Indian Sex Kahani डार्क नाइट - Page 2 - SexBaba
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Indian Sex Kahani डार्क नाइट

चैप्टर 5
अगले दिन का प्लेटाइम कबीर के लिए एक सुखद आश्चर्य लेकर आया; हालाँकि प्लेटाइम, उसके लिए कुछ ख़ास प्लेटाइम नहीं हुआ करता था। हिकमा वाली घटना के बाद वह हर उस ची़ज से बचने की कोशिश करता था, जो उसे किसी परेशानी या दिक्कत में डाल सके; यानी लगभग हर ची़ज से। उस दिन भी वह अकेले ही बैठा था, कि उसे हिकमा दिखाई दी; मुस्कुराकर उसकी ओर देखते हुए। कबीर को हिकमा की मुस्कुराहट का रा़ज समझ नहीं आया। उसे तो कबीर से नारा़ज होना चाहिए था, और नारा़जगी में मुस्कान कैसी। मगर उसकी मुस्कुराहट के बावजूद, कबीर के लिए उससे ऩजरें मिलाना कठिन था। उसने तुरंत पलकें झुकार्इं और आँखें दूसरी ओर फेर लीं; या यूँ कहें कि पलकें अपने आप झुकीं, और आँखें फिर गर्इं। मगर ऐसा होने पर उसे थोड़ा बुरा भी लगा। सभ्यता का तका़जा था कि जब हिकमा मुस्कुराकर देख रही थी, तो एक मुस्कान कबीर को भी लौटानी चाहिए थी। मगर एक तो उसकी हिम्मत हिकमा से आँखें मिलाने की नहीं हो रही थी, दूसरा हिकमा के थप्पड़ की वजह से थोड़ी सी नारा़जगी उसे भी थी; और तीसरा, कूल का ऐटिटूड दिखाने का सुझाव।
अभी कबीर यह तय भी नहीं कर पाया था, कि हिकमा की मुस्कुराहट का जवाब किस तरह दे, कि उसे एक मीठी सी आवा़ज सुनाई दी, ‘‘हाय कबीर!’’
उसने ऩजरें उठाकर देखा, सामने हिकमा खड़ी थी। उसके होठों पर अपने आप एक मुस्कुराहट आ गई, और उस मुस्कुराहट से निकल भी पड़ा, ‘हाय!’
कबीर ने उठकर एक ऩजर हिकमा के चेहरे को देखा; फिर ऩजर भर कर देखा, मगर उसे समझ नहीं आया कि क्या कहे। थोड़ा सँभलते हुए उसने कहा, ‘‘सॉरी हिकमा..।’’
इतना सुनते ही हिकमा हँस पड़ी, ‘‘इस बार तुमने मेरा नाम सही लिया है।’’
हिकमा के हँसते ही कबीर के मन से थोड़ा बोझ उतर गया, और साथ ही उतर गई उसकी बची-खुची नारा़जगी।
‘‘आई एम सॉरी..।’’ इस बार उसने हल्के मन से कहना चाहा।
‘‘डोंट से सॉरी; मुझे पता है कि ग़लती तुम्हारी नहीं थी।’’ हिकमा ने अपनी मुस्कुराहट बरकरार रखते हुए कहा।
हिकमा से यह सुनकर कबीर की ख़ुशी का ठिकाना न रहा।
‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’ वह लगभग चहक उठा।
‘‘कबीर; मेरे साथ इस तरह के म़जाक होते रहते हैं; मेरा नाम ही कुछ ऐसा है... मगर जब मुझे पता चला कि तुम यहाँ नए हो, तो मुझे लगा कि ये किसी और की शरारत रही होगी।’’
‘‘थैंक यू।’’ ख़ुशी कबीर के चेहरे पर ठहर नहीं रही थी। हिकमा के लिए उसका प्यार और भी बढ़ गया।
‘‘कबीर आई एम सॉरी दैट...।’’
‘‘नो नो...प्ली़ज डोंट से सॉरी, इट्स ऑल राइट।’’
वही हुआ, जो कबीर ने सोचा था। वह हिकमा को ऐटिटूड दिखा नहीं सका। हिकमा ने उसे मा़फ कर दिया, उसने हिकमा को मा़फ कर दिया। अब बात आगे बढ़ानी थी। कबीर ने बेसब्री से हिकमा की ओर मुस्कुराकर देखा, कि वह कुछ और कहे।
‘‘अच्छा बाय, क्लास का टाइम हो रहा है।’’ उसने बस इतना ही कहा, और पलटकर अपने क्लासरूम की ओर बढ़ गई।
हिकमा से कबीर ने जो कुछ सुना, और उससे जो कुछ कहा उस, पर उसे यकीन नहीं हो रहा था। कबीर के लिए हिकमा से इतना सुनना भी बहुत था, कि वह उससे नारा़ज नहीं थी; मगर फिर भी वह उससे और भी बहुत कुछ सुनना चाहता था; उससे और भी बहुत कुछ कहना चाहता था।
अगले कुछ दिन, प्ले-टाइम और डिनर ब्रेक में कबीर की ऩजरें हिकमा से मिलती रहीं। हिकमा, कबीर को देख कर मुस्कुराती, और कबीर उसे देखकर मुस्कुराता। इससे अधिक कुछ और न हो पाता। प्ले-टाइम में हिकमा अपने साथियों के साथ होती। कबीर अक्सर अकेला ही होता। हालाँकि कबीर ने कूल को मा़फ कर दिया था; हैरी से भी उसे कोई ख़ास नारा़जगी नहीं थी; फिर भी उसे अकेले रहना ही अच्छा लगता। डिनर ब्रेक में भी वे अलग-अलग ही बैठते। हिकमा डिनर थी, कबीर सैंडविच था।
एक दिन कबीर ने हिकमा को अकेले पाया। इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता था उससे बात करने का। कुछ हिम्मत बटोरकर कबीर उसके पास गया।
‘हाय!’
‘हाय!’ हिकमा ने मुस्कुराकर कहा।
‘‘हाउ आर यू?’’
‘‘आई एम फाइन, थैंक्स।’’
हिकमा का थैंक्स कहना कबीर को थोड़ा औपचारिक लगा। उसके आगे उसे समझ नहीं आया कि वह क्या कहे। कुछ देर के लिए उसका दिमाग बिल्कुल ब्लैंक रहा, फिर अचानक उसके मुँह से निकला, ‘‘डू यू लाइक बटाटा वड़ा?’’
‘‘बटाटा वड़ा?’’ हिकमा ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘हाँ, बटाटा वड़ा।’’
‘‘ये क्या होता है?’’
‘‘आलू से बनता है; स्पाइसी, डीप प्रâाइ।’’
‘‘यू मीन समोसा?’’
‘‘नहीं नहीं, समोसे में मैदे की कोटिंग होती है; ये बेसन से बनता है।’’
‘‘ओह! आई नो व्हाट यू मीन।’’
‘खाओगी?’
‘अभी?’ हिकमा के चेहरे पर हैरत में लिपटी मुस्कान थी।
 
‘‘नहीं, फिर कभी।’’ उस समय घड़ी में दोपहर के दो बजे थे, मगर कबीर के चेहरे पर बारह बजे हुए थे। वह सोच कुछ और रहा था, और कह कुछ और रहा था। उसकी हालत देखकर हिकमा की हँसी छूट गई। कबीर को और भी शर्म महसूस हुई।
‘‘अच्छा बाय।’’ कबीर ने घबराकर कहा, और वहाँ से लौट आया।
हिकमा के चेहरे पर हँसी बनी रही।
पंद्रह साल की उम्र, वह उम्र होती है, जिसमें कोई लड़का, कभी किसी हसीन दोशीजा की जुस्तजू में समर्पण कर देना चाहता है, और कभी किसी इंकलाब की आऱजू में बगावत का परचम उठा लेना चाहता है; मगर इन दोनों चाहों के मूल में एक ही चाह होती है... ख़ूबसूरती की चाह। कभी आईने में झलकते अपने ही अक्स से मुहब्बत हो जाना, तो कभी अपनी कमियों और सीमाओं से विद्रोह पर उतर आना... सब कुछ अनंत के सौन्दर्य को ख़ुद से लपेट लेने और ख़ुद में समेट लेने की क़वायद सा होता है। यह कभी नीम-नीम और कभी शहद-शहद सी क़वायद, इंसान को कहाँ ले जाती है, वह का़फी कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है, कि जिस मिट्टी पर ये क़वायद हो रही है, वह कितनी सख्त है या कितनी नर्म। कबीर के लिए उस वक्त लंदन और उसकी अन्जानी तह़जीब की मिट्टी का़फी सख्त थी, जिस पर पाँव जमाने में उसे कुछ वक्त लगना था।
‘‘सरकार अंकल, साबूदाना है?’’ कबीर ने भारत सरकार की दुकान पर उनसे पूछा। कबीर की माँ का उपवास था, और उन्होंने कबीर को साबूदाना लाने भेजा था।
‘‘एक मिनट वेट कोरो, बीशमील शे माँगाता है।’’ सरकार ने कहा।
‘‘बीस मील से आने में तो बहुत समय लग जाएगा; एक मिनट में कैसे आएगा?’’ कबीर ने भोलेपन से कहा।
‘‘हामारा नौकर है बीशमील; बीशमील! पीछे शे शॉबूदाना लेकर आना।’’ सरकार ने आवा़ज लगाई।
कबीर को समझ आ गया कि सरकार, बिस्मिल को बीशमील कह रहा था।
कबीर, साबूदाने के आने का इंत़जार कर रहा था, कि उसे दुकान के भीतर हिकमा आती दिखाई दी। कबीर, हिकमा को देखकर ख़ुशी से चहक उठा, ‘‘हाय हिकमा!’’
‘‘हाय कबीर! हाउ आर यू?’’
‘‘मैं अच्छा हूँ; तुम क्या लेने आई हो?’’
‘‘बेसन। इन्टरनेट पर बटाटा वड़ा की रेसिपी पढ़ी है; आज बनाऊँगी।’’
‘‘तुम बनाओगी बटाटा वड़ा?’’ कबीर ने आश्चर्य में डूबी ख़ुशी से पूछा। कबीर को ख़ुशी इस बात की थी, कि हिकमा ने उसकी बात को गंभीरता से लिया था; वरना उसे तो यही लग रहा था कि उसने हिकमा के सामने अपना ख़ुद का म़जाक उड़ाया था।
‘‘हाँ, तुम्हें यकीन नहीं है कि मैं कुक कर सकती हूँ?’’
‘‘बनाकर खिलाओगी तो यकीन हो जाएगा।’’
‘‘ठीक है; कल स्कूल लंच में तुम मेरे हाथ का बना बटाटा वड़ा खाना।’’
कबीर ने हिकमा को बटाटा वड़ा खिलाने के लिए तो कह दिया, पर उसे फिर से स्कूल में अपना म़जाक उड़ाए जाने का डर लगने लगा। इसी म़जाक के डर से वह लंचबॉक्स में भारतीय खाना ले जाने की जगह सैंडविच ले जाने लगा था। लेकिन वह हिकमा के साथ बैठकर उसके हाथ का बना बटाटा वड़ा खाने का लोभ संवरण नहीं कर पाया। उसने मुस्कुराकर कहा, ‘‘थैंक यू सो मच; और हाँ, चाहे तो इसे टिप समझो या फिर रिक्वेस्ट, मगर उसमें मीठी नीम ज़रूर डालना।’’
‘‘मीठी नीम?’’ हिकमा ने शायद मीठी नीम का नाम नहीं सुना था।
‘‘करी लीव्स।’’ कबीर ने स्पष्ट किया।
अगले दिन कबीर, लंच में हिकमा के साथ बैठा था। वह अपने लंचबॉक्स में माँ के हाथ का बना आलू टिक्की सैंडविच लाया था, मगर उसकी सारी दिलचस्पी हिकमा के हाथ के बने बटाटा वड़ा में थी। हिकमा ने लंचबॉक्स खोला। लहसुन, अदरक और मीठी नीम की मिलीजुली खुशबू उसके डब्बे से उड़ी। कबीर को वह खुशबू भी ऐसी मादक लगी, मानो हिकमा के शरीर से उड़ी किसी परफ्यूम की खुशबू हो। हिकमा, ख़ुद डिनर थी; बटाटा वड़ा तो वह बस कबीर के लिए ही लाई थी।
‘‘वाह, अमे़िजंग! दिस इ़ज रियली वेरी टेस्टी।’’ कबीर ने बटाटा वड़ा का एक टुकड़ा खाते हुए कहा।
‘‘तुमने जो कुकिंग टिप दिया था न, मीठी नीम डालने का; उससे और भी टेस्टी हो गया।’’ हिकमा ने एक मीठी मुस्कान के साथ कहा।
‘‘हे बटाटा वड़ा!’’ अचानक, दो टेबल दूर बैठे कूल की आवा़ज आई। कबीर ने उसे देखकर गन्दा सा मुँह बनाया, और फिर किसी तरह अपनी भावभंगिमा ठीक करने की कोशिश करते हुए हिकमा की ओर देखा।
‘‘तुम कबीर को बटाटा वड़ा क्यों कहते हो?’’ हिकमा ने कूल से पूछा। उसकी आवा़ज में हल्का सा गुस्सा था।
‘‘क्योंकि इसे बटाटा वड़ा पसंद है।’’ कूल ने हँसते हुए कहा।
‘‘तब तो तुम्हारा नाम तंदूरी चिकन होना चाहिए।’’ हिकमा ने एक ठहाका लगाया। हिकमा के साथ कबीर और कूल भी हँस पड़े।
‘‘और तुम्हें क्या कहना चाहिए?’’ कूल ने आँखें मटकाते हुए पूछा।
‘‘मीठी नीम।’’ हिकमा ने फिर वही मीठी मुस्कान बिखेरी। कबीर बहुत देर तक उस मीठी मुस्कान को देखता रहा।
‘‘इतनी अच्छी कुकिंग कहाँ से सीखी?’’ कबीर ने हिकमा की मुस्कान पर ऩजरें जमाए हुए ही पूछा।
‘‘मेरे डैड कश्मीरी हैं और मॉम इंग्लिश हैं; डैड को इंडियन खाना बहुत पसंद है, और मॉम को इंडियन कुकिंग नहीं आती थी; इसलिए मॉम कुकिंग बुक्स और मैग़जीन्स में रेसिपी पढ़कर खाना बनाती थीं। घर पर हर वक्त ढेरों कुकिंग बुक्स और मैग़जीन्स होती थीं, उन्हें पढ़-पढ़कर मुझे भी कुकिंग का शौक हो गया।’’
‘‘ओह नाइस।’’ कबीर को अब जाकर हिकमा के गोरे गुलाबी गालों का रा़ज समझ आया।
‘‘तुम भी कुकिंग करते हो?’’ हिकमा ने पूछा।
‘‘मैं बस अंडे उबाल लेता हूँ।’’ कबीर ने हँसते हुए कहा।
‘‘टिपिकल इंडियन बॉय।’’ हिकमा भी हँस पड़ी।
 
कुछ दिनों बाद कबीर के मामा-मामी, यानी समीर के माता-पिता, कुछ दिनों के लिए शहर से बाहर गए, समीर को घर पर अकेला छोड़कर। समीर जब घर पर अकेला होता था, तो घर, घर नहीं रहता था, बल्कि क्लब हाउस होते हुए मैड हाउस बन जाता था। इस बार भी वैसा ही हुआ। समीर ने अपने साथियों को हाउस पार्टी पर अपने घर बुलाया; कबीर तो खैर वहाँ मौजूद था ही। आपको यह जानने की उत्सुकता होगी, कि ब्रिटेन की टीनएज पार्टियों में क्या होता है। टीनएज पार्टियाँ हर जगह एक जैसी ही होती हैं। जब सोलह सत्रह साल के लड़के-लड़कियाँ मिलते हैं, तो वे आपकी और मेरी तरह किस्से सुनते-सुनाते नहीं हैं, बल्कि अपनी सरगर्म हरकतों से किस्से रचते हैं; उस रात भी उस पार्टी में एक ख़ास किस्सा रचा गया।
टीनएज पार्टियों में दो ची़जें अनिवार्य होती हैं; एक तो संगीत, और दूसरी शराब। संगीत वही होता है, जिस पर थिरका जा सके; मगर वैसा संगीत न भी हो तो भी जवान लड़के-लडकियाँ ख़ुद ही अपनी ताल पैदा कर लेते हैं। और जब शराब भीतर जाए, तो फिर वो किसी ताल के मोहता़ज भी नहीं रहते। कुछ ही देर में वे या तो जोड़ों में बँट जाते हैं, या जोड़े बनाने में मशगूल हो जाते हैं, और पार्टी खत्म होते तक कुछ नए जोड़ों की ताल मिल जाती है, और कुछ पुराने जोड़ों की ताल टूट जाती है।
समीर के घर संगीत का इंत़जाम तो पहले से ही था... सोनी का होम थिएटर, बोस के स्पीकर्स के साथ। शराब का इंत़जाम भी उसने कर लिया था। हालाँकि ब्रिटेन में अठारह साल से कम के बच्चों का शराब खरीदना और माता-पिता की म़र्जी के बिना शराब पीना गैर-कानूनी है, मगर समीर ने बिस्मिल, के ज़रिये भारत सरकार की दुकान से शराब मँगा ली थी। वैसे बिस्मिल म़जहबी कारणों से ख़ुद शराब नहीं पीता था; मगर ऊपर से पैसे लेकर गैरकानूनी तरह से शराब बेचने में उसे कोई दिक्कत नहीं थी।
लगभग सात बजे समीर के साथी आना शुरू हुए। सबसे पहले आई टीना। टीना समीर की गर्लफ्रेंड थी। लम्बी गोरी सिक्खनी, यानी पंजाबी सिख लड़की।
‘‘हाय कबीर!’’ टीना ने कबीर को देखकर हाथ आगे बढ़ाया।
कबीर को, टीना को देखकर बहुत कुछ होता था। उसकी धड़कनें ते़ज हो जाती थीं, और आँखें चोरबा़जारी करने लगती थीं; मगर वह टीना से हाथ मिलाने का कोई मौका हाथ से जाने न देता। इस बार भी उसने तपाक से हाथ बढ़ाया, या यूँ कहें कि हाथ ख़ुद-ब-ख़ुद बढ़ गया। मगर टीना का हाथ छूते ही उसकी धड़कनें कुछ इस ते़जी से बढ़ीं, कि उसे लगा कि अगर तुरंत हाथ न हटाया, तो उसका दिल सीने से उछलकर टीना के पैरों में जा गिरेगा। सो हाथ जिस ते़जी से बढ़ा था, उसी ते़जी से पीछे भी आ गया। वैसे उसे ब्रिटेन की लड़कियों में यह बात बहुत अच्छी लगती थी, कि लड़कों से हाथ मिलाने में कोई शर्म या संकोच न करना, और थोड़ी निकटता बढ़ने पर गले मिलने में भी वही तत्परता दिखाना। उस रात की पार्टी से कबीर यही उम्मीद लगाए हुआ था, कि समीर की सखियों से उसकी निकटता गले लगने तक बढ़े।
थोड़ी ही देर में समीर के दूसरे साथी भी आना शुरू हो गए। कुछ जोड़ों में थे और कुछ अकेले थे। जो जोड़ों में थे, उनके हाथ एक दूसरे की बाँहों या कमर में लिपटे हुए थे; और जो अकेले थे, उनके हाथ बोतलों पर लिपटे हुए थे; कुछ शराब की, और कुछ कोकाकोला या स्प्राइट की... जिनके भीतर भी शराब ही थी। जो लड़कियाँ अपने बॉयफ्रेंड के साथ थीं, उन्होंने बहुत छोटे और तंग कपड़े पहने हुए थे; जो लड़कियाँ अकेली थीं, उन्होंने उनसे भी छोटे और तंग कपड़े पहने हुए थे। कबीर ने इतनी सारी, और इतनी खूबसूरत लड़कियों को इतने कम और तंग कपड़ों में अपने इतने करीब पहली बार देखा था। उसे बचपन के वे दिन याद आने लगे, जब वह किसी केक या पेस्ट्री की शॉप में पहुँचकर वहाँ सजी ढेरों रंग-बिरंगी, क्रीमी, प्रूâटी, चॉकलेटी पेस्ट्रियों को देखकर दीवाना हो जाता था और मुँह में भरा पानी कभी-कभी लार के रूप में छलक कर टपक भी पड़ता था; मगर फ़र्क यह होता था, कि वहाँ उसे एक या दो पेस्ट्री खरीद दी जातीं, जो मुँह के पानी में घुलकर उसकी लालसा पूरी कर जातीं; यहाँ उसे अपनी लालसा पूरी करने की ऐसी कोई गुंजाइश नहीं दिख रही थी।
पार्टी शुरू हुई, और युवा ऊर्जा चारों ओर बिखरने लगी। म्यू़िजक लाउड था, और उस पर थिरकते क़दम ते़ज थे। लड़के-लड़कियों के हाथ कभी एक दूसरे की कमर जकड़ते, तो, कभी बियर की बोतल और शराब के प्याले पकड़ने को लपकते। उनके होंठ, शराब के कुछ घूँट भीतर उड़ेलने को खुलते, और फिर जाकर अपने साथी के होंठों पर चिपक जाते। धीरे-धीरे शराब उनके कदमों की ताल बिगाड़ने लगी, और कुछ देर बाद सिर चढ़कर बोलने लगी।
अचानक ही एक लड़का लहराकर फर्श पर गिरा और लोटने लगा। उसे गिरता देख कबीर घबराकर चीख उठा, ‘‘इसे क्या हुआ?’’
‘‘नथिंग; ही जस्ट वांट्स टू लुक अंडर गल्र्स स्कट्र्स।’’ समीर ने हँसते हुए कहा।
‘‘व्हाट कलर आर हर पैंटी़ज, टेल मी व्हाट कलर आर हर पैंटी़ज, ब्लैक इस सेक्सी, सेक्सी, ब्लू इस क्रे़जी, क्रे़जी...।’’ नशे में धुत एक लड़के ने गाना शुरू किया।
‘‘गाए़ज स्टॉप दिस, आई नीड टॉयलेट।’’ अचानक टीना की चीखती हुई आवा़ज आई।
‘‘ओए! किसी को टॉयलेट आ रही हो तो इसे दे दो; शी नीड्स टॉयलेट।’’ एक सिख लड़के ने ठहाका लगाया।
‘‘शटअप! देयर इ़ज समवन इन द टॉयलेट फॉर पास्ट ट्वेंटी मिनट्स।’’ टीना फिर से चीखी।
‘‘आर यू होल्डिंग योर पी फॉर ट्वेंटी मिनट्स? गाए़ज, लेट्स हैव ए होल्ड योर पी चैलेन्ज।’’ सिख लड़के ने बाएँ हाथ से अपनी टाँगों के बीच इशारा किया।
‘‘टीना, पिस ऑन दिस गाए।’’ किसी ने फ़र्श पर लोट रहे लड़के की ओर इशारा किया, ‘‘ही है़ज फेटिश फॉर गल्र्स पिसिंग ऑन हिम।’’
फ़र्श पर लोटता हुआ लड़का, पीठ के बल सरकते हुए टीना के पैरों के पास पहुँचा और गाने लगा, ‘‘पिस ऑन माइ लिप्स एंड टेल मी इट्स रेनिंग, पिस ऑन माइ लिप्स एंड टेल मी इट्स रेनिंग...।’’
‘‘पिस आ़फ्फ।’’ टीना ने उसके बायें कंधे को ठोकर मारी, और दौड़ती हुई किचन के रास्ते से बैकगार्डन की ओर भागी।
 
इसी बीच कबीर को भी ज़ोरों से पेशाब लगी। दो चार बार टॉयलेट का दरवा़जा खटखटाने के बाद भी जब भीतर से दरवा़जा न खुला तो वह भी बैकगार्डन की ओर भागा। गार्डन में अँधेरे में डूबी शांति थी। भीतर के शोर शराबे के विपरीत, बाहर की शांति, कबीर को का़फी अच्छी लगी। हल्की मस्ती से चलते हुए, बाएँ किनारे पर एक घनी झाड़ी के पास पहुँचकर उसने जींस की ज़िप खोली और अपने ब्लैडर का प्रेशर हल्का करने लगा।
‘‘हे, हू इ़ज दिस इडियट? व्हाट आर यू डूइंग?’’ झाड़ी के पीछे से किसी लड़की की चीखती हुई आवा़ज आई।
कबीर ने झाड़ी के बगल से झाँककर देखा, पीछे टीना बैठी हुई थी। उसकी स्कर्ट कमर पर उठी हुई थी, और पैंटी घुटनों पर सरकी हुई थी। कबीर की ऩजरें जाकर उसके क्रॉच पर जम गर्इं, और उसकी जींस की ज़िप से बाहर लटकता उसका ‘प्राइवेट’ तन कर कड़ा हो गया।
‘‘लुक, व्हाट हैव यू डन इडियट।’’ टीना ने अपने सीने की ओर इशारा किया। कबीर ने देखा कि टीना के टॉप के ऊपर के दो बटन खुले हुए थे, और उसके स्तन भीगे हुए थे।
‘‘यू हैव वेट मी विद योर पिस, कम हियर।’’ टीना ने गुस्से से कहा।
कबीर घबराता हुआ टीना की ओर बढ़ा। अचानक उसका पैर झाड़ी में अटका और वह लड़खड़ाकर टीना के ऊपर जा गिरा। इससे पहले कि कबीर सँभल पाता, टीना ने उसके गले में बाँहें डालते हुए उसके चेहरे को खींचकर अपने दोनों स्तन के बीच दबा लिया।
‘‘नाउ सक योर पिस ऑफ़्फ माइ ब्रेस्ट्स।’’ टीना के होठों से हँसी फूट पड़ी।
कबीर के होश तो पूरी तरह उड़ गए। यह एक ऐसा अनुभव था, जिसकी तुलना किसी और अनुभव से करना मुमकिन नहीं था। एक पल को कबीर को ऐसा लगा मानो उसके चेहरे पर कोई मुलायम कबूतर फड़फड़ा रहा हो, जिसके रेशमी पंख उसके गालों को सहलाते हुए उसे अपने साथ उड़ा ले जाना चाहते हों; या फिर उसने अपना चेहरा किसी सॉफ्ट-क्रीमी पाइनएप्पल केक में धँसा दिया हो, जिसकी क्रीम से निकलकर पाइनएप्पल का मीठा जूस उसके होंठों को भिगा रहा हो। मगर कबीर उन तमाम तुलनाओं के ख़यालों को एक ओर सरकाकर, उस वक्त के हर पल की अनुभूति में डूब जाना चाहता था। वैसा सुखद, वैसा खूबसूरत, उससे पहले कुछ और नहीं हुआ था। अचानक टीना ने उसके प्राइवेट को जींस की खुली हुई ज़िप से बाहर खींचते हुए अपने हाथों में कसकर पकड़ लिया। कबीर घबरा उठा। उसे ठीक से समझ नहीं आया कि क्या हो रहा था। टीना के हाथ उसके प्राइवेट को जकड़े हुए थे। उसके होंठ टीना के सीने पर जमे हुए थे। सब कुछ बेहद सुखद था, मगर कबीर के पसीने छूट रहे थे। उस पल में आनंद तो था, मगर उससे भी कहीं अधिक, अज्ञात का भय था। अज्ञात का भय, आनंद के मार्ग की बहुत बड़ी रुकावट होता है; मगर उससे भी बड़ी रुकावट होता है मनुष्य का ख़ुद को उस आनंद के लायक न समझना। कबीर को यह विश्वास नहीं हो रहा था, कि जो हो रहा था वह कोई सपना न होकर एक हक़ीक़त था, और वह उस हक़ीक़त का आनंद लेने के लायक था। उसे चुनना था कि वह उस आनंद के अज्ञात मार्ग पर आगे बढ़े, या फिर उससे घबराकर या संकोच कर भाग खड़ा हो। कबीर के भय और संकोच ने भागना चुना। टीना की पकड़ से ख़ुद को छुड़ाता हुआ वह भाग खड़ा हुआ।
 
चैप्टर 6
कबीर के अगले कुछ दिन बेहद बेचैनी में बीते। जो हुआ, वह अचरज भरा था; जो हो सकता था वह कल्पनातीत था। कबीर ने सेक्स के बारे में पढ़ा था; का़फी कुछ सुन भी रखा था, फिर भी जो कुछ भी हुआ वह उसे बेहद बेचैनी दे रहा था। जिस समाज से वह आया था, वहाँ सेक्स, टैबू था; जिस परिवेश में वह रह रहा था, वहाँ भी सेक्स टैबू ही था। सेक्स के बारे में वह सि़र्फ समीर से बात कर सकता था; मगर वह समीर से बात करने से भी घबरा रहा था। उसे घबराहट थी कि कहीं समीर के सामने वह टीना के साथ हुई घटना का ज़िक्र न कर बैठे; इसलिए अगले कुछ दिन वह समीर से भी किनारा करता रहा। जब सेक्स, जीवन में न हो तो वह ख़्वाबों में पुऱजोर होता है। कबीर के ख़याल भी सेक्सुअल फैंटेसियों से लबरे़ज हो गए। पैंâटेसी में पलता प्रेम और सेक्स हक़ीक़त में हुए प्रेम और सेक्स से कहीं अधिक दिलचस्प होता है। फैंटेसियों को ख़ुराक भी हक़ीक़त की दुनिया से कहीं ज़्यादा, किस्सों और अ़फसानों की दुनिया से मिलती है। कबीर की फैंटेसियाँ भी फिल्मों, इन्टरनेट और किताबों की दुनिया से ख़ुराक पाने लगीं। पर्दों और पन्नों पर रचा सेक्स, चादरों पर हुए सेक्स से कहीं अधिक रोमांच देता है। कबीर को भी इस रोमांच की लत लगने लगी।
फिर आई नवरात्रि। नवरात्रि की जैसी धूम वड़ोदरा में होती है, उसकी लंदन में कल्पना भी नहीं की जा सकती; मगर लंदन में भी कुछ जगहों पर गरबा और डाँडिया नृत्य के प्रोग्राम होते हैं, और कबीर को उनमें जाने की गहरी उत्सुकता थी। अपनी जड़ों से ह़जारों मील दूर, पराई मिट्टी पर उसकी अपनी संस्कृति कैसे थिरकती है, इसे जानने की इच्छा किसे नहीं होगी। अगली रात कबीर, समीर के साथ गरबा/डाँडिया करने गया। अंदर, डांस हॉल में जाते ही कबीर ने समीर के कुछ उन साथियों को देखा, जो उस दिन उसकी पार्टी में भी आए थे। समीर के साथियों से हाय-हेलो करते हुए ही अचानक कबीर की ऩजर मिली टीना से। टीना से ऩजरें मिलते ही कबीर का दिल इतनी ज़ोरों से धड़का, कि अगर डांस हॉल में तबले और ढोल के बीट्स गूँज न रहे होते, तो उसके दिल की धड़कनें ज़रूर टीना के कानों तक पहुँच जातीं।
‘‘हेलो कबीर!’’ टीना ने सहजता से मुस्कुराकर अपना हाथ कबीर की ओर बढ़ाया।
मगर कबीर की टीना से न तो हाथ मिलाने की हिम्मत हुई, और न ही ऩजरें। ऩजरें नीची किए हुए उसने बड़ी मुश्किल से हेलो कहा, और ते़जी से वहाँ से खिसककर डांस करते लड़कों की टोली में घुस गया।
लंदन का डाँडिया लगभग वैसा ही था, जैसा कि वड़ोदरा का होता था। अधिकांश लोग पारंपरिक भारतीय/गुजराती वेशभूषा में ही थे। संगीत भी परंपरागत, आंचलिक और बॉलीवुड का मिला-जुला था। कबीर को यह देखकर भी सुखद आश्चर्य हुआ, कि ब्रिटेन में पैदा हुए और पले-बढ़े युवक-युवतियाँ भी संगीत और नृत्य की बारीकियों को समझते हुए, सधे और मँझे हुए स्टेप्स कर रहे थे। उस दिन की, समीर और उसके साथियों की पार्टी के म्यू़िजक और डांस, और आज के नृत्य-संगीत की कोई तुलना ही नहीं थी। कहाँ, शराब के नशे में कानफाड़ू संगीत पर बेहूदगी से मटकते अद्र्धनग्न जिस्म, और कहाँ भक्ति-रस में डूबे संगीत पर सभ्यता से थिरकती देहें। वातावरण और परिवेश, इंसान में कितना फर्क ले आते हैं।
मगर उस रात की पार्टी की तरह ही टीना और समीर एक जोड़ी में ही डांस करते रहे। कबीर की ऩजर बार-बार उन पर जाती रही, और टीना की ऩजरों से चोट खाकर पलटती रही। उस वक्त कबीर को जो बात सबसे ज़्यादा खल रही थी, वह थी टीना की मुस्कान। पता नहीं वह टीना की बेपरवाही थी या बेशर्मी; मगर कबीर उससे वैसी सहज मुस्कान की अपेक्षा नहीं कर रहा था, जैसे कि कुछ हुआ ही न हो; जैसे, टीना को उस रात की गई अपनी बेशर्मी का कोई अहसास ही न हो। जो भी हो, वह उसके बड़े भाई की गर्लफ्रेंड थी; वह उसके साथ वैसी बेशर्मी कैसे कर सकती थी? शायद वैसा शराब के नशे की वजह से हुआ हो, मगर फिर भी उसे उसका कुछ पछतावा तो होना चाहिए। क्या टीना को अपने किए का कोई अहसास या पछतावा नहीं है? क्या वह ख़ुद ही बेकार अपने मन पर बोझ डाल रहा है? क्या होता यदि वह वहाँ से भाग खड़ा न होता? कम से कम आज टीना से ऩजरें मिलाने लायक तो होता। कबीर को ये सारे ख़याल परेशान करते रहे; कुछ इस कदर, कि उससे वहाँ और नहीं रहा गया; समीर को बिना बताए वह घर लौट आया।
अगली सुबह कबीर बेचैन सा रहा। बड़े बेमन से स्कूल गया। क्लास में मन लगाना कठिन था। कभी पिछली रात की टीना की मुस्कान तंग करती तो कभी टीना के साथ हुई घटना की यादें। लंचटाइम में भी कबीर यूँ ही बेचैन सा अकेला बैठा था। खाने का भी कुछ ख़ास मन न था, कि अचानक उसके चेहरे पर ख़ुशी तैर आई। ख़ुशी की लहर लाने वाली थी हिकमा, जो उसके सामने खड़ी थी।
‘‘हाय कबीर! कैन आई ज्वाइन यू?’’ हिकमा ने कबीर से कहा।
‘‘ओह या..श्योर।’’
‘‘लुकिंग अपसेट!’’ टेबल पर अपने खाने की प्लेट रखकर, कबीर के सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए हिकमा ने पूछा।
‘‘नो, जस्ट टायर्ड।’’
‘‘क्या हुआ?’’
‘‘नवरात्रि है न, कल देर रात तक डांस किया था।’’ कबीर ने झूठ बोला।
‘‘ओह डाँडिया डांस! इट्स फन, इ़जंट इट?’’
‘‘चलोगी डाँडिया करने?’’ कबीर अनायास ही पूछ बैठा।
‘‘कब?’’
‘‘आज रात को।’’
‘‘ओह नो, इट्स लेट इन नाइट, आई कांट गो।’’
‘‘चलो न, म़जा आएगा; वहाँ बटाटा वड़ा भी मिलता है।’’
बटाटा वड़ा सुनकर हिकमा के चेहरे पर हँसी आ गई।
‘‘ठीक है मैं घर में पूछती हूँ, कांट प्रॉमिस।’’
‘‘एंड आई कांट वेट।’’ कबीर ने मुस्कुराते हुए कहा।
उस शाम हिकमा आई। उसने गहरे जामुनी रंग की सलवार कमी़ज पहनी हुई थी जो उसके गोरे बदन पर बहुत खूबसूरत लग रही थी। सिर पर खूबसूरत सा रंग-बिरंगा स्कार्फ बाँधा हुआ था। हिकमा का आना कबीर के लिए ख़ास था। उसके आने का मतलब था कि उसे कबीर की परवाह थी। उसके आने का मतलब यह भी था कि उस शाम कबीर ख़ुद को अकेला या उपेक्षित महसूस करने वाला नहीं था।
हिकमा को डाँडिया नृत्य कुछ ख़ास नहीं आता था। कबीर को उसके साथ ताल-मेल बिठाने में मुश्किल हो रही थी। दूसरी ओर समीर और टीना की जोड़ी मँझी हुई जोड़ी थी। हिकमा के साथ डांस करते हुए भी कबीर की ऩजर रह-रह कर टीना की ओर जाती और उसकी बेपरवाह मुस्कान से टकराकर वापस लौट आती। मगर आज कबीर भी इरादा करके आया था कि वह उस बेपरवाही का जवाब बेपरवाही से ही देगा। और फिर आज उसका सहारा थी हिकमा। मगर चाहते हुए भी कबीर वैसा बेपरवाह नहीं हो पा रहा था, और अपनी बेपरवाही जताने के लिए उसे बार-बार हिकमा के और भी करीब जाना पड़ रहा था। हिकमा को कबीर का करीब आना शायद अच्छा लगता, अगर उसमें कोई सहजता होती; मगर उसे लगातार यह अहसास हो रहा था कि कबीर सहज नहीं था। टीना की ओर उठती उसकी ऩजरों का भी उसे अहसास था।
 
कुछ देर बाद ब्रेक हुआ। हिकमा को थोड़ी राहत महसूस हुई। एक तो उसे डाँडिया नृत्य अच्छी तरह नहीं आता था; उस पर कबीर की बेचैनी। तभी उसने टीना को उनकी ओर आता देखा। हिकमा को अहसास था कि टीना ही वह लड़की थी, जिसकी ओर कबीर की ऩजरें रह-रहकर जा रही थीं।
टीना के करीब आते ही कबीर का दिल ज़ोरों से धड़का, जिसकी आवा़ज शायद हिकमा को भी सुनाई दी हो; और यदि न भी सुनाई दी हो, तो भी उसे कबीर के माथे पर उभर आर्इं पसीने की बूंदें ज़रूर दिखाई दी होंगी।
‘‘हेलो कबीर!’’ टीना ने मुस्कुराकर कबीर से कहा। कबीर को फिर उसकी मुस्कुराहट खली... वही बेपरवाह मुस्कान।
‘हेलो!’ कबीर ने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा।
‘‘दिस इ़ज हिकमा।’’ फिर उसी बेबस सी मुस्कान से उसने हिकमा का परिचय कराया।
‘हाय!’ हिकमा ने भी मुस्कुराकर टीना से कहा।
‘‘हाय, आई एम टीना!’’ टीना ने उसी सहज मुस्कान से कहा, ‘‘यू हैव ए वेरी प्रिटी गर्लफ्रेंड कबीर।’’
‘गर्लफ्रेंड’ शब्द हिकमा के लिए चौंकाने वाला था। तब तक उसने कबीर के बारे में ऐसा कुछ भी नहीं सोचा था; और यदि सोचा भी हो, तो भी वह सोच किसी सम्बन्ध में तब तक नहीं ढल पाई थी।
कबीर के चेहरे पर बेबसी के भाव थे। उससे कुछ भी कहते न बना; बस मुस्कुराकर रह गया।
‘‘कबीर, आई हैव टू गो; इट्स गेटिंग लेट नाउ।’’ हिकमा ने कहा।
कबीर उससे रुकने के लिए भी न कह पाया। बस उसी बेबस मुस्कान से उसने मुस्कुराकर हिकमा को बाय कहा, और ख़ुद भी घर लौट आया।
चैप्टर 7
‘‘क्या तुम मुझे इसलिए ले गए थे, कि तुम शो कर सको कि तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है?’’ अगले दिन हिकमा ने कबीर से थोड़ी तल़्ख आवा़ज में पूछा।
‘‘नहीं नहीं, ऐसा कुछ नहीं है।’’ कबीर ने बेचैन और घबराई हुई आवा़ज में कहा।
‘‘तो फिर तुमने टीना से यह क्यों नहीं कहा कि हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है।’’
‘‘सॉरी, उस वक्त मुझे समझ ही नहीं आया कि क्या कहूँ।’’ कबीर ने सफाई दी।
‘‘ओके, लेट्स फॉरगेट इट; मगर कबीर, मुझे इस तरह का शो-ऑ़फ पसंद नहीं है।’’
‘‘मैं ध्यान रखूँगा।’’ कबीर ने ऩजरें झुकाते हुए कहा।
हिकमा के जाने के बाद कबीर कुछ गुमसुम सा बैठा था, तभी कूल ने पीछे से आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर पूछा, ‘‘व्हाट्स अप मेटी।’’
‘‘कुछ नहीं यार।’’ कबीर ने बिना मुड़े ही जवाब दिया।
‘‘हिकमा के बारे में सोच रहा है?’’ कूल ने थोड़ी शरारत से पूछा।
‘‘नहीं, बस ऐसे ही।’’
‘‘कल उसे डाँडिया डांस में ले गया था?’’ कूल ने आँखें मटकाईं।
‘‘हाँ।’’
‘‘फिर क्या हुआ?’’ कूल ने उत्सुकता से पूछा।
‘‘कुछ नहीं।’’
‘‘कुछ नहीं? तू उससे कहता क्यों, नहीं कि तू उसे पसंद करता है?’’
‘‘मगर कहूँ कैसे? कोई बहाना तो होना चाहिए न।’’
‘‘बहाना है।’’ कूल ने चुटकी बजाते हुए कहा।
‘‘क्या?’’ कबीर की आँखों में उत्सुकता जगी.
‘‘मिसे़ज बिरदी ने एक नई पहल की है, स्टूडेंट्स का कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए। इसमें किसी भी स्टूडेंट को किसी दूसरे स्टूडेंट के बारे में जो भी अच्छा लगे, उसे एक काग़ज पर लिखकर, बिना अपना नाम लिखे, चुपचाप उसके बैग में डाल देना है; इससे स्टूडेंट्स को हौसला मिलेगा, और उनका कॉन्फिडेंस बढ़ेगा।’’
‘‘और किसी ने कोई खराब बात लिखी या शरारत की तो?’’ कबीर ने शंका जताई।
‘‘इसीलिए तो नोट हाथ से लिखा होना चाहिए; अगर किसी ने शरारत की तो उसकी हैंडराइटिंग से पता चल जाएगा।’’
‘‘मगर इसमें मुझे क्या करना होगा?’’
‘‘तू एक काग़ज में हिकमा की बहुत सी तारी़फ लिखकर उसके बैग में डाल दे; लड़कियों को अपनी तारी़फ पसंद होती है, और तारी़फ करने वाला भी पसंद आता है।’’
‘‘मगर उसे कैसे पता चलेगा कि तारी़फ मैंने लिखी है? वह काम तो चुपचाप करना है; उस पर अपना नाम तो लिखना नहीं है।’’ कबीर आश्वस्त नहीं था।
‘‘तू अपने नोट में कुछ क्लू डाल देना, जिससे हिकमा को अंदा़ज हो जाए कि मैसेज तूने ही लिखा है।’’ कूल ने सुझाव दिया।
‘‘कैसा क्लूू?’’
‘‘तुझे हिकमा ने थप्पड़ क्यों मारा था?’’
‘‘क्योंकि मैंने उसका नाम ग़लत लिया था; थैंक्स टू यू।’’ कबीर का हाथ अचानक उसके गाल पर चला गया।
‘‘बस एक क्लू उसके नाम को लेकर डाल देना; ऐसे ही एक-दो और क्लू डाल देना, वह समझ जाएगी।’’
‘‘यार, तू फिर से थप्पड़ तो नहीं पड़वाएगा?’’ कबीर की शंका गई नहीं थी।
‘‘नो यार; दैट वा़ज ए जोक, बट दिस इस ए सीरियस मैटर।’’ कूल ने कबीर को आश्वस्त किया।
 
कबीर को कूल का आइडिया अच्छा लगा। अगर हिकमा को कोई क्लू समझ नहीं आया, तो भी कोई बुराई नहीं थी। बिल्कुल निरापद तरीका था। हा़फटाइम में कबीर ने बड़ी मेहनत से सोच-समझकर, एक खूबसूरत सा नोट हिकमा के नाम लिखा, और चुपके से उसके बैग में डाल दिया। लौटते हुए उसे कूल दिखाई दिया। कूल ने मुट्ठी बाँधकर उसे अँगूठा दिखाते हुए पूछा, ‘डन?’
कबीर ने भी उसी तरह अँगूठा दिखाते हुए चहककर कहा, ‘डन।’
कबीर की वह रात बड़ी बेसब्री में गु़जरी।
अगली सुबह बैग तैयार करते हुए, हिकमा को उसमें यह हैंडरिटन नोट मिला –
हिकमा! तुम्हारे बारे में मैं क्या लिखूँ; पहली बात तो मुझे तुम्हारा नाम बहुत पसंद है... हिकमा, विच मीन्स विज़्डम। कितना सुंदर नाम है न! उतना ही सुंदर, जितनी कि तुम ख़ुद हो, जितनी कि तुम्हारी मीठी नीम सी मीठी मुस्कान है। शेक्सपियर ने भले कहा हो, व्हाट इ़ज देयर इन ए नेम, मगर तुम, तुम्हारे नाम की तरह ही हो, सिंपल और वाइ़ज। हिकमा, तुम्हें सादगी पसंद है, और तुम शो-ऑ़फ से दूर रहती हो; तुम्हारी सादगी की गवाही देता है तुम्हारा सादा रूप, और उसे थामा हुआ तुम्हारा हेडस्का़र्फ। द एपिटोम ऑ़फ योर मॉडेस्टी। इस सादगी और मॉडेस्टी को हमेशा बरकरार रखो... ऑल द बेस्ट।
हिकमा को उसकी ये खूबसूरत प्रशंसा बहुत पसंद आई, और उसे यह समझते भी देर न लगी, कि ये प्रशंसा किसने लिखी थी। उसे कबीर के साथ अपने किए हुए व्यवहार पर दुःख भी हुआ। उस दिन वह कबीर को सॉरी कहने के इरादे से स्कूल गई।
कबीर तो पिछली रात से ही कई उम्मीदें पाले हुए था। उन्हीं उम्मीदों में मचलता हुआ, वह उस सुबह स्कूल गया। स्कूल पहुँचते ही उसने देखा कि नोटिस बोर्ड के पास बहुत से छात्र जमा थे। उसे भी उत्सुकता हुई। जैसे ही वह उन छात्रों के करीब पहुँचा, उनमें से कुछ उसे देखकर हँसने लगे। कबीर को उनका हँसना का़फी भद्दा लगा, और उस हँसी का कारण जानने की उत्सुकता भी बढ़ी। नोटिस बोर्ड के पास जाकर देखा, तो वहाँ पास ही दीवार में कबीर के, हिकमा को लिखे नोट की फ़ोटोकॉपी चिपकी हुई थी, और उसके नीचे बड़े-बड़े और टेढ़े-मेढ़े अक्षरों में लिखा हुआ था, बटाटा वड़ा। कबीर को तुरंत समझ आ गया कि ये हरकत कूल की थी। हालाँकि वह सर्दी का वक्त था, मगर कबीर का पारा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था। उसने गुस्से से उबलते हुए, कूल को ढूँढ़ना शुरू किया, मगर तभी पहले पीरियड की घंटी बज गई। कबीर गुस्से से तमतमाया क्लासरूम की ओर बढ़ा। क्लासरूम के दरवा़जे पर उसकी ऩजर कूल और हैरी पर पड़ी। कबीर ने कूल को गुस्से से घूरकर देखा; जवाब में कूल ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए उसकी ओर एक बेशर्म मुस्कान फेंकी, जिसने कबीर के गुस्से और भी भड़का दिया। कबीर, झपटकर कूल की बेशर्म बत्तीसी तोड़ डालना चाहता था, मगर तब तक मिसे़ज बिरदी, क्लासरूम में पहुँच चुकी थीं। मिसे़ज बिरदी को देखते ही सभी छात्र अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए... कबीर, कूल और हैरी भी।
मिसे़ज बिरदी ने पूरी क्लास पर एक कठोर निगाह डाली, और फिर आँखें तरेरते हुए पूछा, ‘‘हू इ़ज दिस बटाटा वरा?’’
मिसे़ज बिरदी के बटाटा वरा कहते ही सभी छात्र हँसकर कबीर की ओर देखने लगे। कबीर ने एक बार फिर गुस्से से कूल को देखा, और मिसे़ज बिरदी ने उन दोनों को।
‘‘इ़ज दिस सम सॉर्ट ऑ़फ ए प्रैंक?’’ मिसे़ज बिरदी ने एक बार फिर कठोर आवा़ज में पूछा।
कबीर और कूल ने अपनी ऩजरें झुका लीं। कबीर का मन किया कि वह कूल की शिकायत करे; मगर इससे उसके ख़ुद के फँस जाने का डर था। उसने मिसे़ज बिरदी के प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया।
‘‘दिस इ़ज योर फर्स्ट टाइम, सो आई विल लेट यू ऑ़फ, बट आई वार्न द होल क्लास, दैट दिस काइंड ऑ़फ एक्टिविटी शुड नॉट हैपन अगेन।’’ मिसे़ज बिरदी ने उन्हें वार्निंग देकर छोड़ दिया।
मगर कबीर का गुस्सा शांत नहीं हुआ था। पूरे पीरियड वह कूल को गुस्से से घूरता रहा। पहले पीरियड के बाद के ब्रेक में उसने दौड़कर कूल को पकड़ा, और चिल्लाकर पूछा, ‘‘व्हाई डिड यू डू दिस?’’
‘‘व्हाट? आई हैव नॉट डन एनीथिंग।’’ कूल ने अपने कंधे झटके।
‘‘तूने उस नोट की कॉपी करके वॉल पर नहीं लगाया?’’ कबीर का गुस्सा और भी बढ़ चुका था।
‘‘नोट तो तूने हिकमा को लिखा था; वह मुझे कैसे मिलेगा?’’
‘‘तूने उसके बैग से निकाला होगा; उस नोट के बारे में सि़र्फ तुझे ही पता था।’’
‘‘और हिकमा? नोट तो उसके नाम था।’’
‘‘ऐ, हिकमा को बदनाम मत कर।’’ कबीर चीख उठा।
‘‘हूँ, बहुत प्यार है उससे, तो सीधे-सीधे जाकर बोलता क्यों नहीं? यू आर सच ए पुस्सी।’’ कूल ने ताना मारा।
कबीर को कूल का उसे डरपोक कहना चुभ गया। अहम पर लगी चोट सबसे गहरी होती है, और ख़ासतौर पर जब वह अहम के सबसे कम़जोर हिस्से पर लगी हो; कबीर के गुस्से का ठिकाना न रहा। कूल पर कूदते हुए कबीर ने उसकी टाई खींची, और घुमाकर कूल को ज़मीन पर पटकनी दी। ज़मीन पर गिरते ही कूल भी गुस्से से भर उठा। अभी तक तो वह सि़र्फ अपनी बेहूदी शरारतों से ही कबीर को पटकनी दे रहा था, मगर इस बार उसने उठते हुए कबीर की कमर दबोची, और उसे उठाकर ज़मीन पर पटका। कूल कबीर से तगड़ा था, कूल की पटकनी भी ज्यादा तगड़ी थी। कबीर को ज़ोरों की चोट लगी, और कूल उसके ऊपर चढ़ बैठा। कबीर असहाय सा कूल को अपने ऊपर से उठाने की कोशिश करता रहा, और कूल उसे अपने नीचे दबोचे उसकी बाँहें मरोड़ता रहा।
‘‘क्या छोटे बच्चों की तरह लड़ रहे हो; उठो यहाँ से!’’ एक गुस्से से भरी आवा़ज आई। कबीर ने ऩजरें उठाकर देखा, सामने हिकमा खड़ी थी। उसका चेहरा गुस्से से भरा था, जिसके असर में उसके गालों का लाल रंग और भी गहरा लग रहा था। हिकमा की आवा़ज सुनते ही कूल, कबीर को छोड़कर उठ खड़ा हुआ। कबीर उठकर हिकमा से कुछ कहना चाहता था, मगर हिकमा को यूँ गुस्से से उसे घूरता देख उसकी हिम्मत न हुई। कुछ देर यूँ ही कबीर को गुस्से से घूरने के बाद हिकमा पलटकर चली गई। कबीर, बेबस सा उसे जाते हुए देखता रहा।
 
यह खबर पूरे स्कूल में फैल गई कि कबीर और कूल के बीच हाथापाई हुई, हिकमा को लेकर। कबीर और कूल पर तो डिसप्लनेरी एक्शन हुआ ही, मगर साथ ही हिकमा का भी म़जाक उड़ा। उसके बाद हिकमा कबीर से कटी-कटी रहने लगी। जब भी कबीर और हिकमा की ऩजरें मिलतीं, हिकमा ऩजर फेरकर निकल जाती। कबीर को लगा कि उसने हिकमा के करीब जाने की कोशिश में आपसी दूरी बढ़ा ली। इससे अच्छी तो उनकी दोस्ती ही थी; कम से कम बातचीत तो होती थी, निकटता तो बनी हुई थी। क्या वह हिकमा से जाकर कहे, कि जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाए; दे कैन बी फ्रेंड्स अगेन; जस्ट फ्रेंड्स। मगर यह जस्ट फ्रेंड्स क्या संभव है? उसके मन में हिकमा के लिए जो अहसास हैं, वे चले तो नहीं जाएँगे।
चैप्टर 8
कुछ दिनों बाद कबीर ने एक अजीब सा सपना देखा। सपने वैसे अजीब ही होते हैं। हमारे बाहरी यूनिवर्स में स्पेस-टाइम कर्वचर स्मूद होता होगा, मगर सपनों के यूनिवर्स में स्पेस और टाइम नूडल्स की तरह उलझे होते हैं, या फिर किसी रोलर कोस्टर की तरह ऊपर-नीचे आएँ-बाएँ दौड़ रहे होते हैं। कबीर के सपनों में एक ख़ास बात ये होती थी कि हालाँकि उसके दिन के सपने पूरे ग्लोब का चक्कर लगाने के थे, मगर उसकी रातों के सपनों में वड़ोदरा ही जमा हुआ था। लंदन तब तक उसके सपनों में घुसपैठ नहीं कर पाया था; हाँ लंदन वालों की घुसपैठ ज़रूर शुरू हो गई थी।
सपने में कबीर, वड़ोदरा में डाँडिया खेल रहा था। उसके साथ डाँडिया खेल रही थी हिकमा। उसने हरे रंग का गुजराती स्टाइल का घाघरा-चोली पहना हुआ था। उसके बाल खुले हुए थे, जिनकी बिखरी हुई लटें बार-बार उसके लाल गालों से टकरा रही थीं। डाँडिया की धुन पर उसका छरहरा बदन खुलकर लहरा रहा था, और उसके बदन की लय पर कबीर का मन थिरक रहा था। दोनों में अच्छा तालमेल था। वह शायद कबीर की ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत सपना था, या फिर उसके सपने को अभी और खूबसूरत होना था। अचानक डाँडिया की टोली में उसे टीना दिखाई दी। टीना ने ठीक उस दिन की पार्टी की तरह ही काले रंग की मिनी स्कर्ट और उसके ऊपर क्रीम कलर का टॉप पहना हुआ था।
कबीर की ऩजरें बार-बार टीना की ओर जा रही थीं, और हिकमा को इसका अहसास हो रहा था। अचानक हिकमा ने कबीर से कहा, ‘‘कबीर, मुझे भूख लग रही है।’’
‘‘क्या खाओगी?’’ कबीर ने टीना से ऩजर हटाकर हिकमा से पूछा।
‘‘जो भी तुम खिला दो।’’
‘‘बटाटा वड़ा?’’
‘‘हाँ चलेगा।’’
कबीर और हिकमा वहाँ से हटकर बटाटा वड़ा की तलाश में निकल पड़े। रात का़फी हो चुकी थी, बहुत सी दुकानें बंद हो चुकी थीं। सड़क लगभग सुनसान थी। अचानक कबीर को अपने पीछे एक आवा़ज सुनाई दी, ‘‘हे बटाटा वड़ा!’’
उसने मुड़कर देखा। पीछे कूल और हैरी दिखाई दिए। कबीर ने मुँह फेरकर उन्हें ऩजरअंदा़ज किया और हिकमा का हाथ थामकर आगे बढ़ चला।
‘‘मुझे बटाटा वड़ा नहीं खाना।’’ कबीर ने हिकमा से कहा।
‘क्यों?’ हिकमा ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘बस ऐसे ही।’’
‘‘तो क्या खाओगे?’’
‘‘कुछ भी, मगर बटाटा वड़ा नहीं।’’
वे थोड़ा और आगे बढ़े। आगे एक फिश एंड चिप्स की दुकान दिखाई दी।
‘‘फिश एंड चिप्स खाओगे?’’ हिकमा ने पूछा।
‘‘हाँ चलेगा।’’ कहते हुए कबीर हिकमा का हाथ थामे फिश एंड चिप्स की दुकान के भीतर दाखिल हुआ। भीतर जाते ही उसे एक सुखद आश्चर्य हुआ। भीतर लूसी बैठी थी; सेक्सी लूसी, अकेली; फिश एंड चिप्स खाते हुए। कबीर एकबारगी हिकमा को भूल गया। हिकमा का हाथ छोड़कर वह लूसी के बगल में बैठ गया।
‘‘कबीर बॉय... हैव सम चिप्स।’’ लूसी ने कबीर को अपनी प्लेट से चिप्स ऑ़फर किया।
‘‘थैंक यू।’’ कहकर कबीर ने प्लेट से एक चिप उठाया।
फटाक! इससे पहले कि वह चिप अपने मुँह में डाले, उसके बाएँ कंधे पर एक छड़ी पड़ी। कबीर ने घबराकर ऩजरें उठार्इं। उसे सामने एक लेदर सो़फे पर हिकमा बैठी दिखाई दी। डाँडिया की एक छड़ी उसने अपने दायें हाथ में पकड़ी हुई थी। इस बार हिकमा ने स्कूल यूनिफार्म पहनी हुई थी। ग्रे स्कर्ट, वाइट टॉप, ब्लू ब्ले़जर; सिर पर रंग-बिरंगा डि़जाइनर स्का़र्फ बाँधा हुआ था। कबीर उसके पैरों के पास घुटनों के बल बैठा हुआ था, हाथ पीछे बाँधे हुए, गर्दन झुकाए।
‘‘कबीर, क्या तुम्हें लूसी मुझसे ज़्यादा पसंद है?’’ हिकमा ने गुस्से से पूछा।
‘‘सॉरी मैडम।’’ कबीर ने घबराते हुए कहा।
‘‘सॉरी? मतलब वह तुम्हें मुझसे ज़्यादा पसंद है?’’ हिकमा ने उसकी बायीं बाँह पर छड़ी मारी।
‘‘नो मैडम।’’ कबीर की आवा़ज लड़खड़ाने लगी।
‘‘तो फिर तुमने लूसी के लिए मुझे इग्नोर करने की हिम्मत कैसे की?’’
‘‘सॉरी मैडम।’’ कबीर का चेहरा शर्म और अपराधबोध से लाल होने लगा।
‘‘कबीर बॉय डू यू फैंसी मी?’’ अब हिकमा की जगह लूसी ने ले ली।
‘‘यस मैडम।’’
‘‘डू यू वांट टू बी माइ स्लेव?’’
‘‘यस मैडम।’’
‘‘से इट।’’
‘‘आई वांट टू बी योर स्लेव मैडम।’’
‘‘कबीर यू आर माइ स्लेव।’’ अब वहाँ टीना आ गई।
‘‘नो कबीर, यू आर माइ स्लेव।’’ कबीर के कंधे पर हिकमा की छड़ी पड़ी।
‘‘नो कबीर, यू आर माइ स्लेव।’’ लूसी।
‘‘नो कबीर...।’’ टीना।
‘‘नो कबीर...।’’ हिकमा।
‘‘बी माइ स्लेव कबीर; गो अहेड एंड किस माइ फुट।’’ लूसी।
‘‘नो कबीर, यू आर माइ स्लेव, किस माइ फुट।’’ हिकमा की एक और छड़ी पड़ी।
 
कबीर ने आगे झुकते हुए हिकमा के पैर पर अपने होंठ रख दिए। उसके भीतर एक शॉकवेव सी उठी, और एक अद्भुत आनंद की अनुभूति हुई। ऐसे आनंद की अनुभूति उसे टीना के सीने पर होंठ रखकर भी नहीं हुई थी। अचानक उसे अपनी टाँगों के बीच गीलापन महसूस हुआ। उस गीलेपन में उसकी नींद खुल गई।
अगले दिन कबीर ने तय किया कि वह हिकमा को मनाएगा, उसके सामने अपना दिल खोलकर रख देगा; उसे बताएगा कि वह उसे कितना चाहता है। अगर वह न मानी तो उसके पैर पकड़ लेगा, मगर उसे मनाएगा ज़रूर।
उस दिन कबीर ने हिकमा को कंप्यूटर रूम में अकेले पाया।
‘हाय!’ कबीर ने हिकमा के पास जाकर कहा।
‘हाय!’ हिकमा ने दबी हुई मुस्कान से कहा।
कबीर कुछ देर चुप रहा, फिर अचानक उसने कहा, ‘‘आई लव यू।’’
‘कबीर!’ हिकमा चौंक उठी।
‘‘यस हिकमा, आई रियली लव यू।’’ कबीर ने पूरी हिम्मत बटोरकर कहा।
‘‘तो फिर तुमने मेरा म़जाक क्यों बनाया?’’
‘‘वह कूल ने किया था।’’
‘‘और वह नोट? वह भी कूल ने लिखा था।’’
कबीर ने कुछ नहीं कहा; नीची ऩजरों से हिकमा को देखता रहा।
‘‘कबीर, तुम हम दोनों की बात को किसी तीसरे तक क्यों ले जाते हो? कभी कूल तो कभी टीना।’’
‘‘अब इसमें टीना कहाँ से आ गई?’’ कबीर झँुझला उठा।
‘‘वही तो मैं पूछ रही हूँ; टीना कहाँ से आई?’’
‘‘टीना इ़ज माइ क़िजन्स गर्लफ्रेंड।’’
‘‘तुम्हारा क्या रिश्ता है टीना से?’’
‘‘छोड़ो न यार टीना को।’’
‘‘तुमने छोड़ा है?’’
‘‘मैंने उसे कभी नहीं पकड़ा था; उसी ने मुझे पकड़ा था, जकड़ा था, अपनी ओर खींचा था; मगर मैं उसे छोड़कर भाग आया था... और क्या सुनना चाहती हो तुम?’’ कबीर अपनी झुँझलाहट में चीख उठा।
हिकमा कुछ देर उसे यूँ ही देखती रही... एक निस्तब्ध मौन के साथ; और फिर वही मौन, साथ लपेटे वहाँ से उठकर जाने लगी। कबीर को जब तक यह अहसास होता कि झुँझलाहट में उसने क्या कह दिया, हिकमा उससे का़फी दूर चली गई थी।
कबीर दौड़ा, और हिकमा के पास पहुँचकर उसने घुटनों के बल बैठते हुए हिकमा की टाँगें पकड़ लीं। हिकमा की टाँगें थामते हुए कबीर को यह ख़याल ज़रा भी न आया, कि वे वही टाँगें थीं, जिन्हें उसने न जाने कितनी बार कितनी हसरत भरी निगाहों से देखा था; जिन्हें लेकर न जाने कितनी फैंटसियाँ उसके ख़यालों में मचल चुकी थीं। मगर उस वक्त वे टाँगें किसी फैंटसी का मस्तूल नहीं, बल्कि उसकी बेबसी का सहारा थीं।
‘‘हिकमा आई लव यू, प्ली़ज।’’
‘‘कबीर ये बचपना छोड़ो, मुझे जाने दो।’’ हिकमा ने अपनी टाँगें खींचनी चाहीं, मगर कबीर ने उन्हें और ज़ोरों से जकड़ लिया।
‘‘नो, आई रियली लव यू।’’
‘‘कबीर, यू रियली नीड टू ग्रो अप, नाउ प्ली़ज लीव मी।’’
यू नीड टू ग्रो अप। इतना बहुत था कबीर को उसके घुटनों से उठाने के लिए। वह चार्ली नहीं था, जो उपेक्षा और अपमान सहकर भी घुटनों पर बैठा रहे; जो तिरस्कार में आनंद ले। यदि हिकमा प्रेम से कहती, तो वह उसके पैरों में जीवन बिता देता, उसकी ठोकरें भी सह लेता; मगर यहाँ तो स्वाभिमान को ठोकर मारी गई थी। इस ठोकर को कबीर बर्दाश्त नहीं कर सकता था। उसने हिकमा की टाँगें छोड़ दीं।
 
चैप्टर 9
कबीर के हाथ एक बार फिर प्रिया की सुडौल टाँगें सहला रहे थे। हिकमा के पैरों से उठने से लेकर, प्रिया के बिस्तर तक पहुँचने के बीच गु़जरे समय में कबीर ने नारी देह और मन के कई हिस्सों को टटोला था, और इस स्पर्श से नारी प्रेम और सौंदर्य का संगीत छेड़ने की कला भी सीखी थी। प्रिया से कबीर की मुलाकात, समीर की दी हुई एक पार्टी में हुई थी। प्रिया को देखते ही एक पल के लिए कबीर की साँसें थम सी गई थीं, और उसकी फैंटसी का संसार जी उठा था। जैसे बोतल से उछलकर शैम्पेन की धार, भीगने वाले को एक हल्के सुरूर में डुबा देती है, प्रिया की अल्हड़ चाल से छलकती बेपरवाही उस पर एक धीमा नशा कर चली थी। सिल्क की काले रंग की चुस्त और ओपन बैक ड्रेस में प्रिया के छरहरे बदन का हर कर्व उसकी चाल से उठती ऊ ला ला की धुन पर थिरकता सा दिख रहा था। जितने कम कपड़े उसके बदन पर थे, शायद उससे भी कहीं कम वर्जनाएँ उसने अपने मस्तिष्क पर ओढ़ी हुई थीं। खुले, गोरे कन्धों पर झूलते गहरे भूरे बालों में लहराती ब्लॉन्ड हाइलाइट्स, स़फेद संगमरमर पर गिरते पानी के झरने सी लग रही थीं। रेशमी लटों से घिरे गोल चेहरे पर बड़ी-बड़ी आँखों में तैरता तिलिस्म, उसमें डूब जाने का उन्मुक्त आमन्त्रण देता सा ऩजर आ रहा था। प्रिया की उन्हीं तिलिस्मी आँखों से कबीर की आँखें मिलीं, और उसकी ठहरी हुई साँसें ते़ज हो गईं।
‘‘हाय, आई ऍम कबीर।’’ उसने आगे बढ़कर मुस्कुराते हुए कहा।
‘प्रिया।’
‘‘आर यू लूकिंग फॉर समीर?’’
‘‘यस, यू नो वेयर इ़ज ही?’’
‘‘समीर मुझ पर एक अहसान करने गया है।’’ कबीर ने एक शरारती मुस्कान बिखेरी, जो प्रिया की चमकती आँखों में कुछ उलझन भर गई।
‘‘अहसान? कैसा अहसान?’’
‘‘अहसान ये, कि मैं आप जैसी खूबसूरत लड़की को रिसीव कर सकूँ।’’
‘‘ओह! इन्टरस्टिंग, थैंक्स बाय द वे।’’ प्रिया की आँखों की उलझन एक शर्मीली मुस्कान में बदल गई।
‘‘ये बुके आप मुझे दे सकती हैं; आपके पास तो वैसे भी फूलों से कहीं ज़्यादा खूबसूरत मुस्कान है।’’ कबीर ने प्रिया के हाथों में थमे लिली और गुलाब के फूलों के खूबसूरत गुलदस्ते की ओर इशारा किया।
‘‘यू आर एन इन्टरस्टिंग मैन।’’
‘‘एंड यू आर ए वेरी अट्रैक्टिव वुमन; व्हाई डोंट वी सिट समवेयर व्हाइल वेटिंग फॉर समीर? लेट मी गेट यू ए ड्रिंक; क्या लेना पसंद करेंगी आप?’’
‘‘लेमन सोडा विद नो शुगर प्ली़ज।’’
‘‘चलिए उस कॉर्नर में बैठते हैं।’’ कबीर ने प्रिया के हाथों से गुलदस्ता लेते हुए हॉल, के दाहिने कोने में रखे टेबल की ओर इशारा किया।
‘‘दो लेमन सोडा विद नो शुगर प्ली़ज; उस टेबल पर ले आइये।’’ ‘प्ली़ज।’ पर ज़ोर देते हुए कबीर ने पास खड़े वेटर से कहा।
प्रिया ने कबीर को तिरछी ऩजरों से देखा, और उसकी आँखों से शर्म में लिपटी शिकायत सी टपकी।
‘‘आप की तारी़फ कबीर?’’ चेयर पर बैठते हुए प्रिया ने टेबल पर अपनी बाँहें टिकार्इं, और कबीर की आँखों में अपनी आँखें डालीं।
‘‘आशिक हूँ माशूक-फ़रेबी है मेरा काम।’’ कबीर ने प्रिया की आँखों में आँखें डालते हुए कहा। प्रिया की आँखों का तिलिस्म गहरा था, पर फरेबी नहीं लग रहा था। कबीर उस तिलिस्म में खो जाना चाहता था, मगर उसी वक्त वेटर लेमन सोडा लेकर हा़िजर हो गया। सुलगती हुई ख्वाहिश पर सोडा फिर गया।
‘‘हूँ, तो आप शायर हैं।’’ लेमन सोडा का सिप लेते हुए प्रिया ने कहा।
‘‘नहीं, ये शेर ग़ालिब का है, अगला मिसरा है - मजनूँ को बुरा कहती है लैला मेरे आगे।’’
‘‘वाह-वाह! अच्छा तरीका है अपनी तारी़फ करके ख़ुद को इन्ट्रोड्यूस करने का।’’ लेमन सोडा में भीगे प्रिया के होठों से एक हल्की सी हँसी छलकी।
‘‘आपने तारी़फ ही तो पूछी थी।’’
‘‘आप हर लड़की को इसी तरह इम्प्रेस करने की कोशिश करते हैं, इश्क-विश्क के शेर सुनाकर?’’
‘‘आपको मुझसे इम्प्रेस होने के लिए मेरी किसी कोशिश की ज़रूरत नहीं है।’’
‘‘ये आपसे किसने कहा?’’ प्रिया की आँखें कुछ फैल गर्इं; हैरत से या शोखी से, यह कहना मुश्किल था।
‘आपने।’ कबीर ने उसकी आँखों के फैलाव में अपनी आँखें डालीं।
‘‘मैंने? कब?’’
‘‘अभी-अभी।’’
‘‘कम-ऑन, मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा।’’ प्रिया ने बेपरवाही से आँखें फेरीं और लेमन-सोडा का एक और घूँट भरा।
‘‘मगर आप मुझसे इम्प्रेस तो हैं; यहाँ मेरे साथ बैठी हैं, मुझसे शेर सुन रही हैं, और मुस्कुराकर दाद भी दे रही हैं।’’
‘‘हा हा...आई हैव टू एडमिट, दैट आई ऍम इम्प्रेस्ड बाय यू।’’ प्रिया खिलखिलाकर हँस पड़ी, ‘‘वैसे काम क्या करते हैं आप?’’
‘‘जब जो ज़रूरी होता है।’’
‘जैसे?’
‘‘जैसे कि इस वक्त आपकी ख़ूबसूरती निहारना।’’ कबीर ने प्रिया के खूबसूरत चेहरे पर अपनी निगाहें टिकाईं।
प्रिया के होठों पर वही शर्मीली मुस्कान लौट आई।
‘‘और आप क्या करती हैं मिस प्रिया?’’
‘‘आप जैसे आशिकों के दिल धड़काती हूँ।’’ प्रिया की शर्मीली मुस्कान पर एक शरारत तैर आई।
‘‘हा हा...फिर तो हम हम दोनों की खूब जमेगी; कल चल रही हैं मेरे साथ पार्टी में?’’
‘‘पार्टी? कौन सी पार्टी?’’ प्रिया की आँखें फिर फैल गईं। इस बार कहना आसान था कि वे हैरत से ही फैली थीं।
‘‘वही जो मैं आपको देने वाला हूँ।’’
‘‘यू आर रियली एन इन्टरस्टिंग मैन।’’ प्रिया फिर उसी खिलखिलाहट से भर गई।
‘‘तो फिर डन? कल शाम सात बजे।’’
‘‘मगर मैंने तो अभी हाँ नहीं कहा।’’
‘‘कह तो दिया आपने हाँ।’’
‘कब?’
‘‘जब कोई लड़की न, न कहे; तो उसका मतलब हाँ ही होता है।’’
‘‘यू आर रियली फनी।’’ प्रिया की हँसी एक बार फिर उसके होठों पर थिरकी।
अब तक कबीर को पूरा यकीन हो चुका था, कि प्रिया वा़ज टोटली इम्प्रेस्ड विद हिम।
‘‘तो फिर पक्का? कल शाम को मिलते हैं सात बजे।’’
‘कहाँ?’
‘‘मैं आपको फ़ोन करूँगा।’’
‘‘किस नंबर पर?’’
‘‘आप देंगी मुझे अपना मोबाइल नंबर।’’
‘‘हाउ आर यू सो श्योर?’’ प्रिया की आँखें शरारत से चमक रही थीं। उस चमक में ही उसके सवाल का जवाब था, इसलिए कबीर को जवाब देने में मुश्किल नहीं हुई।
‘‘क्योंकि आपने अभी तक मना नहीं किया है।’’
‘‘078******’’
 
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