desiaks
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सुभाष ने तुरंत हल्के से अपने होंठों को नेहा के गाल पर लगाया और तब तक उसने हाथ की उंगलियां नेहा की टी-शर्ट पर उसकी चूची को हल्के से छू रही थीं। सुभाष ने नेहा के गाल पर किस किया 'मुआहह' और उसकी चूची को थोड़ा जोर से दबाया चुम्मी लेते वक्त।
जब नेहा ने उसका हाथ अपनी चूची को दबाते हुए महसूस किया तो थोड़ा सा चिहुँकी और कहा- “आउच... बेशर्म जाओ यहाँ से, बदमाश कहीं का, अब खुश हुए तुम..."
अपनी कामयाबी पर सुभाष का चेहरा खिल उठा और एक बड़ी मुश्कुराहट के साथ नेहा के चेहरे में देखते हुए अपने हथेली को नेहा की गाण्ड पर फेरा... मतलब जाते-जाते उसने उसकी गाण्ड पर अपना हाथ फेरा और जवाब दिया- "बहत खुश... भाभी, मैं बहत खुश हआ, मगर साथ में अगर आपने भी वापस किस किया होता तो और ज्यादा खुश होता मैं..."
नेहा ने जवाब में कहा- “नहीं, मैं तुम जैसे नटखट बेशर्म लड़कों को किस नहीं करती जो किसी लड़की के जिश्म पर ऐसे चारों तरफ अपने हाथ फेरते हो। चलो जाओ..."
मगर सुभाष ने चलना रोक दिया और उसके पास ही खड़ा रह गया क्योंकी नेहा जवाब दे रही थी और नेहा की आखिरी लाइन को सुनकर तो सुभाष और नटखट होते हुए उसकी पूरी चूची को हाथ में लेकर दबाया जोर से तब वहाँ से दौड़ते हुए निकला और चंद कदम आगे जाकर, मुड़कर नेहा को एक शैतानी हँसी के साथ देखा।
जिस वक्त उसने नेहा की चूची दबाया तो नेहा ने हाथ उठाया उसको मारने के लिए मगर जिस रफ्तार से वो वहाँ से निकला नेहा ने उसको मारना मिस कर दिया और हवा में हाथ मारा उसने। नेहा को उसमें प्रवींद्र की नटखट अदायें दिखाई दी। वो लड़का बिल्कुल प्रवींद्र की तरह व्यवहार कर रहा था। और नेहा प्रवींद्र को सोचने लगी, सुभाष की नटखट अदाओं से कंपेयर करते हुए।
गैरेज में वापस जाते ही दूसरों ने सुभाष को घेर लिया और उससे जानकारी प्राप्त करने लगे।
अपनी जगह से नेहा ने भी गैरेज में देखा कि सबने सुभाष को घेर रखा है और वो उस वक्त अपनी कामयाबी का ढोल पीट रहा होगा कि वो कितना बड़ा हीरो है लड़की पटाने में। मगर अचानक नेहा ने सोचा की तब तो वहाँ के दूसरे लोग भी उसके साथ वैसा ही करना चाहेंगे। फिर नेहा ने खुद से कहा कि सुभाष सब डीटेल्स तो नहीं बताएगा अपने दोस्तों को।
आधे घंटे के बाद नेहा आँगन के एक तार पर धुले हुए कपड़े टाँगने लगी सूखने के लिए और वहाँ से वो गैरेज के
और करीब थी। उस समय वहाँ के सब लोग सिर्फ नेहा को ही देख रहे थे और सुभाष अपने हाथों से इशारे कर रहा था नेहा को, जैसे वो उसका आशिक था और नेहा उसकी कोई गर्लफ्रेंड थी।
नेहा करती भी क्या वो बस मुश्कुरा रही थी उसके साथ। जब नेहा झुक करके नीचे जमीन पर रखे हुए बाल्टी में से धुले हुए कपड़े ले रही थी, तब वहाँ के चारों मर्द नेहा की चूचियां को देख रहे थे, काली ब्रा और स्ट्रैप्स के अंदर। मगर नेहा बे-फिक्र होकर अपना काम करती रही गैरेज की तरफ देखते हए। उसने देखा कि चारों उसको ही देख रहे हैं मगर नेहा ने कोई परवाह नहीं किया।
जब नेहा ने उसका हाथ अपनी चूची को दबाते हुए महसूस किया तो थोड़ा सा चिहुँकी और कहा- “आउच... बेशर्म जाओ यहाँ से, बदमाश कहीं का, अब खुश हुए तुम..."
अपनी कामयाबी पर सुभाष का चेहरा खिल उठा और एक बड़ी मुश्कुराहट के साथ नेहा के चेहरे में देखते हुए अपने हथेली को नेहा की गाण्ड पर फेरा... मतलब जाते-जाते उसने उसकी गाण्ड पर अपना हाथ फेरा और जवाब दिया- "बहत खुश... भाभी, मैं बहत खुश हआ, मगर साथ में अगर आपने भी वापस किस किया होता तो और ज्यादा खुश होता मैं..."
नेहा ने जवाब में कहा- “नहीं, मैं तुम जैसे नटखट बेशर्म लड़कों को किस नहीं करती जो किसी लड़की के जिश्म पर ऐसे चारों तरफ अपने हाथ फेरते हो। चलो जाओ..."
मगर सुभाष ने चलना रोक दिया और उसके पास ही खड़ा रह गया क्योंकी नेहा जवाब दे रही थी और नेहा की आखिरी लाइन को सुनकर तो सुभाष और नटखट होते हुए उसकी पूरी चूची को हाथ में लेकर दबाया जोर से तब वहाँ से दौड़ते हुए निकला और चंद कदम आगे जाकर, मुड़कर नेहा को एक शैतानी हँसी के साथ देखा।
जिस वक्त उसने नेहा की चूची दबाया तो नेहा ने हाथ उठाया उसको मारने के लिए मगर जिस रफ्तार से वो वहाँ से निकला नेहा ने उसको मारना मिस कर दिया और हवा में हाथ मारा उसने। नेहा को उसमें प्रवींद्र की नटखट अदायें दिखाई दी। वो लड़का बिल्कुल प्रवींद्र की तरह व्यवहार कर रहा था। और नेहा प्रवींद्र को सोचने लगी, सुभाष की नटखट अदाओं से कंपेयर करते हुए।
गैरेज में वापस जाते ही दूसरों ने सुभाष को घेर लिया और उससे जानकारी प्राप्त करने लगे।
अपनी जगह से नेहा ने भी गैरेज में देखा कि सबने सुभाष को घेर रखा है और वो उस वक्त अपनी कामयाबी का ढोल पीट रहा होगा कि वो कितना बड़ा हीरो है लड़की पटाने में। मगर अचानक नेहा ने सोचा की तब तो वहाँ के दूसरे लोग भी उसके साथ वैसा ही करना चाहेंगे। फिर नेहा ने खुद से कहा कि सुभाष सब डीटेल्स तो नहीं बताएगा अपने दोस्तों को।
आधे घंटे के बाद नेहा आँगन के एक तार पर धुले हुए कपड़े टाँगने लगी सूखने के लिए और वहाँ से वो गैरेज के
और करीब थी। उस समय वहाँ के सब लोग सिर्फ नेहा को ही देख रहे थे और सुभाष अपने हाथों से इशारे कर रहा था नेहा को, जैसे वो उसका आशिक था और नेहा उसकी कोई गर्लफ्रेंड थी।
नेहा करती भी क्या वो बस मुश्कुरा रही थी उसके साथ। जब नेहा झुक करके नीचे जमीन पर रखे हुए बाल्टी में से धुले हुए कपड़े ले रही थी, तब वहाँ के चारों मर्द नेहा की चूचियां को देख रहे थे, काली ब्रा और स्ट्रैप्स के अंदर। मगर नेहा बे-फिक्र होकर अपना काम करती रही गैरेज की तरफ देखते हए। उसने देखा कि चारों उसको ही देख रहे हैं मगर नेहा ने कोई परवाह नहीं किया।