Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 51 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

"भइया दोपहर को जब में उसके कमरे में गयी तो वह अपने हाथ से अपनी छोटी सी चूत को सहला रही थी और जल्दी में उसने दरवाज़ा भी बंद नहीं किया था" कंचन ने भी अपनी गांड को थोड़ा उठाकर सही तरीके से अपने भाई के लंड पर रखते हुए कहा।
"तो दीदी अब क्या करना होगा" विजय अपनी बहन की बात को सुनकर नशीले अन्दाज़ में बोला।
"भइया इससे पहले की वह अपनी जिस्म की आग को किसी गैर के हाथों मिटवाए आपको घर की इज़्ज़त को बचाने के लिए खुद ही उसकी जिस्म की आग को ठण्डा करना होगा" कंचन ने अपनी आँखों को बंद करते हुए मज़े से अपनी गांड को अपने भाई के लंड पर दबाते हुए कहा।

"दीदी मगर क्या कोमल दीदी इसके लिए राज़ी होगी?" विजय के लंड अपनी बहन की बात सुनकर एक ज़ोर का ठुमका अपनी बहन की गांड पर मारा और विजय ने अपनी बहन को ज़ोर से अपनी बाहों में भरते हुए पूछा।
"भइया में हूँ न आप रात को तैयार रहना मैं छोटी को आपके कमरे में ले आऊँगी" कंचन ने अपने भाई के हाथों को अपने पेट से हटाकर उसकी गोद से उठते हुए कहा।
"क्या हुआ दीदी आप उठ क्यों गयी?" विजय ने अपनी बहन के अचानक उठने से हैंरानी से उसके हाथ को पकडते हुए कहा।
"भइया अब यह मेरी छोटी की अमानत है इसीलिए मैं इसके साथ कोई हरकत नहीं कर सकति" कंचन ने अपने दुसरे हाथ से अपने भाई के लंड को उसकी पेण्ट के ऊपर से ही सहलाते हुए कहा और अपने होंठो को अपने भाई के होंठो पर रखकर उसे एक चुम्मा दिया । कंचन अपने भाई के होंठो को चूमने के बाद उससे अलग हो गई और सोफ़े पर जाकर बैठ गयी।

"दीदी यह तो कोई बात नहीं हुई अब यह रात कब होगी?" विजय अपनी बहन की बात सुनकर मायूस होते हुए बोला।
"हो जाएगी मेरे बेसबरे भाई ज़रा धीरज रखो मैं छोटी के कमरे में जा रही हू" कंचन ने अपने भाई को देखकर हँसते हुए कहा और सोफ़े से उठकर बाहर निकल गयी । कंचन के जाते ही विजय भी वहां से उठकर अपने कमरे में आ गया और बेड पर लेटकर अपनी छोटी बहन के बारे में सोचने लगा। विजय ने पहले कभी कोमल को उस नज़र से नहीं देखा था मगर कंचन की बाते सुनने के बाद वह अपनी छोटी बहन को याद करके अपने लंड को सहलाने लगा।
 
विजय जानता था की कंचन की तरह कोमल भी बुहत ही ख़ूबसूरत जिस्म की मालिक है मगर उसे सिर्फ यह ही चिंता थी की वह कंचन की तरह गरम भी होगी या नहीं । विजय कोमल के जिस्म को याद करते हुए अपने लंड को सहला रहा था । वह मन ही मन में सोच रहा था की क्या कोमल का जिस्म अंदर से भी कंचन के जिस्म की तरह ख़ूबसूरत होगा, कंचन अपने कमरे से निकलकर अपनी बहन के कमरे में आ गयी और दरवाज़े को अंदर से बंद कर दिया।

कंचन ने देखा की वहां पर कोई नहीं था मगर बाथरूम से पानी की आवाज़ आ रही थी। कंचन मन ही मन में मुस्कुरायी और अपने कपड़ों को उतारने लगी । कंचन बिलकुल नंगी होकर बाथरूम की तरफ बढ़ने लगी और बाथरूम के दरवाज़े को धक्का देकर खोल दिया।
"दीदी आप इस वक्त और आपने कपडे भी उतार दिये है" अचानक दरवाज़े के खुलने से कोमल चोंक गयी मगर अगले ही पल अपनी बहन को अपने सामने बिलकुल नंगा देखकर वह हैंरानी से बोली।
"हाँ छोटी तुम नहा रही थी तो मेरा दिल भी नहाने को हो गया क्या मैं अपनी छोटी बहन के साथ नहीं नहा सकती" कंचन ने बाथरूम में दाखिल होकर अपनी छोटी बहन के साथ शावर के नीचे खड़े होते हुए कहा।

"हाँ दीदी क्यों नही" कोमल बड़े गौर से अपनी बड़ी बहन के जिस्म को घूर रही थी।
"क्या देख रही हो मेरे पास भी वही है जो तुम्हारे पास है" कंचन ने अपनी छोटी बहन को यो अपनी तरफ घूरता देखकर मुस्कराते हुए कहा।
"हाँ दीदी है तो वही मगर आपका जिस्म कितना ज्यादा ख़ूबसूरत है" कोमल ने कंचन को देखते हुए कहा।
"पगली मैंने कहा था न की औरत का जिस्म को मरद ही सजाता है और जब औरत मरद के साथ सम्बन्ध शुरू करती है तो उसका जिस्म खिलना शुरू होता है" कंचन ने अपने दोनों हाथों से अपनी बहन की दोनों छोटी सी चुचियों को पकडते हुए बोली।

"आह्ह्ह्ह दीदी आप क्या कर रही है?" कोमल अपनी बड़ी बहन के हाथ को अपनी चुचियों पर महसूस करते ही काँपते हुए कहा।
"तुम भी पकडो न मेरी चुचियों को तुम्हें अच्छी नहीं लगती क्या मेरी चुचियां" कंचन ने अपनी छोटी बहन को देखते हुए कहा।
"दीदी आपकी तो बुहत सूंदर हैं" कोमल ने कंचन की बात सुनने के बाद अपने दोनों हाथों से उसकी चुचियों को थामते हुए कहा और वह बुहत ज़ोर से कंचन की चुचियों को दबाने लगी।
"आहहह आराम से दबाओ पगली" कंचन अपनी छोटी बहन के हाथों ज़ोर से अपनी चुचियों के दबने से सिसकते हुए बोली।
"सॉरी दीदी" कोमल ने अपनी बहन से कहा और बड़े आराम से कंचन की चुचियों को दबाने लगी।
 
कंचन अचानक अपने एक हाथ को कोमल की चूचि से हटाते हुए नीचे ले जाने लगी वह अपने हाथ को कोमल के पेट से ले जाते हुए उसकी चूत पर रख दिया और अपने हाथ से कोमल की छोटी से कुँवारी चूत को सहलाने लगी।
"आह्ह्ह्हह्ह ओहहहह दीदी" कोमल अपनी बड़ी बहन का हाथ अपनी चूत पर लगते ही ज़ोर से सिसक उठी और उसका पूरा जिस्म काम्पने लगा । कंचन कोमल की कोई बात न सुनते हुए अपने हाथ से उसकी चूत को सहलाते हुए अपने मुँह को उसकी चूचि पर रख दिया और उसकी एक छोटी सी चूचि को अपने मूह में लेकर चूसने लगी।

"ओहहहहहह दीदी" अपनी चूचि कंचन के मुँह में जाते ही कोमल जा पूरा जिस्म सिहर उठा और उसके मूह से ज़ोर की सिस्कियाँ निकलने लगी । कंचन बारी बारी कोमल की दोनों चुचियों को चूस रही थी और कोमल मज़े से अपनी आँखें बंद करते हुए मज़े से सिसक रही थी, कंचन कुछ देर तक ऐसे ही अपनी छोटी बहन की चुचियों को चूसने के बाद अपना मुँह वहां से हटाकर नीचे ले जाने लगी । कंचन ने अपना मुँह नीचे ले जाते हुए कोमल की चूत पर रख दिया और कोमल की छोटी सी चूत को बड़े गौर से देखने लगी।

कोमल की चूत पर हलके भूरे बाल थे और उसकी चूत बिलकुल गुलाबी थी । कंचन ने कुछ देर तक ऐसे ही कोमल की चूत को घूरने के बाद अपना मुँह उसके दाने पर रख दिया और कोमल की चूत के दाने को अपनी जीभ से चाटने लगी।
"ओहहहह दीदी" कोमल का मज़े के मारे बुरा हाल था। उसके मूह से बड़ी कामुक सिसकियाँ निकल रही थी । कंचन ने कुछ देर तक अपनी जीभ को कोमल की चूत के दाने पर फिराने के बाद उसे नीचे ले जाते हुए उसकी चूत के दोनों बंद होंठो पर रख दिया।

कंचन ने अपनी जीभ से कोमल की चूत से उत्तेजना के मारे निकलने वाले रस को चाटा और अपने हाथ से उसकी चूत के दोनों बंद होंठो को आपस में से अलग करते हुए पानी जीभ को उसकी चूत के छेद में फिराने लगी।
"आह्ह्ह्हह ओह्ह्ह्हह दीदी उफ्फ्फ्फ्फ़" कंचन की इस हरकत से कोमल का पूरा बदन अकडकर झटके खाने लगा और कोमल बुहत ज़ोर से सिसकते हुए झडने लगी । कोमल ने झडते हुए अपनी आँखें बंद कर ली और अपने दोनों हाथों से कंचन के सर को पकडकर अपनी चूत पर दबा दिया।
 
कंचन कोमल की चूत से निकलने वाले पानी को बड़ी तेज़ी के साथ चाट रही थी । उसे कोमल की चूत का पानी बुहत स्वादिष्ट लग रहा था । इधर कोमल तो मज़े से जन्नत की सैर कर रही थी उसे इतना मजा जो आज मिला था पहले कभी नहीं आया था और शायद उसकी चूत से भी आज कुछ ज्यादा ही पानी निकला था, कोमल पूरी तरह झडने के बाद बुहत ज़ोर से हाँफने लगी और कंचन ने भी कोमल के पूरी तरह झडने के बाद अपना मुँह उसकी चूत से हटा दिया।

कंचन सीधा होकर कोमल के सामने खड़ी हो गई कोमल ने अपनी आँखें खोल दी थी और वह बुहत ज़ोर से साँसें ले रही थी । कोमल की नज़र जैसे ही कंचन से मिली उसने शर्म से अपना चेहरा नीचे कर दिया।
"पगली कितना शरमाती है कैसा लगा तुम्हें मजा आया की नहीं?" कंचन ने अपने दोनों हाथों से कोमल के चेहरे को पकडकर ऊपर करते हुए कहा।
"दीदी बुहत मजा आया" कोमल ने अपनी नज़रों को नीचे करते हुए कहा।
"असली मजा तो तुमने लिए ही नहीं है मगर आज वह मजा भी मैं तुम्हें दिलाकर रहूंग़ी" कंचन ने कोमल की बात सुनकर कहा और अपने दोनों होंठ जो कोमल की चूत के पानी से भीगे हुए थे उन्हें कोमल के होंठो से मिला दिया।

कंचन जाने कितनी देर तक कोमल के कोमल होंठ को चुसती रही और कोमल भी अपनी बहन का साथ देते हुए उसके होंठो को चूमने लगी । कुछ देर बाद कंचन ने अपने होंठ कोमल के होंठो से अलग किये और उसे काँधे से पकडकर नीचे अपनी चूत के पास बिठा दिया। कोमल कंचन का ईरादा समझ गयी और अपनी जीभ निकालकर अपनी बड़ी दीदी की गुलाबी चूत को चाटने लगी।

"आह्ह्ह्ह ऐसे ही ज़ोर से अंदर डालो" कंचन ने कोमल को बालों से पकडकर अपनी चूत पर दबाते हुए कहा । कोमल भी अपनी जीभ को कडा करते हुए अपनी बड़ी बहन की चूत के छेद में घुसाकर अंदर बाहर करने लगी,
"आजहहहहह इहहहहहह दीदी" कुछ ही देर बाद कंचन का जिस्म अकडने लगा और उसकी चूत झटके खाते हुए झडने लगी । कोमल अपनी बड़ी दीदी के जूस को जितना हो सकता था अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।

कुछ ही देर में कंचन का झडना ख़तम हुआ और उसने कोमल को बाज़ू से पकडकर सीधा कर दिया । कंचन कोमल के साथ शावर के नीचे खड़े होकर नहाने लगी और उसके बाद बाथरूम से निकलकर अपने कपडे पहनने लगी।
"कोमल रात को तैयार रहना मैंने भैया से बात कर ली है आज रात तुम्हारी ज़िंदगी की यादगार रात बनने वाली है" कंचन ने कोमल को देखते हुए कहा और मुसकुराकर वहां से चलि गई।
 
कंचन के जाने के बाद कोमल रात के बारे में सोचने लगी। उसने अपनी ज़िंदगी में सिर्फ एक ही लंड देखा था जो उसके दादा का था जो बुहत लम्बा और मोटा था । कोमल मन ही मन में सोच रही थी की क्या उसके भाई का लंड भी उसके दादा जितना ही मोटा और लम्बा होगा या उससे भी ज्यादा यही सब सोचते हुए उसका जिस्म फिर से गरम होने लगा, उसे डर भी लग रहा था क्योंकी वह जानती थी की उसकी चूत का छेद अभी बुहत छोटा है मगर उस दर से ज्यादा जो एक्साईटमेंट उसे फील हो रही थी वह उसके डर को भी ख़तम कर रही थी।

ऐसे ही कब रात हो गई पता ही नहीं चला । सारे परिवार ने साथ में खाना खाया और अपने अपने कमरों में सोने की तैयारियां करने लगे । रेखा ने दिन में अपने ससुर से चुदवा लिया था इसीलिए वह थकी हुयी थी वह अपने कमरे में अपने पति के साथ सो गयी, कोमल अपने कमरे में नाइटी पहने हुए अपनी बड़ी बहन के आने का इंतज़ार कर रही थी। उसकी चूत एक्साईंटमेंट से गरम होकर पानी बहा रही थी।

इधर विजय का भी वही हाल था । उसका लंड अपनी छोटी बहन के बारे में सोचते हुए बुहत ज़ोर के झटके खा रहा था उससे अब बर्दाशत नहीं हो रहा था इसी किये वह अपने कमरे से निकलकर कंचन के कमरे में आ गया जहाँ पर कंचन अपने बेड पर लेटी हुयी थी।
"दीदी कुछ तो रहम करो मेरी हालत पर तुम अब तक यहाँ क्या कर रही हो?' विजय ने कंचन को यो सोता हुआ देखकर गुस्सा करते हुए कहा।
"क्यों क्या हुआ भैया?" कंचन ने अपने भाई को देखकर बेड से उठकर खड़े होकर मुस्कुराते हुए बोली।
"दीदी क्या हुआ याद नहीं है शाम को तुमने क्या कहा था" विजय ने हैंरानी से कंचन को देखते हुए कहा।

"अरे हाँ याद आया तुम छोटी के बारे में पूछ रहे हो न वह उसने आने से इन्कार कर दिया" कंचन ने अपने भाई को देखकर मुस्कराते हुए कहा।
"इनकार कर दिया मगर तुमने ही तो कहा था वह मान गयी है?" विजय ने मायूस होते हुए कहा उसका मूह उस वक्त देखने लायक था।
"हाँ वह मान गयी थी मगर अब नहीं आ रही है भला मैं क्या कर सकती हूँ और तुम इतना परेशान क्यों होते हो मैं जो हूँ तुम्हारे इस नालायक को ठीक करने के लिये" कंचन ने अपने हाथ से अपने भाई के खड़े लंड को उसके अंडरवियर के ऊपर से ही पकडते हुए कहा।
 
दीदी तुम तो हो मगर मुझे अपनी छोटी बहन को प्यार करना है" विजय ने रोने जैसे मुँह बनाते हुए कहा।
"अरे वाह अब मैं उससे ज़बर्दस्ती तो नहीं कर सकती और मैं अब तुम्हें अच्छी नहीं लग रही हूँ क्या?" कंचन ने भी गुस्से से अपने भाई को देखते हुए कहा।
"नही दीदी ऐसी बात नहीं है तुम तो मेरी जान हो मगर आज मुझे किसी तरह भी कोमल दीदी से मिलवा दो" विजय ने अपनी बड़ी बहन को नाराज़ देखकर उसको गले से लगाते हुए कहा।
"छोड़ो अब मस्का मत लगाओ मुझे पता है की अब तुम्हें मैं अच्छी नहीं लगती" कंचन अपने भाई की बात सुनकर मुँह बनाते हुए बोली।

"दीदी ओह मेरी प्यारी दीदी क्या तुम एक बार मेरे लिए कोमल दीदी को नहीं पटा सकती" विजय ने कंचन को नाराज़ देखकर उसको ज़ोर से अपने गले से लगाते हुए कहा।
"ठीक है मगर मुझे क्या फ़ायदा उसे तुम्हारे पास लाने से?" कंचन ने अपने भाई को यो मिन्नते करते देखकर कहा।
"क्या चाहिए तुम्हें दीदी मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हू" विजय ने कंचन की बात सुनकर कहा।
"सोच लों भैया फिर मत कहना की यह तुम क्या कह रही हो" कंचन ने अपने भाई की बात सुनकर कहा।
"हाँ सोच लिया मैं अपनी छोटी बहन को पाने के लिए कुछ भी कर सकता हू" विजय ने कंचन को देखकर कहा।

"ठीक है तुम अपने कमरे में जाओ मैं अभी छोटी को मनाकर लाती हू" कंचन ने अपने भाई को अपने आप से अलग करते हुए कहा।
"दीदी आप कितनी अच्छी हो" विजय ने ख़ुशी से उछलते हुए कहा और कंचन को अपने पास खींचकर उसके होंठो पर अपने होंठो रखकर चूसने लगा।
"आहहह हटो न अब" कंचन ने अपने भाई को कुछ देर तक अपने होंठो से खेलने देने के बाद अपने आप से दूर करते हुए कहा।
"दीदी जल्दी आना" विजय ने अपनी बहन से अलग होते ही कहा और वहां से अपने कमरे में चला गया । कंचन अपने भाई के बारे में सोचकर हँसते हुए अपने कमरे से निकलकर कोमल के कमरे में जाने लगी।

इधर कोमल अपनी बहन का इंतज़ार करते करते बुहत ज्यादा गरम हो चुकी थी क्योंकी वह अपनी बहन का इंतज़ार करते हुए सिर्फ अपने भाई के बारे में सोच रही थी की वह उसके साथ क्या क्या करेगा।
"दीदी आप आ गई" कंचन जैसे ही उसके कमरे में दाखिल हुयी वह ख़ुशी से अपने बेड से उठते हुए बोली मगर अगले ही पल वह शरमाकर वापस बेड पर बैठ गयी।
"क्या बात है छोटी इतनी खुश क्यों हो रही हो?" कंचन ने कोमल को टोकते हुए कहा।
"कुछ नहीं दीदी वह मैंने सोचा आप भूल गयी इसीलिये" कोमल ने शर्म से सिर्फ इतना कहा।
"मैं तो भूल भी जाती मगर वहां पर तुम्हारा भाई तुम्हरे लिए मरा जा रहा है" कंचन ने कोमल को देखते हुए कहा।
 
"चलो अब शर्माओ मत और चलो मेरे साथ मुझे पता है जीतनी तड़प भैया को है उससे कहीं ज्यादा तुम्हें" कंचन ने आगे बढ़कर कोमल को हाथ से पकडते हुए कहा और कोमल भी बेड से उठते हुए कंचन के साथ अपने भाई के कमरे की तरफ बढ़ने लगी । कंचन अपनी बहन को अपने साथ विजय के कमरे में ले आई और उसे बेड पर ले जाकर बिठा दिया।
"भइया यह रही तुम्हारी अमानत" कंचन ने कोमल को बेड पर बिठाने के बाद अपने भाई को देखते हुए कहा।
"थैंक्स दीदी आप बताइये क्या चाहिए आपको?" विजय ने खुश होते हुए कहा।
"इतनी जल्दी क्या है टाइम आने पर बताउँगी" कंचन ने अपने भाई को आँख मारते हुए कहा और खुद वहां से जाने लगी।

कमल ने कंचन को जाता हुआ देखकर घबड़ाहट से उसका हाथ पकड़ लिया।
"क्या हुआ छोटी?" कंचन ने कोमल की तरफ देखते हुए कहा।
"दीदी आप यहीं रहो ना" कोमल ने शर्म और डर के मारे कंचन से कहा।
"अरे पगली मेरा इधर क्या काम। तेरा भैया है न वह तुझे कोई तकलीफ नहीं देगा मैं रहूँगी तो खवांखवाह तुम दोनों डिसट्रब होगे" कंचन ने कोमल के साथ बैठकर उसे समझाते हुए कहा।
"पर दीदी मुझे डर लग रहा है" कोमल ने कंचन को देखते हुए कहा।
"अरे पगली बस तुम अपने डर को खतम करो फिर देखो तुम्हें तुम्हारे भैया कितना मजा देते हैं" कंचन ने कोमल को समझाते हुए कहा और खुद वहां से चलि गयी।

कंचन अपने भाई के कमरे से निकलकर अपने कमरे में आ गयी और दरवाज़ा बंद करके बेड पर सो गयी। न जाने क्यों आज कंचन को अच्छा नहीं लग रहा था इसी लिए वह अपने भाई के कमरे से निकल आई थी । कंचन के जाते ही विजय ने जल्दी से उठकर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और खुद अपनी छोटी बहन के पास बेड पर आकर बैठ गया।
"कोमल तुम कितनी सूंदर हो" विजय ने अपनी बहन के पास बैठते ही उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर ऊपर करते हुए कहा ।
 
कोमल का दिल पहले से बुहत ज़ोर से धड़क रहा था। उसने अपने भाई के हाथों अपना चेहरा ऊपर करने से शर्म से अपनी आँखों को बंद कर दिया।

"क्या हुआ कोमल मैं इतना बुरा हूँ क्या जो आपने अपनी आँखों को बंद कर दिया?" विजय ने कोमल की आँखों को बंद होता देखकर कहा।
"नही भैया आप तो बुहत सूंदर हो बस मुझे शर्म आ रही है" कोमल ने अपनी आँखें बंद रखे हुए ही अपने भाई को जवाब दिया।
"पगली इतना शर्मा क्यों रही हो देखो न मेरी आँखों में ताकी तुम्हें पता चले की तुम्हारे भाई ने तुम्हारे लिए कितना प्यार समेट रखा है" विजय ने कोमल को घूरते हुए कहा।
"भइया" कोमल ने सिर्फ इतना कहा और अपनी आँखों को खोल दिया।
"कोमल सच मे तुम दुनिया की सब से हसीन लड़की हो कितनी सूंदर हैं तुम्हारी आँखें और यह गुलाबी होंठ। क्या मैं तुम्हारे गुलाबी होंठो का मीठा रस पी सकता हूँ?" विजय ने कोमल की आँखों में देखते हुए कहा।

"भइया आप भी ना" कोमल ने शर्म से अपनी आँखों को नीचे करते हुए कहा । विजय ने भी मौके का फ़ायदा उठाते हुए कोमल के चेहरे को अपने दोनों हाथों से अपनी तरफ करते हुए अपने तपते होंठो को उसके गुलाबी होंठो पर रख दिया । विजय के होंठ अपने होंठो पर पडते ही कोमल का पूरा जिस्म कांप उठा । उसे अपने पूरे शरीर में अजीब किस्म की सिहरन होने लगी। किसी भी मरद के साथ यह उसकी ज़िंदगी का पहले चुमा था, विजय दीवानों की तरह कोमल के दोनों होठो को बारी बारी चूस रहा था उसे अपनी छोटी बहन के गुलाबी होंठो को चूसते हुए बुहत ज्यादा मजा आ रहा था।

कोमल की भी हालत खराब होती जा रही थी । वह पहले से बुहत ज्यादा गरम थी ऊपर से अपने भाई के होंठो से अपने होंठो को चूसने से वह भी विजय के साथ खोती जा रही थी और अब वह भी विजय को रिस्पांस देते हुए उसके होंठो को खुद भी चूस रही थी । विजय जाने कितनी देर तक अपनी बहन के होंठो को चूसने के बाद हाँफते हुए उसके होंठो से अलग हो गया। विजय के अलग होते ही कोमल भी बुहत ज़ोर से साँसें लेने लगी।
"कोमल तुम्हारे होंठ तो शहद से ज्यादा मीठे है" विजय ने अपनी बहन को देखते हुए कहा और उसका एक हाथ पकड़कर अपने अंडरवियर के ऊपर ही अपने खड़े लंड पर रख दिया।

कोमल अचानक अपना हाथ किसी मोटी चीज़ पर महसूस करके चोंक गयी मगर अगले ही पल जब उसने देखा की उसका हाथ उसके भाई के अंडरवियर के ऊपर है और वह मोटी चीज़ कुछ और नहीं उसके भाई का खड़ा लंड है तो उसने फ़ौरन अपना हाथ वहां से हटा दिया।

"क्या हुआ कोमल पसंद नहीं आया क्या" विजय ने फिर से अपनी बहन का हाथ पकडते हुए उसी जगह रख दिया । कोमल ने इस बार भी अपना हाथ वहां से हटाने की कोशिश की मगर इस बार विजय ने अपनी बहन का हाथ अपने हाथ में पकड़ा हुआ था।
"कोमल इतना क्यों शर्मा रही हो ज़रा इसे महसूस करो अगर आपको अच्छा न लगे तो हटा देना" विजय ने कोमल को समझाते हुए कहा।
 
कोमल अपने भाई की बात को सुनकर अपने हाथ को ढीला छोड दिया । विजय अपनी बहन के हाथ को पकडकर अपने लंड पर आगे पीछे करने लगा। कुछ ही देर में कोमल को मजा आने लगा और वह अपने हाथ को अपने आप आगे पीछे करने लगी । विजय का तो मज़े के मारे बुरा हाल था अपनी बहन का नरम हाथ अपने लंड पर आगे पीछे होते हुए उसे जन्नत का मजा दे रहा था, अचानक विजय ने अपनी बहन का हाथ अपने लंड से हटा दिया और उसे अपने साथ बेड से उठाकर सीधा खड़ा कर दिया।

कोमल हैंरानी से विजय को देखने लगी ।विजय ने अपनी बहन को खड़ा करने के बाद उसकी नाइटी को आगे से खोल दिया और उसे कोमल के जिस्म से अलग करने लगा । कोमल ने शर्म से अपने हाथों से अपनी नाइटी को पकड़ लिया । मगर विजय ने कोमल के हाथों से नाइटी को छुड़ा लिया और उसे उसके जिस्म से अलग कर दिया। कोमल अब सिर्फ एक पेंटी और ब्रा में विजय के सामने खड़ी थी । कोमल का दूध की तरह सफेद जिस्म बल्ब की रौशनी में चमक रहा था और उसने शर्म से अपनी आँखें नीचे की हुयी थी।
"वाह कोमल तुम्हारा जिस्म कितना सूंदर है मैंने खवाब में भी नहीं सोचा था की तुम अंदर से भी इतनी सूंदर होगी" विजय ने अपनी छोटी बहन को घूरते हुए कहा।

विजय ने अपनी बहन को देखते हुए अपना अंडरवियर भी अपने जिस्म से अलग कर दिया और बिलकुल नंगा होकर अपनी बहन के सामने खड़ा हो गया । कोमल ने अपने भाई को बिलकुल नंगा देखकर शर्म से अपना मुँह दूसरी तारफ कर दिया मगर उसने अपने भाई का प्यारा लंड देख लिया था। वह मन ही मन में सोच रही थी की उसके भाई का लंड तो उसके दादा से भी ज्यादा मोटा और लम्बा है।
"क्या हुआ कोमल मूह क्यों मोड़ दिया। मेरा यह तुमको अच्छा नहीं लगा क्या" विजय ने कोमल को पीछे से अपनी बाँहों में लेते हुए कहा। जिस वजह से उसका नंगा लंड कोमल की गांड को छुने लगा।
"भइया मुझे शर्म आ रही है" कोमल ने सिर्फ इतना कहा कोमल का जिस्म अपने भाई के लंड को अपनी गांड के क़रीब महसूस करते ही गरम होने लगा था।

"अरे पगली इस में शर्माने की क़ीक़ बात है जीतनी ज्यादा शर्म करोगी उतना ही तुम्हारा नुकसान है" विजय ने अपना नंगा लंड पीछे से अपनी बहन के चूतड़ो में दबाते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह भैया आपका पीछे चुभ रहा है" कोमल अपने चूतडों में अपने भाई के लंड को महसूस करके सिसकते हुए बोली।
"ता क्या हुआ चुभने दो ना" विजय ने अपने दोनों हाथों से कोमल के नंगी कमर को पकडकर अपने उसे अपने लंड पर दबाते हुए कहा और अपने होंठो से उसके नंगे पीठ को चूमने लगा । विजय के ऐसा करने से कोमल भी गरम होकर अपने भाई के हाथों मजा लेने लगी । अचानक विजय ने कोमल को सीधा कर दिया और अपने होंठो को उसके होंठो पर रखते हुए उसे अपनी बाहों में भर लिया।
 
विजय अपनी छोटी बहन को ज़ोर से अपनी बाँहों में भरे हुए उसके नशीले होंठो को चूस रहा था और उसका लंड पूरी तरह खडा होकर कोमल के नंगे पेट और उसकी पेंटी को टक्कर मार रहा था । जिस वजह से कोमल का पूरा शरीर उत्तेजना के मारे झटके खा रहा था और वह पूरी तरह गरम होकर अपने एक हाथ से अपने भाई के लंड को पकडकर सहलाने लगी, विजय अपनी बहन को इतना गरम देखकर अपनी जीभ को पूरा उसके मुँह में घुसा दिया जिसे कोमल बड़े प्यार से चूसने लगी जैसे जीभ न होकर उसके भाई का लंड हो।

कोमल कुछ देर तक अपने भाई की जीभ को चाटने के बाद उसकी जीभ को अपने मुँह से निकालकर अपनी जीभ को उसके मूह में डाल दिया । विजय अपनी छोटी बहन की जीभ अपने मूह में आते ही मज़े के मारे पागल होते हुए बड़े प्यार से अपनी बहन की स्वादिष्ट जीभ को चाटने और चूसने लगा और अपने दोनों हाथों से कोमल की ब्रा के हुक खोलने लगा, कुछ देर बाद जब दोनों की साँसें फूलने लगी तो दोनों भाई बहन ने अपने मूह एक दुसरे के मूह से अलग कर दिये और एक दुसरे से जुदा होकर ज़ोर से हाँफने लगा।

विजय ने अपना हाथ बढाकर अपनी छोटी बहन की ब्रा को उसकी चुचियों से अलग करते हुए नीचे फ़ेंक दिया क्योंकी कोमल के साथ किस्सिंग करते हुए उसने ब्रा के हुक खोल दिए थे । कोमल जो अपनी साँसों को ठीक करने में बसी थी अचानक अपनी ब्रा को अपने जिस्म से अलग होने से हैंरान होते हुए अपनी छोटी छोटी नंगी चुचियों को अपने दोनों हाथों से ढ़क लिया।
"ओहहहह कोमल क्यों छुपा रही हो अपनी इन कमसीन चुचियों को देखने दो मुझे और प्यार करने दो" विजय ने अपने दोनों हाथों से अपनी बहन के हाथों को पकडकर उसकी चुचियों से हटाते हुए कहा।

"वाह कितनी प्यारी हैं तुहारी चुचियाँ दूध की तरह सफेद और उनपर यह छोटे से प्यारे गुलाबी दाने" विजय अपनी बहन की चुचियों को देखते ही उन्हें अपने दोनों हाथों से पकडकर सहलाते हुए बोला।
"भइया" कोमल का शर्म और एक्साइटमेंट के मारे बुरा हाल था उसने सिर्फ इतना कहा और आगे बढ़कर अपने भाई को अपनी बाहों में भर लिया।
"आह्ह्ह्हह छोटी" विजय ने अपनी बहन की छोटी सी नरम चुचियों को अपने सीने पर लगने से सिसकते हुए कहा और अपनी बहन के होंठो, गालों और काँधे को चूमते हुए उसकी चुचियों की तरफ बढ़ने लगा।

विजय ने नीचे होते हुए अपनी बहन की एक एक चूचि को अपने हाथ में पकडते हुए उसे अपने मुँह में डाल दिया और वह अपनी बहन की छोटी चूचि को पूरा अपने मुँह में भरकर चूसने लगा।
"आह्ह्ह्हह भैया छोड़ो ना" कोमल अपनी चूचि अपने भाई के मुँह में जाते ही मज़े से हवा में उड़ने लगी और वह अपने हाथों से अपने भाई के बालों को सहलाते हुए सिसककर कहने लगी । विजय अब अपनी बहन की दोनों चुचियों को बारी बारी अपने मुँह में लेकर चूस रहा था और कोमल मज़े से सिसक रही थी।
 
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