desiaks
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नेहा ने अपने पापा के किस को भरपूर आराम से रेस्पांड किया उसको अपने बाहों में थामे। और बाप ने हाथ नेहा की पूरे पीठ पर फेरा नेहा के कपड़ों को महसूस करते हुये। उसकी ब्लाउज़ और थोड़ी बहुत नंगी पीठ, उसके कंधे, और बाप ने लण्ड को नेहा के नीचे के नर्म हिस्सों पर दबाते हए किस जारी रखा। किस के बाद नेहा को अपनी बाहों में भरे हए ही बाप ने उसके कंधे और गले को चूमते हए पूछा- “अब अपने पति के साथ मजा करती हो ना रानी? हम्म्म... मजा आता है ना अब? अब जान गई हो ना कितना मजा और आनंद मिलता है यह करने में? अब तुमको समझ में आ गया होगा ना कि मैं क्या चाहता था तुमसे तेरी शादी से पहले? बोल ना? क्या जब वो तेरे साथ करता है तो कभी एक बार भी तुमने मुझको सोचा उसके साथ करने के दौरान... हाँ, बता ना मुझे...”
नेहा उसकी बाहों में एक खिलौने की तरह लग रही थी। अपनी गर्दन को पीछे के तरफ खींचते हुए नेहा अपने जिश्म को अपने पिता के जिश्म के साथ चिपका हुआ महसूस करके खुद को संभाल नहीं पा रही थी, और जवाब देना तो दूर की बात थी। उसके जिश्म में उत्तेजना की आग भड़क चकी थी। पिता सब देख रहा था और उसको पता चल रहा था कि नेहा गरम हो रही है। उसने धीरे-धीरे नेहा की ब्लाउज़ को उतारा उसको चूमते हुए, हौले हौले, धीरे-धीरे हल्के से एक-एक करके ब्लाउज़ के बटनों को खोला, नेहा की चूचियों के एक-एक हिस्से को निहारते हुए।
ब्लाउज़ को उसने जैसे जोश में फेंका कि वो जाकर दरवाजे के पास गिरा। पिता ने नेहा की सेक्सी ब्रा में चूचियों को मसलते हुए, ब्रा को धीरे-धीरे अनहक किया और उसको भी निकाल फेंका ब्लाउज़ की तरह। नेहा टापलेस उसकी बाहों में कैद थी। थोड़ा बहुत उसका जिश्म काँप रहा था, पैरों में जैसे दम नहीं था खड़े रहने का। आँखें बंद कर ली नेहा ने। उसके पापा के हाथों में उसका जिश्म उस वक्त एक एलास्टिक पीस की तरह था, जिसको जिस तरह चाहे वो मोड़ रहे थे। नेहा एक कठपुतली की तरह अपने पापा की बाहों में हर दिशा में मुड़ रही थी।
फिर धीरे से पिता ने नेहा को बिस्तर पर लेटाया और खुद अपने घुटनों के बल हो गया और धीरे-धीरे नेहा की लंबी स्कर्ट को ऊपर उठाने लगा। धीरे-धीरे नेहा की टाँगें नजर आने लगीं। पिता को जैसे कोई जल्दी नहीं था, वो सब कुछ बिल्कुल आराम से धीरे-धीरे कर रहा था। नेहा की साँसें फूल रही थी, वो धीरे-धीरे सिसकारियां छोड़ रही थी और उसकी साँसें तेज होने लगी थी, थोड़ा बहत हाँफने भी लगी थी।
बाप ने धीरे-धीरे नेहा के घुटनों के नीचे से अपनी जीभ फेरना शुरू किया और धीरे-धीरे ऊपर बढ़ता गया, नेहा की खूबसूरत सफेद और गुलाबी रंग की जांघों को निहारते हए और जीभ फेरते हए। उसके जांघों से उसकी पैंटी तक का सफर चाटते हुए तय करने में काफी वक्त लगाया पिता ने। जबकि नेहा सिसकते हुए अंगड़ाइयां लेते हुए और आहें भरते हुए मरी जा रही थी अपने बाप को उसकी चूत तक पहुँचने के लिए। नेहा अपनी आँखों को बंद किये, तड़पते हुए अपने पापा की छुवन को महसूस किए जा रही थी।
फिर नेहा उन दिनों को सोचने लगी थी, और आँखों को बंद करके उन्न्हीं दिनों में वापास चली गई थी जिन दिनों वो कुँवारी थी और उसका पिता उसके साथ यह सब करता था। नेहा वोही महसूस किए जा रही थी कि वो अब भी कँवारी है और उसका पापा उसके जिश्म को वैसे ही चूम चाट रहा है जैसे वो उसकी शादी से सालों पहले अक्सर किया करता था। अपने अंदर नेहा ने उस कुंवारी लड़की को महसूस किया जो वो पहली थी इस घर में शादी से पहले। वो उन दिनों को जीने लगी थी इस पल में।
बाप तो लग रहा था एक भूखा शेर है जिसको बरसों बाद खाने के लिए गोश्त मिल गया है। जब वो नेहा की पैंटी तक पहुँचा, तो पैंटी को ही चूसने लगा, जो भीग गई थी और बाप ने पैंटी के ऊपर से ही अपनी बेटी के रस को चूसना और पीना शुरू किया, और अपने लार और थूक से पैंटी को और भी भिगो दिया उसने। नेहा की तड़प और सिसक से कमरा गूंजने लगा था। फिर अपने दाँतों से पिता ने अपनी बेटी की पैंटी को उतारना शुरू किया। नेहा उस वक्त अपनी मुट्ठी में चादर को कसके भरके खींचने लगी। तब नेहा आँखों को खोलकर अपने पिता के चेहरे में उसकी खुशी और धीरज की इंतेहा को देखा जो आज एक मुद्दत के बाद अपनी बेटी को अपने बिस्तर पर लेटाकर पूरा कर रहा था।
नेहा उसकी बाहों में एक खिलौने की तरह लग रही थी। अपनी गर्दन को पीछे के तरफ खींचते हुए नेहा अपने जिश्म को अपने पिता के जिश्म के साथ चिपका हुआ महसूस करके खुद को संभाल नहीं पा रही थी, और जवाब देना तो दूर की बात थी। उसके जिश्म में उत्तेजना की आग भड़क चकी थी। पिता सब देख रहा था और उसको पता चल रहा था कि नेहा गरम हो रही है। उसने धीरे-धीरे नेहा की ब्लाउज़ को उतारा उसको चूमते हुए, हौले हौले, धीरे-धीरे हल्के से एक-एक करके ब्लाउज़ के बटनों को खोला, नेहा की चूचियों के एक-एक हिस्से को निहारते हुए।
ब्लाउज़ को उसने जैसे जोश में फेंका कि वो जाकर दरवाजे के पास गिरा। पिता ने नेहा की सेक्सी ब्रा में चूचियों को मसलते हुए, ब्रा को धीरे-धीरे अनहक किया और उसको भी निकाल फेंका ब्लाउज़ की तरह। नेहा टापलेस उसकी बाहों में कैद थी। थोड़ा बहुत उसका जिश्म काँप रहा था, पैरों में जैसे दम नहीं था खड़े रहने का। आँखें बंद कर ली नेहा ने। उसके पापा के हाथों में उसका जिश्म उस वक्त एक एलास्टिक पीस की तरह था, जिसको जिस तरह चाहे वो मोड़ रहे थे। नेहा एक कठपुतली की तरह अपने पापा की बाहों में हर दिशा में मुड़ रही थी।
फिर धीरे से पिता ने नेहा को बिस्तर पर लेटाया और खुद अपने घुटनों के बल हो गया और धीरे-धीरे नेहा की लंबी स्कर्ट को ऊपर उठाने लगा। धीरे-धीरे नेहा की टाँगें नजर आने लगीं। पिता को जैसे कोई जल्दी नहीं था, वो सब कुछ बिल्कुल आराम से धीरे-धीरे कर रहा था। नेहा की साँसें फूल रही थी, वो धीरे-धीरे सिसकारियां छोड़ रही थी और उसकी साँसें तेज होने लगी थी, थोड़ा बहत हाँफने भी लगी थी।
बाप ने धीरे-धीरे नेहा के घुटनों के नीचे से अपनी जीभ फेरना शुरू किया और धीरे-धीरे ऊपर बढ़ता गया, नेहा की खूबसूरत सफेद और गुलाबी रंग की जांघों को निहारते हए और जीभ फेरते हए। उसके जांघों से उसकी पैंटी तक का सफर चाटते हुए तय करने में काफी वक्त लगाया पिता ने। जबकि नेहा सिसकते हुए अंगड़ाइयां लेते हुए और आहें भरते हुए मरी जा रही थी अपने बाप को उसकी चूत तक पहुँचने के लिए। नेहा अपनी आँखों को बंद किये, तड़पते हुए अपने पापा की छुवन को महसूस किए जा रही थी।
फिर नेहा उन दिनों को सोचने लगी थी, और आँखों को बंद करके उन्न्हीं दिनों में वापास चली गई थी जिन दिनों वो कुँवारी थी और उसका पिता उसके साथ यह सब करता था। नेहा वोही महसूस किए जा रही थी कि वो अब भी कँवारी है और उसका पापा उसके जिश्म को वैसे ही चूम चाट रहा है जैसे वो उसकी शादी से सालों पहले अक्सर किया करता था। अपने अंदर नेहा ने उस कुंवारी लड़की को महसूस किया जो वो पहली थी इस घर में शादी से पहले। वो उन दिनों को जीने लगी थी इस पल में।
बाप तो लग रहा था एक भूखा शेर है जिसको बरसों बाद खाने के लिए गोश्त मिल गया है। जब वो नेहा की पैंटी तक पहुँचा, तो पैंटी को ही चूसने लगा, जो भीग गई थी और बाप ने पैंटी के ऊपर से ही अपनी बेटी के रस को चूसना और पीना शुरू किया, और अपने लार और थूक से पैंटी को और भी भिगो दिया उसने। नेहा की तड़प और सिसक से कमरा गूंजने लगा था। फिर अपने दाँतों से पिता ने अपनी बेटी की पैंटी को उतारना शुरू किया। नेहा उस वक्त अपनी मुट्ठी में चादर को कसके भरके खींचने लगी। तब नेहा आँखों को खोलकर अपने पिता के चेहरे में उसकी खुशी और धीरज की इंतेहा को देखा जो आज एक मुद्दत के बाद अपनी बेटी को अपने बिस्तर पर लेटाकर पूरा कर रहा था।