कुच्छ कह रहा हो. अगता की
दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी. उस ने चाइ की केटली पर झुकते हुए कहा. "मैं अपने फ्यूचर के बारे मे बहुत बेचैन रहती हूँ."

"हुन्न्ं....." इमरान चौंक कर बोला "क्या कहा आप ने?"

अगता ने अपनी बात फिर दुहराई. इमरान ने सर हिला कर कहा "आप का फ्यूचर बहुत शानदार है. क्या आप बता सकती हैं कि
मोस्सीओ मिकेल कब से इस हाल मे गिरफ्तार हैं?"

अगता ने तुरंत उत्तर नहीं दिया.

अब वो चूल्‍हे से केटली हटा कर उस की जगह फ्राइयिंग पॅन रख रही थी. उस के पाद उस ने कुच्छ मटन पीसीज निकाले और उन्हें
फ्राइयिंग पॅन में डाल कर गरम करने लगी.

वो कुच्छ सोच रही थी. आख़िर उस ने कहा "क्या आप उस पवित्र काले दिल वाले से परिचित हैं.....जो जंगल मे चीखने वाली रूहों का मालिक है?"

"मैं नहीं समझा."

"फादर स्मिथ.....जो सारे आइलॅंड के लिए जान का ख़तरा बना हुआ है. उस का मकान अक्सर खाली पड़ा रहता है.....लेकिन लोगों का विचार है की वो वहीं रहता है."

"मैं कुच्छ भी नहीं जानता उस के बारे मे." इमरान ने कहा और किसी सोच मे पड़ गया.

"वो एक डरावना आदमी है. पादरी के रूप मे भेड़िया. वो इस आइलॅंड को समंदर मे डूबा देना चाहता है. हां तो मिकेल भी उसी के भक्तों मे से था. पोलीस ने एक बार स्मिथ के मकान पर राइड किया था. उसी समय उसके भक्तों का गिरोह टूट गया. लेकिन पादरी स्मिथ पोलीस
के हाथ ना आ सका. हलाकी दूसरे दिन भी वो उसी इमारत मे दिखाई दिया था. अब भी अक्सर दिखाई देता है. मगर पोलीस बेबस है.
शैतानी चक्कर के आगे पोलीस की क्या चलेगी."

"मगर पोलीस क्यों? मैं ने आज तक नहीं सुना कि कहीं की पोलीस ने किसी जादूगर मे रूचि ली हो." इमरान ने कहा.

"ठीक है......मगर पोलीस का ख़याल है कि वो इस जादूगरी की आड़ मे कोई गैर-क़ानूनी गतिविधि कर रहा है. स्मिथ के भक्त को भी
खंगाला गया लेकिन उन के खिलाफ कुच्छ भी साबित नहीं किया जा सका.......मिकेल भी नहीं बचा."

"लेकिन वो अब भी उस भूतों के जंगल मे घूमता फिरता है." इमरान ने कहा.

"अर्रे....उसे थोड़ा भी इसकी चिंता नहीं थी कि पोलीस उन मे दिलचस्पी ले रही है."

"अच्छा आइलॅंड के साधारण निवासियों का क्या विचार था स्मिथ के बारे मे?"

"वो उसे केवल एक ऐसा जादूगर समझते हैं जिस के क़ब्ज़े मे दुष्ट-आत्माएँ हैं."

इमरान ने चिंताजनक ढंग से सर को हिलाया.

"अकेला मिकेल ही नहीं है...." अगता ने कुच्छ देर बाद कहा...."केयी और भी हैं जो इसी तरह पागल हो गये हैं. उन मे से कोई खुदा
की तलाश मे है. कोई अपनी प्रेमिका की याद मे पछाड़ ख़ाता है. एक तो ऐसा है जो दिन रात जंगल मे अपना गधा ढूंढता रहता है.
हलाकी उसके बाप के पास भी कभी कोई गधा नहीं था. ये सब जंगल मे भटकते फिरते हैं."

"ख़तरनाक रूहे..." इमरान ने ठंडी साँस ली. "वो आइलॅंड को सच मुच डूबा देना चाहती हैं. किसी दिन बहुत बड़ा तूफान आएगा....पहाड़ों सी उँची लहरें आइलॅंड पर चढ़ आएँगी. एक भी नहीं बचेगा."

"नहीं....." अगता डरी हुई आवाज़ मे बोली. "ऐसा ना कहिए मोस्सीओ."

"मजबूरी मे कहना पड़ता है मेडम. जब हम भूकों मर जाएँगे तो यही होगा. वैसे हमारे जीते जी तो ऐसा होना अस्म्भव है."

"फिर बताइए मैं आप के लिए क्या करूँ?"

"मुझे और मेरे साथियों को भूकों मरने से बचा लीजिए. और किसी से भी हमारी चर्चा नहीं कीजिए."

"मैं यही करूँगी."

"और कोशिश कीजिए की मोस्सीओ मिकेल यहाँ से ना निकलने पाएँ."

"अगता ने मटन पीसस उस के सामने रख दिन और बोली...."मैं उसे बंद ही रखती हूँ. लेकिन कुच्छ समझ मे नहीं आता कि वो कैसे निकल जाता है."

"रूहे...."

"ओह्ह...." अगता उच्छल पड़ी.....और भयभीत स्वर मे बोली...."यहाँ भी....आती हैं रूहे?"

"एकदम आती हैं." इमरान ने नातुने सिकोड कर ज़ोर ज़ोर से साँसें लीं. उसी तरह जैसे रूहों की उपस्थिति को सूंघने का प्रयास कर रहा हो. फिर सर हिला कर बोला...."बिल्कुल आती हैं. मगर पूरी तरह नहीं....केवल अपनी परच्छाइयाँ डालती हैं."

"तो फिर हम सब ख़तरे मे हैं."

"निश्चित रूप से. आप सब भी जंगल की खाक छान सकते हैं." इमरान ने उत्तर दिया.

अगता के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं.

"डरिये नहीं. मैं आप को एक जादु यन्त्र(तावीज़) दूँगा. और आप सब उन रूहों से सुरक्षित रहेंगे." इमरान ने मटन पीसस पर हाथ सॉफ करते हुए कहा.

एनीवे नाश्ता तगड़ा ही हुआ था. पेट भर जाने के बाद उसने पेन और पेपर माँगा ताकि तावीज़ लिख सके.

तावीज़ कुच्छ इस तरह था.........

"सय्याँ ने उंगली मरोड़ी रे,
राम कसम शर्मा गयी मैं."

उस ने उसे तावीज़ की तरह तह कर के उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा. "कल सुबह जब सूरज निकले तो.....इसे दाहिनी मुट्ठी मे दबा कर पूरब की तरफ मूह कर के खड़ी हो जाइएगा. केवल पाँच मिनूट ऐसे रहना पड़ेगा. फिर उसके बाद इसे मकान के भीतर ही कहीं दफ़न
कर दीजिएगा. मेरा दावा है की आप लोग रूहों की बुराइयों से सुरक्षित रहेंगे. लेकिन मोस्सीओ मिकेल पर ये परछाईं थोड़ा गहरा है. इस लिए उन का मामला ज़रा देर से सुलझेगा."

"थॅंक यू मोस्सीओ...." अगता ने तावीज़ उस के हाथ से लेते हुए कहा. "मैं किस को भी नहीं बताउन्गि और आप लोगों की मदद भी करूँगी. मगर आप कहाँ से आए हैं."

"मिस्र.....(ईजिप्ट)"

"ओह्हो....मिस्री जादूगर.....!"

"हां....मैं फ़िरों के मक़बरे मे बैठ कर उस की रूह के साथ लुडो खेला करता था." इमरान ने फ्रेंच भाषा मे कहा......और फिर हिन्दी
मे बड़बड़ाया...."ऐसा झूट अगर शैतान भी बोलता तो उसका कलेजा फॅट जाता."


 
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