Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 28 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

"वाह दीदी इसका मतलब की तुम भी दुसरे लंड का मजा चखना चाहती हो" शीला ने कंचन की बात सुनते हुए कहा।
"हाँ दीदी मैं भी आपसे कम थोडे हू" कंचन ने भी शीला की बात सुनकर हँसते हुए कहा।
"दीदी तो फिर देर किस बात की। अभी भैया अपने कमरे में ही होंगे और विजय भैया भी यहाँ नहीं है आप किसी बहाने से उसके कमरे में जाओ और देखो की वह आपकी जवानी की तरफ धयान देता है की नही" शीला ने कंचन की बात सुनते ही जल्दी से कहा ।

"ठीक है शीला दीदी । मैं अभी ट्राई करती हू" शीला ने कहा और उसने एक टॉवल लिया और अपने जिस्म पर लपेट कर विजय के कमरे की तरफ जाने लगी । कंचन ने साड़ी नहीं पहनी थी और टॉवल के नीचे उसने सिर्फ ब्रा और पेंटी पहनी थी ।
कंचन अपने कमरे से निकलते ही जल्दी से विजय के कमरे में घुस गयी और दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया,
"दीदी आप इस हालत में" नरेश जो मज़े से बेड पर लेटा हुआ था। कंचन को टॉवल लपेटा हुआ अपने कमरे में देखकर उसकी गोरी टांगों को जो बिलकुल नंगी थी घूरते हुए हैरान होकर बोला।

"सॉरी भैया में नहा ही रही थी की अचानक पानी बंद हो गया क्या मैं आपका बाथरूम यूज कर सकती हू" कंचन ने बड़े ही भोलेपन से कहा।
"दीदी मुझसे पूछने की क्या ज़रुरत है। यह घर आपका ही तो है" नरेश ने कंचन की बात सुनते ही मुसकुराकर कहा।
"थैंक्स भैया आप बुहत अच्छे हैं जब तक आप यहाँ है। यह कमरा और बाथरूम आपका ही है" कंचन ने नरेश की बात सुनकर उसकी तरफ देखते हुए कहा ।
कंचन यह कहते हुए बाथरूम में घुस गयी और शावर ऑन करके नहाने लगी । नरेश ने आज पहली बार कंचन को इतनी नज़दीक से इतने कम कपड़ों में देखा था, नरेश का लंड कंचन के जिस्म को देखते ही खडा होकर झटके लगाने लगा था। वह मन ही मन में विजय के नसीब से जल रहा था क्योंके उसकी माँ और बहन दोनों उसे अपनी माँ और बहनों से ज्यादा अच्छी लगती थी।

कंचन कुछ देर तक नहाने के बाद अपने टॉवल से अपने जिस्म को पोंछने लगी।
"भइया मेरा टॉवल तो बुहत गीला हो गया है । आप प्लीज यहाँ से कोई टॉवल दे दो जिससे मैं लपेटकर अपने कमरे में जा सकुं" कंचन ने अपने प्लान के मुताबिक नरेश को पुकारते हुए कहा।
"दीदी अभी देता हू" नरेश जो कंचन के जिस्म को सोच सोच कर अपने लंड को सहला रहा था कंचन की आवाज़ सुनकर बेड से उठते हुए बोला ।
 
नरेश अपना टॉवल उठाकर बाथरूम की तरफ बढ़ने लगा।
"दीदी टॉवल ले लो" नरेश बाथरूम ने पास पुहंचते ही कंचन को पुकारते हुए कहा।
"थैंक्स भैया" अचानक बाथरूम का दरवाज़ा खुला और कंचन ने नरेश के हाथ से टॉवल लेते हुए कहा । दरवाज़े के खुलते ही नरेश का गला सूखने लगा उत्तेजना के मारे उसका लंड उसकी पेण्ट फाडने के लिए उतावला हो गया और नरेश की आँखें कंचन के गोरी गोरी नंगी चुचियों को उसकी ब्रा से आधा बाहर देखते ही वहीँ की वहीँ अटक गयी ।

"भइया आप बड़े बदमाश हो ऐसे क्या देख रहे हो" कंचन ने नरेश को यों अपने जिस्म की तरफ घूरता हुआ देखकर मुस्कराते हुए कहा और दरवाज़ा बंद कर दिया ।कंचन अपने प्लान की कामयाबी पर बुहत खुश हो रही थी, कंचन ने नरेश का दिया हुआ टॉवल लपेटा और बाथरूम से बाहर निकल आई।
"भइया मैं आपका टॉवल ले जा रही हूँ। आप मेरा टॉवल ही रख लो" कंचन ने बाथरूम से बाहर आते ही अपनी एक टाँग को बेड पर रखते हुए उसे दुसरे टॉवल से पोछते हुए कहा । नरेश जो पहले से ही कंचन के जिस्म को देखकर बुहत गरम हो चुका था । वह कंचन की टाँग को बेड पर रखने से उसकी टाँग को जांघों तक नंगा देखकर उसका लंड बुहत ज़ोर से झटके खाने लगा।

"ठीक है दीदी" नरेश के मूह से सिर्फ इतना ही निकला वह बुहत ज्यादा उत्तेजित हो चुका था और उसकी आँखें अपनी बहन की टांगों को घूरने में ही बसी थी।
"भइया आप ऐसे क्या देख रहे हो" कंचन ने अपनी एक टाँग को पोंछने के बाद उसे नीचे करते हुए अपनी दूसरी टाँग को बेड पर रखते हुए बोली।
"कुछ नहीं दीदी" नरेश ने अपनी चोरी पकडे जाने पर अपनी आँखों को कंचन की गोरी चिकनी टांगों से हटाते हुए कहा।
"भइया अब झूठ मत बोलो। आप मेरी टांगों को घूर रहे थे। सच बताइये आप ऐसे क्यों घूर रहे थे" कंचन ने नरेश को देखते हुए कहा।
"दीदी छोड़ो न। बस ऐसे ही देख रहा था" नरेश ने कंचन की बात सुनकर परेशान होते हुए कहा।

"भइया अगर आपने सच नहीं बोला तो मैं शीला दीदी को बता दूंगी" कंचन ने नरेश को धमकी देते हुए कहा।
"वो दीदी वह आपका जिस्म बुहत ख़ूबसूरत है" नरेश ने हकलाते हुए कहा।
"भइया आप बड़े बदमाश हो। क्या अच्छा लगा आपको मुझ में" कंचन ने अपनी टाँग को बेड से उतारते हुए मुसकुराकर बोली।
"दीदी अब क्या कहूँ आपका तो पूरा जिस्म बुहत ख़ूबसूरत है" नरेश ने हिम्मत करके कंचन को देखते हुए कहा ।
 
"भइया आप तो बड़े वो हो। मैं जा रही हूँ अरे आपका टॉवल तो बुहत छोटा है" कंचन ने यह कहकर अपने टॉवल को वहीँ पर नरेश के पास फेंक दिया और खुद नरेश के पहने हुए टॉवल को अपने हाथों से खोलते हुए फिर से अपने जिस्म पर बाँध दिया ।
कंचन के ऐसा करने से उसकी दोनों चुचियां फिर से सिर्फ ब्रा में ही आधि नंगी नरेश की आँखों के सामने आ गयी। जिन्हें देखकर नरेश का लंड इतने ज़ोर से झटके मारने लगा की उसे अपने लंड में दर्द महसूस होने लगा।

कंचन वहां से जा चुकी थी । मगर नरेश की हालत इतनी ज्यादा ख़राब हो चुकी थी की कंचन के जाते ही उसने दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और कंचन के टॉवल को जो उसके पूरे जिस्म को छु चूका था लेकर बाथरूम में घुस गया । नरेश ने अपने सारे कपडे निकाल दिए और कंचन के टॉवल को अपने चेहरे पर रखकर ज़ोर से साँसें लेते हुए उसे सूँघते और चूमते हुए अपने लंड को हिलाने लगा ।

"आह्ह्ह्ह साली का क्या जिस्म है ओहहहह तेरी जिस्म की ख़ुश्बू तो अब भी इस टॉवल से आ रही है आअह्ह्ह्ह भोसडी की एक बार मिल जाए तो उसके पूरे जिस्म ऐसे चाटूँगा जैसे शहद चाटते हैं साली कुतिया के बदन की ख़ुश्बू इतनी अच्छी है उसका जिस्म का ज़ायक़ा तो लाजवाब होगा" नरेश अपने लंड को हिलाते हुए बुहत ज़ोर से चिल्लाते हुए बड़बड़ा रहा था ।

"ओहहहहह साली कुतिया ने इस टॉवल से अपनी चूत और चुचियों को भी पोछा होगा आअह्ह्ह्हह तो इसका मतलब मैं अपने लंड पर जो टॉवल रगड रहा हूँ उसमें उसकी चूत का स्पर्श है ओह्ह्ह्हह हह कंचन" । यह सब सोचकर नरेश का जिस्म झटके खाने लगा और उसका लंड वीर्य की पिचकारियाँ छोड़ने लगा । नरेश टॉवल को अपने लंड के ऊपर रखकर उसे ज़ोर से आगे पीछे करते हुए झरने लगा ।

नरेश झरने के बाद शांत होकर नहाने लगा । नहाने के बाद उसने कंचन के टॉवल को भी धो दिया और वापस बिस्तर पर आकर लेट गया।
"दीदी क्या हुआ?" इधर कंचन के कमरे में दाखिल होते ही शीला ने उत्तेजित होते हुए पुछा ।
"शीला दीदी होना क्या था" कंचन ने दरवाज़ा अंदर से बंद करते हुए बेड पर बैठते हुए कहा।
"दीदी बताओ न पहेलियाँ क्यों बुझा रही हो" शीला ने कंचन की बात सुनकर ज्यादा उत्तेजित होते हुए कहा।

"दीदी कह तो रही हूँ बेचारा पहली नज़र में ही घायल हो गया" कंचन ने हँसते हुए कहा।
"दीदी ज़रा डिटेल में बताओ ना" शीला ने कंचन के क़रीब जाते हुए कहा । कंचन ने शीला को सारी बात बता दी की कैसे उसने उसके भाई को पागल बनाया।
"हुम्मम्म तो दीदी इसका मतलब हम दोनों के भाई एक जैसे है" शीला ने कंचन की बात सुनकर हँसते हुए कहा।।

"दीदी मैं कुछ समझी नही" कंचन ने शीला की बात सुनकर हैंरान होते हुए कहा।
"अरे दीदी मेरा मतलब है दोनों एक जैसे ही हैं घास देखी नहीं और अपना पूछ फिराते हुए चरने आ गये" शीला ने कंचन को समझाते हुए कहा।
"हाँ दीदी वह तो है मगर हमारे भाई सिर्फ ताज़ी घास ही खाते है" कंचन ने शीला की बात को समझते हुए हँसकर कहा और दोनों साथ में बातें करते हुए हंसने लगी।
 
रेखा अपने बेटे के साथ रिक्शा में बैठकर घर आ गयी थी । रेखा जैसे ही अपने कमरे में दाखिल हुयी विजय ने जल्दी से अपनी माँ को पीछे से पकडकर अपना खडा लंड उसके चूतड़ों में दबाने लगा।
"अरे क्या हुआ बेटे छोड़ो न मुझे" रेखा ने अपने बेटे की इस हरकत से हैंरान होकर खुद को उससे छुड़ाते हुए कहा।
"माँ आपको छोड दिया तो मेरे लंड को कौन शांत करेंगा" विजय ने वैसे ही अपनी माँ को पकडे हुए अपना मूह उसके काँधे पर रखकर उसे चूमते हुए कहा ।

"आजहहह बेटे छोड़ो मुझे इस वक्त यह सब ठीक नहीं और तुम्हारे पिता भी आने वाले होंगे" रेखा अपने बेटे की हरक़तों से सिसकते हुए बोली।
"माँ आ जाने दो उन्हें । वह भी तो देखे के उसका बेटा अपनी माँ से कितना प्यार करता है" विजय ने अपना हाथ रेखा के पेट से ऊपर करते हुए उसकी चुचियों को पकडकर दबाते हुए कहा।
"बेटा तुम भी न छोड़ो मुझे" रेखा गरम तो बुहत थी। मगर वह डर रही थी की कहीं उसका पति न आ जाये इसीलिए वह अपने बेटे को रोक रही थी ।

"माँ आज तो मैं नहीं मानने वाला" विजय ने यह कहते हुए रेखा की साड़ी को खीचकर उसके जिस्म से अलग कर दिया और उसे सीधा करते हुए अपने हाथों से उसके पेटिकोट और ब्लाउज को भी उसके जिस्म से हटा दिया।
"ओहहहह बेटे दरवाज़ा तो बंद करो" रेखा के मूह से सिर्फ इतना ही निकला । अगले पल विजय के होंठ रेखा के होंठो पर थे । विजय अपनी माँ के होंठो को बुरी तरह चूसते हुए अपने हाथों से उसकी बड़ी चुचियों को उसकी ब्रा के ऊपर से ही दबाने लगा ।

रेखा गरम तो पहले से ही थी । अपने बेटे के होंठो से अपने होंठो को चूसने से वह उत्तेजित होते हुए अपने हाथ से अपने बेटे की पेण्ट को खोलकर नीचे सरका दिया और विजय के खडे लंड को उसके अंडरवियर के ऊपर से ही पकडकर सहलाने लगी ।
विजय कुछ देर तक अपनी माँ के होंठो को जी भरकर चूसने के बाद उससे अलग होते हुए अपनी पेण्ट को निकालकर बेड पर फ़ेंक दिया और अपने अंडरवियर को भी खींचकर अपनी टांगों से निकाल दिया।
"बेटे तुम मानने वाले नहीं मगर कम से कम दरवाज़ा तो बंद कर लो । कोई आ गया तो गज़ब हो जायेगा" रेखा ने अपने बेटे के नंगे खडे लंड को जो पूरी तरह तनकर झटके मार रहा था उसे घूरते हुए बोली।
 
"माँ कोई नहीं आएगा आप डरो मत" विजय इतना कहकर अपनी माँ की ब्रा को अपने हाथों से पकडते हुए ज़ोर से खीँच लिया । विजय के ऐसा करने से रेखा की ब्रा उसकी बड़ी बड़ी चुचियों से निकलकर विजय के हाथों में आ गयी।
"आह्ह्ह्ह बेटे तुमने मेरी ब्रा को फाड दिया" रेखा ने अपनी ब्रा के फ़टते ही विजय की तरफ देखते हुए कहा।।

विजय अपनी माँ की बात सुने बगैर ही उसकी चुचियों पर टूट पड़ा और अपनी माँ की दोनों चुचियों को बारी बारी अपने मूह में लेकर चूस्ने चाटने और काटने लगा।
"आह्ह्ह्ह बेटे आराम से ओह्ह्ह्हह क्या कर रहे हो" रेखा के मूह से बुहत ज़ोर की सिस्कियाँ निकल रही थी।
विजय कुछ देर तक अपनी माँ की चुचियों से खेलने के बाद अपना मूह नीचे करते हुए उसकी पेंटी तक आ गया । रेखा की पेंटी उसकी चूत से निकले हुए पानी से बुरी तरह गीली हो चुकी थी, विजय अपनी माँ की चूत को उसकी गीली पेंटी के ऊपर से ही अपनी जीभ से चाटने लगा।

विजय कुछ देर तक अपनी जीभ को अपनी माँ की पेंटी के ऊपर फिराने के बाद उसकी पेंटी को अपने दोनों हाथों से खीचकर उसकी टांगों से अलग कर दिया । विजय पेंटी के उतरने के बाद अपनी माँ की फूली हुयी चूत को घूरते हुए अपनी जीभ को उसकी चूत के बड़े दाने पर रख दिया।
"आह्ह्ह्ह बेटे" रेखा अपने बेटे की जीभ को अपनी चूत के दाने पर लगते ही सिसक उठी और वह अपने बेटे के बालों में अपने हाथों को डालकर उसे अपनी चूत पर दबाने लगी ।

विजय कुछ देर तक अपनी माँ की चूत के दाने को चाटने के बाद सीधा होते हुए अपनी माँ के होंठो को चूसने लगा । रेखा ने अचानक अपने बेटे के होंठो से अपने मुँह को अलग करते हुए नीचे झुकते हुए अपने बेटे के लंड को पकड लिया और उसे अपने हाथ सहलाते हुए अपनी जीभ निकालकर उसके सुपाडे पर फिराने लगी ।
रेखा ने अपने बेटे के लंड को अपनी जीभ से चाटते हुए अपना मुँह खोलकर उसके सुपाडे को अपने मूह में भर लिया और अपने होंठो और जीभ से अपने बेटे के लंड को चूसने लगी।
"अअअअआह माँ" विजय अपनी माँ के ऐसे करने से मज़े से हवा में उड़ रहा था।
 
विजय कुछ देर तक अपने लंड को अपनी माँ से चुसवाने के बाद उसे अपनी गोद में उठाते हुए बेड पर उल्टा लिटा दिया और अपना खडा लंड पीछे से अपनी माँ की गीली चूत में पेल दिया । विजय को अपनी माँ की गरम चूत में अपना लंड अंदर बाहर करते हुए बुहत ज्यादा मजा आ रहा था । इसीलिए वह अपनी माँ की चुत में अपने लंड को अंदर बाहर करते हुए बुहत ज़ोर से सिसकते हुए अपनी माँ के चूतडों पर थप्पड मार रहा था ।

रेखा भी बुहत ज्यादा उत्तेजित हो चुकी थी इसीलिए वह भी अपने बेटे से चुदवाते हुए बुहत ज़ोर से सिसककर अपने चूतडो को पीछे की तरफ ढकेल रही थी । विजय तूफ़ान की रफ़्तार के साथ अपनी माँ को चोद रहा था।
"आजहहहह बेटे ओह्ह्ह्हह शहहहहः" कुछ ही देर में रेखा बुहत ज़ोर से चिल्लाते हुए झरने लगी और वह पूरी तरह झरने के बाद बेड पर उल्टा ही नीचे गिरकर लेट गयी ।

रेखा के नीचे गिरते ही विजय भी अपनी माँ के ऊपर गिर गया। मगर उसका लंड अब भी उसकी माँ की चूत में था इसीलिए वह अपने दोनों हाथों से सहारा लेकर थोडा ऊपर होते हुए इसी पोजीशन में अपनी माँ की चूत में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा ।
"आह्ह्ह्ह बेटे ओहहहह थोडी देर भी नहीं रुक सकते" रेखा अचानक अपनी चूत में अपने बेटे के लंड को अंदर बाहर होने से चिल्लाते हुए बोली । विजय कुछ देर तक अपनी माँ को इसी पोजीशन में चोदने के बाद अपना लंड उसकी चूत से निकाल दिया और अपनी माँ को कमर से पकडते हुए सीधा कर दिया।

विजय ने अपनी माँ के सीधा होते ही उसकी टांगों को अपने काँधे पर रखते हुए अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया और बुहत तेजी के साथ उसे चोदने लगा ।रेखा कुछ ही देर में फिर से गरम होगई और अपनी टांगों को अपने बेटे की कमर में डालकर अपने चूतडों को उछाल उछाल कर चुदवाने लगी ।
"आआह्ह्ह्ह माँ आप जैसी छिनाल औरत आज तक नहीं देखी बुहत गरम है तु" विजय ने अपनी माँ को तेज़ी के साथ छोड़ते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह बेटे मैंने भी तुम्हारे जैसे हरामी बेटा आज तक नहीं देखा । साले अपनी माँ को किसी दुसरे मरद के साथ देखकर मज़े लेते हो" रेखा ने वैसे ही अपने चूतडों को अपने बेटे के लंड की तरफ धकेलते हुए चिल्लाते हुए कहने लगी।
 
साली रंडी इसका मतलब तुम जानती थी की मैं तुम्हें ठरकी डॉ के साथ देख रहा हू" विजय ने अपनी माँ की बात सुनकर एक्साईटमेंट में अपना लंड और तेज़ी के साथ उसकी चूत में अंदर बाहर करते हुए कहा।
"ओहहहह बेटा मैंने भी ऐसे ही सारी उम्र नहीं बितायी तुम्हारी एक्साईटमेंट देखकर ही मैं समझ गयी थी की तुमने वहां पर सब कुछ देखा है" रेखा ने अपने बेटे की तरफ देखते हुए कहा ।
"ओहहहहह माँ सच में मुझे आपको उस ठरकी डॉ के साथ देखकर बुहत मजा आ रहा था । क्या आप भी सच में उससे चुदवाना चाहती हो" विजय ने अपनी माँ की बात सुनकर वैसे ही अपनी माँ को चोदते हुए कहा।

"आह्ह्ह्ह बेटे बुहत कमीने हो तुम। डॉ की बात करते हुए तुम्हारा लंड कैसे फूलकर झटके मार रहा है जब तुम मुझे उसके साथ चुदते हुए देखोगे तो तुम्हारी क्या हालत होगी" रेखा ने जानबूझकर अपने बेटे को ज्यादा उत्तेजित करते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह माँ क्या बाताऊँ वह पल मेरी ज़िंदगी का सब से शानदार पल होगा" विजय इतना कहकर अपनी माँ की टांगों को पकडते हुए उसके पेट पर रखकर बुहत ज़ोर से उसकी चूत में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा ।

"आआह्ह्ह्ह माँ ओहहहह मैं आ रहा हूँ" विजय बुहत ज़ोर से अपनी की चूत में अपना लंड अंदर बाहर करते हुए झरने लगा।
"ओहहहहहह बेटे तुम्हारा लंड झरते हुए तो और ज्यादा बड़ा और मोटा हो जाता है । आआह्ह्ह्ह मैं तुम्हें एक्साइटेड करने के लिए ही उस डॉ का नाम लिया था" रेखा भी अपने बेटे के झरने से सिसकते हुए झरने लगी ।
विजय झरने के बाद निढाल होकर अपनी माँ के ऊपर गिर गया।
"बेटे अब उठो कहीं कोई आ गया तो" रेखा ने अपने बेटे को अपने ऊपर से उठाते हुए कहा । रेखा ने जैसे ही अपने बेटे को अपने ऊपर से हटाकर उठाने की कोशिश की उसके होश ही उड़ गए सामने दरवाज़ा खुला हुआ था और इतनी देर से रेखा को उसके बेटे के साथ चुदते हुए कोई देख रहा था, रेखा की नज़र जैसे ही सामने गयी उसने जल्दी से बेड पर पडी हुयी चादर को उठाकर अपने नंगे जिस्म को ढ़क लिया ।
 
हुम्म्म्म तो यहाँ पर माँ बेटे दुनिया से बेखबर मज़े लूट रहे है" मनीषा ने अंदर आते हुए कहा।
"मामी आप यहाँ पर क्या कर रही हो" विजय मनीषा को देखकर बिलकुल नहीं डरा था । वह बेड से उठते हुए नंगा ही सीधा खडा होते हुए बोला ।
"वाह भाई बेशरमी तो देखो अपनी माँ के साथ मज़े करने के बाद ऐसा नंगा होकर खडा है जैसे कोई अवार्ड जीत लिया हो" मनीषा ने विजय के लंड को घूरते हुए उसे टोककर कहा।
"मामी आप क्यों जल रही हो कहो तो आपकी भी प्यास बुझा दूँ" विजय वैसे ही नंगा अपनी मामी के पास आकर बोला।

"भान्जे अपनी औक़ात में रहो में तुम्हारी मम्मी की तरह नहीं हूँ जहाँ लंड देखा वहीँ गिर गई" मनीषा ने गुस्से से विजय को डाँटते हुए कहा।
"तो कैसी हैं आप मामी" विजय ने अपनी मामी को देखते हुए उसके हाथ को पकडकर सहलाते हुए कहा।
"भान्जे मेरे हाथ को छोड़ो" मनीषा ने गुस्सा करते हुए कहा।
"अरे वाह मामी तो नाराज़ हो गई अच्छा ज़रा मेरे लंड को छुकर देख लो शायद आपको वह अच्छा लग जाए" विजय ने अपनी मामी का हाथ अपने मुरझाये हुए लंड पर रखते हुए कहा ।

"भान्जे तुम मुझे ऐसी वैसी औरत मत समझो" मनीषा ने अपना हाथ जल्दी से अपने भांजे के लंड से हटाते हुए कहा । मनीषा का पूरा जिस्म अपने भान्जे के लंड को छुने से सिहर उठा था । मनीषा विजय का हाथ दूर झटकने के बाद गुस्से से वहां से जाने लगी ।
"मामी आप हमारे बारे में पिताजी को बताने का तो नहीं सोच रही हो" विजय ने अपनी मामी को वहां से जाता हुआ देखकर कहा।
"मेरी मर्ज़ी बता दूंगी तुम क्या करोगे" मनीषा ने विजय की बात सुनते हुए गुस्सा होकर कहा।

"मामी भला मैं क्या कर सकता हूँ बस मुझे तो इतना पता है के नरेश भैया और आप" विजय मनीषा के पीछे जाते हुए उसे पीछे से अपनी बाहों में भरते हुए कहा।
"नरेश और मैं क्या कह रहे हो तुम" मनीषा जो विजय के हाथ को बर्दाशत नहीं कर पा रही थी उसकी बात सुनकर बिलकुल शांत होते हुए बोली ।
"छोड़ो न मामी इन बातों को बस चुपचाप मज़े लो" विजय ने अपने हाथों से अपनी मामी की चुचियों को पकडकर दबाते हुए कहा।
"भान्जे मैं किसी को कुछ नहीं बताऊँगी । अब प्लीज मुझे छोड दो" मनीषा ने अपने भांजे के हाथ अपनी चुचियों पर पड़ने से सिसकते हुए कहा।
 
मामी छोड दूंगा मगर इसका कुछ करना होगा । देखो कितना बदमाश है अपनी माँ की चूत में जाने के बाद भी शांत नहीं हुआ। कैसे अपनी भोली भाली मामी को तंग कर रहा है" विजय ने अपनी मामी को सीधा करते हुए उसका हाथ अपने लंड पर रखते हुए कहा ।
मानिषा ने जैसे ही सीधा होते हुए अपने भांजे का लंड देखा उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी और उसका हाथ अपने आप विजय के लंड पर ऊपर नीचे होने लगा।
"आह्ह्ह्हह मामी यह हुयी न बात" विजय ने अपनी मामी का हाथ अपने लंड पर आगे पीछे होने से सिसकते हुए बोला।

मानिषा विजय के लंड को देखकर उसकी दीवानी हो गई थी। इसीलिए वह विजय के लंड को अपनी मुठी में लेकर आगे पीछे कर रही थी । विजय ने अपनी मामी से अपना लंड सहलाते हुए उसकी साड़ी के पल्लु को उसकी चुचियों से अलग कर दिया और अपनी मामी के ब्लाउज के बटन खोलते हुए उसकी चुचियों को उसकी ब्रा के ऊपर से ही दबाने लगा ।

विजय ने अपनी मामी की चुचियों को दबाते हुए अचानक अपना मूह आगे करते हुए अपनी मामी के होंठो पर रख दिया । मनिषा बुहत ज्यादा गरम हो चुकी थी अपने भांजे के होंठ अपने होंठो पर पड़ते ही वह उसके साथ डीप फ्रेंच किस में चलि गयी ।
"बेटा तुम्हारे बापू के आने का टाइम हो गया है तुम्हें जो करने है दीदी के कमरे में जाकर करो" अचानक रेखा ने अपने बेटे और उसकी मामी को बताते हुए कहा।
"दीदी आप बुहत चलाक हैं इतने दिनों तक अपने बेटे से खुद ही मज़े लेती रही और मुझे कुछ बताया भी नही" मनीषा ने रेखा के बोलने से विजय से अलग होते हुए कहा।

"दीदी अब तो आपको पता चल गया आप इसे अपने कमरे में लेकर जाओ" रेखा ने मनीषा की बात सुनकर हँसते हुए कहा।
"नही दीदी इस वक्त ठीक नहीं है । मैं खुद ही अपने भांजे को सही वक्त देखकर बुला लूंग़ी" मनीषा ने रेखा की बात सुनकर हँसते हुए कहा।
"ठीक है दीदी जैसे आपकी मर्ज़ि" रेखा ने हँसते हुए कहा।
"भान्जे छोटी उम्र में ही बुहत अच्छी देख भाल कर रखी है अपने इस हथियार की" मनीषा ने अपने भान्जे के लंड को दबाते हुए हँसकर कहा।
"मामी यह हथियार अपनों के काम ही तो आएगा जैसे मम्मी और आप" विजय ने मनीषा की बात सुनकर मुस्कराते हुए कहा।
 
हाँ भान्जे सही कहा। मैं और दीदी इस हथियार पर ज़ंग लगने नहीं देंगी तुम चिंता मत करो" मनीषा ने इतना कहा और वहां से निकल गई।
"बेटा तुम तो बुहत बदमाश हो अपनी मामी को अच्छा ब्लैकमेल किया" मनीषा के जाते ही रेखा ने अपने बेटे को देखते हुए कहा ।
"माँ वह हमें ब्लैकमेल कर रही थी। इसीलिए मैंने उसे अपनी औक़ात याद दिला दी। वैसे है बुहत गरम माल" विजय ने अपने कपड़ों को उठाकर पहनते हुए कहा।
"ह्म्मम्म तो अब वह तुम्हें इतनी अच्छी लगने लगी" रेखा ने विजय की बात सुनकर मुँह बनाते हुए कहा।

"माँ तुम भी न तुम्हारे जीतनी अच्छी कोई भी नहीं हो सकती मगर काम चलाने के लिए सही है" विजय ने अपनी माँ की बात सुनकर हँसते हुए कहा।
"ठीक है अब जाओ भी यहाँ से" रेखा ने हँसते हुए अपने बेटे से कहा ।
विजय अपने कपडे पहनकर अपनी माँ के कमरे से निकल गया और अपने कमरे में आ गया। जहाँ पर नरेश पहले से मौजूद था।
"विजय कहाँ थे इतनी देर से" नरेश ने विजय को देखते ही हैंरान होते हुए उससे पुछा।
"यार माँ को डॉक्टर के पास ले गया था" विजय ने नरेश के पास बेड पर बैठते हुए कहा।

"क्यों बे तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली थी क्या जो डॉक्टर के पास ले गया उसे" नरेश ने विजय को टोकते हुए कहा।
"नही बे उसकी ही तो इंजेक्शन लगवाने गयी थी वो" विजय ने नरेश की बात सुनकर हँसते हुए कहा।
" च च तुम्हारी माँ बच्चा रुकवाने का इंजेक्शन लगवाती है" नरेश ने विजय की बात सुनकर मुस्कराते हुए कहा।
"हाँ मगर तुम्हारी माँ नहीं लगवाती क्या?" विजय ने नरेश की तरफ देखते हुए कहा ।
 
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