kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून - Page 5 - SexBaba
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kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून

इसलिए ससुराल की किसी बात का बुरा मत मानना ( बीच मे किसी ने बोला, अर्रे इन्हे तो बुढ़िया ही, अच्छी लगती है). वो मम्मी की बात सुन के मुस्करा रहे थे कि तभी तक भाभी ने पास मे जा के उन के कान मे कुछ कहा और उनका चेहरा एकदम खुशी से चमक उठा. और हंस के उन्होने भाभी से कान मे कुछ कहा.

उधर मम्मी ने अंजलि को खूब अच्छा सूट भी विदाई के तौर पे दिया.

आख़िरी रस्म थी, गुड दही खिलाने की. बसंती ने मेरा हाथ पकड़ के दही गुड खिलवाया, साथ ही साथ अच्छी तरह उनके गाल पे लपेट दिया. और बोली, अपनी बेहन को बोलो की चाट के साफ कर दे.

जब उन्होने अपने हाथ से मुझे दही गुड खिलाया, तो मेने कस के काटने मे कोई कसर नही छोड़ी.

थोड़ी देर मे विदाई होनी थी. बारात पहले ही जा चुकी थी. मेने सुना अंजलि किसी से कह रही थी कि वो हम लोगो के साथ ही गाड़ी मे जाएगी. मेने भाभी से बताया और कहा, "प्लीज़ हमारी गाड़ी मे कोई और ना बैठे. "तो वो हंस के बोली,

तुम चिंता मत करो और उन्होने अपने देवरो, संजय और सोनू को काम पे लगा दिया.

विदाई के समय पूरा माहौल बदल गया था. मेने लाख सोचा था कि ज़रा भी पर मम्मी से मिलते समय मेरी आँखे भर आई .किसी तरह मैं आँसू रोक पाई, लेकिन भाभी से गले मिलते समय, सार बाँध टूट गये. भाभी से मेरे ना जाने कितने तरह के रिश्ते और शादी तय होने से अब तक तो हम दोनो के आँखो से आँसू बिन बोले, झर रहे थे और हम दोनो एक दूसरे को कस के बाहों मे भिच के, मना भी कर रहे थे ना रोने के लिए. और ये देख के मम्मी की भी आँखे जो अब तक किसी तरह उन्होने रोका था, गंगा जमुना हो गयी. 'उनके ' चेहरे' पे कुछ 'विशेष' भाव देख के भाभी की आँखो ने प्रश्न वाचक ढंग से उन्हे देखा, वो बोले,

"अगर रोने से गले मिलने का मौका मिले तो मैं भी रोना चाहूँगा. "पल भर मे माहौल बदल गया और मैं भी मुस्कान रोक नही पाई. भाभी ने हंस कर कहा एकदम. जैसे ही वो आगे बढ़ी, उन्होने भाभी को कस के गले लगा लिया, और भाभी ने भी वो मौका क्यो छोड़ती. और फिर भाभी ने हम दोनो को कार मे बैठा दिया. मेने देखा कि आगे एक और कार मे, अगली सीट पे अंजलि बैठी और वो दरवाजे खोलने की कोशिश कर रही थी पर कार के दरवाजे सारे बाहर से बंद थे. भाभी ने बताया कि संजय, सोनू और मोनू भी हम लोगो के साथ छोड़ने जाएँगे. अंजलि ने कहा है कि वो उन्ही लोगो के साथ जाएगी. मैं मन ही मन मुस्करा उठी. तब तक संजय मेरे पास पानी का गिलास ले आया. मैं जैसे ही पीने लगी, उसने धीरे से कहा, बस थोडा सा पीना. मेने कनेखियो से देखा कि कुछ समझा के उसने वो ग्लास रीमा के हवाले कर दिया. रीमा ने मुस्करा कर वो ग्लास 'उन्हे' दिया. साली कुछ दे और वो माना कर दें.उन्होने पूरा ग्लास गटक लिया.

कार जैसे ही हमारे शहर से बाहर निकली, उन्होने मुझसे कहा क़ि तुम चप्पल उतार दो और अपने हाथ से घूँघट थोड़ा सरका के मेरा सर अपने कंधे पे कर लिया. हलके से मेरे कान मे उन्होने मुझे समझाया कि मैं रिलेक्स कर लू, अभी ढाई तीन घंटे का रास्ता है, और वहाँ पहुँच के फिर सारी रस्मे रीत चालू हो जाएँगे. कुछ रात भर के जागने की थकान, कुछ उन के साथ की गरमी और कुछ उनके कंधे का सहारा, मैं थोड़ी देर मे ही पूरी तरह नीद मे तो नही तंद्रा मे खो गयी. एक आध बार मेरी झपकी खुली, तो मेने देखा कि उनका हाथ मेरे कंधे पे है. और एकाध बारचोर चोरी से जाए हेरा फेरी से ने जाए मैने महसूस किया कि उनकी अंगुली का हल्का सा दबाव दिया मेरी चोली पे जान बुझ के मेने आँखे नही खोली लेकिन मेरे सारी देह मे एक सिहरन सी दौड़ गई. उन्होने मुझे हल्के से खोदा, तो मेरी आँख खुल गई. वो बोले, बस हम लोग 10 मिनेट मे पहुँचने वाले है तुम पानी पी लो और फ्रेश हो जाओ. उन्होने ड्राइवर को चाय लाने के भेज दिया था. इतना लंबा सफ़र और पता भी नही चला और नीद इतनी अच्छी थी कि रात भर जागने की सारी थकान उतर गयी.

थोड़ी ही देर मे मैं अपने ससुराल पहुँच गयी. अंजलि और मेरे भाई हम लोगो से थोड़ी ही देर पहले पहुँचे थे. और मैं ये देख के चकित थी कि अंजलि की उन से इतनी तगड़ी दोस्ती हो गयी. मुझे तो लग रहा था वो नाराज़ होगी कि मेरी कार से चालाकी से उन लोगो ने उसे अलग कर दिया पर वो तो एकदम चिपकी हुई थी, खास कर संजय से. मेरी सास और बुजुर्ग औरतो ने पहले परचन किया, लेकिन घर मे घुसने से पहले मेरी ननदो उनकी सहेलियो ने रास्ता रोक रखा था.
 
'उन्होने' 500 रुपये दिए तो मेरी मांझली ननद बोल पड़ी,

"वाह भैया सालियो को तो पूरे 1000 और हम लोगो को सिर्फ़ 500"उनकी भाभी, नीरा भाभी मेरी जेठानी एकदम मेरी भाभी की तरह पूरा मेरा साथ दे रही थी. वो बोली,

"अर्रे सालिया तो सालिया होती है, तुम सब इनके साथ वो काम कर सकती हो जो सालिया कर सकती है, "लेकिन ननद टस से मस नही हुई. आख़िर मेरी जेठानी बोली, अच्छा चलो मैं तुम लोगो को 500 रुपये देती हू, लेकिन ये वादा रहा कि ये अड्वान्स पेमेंट है, तुम सबको मैं अपने देवर की साली बना के मानूँगी. "अंजलि ने आगे बढ़ के रुपये ले लिए.

और उस के बाद ढेर सारी रस्मे, गाने लेकिन मेरी जेठानी ने एक के बाद एक सारी रस्मे जल्द ही करवा दी. वहाँ भी जुए का खेल था दूध से भरी परात से कंगन निकालने का. पहली बार तो मैं अपने नखुनो की सहायता से जीत गई,

लेकिन दूसरी बार उन्होने बाजी मार ली. पर जब तक वो अपनी मुट्ठी से कंगन निकाल के दिखाते, मेरी जेठानी बोली कि देवर जी अगर तुमने दुल्हन से जीतने की कोशिश की ना तो बस समझ रखना, मैं कंगन नही खुलवाउंगी.. बस सारी रात टोपते रहना. बस बेचारे वो. उन्होने सीधे मेरी मुट्ठी मे.

उसके बाद कंगन खोलने की रसम थी और उनकी भाभियो ने उन्हे खूब चिड़ाया (उसी समय मुझे पता चला कि कंगन और उसके खोलने का क्या 'मतलब' है कि उसके बिना रात को दूल्हा, दुल्हन का मेल नही हो सकता.) और उसके बाद देवी दर्शन की, मौरी सेरवाने की और उसी के साथ मुझे पता चला कि मज़ाक, गाने और खास कर गालियो मे मेरी ससुराल वालिया, मेरे मायके वालो से कम नही बल्कि ज़्यादा ही थी. और खास तौर से चमेली भाभी वो गाव की थी, 24-25 साल की दीर्घ नितंब, और कम से कम 36 डी.. और इतनी खुल के गालिया बंद ही नही होती थी. पूरे मौरी सेरवाने के समय अंजलि और उसकी सहेलियो के पीछे पड़ी रही.

जब सारी रस्मे ख़तम हो गयी तो नीरा भाभी, मुझे एक कमर्रे मे ले गयी और बोली कि अभी डेढ़ बज रहा है. तुम कुछ खा लो मैं ले आती हू. उसके बाद मैं बाहर से दरवाजा बंद कर दूँगी. तुम थोड़ी देर आराम कर लो. शाम को साढ़े 5 बजे तुम्हे ब्यूटी पार्लर जाना है. मेरी भतीजी, गुड्डी, उससे तो तुम मिली होगी,

वो तुम्हे ले जाएगी. मेरी जेठानी ने इसरार कर के मेरे मना करने पे भी अच्छी तरह खिलाया और बाहर से कमरा बंद कर दिया कि आके मुझे कोई डिस्टर्ब ने करे. तीन घंटे मैं जम के सोई. दरवाजा खाट खटाने की आवाज़ से मेरी नींद खुली. बस मैं ये सोच रही थी कि काश एक गरम चाय की प्याली मिल जाए, और गुड्डी ने दरवाजा खोला, गरम चाय के साथ. और मेने सोचा कि शायद इस समय मेने जो कुछ माँगा होता तो वो मिल जाता लेकिन फिर मुझे ये ख्याल आया कि जो कुछ मेने चाहा था वो तो मुझे मिल ही गया है और बाकी आज रात को और वो सोच के मैं खुद शर्मा गई. गुड्डी, 15-16 साल की थी, अंजलि की हम उमर, और वो भी टेन्थ मे थी, अंजलि की पक्की सहेली भी. ससुराल वाली होने के कारण गालिया तो उसको भी पड़ ही जाती थी और छेड़ना भी, लेकिन मेरी जेठानी की भतीजी होने के कारण वो हमारे साथ थी.

थोड़ी ही देर मे हम पार्लर पहुँच गये. पता ये चला कि जिसने मेरे शहर मे ब्राइडल मेकप किया था उसी की ब्रांच थी ये और न सिर्फ़ उन लोगो ने बल्कि भाभी ने भी इन्हे 'डीटेल्ड इन्स्ट्रक्षन्स' दे रखे थे. दो तीन लड़कियो ने साथ साथ मेकप शुरू किया और सबसे पहले तो एक टब मे सो कर के जिसमे गुलाब जल और गुलाब की पंखुड़िया और ना जाने क्या क्या पड़ा था. थोड़ी देर मे ही मेरा सारा टेन्षन, थकान काफूर हो गये. उसके बाद पूरे बदन पे मसाज और हल्के से चंदन और गुलाब का लेप. फिर फेशियल. गुड्डी को मेरे कपड़े और जेवर भी मेरी जेठानी ने दे दिए थे ( जिसे भाभी ने खास तौर पे आज रात केलिए सेलेक्ट किया था.). वो भी उन्ही लोगो ने पहनाई और फिर जब मेने शीशे मे अपने को देखा तो मैं खुद शरमा गई.
 
बालो के बीच सितारो से जड़ा माँग टीका, मेरे गालो को छेड़ती सहलाती लटे,

खूब घनी कतर सी तिरछी भौहे, सपनिलि बड़ी आँखो मे हल्की सी काजल की रेखा, पलको पे हल्का सा मास्कारा, प्यारी सी आइ लॅशस, हल्के गुलाबी रूज से हाइ चीक बोन्स, मेरी लंबी सुतवा नाक मे एक छोटी सी नथ, जिसमे एक मोटी और दो छोटे छोटे घुंघरू,, मेरे नेतुरल गुलाबी होंठो पे हल्की सी वेट लुक वाली गुलाबी लिपस्टिक जो मेरे पंखुड़ी जैसे होंठो को और रसीला बना रही थी. मेरे गहरी चिबुक के ठीक भिच मे जो मेरा ब्यूटी स्पॉट, तिल था उन्होने उसे और गाढ़ा कर दिया था. और जब मेरी निगाह और नीचे गयी तो मेरे स्लेंडरर लंबी गर्दन के नीचे, मेरी चोली, वो तो वही जो उन्होने अपनी डिज़ाइनर सहेली को बोल के खास तौर से बनवाई थी. कुछ ज़्यादा ही लो कट, और सिर्फ़ एक स्ट्रिंग से मेरी पीठ पे बँधी. लेकिन थी बड़ी सुंदर, हल्की, गुलाबी प्याजी, और उस पर खूब खूबसूरत चाँदी का भारी काम, एक दम मेरे उभारो से चिपकी, और उनको और उभारती, और उन्ही के शेप के साथ बीच मे सन्करि. बस लग रहा था, दो अध खिले, कमल के फूल हो और उसमे मेरे उरोज. मेकप वालीयो ने मेरे क्लीवेज पे भी पूरा मेकप किया था जिससे उसका रंग मेरे बाकी मेकप की तरह ही हो जाय और उसे थोड़ा सा और डार्क कर के जिससे मेरे क्लीवेज की गहराई और खुल के और उसके कारण उरोजो के उभार भी. उसके अंदर हल्की सी बहुत पतली लेसी पुश अप पिंक ब्रा थी जो उभारो को और उभार रही थी. मेरे हाथो मे पूरी कुहनी तक भर भर के गुलाबी, लाल चूड़िया, हाथी दाँत का चूड़ा और जडाउ कंगन, बाहों मे बाजू बंद और हाथ मे हथ फूल, और हाथो मे लगी मेहंदी को उन्हे फ्रेश मेहंदी लगा के रेफ्रेश कर दिया था जिससे मेहदी की हल्की सी महक भी आ रही थी. लहंगा भी 24 कली का गुलाबी, चाँदी का भारी काम किया हुआ, और इतने नीचा कि बस किसी तरह मेरे कुल्हो के सहारे टिका था.

और मेरी पतली कमर मे सोने के घुंघरू जड़े पतली सी रूपहली करधन.

मेरी गहरी नाभि पे ना सिर्फ़ उन्होने हल्का सा मेकप किया था बल्कि मेहदी से वहाँ भी डिज़ाइन बना दी थी. लहँगे के अंदर एक खूब पतली सी मॅचिंग गुलाबी लेसी थान्ग सी पैंटी, बस मुश्किल से दो अंगुल आगे से चौड़ी और पीछे तो एक पतली सी पट्टी, जो शरारत मे पार्लर वालीयो ने मेरे पीछे की दरारो के बीच सेट कर दी थी. और इसमे एक खास बात ये भी थी कि इसमे एक छोटा सा गोल्डन हुक भी लगा था, और उसको खोलने से बिना सरकाय वो पैरो मे खूब घुंघरू लगी चाँदी की चौड़ी सी पायल और बिछुए. मुझे बहुत शर्म लग रही थी, लेकिन फिर ब्यूटी पारलर वालीयो ने मेरी गुलाबी बड़ी सी चुनर इस तरह ऊढा दिया कि ना सिर्फ़ मेरी देह अच्छी तरह से ढँक गयी बल्कि घूँघट भी थोड़ा सा क्लीवेज और चोली का उभार अभी भी दिख रहा था. फिर उन्होने मेरी चुनरी मेरी लहँगे और चोली मे ठीक से सेट भी कर दिया.

क्रमशः……………………….
शादी सुहागरात और हनीमून--13
 
शादी सुहागरात और हनीमून--14

गतान्क से आगे…………………………………..

लेकिन अबके जब मैं घर पहुँची तो ननदो से नही बच पाई. जब मैं अपने कमरे मे पहुँची तो मेरी मझली ननद और एक दो और लड़किया पहले से बैठी थी, और फिर तो मेरे आने का पता चलते ही सब ने घेर लिया. मझली ननद बोली,

"क्यो हो गई रात के दंगल की तैयारी. भाभी नज़र ना लगे बहुत मस्त लग रही हो, देखते ही भैया टूट पड़ेंगे""हे एकदम, कच्ची गुलाब की कली लग रही हो, बस लेकिन मैं यह सोच रही हूँ रात भर मसले रगड़े जाने के बाद इस कली की क्या हालत होगी. "एक ने छेड़ा तो दूसरी बोली,

"अर्रे कली को फूल बनने के लिए फटना तो पड़ता ही है. ""हे वहाँ, नीचे क्रीम व्रिम लगवाया कि नही, अगर कही, वो बेसबरा हो गया ना और सीधे ही ठोंक दिया तो बहुत दर्द होगा. अर्रे मैं तो कह रही हू अभी से लगा लो जाके बाथ रूम मे. फिर मत कहना कि ननदो ने पहले से बताया नही. "एक और बोली.

"अर्रे भाभी हम लोगो से क्या शरमाना, और फिर हम लोग तो इस स्टेज से गुजर चुके है, अर्रे यही ज़रा सा टाँग मोड़ के लगा लो, और ना हो तो कहो तो हम ही लगा दे. हे अंजलि ज़रा वेसलिन की शीशी तो ले आना. "मझली ननद बोली जिनकी दो साल पहले शादी हो चुकी थी. अंजलि क्यो चूकती, वो तुरंत शीशी ले आई.

लेकिन तब तक चमेली भाभी आ गयी और वो गुड्डी के पीछे पड़ गयी, और बोली,

"हे, तुमने कहाँ कहाँ पाउडर क्रीम लगवाया. नीचे वाले होंठो पे लगवाया कि नही, अर्रे वो होंठ भी तो गपॉगप घोटती है.. बिना दाँत वाली". और जब अंजलि मेरी ननद को वासलिन की शीशी दे रही थी तो फिर वो उसके उपर चालू हो गयी.

"अर्रे वॅसलीन साथ ले के चलती हो. इसके भाई तो वापस चले गये क्या अपने भाइयो के साथ ही. "अंजलि को थोड़ा इनेडायजेशन हो गया था, उसको ले के भी "अर्रे किससे चुदवाया था जो पेट रह गया, और उलटी आ रही है. खैर मेरे पास उसकी भी दवा है, ले लेना और आगे से थोड़ा सावधानी बरतना. "तब तक अंजलि की कुछ और सहेलिया आ आगयि और चमेली भाभी को किसी काम से बाहर बुला लिया गया. फिर तो मेरी शामत आ गयी.

"अर्रे भाभी के गाल कितने प्यारे है लाल टमाटर की तरह.. "एक बोली.

"अर्रे तभी तो भैया रात भर चटनी बनाएँगे, "उसकी दूसरी सहेली ने छेड़ा.

तब तक मेरी सास ने उन सबको डांटा,

"अर्रे, इतने समय हो गया है. उस बिचारी को कुछ खिलाया पिलाया भी कि नही सिर्फ़ तंग करने के लिए ही ननदे हो"उनेकी बात पे मेरी निगाह घड़ी की ओर गयी. साढ़े सात बज रहे थे.

थोड़ी देर मे ही मेरी मझली ननद, अंजलि और गुड्डी, पूड़ी, सब्जी, बाखीर (गुड से बनी खीर जो दुल्हन को ससुराल मे आने पे पहले दिन ज़रूर खिलाई जाती है.) एक थाली मे लगा के ले आई.
 
मेरा खाने का मन नही कर रहा था और कुछ मैं शर्मा भी रही थी. मेरी मझली ननद बोली,

"अर्रे अब शरमाना छोड़ो अब आज से शर्म के दिन गये. "तब तक पानी लेके दुलारी,

वहाँ के नाऊ की लड़की आ गयी, समझिए, बसंती की काउंटर पार्ट, बस फ़र्क ये था कि वो लड़की थी इसलिए ननदो का साथ देती थी. वो छेड़ के गाने लगी,

"अर्रे खाई ला भौजी रात भर बंद होई दरवाजा,

भैया कस के बजाई है तोर बाजा,

रात भर कस के धसमहिए उ काँटा"


मेने थोड़ा सा खाया कि चमेली भाभी भी आ गयी. वो गुड्डी, जो मेरे ग्लास मे पानी डाल रही थी, उससे कहने लगी,

"अर्रे पूरा डाल ना, आधा ना तो डालने मे मज़ा और ना डलवाने मे. "उन लोगो की छेड़ चाड मुझे थोड़ी बुरी भी लग रही थी और थोड़ी अच्छी भी.

लेकिन शायद वो छेड़ छाड़ ना होती तो मुझे और खराब लगता.. बस मन मे एक सिहरन सी लग रही थी. डर भी था और इंतजार भी. और जब मेरी जेठानी आई तो उन्होने भी नही छोड़ा, और बोला, अर्रे आज की रात तो तेरी रात है, जलने वाले जला कर्रे. और ननदो से बोला, हे भाभी को उपर ले जा ना मैं राजीव को लाती हू. मैं तो चौंक गयी, मुझे लगा था कि जब सब लोग सो जाएँगे. आधी रात को तब कही मुझे मेरे कमरे मे भेजा जाएगा, लेकिन अभी तो आठ भी नही हुए थे. मम्मी ने कहा था कि सुहाग के कमरे मे जाने से पहले अपनी सास का पैर ज़रूर छू लेना. मेने जेठानी जी के कान मे कहा तो वो हंस के बोली कि हां वो तुम्हारा इंतजार भी कर रही है.

मुझे वो बाहर ले आई. वहाँ मेरी सास, इनकी मामी, चाची, मौसी और घर की और सब औरते, कुछ काम करने वालिया बैठी थी और नकता के गाने और नाच हो रहा था, जैसा हमारे यहाँ शादी के पहले हुआ था.

एक औरत नाचते हुए गा रही थी, 'चोलिया के बंद, सैंया मुहवा से खोले ला'.

मेरी ननद ने मुस्करा के मेरी ओर देखा,

मेने सब का पैर छुआ. मौसी ने मेरा पैर देख लिया और दुलारी को हड़काया,

अर्रे अपनी भौजाई के महावर तो ठीक से लगा दे .उसने फिर जम के खूब चौड़ा और गाढ़ा महावर लगाया. मैं सब के साथ बैठ के गाने सुन रही थी.

मामी ने चमेली से कहा, तू तो सुना, और वो खड़ी हो गई और खूब इशारे कर के नाच के गाने लगी,

हमसे हाथ ना लगाइयो, बलम दुर को रहियो,

पहली जवानी मोरी घूँघटा पे आई, गलन पे दाँत ना लगाइयो, बलम दुर को रहियो.

दूजी जवानी मोरी चोली पे आई, जोबन पे हाथ ना लगाइयो, बलम दुर को रहियो.

तिजि जवानी मोरी लहंगा पे आई, अनमोल चीज़ ना छुईयो,

अर्रे मेरी बुलबुल पे हाथ ना लगाइयो. बलम दुर को रहियो.


""अर्रे, भाभी आप इस चक्कर मे मत रहिएगा. आख़िर दूर रखना था तो इतनी दूर से लिवा के क्यो आए हैं" मेरी ननद ने छेड़ा.

"अर्रे दाँत भी लगेगा, हाथ भी लगेगा और लंबा और मोटा हथियार भी लगेगा.

आज डरने और घबड़ाने से काम नही चलेगा. "दुलारी जो महावर लगा चुकी थी, बोली.

"अर्रे ये बेचारी कहाँ मना कर रही है, ये तो तैयार होके शृंगार करके,

तैयार होके खुद ही बैठी है, तुम्ही लोग नही लिवा जा रही हो. "मौसी जी ने चुटकी ली. तब तक अगला गाना शुरू हो गया था,

मैं तो हो गयी पपिहरा पिया पिया से.

जैसे उरद की डाल चुरत नही, वैसे गौने की रात कटती नही.

जैसे गौने की रात मसाले सी वैसे गौने की रात कसाले सी.

जैसो फुलो फूकना दबत नही वैसे बलम से गोरी नवत नही.

जैसी कच्ची सुपाडि काट काट कटे, तैसे गोरी के गलन पे बलम ललचे.

जैसे छाई बदरिया, रिमिझम बरसे, वैसे ननदी चिनार मोसे झूर झूर लदे.


मैं तो हो गयी पपिहरा पिया पिया से.

सासू जी ने जो औरते गाने गा रही थी, उनसे कहा अर्रे ज़रा सुहाग तो सुना दे, और वो गाने लगी

आज सुहाग की रात, आज चंदा जिन दुबिहो,

अर्रे आज सुहाग की रात..आज सूरज जिन उगीहो.


गाने ख़तम होने के साथ ही मेरी सास ने ननदो से कहा, बहू को इसके कमरे मे ले जा. थोड़ा आराम कर ले, रात भर की जागी है, साढ़े आठ बज गये है. जा बहू जा.

चलने के पहले, किसी ने बोला घबड़ाना मत ज़रा सा भी. मेरी सासू बोली, अर्रे घबड़ाने की क्या बात है. मेरे सर पे हाथ फेरते हुए , मेरे कान मे मुस्करा के बोली, ना घबड़ाना ना शरमाना, और मुझे आशीष दी,

"बेटी तेरा सुहाग अमर रहे, और तेरी हर रात सुहाग रात हो"मेरी ननदे मुझे ले जाने के लिए तैयार खड़ी थी. वो मुझे ले के उपर छत पे चल दी. सीढ़ी पे चढ़ते ही उनकी छेड़ छाड़ एकदम पीक पे पहुँच गयी.

किसी ने गाया, अर्रे मारेंगे नज़र सैया तो दूसरी ने कहा अर्रे साफ साफ बोल ना,

चोदेन्गे बुर सैयाँ, चुदवाने के दिन आ गये. मेरी चुनर ठीक करने के बहाने उन सबने जहाँ जहाँ से वो फ़ंसा के सेट थी, उसे निकाल दिया. उपर छत पे एक बड़ा सा कमरा था. जब हम उसके दरवाजे पे पहुँच गये तो मेरी एक ननद बोली, जानती है भाभी ये कमरा आप के लिए खास तौर पे भैया ने खुद डिज़ाइन कर के बनवाया है. दूसरी बोली, और इस लिए कि इसमे आप को कोई डिस्टर्ब नही कर करेगा, आराम से रात भर. तब तक एक और ननद ने छेड़ा, नही रे, असल मे इससे हम लोग नही डिस्टर्ब होंगे. रात भर आ उहह, बस करो, चीख पुकार,

सिसक़ियो की आवाज़, पायल और बिछुओ की झंकार. ये लोग खुद तो रात भर सोएंगे नही और हम लोगो क भी नही सोने देंगे. एक ने कमरे का दरवाजा खोला, तो मेरी मझली ननद ने कान मे कहा, बस भाभी, अब इंतजार की घड़िया ख़तम, जिस पल का आपको इतने महीनो से इंतजार था और मेरा घूँघट ठीक करते हुए मेरे कान मे बोली,

दुल्हन थोड़ी धीर धरो अर्रे कसी चूत मे लंड होगा कि भाभी थोड़ी धीर धरो.
 
जब दरवाजा खुला तो कमरे को देख के मेरी कल्पना से भी ज़्यादा सुंदर,

खूब बड़ा. एक ओर खूब चौड़ा सा बेड, और उसपर गुलाब के पंखुड़ियो से सजावट, पूरा कमरा ही गुलाबी गुलाब से सज़ा, गुलाब की पंखुड़ियो से रंगोली सी सजी और पनीम भी बेड के तल मे गुलाब की पंखुड़ियो से अल्पने, दो खूब बड़ी खिड़किया जिन पे रेशमी पर्दे पड़े थे, और सामने ज़मीन पे भी,

बिस्तर सा और एक सेड मे सोफा. बेड पे हल्की गुलाबी दूधिया रोशनी और फर्श पे पसरी फुट लाइट्स सी नाइट लॅंप की कयि बड़ी एरॉयेटिक कंडल्स. बेड के बगल मे टेबल पे चाँदी की तश्तरी मे पान, दूसरी प्लेट मे कुछ मिठाइया और चाँदी की ग्लास मे दूध जैसे मैं बेड पे बैठी उन शरारतीयो ने अब मेरी सारी चुनर ठीक करने के बहाने एकदम ढीली कर दी.

मेने सोचा था कि कुछ देर शायद मुझे इंतजार करना होगा.. लेकिन बस मैं सोच रही थी कि बस तब तक दरवाजा खुला और मेरी जेठानी के साथ वो..

कई बार जब लाज से लरजते होंठ नही बोल पाते तो आँखो, उंगलियों, देह के हर अंग मे ज़ुबान उग जाती है.

कुछ लमहे ऐसे होते है जो सोने के तार की तरह खींच जाते है कुछ छनो के अहसास हर दम साथ रहते है पूरे तन मन मे रच बस के "अगर तुम्हारे सामने कोई शेर आ जाए किसी आदमी से पूछा गया तो तुम क्या करोगे. मैं क्या करूँगा, जो करेगा वो शेर ही करेगा." मेरी एक भाभी ने बताया था कि सुहाग रात मे बस यही होता है. जो करेगा, वो शेर ही करेगा.

नही. इसका ये मतलब नही कि मैं बताना नही चाहती या फिर जैसे अक्सर लड़किया अपनी भाभियो और सहेलियो के साथ, 'दिया बुझा और सुबह हो गयी' वाली बात कर के असली बात गोल कर देना चाहती है मेरा वैसा कोई इरादा नही है. मैं तो बस अपने एहसास बता रही थी. तो ठीक है शुरू करती हू बात पहली रात की.

चारो ओर गुलाब की मीठी मीठी सुगंध, फर्श पे पसरी नाइट लॅंप की रोशनी,

और बिस्तर पे दूधिया रोशनी मैं ये एहसास भी भूल गई थी कि मेरे ननदे मुझे छेड़ रही है क्या कह रही है. बस मैं उहापोह मे थी सोच रही थी कि शायद मुझे थोड़ी देर समय मिल जाय और मैं इतने लोगो ने इतनी बातें कही थी. लेकिन तभी 'वो' अपनी भाभी के साथ, डिज़ाइनर कुर्ते पाजामे मे, और जैसे शेर को देख के शिकार को उस के लिए छोड़ के गीदड़ भाग खड़े होते है वैसे ही मेरी सारी ननदो मे सिर्फ़ अंजलि ने हिम्मत जुटा के बेस्ट ऑफ लक कहा. मेरी जेठानी तो सुबह से ही मेरा साथ दे रही थी. उन्होने पास आ के मेरे कान मे कहा, "ये जो दूध का ग्लास रखा है ना ये इसको सबसे पहले पिला देना और तू भी पी लेना. इसी बहाने बात चीत भी शुरू हो जाएगी और हाँ ये पान भी" और फिर कुछ उन्होने 'उनसे' हल्के से मुस्करा के कहा. दरवाजे पे पहुँच के वो रुकी और हम दोनो की ओर देख के मुस्करा के कहा,

"अभी 9 बज रहे है. मैं बाहर से ताला बंद कर दे रही हू और सुबह ठीक 9 बजे खोल दूँगी. तुम लोगो के पास 12 घंटे का समय है, और हाँ मैं छत का रास्ता भी बंद कर दे रही हू जिससे तुम लोगो को कोई डिस्टर्ब ना करे.."

वो निकल गयी और बाहर से ताला बंद होने की आवाज़ मेने सुनी. वो मूड के दरवाजे के पास गये अंदर से भी उन्होने सीत्कनी लगा दी.

मैं सोच रही थी कि 12 घंटे कैसे कटेंगे ये.

फिर वो पास के बैठ गये.

नही उन्होने कोई गाना वाना नही गया.

ना ही वो अपने या मेरे कपड़े उतारने के चक्कर मे पड़े. (मेरी एक सहेली ने मुझे बताया था कि ये मर्द सिर्फ़ एक चक्कर मे होते है इसलीए पहला काम ये कपड़े उतारने का करते है. उसने मुझे सलाह दी थी कि, पहली रात तो बस मैं उन्हे 'इंतजार' करवाऊ.)

जैसे कोई इम्तहान की बहुत तैयारी कर ले, पर एग्ज़ॅम हॉल मे जाके सब कुछ भूल जाए वही हालत मेरी हो रही थी. मैं सब कुछ भूल गयी थी.

और शायद यही हालत 'इनकी' भी थी.

बस मुझे इतना याद है, इन्होने पूछा नींद तो नही आ रही और मेने सर हिला के इशारे से जवाब दिया, 'नही'.

फिर इसके बाद हम लोग बल्कि वो कुछ बाते करने लगे. लेकिन उन्होने क्या कहा मुझे याद नही, सिर्फ़ ये कि उन्होने मुझसे कहा कि, रिलेक्स हो जाओ,

और मैं आराम से टांगे फैला के अध लेटी हो गयी, बेड के हेड बोर्ड के सहारे.

उन्होने मुझे रज़ाई ओढ़ा दी और खुद भी उसी तरह मेरे बगल मे रज़ाई के अंदर, आधा लेते उनका हाथ मेरे कंधे पे और उन्होने मुझे अपनी ओर खींचा.

मेरी चुनरी तो काफ़ी कुछ मेरी ननदो ने ढीली कर दी थी, छेड़ा-छाड़ मे.

उनके खींचने से ही वो सरक कर मेरे माथे और पीठ से हट गई. बस थोड़ी सी पीठ और हल्की सी चोली उनकी उंगलियो का अहसास मेरी पीठ पे हो रहा था, और मैं उनकी बाहों मे जैसे किसी लालची बच्चे को मिठाई मिल जाय जिसकी उसे बहुत दिनो से चाह हो पर वह डर रहा हो झिझक रहा हो. उनकी निगाहे बार फिसल के मेरी चोली के उभार पे चोली से बाहर झाँकते मेरे सीने के उपरी भाग और कसी चोली से दिखते गहरे क्लीवेज मे जा के अट्क जाती थी, लेकिन फिर कुछ सोच के वो सहम जाती थी. उनकी आँखे मेरी आँखो मे झाँक रही थी, जैसे आगे बढ़ने की इजाज़त माँग रही हो.

लेकिन मेरी पलके तो खुद शरम के बोझ से बार बार झुक जाती थी. और उनका पहला चुंबन मेरी पॅल्को ने ही महसूस किया. बस उनके होंठ बहुत हिम्मत कर के उन्होने छू भर दिया, मेरी सप्निली पॅल्को को फिर तुरंत हट गये. लेकिन दो तीन हल्के चुंबनो के बाद उन्होने बड़ी बड़ी से मेरी दोनो पॅल्को को कस के चूम के बंद कर दिया, जैसे उनके होंठ कह रहे हो, मैं इन कजरारे नयनो की सारी लाज हर के, उसमे ढेर सारे सपने भर दे रहा हू.

मेरी आँखे अभी उनके चुंबन के स्वाद की आदि भी नही हो पाई थी, कि उन्होने हल्के से मेरे माँग को जहा सिंदूर की तरह वो बेस था, चूम लिया. और फिर माथे की बिंदी पे मेने अपने को अब उनकी बाहों के हवाले कर दिया था. मेरी मूंदी पलके बस अभी तक स्वाद ले रही थी और मैं उसे खोल के इस सचमुच के ख्वाब को खराब नही करना चाहती थी.

जैसे किसी चोर को एक दो छोटी छोटी चोरिया करने के बाद आदत पड़ जाय और न रोके जाने पे उसकी हिम्मत बढ़ जाए, यही हालत अब इनके होंठो की भी थी.

माथे से वो सीधे मेरे गोरे गुलाबी गालो पे आ के रुके. लेकिन बस छू के हट गये शायद उन्हे लगा कि मैं कुछ.. पर मेरी हालत ऐसी कहाँ थी. और अगली बार फिर कुछ देर तक.. और फिर दूसरे गाल पे. उनकी बाहों मे बँधी फँसी मैं मेरे दिल की धड़कने उनके दिल की धड़कनो की रफ़्तार से चल रही थी. और फिर मेरे होंठो पे पहली बार.. एक अंजान सा.. लेकिन चिर प्रतीक्ष्हित स्वाद नही ऐसा नही कि उन्होने कस के चूम लिया हो.. लेते भी तो मैं कहाँ मना करती..

लेकिन बस वो छूकर हट गये. जैसे कोई भौंरा, किसी पंखुड़ी पे जाके तुरंत हट जाय ये सोचते हुए कि वो कही वो उसका भार बर्दाश्त कर पाएगी कि नही.

क्रमशः……………………….
शादी सुहागरात और हनीमून--14
 
शादी सुहागरात और हनीमून--15

गतान्क से आगे…………………………………..

जब दुबारा उन्होने चूमा तो उनके होंठ एक पल ठहर गये और आज तक मुझे उस पहले चुंबन का स्वाद याद है. मेरे होंठ, बस उस के बाद से आज तक मेरे नही रहे. उसी दिन मेने जाना कि, कैसे और क्यो, जब मुँह का घूँघट उठा, गुलाब की कली को सूरज की किरण चूमती है तो वो कैसे खिल उठती है,

गर्मी पा कर. मेने सोचा था कि मैं भी उनके चुंबन का जवाब चुंबन से दूँगी लेकिन दो तीन चुंबनो के बाद कही जाके हल्के से लरज के मेरे होंठ अपनी स्वीकारोक्ति दे पाए. अभी मेरे होंठो ने हिम्मत बढ़ाई ही थी कि, उनके होंठो ने मेरी चिबुक के गहरे गढ्ढे मे, जो तिल था उसे चूम लिया. और उसी के साथ उनकी उंगलियाँ मेरी केले के पत्ते ऐसी चिकनी पीठ पे फिसल रही थी.

(मेरी पीठ के बीच मे गहरी नली ऐसी है, जो कहते है कि एक कामुक नारी की निशानी होती है और उनकी उंगलिया वहाँ भी.) उसे छिपाने धकने वाली चुनरी ने कब का साथ छोड़ दिया था. सिर्फ़, चोली को बांधने वाली एक पतली सी स्ट्रिंग थी जो थोड़ी सी रुकावट डाल रही थी. उनकी उंगलियो के स्पर्श और मेरी सारी देह मे तूफान उठ रहा था. तभी अचानक उनके होंठ, मेरे गले से होते होते फिसल के, मेरे उभारो के उपरी भाग पे रुके, और वहाँ उनके स्पर्श होते ही मैं छितक के अलग हो गयी.

"ऊप्स, मेरी ग़लती मैं ही भूल गया था कि मुझे फीस तो देनी चाहिए." और वो अपने कुर्ते की जेबो मे कुछ ढूँढने लगे. मैं भी अपने हथ फूल उतारने लगी. ढूढ़ते ढूढ़ते उन्होने अपने कुर्ता उतार दिया और मैं अपनी मुस्कराहट नही रोक पाई. थी तभी निगाह मेरी अपने उपर पड़ी और उनकी इस उथल पुथल मे रज़ाई खुल गयी थी, और मैं सिर्फ़ लहँगे चोली मे और चोली भी क्या वह छिपा कम रही थी, दिखा ज़्यादा रही थी. मेरे उरोजो के उपरी भाग, और लहंगा भी कमर के बहुत नीचे. और जब मेरी नज़र उन पे पड़ी, तो उन की ढीठ निगाहे एकदम वही चिपकी थी जैसे मन्त्र मुग्ध हो. आँखे मिलते ही वो बोले, 'हे तुम अपनी आँखे बंद करो'. दोनो हाथो मे पीछे कुछ छिपाए से लेकिन बनियान मे उनकी चौड़ी ताक़त वर छाती, बाहों की मसल्स, वो इतने हंडसॉम लग रहे थे बस मन कर रहा था कि देखती ही रहू. लेकिन उनका हुकुम मेने मुस्करा कर आँखे बंद कर ली. मेने महसूस किया कि वो एकदम पास आ गये है. उनकी सांसो की गर्माहट मैं अपने गालो पे महसूस कर रही थी, फिर उनके हाथो की छुअन अपने गले के पीछे और उनके सीने का दबाव अपनी चोली पे. फिर उनका एक हाथ मेरी पीठ पे और दूसरा मेरे उभारो को हल्के से छूते हुए उत्तेजना से मेरी हालत खराब हो रही थी. तभी मेने उनके होंठो की आहट अपनी पॅल्को पे महसूस की और बहुत हल्के से वो बोले, खोलो. जब मेने गरदन झुका के देखा तो मेरी तो हालत खराब हो गई. इतने सुंदर, मैं सोच भी नही स्काती थी एक बहुत ही बड़ा, चमकदार प्रिन्सेस कट डाइमंड,

प्लॅटिनम चैन मे, कम से कम आधे पौन कैरेट का रहा होगा. खुशी से तो मेरी चीख निकलते निकलते बची (अगर मुझेसे कोई पूछे कि महिलाओ के लिए सबसे बड़ा एफ़्रोडिशियक क्या है तो मैं बिना हिछक कहुगी, डाइमंड और मुझे तो खास तौर पे अच्छा लगता था. लेकिन इतने बड़ा और इतने सुंदर मैं सोच भी नही सकती थी,और उसकी सेट्टिंग) मेने कस के उन्हे अपनी बाहों मे भींच लिया. मेरे होंठ लरज के रह गये लेकिन मेरी आँखो की चमक खुशी बार बार कह रही थी, थॅंक्स. पेंडेंट ठीक मेरे चोली के कटाव के बीच,

मेरे क्लीवेज की गहराई मे टिका था. मेरे गोलाई के अर्धकार उभार पे उंगली से सहलाते हुए छूते हुए उन्होने पूछा, 'हे कैसा लग रहा है'. और मैं बोल पड़ी, 'बहुत अच्छा'. मेरी चोली से झाँकती हुई दोनो अर्ध गोलाईयों के बीच,

वो पेंडेंट ऐसा लग रहा था जैसे दो पहाड़ियो के बीच सूरज निकल रहा हो.

मेरे झाँकते हुए उरोज पे हल्के से उंगली से सहला के वो बोले, और मुझे भी.

तब मुझे उनकी उस नटखट मुस्कान का मतलब समझ मे आया कि वो पेंडेंट की बात नही किसी 'और' चीज़ की बात कर रहे थे. मैं और शरमा गयी. तभी मेरा ध्यान पलंग को सहलाती दूधिया नाइट लॅंप की रोशनी पे गयी और मेने उनके कान मे कहा, "प्लीज़ लाइट."

लाइट उन्होने बंद कर दी.

लेकिन अंधेरे मे उनकी हिम्मत और बढ़ गयी.
 
जो उंगलियाँ, हल्के से मेरे सीने को बस छू दे रही थी, वो और अड्वेंचरस होके, चोली के भीतर भी.. पूरे क्लीवेज तक अब खुल के सहला रहे थे, हल्के से दबा रहे थे. और अंधेरे मे.. मेरी लाज ने भी मेरा साथ छोड़ दिया था. पीठ और सीने पे उनकी उंगलियो के दबाव से मेरे उभार और सख़्त हो गये थे, और लगता है और उभर के मेरी चोली मे बस समा नही रहे थे. मुझे लग रहा था बस एक दो पल और उत्तेजना से तो मेरे तड़फदते कबूतर खुद मेरी चोली के बँध को तोड़ देंगे.

लेकिन लगता है, पीठ पे फिर रही उनकी उंगलियो ने मेरी मन की बात सुन ली और मेरे चोली के बँध खुल गये. ओह्ह मैं जैसे किसी सपने से जागी हू, मेने अपने दोनो हाथो से चोली को पकड़ के उसे देह से अलग होने से बचाया. लेकिन उन्हे उसे खोलने की जल्दी नही लग रही थी. जो हाथ पीठ पे था अब वो मेरी पतली कमर को अपने घेरे मे लिए था. उनके दूसरे हाथ ने नीचे से चोली को अलग करने की कोशिश की, पर मैं इतनी आसानी से हार नही मानने वाली थी. मेरे दोनो हाथ कस के उसे पकड़े थे. पर उन के पास सिर्फ़ एक हथियार था क्या.. उनके होंठो ने कस के चुंबन लेना शुरू किया,

पहले होंठो पे और फिर मेरे उरोजो पे. मैं कस के थामे थी..और उन का हाथ सरक के मेरे रेशमी पेट पे.. सहला रहा था. मैं बावरी. मुझे क्या मालूम उस नटवर नागर की चाल. जब तक मैं समझु उन के दोनो हाथ मेरे नाडे (नेडे) पे थे और पलक भर मे उन्होने उसे खोल दिया. और जब तक मेरे हाथ वहाँ पहुँचे लहंगा खुल ही नही चुका था बल्कि ढीला भी हो चुका था.

मेने दोनो हाथो से उसे प्कड़ के संभाला, दुबारा बाँधने का तो सवाल ही नही था. लेकिन मुझे मालूम था कि 'असली चीज़' क्या है जिसे बचना है इसलीए अब मेरे हाथ किसी तरह लहँगे को फिसलने से बचा रहे थे. उन्होने मुझे कस के अपनी बाहो मे बाँध बिस्तर पे लिटा दिया. उनके होंठ एक बार फिर से मेरे कपोलो के, होंठो के कस कस के चुंबन ले रहे थे, और उनकी उंगलिया, जिन उभारो को देख के, वो मुझे पहली बार देखने से बेचैन थे उन्हे छू रहे थे सहला रहे थे. और इसी के साथ मेरी चोली, जिसे ना अब बाँध का सहारा था ना मेरे हाथो का, देह से अलग हो गयी.

और मेरी पिंक लेसी पुश अप छोटी सी ब्रा, ढँक क्या किसी तरह मेरे कपोटो को छिपा क्या बस सपोर्ट कर रही थी. बीच मे मेरे बूब्स के बेस तक खुली जगह थी (और मैं मान गयी भाभी के सेलेक्षन को, एक समय आता है जब झिझक, हिचकिचाहट ख़तम हो जानी चाहिए और उसे देख के उनकी बिल्कुल यही हालत हुई) अब सारी हिच्क छोड़ उनके होंठ कस कस के मेरे उरोजो को चूम रहे थे, उनके हाथ अब खुल के उन्हे दबा रहे थे और मैं भी मस्ती मे चूर हो रही थी. 'वो' इतने बेसबरे हो रहे थे कि लेसी ब्रा के उपर से ही कस कस के किस करने लगे. जैसे किसी किसी खेल मे होता है ना, कि आपने जहा जहा गोटी रख दी वो घर आपका हो गया, वही हालत मेरी देह की थी. मेरे जिस अंग पे उनकी उंगलियाँ छू जाती होंठ चूम लेते वो बस उनके गुलाम हो जाते. मेरे प्यासे होंठ, दाहकते गाल अब खुद इंतजार कर रहे थे उनके जादू स्पर्श का.

उन्होने जब मेरे दोनो बूब्स के बीच ठीक मेरे दिल के पास कस के चूमा तो मुझे लगा कि अब दिल भी गया. पगली, मेने सोचा, दिल तो तूने मसूरी मे ही दे दिया था जब तूने इंद्रधनुषह देख के उन्हे माँगा था. और जब दिल दिया तो देह देने मे क्या लेकिन शरम इतनी जल्दी कहाँ समझ पाती है कि अब इस किशोरी के देह पे उसका राज्य ख़तम हो गया है. उसका असली मालिक आ गया है. मुझे लगा कि कही अब ब्रा भी चोली के साथ और मेने एक बार फिर से अपने दोनो हाथो से ब्रा को प्कड़ने की कोशिश की. लेकिन वो शायद इसी का इंतजार कर रहे थे. एक साथ उनके दोनो हाथ मेरे लहँगे पे थे और उन्होने उसे सरका के ही दम लिया. नीचे से उनका पैर भी, साथ दे रहा था और जब तक मैं सम्हलु मैं सिर्फ़ ब्रा पैंटी मे थी. और पैंटी भी क्या सिर्फ़ दो अंगुल की गुलाबी पट्टी जो बड़ी मुश्किल से मुझे 'वहाँ' धक रही थी. लेकिन मेरे लहँगे का साथ उनका पाजामा भी. जैसे उन्होने अब मुझे बाहों मे भींचा तो मुझे कस के उनके 'खूटे' का अहसास हुआ, एकदम कड़ा और सख़्त. मेरी पूरी देह मे एक झुरजुरी सी दौड़ गयी और शरम से मेरी आँखे अपने आप बंद हो गयी.

लेकिन मेरी गोरी, जांघे अपने आप भींची रही, खूब कस के. एक दो बार उन्होने उनके बीच हाथ घुसाने की कोशिश की पर मेने उन्हे कस के सटा रखा था.
 
हार कर उन्होने पूरा ध्यान ब्रा पे लगाया, लेकिन मैं अपने दोनो हाथ वही रखे थी. जहा उस फ्रंट ओपन ब्रा का हुक था. काई बार मेले मे भीड़ मे आप अपना पर्स बचाने के लिए हाथ बार वही रखते है, जहाँ पर्स होता है. जेब कतरे को शायद वैसे ना पता चले लेकिन, बार बार हाथ रख के आप खुद उसे इशारा कर देते है. मेरे साथ यही हुआ. उनका एक हाथ मेरी कमर से फिसल के मेरी पैंटी मे और अपने आप मेरे दोनो हाथ वही पहुँच गये. मुझे अब तक उनकी ' डाइवर्सनेरी टॅक्टिक्स' का अंदाज़ा हो जाना चाहिए था, लेकिन उनकी अँगुलिया अब सीधे मेरे ब्रा के हुक पे गयी और उसने भी साथ छोड़ दिया. अब तो (उनकी बनियान तो काफ़ी पहले उतर चुकी थी) सीधे उनके सीने से मेरे उभार दब रहे थे. मेरे पैरो के बीच भी उनका एक हाथ घुस गया था. जैसे कोई दुश्मन की चौकी पे एक के बाद एक कब्जा करता जाए और वहाँ के लोग नये राजा को खुश करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो वही हालत मेरी देह और सब अंगो की हो रही थी. मेरे लाख कोशिश करने पे भी मेरे सारे अंग अब शिथिल हो गये थे और नये रस नये सुख का अब वो खुल के आनंद ले रहे थे.

उनका एक हाथ जो मेरे पैरो के बीच था उसने सहलाना शुरू किया, तो जैसे मक्खन के बीच चाकू घुस जाए, मेरी मुलायम जाँघो के बीच, आगे बढ़ता.. वो इन्नर थाइस के उपर और जब तक मैं अपनी जंघे दुबारा भींचू वो.. पैंटी के उपर से ही मेरे 'वहाँ' तूफान मे पत्ते ऐसी दशा मेरी देह की हो रही थी. एक हाथ मेरी जवानी के कलशो पे और दूसरा सीधे पैंटी के उपर से. पहले तो वो थोड़ी देर दबाते सहलाते रहे, फिर उनकी चतुर उंगलिया साइड से मेरी पैंटी को हल्के सरका कर उनकी उंगलियो का 'वहाँ' वो प्रथम स्पर्श.. आज भी वह वो छुअन मुझे याद है मेरी पूरी देह उनकी हो गयी. पहले तो उनकी अँगुलिया वहाँ छूती रही,

सहलाती रही. फिर मेरी, अब तक कुँवारी, किशोर गुलाबी पंखुड़ियो को हल्के से छेड़ दिया बस मुझे लगा ढेर सारे जलतरन्ग एक साथ बज उठे हो. उनके दूसरे हाथ की उंगलियो मे मेरे यौवन कलश के शिखर थे, जिसे वो कभी दबाते,

कभी सहलाते और कभी फ्लिक कर देते. और थोड़ी ही देर मे मेरे 'प्रेम द्वार' को भिड़ के उनकी अंगुली का टिप मेरे भीतर, मेरी तो जान ही निकल गयी सुख से.

उन्होने उसे हल्के से अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. कुछ देर बाद, 'वहाँ' से उनकी उंगली बाहर निकल आई.. मेरा मन कर रहा था कि मना कर दू उन्हे निकालने से. कितने अच्छा लग रहा था मुझे पर लाज के बंधन अभी तक पूरी तरह शिथिल नही हुए थे. लेकिन ये बिचोह थोड़ी ही देर का था. और अबकी जब उनकी अंगुली गई तो मेरी गुलाबी पंखुड़ियो ने कस के भींच लिया उन्हे, जैसे कोई बहुत दिनो तक बिछूड़ कर मिला हो. अब की एक अलग तरह की संवेदना थी.

उनकी अंगुली मे चिकानाई लगी थी, लेकिन अब वह और खुल के अंदर तक जा रही थी. इसका नतीजा ये हुआ कि मैं 'वहाँ' अच्छी तरह 'गीली' हो गयी. मेरे यौन रंध्र अपने आप खुल गये. एक के बाद थोड़ी देर मे वैसलीन लगी दो उंगलियाँ मेरे अंदर थी. दोनो एक साथ थोड़ी देर तक अंदर बाहर होती फिर बाहर निकल के कभी मेरी पंखुड़ियो को छेड़ती. उनका दूसरा हाथ अब पैंटी सरकाने के प्रयास मे जुटा था. मेरे योवन शिखर अब उनके प्यासे होंठो के हवाले थे. लेकिन ना चाह के भी अभी तक मेरी जंघे एक के उपर एक, कसी, उन्हे पैंटी सरकने से रोक रही थी. तभी ना जाने कैसे उनकी उंगलियो को मेरी पैंटी का हुक मिल गया, और उसके खुलते ही जैसे कोई बँधा हुआ जानवर छूटते ही भाग जाय. वह सिर्फ़ खुली नही बल्कि पूरी तरह मेरी देह से अलग होके दूर हो गयी.

और उनके हाथ को तो जैसे किसी को कारुन का खजाना मिल गया हो. उसने कस के मेरी 'चुनेमुनिया' को दबोच लिया. और जैसे अगले ही पल उन्हे अपनी ग़लती का अहसास हो गया हो, उन्होने उसे प्यार से हल्के हल्के सहलाना छेड़ना शुरू कर दिया. उनके स्पर्श का जो जादू मेरे बाकी अंगो पे पड़ा था, 'वो भी' अब उनकी हो गयी. उनकी दो अँगुलियो ने तो अंदर का रास्ता देख ही लिया, और कुछ वो 'जान पहचान', कुछ अबकी ढेर सारी उसमे लगी वैसलीन का असर और कुछ मैं खुद इतनी गीली हो रही थी.... वो तेज़ी से अंदर बाहर होने लगी. उनका दूसरा हाथ, सीधे मेरे नितंबो पे, उसे सहलाते दबोचते, उन्होने कस के मुझे अपनी ओर खींच लिया. मैं भी अब कितना अपने को रोकती. मेने भी अपनी बाहो मे उन्हे भींच लिया. मेरे उरोज उनके चौड़े सीने के नीचे दबे, कुचले मसले जा रहे थे, उनके होंठ अब कस कस के मेरे होंठो गालो का रस ले रहे थे.
 
थोड़ी देर बाद उन्होने मुझे अपने उपर खींच लिया, उनकी बाहों मे बँधी मैं. उनके लालची होंठ कभी मेरे होंठ चूमते और कभी वो मेरे पत्थर से कड़े उरोजो को चूम लेते. लेकिन उनकी शैतान उंगलिया अभी भी मेरे यौवन गुफा के अंदर मंथन कर रही थी. और उनका 'वो खुन्टा' भी अब मुक्त होके जैसे कोई उन्मुक्त सांड़ घूमे, मेरी जाँघो और 'इधर उधर' लग रहा था. हमारी देह खुल के, बिना बाधा के एक दूसरे को छू रही थी, रगड़ रही थी.

कुछ देर बाद उन्होने मुझे अपने नीचे लिटा लिया,और बाहो के सहारे मेरे उपर आ के जब मुझे देखा तो.. बस मुझे ऐसा लगा जैसे बरसो से प्यासी धरती, कितने दिनो की आस लगाए अपने उपर उमड़ते घूमड़ते बादलो को देख रही हो. और बादलो की राह देख रही धरती मे जैसे तपन बढ़ जाती है बस वही हालत मेरी हो रही थी. जब उनके होंठो ने मेरे कान को छुआ तो मेरे ख्वाब बस ठहर गये. वो बोल रहे थे,

"हे, मैं नही चाहता कि तुमको ज़रा सा भी कष्ट हो, ज़रा सा भी लेकिन थोड़ा दर्द तो होगा ही. प्लीज़ बर्दास्त कर लेना मेरी खातिर"

इस बात पे तो मैं कितने भी दर्द सह लेती.

फिर वो मेरे पैरो के बीच 'उसे' लगाने की कोशिश एक दो बार फंबल किया,

(मम्मी ने मुझसे कहा था कि कई बार हो सकता है, उसे ठीक से ना पता हो कि तुम्हारा छेद कहाँ है तो तुम उसे थोड़ा हेल्प कर देना. भाभी ने और पालिता लगाया, और ननद रानी इसमे तुम्हारा ही फ़ायदा है. कही अगर ग़लती से उसने ग़लत छेद मे घुसेड दिया तो, इसलीए अगर वो ज़्यादा भटके तो अपने हाथ से पकड़ के पर उस समय कहाँ कुछ याद रहता है). लेकिन अपने आप मेरे हिप्स कुछ उचक से गये. मेरी टांगे थोड़ी फैल गयी. उसने फिर, ढेर सारे कुशण ले के मेरे हिप्स के नीचे रख उसे उठा दिया और मेरी जाँघो के बीच मे आ के, दोनो टांगे कंधे पे रख ली.

मेरी आँखे मुदि हुई थी, पूरी देह सिहर रही थी.जब मेरी गुलाबी पंखुड़ियो के बीच, 'उसे' एक दो बार ट्राइ करने के बाद,

उसने फिर अपनी उंगलियो से मेरी पंखुड़िया खूब कस के फैला के मैं सिहर उठी. जब वो रगड़ता, कस के घिसटता अंदर और फिर उसने मेरे उठे हुए हिप्स पकड़ के.. एक बार फिर कस के और जब उसने तीसरी बार पूरी ताक़त से वहाँ नीचे मेरी 'वो' फटी जा रही थी. बस लग रह था एक पल के लिए रुक जाय, बस एक पल के लिए.मेने अपनी मुट्ठी कस के बंद ली कस के अपने होंठ काट लिए.

मेने तय किया था कुछ भी हो जाय, मैं चीखूँगी नही.. लेकिन दर्द के मारे बस बुरी हालत थी. दो तीन और धक्के के बाद वो रुक गये. लेकिन 'वो' उस समय तक भी इतने अंदर था कि मैं चाहे जो कुछ करती.. हिप्स पटकती, छटपटाती,

'वो' बाहर निकलने वाला नही था. उसके हाथ कमर से मेरे उरोजो पेवह उसे हल्के हल्के सहला रहा था, और उसके होंठ भी कभी मेरे होंठो पे, कभी सीने पे कुछ दर्द कम हुआ और कुछ दर्द का अहसास. मेरे पूरे शरीर मे फिर मस्ती सी छाने लगी थी थोड़ी देर बाद जब मैं अपने वहाँ हो रहे दर्द को लग भग भूल चुकी थी, उसने मेरे दोनो हाथ उपर की तरफ कर मेरी कलाईयो को कस के पकड़ लिया, फिर मेरी पॅल्को को चूम के मेरी लाजाति घबड़ाती आँखे बंद कर दी. उसके होंठ अगले ही पल मेरे होंठो पे थे. उसने मेरे होंठो को खुलवा कर, उनके बीच अपनी जीभ डाल दी और अपने होंठो से मेरे होंठो को 'सील' कर दिया. उसके होंठ कस कस के मेरे होंठ चूस रहे थे और जीभ मूह के अंदर का स्वाद. ये मेरे लिए एक नये ढंग का अनुभव था.

क्रमशः……………………….
 
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