hotaks444
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वो एक गहरी साँस लेती है, मगर बिना कुछ बोले बेड पर चढ़ कर उसी मुद्रा में हो जाती है जैसा मैं चाहता था. बेड के एकदम कोने पे घुटने टिकाए वो चौपाया बन जाती है. वो अपने नीचे से अपना हाथ पीछे लाती है और जाँघो के मध्य से होकर मेरा लंड पकड़ अपनी रस टपकाती चूत से भिड़ा देती है. उसके कूल्हे हिल डुल कर होने वाले हमले के लिए तैयार होते हैं और मैं लंड का टोपा धक्का मार कर गीली चूत के अंदर कर देता हूँ. वो चादर को मुट्ठी मे भींच लेती है. "आख़िर कॉन तुम....." मैं कस कर धक्का मारता हूँ और लंड लगभग पूरा लंड चूत में घुसेड देता हूँ.
पटक! "ओह!....उफफफफफफ्फ़.....उफफफफफफफ्फ़" फिर से वही आवाज़ हवा में गूँजती है
पटक........पटक.......पटक.........पटक...........पटक.......
अगले कुछ मिंटो तक मैं अपनी लाया बदल बदल कर चुदाई करता रहा. मेरी उंगल अब भी उसकी चूत के दाने को सहला रही थी. मेरा दूसरा हाथ उसकी पतली सी कमर को सहला रहा था. मैं उसे नीचे की ओर दबाता हूँ ताकि उसका आगे का हिस्सा बेड से लग जाए और उसकी प्यारी गान्ड उभार कर मेरे सामने आ जाए. मैने दोनो हाथ उसके कुल्हो पर रख उसकी गान्ड को दबाने, मसलने, निचोड़ने लगा"
"तुम....तुम कितनी खूबसूरत हो, कितनी कामनीय हो.....कितनी मनमोहक!" मैं अपना लंड उसकी चूत में जड़ तक पेल देता हूँ और उसके उपर लेटते हुए उसकी पीठ, उसकी गर्दन और आख़िर में उसके कान को चूमता हूँ.
"मुझे तुम्हारी आँखो में झाँकना है. मुझे तुम्हारी आँखो को देखना है" वो एकदम से बोली.
मुझे अचानक उसकी यह इच्छा समझ में नही आई मगर एकम से उसकी बात से मैं बहुत जज़्बाती हो उठा--प्यार, डर, उदासी, खुशी. कयि भावनाए थी जो उस पल में मेने महसूस की.
"हूँ......मैं.....मैं भी तुम्हारी आँखो मैं देखना चाहता हूँ" मेरे गले से रुंध रुंध कर आवाज़ निकल रही थी.
मैने उसकी टाँग और गीली चूत से अपना झटके मारता लंड बाहर निकाला. मैं उसके साथ बेड पर चढ़ गया. उसके बदन के हर सूक्ष्म हर कामुक कटाव को अपनी आँखो में क़ैद कर रहा था. वो करवट लेकर सीधी हो गयी और उसने अपनी टाँगे मेरे स्वागत में खोल दीं. मैने उसका चेहरा देखा, हालाँकि कमरे रोशनी इतनी नही थी मगर फिर भी मैं उसके चेहरे पर पसरी शरम को देख सकता था. मैं उसकी टाँगो के मध्य में होता हूँ. मैं उसके दूध से सफेद मम्मों को दुलारता हूँ, उसके कड़े गुलाबी निप्प्लो को उंगलियों मे लेकर धीरे से मसलता हूँ और मेरा लंड उसकी चूत के चिकने होंठो मे उपर नीचे फिसलता है. मेरी आँखे आँसुओ से भर उठती हैं. उसकी भावें तन जाती हैं.
"क्या हुआ....कोई समस्या है" उसके चेहरे पर चिंता उमड़ आई थी.
मेरा दिल यकायक रोने को कर आया था. "नही, कुछ नही, बस ऐसे ही" मैने उसकी काली आँखो में झाँका तो मुझे लगा जैसे वो मेरी आत्मा मेरे अंतर में देख सकती है. वो मेरे अंदर के उन रक्षासों उन बुराइयों के बारे मे ज़रूर जानती होगी. मगर उस समय मेरे अंतर मे अच्छाई के सिवा कुछ भी नहीं था और वो मेरे अंतर में झाँक उस अच्छाई को देख रही होगी. वो....वो कितनी अदुभूत, कितनी प्यारी कितना ख़याल रखने वाली है, कितनी होशियार कितनी सतर्क है और वो किस तेरह अपने गुस्से पर काबू पा सकती थी. मैं भी उसी की तरह बनाना चाहता था और पिछले तीन महीनो से मैं यही कोशिस कर रहा था. तीन महीने बीत चुके थे, तीन महीने! मेरी गाल पर एक आँसू लुढ़क जाता है.
उसकी भवें फिर से तन जाती हैं. "क्या हुआ....आख़िर बात क्या है?" वो धीमे से कोमल स्वर में बोलती है.
मैं अपना गला सॉफ करता हूँ और इनकार मे सर हिलाता हूँ. "कुछ नही"
उसकी आँखे अब भी मेरी आँखो मे झाँक रही थीं. उसने मेरी कमर को थामा और मुझे अपनी और खींचा और उधर अपनी कमर आगे को दबाई. मेरा लंड उसकी चूत में धीरे धीरे सामने लगा. मुझे अपने बदन में झुरजुरी सी दौड़ती महसूस होती है. मेरे आँसू थमने लगते हैं और मेरी सांसो की रफ़्तार फिर से बढ़ने लगती है.
"अभी अच्छा महसूस हो रहा है ना?"
"उः-हूओन" मैने सहमति में सर हिलाया.
"तुम बहुत सुंदर हो, बहुत प्यारे भी, और बहुत अच्छे भी"
मेरी आँखे फिर से नम होने लगी "मैं जानता हूँ मैं बिल्कुल भी अच्छा नही हूँ मगर मैं बनाना चाहता हूँ.......तुम्हारे लिए"
"नही तुम बहुत अच्छे से हो. और हमेशा से हो"
वो अपनी कमर को हवा में उठाए तेज़ी से मेरे लंड पर पटकने लगी. मैने भी ताल से ताल मिलाते हुए उसके धक्कों का जवाब देने लगा. जल्द ही हम दिनो की साँसे फिर से भारी होने लगी. कभी कभी मैं जड़ तक लंड पेल कर रुक जाता और अपनी कमर घुमा घुमा कर उसकी चूत मे अपना लंड घिसने लगता. वो भी साथ देते हुए अपनी चूत के दाने को मेरे लंड पर रगड़ाती. वो फिर से स्खलित होने के नज़दीक पहुँचती जा रही थी. मैं अपनी रफ़्तार और तीव्रता मे विभिन्नता लाकर उसे चोदे जा रहा था. कभी मेरे धक्के बहुत बहुत धीमे और नरम पड़ जाते और कभी मैं कस कस कर पूरे जोशो ख़रोश से अपना लंड उसकी चूत की जड़ में पेलने लगता. मगर रफ़्तार चाहे कुछ भी हो, मुझे वो हर पल प्यार से भीगा हुआ लग रहा था, हमारी आँखे पूरे समय एक दूसरे पर जमी हुई थी.
अंत मैं हमारा कामोउन्माद इतना बढ़ गया कि हम जंगली जानवरों की तरह उछलने लगे जैसे हम दोनो में होड़ लगी थी यह दिखाने की कि दूसरे के लिए हमारे दिल मे कितनी मुहब्बत है, कितना प्यार है, कितना जनून है, कि एक दूसरे के जिस्म मे समा कर दो से एक हो जाने की कितनी गहरी तमन्ना है, कि कैसे हम अपने प्यार, अपने जनून की आग में खुद को जलना चाहते थे.
मैने एक बार फिर से पूरा लंड पेल कर उसकी चूत में रगड़ने लगा. उसने भी मेरे प्रतिबिंब की तरह अपनी कमर उठाकर लंड को चूत में घिसने लगी.
वो चूत के दाने को मेरे लंड पर घिस रही थी. "ओफफफफफफ्फ़...हे भगवान........अब .......अब......बस.......हाए...हाए....हाए........" जैसे ही वो मंज़िल पर पहुँची मेरे लंड से गरम वीर्य की पहली फुहार छूटी. उसका जिस्म ऐंठने लगा. मेरा जिस्म अकडने लगा, वीर्य की हर पिचकारी के साथ मेरे बदन को झटका लगता. मेरे जिस्म से गर्मी निकल उसके अंतर मे समा रही थी, और ये चलता जा रहा था, चलता जा रहा था, मगर असलियत में इसमे आधा मिनिट से ज़यादा समय नही लगा होगा. हम दोनो के चेहरे थोड़े विकृत हो गये थे मगर वो उस हदें पार कर जाने वाले आनंद की वजह से था ना कि किसी पीड़ा की वजह से. उसकी आँखे मेरी आँखे से एक पल के लिए भी नही हटी थी. उस परस्पर स्खलन के समय मैने वास्तव में ऐसा महसूस किया जैसे हम एक हो गये हों. आख़िरकार हमारे जिस्म सिथिल पड़ने लगे. उसका मुख खुला और वो हान्फते हुए साँसे लेने लगी जैसे उस समय मैं ले रहा था.
मुस्कराते हुए उसने मेरा चेहरा पकड़कर अपने चेहरे के पास खींचा और मेरे होंठो और गालों पर चुंबनो की बरसात करने लगी. उसकी उंगलिया मेरे चेहरे को स्पर्श करने लगी. "तुम अदुभूत हो" वो फुसफसा कर बोली.
मेरे अंतर में फिर से जज़्बात उमड़ने लगे. "मैं नही तुम अद्भुत हो"
वो खिलखिलाती हँसी हँसने लगी '"नही, देखो आज की रात कोई बहसबाज़ी नही, ठीक है?"
"ठीक है" मैने सहमति में सर हिलाया. मेरे अंदर का भावावेश अब निद्रा में तब्दील हो रहा था, मैं लगभग उंघ रहा था. ऐसा पहले कभी नही हुआ था, बल्कि इसके विपरीत हम जब भी पहले प्यार करते, संभोग करते जैसे हमने आज किया था तो मैं अपने अंदर एक उर्जा महसूस करता. कम सेकम इतनी ताक़त महसूस करता कि उससे से बातें कर सकूँ, उसके साथ हंस सकूँ, उसे कुछ समय तक छेड़ सकूँ. मैने एक गहरी साँस ली एक आह भारी.
"तुम्हे नींद आ रही है, है ना?" वो मुस्करा रही थी.
"उः...हा. हल्की हल्की. तुम्हे नही नींद आ रही?"
"हुउऊउन्ण...आ रही है" वो मेरे होंठो को प्यार से कोमलता से चूमते बोली.
मैने फिर से महसूस किया जैसे वो मेरे अंतर में झाँक रही है, मेरे दिल में, मेरी आत्मा में. जज़्बातों का तूफान फिर से उमड़ रहा था मगर नींद के ज़ोर ने जैसे उसे दबा दिया. उसकी चूत में मेरा लंड अब सिकुड़ने लगा था. एक मिनिट बाद वो फिसल कर बाहर आ गया. जब यह हुआ तो हम दोनो को हँसी आ गयी.
"तुम्हे नींद आ रही है? सोना चाहते हो?"
"हुउन्न्ं! अगर तुम्हे बुरा नही लगेगा तो मुझे बड़े ज़ोरों की नींद आ रही है"
"नही मुझे बिल्कुल भी बुरा नही लगेगा .इधर मेरे कंधे पर सर रखकर सोओ"
मैं उसकी बगल में ढेर हो गया और उसके कंधे पर सर रख दिया, उसकी छाती पर हाथ, उसकी टाँग पर टाँग चढ़ा कर मैने अपने होंठ उसकी गर्दन से सटा दिए. उसका हाथ मेरी पीठ सहला रहा था. मुझे कितना सुख, कितना आराम मिल रहा था.
मैने उसकी कान की लौ को चूमा "मुझे बहुत अच्छा लगा था जैसे तुमने वहाँ शेव की थी मगर......"
"मगर?" उसकी भवे तन गयी, उसे लगा जैसे मैं उसको कोई मज़ाक करने वाला था.
"एक दो महीने बाद तुम फिर से ...फिर से शेव मत करना" मैने जम्हाई लेते हुए कहा.
"मुझे लगा तुम्हे बिन बालों के अच्छी लगेगी. तुमने खुद भी बोला था ना?"
"हां मेने बोला था... मुझे अच्छा भी लगा, मगर पहले की तरह ज़्यादा नही मगर छोटे छोटे बाल मुझे ज़्यादा पसंद हैं" मैने मुस्करा कर कहा. "मुझे तुम्हारे कोमल रोयोँ पर अपना चेहरा रगड़ने में बहुत मज़ा आता है"
वो गहरी साँस लेती है थोड़े चिडचिडे पन से. मगर फिर मेरी ओर देखते प्यार से बोलती है "तुम्हे मालूम है ना वापस उगाने पर कितनी खुजली होती है"
"चिंता मत करो जब भी खुजली होगी तो मैं खुज़ला दिया करूँगा" मैं हँसने लगा
"चुप करो. अभी नींद नही आ रही" वो थोड़ा खीझ कर बोली
"आ रही है. मालूम नही क्यों. ऐसा पहले तो कभी नही हुआ.
"बस अपनी आँखे बंद कर्लो और आराम से सोने की कोशिस करो. मुझे खुद भी बहुत नींद आ रही है"
मैं जानता था वो झूठ बोल रही है मगर मुझे उसका ऐसा बोलना बहुत प्यारा लगा. मेरी आँखे बंद होती जा रही थी. मैं उससे और भी चिपक गया. उसका जिस्म कितना प्यारा था. मेरे होंठो पर हल्की सी मुस्कान फैल गयी जब मुझे याद आया कि संभोग के समय मैने उससे कहा था कि उसकी चूत जैसे मेरे लंड का नाप लेकर ही बनाई गयी है. मैने सिर्फ़ कहा नही था मैने ऐसा महसूस भी किया था कि वो जैसे मेरे लिए ही बनी है. मेने एक हल्की सी साँस ली और लगभग नींद के आगोश में जाने वाला ही था.
"एक बात और जो मैं भूल ही गयी थी" वो फिर से धीरे से बोली
मैं लगभग सोने की कगार पर था "हा....क्या? कॉन सी बात?" उसने फिर से मेरे माथे को चूमा और मैं फिर मुस्करा पड़ा, कितना सुखद था उसका साथ.
"मैं चाहती हूँ तुम मेरे बारे में चिंता करनी छोड़ दो. सब कुछ अच्छा हो जाएगा. देखो डरना नही, घबराना नही, परेशान नहीं होना और बिल्कुल भी उदास नही होना" उसके होंठो ने फिर से मेरे माथे को चूमा और वो फुसफसाई , "वायदा करो तुम मुझे लेकर अब बिल्कुल भी चिंतत नही होगे?"
"मैं वादा करता हुउन्न्ं" नींद के आगोश मे समाते हुए मैने कहा.
पटक! "ओह!....उफफफफफफ्फ़.....उफफफफफफफ्फ़" फिर से वही आवाज़ हवा में गूँजती है
पटक........पटक.......पटक.........पटक...........पटक.......
अगले कुछ मिंटो तक मैं अपनी लाया बदल बदल कर चुदाई करता रहा. मेरी उंगल अब भी उसकी चूत के दाने को सहला रही थी. मेरा दूसरा हाथ उसकी पतली सी कमर को सहला रहा था. मैं उसे नीचे की ओर दबाता हूँ ताकि उसका आगे का हिस्सा बेड से लग जाए और उसकी प्यारी गान्ड उभार कर मेरे सामने आ जाए. मैने दोनो हाथ उसके कुल्हो पर रख उसकी गान्ड को दबाने, मसलने, निचोड़ने लगा"
"तुम....तुम कितनी खूबसूरत हो, कितनी कामनीय हो.....कितनी मनमोहक!" मैं अपना लंड उसकी चूत में जड़ तक पेल देता हूँ और उसके उपर लेटते हुए उसकी पीठ, उसकी गर्दन और आख़िर में उसके कान को चूमता हूँ.
"मुझे तुम्हारी आँखो में झाँकना है. मुझे तुम्हारी आँखो को देखना है" वो एकदम से बोली.
मुझे अचानक उसकी यह इच्छा समझ में नही आई मगर एकम से उसकी बात से मैं बहुत जज़्बाती हो उठा--प्यार, डर, उदासी, खुशी. कयि भावनाए थी जो उस पल में मेने महसूस की.
"हूँ......मैं.....मैं भी तुम्हारी आँखो मैं देखना चाहता हूँ" मेरे गले से रुंध रुंध कर आवाज़ निकल रही थी.
मैने उसकी टाँग और गीली चूत से अपना झटके मारता लंड बाहर निकाला. मैं उसके साथ बेड पर चढ़ गया. उसके बदन के हर सूक्ष्म हर कामुक कटाव को अपनी आँखो में क़ैद कर रहा था. वो करवट लेकर सीधी हो गयी और उसने अपनी टाँगे मेरे स्वागत में खोल दीं. मैने उसका चेहरा देखा, हालाँकि कमरे रोशनी इतनी नही थी मगर फिर भी मैं उसके चेहरे पर पसरी शरम को देख सकता था. मैं उसकी टाँगो के मध्य में होता हूँ. मैं उसके दूध से सफेद मम्मों को दुलारता हूँ, उसके कड़े गुलाबी निप्प्लो को उंगलियों मे लेकर धीरे से मसलता हूँ और मेरा लंड उसकी चूत के चिकने होंठो मे उपर नीचे फिसलता है. मेरी आँखे आँसुओ से भर उठती हैं. उसकी भावें तन जाती हैं.
"क्या हुआ....कोई समस्या है" उसके चेहरे पर चिंता उमड़ आई थी.
मेरा दिल यकायक रोने को कर आया था. "नही, कुछ नही, बस ऐसे ही" मैने उसकी काली आँखो में झाँका तो मुझे लगा जैसे वो मेरी आत्मा मेरे अंतर में देख सकती है. वो मेरे अंदर के उन रक्षासों उन बुराइयों के बारे मे ज़रूर जानती होगी. मगर उस समय मेरे अंतर मे अच्छाई के सिवा कुछ भी नहीं था और वो मेरे अंतर में झाँक उस अच्छाई को देख रही होगी. वो....वो कितनी अदुभूत, कितनी प्यारी कितना ख़याल रखने वाली है, कितनी होशियार कितनी सतर्क है और वो किस तेरह अपने गुस्से पर काबू पा सकती थी. मैं भी उसी की तरह बनाना चाहता था और पिछले तीन महीनो से मैं यही कोशिस कर रहा था. तीन महीने बीत चुके थे, तीन महीने! मेरी गाल पर एक आँसू लुढ़क जाता है.
उसकी भवें फिर से तन जाती हैं. "क्या हुआ....आख़िर बात क्या है?" वो धीमे से कोमल स्वर में बोलती है.
मैं अपना गला सॉफ करता हूँ और इनकार मे सर हिलाता हूँ. "कुछ नही"
उसकी आँखे अब भी मेरी आँखो मे झाँक रही थीं. उसने मेरी कमर को थामा और मुझे अपनी और खींचा और उधर अपनी कमर आगे को दबाई. मेरा लंड उसकी चूत में धीरे धीरे सामने लगा. मुझे अपने बदन में झुरजुरी सी दौड़ती महसूस होती है. मेरे आँसू थमने लगते हैं और मेरी सांसो की रफ़्तार फिर से बढ़ने लगती है.
"अभी अच्छा महसूस हो रहा है ना?"
"उः-हूओन" मैने सहमति में सर हिलाया.
"तुम बहुत सुंदर हो, बहुत प्यारे भी, और बहुत अच्छे भी"
मेरी आँखे फिर से नम होने लगी "मैं जानता हूँ मैं बिल्कुल भी अच्छा नही हूँ मगर मैं बनाना चाहता हूँ.......तुम्हारे लिए"
"नही तुम बहुत अच्छे से हो. और हमेशा से हो"
वो अपनी कमर को हवा में उठाए तेज़ी से मेरे लंड पर पटकने लगी. मैने भी ताल से ताल मिलाते हुए उसके धक्कों का जवाब देने लगा. जल्द ही हम दिनो की साँसे फिर से भारी होने लगी. कभी कभी मैं जड़ तक लंड पेल कर रुक जाता और अपनी कमर घुमा घुमा कर उसकी चूत मे अपना लंड घिसने लगता. वो भी साथ देते हुए अपनी चूत के दाने को मेरे लंड पर रगड़ाती. वो फिर से स्खलित होने के नज़दीक पहुँचती जा रही थी. मैं अपनी रफ़्तार और तीव्रता मे विभिन्नता लाकर उसे चोदे जा रहा था. कभी मेरे धक्के बहुत बहुत धीमे और नरम पड़ जाते और कभी मैं कस कस कर पूरे जोशो ख़रोश से अपना लंड उसकी चूत की जड़ में पेलने लगता. मगर रफ़्तार चाहे कुछ भी हो, मुझे वो हर पल प्यार से भीगा हुआ लग रहा था, हमारी आँखे पूरे समय एक दूसरे पर जमी हुई थी.
अंत मैं हमारा कामोउन्माद इतना बढ़ गया कि हम जंगली जानवरों की तरह उछलने लगे जैसे हम दोनो में होड़ लगी थी यह दिखाने की कि दूसरे के लिए हमारे दिल मे कितनी मुहब्बत है, कितना प्यार है, कितना जनून है, कि एक दूसरे के जिस्म मे समा कर दो से एक हो जाने की कितनी गहरी तमन्ना है, कि कैसे हम अपने प्यार, अपने जनून की आग में खुद को जलना चाहते थे.
मैने एक बार फिर से पूरा लंड पेल कर उसकी चूत में रगड़ने लगा. उसने भी मेरे प्रतिबिंब की तरह अपनी कमर उठाकर लंड को चूत में घिसने लगी.
वो चूत के दाने को मेरे लंड पर घिस रही थी. "ओफफफफफफ्फ़...हे भगवान........अब .......अब......बस.......हाए...हाए....हाए........" जैसे ही वो मंज़िल पर पहुँची मेरे लंड से गरम वीर्य की पहली फुहार छूटी. उसका जिस्म ऐंठने लगा. मेरा जिस्म अकडने लगा, वीर्य की हर पिचकारी के साथ मेरे बदन को झटका लगता. मेरे जिस्म से गर्मी निकल उसके अंतर मे समा रही थी, और ये चलता जा रहा था, चलता जा रहा था, मगर असलियत में इसमे आधा मिनिट से ज़यादा समय नही लगा होगा. हम दोनो के चेहरे थोड़े विकृत हो गये थे मगर वो उस हदें पार कर जाने वाले आनंद की वजह से था ना कि किसी पीड़ा की वजह से. उसकी आँखे मेरी आँखे से एक पल के लिए भी नही हटी थी. उस परस्पर स्खलन के समय मैने वास्तव में ऐसा महसूस किया जैसे हम एक हो गये हों. आख़िरकार हमारे जिस्म सिथिल पड़ने लगे. उसका मुख खुला और वो हान्फते हुए साँसे लेने लगी जैसे उस समय मैं ले रहा था.
मुस्कराते हुए उसने मेरा चेहरा पकड़कर अपने चेहरे के पास खींचा और मेरे होंठो और गालों पर चुंबनो की बरसात करने लगी. उसकी उंगलिया मेरे चेहरे को स्पर्श करने लगी. "तुम अदुभूत हो" वो फुसफसा कर बोली.
मेरे अंतर में फिर से जज़्बात उमड़ने लगे. "मैं नही तुम अद्भुत हो"
वो खिलखिलाती हँसी हँसने लगी '"नही, देखो आज की रात कोई बहसबाज़ी नही, ठीक है?"
"ठीक है" मैने सहमति में सर हिलाया. मेरे अंदर का भावावेश अब निद्रा में तब्दील हो रहा था, मैं लगभग उंघ रहा था. ऐसा पहले कभी नही हुआ था, बल्कि इसके विपरीत हम जब भी पहले प्यार करते, संभोग करते जैसे हमने आज किया था तो मैं अपने अंदर एक उर्जा महसूस करता. कम सेकम इतनी ताक़त महसूस करता कि उससे से बातें कर सकूँ, उसके साथ हंस सकूँ, उसे कुछ समय तक छेड़ सकूँ. मैने एक गहरी साँस ली एक आह भारी.
"तुम्हे नींद आ रही है, है ना?" वो मुस्करा रही थी.
"उः...हा. हल्की हल्की. तुम्हे नही नींद आ रही?"
"हुउऊउन्ण...आ रही है" वो मेरे होंठो को प्यार से कोमलता से चूमते बोली.
मैने फिर से महसूस किया जैसे वो मेरे अंतर में झाँक रही है, मेरे दिल में, मेरी आत्मा में. जज़्बातों का तूफान फिर से उमड़ रहा था मगर नींद के ज़ोर ने जैसे उसे दबा दिया. उसकी चूत में मेरा लंड अब सिकुड़ने लगा था. एक मिनिट बाद वो फिसल कर बाहर आ गया. जब यह हुआ तो हम दोनो को हँसी आ गयी.
"तुम्हे नींद आ रही है? सोना चाहते हो?"
"हुउन्न्ं! अगर तुम्हे बुरा नही लगेगा तो मुझे बड़े ज़ोरों की नींद आ रही है"
"नही मुझे बिल्कुल भी बुरा नही लगेगा .इधर मेरे कंधे पर सर रखकर सोओ"
मैं उसकी बगल में ढेर हो गया और उसके कंधे पर सर रख दिया, उसकी छाती पर हाथ, उसकी टाँग पर टाँग चढ़ा कर मैने अपने होंठ उसकी गर्दन से सटा दिए. उसका हाथ मेरी पीठ सहला रहा था. मुझे कितना सुख, कितना आराम मिल रहा था.
मैने उसकी कान की लौ को चूमा "मुझे बहुत अच्छा लगा था जैसे तुमने वहाँ शेव की थी मगर......"
"मगर?" उसकी भवे तन गयी, उसे लगा जैसे मैं उसको कोई मज़ाक करने वाला था.
"एक दो महीने बाद तुम फिर से ...फिर से शेव मत करना" मैने जम्हाई लेते हुए कहा.
"मुझे लगा तुम्हे बिन बालों के अच्छी लगेगी. तुमने खुद भी बोला था ना?"
"हां मेने बोला था... मुझे अच्छा भी लगा, मगर पहले की तरह ज़्यादा नही मगर छोटे छोटे बाल मुझे ज़्यादा पसंद हैं" मैने मुस्करा कर कहा. "मुझे तुम्हारे कोमल रोयोँ पर अपना चेहरा रगड़ने में बहुत मज़ा आता है"
वो गहरी साँस लेती है थोड़े चिडचिडे पन से. मगर फिर मेरी ओर देखते प्यार से बोलती है "तुम्हे मालूम है ना वापस उगाने पर कितनी खुजली होती है"
"चिंता मत करो जब भी खुजली होगी तो मैं खुज़ला दिया करूँगा" मैं हँसने लगा
"चुप करो. अभी नींद नही आ रही" वो थोड़ा खीझ कर बोली
"आ रही है. मालूम नही क्यों. ऐसा पहले तो कभी नही हुआ.
"बस अपनी आँखे बंद कर्लो और आराम से सोने की कोशिस करो. मुझे खुद भी बहुत नींद आ रही है"
मैं जानता था वो झूठ बोल रही है मगर मुझे उसका ऐसा बोलना बहुत प्यारा लगा. मेरी आँखे बंद होती जा रही थी. मैं उससे और भी चिपक गया. उसका जिस्म कितना प्यारा था. मेरे होंठो पर हल्की सी मुस्कान फैल गयी जब मुझे याद आया कि संभोग के समय मैने उससे कहा था कि उसकी चूत जैसे मेरे लंड का नाप लेकर ही बनाई गयी है. मैने सिर्फ़ कहा नही था मैने ऐसा महसूस भी किया था कि वो जैसे मेरे लिए ही बनी है. मेने एक हल्की सी साँस ली और लगभग नींद के आगोश में जाने वाला ही था.
"एक बात और जो मैं भूल ही गयी थी" वो फिर से धीरे से बोली
मैं लगभग सोने की कगार पर था "हा....क्या? कॉन सी बात?" उसने फिर से मेरे माथे को चूमा और मैं फिर मुस्करा पड़ा, कितना सुखद था उसका साथ.
"मैं चाहती हूँ तुम मेरे बारे में चिंता करनी छोड़ दो. सब कुछ अच्छा हो जाएगा. देखो डरना नही, घबराना नही, परेशान नहीं होना और बिल्कुल भी उदास नही होना" उसके होंठो ने फिर से मेरे माथे को चूमा और वो फुसफसाई , "वायदा करो तुम मुझे लेकर अब बिल्कुल भी चिंतत नही होगे?"
"मैं वादा करता हुउन्न्ं" नींद के आगोश मे समाते हुए मैने कहा.