hotaks444
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वक़्त के हाथों मजबूर--8
दूसरे दिन सुबह करीब 10 बजे जब राधिका घर में अकेली थी और सनडे का दिन था. उसका भाई और बाप रोज की तरह अपने शराब पीने के लिए बाहर गये हुए थे की तभी उसके घर की डोर बेल बजी.
राधिका- इस वक़्त कौन आ गया और वो दरवाजा खोलने चली जाती है.
जैसे ही दरवाजा खोलती है सामने राहुल खड़ा था. जैसे ही राधिका की नज़र राहुल पर पड़ती है वो एक दम चोंक जाती है उसने कभी भी सपने में भी नही सोचा था कि राहुल उसके घर पर आएगा.
राधिका- अरे राहुल जी आप!!!!! कैसे !!!! कब!!!! आपको मेरे घर का अड्रेस कैसे मालूम चला!!!!! ऐसे ही ढेर सारे सवाल एक साथ राधिका ने एक ही साँस में पूछ डाले.
राहुल- ठहरो तो सही मेडम एक एक कर आपके सारे सवालो का जवाब देता हूँ. मुझे अंदर आने को नही कहोगी क्या.
राधिका- एक दम से हाँ.. जी अंदर आइये.
राहुल जैसे ही अंदर आता है वो घर की दशा को देखकर उसने कभी ऐसा सोचा भी नही था कि राधिका ऐसे घर में रहती होगी. मकान बहुत पुराना था. जगह जगह प्लास्टर फूटा हुआ था. और कही कही पर तो पैंट भी नही था. उपेर छत आरसीसी का था. कुल मिलाकर दोनो कमरे बड़े थे लगता था जैसे दो हॉल है. एक किचन और उससे अटॅच बाथरूम.
राहुल को ऐसे देखकर राधिका को अपने अंदर गिल्टी फील होने लगती है.और झट से कहती है आप यहा सोफा पर बैठिए मैं अबी आती हूँ.
राहुल कुछ देर तक घर का पूरा मुआईना करता है. घर में ज़्यादा समान भी नही था. ज़रूरत भर का समान जैसे टी.वी, एक पुराना रेडियो , और दो पलंग थे. एक सोफा सेट और पहनने के लिए कपड़े . बस इससे ज़्यादा कुछ नही.
राधिका- अंदर से आती है और राहुल को ऐसे देखकर पूछती है
राधिका- क्या देख रहे हो राहुल. मैं किसी करोड़पति की बेटी नही हूँ. बस यही मेरी दुनिया है. जीवन में जो चाहिए रोटी, कपड़ा और मकान तीनो चीज़ें हैं मेरे पास. हां बस आलीशान नही है.
राहुल- कोई बात नही राधिका जी लेकिन आपको देखने से तो ऐसा नही लगता पर खैर कोई बात नही.
राधिका- आप बैठिए मैं आपके लिए चाइ नाश्ता लेकर आती हूँ.
राहुल- आरे आप क्यों तकलीफ़ कर रही हैं. रहने दीजिए इसकी कोई ज़रूरत नही.
राधिका- देखिए राहुल जी आप आज पहली बार आए हैं मेरे घर तो मेरा फ़र्ज़ बनता है. इतना कहकर राधिका किचन में चली जाती है और कुछ देर में स्नॅक्स ,चाइ वगेरह एक ट्रे में लेकर आती है.
राधिका- कहिए कैसे आना हुआ आपको मेरा घर का अड्रेस कैसे पता चला.
राहुल- उस दिन हम कॅंटीन में नाश्ता कर रहे थे तो आपका ये आइ-कार्ड वही फर्श पर गिरा हुआ मुझे मिला.बस इसमें तुम्हारा नाम, पता सब कुछ इस आइ कार्ड से ही मिल गया.और मैं यहाँ ...........
राधिका- ओह ये तो मुझे बिल्कुल ध्यान ही नही रहा .धन्यवाद राहुल जी नही तो ये गुम हो जाता तो मुझे प्राब्लम हो जाती.
राहुल- वैसे आप इस वक़्त घर पर अकेली हैं क्या. राहुल से ऐसे सवाल सुनकर राधिका घूर के राहुल को देखने लगती हैं.
राधिका- हाँ हूँ तो. क्यों कुछ ऐसा वैसा करने का इरादा है क्या. कही तुम मेरा रेप तो नही करना चाहते हो ना.
राहुल- हँसते हुए, आरे आप भी कमाल करती हो मैं और रेप,, मुझमें इतनी हिम्मत नही है कि मैं किसी लड़की का रेप कर सकूँ.
राधिका- क्यों इसमें हिम्मत की क्या बात है. सब जैसे करते है वैसे तुम भी... इतना बोलकर राधिका चुप हो जाती है.
राहुल- राधिका सब इंसान एक जैसे नही होते. यकीन मानो मैं ऐसा कुछ नही सोच रहा हूँ. वैसे तुम्हारा भाई और पिताजी कहाँ है इस वक़्त.??
राधिका- गये होंगे उस बिहारी के पास उसकी गुलामी करने. और तो कोई काम नही है ना सारा दिन उसके आगे पीछे घूमते रहते हैं और मुफ़्त में वो रोज़ उनको शराब देता है पीने के लिए.
राहुल- अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं उनसे इस बारे में बात करू. हो सकता है वो सुधर जाए.
राधिका- आपने कभी कुत्ते का दुम को सीधा होते देखा है क्या !! नही ना ऐसे ही है वो दोनो. हमेशा टेढ़े ही रहेंगे.
राहुल- यार तुम कोई भी बात डाइरेक्ट्ली क्यों बोल देती हो. वही बात थोड़े प्यार से भी तो कह सकती थी. फिर राधिका उसको ऐसे नज़रो से देखती है कि वो उसे कच्चा चबा जाएगी.
राधिका- मैं ऐसी ही हूँ. और कोई काम है क्या आपको.
राहुल- नही !! आज थोड़ा फ्री हूँ. मेरे आने से तुम्हें कोई प्राब्लम है क्या.
राधिका- नही राहुल मेरा ये मतलब नही था.
राहुल- एक बात कहूँ. जब से मैने तुमको देखा है पता नही क्यों मैं दिन रात बेचैन सा रहता हूँ. हर पल तुम्हारा ही ख़याल आता रहता है. मेरे साथ पता नही ऐसा पहली बार हो रहा है क्या तुम्हें भी.......................
राधिका- मुझे कोई बेचैनी और किसी का ख्याल नही आता. जा कर डॉक्टर से अपना इलाज़ करवाईए. अगर नही तो बोल दो मैं इलाज़ कर देती हूँ.
दूसरे दिन सुबह करीब 10 बजे जब राधिका घर में अकेली थी और सनडे का दिन था. उसका भाई और बाप रोज की तरह अपने शराब पीने के लिए बाहर गये हुए थे की तभी उसके घर की डोर बेल बजी.
राधिका- इस वक़्त कौन आ गया और वो दरवाजा खोलने चली जाती है.
जैसे ही दरवाजा खोलती है सामने राहुल खड़ा था. जैसे ही राधिका की नज़र राहुल पर पड़ती है वो एक दम चोंक जाती है उसने कभी भी सपने में भी नही सोचा था कि राहुल उसके घर पर आएगा.
राधिका- अरे राहुल जी आप!!!!! कैसे !!!! कब!!!! आपको मेरे घर का अड्रेस कैसे मालूम चला!!!!! ऐसे ही ढेर सारे सवाल एक साथ राधिका ने एक ही साँस में पूछ डाले.
राहुल- ठहरो तो सही मेडम एक एक कर आपके सारे सवालो का जवाब देता हूँ. मुझे अंदर आने को नही कहोगी क्या.
राधिका- एक दम से हाँ.. जी अंदर आइये.
राहुल जैसे ही अंदर आता है वो घर की दशा को देखकर उसने कभी ऐसा सोचा भी नही था कि राधिका ऐसे घर में रहती होगी. मकान बहुत पुराना था. जगह जगह प्लास्टर फूटा हुआ था. और कही कही पर तो पैंट भी नही था. उपेर छत आरसीसी का था. कुल मिलाकर दोनो कमरे बड़े थे लगता था जैसे दो हॉल है. एक किचन और उससे अटॅच बाथरूम.
राहुल को ऐसे देखकर राधिका को अपने अंदर गिल्टी फील होने लगती है.और झट से कहती है आप यहा सोफा पर बैठिए मैं अबी आती हूँ.
राहुल कुछ देर तक घर का पूरा मुआईना करता है. घर में ज़्यादा समान भी नही था. ज़रूरत भर का समान जैसे टी.वी, एक पुराना रेडियो , और दो पलंग थे. एक सोफा सेट और पहनने के लिए कपड़े . बस इससे ज़्यादा कुछ नही.
राधिका- अंदर से आती है और राहुल को ऐसे देखकर पूछती है
राधिका- क्या देख रहे हो राहुल. मैं किसी करोड़पति की बेटी नही हूँ. बस यही मेरी दुनिया है. जीवन में जो चाहिए रोटी, कपड़ा और मकान तीनो चीज़ें हैं मेरे पास. हां बस आलीशान नही है.
राहुल- कोई बात नही राधिका जी लेकिन आपको देखने से तो ऐसा नही लगता पर खैर कोई बात नही.
राधिका- आप बैठिए मैं आपके लिए चाइ नाश्ता लेकर आती हूँ.
राहुल- आरे आप क्यों तकलीफ़ कर रही हैं. रहने दीजिए इसकी कोई ज़रूरत नही.
राधिका- देखिए राहुल जी आप आज पहली बार आए हैं मेरे घर तो मेरा फ़र्ज़ बनता है. इतना कहकर राधिका किचन में चली जाती है और कुछ देर में स्नॅक्स ,चाइ वगेरह एक ट्रे में लेकर आती है.
राधिका- कहिए कैसे आना हुआ आपको मेरा घर का अड्रेस कैसे पता चला.
राहुल- उस दिन हम कॅंटीन में नाश्ता कर रहे थे तो आपका ये आइ-कार्ड वही फर्श पर गिरा हुआ मुझे मिला.बस इसमें तुम्हारा नाम, पता सब कुछ इस आइ कार्ड से ही मिल गया.और मैं यहाँ ...........
राधिका- ओह ये तो मुझे बिल्कुल ध्यान ही नही रहा .धन्यवाद राहुल जी नही तो ये गुम हो जाता तो मुझे प्राब्लम हो जाती.
राहुल- वैसे आप इस वक़्त घर पर अकेली हैं क्या. राहुल से ऐसे सवाल सुनकर राधिका घूर के राहुल को देखने लगती हैं.
राधिका- हाँ हूँ तो. क्यों कुछ ऐसा वैसा करने का इरादा है क्या. कही तुम मेरा रेप तो नही करना चाहते हो ना.
राहुल- हँसते हुए, आरे आप भी कमाल करती हो मैं और रेप,, मुझमें इतनी हिम्मत नही है कि मैं किसी लड़की का रेप कर सकूँ.
राधिका- क्यों इसमें हिम्मत की क्या बात है. सब जैसे करते है वैसे तुम भी... इतना बोलकर राधिका चुप हो जाती है.
राहुल- राधिका सब इंसान एक जैसे नही होते. यकीन मानो मैं ऐसा कुछ नही सोच रहा हूँ. वैसे तुम्हारा भाई और पिताजी कहाँ है इस वक़्त.??
राधिका- गये होंगे उस बिहारी के पास उसकी गुलामी करने. और तो कोई काम नही है ना सारा दिन उसके आगे पीछे घूमते रहते हैं और मुफ़्त में वो रोज़ उनको शराब देता है पीने के लिए.
राहुल- अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं उनसे इस बारे में बात करू. हो सकता है वो सुधर जाए.
राधिका- आपने कभी कुत्ते का दुम को सीधा होते देखा है क्या !! नही ना ऐसे ही है वो दोनो. हमेशा टेढ़े ही रहेंगे.
राहुल- यार तुम कोई भी बात डाइरेक्ट्ली क्यों बोल देती हो. वही बात थोड़े प्यार से भी तो कह सकती थी. फिर राधिका उसको ऐसे नज़रो से देखती है कि वो उसे कच्चा चबा जाएगी.
राधिका- मैं ऐसी ही हूँ. और कोई काम है क्या आपको.
राहुल- नही !! आज थोड़ा फ्री हूँ. मेरे आने से तुम्हें कोई प्राब्लम है क्या.
राधिका- नही राहुल मेरा ये मतलब नही था.
राहुल- एक बात कहूँ. जब से मैने तुमको देखा है पता नही क्यों मैं दिन रात बेचैन सा रहता हूँ. हर पल तुम्हारा ही ख़याल आता रहता है. मेरे साथ पता नही ऐसा पहली बार हो रहा है क्या तुम्हें भी.......................
राधिका- मुझे कोई बेचैनी और किसी का ख्याल नही आता. जा कर डॉक्टर से अपना इलाज़ करवाईए. अगर नही तो बोल दो मैं इलाज़ कर देती हूँ.