Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल - SexBaba
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Kamvasna धन्नो द हाट गर्ल

hotaks444

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Nov 15, 2016
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धन्नो द हाट गर्ल


लेखक - सोनाली
हिन्दी फ़ॉन्ट बाइ राज शर्मा
* * * * *
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दोस्तो मैं य्यनी आपका दोस्त राजशर्मा एक और कहानी आपकी पेशेखिदमत करने जा रहा हूँ और आशा करता हूँ ये कहानी भीआपको पसंद आएगी ,

* * * * * * * * * * पात्र (किरदार) परिचय

01. धन्नो- कहानी की हीरोइन, उम्र 20 साल, बी.ए. की स्टूडेंट, रंग गोरा, चाची के साथ रहती है।
02. सोनाली- धन्नो की चाची, विधवा, उम्र 38 साल, अच्छा फिगर, बिल्कुल गोरी।
03. बिंदिया- सोनाली की बड़ी बेटी, उम्र 20 साल, बी.ए. की स्टूडेंट, रंग गोरा,
04. करुणा- सोनाली की छोटी बेटी, उम्र 18 साल, रंग गोरा, खूबसूरत, बड़ी-बड़ी चूचियां और चूतड़।
05. जय- सोनाली का चोदू,
06. आकाश जय का बास
07. रोहन- बिंदिया का बायफ्रेंड
08. कृष्णा- धन्नो का क्लासमेट, गुन्डा, बड़े बाप का बेटा
09. करिश्मा- कृष्णा की गर्लफ्रेंड,
10. शाहिद खान- आकाश का दोस्त, बिजनेसमैन।
11. मोहित- सोनाली की चचेरी मौसी का बेटा, क़द 59” इंच, रंग गोरा, गठीला जिश्म
12. पूनम- पड़ोसन और सोनाली की दोस्त,
13. कमल- पूनम का पति, उम्र 35 साल, क़द 5'8" इंच, रंग सांवला, हट्टा-कट्टा जवान
14. सोनू(सुरेश) सब्जीवाला, उम्र 30 साल, क़द 56 इंच, लण्ड 82" इंच लंबा 3” मोटा, रंग गोरा, ग्रामीण।
15. रिया- मोहित की मंगेतर
16. मनीष- गाँव के मुखिया का बेटा, करुणा का मंगेतर
17. रवि गाँव के मुखिया का दूसरा बेटा, धन्नो का मंगेतर
18. प्रवीण- ट्रेन में सहयात्री
19. राधा- प्रवीण की पत्नी, ट्रेन में सहयात्री
20. शिल्पा- ठाकुर की नौकरानी।
21. सूरज- शिल्पा का यार
22. कविता- शिल्पा की माँ, रंग गोरा, कद लंबा, मस्त फिगर, चूचियां 38" इंच, गाण्ड बहुत बड़ी


*****
 
मैं फ्रेश होकर वापस आई तो खाना टेबल पर लग चुका था। हम सभी ने खाना खाया और आपस में बातें करने लगे। कब दिन बीत गया पता ही नहीं चला और रात को पढ़ाई करने के बाद आँटी हमारे लिए दूध लेने गई। मैंने टायलेट के लिए बाथरूम की तरफ जाते हुए देखा की आँटी दूध में कुछ मिला रही हैं। मैं जल्दी से टायलेट करके अपने कमरे में चली गई। आँटी कमरे में दूध लेकर आ गई।
मैंने आँटी से कहा- “आप दूध रख दो, मैं पी लूंगी...”
आँटी ने कहा- “बेटा मैं जा रही हूँ, मगर दूध पी लेना...”
आँटी के जाने के बाद मैंने दूध उठाकर फेंक दिया। एक घंटे बाद आँटी कमरे में आई। मैं कंबल डालकर सोने का नाटक करने लगी। ऑटी मुझे सोता हुआ देखकर चली गई। जैसे-जैसे टाइम गुजरता जा रहा था मेरे दिल की धड़कनें तेज होती जा रही थीं। रात को 12:00 बजे दरवाजा खुलने की आवाज आई। मैंने जल्दी से जाकर दरवाजे के की-होल से देखने की कोशिश की।
मेरा नशीब अच्छा था की बाहर तेज रोशनी थी। मैंने देखा की जय ने अंदर आते ही आँटी को बाहों में भर लिया और किसों की बौछार कर दी।
आँटी अपने आपको छुड़ाते हुए बोली- “मैं भागी थोड़ी जा रही हूँ कमरे में तो चलो...”
जय आँटी को गोद में उठाकर कमरे में चला गया। मैं आँटी के कमरे की तरफ गई। दरवाजा अंदर से बंद था मगर खिड़की थोड़ी खुली हुई थी। मैं थोड़ा साइड में होकर अंदर देखने लगी। जय ने आँटी के गुलाबी होंठों को चूसते हुए अपनी जुबान अंदर डाल दी जो आँटी बड़े मजे से चूसने लगी। जय ने आँटी की नाइटगाउन उतार दी। अब आँटी सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी। आँटी के 38डी की गोरी-गोरी चूचियां ब्रा फाड़कर बाहर आने को मचल रही थीं, और आँटी का गोरा जिम चमक रहा था।
जय ने आँटी की ब्रा के हुक खोल दिए। ब्रा के हुक खुलते ही जय गुलाबी निपलों पर टूट पड़ा। आँटी सिसक रही थी। जय कभी एक चूची चूसता तो कभी दूसरी।
यह सब देखकर मेरी हालत बिगड़ने लगी। मेरा हाथ खुद ही नीचे चला गया और पैंटी के ऊपर से अपनी चूत सहलाने लगी।
अब जय नीचे होता हुआ आँटी की पैंटी उतारने लगा। पैंटी उतारने के बाद जय आँटी की गुलाबी और कोरी चूत को चूमते हुए अपने हाथों से चूत के दोनों होंठों को अलग करके अपनी जुबान लाल हिस्से में डाल दी। आँटी मजे की जन्नत में डूब गई। जय अपनी पूरी जुबान बहुत तेजी से अंदर-बाहर कर रहा था।


मेरा हाथ भी अब तेज हो चुका था।
अचानक आँटी बहुत जोर से चीखी- “जय मैं आई..”
जय का पूरा चेहरा पानी से भीग गया। वो पानी जय बड़े मजे से चाट रहा था।
यह सब देखकर मेरे होंठ खुश्क हो गये और मैं मजे और लज्जत से बेहोश होने लगी। दो मिनट बाद मुझे होश आया, मेरा हाथ और पैंटी गीले हो चुके थे। यह मेरा पहला ओर्गेज्म था। मैंने फिर अंदर देखा।
जय अपनी पैंट और शर्ट उतार चुका था। उसके अंडरवेर में तंबू बना हुआ था। मैंने अपनी सहेलियों से सुना था की मर्द शादी के बाद अपने लण्ड से औरत को चोदता है। आँटी ने जय का अंडरवेर उतारा और एक बहुत लंबा और मोटा लण्ड जो बिल्कुल गोरा था, उछलकर आँटी के मुँह के सामने आ गया। आँटी लण्ड की ऊपर वाली चमड़ी अलग करके गुलाबी टोपे को चूसने लगी। आँटी के चूसने से लण्ड और बड़ा होता गया। आँटी अपने कोमल हाथों से लण्ड को आगे-पीछे कर रही थी और टोपा चूस रही थी। आँटी के दोनों हाथों में वो लण्ड बड़ी मुश्किल से आ रहा था।
मैं यह देखकर फिर से गरम हो गई और अपनी चूत सहलाने लगी।
 
जय ने आँटी के मुँह से लण्ड निकालकर सीधा लेटाया। उसके नरम दूध चाटते हुए आँटी की टाँगें अपने कंधों पर रख ली। जय अपना लण्ड आँटी की चूत पर रगड़ने लगा। आँटी अब बहुत तेज सिसक रही थी और अपने गोरे और मोटे चूतड़ उछाल रही थी।
सोनाली- “जय अब डाल भी दो, अब बर्दाश्त नहीं होता...”
जय ने यह सुनते ही अपने लण्ड को चूत के मुँह पर रखकर एक जोर का झटका मारा। जय का पूरा लण्ड आँटी की चूत में था और फिर से सारा बाहर निकालकर अंदर डाल देता और ऐसे ही जय धक्के मारने लगा।
आँटी बोली- “ओईईई ऐसे ही मेरे राजा बहुत मजा आ रहा है...”
अब जय आँटी को धक्के लगाते हुए चूचियां भी चूस रहा था।
पांच मिनट बाद आँटी चीखी- “जय मैं आ रही हूँ जोर-जोर से धक्के लगाओ...”
जय अब बहुत तेज धक्के मारने लगा।
आँटी- “हाँ ऐसे ही जय, आई लव यू...” और आँटी की चूत से पानी बहने लगा।
जय ने दो मिनट बाद आँटी को उल्टा कुतिया की तरह लेटाया और अपना लण्ड पीछे से आँटी की चूत में डाल दिया, और धक्के लगाते हुए एक उंगली थूक से गीली करके आँटी की गाण्ड में डाल दी।

आँटी उछल पड़ी- “जय यह क्या कर रहे हो? पीछे मत करो दर्द होता है..”
जय ने अपनी स्पीड तेज कर दी। आँटी अब जोर-जोर से सिसक रही थी। जय ने दूसरी उंगली भी आँटी की गाण्ड में डाल दी। आँटी थोड़ा उछली मगर तेज धक्कों की वजह से वो मजे में डूबी हुई थी।
अचानक आँटी चिल्लाने लगी- “मैं आईइ..” और आँटी फिर से झड़ने लगी।
उधर मैं भी लज्जत की गहराइयों में चली गई।
जय ने मौका देखकर ढेर सारा थूक अपने लण्ड और आँटी की गाण्ड पे लगाया इससे पहले आँटी कुछ समझती, जय ने एक जोर का धक्का मार दिया। आँटी जोर से चील्लाई ‘अह्ह... मर गई' और झटपटाने लगी। मगर जय ने उसे कसकर पकड़ रखा था। जय का आधा लण्ड आँटी की गाण्ड में था।
आँटी की आँखों से आँसू निकल रहे थे, और वो जय को गाली देते हुए कह रह थी- “कुत्ते कमीने... चूत से पेट नहीं भरा जो मेरी गाण्ड फाड़ दी...”
जय गाली सुनकर गुस्से में आकर आँटी के मुँह को हाथों से बंद करके एक और जोरदार धक्का मार दिया और लण्ड आँटी की गाण्ड में जड़ तक घुस गया और खून के फौव्वारे बहने लगे। आँटी की पूँ-हूँ की आवाज आने लगी। मगर जय अब एक जानवर बन चुका था।
 
जय ने अपना लण्ड बाहर खींचकर फिर एक ही झटके में अंदर डालते हुए आँटी से कहा- “साली, छिनाल, रंडी चूत बहुत मजे से मरवाती है और गाण्ड के नाम से नखरे करती हो... अगर आराम से देती तो तुम्हारी ऐसी । हालत नहीं होती...” और जय ने धक्कों की रफ्तार बहुत तेज कर दी और हाँफते हुए आँटी के ऊपर गिर गया। जय का लण्ड सिकुड़कर बाहर निकल आया। लण्ड पे जय का पानी और आँटी का खून लगा हुआ था।
मैं यह देखकर बहुत डर गई और अपने कमरे में आकर सो गई।


* * * * * * * * * *

धन का सपना


रिक्शावाला हर रोज की तरह सुबह मैं और बिंदिया कालेज के लिए तैयार होकर जाने लगे। हमारा कालेज घर से एक कीलोमीटर दूर है, इसीलिए हम दोनों डेली रिक्शा से कालेज जाती हैं। आज भी हम रिक्शा से जा रहे थे। मैं अपने खयालों में खोई हुई थी। अचानक मैंने देखा की रिक्शा कालेज की बजाए किसी और जगह जा रहा है।
मैंने रिक्शेवाले से कहा- “भाई कहाँ जा रहे हो? हमें कालेज जाना है...”
रिक्शेवाले ने कहा- “मुझे थोड़ा काम था इसीलिए इस तरफ आ गया। यहाँ से कालेज का शार्ट कट है। मैं जल्दी से आपको कालेज पहुँचा दूंगा...”
बिंदिया बोली- “हाँ दीदी यहाँ से कालेज दूर नहीं है और इस गरीब का काम भी हो जायगा...”

मैंने कहा- “चलो ठीक है...”
रिक्शा चलता हुआ एक सुनसान जगह पर आकर रुक गया। यहाँ पर घने पेड़ों के अलावा कुछ नहीं था।
मैंने कहा- यहाँ क्यों रोक दिया?
रिक्शेवाले ने हँसते हुए कहा- “यहीं तो काम है...”
मैं बहुत डर गई। मैंने गुस्से से कहा- “क्या काम है?”
रिक्शेवाले ने एक उंगली सीधी करके दिखाई।
मैंने कहा- “अच्छा जल्दी से कर लो...”
रिक्शावाला कुछ दूर जाकर अपनी जिप खोलकर पेशाब करने लगा। अचानक उसने जिप बंद किए बगैर हमारी तरफ मुँह कर लिया, तो उसकी पैंट के बाहर एक बहुत मोटा और बड़ा काला लण्ड लटक रहा था।
मेरे तो होश ही उड़ गये। मैंने कहा- “यह क्या बदतमीजी है?”
 
तभी मैंने देखा की बिंदिया वहाँ पहुँच गई और उसका लण्ड अपने हाथों से सहलाने लगी। मेरा मुँह हैरत से फटा जा रहा था।
मैंने बिंदिया से कहा- “तुम क्या कर रही हो?”
बिंदिया ने हँसते हुए कहा- “धन्नो, तुम अब भी बच्ची हो क्या? आओ इसका स्वाद चख लो और मजे लो...” कहकर बिंदिया अपना मुँह खोलकर लण्ड चूसने लगी।
लण्ड बढ़ता हुआ बड़ा हो गया। यह लण्ड जय से बड़ा और भयानक था। मैं आँखें फाड़कर देख रही थी। तभी बिंदिया उसके लण्ड को मुँह से निकालकर मेरी तरफ आई और मुझे खींचते हुए उस रिक्शेवाले की तरफ ले जाने लगी। मैं भी अपने आपको रोक ना पाई और बिंदिया के साथ जाने लगी।

बिंदिया ने उस रिक्शेवाले का लण्ड मेरे हाथ में थमा दिया। मुझे जाने क्या हुआ मैं उस लण्ड को आगे-पीछे करने लगी और नीचे बैठ गई। अचानक वो रिक्शावाला अपना लण्ड मेरे होंठों पे रगड़ने लगा। मुझपे नशा होने लगा और मैंने अपना मुँह खोल दिया और उसने लण्ड को मुँह में डाल दिया। मुझे उसके लण्ड से कुछ अजीब सी गंध आ रही थी, मगर मुझे अच्छा भी लग रहा था। उस रिक्शेवाले ने अपना लण्ड मेरे मुंह से निकालकर मेरे होंठ पे चूमने लगा और अपनी जुबान मेरे मुँह में डालने लगा।


मुझे बहुत मजा आ रहा था। मैं भी उसका साथ देने लगी, और अपनी जुबान उसके मुँह में डाल दी। वो उसे बड़े प्यार से चाटने लगा और उसने मुझे सीधा लेटा दिया। अब वो मेरे ऊपर था। उसने नीचे होते हुए मेरी स्कर्ट के ऊपर ही मेरी चूचियां सहलाने लगा। मैं मजे से सिसकने लगी।

अचानक बिंदिया ने कहा- “देर हो रही है जल्दी से करो..."

वो रिक्शावाला नीचे होते हुए मेरी पैंटी उतारने लगा। पैंटी उतारकर उसने मेरी चूत पर अपना मुँह रखा और चाटने लगा। मैं मजे से अपना सिर पटकने लगी और उसके सिर को जोर से अपनी चूत पर दबाने लगी। रिक्शावाला अपना मुँह हटाकर एक उंगली पर थूक लगाकर मेरी चूत में डालने लगा। पहले मुझे थोड़ा दर्द हुआ मगर फिर मजा आने लगा। अब वो अपनी पूरी उंगली अंदर-बाहर कर रहा था।

फिर उसने अपनी दो उंगलियां अंदर डाल दी और मुझे फिर से दर्द होने लगा मगर थोड़ी ही देर में मुझे इतना मजा आने लगा की मैं मजे से अपने चूतड़ उठाने लगी और मैं झड़ गई। रिक्शावाले ने मौका देखकर मेरी गीली चूत पर अपना लण्ड रगड़ा और थोड़ा थूक लगाकर मेरी चूत में एक जोरदार धक्का मारा। मेरे मुँह से एक जोरदार चीख निकली।
बिंदिया ने मुझे उठाते हुए कहा- “क्या हुआ दीदी..


.” * * * * * * * * * *धन्नो का सपना समाप्त
 
मैं आँख मलते हुए उठी और कहा- “कुछ नहीं एक डरावना सपना था..." और मैं बाथरूम में फ्रेश होने चली गई मेरी पैंटी पूरी गीली थी। मैं सोचने लगी की शुकर है एक सपना था, और फिर सपना याद करके हँसने लगी बिंदिया ऐसी नहीं हो सकती जैसा सपने में थी। मैं नहाने बाथरूम में चली गई।

मेरी जांघों के बीच चूत में सुरसुरी हो रही थी। मैंने अपने कपड़े उतारे और आईने में अपने आपको निहारने लगी। मेरी चूचियां बिल्कुल गोल-गोल और दूध की तरह सफेद थीं। मैंने नीचे देखा तो हैरत में पड़ गई। मेरी छोटी सी चूत फूलकर डबल रोटी की तरह मोटी गई थी। मैं अपनी टाँगें फैलाकर बड़े गौर से देखने लगी। मेरी चूत पर छोटे-छोटे बाल थे। मैं उनपे हाथ फेरने लगी। मेरी चूत के अंदर गुदगुदी और मजे का अहसास हो रहा था। मैं मजे के सागर में गोते खा रही थी।

मैं अपनी जांघे फैलाकर चूत को गौर से देखने लगी। चूत के ऊपर एक छोटा सा दाना था, उसके ठीक नीचे एक सीधी लकीर खींची हुई थी। मैंने अपने हाथों से चूत की फांकों को अलग किया और अंदर देखने की कोशिश करने लगी। मुझे लाल और गुलाबी रंग के अलावा कुछ नजर नहीं आया। मैं अपने हाथ ऊपर करके चूत के दाने को रगड़ने लगी। वहाँ हाथ लगाते ही आनंद के मारे मेरी आँखें बंद होने लगी। मैं अपने हाथ नीचे करके चूत की फांकों को मसलने लगी। मेरे मुँह से उत्तेजना के मारे सिसकियां निकलने लगी, और मैं एक दूसरी दुनियां में चली गई। मैंने तेज साँसें लेते हुए अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और झड़ने लगी। मेरे हाथ गीले हो गये और मैं वापस होश में आने लगी। मेरी चूचियां अब भी बड़ी तेजी से ऊपर-नीचे हो रही थी।


मैं जल्दी से नहाकर बाहर आ गई। मैं तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आई। आँटी टेबल पर नाश्ता लगा चुकी थी। आज सनडे था, कालेज भी नहीं जाना था। खाना खाने के बाद आँटी बर्तन उठाने लगी, वो थोड़ा लंगड़ाकर चल रही थी।

मैंने आँटी से पूछा- “आप लंगड़ा कर क्यों चल रही हैं?”

सोनाली- “बेटा बाथरूम में नहाते हुए पैर फिसल गया था...” आँटी ने जवाब दिया।

मैं अपने कमरे में चली गई और गुजरी हुई रात के बारे में सोचने लगी।

तभी आँटी के कमरे से फोन की घंटी बजने लगी। आँटी कमरे की तरफ बढ़ी। मैं चुपके से खिड़की के पास आ गई और गौर से आँटी की आवाज सुनने लगी।

आँटी ने फोन उठाकर इधर-उधर देखा और बोली- “तुम बहुत जालिम हो जय। मेरी गाण्ड अब भी दर्द कर रही है। आज रात मत आना...” कहकर आँटी फोन सुनने लगी, फिर कहा- “तुम मेरी बात नहीं मानोगे, अच्छा आ जाना मगर मेरी गाण्ड सूजी हुई है वहाँ पे कुछ मत करना...” कहकर आँटी ने फोन रख दिया।

शाम को बिंदिया ने कहा- “चलो बाजार से कुछ सामान लेकर आते हैं...”

रास्ते में मैंने पूछा- “क्या खरीदना है?”

बिंदिया शर्माकर बोली- “मुझे कुछ अंडरगार्मेंट्स खरीदने हैं.”

मार्केट में पहुँचते ही एक लड़का बिंदिया को इशारे करने लगा। बिंदिया भी मुश्कुराकर जवाब दे रही थी।

मैंने पूछा- क्या माजरा है?
 
बिंदिया मुझे एक माल में ले गई। वहाँ से उसने कुछ ब्रा खरीदी। आँटी की तरह बिंदिया की चूचियां भी बहुत बड़ी-बड़ी हैं। बिंदिया ने 38 नंबर की ब्रा खरीदी थी। वापस आते हुए मैं बिंदिया से उस लड़के के बारे में पूछने लगी। ज्यादा जोर देने पर उसने बताया की वो लड़का उसके साथ कालेज में पढ़ता है और उसका नाम रोहन है। वो मुझसे प्यार करता है और मैं भी उसे पसंद करती हूँ।
मैंने रास्ते में उससे पूछा- “यह सब कब से चल रहा है, और तुम दोनों कितने आगे बढ़ चुके हो?”
बिंदिया ने कहा- दो महीने हुए हैं और हमने अब तक बातों के अलावा कुछ नहीं किया।
घर पहुँचकर मैं बिंदिया के कमरे में चली गई और हम दोनों बातें करने लगे। मैंने बिंदिया से कहा- “आज रात तुम मेरे कमरे में सो जाओ...”


बिंदिया फौरन मान गई। आँटी को भी मैंने मना लिया। पढ़ाई करने के बाद बिंदिया और मैं मेरे कमरे में आ गये। आँटी दूध लेकर आ गई। मैंने आँटी से दूध लिया और टेबल पर रख दिया। आँटी के जाने के बाद मैंने दूध फेंक दिया।
बिंदिया मेरी तरफ हैरत से देखने लगी और पूछने लगी- “तुमने दूध क्यों फेंक दिया धन्नो?”
मैंने बिंदिया को आँटी और जय के बारे में सब कुछ बता दिया।
बिंदिया का मुँह मेरी बातें सुनकर खुला रह गया और वो हैरत से कहने लगी- “धन्नो तुमको जरूर कुछ गलतफहमी हुई है। मेरी माँ ऐसी नहीं हो सकती...”
तभी मुझे आँटी के आने की आहट सुनाई दी मैंने बिंदिया को कहा- “जल्दी से सोने की आक्टिंग करो...”
आँटी हमें सोता हुआ देखकर ग्लास उठाकर चली गई। आँटी के जाने के बाद बिंदिया उठी, उसकी साँसें अब भी ऊपर-नीचे हो रही थीं। मुझे ना जाने क्या हुआ की मैंने बिंदिया की चूचियां थाम ली और उन्हें दबाने लगी। बिंदिया की चूचियां बहुत नरम थी, मुझे ऐसा महसूस हो रहा था की जैसे कोई फोम का टुकड़ा हाथ में हो।
बिंदिया ने उखड़ती हुई साँसों से कहा- “आहहह... धन्नो क्या कर रही हो?”
मैंने उसकी ना सुनते हुए अपना हाथ नीचे सरकाते हुए उसकी सलवार में घुसा दिया और कच्छी के ऊपर से ही । उसकी योनि को रगड़ने लगी। बिंदिया अब मजे से पागल हो रही थी और तेजी से सिसकते हुए अपनी टाँगें चौड़ी कर दी, और अपनी आँखें बंद कर ली। मैंने आगे बढ़ते हुए अपना हाथ उसकी कच्छी में डाल दिया और उसकी चूत का छेद ढूँढ़ने लगी।
अब बिंदिया मजे से छटपटा रही थी। बिंदिया ने अपना हाथ भी सलवार में घुसा दिया और मेरे हाथ को पकड़कर आगे-पीछे करने लगी। मैं अपनी उंगली से उसकी चूत के दाने को टटोलने लगी, और उंगली नीचे करके चूत के छेद में फिराने लगी। उसकी चूत रस से गीली हो चुकी थी। मैंने अपना हाथ बिंदिया की सलवार से बाहर निकाला, और वो कुछ समझ पाती इससे पहले मैंने उसकी सलवार नीचे उतार दी और कच्छी भी नीचे सरका दी। मैं अपना मुँह उसकी गीली चूत के पास ले गई, तो उसकी चूत से भीनी-भीनी महक आ रही थी।
मुझे बिंदिया की चूत की महक बहुत अच्छी लग रही थी। मैं अपनी नाक उसकी चूत के करीब करके उसकी महक सँघते हुए अपने हाथ से उसकी चूत को सहलाने लगी। बिंदिया के मुँह से अब लंबी-लंबी साँसें और सिसकियां निकल रही थीं। मैंने अपना मुँह बिंदिया की चूत में घुसा दिया और उसकी फाँकें चूसने लगी। उसकी चूत चाटने में मुझे बहुत मजा आ रहा था, क्योंकी उसकी चूत का स्वाद बहुत बढ़िया था।
 
बिंदिया काँपने लगी। कुछ देर फांकों को चाटने के बाद मैंने बिंदिया की पूरी चूत को दबोच लिया। मैंने अपनी जीभ निकालकर चूत की फांकों और उसकी पतली दरार को चाटने लगी। अब बिंदिया बहुत जोर से सिसक रही थी। उसकी साँसों की आवाज मुझे सुनाई दे रही थी और तड़प सहन ना करते हुए बिंदिया की योनि से नदियां बहने लगी, और उसकी आँखें बंद हो गई। वो अपने पहले ओर्गेज्म का भरपूर लुत्फ़ उठा रही थी।


उसके योवन रस से मेरा पूरा चेहरा भीग चुका था, मैं अपनी जीभ से बिंदिया का पूरा योवन रस चाट रही थी। उसका स्वाद मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। बिंदिया अब होश में आने लगी और अपनी आँखें खोलकर मेरी तरफ देखने लगी।
मैंने पूछा- मजा आया?
बिंदिया ने शर्म के मारे अपनी गर्दन हिलाकर हाँ कहा।
तभी बाहर से दरवाजा खुलने की आवाज आई। मैंने बिंदिया से कहा- “जल्दी अपने कपड़े पहनो। आज मैं तुम्हें लाइव शो दिखाती हूँ..” कहकर मैं जल्दी से उठी और दरवाजे के की-होल से देखने लगी।
बिंदिया भी मेरे पीछे खड़ी होकर देखने लगी। जय अंदर आते ही आँटी के नरम होंठों पे फ्रेंच-किस करने लगा। आँटी ने भी उसका साथ देते हुए उसे अपनी बाहों में भर लिया। जय ने आँटी से अलग होते हुए दरवाजा बंद किया और आँटी के साथ कमरे में चला गया। मैं जल्दी से बिंदिया को लेकर खिड़की के पास आ गई और अंदर देखने लगी। आँटी ने जय के सारे कपड़े एक-एक करके उतार दिए। जय अब सिर्फ एक अंडरवेर में खड़ा था।
जय- “आज बड़े मूड में हो मेरी रानी...” कहते हुये जय ने आँटी को बाहों में भरना चाहा।
मगर आँटी जय को बेड पर गिराते हुए उसके ऊपर चढ़ गई, और अपनी जुबान निकालकर जय के जिश्म को चाटने लगी और उसकी छाती को अपने मुँह में ले लिया। आँटी जय की छाती चाटते हुए उसे अपने दाँतों से हल्का-हल्का काट रही थी। जय मजे से उछल रहा था।
यह सब देखकर मेरी और बिंदिया की साँसें अटकने लगी। बिंदिया ने मुझे पीछे से जोर से दबोच लिया और अपने हाथ मेरी छातियों पे रख लिया। बिंदिया की तेज साँसें मेरे मुँह के करीब महसूस हो रही थीं।
आँटी ने बैठकर एक नजर जय पर डाली और एक लंबी साँस लेते हुए सीधी होकर जय के ऊपर बैठ गई। आँटी ने एक हाथ अपनी कमीज में डाला और अपनी एक छाती बाहर निकाली। उसकी भरी-भरी एक चूची कमीज के बाहर लटक रही थी। गुलाबी रंग का निपल उत्तेजना की वजह से सीधा खड़ा था। उसने एक नजर जय पे डाली, और अपने हाथों से अपनी छाती दबाने लगी।
जय बड़े गौर से आँटी को घूर रहा था और अपने एक हाथ से अंडरवेर के ऊपर से ही अपने लण्ड को सहला रहा था। आँटी ने जय का दूसरा हाथ पकड़ा और अपनी छाती पे रख दिया, और अपने हाथ के दबाव से छाती दबाने लगी। आँटी ने अपने दूसरे हाथ से जय की चड्ढी नीचे सरका दी। जय का खड़ा लण्ड आँटी के सामने था। वो। पहले भी कई-कई बार इस लण्ड से खेल चुकी थी। मगर फिर भी इतना बड़ा और मोटा लण्ड देखकर उसके दिल की धड़कनें तेज होने लगी। आँटी अपने हाथ को बढ़ाकर लण्ड अपनी मुट्ठी में लेकर सहलाने लगी। आँटी का। हाथ अब पूरे लण्ड पर ऊपर-नीचे हो रहा था।


जय की आँखें मजे से बंद होने लगी। जय के हाथ का दबाव भी आँटी की छाती पे बढ़ता जा रहा था। आँटी ने एक लंबी साँस ली और नीचे झुककर जय का लण्ड अपने मुँह में भर लिया। आह्ह्ह... जय के मुँह से आऽs निकल गई। जय ने एक हाथ से आँटी की छाती सहलाते हुए दूसरे हाथ से उसके सिर को पकड़ लिया।
आँटी लण्ड का चौथा हिस्सा ही अपने मुँह में ले पा रही थी, और वो मोटा इतना था की उसे अपना पूरा मुँह खोलना पड़ रहा था। फिर भी आँटी के दाँत लण्ड को छू रहे थे। आँटी ने फिर भी लण्ड को चूसना जारी रखा और अपने मुँह को लण्ड के ऊपर-नीचे करती रही, और हाथ से लण्ड सहलाती और हिलाती रही।
जय अपना हाथ आँटी के सिर से हटाकर उसकी दूसरी छाती को बाहर निकालने की कोशिश करने लगा, मगर आँटी के झुके होने के कारण वो ऐसा नहीं कर पा रहा था। आँटी ने लण्ड चूसते हुए ही अपना हाथ कमीज में डालकर अपनी दूसरी छाती को बाहर निकाल लिया। जय के दोनों हाथ छातियों पे टूट पड़े और उन्हें मसलने और बेदर्दी से दबाने लगे। जय अब झड़ने वाला था क्योंकी वो अपनी कमर को जोर-जोर हिला रहा था। आँटी भी अपने हाथों को जोर-जोर से आगे-पीछे करते हुए जोर से चूसने लगी।
अचानक जय ने आँटी के सिर को पकड़कर लण्ड पर जोर से दबा दिया, और अपना लण्ड जितना हो सकता था। अंदर सरका दिया और तेज सिसकियों के साथ झड़ने लगा।
 
आँटी ने अपनी आँखें बंद कर ली, लगता था वो भी जय के साथ झड़ रही हैं, क्योंकी आँटी की पैंटी और सलवार गीली हो गई थी। जय का लण्ड आँटी की हलक तक अंदर था। इसीलिए आँटी को उसका सारा माल पीना पड़ा। थोड़ी देर बाद जय ने अपना लण्ड आँटी के मुँह से निकाला, आँटी खांस रही थी और कुछ रुका हुआ माल नीचे गिरने लगा। ऑटी ने नीचे गिरा हुआ माल अपनी जुबान निकालकर चाट लिया और जय के लण्ड को भी अच्छी तरह साफ कर दिया।
मैं और बिंदिया अपनी पैंटी और कच्छी नीचे करके एक दूसरे की चूत को ना जाने कितनी बार झड़ा चुकी थी।
जय ने आँटी से कहा- “तुम्हें मैंने अपने प्रमोशन के बारे में बताया था तुम्हें याद है?"
आँटी ने कहा- “हाँ याद है, कब हो रहा है तुम्हारा प्रमोशन?”
जय- “तुम्हें मेरी मदद करनी होगी तभी मेरा प्रमोशन होगा। आकाश मेरे प्रमोशन के खिलाफ है...”
आँटी- “यह आकाश कौन है? और भला मैं क्या कर सकती हूँ?”
जय- “मेरे बास का नाम आकाश है और वो लड़कियों का बहुत शौकीन है। तुम्हें उसे खुश करना होगा...”
आँटी- “तुमने मुझे क्या रंडी समझकर रखा है जो जिसके साथ तुम कहोगे मैं सो जाऊँगी..." आँटी ने गुस्से से कहा- “तुम किसी रंडी को उसके पास क्यों नहीं ले जाते?”
जय- “वो बहुत खेला हुआ खिलाड़ी है, वो सिर्फ घरेलू औरतों को पसंद करता है। रंडी को वो जल्दी से पहचान लेगा। मैंने आज तक तुमसे कुछ नहीं माँगा। तुम्हें मेरे लिए यह काम करना होगा। मैं सारी उमर तुम्हारा गुलाम बनकर रहूँगा..."
आँटी ने पूछा- “अच्छा ठीक है। मगर यह कैसे होगा?”
जय- “वो तुम मुझ पर छोड़ दो जानेमन.. मैं रात को उसे यहाँ भेज दूंगा...”
जय ने आँटी को बाहों में भरते हुए बिस्तर पर पटक दिया और उसके सारे कपड़े उतार दिए। जय ने आँटी की छाती अपने मुँह में भरते हुए अपने दाँतों से उसकी छाती पे काटने लगा। आँटी सिसकने लगी और जय को अपनी छाती पे दबाने लगी। थोड़ी देर छाती चाटने के बाद जय अपने मुँह को नीचे ले जाने लगा और आँटी की चूत के दाने को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा।
आँटी मजे से- “ओहह... आअह्ह्ह...” करके सिसकने लगी।
जय ने अपना मुँह दाने से हटाते ही आँटी की चूत के होंठों को एक दूसरे से अलग किया और अपनी जीभ निकालकर अंदर डाल दी। जय अपनी पूरी जीभ आँटी की चूत में डालकर अंदर-बाहर कर रहा था। आँटी मजे से पागल होकर जय को अपने ऊपर खींचकर 69 पोजीशन में ले आई और जय के लण्ड को अपने कोमल हाथों से ऊपर-नीचे करने लगी। थोड़ी देर बाद जब उसका हाथ दुखने लगा तो उसने जय का लण्ड अपने मुँह में डालकर दोनों हाथों से उसे आगे-पीछे करने लगी। आँटी जय का लण्ड चूसते हुए कभी बाहर निकालकर उसे अपनी जुबान से ऊपर से नीचे तक चाटती हुई अंडों को भी अपने मुँह में भर लेती।
 
जय का लण्ड अब फिर से पूरी तरह तन चुका था। उसने आँटी को सीधा लेटाते हुए उसकी दोनों टाँगों को घुटनों तक मोड़ दिया। इस पोजीशन में आँटी की फूली हुई चूत बिल्कुल बाहर आ चुकी थी। जय ने अपना लण्ड आँटी की गीली चूत पे रखा और एक झटका मारा, तो जय का आधा लण्ड अंदर जा चुका था। जय ने अपना लण्ड थोड़ा बाहर निकालकर एक और जोर का झटका मारा, जय का लण्ड पूरा आँटी की चूत में था।
आँटी मजे से कराह उठी- “आहह्ह...”
जय ने नीचे झुकते हुए अपने होंठ आँटी के गुलाबी होंठों पर रख दिए। आँटी के मुँह से आह निकल गई और दोनों के होंठ एक दूसरे से मिल गये। जय होंठों का रस चूसते हुए नीचे से तेज धक्के लगाने लगा। आँटी मजे से हवा में उड़ रही थी। आँटी ने जय को जोर से दबोचकर चुंबन में जय का साथ देने लगी और अपने चूतड़ उठाकर धक्कों का जवाब देने लगी। जय अपने हाथों से आँटी की बड़ी-बड़ी चूचियां मसलने लगा। आँटी तीन तरफा हमला ना सहते हुए झड़ने लगी। आँटी के झड़ने के बाद जय ने अपनी स्पीड बहुत तेज कर दी। आँटी ने अपनी जुबान जय मुँह में डाल दी।
जय पागलों की तरह आँटी की जुबान को चूसता हुआ धक्के लगाने लगा। कुछ मिनट बाद जय ने आँटी के मुँह से अपनी जुबान निकालकर आँटी की टाँगें हवा में उठा ली और अपना पूरा लण्ड बाहर निकालकर जड़ तक धक्के लगाने लगा और 8-10 धक्कों के बाद आँटी की चूत में झड़ने लगा। आँटी की चूत से पानी की बूंदें नीचे गिरने लगी। जय हाँफता हुआ आँटी के ऊपर ढेर हो गया।
मैं और बिंदिया जल्दी से अपने कमरे में आ गये और दरवाजा बंद कर लिया। मैं और बिंदिया अंदर आते ही एक दूसरे से लिपट गये, क्योंकी हम दोनों चाची और जय की रोमांचक चुदाई देखकर बहुत गर्म हो गई थी। बिंदिया ने मुझे अपनी बाँहों में लेते हुए अपने गुलाबी होंठ मेरे सुलगाते गर्म होंठों पर रख दिए। मेरा सारा बदन मजे से अकड़ने लगा।
इससे पहले कभी किसी ने भी मुझे चुंबन नहीं दिया था। मैं पागलों की तरह बिंदिया के होंठ की तरह बिंदिया से लिपट गई और उसके होंठ चूसने लगी। मैंने अपनी जीभ निकालकर बिंदिया के मुँह में डाल दी। वो मेरी जीभ को पकड़कर चूसने लगी, और अपनी जीभ भी मेरे मुँह में डाल दी, जिसे मैं चाटने लगी। कुछ देर एक दूसरे की जीभ चाटने के बाद बिंदिया ने मेरी बाहों को ऊपर उठाया और मेरी कमीज उतार दी। मेरी साँसें उखड़ने लगी और मेरी चूचियां मेरी साँसों के साथ ऊपर-नीचे होने लगी।
मेरी चूचियां बिंदिया जितनी बड़ी नहीं थी मगर बिल्कुल गोल-गोल और ऊपर उठी हुई थी। बिंदिया मेरी ब्रा के ऊपर से ही मेरी छातियों को खा जाने वाली नजरों से देखते हुए मेरे पीछे आ गई और मेरी ब्रा के हुक खोल । दिए। ब्रा उतारने के बाद बिंदिया ने पीछे से ही अपनी चूचियां मेरी पीठ से रगड़ते हुए मेरी छातियों को अपने हाथों से दबाने लगी। अचानक बिंदिया ने मेरे कंधे को चूमते हुए मेरे कान की एक लौ अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। मेरी मुँह से सिसकियां निकलने लगी। बिंदिया मेरे तने हुए सख़्त निपलों को अपनी उंगलियों से खींचने लगी।
मेरे मुँह से एक हल्की चीख निकल गई- “ऊऊईई... बिंदिया क्या कर रही हो?” मैंने बिंदिया का हाथ हटाते हुए उसे सीधा किया और उसकी बाँहें उठाकर उसकी कमीज उतार दी।
बिंदिया की बड़ी-बड़ी चूचियां ब्रा को फाड़कर बाहर निकलने के लिए मचल रही थीं। मैंने उसकी ब्रा भी निकाल दी। बिंदिया की छातियां बहुत बड़ी थी। उसके निपल तनकर मोटे हो गये थे। बिंदिया मुझे बाहों में लेते हुए अपनी चूचियां मेरी छातियों से रगड़ने लगी। हम दोनों के जिश्म बहुत गर्म हो गये थे, चूचियां आपस में टकराने से हम दोनों के कड़े निपलों एक दूसरे से रगड़ खा रहे थे और हम दोनों मजे से सिसक रहे थे।
बिंदिया ने नीचे होकर मेरी एक छाती को अपने मुँह में भर लिया और उसे बड़े जोर से चाटने लगी। मेरे सारे बदन में बिजली दौड़ने लगी और मजे से मेरी आँखें बंद होने लगी। मैं बिंदिया के सिर को पकड़कर अपनी छाती पर दबाने लगी। बिंदिया ने अब मेरी दूसरी छाती अपने मुँह में ले ली और पहली वाली को हाथों से सहलाने लगी। अब बिंदिया नीचे होते हुए मेरी नाभि पर आ गई और अपनी जीभ निकालकर मेरी नाभि को चाटने लगी और मेरी सलवार को उतारकर मेरी चड्ढी के ऊपर से मेरी चूत को सहलाने लगी।
मेरे मुँह से सिसकियां निकल रही थी।
 
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