Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 31 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

नरेश जो पहले से बुहत ज्यादा उतेजित था। वह कंचन की इस अदा से बिलकुल पागल हो गया और उत्तेजना के मारे उसने कंचन के सर को अपने दोनों हाथों में लेते हुए नीचे झुककर अपने होठ अपनी बहन कंचन के गुलाबी होठो पर रख दिये ।
कंचन नरेश के अचानक हमले से पहले तो बौखला गयी मगर उसको ही पल वह मज़े के सागर में डुबकियाँ लगाने लगी और उसके हाथ अपने आप नरेश के बालों में जाकर उसके बालों को सहलाने लगे।

नरेश कंचन के दोनों गुलाबी होंठो को बारी बारी चूस रहा था उसे कंचन के मीठे होंठ शहद से ज्यादा मजा दे रहे थे । नरेश न जाने कितनी देर तक वैसे ही अपनी बहन के होंठो को चूसते रहा । अचानक उसकी और कंचन की साँसें फूलने लगी जिस वजह से मजबूरी में उसे अपने होंठ कंचन के होंठो से हटाने पडा, एक दुसरे के होंठो के अलग होते ही कंचन और नरेश बुहत ज़ोर से हाँफने लगे। दोनों हाँफते हुए बुहत ज़ोर से साँसें ले रहे थे ।

सांसों के दुरुस्त होते ही दोनों की नज़रें जैसे ही आपस में मिली कंचन ने शर्म से अपनी नज़रों को नरेश की नज़रों के सामने से फेर लिया । नरेश समझ गया की कंचन को भी आगे बढ़ना है मगर वह शरमा रही है।
"दीदी फिर से सॉरी। मगर आपके होंठो का रस शहद से ज्यादा मीठा था" नरेश ने कंचन के सर को पकडकर अपनी तरफ करके अपने होंठो पर जीभ को फिराते हुए कहा ।

"भइया आप बुहत बदमाश हो। मेरे होंठ में भला कोई चीनी थी जो वह आपको मीठे लगे" कंचन ने अपनी आँखों को ऊपर करते हुए नरेश की तरफ देखते हुए कहा। उसका भी उत्तेजना के मारे बुरा हाल था उसकी चूत से इतना पानी निकल चूका था की उसकी पेंटी पूरी गीली हो चुकी थी ।
"दीदी कसम से आपके होंठ बुहत मीठे हैं। मेरा तो इन्हें छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था मगर" नरेश ने कंचन की बात सुनकर इतना ही कहा और चुप हो गया।
"भइया फिर आपने मेरे होंठो को क्यों छोड़ा?" कंचन ने नरेश की आँखों में देखते ही कहा।

कंचन की बात सुनकर नरेश की हालत और ज्यादा खराब हो गई और उसने अपने होंठो को फिर से कंचन के रसीले होंठो पर रख दिया और नरेश इस बार अपना पूरा मूह खोलकर कंचन के दोनों होंठो को चाट रहा था।चूस रहा था और कंचन भी उसका पूरा साथ दे रही थी।
 
कंचन बुहत ज्यादा उत्तेजित हो चुकी थी और उसकी चूत से बुहत ज्यादा पानी टपक रहा था । अचानक कंचन ने अपनी जीभ को नरेश के मूह में डाल दिया। नरेश कंचन की जीभ को अपने मूह में महसूस करते ही उसे पागलोँ की तरह चाटने और चूसने लगा और अपने हाथों से उसकी दोनों चुचियों को बुहत ज़ोर से मसलने लगा।

नरेश और कंचन कुछ देर तक ऐसे ही एक दुसरे के होंठो को बुरी तरह चूसने के बाद एक दुसरे के होंठो को आपस में से हटा दिए । नरेश ने इस बार कंचन के होंठो से अलग होते ही अपने होंठो से उसके गालों को चूमते हुए नीचे होते हुए उसके गले से होता हुआ कंचन की चुचियों तक आ गया और कुछ देर तक कंचन की चुचियों को ग़ौर से देखने के बाद अपना मूह खोलकर उसकी एक चूचि के दाने को अपने मूह में भर लिया ।

नरेश कंचन की चूचि को दाने को बुहत ज़ोर से चूस रहा था और अपने हाथ से उसकी दूसरी चूचि को दबा रहा था।
"आह्ह्ह्ह भैया आप तो बुहत गंदे हो" कंचन ने ज़ोर से सिसकते हुए कहा। नरेश ने कंचन की बात सुनकर उसकी चूचि को अपने मूह से निकालकर उसकी दूसरी चूचि के दाने को अपने मूह में भर लिया और कुछ देर तक उसे चूसने के बाद अपने मुँह से निकालकर कंचन की दोनों चुचियों के उभारों को बारी बारी अपने दाँतों से काटने लगा ।

"आईई ईस भैया क्या कर रहे हो" कंचन ने अपनी चुचियों को काटने से ज़ोर से उछलकर चीखते हुए कहा ।नरेश कंचन के चिल्लाने से उसकी चुचियों को काटना छोडकर बारी बारी अपने मूह में जितना हो सकता था भरकर चूसने लगा।
"ओहहहह भैया आपने तो मुझे पागल बना दिया। मुझे नीचे कुछ हो रहा है" कंचन ने नरेश को बालों से पकडकर अपनी चुचियों से हटाते हुए कहा ।

"दीदी कहाँ पर?" नरेश ने अन्जान बनते हुए सवाल किया।
"भइया नीचे वहां" कंचन ने शरमाते हुए कहा।
"अरे वही तो पूछ रहा हूँ कहाँ पर" नरेश ने फिर से अन्जान बनते हुए कहा।
"भइया पेट के नीचे" कंचन ने अपना हाथ अपनी पेंटी पर रखते हुए कहा ।
 
दीदी क्या यहाँ पर दर्द हो रहा है" नरेश ने अपना हाथ कंचन की पेंटी के थोडा ऊपर रखते हुए कहा।
"नही भैया थोडा और नीचे" कंचन ने वैसे ही अपनी नज़रें झुकाये हुए कहा।
"यहाँ पर दीदी" नरेश ने अपना हाथ थोडा नीचे करके कंचन की पेंटी पर रखते हुए कहा ।
"हाहहहहह हाँ भैया यहाँ पर कुछ हो रहा है" कंचन ने नरेश का हाथ अपनी पेंटी पर पडते ही ज़ोर से सिसकते हुए बोली।
"दीदी यह तो बुहत गीली हो गई है । क्या मैं इसे उतारकर देखूँ की आपको यहाँ क्या होरहा है" नरेश ने उत्तेजना के मारे अपने गले से थूक को गटकते हुए कहा।

"भइया जैसे आपको सही लगे वैसे ही करो। बस मुझे सुकून मिलना चाहिये" कंचन ने नरेश को इजाज़त देते हुए कहा । नरेश का लंड कंचन की बात सुनकर उत्तेजना के मारे ज़ोर से ठुमके मारने लगा। नरेश कंचन की चूत को नंगा होने के ख़याल से ही बुहत उत्तेजित हो रहा था ।
"दीदी आप अपना सर इस तकिये पर रख दो । मैं आपकी पेंटी को खोलकर देखता हुँ" नरेश ने एक तकिया उठाकर कंचन के सर के पास रखते हुए कहा । कंचन ने अपना सर नरेश की गोद से उठाकर तकिये पर रख दिया।

नरेश की गोद से अपने सर को उठाते हुए कंचन की नज़र नरेश के अंडरवियर में बने उभार पर गयी जिसे देखकर कंचन को अपने पूरे जिस्म में एक झुरझुरी सी महसूस होने लगी । नरेश कंचन की टांगों के बीच आ गया था। वह कंचन की पेंटी में दोनों तरफ से अपनी उँगलियाँ फँसाकर उतारने लगा ।


कंचन ने अपने चूतडों को उठाकर अपनी पेंटी उतारने में नरेश की मदद की।
"वाह दीदी यह तो बुहत ख़ूबसूरत है" नरेश ने कंचन की चूत के नंगा होते ही उसकी तारीफ करते हुए कहा।

"भइया आप भी" कंचन ने इतना कहा और शर्म के मारे अपनी नज़रों को नीचे करते हुए अपनी टांगों को सिकोड़ने लगी । मगर अपनी टांगों के बीच नरेश के होने के सबब वह ऐसा नहीं कर सकी।
"दीदी सच कह रहा हूँ देखो यह कितनी गुलाबी है और बेचारी भूरे बाल इसे और ज्यादा ख़ूबसूरत बना रहे है" नरेश ने अपने हाथ को कंचन की चूत पर रखकर उसकी चूत के बालों को सहलाते हुए बोला।
 
"आहहह भैया" कंचन ने नरेश का हाथ अपनी चूत पर पडते ही सिसकते हुए कहा।
"क्या हुआ दीदी आपको अच्छा नहीं लग रहा है" नरेश ने अपने हाथ से वैसे ही कंचन की चूत को सहलाते हुए कहा।
"ओहहहहह भैया बुहत अच्छा महसूस हो रहा है" कंचन ने इस बार मज़े से अपनी आँखों को बंद करते हुए कहा । कंचन की चूत से उत्तेजना के मारे बुहत ज्यादा पानी निकल रहा था ।
"दीदी इस में से तो कुछ निकल रहा है" नरेश ने अपने हाथ को कंचन की चूत के छेद पर रखते हुए कहा। जहाँ से पानी की बूँदे निकल रही थी।
"आह्ह्ह्ह भैया यहीं तो कुछ हो रहा है" कंचन ने अपने भाई का हाथ अपनी चूत के छेद पर लगने से काँपते हुए बोली।

"ओहहहह दीदी आपकी चूत की स्मेल कितनी अच्छी है" नरेश ने इस बार झुककर अपना मूह अपनी बहन की चूत के पास करके अपने नाक से साँसों को पीछे की तरफ खींचते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह भैया मेरी हालत तो ज्यादा ख़राब हो रही है प्लीज कुछ करो ना" कंचन ने नरेश के मुँह से आती हुयी साँसों को अपनी चूत के इतना क़रीब महसूस करने से सिसकते हुए कहा ।
"दीदी क्या मैं इसे चूम सकता हूँ" नरेश ने अपने हाथ से कंचन की चूत के दाने को सहलाते हुए कहा।
"ओहहहह भैया मुझसे कुछ मत पूछो" कंचन ने नरेश की बात सुनकर सिसकते हुए कहा।

"ओहहहहह दीदी आप कितनी अच्छी हो" नरेश ने इतना कहा और अपना मूह नीचे करते हुए कंचन की चूत के छेद के पतले लबों को अपने होंठो से चूम लिया,
"आहहह शह भैया" नरेश के होंठ अपनी चूत के छेद पर लगते ही कंचन का पूरा जिस्म मज़े से सिहर उठा और उसने सिसकते हुए कहा।
"दीदी क्या हुआ आपको अच्छा नहीं लगा क्या?" नरेश ने कंचन की चूत को गौर से देखते हुए कहा।
"आहहह भैया मुझे बुहत अच्छा लगा था । वैसे ही करो ना" कंचन ने उत्तेजना के मारे अपने चूतडो को उछालते हुए कहा।

नरेश कंचन को गरम देखकर खुश होते हुए अपने होंठो को फिर से उसकी चूत के छेद पर रख दिया । नरेश इस बार अपने होंठो को कंचन की चूत के छेद पर रखे हुए ही उसके दाने को अपने हाथ से सहलाने लगा, कंचन की हालत बुहत खराब हो चुकी थी । वह ज़ोर से सिसक रही थी और उसका पूरा जिस्म कांप रहा था ।
 
नरेश के होंठ कंचन की चूत से निकालते हुए पानी से भीग चुके थे । नरेश ने अपने होंठो को कंचन की चूत से थोडा अलग करते हुए अपनी जीभ को निकालकर उसकी चूत के छेद से निकलते हुए पानी को चाटने लगा।

"ओहहहहह आहहह भैया" नरेश की जीभ को अपनी चूत पर लगते हुए कंचन उत्तेजना के मारे अपने चूतडों को ज़ोर से उछालते हुए सिसकने लगी । नरेश कुछ देर तक अपनी जीभ से कंचन की चूत को चाटने के बाद अपना मूह खोलकर उसकी चूत के पतले होंठो को पूरा अपने मूह में भरकर चूसने लगा ।
नरेश की इस हरकत से कंचन का पूरा जिस्म अकडने लगा । वह मज़े की एक नयी दुनिया में पुहंच चुकी थी। नरेश कंचन की चूत के होठो को बुहत ज़ोर से चूस रहा था । अचानक नरेश ने कंचन की चूत को अपने मूह से निकालते हुए उसकी चूत के लबों को अपने दांतों के बीच लेकर हल्का हल्का काटने लगा।

"उई भैया आहहहह काट क्यों रहे हो ओह्ह्ह्हह्ह्" कंचन नरेश की इस हरकत से ज़ोर से चीख़ने लगी। मगर अगले ही पल वह सब कुछ भूलकर अपनी आँखें बंद करते मज़े की एक नयी दुनिया में खो गई । कंचन की चूत से बुहत सारा पानी निकलने लगा और वह झरने लगी, नरेश ने कंचन को झरता हुआ देखकर अपनी जीभ से उसकी चूत से निकलते हुए पानी को चाटने लगा ।
कंचन झरते हुए बुहत ज़ोर से सिसक रही थी और उसने अपने दोनों हाथों से नरेश के सर को पकड़कर अपनी चूत पर दबा दिया था । कुछ देर बाद जब कंचन का झरना ख़तम हुआ तो उसने नरेश के सर से अपने हाथों को हटा दिया।

नरेश ने कंचन के हाथों के हटते ही अपना चेहरा ऊपर उठा दिया और कंचन की तरफ देखते हुए अपने होंठो पर लगे हुए उसके पानी को अपनी जीभ से चाटने लगा। नरेश का पूरा मूह कंचन की चूत के पानी से भीगा हुआ था, कंचन ने नरेश को अपनी तरफ घूरता हुआ देखकर शर्म से अपनी नज़रों को नीचे कर लिया ।
नरेश ने अपनी शर्ट उठाते हुए अपना मूह पोंछ दिया और कंचन के साइड में उसके साथ लेट गया । इधर इतनी देर से कंचन और नरेश का खेल देखकर शीला और विजय की हालत बुहत बिगड चुकी थी, वह एक दुसरे से अलग होकर बैठे थे विजय ने तो अपना अंडरवियर उतार दिया था और अपने हाथों से अपने लंड को सहला रहा था।
 
शीला भी अपनी चूत को पेंटी के ऊपर से सहला रही थी । विजय ने शीला के हाथ को पकडकर अपने लंड पर रख दिया, शीला भी बुहत गरम हो चुकी थी। अपना हाथ विजय के लंड पर पडते ही उसका हाथ अपने आप उस पर ऊपर नीचे होने लगा।
"आह्ह्ह्ह दीदी ज़रा इसे अपने मुँह में लो" शीला का नरम हाथ अपने लंड पर पडते ही विजय ने सिसकते हुए कहा ।

शीला विजय की बात सुनकर उसके नज़दीक आ गयी और नीचे झुकते हुए विजय के लंड के गुलाबी सुपाडे को चूम लिया।
"आह्ह्ह्ह साली मुँह में ले ना" विजय ने गरम होते हुए कहा । शीला ने इस बार अपनी जीभ निकाली और विजय के लंड के सुपाडे पर फिराने लगी ।
"ओहहहह साली क्यों तडपा रही हो" विजय ने शीला को बालों से पकडते हुए अपने लंड पर दबाते हुए कहा ।शीला ने फिर भी विजय के लंड को अपने मुँह में नहीं लिया और अपनी जीभ से उसके सुपाडे को चाटते हुए अपने हाथों से विजय की घंटे की तरह लटकती हुयी दोनों गोटियों को सहलाने लगी।

"ओहहहह साली तडपा क्यों रही हो। मुँह में ले ना" विजय ने सिसकते हुए कहा। शीला ने विजय की बात सुनकर अपना मुँह खोलते हुए उसके सुपाडे को अपने मूह में ले लीया और बुहत ज़ोर से चूसते हुए फिर से अपने मूह से निकाल दिया।
"आह्ह्ह्ह साली रंडी। इस अपने मुँह में लेती है या मैं ही कुछ करुं" विजय ने इस बार गुस्से से शीला की तरफ देखकर चिल्लाते हुए कहा ।
शीला ने इसबार विजय को धक्का देते हुए सीधा लिटा दिया और अपनी जीभ बाहर निकालकर विजय के लंड को ऊपर से नीचे तक चाटते हुए उसकी गोटयों की तरफ बढ़ने लगी । शीला विजय की गोटियों को अपनी जीभ से चाटते हुए उन्हें बारी बारी अपने मूह में लेकर चूसने लगी।

शीला की इस हरकत से विजय का पूरा जिस्म मज़े से काम्पने लगा और वह मज़े को बर्दाशत न करते हुए अपनी आँखों को बंद करके सिसकने लगा । शीला कुछ देर तक ऐसे ही उसकी गोटियों को चाटने के बाद अपने मुँह को खोलते हुए विजय के लंड को चूसने लगी ।
विजय कुछ देर तक शीला से लंड चुसवाने के बाद उसे बालों से पकडकर अपने ऊपर गिरा दिया और उसकी चुचियों को पागलो की तरह चाटने लाग, विजय ने शीला की चुचियों को चाटते हुए उसे सीधा बेड पर लिटा दिया और खुद उसके ऊपर आ गया।

विजय शीला की चुचियों को कुछ देर तक चूसने के बाद नीचे होते हुए उसके पेट को चूमते हुए उसकी पेंटी तक आ गया और अपने हाथों से शीला की पेंटी को उसके जिस्म से अलग कर दिया । शीला की पेंटी के उतरते ही उसकी रस टपकाती चूत नंगी होकर विजय के सामने आ गयी जिसे वह बड़े गौर से देखने लगा ।
 
विजय ने एक नज़र शीला की रस टपकाती चूत पर डाली और अपने होंठ उसकी चूत पर रख दिये।
"आआह्ह्ह्ह भैया" विजय के होंठ अपनी चूत पर महसूस होते ही शीला के मुँह से एक सिसकी निकल गयी । विजय शीला की चूत को अपने होंठो से चूमने के बाद अपना मूह उसकी चूत से थोडा ऊपर कर दिया ।

विजय के होंठ अपनी छूट से ऊपर उठते ही शीला उत्तेजना के मारे अपने गाँड को उछालते हुए विजय की तरफ देखने लगी । विजय ने अपनी जीभ को निकाला और शीला की चूत के दाने से लेकर उसकी चूत के छेद तक फिराते हुए फिर से अपना मुँह उसकी चूत से थोडा ऊपर उठा दिया।

"आह्ह्ह्ह विजय भैया क़ीक़ कर रहे हो" शीला ने इस बार उत्तेजना के मारे सिसककर अपने चूतडो को उछालते हुए विजय से कहा।
"क्या हुआ दीदी?" विजय ने शीला को ज्यादा तडपाते हुए कहा।
"ओहहहहहह भैया अपना मूह क्यों हटाया" शीला ने वैसे ही उत्तेजना के मारे सिसकते हुए कहा ।
विजय ने शीला की बात सुनकर अपनी जीभ को फिर से शीला की चूत के छेद पर रख दिया और उसकी चूत से निकलते हुए पानी को चाटने लगा।
"आह्ह्ह्ह इसशहहहह भैया ऐसे ही ओह्ह्ह्हह्ह्" शीला विजय की जीभ को अपनी चूत पर महसूस करते ही बुहत ज़ोर से सिसकते हुए अपने चूतडो को उछाल रही थी।

विजय कुछ देर तक ऐसे ही शीला की चूत को चाटने के बाद अपना मुँह उसकी चूत से हटा दिया और शीला की टांगों को उसके घुटनों तक मोड़ दिया । शीला की चूत अब बिलकुल खुलकर विजय की आँखों के सामने आ गयी, विजय ने अपने फनफनाते हुए लंड को अपने हाथ से पकडते हुए शीला की चूत पर रख दिया और बुहत ज़ोर से उसकी चूत पर ऊपर से नीचे घीसने लगा ।
"आआह्ह्ह्हह ओहह भैया क्यों तडपा रहे हो" विजय के ऐसा करने से शीला ने सिसकते हुए कहा।
"दीदी फिर क्या करुं?" विजय ने शीला को तडपता हुआ देखकर उसकी चूत पर अपना लंड ज़ोर से घिसते हुए बोला।
 
कंचन और नरेश भी शीला और विजय की तरफ ही देख रहे थे। उन दोनों की हालत भी ख़राब होने लगी थी ।नरेश ने अपने अंडरवियर को उतारकर कंचन के हाथ को अपने खडे लंड पर रख दिया था, कंचन भी बुहत गरम हो चुकी थी अपना हाथ नरेश के गरम लंड पर पडते ही उसका हाथ अपने आप उसके लंड पर ऊपर नीचे होने लगा ।
"आह्ह्ह्ह भैया डालो ना" शीला ने वैसे ही सिसककर अपने चूतडों को उछालते हुए विजय से कहा।
"क्या डालों दीदी" विजय ने शीला की आँखों में देखते हुए कहा।
"भइया आप भी अपना लंड डालो ना" शीला ने अपनी नज़रों को विजय से हटाकर शरमाते हुए कहा।

शीला के मूह से लंड जैसे शब्द सुनकर विजय का पूरा शरीर सिहर उठा।
"ओहहहह दीदी मैं अपना लंड कहाँ डालुँ" विजय ने अपना लंड जानबूझकर शीला की चूत के छेद में थोडा फंसाते हुए कहा।
"ओहहहहह भैया अपना लंड मेरी चूत में डाल दो ना" शीला से अब बर्दाशत नहीं हो रहा था। जिस वजह से उसने सिसकते हुए विजय से कह दिया ।

"ओहहहह दीदी" विजय का लंड शीला के मुँह से यह सब सुनकर ज्यादा फूलकर मोटा और लम्बा हो गया था ।विजय ने शीला की टांगों को अपने हाथों से पकडते हुए एक धक्का मार दिया।
"ओहहहहह भैया आराम से आपका तो बुहत मोटा है" शीला ने हल्का चीखते हुए कहा । विजय का लंड एक ही धक्के में शीला की चूत में अपनी जगह बनाता हुआ आधा घुस चूका था ।
नरेश की हालत उस वक्त देखने जैसी थी । उसका लंड बुहत ज्यादा तनकर कंचन के हाथों में झटके खा रहा था । नरेश ने कंचन के सर को पकडते हुए अपने लंड पर झुका दिया, कंचन भी उस वक्त बुहत गरम थी। नरेश का लंड अपने मुँह के इतने क़रीब देखकर उसने अपनी जीभ निकाली और नरेश के लंड पर ऊपर से नीचे तक फिराने लगी।

कंचन ने कुछ देर तक नरेश के लंड पर अपनी जीभ फिराने के बाद अपना मुँह खोलते हुए नरेश का लंड अपने मूह में जितना हो सकता था ले लीया और उसे अपने होंठो और जीभ से चूसने लगी । अपना लंड कंचन के मूह में जाते ही नरेश मज़े से सिसकते हुए एक नयी दुनिया में पुहंच गया, नरेश का लंड चूसते हुए भी कंचन अपने भाई और शीला की तरफ देख रही थी ।
 
विजय शीला के मूह से चीख़ सुनकर अपने लंड को थोडा बाहर खींचा और बुहत ज़ोर के ३-४ धक्के मारकर अपना पूरा लंड शीला की चूत में घुसा दिया।
"उईई ओह्ह्ह्हह्हह भैया मेरी चूत आअह्ह्ह फट गई" विजय का पूरा लंड घुसते ही शीला के मूह से ज़ोर की चीख़ें निकलने लगी ।

"दीदी क्या हुआ अभी तो कह रही थी अपना लंड मेरी चूत में घुसाओ" विजय ने वैसे ही अपना पूरा लंड शीला की चूत में घुसाए हुए हँसकर कहा।
"आह्ह्ह्ह भैया आप बुहत गंदे हो" शीला ने सुबकते हुए कहा।

"दीदी आप चिंता मत करो थोडी ही देर में आप मेरे लंड को उछल उछल कर अपनी चूत में लोगी" विजय ने शीला की बात सुनकर अपना लंड उसकी चूत से बाहर खीचकर फिर से जड़ तक पेलते हुए कहा।
"ओहहहह भैया आपका बुहत मोटा है मुझे तो लग रहा है यह मेरी चूत को फाडकर ही दम लेगा" शीला ने विजय का लंड अपनी चूत में अंदर बाहर होने के कारण फिर से चील्लाते हुए कहा ।
"दीदी मेरा लंड आपकी चूत में पूरा तो घुस चूका है" विजय ने शीला की बात सुनकर अपने लंड को फिर से बाहर खीचते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह भैया पूरा तो घुस चूका है मगर इसने मेरी चूत को बुहत बुरी तरह फ़ैला रखा है" शीला ने विजय का लंड अपनी चूत से बाहर होते ही आह भरते हुए कहा।

विजय शीला की बात सुनकर फिर से अपना लंड उसकी चूत में जड़ तक घुसा दिया। मगर इस बार विजय ने फिर से अपने लंड को बाहर खीँच लिया । और ऐसे ही वह तेज़ी के साथ अपना लंड शीला की चूत में अंदर बाहर करने लगा।
"आह्ह्ह्ह इशह भैया आपने सही कहा था ओहहहह प्लीज ऐसे ही तेज़ी से चोदो मुझे" विजय का लंड अपनी चूत में अंदर बाहर होने से शीला ने ज़ोर से सिसकते हुए कहा । विजय का लंड अब शीला की चूत में अपनी जगह बना चूका था। इसीलिए शीला को अब विजय से चुदवाते हुए बुहत ज्यादा मजा आ रहा था ।

कंचन ने अब नरेश के लंड को अपने मुँह से निकाल दिया था और वह नरेश के साथ लेटकर शीला और अपने भाई की तरफ गौर से देखते हुए नरेश के लंड को सहला रही थी । नरेश भी अपने हाथ से कंचन की चूत को सहला रहा था और अपने मूह से उसकी चुचियों को चूमते चाटते हुए अपनी बहन और विजय को घूर रहा था ।
 
विजय अब अपने लंड को बुहत ज़ोर से शीला की चूत में अंदर बाहर कर रहा था और शीला ने भी अपनी टांगों को विजय की कमर में डाल दिया था और विजय के हर धक्के के साथ अपने चूतडों को उछालते हुए विजय से ताल से ताल मिला रही थी ।
विजय और शीला दोनों का जिस्म पूरी तरह पसीने से भीग चूका था । शीला झरने के बिलकुल क़रीब थी इसी लिए वह अपने चूतडों को बुहत ज़ोर से उछालते हुए विजय का लंड अपनी चूत में ले रही थी।
"यआह्ह्ह्ह ईश भैया ज़ोर से पेलो। फाड दो अपनी बहन की चु ओह्ह्ह्हह ऐसे ही में झड रही हू" शीला का जिस्म कुछ ही देर में अकडने लगा और वह बुहत ज़ोर से बड़बड़ाते हुए झरने लगी।

शीला कुछ देर तक अपनी आँखें बंद किये हुए झडती रही और पूरी तरह झरने के बाद अपनी आँखें खोल दी। विजय अब भी शीला को वैसे ही चोद रहा था और शीला की टाँगें विजय की कमर में फँसी हुयी थी।
"दीदी मजा आया" विजय ने शीला की आँखें खुलते ही उसे देखते हुए कहा ।
"भइया बुहत ज्यादा" शीला ने शर्म से अपनी नज़रों को नीचे करते हुए कहा । विजय ने अपना लंड शीला की चूत से खीचकर बाहर निकाल दिया और शीला को उल्टा लिटा दिया। विजय ने ३-४ ज़ोर के धक्के मारते हुए पीछे से अपना लंड शीला की चूत में जड़ तक पेल दिया।

विजय शीला के चूतडो को पकडकर उसे बुहत ज़ोर से पेलने लगा । कंचन और नरेश वैसे ही लेते हुए उन दोनों की तरफ देख रहे थे।
"आजहहह भैया आप क्यों चुप बैठे हैं। कंचन दीदी को चोदीये ना" शीला ने विजय से चुदवाते हुए नरेश की तरफ देखते हुए कहा ।
नरेश अपनी बहन की बात सुनकर कंचन की तरफ देखने लगा । कंचन बिना कुछ कहे नरेश के साइड से उठते हुए अपनी दोनों टांगों को फ़ैलाकर अपनी चूत को नरेश के लंड पर टीका दिया और अपने भाई की तरफ देखते हुए नरेश के लंड पर अपने वजन के साथ बैठने लगी।

कंचन जानबूझकर नरेश के लंड पर उल्टा होकर बैठी थी उसकी पीठ नरेश की तरफ थी और मूह विजय और शीला की तरफ।
"आह्ह्ह्ह नरेश भैया आपका लंड कितना सख्त है" नरेश का लंड अपनी चूत में जड़ तक घुसते ही कंचन ज़ोर से सिसकते हुए बोल रही थी ।
 
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