hotaks444
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अगले दिन सुबह मेरे खेतों में पहुँचने के कुछ ही समय बाद माँ ने वहाँ आकर मुझे चकित कर दिया. वो मेरे साथ मिलकर खेतों को तैयार कर उसमे बीज बोने, जानवरों को चारा डालने और जो फसल अब तैयार हो रही थी उसको पानी देने जैसे कामो में मेरी मदद करने लगी. मैने अपनी जिंदगी में माँ को कभी भी इतनी मेहनत करते नही देखा था जितनी वो उस दिन कर रही थी या आने वाले दिनो में करने वाली थी.
और जब हम पेड़ों वाली उँची जगह जिसे मैं टीला बोलता था, पे बैठकर आराम करते हुए नीचे अपने दिन भर के निपटाए काम को देख रहे थे तो वो मेरी पीठ थपथपाते बोली "बेटा तुमने वो कर दिखाया है जो तुम्हारे पिता के बाद असंभव ही था बल्कि उनके रहते भी असंभव ही था. अब मुझे यकीन है कि ज़मीन की तरह तुम हमारी ज़िंदगी में भी खुशली ला दोगे"
"चिंता मत करो माँ, अगर किस्मत ने साथ दिया तो समझो हमारे बुरे दिनो की लंबी रात ख़तम होने वाली है और ख़ुसीयों की नयी सुबह उगने वाली है" मैने माँ को हॉंसला दिया इस उम्मीद से कि या तो वो मुझे आलिंगन में ले लेगी या कल की तरह ही चूमेगी. मगर उस दिन उसका आचरण बहुत सही था उसने एसा कुछ नही किया जिसकी मैं उम्मीद लगाए बैठा था.
मेरी माँ के खेतों में काम करने का नकारात्मक पहलू ये था कि अब उसके पास मेरी बेहन को दुकान से राहत देने का समय नही मिलता था. उस दिन जब हम घर पहुँचे तो कोई खाना तैयार नही था. मेरी माँ ने घर के बॉरेहोल के पानी से जल्दी से स्नान किया और फिर हम सब के लिए खाना बनाया. ये मेरी बेहन के लिए एक और ताज्जुब की बात थी क्योंकि माँ ने कब का घर के काम काज में दिलचपसी लेना छोड़ दिया था. मेरी माँ दिन भर के कठिन परिश्रम के बाद बुरी तरह से थक गयी थी इसलिए खाने के बाद जल्द ही सो गयी. मैने अपनी बेहन को बताया कि कोई और भी है जिसे माँ के उस जबरदस्त बदलाव ने असचर्यचकित कर दिया होगा; सोभा. वो ज़रूर सोच रही होगी कि माँ या तो बीमार है या किसी और वजह से उससे लगातार दो दिन मिलने नही गयी.
मैने और मेरी बेहन ने उस रात कुछ बुझे हुए अनमने मन से प्यार किया. वो इस बात से नाखुश थी कि उसे दुकान में ज़्यादा समय काम करना पड़ा और जिसकी वजह से हम दोनो को आपस में कम समय मिला. अपनी बाहों में लेते हुए मैने उसे धृड़तापूर्वक बताया कि मुझे उसका इस तरह परेशान और व्याकुल होना बिल्कुल अच्छा नही लगता. यह एक और बदलाव था जिसकी हम दोनो को आदत डालनी थी और उस हिसाब से खुद को व्यवस्थित करना था. उसे मेरी बात समझ आ गयी थी शायद इसीलिए इसके बाद उसके चुंबनो में फिर से गर्माहट लौट आई थी. जब तक उसके सोने का समय होता वो अपनी व्यथा भूलकर वापस अपने रंग में आ गयी थी.
अगले दिन मेरी माँ हम तीनो मे सबसे पहले जागी और उसने मुझे जगाने के लिए सबसे पहले मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया. मेरी बेहन मेरे कंधे पर सर रखे गहरी नींद मे डूबी हुई थी. मैं एकदम से घबरा गया मुझे लगा जैसे वो अंदर आने वाली है और हम दोनो रंगे हाथों पकड़े जाने वाले हैं. मगर माँ दरवाजा खटखटा कर चली गयी. मैने बहन को हिला कर जगाया और उसे जल्दी से रूम से जाने के लिए कहा क्योंकि उस समय रास्ता सॉफ था. उस दिन हमारा बचाव हो गया था, मैने बहन को समझाया कि अब हमें ज़्यादा सावधानी रखनी होगी. यह भी एक एसा बदलाव था जिसकी हमें अब आदत डालनी थी.
लगभग एक हफ्ते बाद जब हम रोज की तरह टीले पर बैठे दिन भर के ख़तम किए काम को देखते हुए अपनी मेहनत के नतीजे से खुश हो रहे थे तो मैने माँ के गिर्द अपनी बाँह लपेटने का फ़ैसला किया. उसने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया तो मैने उसके कंधे पर हाथ रख उसे हल्का सा दबा कर खेती के काम में मेरी मदद के लिए उसका आभार प्रकट किया. यह वो आलिंगन नही था जिसकी मुझे चाह थी मगर ना होने से तो ये कहीं ज़्यादा अच्छा था.
उस समय मुझे इसका एहसास नही हुआ, मगर मेरे उस इशारे या भाव ने माँ को मेरे प्रति थोड़ा ज़्यादा सनेही बना दिया था. अब वो मुझे पहले की तुलना में थोड़ा खुल कर छू लेती थी. अब यह हमारे लिए नित्य का रीति रिवाज बन गया था कि दिन भर का काम ख़तम कर हम टीले पर एक दूसरे के साथ बैठते थे, उसका सर मेरे कंधो पर होता और मेरी बाँह उसके कंधो के गिर्द, कभी मैं प्यार से उसके कंधे को छू कर दुलार्ता और कभी कभी दबा देता. कभी कभी वो अपनी बाँह मेरी कमर के गिर्द सहारे के लिए लपेट लेती.
मेरी बेहन और मुझे अब इकट्ठे होने का निकटता का उतना समय नही मिलता था जितना हम दोनो एक दूसरे को प्यार करने के लिए चाहते थे इसलिए हम को झटपट जल्दी जल्दी संभोग से संतोष करना पड़ता जिसका मतलब होता मुझे जल्दी से अंदर डालकर जल्दी से स्खलित होना पड़ता, नतीजतन वो कयि बार स्खलित भी नही होती थी. केयी बार हमे सिर्फ़ चूमने-चिमटने का मौका मिलता और कयि बार हम प्यार करना शुरू भी नही कर पाते और दिन भर की थकान हमें सोने को मजबूर कर देती और जब आँख खुलती तो सुबह हो चुकी होती.
नतीजतन हमारा रिश्ता बुरी तरह प्रभावित होने लगा.
जल्दबाजी की आत्मीयता बहुत असंतोषजनक थी. हम वो सब कुछ एक दूसरे को कह नही सकते थे जो हम कहना चाहते थे, हम वो सब एक दूसरे के साथ कर नही सकते थे जो हम करना चाहते थे. मैं उसके साथ दिन भर का विवरण नही बाँट सकता था, उसे अपनी प्रगति के बारे में उतना खुल कर विस्तार से नही बता सकता था जितना मैं बताया करता था. हमारी कामक्रीड़ा से पहले एक दूसरे के अंगो को चूमने, चूसने, सहलाने जैसी गतिविधियाँ दिन भर दिन कम होती जा रही थी जिसकी वजह से स्नेह भी कम होता जा रहा था. हमारे अंदर एक दूसरे के लिए स्नेह पहले जैसा ही मौजूद था मगर यह कम होता इसलिए महसूस हो रहा था क्योंकि हम एक दूसरे को पहले जैसे प्यार नही कर पा रहे थे. इस मामले मे समझिए कम गिनती का मतलब कम गुणवत्ता भी था.
मैं उसकी आँखो में उसके स्वाभाव मे उस निराशा को बल्कि उस गुस्से को भी देख सकता था जो हमारी आत्मीयता का समय कम होने के कारण था. अब, क्योंकि इसमे मेरा कोई दोष नही था, इसलिए मुझे उसका इस तरह निराश होना या गुस्सा करना जायज़ नही लगा. हम पहले जितना या पहले जैसा समय एक साथ नही बिता सकते थे इसलिए नही कि चाहत में कोई कमी आ गयी थी बल्कि असलियत में अब मैं उसे पहले से ज़यादा चाहता था. समस्या सिर्फ़ यही थी कि मेरे पास समय ही नही बचता था कि मैं उसे दिखा सकता, मैं उसे कितना प्यार करता हूँ. मुझे यह बात भी अच्छी नही लगती कि मैं पूरा दिन इतना कठोर परिश्रम करता था ता कि हमारा भविष्य उज्ज्वल बन सके और वो हमारे मिलन के समय की कमी को हमारे बीच एक दरार का रूप दे रही थी. और यह दरार आने वाले हर दिन के साथ गहरी होती जा रही थी
और जब हम पेड़ों वाली उँची जगह जिसे मैं टीला बोलता था, पे बैठकर आराम करते हुए नीचे अपने दिन भर के निपटाए काम को देख रहे थे तो वो मेरी पीठ थपथपाते बोली "बेटा तुमने वो कर दिखाया है जो तुम्हारे पिता के बाद असंभव ही था बल्कि उनके रहते भी असंभव ही था. अब मुझे यकीन है कि ज़मीन की तरह तुम हमारी ज़िंदगी में भी खुशली ला दोगे"
"चिंता मत करो माँ, अगर किस्मत ने साथ दिया तो समझो हमारे बुरे दिनो की लंबी रात ख़तम होने वाली है और ख़ुसीयों की नयी सुबह उगने वाली है" मैने माँ को हॉंसला दिया इस उम्मीद से कि या तो वो मुझे आलिंगन में ले लेगी या कल की तरह ही चूमेगी. मगर उस दिन उसका आचरण बहुत सही था उसने एसा कुछ नही किया जिसकी मैं उम्मीद लगाए बैठा था.
मेरी माँ के खेतों में काम करने का नकारात्मक पहलू ये था कि अब उसके पास मेरी बेहन को दुकान से राहत देने का समय नही मिलता था. उस दिन जब हम घर पहुँचे तो कोई खाना तैयार नही था. मेरी माँ ने घर के बॉरेहोल के पानी से जल्दी से स्नान किया और फिर हम सब के लिए खाना बनाया. ये मेरी बेहन के लिए एक और ताज्जुब की बात थी क्योंकि माँ ने कब का घर के काम काज में दिलचपसी लेना छोड़ दिया था. मेरी माँ दिन भर के कठिन परिश्रम के बाद बुरी तरह से थक गयी थी इसलिए खाने के बाद जल्द ही सो गयी. मैने अपनी बेहन को बताया कि कोई और भी है जिसे माँ के उस जबरदस्त बदलाव ने असचर्यचकित कर दिया होगा; सोभा. वो ज़रूर सोच रही होगी कि माँ या तो बीमार है या किसी और वजह से उससे लगातार दो दिन मिलने नही गयी.
मैने और मेरी बेहन ने उस रात कुछ बुझे हुए अनमने मन से प्यार किया. वो इस बात से नाखुश थी कि उसे दुकान में ज़्यादा समय काम करना पड़ा और जिसकी वजह से हम दोनो को आपस में कम समय मिला. अपनी बाहों में लेते हुए मैने उसे धृड़तापूर्वक बताया कि मुझे उसका इस तरह परेशान और व्याकुल होना बिल्कुल अच्छा नही लगता. यह एक और बदलाव था जिसकी हम दोनो को आदत डालनी थी और उस हिसाब से खुद को व्यवस्थित करना था. उसे मेरी बात समझ आ गयी थी शायद इसीलिए इसके बाद उसके चुंबनो में फिर से गर्माहट लौट आई थी. जब तक उसके सोने का समय होता वो अपनी व्यथा भूलकर वापस अपने रंग में आ गयी थी.
अगले दिन मेरी माँ हम तीनो मे सबसे पहले जागी और उसने मुझे जगाने के लिए सबसे पहले मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया. मेरी बेहन मेरे कंधे पर सर रखे गहरी नींद मे डूबी हुई थी. मैं एकदम से घबरा गया मुझे लगा जैसे वो अंदर आने वाली है और हम दोनो रंगे हाथों पकड़े जाने वाले हैं. मगर माँ दरवाजा खटखटा कर चली गयी. मैने बहन को हिला कर जगाया और उसे जल्दी से रूम से जाने के लिए कहा क्योंकि उस समय रास्ता सॉफ था. उस दिन हमारा बचाव हो गया था, मैने बहन को समझाया कि अब हमें ज़्यादा सावधानी रखनी होगी. यह भी एक एसा बदलाव था जिसकी हमें अब आदत डालनी थी.
लगभग एक हफ्ते बाद जब हम रोज की तरह टीले पर बैठे दिन भर के ख़तम किए काम को देखते हुए अपनी मेहनत के नतीजे से खुश हो रहे थे तो मैने माँ के गिर्द अपनी बाँह लपेटने का फ़ैसला किया. उसने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया तो मैने उसके कंधे पर हाथ रख उसे हल्का सा दबा कर खेती के काम में मेरी मदद के लिए उसका आभार प्रकट किया. यह वो आलिंगन नही था जिसकी मुझे चाह थी मगर ना होने से तो ये कहीं ज़्यादा अच्छा था.
उस समय मुझे इसका एहसास नही हुआ, मगर मेरे उस इशारे या भाव ने माँ को मेरे प्रति थोड़ा ज़्यादा सनेही बना दिया था. अब वो मुझे पहले की तुलना में थोड़ा खुल कर छू लेती थी. अब यह हमारे लिए नित्य का रीति रिवाज बन गया था कि दिन भर का काम ख़तम कर हम टीले पर एक दूसरे के साथ बैठते थे, उसका सर मेरे कंधो पर होता और मेरी बाँह उसके कंधो के गिर्द, कभी मैं प्यार से उसके कंधे को छू कर दुलार्ता और कभी कभी दबा देता. कभी कभी वो अपनी बाँह मेरी कमर के गिर्द सहारे के लिए लपेट लेती.
मेरी बेहन और मुझे अब इकट्ठे होने का निकटता का उतना समय नही मिलता था जितना हम दोनो एक दूसरे को प्यार करने के लिए चाहते थे इसलिए हम को झटपट जल्दी जल्दी संभोग से संतोष करना पड़ता जिसका मतलब होता मुझे जल्दी से अंदर डालकर जल्दी से स्खलित होना पड़ता, नतीजतन वो कयि बार स्खलित भी नही होती थी. केयी बार हमे सिर्फ़ चूमने-चिमटने का मौका मिलता और कयि बार हम प्यार करना शुरू भी नही कर पाते और दिन भर की थकान हमें सोने को मजबूर कर देती और जब आँख खुलती तो सुबह हो चुकी होती.
नतीजतन हमारा रिश्ता बुरी तरह प्रभावित होने लगा.
जल्दबाजी की आत्मीयता बहुत असंतोषजनक थी. हम वो सब कुछ एक दूसरे को कह नही सकते थे जो हम कहना चाहते थे, हम वो सब एक दूसरे के साथ कर नही सकते थे जो हम करना चाहते थे. मैं उसके साथ दिन भर का विवरण नही बाँट सकता था, उसे अपनी प्रगति के बारे में उतना खुल कर विस्तार से नही बता सकता था जितना मैं बताया करता था. हमारी कामक्रीड़ा से पहले एक दूसरे के अंगो को चूमने, चूसने, सहलाने जैसी गतिविधियाँ दिन भर दिन कम होती जा रही थी जिसकी वजह से स्नेह भी कम होता जा रहा था. हमारे अंदर एक दूसरे के लिए स्नेह पहले जैसा ही मौजूद था मगर यह कम होता इसलिए महसूस हो रहा था क्योंकि हम एक दूसरे को पहले जैसे प्यार नही कर पा रहे थे. इस मामले मे समझिए कम गिनती का मतलब कम गुणवत्ता भी था.
मैं उसकी आँखो में उसके स्वाभाव मे उस निराशा को बल्कि उस गुस्से को भी देख सकता था जो हमारी आत्मीयता का समय कम होने के कारण था. अब, क्योंकि इसमे मेरा कोई दोष नही था, इसलिए मुझे उसका इस तरह निराश होना या गुस्सा करना जायज़ नही लगा. हम पहले जितना या पहले जैसा समय एक साथ नही बिता सकते थे इसलिए नही कि चाहत में कोई कमी आ गयी थी बल्कि असलियत में अब मैं उसे पहले से ज़यादा चाहता था. समस्या सिर्फ़ यही थी कि मेरे पास समय ही नही बचता था कि मैं उसे दिखा सकता, मैं उसे कितना प्यार करता हूँ. मुझे यह बात भी अच्छी नही लगती कि मैं पूरा दिन इतना कठोर परिश्रम करता था ता कि हमारा भविष्य उज्ज्वल बन सके और वो हमारे मिलन के समय की कमी को हमारे बीच एक दरार का रूप दे रही थी. और यह दरार आने वाले हर दिन के साथ गहरी होती जा रही थी