Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 53 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

"दादा जी उठिये सुबह हो गई है" कंचन पूरी तरह झुकते हुए अपने दादा को उठाने लगी वह इस तरह झुकी हुयी थी की उसकी आधि से ज्यादा चुचियां उसके गले से बाहर निकलकर उसके दादा की आँखों के सामने आ गयी थी।
"दादा जी उठिये" कंचन ने एक बार फिर से अपने दादा को झंझोरते हुए कहा।
"कोंन है" अचानक अनिल ने अपनी आँखों को मलते हुए कहा । अनिल ने जैसे ही अपनी आँखें खोली उसका मुँह फटा का फटा रह गया क्योंकी उसकी आँखों के सामने आधी नंगी गोरी गोरी चुचियां थी जो बिलकुल गोल और भरी हुयी थी । अनिल की आँखें वहीँ के वहीँ ठहर गयी और वह सब कुछ भूलकर चुचियों को घूरने लगा।
"दादा जी आप फ्रेश होकर बाहर आ जाओ। नाश्ता तैयार है मैं आपके दूध का बंदोबस्त नाश्ता के बाद कर दूंगी" कंचन ने हँसते हुए अपने दादा से कहा।

"हम्म्म्म बेटी तुम" अनिल ने होश में आते हुए कहा।
"क्यों दादा जी आपको तो ताज़ा दूध पसंद है ना" कंचन अभी तक वैसे ही झुकी हुई थी।
"हाँ बेटी अगर दूध बिलकुल ताज़ा हो तो पीने का सही मजा आता है" अनिल ने भी फिर से अपनी पोती की आधी नंगी चुचियों को घूरते हुए कहा।
"दादा जी आज मैं आपको ताज़ा दूध पिलाकर रहूँगी आप बस नाश्ता कर लेना" कंचन ने इस बार सीधे होते हुए अपनी चुचियों को थोडा और आगे करते हुए अपने दादा के मुँह के बिलकुल पास से ऊपर करते हुए कहा और सीधी होकर मुस्कराते हुए बाहर चलि गयी।

कंचन के जाते ही अनिल बाथरूम में घुसकर फ्रेश होने लगा। अपनी पोती की आधी नंगी चुचियों को देखकर उसकी हालत बुहत ख़राब हो चुकी थी। इसीलिए वह अपने लंड को अपने हाथ में लेकर हिलाने लगा क्योंकी वह जानता था की जब तक वह अपने लंड को शांत नहीं करेगा वह ऐसे ही बार बार उसे तंग करता रहेगा। कुछ ही देर की मेंहनत के बाद अनिल के लंड से वीर्य की बूँदे निकलने लगी और वह फ्रेश होकर बाहर आ गया, कंचन भी बाहर निकलकर किचन में अपनी माँ के पास पुहंच गयी और उसके साथ नाशते को टेबल पर लगाने लगी।

सभी लोग नाशते की टेबल पर आ चुके थे और सभी साथ में नाश्ता करने लगे।
"बेटी मैं तुम्हारे पिता के साथ बाहर जा रही हूँ कुछ काम है और कुछ सामान भी खरीद करना है जब तक मैं आऊँ घर का ख़याल रखना" रेखा ने नाश्ता ख़तम करने के बाद अपनी बेटी से कहा।
"ठीक है माँ आप जाओ मैं बर्तन किचन में रख लूँगी" कंचन ने अपनी माँ से कहा।
"ठीक है बेटी मैं जाती हू" रेखा इतना कहकर अपने पति के साथ घर से बाहर निकल गयी । रेखा के जाते ही विजय और कोमल उठते हुए अपने कमरों में सोने के लिए चले गए क्योंकी वह बुहत थके हुए थे, अब वहां पर सिर्फ कंचन और उसके दादा थे। कंचन धीरे धीरे बर्तनों को वहां से उठाकर किचन में रखने लगी।
 
कंचन ने सारे बर्तनों को किचन में रख दिया और खुद बाहर आकर अपने दादा के साथ बैठकर बाते करने लगी।
"ओहहहह बेटी तुम तो बुहत थक चुकी हो देखो कितना पसीना आ रहा है" कंचन के बैठते ही अनिल ने अपनी पोती को गौर से देखते हुए कहा। जिसकी पूरी कमीज पसीने से भीग चुकी थी। जिस वजह से उसकी चुचियाँ बिलकुल नंगी होकर अनिल को दिख रही थी।
"दादा जी आज बुहत ज्यादा गर्मी है" कंचन ने भी अपने आप को देखा तो उसके रोंगटे खड़े हो गये । वह उस वक्त जिस हालत में अनिल के सामने बैठी थी ऐसा लग रहा था जैसे उसने कमीज पहनी ही नहीं है मगर वह खुद भी अपने दादा को अपने ख़ूबसूरत जिस्म का जलवा दिखाना चाहती थी इसीलिए कंचन ने वहीँ पर बैठे हुए अपने दादा से कहा।

"बेटी कमरे में चलकर बाते करते हैं यहाँ पर तो बुहत ज्यादा गर्मी है" अनिल ने अपनी पोती की गोल चुचियों के तने हुए गुलाबी निप्पल्स को देखते हुए कहा जो पसीने से भीगी हुयी उसकी समीज से चिपककर साफ़ दिखाई दे रही थी।
"हाँ सही कहा दादा जी" कंचन ने कुर्सी से उठते हुए कहा । अनिल भी अपनी पोती के पीछे पीछे कमरे में जाने लगा उसका लंड अपनी पोती की चुचियों को देखकर फिर से तन चूका था, कंचन कमरे में दाखिल होकर बेड पर जा बैठी। अनिल भी अंदर दाखिल होते हुए सोफ़े की तरफ जाने लगा।
"अरे कहाँ जा रहे हैं दादा जी यहीं बैठो न साथ में" कंचन ने अपने दादा के हाथ को पकडते हुए कहा।

ऐसे नहीं था की अनिल वहां बैठना नहीं चाहता था वह सिर्फ वहां पर बैठने से लिए इसीलिए कतरा रहा था की कहीं उसका तम्बू कंचन को न दिख जाए। लेकिन अब वह कर भी क्या सकता था इसीलिए वह अपनी पोती के साथ ही वहीँ बैठ गया।
"बेटी तुम तो बुहत थक चुकी हो अब मेरे ताज़े दूध का क्या होगा" अनिल ने कुछ देर की ख़ामोशी के बाद अपनी पोती की चुचियों को देखते हुए कहा । अंदर आने के बाद कंचन की कमीज हवा की वजह से सुख चुकी थी जिस वजह से अब उसकी चुचियां साफ़ नहीं दिख रही थी।
"अरे दादा मेरे होते हुए आपको ताज़े दूध की चिंता करने की कोई ज़रुरत नही" कंचन ने थोडा नीचे झुककर अपने हाथ से अपने एक पाँव को खुजाते हुए कहा।

"बेटी तुम बुहत ही अच्छी हो मुझे तो अभी से ताज़े दूध की महक आने लगी है" अनिल ने कंचन के झुकने से उसकी चुचियों को घूरते हुए कहा।
"दादा जी आप को तो ताज़ा दूध मिल जाएगा मगर मेरी आइसक्रीम का क्या होगा?" कंचन ने इस बार अपने दादा की गोद की तरफ देखते हुए कहा।
"ओहहहह बेटी मेरा वादा है ताज़ा दूध पीते ही मैं तुम्हें आईस्क्रीम खिलाऊँगा" अनिल ने वैसे ही कंचन की चुचियों को घूरते हुए कहा।
"दादा जी क्या मैं आपका बाथरूम यूज कर सकती हूँ बुहत गर्मी हो रही है ज़रा फ्रेश हो जाऊँ। फिर आपको ताज़ा ढूध बनाकर देती हूँ" कंचन ने सीधे होते हुए कहा।
 
"हाँ बेटी तुम्हारा अपना ही घर है" अनिल ने कंचन की बात सुनते ही कहा । कंचन अपने दादा की बात सुनकर बाथरूम में घुस गयी । वह अपनी सलवार कमीज उतारकर नहाने लगी उसने जानबूझकर तौलिया नहीं उठाया था।
"दादा जी ज़रा तौलिया तो देना में लेना भूल गई" कुछ देर नहाने के बाद कंचन ने शावर को बंद करते हुए कहा । अनिल जो अपनी पोती के बाथरूम में जाते ही अपने हाथ से अपने लंड को सहला रहा था अपनी पोती की बात सुनकर जल्दी से तौलिया उठाकर बाथरूम की तरफ बढ़ने लगा । उसका लंड अब पहले से ज्यादा अकडकर झटके मार रहा था।
"बेटी यह रहा तौलिया" अनिल ने बाथरूम के बाहर आते ही अपनी पोती को जवाब देते हुए कहा।

"थैंक्स दादा जी" कंचन ने बाथरूम का दरवाजा खोलते हुए अपने दादा के हाथ से तौलिया लेते हुए कहा और मुस्कुराकर दरवाज़ा वापस बंद कर दिया । कंचन के दरवाज़ा खोलने के बाद जो नज़ारा अनिल ने देखा वह उसे पागल करने के लिए काफी था। कंचन बिलकुल नंगी अपने भीगे बालों से अपनी चुचियों को ढके हुए और अपनी चूत के आगे अपने एक हाथ को रखे हुए अनिल के सामने आकर उससे टॉवल लिया था, जीतनी देर में कंचन ने अनिल से टॉवल लिया उतना टाइम उसके लिए अपनी पोती का जिस्म देखने के लिए काफी था।

अनिल ने आज तक इतनी ज्यादा सूंदर और ख़ूबसूरत जिस्म की मालिक लड़की नहीं देखी थी । कंचन का पूरा जिस्म अनिल की आँखों के सामने झूम रहा था उसका गोरा चिकना पेट, मांसल चुतड, चिकनी टाँगेँ, लम्बे नागिन जैसे काले भीगे बाल, शराब से ज्यादा नशीले गुलाबी लब, और उसका भरा हुआ क़यामत ढाता सीना । अनिल बेड पर आकर बैठ गया। उसका मन कर रहा था की जैसे ही कंचन बाथरूम से निकले वह उसे अपनी बाहों में भरकर उसके होंठो का सारा रस निचोड ले और यही सब सोचते हुए अनिल का लंड झटके खा रहा था, कंचन अपने कपडे पहनकर बाथरुम से बाहर निकल चुकी थी जिसे देखकर अनिल को फिर से एक झटका लगा।

कंचन की चुचियाँ फिर से उसकी कमीज में साफ़ नज़र आ रही थी । शायद कंचन ने अपनी चुचियों से पानी को ठीक तरीके से साफ़ नहीं किया था जिस वजह से वहां का हिस्सा भीगने की वजह से साफ़ नज़र आ रहा था।
"दादा जी क्या देख रहे हो ताज़ा दूध पीना है न?" कंचन ने अपने दादा के बिलकुल पास खड़े होकर नीचे झुकते हुए कहा।
"जी बेटी पीना है जल्दी से पिलाओ ना" अनिल ने अपनी पोती के झुकने से उसकी नंगी चुचियों को घूरते हुए कहा । उत्तेजना के मारे अनिल के माथे से पसीना टपक रहा था।
"दादा जी अभी पिलाती हूँ आप हमारी आइसक्रीम का बंदोबस्त करे" कंचन ने अपने हाथ से अनिल के माथे के पसीने को पोछते हुए कहा और सीधी होकर कमरे से निकल गयी।
 
"दादा जी आज शायद दूध वाला कम दूध लाया था फ्रीजर में तो दूध नहीं है" कंचन ने थोडी देर में वापस आकर अपने दादा के पास बैठते हुए कहा।
"बेटी ऐसे कैसे हो सकता है हमें अभी दूध पीना है कुछ तो इंतज़ाम करो ना" अनिल ने अपनी पोती की बात को सुनकर गुस्सा करते हुए कहा।
"दादा जी अभी कहाँ से लाऊँ दूध?" कंचन ने परेशान होते हुए कहा।
"बेटी देख लो थोड़ा तो मिल ही जाएगा" अनिल ने इस बार अपनी पोती की चुचियों की तरफ देखते हुए कहा।
"दादा जी मैं कुछ नहीं कर सकती" कंचन ने अपने सर को झुकाते हुए कहा।
"वाह बेटी अपने दादा के लिए इतना भी नहीं कर सकती मुझे तो अपने सामने ही ताज़ा दूध दिख रहा है। मगर तुम बहाने कर रही हो" अनिल ने कंचन के सर को पकड़कर सीधा करते हुए कहा।

"दादा जी किधर है?" कंचन की आवज़ भारी हो रही थी।
"बेटी यह जो है इससे ज्यादा ताज़ा दूध तो कहीं भी नहीं मिलेंगा" अनिल ने इस बार अपने एक हाथ को अपनी पोती की एक चूचि पर रखते हुए कहा।
"दादा जी हटिये आप बड़े वो हैं" कंचन अपने दादा की बात सुनकर शर्माने का नाटक करते हुए बेड से उठकर थोड़ा दूर होकर खड़ी हो गयी।
"क्यों बेटी मैंने कुछ गलत कहा क्या। तुझ पर मेरा कोई हक़ नहीं है?" अनिल ने बेड से उठकर अपने पोती को पीछे से अपनी बॉहों में भरते हुए कहा।
"दादा जी छोड़िये ना आप क्या कह रहे हैं?" कंचन ने फिर से अपने दादा से छूटते हुए बेड पर जाकर बैठते हुए कहा।
"बेटी क्या मैं अपनी प्यारी पोती के जिस्म को छु भी नहीं सकता अच्छा तुम्हारी मर्ज़ी बस मुझे एक बार अपना ताज़ा दूध पिला दो" अनिल ने भी अपनी पोती के साथ बैठते हुए कहा।

"दादा जी आप क्या कह रहे हैं इनमें दूध नहीं है" कंचन ने अपने दादा को ज्यादा उकसाने के लिए शर्म को छोडते हुए बोली। उसकी चूत से उत्तेजना के मारे जाने कितना पानी निकल चूका था।
"वाह बेटी तुम्हें किसने कहा इनमें दूध नहीं है यह कितनी भरी हुई हैं इनमें तो बुहत दूध होगा" अनिल ने इस बार फिर से अपना एक हाथ अपनी पोती की एक चूचि पर रखते हुए कहा।
"दादा जी मुझे शर्म आ रही है इनमें दूध तब होता है जब औरत बच्चे को जन्म देती है अभी इनमें कुछ नहीं है" कंचन जानती थी की उसके दादा हर बात जानते हैं मगर फिर भी वह जानबूझकर उनसे ऐसी बाते कर रही थी।
"अरे बेटी बहाने मत बनाओ अगर तुम्हें नहीं पिलाना ताज़ा दूध तो तुम्हारी मर्जी" अनिल ने इस बार अपना मुँह ख़राब करते हुए कहा।
 
दादा जी आप नाराज़ क्यों हो रहे हैं मैं सच कहती हूँ इनमें दूध नहीं है" कंचन ने अपने दादा को मनाते हुए कहा।
"नही है तो मेरी किस्मत मगर मैं एक बार ट्राय कर लूँगा तो तुम्हारा क्या बिगड जाएगा" अनिल कोई कच्चा खिलाडी नहीं था वह अपने हाथ लगे इस मोके का पूरा फ़ायदा उठाना चाहता था।
"दादा जी ठीक है अगर आप इतनी ज़िद कर रहे हैं तो भले आप एक बार ट्राइ कर लेना" कंचन की चूत यह सब कहते हुए ज़ोर से पानी टपका रही थी। उसका पूरा जिस्म अगले पल के बारे में सोचते हुए पूरी तरह से गरम हो चुका था।


"थैंक्स बेटी तुम बुहत अच्छी हो आओ मेरे पास" अनिल ने अपनी पोती को अपने पास बुलाते हुए कहा।
"दादा जी मुझे शर्म आ रही है" कंचन ने इस बार सच में शरमाते हुए कहा कुछ भी हो वह एक लड़की थी जिस वजह से उसे अपने दादा के पास जाते हुए शर्म आ रही थी।
"अरे बेटी शर्माओ मत मैं सिर्फ ताज़े दूध को पियूंगा" अनिल ने इस बार अपनी पोती की कमर में हाथ डालकर उसे अपने पास खींचते हुए कहा। कंचन कुछ बोली नहीं और सरककर अपने दादा के बिलकुल पास हो गयी, वह अब अपने दादा से बिलकुल चिपककर बैठी हुयी थी और अपना दादा का मरदाना हाथ अपनी कमर पर लगते ही उसके बदन में एक अजीब से सिहरन दौडने लगी थी।

"बेटी मुझे तूम्हारी चुचियों का दूध पीने के लिए तुम्हारी कमीज को उतारना होगा" अनिल ने अपनी पोती को देखते हुए कहा जो अपना सर नीचे किये हुए चुपचाप बैठी थी।
"दादा जी ऐसे ही कमीज ऊपर कर लें ना" कंचन ने अपना सर नीचे किये हुए ही अपने दादा से कहा।
"नही बेटी ऐसे ठीक नहीं होगा मुझे अच्छे तरीके से ताज़ा दूध पीना है" अनिल ने कंचन की बात को सुनकर जल्दी से कहा। वह अपनी पोती के जिस्म को इतना नज़दीक से देखने का यह मौका कैसे गँवा सकता था।
"दादा जी जैसे आप ठीक समझे" कंचन जानती थी की उसके दादा ऐसे नहीं मानने वाले इसीलिए उसने हार मानते हुए कहा।
"तो उतारो न अपनी कमीज को बेटी" अनिल ने कंचन की बात सुनने के बाद उसे देखते हुए कहा।
"दादा जी मुझे शर्म आ रही है आप ही" कंचन ने शर्म के मारे सिर्फ इतना कहा और चुप हो गयी।
 
"ओहहहह बेटी तुम शरमाती बुहत हो अच्छा मैं ही उतार देता हुँ" अनिल ने कंचन की बात सुनकर अपने दोनों हाथों से उसकी कमीज को पकडकर उसके जिस्म से अलग करते हुए कहा । कंचन का पूरा जिस्म अपने दादा से अपनी कमीज को उतरवाते हुए कांप रहा था और उसके पूरे जिस्म में एक अन्जानी सी एस्साइटमेंट हो रही थी।
"आह्ह्ह्ह बेटी तुमने नीचे कुछ नहीं पहना ओह्ह्ह्हह कितनी प्यारी हैं हमारी बेटी की चुचियां" अनिल ने अपनी पोती की गोल भरी हुयी दूध की तरह सफैद चुचियां जिनके ऊपर छोटे गुलाबी निप्पल थे देखकर अपने होंठो पर अपनी जीभ को फिराते हुए कहा।

"ओहहहहहह बेटी दूध से ज्यादा मजा तो इन्हें अपने मुँह में लेकर आयेगा" अनिल ने अपनी पोती की नरम चुचियों को घूरते हुए अपने दोनों हाथों को आगे करते हुए पकड लिया और उन्हें बुहत ज़ोर से दबाते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह दादा जी दर्द हो रहा है" कंचन ने अपनी नरम चुचियों को अपने दादा के कठोर हाथों से दबने की वजह से ज़ोर से चिल्लाते हुए कहा।
"ओहहहह सॉरी बेटी मैं कुछ ज्यादा ही एक्साइटेड हो गया था" अनिल ने अपनी पोती की चुचियों पर अपने हाथों की पकड़ को कुछ ढीला करते हुए कहा।
"बेटी यहाँ पर तो मैं तुम्हारी चुचियों का ताज़ा दूध नहीं पी सकता तुम ऐसा करो बेड पर सीधी होकर लेट जाओ मैं तुम्हारे ऊपर आ जाता हूँ" अनिल ने अपनी पोती की चुचियों को धीरे धीरे सहलाते हुए कहा।


कंचन जो पहले से बुहत ज्यादा गरम हो चुकी थी वह अपने दादा की बात सुनकर एक्साईटमेंट में पागल होते हुए अपने दादा के कहने के मुताबिक बेड पर सीधी होकर लेट गयी । अनिल अपनी पोती के बेड पर लेटते ही खुद भी बेड पर चढते हुए अपनी पोती के ऊपर लेट गया, अनिल अपनी पोती के ऊपर ऐसे लेटा था की उसका लंड सीधा कंचन को अपनी चूत के पास जांघों पर टकराता हुआ महसूस होने लगा।
"आआह्ह्ह्ह बेटी आज कितने दिनों बाद मुझे ताज़ा दूध पीने को मिल रहा है" अनिल ने अपने दोनों हाथों से अपनी पोती की चुचियों को पकडते हुए कहा और उनमें से एक को अपने मुँह में डाल लिया।

अनिल कंचन की चूचि को अपने मुँह में भरकर बुहत ज़ोर से चूसने और चाटने लगा। वह अपनी पोती की चूचि को ऐसे चाट रहा था जैसे सच में उसमें से ताज़ा दूध निकल रहा हो और यह सब करते हुए उसका लंड बुरी तरह से झटके खाते हुए कंचन की जांघों पर घिस रहा था।
"आहहह दादा जीई आराम से कीजिये ना" कंचन अपनी चुचि को अपने दादा के मुँह में महसूस करते ही बुहत ज्यादा गरम होते हुए ज़ोर से सिसकते हुए बोली । कंचन का हाथ अपने आप उसके दादा के बालों में आ गया था और उसे इतना ज्यादा मजा आ रहा था की वह अपने दादा के बालों को अपने हाथ से सहला रही थी।
 
अनिल अपनी पोती को गरम देखकर उसका फ़ायदा लेते हुए उसकी चूचि को चूसते हुए थोडा ऊपर सरक गया जिस वजह से उसका खड़ा लंड अब सीधा कंचन की सलवार के ऊपर से उसकी चूत को टच करने लगा।
"आआह्ह्ह्हह दादा जीईई" कंचन जो अपने दादा की हरक़तों से बुहत ज्यादा गरम हो चुकी थी और उसने सलवार के नीचे भी कुछ नहीं पहना हुआ था । वह अपने दादा के लंड को अपनी सलवार के ऊपर से ही अपनी चूत पर महसूस करके ज़ोर से सिसकते हुए झडने लगी । कंचन ने झडते हुए अपनी टांगों को आपस में से जुदा कर दिया जिस वजह से अब अनिल अपनी पोती की टांगों के बीच आ गया और उसका लंड का दबाव सीधा कंचन की चूत पर पड़ा, कंचन ने झडते हुए अपने अपने दोनों हाथों से अपने दादा के सर को ज़ोर से अपनी चूचि पर दबा दिया था। वह खुद बुहत ज्यादा हैंरान थी की वह इतना ज्यादा एक्साइटेड होकर इतना जल्दी कैसे झड़ गई।

अनिल को भी पता चल चूका था की उसकी पोती एक्साईटमेंट में एक बार झड चुकी है क्योंकी कंचन की चूत से निकलने वाला पानी उसकी सलवार को गीला करता हुआ अनिल के लंड पर भी लग रहा था । कंचन का हाथ अब अनिल के बालों में ढीला पड़ चूका था क्योंकी वह पूरी तरह से झड़ चुकी थी और उसकी साँसें अब बुहत ज़ोर से चल रही थी।
"यआह्ह्ह्ह बेटी तुम तो बुहत झूठी हो। इनमें तो बुहत ही ज्यादा ताज़ा और स्वादिष्ट दूध है अभी मैं दूसरी वाली चूचि का ताज़ा दूध चखता हूँ" अनिल ने अपना मुँह कंचन की एक चूचि से हटाते हुए कहा और अगले ही पल उसके मुँह में कंचन की दूसरी चूचि थी, अनिल जाने कितनी देर तक उसकी दूसरी चूची को चूसते और चाटता रहा और वह अपनी पोती की चूची का पूरा अनुभव लेने के बाद उसे अपने मुँह से निकालकर उसके गुलाबी दाने को अपने दांतों से काटने लगा।

"ओहहहहहह दादा जी क्या कर रहे हो दर्द हो रहा है" कंचन ने अपनी चूची के दाने को अपने दादा के दांतों से काटने से चिल्लाते हुए कहा।
"ओहहहह बेटी क्या करुं तुम्हारी इन ख़ूबसूरत चुचियों को खा जाने को मन करता है" अनिल ने कंचन की चूचि से अपने मुँह को हटाते हुए उसके मुँह के क़रीब करते हुए कहा । इस पोजीशन में अनिल का लंड बिलकुल कंचन की चूत के छेद पर टीक चूका था और उसकी साँसें कंचन की साँसों से टकरा रही थी।
"आह्ह्ह्ह दादा जी अब हटिये ना" कंचन ने अपने दादा के लंड को सीधा अपनी चूत के छेद पर लगने से सिसकते हुए कहा।
"क्या हुआ बेटी तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा" अनिल ने कंचन की आँखों में देखते हुए कहा।
"दादाजी ऐसी बात नही" कंचन ने शरमाते हुए कहा।
 
"आहहह बेटी तुम्हारे होंठ कितने गुलाबी हैं देखने से ही लगता है की इनमें भगवान ने कूट कूट कर नशा भरा है" अनिल ने अपने एक हाथ को कंचन के होंठो पर रखकर उसके होंठो को अपनी उँगलियों से सहलाते हुए कहा।
"दादा जी" कंचन की आँखें अपने दादा के हाथ को अपने होंठो पर लगने से बंद होने लगी क्योंकी अनिल का हाथ जैसे ही उसके होंठो पर पड़ा उसका लंड भी एक ज़ोर के झटके के साथ कंचन की चूत पर घिस गया।
"ओहहहह बेटी क्या मैं तुम्हारे इन गुलाबी नशीले होंठो का रस पी सकता हूँ" अनिल ने इस बार अपने लंड को ज़ोर से कंचन की चूत पर घिसते हुए कहा।
"आआह्ह्ह्हह दादा जी" कंचन के मुँह से ज़ोर की सिसकी निकल गयी । अनिल ने अगले ही पल अपने होंठो को कंचन के गुलाबी होंठो पर रख दिया और बुहत प्यार से अपनी पोती के दोनों रसीले होंठो को बारी बारी अपने मुँह में लेकर चूसने लगा।


कंचन भी अपने दादा से अपने होंठो को चुसवाते हुए उसमें खोती चलि गयी और वह भी अपने होंठो से अपना दादा के होंठो को चूमने लगी । अनिल ने अचानक अपने होंठो से कंचन की जीभ को पकडते हुए अपने मुँह में भर लिया और बड़े प्यार से अपनी पोती की मीठी जीभ को अपने होंठो और जीभ से चाटने लगा, इधर कंचन की हालत भी फिर से खराब होने लगी। उसकी दोनों नरम चुचियां उसके दादा के कठोर सीने में दबी हुयी थी और उसके दादा उसकी जीभ को बड़े प्यार से चाट रहे थे।

अनिल और कंचन तब तक एक दुसरे के होंठो और जीभों से खेलते रहे जब तक उन दोनों की साँसें नहीं फूली और साँसों के फ़ूलते ही अनिल ने कंचन के होंठो को छोड दिया और उसके ऊपर से हटते हुए बेड पर सीधा लेट गया । कंचन भी कुछ देर तक अपनी साँसों को ठीक करने के बाद बेड से उठने लगी।
"कहाँ जा रही हो बेटी?" अनिल ने कंचन को कलाई से पकडते हुए कहा।
"दादा जी छोड़िये न आपको जो चाहिए था आपको मिल गया" कंचन ने अपनी कलाई को अपने दादा से छुड़ाने की नाक़ाम कोशिश करते हुए कहा।
"अरे बेटी मैंने तो ताज़ा दूध पी लिया मगर तुम भी आइसक्रीम खालो ना" अनिल ने कंचन को देखते हुए कहा।
"आइसक्रीम। मगर कहाँ है वो" कंचन ने अन्जान बनते हुए कहा।
"ये रही आइसक्रीम बेटी" अनिल ने अपने हाथों से अपनी धोती को अपनी टांगों से अलग करते हुए कहा।

"दादा जी आप भी छोड़िये मुझे" अनिल की धोती के हटते ही उसका फनफनाता हुआ लंड झटके खाता हुआ कंचन की आँखों के सामने लहराने लगा जिसे देखकर कंचन ने अपने दादा से अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा।
"अरे बेटी क्या हुआ आइसक्रीम पसंद नहीं आई क्या?" अनिल ने कंचन के हाथ को पकडकर अपने लंड पर रखते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह दादा जी प्लीज छोड़िये ना" कंचन ने अपने हाथ को अपने दादा के लंड पर महसूस करते ही सिसकते हुए कहा । कंचन का पूरा शरीर अपने हाथ को अपने दादा के लंड पर महसूस करके कांप रहा था।
 
अरे बेटी तुम इतना घबरा क्यों रही हो थोडा रिलैक्स हो जाओ और इसे अपने हाथ से सहलाओ तुम्हें भी अच्छा लगेंगा" अनिल ने कंचन को समझाते हुए कहा । अनिल अब भी अपने हाथ से कंचन के हाथ को पकडे हुए उसे अपने खड़े लंड पर रखे हुए धीरे धीरे सहला रहा था। कंचन खुद भी तो यही चाहती थी मगर वह सिर्फ नखरे दिखा रही थी । अपने दादा के समझाने पर वह थोडा रिलैक्स हो गई और अपने हाथ को अपने दादा के गरम तगडे लंड पर आगे पीछे करने लगी।

"आआह्ह्ह्ह ऐसे ही बेटी यह हुई न बात" अनिल अपनी पोती के नरम हाथ को अपने लंड पर आगे पीछे महसूस करके ज़ोर से सिसकते हुए कहा । कंचन की साँसें अपने दादा के लंड को सहलाते हुए बुहत ज़ोर से चल रही थी और उसका पूरा शरीर फिर से उत्तेजना के मारे बुहत गरम हो गया था।
"आआह्ह्ह्ह बेटी अब ज़रा इसे अपने मुँह में डालकर देखो यह तुम्हें आइसक्रीम से ज्यादा मजा देगा" अनिल ने कंचन के लम्बे काले बालों में हाथ ड़ालते हुए कहा।
"नही दादा जी छी मैं इसे अपने मुँह में नहीं ले सकती यह बुहत गन्दा है" कंचन ने नखरा दिखाते हुए कहा। वैसे तो अपने दादा के गुलाबी लंड को देखकर उसका मन भी उसे अपने मुँह में लेने का हो रहा था।

"अरे बेटी तुम एक बार इसे अपने मूह में लेकर तो देखो अगर तुम्हें अच्छा न लगे तो निकाल लेना" अनिल ने कंचन के बालों को सहलाते हुए कहा।
"पर दादा जी" कंचन ने अपने दादा के लंड को सहलाते हुए कहा।
"ज़्यादा मत सोचो बेटी और एक बार इसका स्वाद चख ही लो" अनिल ने कंचन बालों से पकड़कर अपने लंड पर झुकाते हुए कहा । कंचन का मुँह अब उसके दादा के लंड के बिलकुल क़रीब था । वह अपने दादा के लंड का गुलाबी सुपाडा इतना नज़दीक से देखकर उत्तेजित होते हुए उसे अपने होंठो से चूम लिया।
"आआह्ह्ह्ह बेटी इसे जीभ से चाटो" अनिल ने कंचन के नरम गुलाबी लबों को अपने लंड के सुपाडे पर लगते ही ज़ोर से सिसकते हुए कहा।

कंचन ने अपने दादा के लंड को नीचे से अपनी मुठी में पकड़ा हुआ था और उसका मोटा गुलाबी सुपाडा बिलकुल उसके मुँह के क़रीब था । कंचन ने एक अखिरी बार अपने दादा के लंड के सुपाडे को देखा और अपनी जीभ निकालकर उसके गुलाबी सुपाडे पर फिराने लगी।
"ओहहहहहह बेटी ऐसे हीइइइइ" अनिल अपने लंड के सुपाडे पर अपनी पोती की जीभ लगते ही मज़े से उछल पड़ा और बुहत ज़ोर से सिसकते हुए कहने लगा । कंचन को भी अपने दादा के लंड के गुलाबी छेद पर अपनी जीभ को फिराते हुए बुहत मजा आ रहा था इसीलिए वह बड़े मज़े के साथ अपनी जीभ को अपने दादा के लंड के गुलाबी सुपाडे पर गोल गोल घुमा रही थी।
 
कंचन के ऐसे करने से अनिल के मूह से उत्तेजना के मारे बुहत ज़ोर की सिस्कियाँ निकलने लगी और उसके लंड के छेद से प्रिकम की बूँदे निकलने लगी । कंचन ने अपने दादा के लंड से निकलते हुए प्रिकम को देखते ही अपनी जीभ को वहां ले जाकर अपने दादा के लंड से निकलता हुआ प्रिकम चाटने लगी।
"उईई आहहहह बेटी ज़ोर से चाटो अपने मुँह में लो इसे" अनिल ने मज़े के मारे बुहत ज़ोर से सिसकते हुए कहा । कंचन अपनी जीभ को कड़ा करते हुए बुहत ज़ोर से अपने दादा के लंड के छेद में घुमा रही थी जिस वजह से अनिल का पूरा शरीर मज़े से कांप रहा था।

कंचन कुछ देर तक ऐसा ही करने के बाद अपना मुँह खोलते हुए अपने दादा के लंड के सुपाडे को अपने मुँह में भर लिया । अनिल के लंड का सुपाडा बुहत मोटा था जिस वजह से कंचन को उसे मुँह में लेने के लिए अपना मुँह पूरी तरह खोलना पड़ गया, कंचन ने अपने दादा के लंड का सुपाडा अपने मुँह में ले लिया था और वह अनिल के लंड के सुपाडे को अपने होंठो और जीभ से चाटते हुए ही अपने हाथ से भी उसके लंड के नीचे वाले हिस्से को सहलाने लगी।
"आहहहहह इसशहहहहह बेटी ओह्ह्ह्हह" अनिल तो मज़े के मारे जैसे जन्नत की सैर कर रहा था उसका पूरा शरीर मज़े के मारे कांप रहा था और वह बुहत ज़ोर से सिसकते हुए कंचन को बालों से पकडते हुए अपने लंड पर दबा रहा था।

अनिल को लग रहा था की अब वह कभी भी झड सकता है इसीलिए वह बुहत ज़ोर से कंचन को सर से पकडकर अपने लंड पर दबा रहा था। अपना लंड अपनी पोती के मुँह में डाले हुए उसे ऐसे महसूस हो रहा था जैसे उसका लंड किसी गरम भट्टी में डाल दिया गया हो जिस वजह से वह अपना कण्ट्रोल खोता जा रहा था। कंचन भी अपने दादा की हरक़तों से समझ चुकी थी की अब वह झरने के बिलकुल क़रीब है इसीलिए वह भी अब अपने मुँह को बुहत तेज़ी के साथ अपने दादा के लंड पर आगे पीछे कर रही थी।

अचानक अनिल को जाने क्या हुआ उसने कंचन के बालों को अपने दोनों हाथों से पकडते हुए अपने लंड पर बुहत ज़ोर से दबा दिया और उसे बालों से पकडे हुए ही उसका मुँह बुहत तेज़ी के साथ अपने लंड पर ऊपर नीचे करने लगा । अनिल के इस अचानक किये हुए हमले से उसका लंड ४ इंच तक कंचन के मूह को चीरता हुआ अंदर घुस चूका था और अनिल जैसे ही अपने लंड को कंचन के मुँह में अंदर बाहर करता उसके मूह से गुं गुं की आवाज़ें निकलने लगती।
"आह्ह्ह्हह्ह ओहहहहहह बेटीई ओफ्फफ्फ्फ्फफ" अनिल के मुँह से अचानक बुहत ज़ोर की सिसकियाँ निकलने लगी और उसके लंड से वीर्य की गरम पिचकारियां निकलते हुए कंचन के मुँह में गिरने लगी ।अनिल के लंड से वीर्य की पिचकारियां इतनी तेज़ी से निकल रही थी की कुछ पिचकारी सीधे कंचन के गले से उतरकर उसके पेट में जाने लगी।
 
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