Kamukta Story मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन - Page 5 - SexBaba
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Kamukta Story मेरा प्यार मेरी सौतेली माँ और बेहन

“अह्ह्ह्ह हाईए समीरररर बसस्स थोड़ी देर और…..ह हइई अम्म्मी मेरी फुद्दि….. “ फिर क्या था…आपी का जिस्म पूरी तरह काँपते हुए झटके खाने लगा… 

मैं उस के ऊपेर अभी भी चढ़ा हुआ था और उस को झटके मारे जा रहा था.. ..”ओह्ह्ह समीर तूने तो खुस कर दिया आज,……हाआँ कर और ज़ोर से कर…..”

मैने भी जोश मे आकर अपने लंड को आपी की फुद्दि मे जड तक घुसाना शुरू कर दिया….और एक ही मिनट बाद मुझे ऐसा लगने लगा….जैसे मेरे जिस्म का सारा खून मेरे लंड मे इकट्ठा हो गया हो…और फिर ब्लास्ट के साथ मेरे लंड ने आपी के फुद्दि मे ही पानी छोड़ना शुरू कर दिया….


मैं उस वक़्त ख्यालो की दुनिया से बाहर आया…..जब बाहर बरामदे मे रखे फोन की घंटी बजी…..मैं उठ कर बाहर आया और फोन उठाया….दूसरी तरफ से अबू की आवाज़ आई…”हेलो समीर….”

मैं: जी अबू कहिए…..

अबू: देखो बेटा आज रात हम घर नही आ पाएँगे….यहाँ ये सब लोग बहुत ज़िद कर रहे है कि रात यही रूको…..इसलिए हमारा आज रात आना मुस्किल होगा…

मैं: जी अबू….

अबू: हम कल सुबह जल्दी वापिस आ जाएँगे….अपना और नजीबा का ख़याल रखना…

मैं: जी……

मैने फोन रखा और जैसे ही मुड़ा तो देखा पीछे नजीबा खड़ी थी….इससे पहले कि वो कुछ बोलती मैं बोल पड़ा….” अबू का फोन आया था कह रहे थे कि आज रात को नही आएँगे…” 

नजीबा कुछ ना बोली और पलट कर अपने रूम मे जाने लगी. “ आज तुम्हारी अम्मी घर नही आएँगी तो, अपने खाने के लिए कुछ बना लो….” 

नजीबा: क्यों आप नही खाएँगे….

मैं: नही मेरा दिल नही है….

नजीबा: ठीक है तो फिर मैने भी कुछ नही खाना……

मैं: जैसी तुम्हारी मर्ज़ी…..

मैं घर से बाहर चला गया….ऐसे ही इधर उधर घूमने लगा….तो मन मे फ़ैज़ की अम्मी सबा का ख़याल आया….सोचा क्यों ना फ़ैज़ के घर का चक्कर लगा आउ.. मैं फ़ैज़ के घर की तरफ चल पड़ा….शाम के 5 बज चुके थे…जब मे फ़ैज़ के घर पहुचा तो गेट बंद था….मैने डोर बेल बजाई, तो थोड़ी देर बाद ऊपेर से सबा चाची की आवाज़ आई….”कॉन है….?” 

मैने गेट से थोड़ा सा पीछे हट कर ऊपेर देखा और बोला….”सलाम चाची जी…फ़ैज़ घर पर है….” मैने देखा कि सबा मुझे अजीब सी नज़रों से देख रही थी….शायद उस दिन की मेरे हरक़तों की वजह से….

”हां अभी भेजती हूँ….” और वो पीछे हो गयी….थोड़ी देर बाद फ़ैज़ ने आकर गेट खोला…..

मैं: क्या हुआ तेरा चेहरा लटका हुआ क्यों है……

फ़ैज़: कुछ नही यार हल्का सा बुखार हो गया है…..चल अंदर तो आ….

मे अंदर चला गया…हम दोनो ऊपेर आए और फ़ैज़ के रूम मे चले गये….”अम्मी दो कप चाइ बना दो…..” फ़ैज़ ने अपने रूम से चिल्लाते हुए कहा….तो बाहर से सबा चाची की आवाज़ आई….”अच्छा….” 

फ़ैज़: और सुना किधर घूम रहा है….

मैं: बस यार ऐसे ही घर पर अकेला बोर हो रहा था….इसलिए यहाँ चला आया…

फ़ैज़: तो फिर अब घर का महॉल कैसा है…

मैं: ठीक है यार…..

हम दोनो इधर उधर के बातें करने लगे…..थोड़ी देर बाद सबा भी चाइ लेकर आ गयी,….चाइ देने के बाद सबा ने फ़ैज़ से कहा….”बेटे चाइ पीकर मेरे साथ चल मैने पास वाले गाओं से अपने सूट लेकर आने है…..कल शादी मैं वही पहन कर जाना है….”

फ़ैज़: अम्मी आप देख तो रही है कि मेरे तबीयत ठीक नही है….मैं कल सुबह-2 ला दूँगा ना…..

सबा: अब मे किससे कहूँ….तेरे दादा जी भी तो घर पर नही आए अभी तक….

फ़ैज़: अम्मी आप तैयार हो जाओ…..और समीर के साथ चली जाओ…समीर मेरी बाइक पर आपको लेजाएगा…..समीर प्लीज़ यार अम्मी को पास वाले गाओं तक ले जा…वहाँ अम्मी ने कपड़े सिलाने के लिए दिए हुए है….
 
मैने सबा की तरफ देखा तो, उसकी नज़रें फ़ैज़ की तरफ थी….उसके चेहरे से कुछ भी जाहिर नही हो रहा था…..”ठीक है चला जाता हूँ….” मैने चाइ पीते हुए कहा…”जाओ अम्मी इसके साथ चली जाओ….”

सबा ने एक बार मेरी तरफ देखा और बाहर जाते हुए बोली….”ठीक मैं तैयार होकर आती हूँ…

.मैने चाइ ख़तम की और फ़ैज़ के साथ नीचे आ गया…मैने बाइक स्टार्ट करके घर से बाहर निकाली और सबा चाची के आने का इंतजार करने लगा….थोड़ी देर बाद सबा चाची बाहर आई…मेरे मूह से वाह निकलते-2 बचा…सबा चाची इस उमर मे भी कयामत ढा रही थी…..उसने ब्लॅक कलर का प्रिंटेड कमीज़ पहना हुआ था.. और नीचे वाइट कलर की पाजामी पहनी हुई थी….वो जल्दी से मेरे पीछे बाइक पर बैठ गयी….मैने फ़ैज़ की तरफ देखा तो, उसने कहा…”अब जल्दी जाओ….आज बादल भी हो गये है…कही रास्ते मे ही बरसात ना शुरू हो जाए…”

मैने बाइक चला दी….और दूसरे गाओं जाने के लिए मैने रोड की तरफ टर्न लिया ही था कि, सबा चाची ने मुझे टोक दिया…..”इस तरफ से नही दूसरी तरफ कच्चे रास्ते से चलो… उधर से जल्दी पहुच जाएँगे……” 

मैं: चाची कोई ख़ास फरक नही पड़ना….ज़्यादा से ज़्यादा 5 मिनट का फ़र्क पड़ेगा…और ऊपेर से रास्ता भी कच्चा है….

चाची: मैने कहा ना इधर से चलना है….

मैं: ठीक है जैसे आप कहें….

मैने बाइक कच्चे रास्ते की तरफ मोड़ दी…मैं ये सोच रहा था कि, सबा चाची ने इस तरफ से चलने का क्यों कहा….इस तरफ से कोई खास फरक तो पड़ना नही है… ऊपेर से उँचे नीचे रास्ते पर झटके अलग लगने है…कही चाची दूसरे मूड मे तो नही है….खैर हम कच्चे रास्ते पर पहुच गये….ये रास्ता खेतों के बीच से होकर जाता था…दोनो तरफ गन्ने के खेत थी….बाइक चलते हुए सायँ-2 की अजीब से आवाज़ आ रही थी…उस वक़्त वहाँ ना तो, किसी इंसान का नामो निशान नज़र आ रहा था…और ना किसी जानवर का….ऊपेर से कच्चे रास्ते मे गड्ढे इतने थे कि, बाइक की स्पीड बहुत स्लो हो गये थे…जब हम सबा चाची के घर से निकले थे…तो हम दोनो के बीच बहुत गॅप था….लेकिन बाइक के गड्ढो मे उछलने के कारण अब मुझे सबा चाची की फ्रंट साइड मुझे अपनी पीठ पर फील हो रही थी…मैं ये तो नही कहूँगा कि, उनके मम्मे मेरे पीठ से रगड खा रहे थे….

क्यों कि सबा चाची ने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रखा हुआ था….जिससे उनके मम्मे मेरी पीठ पर टच होने से बचे हुए थे….हां बीच मे जब बाइक का टाइयर गड्ढे पर पड़ता और बाइक उछलती तो उस वक़्त उसके मम्मे मेरे पीठ से ज़रूर टकरा जाते…सबा चाची उँची कद काठी की औरत थी….उस वक़्त भी उसकी हाइट मेरे और फ़ैज़ जितनी थी….मेरे पीछे बैठे होने के बावजूद भी वो आगे सब देख रही थी…..और मुझे हिदायत दे रही थी कि, सामने . है इधर बाइक कर लो उधर कर लो….और जब बाइक गड्ढे मे पढ़ कर उछलती तो हम दोनो हँसने लग जाते…अभी हम आधे रास्ते मे ही पहुचे थे कि सामने ऐसा मंज़र आया कि, हमारी हँसी एक दम से बंद हो गयी….सामने एक कुत्ता कुत्ति पर चढ़ा हुआ फुद्दि मार रहा था…. कुत्ता फुल स्पीड से अपने लंड को कुत्ति की फुद्दि मे घुसाए जा रहा था….मुझे सबा चाची का तो पता नही…लेकिन जब तक हम उस कुत्ते कुत्ति से आगे नही निकल गये… 

तब तक वो मंज़र मैं देखता रहा….जब हम पास से गुज़रे तो, मैने फेस साइड मे करके भी देखा……तो पीछे से सबा चाची की आवाज़ आई….उसने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी को रोका….लेकिन फिर भी थोड़ा सा हंसते हुए बोली….”समीर आगे ध्यान दो ….” 
 
मैं थोड़ा शर्मिंदा सा हो गया….और आगे देखने लगा….अभी हम कुछ ही आगे पहुचे थे कि, एक दम से बारिश शुरू हो गयी…..बारिश भी इतनी ज़ोर से पड़ी कि, हमें वही रुकना पड़ा…..मैने बाइक को एक आम के दरख़्त के नीचे रोक दिया…आम का दरख़्त काफ़ी घाना था….इसलिए उसके नीचे बारिश का पानी कम आ रहा था…

हम दोनो आम के पेड़ के नीचे खड़े हो गये….”उफ़फ्फ़ इस बारिश को भी अभी शुरू होना था….” सबा चाची ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा…

.”मैने तो पहले ही आप से कहा था कि, सड़क के तरफ से चलते है…वहाँ से जाते तो, किसी दुकान पर रुक भी जाते…अब क्या करें..थोड़ी देर बाद तो, इसके पत्तों से भी पानी नीचे आना शुरू हो जाना है….”

सबा: मुझे क्या पता था कि बारिश शुरू हो जानी है….वापिसी के वक़्त मे रोड से ही आएँगे तोबा ग़लती हो गयी….

हम वही खड़े होकर बारिश बंद होने का वेट करने लगा….बारिश के साथ-2 बड़ी तेज हवा चलने लगी थी….एक तो सर्दी का मौसम और ऊपेर से बारिश….और ऊपेर से तेज ठंडी हवा….लेकिन उस तेज हवा ने तो, मेरे अंदर आग लगा दी….उस वक़्त जब मेरी नज़र सबा चाची की तरफ पड़ी…उसका ध्यान मेरी तरफ ना था… मैं थोड़ा पीछे दरख़्त के तने के साथ खड़ा था….और सबा चाची थोड़ा आगे थी…. हवा से सबा चाची की कमीज़ का पल्ला उड़ रहा था….जिससे सबा चाची की गान्ड से पल्ला हट चुका था…वाइट कलर की तंग पाजामी मे सबा चाची की बुन्द सॉफ नज़र आ रही थी…क्या मोटी बुन्द थी….मेरा तो लंड ही मेरे पेंट मे टाइट होना शुरू हो गया….और ऊपेर से सबा चाची ने नीचे रेड कलर के पैंटी पहनी हुई थी….जो उसकी पाजामी मे से सॉफ नज़र आ रही थी….

मैं सबा चाची की बूँद को घुरे जा रहा…मेरा ध्यान तो सबा चाची की तरफ थी ही नही….तभी सबा चाची ने फेस घुमा कर मेरी तरफ देखा….और मुझे अपनी बूँद की तरफ घुरते हुए देख लिया….लेकिन तब भी मेरा ध्यान सबा चाची की बूँद पर ही अटका हुआ था…और सबा चाची ने मेरे पेंट मे तने हुए लंड को भी देख लिया था….अचानक मैने सबा चाची के फेस की तरफ देखा तो, मैने शर्मिंदा होकर नज़रें नीचे कर ली…..

”बड़े बेशर्म हो तुम….लगता है फ़ैसल भाई शहाब से तुम्हारी शिकायत करनी ही पड़ेगी…..” मैने गोर किया कि, सबा चाची के चेहरे पर मुस्कान थी…..

मैं: कॉन सी शिकायत….मैने तो कुछ नही किया…..

सबा: अच्छा तुम इतने भी भोले नही हो…जितने तुम दिखते हो…
 
मैने देखा कि, सबा चाची तिरछी नजरो से मेरे पेंट मे फूले हुए लंड को देख रही थी….”मुझे समझी मैं नही आ रहा आप किस बारे मे बात कर रही है….”

सबा: अच्छा अभी तुम मुझे गंदी नज़र से घूर नही रहे थे….

मैं: चाची जान इसमे मेरा क्या कसूर….अब कोई खूबसूरत चीज़ दिखे गी तो देखूँगा ही ना…

सबा: (शर्मा कर मुस्कुराते हुए….) अच्छा ऐसी कॉन सी खूबसूरत चीज़ देख ली तुमने….ज़रा मुझे भी तो पता चले…..

मैं: वही चीज़ जिसकी तारीफ उस दिन बिल्लू कर रहा था…..(मेरा सीधा-2 इशारा सबा की बुन्द की तरफ था….)

सबा: तुम सच मे बड़े बेशर्म हो गये हो…..

मैं चाची के करीब जाकर खड़ा हो गया…..”चाची नीचे जो लाल रंग की पहनी है… उसने बेशर्म होने पर मजबूर कर दिया है….” मैने चाची की रेड कलर के पेंटी के बारे मे कहा तो, उसका चेहरा एक दम से सुर्ख हो गया….

उसने अपनी नज़रें नीचे कर ली…..और होंटो मे मुस्कुराते हुए बोली….”बकवास बंद करो….”

मैं: चाची बिल्लू सच कहता था…तुम्हारी बुन्द को देख कर दबाने का मन करता है….(चाची की शरम और मुस्कुराहट ने मेरे अंदर हिम्मत और हॉंसला भर दिया था…जो मैं इतना सब कुछ कह गया था….और वो मुझे नाराज़ तो किसी भी एंगल से नही लग रही थी…..मैने हिम्मत करते हुए चाची की बुन्द पर हाथ रख कर धीरे से मसल दिया….तो चाची एक दम से हड़बड़ा गयी…और आगे की तरफ होते हुए बोली….)

“ये क्या बदतमीज़ी है….अगर किसी ने देख लिया तो…..” मैं भी चाची के साथ फिर से खड़ा हो गया….”चाची बेशर्म तो मुझे बोल ही चुकी हो….इसलिए सोचा की थोड़ी बेशर्मी कर भी देख लूँ….बेशर्म होने का भी अलग ही मज़ा है….और वैसे भी इस वक़्त यहाँ हम दोनो के सिवाए और कोई नही है….” 

मैने फिर से चाची की कमीज़ के पल्ले के नीचे से हाथ डाल कर चाची की बूँद पर रख दिया…..और इस बार दबाने के बजाए धीरे-2 सहलाने लगा….”समीर पागल मत बनो कोई आ गया तो,…..” 

मैं: चाची इतनी बारिश मे कॉन आएगा यहाँ पर….तुम बस मज़े लो….मैने धीरे-2 चाची की बुन्द को सहलाते हुए कहा….

”फिर भी समीर ये सब ठीक नही है…तुम बहुत छोटे हो…..हम दोनो की उम्र मे बहुत फरक है….” चाची ने थोड़ा सा हिलते हुए कहा…और अपना एक हाथ पीछे लेजा कर मेरा हाथ पकड़ कर हटाने लगी….

पर मैने भी अपना हाथ चाची की बुन्द से नही हटाया और धीरे-2 सहलाता हुआ बोला….”दिल चायदा है जवान….उमेरा च की रखया….” तभी मेरी नज़र उस कुत्ते कुत्ति पर पड़ी…जिसको हमने थोड़ी देर पहले देखा था…दोनो भागते हुए आ रहे थे….”वो देखो चाची दोनो तो बारिश मे मज़े लूट भी आए….” 
 
मेरी बात सुन कर चाची मूह पर हाथ रख कर हँसने लगी….”और हम इंसान होकर भी घुट घुट पर जीते है….”

सबा: लेकिन समीर मुझे इन सब कामो से बहुत डर लगता है….

मैं: डर किस बात का डर….

सबा: बदनामी का डर…तुम्हे नही पता पहले ही गाओं वाले मेरे बारे मे क्या-2 बातें करते है…और कही फ़ैज़ को कुछ पता चल गया तो, मैं तो उसे मूह दिखाने के काबिल भी नही रहूंगी….

मैं: आप फिकर ना करें…..मेरे होते हुए आपकी तरफ कोई उंगली भी नही उठाएगा….ये मे वादा करता हूँ…हम दोनो के बीच जो भी हुआ है और जो होगा…वो सारे राज मेरे दिल मे दफ़न रहेगे….

मैने अब अपने हाथ को थोड़ा सख्ती से इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था…..सबा चाची भी धीरे-2 गरम होने लगी थी….उसकी साँसे अब तेज चल रही थी…” फिर भी समीर अगर कोई इधर से गुज़रा तो,….”

मैं: चाची इतनी बारिश मे यहाँ कॉन आएगा….आप बेफिकर हो जाए….

मैने चाची का हाथ पकड़ा और दरख़्त के पीछे ले गया…सबा चाची भी बिना किसी ज़द ओ जेहद के मेरे साथ पेड़ के तने के पीछे आ गयी….सॉफ जाहिर हो गया था कि, चाची भी गरम हो चुकी थी….मैने सबा चाची को अपनी बाहों मे कसते हुए अपने से लगा लिया….”अहह क्या नरम अहसास था…चाची के बड़े-2 मम्मे मेरे सीने मैं दब गये….और अगले ही लम्हे मैने मैने चाची के होंटो को अपने होंटो मे लेकर चूसना शुरू कर दिया…शुरुआत मे चाची ने एक दो बार अपने होंटो को मेरे होंटो से अलग करके ना नुकर करते हुए कहा कि कोई आ ना जाए…” लेकिन फिर इतमीनान से अपने होंटो को ढीला छोड़ कर मुझसे चुसवाने लगी…

सबा चाची के होंटो को चूस्ते हुए मैने अपने हाथो को कमर से खिसका कर नीचे लेजाना शुरू कर दिया….और फिर कमीज़ के पल्ले को उठाते हुए चाची की पाजामी के ऊपेर से उसकी बुन्द को दोनो हाथो मे लेकर दबाना शुरू कर दिया….मुझे चाची के जिस्म का कांपना सॉफ महसूस हो रहा था…चाची अब पूरी तरह मस्त हो चुकी थे…. उसने भी अपनी दोनो बाजुओं को उठा कर मेरे बाजुओं के ऊपेर से निकाल कर पीठ पर कस लिया था….अब मे पूरे जोश के साथ चाची की मोटी गोल मटोल बुन्द को दबा रहा था सहला रहा था…और जब मे चाची के बुन्द के दोनो पार्ट्स को अलग करके दबाते तो, चाची नीचे से अपनी फुद्दि मेरे लंड पर रगड़ देती….हम करीब ऐसे ही 5 मिनट तक दूसरे के होंटो को चूस्ते रहे….बारिश का शोर बंद हुआ तो, चाची ने अपने होंटो को मेरे होंटो से अलग किया…..
 
सबा: समीर अब बस भी करो….बारिश बंद हो गयी है….इधर कोई भी आ सकता है अब….वैसे भी अंधेरा हो रहा है….अब हमें चलना चाहिए….

मुझे भी चाची की बात ठीक लगी…नजीबा घर पर अकेली थी…मैं चाची से अलग हुआ हम दोनो पेड़ के पीछे से निकल कर बाहर आए और बाइक पर बैठ कर दूसरे गाओं की तरफ चल पड़े….रास्ते मे अब गड्ढो मे पानी भर गया था….हम किसी तरह वहाँ पहुचे यहाँ पर सबा चाची ने सिलाने के लिए कपड़े दिए थे…चाची अंदर गयी….और थोड़ी देर बाद एक बॅग लेकर बाहर आ गयी….और बाइक के पीछे बैठते हुए बोली….”अब मेन रोड की तरफ से चलना….”

मैं: जी….

उसके बाद हम मेन रोड की तरफ निकल गये……रास्ते मे एक छोटा सा अड्डा था…वहाँ पर एक ढाबा खुला देखा तो, याद आया कि, शायद नजीबा ने भी मेरी वजह से खाना ना खाया हो तो, मैने ढाबे के सामने बाइक रोक दी….

सबा: क्या समीर यहाँ बाइक क्यों रोक दी….

मैं: वो घर पर अबू और उनकी वाइफ नही है….इसलिए ढाबे से खाना घर ले जाउन्गा..

सबा: पागल हो क्या….आज मेरे घर पर खा लेना…..

मैं: खा तो लूँगा….लेकिन नजीबा घर पर अकेली है…उसने भी नही खाया होगा.. आप दो मिनट रूको…मे खाना पॅक करवा लेता हूँ,…..

मैं जल्दी से बाइक से नीचे उतरा…और ढाबे से खाना पॅक करवा कर पैसे दिए… और खाने वाला लिफ़ाफ़ा भी सबा को पकड़ा दिया….करीब 10 मिनट बाद हम अपने गाओं पहुचे….हम इस बार मेन रोड से आए थे….इलिए हमारा घर पहले आना था…मैने घर के बाहर बाइक रोकी….तो सबा नीचे उतर गये…मैने बाइक से नीचे उतार कर सबा चाची से खाना पकड़ा और डोर बेल बजाई…थोड़ी देर बाद नजीबा ने गेट खोला….मैने उसकी तरफ खाने का पॅकेट बढ़ा दिया….

मैं: ये लो ढाबे से खाना लाया हूँ…खा लोवा…और हां मैने सबा चाची के घर जा रहा हूँ उन्हे छोड़ने….वही से खाना खा कर आउन्गा….तुम खा ज़रूर लेना… बाकी बात रात को करेंगे….

मैने एक बार पीछे देखा तो सबा गली मे खड़ी किसी औरत से इशारे से कुछ बात कर रही थी….उसका ध्यान हमारी तरफ नही था….मैने नजीबा के गाल पर हाथ रखा और प्यार से सहलाते हुए कहा….”तुम्हे मेरी कसम है खाना ज़रूर खा लेना..मे फ़ैज़ के घर से खाना खा कर आउन्गा….” मेरे इस तरह नजीबा के गाल पर हाथ फेरने से नजीबा का चेहरा खिल उठा..उसने हां मे सर हिलाया और मैं वापिस आकर बाइक स्टार्ट करके बाइक पर बैठ गया…सबा पीछे बैठी तो हम उसके घर की तरफ चल पड़े…..
 
मैं और सबा चाची उनके घर पहुँचे तो, सबा चाची ने बाइक से नीचे उतर कर गेट खोला और मैने बाइक अंदर कर दी….जैसे ही मैने बाइक से उतर कर स्टॅंड लगाना शुरू किया तो, मेरी नज़र कमरे के बाहर बैठे, फ़ैज़ के दादा दादी पर पड़ी…मैने देखा कि, फ़ैज़ के दादा जी अब उमर के हिसाब से काफ़ी बूढ़े हो चुके थे…उनके कंधे झुके हुए थे…..और काफ़ी कमजोर भी लग रहे थे….उनसे दुआ सलाम करने के बाद मैं सबा चाची के साथ ऊपर आ गया…..ऊपेर चार रूम्स एक हॉल और किचन था….सभी रूम्स मे अटॅच्ड बाथरूम थे….

मैं सीधा फ़ैज़ के रूम मे चला गया…फ़ैज़ बेड पर लेटा हुआ था…..”और फ़ैज़ भाई कैसे हो….अब तबीयत कैसी है तुम्हारी….” मैने फ़ैज़ के पास बैठते हुए कहा… 

“यार मेडिसिन ली है….थोड़ी देर बाद फ़र्क पड़ जाएगा……अच्छा यार तुम लोग रास्ते मे भीगे तो नही….बड़ी तेज बारिश शुरू हो गयी थी…..”

मैं: नही हम एक दुकान पर रुक गये थे….

फ़ैज़: चलो अच्छा किया…..यार मेरा एक काम ही कर दो…..

मैं: हां बोलो क्या काम है…..

फ़ैज़: यार जाकर अम्मी से कह दो….मेरे लिए रात के खाने मे कुछ हल्का सा बना दें….

मैं: ठीक है कह देता हूँ…

मैं वहाँ से निकल कर बाहर आया तो, मुझे किचन से कुछ आवाज़ आई…तो मे किचन की तरफ चला गया…अंदर सबा चाची उन्ही कपड़ों मे खाना बना रही थी….” वो फ़ैज़ कह रहा है कि, उसके लिए रात के खाने मे कुछ हल्का सा बना दें….” मैने सबा चाची के पास जाते हुए कहा…और अपना हाथ सबा चाची की कमर पर रख दिया… सबा चाची ने एक बार मेरी तरफ देखा और धीरे से बोली….”फ़ैज़ क्या कर रहा है….?” 

मैं: बेड पर लेटा हुआ है….बुखार है उसे…..

सबा: उसके लिए खिचड़ी रखी है….(सबा ने कुक्कर की तरफ इशारा करते हुए कहा…) और तुम क्या खाओगे….

मैं: जो भी आप बना लो…..

मैने सबा चाची की कमर को धीरे -2 सहलाते हुए कहा…..”अच्छा तुम जाकर फ़ैज़ के पास बैठो….मैं थोड़ी देर मे खाना तैयार करके लाती हूँ….नीचे मेरे सास ससुर भी भूखे होंगे….” 

मैं सबा की कमर पर हाथ फेरते, अपना हाथ नीचे ले गया…और उसकी बुन्द के गोश्त को अपने हाथ मे लेकर मसल दिया…. सबा के जिस्म को झटका सा लगा और उसने मुस्कुरा कर मेरी तरफ देखा….”क्यों आग लगा रहे हो….तुम तो खाना खा कर चले जाओगे….फिर सारी रात मे तंग होती फिरुन्गि….”

मैं: मेरे होते हुए तंग होने की क्या ज़रूरत है…(मैने सबा चाची को आँख मारते हुए कहा….)

तो सबा चाची मुस्कुराने लगी….”अब जाओ भी कही फ़ैज़ उठ कर इधर ना आ जाए…” सबा चाची ने मेरा हाथ अपनी गान्ड से हटाते हुए कहा….तो मैं बिना कुछ बोले बाहर आ गया….और फ़ैज़ के रूम मे चला गया…फ़ैज़ से इधर उधर के बातें करने लगा….करीब 15 मिनट बाद सबा चाची फ़ैज़ के लिए खाना ले आई….और साथ मे पानी के बॉटल और ग्लास भी…..सबा चाची ने फ़ैज़ को बेड पर ही खाना दे दिया….और बाहर जाते हुए बोली….”समीर बेटा तुम थोड़ी देर रूको पहले मैं अम्मी अबू को खन्ना दे आउ….फिर तुम्हारे लिए भी खाना लगा देती हूँ…”

मैं: जी……

करीब 15 मिनट बाद सबा चाची मेरे लिए भी खाना ले आई….मैने खाना खाया और हाथ धो कर फ़ैज़ के पास आया और बोला….”अच्छा यार अब मैं चलता हूँ…..कल मिलूँगा तुमसे….”

फ़ैज़: अच्छा ठीक है…..

मैं जैसे ही बाहर आया तो, देखा कि सबा चाची किचन के डोर पर खड़ी थी….सबा चाची अपनी कपड़े बदल चुकी थी….उसने उस वक़्त येल्लो कलर का पतला सा शलवार कमीज़ पहना हुआ था…और ऊपेर चद्दर ओढ़ रखी थी….”जा रहे हो…?” सबा चाची ने मुझसे पूछा तो मैने हां मे सर हिला दिया…
 
.”चलो मैं नीचे गेट बंद कर आती हूँ…” सबा चाची ने फ़ैज़ के रूम की तरफ देखते हुए कहा….जिसका डोर सर्दी की वजह से बंद था….सबा चाची मेरे आगे चलने लगी…जैसे ही हम आधी सीढ़िया उतरे तो मैने सबा चाची को पीछे से हग कर लिया….मैने अपने बाजुओं को उनकी बगलो से गुजारते हुए अपने हाथो को आगे लाकर उनके मोटे-2 40 साइज़ के मम्मो को पकड़ कर दबाना शुरू कर दिया….”सीईईईईईईई समीईएर….रुक जाओ ना….” सबा चाची ने सिसकते हुए कहा….

मैं: रुक तो जाता चाची जान…..अगर नजीबा घर पर अकेली ना होती….

सबा: हाईए कल आएगा तू…..

मैं: कल क्या चाची जान अब तो रोज आना जाना होगा…

सबा चाची ने मेरे हाथ अपने मम्मो से हटाए और एक दम से मेरी तरफ घूम गयी….अब हम दोनो के फेस एक दूसरे की तरफ थे….सीढ़ियों पर मजीद अंधेरा था….और जहाँ हम खड़े थे….वहाँ सीढ़ियाँ मोड़ लेती थी…..मतलब सॉफ था कि, ना तो ऊपेर से हमे कोई बिना नीचे उतरते देख सकता था…..और ना ही नीचे से कोई बिना ऊपेर चढ़े….घूमते ही सबा चाची ने मेरा एक हाथ पकड़ा और दूसरे हाथ से अपनी इलास्टिक वाली शलवार को खोलते हुए मेरा हाथ अंदर डाल कर अपनी फुद्दि पर रख दिया….जैसे ही मेरा हाथ सबा चाची की फुद्दि पर लगा तो, सबा चाची सिसकते हुए मुझसे लिपट गयी….”देख समीर तेरी सबा चाची की फुद्दि मे कितनी आग लागी है….तू मैने की कर दिता….देख कितना पानी छोड़ रही है….” सबा चाची ने पागलो की तरह मेरे गालो और गर्दन को चूमना शुरू कर दिया…

मैने धीरे-2 सबा चाची की फुद्दि पर हाथ फेरते हुए फुद्दि को दबाना शुरू कर दिया…जिससे सबा चाची का जिस्म ऐसे झटके खाने लगा…जैसे उन्हे करेंट लग गया हो…

जैसे ही मेरी उंगलियों ने सबा चाची के फुद्दि के लिप्स पर दबाव डाला तो, मेरे चारो उंगलियाँ सबा चाची के फुद्दि के पानी से सन गये…..”आह चाची तेरी फुद्दि तो सच मे पानी छोड़ रही है…..” मैने सबा चाची के फुद्दि को और ज़ोर-2 से दबाना शुरू कर दिया….सबा चाची ने सिसकते हुए मेरे लंड को पेंट के ऊपेर से सहलाना शुरू कर दिया… 

तभी ऊपेर से फ़ैज़ ने सबा को पुकारा…तो हम दोनो जल्दी से एक दूसरे से अलग हो गये…”गेट बंद करके आ रही हूँ फ़ैज़ बेटा….” सबा चाची ने वही से चिल्लाते हुए कहा…और हम दोनो नीचे आ गये…मैं गेट खोल कर बाहर आया तो, सबा चाची ने गेट पर खड़े होते हुए कहा….”कल ज़रूर इधर का चक्कर लगाना…”

मैं: जी चाची….

मैं वहाँ से अपने घर के तरफ चल पड़ा….रात के 8 बज चुके थे….और बाहर बारिश के बाद बेपनाह सर्दी हो चुकी थी….आज मैं मन ही मन बहुत खुश था… होता भी क्यों मुझे अपने गाओं की सबसे रहीस औरत जो मिल गये थी….सारे रास्ते मे यही सोचता रहा कि, वो वक़्त कैसा होगा….जब मे सबा चाची के फुद्दि के गरमी को अपने लंड से निकाल लूँगा…..वो मंज़र कैसा होगा….यही सब सोचते हुए मैं कब अपने घर पहुच गया पता नही चला…मैने डोर बेल बजाई तो थोड़ी देर बाद नजीबा ने अंदर से धीरे से कहा….”कॉन है….”

मैं: मैं हूँ समीर…..
 
नजीबा ने गेट खोला तो मैने अंदर आ चला गया…..नजीबा ने गेट लॉक किया…और जैसे ही मेरी तरफ मूडी तो मैने उससे खाने का पूछा…”तुमने खाना तो खा लिया था ना….?” 

मेरी बात सुन कर नजीबा ने हां मे सर हिला दिया…एक बार फिर से बारिश होने के आसार बन रहे थे…मैं अपने रूम की तरफ जाने लगा तो नजीबा ने मेरा हाथ पकड़ लिया…मैने उसकी तरफ पलट कर सवालियाँ नज़रो से उसकी तरफ देखा तो, उसने अपने गुलाबी अधरो पर मुस्कान लाते हुए मुझसे कहा….”थॅंक्स….” 

मैं: थॅंक्स पर किस लिए……

नजीबा: आपने मेरे लिए खाना जो भेजा…..

मैं: अब इसमे थॅंक्स बोलने वाली क्या बात है…

नजीबा: आप ऊपेर से जीतना चाहे गुस्सा निकालते है….लेकिन मे जानती हूँ कि, आपको मेरी बहुत परवाह है….

नजीबा ने अभी भी मेरा हाथ अपने हाथ मे पकड़ रखा था….मैं मूड कर फिर से अपने रूम मे जाने लगा तो, नजीबा ने मेरा हाथ ना छोड़ा….मैने फिर से उसकी तरफ देखा, इस बार उसने अपने सर को झुका लिया…

.”क्या हुआ कुछ और कहना है…..” मैने देखा कि नजीबा की साँसे तेज चल रही थी….उसके गाल सुर्ख हो रहे थे…फिर नजीबा ने अचानक वो किया जिसके बारे मे मैने सोचा भी ना था…. नजीबा एक दम से मुझसे लिपट गयी…उसने अपने दोनो बाजुओं को मेरी बगलों से गुजारते हुए पीछे लेजा कर मेरी पीठ पर कस लिया….”उफफफफफफ्फ़ मे तो मरते-2 बचा… क्या नरम अहसास था….नजीबा के 30 साइज़ के मम्मे मेरे सीने मे धँस गये…

नजीबा को भी इस बात का अहसास ज़रूर होगा….लेकिन उसने अपने मम्मो को मेरे सीने से दूर करने की कॉसिश नही की…..बेखुदी मे मेरे हाथ खुद ब खुद नजीबा के कंधो से होते हुए उसकी पीठ पर आ गये…मैं नजीबा के मम्मो को अपने सीने पर रगड़ ख़ाता महसूस करके पिघलता जा रहा था…..”नजीबा ये सब क्या है…क्या कर रही हो तुम…..” मैने नजीबा के कंधो को पकड़ा और पीछे हटाने के कॉसिश की…लेकिन जैसे ही मैने उसको पीछे पुश करना चाहा….उसने अपनी बाजुओं को मेरी पीठ पर और कस लिया

…”मुझे बर्दास्त नही होता…..जब आप मुझसे नाराज़ होते हो…मैं आपको नाराज़ नही देख सकती….” नजीबा ने कांपति आवाज़ मे कहा….

”नजीबा मुझे लगता है तुम्हे इश्क़ हो गया है…..” मेरी बात सुनते ही नजीबा ने मुझे अपनी बाहों मे और कस लिया….

“यस आइ लव यू…..आइ रियली लव यू…” नजीबा ने शर्ट के ऊपेर से ही मेरी चेस्ट को चूमते हुए कहा….उसकी आवाज़ और लाल सुर्ख चेहरे को देख कर सॉफ पता लगाया जा सकता था कि, नजीबा की हालत उस वक़्त कैसी हो गयी थी….

”प्लीज़ समीर मुझे प्यार करो…. प्लीज़ लव मी…..प्लीज़….” उसने मेरी शर्ट के ऊपेर खुले हुए हिस्से पर चूमना शुरू कर दिया…

मैं तो उसके होंटो की गर्माहट को अपनी गर्दन के करीब महसूस करके पागल ही हो गया…मैने नजीबा के फेस को दोनो हाथो मे पकड़ कर अपने फेस के सामने किया तो देखा उसका चेहरा एक दम लाल सुर्ख हो चुका था…

मैं: नजीबा….(मैने सरगोशी से भरी आवाज़ मे कहा….)

नजीबा: जी……

मैं: नजीबा तुम्हारे होंठ बहुत खूबसूरत है….तुम्हारे इन गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंटो को देख कर मे बहक रहा हूँ….

नजीबा: ये सब आपके लिए है….

मैने अपने होंटो को नजीबा के होंटो की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया….और फिर जैसे ही मेरे होन्ट नजीबा के होंटो से टच हुए, तो नजीबा का पूरा बदन थरथरा गया….और अगले ही पल मैने नजीबा के थरथराते जिस्म को अपनी बाहों मे कसकर उसके होंटो का रस पीना शुरू कर दिया….मैं एक दम पागल हो चुका था…और उसके नरम और रसीले होंटो को जबरदस्त तरीके से चूसना शुरू कर दिया था…नजीबा की तरफ से किसी भी तरह की कोई जदो जेहद ना थी…..पर उसका जिस्म मस्ती मे बुरी तरह काँप रहा था….मैं भी बुरी तरह बहक गया था…मैने नजीबा के होंटो से अपने होंटो को अलग किया तो मैने उसके चेहरे की ओर देखा….उसका गोरा चेहरा ऐसा हो गया था….मानो किसी ने उसके गालो को बैदर्दी से रगड़ दिया हो… मैने देखा कि, नजीबा के नीचे वाले होन्ट के पास लाल रंग का निशान बन गया था…

जो कि शायद मेरे चूसने से बना था..उसकी आँखे अभी भी बंद थी…होन्ट काँप रहे थे….साँसे उखड़ी हुई थी….मानो मेरे अगले कदम का वेट कर रही हो… मैने थोड़ा सा झुक कर नजीबा को अपनी बाहों मे उठा लिया…उसने भी शरमा कर अपने चेहरे को मेरे सीने मे छुपा लिया….और मैं उसे अपनी बाहों मे उठाए हुए उसके कमरे मे ले आया….रूम मे जाने के बाद मैने उसे बेड पर लेटा दिया… और एक बार फिर से गौर से उसके चेहरे को देखा…जो मस्ती और खुमारी मे दहक रहा था…उसने अपनी आँखो को हल्का सा खोल कर मेरी तरफ देखा…और फिर मुस्कुराते हुए अपनी आँखे बंद कर ली…” ऐसे ना देखो…..” 
 
नजीबा ने शरमा कर अपना फेस दूसरी तरफ घुमा लिया…मुझे उसकी हर अदा बड़ी पसन्द आ रही थी…मैने नजीबा के ऊपेर झुकना शुरू किया…और जैसे ही मैं फिर से उसके होंटो को चूमने वाला था कि, बाहर डोर बेल बजी….हम दोनो एक दम से हड़बड़ा गये….मैं सीधा खड़ा हुआ तो, नजीबा भी फुर्ती से खड़ी हुई और अपना दुपट्टा उठा कर अपने सर पर रख कर ढक लिया….”इस वक़्त कॉन आ गया…..” मैने घबराते हुए कहा…और बाहर जाकर आवाज़ दी…..”कॉन है….” 

“ मैं हूँ बैठा गेट खोलो….” ये अबू की आवाज़ थी….एक बार तो मेरे पैर ऐसे काँप गये…जैसे कि अबू ने हमें देख लिया हो…मैने डरते-2 गेट खोला तो, देखा कि अबू बाइक पर बैठे हुए थे….और जबकि नजीबा की अम्मी यानी कि मेरी सौतेली माँ गेट के पास खड़ी थी…अबू ने बाइक अंदर के और साथ मे नाज़िया भी अंदर आ गये…मैने गेट बंद करते हुए पूछा….” अबू आप तो कल सुबह आने वाले थे ना….” 

अबू: हां आना तो कल ही था….लेकिन तुम्हारी अम्मी को तुम दोनो की बड़ी फिकर हो रही थी….इसलिए चले आए….

मैं डरता हुआ अपने रूम मे चला गया…मैने रूम के डोर पर पलट कर देखा तो, नाज़िया बाथरूम से निकल कर नजीबा के रूम की तरफ जा रही थी…मैने अपने रूम मे आकर 0 वॉल्ट का बल्ब ऑन किया और बेड पर लेट गया…
 
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