Indian XXX नेहा बह के कारनामे - Page 4 - SexBaba
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Indian XXX नेहा बह के कारनामे

उसको डर होने लगा अब... परेशानी में उसने नेहा की चूची को छुआ, सहलाया और दबाया जिससे नेहा चिहुँक कर उठ बैठी, अपनी नाइटी को चूची के ऊपर करते हुए। नेहा बहुत हैरान हो गई जब प्रवींद्र को देखा, फिर अपने

कमरे के दरवाजे की तरफ देखा, रवींद्र को देखा फिर धीरे से प्रवींद्र से कहा- “जाओ वापस जाओ, पागल हो क्या तुम? जाओ यहाँ से..."

पर प्रवींद्र जैसे बौखलाया हुआ खड़ा था। खुद अपने छाती पर अपना हाथ रखा और कहा- “भाभी एक प्राब्लम है प्लीज चलो, बताता हूँ..."

नेहा ने कहा- “नहीं, अभी नहीं... तुम जाओ यहाँ से वरना तुमको कभी अपने पास नहीं आने दूंगी समझे तुम..."

प्रवींद्र अब नेहा के लिये नहीं अपने लण्ड को लेकर परेशान था। उसने धीरे से नेहा के कान में कहा- “भाभी, मैं तुमको, तुम्हारी चूचियों को बहुत देर से नंगा देख रहा हूँ पर मेरा खड़ा नहीं हो रहा है, मुझे बहुत फिकर होने लगी, डर लग रहा है..." और नेहा का हाथ पकड़कर अपने सीने से लगाया और कहा- “देखो मेरे दिल की धड़कनों को महसूस करो, ऐसा होता है क्या? मैं बहत चिंतित हँ भाभी, ऐसा क्यों हो रहा है?"

नेहा ने जब उसके दिल की धड़कनों को इतने जोरों से धड़कना महसूस किया तो उसको भी अजीब लगा और हैरान प्रवींद्र के चेहरे में देखते हुए कहा- “क्या हुआ? तुमने कोई बुरा सपना देखा क्या?” यह कहकर नेहा बेड से उठकर रूम की लाइट को ओन किया और प्रवींद्र के चेहरे में देखने लगी। वो बहुत डरा हुआ दिख रहा था, तो नेहा को बहुत हैरानी हुई और ऊसने पूछा- “हुआ क्या? कहाँ थे तुम? सो रहे थे ना? कहीं गये थे क्या तुम? भूत-व्रत तो नहीं देखा ना?"

प्रवींद्र ने जोर से नेहा को बाहों में जकड़ते हुए टूटी हुई आवाज में कहा- “भाभी चलो ना मेरे साथ, इसका इलाज तो करो ना कि मुझे क्या हो रहा है समझ में नहीं आता मुझे.."

नेहा मुड़कर रवींद्र को सोते हुए देखती है और मुश्कुराकर प्रवींद्र के होंठों पर अपने हाथ रखकर 'ओहह' कहती है,
और धीरे से फुसफुसाते हुए प्रवींद्र से कहा- “अच्छा तुम चलो, मैं पीछे आती हूँ.."

प्रवींद्र की जान में जान आई और वो अपने कमरे में गया और नेहा का इंतेजार करने लगा। नेहा पहले टायलेट गई और टायलेट से सीधे प्रवींद्र के कमरे में गई। प्रवींद्र सिर्फ एक अंडरवेर में बेड पर लेटा इंतेजार कर रहा था। नेहा ने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा- “तुम बहुत बुरे हो, मैं इतनी अच्छी नींद में सोई हुई थी, सिर्फ यह सब करने के लिए मुझको जगाया। कल का इंतेजार नहीं कर सकते थे तुम? बहुत बदमाश हो गए हो तुम आजकल..."

प्रवींद्र ने कहा- “नहीं भाभी, तुम समझ नहीं रही हो, देखो अब भी खड़ा नहीं हुआ है यह, तुम्हारे इस कमरे में घुसते ही इसको चट्टान की तरह खड़ा हो जाना चाहिए था। मेरी समझ में नहीं आता, कोई प्राब्लम है, क्या हो रहा है?"

नेहा मुश्कुराई और कहा- “अच्छा यह बात है, अभी देखती हूँ कैसे खड़ा नहीं होता यह पप्पू तेरा..."

तब प्रवींद्र बोला- “नहीं भाभी आपके बिना छुए इसको खड़ा होना चाहिए था.. आप एक काम कीजिए आप यहाँ लेट जाइए मैं आपके पास खड़े होकर कुछ देर देखना चाहता हूँ कि यह खड़ा होता है या नहीं? अगर तब भी नहीं हुआ तब आप इसको खड़ा करना..."

तो नेहा हँसते हुए प्रवींद्र के बेड पर लेट जाती है। प्रवींद्र उसके पैरों की तरफ जाता है और अपनी भाभी से कहता है- “भाभी अपने एक पैर को जरा ऊपर उठाओ ना प्लीज...”

जिस जगह प्रवींद्र खड़ा था, बेड के नीचे की तरफ यानी नेहा के पाँव की तरफ, वहाँ से नेहा पैर उठती तो उसकी जांघों के बीच उसकी पैंटी नजर आती।

तो नेहा मुश्कुराते हुए बोलती है- “क्यों टांग क्यों उठाऊँ? ऐसे कुछ नहीं दिखता क्या तुमको? मेरी नाइटी इतनी छोटी है, जांघों के ऊपर है, इतनी पतली है की मेरी चूचियां और पैंटी दिख रही है, तो और क्या चाहिए तुझे? हम्म्म ..."

प्रवींद्र अपने अंडरवेर के ऊपर हाथ फेरते हुए कहता है- “बात को समझो ना भाभी, उठाओ ना अपनी एक टांग
को प्लीज..."

नेहा छत को ऊपर देखते हुए एक टांग को ऊपर उठती है जिससे उसकी दोनों जांघों के बीच वाले नर्म, नाजुक, मुलायम हिस्से नजर आते हैं, और प्रवींद्र घुटनों के बल नीचे बैठता है और एक हाथ नेहा की जाँघ पर फेरता है
और अंडरवेर को निकलकर एक हाथ अपने लण्ड पर ले जाता है। ज्यों-ज्यों वो नेहा की जांघों को ऊपर सहलाता जाता था वैसे-वैसे उसका लण्ड धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा था। जब उसका हाथ चूत के ऊपर नेहा की पैंटी को छुआ तो उसका लण्ड एकदम जमके कडक खडा हो गया और खशी से प्रवींद्र खडा होकर नेहा को अपना लण्ड दिखाते हुए एक छोटे बच्चे की तरह झूम कर कहता है- “हो गया भाभी, खड़ा हो गया, मैं बहुत खुश हूँ.. मुझे फिकर होने लगी थी... बाप रे..."

 
नेहा ने बचकानी आवाज में कहा- “ना, नहीं देखूगी मैं... तुम बहुत शैतान हो गये हो, सब बहाना था तुम्हारा। मैं ना छुऊँगी और ना चूसूंगी, तुम खुद अपने हाथ चलाओ मुझे देखते हुए मैं तुमको मूठ मारते हुए देयूँगी...'

तो प्रवींद्र ने कहा- “ठीक है भाभी, मैं तुमको देखकर मूठ मारता हूँ मगर आप मुझको अपने छुपे हुए उन हिस्सों को तो दिखाओ..."

तो नेहा अपनी उंगलियों से हौले-हौले अपने कंधे पर से नाइटी के स्ट्रैप्स को नीचे सरकाने लगी, और बेड पर खड़ी हो गई और नाइटी को नीचे गिरने दिया, अब वो सिर्फ अपनी पैंटी में खड़ी थी प्रवींद्र के सामने। और प्रवींद्र अपनी भाभी की मस्त-मस्त, गोल-गोल चूचियों को देखते हुए अपने लण्ड पर हाथ चलाने लगा, नेहा की कमर, उसका पेट, उसकी हर कटाव सब मस्त थे। प्रवींद्र की नजरें चारों तरफ उसके जिश्म पर नाच रही थीं और वो लगातार मूठ मारते जा रहा था।

हालांकी नेहा ने कहा कि वो सिर्फ़ देखेगी, लेकिन जब मूठ मारते-मारते प्रवींद्र नेहा के करीब गया और नेहा को बेड पर घुटनों के बल लाकर अपने लण्ड को उसके मुंह के पास किया तो धीरे से नेहा ने उसको अपने मुँह में लिया, ऊपरी हिस्से पर जीभ चलाई और मुँह में लेकर चूसने लगी। फिर चूसना रोक कर नेहा ने लण्ड की पूरे लंबाई पर अपनी जीभ फेरी, चाटा, और नीचे प्रवींद्र के बाल्स पर जीभ फेरा।

फिर नेहा ने कहा- “बस इससे ज्यादा नहीं करूँगी अब.."

पर प्रवींद्र जैसे छटपटा गया और कहा- “भाभी भाभी, प्लीज... ऐसे गरम स्पाट पर आकर क्यों रुक गई आप? जारी रखो ना प्लीज... मैं भीख मांगता हूँ भाभी, मेरी प्यारी भाभी, मेरी दुलारी भाभी, करो ना प्लीज."

नेहा को हँसी भी आई और तरस भी आया, उसको इस हालत में देखकर, तो उसने उसके एक अंडे को मुँह में ले लिया और चूसा तो प्रवींद्र पागल हो गया, उसका जिश्म काँपने लगा। फिर एक हाथ से नेहा ने उसका लण्ड पकड़ा और फिर उसके दूसरे अंडे को मुँह में लेकर चूसा, खयाल रखते हुए कि उसको दर्द ना हो। प्रवींद्र ऊपर छत पर देखते हुए मजे का लुत्फ ले रहा था, थोड़ी तड़प के साथ। और साथ-साथ नेहा अपने दूसरे हाथ को उसके लण्ड पर चला रही थी।

फिर कुछ देर बाद प्रवींद्र ने नेहा के सर को हाथों में पकड़ा और लण्ड को उसके मुंह में डाला और हल्के-हल्के
अंदर-बाहर करने लगा। लण्ड चूसते हए नेहा गरम होने लगी और उसको अब लण्ड अपनी चूत के अंदर चाहिए था।

जिस तरह से अपने नर्म हाथों को नेहा प्रवींद्र के जिश्म पर फेरने लगी थी, जिस तरह से सहलाए जा रही थी प्रवींद्र को और जिन्न नजरों से देख रही थी प्रवींद्र के चेहरे में, उससे साफ झलक आ रही थी की उसको अब सख्त जरूरत है चुदाई की।

प्रवींद्र समझ गया कि अब लण्ड को चूत के अंदर पेलने का वक्त आ गया।

नेहा ने अपनी पैंटी को झट से खींचकर नीचे फेंका और प्रवींद्र ने पोजीशन लेते हुए, खुद वो अपने पीठ पर सोया

और नेहा को अपने ऊपर ले लिया उसने। प्रवींद्र ने अपने पैरों को दोनों तरफ फैलाया और नेहा के पैरों को भी दोनों तरफ किया। फिर नेहा ने अपने हाथों से उसके लण्ड को अपने चूत के गीले छेद पर लगाया और नेहा खुद उसपर बैठी और लण्ड अपने आप फिसलते हुए उसके अंदर घुसता चला गया, और नेहा की सिसकारी कमरे में भर गई।

नेहा प्रवींद्र के ऊपर बैठी ऊपर-नीचे उठने बैठने लगी, लण्ड को अपने अंदर-बाहर करने के लिए अपने कमर हिलती गई। शुरू में तो धीरे-धीरे किया मगर धीरे-धीरे तेजी पकड़ती गई, उसकी कमर का हिलना और रफ्तार बढ़ती गई, इस कदर कि नेहा पागलों की तरह उछल रही थी प्रवींद्र के लण्ड पर। प्रवींद्र अपनी भाभी की चूचियों को उस तरह से मचलते, उछलते हुए देखकर लण्ड में और भी रवानी महसूस कर रहा था। लगता था लण्ड अब कभी नहीं मुरझाने वाला है, और जिस तरह से, जिस रफ़्तार से नेहा उछलती गई बहुत ही जल्द दोनों को आगंजम एक साथ प्राप्त हुए।

प्रवींद्र नेहा की चूचियां, गला, मुँह, नाक, कान सब चूमते चाटते गया और नेहा भी झुक गई पूरी तरह से प्रवींद्र पर और उसको चूमती गई, जहाँ-जहाँ उसका मुंह पड़ता थी प्रवींद्र पर। नेहा ने अपने थूक से प्रवींद्र के चेहरे को भीगो दिया था।

फिर दोनों प्रवींद्र के बिस्तर पर तब तक लेटे रहे। जब नेहा को पड़ोसियों के यहाँ एक मुर्गे की बाग सुनाई दी तो वो जल्दी से उठकर, नंगी भागती गई अपने कपड़ों को हाथ में लिए, और उसकी पैंटी प्रवींद्र के कमरे में ही छोड़
गई।

* * * * * * * * * *
 
फिर कुछ दिनों तक प्रवींद्र के घर में नेहा के साथ सब ठीक से गुजरा। नेहा के लिए यह एक रुटीन बन गई थी, हर रात को अपने ससुर के बिस्तर को गरम करने का और अपने पति के छोटे भाई के साथ भी अडल्टरी रिश्ते रखने की आदत हो गई थी और लगभग हर रोज यह सब होता था।
और दिन-बा-दिन नेहा और भी और कामुक और एन्वियस होती जा रही थी सेक्स को लेकर और कोई भी मर्द, हाँ सही कह रहा हूँ कोई भी मर्द उसको देखकर उसको चोदने के लिए उतावला हो सकता था, वो इतनी आकर्षित करती थी किसी को भी। जिस तरह से नेहा अपनी नजरों से देखती थी, जिस तरह वो किसी भी मर्द को देखकर मुश्कुराती थी, कोई भी फिदा हो जाता उसपर। उसका जिश्म हर दिन इतना बेहतरीन होता जा रहा था और साथ-साथ उसने उस घर के तीन मर्दो को खुश करते-करते मर्दो को रिझाने की कला सीख लिया था।

फिर एक दिन नेहा को खबर मिली के उसकी माँ बहुत सख्त बीमार है और उसको हास्पिटल में भरती किया
गया है, जहाँ वो रहती है उस गाँव में। नेहा तैयार हुई अपने गाँव जाने को और वहाँ एक हफ़्ता गुजारने के लिए। नेहा के ससुर ने पहले सोचा कि वोही जाएगा नेहा को उसके गाँव छोड़ने, मगर फिर सोचा कि वहाँ के लोगों को अजीब लगेगा कि क्यों ससुर छोड़ने आया है उसे, तो उसने रवींद्र को ही जाने को कहा।

उस वक्त प्रवींद्र भी साथ जाना चाहता था। मगर उसके पिता ने कहा कि उसको रहना पड़ेगा और खेत जाना पड़ेगा उसके साथ रवींद्र की जगह पर।

प्रवींद्र बहत बेचैन हो गया क्योंकी वो नेहा के बारे में तरह-तरह की चीजें सोचने लगा। उसको यकीन था कि अब नेहा अपने गाँव वालों से वहाँ चुदवाएगी। उसको बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था और उसने अपने बड़े भाई को फुसलाया कि वो घर पर रहें और प्रवींद्र जाएगा नेहा को छोड़ने के लिए।

बड़ा भाई भोला तो था ही तो वो मान गया।

मगर बाप को पता चला तो वो गुस्सा हुआ, यह कहते के नेहा कि गाँव वाले क्या कहेंगे? पति को साथ जाना चाहिए ना कि उसके छोटे भाई को, और बाप ने दोनों बेटों को खूब सुनाया। तो ये तय हआ के रवींद्र ही जाएगा नेहा को छोड़ने, वहाँ कुछ देर रुकेगा, फिर वापस चला आएगा, और एक हफ्ते के बाद नेहा को वापस लेने जाएगा।

प्रवींद्र मायूस हो गया और उस रात को सोचा जब नेहा ने कहा था- "आपने मुझे मेरे पापा की याद दिला दियाए..." वो ये बात भूल गया था मगर अचानक यह बात उसके जेहन में एक बिजली की तरह कौंधी और प्रवींद्र ने सोचा- “अब वो अपने पापा के साथ रहेगी क्योंकी उसकी माँ हास्पिटल में है तो क्या होगा वहाँ?” प्रवींद्र बहुत उत्सुक था देखने के लिए कि अगर कोई नेहा को वहाँ पर चोदेगा तो। नेहा उसके लिए एक जुनून बन चुकी थी। बहत ही बेचैन था वो और हर तरह के ख्यालात उसके दिमाग को परेशान कर रहा था। और वो कुछ कर भी नहीं पा रहा था।

सुबह सवेरे रवींद्र और नेहा घर से निकले, नेहा के गाँव जाने के लिए। इस गाँव से कोई 700 किलोमीटर की दूरी पर था नेहा का गाँव। ट्रेन से गये दोनों और प्रवींद्र दोनों को स्टेशन तक छोड़ने गया 4x4 में।
 
अब ट्रेन में हमेशा की तरह रवींद्र तो अपने कोने में खुद अपने आप में बंद था जैसे एक कछुवा अपने शेल में घुसा रहता है।

दूसरे मर्द नेहा को ठर्की नजरों से देख रहे थे। वो एक खूबसूरत साड़ी पहनी हुई थी जो महीन थी और उसकी ब्लाउज़ में क्लीवेज काफी नजर आ रही थी उस महीन साड़ी पर से। रवींद्र को इस बात का बिल्कुल खयाल नहीं था कि कोई मर्द उसकी बीवी को देख रहा है। नेहा को सब पता था बल्की वो खूब चंचल थी और रिझा भी रही थी मर्दो को पल्लू को बार-बार सरकाते हए। नेहा को पता था कि सभी मर्द उसी को देख रहे थे और सबके मन में बस एक बात थी, वो यह कि उसको सब चोदें।

मगर एक बार तो उन मर्दो में से एक ने नेहा को आँख मारा, जब रवींद्र सो गया था। नेहा उस आदमी से मुश्कुराई
हआ। अगर सफर रात को होती तो शायद नेहा उस आदमी से चदवा भी लेती। नेहा ने अपने सर को रवींद्र के कंधे पर रखा और ख्यालों में गुम हो गई। अब वो अपने पिता के बारे में सोच रही थी। उसने याद किया कि किस तरह से उसका पिता उसको चाहता था, जब वो उसके घर में उनके साथ रहती थी। उसका पिता कुछ और ही चाहता था नेहा से।

उन दिनों नेहा की उम्र आज से बेशक कम थी और उसको याद आया कि किस तरह एक रात को जब वो सो रही थी, तो किस तरह पहली बार उसके पापा जो हर रात नशे में होते थे, उसके कमरे में आये था और उसके डेस के नीचे अपना हाथ फेरा था। नेहा डर गई थी और अचानक उठकर बेड पर बैठ गई थी. अपने पापा को देखते हुए। उन दिनों नेहा की समझ में नहीं आ रहा था कि पापा ने वैसा क्यों किया था?

"मेरी प्यारी बच्ची जाग गई, सो जा सो जा मेरी लाडली, सो जा..."

फिर नेहा ने पूछा था- “पापा, आप क्या कर रहे थे?"

और पापा ने जवाब दिया था- “कुछ नहीं बेटा मैं तो तुमको चादर ओढ़ा रहा था.."

मगर नेहा को पता था कि उसके पापा ने उसके ड्रेस के नीचे उसकी जांघों पर अपना हाथ फेरा था उस रात को। नेहा को एक और बात याद आई कि एक दिन, दिन में उसके पापा ने पी रखी थी और माँ दुकान गई थी कुछ खरीदने तो पापा ने नेहा को गले से लगाया था जाकरके। नेहा ने सोचा था कि पापा उससे प्यार कर रहे थे मगर तब पापा ने उसको अपनी गोद में बिटा लिया था और उसकी जांघों पर हाथ फेरा था और छाती को सहलाया था, फिर नेहा के गले पर चूम्मा था, और नेहा उसकी गोद से उतरकर भाग गई थी।
 
मगर नेहा को पता था कि उसके पापा ने उसके ड्रेस के नीचे उसकी जांघों पर अपना हाथ फेरा था उस रात को। नेहा को एक और बात याद आई कि एक दिन, दिन में उसके पापा ने पी रखी थी और माँ दुकान गई थी कुछ खरीदने तो पापा ने नेहा को गले से लगाया था जाकरके। नेहा ने सोचा था कि पापा उससे प्यार कर रहे थे मगर तब पापा ने उसको अपनी गोद में बिटा लिया था और उसकी जांघों पर हाथ फेरा था और छाती को सहलाया था, फिर नेहा के गले पर चूम्मा था, और नेहा उसकी गोद से उतरकर भाग गई थी।

नेहा ने उन रातों को याद किया जब तकरीबन हर रात को उसके पापा उसके कमरे में आते थे उसके जिश्म को छूने के लिए, जब उसकी माँ को नींद आती थी। नेहा को यह भी याद आया कि एक रात को तो पापा उसके ऊपर चढ़ गया था और अपने पैंट के अंदर से ही लण्ड को उसके ऊपर रगड़ रहा था और झड़ने तक रगड़ता रहा
और अपने पानी से नेहा के ड्रेस को भीगा दिया था उस रात को। और नेहा ने याद किया किस तरह एक और रात को वो नींद में होने का बहाना कर रही थी और उसके पापा ने उसकी पैंटी उतारकर उसकी चूत के ऊपर अपने लण्ड को रगड़ते हुए पानी छोड़ा था उसके चूत के ऊपर ही, बिना अंदर घुसाये। नेहा यह सब याद कर रही थी ट्रेन में।

फिर नेहा के दिमाग में एक फ्लैश बैक की तरह बिजली की तरह कौंधते हुए एक सीन याद आया। उसके शादी के कुछ हफ्ते पहले उसके पापा ने उसको एक लज्जतदार किस किया थे और पापा ने उससे कहा था कि उन्होंने उसका कँवारापन नहीं लिया, इसलिए कि उसकी शादी में रुकावट ना आए और उसको यह उम्मीद थी की उसकी शादी के बाद नेहा उसको जरूर एक मौका देगी उसकी खूबसूरती एंजाय करने के लिए। नेहा ने उस वक्त बिना कोई जवाब दिए सर को झुका लिया थे।

और अब जब नेहा पहली बार शादी के बाद उसके पास जा रही थी, तो नेहा सोच रही थी कि अब तो उसके पापा एक भी मौका हाथ से नहीं जाने देंगे। सिर्फ यह सब सोचते ही नेहा बिल्कुल गीली हो गई थी और सोचा कि काश उस वक्त प्रवींद्र या ससुरजी उसके पास होते उसकी प्यास बुझाने के लिए।

आखिर में नेहा अपने गाँव पहुँची। रवींद्र के साथ अपने घर तक चलते वक्त नेहा ने बहुत सारे लोगों को प्रणाम किया। उसके गाँव के कुछ मर्दो ने उसको देखकर आपस में बातें की- “अरे अपनी नेहा तो एकदम मस्त माल बन गई रे शादी के बाद। क्या लग रही है यार...”

तो किसी ने जवाब में कहा- “अरे अब चूत में लण्ड घुसने लगा है, चुदवाने लगी है, अब उसको चुदाई का मजा आने लगा है तो मस्त तो दिखेगी ही ना। अब वो कच्ची कली नहीं रही जो हम देखकर प्रसंसा किए..." और सबके लण्ड खड़े हो गये तो सबने अपने लण्ड को सहलाया।
 
आखिर में जब नेहा घर आई तो उसके पिता ने जल्दी से चौखत पर अपनी लड़ली के स्वागत के लिए आए और जोर से नेहा को बाहों में भर लिया। नेहा ने भी पिता को बाहों में भर लिया और आँसू बह निकले उसकी आँखों से। यह तो होता ही है जब इतने दिनों के बिछड़ने के बाद और शादी के बाद वाले पहले मिलन के दौरान। पिता का लण्ड तो नेहा के जिश्म से टकराते ही उसी वक़्त उसी पल खड़ा हो गया। ससुर ने दामाद का स्वागत किया और दोनों को घर के अंदर ले गया। प्रोग्राम यह था कि सब साथ में हास्पिटल जाएंगे और वहीं से रवींद्र वापस अपने गाँव चला जाएगा।

फिर शाम को हास्पिटल से निकालने के बाद नेहा अपने पति को स्टेशन छोड़ने गई अपने पापा के साथ और रवींद्र को ट्रेन में बिठाकर नेहा अपने पापा के साथ वापस घर आ गई।

नेहा के दो भाई थे जिनकी शादी हो चुकी थे और जो अपने पिता के घर से कुछ किलोमीटर के दूरी पर रहते थे। जब ये दोनों घर पहुँचे तो उन दोनों भाइयों में से एक अपने पिता के यहाँ आया हुआ था, अपनी माँ का हाल पूछने के लिए।

वो नेहा को देखकर हैरान हआ और भाई बहन कसकर गले मिले और दोनों रोने लगे। खुशी के आँसू थे, 8 महीनों के बाद मिल रहे थे सब।
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अपनी छोटी बहन से एक-दो बात करने के बाद भाई अपने घर वापस चला गया। नेहा अपने पुराने कमरे में गई
और अपनी पुराने चीजों को देखने लगी, जो वो यहीं छोड़ गई थी शादी के बाद। उसका मन भारी हुआ और आँसू के चंद कतरे नेहा ने अपने गाल पर बहते महसूस किया। फिर उसके पापा उसके कमरे में दाखिल हुये और नेहा को बाहों में भरते हुए कहा- “तुम पहले से और भी बहुत ज्यादा खूबसूरत हो गई हो बेटा, इस घर से जाने से पहले तुम इतनी तो खूबसूरत नहीं थी.."

नेहा ने अपने पापा को प्यार से गले लगाया और जोर से बाहों में जकड़ा। इस वक्त कोई सेक्सुअल एहसास नहीं थी बल्की पिता के प्रति प्यार और बाप की तरफ से अपनी बेटी से मिलने और भावनाओं की जकड़ में दोनों गले मिले हुए थे।

मगर क्योंकी कुछ देर तक बाप ने उसी तरह नेहा को आपनी बाहों में जकड़े रहा और नेहा ने भी पिता को नहीं छोड़ा और अपनी बाहों में उसको बांधे रही, तो उसके पापा ने अपने लण्ड को नेहा की जांघों पर टकराते हए पहल किया।

और तुरंत नेहा ने उसकी बाहों से निकलते हुए पूछा- “पापा, माँ जल्दी ठीक हो जाएगी ना?"

पिता खयालों में खोया हुआ था नेहा के बारे में ही सोचते हए, कि उसके सवाल को सुनकर अपने कांधों को ऊपर करते हुए जवाब दिया- “पता नहीं, बुरी हालत में है वो इस वक्त क्योंकी उसे डाइयबिटीस, हाइ बी.पी. और अस्थमा सब एक साथ उठे थे। डाक्टर लोगों ने कहा है फिकर की कोई बात नहीं, अब पता नहीं?" यह कहकर वो कमरे से निकालने लगा यह कहते हुए- “अच्छा मैं जरा बाहर जा रहा हूँ कोई एक घंटे के बाद वापस आऊँगा, जाओ देखो क्या पकाना पसंद करोगी? रसोई में अब भी सब कुछ वैसे ही है, जैसे 8 महीने पहले तुम छोड़कर गई थी..."

फिर नेहा अपने पापा के करीब गई और धीरे से अपनी मीठी आवाज में बोली- “आप पीने जा रहे हो, है ना पापा?"

उसके पापा ने जवाब दिया- “हाँ, मगर देर नहीं करूँगा एक-दो पेग लेकर वापस आता हूँ..."
 
नेहा ने अपने पापा के चेहरे में देखते हुए प्यार से मुश्कुराते हुए कहा- “मेरा वोही बूढ़ा पापा, आप कभी नहीं बदलोगे पापा..” और नेहा ने प्यार से उसके गाल पर एक किस्सी किया, एक छोटी बच्ची की तरह। मगर एक माँ की तरह अपने पापा को डाँटते हुए कहा- “और मत पीना और उम्मीद करती हूँ कि आपको लड़खड़ाते हुए नहीं देखूगी वापस आते वक़्त, अपने दो पैरों पर घर वापस आना 4 पैरों पर नहीं, ठीक है?” फिर नेहा रसोई में बिजी हो गई खाना और तरकारी पकाने के लिए।

और दूसरी तरफ, उसके पापा पीते वक्त सिर्फ नेहा को ही सोचे जा रहे थे। वो सोच रहा था कि नेहा इतनी ज्यादा खूबसूरत क्यों लगने लगी है अब? कितनी हसीन और गरम दिखने लगी है। बहुत सेक्सी दिखती है। यहाँ के सभी मर्दो के लण्ड के नश को तोड़ डालेगी अगर गली से वो गुजरी तो। फिलहाल उसकी जैसी हसीन तो गाँव में कोई है ही नहीं। और मेरे घर में एक ऐसी हसीन कयामत आई हुई है कि मैं कैसे सम्भालूं अपने आपको । अब..." और पिता सोचने लगा कि घर वापस जाने के बाद वो कैसे नेहा के साथ पेश आएगा? क्या करेगा? कैसे

उसके करीब जाएगा? उसने यह भी सोचा की अब तो नेहा कुँवारी नहीं है तो जो पहले नहीं कर पाया था अब तो कर पाएगा शायद।

मगर क्या नेहा अब भी पहले की तरह वो सब करने देगी? उसके जिश्म को छूने देगी या सिर्फ अपने पति के लिए जिश्म को बचाके रखेगी? पिता यह सब सोचकर अपने लण्ड की हरकत को संभाल नहीं पा रहा था। फिर पिता ने यह भी सोचा कि उसको कितना हसीन मौका मिल रहा है क्योंकी उसकी पत्नी घर पर नहीं है और नेहा पूरे एक हफ्ते उसके साथ रहेगी उसके घर में हर रात को। वो बहुत खुश होने लगा और पीते-पीते हफ्ते भर नेहा को चोदने के मंसूबे बनाने लगा।

फिर वो उन दिनों को सोचने लगा जब वो नेहा के जिश्म को छुआ करता था, कैसे नेहा हिचकिचाती थी मगर कभी मना नहीं करती थी। और फिर पिता ने यह भी याद किया कि शादी से कुछ दिन पहले उसने नेहा से कह दिया था कि उसके शादी के बाद वो उसके साथ पूरी तरह से संभोग करेगा। तो उसने सोचा कि नेहा को अच्छी तरह से पता है कि मैं उसको चोदना चाहता हूँ सालों पहले से, कितनी बार उसके जिश्म पर इस लण्ड को रगड़ कर अपना पानी छोड़ा है उसके जिश्म पर, जब उसको पता भी नहीं था कि मैं उसके साथ क्या कर रहा हूँ? उसको पहला लण्ड भी तो मैंने ही दिखाया पहली बार, सबसे पहले तो उसने मेरा ही लण्ड देखा था, पति का लण्ड तो बहुत साल बाद देखा है उसने।
 
तकरीबन 8 साल पहले से मैं अपने लण्ड को उसकी नाजुक चूत के ऊपर रगड़ता आया हूँ, और उसी उम्र से मेरी नेहा को मेरे लण्ड का पता चल गया है, तो आज क्या मझको रोक सकती है भला? बिल्कल नहीं... उसको पता होगा कि वोह एक हफ्ते के लिये वो मेरे लिए आई हुई है वापस इस घर में। फिर भी पिता को थोड़ा सा डर था कि कहीं नेहा बदल ना गई हो और एक पतिव्रता पत्नी ना बनना चाहती हो और यह ना कहे कि अपने पति को धोखा नहीं देना चाहती। अगर उसने ऐसा कहा तो बहुत निराशा वाली बात होगी तब तो। पिता अकेले बड़बड़ाए जा रहा था और आखिर में खुद से कहा कि अगर नेहा ने इनकार भी किया तो वो जबरदस्ती चोदेगा उसको।

पिता के दिमाग में सिर्फ नेहा बसी हुई थी और उसको उस साड़ी में नेहा बहुत सेक्सी नजर रही थी, उसको नेहा की पतली कमर, गोरी चमड़ी, उसकी गाण्ड, और चूचियां नजर आ रही थीं, और उसकी कल्पना करते हुए उसका लण्ड जमके खड़ा हो गया था। नेहा की चूचियों को उसे चूसने का मन कर रहा था, पिता बिल्कुल तैयार था नेहा
को बिस्तर पर लेटाने के लिए। नेहा का पिता नेहा को मन में बसाये जल्दी से घर लौटा। मगर घर आते ही उसको बहुत मायूसी हुई, अपने बेटे और बहू को नेहा बातें करते हुए देखकर।

जो भाई कुछ देर पहले नेहा से मिला था, वो घर जाकर अपनी पत्नी को लेकर नेहा से मिलने आ गया था अपने पिता के घर। और नेहा लाउंज में बैठी उन दोनों के साथ बात कर रही थी। बाप को बेटे और बहू को अपने घर देखकर बेचैनी होने लगी, क्यों की अब उसके प्लान पर पानी फिरता हआ नजर आने लगा था। वो अपने बेटे और बहू से मिला, फिर अपने कमरे में जाकर सोचने लागा- “क्या होगा। अगर उन दोनों ने रहने का फैसलाकर लिया तो? वो बिल्कुल नहीं चाहता था कि ऐसा कुछ हो। उन लोगों के वापस जाने का बेसब्री से वो इंतेजार करने लगा। खुद उसके बेटे और बहू उसको उस वक्त दो घुसपैठिये लग रहे थे। बहुत ही बेचैन था क्योंकी वो सिर्फ अपनी बेटी के साथ रहना चाहता था..."

और एक घंटे के बाद उसका बेटा अनिल उससे कहने आया- “वह नेहा को रात के लिए अपने घर ले जाना चाहता हैं..."
 
जो भाई कुछ देर पहले नेहा से मिला था, वो घर जाकर अपनी पत्नी को लेकर नेहा से मिलने आ गया था अपने पिता के घर। और नेहा लाउंज में बैठी उन दोनों के साथ बात कर रही थी। बाप को बेटे और बहू को अपने घर देखकर बेचैनी होने लगी, क्यों की अब उसके प्लान पर पानी फिरता हआ नजर आने लगा था। वो अपने बेटे और बहू से मिला, फिर अपने कमरे में जाकर सोचने लागा- “क्या होगा। अगर उन दोनों ने रहने का फैसलाकर लिया तो? वो बिल्कुल नहीं चाहता था कि ऐसा कुछ हो। उन लोगों के वापस जाने का बेसब्री से वो इंतेजार करने लगा। खुद उसके बेटे और बहू उसको उस वक्त दो घुसपैठिये लग रहे थे। बहुत ही बेचैन था क्योंकी वो सिर्फ अपनी बेटी के साथ रहना चाहता था..."

और एक घंटे के बाद उसका बेटा अनिल उससे कहने आया- “वह नेहा को रात के लिए अपने घर ले जाना चाहता हैं..."

अब उसका पशीना छूट गया और सोचा कि अगर एतराज करेगा तो वह दोनों कुछ और सोचने लगेंगे, इसलिए उसने अनिल से पूछा- “नेहा जाना चाहती है क्या?"

अनिल बोला- “नहीं, उसने जवाब नहीं दिया इसीलिए मैं आपसे पूछने आया हूँ.."

तो बाप ने कहा- “तो फिर चलो, पहले उसी से पूछते हैं ना? बहुत सारे जवान और अधेड़ लोगों ने भी नेहा को जाते हुये उसी से पूछते हैं कि वो तुम्हारे यहाँ जाना चाहती है या अपने घर में रहना चाहती है? इतने दिनों बाद तो आयी है इस घर में आज...”

बाप बेटे लाउंज में गये और पिता ने पूछा- “बेटी, तुम अपने भाई के यहाँ जाना चाहोगी या यहाँ रहना पसंद करती हो?"

तो नेहा बोली- “मगर मैंने डिनर बाना दिया है और पापा को सर्व करना है, भइया और भाभी आप दोनों भी हमारे साथ ही डिनर करके जाना अब..."

मगर अनिल और उसकी बीवी ने कहा- “उन लोगों ने भी घर पर डिनर बना दिया है और अब उनको जाना चाहिए..."
नेहा ने अपने भैया भाभी को सारी कहा और कहा- “फिर कभी आएगी उन लोगों के यहाँ.."

तब बाप को सुकून मिला और नेहा को एक आँख मारा और नेहा ने एक शर्मीली मुश्कान दी उनको।

बेटे और बहू को टेरेस पर से नेहा और उसके पिता ने हाथ हिलाकर बिदा किया।

जब दोनों जा रहे थे, उस वक्त नेहा के पिता ने सोचा- “क्या होगा अगर अब उसका दूसरा बेटा और बहू आ गये तो? उसने प्रार्थना किया की अब कोई उसके घर नहीं आए.."

 
जब वो लोग चले गये तो नेहा अपने पापा के सामने चलते हुए घर के अंदर जा रही थी और उसका बाप उसको चलते हुए देख रहा था, पीछे से उसकी गाण्ड का हिलना देख रहा था, नेहा के चलने से। उस समय नेहा ने एक पारंपरिक टू-पीस पहनी हुई थी, जो गाँव के लोग पहना करते हैं, ब्लाउज़ और स्कर्ट। बस समझ लो कि चोली और लहंगा के जैसे दिखते थे। नेहा की क्लीवेज बहुत अच्छी तरह से नजर आ रहे थी, लगता था गुब्बारों में पानी भरे हुए थे।

बाप का लण्ड कुछ इस तरह से तना हुआ था कि उसको लगता था पैंट फाड़कर बाहर निकल आएगा। नेहा ने मुड़कर अपने पिता की आँखों में देखा और मुश्कुराई, और वो बिल्कुल नार्मल होने का बहाना कर रही थी हालांकी उसको अपने पिता के इरादों का अच्छी तरह से पता था। जब बाप नेहा के करीब पहुँचा तो नेहा के कंधे पर एक हाथ रखकर हल्के से सहलाते हुए कहा- “तुम अपने पापा की प्यारी सेक्सी बेटी हो..."

नेहा ने अंदर जाते हुए कहा- “आप नशे में हो, है ना? मगर शुक्र है आपने और नहीं पी वरना मैं आपसे बात नहीं करती हाँ..."

तब बाप ने अपने हाथ को नेहा की नंगी कमर पर रखा और दबाते हुए कहा- “तुमने इतने अच्छी कपड़े पहन रखे हैं, क्या लग रही हो? मन करता है तुम्हें सीधे अभी के अभी बिस्तर पर ले जाऊँ। तुमको चखने को बड़ा मन कर रहा है री... एक मुद्दत हो गई तुमसे प्यार किए हुए मेरी प्यारी बिटिया.."

नेहा ने कहा- “बिल्कुल नहीं, पहले खाना खाने चलो..."

बाप ने कहा- “उसका मन तो सिर्फ नेहा को खाने को कर रहा है...” और यह कहकर उसने नेहा को अपने कमरे में खींचा कि नेहा को एक-दो कदम दौड़ना पड़ा उसके खींचने से। और जैसे ही वो अपने कमरे में पहँचा तो नेहा को अपनी बाहों में बड़े जोर से जकड़ करके चूमने लगा, जैसे कि उसको आज पहली बार एक औरत मिली है, अपनी बाहों में।

नेहा ने अपने पापा के किस को भरपूर आराम से रेस्पांड किया उसको अपने बाहों में थामे। और बाप ने हाथ नेहा की पूरे पीठ पर फेरा नेहा के कपड़ों को महसूस करते हुये। उसकी ब्लाउज़ और थोड़ी बहुत नंगी पीठ, उसके कंधे, और बाप ने लण्ड को नेहा के नीचे के नर्म हिस्सों पर दबाते हए किस जारी रखा। किस के बाद नेहा को अपनी बाहों में भरे हए ही बाप ने उसके कंधे और गले को चूमते हए पूछा- “अब अपने पति के साथ मजा करती हो ना रानी? हम्म्म... मजा आता है ना अब? अब जान गई हो ना कितना मजा और आनंद मिलता है यह करने में? अब तुमको समझ में आ गया होगा ना कि मैं क्या चाहता था तुमसे तेरी शादी से पहले? बोल ना? क्या जब वो तेरे साथ करता है तो कभी एक बार भी तुमने मुझको सोचा उसके साथ करने के दौरान... हाँ, बता ना मुझे...”
 
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