hotaks444
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इसलिए ससुराल की किसी बात का बुरा मत मानना ( बीच मे किसी ने बोला, अर्रे इन्हे तो बुढ़िया ही, अच्छी लगती है). वो मम्मी की बात सुन के मुस्करा रहे थे कि तभी तक भाभी ने पास मे जा के उन के कान मे कुछ कहा और उनका चेहरा एकदम खुशी से चमक उठा. और हंस के उन्होने भाभी से कान मे कुछ कहा.
उधर मम्मी ने अंजलि को खूब अच्छा सूट भी विदाई के तौर पे दिया.
आख़िरी रस्म थी, गुड दही खिलाने की. बसंती ने मेरा हाथ पकड़ के दही गुड खिलवाया, साथ ही साथ अच्छी तरह उनके गाल पे लपेट दिया. और बोली, अपनी बेहन को बोलो की चाट के साफ कर दे.
जब उन्होने अपने हाथ से मुझे दही गुड खिलाया, तो मेने कस के काटने मे कोई कसर नही छोड़ी.
थोड़ी देर मे विदाई होनी थी. बारात पहले ही जा चुकी थी. मेने सुना अंजलि किसी से कह रही थी कि वो हम लोगो के साथ ही गाड़ी मे जाएगी. मेने भाभी से बताया और कहा, "प्लीज़ हमारी गाड़ी मे कोई और ना बैठे. "तो वो हंस के बोली,
तुम चिंता मत करो और उन्होने अपने देवरो, संजय और सोनू को काम पे लगा दिया.
विदाई के समय पूरा माहौल बदल गया था. मेने लाख सोचा था कि ज़रा भी पर मम्मी से मिलते समय मेरी आँखे भर आई .किसी तरह मैं आँसू रोक पाई, लेकिन भाभी से गले मिलते समय, सार बाँध टूट गये. भाभी से मेरे ना जाने कितने तरह के रिश्ते और शादी तय होने से अब तक तो हम दोनो के आँखो से आँसू बिन बोले, झर रहे थे और हम दोनो एक दूसरे को कस के बाहों मे भिच के, मना भी कर रहे थे ना रोने के लिए. और ये देख के मम्मी की भी आँखे जो अब तक किसी तरह उन्होने रोका था, गंगा जमुना हो गयी. 'उनके ' चेहरे' पे कुछ 'विशेष' भाव देख के भाभी की आँखो ने प्रश्न वाचक ढंग से उन्हे देखा, वो बोले,
"अगर रोने से गले मिलने का मौका मिले तो मैं भी रोना चाहूँगा. "पल भर मे माहौल बदल गया और मैं भी मुस्कान रोक नही पाई. भाभी ने हंस कर कहा एकदम. जैसे ही वो आगे बढ़ी, उन्होने भाभी को कस के गले लगा लिया, और भाभी ने भी वो मौका क्यो छोड़ती. और फिर भाभी ने हम दोनो को कार मे बैठा दिया. मेने देखा कि आगे एक और कार मे, अगली सीट पे अंजलि बैठी और वो दरवाजे खोलने की कोशिश कर रही थी पर कार के दरवाजे सारे बाहर से बंद थे. भाभी ने बताया कि संजय, सोनू और मोनू भी हम लोगो के साथ छोड़ने जाएँगे. अंजलि ने कहा है कि वो उन्ही लोगो के साथ जाएगी. मैं मन ही मन मुस्करा उठी. तब तक संजय मेरे पास पानी का गिलास ले आया. मैं जैसे ही पीने लगी, उसने धीरे से कहा, बस थोडा सा पीना. मेने कनेखियो से देखा कि कुछ समझा के उसने वो ग्लास रीमा के हवाले कर दिया. रीमा ने मुस्करा कर वो ग्लास 'उन्हे' दिया. साली कुछ दे और वो माना कर दें.उन्होने पूरा ग्लास गटक लिया.
कार जैसे ही हमारे शहर से बाहर निकली, उन्होने मुझसे कहा क़ि तुम चप्पल उतार दो और अपने हाथ से घूँघट थोड़ा सरका के मेरा सर अपने कंधे पे कर लिया. हलके से मेरे कान मे उन्होने मुझे समझाया कि मैं रिलेक्स कर लू, अभी ढाई तीन घंटे का रास्ता है, और वहाँ पहुँच के फिर सारी रस्मे रीत चालू हो जाएँगे. कुछ रात भर के जागने की थकान, कुछ उन के साथ की गरमी और कुछ उनके कंधे का सहारा, मैं थोड़ी देर मे ही पूरी तरह नीद मे तो नही तंद्रा मे खो गयी. एक आध बार मेरी झपकी खुली, तो मेने देखा कि उनका हाथ मेरे कंधे पे है. और एकाध बारचोर चोरी से जाए हेरा फेरी से ने जाए मैने महसूस किया कि उनकी अंगुली का हल्का सा दबाव दिया मेरी चोली पे जान बुझ के मेने आँखे नही खोली लेकिन मेरे सारी देह मे एक सिहरन सी दौड़ गई. उन्होने मुझे हल्के से खोदा, तो मेरी आँख खुल गई. वो बोले, बस हम लोग 10 मिनेट मे पहुँचने वाले है तुम पानी पी लो और फ्रेश हो जाओ. उन्होने ड्राइवर को चाय लाने के भेज दिया था. इतना लंबा सफ़र और पता भी नही चला और नीद इतनी अच्छी थी कि रात भर जागने की सारी थकान उतर गयी.
थोड़ी ही देर मे मैं अपने ससुराल पहुँच गयी. अंजलि और मेरे भाई हम लोगो से थोड़ी ही देर पहले पहुँचे थे. और मैं ये देख के चकित थी कि अंजलि की उन से इतनी तगड़ी दोस्ती हो गयी. मुझे तो लग रहा था वो नाराज़ होगी कि मेरी कार से चालाकी से उन लोगो ने उसे अलग कर दिया पर वो तो एकदम चिपकी हुई थी, खास कर संजय से. मेरी सास और बुजुर्ग औरतो ने पहले परचन किया, लेकिन घर मे घुसने से पहले मेरी ननदो उनकी सहेलियो ने रास्ता रोक रखा था.
उधर मम्मी ने अंजलि को खूब अच्छा सूट भी विदाई के तौर पे दिया.
आख़िरी रस्म थी, गुड दही खिलाने की. बसंती ने मेरा हाथ पकड़ के दही गुड खिलवाया, साथ ही साथ अच्छी तरह उनके गाल पे लपेट दिया. और बोली, अपनी बेहन को बोलो की चाट के साफ कर दे.
जब उन्होने अपने हाथ से मुझे दही गुड खिलाया, तो मेने कस के काटने मे कोई कसर नही छोड़ी.
थोड़ी देर मे विदाई होनी थी. बारात पहले ही जा चुकी थी. मेने सुना अंजलि किसी से कह रही थी कि वो हम लोगो के साथ ही गाड़ी मे जाएगी. मेने भाभी से बताया और कहा, "प्लीज़ हमारी गाड़ी मे कोई और ना बैठे. "तो वो हंस के बोली,
तुम चिंता मत करो और उन्होने अपने देवरो, संजय और सोनू को काम पे लगा दिया.
विदाई के समय पूरा माहौल बदल गया था. मेने लाख सोचा था कि ज़रा भी पर मम्मी से मिलते समय मेरी आँखे भर आई .किसी तरह मैं आँसू रोक पाई, लेकिन भाभी से गले मिलते समय, सार बाँध टूट गये. भाभी से मेरे ना जाने कितने तरह के रिश्ते और शादी तय होने से अब तक तो हम दोनो के आँखो से आँसू बिन बोले, झर रहे थे और हम दोनो एक दूसरे को कस के बाहों मे भिच के, मना भी कर रहे थे ना रोने के लिए. और ये देख के मम्मी की भी आँखे जो अब तक किसी तरह उन्होने रोका था, गंगा जमुना हो गयी. 'उनके ' चेहरे' पे कुछ 'विशेष' भाव देख के भाभी की आँखो ने प्रश्न वाचक ढंग से उन्हे देखा, वो बोले,
"अगर रोने से गले मिलने का मौका मिले तो मैं भी रोना चाहूँगा. "पल भर मे माहौल बदल गया और मैं भी मुस्कान रोक नही पाई. भाभी ने हंस कर कहा एकदम. जैसे ही वो आगे बढ़ी, उन्होने भाभी को कस के गले लगा लिया, और भाभी ने भी वो मौका क्यो छोड़ती. और फिर भाभी ने हम दोनो को कार मे बैठा दिया. मेने देखा कि आगे एक और कार मे, अगली सीट पे अंजलि बैठी और वो दरवाजे खोलने की कोशिश कर रही थी पर कार के दरवाजे सारे बाहर से बंद थे. भाभी ने बताया कि संजय, सोनू और मोनू भी हम लोगो के साथ छोड़ने जाएँगे. अंजलि ने कहा है कि वो उन्ही लोगो के साथ जाएगी. मैं मन ही मन मुस्करा उठी. तब तक संजय मेरे पास पानी का गिलास ले आया. मैं जैसे ही पीने लगी, उसने धीरे से कहा, बस थोडा सा पीना. मेने कनेखियो से देखा कि कुछ समझा के उसने वो ग्लास रीमा के हवाले कर दिया. रीमा ने मुस्करा कर वो ग्लास 'उन्हे' दिया. साली कुछ दे और वो माना कर दें.उन्होने पूरा ग्लास गटक लिया.
कार जैसे ही हमारे शहर से बाहर निकली, उन्होने मुझसे कहा क़ि तुम चप्पल उतार दो और अपने हाथ से घूँघट थोड़ा सरका के मेरा सर अपने कंधे पे कर लिया. हलके से मेरे कान मे उन्होने मुझे समझाया कि मैं रिलेक्स कर लू, अभी ढाई तीन घंटे का रास्ता है, और वहाँ पहुँच के फिर सारी रस्मे रीत चालू हो जाएँगे. कुछ रात भर के जागने की थकान, कुछ उन के साथ की गरमी और कुछ उनके कंधे का सहारा, मैं थोड़ी देर मे ही पूरी तरह नीद मे तो नही तंद्रा मे खो गयी. एक आध बार मेरी झपकी खुली, तो मेने देखा कि उनका हाथ मेरे कंधे पे है. और एकाध बारचोर चोरी से जाए हेरा फेरी से ने जाए मैने महसूस किया कि उनकी अंगुली का हल्का सा दबाव दिया मेरी चोली पे जान बुझ के मेने आँखे नही खोली लेकिन मेरे सारी देह मे एक सिहरन सी दौड़ गई. उन्होने मुझे हल्के से खोदा, तो मेरी आँख खुल गई. वो बोले, बस हम लोग 10 मिनेट मे पहुँचने वाले है तुम पानी पी लो और फ्रेश हो जाओ. उन्होने ड्राइवर को चाय लाने के भेज दिया था. इतना लंबा सफ़र और पता भी नही चला और नीद इतनी अच्छी थी कि रात भर जागने की सारी थकान उतर गयी.
थोड़ी ही देर मे मैं अपने ससुराल पहुँच गयी. अंजलि और मेरे भाई हम लोगो से थोड़ी ही देर पहले पहुँचे थे. और मैं ये देख के चकित थी कि अंजलि की उन से इतनी तगड़ी दोस्ती हो गयी. मुझे तो लग रहा था वो नाराज़ होगी कि मेरी कार से चालाकी से उन लोगो ने उसे अलग कर दिया पर वो तो एकदम चिपकी हुई थी, खास कर संजय से. मेरी सास और बुजुर्ग औरतो ने पहले परचन किया, लेकिन घर मे घुसने से पहले मेरी ननदो उनकी सहेलियो ने रास्ता रोक रखा था.