Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 48 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

बेटी अब मुझे चलना चाहिए बुहत देर हो गई है" महेश ने बेड से उठकर अपनी धोती को पहनते हुए कहा।
"ठीक है पिता जी" नीलम ने सिर्फ इतना कहा । महेश धोती पहनने के बाद वहां से चला गया, नीलम वैसे ही बिलकुल नंगी लेटी हुई कुछ सोच रही थी आज उसे जितना मजा आया था शायद वह उसे अपनी ज़िंदगी का सबसे हसीन सुख और यादगार दिन मान रही थी ।

नीलम को अपनी चूत में हल्का हल्का दर्द भी हो रहा था मगर जो मजा उसे अपने ससुर के साथ चुदाई में आया उसके सामने यह दर्द कुछ भी नहीं था । नीलम चुदाई से बुहत थक चुकी थी इसीलिए कुछ ही देर में उसे नींद ने अपनी आग़ोश में ले लिया। इधर समीर ने भी आज अपनी बहन ज्योति को 2 बार खुब जमकर चोदा था। वह भी बुहत थक चूका था इसीलिए वह भी उसके कमरे से निकल कर अपने कमरे में जाने लगा ।

समीर अपने कमरे में जाते हुए मन ही मन में दुआ कर रहा था की उसका सामने अपने पिता से नहीं हो क्योंकी उन्हें देखकर ना जाने क्यों समीर को उस पर गुस्सा आ जाता था क्योंकी वह उसके सामने ही उसकी बीवी के साथ सोया हुआ था । समीर ने दरवाज़े के पास पुहंचकर जैसे ही दरवाज़े को धक्का दिया वह अपने आप खुल गया, समीर जैसे ही अंदर दाखिल हुआ अपनी पत्नी को बिलकुल नंगा सोया हुआ देखकर वह समझ गया की आज भी उसकी पत्नी ने उसके पिता के साथ चुदाई की है ।

समीर ने दरवाज़ा बंद किया और बेड पर चढते हुए अपनी पत्नी के पास लेट गया । समीर ने ऊपर चढ़ते हुए जैसे ही अपनी पत्नी की चूत को देखा वह हैंरान रह गया और न चाहते हुए भी उसका लंड खड़ा होने लगा। नीलम की चूत का छेद अभी तक खुला हुआ था और महेश के मोटे लंड से चुदते हुए वह सूजकर लाल हो चुकी थी ।

समीर मन ही मन में सोच रहा था की क्या उसके पिता का लंड इतना बड़ा है की उसकी पत्नी की चूत उससे चुदवाते हुए ऐसे सूज गयी है और उसकी पत्नी जिसने आज तक समीर को सही तरीके से चुदाई का सुख नहीं दिया था वह इतनी जल्दी उसके पिता के इतने बड़े लंड से चुदने के लिए कैसे राज़ी हो गई । यही सब बाते सोचते हुए उसके सिकूड़े हुए लंड में जान आ रही थी मगर उसे पता था की उसकी पत्नी उसे कुछ भी करने नहीं देगी इसीलिए वह कुछ ही देर में सोचते सोचते नींद की आग़ोश में चला गया ।
 
अगली सुबह हर रोज़ की तरह समीर ऑफिस के लिए निकल गया और नीलम काम काज में लग गयी । ऐसे ही दोपहर हो गई और खाना खाने के बाद सभी अपने कमरों में सोने के लिए चले गए। नीलम की नींद अभी तक पूरी नहीं हुयी थी इसीलिए उसने भी नींद करने का फैसला कर लिया, वह बाथरूम में जाकर फ्रेश होने लगी फ्रेश होकर जैसे ही वह बाहर निकली उसने देखा की उसका ससुर बेड पर बैठा हुआ उसका इंतज़ार कर रहा था ।

महेश ने जैसे ही अपनी बहु को बाथरूम से निकलते देखा उसका लंड झटके खाने लगा क्योंकी नीलम ने अपने जिस्म पर सिर्फ एक टॉवल लपेटा हुआ था और उसके काले घने बाल खुले हुए थे जिस कारण वह कुछ ज्यादा ही सेक्सी दिख रही थी । महेश बेड से उठकर अपनी बहु के पास आ गया और उसे अपनी बाहों में भरकर उसके गीले गुलाबी होंठो को चूमने लगा, महेश ने यह सब इतनी जल्दी किया की नीलम को कुछ बोलने का मौका ही नहीं मिला ।

महेश ने जैसे ही कुछ देर तक नीलम के होंठो को चूमने के बाद उसके होंठो से अपने होंठ हटाये नीलम ने धक्का देकर महेश को अपने आप से दूर किया और खुद बुहत ज़ोर से हाँफने लगी।
"क्या हुआ बेटी मजा नहीं आया क्या?" महेश ने फिर से अपनी बहु के पास आते हुए कहा।
"बापु जी एक मिनट मुझसे दूर रहिये भला कोई ऐसे भी करता है" नीलम ने हाँफते हुए कहा ।

"करे बेटी क्या हुआ?" महेश ने इस बार दूर से ही नीलम से पूछा।
"पिता जी मैं रात से बुहत थकी हुयी हूँ आप अभी जाइये मैं आराम करना चाहती हू" नीलम ने अपने ससुर को देखते हुए कहा।
"अरे बेटी रात को नहीं सोयी थी क्या?" महेश ने फिर से नीलम से सवाल किया।
"हाँ सोई थी मगर मेरा बदन अभी तक बुहत दर्द कर रहा है आप रात को आ जाना" नीलम ने अपने ससुर को समझाते हुए कहा।
"बेटी कहाँ पर दर्द है मैं उसे अभी दूर करता हू" महेश ने अपनी बहु को देखते हुए कहा।
"आप जाइये मुझे आराम करना है" नीलम ने मन ही मन में मुस्कराते हुए अपने ससुर से कहा ।

"बेटी यह क्या बात हुई। मुझे बुहत चिंता हो रही है बताओ न कहाँ दर्द है मैं चला जाऊँगा" महेश ने अपनी बहु से छोटे बच्चे की तरह ज़िद करते हुए कहा।
"पिता जी आप ऐसे मानेंगे नहीं मुझे यहाँ पर दर्द है रात आपने इतनी बुरी तरह से किया था की अभी तक मुझे दर्द महसूस हो रहा है" नीलम ने अखिरकार हार मानते हुए अपनी नज़रों को झुकाकर अपना हाथ अपने टॉवल के ऊपर से ही अपनी चूत पर रखते हुए कहा ।
 
"च अब समझा बेटी मेरा लंड बुहत लम्बा और मोटा है इसीलिए पहली बार लेने में तुम्हें तकलीफ हो रही होगी मगर जैसे ही तुम अगली बार मेरा यह अपनी चूत में लोगी तुम्हारा दर्द ख़तम हो जाएगा क्योंकी फिर तुम्हारी चूत में यह अपनी जगह बना लेंगा" महेश ने अपनी बहु को देखते हुए कहा।
"ठीक है पिता जी अब आप जाइये" नीलम ने शर्म से अपना सर वैसे ही नीचे किये हुए कहा।
"बेटी एक किस तो दे दो न फिर चल जाऊँगा" महेश ने अपनी बहु के क़रीब जाते हुए कहा।
"पिता जी आप भी अच्छा यह लो" नीलम ने अपने ससुर के गाल पर एक किस देते हुए कहा ।

"बेटी यह क्या अब तुम्हें किस करना भी सीखाना पडेगा क्या" महेश ने अपनी बहु की तरफ देखते हुए कहा।
"पिता जी जाइये न प्लीज" नीलम ने अपने ससुर को मिन्नत करते हुए कहा।
"चला जाऊँगा मगर एक बार तुम्हारे इन मीठे गुलाबी लबों का ज़ायक़ा चख लू" महेश ने अपनी बहु की तरफ देखते हुए कहा और नीलम को अपने क़रीब करते हुए उसके होंठो पर अपने होंठो को रख दिया, महेश जीतनी देर तक अपनी साँसों को थाम सकता था उतनी देर तक वह अपनी बहु के होंठो का रस चखता रहा ।

महेश ने जैसे ही अपनी बहु के होंठो से अपने होंठो को अलग किया नीलम उससे दूर होकर ज़ोर से हाँफने लगी। महेश भी अपनी बहु को देखते हुए हांफ रहा था।
"पिता जी अब जाइये न आपने तो मेरी जान ही निकाल दी थी" नीलम ने कुछ देर हाँफने के बाद अपने ससुर की तरफ देखते हुए कहा।
"बेटी मेरी जान तो अब तुम हो और मैं इतना बुरा नहीं की अपने जान ले लूँ" महेश ने अपनी बहु की आँखों में देखते हुए कहा।
"ठीक है बाबा अब जाओ भी" नीलम ने अपने ससुर को मिन्नत करते हुए कहा । महेश अपनी बहु की बात सुनकर कमरे से निकल गया। महेश के जाते ही नीलम ने अपने कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और बेड पर जाकर लेट गयी ।

महेश अपनी बहु के कमरे से निकलकर अपने कमरे में जाने लगा की अचानक उसके दिमाग में क्या ख़याल आया और वह अपनी बेटी के कमरे की तरफ मुडी गया ।महेश अपनी बेटी के कमरे के पास आकर जैसे ही दरवाज़े को धक्का दिया तो वह अपने आप खुल गया महेश ने अंदर दाखिल होकर दरवाज़े को वापस बंद कर दिया, महेश ने देखा के अंदर कोई भी नहीं है तभी उसे बाथरूम से पानी गिरने की आवज़ आई जिसे सुनकर वह समझ गया की उसकी बेटी नहा रही है ।
 
महेश अपनी बेटी के बेड पर जाकर बैठ गया। बेड पर बैठते ही उसे एक और झटका लगा क्योंकी उसकी बेटी के कपड़े वहां पर पडे हुए थे । महेश को यह समझने में ज़रा भी देर नहीं लगी की उसकी बेटी अंदर से या तो बिलकुल नंगी या सिर्फ टॉवल में निकलकर अपने कपडे पहनती है इसीलिए तो उसके सारे कपडे बेड पर पड़े थे, महेश का लंड अपनी बेटी के जिस्म को सिर्फ टॉवल में देखने का सोचकर ही ज़ोर के झटके खाने लगा ।

महेश ने बेड पर पड़ी हुयी अपनी बेटी की पेंटी को उठाया और उसे अपने नाक के पास ले जाकर सूँघने लगा । पेंटी धूलि हुई थी इसीलिए महेश को उसमें से कोई भी गंध महसूस नहीं हुई। महेश ने एक बार अपनी बेटी की पेंटी को चूमा और अपनी धोती को आगे से खोलकर उसे अपने पूरे लंड पर जगह जगह रखकर महसूस करने लगा, महेश यह सोचकर अपनी बेटी की पेंटी को अपने लंड पर महसूस कर रहा था की थोड़ी देर बाद उसके लंड से लगी हुयी पेंटी उसकी बेटी की चूत में फँसी हुयी होगी ।


अचानक बाथरूम से पानी गिरने की आवाज़ बंद हो गई महेश समझ गया की उसकी बेटी नहा चुकी है इसीलिए उसने अपनी बेटी की पेंटी को उसी जगह रखा और खुद वहां से उठकर सोफ़े पर जाकर बैठ गया । महेश बेड से इसलिए उठा था की उसकी बेटी जैसे ही बाथरूम से निकले उसे पता न लगे की वह यहाँ पर है सोफा थोड़ा साइड में था । इसीलिए महेश को वहां पर बैठने में कोई झिझक नहीं हुई, ज्योति नहाने के बाद टॉवल लपेटकर अपने कमरे में आती थी और कमरे में आकर वह उसी टॉवल को अपने जिस्म से हटाकर अपने जिस्म को पोछती थी और अपने कपड़ों को पहन लेती थी ।

हर रोज़ की तरह आज भी ज्योति ने अपने जिस्म पर टॉवल लपेटा और बाथरूम से निकल आई । ज्योति बाथरूम से निकलकर अपने बेड की तरफ बढ़ने लगी। उसे यह पता नहीं था की उसका पिता सोफ़े पर बैठा हुआ है, महेश जो चुपचाप सोफ़े पर बैठा हुआ था। उसका लंड अपनी बेटी के टॉवल में लपेटे हुए आधे नंगे जिस्म को देखकर बुहत ज़ोर के झटके खाने लगा । और महेश का गला भी अपनी बेटी की जवानी को देखकर ख़ुश्क होने लगा जिसे वह अपनी थूक से गीला करने की कोशिश करने लगा ।

ज्योति ने बेड के पास आकर हर रोज़ की तरह अपने टॉवल को अपने जिस्म से अलग करते हुए अपनी टांगों को एक एक करके बेड पर रखते हुए पोंछने लगी । टॉवल के हटते ही अपनी बेटी के नंगे चिकने पेट और उसकी भूरी गांड को देखकर महेश की तबीयत बिगडने लगी, महेश का मन हो रहा था अभी जाकर अपने लंड को अपनी बेटी की भूरी गांड में घुसेड़ दे मगर वह ऐसा नहीं कर सकता था ।
 
महेश मन ही मन में दुआ कर रहा था की उसकी बेटी एक दफ़ा सीधी हो जाये ताकी उसे अपनी बेटी की असल जन्नत का दीदार हो सके । महेश सोच रहा था की जब उसकी बेटी की गांड ही इतनी सूंदर है तो उसकी चूत और चुचियों का क्या आलम होगा और यही सोचकर उसका हाथ अपने आप उसकी धोती के अंदर अपने लंड तक पुहंच चूका था, ज्योति ने अपनी टांगों पोंछने के बाद थोड़ी देर तक अपने बालों को पोछा और फिर टॉवल को बेड की तरफ फ़ेंक दिया ।

ज्योति ने टॉवल को फेंकने के बाद अपनी पेंटी को उठाया और सीधी होकर उसे पहनने लगी । ज्योति के सीधे होते ही महेश का पूरा जिस्म मज़े से कांप उठा। अपनी बेटी की गुलाबी चूत जिसपर एक भी बाल नहीं था शायद वह अभी अपनी चूत के बाल साफ़ करके आई थी देखकर महेश के लंड ने 3-4 बार ज़ोर के झटके दिए जिस वजह से उस में वीर्य की एक दो बूँद निकल गई, महेश अपनी बेटी के पूरे जिस्म को बड़े गौर से देखकर अपने लंड को सहला रहा था ।

ज्योति झुककर अपनी पेंटी को पहन रही थी जिस वजह से उसका ख़याल अपने पिता की तरफ नहीं गया। वह पेंटी पहनने के बाद फिर से अपनी ब्रा को उठाने के लिए उलटी हो गई । महेश ने सीधा होते हुए अपनी बेटी की गोल गोल चुचियों को भी अपनी आँखों में क़ैद कर लिया । ज्योति की चुचीयों के दाने भी उसकी बहु की चुचियों की तरह गुलाबी थे, ज्योति ब्रा उठाने के बाद जैसे ही सीधी होकर उसे पहनने लगी उसकी नज़र अपने पिता पर गयी जो अपने हाथ को अपनी धोती में डाले हुए था अपने पिता को देखकर शर्म और डर के मारे ज्योति के मुँह से एक चीख़ निकल गयी ।
 
ज्योति ने जल्दी से अपनी साड़ी उठाकर अपने जिस्म को आगे से ढक दिया।
"अरे क्या हुआ बेटी तुम तो ऐसे डर गयी जैसे अपने सामने कोई साँप देख लिया हो?" महेश ने सोफ़े से उठकर अपनी बेटी के सामने खड़े होकर मुस्कराते हुए कहा।
"पिता जी आपको शर्म आनी चहिये" ज्योति ने गुस्से से सिर्फ इतना कहा।
"वाह बेटी मुझे शर्म आनी चाहिए और तू जो हर रात को अपने भाई का बिस्तर गरम करती हो?" महेश ने अपनी बेटी के सामने ही अपना हाथ अपनी धोती के अंदर ड़ालते हुए कहा ।

"पिता जी प्लीज आप यहाँ से चले जाईये" ज्योति ने शर्म और गुस्से से अपना कन्धा नीचे करते हुए कहा ।ज्योति के आँखों से आंसू निकल आये थे।
"अरे बेटी यह वक्त आंसू बहाने का नहीं बल्कि मज़े लेने का है जब तुम अपने भाई के साथ सब कुछ कर चुकी हो तो अपने इस पिता पर भी थोड़ी दया कर दो वैसे भी मेरा तुम्हारे भाई से बड़ा और तगड़ा है तुम्हें इससे वह मजा आएगा की तुम ज़िंदगी भर इसे अपनी चूत में लेने के लिए मिन्नते करती रहोगी" महेश ने अपनी धोती से अपने खड़े लंड को निकालकर ज्योति की आँखों के सामने करते हुए कहा ।

"पिता जी जाइये मैं आपके साथ कुछ नहीं कर सकती" ज्योति की साँसें अपने पिता के लंड को देखते ही ज़ोर से चलने लगी और उसने अपनी नज़रों को वहां से हटाये बिना कहा।
"च तुम कुछ मत करो मगर एक बार इसे अपने हाथों में तो लेकर देखो" महेश अपनी बेटी को यो अपने लंड की तरफ घूरता हुआ देखकर समझ गया की चिडया दाना चुगने के लिए तैयार है इसीलिए उसने अपने लंड को अपने हाथ से ऊपर नीचे करते हुए अपनी बेटी से कहा ।

"नही पिता जी मुझे शर्म आती है" ज्योति ने अपने पिता के लंड को गौर से घूरते हुए कहा उसका दिल अपने पिता के इतने बड़े लंड को नज़दीक से देखकर बुहत ज़ोर से धड़क रहा था और उसका पूरा जिस्म भी गरम हो गया था।
"अरे बेटी तुम भी न इसमें शर्माने की क्या बात है" महेश ने यह कहते हुए अपनी बेटी के एक हाथ को पकडकर अपने लंड के ऊपर रख दिया ।

"आआह्ह्ह्ह पिता जी यह क्या किया आपने?" ज्योति ने अपने हाथ को अपने पिता के गरम और सख्त लंड पर परडते ही ज़ोर से सिसकते हुए कहा । ज्योति का पूरा जिस्म अपने हाथ को अपने बाप के लंड पर पडते ही सिहर उठा और उसके पूरे जिस्म को जैसे चींटियाँ काटने लगी, ज्योति की साँसें बुहत ज़ोर से ऊपर नीचे हो रही थी और उसे अपना हाथ वहां रखे हुए अजीब किस्म का मज़ा आ रहा था ।
 
"क्या हुआ बेटी तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या?" महेश ने अपने हाथ से अपनी बेटी के हाथ को अपने लंड पर आगे पीछे करते हुए कहा।
"ओहहहहह पिता जी छोड़िये ना" ज्योति अपने हाथ को अपने पिता के पूरे लंड पर आगे पीछे होने से सिसकते हुए बोली उसे इतना मजा आ रहा था की उसकी चूत से पानी बहना शुरू हो गया था मगर वह सिर्फ अपने पिता को दिखाने के लिए ऐसा कह रही थी।

"बेटी छोड दूंगा मगर पहले थोड़ी देर तुम इसे महसूस तो कर लो" महेश ने अपनी बेटी के हाथ को वैसे ही अपने लंड पर आगे पीछे करते हुए कहा । थोड़ी देर में ही ज्योति खुद अपने हाथ को अपने पिता के लंड पर आगे पीछे करने लगी जिससे उसका पूरा जिस्म तप कर आग बन चूका था, महेश ने मौका देखकर अपना हाथ अपनी बेटी के हाथ से हटा दिया और ज्योति के एक हाथ से पकड़ी हुयी उसकी साडी को जो उसने अपने सीने के आगे रखी हुयी थी अपने हाथ से खींचकर छीन लिया ।

महेश ने साड़ी को बेड पर फ़ेंक दिया।
"पिता जी" ज्योति अपने सीने के आगे से अपनी साड़ी के दूर होते ही होश में आते हुए अपने दोनों हाथों से अपनी चुचियों को ढकने लगी।
"बेटी इतना शर्माओ मत मैं कुछ नहीं करूँगा बस जब तक तुम मेरे लंड को महसूस करती हो तब तक मैं अपनी प्यारी बेटी की चुचियों को गौर से देखना चाहता हू" महेश ने अपने बेटी को कमर से पकडते हुए बेड पर बिठाते हुए कहा और खुद भी अपनी धोती को उतारकर उसके साथ बैठ गया ।

"नही पिता जी मुझे शर्म आती है" ज्योति ने शर्म से वेसे ही अपनी चुचियों को अपने हाथों से ढके हुए कहा।
"बेटी शरमाओ मत मैंने कहा न। मैं आगे कुछ नहीं करूंगा" महेश ने अपनी बेटी के एक हाथ को ज़बर्दस्ती खींचकर अपने लंड पर रखते हुए कहा । ज्योति का पूरा जिस्म फिर से अपने पिता के गरम लंड को छुने से कांप उठा और उसका हाथ अपने आप महेश के लंड पर आगे पीछे होने लगा।
"आजहहह बेटी कितनी प्यारी चुचियां हैं तुम्हारी" महेश ने अपनी बेटी के दुसरे हाथ को भी अपने हाथ से पकडकर उसकी चुचियों से हटा दिया और उसकी दोनों गोरी गोरी चुचियों को देखकर उसकी तारीफ करते हुए कहा ।

महेश ने अचानक अपने एक हाथ से अपनी बेटी की एक चूचि को पकडकर अपनी मुठी में भर लिया और उसे धीरे धीरे दबाने लगा।
"आह्ह्ह्ह पिता जी । वहां से अपना हाथ हटाइये ना" ज्योति ने बुहत ज़ोर से सिसकते हुए कहा । अपने पिता के हाथ को अपनी चूचि पर महसूस करते ही उसकी हालत बुहत खराब होने लगी थी उसकी चूत से बुहत ज्यादा पानी निकल रहा था जिस वजह से वह बुहत ज़ोर से अपने पिता के लंड को आगे पीछे करने लगी।
 
महेश का लंड पूरी मस्ती में आकर झटके खा रहा था जिस वजह से वह ज्योति के एक हाथ में समां ही नहीं पा रहा था।
"बेटी अपने दोनों हाथों से पकडकर हिलाओं इसे" महेश अपने बेटी को समझाते हुए कहा । ज्योति अपने पिता की बात सुनकर अपने दोनों हाथों से उसके लंड को पकडकर आगे पीछे करने लगी, ज्योति का पूरा जिस्म पसीने से भीग चूका था और वह बुहत ज़ोर से साँसें ले रही थी ।

महेश भी अब बारी बारी अपनी बेटी की दोनों चुचियों को अपने हाथ से दबा रहा था वह अपनी बेटी की चुचियों को दबाते हुए उसकी चुचियों के गुलाबी दानों को एक एक करके अपनी उँगलियों के बीच लेकर मसल भी रहा था जिस वजह से ज्योति के मूह से ज़ोर की सिसक़ियां निकल रही थी और वह ज्यादा गरम हो रही थी । महेश अब अपने एक हाथ को अपनी बेटी की चूचि से हटाकर नीचे ले जाने लगा, वह अपने हाथ से अपनी बेटी के चिकने पेट को सहलाते हुए उसकी पेंटी तक पुहंच गया ।

"ओहहहह पिता जीईईई इसशहहहहः" अपने पिता का हाथ को अपनी गीली पेंटी पर पडते ही ज्योति के मूह से ज़ोर की सिसकी निकल गयी और उसके दोनों हाथ उसके पिता के लंड पर ज़ोर से कस गए । महेश अपनी बेटी की इस हरकत से समझ गया की वह बुहत ज्यादा गरम हो गई है इसीलिए उसने अपने हाथ से अपनी बेटी की चूत को उसकी गीली पेंटी के ऊपर से ही मसलने लगा।
"ओहहहहहह पिता जीईई आअह्ह्ह्ह ऐसा न करे" ज्योति अपने पिता के हाथ से अपनी चूत को पेंटी के ऊपर से ही मसलता हुआ महसूस करके ज़ोर से सिसकते हुए बोली ।

ज्योति की मज़े से आँखें बंद होने लगी थी उसे अपने पूरे शरीर में बुहत ज्यादा उत्तेजना महसूस हो रही थी और वह अपने दोनों हाथों से अपने पिता के लंड को मज़बूती से पकडे हुए आगे पीछे कर रही थी । महेश भी अपने हाथ को बुहत तेज़ी के साथ अपनी बेटी की चूत पर चला रहा था।
"आह्ह्ह्हह हहहह पिता जीई ओह्ह्ह्हह्हह्ह" अचानक ज्योति का पूरा जिस्म अकडने लगा और उसकी चूत ज़ोर के झटके खाते हुए झडने लगी । ज्योति के मूह से झडते हुए बुहत ज़ोर की सिसकियाँ निकलने लगी ।

ज्योति का हाथ झडते हुए महेश के लंड पर इतना कसकर आगे पीछे होने लगे की वह भी अपने आप को रोक नहीं पाया।
"आह्ह्ह्ह बेटी ओह्ह्ह्हह्ह" महेश के मुँह से भी ज़ोर की सिसकियाँ निकलने लगी और उसके लंड से वीर्य की बारिश होने लगी । महेश के लंड से वीर्य की बूँदे निकल कर फर्श से होती हुयी ज्योति और उसके जांघों पर गिरने लगी, ज्योति जब तक खुद झडती रही वह अपने पिता के लंड को ज़ोर से पकडकर निचोड़ती रही।
 
ज्योति ने जैसे ही पूरी तरह झडने के बाद अपनी आँखे खोली शर्म के मारे उसने अपने हाथ को अपने पिता के लंड से हटा लिया और वह खुद के कपड़े लेकर बाथरूम में भाग गयी । महेश भी झडने के बाद बुहत थक चूका था वह अपनी बेटी के आने का इंतज़ार करने लगा, थोड़ी ही देर में ज्योति कपडे पहनकर बाहर निकली मगर वह बेड की तरफ आने की बजाये सोफ़े पर जाकर बैठ गयी ।

महेश अपनी बेटी को शरमाता हुआ देखकर मुस्कराते हुए अपनी धोती को लेकर बाथरूम की तरफ चला गया और थोड़ी देर बाद वह अपने आप को साफ़ करने के बाद धोती पहने हुए ही बाहर निकल आया । महेश बाहर आते ही सोफ़े की तरफ जाने लगा । अपने पिता को फिर से अपने पास आता हुआ देखकर ज्योति का दिल ज़ोर से धडकने लगा।
"बेटी कैसा लगा तुम्हें?" महेश ने भी अपनी बेटी के साथ बैठते हुए कहा । ज्योति का शर्म के मारे बुरा हाल था वह बगैर कुछ बोले चुपचाप बैठी रही ।

"बेटी कुछ बोलो न कैसा लगा?" महेश ने इस बार अपनी बेटी के हाथ को पकडकर अपने दोनों हाथों के बीच लेकर सहलाते हुए कहा।
"अच्छा लगा बापू जी" ज्योति ने इस बार हिम्मत करते हुए कहा।
"बेटी तुम खवांखाह शर्मा रही हो अगर तुम मेरा साथ दो तो मेरा यह तुम्हें जन्नत की सैर करवायेगा" महेश ने अपनी बेटी के हाथ को अपनी धोती के ऊपर अपने लंड पर रखते हुए कहा।
"नही पिता जी आप जाइये मैं आपके साथ यह नहीं कर सकती" ज्योति ने इस बार अपने हाथ को जल्दी से वहां से हटाते हुए कहा ।

"बेटी जैसे तुम्हारी मर्ज़ी । मैंने तुमसे कहा न की मैं तुम्हारी मर्ज़ी के बगैर कुछ नहीं करूँगा लेकिन अपने पिता पर एक अहसान कर दो। मैं एक बार तुम्हारे इन गुलाबी लबों को चूमना चाहता हू" महेश ने अपने दोनों हाथों से ज्योति का चेहरा ऊपर करके उसके होंठो की तरफ घूरते हुए कहा।
"पिता जी" ज्योति ने शर्म से अपना कन्धा नीचे करते हुए कहा।
"क्यों बेटी क्या मैं अपनी बेटी से यह उम्मीद भी नहीं रख सकता" महेश ने अपना मुँह बनाते हुए कहा।
"पिता जी मुझे शर्म आती है आप ही कर लो जो करना है और फिर चले जाओ" ज्योति ने अपने पिता का दिल रखने के लिए कह दिया ।
 
"थैंक्स बेटी तुम बस चुपचाप मेरी गोद में अपना सर रखकर लेट जाओ। मैं खुद ही तुम्हारे गुलाबी लबों को चूम लूँगा" महेश ने अपनी जीभ को निकलकर अपने होंठो पर फेरते हुए कहा । महेष का ढीला लंड अपनी बेटी की बात सुनकर फिर से उठने लगा, ज्योति अपने पिता की बात मानते हुए अपना सर उसकी गोद में रखकर लेट गयी और शर्म के मारे अपनी आँखों को बंद कर लिया ।

"आह्ह्ह्ह बेटी तुम्हारे लब कितने गुलाबी है" महेश अपनी बेटी के गोद में लेटने के बाद अपना मूह उसके होंठो के बिलकुल नज़दीक करते हुए कहा । ज्योति को अपने पिता की साँसें बिलकुल अपने लबों के नज़दीक महसूस होने लगी जिसकी वजह से एक्साइटमेंट में वह फिर से गरम होने लगी।
"बेटी क्या मैं तुम्हारे गुलाबी लबों को चूम सकता हू" महेश ने अपनी बेटी से कहा।
"हाहहह पिता जीईई चूम लो न किसने रोका है" ज्योति अपने पिता की हरक़तों से बुहत ज्यादा गरम हो चुकी थी इसीलिए उसने अपने पिता से कहा क्योंकी वह जल्द से जल्द अपने लबों पर अपने पिता के होंठो को महसूस करना चाहती थी ।


महेश ने अपनी बेटी की बात सुनकर अपने होंठो को उसके गुलाबी लबों पर रख दिया और बड़े प्यार से अपनी बेटी के दोनों लबों को एक एक करके चूसने लगा । ज्योति की हालत भी बुहत ख़राब हो चुकी थी इसीलिए वह भी अपने दोनों हाथों से अपने पिता के बालों को सहलाते हुए उसका साथ दे रही थीं, महेश जाने कितनी देर तक अपनी बेटी के होंठो से खेलता रहा और अपने एक हाथ को अपनी बेटी की साड़ी के ऊपर से उसकी चूचि पर रख दिया ।

ज्योति अपने पिता का हाथ अपनी चूचि पर लगते ही सिहर उठी और एक झटके के साथ अपने पिता के होंठो से अपने होंठो को अलग कर दिया । ज्योति सीधी होते हुए अपने पिता से दूर होकर खड़ी हो गई और बुहत ज़ोर से साँसें लेते हुए अपनी साँसों को ठीक करने लगी।
"क्या हुआ बेटी?" महेश ने अचानक अपनी बेटी के ऐसा करने से हैंरान होते हुए कहा।
"कुछ नहीं पिता जी आपने चूम लिया न अब जाइये यहाँ से" ज्योति ने अपने पिता जवाब देते हुए कहा।
"ठीक है बेटी जैसे तुम्हारी मर्ज़ी मैं जा रहा हू" महेश समझ गया की चिड़िया इतनी आसानी से फँसने वाली नहीं इसीलिए वह सोफ़े से उठकर बाहर चला गया ।
 
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