desiaks
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नेहा की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करे? पिछले 35 दिनों से नेहा ने भी सेक्स नहीं किया था
और वो भी गरम होने लगी थी। मगर पंडितजी की इज्जत, धर्म कर्म, और रीति रिवाज और परंपरा इन सबको सोचते हुए नेहा दुविधा में पड़ गई थी, धार्मिक मामलों को भी सोच रही थी और इन सब चीज़ों को सोचते हुए उसके दिमाग में कुछ नहीं सूझ रहा था। नेहा बहत कन्फ्यू ज्ड थी मगर साथ-साथ उसके जिश्म की गर्मी भी बढ़ी हुई थी, वो प्यासी भी था सेक्स के लिए, एक मर्द की छुवन थी और खासकर उम्र वाला एक मर्द था वहाँ और उसका लण्ड रगड़ रहा था उसके जिश्म पर। नेहा उसको पश नहीं कर रही थी मगर आदर और इज्जत से बात करने की कोशिश कर रही था ।
नेहा ने कहा- “पंडितजी, आप एक पंडित हो और यह आपको शोभा नहीं देता। आपको अपनी इज्जत और स्टेटस का खयाल करना चाहिए...”
मगर तब तक पंडित ने नेहा के आँचल को खींच दिया था। नेहा की ब्लाउज़ उसकी कड़क चूचियों से उभरी हुई थी, उसके निपल्स जैसे एक खड़े हए लण्ड की तरह ब्रा के बाहर निकलना चाहते थे। पंडित नेहा के पीछे, उसके कंधों के ऊपर से उसकी क्लीवेज को देखते हुए अपने लण्ड को और जोर से दबाते हुए उसके चूतरों पर रगड़ते
जा रहा था। और कहा- “नेहा बिटिया, इस वक्त भूल जाओ कि मैं कोई पंडित हूँ, इस वक्त मैं एक भूखा इंसान हूँ और तुम्हारे पास वो खाने वाली चीज है जो तुम मुझे खिला सकती हो, बाकी सब कुछ बिल्कुल भूल जाओ तुम। मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारे पूरे शरीर में भी वोही भूख है, क्योंकी पिछले 35 दिनों से तुम व्रत रख रही हो ना इसके लिए। क्यों अपने शरीर पर अत्याचार कर रही हो बिटिया?"
नेहा ने अपने जिश्म को पूरी तरह से पंडितजी के सामने घुमा लिया और अब पंडितजी का लण्ड नेहा के पेट के नीचे चूत के बहुत करीब छू रहा था दबाते हुए। और नेहा अब आमने सामने थी पंडितजी के और नेहा के लबों पर एक हल्की सी मुस्स्कान जैसी थी।
उस मुश्कान को देखकर पंडितजी ने खुद के मन में कहा- “हाँ... अब यह मुझे करने देगी, अलबत्ता यह गरम हो गई लगता है। है तो एक बहुत ही गरम माल यह लड़की, मुझे बस और ज्यादा बातों में उलझाना है इसे अब। रास्ते में आ रही है यह। इसको भी जरूरत है एक लण्ड की मुझे पक्का यकीन है..."
पंडित ने अपने चेहरे को नेहा की छाती पर रगड़ते हुए भुनभुनाते हुये कहा- “तुम इस वक्त एक बेहद खूबसूरत परी की तरह हो जिसको ऊपर वाले मालिक ने मेरी प्यास बुझाने के लिए ही भेजा है। मैं पछता रहा हूँ कि क्यों शुरू में ही मैंने तुमको अपनी तरफ नहीं किया? कई बार हम दोनों ने बहुत मजा कर लिया होता अब तक.."
यह सुनकर नेहा ने उसकी बाहों में जकड़े हुए ही उससे पूछा- “क्या आप शुरू से ही मुझको उस नजर से देखते थे? इससे पहले ही कि मैंने आपको यह सब कुछ कहा..."
पंडितजी ने नेहा की कमर को और ज्यादा अपने नीचे वाले हिस्से से दबाते हुए जवाब दिया- “बेशक... मैं तुमको निहारा करता था, तुम हो ही इतनी गरम, सेक्सी कि दुनियां का कोई भी मर्द तुमको उस नजर से देखेगा, अपने बिस्तर पर लेटना चाहेगा...”
तब तक नेहा ने तकरीबन अपने आपको पंडितजी को समर्पण कर दिया था और वो खुद को पंडितजी कि बातों में रंगने दे रही थी और उसकी रगड़ से लुत्फ़ उठाने लगी थी छोटी-छोटी सिसकारियों के साथ।
उस मौके का फायदा उठाते हुए पंडित अपने लण्ड को नेहा की चूत के ऊपर दबा रहा था, नेहा के चेहरे में देखते हए कि क्या वो कोई शिकायत करेगी उसके लण्ड को अपनी चूत पर महसूस करके। साड़ी में लिपटी पेटीकोट के अंदर ही सही पंडितजी अपने धोती के अंदर से ही फिर भी नेहा की चूत पर अपने लण्ड को दबाए जा रहा था हल्के-हल्के रगड़ते हुए। फिर धीरे से पंडित ने अपनी धोती को हटाकर अपने लण्ड को हाथ से नेहा का पेटीकोट उठाकर उसकी जांघों पर दबाया, नेहा के चेहरे में देखते हुए।
नेहा ने कुछ नहीं कहा और पंडितजी के लण्ड को महसूस करते हुए अपनी आँखों को बंद कर लिया।
पंडित समझ गया कि अब नेहा बिल्कुल तैयार हो गई है, तो पंडितजी ने नेहा को बाहों में उठाया और उसके बिस्तर पर लेटा दिया और नेहा चुपचाप लेट गई पंडितजी के सामने। अपने बिस्तर पर नेहा लेटी हुई थी, अपने पाँव लटकाए हुए एक अंगड़ाई ले रही थी। जबकी पंडित ने अपने वेस्ट निकाला और जल्दी से धोती को उतरा नेहा के जिश्म को बिस्तर पर अपनी आँखों के सामने उस तरह से लेटे देखते हए। और नेहा भी पंडितजी को वासना भरी नजरों से देखने लगी थी तब तक।
पंडित ने जल्दी से फिर नेहा की टाँगों को ऊपर उठाते हए उसकी साड़ी और पेटिकोट को उसके पैरों से ऊपर उठाया उसकी गोरी टाँगों को निहारते हुए उसकी लार टपक पड़ी, जब नेहा के घुटनों को देखा और धीरे-धीरे ऊपर और ऊपर उसकी सफेद गदराई जांघों पर उसकी नजर पड़े। जब पंडित नेहा की जांघे देख रहा था तो नेहा पंडित के चेहरे में उस खुशी को देख रही थी और समझ रही थी कि वो कितनी खुशी इस वक्त उस पंडित को देने वाली थी।
पंडित नेहा की गोरी चमड़ी पर अपनी हथेली फेरता गया बहुत प्यार और आराम से निहारते हुए और अपना पूरा टाइम लेते हुए बिल्कुल संतुष्ट होकर सब कुछ कर रहा था इस नायाब जिश्म को अपने हाथ में लेकर जिसको भगवान ने उसके झोली में अचानक डाल दिया था। पंडित सोच रहा था भगवान ने उसको एक नायाब तोहफा दे दिया है इस उम्र में। यह एक बिन माँगी दुआ थी जो कुबूल हो गई थी।
और नेहा पंडित के चेहरे में वो खुशी देखते हुए सोच रही थी कि कितनी सख्त जरूरत उस पंडित को है आज उसके कामुक जिश्म से प्यार करने की। फिर नेहा को भी लगा कि यह कदरट का खेल था। किश्मत ने जानबूझ कर आज उन दोनों को एक साथ किया था। दोनों तरफ से बराबर की आग लगी हुई थी, दोनों प्यासे थे, दोनों के शरीर को सेक्स की सख़्त जरूरत थी।
नेहा सोच रही थी कि पंडित से ज्यादा तो शायद उसको जिश्म की आग बुझाने की जरूरत थी। और नेहा ने यह भी सोचा कि शायद उसकी किश्मत में ही ऐसा लिखा है कि वो उम्र वाले लोगों कि प्यास को ज्यादा बुझाए। वो सोचने लगी कि वो बूढ़े लोगों के साथ इतना एंजाय करती थी हर बार कि इसको एक सेक्स का खेल समझ लिया और सोचा कि यह भी एक खेल ही है।
फिर महीनों से भूखे एक भेड़िये की तरह पंडित नेहा की गदराई जांघों को चाटने चूसने लगा। पंडित नेहा की पैंटी तक पहुँचा और पैंटी को ही चूसने लगा जो बिल्कुल गीली हो चुकी थी। पंडित ने सोचा- “पता नहीं कब से गीली हो चुकी है उसके छुवन से, मतलब चुदवाने की इच्छा खुद थी नेहा को पहले से ही.."
असल में जब चटाई पर बैठे दोनों बातें कर रहे थे और पंडित ने नेहा के हाथ को अपने लण्ड के पास किया था धोती के ऊपर, तभी से नेहा का पानी निकलना शुरू हो गया था। फिर उसके बाद जब पंडित ने नेहा को जकड़ा
और अपने लण्ड को उसकी गाण्ड पर रगड़ना शुरू किया तो नेहा और भी भीगती गई नीचे। पंडित ने पैंटी को चाटा, चूसा, और आखिर में उसको निकाल फेंका।
फिर पंडित ने अपनी जीभ से काम किया नेहा की चूत पर पंखुड़ियों को उंगलियों से हटाते हुए और अपनी जीभ
को चूत के अंदर डाला। नेहा बेड को रगड़ने लगी अपने जिश्म को साँप की तरह ऐंठते हुए जैसे कि उसको जिंदगी में पहली बार कोई चूस रहा था, ऐसा महसूस हो रहा था उसे। जोरों से सिसकारियां लेते हुए तड़पती जा रही थी। नेहा को वोही सब फीलिंग्स हो रही थी जो उसको पहली बार हुई थी, जिस रात को उसके ससुर ने उसको चोदा था।
और वो भी गरम होने लगी थी। मगर पंडितजी की इज्जत, धर्म कर्म, और रीति रिवाज और परंपरा इन सबको सोचते हुए नेहा दुविधा में पड़ गई थी, धार्मिक मामलों को भी सोच रही थी और इन सब चीज़ों को सोचते हुए उसके दिमाग में कुछ नहीं सूझ रहा था। नेहा बहत कन्फ्यू ज्ड थी मगर साथ-साथ उसके जिश्म की गर्मी भी बढ़ी हुई थी, वो प्यासी भी था सेक्स के लिए, एक मर्द की छुवन थी और खासकर उम्र वाला एक मर्द था वहाँ और उसका लण्ड रगड़ रहा था उसके जिश्म पर। नेहा उसको पश नहीं कर रही थी मगर आदर और इज्जत से बात करने की कोशिश कर रही था ।
नेहा ने कहा- “पंडितजी, आप एक पंडित हो और यह आपको शोभा नहीं देता। आपको अपनी इज्जत और स्टेटस का खयाल करना चाहिए...”
मगर तब तक पंडित ने नेहा के आँचल को खींच दिया था। नेहा की ब्लाउज़ उसकी कड़क चूचियों से उभरी हुई थी, उसके निपल्स जैसे एक खड़े हए लण्ड की तरह ब्रा के बाहर निकलना चाहते थे। पंडित नेहा के पीछे, उसके कंधों के ऊपर से उसकी क्लीवेज को देखते हुए अपने लण्ड को और जोर से दबाते हुए उसके चूतरों पर रगड़ते
जा रहा था। और कहा- “नेहा बिटिया, इस वक्त भूल जाओ कि मैं कोई पंडित हूँ, इस वक्त मैं एक भूखा इंसान हूँ और तुम्हारे पास वो खाने वाली चीज है जो तुम मुझे खिला सकती हो, बाकी सब कुछ बिल्कुल भूल जाओ तुम। मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारे पूरे शरीर में भी वोही भूख है, क्योंकी पिछले 35 दिनों से तुम व्रत रख रही हो ना इसके लिए। क्यों अपने शरीर पर अत्याचार कर रही हो बिटिया?"
नेहा ने अपने जिश्म को पूरी तरह से पंडितजी के सामने घुमा लिया और अब पंडितजी का लण्ड नेहा के पेट के नीचे चूत के बहुत करीब छू रहा था दबाते हुए। और नेहा अब आमने सामने थी पंडितजी के और नेहा के लबों पर एक हल्की सी मुस्स्कान जैसी थी।
उस मुश्कान को देखकर पंडितजी ने खुद के मन में कहा- “हाँ... अब यह मुझे करने देगी, अलबत्ता यह गरम हो गई लगता है। है तो एक बहुत ही गरम माल यह लड़की, मुझे बस और ज्यादा बातों में उलझाना है इसे अब। रास्ते में आ रही है यह। इसको भी जरूरत है एक लण्ड की मुझे पक्का यकीन है..."
पंडित ने अपने चेहरे को नेहा की छाती पर रगड़ते हुए भुनभुनाते हुये कहा- “तुम इस वक्त एक बेहद खूबसूरत परी की तरह हो जिसको ऊपर वाले मालिक ने मेरी प्यास बुझाने के लिए ही भेजा है। मैं पछता रहा हूँ कि क्यों शुरू में ही मैंने तुमको अपनी तरफ नहीं किया? कई बार हम दोनों ने बहुत मजा कर लिया होता अब तक.."
यह सुनकर नेहा ने उसकी बाहों में जकड़े हुए ही उससे पूछा- “क्या आप शुरू से ही मुझको उस नजर से देखते थे? इससे पहले ही कि मैंने आपको यह सब कुछ कहा..."
पंडितजी ने नेहा की कमर को और ज्यादा अपने नीचे वाले हिस्से से दबाते हुए जवाब दिया- “बेशक... मैं तुमको निहारा करता था, तुम हो ही इतनी गरम, सेक्सी कि दुनियां का कोई भी मर्द तुमको उस नजर से देखेगा, अपने बिस्तर पर लेटना चाहेगा...”
तब तक नेहा ने तकरीबन अपने आपको पंडितजी को समर्पण कर दिया था और वो खुद को पंडितजी कि बातों में रंगने दे रही थी और उसकी रगड़ से लुत्फ़ उठाने लगी थी छोटी-छोटी सिसकारियों के साथ।
उस मौके का फायदा उठाते हुए पंडित अपने लण्ड को नेहा की चूत के ऊपर दबा रहा था, नेहा के चेहरे में देखते हए कि क्या वो कोई शिकायत करेगी उसके लण्ड को अपनी चूत पर महसूस करके। साड़ी में लिपटी पेटीकोट के अंदर ही सही पंडितजी अपने धोती के अंदर से ही फिर भी नेहा की चूत पर अपने लण्ड को दबाए जा रहा था हल्के-हल्के रगड़ते हुए। फिर धीरे से पंडित ने अपनी धोती को हटाकर अपने लण्ड को हाथ से नेहा का पेटीकोट उठाकर उसकी जांघों पर दबाया, नेहा के चेहरे में देखते हुए।
नेहा ने कुछ नहीं कहा और पंडितजी के लण्ड को महसूस करते हुए अपनी आँखों को बंद कर लिया।
पंडित समझ गया कि अब नेहा बिल्कुल तैयार हो गई है, तो पंडितजी ने नेहा को बाहों में उठाया और उसके बिस्तर पर लेटा दिया और नेहा चुपचाप लेट गई पंडितजी के सामने। अपने बिस्तर पर नेहा लेटी हुई थी, अपने पाँव लटकाए हुए एक अंगड़ाई ले रही थी। जबकी पंडित ने अपने वेस्ट निकाला और जल्दी से धोती को उतरा नेहा के जिश्म को बिस्तर पर अपनी आँखों के सामने उस तरह से लेटे देखते हए। और नेहा भी पंडितजी को वासना भरी नजरों से देखने लगी थी तब तक।
पंडित ने जल्दी से फिर नेहा की टाँगों को ऊपर उठाते हए उसकी साड़ी और पेटिकोट को उसके पैरों से ऊपर उठाया उसकी गोरी टाँगों को निहारते हुए उसकी लार टपक पड़ी, जब नेहा के घुटनों को देखा और धीरे-धीरे ऊपर और ऊपर उसकी सफेद गदराई जांघों पर उसकी नजर पड़े। जब पंडित नेहा की जांघे देख रहा था तो नेहा पंडित के चेहरे में उस खुशी को देख रही थी और समझ रही थी कि वो कितनी खुशी इस वक्त उस पंडित को देने वाली थी।
पंडित नेहा की गोरी चमड़ी पर अपनी हथेली फेरता गया बहुत प्यार और आराम से निहारते हुए और अपना पूरा टाइम लेते हुए बिल्कुल संतुष्ट होकर सब कुछ कर रहा था इस नायाब जिश्म को अपने हाथ में लेकर जिसको भगवान ने उसके झोली में अचानक डाल दिया था। पंडित सोच रहा था भगवान ने उसको एक नायाब तोहफा दे दिया है इस उम्र में। यह एक बिन माँगी दुआ थी जो कुबूल हो गई थी।
और नेहा पंडित के चेहरे में वो खुशी देखते हुए सोच रही थी कि कितनी सख्त जरूरत उस पंडित को है आज उसके कामुक जिश्म से प्यार करने की। फिर नेहा को भी लगा कि यह कदरट का खेल था। किश्मत ने जानबूझ कर आज उन दोनों को एक साथ किया था। दोनों तरफ से बराबर की आग लगी हुई थी, दोनों प्यासे थे, दोनों के शरीर को सेक्स की सख़्त जरूरत थी।
नेहा सोच रही थी कि पंडित से ज्यादा तो शायद उसको जिश्म की आग बुझाने की जरूरत थी। और नेहा ने यह भी सोचा कि शायद उसकी किश्मत में ही ऐसा लिखा है कि वो उम्र वाले लोगों कि प्यास को ज्यादा बुझाए। वो सोचने लगी कि वो बूढ़े लोगों के साथ इतना एंजाय करती थी हर बार कि इसको एक सेक्स का खेल समझ लिया और सोचा कि यह भी एक खेल ही है।
फिर महीनों से भूखे एक भेड़िये की तरह पंडित नेहा की गदराई जांघों को चाटने चूसने लगा। पंडित नेहा की पैंटी तक पहुँचा और पैंटी को ही चूसने लगा जो बिल्कुल गीली हो चुकी थी। पंडित ने सोचा- “पता नहीं कब से गीली हो चुकी है उसके छुवन से, मतलब चुदवाने की इच्छा खुद थी नेहा को पहले से ही.."
असल में जब चटाई पर बैठे दोनों बातें कर रहे थे और पंडित ने नेहा के हाथ को अपने लण्ड के पास किया था धोती के ऊपर, तभी से नेहा का पानी निकलना शुरू हो गया था। फिर उसके बाद जब पंडित ने नेहा को जकड़ा
और अपने लण्ड को उसकी गाण्ड पर रगड़ना शुरू किया तो नेहा और भी भीगती गई नीचे। पंडित ने पैंटी को चाटा, चूसा, और आखिर में उसको निकाल फेंका।
फिर पंडित ने अपनी जीभ से काम किया नेहा की चूत पर पंखुड़ियों को उंगलियों से हटाते हुए और अपनी जीभ
को चूत के अंदर डाला। नेहा बेड को रगड़ने लगी अपने जिश्म को साँप की तरह ऐंठते हुए जैसे कि उसको जिंदगी में पहली बार कोई चूस रहा था, ऐसा महसूस हो रहा था उसे। जोरों से सिसकारियां लेते हुए तड़पती जा रही थी। नेहा को वोही सब फीलिंग्स हो रही थी जो उसको पहली बार हुई थी, जिस रात को उसके ससुर ने उसको चोदा था।