hotaks444
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...जेठानी बोली की वो तो हाई स्कूल में थी की उनके के जीजा ने होली में अपने दो दोस्तों के साथ...सैंडविच बनाई, कोई छेद नहीं छोड़ा और यहां पे ससुराल में सबने मिलके उनको तो उनके सगे भाई के साथ ...ननद बोली की नन्दोई जी को होली में इअर एंड केचक्कर में छुट्टी नहीं मिली तो क्लब में ही सबने दारू पी.सब इंतजाम कंपनी की ही ओर से था और फिर खूब सामुहीक ...लेकिन सबसे २० मेरी ही होली थी. मैं कुछ और बोलती की मेरी ननद बोलीं अरे भाभी ये तो खाली ट्रेलर था, जब आप मायके से लौट के आइएगा ना...यहां असली होली तो रंग पंचमी को होती है, होली के पांच दिन बाद और सिर्फ कीचड़ और ' बाकी चीजों से मुझे आंख मार के बोली. जब तक मैं कुछ बोलतीं वो बोली और आपका एक देवर तो बचा ही रह गया है,
शेरू ( उनका कुता था जिसका नाम ले ले के मेरी शादी में ननदों को खूब गालियां दी गयीं थीं). उस दिन उसके साथ भी आपका...तब तक वो आये और बोले अरे जल्दी करो तुम्हारी गाडी का समय हो गया है. मैं तैयार हूँ मैं बोली. अच्छा मै ये सोच रहा था की अगर तुम । कहो तो होली के बाद छुटकी को भी ले आते हैं. अभी तो उसकी छुट्टीयां चलेंगी, अगले साल तो उसका भी हाइस्कूल का बोर्ड हो जायेगा और तुम्हारा भी मन बहल जायेगा.( मैं तो उनकी और नन्दोई जी की बात सुन के छुटकी के बारे में उन लोगों का इरादा जान ही चुकी थी). मुस्करा के मैं बोली अरे आपकी साल्ली है जो आप कहें.
स्टेशन पहुंच के वो अचानक बोले, की अरे मैं एक जरूरी चीज लगता है भूल गया हूँ. ये साला तो हुई है. मैं अगली गाडी से या बाई रोड सुबह पहुंच जाउंगा. मैं क्या बोलती. ट्रेन छूटने का समय हो रहा था. हम लोगों का रिजर्वेशन एक फर्स्ट क्लास के केबिन में था. मुझे खराब तो बहोत लगा लेकिन क्या बोलती. मेरी हालत जान के मेरे भाई के सामने मुझे कस के चूम के वो बोले अरे मैं जल्द ही तुम्हारे पास पहुंच जाउंगा और तब तो ये साल्ला है ही तुम्हारा ख्याल रखने के लिये और उससे बोले साले अपनी बहन का खआल रखना. किसी भी हाल में मेरी कमी महसूस मत होने देना वरना लौट के तेरी गांड मार लूंगा. वो हंस के बोला नहीं जीजा जैसा आपने कहा है एक दम वैसा ही करूंगा. तब तक ट्रेन ने
सीटी दे दी और वो उतर गये.
टीटी ने टिकट चेक करने के बाद कहा की आज ट्रेन खाली ही है और अब इस केबिन में और कोई नहीं आयेगा इस लिये हम लोग दरवाजा अंदर से बंद कर लें.
फर्स्ट क्लास की चौड़ी सीट...वो बैठ गया और मैं थोड़ी देर में मैं दिन की थकी, उसके जांघो पे सर रख के लेट गयी. खिडकी खुली थी. होली का पूनो का चांद अंदर झांक रहा था , मेरे गदराये रसीले जिस्म को सहलाता...फगुनाई हवा मन में तन में मस्ती भर रही थी. मेरी कजरारी आंखे अपने आप बंद हो गयी. आंचल मेरा लुढक गया था...कसे ब्लाउज में उभरे जोबन छलक रहे थे. मैने एक दो हुक खोल दिये. आंखे बंद थी लेकिन मन की आंखे खुली थीं और दिन भर का सीन चल रहा था. मैने सोचा होली हो ली, लेकिन ननद की बात याद आयी ...ये तो अभी शुरु आत है. कल घर पे जम के होली होगी. अब हम लोगों का बदला लेने का मौका होगा, मेरी बहने, सहेलियां, भाभीयां और जैसा मैं इनको समझ गयी थी ये भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाले नहीं. आगे पीछे हर ओर से....और भाभी ने बोला था की वो मुझे भी सोच सोच के सिहरन हो रही थी. फिर लौट के ससुराल में ...ननद जिस तरह से शेरू के बारे में बात कर रही थीं और ननदोई ने भी कहा था की. तब तक जैसे अनजाने में उसका हाथ पड़ गया हो...मेरे ब्लाउज के उपर उसने हाथ रख दिया. मैने भी नींद में जैसे उसका हाथ खींच के खुले ब्लाउज के अंदर सीधे उरोज पे रख दिया. मस्ती से मेरे चूचीयां पत्थर हो रही थी. उसका असर उसके उपर भी. मेरे होंठ सीधे । उसके अकड़ते तन्नाते शिश्न पे...सुबह जब मैने पहले पहल ‘उसका’ देखा था...जब वो ननदोई और उनके साथ...मेरा मन कर रहा था, उसका गप्प से मुंह में ले लें. अब फिर वही बात मेरे होंठ गीले हो रहे थे मैं हल्के हल्के पाजामे के उपर से ही उसे रगड़ रही थी. मुलायम और कडा दोनो ही लग रहा था, मेरे लंबे नाखून उसके साईड से सहला रहे थे. हल्के से मैने उसका नाडा भी खोल दिया, उधर उसने भी मेरे ब्लाउज के बचे हुए हुक खोल दिये और कचाक से मेरा जोबन ब्रा के उपर से...तब तक खट खट की आवाज हुयी. कौन हो सकता है मैने सोचा, टीटी ने टिकट तो चेक कर लिया है और वो बोल के गया था की नहीं आयेगा. आंचल से खुला हुआ ब्लाउज मैने बिना बंद किये ढक लिया और उससे बोली हे देखो कौन है.
शेरू ( उनका कुता था जिसका नाम ले ले के मेरी शादी में ननदों को खूब गालियां दी गयीं थीं). उस दिन उसके साथ भी आपका...तब तक वो आये और बोले अरे जल्दी करो तुम्हारी गाडी का समय हो गया है. मैं तैयार हूँ मैं बोली. अच्छा मै ये सोच रहा था की अगर तुम । कहो तो होली के बाद छुटकी को भी ले आते हैं. अभी तो उसकी छुट्टीयां चलेंगी, अगले साल तो उसका भी हाइस्कूल का बोर्ड हो जायेगा और तुम्हारा भी मन बहल जायेगा.( मैं तो उनकी और नन्दोई जी की बात सुन के छुटकी के बारे में उन लोगों का इरादा जान ही चुकी थी). मुस्करा के मैं बोली अरे आपकी साल्ली है जो आप कहें.
स्टेशन पहुंच के वो अचानक बोले, की अरे मैं एक जरूरी चीज लगता है भूल गया हूँ. ये साला तो हुई है. मैं अगली गाडी से या बाई रोड सुबह पहुंच जाउंगा. मैं क्या बोलती. ट्रेन छूटने का समय हो रहा था. हम लोगों का रिजर्वेशन एक फर्स्ट क्लास के केबिन में था. मुझे खराब तो बहोत लगा लेकिन क्या बोलती. मेरी हालत जान के मेरे भाई के सामने मुझे कस के चूम के वो बोले अरे मैं जल्द ही तुम्हारे पास पहुंच जाउंगा और तब तो ये साल्ला है ही तुम्हारा ख्याल रखने के लिये और उससे बोले साले अपनी बहन का खआल रखना. किसी भी हाल में मेरी कमी महसूस मत होने देना वरना लौट के तेरी गांड मार लूंगा. वो हंस के बोला नहीं जीजा जैसा आपने कहा है एक दम वैसा ही करूंगा. तब तक ट्रेन ने
सीटी दे दी और वो उतर गये.
टीटी ने टिकट चेक करने के बाद कहा की आज ट्रेन खाली ही है और अब इस केबिन में और कोई नहीं आयेगा इस लिये हम लोग दरवाजा अंदर से बंद कर लें.
फर्स्ट क्लास की चौड़ी सीट...वो बैठ गया और मैं थोड़ी देर में मैं दिन की थकी, उसके जांघो पे सर रख के लेट गयी. खिडकी खुली थी. होली का पूनो का चांद अंदर झांक रहा था , मेरे गदराये रसीले जिस्म को सहलाता...फगुनाई हवा मन में तन में मस्ती भर रही थी. मेरी कजरारी आंखे अपने आप बंद हो गयी. आंचल मेरा लुढक गया था...कसे ब्लाउज में उभरे जोबन छलक रहे थे. मैने एक दो हुक खोल दिये. आंखे बंद थी लेकिन मन की आंखे खुली थीं और दिन भर का सीन चल रहा था. मैने सोचा होली हो ली, लेकिन ननद की बात याद आयी ...ये तो अभी शुरु आत है. कल घर पे जम के होली होगी. अब हम लोगों का बदला लेने का मौका होगा, मेरी बहने, सहेलियां, भाभीयां और जैसा मैं इनको समझ गयी थी ये भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाले नहीं. आगे पीछे हर ओर से....और भाभी ने बोला था की वो मुझे भी सोच सोच के सिहरन हो रही थी. फिर लौट के ससुराल में ...ननद जिस तरह से शेरू के बारे में बात कर रही थीं और ननदोई ने भी कहा था की. तब तक जैसे अनजाने में उसका हाथ पड़ गया हो...मेरे ब्लाउज के उपर उसने हाथ रख दिया. मैने भी नींद में जैसे उसका हाथ खींच के खुले ब्लाउज के अंदर सीधे उरोज पे रख दिया. मस्ती से मेरे चूचीयां पत्थर हो रही थी. उसका असर उसके उपर भी. मेरे होंठ सीधे । उसके अकड़ते तन्नाते शिश्न पे...सुबह जब मैने पहले पहल ‘उसका’ देखा था...जब वो ननदोई और उनके साथ...मेरा मन कर रहा था, उसका गप्प से मुंह में ले लें. अब फिर वही बात मेरे होंठ गीले हो रहे थे मैं हल्के हल्के पाजामे के उपर से ही उसे रगड़ रही थी. मुलायम और कडा दोनो ही लग रहा था, मेरे लंबे नाखून उसके साईड से सहला रहे थे. हल्के से मैने उसका नाडा भी खोल दिया, उधर उसने भी मेरे ब्लाउज के बचे हुए हुक खोल दिये और कचाक से मेरा जोबन ब्रा के उपर से...तब तक खट खट की आवाज हुयी. कौन हो सकता है मैने सोचा, टीटी ने टिकट तो चेक कर लिया है और वो बोल के गया था की नहीं आयेगा. आंचल से खुला हुआ ब्लाउज मैने बिना बंद किये ढक लिया और उससे बोली हे देखो कौन है.