Kamvasna मजा पहली होली का, ससुराल में - Page 2 - SexBaba
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Kamvasna मजा पहली होली का, ससुराल में

* क्यो बात नहीं कल जब इसे पेलेंगे तो ...पिलायेंगें, संतोष कर नन्दोयी बोले

“ अरे डरता क्यों है...” दो घूट ले उसके गाल पे हाथ फेरते वो बोले, “ तेरी बहना की भी तो कोरी थी...एकदम कसी....लेकिन मैंने छोडी क्या. पहले उंगली से जगह बनायी, फिर क्रीम लगा के प्यार से सहला के, धीरे धीरे...और एक बार जब सुपाडा घुस गया...वो चीखी चिल्लाई लेकिन अब...हर हफ्ते उसकी पीछे वाली दो तीन बार तो कम से कम...”

और उन्होने उसको फिर से खींच के अपनी गोद में सेट कर के बैठाया.
दरवाजे की फांक से साफ दिख रहा था. उनका पाजामा जिस तरह से तना था...मैं समझ गयी की उन्होने सेंटर कर के सीधे वहीं लगा के बैठा लिया उसको. वो थोडा कुन्मुनाया, पर उनकी पकड कितनी तगडी थी, ये मुझसे अच्छा कौन जानता था. उन्होने बोतल अब नन्दोयी को बढा दी.

* यार तेरी...मेरी सलहज का पीछा...उसके गोल गोल गुदाज चूतड इतने मस्त हैं देख के खड़ा हो जाता है, और उपर से गदरायी उभरी उभरी चूचीया, बड़ा मजा आता होगा तुझे । उसकी चूची पकड के गांड मारने में. है ना.” बोतल फिर नन्दोयी जी ने वापस कर दी . घूट लगा केवो बोले,
* एक दम सही कहते हैं आप उसके दोनो बडे कडक हैं,बहोत मजा आता है उसकी गांड मारने में

* अरे बडे किस्मत वाले हो साले जी तुम...बस एक अगर मिल जाय ना ...बस जीवन धन्य हो जाय. मजा आ जाय यार.” नन्दोयी जी ने बोतल उठा के कस के घूट लगायी. अपनी तारीफ सुन के मैं भी खुश हो गई थी. मेरी भी गीली हो रही थी.

* अरे तो इसमें क्या कल होली भी है और रिश्ता भी...” बोतल अब उनके पास थी. मुझे भी कोयी एतराज नहीं था. मेरा कोयी सगा देवर था नहीं, फिर नन्दोयी जी भी बहोत रसीले थे.

* तेरे तो मजे हैं यार कल यहां होली और परसों ससुराल में...किस उमर की हैं तेरी सालियां' नन्दोयी जी पूरे रंग में थे. उन्होने बोला की बड़ी वाली १६ की है और दूसरी थोडी छोटी है, ( मेरी छोटी ननद का नाम ले के बोले) ...उसके बराबर होगी.

अरे तब तो चोदने लायक वो भी हो गयी है.” हंस के नन्दोयी जी बोले.

“ अरे उससे भी चार पांच महीने छोटी है...छुटकी.” मेरा भाई जल्दी से बोला. अबतक । उन्होने उअर नन्दोयी ने मिल के उसे भी ८-१० घूट पिला ही दिया था, वो भी सरम लिहाज खो चुका था.
 
* अरे साले साहब से ही पूछिये ना उनकी बहनों का हाल, इनसे अच्छा कौन बतायेगा. ५ वो बोले.

” बोल साल्ले...बडी वाली की चूचीयां कितनी बड़ी हैं।

* वो ..वो उमर में मुझसे एक साल बडी है और उसकी ....उसकी अच्छी हैं. थोडी....दीदी इतनी तो नहीं...दीदी से थोडी छोटी...” हाथ के इशारे से उसने बताया.

मैं शरमा गयी लेकिन अच्छा भी लगा तो मेरा ममेरा भाई मेरे उभारों पे नजर रखता है.

अरे तब तो बड़ा मजा आयेगा तुझे उसके जोबन दबा दबा के रंग लगाने में...' ननदोयी उनसे बोले और फिर मेरे भाई से पूछा, “ और छूटकी की....”

* वो उसकी ...उसकी अभी...” ननदोयी बेताब हो रहे थे. वो बोले अरे साफ साफ बता, उसकी चूचीयां अभी आयीं हैं की नहीं,

* आयीं तो हैं बस अभी लेकिन उभर रहीं हैं,छोटी है बहुत.” वो बेचारा बोला.

अरे उसी में तो असली मजा है चूंचियां उठान में...मीजने में पकड के पेलने में. चूतड कैसे हैं.

* चूतड तो दोनो सालियों के बड़े सेक्सी है, बडी के उभरे उभरे और छुटकी के कमसिन लौंडों जैसे...मैने पहले तय कर लिया है की होली में अगर दोनो साल्लीयों की कच्कचा के गांड ना मारी

हे तुम जब होली से लौट के आओगे तो अपनी एक साली को साथ ले आना ना...उसी छुटकी को...फिर यहां तो रंग पंचमी को और जबरदस्त होली होती है. उस में जम के होली खेलेंगें साल्ली के साथ.”

आधी से ज्यादा बोतल खाली हो गयी थी और दोनो नशे के शुरुर में थे. थोडा बहोत मेरे भाई को भी

* एकदम जीजा ...ये अच्छा आइडिया दिया आपने. बडी वाली का तो बोर्ड का इम्तहान है, लेकिन ये तो अभी ९ वें में है. पंद्रह दिन के लिये ले आयेंगे उस को.”

* अभी वो छोटी है.... वो फिर जिसए किसी रिकार्ड की सुई अटक गयी हो बोला.
 
* अरे क्या छोटी छोटी लगा रखी है. उस कच्ची कली की कसी फुद्दी को पूरा भोंसडा बना के पंद्रह दिन बाद भेजेंगें यहां से...चाहे तो तुम फ्राक उठा के खुद देख लेना.” बोतल मेज पे रखते वो बोले.
* और क्या जो अभी शर्मा रही होगी ना...जब जायेगी तो मुंह से फूल की तरह गालियां झडेगीं, रंडी को भी मात कर देगी वो साल्ली. “ ननदोयी बोले.

मैं समझ गयी अब ज्यादा चढ गयी है दोनों को, फिर उन लोगों की बातें सुन सुन के मेरा भी मन करने लगा था. मैं अंदर गई और बोली, चलिये खाने के लिये देर हो रही है.

नन्दोयी उस के गाल पे हाथ फेर के बोले, अरे इतना मस्त भोजन तो हमारे पास ही है.

वो तीनो खाना खा रहे थे लेकिन खाने के साथ साथ...ननदों ने जम के मेरे भाई को गालीयां सुनाई खास कर छोटी ननद ने. मैने ने भी ननदोयी को नहीं बख्शा. और खाना परसने के साथ मैं जान बुझ के उनके सामने आंचल ठूलका देती कभी कस के झुक के दोनो जोबन लो कट चोली से...नन्दोयी की हालत खराब थी.

जब मैं हाथ धुलाने के लिये उन्हे ले गई तो मेरे चूतड कुछ ज्यादा ही मटक रहे थे, मैं आगे आगे वो पीछे...मुझे पता थी उनकी हालत. और जब वो झुके तो मैने उनकी मांग में चुटकी से गुलाल सिंदूर की। तरह डाल दिया और बोली, सदा सुहागन रखे, बुरा ना मानो होली है. उन्होने मुझे कस के भींच लिया. उनके हाथ सीधे मेरे आंचल के उपर से गदराये जोबन पे और उनका पजामा सीधे मेरे पीछे दरारों के बीच...

मैं समझ गयी की उनका “ खूटा” भी उनके साले से कम नहीं है. मैं किसी तरह छुडाते बोली, समझ गयी मैं जाइये ननद जी इंतजार कर रही होंगी. चलिये कल होली के दिन देख लूंगी आपकी ताकत भी,चाहे जैसे जितनी बार डालियेगा, पीछे नहीं भागूंगीं.
 
जब मैं किचेन में गयी तो वहां मेरी छोटी ननद, कडाही की काल्खि निकाल रही थी और दूसरे हाथ में बिंदी और टिकुली थी. मैने पूछा तो बोली, आपके भाई के श्रिंगार के लिये लेकिन भाभी...उसे बताइयेगा नहीं. ये मेरे उसके बीच की बात है. हंस के मैं बोली, एक दम नहीं, लेकिन अगर कहीं पलट के उसने डाल दिया तो ननद रानी बुरा मत मानना. वो हंस के बोली, अरे भाभी. साल्ले की बात का क्या बुरा मानना. एक दम नहीं और फिर होली तो है डालने डलवाने का त्योहार. लेकिन आप भी समझ जाइये ये भी गांव की होली है, वो भी हमारे गांव की होली. यहां कोयी भी चीज छोडी नहीं जाती होली में.

उसकी बात पे मैं सोचती मुस्कराती कमरे में बैठी तो ते तैयार बैठे थे. बची खुची बोतल भी उन्होने खाली कर दी थी. साडी उतारते उतारते उन्होने पलंग पे खींच लिया और चालू हो गये.

सारी रात चोदा उन्होने, लेकिन मुझे झडने नहीं दिया. जब से मैं आयी थी ये पहली रात थी जब मैं झड़ नहीं पायी वरना हर रात...कम से कम ५-६ बार. इतनी चुदवासी कर दिया मुझे की...वो कस कस के मेरी पनियाई चूत चूसते और जैसे ही मैं झड़ने के करीब होती, कच कचा के मेरी चूचीयां काट लेते. दर्द से मैं बिल बिला पडती, मेरी चीख निकल उठती. मेरे मन में आया भी की...बगल के कमरे में मेरा भाई लेटा है और वो मेरी हर चीख सुन रहा होगा पर तब तक उन्होने निपल को भी कस के काट लिया, नाखून से नोच लिया. उनकी ये नोच खसोट काटना मुझे और मस्त कर देता था. सब कुछ भूल के मैं फिर चीख पडी. मेरी चीखें उनको भी जोश से पागल बना देती थीं. एक बार में ही उन्होने बालिश्त भर लम्बा, लोहे के राड ऐसा सख्त लंड मेरे चूत में जड तक पेल दिया. 

जैसे ही वो मेरी बच्चेदानी से टकराया,मस्ती से मैं चिल्ला उठी हां राजा हां चोद चोद मुझे ऐसे ही. कस कस के पेल दे अपना मूसल मेरी चूत में. और वो भी मेरी चूचीयां मसलते हुए बोलने लगे, ले ले रानी ले. बहूत प्यासी है तेरी चूत ना...घोंट मेरा लौंडा...मेरी सिस्कियां भी बगल के कमरे में सुनायी पड़ रही होंगी, इसक मुझे पूरा अंदाज था, लेकिन उस समय तो बस यही मन कर रहा था की वो चोद चोद कर के बस झाड दें...मेरी चूत. जैसे ही मैं झड़ने के कगार पे पहुंची, उन्होने लंड निकाल लिया. मैं चिल्लाती रही राजा बस एक बार मुझे झाड दो, बस एक मिनट. लेकिन आज उनके सर पे दूसरा ही भूत सवार हो गया. उन्होने मुझे निहुरा के कुतिया ऐसा बना दिया और बोले चल साल्ली पहले गांड मरा. एक धक्के में ही आधा लंड अंदर...ओह ओह फटी ...फट गयी मेरी गांड मैं चिखी कस के. पर उन्होंने मेरे मस्त चूतडों पे दो हाथ कस के जमाये और बोले यार क्या मस्त गांड है तेरी. 

साथ साथ पूछा, होली में चल तो रहा हूँ ससुराल पर ये बोल की साल्लीयां चुदवायेंगी की नही. मैं चूतड मटकाते बोली, अरे साल्लीयां है तेरी न माने तो जबरदस्ती चोद देना. खूश होके जब उन्होने अगला धक्का दिया तो पूरा लंड गांड के अंदर. वो मजे में मेरी क्लिट सहलाते हुए गांड मारने लगे.अब मुझे भी मस्ती चढने लगी. मैं सिस्कियां भरती बोलने लगी हे मुझे उंगली से ही झाड दो ...ओह्ह ओह्ह ...मजा आ रहा है ओहहह. उन्होने कस के लिट को पिंच करते हुए पूछा, हे पर बोल पहले तेरी बहनो की गांड भी मारूगा मंजूर. हां हां ओह ओह...जो चाहो बोला तो तेरी सालियां है जो चाहो करो जैसे चाहो करो. पर अबकी फिर जैसे मैं कगार पे पहुंची उन्होने हाथ हटा लिया. इसी तरह सारी रात ७-८ बार मुझे कगार पे पहूचा के वो रोक देते...मेरी देह में कपन चालू हो जाता लेकिन फिर वो कच कचा के काट लेते.
 
झडे वो जरूर लेकिन वो भी सिर्फ दो बार , पहली बार मेरी गांड मे जब लंड ने झडना शुर किया तो उसे निकाल के सीधे मेरी चूची, चेहरे और बालों पे...बोले अपनी पिचकारी से होली खेल रहा हूं और दूसरी बार एक दम सुबह मेरी गांड में, जब मेरी ननद दरवाजा खटखटा रही थी. उस समय तक रात भर के बाद उनका लंड पत्थर की तरह सख्त हो चुका था. झुका के कुतिया की तरह कर के पहले तो उन्होने अपना लंड मेरी गांड खूब अच्छी तरह फैला के, कस के पेल दिया. फिर जब वो जड तक अंदर तक घुस गया तो मेरे दोनो पैर सिकोड के अच्छी तरह चिपका के, खचाखच खचाखच पेलना शुरु कर दिया. पहले मेरे दोनो पैर फैले थे,उसके बीच में उनका पैर और अब उन्होने जबरन कस के अपने पैरों के बीच में मेरे पैर सिकोड रखे थे. मेरी कसी गांड और सकरी हो गयी थी. मुक्के की तरह मोटा उनका लंड...जब मेरी ननद ने दरवाजा खटखटाया, वो एक दम झडने के कगार पे थे

और मैं भी. उनकी तीन उंगलियां मेरी बुर में और अगूंठा क्लिट पे रगड़ रहा था. लेकिन खट खट की आवाज के साथ उन्होंने मेरी बुर के रस में सनी अपनी उंगलिया निकाल के कस के मेरे मुंह में ठूस दी, दूसरे हाथ से मेरी कमर उठा के सीधे मेरी गांड में झडने लगे. उधर ननद बार बार दरवाजा खट खट...और इधर ये मेरी गांड में झड़ते जा रहे थे. मेरी गीली प्यासी चूत भी...बार बार फुदक रही थी. जब उन्होने गांड से लंड निकाला तो गाढे थक्केदार वीर्य की धार, मेरे चूतडों से होते हुए मेरे जांघ पर भी..पर इस की परवाह किये। बिना, मैने जल्दी से सिर्फ ब्लाउज पहना साडी लपेटी और दरवाजा खोल दिया.

बाहर सारे लोग मेरी जेठानी, सास और दोनो ननदें...होली की तैयारी के साथ.

“अरे भाभी ये आप सुबह सुबह क्या कर मेरा मतलब करवा रही थीं, देखिये आप की सास तैयार हैं. बडी ननद बोली.( मुझे कल ही बता दिया गया था की नयी बहू की होली की शुरुआत सास के साथ होली खेल के होती है और इस में शराफत की कोयी जगह नहीं होती. दोनो खुल के खेलते हैं).

जेठानी ने मुझे रंग पकडाया. झुक के मैने आदर से पहले उनके पैरों में रंग लगाने के लिये झुकी, तो जेठानी जी बोलीण, अरे आज पैरों में नहीं पैरों के बीच में रंग लगाने का दिन है. और यही नहीं उन्होने सासू जी का साडी साया भी मेरी सहायता के लिये उठा दिया. मैं क्यों चूकती, मुझे मालूम था की सासू जी को गुद गुदी लगती है. मैने हल्के से गुद गुदी की तो उनके पैर पूरी तरह फैल गये. फिर क्या था, मेरे रंग लगे हाथ सीधे उनकी जांघ पे. इस उमर में भी ( और उमर भी क्या ४० से कम की ही रही होंगी), उनकी जांघे थोडी स्थूल तो थीं लेकिन एक दम कडी और चिकनी. और अब मेरा हाथ सीधे जांघों के बीच में...
 
मैं एक पल सहमी लेकिन तब तक जेठानी जी ने चढाया अरे जरा अपने पति के जन्म भूमी का तो स्पर्श कर लो. उंगलीयां तब तक घुघराली रेशमी झांटों को छू चुकी थी ( ससुराल में कोयी पैंटी नहीं पहनता था, यहां तक की मैने भी छोड दिया). मूझे लगा की कहीं मेरी सास बुरा ना मान जाये लेकिन वो तो और...खुद बोलीं अरे स्पर्श क्या दर्शन कर लो बहू. और पता नहीं उन्होने कैसे खींचा की मेरा सर सीधे उनकी जांघों के बीच. मेरी नाक एक तेज तीखी गंध से भर गई, जैसे वो अभी अभी ...कर के आयी हों और उन्होने...जब तक मैं सर निकालने का प्रयास करती कस के पहले तो हाथों से पकड के फिर अपनी भरी भरी जांघों से कस के दबोच लिया. उनकी पकड उनके लड़के के पकड से कम नहीं थी. मेरे नथुनो में एक तेज महक भर गयी और अब वो उसे मेरी नाक और होंठों से हल्के से रगड़ रही थीं. हल्के से झुक के वो बोलीं दर्शन तो बाद में कराउंगी पर तब तक तुम स्वाद तो ले लो थोडा. जब मैं किसी तरह वहां से अपना सर निकाल पायी तो वो तीखी गंध...अब एक दम मत वाली सी, तेज मेरा सर घूम सा रहा था. एक तो सारी रात जिस तरह उन्होने तडपाया था, बिना एक बार भी झडने दिये...और उपर से ये.

मेरा सर बाहर निकलते ही मेरी ननद ने मेरे होंठों पे एक चांदी का ग्लास लगा दिया.. लबालब भरा, कुछ पीला सा और होंठ लगते ही एक तेज़ भभका सा मेरे नाक में भर
गया. “अरे पी ले, ये होली का खास शर्बत है तेरी सास का होली की सुबह का पहला प्रसाद.” ननद ने उसे ढकेलते हुए कहा.सास ने भी उसे पकड़ रखा था. मेरे दिमाग में कल गुझिया बनाते समय होने वाली बातें आ गयीं. ननद मुझे चिढ़ा रही थी की भाभी कल तो खारा शरबत पीना पडेगा, नमकीन तो आप हैं हीं वो पी के और नमकीन हो जायेंगी. सास ने चढाया अरे तो पी लेगी मेरी बहू, तेरे भाई की हर चीज सहती है तो ये तो होली की रसम है. जेठानी बोलीं ज्यादा मत बोलो, एक बार ये सीख लेगी तो तुम दोनों को भी नही छोडेगी. मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. मैं बोली, मैने सुना है की गांव में गोबर से होली खेलते हैं. बडी ननद बोली, अरे भाभी गोबर तो कुछ नहीं हमारे गांव में तो...

सास ने इशारे से उसे चुप कराया और मुझसे बोलीं, अरे शादी में तुमने पंच गव्य तो पीया होगा. उसमें गोबर के साथ गो मुत्र भी होता है. मैं बोली, अरे गोमूत्र तो कितनी आयुर्वेदिक दवाओं में पड़ता है, उसमें ...तो मेरी बात काट के बडी ननद बोली की अरे गो माता है तो सासू जी भी तो माता हैं और फिर इंसान तो जानवरों से उपर ही...तो फिर उस का भी चखने में...मेरे ख्यालों में खो जाने से ये हुआ की मेरा ध्यान हट गया और ननद ने जबरन ‘शर्बत मेरे ओंठों से नीचे, सास जी ने भी जोर लगा रखा था और धीरे धीरे कर के मैं पूरा डकार गयी. मैने बहोत दम लगाया लेकिन उन दोनों की पकड बडी तगडी थी. मेरे नथुनों में फिर से एक बार वही मङ्क भर गयी जो...जब मेरा सर उनकी जांघों के बीच में था. लेकिन पता नहीं क्या था...मैं मस्ती से चूर हो गयी थी. लेकिन फिर भी मेरे मुंह में...

किसी ने कहा अरे पहली बार है ना धीरे धीरे स्वाद की आदी हो जाओगी. जरा गुझिया खा ले, मुंह का स्वाद बदल जायेगा. मैंने भी जिस डब्बे में कल बिना भांग वाली गुझिया रखी थी, उसमें से । निकाल के दो खा ली ( वो तो मुझे बाद में पता चला, जब मैं तीन चार गटक चुकी की ननद ने रात में ही डिब्बे बदल दिये थे और उसमें डबल डोज वाली भांग की गुझिया थी). कुछ ही देर में उस का असर भी शुरु हो गया. जेठानी ने मुझे ललकारा, अरे रुक क्यों गयी. अरे आज ही तो मौका है सास के उपर चढायी करने का. दिखा दे की तूने भी अपनी मां का दूध पिया है. और उन्होंने मेरे हाथ में गाढे लाल रंग का पेंट दे दिया सासू को लगाने को.
 
[size=large]अरे किस के दूध की बात कर रही है, इस की पंच भतारी, छिनाल, रंडी हराम चोदी, मां, मेरी समधन की. उस का दूध तो इस के मामा ने, इस के मां के यारो ने चूस के सारा । निकाल दिया. एक चूची इसको चूसवाती थी, दूसरे इसके असली बाप इसके मामा के मुंह में, देती थी."
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सास ने गालीयों के साथ मुझे चैलेंज किया. मैं क्यो रुकती. पहले तो लाल रंग मैने उनके गालों, मुंह पे लगाया. उनका आंचल ढलक गया था ब्लाउज से छलकते बडे बडे, स्तन.



मुझसे नहीं रहा गया, होली का मौका, कुछ भांग और उस शर्बत का असर, मैने ब्लाउज के अंदर हाथ डाल दिया. वो क्यों रुकती. उन्होंने जो मेरे ब्लाउज को पकड के कस के खिंचा तो आधे हुक टूट गये.मैने भी कस कस के उनके स्तनों पे रंग लगाना, मसलना शुरू कर दिया. क्या जोबन थे, इस उमर में भी एक्दम कडे टनक, गोरे और खूब बडे कम से कम ३८डी डी रहे होंगे. 



मेरी जेठानी बोली, अरे जरा कस के लगाओ, यही दूध पीके मेरा देवर इतना ताकत वर हो गया है की...रंग लगाते दबाते मैने भी बोला,



• मेरी मम्मी के बारे में कह रही थी ना, मुझे तो लगता है की आप अभी भी दबवाती चुसवाती हैं. मुझे तो लगता है सिर्फ बचपन में ही नहीं जवानी में भी वो इस दूध को पीते चूसते रहे हैं. क्यों है ना. मुझ ये शक तो पहले से था की उन्होंने अपनी बहनों के साथ अच्छी ट्रेनिंग की है लेकिन आपके साथ भी...” 
[size=large]मेरी बात काट के जेठानी बोली, “ तू क्या कहना चाहती है की मेरा देवर...”[/size]
 
* जी जो आपने समझा कि वो सिर्फ बहन चोद ही नहीं... मादर चोद भी हैं. मैं पूरे मूड में आ गयी थी. बताती हूँ तुझे कह के मेरी सास ने एक झटके में मेरा ब्लाउज खींच के नीचे फेंक दिया. अब मेरे दोनो उरोज सीधे उनके हाथ में.

* बहोत रस है रे तेरी इन चूचीयों में, तभी तो सिर्फ मेरा लड्का ही नहीं गांव भर के मरद बेचारों की निगाह इन पे टिकी रहती है. जरा आज मैं भी तो मजा ले के देखें..." और रंग लगाते लगाते उन्होने मेरा निपल पिंच कर लिया.

* अरे सासू मां, लगता है आपके लड़के ने कस के चूंची मसलना आपसे ही सीखा है. बेकार में अमीं अपनी ननदों को दोष दे रही थी. इतना दबावने चुसवाने के बाद भी इतना मस्त है अप्की चूचीयां” मैं भी उनकी चूची कस के दबाते बोली.


मेरी ननद ने रंग भरी बाल्टी उठा के मेरे उपर फेंकी. मैं झुकी तो वो मेरी चचेरी सास और छोटी ननद के उपर जा के पडी. फिर तो वो और आस पास की दो चार और औरतें जो रिश्ते में सास लगती थी, मैदान में आ गयीं. 

सास का भी एक हाथ सीने से सीधे नीचे, उन्होंने मेरी साडी उठा दी तो मैं क्यों पीछे रहती. मैने भी उनकी साडी आगे से उठा दी. अब सीधे देह से देह, होली की मस्ती में चूर अब सास बहू हम लोग भूल चुके थे. अब सिर्फ देह के रस में डूबे हम मस्ती में बेचैन. मैं लेकिन अकेले नहीं थी.जेठानी मेरा साथ देते बोलीं, तू सासू जी के आगे का मजा ले और मैं पीछे से इन का मजा लेती हूं. कितने मस्त चूतड हैं.” कस कस के रंग लगाती चूतड मसलती वो बोलीं. 

“ अरे तो क्या मैं छोड दूंगी इस नये माल के मस्त चूतडों कों...बहोत मस्त गांड है, एक दम गांड मराने में अपनी छिनाल रंडी मां को पडी है लगता है. देखू गांड के अंदर क्या माल है.” ये कह के मेरी सास ने भी कस के मेरे चूतडों को भींचा और रंग लगाते, दबाते सहलाते, एक साथ ही दो उंगलियां मेरी गांड में घचाक से पेल दीं.

उइइइ मैं चिखी पर सास ने बिना रुके सीधे जड तक घुसेड के ही दम लिया. तब तक मेरी एक चचेरी सास ने एक गिलास मेरे मुंह में, वही तेज वैसी ही महक, वैसा ही रंग....लेकिन अब कुछ भी मेरे बस में नहीं था. दो सासों ने कस के दबा के मेरा मुंह खोल दिया और चचेरी सास ने पूरा ग्लास खाली कर के दम । लिया और बोली, अरे मेरा खारा शरबत तो चख. फिर उसी तरह दो तीन ग्लास और... उधर मेरे सास के एक हाथ की दो उंगलिया, गोल गोल कस के मेरी गांड में घूमती अंदर बाहर होती और दूसरे हाथ की दो उंगलियां मेरी बुर में. मैं कौन सी पीछे रहने वाली थी, मैने भी तीन उंगलियां उनकी बुर में...वो अभी भी अच्छी खासी टाइट थी.
 
“ मेरा लडका बडा ख्याल करता है तेरा बहू पहले से ही तेरी पिछवाडे की कुप्पी में मक्खन मलाई भर रखा है, जिससे मरवाने में तुझे कोयी दिक्कत ना हो.” वो कस के गांड में उंगली करती बोलीं.”

होली अच्छी खासी शुरु हो गयी थी.

“ अरे भाभी आप ने सुबह उठ के इतने ग्लास शर्बत गटक लिये, गुझिया भी गपक ली। लेकिन मंजन तक तो किया नही. आप क्यों नहीं करवा देतीं.” अपनी मां को बडी ननद ने उकसाया.

* हां हां क्यों नहीं मेरी प्यारी बहू है...” और गांड में पूरी अंदर तक १० मिनट से मथ रही उंगलियों को निकाल के सीधे मेरे मुंह में.. कस कस के वो मेरे दांतो पे मुंह पे रगडती रहीं. मैं छटपटा रही थी लेकिन सारी औरतों ने कस के पकड रखा था. और जब उनकी उंगली बाहर निकली तो फिर वही तेज भभक मेरे नथुनों में...अबकी जेठानी थीं. “अरे तूने सबका शरबत पीया तो मेरा भी तो चख ले.” पर बडी ननद तो ...उन्होने बचा हुआ सीधे मेरे मुंह पे. अरे भाभी ने मंजन तो कर लिया अब जरा मुंह भी तो धो लें.

घंटे भर तक वो औरतों सासों के साथ...और उस बीच सब सरम लिहाज...मैं भी जम के गालियां दे रही थी. किसी की चूत गांड मैने नहीं छोडी, और किसी ने मेरी नहीं बख्सी.


उन के जान के बाद थोडी देर हमने सांस ली की...गांव की लडकियों का हुजुम मेरी ननदें सारी, १४ से २४ साल तक ज्यादातर कुवांरी, कुछ चुदी कुछ अन चुदी, कुछ शादी शुदा एक दो तो बच्चो वालीं भी....कुछ देर में जब आईं तो मैं समझ गयी की असली दुरगत अब हुयी. एक से एक गालियां गाती, मुझे ढूंडती, * भाभी भैया के साथ तो रोज मजे उडाती हो आज हमारे साथ भी...” 

ज्यादतर साड़ियों में एक दो जो कुछ छोटी थीं फ्राक में और तीन चार शलवार में भी. मैने अपने दोनों हाथों में गाढा बैगनी रंग पोत रखा था, और साथ में पेंट वार्निश,गाढे पक्के रंग सब कुछ. एक खंभे के पीछे छिप गयी मैं. ये सोच के की कम से कम एक दो को तो पाक्ड के पहले रगड़ लूंगी. तब तक मैने देखा की जेठानी ने एक पडोस कि ननद को, मेरी छोटी बहन छुटकी से भी कम उम्र की लग रही थी, उभार थोडे थोडे बस गदरा रहे थे. कच्ची कली. उन्होंने पीछे से जक्ड लिया और जब तक वो सम्हले सम्हले लाल रंग उसके चेहरे पे पोत डाला. कुछ उसके आंख में भी चला गया और जब तक वो सम्हले समले मेरे देखते देखते, उसकी फ्राक गायब हो गई और वो ब्रा चडडी में. 

जेठानी ने झुका के पहले तो ब्रा के उपर से उसके छोटे छोटे अनार मसले फिर अंदर हाथ डाल के सीधे उसकी कच्ची कलियों को रगड़ना शुरु कर दिया. वो थोडा चिचियायी तो उन्होने कस के दोहथड उसके छोटे छोटे कसे चूतडों पे मारा और बोली,
चुपचाप होली का मजा ले. फिर से पेंट हाथ में लगा के, उसके चूतडों पे, आगे जांघो पे और जब उसने सिसकी भरी तो मैं समझ गयी की मेरी जेठानी की उंगली कहां घुस चुकी है. मैने थोडा सा खंभे से बाहर झांक के देखा, उसकी कुंवारी गुलाबी कसी चूत को जेठानी की उंगली फैला चुकी थी, और वो हल्के हल्के उसे सहला रही थीं.
 
अचानक झटके से उन्होने उंगली की टिप उसकी चूत में घुसेड दी. वो कस के चीख उभ. चुप साल्ली, कस के उन्होने उसकी चूत पे मारा और अपनी चूत उसके मुंह पे रख दी. वो बिचारी मेरी छोटी ननद चीख भी नहीं पायी. ले चाट चूत चाट कस कस के, वो बोलीं और रगडना शुरु कर दिया. मुझे देख के अचरज हुआ की उस साल्ली चूत मरानो मेरी ननद ने। चूत चाटना भी शुरु कर दिया.

वो अपने रंग लगे हाथों से कस के उसकी छोटी चूचीयों को रगड मसल भी रही थीं, कुछ रंगं रगड से चूंचियां एक दम लाल हो गयी थीं. तक हल्की सी धार की आवाज ने ने मेरा ध्यान फिर से चेहरे की ओर खींचा. मैं दंग रह गयी. जेठानी बोल रही थीं, ले पी ननद छिनाल साल्ली होली का शरबत...ले ले एक दम जवानी फूट पडेगी. नमकीन हो जायेगी, ये नमकीन सरबत पी के. एक दम गाढे पीले रंग की मोटी। धार..छर छर ....सीधे उसके मुंह मे. वो छटपटा रही थी लेकिन जेठानी की पकड भी तगडी थी. सीधा उसके मुंह में...जिस रंग का शर्बत मुझे जेठानी ने अपने हाथों से पिलाया था, एक दम उसी रंग का वैसा ही...और उस तरफ देखते समय मुझे ध्यान नहीं रहा की कब दबे पांव मेरी चार गांव की ननदें मेरे पीछे आ गयीं और मुझे पकड़ लिया.



उसमें सबसे तगडी मेरी शादी शुद ननद थी मुझसे थोडी बडी बेला, उसने मेरे दोनो हाथ पकड़े और बाकी ने टांगे फिर गंगा डोली करके घर के पीछे बने एक चबच्चे में डाल दिया. अच्छी तरह डूब गयी मैं रंग में, गाढे रंग के साथ कीचड और ना जाने क्या क्या था उसमें. जब मैं निकलने की कोशिश करती दो चार ननदें उस में जो उतर गयी थीं मुझे फिर धकेल दिया. साडी तो उन छिनालों ने मिल के खींच के उतार ही दी थी. थोड़ी ही देर में मेरे पूरी देह रंग से लथ पथ हो गयी. अब की मैं जब निकली तो बेला ने मुझे पकड़ लिया और हाथ से मेरी पूरी देह में कालिख रगडने लगी.मेरे पास कोयी रंग तो वहां था नही तो मैं अपनी देह ही उस पे रगड़ के अपना रंग उस पे लगाने लगी.

वो बोली, अरे भाभी ठीक से रगडा रगडी करो ना देखो मैं बताती हूँ तुम्हारे ननदोयी कैसे रगड़ते हैं और वो मेरी चूत पे अपनी चूत घिस ने लगी. मैं कौन सी पीछे रहने वाली थी मैंने भी कस के उसकी चूत पे अपनी चूत घिसते हुए बोला, मेरे सैयां और अपने भैया से तो तुमने खुब चुदवाया होगा, अब भौजी का भी मजा ले ले. उसके साथ साथ लेकिन मेरी बाकी ननदें,...आज मुझे समझ में आ गया था की गांव में लड़कियां कैसे इतनी जल्दी जवन हो जाती हैं और उनके चूतड और चूचीयां इतने मस्त हो जाते हैं. 

छोटी छोटी ननदें भी कोयी मेरे चूतड मसल रहा था तो कोयी मेरी चूंचिया लाल रंग लेके रगड़ रहा था. थोडी देर तक तो मैने सहा फिर मैने एक की कसी कच्ची चूत में उंगली ठेल दी, चीख पड़ी वो. मौका पा के मैं बाहर निकल आयी लेकिन वहां मेरी बडी ननद दोनो हाथों में रंग लगाये पहले से तैयार खड़ी थीं.
 
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