desiaks
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उसको डर होने लगा अब... परेशानी में उसने नेहा की चूची को छुआ, सहलाया और दबाया जिससे नेहा चिहुँक कर उठ बैठी, अपनी नाइटी को चूची के ऊपर करते हुए। नेहा बहुत हैरान हो गई जब प्रवींद्र को देखा, फिर अपने
कमरे के दरवाजे की तरफ देखा, रवींद्र को देखा फिर धीरे से प्रवींद्र से कहा- “जाओ वापस जाओ, पागल हो क्या तुम? जाओ यहाँ से..."
पर प्रवींद्र जैसे बौखलाया हुआ खड़ा था। खुद अपने छाती पर अपना हाथ रखा और कहा- “भाभी एक प्राब्लम है प्लीज चलो, बताता हूँ..."
नेहा ने कहा- “नहीं, अभी नहीं... तुम जाओ यहाँ से वरना तुमको कभी अपने पास नहीं आने दूंगी समझे तुम..."
प्रवींद्र अब नेहा के लिये नहीं अपने लण्ड को लेकर परेशान था। उसने धीरे से नेहा के कान में कहा- “भाभी, मैं तुमको, तुम्हारी चूचियों को बहुत देर से नंगा देख रहा हूँ पर मेरा खड़ा नहीं हो रहा है, मुझे बहुत फिकर होने लगी, डर लग रहा है..." और नेहा का हाथ पकड़कर अपने सीने से लगाया और कहा- “देखो मेरे दिल की धड़कनों को महसूस करो, ऐसा होता है क्या? मैं बहत चिंतित हँ भाभी, ऐसा क्यों हो रहा है?"
नेहा ने जब उसके दिल की धड़कनों को इतने जोरों से धड़कना महसूस किया तो उसको भी अजीब लगा और हैरान प्रवींद्र के चेहरे में देखते हुए कहा- “क्या हुआ? तुमने कोई बुरा सपना देखा क्या?” यह कहकर नेहा बेड से उठकर रूम की लाइट को ओन किया और प्रवींद्र के चेहरे में देखने लगी। वो बहुत डरा हुआ दिख रहा था, तो नेहा को बहुत हैरानी हुई और ऊसने पूछा- “हुआ क्या? कहाँ थे तुम? सो रहे थे ना? कहीं गये थे क्या तुम? भूत-व्रत तो नहीं देखा ना?"
प्रवींद्र ने जोर से नेहा को बाहों में जकड़ते हुए टूटी हुई आवाज में कहा- “भाभी चलो ना मेरे साथ, इसका इलाज तो करो ना कि मुझे क्या हो रहा है समझ में नहीं आता मुझे.."
नेहा मुड़कर रवींद्र को सोते हुए देखती है और मुश्कुराकर प्रवींद्र के होंठों पर अपने हाथ रखकर 'ओहह' कहती है,
और धीरे से फुसफुसाते हुए प्रवींद्र से कहा- “अच्छा तुम चलो, मैं पीछे आती हूँ.."
प्रवींद्र की जान में जान आई और वो अपने कमरे में गया और नेहा का इंतेजार करने लगा। नेहा पहले टायलेट गई और टायलेट से सीधे प्रवींद्र के कमरे में गई। प्रवींद्र सिर्फ एक अंडरवेर में बेड पर लेटा इंतेजार कर रहा था। नेहा ने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा- “तुम बहुत बुरे हो, मैं इतनी अच्छी नींद में सोई हुई थी, सिर्फ यह सब करने के लिए मुझको जगाया। कल का इंतेजार नहीं कर सकते थे तुम? बहुत बदमाश हो गए हो तुम आजकल..."
प्रवींद्र ने कहा- “नहीं भाभी, तुम समझ नहीं रही हो, देखो अब भी खड़ा नहीं हुआ है यह, तुम्हारे इस कमरे में घुसते ही इसको चट्टान की तरह खड़ा हो जाना चाहिए था। मेरी समझ में नहीं आता, कोई प्राब्लम है, क्या हो रहा है?"
नेहा मुश्कुराई और कहा- “अच्छा यह बात है, अभी देखती हूँ कैसे खड़ा नहीं होता यह पप्पू तेरा..."
तब प्रवींद्र बोला- “नहीं भाभी आपके बिना छुए इसको खड़ा होना चाहिए था.. आप एक काम कीजिए आप यहाँ लेट जाइए मैं आपके पास खड़े होकर कुछ देर देखना चाहता हूँ कि यह खड़ा होता है या नहीं? अगर तब भी नहीं हुआ तब आप इसको खड़ा करना..."
तो नेहा हँसते हुए प्रवींद्र के बेड पर लेट जाती है। प्रवींद्र उसके पैरों की तरफ जाता है और अपनी भाभी से कहता है- “भाभी अपने एक पैर को जरा ऊपर उठाओ ना प्लीज...”
जिस जगह प्रवींद्र खड़ा था, बेड के नीचे की तरफ यानी नेहा के पाँव की तरफ, वहाँ से नेहा पैर उठती तो उसकी जांघों के बीच उसकी पैंटी नजर आती।
तो नेहा मुश्कुराते हुए बोलती है- “क्यों टांग क्यों उठाऊँ? ऐसे कुछ नहीं दिखता क्या तुमको? मेरी नाइटी इतनी छोटी है, जांघों के ऊपर है, इतनी पतली है की मेरी चूचियां और पैंटी दिख रही है, तो और क्या चाहिए तुझे? हम्म्म ..."
प्रवींद्र अपने अंडरवेर के ऊपर हाथ फेरते हुए कहता है- “बात को समझो ना भाभी, उठाओ ना अपनी एक टांग
को प्लीज..."
नेहा छत को ऊपर देखते हुए एक टांग को ऊपर उठती है जिससे उसकी दोनों जांघों के बीच वाले नर्म, नाजुक, मुलायम हिस्से नजर आते हैं, और प्रवींद्र घुटनों के बल नीचे बैठता है और एक हाथ नेहा की जाँघ पर फेरता है
और अंडरवेर को निकलकर एक हाथ अपने लण्ड पर ले जाता है। ज्यों-ज्यों वो नेहा की जांघों को ऊपर सहलाता जाता था वैसे-वैसे उसका लण्ड धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा था। जब उसका हाथ चूत के ऊपर नेहा की पैंटी को छुआ तो उसका लण्ड एकदम जमके कडक खडा हो गया और खशी से प्रवींद्र खडा होकर नेहा को अपना लण्ड दिखाते हुए एक छोटे बच्चे की तरह झूम कर कहता है- “हो गया भाभी, खड़ा हो गया, मैं बहुत खुश हूँ.. मुझे फिकर होने लगी थी... बाप रे..."
कमरे के दरवाजे की तरफ देखा, रवींद्र को देखा फिर धीरे से प्रवींद्र से कहा- “जाओ वापस जाओ, पागल हो क्या तुम? जाओ यहाँ से..."
पर प्रवींद्र जैसे बौखलाया हुआ खड़ा था। खुद अपने छाती पर अपना हाथ रखा और कहा- “भाभी एक प्राब्लम है प्लीज चलो, बताता हूँ..."
नेहा ने कहा- “नहीं, अभी नहीं... तुम जाओ यहाँ से वरना तुमको कभी अपने पास नहीं आने दूंगी समझे तुम..."
प्रवींद्र अब नेहा के लिये नहीं अपने लण्ड को लेकर परेशान था। उसने धीरे से नेहा के कान में कहा- “भाभी, मैं तुमको, तुम्हारी चूचियों को बहुत देर से नंगा देख रहा हूँ पर मेरा खड़ा नहीं हो रहा है, मुझे बहुत फिकर होने लगी, डर लग रहा है..." और नेहा का हाथ पकड़कर अपने सीने से लगाया और कहा- “देखो मेरे दिल की धड़कनों को महसूस करो, ऐसा होता है क्या? मैं बहत चिंतित हँ भाभी, ऐसा क्यों हो रहा है?"
नेहा ने जब उसके दिल की धड़कनों को इतने जोरों से धड़कना महसूस किया तो उसको भी अजीब लगा और हैरान प्रवींद्र के चेहरे में देखते हुए कहा- “क्या हुआ? तुमने कोई बुरा सपना देखा क्या?” यह कहकर नेहा बेड से उठकर रूम की लाइट को ओन किया और प्रवींद्र के चेहरे में देखने लगी। वो बहुत डरा हुआ दिख रहा था, तो नेहा को बहुत हैरानी हुई और ऊसने पूछा- “हुआ क्या? कहाँ थे तुम? सो रहे थे ना? कहीं गये थे क्या तुम? भूत-व्रत तो नहीं देखा ना?"
प्रवींद्र ने जोर से नेहा को बाहों में जकड़ते हुए टूटी हुई आवाज में कहा- “भाभी चलो ना मेरे साथ, इसका इलाज तो करो ना कि मुझे क्या हो रहा है समझ में नहीं आता मुझे.."
नेहा मुड़कर रवींद्र को सोते हुए देखती है और मुश्कुराकर प्रवींद्र के होंठों पर अपने हाथ रखकर 'ओहह' कहती है,
और धीरे से फुसफुसाते हुए प्रवींद्र से कहा- “अच्छा तुम चलो, मैं पीछे आती हूँ.."
प्रवींद्र की जान में जान आई और वो अपने कमरे में गया और नेहा का इंतेजार करने लगा। नेहा पहले टायलेट गई और टायलेट से सीधे प्रवींद्र के कमरे में गई। प्रवींद्र सिर्फ एक अंडरवेर में बेड पर लेटा इंतेजार कर रहा था। नेहा ने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा- “तुम बहुत बुरे हो, मैं इतनी अच्छी नींद में सोई हुई थी, सिर्फ यह सब करने के लिए मुझको जगाया। कल का इंतेजार नहीं कर सकते थे तुम? बहुत बदमाश हो गए हो तुम आजकल..."
प्रवींद्र ने कहा- “नहीं भाभी, तुम समझ नहीं रही हो, देखो अब भी खड़ा नहीं हुआ है यह, तुम्हारे इस कमरे में घुसते ही इसको चट्टान की तरह खड़ा हो जाना चाहिए था। मेरी समझ में नहीं आता, कोई प्राब्लम है, क्या हो रहा है?"
नेहा मुश्कुराई और कहा- “अच्छा यह बात है, अभी देखती हूँ कैसे खड़ा नहीं होता यह पप्पू तेरा..."
तब प्रवींद्र बोला- “नहीं भाभी आपके बिना छुए इसको खड़ा होना चाहिए था.. आप एक काम कीजिए आप यहाँ लेट जाइए मैं आपके पास खड़े होकर कुछ देर देखना चाहता हूँ कि यह खड़ा होता है या नहीं? अगर तब भी नहीं हुआ तब आप इसको खड़ा करना..."
तो नेहा हँसते हुए प्रवींद्र के बेड पर लेट जाती है। प्रवींद्र उसके पैरों की तरफ जाता है और अपनी भाभी से कहता है- “भाभी अपने एक पैर को जरा ऊपर उठाओ ना प्लीज...”
जिस जगह प्रवींद्र खड़ा था, बेड के नीचे की तरफ यानी नेहा के पाँव की तरफ, वहाँ से नेहा पैर उठती तो उसकी जांघों के बीच उसकी पैंटी नजर आती।
तो नेहा मुश्कुराते हुए बोलती है- “क्यों टांग क्यों उठाऊँ? ऐसे कुछ नहीं दिखता क्या तुमको? मेरी नाइटी इतनी छोटी है, जांघों के ऊपर है, इतनी पतली है की मेरी चूचियां और पैंटी दिख रही है, तो और क्या चाहिए तुझे? हम्म्म ..."
प्रवींद्र अपने अंडरवेर के ऊपर हाथ फेरते हुए कहता है- “बात को समझो ना भाभी, उठाओ ना अपनी एक टांग
को प्लीज..."
नेहा छत को ऊपर देखते हुए एक टांग को ऊपर उठती है जिससे उसकी दोनों जांघों के बीच वाले नर्म, नाजुक, मुलायम हिस्से नजर आते हैं, और प्रवींद्र घुटनों के बल नीचे बैठता है और एक हाथ नेहा की जाँघ पर फेरता है
और अंडरवेर को निकलकर एक हाथ अपने लण्ड पर ले जाता है। ज्यों-ज्यों वो नेहा की जांघों को ऊपर सहलाता जाता था वैसे-वैसे उसका लण्ड धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा था। जब उसका हाथ चूत के ऊपर नेहा की पैंटी को छुआ तो उसका लण्ड एकदम जमके कडक खडा हो गया और खशी से प्रवींद्र खडा होकर नेहा को अपना लण्ड दिखाते हुए एक छोटे बच्चे की तरह झूम कर कहता है- “हो गया भाभी, खड़ा हो गया, मैं बहुत खुश हूँ.. मुझे फिकर होने लगी थी... बाप रे..."