hotaks444
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"दादा जी उठिये सुबह हो गई है" कंचन पूरी तरह झुकते हुए अपने दादा को उठाने लगी वह इस तरह झुकी हुयी थी की उसकी आधि से ज्यादा चुचियां उसके गले से बाहर निकलकर उसके दादा की आँखों के सामने आ गयी थी।
"दादा जी उठिये" कंचन ने एक बार फिर से अपने दादा को झंझोरते हुए कहा।
"कोंन है" अचानक अनिल ने अपनी आँखों को मलते हुए कहा । अनिल ने जैसे ही अपनी आँखें खोली उसका मुँह फटा का फटा रह गया क्योंकी उसकी आँखों के सामने आधी नंगी गोरी गोरी चुचियां थी जो बिलकुल गोल और भरी हुयी थी । अनिल की आँखें वहीँ के वहीँ ठहर गयी और वह सब कुछ भूलकर चुचियों को घूरने लगा।
"दादा जी आप फ्रेश होकर बाहर आ जाओ। नाश्ता तैयार है मैं आपके दूध का बंदोबस्त नाश्ता के बाद कर दूंगी" कंचन ने हँसते हुए अपने दादा से कहा।
"हम्म्म्म बेटी तुम" अनिल ने होश में आते हुए कहा।
"क्यों दादा जी आपको तो ताज़ा दूध पसंद है ना" कंचन अभी तक वैसे ही झुकी हुई थी।
"हाँ बेटी अगर दूध बिलकुल ताज़ा हो तो पीने का सही मजा आता है" अनिल ने भी फिर से अपनी पोती की आधी नंगी चुचियों को घूरते हुए कहा।
"दादा जी आज मैं आपको ताज़ा दूध पिलाकर रहूँगी आप बस नाश्ता कर लेना" कंचन ने इस बार सीधे होते हुए अपनी चुचियों को थोडा और आगे करते हुए अपने दादा के मुँह के बिलकुल पास से ऊपर करते हुए कहा और सीधी होकर मुस्कराते हुए बाहर चलि गयी।
कंचन के जाते ही अनिल बाथरूम में घुसकर फ्रेश होने लगा। अपनी पोती की आधी नंगी चुचियों को देखकर उसकी हालत बुहत ख़राब हो चुकी थी। इसीलिए वह अपने लंड को अपने हाथ में लेकर हिलाने लगा क्योंकी वह जानता था की जब तक वह अपने लंड को शांत नहीं करेगा वह ऐसे ही बार बार उसे तंग करता रहेगा। कुछ ही देर की मेंहनत के बाद अनिल के लंड से वीर्य की बूँदे निकलने लगी और वह फ्रेश होकर बाहर आ गया, कंचन भी बाहर निकलकर किचन में अपनी माँ के पास पुहंच गयी और उसके साथ नाशते को टेबल पर लगाने लगी।
सभी लोग नाशते की टेबल पर आ चुके थे और सभी साथ में नाश्ता करने लगे।
"बेटी मैं तुम्हारे पिता के साथ बाहर जा रही हूँ कुछ काम है और कुछ सामान भी खरीद करना है जब तक मैं आऊँ घर का ख़याल रखना" रेखा ने नाश्ता ख़तम करने के बाद अपनी बेटी से कहा।
"ठीक है माँ आप जाओ मैं बर्तन किचन में रख लूँगी" कंचन ने अपनी माँ से कहा।
"ठीक है बेटी मैं जाती हू" रेखा इतना कहकर अपने पति के साथ घर से बाहर निकल गयी । रेखा के जाते ही विजय और कोमल उठते हुए अपने कमरों में सोने के लिए चले गए क्योंकी वह बुहत थके हुए थे, अब वहां पर सिर्फ कंचन और उसके दादा थे। कंचन धीरे धीरे बर्तनों को वहां से उठाकर किचन में रखने लगी।
"दादा जी उठिये" कंचन ने एक बार फिर से अपने दादा को झंझोरते हुए कहा।
"कोंन है" अचानक अनिल ने अपनी आँखों को मलते हुए कहा । अनिल ने जैसे ही अपनी आँखें खोली उसका मुँह फटा का फटा रह गया क्योंकी उसकी आँखों के सामने आधी नंगी गोरी गोरी चुचियां थी जो बिलकुल गोल और भरी हुयी थी । अनिल की आँखें वहीँ के वहीँ ठहर गयी और वह सब कुछ भूलकर चुचियों को घूरने लगा।
"दादा जी आप फ्रेश होकर बाहर आ जाओ। नाश्ता तैयार है मैं आपके दूध का बंदोबस्त नाश्ता के बाद कर दूंगी" कंचन ने हँसते हुए अपने दादा से कहा।
"हम्म्म्म बेटी तुम" अनिल ने होश में आते हुए कहा।
"क्यों दादा जी आपको तो ताज़ा दूध पसंद है ना" कंचन अभी तक वैसे ही झुकी हुई थी।
"हाँ बेटी अगर दूध बिलकुल ताज़ा हो तो पीने का सही मजा आता है" अनिल ने भी फिर से अपनी पोती की आधी नंगी चुचियों को घूरते हुए कहा।
"दादा जी आज मैं आपको ताज़ा दूध पिलाकर रहूँगी आप बस नाश्ता कर लेना" कंचन ने इस बार सीधे होते हुए अपनी चुचियों को थोडा और आगे करते हुए अपने दादा के मुँह के बिलकुल पास से ऊपर करते हुए कहा और सीधी होकर मुस्कराते हुए बाहर चलि गयी।
कंचन के जाते ही अनिल बाथरूम में घुसकर फ्रेश होने लगा। अपनी पोती की आधी नंगी चुचियों को देखकर उसकी हालत बुहत ख़राब हो चुकी थी। इसीलिए वह अपने लंड को अपने हाथ में लेकर हिलाने लगा क्योंकी वह जानता था की जब तक वह अपने लंड को शांत नहीं करेगा वह ऐसे ही बार बार उसे तंग करता रहेगा। कुछ ही देर की मेंहनत के बाद अनिल के लंड से वीर्य की बूँदे निकलने लगी और वह फ्रेश होकर बाहर आ गया, कंचन भी बाहर निकलकर किचन में अपनी माँ के पास पुहंच गयी और उसके साथ नाशते को टेबल पर लगाने लगी।
सभी लोग नाशते की टेबल पर आ चुके थे और सभी साथ में नाश्ता करने लगे।
"बेटी मैं तुम्हारे पिता के साथ बाहर जा रही हूँ कुछ काम है और कुछ सामान भी खरीद करना है जब तक मैं आऊँ घर का ख़याल रखना" रेखा ने नाश्ता ख़तम करने के बाद अपनी बेटी से कहा।
"ठीक है माँ आप जाओ मैं बर्तन किचन में रख लूँगी" कंचन ने अपनी माँ से कहा।
"ठीक है बेटी मैं जाती हू" रेखा इतना कहकर अपने पति के साथ घर से बाहर निकल गयी । रेखा के जाते ही विजय और कोमल उठते हुए अपने कमरों में सोने के लिए चले गए क्योंकी वह बुहत थके हुए थे, अब वहां पर सिर्फ कंचन और उसके दादा थे। कंचन धीरे धीरे बर्तनों को वहां से उठाकर किचन में रखने लगी।