hotaks444
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"भइया दोपहर को जब में उसके कमरे में गयी तो वह अपने हाथ से अपनी छोटी सी चूत को सहला रही थी और जल्दी में उसने दरवाज़ा भी बंद नहीं किया था" कंचन ने भी अपनी गांड को थोड़ा उठाकर सही तरीके से अपने भाई के लंड पर रखते हुए कहा।
"तो दीदी अब क्या करना होगा" विजय अपनी बहन की बात को सुनकर नशीले अन्दाज़ में बोला।
"भइया इससे पहले की वह अपनी जिस्म की आग को किसी गैर के हाथों मिटवाए आपको घर की इज़्ज़त को बचाने के लिए खुद ही उसकी जिस्म की आग को ठण्डा करना होगा" कंचन ने अपनी आँखों को बंद करते हुए मज़े से अपनी गांड को अपने भाई के लंड पर दबाते हुए कहा।
"दीदी मगर क्या कोमल दीदी इसके लिए राज़ी होगी?" विजय के लंड अपनी बहन की बात सुनकर एक ज़ोर का ठुमका अपनी बहन की गांड पर मारा और विजय ने अपनी बहन को ज़ोर से अपनी बाहों में भरते हुए पूछा।
"भइया में हूँ न आप रात को तैयार रहना मैं छोटी को आपके कमरे में ले आऊँगी" कंचन ने अपने भाई के हाथों को अपने पेट से हटाकर उसकी गोद से उठते हुए कहा।
"क्या हुआ दीदी आप उठ क्यों गयी?" विजय ने अपनी बहन के अचानक उठने से हैंरानी से उसके हाथ को पकडते हुए कहा।
"भइया अब यह मेरी छोटी की अमानत है इसीलिए मैं इसके साथ कोई हरकत नहीं कर सकति" कंचन ने अपने दुसरे हाथ से अपने भाई के लंड को उसकी पेण्ट के ऊपर से ही सहलाते हुए कहा और अपने होंठो को अपने भाई के होंठो पर रखकर उसे एक चुम्मा दिया । कंचन अपने भाई के होंठो को चूमने के बाद उससे अलग हो गई और सोफ़े पर जाकर बैठ गयी।
"दीदी यह तो कोई बात नहीं हुई अब यह रात कब होगी?" विजय अपनी बहन की बात सुनकर मायूस होते हुए बोला।
"हो जाएगी मेरे बेसबरे भाई ज़रा धीरज रखो मैं छोटी के कमरे में जा रही हू" कंचन ने अपने भाई को देखकर हँसते हुए कहा और सोफ़े से उठकर बाहर निकल गयी । कंचन के जाते ही विजय भी वहां से उठकर अपने कमरे में आ गया और बेड पर लेटकर अपनी छोटी बहन के बारे में सोचने लगा। विजय ने पहले कभी कोमल को उस नज़र से नहीं देखा था मगर कंचन की बाते सुनने के बाद वह अपनी छोटी बहन को याद करके अपने लंड को सहलाने लगा।
"तो दीदी अब क्या करना होगा" विजय अपनी बहन की बात को सुनकर नशीले अन्दाज़ में बोला।
"भइया इससे पहले की वह अपनी जिस्म की आग को किसी गैर के हाथों मिटवाए आपको घर की इज़्ज़त को बचाने के लिए खुद ही उसकी जिस्म की आग को ठण्डा करना होगा" कंचन ने अपनी आँखों को बंद करते हुए मज़े से अपनी गांड को अपने भाई के लंड पर दबाते हुए कहा।
"दीदी मगर क्या कोमल दीदी इसके लिए राज़ी होगी?" विजय के लंड अपनी बहन की बात सुनकर एक ज़ोर का ठुमका अपनी बहन की गांड पर मारा और विजय ने अपनी बहन को ज़ोर से अपनी बाहों में भरते हुए पूछा।
"भइया में हूँ न आप रात को तैयार रहना मैं छोटी को आपके कमरे में ले आऊँगी" कंचन ने अपने भाई के हाथों को अपने पेट से हटाकर उसकी गोद से उठते हुए कहा।
"क्या हुआ दीदी आप उठ क्यों गयी?" विजय ने अपनी बहन के अचानक उठने से हैंरानी से उसके हाथ को पकडते हुए कहा।
"भइया अब यह मेरी छोटी की अमानत है इसीलिए मैं इसके साथ कोई हरकत नहीं कर सकति" कंचन ने अपने दुसरे हाथ से अपने भाई के लंड को उसकी पेण्ट के ऊपर से ही सहलाते हुए कहा और अपने होंठो को अपने भाई के होंठो पर रखकर उसे एक चुम्मा दिया । कंचन अपने भाई के होंठो को चूमने के बाद उससे अलग हो गई और सोफ़े पर जाकर बैठ गयी।
"दीदी यह तो कोई बात नहीं हुई अब यह रात कब होगी?" विजय अपनी बहन की बात सुनकर मायूस होते हुए बोला।
"हो जाएगी मेरे बेसबरे भाई ज़रा धीरज रखो मैं छोटी के कमरे में जा रही हू" कंचन ने अपने भाई को देखकर हँसते हुए कहा और सोफ़े से उठकर बाहर निकल गयी । कंचन के जाते ही विजय भी वहां से उठकर अपने कमरे में आ गया और बेड पर लेटकर अपनी छोटी बहन के बारे में सोचने लगा। विजय ने पहले कभी कोमल को उस नज़र से नहीं देखा था मगर कंचन की बाते सुनने के बाद वह अपनी छोटी बहन को याद करके अपने लंड को सहलाने लगा।