hotaks444
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कामलीला
मित्रो आपके लिए छोटी छोटी कहानियों के संग्रह के रूप मे अपनी कामलीला के वो अध्याय लेकर आया हूँ जहाँ मेरा इस्तेमाल किस किस तरह हुआ तो मित्रो चलते इस लंबे सफ़र इस आशा में कि आपका भरपूर साथ मिलेगा
दोस्तो, मैं इमरान, मुंबई में रहता हूँ और एक मोबाइल कम्पनी में काम करता हूँ। ज़िन्दगी अब तक ऐसी गुजरी है कि उस पर कभी तो लानत भेजने का मन करता है और कभी सोचता हूँ क्या बुराई है इसमें…! मुझे ऐसा लगता है जैसे हमेशा मुझे लोगों ने इस्तेमाल ही किया है और किया भी है तो बुराई क्या… अगर दूसरों ने मेरे शरीर के साथ मज़े लिए हैं तो मुझे भी तो आनन्द आया है न !
मुझे सबसे पहले उस लड़की ने इस्तेमाल किया जिसे मेरी घर वालों ने मेरी बीवी बनाया। उसका नाम रुखसार था। शादी मेरे होम टाउन भोपाल में ही हुई थी और लड़की भी रिश्तेदारी से ही थी। मैं उसे पाकर खुश हुआ था। ग़ज़ब का माल थी, लेकिन जल्दी ही मेरी ख़ुशी काफूर हो गई थी जब उसने मुझे सुहागरात तक में हाथ नहीं लगाने दिया, यह कह कर कि उसे माहवारी शुरू हो गई है।
उस दिन तो मैंने सब्र कर लिया, लेकिन फिर मायके जाकर, आने के बाद भी कुछ न कुछ ड्रामा कर के कन्नी काटती रही, तो मैं बेचैन हुआ और फिर एक दिन की घटना ने मेरे होश उड़ा दिए।
उस दिन मेरे घर में कोई नहीं था। बाकी घर वाले मामू के लखनऊ गए हुए थे और घर में हम मियां बीवी ही थे। मैं रात में घर लौटा तो नज़ारा ही कुछ और मिला। बाहर की चाबी मेरे पास थी, मुझे एक बाईक बाहर खड़ी दिखी तो लगा कोई आया है।
मगर जब दरवाज़ा लॉक मिला तो शक हुआ और घन्टी बजाने के बजाय मैंने चाबी से दरवाज़ा खोला और अन्दर घुसा। अन्दर मेरे बेडरूम से कुछ सिसकारियों जैसी आवाज़ आ रही थीं।
मैंने पास पहुँच कर देखा तो दरवाज़ा इतना तो खुला था कि अन्दर का नज़ारा दिख सके। अन्दर बेड पर दो नंगे जिस्म गुत्थमगुत्था हो रहे थे…
एक तो मेरी बीवी रुखसार थी और दूसरा सलमान खान जैसी बॉडी वाला कोई अजनबी। इस वक़्त उस अजनबी का लंड रुखसार की चूत में पेवस्त था और वो धक्के खाने के साथ सिस्कार रही थी। मेरे देखते देखते धक्कों ने जोर पकड़ लिया और वो दोनों ही अंट-शंट बकने लगे…
मैं क्या उसे रोक सकता था? मैंने खुद से सवाल किया। वो मुझसे ड्योढ़ा तो था ही, मेरे ही घर में मुझे पीट डालता।
फिर देखते-देखते दोनों के बदन ऐंठ गए और वो वही बिस्तर पर चिपके चिपके फैल गए। तब रुखसार की नज़र मुझ पर पड़ी, उसने अजनबी को इशारा किया और वो भी मुझे देखने लगा, मगर क्या मजाल कि उनकी पोजीशन में कोई फर्क आया हो।
“आओ आओ मेरे शौहर… तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे।” रुखसार ने ही शुरुआत की और मैं अन्दर आ गया।
“मेरे साथ तो रोज़ कोई न कोई बहाना बना देती हो और यहाँ यह हाल है?”
वो जोर से हंसी।
“हाँ जी, यही हाल है… यह मेरा आल टाइम फेवरेट ठोकू है, मुझे इसके सिवा किसी के भी लंड से इन्कार है, मैं इससे ही शादी करना चाहती थी, मगर इसमें परेशानी यह थी कि एक तो यह गरीब और दूसरे तलाकशुदा…! कहाँ मेरे घर वाले राज़ी होते, तो हमने यह आईडिया निकाला था कि मैं किसी लल्लू से शादी कर लेती हूँ, इसके बाद हम आराम से चुदाई कर सकते हैं। अगर वो सब जान कर चुप रहता है तो भी ठीक और अगर मुझे तलाक दे देता है तो और भी ठीक, क्योंकि तब मैं भी तलाकशुदा हो जाऊँगी और तब हम शादी कर सकते हैं। अब यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम किस बात पर राजी होते हो।”
“मतलब तुमने मुझे सिर्फ इस्तेमाल किया?”
“ज़ाहिर है।”
और मैं दूसरे विकल्प पर गया और अगले ही दिन उसे तलाक देकर खुद दिल्ली चला आया, जहाँ तब मेरी नौकरी थी। यह मुझे प्रयोग करने की शुरुआत थी जिसमें मुझे सिवा ज़िल्लत के कुछ न हासिल हुआ। लेकिन इसके बाद मैंने इस प्रयोग में भी अपनी दुनिया तलाश ली।
मैं कृष्ण पार्क के एक मकान में किरायेदार के तौर पर रहता था। मैं अकेला ही रहता था जब कि ऊपर की मंजिल पर दो हिस्से थे और दूसरे हिस्से में एक मियां-बीवी रहते थे। पति का नाम अजय था जो पश्चिम विहार में कहीं नौकरी करता था और पत्नी का नाम अलका था। अलका बाईस-तेईस साल की एक खूबसूरत युवती थी, जिसके जिस्म को शायद ऊपर वाले ने फुर्सत से तराशा था।
वह लोग मेरे बाद रहने आये थे और जैसे ही मैंने अलका को देखा था, मेरी लार टपक गई थी, गोरा रंग, तीखे नैन-नक्श 36 इन्च की चूचियाँ, चूतड़ और चूचियों के बीच कमर ‘डम्बल’ जैसी लगती थी। उसकी कजरारी आँखों ने जैसे मेरा मन मोह लिया था।
अलका घर पर ही रहती थी और उसके चक्कर में मुझे भी जब काम से छुट्टी मिलती थी तो मैं घर पर ही गुजारता था और इस तरह मुझे उसके दर्शन तो हो ही जाते थे। वो कभी सामने से नज़र मिला कर नहीं देखती थी, इसलिए मैं समझ नहीं पा रहा था कि उसके मन में कुछ था भी या नहीं।
बाकी जब वो साटन का गाउन पहन कर फिरती थी तो उसके बदन की सिलवटें बताती थीं कि वो मुझे दिखाने के लिए हैं। सामने उभरे उसे दो निप्पल मुझे कहते लगते थे कि आओ हमें चूसो।
धीरे-धीरे हमें साथ रहते तीन महीने हो गए, मगर कोई जुगाड़ न बना। लेकिन एक दिन ऐसी एक बात हुई, जिसने मेरी उम्मीदों को फिर से रोशन कर दिया।
हुआ यह कि उस दिन मेरी छुट्टी थी और मैं कमरे पर ही था जब वह आई। उस वक़्त उसने एक स्लीवलैस गाउन पहना हुआ था और सीना देखने पर साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि उसने नीचे ब्रा नहीं पहन रखी थी। कोई भड़काऊ परफ्यूम लगाया हुआ था जिससे अजीब सा नशा छा रहा था और मन में सवाल उठ रहा था कि क्या यह परफ्यूम मेरे लिए यूज़ किया गया?
“आपको थोड़ा बहुत बिजली वगैरह का काम आता है न? मैंने देखा है आप खुद ही अपनी चीजें सही कर लेते हैं।”
“हाँ हाँ… अब इंजीनियर हूँ तो इतना तो कर ही सकता हूँ।”
“मेरे बोर्ड का सॉकेट जल गया था, वह ले तो आये थे, मगर लगाने का वक़्त ही नहीं मिला। आज कुछ अर्जेंट काम था तो जल्दी ही चले गए। आप लगा देंगे?”
“हाँ… क्यों नहीं !”
“आपकी बड़ी मेहरबानी…” कह कर वो धीरे से हंसी।
और मेरे मन में लड्डू फूटा, मैं उसके साथ हो लिया। कमरे में लाकर वो मेरे साथ ही खड़ी हो गई और मैं काम से लग गया। उसके बदन से उठती महक मुझे बुरी तरह बेचैन कर रही थी। इस बीच उसे हेल्प के लिए बार-बार हाथ उठाने पड़ते थे, जिससे उसके स्लीवलैस गाउन के नीचे बगल से दिखते बाल मेरी उत्तेजना को और बढ़ा रहे थे। ये मेरी एक कमजोरी थे।
“अच्छे हैं।” मेरे मुँह से निकला।
“क्या?” उसने अचकचा कर मेरी आँखों में झाँका।
“यह,” मैंने उसकी बगल की ओर इशारा किया, “मुझे यहाँ पर बाल बहुत पसंद हैं।”
मैंने उसकी आँखों में एक शर्म महसूस की और उसने नज़रें झुका लीं… हाथ भी नीचे कर लिया।
“बहुत ज्यादा साफ़ भी नहीं करना चाहिए, इससे स्किन काली पड़ जाती है। है न?”
“हाँ… छोड़िये।”
“अरे नहीं… इसमें शर्माने की क्या बात है, जब तक आपका काम हो नहीं जाता हम कुछ बात तो करेंगे ही। कितने दिन में बनाती हैं आप?”
“दो ढाई महीने के बाद।”
“और वहाँ के?” मैंने शरारत भरे अंदाज़ में कहा।
वो शरमा कर परे देखने लगी, मगर उसके होंठों पर एक मुस्कराहट आई थी, जिसे उसने होंठ अन्दर भींच कर दबाने की कोशिश की, मगर वो मुझे इतना तो बता गई कि उसने बुरा नहीं माना। मुझ में एक नई उम्मीद का संचार हुआ।
“बताइये न.. मैं क्या किसी से कहने जा रहा हूँ !”
“साथ में ही !” उसने धीरे से कहा।
“ओहो… मतलब अभी वहाँ पर भी इतनी ही रौनक होगी… असल में कुछ लोगों के पैशन कुछ अलग होते हैं और ये बाल मेरा पैशन हैं। मैं इन्हें तो देख सकता हूँ… काश वहाँ के भी देख पाता।”
“आपकी शादी हो गई?” उसने बातचीत का विषय बदला।
“हाँ… पर किस्मत में शादी का सुख नहीं। पत्नी पहले से ही किसी से फंसी हुई थी, उसने मुझे सिर्फ अपना मतलब निकालने के लिए इस्तेमाल किया और अपने यार के साथ चली गई, मैं तो अकेला ही रह गया।” मैंने कुछ मायूसी भरे अंदाज़ में कहा।
“ओह !” उसके स्वर में हमदर्दी का पुट था।
और फिर उसने जो बात कहीं, उसने मेरे उम्मीदों के दिए एकदम से रोशन कर दिए।
“सुख का क्या है, कई लोग होते हैं, जिनकी किस्मत में शादी टूटने के बाद सुख नहीं होता और कई लोग होते हैं जिनकी किस्मत में शादी होते हुए भी सुख नहीं होता।”
कहते वक़्त उसकी आवाज़ में एक मायूसी थी जिसने मेरे लोअर में हलचल मचा दी। मैंने उसकी आँखों में झांकना चाह मगर उसने निगाहें नीची कर लीं।
“क्या कहीं और कोई कोई लड़की है अजय की ज़िन्दगी में?”
“नहीं।”
“अच्छा, तो इसका मतलब यह है कि वो तुम्हें वैसे शारीरिक सुख नहीं दे पाता जो तुम्हें मिलना चाहिए।” मैंने अगला वार किया।
उसकी काया ‘कांप’ कर रह गई। होंठ हिले मगर कुछ शब्द न निकल सके… उसने एक नज़र उठा कर मेरी आँखों में देखा और वापस नज़रें नीची कर लीं।
मैंने मन ही मन नाप-तौल कर शब्द चुने और कहना शुरू किया, ” देखो, मेरी कहानी भी अजीब है, शादी हुई मगर उस लड़की से जिसने मुझे एक चीज़ की तरह इस्तेमाल किया। अपना मतलब निकल गया और किनारे कर दिया। अब मैं सोचता हूँ तो लगता है कि ठीक है, मैं एक चीज़ ही हूँ जिसे इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन मुझे उस इस्तेमाल से ऐतराज़ था। पर अगर तुम इस्तेमाल करना चाहो तो मुझे कोई परेशानी नहीं। मैं दावा तो नहीं कर सकता मगर मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हें मायूसी नहीं होगी।”
यह एक वार था, जिसकी प्रतिक्रिया पर मुझे ध्यान देना था। ऐसा लगा नहीं कि वह समझ न पाई हो। मगर फिर भी उसने सवालिया निगाहों से मुझे देखा।
मैंने सॉकेट लगा कर अब बोर्ड को बंद कर दिया और फिर घूम कर उसके कंधे पकड़ लिए। उसके जिस्म में एक थरथरी दौड़ गई।
“तुम मुझे यूज़ कर सकती हो… एक सामान की तरह, जब मन भर जाए निकल फेंकना अपनी ज़िन्दगी से। वादा करता हूँ कि कभी बात मेरे सीने से आगे नहीं बढ़ेगी।”
“मम… मैं… कोई जान… ये ठीक नहीं…” वह समझ ही नहीं पाई कि क्या बोले, क्या कहे और मैं अब और मौका देना नहीं चाहता था। मैंने एकदम से उसके होंठ पर होंठ रख दिए। उसने मेरी पकड़ से निकलना चाहा, लेकिन मैंने उसकी कमर पर अपनी गिरफ्त मज़बूत कर ली थी।
उसने चेहरा हटाना चाहा, मगर मैंने वो भी न करने दिया और ऐतराज़ के सिर्फ चंद पलों बाद उसके होंठ खुल गए और वो खुद से मेरे होंठों को, जीभ को चूसने चुभलाने लगी, उसकी ढीली बाहें मेरी कमर पर सख्त हो गईं। मुझे इसी पल में अपनी जीत का एहसास हो गया।
मैंने उसे थामे-थामे पीछे खिसक कर दरवाज़ा बोल्ट किया और खिसकाते हुए बिस्तर पर लाकर गिरा लिया। अब होंठों से उसके होंठ चूसते हुए एक हाथ से उसकी गर्दन के बालों पर पकड़ बनाते हुए, उसकी कसी-कसी चूचियाँ दबाने मसलने लगा। फिर मैंने होंठ अलग करके उसकी गहरी गहरी आँखों में झाँका।
“जब तुम सही मायने में सम्भोग के लिए मानसिक और शारीरिक तौर पर तैयार हो पाती होगी तब तक वो खलास हो चुका होता होगा। है न !!” मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा।
वो मुस्कराई। मगर उसकी मुस्कराहट में एक उदासी थी, जो कह रही थी कि मैं सही हूँ।
मैंने फिर उसके होंठ दबोच लिए और हाथ नीचे ले जाकर उसके गाउन में घुसा कर ऊपर चढ़ाया तो साथ में वो ऊपर सिमटता चला आया और वो लगभग नग्न हो गई… ब्रा तो थी ही नहीं, पैंटी भी ऐसी फैंसी थी कि सिर्फ चूत को ही ढके थी।
मैंने उसकी रजामंदी के साथ गाउन उसके शरीर से निकाल दिया और खुद भी अपने कपड़े उतार कर वहीं डाल दिए।
सबसे पहले मैंने उसके बदन को कुत्ते की तरह चाट डाला, जी भर के उसके चूचे दबाए, घुंडियों को मसला-चूसा, फिर उसकी पैंटी नीचे खींच कर अलग कर दी।
उसकी चूत मेरे सामने अनावृत हो गई। उस पर उतने ही बाल थे, जितने महीने भर की शेविंग के बाद होते हैं।
मैंने उसमें मुँह डाल दिया… एक महक सी मेरे नथुनों से हो कर मेरे दिमाग में चढ़ गई। उसकी कलिकाएँ गहरे रंग की और बड़ी बड़ी थीं। मैंने उन्हें होंठों से चुभलाना शुरू किया… अलका ऐंठने लगी… साथ में जुबान से उसके दाने से खेलने लगा और पानी-पानी हो रही बुर में एक उंगली सरका दी।
वो जोर जोर से सिस्कारने लगी और ज्यादा देर नहीं लगी जब उसकी चूत पानी से बुरी तरह भीग गई, मैंने दो उँगलियाँ अन्दर सरका दी और अन्दर बाहर करने लगा। यह
मित्रो आपके लिए छोटी छोटी कहानियों के संग्रह के रूप मे अपनी कामलीला के वो अध्याय लेकर आया हूँ जहाँ मेरा इस्तेमाल किस किस तरह हुआ तो मित्रो चलते इस लंबे सफ़र इस आशा में कि आपका भरपूर साथ मिलेगा
दोस्तो, मैं इमरान, मुंबई में रहता हूँ और एक मोबाइल कम्पनी में काम करता हूँ। ज़िन्दगी अब तक ऐसी गुजरी है कि उस पर कभी तो लानत भेजने का मन करता है और कभी सोचता हूँ क्या बुराई है इसमें…! मुझे ऐसा लगता है जैसे हमेशा मुझे लोगों ने इस्तेमाल ही किया है और किया भी है तो बुराई क्या… अगर दूसरों ने मेरे शरीर के साथ मज़े लिए हैं तो मुझे भी तो आनन्द आया है न !
मुझे सबसे पहले उस लड़की ने इस्तेमाल किया जिसे मेरी घर वालों ने मेरी बीवी बनाया। उसका नाम रुखसार था। शादी मेरे होम टाउन भोपाल में ही हुई थी और लड़की भी रिश्तेदारी से ही थी। मैं उसे पाकर खुश हुआ था। ग़ज़ब का माल थी, लेकिन जल्दी ही मेरी ख़ुशी काफूर हो गई थी जब उसने मुझे सुहागरात तक में हाथ नहीं लगाने दिया, यह कह कर कि उसे माहवारी शुरू हो गई है।
उस दिन तो मैंने सब्र कर लिया, लेकिन फिर मायके जाकर, आने के बाद भी कुछ न कुछ ड्रामा कर के कन्नी काटती रही, तो मैं बेचैन हुआ और फिर एक दिन की घटना ने मेरे होश उड़ा दिए।
उस दिन मेरे घर में कोई नहीं था। बाकी घर वाले मामू के लखनऊ गए हुए थे और घर में हम मियां बीवी ही थे। मैं रात में घर लौटा तो नज़ारा ही कुछ और मिला। बाहर की चाबी मेरे पास थी, मुझे एक बाईक बाहर खड़ी दिखी तो लगा कोई आया है।
मगर जब दरवाज़ा लॉक मिला तो शक हुआ और घन्टी बजाने के बजाय मैंने चाबी से दरवाज़ा खोला और अन्दर घुसा। अन्दर मेरे बेडरूम से कुछ सिसकारियों जैसी आवाज़ आ रही थीं।
मैंने पास पहुँच कर देखा तो दरवाज़ा इतना तो खुला था कि अन्दर का नज़ारा दिख सके। अन्दर बेड पर दो नंगे जिस्म गुत्थमगुत्था हो रहे थे…
एक तो मेरी बीवी रुखसार थी और दूसरा सलमान खान जैसी बॉडी वाला कोई अजनबी। इस वक़्त उस अजनबी का लंड रुखसार की चूत में पेवस्त था और वो धक्के खाने के साथ सिस्कार रही थी। मेरे देखते देखते धक्कों ने जोर पकड़ लिया और वो दोनों ही अंट-शंट बकने लगे…
मैं क्या उसे रोक सकता था? मैंने खुद से सवाल किया। वो मुझसे ड्योढ़ा तो था ही, मेरे ही घर में मुझे पीट डालता।
फिर देखते-देखते दोनों के बदन ऐंठ गए और वो वही बिस्तर पर चिपके चिपके फैल गए। तब रुखसार की नज़र मुझ पर पड़ी, उसने अजनबी को इशारा किया और वो भी मुझे देखने लगा, मगर क्या मजाल कि उनकी पोजीशन में कोई फर्क आया हो।
“आओ आओ मेरे शौहर… तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे।” रुखसार ने ही शुरुआत की और मैं अन्दर आ गया।
“मेरे साथ तो रोज़ कोई न कोई बहाना बना देती हो और यहाँ यह हाल है?”
वो जोर से हंसी।
“हाँ जी, यही हाल है… यह मेरा आल टाइम फेवरेट ठोकू है, मुझे इसके सिवा किसी के भी लंड से इन्कार है, मैं इससे ही शादी करना चाहती थी, मगर इसमें परेशानी यह थी कि एक तो यह गरीब और दूसरे तलाकशुदा…! कहाँ मेरे घर वाले राज़ी होते, तो हमने यह आईडिया निकाला था कि मैं किसी लल्लू से शादी कर लेती हूँ, इसके बाद हम आराम से चुदाई कर सकते हैं। अगर वो सब जान कर चुप रहता है तो भी ठीक और अगर मुझे तलाक दे देता है तो और भी ठीक, क्योंकि तब मैं भी तलाकशुदा हो जाऊँगी और तब हम शादी कर सकते हैं। अब यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम किस बात पर राजी होते हो।”
“मतलब तुमने मुझे सिर्फ इस्तेमाल किया?”
“ज़ाहिर है।”
और मैं दूसरे विकल्प पर गया और अगले ही दिन उसे तलाक देकर खुद दिल्ली चला आया, जहाँ तब मेरी नौकरी थी। यह मुझे प्रयोग करने की शुरुआत थी जिसमें मुझे सिवा ज़िल्लत के कुछ न हासिल हुआ। लेकिन इसके बाद मैंने इस प्रयोग में भी अपनी दुनिया तलाश ली।
मैं कृष्ण पार्क के एक मकान में किरायेदार के तौर पर रहता था। मैं अकेला ही रहता था जब कि ऊपर की मंजिल पर दो हिस्से थे और दूसरे हिस्से में एक मियां-बीवी रहते थे। पति का नाम अजय था जो पश्चिम विहार में कहीं नौकरी करता था और पत्नी का नाम अलका था। अलका बाईस-तेईस साल की एक खूबसूरत युवती थी, जिसके जिस्म को शायद ऊपर वाले ने फुर्सत से तराशा था।
वह लोग मेरे बाद रहने आये थे और जैसे ही मैंने अलका को देखा था, मेरी लार टपक गई थी, गोरा रंग, तीखे नैन-नक्श 36 इन्च की चूचियाँ, चूतड़ और चूचियों के बीच कमर ‘डम्बल’ जैसी लगती थी। उसकी कजरारी आँखों ने जैसे मेरा मन मोह लिया था।
अलका घर पर ही रहती थी और उसके चक्कर में मुझे भी जब काम से छुट्टी मिलती थी तो मैं घर पर ही गुजारता था और इस तरह मुझे उसके दर्शन तो हो ही जाते थे। वो कभी सामने से नज़र मिला कर नहीं देखती थी, इसलिए मैं समझ नहीं पा रहा था कि उसके मन में कुछ था भी या नहीं।
बाकी जब वो साटन का गाउन पहन कर फिरती थी तो उसके बदन की सिलवटें बताती थीं कि वो मुझे दिखाने के लिए हैं। सामने उभरे उसे दो निप्पल मुझे कहते लगते थे कि आओ हमें चूसो।
धीरे-धीरे हमें साथ रहते तीन महीने हो गए, मगर कोई जुगाड़ न बना। लेकिन एक दिन ऐसी एक बात हुई, जिसने मेरी उम्मीदों को फिर से रोशन कर दिया।
हुआ यह कि उस दिन मेरी छुट्टी थी और मैं कमरे पर ही था जब वह आई। उस वक़्त उसने एक स्लीवलैस गाउन पहना हुआ था और सीना देखने पर साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि उसने नीचे ब्रा नहीं पहन रखी थी। कोई भड़काऊ परफ्यूम लगाया हुआ था जिससे अजीब सा नशा छा रहा था और मन में सवाल उठ रहा था कि क्या यह परफ्यूम मेरे लिए यूज़ किया गया?
“आपको थोड़ा बहुत बिजली वगैरह का काम आता है न? मैंने देखा है आप खुद ही अपनी चीजें सही कर लेते हैं।”
“हाँ हाँ… अब इंजीनियर हूँ तो इतना तो कर ही सकता हूँ।”
“मेरे बोर्ड का सॉकेट जल गया था, वह ले तो आये थे, मगर लगाने का वक़्त ही नहीं मिला। आज कुछ अर्जेंट काम था तो जल्दी ही चले गए। आप लगा देंगे?”
“हाँ… क्यों नहीं !”
“आपकी बड़ी मेहरबानी…” कह कर वो धीरे से हंसी।
और मेरे मन में लड्डू फूटा, मैं उसके साथ हो लिया। कमरे में लाकर वो मेरे साथ ही खड़ी हो गई और मैं काम से लग गया। उसके बदन से उठती महक मुझे बुरी तरह बेचैन कर रही थी। इस बीच उसे हेल्प के लिए बार-बार हाथ उठाने पड़ते थे, जिससे उसके स्लीवलैस गाउन के नीचे बगल से दिखते बाल मेरी उत्तेजना को और बढ़ा रहे थे। ये मेरी एक कमजोरी थे।
“अच्छे हैं।” मेरे मुँह से निकला।
“क्या?” उसने अचकचा कर मेरी आँखों में झाँका।
“यह,” मैंने उसकी बगल की ओर इशारा किया, “मुझे यहाँ पर बाल बहुत पसंद हैं।”
मैंने उसकी आँखों में एक शर्म महसूस की और उसने नज़रें झुका लीं… हाथ भी नीचे कर लिया।
“बहुत ज्यादा साफ़ भी नहीं करना चाहिए, इससे स्किन काली पड़ जाती है। है न?”
“हाँ… छोड़िये।”
“अरे नहीं… इसमें शर्माने की क्या बात है, जब तक आपका काम हो नहीं जाता हम कुछ बात तो करेंगे ही। कितने दिन में बनाती हैं आप?”
“दो ढाई महीने के बाद।”
“और वहाँ के?” मैंने शरारत भरे अंदाज़ में कहा।
वो शरमा कर परे देखने लगी, मगर उसके होंठों पर एक मुस्कराहट आई थी, जिसे उसने होंठ अन्दर भींच कर दबाने की कोशिश की, मगर वो मुझे इतना तो बता गई कि उसने बुरा नहीं माना। मुझ में एक नई उम्मीद का संचार हुआ।
“बताइये न.. मैं क्या किसी से कहने जा रहा हूँ !”
“साथ में ही !” उसने धीरे से कहा।
“ओहो… मतलब अभी वहाँ पर भी इतनी ही रौनक होगी… असल में कुछ लोगों के पैशन कुछ अलग होते हैं और ये बाल मेरा पैशन हैं। मैं इन्हें तो देख सकता हूँ… काश वहाँ के भी देख पाता।”
“आपकी शादी हो गई?” उसने बातचीत का विषय बदला।
“हाँ… पर किस्मत में शादी का सुख नहीं। पत्नी पहले से ही किसी से फंसी हुई थी, उसने मुझे सिर्फ अपना मतलब निकालने के लिए इस्तेमाल किया और अपने यार के साथ चली गई, मैं तो अकेला ही रह गया।” मैंने कुछ मायूसी भरे अंदाज़ में कहा।
“ओह !” उसके स्वर में हमदर्दी का पुट था।
और फिर उसने जो बात कहीं, उसने मेरे उम्मीदों के दिए एकदम से रोशन कर दिए।
“सुख का क्या है, कई लोग होते हैं, जिनकी किस्मत में शादी टूटने के बाद सुख नहीं होता और कई लोग होते हैं जिनकी किस्मत में शादी होते हुए भी सुख नहीं होता।”
कहते वक़्त उसकी आवाज़ में एक मायूसी थी जिसने मेरे लोअर में हलचल मचा दी। मैंने उसकी आँखों में झांकना चाह मगर उसने निगाहें नीची कर लीं।
“क्या कहीं और कोई कोई लड़की है अजय की ज़िन्दगी में?”
“नहीं।”
“अच्छा, तो इसका मतलब यह है कि वो तुम्हें वैसे शारीरिक सुख नहीं दे पाता जो तुम्हें मिलना चाहिए।” मैंने अगला वार किया।
उसकी काया ‘कांप’ कर रह गई। होंठ हिले मगर कुछ शब्द न निकल सके… उसने एक नज़र उठा कर मेरी आँखों में देखा और वापस नज़रें नीची कर लीं।
मैंने मन ही मन नाप-तौल कर शब्द चुने और कहना शुरू किया, ” देखो, मेरी कहानी भी अजीब है, शादी हुई मगर उस लड़की से जिसने मुझे एक चीज़ की तरह इस्तेमाल किया। अपना मतलब निकल गया और किनारे कर दिया। अब मैं सोचता हूँ तो लगता है कि ठीक है, मैं एक चीज़ ही हूँ जिसे इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन मुझे उस इस्तेमाल से ऐतराज़ था। पर अगर तुम इस्तेमाल करना चाहो तो मुझे कोई परेशानी नहीं। मैं दावा तो नहीं कर सकता मगर मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हें मायूसी नहीं होगी।”
यह एक वार था, जिसकी प्रतिक्रिया पर मुझे ध्यान देना था। ऐसा लगा नहीं कि वह समझ न पाई हो। मगर फिर भी उसने सवालिया निगाहों से मुझे देखा।
मैंने सॉकेट लगा कर अब बोर्ड को बंद कर दिया और फिर घूम कर उसके कंधे पकड़ लिए। उसके जिस्म में एक थरथरी दौड़ गई।
“तुम मुझे यूज़ कर सकती हो… एक सामान की तरह, जब मन भर जाए निकल फेंकना अपनी ज़िन्दगी से। वादा करता हूँ कि कभी बात मेरे सीने से आगे नहीं बढ़ेगी।”
“मम… मैं… कोई जान… ये ठीक नहीं…” वह समझ ही नहीं पाई कि क्या बोले, क्या कहे और मैं अब और मौका देना नहीं चाहता था। मैंने एकदम से उसके होंठ पर होंठ रख दिए। उसने मेरी पकड़ से निकलना चाहा, लेकिन मैंने उसकी कमर पर अपनी गिरफ्त मज़बूत कर ली थी।
उसने चेहरा हटाना चाहा, मगर मैंने वो भी न करने दिया और ऐतराज़ के सिर्फ चंद पलों बाद उसके होंठ खुल गए और वो खुद से मेरे होंठों को, जीभ को चूसने चुभलाने लगी, उसकी ढीली बाहें मेरी कमर पर सख्त हो गईं। मुझे इसी पल में अपनी जीत का एहसास हो गया।
मैंने उसे थामे-थामे पीछे खिसक कर दरवाज़ा बोल्ट किया और खिसकाते हुए बिस्तर पर लाकर गिरा लिया। अब होंठों से उसके होंठ चूसते हुए एक हाथ से उसकी गर्दन के बालों पर पकड़ बनाते हुए, उसकी कसी-कसी चूचियाँ दबाने मसलने लगा। फिर मैंने होंठ अलग करके उसकी गहरी गहरी आँखों में झाँका।
“जब तुम सही मायने में सम्भोग के लिए मानसिक और शारीरिक तौर पर तैयार हो पाती होगी तब तक वो खलास हो चुका होता होगा। है न !!” मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा।
वो मुस्कराई। मगर उसकी मुस्कराहट में एक उदासी थी, जो कह रही थी कि मैं सही हूँ।
मैंने फिर उसके होंठ दबोच लिए और हाथ नीचे ले जाकर उसके गाउन में घुसा कर ऊपर चढ़ाया तो साथ में वो ऊपर सिमटता चला आया और वो लगभग नग्न हो गई… ब्रा तो थी ही नहीं, पैंटी भी ऐसी फैंसी थी कि सिर्फ चूत को ही ढके थी।
मैंने उसकी रजामंदी के साथ गाउन उसके शरीर से निकाल दिया और खुद भी अपने कपड़े उतार कर वहीं डाल दिए।
सबसे पहले मैंने उसके बदन को कुत्ते की तरह चाट डाला, जी भर के उसके चूचे दबाए, घुंडियों को मसला-चूसा, फिर उसकी पैंटी नीचे खींच कर अलग कर दी।
उसकी चूत मेरे सामने अनावृत हो गई। उस पर उतने ही बाल थे, जितने महीने भर की शेविंग के बाद होते हैं।
मैंने उसमें मुँह डाल दिया… एक महक सी मेरे नथुनों से हो कर मेरे दिमाग में चढ़ गई। उसकी कलिकाएँ गहरे रंग की और बड़ी बड़ी थीं। मैंने उन्हें होंठों से चुभलाना शुरू किया… अलका ऐंठने लगी… साथ में जुबान से उसके दाने से खेलने लगा और पानी-पानी हो रही बुर में एक उंगली सरका दी।
वो जोर जोर से सिस्कारने लगी और ज्यादा देर नहीं लगी जब उसकी चूत पानी से बुरी तरह भीग गई, मैंने दो उँगलियाँ अन्दर सरका दी और अन्दर बाहर करने लगा। यह