hotaks444
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माँ का दुलारा
(लेखक – कथा प्रेमी)
सावधान........... ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक मा बेटे के सेक्स की कहानी है
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी मा का दुलारा ले कर आपके लिए हाजिर हूँ
ये तो हम सभी जानते है की जिंदगी मे इंसान सिर्फ़ और सिर्फ़ सेक्स के बारे मे सोचता है दोस्तो जो इंसान ये कहता है कि वह अपने ईमान का पक्का है तो ग़लत कहता है क्योकि सेक्स तो जीवन का एक रूप है अगर सेक्स नही होता तो शायद ये दुनिया नही होती लेकिन हम इंसानो ने सेक्स की कुछ सीमाए बना दी ताकि इंसान कम से कम अपने घर अपने कुछ रिश्तो को सेक्स की नज़र से ना देखे लेकिन फिर भी हर इंसान बेशक वह सेक्स करे या ना करे लेकिन उसके मन मे अपनी मा या बहन के लिए ग़लत विचार आ ही जाते हैं चाहे थोड़ी देर के लिए ही क्यो ना आए इंसान के मन मे ग़लत भावना आ ही जाती है दोस्तो मे भी मा बहन के लिए सेक्स के बारे सोचना पाप समझता हू लेकिन फिर भी कुछ पारशेंट लोग तो अपने चरित्र से गिर ही जाते है ये कहानी भी एक ऐसे बेटे की है जो अपनी मा का दुलारा था लेकिन जब वो बड़ा हुआ तो.........................................अब आप ये कहानी उसी की ज़ुबानी सुने ............मेरा नाम अनिल है. घर मे बस मैं और मेरी मोम रीमा है. मोम और डॅडी का बहुत पहले डाइवोर्स हो गया था. उसके बाद डॅडी से हमारा कोई संपर्क नही रहा है. डॅडी दुबाई मे जा बसे है, वाहा उन्होंने दूसरी शादी कर ली है. दाइवोर्स के बाद मैंने मोम के साथ रहने का फ़ैसला किया था. तब मैं सिर्फ़ आठ साल का था. दोनों मे बहुत झगड़ा होता था इसलिए एक तराहा से जब मोम अलग हुई तो मेरी जान मे जान आई. मैं मोम से बहुत प्यार करता था, उसके बिना रहने की कल्पना भी नही कर सकता था.
हमारा घर मुंबई मे है. मोम ने दाइवोर्स के बाद दिल्ली मे नौकरी पकड़. ली और मुझे पूना मे होस्टल मे रख दिया कि मेरी पढ़ाई मे खलल ना हो. मैं काफ़ी रोया चिल्लाया पर मोम के समझाने पर आख़िर मान गया. उसने मुझे बाँहों मे भर कर प्यार से समझाया कि उसे अब नौकरी करना पड़ेगी और एक होस्टल मे रहना होगा. इसलिए यही बेहतर था कि मैं होस्टल मे रहूं. तब हमारा खुद का घर भी नही था और मोम मुझे नानाजी के यहाँ नही रखना चाहती थी. बड़ी स्वाभिमानी है.
पिछले साल मोम ने नौकरी बदल कर यहाँ मुंबई मे नौकरी कर ली. यहाँ उसे अच्छी काफ़ी सैलरि वाली नौकरी मिल गयी. घर भी किराए पर ले लिया. मेरा भी एच.एस.सी पूरा हो गया था इसलिए मोम ने मुझे फिर यहाँ अपने पास बुला लिया की आगे की पढ़.आई यही करूँ.
अब तक मैं साल मे सिर्फ़ दो तीन बार मोम से मिलता था, गरमी और दीवाली की छुट्टी मे.वह सारा समय मज़ा करने मे जाता था. मोम भी नौकरी करती थी इसलिए साथ मे रहना कम ही होता था, बस रविवार को. पिछले एक दो सालों से, ख़ास कर जब से मैंने किशोरावस्था मे कदमा रखा, धीरे धीरे मोम के प्रति मेरा नज़रिया बदलने लगा था. अब मैं उसे एक नारी के रूप मे भी देखने लगा था. होस्टल मे रहकर लड़के बदमाश हो ही जाते हैं. तराहा तराहा की कहानियाँ पढ़ते है और पिक्चर देखते है. मेरे साथ भी यही हुआ. उन कहानियों मे कई मोम बेटे के कहानियाँ होती थीं. बाद.आ मज़ा आता था मैं ज़्यादातर राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ.ब्लॉगस्पोट.कॉम पर सेक्सी कहानियाँ पढ़ता था पर कभी कभी जब मैं मोम और मेरी उन कहानियों जैसी स्थिति मे होने की कल्पना करता था तो पहले तो सब अटपटा लगता था. मोम आख़िर मोम थी, मुझे प्यार करने वाली, मुझपर ममता की वर्षात करने वाली. बहुत अपराधिपन भी महसूस होता था पर मन को कौन पिंजरे मे डाल पाया है.
जब मैं एच.एस.सी के बाद घर रहने वापस आया तो मोम के साथ हरदम रहकर उसके प्रति मेरा आकर्षण चरमा सीमा पर पहुँच गया. मोम अब करीब सैंतीस साल की है. मोम का चेहरा बहुत सुंदर है, कम से कम मेरे लिए तो वा सबसे बड़ी ब्यूटी क्वीन है. शरीर थोड़ा मांसल और मोटा है, जैसा अक्सर इस उमर मे स्त्रियों का होता है, पर फिगर अब भी अच्छा है. मोम रहती एकदमा टिप टाप है. आख़िर एक बड़ी मलतिनेशनल मे आफिसर है. पहले वह ड्रेस और पैंट सूट भी पहनती थी, आजकल हमेशा साड़ी पहनती है. कहती है कि अब इस उमर मे और कुछ अच्छा नही लगता. पर साड़ियाँ एकदमा अच्छी चाइस की होती हैं. चेहरे पर सादा पर मोहक मेकअप करती है ज़रा सी गुलाबी लिपस्टिक भी लगा लेती है जिससे उसके रसीले होंठ गुलाब की कलियों से मोहक लगने लगते है.
जब मैं वापस मोम के साथ रहने आया तब अक्सर दिन भर अकेला रहता था. उसे इतना काम रहता था कि वह अक्सर रात को देर से आती थी. शनिवार को भी जाना पड़.आता था. बस रविवार हम साथ बिताते थे. तब मुझसे खूब गप्पे लगाती, मेरे लिए ख़ास चीज़े बनाती और शामा को मेरे साथ घूमने जाती.
पर अब मैं उससे बात करने मे थोड़ा झिझकने लगा था. मेरी नज़र बार बार उसके मांसल शरीर पर जाती. घर मे वह गाउन पहनती थी और इसलिए तब उसके स्तनों का उभार उस ढीले गाउन मे छिप जाता. पर जब्वह साड़ी पहने होती और उसका पल्लू कभी गिरता तो मेरी नज़र उसके वक्षास्तल के मुलायम उभार पर जाती. उसके ब्लओज़ थोड़ा लो कट है इसलिए स्तनों के बीच की खाई हमेशा दिखती थी. अगर वह झुकती तो मेरे सारे प्राण मेरी आँखों मे सिमट आते, उसके उरजों के बीच की वह गहरी वैली देखने को. वह अगर स्लीवलेस ब्लाउz पहनती तो उसकी गोरी गोरी बाँहे मुझे मंत्रमुग्धा कर देतीं. मोम की कांखे बिलकुल चिकनी थीं, वह उन्हे नियमित शेव करती थी. स्लीवलेस ब्लाउz पहनने के लिए यहा ज़रूरी था. पीछे से साड़ी और ब्लाउz के बीच दिखती उसकी गोरी कमर देखकर मैं दीवाना सा हो जाता. थोड़ा मुटापे के कारण उसकी कमर मे अक्सर हल्के टायर से बन जाते. और मोम की दमकती चिकनी गोरी पीठ, उसपरासे मेरी नज़र नही हटती थी! उसके लो कट के ब्लओज़ मे से उसकी करीब करीब पूरी पीठ दिखती. मोम की त्वचा बहुत अच्छी है, एकदम कोमल और निखरी हुई.
और उसके नितंबों का तो क्या कहना. पहले से ही उसके कूल्हे चौड़े हैं. मुझे याद है कि बहुत पहले जब उसका बदन छरहरा था, तब भी उसके कूल्हे ज़्यादा चौड़े दिखते थे. वह उसपर कई बार झल्लाति भी, क्योंकि उसे लगता कि वह बेडौल लगती है. पर उसे कौन बताए की उन चौड़े कुल्हों के कारण मेरी नज़रों मे वह कितनी सुंदर दिखती थी. ख़ासकर जब वह चलती तो उसे पीछे से देखने को मैं आतुर रहता था. मोटे मोटे तरबूजों जैसे नितंब और बड़े स्वाभाविक तरीके से लहराते हुए; मुझे लगता था कि वही मोम के पीछे बैठ जाउ और अपना चेहरा उनके बीच छुपा दूँ.
और मोम के पाँव. एकदम गोरे और नाज़ुक पाँव थे उसके. मोतिया रंग का नेल पेंट लगी वो पतली नाज़ुक उंगलियाँ और चिकनी मासल एडी. वह चप्पले और सैंडल भी बड़ी फैशनेबल पहनती थी जिससे वो और सुंदर लगते थे. इसलिए मोम के पैर छूने मे मुझे बहुत मज़ा आता था. और ख़ासकर पिछले एक साल से जब मैं होस्टल से आता या वापस जाता, ज़रूर झुककर दोनों हाथों से उसके पैर छूटा, अच्छे से और देर तक; उसे वह अच्छा नही लगता था.
"क्यों पैर छूता है रे मेरे, मैं क्या तेरे नानी हू. बंद कर दे." वह अक्सर झल्लाति पर मैं बाज नही आता था. मन मे कहता
"मॅमी, तू नाराज़ ना हो तो मैं तो तेरे पाँव चुम लूँ." एस डी बर्मन का एक गाना मुझे याद आता, मोम के चरणामृत के बारे मे "... ये चरण तेरे माँ, देवता प्याला लिए, तरसे खड़े माँ!" उस गाने मे मों के प्रति भक्ति है पर मेरे मन मे यहा गाना मीठे नाजायज़ ख़याल उभार देता.
कम से कम यह अच्छा था कि अब मोम मुझे प्यार से अपनी बाँहों मे नही भरती थी जैसा वह बचपन मे करती थी. मैं बड़ा हो गया था. यहा अच्छा ही था क्योंकि अब मोम को देखकर मैं उत्तेजित होने लगा था. जब वह घर का काम करती और उसका ध्यान मेरी ओर नही होता तब मैं उसे मन भर कर घुरता. मेरा लंड तन्नाकार खड़ा हो जाता था. कभी उसके सुंदर चेहरे और रसीले होंठों को देखता, कभी उसके नितंबों को और कभी उसकी पीठ और कमर पर नज़र गढ़ाए रहता. उसके सामने किसी तरह से मैं कंट्रोल कर लेता था पर मौका मिले तो ठीक से घूर कर मैं उसकी मादक सुंदरता का मन ही मन पान करते हुए अपने लंड पर हाथ रखकर सहलाने लगता.
कभी मोम सोफे पर बैठकर सामने की सेती पर पैर रख कर टीवी देखती या कुछ पढ़ती तो मेरा मन झुम उठता क्योंकि अक्सर उसका गाउन सरककर उपर हो जाता और उसके गोरे पैर और मांसल चिकनी पिंडलियाँ दिखाने लगती. मैं भी वही एक किताब लेकर बैठ जाता और उसके पीछे से उन्हे देखता रहता और एक हाथ से अपना लंड सहलाता.
अक्सर मोम पैर पर पैर रखकर एक पैर हिलाती, तो उसकी उंगलियों से लटकी चप्पल हिलने लगती. यहा देखकर तो मैं और मदहोश हो जाता. पहले ही मैं उसके पैरों और चप्पालों का दीवाना था, फिर वह पैर से लटककर नाचती रबर की मुलायम चप्पल देखकर मुझे लगता था कि अभी उसे हाथ मे ले लूँ और चुम लूँ, चबा चबा कर खा जाउ. एक बार मोम ने मुझे अपने पैर की ओर घुरते हुए देख लिया था, तुरंत पैर हिलाना बंद करके देखने लगी कि कुछ लगा है क्या, मैंने बात बना दी कि मोम शायद एक कीड़ा चढ़ा था, उसे देख रहा था.
मोम को पसीना भी ज़्यादा आता था. उसके ब्लओज़ की कांख भीगी रहती थी. वह नज़ारा भी मुझे बहुत उत्तेजित करता था. कई बार मैंने कोशिश की की कपड़े बदलते समय उसे देखु. पर वह हमेशा अपने बेडरूम मे दरवाजा लगाकर ही कपड़े बदलती. सोचती होगी क़ी अब बेटा बड़ा हो गया है.
मैं घर के काम करने मे उसकी खूब मदद करता, जो वह कहती तुरंत भाग कर करता. वह भी मुझ पर खुश थी. मैं परेशान था, आख़िर क्या करूँ, कुछ समझ नही पा रहा था. बीच बीच मे लगता कि मोम के बारे मे ऐसा सोचना पाप है पर उसके मादक आकर्षण के आगे मैं विवश हो गया था. मैं अक्सर यहा भी सोचता की मोम जैसी सुंदर नारी आख़िर अकेले कैसे रहती है, क्या उसे कभी सेक्स की चाहत नही होती? क्या उसका कोई अफेयर है? लगता तो नही था क्योंकि बेचारी आफ़िस से आती तो थॅकी हुई. उसे समय ही कहाँ था कुछ करने के लिए. और घर मे भी अब वह अकेली नही थी, मैं जो था.
(लेखक – कथा प्रेमी)
सावधान........... ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक मा बेटे के सेक्स की कहानी है
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी मा का दुलारा ले कर आपके लिए हाजिर हूँ
ये तो हम सभी जानते है की जिंदगी मे इंसान सिर्फ़ और सिर्फ़ सेक्स के बारे मे सोचता है दोस्तो जो इंसान ये कहता है कि वह अपने ईमान का पक्का है तो ग़लत कहता है क्योकि सेक्स तो जीवन का एक रूप है अगर सेक्स नही होता तो शायद ये दुनिया नही होती लेकिन हम इंसानो ने सेक्स की कुछ सीमाए बना दी ताकि इंसान कम से कम अपने घर अपने कुछ रिश्तो को सेक्स की नज़र से ना देखे लेकिन फिर भी हर इंसान बेशक वह सेक्स करे या ना करे लेकिन उसके मन मे अपनी मा या बहन के लिए ग़लत विचार आ ही जाते हैं चाहे थोड़ी देर के लिए ही क्यो ना आए इंसान के मन मे ग़लत भावना आ ही जाती है दोस्तो मे भी मा बहन के लिए सेक्स के बारे सोचना पाप समझता हू लेकिन फिर भी कुछ पारशेंट लोग तो अपने चरित्र से गिर ही जाते है ये कहानी भी एक ऐसे बेटे की है जो अपनी मा का दुलारा था लेकिन जब वो बड़ा हुआ तो.........................................अब आप ये कहानी उसी की ज़ुबानी सुने ............मेरा नाम अनिल है. घर मे बस मैं और मेरी मोम रीमा है. मोम और डॅडी का बहुत पहले डाइवोर्स हो गया था. उसके बाद डॅडी से हमारा कोई संपर्क नही रहा है. डॅडी दुबाई मे जा बसे है, वाहा उन्होंने दूसरी शादी कर ली है. दाइवोर्स के बाद मैंने मोम के साथ रहने का फ़ैसला किया था. तब मैं सिर्फ़ आठ साल का था. दोनों मे बहुत झगड़ा होता था इसलिए एक तराहा से जब मोम अलग हुई तो मेरी जान मे जान आई. मैं मोम से बहुत प्यार करता था, उसके बिना रहने की कल्पना भी नही कर सकता था.
हमारा घर मुंबई मे है. मोम ने दाइवोर्स के बाद दिल्ली मे नौकरी पकड़. ली और मुझे पूना मे होस्टल मे रख दिया कि मेरी पढ़ाई मे खलल ना हो. मैं काफ़ी रोया चिल्लाया पर मोम के समझाने पर आख़िर मान गया. उसने मुझे बाँहों मे भर कर प्यार से समझाया कि उसे अब नौकरी करना पड़ेगी और एक होस्टल मे रहना होगा. इसलिए यही बेहतर था कि मैं होस्टल मे रहूं. तब हमारा खुद का घर भी नही था और मोम मुझे नानाजी के यहाँ नही रखना चाहती थी. बड़ी स्वाभिमानी है.
पिछले साल मोम ने नौकरी बदल कर यहाँ मुंबई मे नौकरी कर ली. यहाँ उसे अच्छी काफ़ी सैलरि वाली नौकरी मिल गयी. घर भी किराए पर ले लिया. मेरा भी एच.एस.सी पूरा हो गया था इसलिए मोम ने मुझे फिर यहाँ अपने पास बुला लिया की आगे की पढ़.आई यही करूँ.
अब तक मैं साल मे सिर्फ़ दो तीन बार मोम से मिलता था, गरमी और दीवाली की छुट्टी मे.वह सारा समय मज़ा करने मे जाता था. मोम भी नौकरी करती थी इसलिए साथ मे रहना कम ही होता था, बस रविवार को. पिछले एक दो सालों से, ख़ास कर जब से मैंने किशोरावस्था मे कदमा रखा, धीरे धीरे मोम के प्रति मेरा नज़रिया बदलने लगा था. अब मैं उसे एक नारी के रूप मे भी देखने लगा था. होस्टल मे रहकर लड़के बदमाश हो ही जाते हैं. तराहा तराहा की कहानियाँ पढ़ते है और पिक्चर देखते है. मेरे साथ भी यही हुआ. उन कहानियों मे कई मोम बेटे के कहानियाँ होती थीं. बाद.आ मज़ा आता था मैं ज़्यादातर राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ.ब्लॉगस्पोट.कॉम पर सेक्सी कहानियाँ पढ़ता था पर कभी कभी जब मैं मोम और मेरी उन कहानियों जैसी स्थिति मे होने की कल्पना करता था तो पहले तो सब अटपटा लगता था. मोम आख़िर मोम थी, मुझे प्यार करने वाली, मुझपर ममता की वर्षात करने वाली. बहुत अपराधिपन भी महसूस होता था पर मन को कौन पिंजरे मे डाल पाया है.
जब मैं एच.एस.सी के बाद घर रहने वापस आया तो मोम के साथ हरदम रहकर उसके प्रति मेरा आकर्षण चरमा सीमा पर पहुँच गया. मोम अब करीब सैंतीस साल की है. मोम का चेहरा बहुत सुंदर है, कम से कम मेरे लिए तो वा सबसे बड़ी ब्यूटी क्वीन है. शरीर थोड़ा मांसल और मोटा है, जैसा अक्सर इस उमर मे स्त्रियों का होता है, पर फिगर अब भी अच्छा है. मोम रहती एकदमा टिप टाप है. आख़िर एक बड़ी मलतिनेशनल मे आफिसर है. पहले वह ड्रेस और पैंट सूट भी पहनती थी, आजकल हमेशा साड़ी पहनती है. कहती है कि अब इस उमर मे और कुछ अच्छा नही लगता. पर साड़ियाँ एकदमा अच्छी चाइस की होती हैं. चेहरे पर सादा पर मोहक मेकअप करती है ज़रा सी गुलाबी लिपस्टिक भी लगा लेती है जिससे उसके रसीले होंठ गुलाब की कलियों से मोहक लगने लगते है.
जब मैं वापस मोम के साथ रहने आया तब अक्सर दिन भर अकेला रहता था. उसे इतना काम रहता था कि वह अक्सर रात को देर से आती थी. शनिवार को भी जाना पड़.आता था. बस रविवार हम साथ बिताते थे. तब मुझसे खूब गप्पे लगाती, मेरे लिए ख़ास चीज़े बनाती और शामा को मेरे साथ घूमने जाती.
पर अब मैं उससे बात करने मे थोड़ा झिझकने लगा था. मेरी नज़र बार बार उसके मांसल शरीर पर जाती. घर मे वह गाउन पहनती थी और इसलिए तब उसके स्तनों का उभार उस ढीले गाउन मे छिप जाता. पर जब्वह साड़ी पहने होती और उसका पल्लू कभी गिरता तो मेरी नज़र उसके वक्षास्तल के मुलायम उभार पर जाती. उसके ब्लओज़ थोड़ा लो कट है इसलिए स्तनों के बीच की खाई हमेशा दिखती थी. अगर वह झुकती तो मेरे सारे प्राण मेरी आँखों मे सिमट आते, उसके उरजों के बीच की वह गहरी वैली देखने को. वह अगर स्लीवलेस ब्लाउz पहनती तो उसकी गोरी गोरी बाँहे मुझे मंत्रमुग्धा कर देतीं. मोम की कांखे बिलकुल चिकनी थीं, वह उन्हे नियमित शेव करती थी. स्लीवलेस ब्लाउz पहनने के लिए यहा ज़रूरी था. पीछे से साड़ी और ब्लाउz के बीच दिखती उसकी गोरी कमर देखकर मैं दीवाना सा हो जाता. थोड़ा मुटापे के कारण उसकी कमर मे अक्सर हल्के टायर से बन जाते. और मोम की दमकती चिकनी गोरी पीठ, उसपरासे मेरी नज़र नही हटती थी! उसके लो कट के ब्लओज़ मे से उसकी करीब करीब पूरी पीठ दिखती. मोम की त्वचा बहुत अच्छी है, एकदम कोमल और निखरी हुई.
और उसके नितंबों का तो क्या कहना. पहले से ही उसके कूल्हे चौड़े हैं. मुझे याद है कि बहुत पहले जब उसका बदन छरहरा था, तब भी उसके कूल्हे ज़्यादा चौड़े दिखते थे. वह उसपर कई बार झल्लाति भी, क्योंकि उसे लगता कि वह बेडौल लगती है. पर उसे कौन बताए की उन चौड़े कुल्हों के कारण मेरी नज़रों मे वह कितनी सुंदर दिखती थी. ख़ासकर जब वह चलती तो उसे पीछे से देखने को मैं आतुर रहता था. मोटे मोटे तरबूजों जैसे नितंब और बड़े स्वाभाविक तरीके से लहराते हुए; मुझे लगता था कि वही मोम के पीछे बैठ जाउ और अपना चेहरा उनके बीच छुपा दूँ.
और मोम के पाँव. एकदम गोरे और नाज़ुक पाँव थे उसके. मोतिया रंग का नेल पेंट लगी वो पतली नाज़ुक उंगलियाँ और चिकनी मासल एडी. वह चप्पले और सैंडल भी बड़ी फैशनेबल पहनती थी जिससे वो और सुंदर लगते थे. इसलिए मोम के पैर छूने मे मुझे बहुत मज़ा आता था. और ख़ासकर पिछले एक साल से जब मैं होस्टल से आता या वापस जाता, ज़रूर झुककर दोनों हाथों से उसके पैर छूटा, अच्छे से और देर तक; उसे वह अच्छा नही लगता था.
"क्यों पैर छूता है रे मेरे, मैं क्या तेरे नानी हू. बंद कर दे." वह अक्सर झल्लाति पर मैं बाज नही आता था. मन मे कहता
"मॅमी, तू नाराज़ ना हो तो मैं तो तेरे पाँव चुम लूँ." एस डी बर्मन का एक गाना मुझे याद आता, मोम के चरणामृत के बारे मे "... ये चरण तेरे माँ, देवता प्याला लिए, तरसे खड़े माँ!" उस गाने मे मों के प्रति भक्ति है पर मेरे मन मे यहा गाना मीठे नाजायज़ ख़याल उभार देता.
कम से कम यह अच्छा था कि अब मोम मुझे प्यार से अपनी बाँहों मे नही भरती थी जैसा वह बचपन मे करती थी. मैं बड़ा हो गया था. यहा अच्छा ही था क्योंकि अब मोम को देखकर मैं उत्तेजित होने लगा था. जब वह घर का काम करती और उसका ध्यान मेरी ओर नही होता तब मैं उसे मन भर कर घुरता. मेरा लंड तन्नाकार खड़ा हो जाता था. कभी उसके सुंदर चेहरे और रसीले होंठों को देखता, कभी उसके नितंबों को और कभी उसकी पीठ और कमर पर नज़र गढ़ाए रहता. उसके सामने किसी तरह से मैं कंट्रोल कर लेता था पर मौका मिले तो ठीक से घूर कर मैं उसकी मादक सुंदरता का मन ही मन पान करते हुए अपने लंड पर हाथ रखकर सहलाने लगता.
कभी मोम सोफे पर बैठकर सामने की सेती पर पैर रख कर टीवी देखती या कुछ पढ़ती तो मेरा मन झुम उठता क्योंकि अक्सर उसका गाउन सरककर उपर हो जाता और उसके गोरे पैर और मांसल चिकनी पिंडलियाँ दिखाने लगती. मैं भी वही एक किताब लेकर बैठ जाता और उसके पीछे से उन्हे देखता रहता और एक हाथ से अपना लंड सहलाता.
अक्सर मोम पैर पर पैर रखकर एक पैर हिलाती, तो उसकी उंगलियों से लटकी चप्पल हिलने लगती. यहा देखकर तो मैं और मदहोश हो जाता. पहले ही मैं उसके पैरों और चप्पालों का दीवाना था, फिर वह पैर से लटककर नाचती रबर की मुलायम चप्पल देखकर मुझे लगता था कि अभी उसे हाथ मे ले लूँ और चुम लूँ, चबा चबा कर खा जाउ. एक बार मोम ने मुझे अपने पैर की ओर घुरते हुए देख लिया था, तुरंत पैर हिलाना बंद करके देखने लगी कि कुछ लगा है क्या, मैंने बात बना दी कि मोम शायद एक कीड़ा चढ़ा था, उसे देख रहा था.
मोम को पसीना भी ज़्यादा आता था. उसके ब्लओज़ की कांख भीगी रहती थी. वह नज़ारा भी मुझे बहुत उत्तेजित करता था. कई बार मैंने कोशिश की की कपड़े बदलते समय उसे देखु. पर वह हमेशा अपने बेडरूम मे दरवाजा लगाकर ही कपड़े बदलती. सोचती होगी क़ी अब बेटा बड़ा हो गया है.
मैं घर के काम करने मे उसकी खूब मदद करता, जो वह कहती तुरंत भाग कर करता. वह भी मुझ पर खुश थी. मैं परेशान था, आख़िर क्या करूँ, कुछ समझ नही पा रहा था. बीच बीच मे लगता कि मोम के बारे मे ऐसा सोचना पाप है पर उसके मादक आकर्षण के आगे मैं विवश हो गया था. मैं अक्सर यहा भी सोचता की मोम जैसी सुंदर नारी आख़िर अकेले कैसे रहती है, क्या उसे कभी सेक्स की चाहत नही होती? क्या उसका कोई अफेयर है? लगता तो नही था क्योंकि बेचारी आफ़िस से आती तो थॅकी हुई. उसे समय ही कहाँ था कुछ करने के लिए. और घर मे भी अब वह अकेली नही थी, मैं जो था.