desiaks
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रात्रि के तीन बज रहे थे।
आसमान पर उतर आया चाँद थकान से चूर हो गया लगता था और वह आसमान से पलायन करने की तैयारी कर रहा था। उसकी चांदनी फीकी-फीकी लग रही थी।
कमला बाई एक घंटा पहले सोई थी, आज उसके यहां खासी रकम आई थी – यह रकम एक नई लौंडी की नथ उतरवाई की थी, जिसे विक्रमगंज के एक साहूकार ने भेंट किया था। काफी रात गए यह सौदा हो पाया था। इस सौदे में गढ़ी के ठाकुर ने भाग नहीं लिया था। कमला बाई काफी रात गए तक ठाकुर का इंतज़ार करती रही थी।
इस समय वह थकी हारी सो गई थी, और उसे इसकी जरा भी खबर नहीं थी की मैं उसके कमरे में मंडरा रहा हूं। मेरी चमकीली आँखें उसके उफनते यौवन को निहार रही थी, एक वैश्या होते हुए भी न जाने कैसे उसने अपने रूप यौवन को संभाल कर रखा था।
उसकी आयु छब्बीस साल से अधिक नहीं लगती थी।
मैंने कमरा भीतर से बंद कर लिया था और आनन्दित होकर उसके यौवन का रसपान कर रहा था, मुर्दा चांदनी खिड़की के रास्ते झाँक रही थी। मुझे खिड़की पर बेताल के मौजूद होने का आभास हुआ, जो मेरे हुक्म की राह देख रहा था।
अचानक मैंने अपना कार्य शुरू किया।
बेताल ने उसे बिस्तरे से उठाया और धम्म के साथ फर्श पर पटक दिया। एक हलकी चीख के साथ उसकी आंख खुल गई, फिर वह बौखलाकर चारों तरफ देखने लगी।
भागकर उसने रौशनी जलाई।
उस वक़्त मैं उसके बिस्तर पर लेटा था।
उसने आश्चर्य से मुझे देखा और फिर भय से उसके नेत्र फैलते चले गये।
“शोर न मचाना कमला बाई।” मैंने कहा।
उसने चीखना चाहा, तभी वह आश्चर्यजनक ढंग से जमीन छोड़ती चली गई, उसकी चीख गले में ही अटककर रह गई। वह एकदम छत से उलटी लटक गई, उसका पेटीकोट सर की तरफ आ गया और उसके गले से नाना प्रकार की आवाजें निकलने लगी।
मैं जंगली की तरह उसे घूर रहा था।
कुछ क्षण बाद ही वह अचेत हो गई।
दूसरी बार जब उसे होश आया तो उसने अपने को जंगली झाड़ियों से घिरे एक कुन्ज में पाया।
“बोलो... अब क्या इरादा है ?” मैंने पूछा।
वह भयभीत सी मेरे पैरों में गिरकर रोने लगी।
“इससे तेरा काम नहीं बनेगा... तुझे मेरा कहा मानना होगा।”
वह सबकुछ करने के लिए तैयार हो गई।
“किसी को कुछ बताया तो ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा।”
“न...मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगी।” उसकी आँखों में आंसू आ गए।
“तो बता शमशेर तेरे पास कब आता है?”
“वह इस हफ्ते नहीं आया।”
“कब आएगा ?”
“पता नहीं... क्यों नहीं आ रहा है... वह तो दूसरे तीसरे रोज आ जाता था।”
“तुझे उसे जल्दी अपने पास बुलाना होगा...चाहे जो बहाना लड़ा।”
“ठ...ठीक है।”
“मैं हर रात तीन बजे तेरे पास आउंगा... तू मुझे पसंद आ गई है।”
मैं खोखली हंसी हंसा।
“आप जो कहें मुझे सब मंजूर है।”
“ठीक है... अब तो सुबह हो रही है, कल रात आउंगा...और शमशेर के दावतनामे का इंतज़ार कर, समझी।”
“जी...जी।”
“मेरी चेतावनी याद है न ?”
“है...।”
“मुझसे भागने की कोशिश न करना।”
वह चुप रही।
मैंने उसे वापिस अपने कोठे पर लौट जाने का हुक्म दिया।
आसमान पर उतर आया चाँद थकान से चूर हो गया लगता था और वह आसमान से पलायन करने की तैयारी कर रहा था। उसकी चांदनी फीकी-फीकी लग रही थी।
कमला बाई एक घंटा पहले सोई थी, आज उसके यहां खासी रकम आई थी – यह रकम एक नई लौंडी की नथ उतरवाई की थी, जिसे विक्रमगंज के एक साहूकार ने भेंट किया था। काफी रात गए यह सौदा हो पाया था। इस सौदे में गढ़ी के ठाकुर ने भाग नहीं लिया था। कमला बाई काफी रात गए तक ठाकुर का इंतज़ार करती रही थी।
इस समय वह थकी हारी सो गई थी, और उसे इसकी जरा भी खबर नहीं थी की मैं उसके कमरे में मंडरा रहा हूं। मेरी चमकीली आँखें उसके उफनते यौवन को निहार रही थी, एक वैश्या होते हुए भी न जाने कैसे उसने अपने रूप यौवन को संभाल कर रखा था।
उसकी आयु छब्बीस साल से अधिक नहीं लगती थी।
मैंने कमरा भीतर से बंद कर लिया था और आनन्दित होकर उसके यौवन का रसपान कर रहा था, मुर्दा चांदनी खिड़की के रास्ते झाँक रही थी। मुझे खिड़की पर बेताल के मौजूद होने का आभास हुआ, जो मेरे हुक्म की राह देख रहा था।
अचानक मैंने अपना कार्य शुरू किया।
बेताल ने उसे बिस्तरे से उठाया और धम्म के साथ फर्श पर पटक दिया। एक हलकी चीख के साथ उसकी आंख खुल गई, फिर वह बौखलाकर चारों तरफ देखने लगी।
भागकर उसने रौशनी जलाई।
उस वक़्त मैं उसके बिस्तर पर लेटा था।
उसने आश्चर्य से मुझे देखा और फिर भय से उसके नेत्र फैलते चले गये।
“शोर न मचाना कमला बाई।” मैंने कहा।
उसने चीखना चाहा, तभी वह आश्चर्यजनक ढंग से जमीन छोड़ती चली गई, उसकी चीख गले में ही अटककर रह गई। वह एकदम छत से उलटी लटक गई, उसका पेटीकोट सर की तरफ आ गया और उसके गले से नाना प्रकार की आवाजें निकलने लगी।
मैं जंगली की तरह उसे घूर रहा था।
कुछ क्षण बाद ही वह अचेत हो गई।
दूसरी बार जब उसे होश आया तो उसने अपने को जंगली झाड़ियों से घिरे एक कुन्ज में पाया।
“बोलो... अब क्या इरादा है ?” मैंने पूछा।
वह भयभीत सी मेरे पैरों में गिरकर रोने लगी।
“इससे तेरा काम नहीं बनेगा... तुझे मेरा कहा मानना होगा।”
वह सबकुछ करने के लिए तैयार हो गई।
“किसी को कुछ बताया तो ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा।”
“न...मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगी।” उसकी आँखों में आंसू आ गए।
“तो बता शमशेर तेरे पास कब आता है?”
“वह इस हफ्ते नहीं आया।”
“कब आएगा ?”
“पता नहीं... क्यों नहीं आ रहा है... वह तो दूसरे तीसरे रोज आ जाता था।”
“तुझे उसे जल्दी अपने पास बुलाना होगा...चाहे जो बहाना लड़ा।”
“ठ...ठीक है।”
“मैं हर रात तीन बजे तेरे पास आउंगा... तू मुझे पसंद आ गई है।”
मैं खोखली हंसी हंसा।
“आप जो कहें मुझे सब मंजूर है।”
“ठीक है... अब तो सुबह हो रही है, कल रात आउंगा...और शमशेर के दावतनामे का इंतज़ार कर, समझी।”
“जी...जी।”
“मेरी चेतावनी याद है न ?”
“है...।”
“मुझसे भागने की कोशिश न करना।”
वह चुप रही।
मैंने उसे वापिस अपने कोठे पर लौट जाने का हुक्म दिया।